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मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं, पति रोजाना संबंध बनाने के लिए मारपीट करते हैं, क्या करूं?

सवाल

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. पति रोजाना मुझ से संबंध बनाते हैं. मना करने पर वे मारपीट कर के जबरन संबंध बनाते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पति कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं, बस उन का तरीका गलत है. यही काम वे प्यार से भी कर सकते हैं. आप को भी अगर कोई तकलीफ होती है, तो उस बारे में पति को तसल्ली से बता सकती हैं. जब आप इतनी गहराई से जुड़ी हैं, तो बात करने में झिझकना नहीं चाहिए. वैसे, पति का हक है आप के साथ संबंध बनाना, लिहाजा मना न करें.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

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मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं तो जल्दी थक जाती हूं….

सवाल
मेरी समस्या मेरे और पति के शारीरिक संबंधों को ले कर है. मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं तो जल्दी थक जाती हूं. शारीरिक संबंधों का पूरी तरह आनंद नहीं ले पाती क्योंकि इस दौरान मुझे दर्द होता है.

जवाब
कई बार जब महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती तब उस के साथ ऐसी ही समस्या पेश आती है जैसी आप के साथ आ रही है. इस के अलावा वैजाइनल ड्राइनैस भी सैक्स संबंधों के दौरान दर्द का कारण बनता है, इस के लिए आप चाहें तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर सकती हैं.

सैक्स संबंध को सुखद बनाने के लिए फोरप्ले (चुंबन, सहलाना आदि) जैसी क्रियाएं अवश्य करें. जिस तरह संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए सैक्स जरूरी होता है, ठीक उसी तरह फोरप्ले भी जरूरी होता है.

फोरप्ले सैक्स से पहले की कुछ ऐसी क्रियाएं हैं जिन से सैक्स का न केवल खुल कर आनंद लिया जा सकता है बल्कि सैक्स के मजे को दोगुना भी किया जा सकता है. फोरप्ले न केवल सैक्स संबंधों का जरूरी हिस्सा होता है बल्कि इस से आप के साथी की भी सैक्स में रुचि बढ़ती है. यदि आप फोरप्ले करते हैं तो आप अधिक समय तक सैक्स का आनंद उठा पाएंगे. फोरप्ले मूड को तरोताजा करता है, शरीर को रोमांच से भर देता है. फोरप्ले पतिपत्नी को सैक्स के लिए तैयार करता है.

पुनर्विवाह: भाग 2

मानस शांत, गहन चिंता में बैठ गए. सुगंधा ने ही उन्हें टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या बात है पापा, नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, बेटा, तू तो मुझे, मेरे हित में ही समझा रही है किंतु मुझे भय है. शालिनी मुझे स्वार्थी समझ मुझ से दोस्ती न तोड़ बैठे. उस का अलगाव मैं सहन न कर सकूंगा,’’ मानस ने धीरेधीरे कहा. ‘‘पापा, वे आप से प्यार करती हैं किंतु नारीसुलभ सकुचाहट तो स्वाभाविक है न, पहल तो आप को ही करनी होगी.’’ ‘‘मेरी बेटी, इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला,’’ मानस के इस वाक्य पर दोनों ही मुसकरा दिए. सुगंधा लौट गई, किंतु मानस को समझा कर ही नहीं धमका कर गई कि वे जल्दी से जल्दी शालिनी से शादी की बात करेंगे वरना वह स्वयं यह जिम्मेदारी पूरी करेगी. मौर्निंगवाक पर मानस एवं शालिनी सुगंधा के संबंध में ही बातें करते रहे. मानस बोले, ‘‘5 वर्ष हो गए सुगंधा की शादी हुए. जब भी जाती है मन भारी हो जाता है. उस के आने से सारा घर गुलजार हो जाता है, जाती है तो अजीब सूनापन छोड़ जाती है.’’ शालिनी ने कहा, ‘‘बड़ी प्यारी है सुगंधा. खूबसूरत होने के साथसाथ समझदार भी, उस की आंखें तो विशेष सुंदर हैं, अपने में एक दुनिया समेटे हुए सी मालूम होती है वह.’’ मानस खुश होते हुए बोले, ‘‘वह अपनी मां की कार्बनकौपी है. मैं शुभि को अद्भुत महिला कहता था, रूप एवं गुण का अद्भुत मेल था उस के व्यक्तित्व में.’’

शालिनी सुगंधा के साथ विशेष जुड़ाव महसूस करने लगी थी. उस ने सुगंधा के पति, उस की ससुराल के संबंध में विस्तृत जानकारी ली तथा अत्यधिक प्रसन्न हुई कि बहुत समझदार एवं संपन्न परिवार है. मौर्निंगवाक से लौटते समय शालिनी का घर पहले आता है. रोज ही मानस उसे उस के घर तक छोड़ते हुए अपने घर की ओर बढ़ जाते थे, आज शालिनी ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘मनजी, आज आप ब्रेकफास्ट एवं लंच मेरे साथ ही लीजिए. आज ही सुगंधा लौट कर गई है, आप को अपने घर में आज सूनापन ज्यादा महसूस होगा.’’ मानस जल्दी ही मान गए. उन्होंने सोचा, इस बहाने शालिनी से अपने दिल की बात कर सकेंगे. काफी उलझन के बाद मानस ने शालिनी से साफसाफ कहना उचित समझा, ‘‘शालू, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं किंतु तुम से एक वादा चाहता हूं. यदि तुम्हें मेरी बात आपत्तिजनक लगे तो साफ इनकार कर देना किंतु नाराजगी से दोस्ती खत्म नहीं करना.’’ शालिनी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं, आप की दोस्ती मेरे जीवन का सहारा है, मनजी. खैर, चलिए वादा रहा.’’ ‘‘शालू, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं, क्या मेरा सहारा बनोगी?’’ मानस ने शालिनी की आंखों में देखते हुए कहा. शालिनी ने नजरें झुका लीं और धीरे से बोली, ‘‘यह क्या कह बैठे, मनजी, भला यह भी कोई उम्र है शादी रचाने की.’’ ‘‘देखो शालू, हम दोनों अपनेअपने जीवनसाथी को खो कर जीवन की सांध्यबेला में अनायास ही मिल गए हैं. हम दोनों ही तन्हा हैं. हम एकदूसरे का सहारा बन फिर से जीवन में आनंद एवं उल्लास भर सकते हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में परस्पर सहयोग दे सकते हैं.

‘‘मैं अपनी पत्नी शुभि को बहुत चाहता था, किंतु बीमारी ने उसे मुझ से छीन लिया. मेरी शुभि भी मुझे बहुत चाहती थी. अपनी बीमारी के संघर्ष के दौरान भी उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा मेरे जीवन की फिक्र थी. एक दिन मुझ से बोली, ‘मनजी, मेरा आप का साथ इतना ही था. आप को अभी लंबा सफर तय करना है. अकेले कठिन लगेगा. मेरे बाद अवश्य योग्य जीवनसाथी ढूंढ़ लीजिएगा,’ अपनी शादी वाली अंगूठी मेरी हथेली पर रख कर बोली, ‘इसे मेरी तरफ से स्नेहस्वरूप आप प्यार से उसे पहना देना. मैं यह सोच कर खुश हो लूंगी कि मेरे मनजी के साथ उन की फिक्र करने वाली कोई है.’’’ मानस, अपनी पत्नी को याद कर बेहद गंभीर हो गए थे, दो पल रुक कर स्वयं को संयत कर बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें एवं मनोज को भी साथसाथ देखा था, गृहप्रवेश के अवसर पर तथा अस्पताल के दुखद मौके पर. तुम दोनों का प्यार स्पष्टत: परिलक्षित था. मनोज को भी अपनी जिंदगी से ज्यादा तुम्हारे जीवन की चिंता थी. वे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही चिंता व्यक्त करते थे. मैं आईसीयू में उन से मिलने जब भी जाता, सिर्फ तुम्हारे संबंध में चिंता व्यक्त करते थे. उस दिन उन्हें आभास हो चला था कि वे नहीं बचेंगे. अत्यधिक कष्ट में बोले थे, ‘दोस्त, मैं तुम्हें अकसर पुनर्विवाह की सलाह देता था, और तुम हंस कर टाल जाते थे. किंतु अब तुम से वचन चाहता हूं, मेरी शालू को अपना लेना. तुम्हारे साथ वह सुरक्षित है, यह सोच मुझे शांति मिलेगी. हम ने परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. सभी संबंध खत्म हो गए थे. मेरे बाद एकदम अकेली हो जाएगी मेरी शालू. दोस्त, मेरा आग्रह स्वीकार कर लो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की दर्द भरी याचना पर मैं हां तो न कर सका था किंतु स्वीकृति हेतु सिर अवश्य हिला दिया था. मेरी सहमति जान कर उस कष्ट एवं दर्द में भी उन के चेहरे पर एक स्मिति छा गई थी किंतु शालिनी, तुम्हारी नाराजगी के डर से मैं तुम से कहने का साहस न जुटा सका था. ‘‘सच कहता हूं शालू, सांत्वना और सहयोग ने मनोज के आग्रह के बाद कब प्यार का रूप ले लिया, इस का आभास मुझे भी नहीं हुआ. किंतु मेरे प्यार की सुगंध मेरी बेटी सुगंधा ने महसूस कर ली है,’’ कहते हुए मानस धीरे से मुसकरा दिए. शालिनी नीची नजरें किए हुए शांत बैठी थी. मानस ने ही कहा, ‘‘शालू, मैं ने तुम्हें मनोजजी की, सुगंधा की एवं अपनी भावनाएं बता दी हैं. अंतिम निर्णय तुम ही करोगी. तुम्हारी सहमति के बिना हम कुछ भी नहीं करेंगे.’’ शालिनी ने आहिस्ताअहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनोज ने जैसा आग्रह आप से किया था वैसी ही इच्छा मुझ से भी व्यक्त की थी. मुझ से कहा था, ‘

coronavirus: नया रूप लेकर 102 साल पुराना दर्द

लेखक- नीरज त्यागी

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है.ये वायरस लगभग सभी देशों में फ़ैल चूका है.पूरे दुनिया में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.कोरोना वायरस कि इस महामारी ने लोगों को 1918 के स्पेनिश फ्लू की याद दिला दी है.उस दौर में जिस तेजी से ये संक्रमण फैला था और जितनी मौतें हुई थी उससे पूरे दुनिया को हिला दिया था.102 साल पहले पूरी दुनिया में स्पेनिश फ्लू के कहर से एक तिहाई आबादी इसकी चपेट में आ गयी थी.कम से कम पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत इसकी वजह से हुई थी.रिपोर्टस के मुताबिक इस फ्लू के कारण भारत में कम से कम 1 करोड़ 55 लाख लोगों ने जान गवाईं थी.

स्पेनिश फ्लू की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई है जो विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की तुलना में ज्यादा है. उस वक्त भारत ने अपनी आबादी का छह फीसदी हिस्सा इस बीमारी में खो दिया था.मरने वालों में ज्यादातर महिलाएँ थीं.ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएँ बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी.वो अपेक्षाकृत अधिक अस्वास्थ्यकर माहौल में रहने को मजबूर थी.इसके अलावा नर्सिंग के काम में भी वो सक्रिय थी.

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ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी.गांधी जी और उनके सहयोगी किस्मत के धनी थे कि वो सब बच गए. हिंदी के मशूहर लेखक और कवि सुर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे.

उन्होंने बाद में इस सब घटना चक्र पर लिखा भी था *कि मेरा परिवार पलक झपकते ही मेरी आँखों से ओझल हो गया था”* वो उस समय के हालात के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं कि *गंगा नदी शवों से पट गई थी. चारों तरफ इतने सारे शव थे कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ी कम पड़ रही थी* . ये हालात तब और खराब हो गए थे जब खराब मानसून की वजह से सुखा पड़ गया और आकाल जैसी स्थिति बन गई.इसकी वजह से बहुत से लोगो की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई थी..शहरों में भीड़ बढ़ने लगी।इससे बीमार पड़ने वालों की संख्या और बढ़ गई.

बॉम्बे शहर इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ था.उस वक्त मौजूद चिकित्सकीय व्यवस्थाएं आज की तुलना में और भी कम थीं।हालांकि इलाज तो आज भी कोरोना का नहीं है लेकिन वैज्ञानिक कम से कम कोरोना वायरस की जीन मैपिंग करने में कामयाब जरूर हो पाए हैं. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने टीका बनाने का वादा भी किया है.1918 में जब फ्लू फैला था.तब एंटीबायोटिक का चलन इतने बड़े पैमाने पर नहीं शुरू हुआ था. इतने सारे मेडिकल उपकरण भी मौजूद नहीं थे जो गंभीर रूप से बीमार लोगों का इलाज कर सके. पश्चिमी दवाओं का इस्तेमाल भी भारत की एक बड़ी आबादी नही किया करती थी और ज्यादातर लोग देसी इलाज पर ही यकीन करते थे.

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इन दोनों ही महामारियों के फैलने के बीच भले ही एक सदी का फासला हो लेकिन इन दोनों के बीच कई समानताएं दिखती हैं. संभव है कि हम बहुत सारी जरूरी चीजें उस फ्लू के अनुभव से सीख सकते हैं.उस समय भी आज की तरह ही बार-बार हाथ धोने के लिए लोगों को समझाया गया था और एक दूसरे से उचित दूरी  बनाकर ही रहने के लिए कहा गया था.सोशल डिस्टेंसिंग को उस समय भी बहुत अहम माना गया था और आज ही की तरह लगभग लॉक डाउन की स्थिति उस समय भी थी इतने सालों बाद भी वही स्थिति वापस हो गई है.

स्पेनिश फ्लू की चपेट में आए मरीजों को बुखार, हड्डियों में दर्द, आंखों में दर्द जैसी शिकायत थीं. इसकी वजह से महज कुछ दिन में मुंबई में कई लोगों की जान चली गई. एक अनुमान के मुताबिक जुलाई 1918 तक 1600 लोगों की मौत स्पैनिश फ्लू से हो चुकी थी. केवल मुंबई इससे प्रभावित नहीं हुआ था.रेलवे लाइन शुरू होने की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में भी ये बीमारी तेजी से फैल गई.ग्रामीण इलाकों से ज्यादा शहरों में इसका प्रभाव दिखाई दिया.

बॉम्बे में तेजी से फैलने के बाद इस वायरस ने उत्तर और पूर्व में सबसे ज्यादा तांडव मचाया.ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में इस बीमारी से मरने वालों में पांचवां हिस्सा भारत का था.बाद में असम में इस गंभीर फ्लू को लेकर एक इंजेक्शन तैयार किया गया, जिससे कथित तौर पर हजारों मरीजों का टीकाकरण किया गया. जिसकी वजह से इस बीमारी को रोकने में कुछ कामयाबी मिली.

हालांकि बाद में कुछ बाते सामने आईसन 2012 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के जिन हिस्सो में अंग्रेजो की ज्यादा बसावत थी.उन हिस्सों में इस बीमारी ने ज्यादा कहर मचाया था.इन हिस्सो में भारतीय इस महामारी में सबसे अधिक मारे गए थे.अब एक बार फिर से कोरोना के बढ़ते कहर की वजह से लोग बेहद आशंकित हैं.फिलहाल सरकार और दूसरी संस्थाएं लगातार लोगों को इस गंभीर वायरस से बचाव को लेकर कोशिश में जुटी हुई हैं.

आखिरकार गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सेवी समूहों ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था. उन्होंने छोटे-छोटे समूहों में कैंप बना कर लोगों की सहायता करनी शुरू की. पैसे इकट्ठा किए, कपड़े और दवाइयां बांटी है।नागरिक समूहों ने मिलकर कमिटियां बनाईं.एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, “भारत के इतिहास में पहली बार शायद ऐसा हुआ था जब पढ़े-लिखे लोग और समृद्ध तबके के लोग गरीबों की मदद करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में सामने आए थे.

आज की तारीख में जब फिर एक बार ऐसी ही एक मुसीबत सामने मुंह खोले खड़ी है. तब सरकार चुस्ती के साथ इसकी रोकथाम में लगी हुई है लेकिन एक सदी पहले जब ऐसी ही मुसीबत सामने आई थी तब भी नागरिक समाज ने बड़ी भूमिका निभाई थी.जैसे-जैसे कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं, इस पहलू को भी हमें ध्यान में रखना होगा और सभी लोगो को मिलकर इस बीमारी की लड़ाई में आगे बढ़ना होगा.

कान

कान न हुए कचरापेटी हो गई. जो आया उडे़ल कर चला गया जमाने भर की गंदगी और हम ने खुली छूट दे रखी है कानों को. आजकल हमारा देखना भी कानों से ही होता है. लोग कान में आ कर धीरे से फुसफुसा जाते हैं और हमें लगता है कि यह हमारा खास, घनिष्ठ और विश्वसनीय है जो इतनी महत्त्वपूर्ण बातें हमें बता कर चला गया. कान से सुन कर हमें इतना विश्वास हो जाता है कि अब हमारा मानना हो गया है कि आंखें धोखा खा सकती हैं लेकिन कान नहीं. कानों से हमें खबरें मिलती हैं कि फलां की लड़की फलां के लड़के के साथ भाग गई. फलां की पत्नी का फलां के साथ चक्कर है. हम ऐसी चटपटी मसालेदार बातें सुन कर आत्मसुख का अनुभव करते हैं. अफवाहें कानों से ही बढ़ती हैं, फैलती हैं, दावानल का रूप लेती हैं. किसी ने कहा, ‘दंगा हो गया.’ कानों ने विश्वास किया. यही हम ने दूसरे के कान में कहा. उस ने तीसरे के कान में. एक कान से दूसरे, फिर तीसरे तक होती हुई बातें कानोंकान चारों तरफ फैल जाती हैं. हमारे कान उस सार्वजनिक शौचालय की तरह हो गए हैं जिस में आ कर कोई भी निवृत्त हो कर, हलका हो कर, गंदगी उड़ेल कर चला जाता है.

हम एक के कान में कहते हैं, देख, तुझे अपना समझ कर बता रहे हैं. किसी और तक बात नहीं पहुंचनी चाहिए. वह कसम उठा कर कहता है कि भरोसा रखो, नहीं पहुंचेगी. लेकिन तुरंत वह अपने किसी परिचित के कान में फुसफुस करता है और उसे भी यही हिदायत देता है. वह भी पहले वाले की तरह सौगंध खा कर कहता है, नहीं पहुंचेगी और तुरंत किसी नए कान की तलाश में लग जाता है. कानों का काम है सुनना लेकिन हम कानों को क्याक्या सुनाते रहते हैं, जो नहीं सुनाना चाहिए. जहां कान बंद कर लेने चाहिए वहां भी हम कान खड़े कर लेते हैं. कानों को हम ने ऐसे शौक दे रखे हैं कि जब तक वे भड़काऊ बयान, शोर भरा संगीत, गुप्त बातें, रहस्य की बातें और अश्लील वार्त्ता सुन न लें, तृप्त ही नहीं होते. कुछ कान बेचारे ऐसे हैं जो धमाकों की आवाजें, चीखपुकार सुन कर बहरे हो गए हैं. उन के लिए हम बहरे शब्द का प्रयोग करते हैं यानी यदि आप के कान हमारी बात, हमारी बकवास, हमारे प्रवचन, हमारे बोलवचन न सुनें तो कहते हैं कि तुम बहरे हो. जैसे आंख के अंधे वैसे कान के बहरे. कुछ कान बड़े संवेदनशील होते हैं. वे दूसरों की व्यथाकथा सुन कर द्रवित हो जाते हैं. कुछ कान जासूस की तरह होते हैं. कहीं खुसुरफुसुर सुनी और फौरन खड़े हो जाते हैं.

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साधुसंत तो कानों के विषय में कहते हैं कि यदि आप ने हमारे श्रीमुख से हरिकथा नहीं सुनी तो आप के कान कान नहीं, सांप के बिल हैं. कुछ कान लापरवाह किस्म के होते हैं. वे एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. आज के जमाने में आप का अंधा या लंगड़ा होना चल जाएगा लेकिन कानों का ठीकठाक होना बहुत जरूरी है. आजकल सुनने के साथसाथ देखना भी कानों से हो रहा है. आंख में दोष हो सकता है लेकिन कान पर हमें पूरा विश्वास है क्योंकि हमारे कानों ने सुना है. किस से सुना है, क्या सुना है? ये महत्त्वपूर्ण नहीं है. हमारे कानों ने सुना है, यह ही काफी है. हम उन कानों तक भी अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करते हैं जो कान ऊंचा सुनते हैं. भले ही उन्हें सुनाने के चक्कर में चार लोग और सुन लें. लेकिन हमारा धर्म हो गया है कि जो सुनें वह दूसरे को सुना दें. तथाकथित ईश्वर के विषय में कहा गया है कि बिना कान के सुनते हैं. सुनने के लिए कान का होना आवश्यक है और कान ठीकठाक सुनें, इस के लिए बीचबीच में तेल आदि डालते रहना चाहिए.

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कुछ लोगों के ऐसे भी कान होते हैं जो सुनना पसंद नहीं करते. ऐसे लोग कहते हैं, कान पक गए हैं सुनतेसुनते. ऐसे कान किस काम के जिन्हें सुनने में तकलीफ हो. कान तो वे जो सदा सुनने को व्याकुल हों. हमारे पास 1 नहीं 2 कान हैं. इस का अर्थ यही हुआ कि प्रकृति ने कान का महत्त्व समझ कर हमें 1 नहीं 2 कान दिए हैं. ऐसे में कान की विश्वसनीयता और उपयोगिता दोनों बढ़ जाती हैं. कान का अपना एक निजी गुण यह है कि ये बुराई सुनने में खुशी से खड़कने लगते हैं. जहां किसी की निंदा सुनी, समझो कान का होना सार्थक हो गया. हमारे कान ऊलजलूल, बकवास, निंदा, शोरशराबा, अफवाहें, समाचार, खबरें सब सुनने में दक्ष हैं लेकिन कुछ बातें कानों को बिलकुल रास नहीं आतीं, जैसे मांबाप की सलाहसमझाइश और गुणी लोगों का सत्संग-प्रवचन. हमारे कान नाराज हो कर एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. वैसे तो सुनते ही नहीं. 2 कानों का फायदा यही है कि बात अच्छी न लगे तो एक से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आदमी कानोंसुनी पर इतना भरोसा करने लगा है कि वह प्रत्यक्ष देखना जरूरी नहीं समझता. कौन जा कर देख कर समय बरबाद करे. कानों तक बात पहुंच गई, समझो देख लिया. स्त्रियां तो कानोंसुनी आंखों देखी एक बराबर मानती हैं. सुनसुन कर ही वे इतना बड़ा झमेला खड़ा कर देती हैं कि परिवार बिखरने लगते हैं. घर में द्वेष फैलने लगता है. तो फिर कचराघर हैं न कान. आप के क्या हैं?

#coronavirus: बंटाईदार और ठेकेदार भी खरीद केंद्रों पर बेच सकेंगे गेहूं

झांसी: बंटाई और ठेके पर खेती करने वाले किसान भी खरीद केंद्रों पर अपना गेहूं बेच सकेंगे. बंटाईदार को किसान का सहमतिपत्र और ठेकेदार को लेखपाल की संस्तुति के बाद ही खरीद केंद्र पर गेहूं बेचने का हक मिलेगा. इस बार गेहूं खरीद की राशि किसान, बंटाईदारों और ठेकेदारों के खाते में आरटीजीएस से नहीं, बल्कि पीएफएमएस से पहुंचेगी.

जिले में गेहूं खरीद के लिए प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. 15 अप्रैल के बाद 57 खरीद केंद्रों को अनुमोदित किया जा चुका है. लेकिन सरकार ने बंटाई और ठेके पर गेहूं की बोआई करने वालों को भी गेहूं खरीद करने का अधिकार दिया है. इस के लिए बंटाईदार और ठेकेदार को किसान और लेखपाल से संस्तुति करानी होगी. वहीं इस के साथ ही बंटाईदार और ठेकेदार को वैबसाइट पर पंजीकरण भी कराना होगा.

नियमों के मुताबिक, ठेके पर जमीन लेने वाले को रजिस्ट्रार के यहां भी अनुबंध कराना होगा. नियम यह भी है कि यदि कोई किसान 100 क्विंटल से अधिक गेहूं बेचता है, तो उसे एसडीएम से अनुमति लेनी होगी.

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जिला खाद्य विपणन अधिकारी अनूप कुमार ने बताया कि गेहूं खरीद के कुछ नियमों में बदलाव किया गया है. 15 अप्रैल के बाद गेहूं खरीद की जाएगी. इस बार गेहूं का समर्थन मूल्य 1,940 रुपए है.

सोशल मीडिया से किसानों को दी जाएगी जानकारी

बक्सर: जिले के किसानों को सभी कृषि योजनाओं की जानकारी सोशल मीडिया और रजिस्र्टर्ड मोबाइल फोनों के जरीए दी जाएगी.

इस बारे में कृषि विभाग ने तमाम निर्देश जारी किए हैं. इन निर्देशों में कहा गया है कि किसानों के बीच कृषि विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की जानकारी समयसमय पहुंचाना बेहद जरूरी है, इसलिए कृषि विभाग के साथसाथ पशु व मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की जानकारी व्हाट्सएप व सोशल मीडिया के जरीए वरीय पदाधिकारी सब से पहले अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को देंगे. इस के बाद कृषि समन्वयक, प्रखंड उद्यान पदाधिकारी, किसान सलाहकार, एटीएम व बीटीएम अपने स्तर से क्षेत्र के किसानों के बीच संदेश पहुंचाएंगे.

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इस के लिए कृषि विभाग के लोग अपने क्षेत्राधीन व्हाट्सएप के जरीए किसानों का समूह गठित करेंगे. इस के लिए पहले से गठित समूहों को भी प्रभावी ढंग से सक्रिय करने को कहा गया है.

दर्जनों गांवों में जंगली सूअरों ने खेती बरबाद की

अल्मोड़ा: ताकुला ब्लौक के दर्जनों गांवों में जहां जंगली सूअरों ने किसानों की आलू, गडेरी, पिनालू और हलदी की खेती को बरबाद कर दिया है, वहीं, बंदरों ने गेहूं, जौ, मसूर, मटर और दूसरी सब्जियों को खराब कर दिया है. काश्तकारों ने जिला प्रशासन से सूअरों और बंदरों के आतंक से नजात दिलाने की मांग की है.

तालुका ब्लौक के तहत एक गांव ने कहा कि सूअरों ने रात में उन के गांव में अनेक किसानों के खेत में लगाए प्याज और आलू बीज खोद कर बरबाद कर दिया है. सूअर के आतंक से किसान खासा परेशान हैं.
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वहीं दूसरे किसान ने कहा कि तारबंदी के काम में हुई हीलाहवाली के चलते सरकारी पैसों का गलत इस्तेमाल होने के साथ ही किसानों को भी अच्छीखासी चपत लगी है.

प्रभावित किसानों ने प्रशासन और कृषि विभाग से जानवरों की रोकथाम के उपाय करने और फसलों के मुआवजे की मांग की है.

मौसम साफ रहे तो करें चना और तिलहन का भंडारण

भागलपुरः जिले के किसानों के लिए ग्रामीण कृषि मौसम सेवा की ओर से एडवाइजरी जारी हुई है. इसे कृषि विभाग ने बीएयू सहित दूसरे किसानों के लिए विभिन्न माध्यमों के द्वारा पहुंचाने का निर्देश दिया है. बीएयू ने इस कड़ी में अगले कुछ दिनों के मौसम और खेती संबंधी जानकारी किसानों को दी है.

बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डाक्टर आरके सोहाने ने कहा कि एडवाजरी की खूबी यह है कि इस में किसानों को मौसम की सटीक जानकारी के अलावा और क्याक्या करना चाहिए, इस के बारे में विस्तार से बताया जाता है.

कृषि विभाग के गाइडलाइन का पालन करते हुए बीएयू ने किसानों को जो संदेशा भेजा है, उस में मसूर, गेहूं और चने की कटाई समय पर पूरा करने का निर्देश दिया है. साथ ही, महफूज जगहों पर भंडारण का निर्देश दिया है. वहीं सब्जी की फसलें जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च की जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. आम और लीची में दवा का घोल बना कर छिड़काव करें.और हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, बथुआ वगैरह की बोआई गर्मा फसल के रूप में करें.

किसानों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में मूंग की किस्म की बोआई कर देनी चाहिए. जानवरों को उन की प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए हर दिन हरा चारा खिलाया जाना चाहिए. खेती के काम में उचित दूरी बना कर रहें. साथ ही, सर्दी, जुकाम, सिरदर्द या बुखार हो तो निकट के स्वास्थ्यकर्मी को तुरत सूचना दें और जांच कराएं.

पीएम किसान सम्मान निधि योजना में लाखों किसानों को मिला लाभ

नई दिल्ली : किसानों को खेतीबाड़ी में कोई समस्या न हो, इसलिए केंद्र सरकार उन का पूरा सहयोग करती है. देश के अन्नदाता को उच्च स्तर पर रखा जाता है. ऐसे में उन को खेतीबाड़ी में कोई समस्या न आए, इसलिए मोदी सरकार  ने किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को चलाया है. इस योजना के तहत किसानों के खाते में सीधे 2-2 हजार की रुपए की राशि भेजी जाती है.

अब तक करोड़ों रुपए की सहायता
मोदी सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत  62 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद की जा चुकी है.

सभी जानते हैं कि इस वक्त देश पर कोरोना वायरस का संकट है. इस दौरान सरकार ने किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए भेजे हैं. इस योजना के तहत सरकार द्वारा 4.91 करोड़ रुपए भेजे जा चुके हैं.

कृषि मंत्रालय की मानें, तो देश में पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत में लगभग 9 करोड़ किसान रजिस्टर्ड हो चुके हैं. इस के लिए सरकार ने  लगभग 18 हजार करोड़ रुपए की राशि रखी है.

बता दें कि देश में लगभग 14.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन इस योजना से कई किसान अभी भी नहीं जुड़ पाए हैं. इतने करोड़ रुपए हुए ट्रांसफर कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी द्वारा बताया गया है कि लॉकडाउन के बीच लगभग 5 करोड़ किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए भेजे जा चुके हैं. इस वक्त किसानों और गरीबों को समस्या न हो, इसलिए सरकार ने एक बड़ा आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. इस के तहत डायरेक्ट बेनिफट ट्रांसफर द्वारा लगभग 9826 करोड़ की राशि भेजी जाएगी.

कोरोना की परवाह किए बगैर खेतखलिहान में जुटे हैं पूर्वांचल के किसान

वाराणसी : कोरोना महामारी को हराने के लिए देशभर में लॉक डाउन के बीच किसान खेतों में खड़ी सालभर की मेहनत व पसीने से लहलहाती फसल को बचाने निकल पड़ा है.

खास बात यह है कि कोरोना से बचने के लिए देश में सुरक्षा व सावधानी का जो उपाय सरकार की तरफ से बताया गया, उस का पालन भी होता दिख रहा है.  सोशल डिस्टेंसिंग से ले कर साबुन से हाथ धोने का काम खेतखलिहान में काम करते मजदूरों के बीच देखा जा सकता है. खेतखलिहान में उन मजदूरों को ज्यादा वरीयता मिल रही है, जो कमाने के चक्कर में गांव छोड़ कर बाहर नहीं गए हैं.

एक तरफ कोरोना के चलते मास्क व दस्ताना लगा कर लोग शहर में दिखाई दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ खेतों में कटाई से ले कर मड़ाई करते मजदूर मुंह में गमछा या दुपट्टा बांध कर जुटे हैं.

पूर्वांचल के किसानों को ‘कोरोना संक्रमण’ की परवाह किए बगैर चिलचिलाती धूप और पछुवा हवाओं के बीच खेतखलिहान में देखा जा सकता है.

पूर्वांचल के भदोही, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर और सोनभद्र का किसान घरों के बजाय खेतों में है.

राज्य की योगी सरकार ने किसानों को लॉक डाउन से छूट दी है, क्योंकि गेहूं, सरसों, मटर, चना, मसूर, जौ, अरहर की फसल तैयार है. अगर कोरोना के भय से किसान फसलों की कटाई नहीं करता है तो उस के सामने स्थिति बुरी हो सकती है. मौसम खराब होने से फसलें जहां खराब हो सकती हैं, वहीं किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

मार्च में बारिश हो जाने की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पूरे पूर्वांचल में आंधीतूफान और बारिश की वजह से गेहूं, सरसों, जौ और तिलहनी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा था.गेहूं की फसल गिर गई थी, जिस से फसलों की पैदावार प्रभावित हुई.

एक किसान कुमार का कहना है कि बारिश होने से सरसों की उपज कम हुई है, वहीं गेहूं का उत्पादन भी प्रति बीघे घटा है.

21 दिन के लॉक डाउन के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को किसानों के लिए और सुविधाओं का ऐलान करना चाहिए. पूर्वांचल का किसान अलसुबह सपरिवार खेतों पर निकल रहा है. घर में रूखीसूखी जो है, उसी से काम चला रहा है क्योंकि अभी उस की प्राथमिकता में फसलों की मड़ाई पहले है.  वह दिन और रात में भी फसलों की कटाई और मड़ाई में जुटा है. महिलाओं ने भी कोरोना को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से महिला मजदूरों के लिए भी खास सुविधा देने की मांग की है.

#lockdown: लॉकडाउन में सायबर क्राइम बढ़ें

कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी के चलते पूरे भारत देश में लाकडाउन के कारण घरों से बाहर न निकलने के कारण अपराध की घटनाएं कम हुई हैं, परन्तु सायबर क्राइम के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है .

लाकडाउन पीरियड में जहां कुछ लोगों का घर ही आफिस बन गया है ,तो अधिकांश लोगों का काफी समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीतने लगा है .लाक डाउन में सभी मोबाइल कंपनियों के डाटा की खपत बढ़ गई है.सायबर अपराधी इसे एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.मुफ्त नेटफ्लिक्स, सस्ते इंटरनेट प्लान, फ्री बैलेंस, इनाम जीतने के मैसेज कर सायबर अपराधी तकनीक से अंजान लोगों के मोबाइल में सेंध लगाकर बैंक एकाउंट से रुपए उड़ा रहे हैं. लोगों के एटीएम नंबर और ओटीपी पूछकर आन लाइन शापिंग करक लाखों रुपए बैंक एकाउंट से निकाले जा रहे हैं.

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मध्यप्रदेश के गोटेगांव के नेहरू वार्ड में रहने वाले जशवंत कहार ने स्थानीय पुलिस थाना में इसी तरह की शिकायत दर्ज करते हुए बताया है कि  उसे  मोबाइल नंबर 6203039244 से फ़ोन कर बताया गया कि मैं कैनरा बैंक से बोल रहा हूं, तुम्हारा एटीएम बंद होने वाला है.इसको जारी रखने के लिए एटीएम नंबर और  ओटीपी पूछकर एक लाख बीस हजार रुपए की रकम आन लाइन एकाउंट से निकल ली. लाक डाउन में काम धंधे से मोहताज पाई पाई जोड़ कर रखी गई जमा पूंजी के लुटने से जशवंत हताश होकर बैठ गये हैं.

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फिशिंग स्कैमिंग 25 फीसदी बढ़ी
महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक लाक डाउन में बेवसाइट पर सायबर क्राइम के मामले लोगों के द्वारा बहुतायत में दर्ज कराये गये हैं .
लोगों के बैंक खातों में फिशिंग ( डाटा की सेंध से धोखाधड़ी), विशिंग (वाइस काल से ठगी) और स्कैमिंग (एटीएम कार्ड क्लोनिंग) के मामले में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है.पुलिस सूत्रों के अनुसार अक्सर सायबर अपराधी फर्जी बैंकिंग ट्रांजेक्शन का स्टेटमेंट ई मेल कर डाउनलोड करने के निर्देश देते हैं. कई बार फोन पर मेसेज के जरिए वेबलिंक भेजे जाते हैं,जो हेकर्स की बेवसाइट के होते हैं. पासवर्ड और संवेदनशील जानकारी साझा करते ही व्यक्ति इन जालसाजों के चंगुल में फंस जाता है.यैसे ज्यादातर मामले डार्क बेव के जरिए रिमोट लोकेशन से संचालित होते हैं, जिसमें अपराधी की ट्रैकिंग मुश्किल से होती है.

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इसी तरह कोविड -19 को लेकर वाट्स ऐप पर झूठे,भ्रामक और शांति, सौहार्द्र भंग करने के 65 मामले महाराष्ट्र में सामने आये है.फेसबुक के माध्यम से अफरा तफरी फैलाने के 11, टिक टाक से जुड़े 3 और अनय सोशल मीडिया चैनलों से संबंधित 19 मामले लाक डाउन पीरियड में दर्ज किये गये हैं.

आपदा राहत के नाप पर भी ठगी
कोरोना वायरस से पूरा देश  जंग लड़ रहा है. ग़रीब, खेतिहर मजदूर, दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर , राजमिस्त्री, फैक्ट्री वर्कर्स,बूढ़े असहाय लोगो को दो वक्त की रोटी का इंतजाम मुश्किल से हो रहा है. देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में लोगों से दान करने की अपील कर रहे हैं और लोग खुले हाथों से राहत राशि भी दे रहे हैं.संकट के इस दौर में भी सायबर ठग धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आ रहे.प्रधानमंत्री के सिटीजन असिस्टेंट एंड रिलीफ फंड इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड में आन लाइन डोनेशन से ठगने के मामले भी देश के कई इलाकों में सामने आए हैं. सायबर ठगों ने पीएम केयर्स की यूपीआई आईडी से मिलती  जुलती फर्जी आईडी बनाकर लिंक लोगों को भेजकर दान की राशि हथिया ली. ठगो द्वारा पीएम केयर्स की फर्जी लिंक बनाकर‌ लोगों को भेज कर कोरोना से लड़ने रकम दान करने के मैसेज किये गये, जिसमें अनेक लोगों द्वारा मदद के नाम पर लाखो रुपए की राशि भी भेज दी गई. मामले की जानकारी लगते ही भारतीय स्टेट बैंक द्वारा फर्जी यूपीआई आईडी को ब्लाक किया गया है.

#coronavirus:जी नेटवर्क कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 5000 मजदूरों को आर्थिक राहत देंगे

मीडिया और एंटरटेनमेंट पावरहाउस,‘जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (जी)’ने कोविड-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज करते हुए अपने समग्र प्रोडक्शन इकोसिस्टम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप जुड़े दिहाड़ी काम करने वाले 5000 से अधिक लोगों को आर्थिक राहत देने का आज वचन दिया.लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी काम करने वाले सभी लोगों पर इसके अभूतपूर्व प्रभाव का अंदाजा लगाते हुए,मीडिया व एंटरटेनमेंट क्षेत्र की जिम्मेवारी कंपनी होने की हैसियत से,‘जी’ने यह कदम उठाया है.इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिहाड़ी काम करने वाले लोगों के परिवारों को इस चुनौतीपूर्ण समय में मुश्किलों का सामना न करना पड़े.

इतना ही नही ‘‘प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमर्जेंसी सिचुएशंस फंड’ (पीएम केयर्स फंड) में सहयोग देने हेतु ‘जी’देश-विदेश में फैले अपने मीडिया नेटवर्क की ताकत का उपयोग करते हुए 1.3 बिलियन से अधिक लोगों को योगदान देने हेतु प्रोत्साहन देगा.इन सभी के अलावा, जी ने अपने सभी 3500 कर्मचारियों को इंट्रानेट पोर्टल के जरिए पीएम केयर्स फंड में स्वैच्छिक रूप से योगदान देने का आव्हान किया है.कर्मचारियों द्वारा योगदान की गई राशि के बराबर की राशि कंपनी अपनी तरफ से मिलाकर पीएम केयर्स फंड में भेजेगी.

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जी नेटवर्क के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पुनीत गोयंका कहते हैं-‘‘हम अपने प्रोडक्शन इकोसिस्टम में काम करने वाले सभी दैनिक वेतन भोगियों का आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम दृढ़ता से एकजुट होकर इस स्थिति से खिलाफ लड़ने की असाधारण शक्ति में विश्वास करते हैं.इन चुनौतीपूर्ण समय में यह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ आकर और हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई राष्ट्रीय स्तर की पहल का समर्थन करें.वित्तीय सहायता के अलावा हम देशव्यापी जागरूकता में भी योगदान देंगे.बड़े पैमाने पर राष्ट्र और दुनिया भर में अपनी मजबूत पहुंच का लाभ उठाते हुए, हम अपने सम्मानित दर्शकों से इस अभियान में शामिल होने का आग्रह कर रहे हैं.यह ऐसा समय है जहां पूरे राष्ट्र को एक परिवार के रूप में एक साथ आने की जरूरत है.”

कंपनी के सभी उपभोक्ता टचप्वाइंट्स की सामूहिक ताकत, जिसमें उसके टेलीविजन चैनल, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं, को दुनिया भर में इस आंदोलन में शामिल होने के लिए लगाया जाएगा.एक कंपनी के रूप में जो हमेशा अपने उपभोक्ताओं के बारे में जुनूनी रही है, उन्हें सुरक्षा और एहतियाती उपायों के बारे में सूचित और संवेदनशील बनाए रखने के लिए, जी ने अपनी तरह की पहली पहल लागू की है, जिसका शीर्षक रुठतमंाज्ीमब्वतवदंव्नजइतमंा है.इस पहल के तहत, दिन भर में 30 सेकंड के ब्रेक के लिए 40़ चैनलों की सामग्री को रोका गया,जिससे दर्शकों को हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित किया गया.इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) द्वारा लिए गए निर्णय के अनुरूप, टेलीविजन चैनल जी अनमोल ने सभी डीटीएच प्लेटफार्मों और केबल टीवी नेटवर्क पर सभी दर्शकों के लिए दो माह की अवधि के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराया.कंपनी के डिजिटल पक्ष पर ‘जी5’ने यह सुनिश्चित किया कि देश को इंटरनेट बैंडविड्थ में उच्च परिभाषा (एचडी) सामग्री को मानक परिभाषा (एसडी) सामग्री में बदलकर अनुकूलित किया जाए.‘जी5’ने यह भी सुनिश्चित किया कि दर्शक अपने रुठमब्ंसउठमम्दजमतजंपदमक पहल के साथ लॉकडाउन चरण के दौरान शांत और सकारात्मक रहे.

शान्तिस्वरुप त्रिपाठी जी नेटवर्क कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 5000 मजदूरों को आर्थिक राहत देंगे

1.3 बिलियन दर्शकों से कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में जुड़ने और योगदान देने की अपील की

मीडिया और एंटरटेनमेंट पावरहाउस,‘जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (जी)’ने कोविड-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज करते हुए अपने समग्र प्रोडक्शन इकोसिस्टम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप जुड़े दिहाड़ी काम करने वाले 5000 से अधिक लोगों को आर्थिक राहत देने का आज वचन दिया.लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी काम करने वाले सभी लोगों पर इसके अभूतपूर्व प्रभाव का अंदाजा लगाते हुए,मीडिया व एंटरटेनमेंट क्षेत्र की जिम्मेवारी कंपनी होने की हैसियत से,‘जी’ने यह कदम उठाया है.इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिहाड़ी काम करने वाले लोगों के परिवारों को इस चुनौतीपूर्ण समय में मुश्किलों का सामना न करना पड़े.

इतना ही नही ‘‘प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमर्जेंसी सिचुएशंस फंड’ (पीएम केयर्स फंड) में सहयोग देने हेतु ‘जी’देश-विदेश में फैले अपने मीडिया नेटवर्क की ताकत का उपयोग करते हुए 1.3 बिलियन से अधिक लोगों को योगदान देने हेतु प्रोत्साहन देगा.इन सभी के अलावा, जी ने अपने सभी 3500 कर्मचारियों को इंट्रानेट पोर्टल के जरिए पीएम केयर्स फंड में स्वैच्छिक रूप से योगदान देने का आव्हान किया है.कर्मचारियों द्वारा योगदान की गई राशि के बराबर की राशि कंपनी अपनी तरफ से मिलाकर पीएम केयर्स फंड में भेजेगी.

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जी नेटवर्क के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पुनीत गोयंका कहते हैं-‘‘हम अपने प्रोडक्शन इकोसिस्टम में काम करने वाले सभी दैनिक वेतन भोगियों का आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम दृढ़ता से एकजुट होकर इस स्थिति से खिलाफ लड़ने की असाधारण शक्ति में विश्वास करते हैं.इन चुनौतीपूर्ण समय में यह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ आकर और हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई राष्ट्रीय स्तर की पहल का समर्थन करें.वित्तीय सहायता के अलावा हम देशव्यापी जागरूकता में भी योगदान देंगे.बड़े पैमाने पर राष्ट्र और दुनिया भर में अपनी मजबूत पहुंच का लाभ उठाते हुए, हम अपने सम्मानित दर्शकों से इस अभियान में शामिल होने का आग्रह कर रहे हैं.यह ऐसा समय है जहां पूरे राष्ट्र को एक परिवार के रूप में एक साथ आने की जरूरत है.”

कंपनी के सभी उपभोक्ता टचप्वाइंट्स की सामूहिक ताकत, जिसमें उसके टेलीविजन चैनल, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं, को दुनिया भर में इस आंदोलन में शामिल होने के लिए लगाया जाएगा.एक कंपनी के रूप में जो हमेशा अपने उपभोक्ताओं के बारे में जुनूनी रही है, उन्हें सुरक्षा और एहतियाती उपायों के बारे में सूचित और संवेदनशील बनाए रखने के लिए, जी ने अपनी तरह की पहली पहल लागू की है, जिसका शीर्षक #BreakThe Corona Outbreak  है.इस पहल के तहत, दिन भर में 30 सेकंड के ब्रेक के लिए 40़ चैनलों की सामग्री को रोका गया,जिससे दर्शकों को हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित किया गया.इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) द्वारा लिए गए निर्णय के अनुरूप, टेलीविजन चैनल जी अनमोल ने सभी डीटीएच प्लेटफार्मों और केबल टीवी नेटवर्क पर सभी दर्शकों के लिए दो माह की अवधि के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराया.कंपनी के डिजिटल पक्ष पर ‘जी5’ने यह सुनिश्चित किया कि देश को इंटरनेट बैंडविड्थ में उच्च परिभाषा (एचडी) सामग्री को मानक परिभाषा (एसडी) सामग्री में बदलकर अनुकूलित किया जाए.‘जी5’ने यह भी सुनिश्चित किया कि दर्शक अपने #BeCalmBeEntertained पहल के साथ लॉकडाउन चरण के दौरान शांत और सकारात्मक रहे.

 

लॉकडाउन टिट बिट्स– भाग 4

लॉक डाउन ने बढ़ाई नज़दीकियां–

 उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कट्टर सनातनी हैं और अब कहने भर को ही सही बसपा सुप्रीमो अंबेडकारवादी हैं. ये दोनों विचारधाराएं नदी के दो किनारों जैसी हैं लेकिन लगता है लाक डाउन के चलते यह नदी सूख रही है. हैरतअंगेज तरीके से योगी–माया के बीच नज़दीकियां बढ़ रहीं हैं. मायावती ने अपने विधायकों से आग्रह किया (गौर करें इस बार आदेश नहीं दिया) कि वे अपनी विधायक निधि से मुख्यमंत्री कोष में 1-1 करोड़ रु दें जो कि उन्होंने दे भी दिये. इस पर खुशी से फूले नहीं समाए आदित्यनाथ ने फोन कर बहिन जी को हार्दिक धन्यवाद भी दिया.

मायावती जाने क्यों (शायद भीम आर्मी के मुखिया चन्द्र शेखर रावण की बढ़ती लोकप्रियता और स्वीकार्यता के डर से) इन दिनों भाजपा से नज़दीकियाँ बढ़ाने का कोई मौका नहीं चूक रहीं. बरेली में जब गरीब भगोड़े मजदूरों पर कीटनाशक केमिकल छिड़का गया था, तब उन्होंने औपचारिक विरोध दर्ज कराया था. यह नहीं कहा था कि इन मजदूरों में अधिकांश दलित समुदाय के हैं और उनकी शुद्धि का यह तरीका मनुवादी है लिहाजा योगी तत्काल इस्तीफा दें. पूरे देश की तरह यूपी में भी दलितों पर अत्याचार आए दिन होते रहते हैं जिन पर मायावती अमूमन खामोश ही रहती हैं.

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कभी तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार के नारे पर सवार होकर सत्ता के शिखर तक पहुंची मायावती ने लगता है दलितों की नियति से समझौता कर लिया है इसलिए बाहर भी हैं. ब्राह्मणो के कुसंग ने भले ही उनकी बुद्धि हर ली हो लेकिन दलित समुदाय अर्ध जागरूक तो हो ही चुका है इसलिए पिछले साल अगस्त में हुये 12 सीटों के उपचुनाव में बसपा को कुछ नहीं मिला था. इन दो धाकड़ नेताओं के बीच खिचड़ी कुछ भी पक रही हो लेकिन यह बात भी कम दिलचस्प नहीं कि बहिन जी के गाँव बादलपुर में भाजपाई रोज जरूरतमंदों को खाना बाँट रहे हैं जिससे लगता है कि बसपा संगठनात्मक तौर पर निचले स्तर से भी दरक रही है.        

नहीं सुधरेंगे –

कोरोना संकट के दूर होने के बाद की अपनी योजना मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उजागर कर दी है कि वे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा पर जाएंगे. इस यानि चौथी बार में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कृपा या सहायता कुछ भी कह लें कि वजह से मुख्यमंत्री बने  शिवराज सिंह अपनी सरकार को कोरोना संकट के चलते आकार नहीं दे पा रहे हैं. शिवराज की परेशानी कोरोना कम 24 विधानसभा सीटों पर होने बाले उपचुनाव ज्यादा हैं जिन पर चिंतन मनन करने उनके पास वक्त ही वक्त है.

इसी खाली वक्त ने उनके ज्ञान चक्षु खोले कि इस बार गोवर्धन यात्रा ठीक रहेगी क्योंकि उपचुनाव बाली अधिकतर सीटें चंबल ग्वालियर इलाकों की हैं जहां के लोगों में इस धार्मिक यात्रा का खासा क्रेज है. मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ भी ठीकठाक नहीं है. जोड़तोड़ कर सीएम बने इस किसान पुत्र के चेहरे पर पहले जैसे आत्मविश्वास के बजाय ग्लानि और अपराधबोध के भाव हैं मानो उन्होने चोरी छिपे पड़ोसी किसान की फसल काट ली हो.

लेकिन ऐसा भी नहीं लग रहा कि उन्होने 2018 की हार से कोई सबक लिया हो जिसके पहले उन्होने ताबड़तोड़ धार्मिक यात्राएं की थीं उनमें से भी नर्मदा यात्रा पर ही प्रदेश के खजाने की बलि चढ़ा दी थी नतीजतन नाराज लोगों ने उन्हें ही एक जगह समेट कर रख दिया था. धर्म कर्म, पूजा पाठ, तीर्थ और धार्मिक यात्राएं अगर कुर्सी दिलाने की गारंटी होतीं तो कोई वजह नहीं थी कि वे सत्ता से बाहर होते. अब फिर धर्म का नशा उनके सर चढ़ कर बोल रहा है तो अभी भी मोर्चे पर डटे कमलनाथ के लिए यह अच्छी खबर ही है जिनकी कुर्सी भी हनुमान के कुपित होने से छिन गई थी.

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पीपीई पॉलिटिक्स

सांसद और क्रिकेटर गौतम गंभीर भी राजनीति के उन आमों में से हैं जो नरेंद्र मोदी की आँधी के चलते भाजपा की झोली में आ गिरे थे. उनके सियासी केरियर की शुरुआत ही अरविंद केजरीवाल के विरोध से हुई थी और इसे ही वे राजनीति मान बैठे हैं इसलिए दुखी भी रहते हैं . ताजा वाकया पीपीई का है. संकट की इस घड़ी में गंभीर को भी मुझे भी कुछ करना चाहिए बाले मानसिक द्वंद ने घेर लिया तो उन्होने कर्ण का स्मरण करते सांसद निधि से 50 लाख रु देने की पेशकश कर डाली जिसे दिल्ली सरकार ने यथासंभव बेरहमी से ठुकराते यह कह दिया कि हमें पैसों की नहीं बल्कि पीपीई किट्स की जरूरत है हो सके तो मेहरबानी करके ये दिला दीजिये.

गंभीर का इस जबाबी हमले यानि अपमानजनक तिरस्कार पर तिलमिलाना स्वाभाविक बात थी जो यह मान बैठे थे कि उनकी पेशकश के साथ ही केजरीवाल बिछ जाएंगे. वे यह भूल गए कि जिस शख्श से उनके पीएम एचम और तमाम सांसद मंत्री पार नहीं पा पाये तो उनकी विसात क्या. लिहाजा 16 घंटे के अंदर ही उन्होने रईसों के से अंदाज में कहा मैंने एक हजार पीपीई  किट अरेंज कर लीं हैं बताइये कहाँ भिजवा दूँ.

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कोरोना की इस दिलचस्प सियासत में गौतम गंभीर हिट विकेट हो गए हैं और हमदर्दी की तलाश में यहाँ वहाँ ताक रहे हैं लेकिन कहीं से कोई सहारा नहीं मिल रहा. अच्छी बात यह है कि केजरीवाल को नीचा दिखाने उनके पास अभी भी साढ़े चार साल हैं इसलिए उन्हें अपनी कोशिशें जारी रखते मुनासिब वक्त का इंतजार करना चाहिए और यह भी स्वीकार लेना चाहिए कि सांसदी तो बैठे बिठाये मिल गई लेकिन दिल्ली के सीएम पद की कुर्सी इन छोटे मोटे टोटकों से नहीं मिलने बाली इसके लिए तो कोई बड़ा सा अनुष्ठान उन्हें करना या करवाना पड़ेगा .

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मोदी के नाम खुला खत–

जल्द ही पूर्णकालिक नेता बनने जा रहे अभिनेता कमल हासन ने ए 4 साइज के तीन पृष्ठो में  एक लंबी चौड़ी चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी है जिसमें उन्होने मोदी को पानी पी पी कर कोसा है कि आपका लाक डाउन का फैसला और अमल का तरीका नोट बंदी के वक्त से भी ज्यादा हाहाकारी है जिसकी मार गरीब मजदूरों पर पड़ रही है. बक़ौल इस नवोदित नेता मोदी पर भरोसा करना उनकी भूल थी जिनहोने तेल के दिये जलबाए जबकि गरीबों के पास सब्जी पकाने भी तेल नहीं है.

इस पत्र में कोई इत्र नहीं छिडका गया है लेकिन दक्षिणपंथियों को इसमें से वामपंथ की बू गलत नहीं आ रही है. पीएमओ तरफ इस लेटर पर हालफिलहाल कोई नोटिस नहीं लिया गया है और उम्मीद है जबाब लेकर कमल हासन का कद बढ़ाया भी नहीं जाएगा.वैसे भी दक्षिण और उसमें भी तमिलनाडु में भाजपा कहीं नहीं है लेकिन अपने सहयोगी दल एआईएडीएमके सहारे वह विधानसभा में दहाई का आंकड़ा छूने का सपना देख रही है.

जबकि लोकसभा चुनाव में उसका खाता भी नहीं खुला था और एआईएडीएमके को गिरते पड़ते एक सीट मिल गई थी .उलट इसके कांग्रेस अपने 22 सीटें जीतने बाले सहयोगी दल डीएमके का पल्लू पकड़कर 8 सीटें ले गई थी.

ऐसे में कमल हासन की इस नाजुक दौर में मोदी को लिखी चिट्ठी के अपने अलग माने हैं क्योंकि एक और नामी अभिनेता रजनीकान्त भी राजनीति में कूदने का ऐलान कर चुके हैं पर भाजपा के प्रति उनका रुख पूरी तरह साफ नहीं हो रहा है. चूंकि कमल हासन की चिट्ठी में कोई अतिशयोक्ति नहीं है इसलिए तमिलनाडु के गरीबों का दिल उन पर आ भी सकता है.

Grapefruit: ‘चकोतरा’ की बिना बीज वाली नई किस्म ईजाद

बेहद रसीले फल वाला चकोतरा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में खासा पसंद किया जाता है. यही वजह है कि इस की बाजार में अच्छीखासी मांग होती है. चकोतरा में रोग प्रतिरोधी कूवत होती है. ग्रेप फ्रूट नाम से मशहूर चकोतरा फल में साइटिक एसिड और शर्करा संतरे के मुकाबले कम होता है. इस का स्वाद खट्टा और मीठा होता है. यह नींबू और संतरे की प्रजाति का यह फल है.

इतना ही नहीं, चकोतरा में पोटैशियम, केल्शियम, फास्फोरस और लाइकोपीन सहित कई दूसरे पोषक तत्वों और विटामिन होते हैं. इस फल में विटामिन सी कई रोगों को दूर करता है.

बीजरहित किस्म ‘पूसा अरुण’….

पूसा, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने चकोतरा फल की पहली बीजरहित किस्म ‘पूसा अरुण‘ तैयार करने में कामयाबी पाई है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह दुनिया में चकोतरा की पहली बीजरहित किस्म है.

चकोतरा के सामान्य फलों का साइज 1200 ग्राम या इस से ऊपर तक होता है. बड़े साइज का इस का आकार लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता है. इसी वजह से वैज्ञानिकों ने इस नई किस्म का साइज घटा कर तकरीबन 350 से 500 ग्राम तक करने में कामयाबी पाई है, जो लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो सकती है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि चकोतरा की नई किस्म बो कर किसान हर पेड़ से तकरीबन 2000 रुपए तक की कमाई कर सकते हैं.

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नई किस्म की खूबी

चकोतरा की नई किस्म तैयार करने वाले वैज्ञानिक ने बताया कि इस की पुरानी किस्म साइज में बड़ी यानी तकरीबन 1200 से 1300 ग्राम तक होने के बाद भी अपेक्षाकृत कम रसीली होती है, लेकिन नई किस्म के कुल वजन का तकरीबन 41.13 फीसदी हिस्सा रस का ही होगा.

इस तरह नई किस्म के छोटे साइज यानी तकरीबन 350 से 500 ग्राम तक के बाद भी यह ज्यादा रस देगा. नई किस्म पूरी तरह मीठी होगी और खट्टापन न के बराबर होगा. ज्यादा बड़ा साइज होने से भी लोग इसे लेने में हिचकते थे, क्योंकि काटे फल को ज्यादा देर तक खुले में रखना ठीक नहीं होता, इसलिए इसे एक ही बार में खत्म करने की मजबूरी होती है, जो कई बार संभव नहीं होता, जबकि नई किस्म छोटी है, जिसे बच्चों को या कम भूख लगने पर एक बार में ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

किसानों को फायदा

चकोतरा की नई किस्म की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इसे ज्यादा समय तक पेड़ों पर ही महफूज रखा जा सकेगा. इसे पकने की स्थिति में भी पेड़ों पर 2 से 3 महीने तक छोड़ा जा सकेगा. इस से किसानों के ऊपर भंडारण की कीमत नहीं आती और फलों की कीमत बाजार में कम होने की स्थिति में कुछ समय तक के इंतजार के लिए इसे पेड़ों पर ही छोड़ा जा सकता है. इस के पकने का समय अक्तूबर से फरवरी माह तक होता है, जब बाजार में दूसरे मीठे फल नहीं होते. इस तरह भी यह फल लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है.

इस नई किस्म चकोतरा की बोआई जुलाई से सितंबर माह के बीच या फरवरीमार्च माह में की जा सकती है. नई किस्म के पेड़ का आकार छोटा होता है, इसलिए इसे सघन बागबानी में 4×4 या 4×5 मीटर की दूरी पर उगाया जा सकता है, जबकि पुरानी किस्म के बड़े पेड़ 7×7 मीटर जगह लेते हैं, जो कम उपयोगी होता है.
हर पेड़ से तकरीबन 45-46 किलोग्राम तक फल हासिल किए जा सकते हैं. चकोतरा की नई किस्म को पूसा, नई दिल्ली से हासिल किया जा सकता है.

#lockdown: लॉक डाउन में किसानों पर गिरी गाज

सेहत के लिए फायदेमंद

चकोतरा फल भी लोगों में रोग प्रतिरोधी कूवत पैदा करने में मददगार होता है. इस में एंटीऔक्सीडेंट खूब प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में सूक्ष्म मात्रा में (0.39 फीसदी) साइट्रिक एसिड भी पाया जाता है, जो इस के स्वाद और उपयोगिता को बढ़ाता है और लोगों को बहुत पसंद आता है.

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