कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए 21 दिन के देश व्यापी लौक डाउन ने जन जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. शहरों में रहने वाले लोगों को दूध, सब्जी,फल भी नहीं मिल पा रहे हैं. गांव कस्बों में इन चीजों का असर थोड़ा कम ही दिखा है. इसका कारण गांव और कस्बों में खेती किसानी के कामों के साथ के साथ पशुपालन और सब्जियों की खेती का होना है.हमारे देश के गांवों में खेती ही एक मात्र आमदनी का जरिया है. गांवों में रहने वाले छोटी जोत के किसान सब्जी भाजी उगाकर अतिरिक्त आमदनी हासिल कर लेते हैं.
जब देश के शहरी इलाकों में जरूरत की बस्तुओं की हाय तौबा मची है,तो गांव कस्बों के लोगों को आसानी से ताजी सब्जी भाजी खाने को मिल रही है. गांवों में भी अब खेती करने वाले किसान परिवार अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए शहरों में रहने लगे हैं. यैसे लोग अपने खेतीबाड़ी के अनुभवों का लाभ उठाकर अपने रहवासी घर के आसपास खाली जगह में सब्जी उगाकर अपनी आमदनी का खर्च तो कम कर ही लेते हैं और ताजी सब्जियों का स्वाद भी उठा पाते हैं. यदि खाली जगह उपलब्ध नहीं हो तो छत पर टेरिफ गार्डन बनाकर सब्जियां उगा सकते हैं.
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गाडरवारा की हाइवे सिटी में रहने वाले शिक्षक सुरेन्द्र पटेल ने अपने घर के बाजू में पड़ी खाली जगह पर क्यारियां में भटा, टमाटर, पालक, मिर्ची, धनिया उगाये हैं. वे बताते हैं कि सुबह-शाम इन सब्जी की क्यारियों की देखभाल करते हैं . लाक डाउन के समय जब घर से बाहर नहीं निकलना मुश्किल हो रहा है, तब यही ताजी और हरी सब्जियां खाकर वे अपने परिवार की सेहत बढ़ा रहे हैं.
जरजोला रोड नरसिंहपुर में रहने वाले बाबूलाल पटेल का कहना है कि वे भी अपने गांव में घर के बाड़े में करेला, लौकी, तोरैया, के साथ पालक, मैथी और धना पत्तों की सब्जी उगाते हैं. सीजन के हिसाब से वे साल के बारह महिने अपने घर परिवार के लिए सब्जियां उगाते हैं, सब्जियों की निंदाई, गुड़ाई और खाद पानी देने के लिए परिवार के सदस्यों की मदद भी उन्हें मिलती है. बरमान कला में रहने बाले लक्ष्मण लोधी बताते हैं कि वे अपने घर के आसपास की अनूपयोगी जगह पर आलू,टमाटर, पालक, मैथी, अदरक-लहसुन को उगाकर अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करते हैं. लक्ष्मण बताते हैं कि वे कभी भी बाजार से सब्जियां नहीं खरीदते.सब्जियों के अलावा घर पर ही पपीता, नींबू और अमरूद के फलदाई पेड़ भी लगाये हैं.
नर्मदा नगर करेली में रहने वाली प्राइमरी स्कूल की टीचर बताती हैं कि उन्होंने भी अपने घर के पीछे की खाली जगह पर टमाटर के पच्चीस पौधे लगाए हैं, जो पिछले तीन माह से फल दे रहे हैं. बागवानी के इस शौक में उनके पति भी उनका पूरा साथ देते हैं. साईंखेड़ा के दीपक बसेडिया ने अपनी छत पर टमाटर बरबटी , सेमफली के साथ मिर्ची के पौधे लगा रखे हैं, जिनसे हर दिन उनके परिवार को ताजा टमाटरों से बनी सब्जी के अलावा चटनी भी खाने को मिलती है. दीपक के पिता पेशे से डाक्टर महेन्द्र बसेडिया कहते हैं कि पूरी तरह से जैविक खाद का उपयोग कर छत पर गार्डनिंग करने का यह शौक लौक डाउन में वरदान साबित हुआ है.
घर सब्जी भाजी और फल उगाने वाले जानकारों की मानें तो बागवानी का यह शौक घर परिवार की सेहत बनाने के अलावा परिवार की आमदनी के एक हिस्से की बचत भी करता है, जो हम बाजार से सब्जियां खरीदने में खर्च करते हैं.