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सौतन: भाग 2

‘‘अरे दोनों सोसाइटी हमारे अगलबगल में हैं. मतलब उत्तर और दक्षिण में. पर पूरबपश्चिम तो एकदम खुला है, कभी बंद होगा ही नहीं. सामने चौड़ा हाइवे, पीछे सरकारी कालेज का खेल मैदान. उगते और डूबते सूरज की पहली से ले कर अंतिम किरण तक हमारे घर में खुशियों की तरह बिखरी रहेगी. हवा, धूप की चिंता हमें नहीं.’’ भारती ने चैन की सांस ली. संजीव उस की हर समस्या का हल कितने आराम से कर देता. घर में भले ही हजार असुविधा थीं पर भारती तृप्त थी, संतुष्ट थी संजीव जैसे पति को पा कर. सोसाइटी ‘आंचल’ के मुहूर्त के बाद 5वें दिन लगभग 11 बजे का समय था, भोले सब्जी का ठेला ले कर आया, ‘‘भाभीजी, ताजी भिंडी लाया हूं, बिक्री की शुरुआत करा दो.’’ भारती के घर की जमीन पर केले और पपीते खूब उगते थे और चारदीवारी पर सेम की बेल भी खूब फलती थी. भोले सब ले जाता, बदले में हिसाब से दूसरी सब्जी दे जाता. भारती और उस का यह हिसाबकिताब बहुत पुराना था. इस तरह सब्जी खरीदने के पैसे बचा लेती थी वह.

भारती भिंडी छांट रही थी कि एक चमचमाती गाड़ी आ कर रुकी. चालक की सीट से एक युवती झांकी, ‘‘हाय.’’

सकपका गई भारती. इतनी अभिजात महिला से इस से पहले कभी संपर्क नहीं हुआ था उस का. ‘हाय’ के उत्तर में क्या कहे, यह भी उसे नहीं पता.

थोड़ी सी घबराहट के साथ उस ने कहा, ‘‘जी, जी.’’ युवती उतर आई. उस से 4-5 साल बड़ी ही होगी पर बड़े घर की छाप, वेशभूषा, हावभाव और महंगे कौसमेटिक्स ने उस को बहुत कोमल और आकर्षक बना रखा था. सुंदर तो थी ही, गोरीचिट्टी, तराशे नैननक्श और सुगठित लंबा तन भी. शरबती रंग की शिफौन साड़ी, मैचिंग ब्लाउज, कंधों तक कटे बाल और धूप का चश्मा सिर के ऊपर चढ़ाया हुआ. हाथ में मोबाइल.

‘‘नमस्कार, मैं ‘आंचल’ सोसाइटी में नईनई आई हूं.’’ वह तो भारती देखते ही समझ गई थी, कहने की जरूरत ही नहीं थी. ऐसी गाड़ी, यह व्यक्तित्व भला और किस का होगा. यहां के पुराने रहने वाले कम ही हैं. जो हैं वे लगभग उसी के स्तर के हैं. पर यह तो…घबरा कर भिंडी की टोकरी छोड़ उस ने हाथ जोड़े, ‘‘नमस्कार.’’

‘‘मैं सुदर्शना, फाइन आर्ट्स अकादमी में काम करती हूं. अकेली हूं. 105 नंबर फ्लैट मेरा है. आप का नाम?’’

‘‘भारती.’’

‘‘सुंदर नाम है. मैं आप से थोड़ी मदद चाहती हूं. यहां आबादी कम है. अपनी कालोनी से बस आप को ही देख पाती थी.’’ युवती के सहज व्यवहार ने उसे भी सहज बना दिया. कुछ लोग इतने सहजसरल होते हैं कि अगले ही पल में उन से दूसरे लोग घुलमिल जाते हैं, उन्हें अपना समझने लगते हैं. सुदर्शना उन लोगों में से एक है.

‘‘कहिए, मैं क्या कर सकती हूं?’’

‘‘यहां ही बात करें या…?’’

लज्जित हुई भारती को अपनी भूल का अनुभव हुआ, ‘‘नहींनहीं, आइए, अंदर बैठते हैं.’’

वह मुड़ी तो भोले ने कहा, ‘‘भाभीजी, भिंडी…’’

‘‘तू छांट कर दे जा,’’ फिर भारती उस महिला की ओर मुखातिब हुई, ‘‘चलिए.’’

युवती हंसी, ‘‘तुम मुझ से छोटी हो. दीदी कह सकती हो, भारती.’’

खिल उठी भारती. इतने बड़े हाईफाई लोग ऐसे सीधे, सरल भी होते हैं? बैठक में ला कर बैठाया. सुदर्शना ने मुग्ध हो कर देखा. पुराना घर, पुराना साजसामान, उन को भी भारती ने झाड़पोंछ कर इतने सुंदर ढंग से सजा रखा था कि देखते ही आंखों में ठंडक पहुंच जाए, मन खुश हो जाए.

‘‘तुम तो बहुत ही सुगृहिणी हो. घर को कितना सुंदर सजा रखा है.’’ लजा गई भारती. उस की प्रशंसा सभी करते हैं पर इन के द्वारा की गई प्रशंसा में दम था.

‘‘नहीं दीदी, मामूली साजसामान…’’

‘‘उसी को तुम ने असाधारण ढंग से सजा रखा है. तुम्हारे पति तुम से बहुत प्रसन्न रहते होंगे.’’ पानीपानी हो गई वह अपनी प्रशंसा सुन. पल में सुदर्शना उसे अपनी सगी सी लगने लगी.

‘‘चाय लेंगी या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं, बस, तुम से एक सहायता चाहिए.’’

‘‘कहिए,’’ भारती ने घड़ी देखी. आज शनिवार है. बापबेटी दोनों का हाफडे है, जल्दी लौटेंगे और खाने की तैयारी कुछ नहीं हुई. चिंता होने लगी उसे. पर सुदर्शना का साथ अच्छा भी लग रहा था.

‘‘मेरा किराए का घर यहां से 10 किलोमीटर दूर है. पुरानी कामवाली यहां नहीं आ सकती. यहां कोई मिली नहीं. एक कामवाली चाहिए.’’

‘कामवाली?’ भारती सकपका गई.

असल में कामवालियों से परिचय नहीं था उस का. सारा काम स्वयं करती थी. संजीव ने कई बार कहा भी पर वह तैयार नहीं हुई. बेकार में 600-800  रुपए महीना चले जाएंगे, उन्हीं पैसों से सागभाजी का खर्चा निकल आता है. ‘‘मैं अकेली हूं. साढ़े 8 बजे निकल कर साढ़े 5 बजे तक लौटती हूं. खानानाश्ता सब बनाना पड़ेगा. छुट्टी के दिन दोपहर का खाना भी. दूसरे दिन रात का खाना, बाकी सफाई, कपड़े, झाड़ू, बरतन, सौदासपाटा. सुबह साढ़े 6 बजे आ जाए, फिर शाम भी 6 बजे. पैसा जो मांगेगी दे दूंगी.’’

भोले इतने में भिंडी ले कर अंदर आ गया, ‘‘भाभीजी, रसोई में रख दूं?’’

‘‘रख दे. सुन भोले, कोई कामवाली ला देगा?’’

‘‘किस के लिए?’’

‘‘यह मेरी दीदी हैं. ‘आंचल’ सोसाइटी में रहने आई हैं. अकेली हैं. कामवाली को सारा काम, सौदासपाटा सब करना पड़ेगा. सुबह व शाम आना है.’’

‘‘भाभीजी, मेरी दीदी ही काम खोज रही हैं.’’

‘‘तेरी दीदी?’’

‘‘अब क्या कहूं. अलीगढ़ के पास एक गांव में ब्याही थीं. 8 बीघा जमीन, पक्का घर, 2 बच्चे 8वीं और छठी में पढ़ने वाले. जीजा अचानक चल बसे. देवर ने मारपीट कर भगा दिया. जमीन का हिस्सा नहीं देना चाहता. 2 महीने से यहां आई हुई हैं. मेरी ठेले की आमदनी है बस. घर में मां, अपने 2 बच्चे, बीवी. परेशानी है तो…

‘‘तो तू जा कर ले आ उसे.’’

‘‘मेरा ठेला…’’

‘‘यहां छोड़ जा.’’

‘‘सुबह की बिक्री नहीं होगी. उसे शाम को ले आऊंगा.’’

‘‘ठीक है फ्लैट नंबर 105. देख, ये मेरी दीदी हैं, अकेली रहती हैं. नौकरी पर जाती हैं. समय पर काम चाहिए.’’

‘‘जी, मैं दीदी को सब समझा दूंगा.’’

भोले चला गया. सुदर्शना ने कहा, ‘‘बड़ा उपकार किया तुम ने मुझ पर. फ्लैटों में तो कोई किसी की सहायता नहीं करता.’’

पिता के खून से रंगे हाथ

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले मे एक कलयुगी पुत्र ने  अपने पिता की हत्या कर शव को फंदे पर लटका दिया.  उसकी  पिता  की हत्या को आत्महत्या की शक्ल देने की कोशिश आखिरकार धरी की धरी रह गई  .पुलिस ने उसके खिलाफ हत्या का  अपराध दर्ज  कर  उसे गिरफ्तार  कर जेल  भेज दिया है . घटना  कोरबा  छत्तीसगढ़ के  वनांचल पसान थाना के सेन्हा गांव की है जहाँ  25 वर्षीय युवक विश्वनाथ चौधरी ने घरेलु विवाद के कारण अपने पिता बुद्धु राम 55 वर्ष की जी आई तार से गला घोटकर हत्या कर दी. कहते हैं ना खून बोलता है और अपराधी अपने पीछे कोई न कोई सुराग छोड़ जाता है इस घटना क्रम में भी कुछ ऐसा ही हुआ. पुलिस को अंततः पोस्टमार्टम के पश्चात ऐसे तथ्य मिल गए जिसकी बिनाह पर पुत्र को स्वीकार करना पड़ा कि हत्या का घिनौना अपराध उसी के हाथों से हुआ है. दूसरी तरफ पुलिस यह भी जांच कर रही है कि पिता की हत्या में आरोपी शख्स  ने क्या  हत्या किसी अन्य के सहयोग से की है. क्योंकि साक्ष्य बताते हैं कि आखिर कोई तो उसका और भी सहयोगी है?

फांसी के  फंदे पर लटकाया 

इस हत्या अपराध में यह तथ्य भी उजागर हो रहा है कि बड़े ही शातिर तरीके से पुत्र ने पहले अपने हाथों से पिता की हत्या कर दी और पुलिस को, कानून को धता बताने के लिए वारदात को आत्महत्या का शक्ल देने के लिए विश्वनाथ ने पिता की लाश को फांसी के फंदे पर लटका दिया. जिसकी सूचना उसने ग्राम पंचायत के सरपंच सहदेव सिंह उइके के माध्यम से पसान थाना में दी थी. जिसमें उसने पिता को आदतन शराबी होने और  लड़ाई-झगड़ा करने के बाद भागकर अपनी मां के साथ सरपंच के घर में रात ठहरने और अगली सुबह लौटने पर, घर में लकड़ी के म्यार में बिजली तार से फांसी के फंदे पर पिता की लाश देखना बताया.सपूत सोची-समझी शातिर चाल के तहत  हुआ . मगर  पोस्ट मार्टम  रिपोर्ट में डॉक्टर ने बुद्धु राम की मौत गले में जीआई तार से गला घोटने पर दम घुटने से होना लेख किया. जिसके बाद पुलिस ने जांच में तेजी लाकर पड़ताल शुरू कर दी और अंततः  आरोपी पुत्र विश्वनाथ चौधरी का कृत्य धारा 302,201 भादवि का पाये जाने पर अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना कार्यवाही कर जेल भेज दिया गया.

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अवैध संबंध  और विवाद

जैसा कि हर एक हत्याकांड में होता है हत्या का कोई न कोई कारण होता  है इस अपराध के पीछे  भी महिला के अवैध संबंधों का शक  पति को था.पुलिस  जांच अधिकारी के अनुसार  पुत्र और उसकी माँ घर के एक तरफ तो दूसरी ओर पिता रहता था. घटना दिनांक को मृतक  द्वारा पत्नि  पर शंका करने को लेकर विवाद हुआ था. घटना के दौरान महिला  घर पर नहीं थी. लेकिन उसे घटना के संबंध में जानकारी होने की बात सामने आ रही है. फिलहाल पुलिस ने आरोपी कलयुगी पुत्र को गिरफ्तार कर अन्य  संदिग्ध लोगों की भूमिका की जांच कर रही है.

coronavirus से हुई डॉक्टर की मौत तो इस एक्टर को नवजात बेटे के साथ छोड़ना पड़ा हॉस्पिटल

कोरोना से पूरा देश सहमा हुआ है. खौफ इतना ज्यादा है कि लोग घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहते हैं ऐसे में एक्टर रुसलान मुमताज की पत्नी ने बेटे को जन्म दिया है. रुसलान ने बताया है कि पिता बनने की खुशी से ज्यादा वह डरे हुए थे.

दरअसल, रुसलान की पत्नी ने जिस अस्पाल में अपने बच्चे को जन्म दिया उसी अस्पताल में एक डॉक्टर की मौत कोरोना बीमारी से हो गई थी. जिस वजह से उन्हें अस्पताल से उन्हें तुरंत वापस घर भेज दिया गया. वायरस के खतरे से बचाने के लिए डॉक्टर्स ने यह कदम उठाया. जब वह अफने बच्चे को लेकर घर पहुंचा तो उन्हें कुछ पता नहीं था कि बच्चे कि देखभाल कैसे की जाएगी.

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घर में मेड रखने की भी इजाजत नहीं थी कोरोना के डर से. बच्चा सो रहा था और घर में करीब 14 घंटे तक दूध नहीं था. जिस वजह से उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा. रात के करीब तीन बजे हमने बच्चे के बारे में बहुत कुछ ऑनलाइन पता किया.

रात को बच्चा सो रहा था कुछ हरकत नहीं कर रहा था. जिसके बाद हम कुछ समय के लिए परेशान हो गए थए कि हमने कुछ गलत तो नहीं कर दिया. इसके कुछ देर बाद हरकत करनी शुरू कर दी. जिससे पता चला कि बच्चा ठीक है.

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सोशल मीडिया पर उन्होंने इस बात को शेयर करते हुए लिखा है कि कोरोना के बीच हमारे घर में नन्हें मेहमान का आगमन हुआ. हम बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं. आप सभी लोग भी अपने घर में सुरक्षित रहे. इससे बीमारी फैलेगी नहीं.

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टीवी और बॉलीवुड के मशहूर स्टार पूरब कोहली ने जब अपने सोशल मीडिया पर कोरोना होने की खबर दी इसके बाद सभी फैंस और स्टार्स के बीच खलबली मच गई. उन्होंने अपने पोस्ट में खुलासा किया है कि वह कोराना वायरस के शिकार हो गए हैं. साथ ही उनका पूरा परिवार भी कोरोना के चपेट में आ गया है.

पूरब को यह बीमारी लंदन में हुई है. जहां वह शादी के बाद अपने पूरे परिवार के साथ सेटल हो गए थें. इस बात की जानकारी देते हुए एक्टर ले लिखा है कि सबसे पहले उनकी पत्नी लूसी को कफ की प्रॉब्लम हुई. जिसके बाद उन्होंने जांच करवाई. उसके बाद उनकी पांच वर्षीय बेटी ईनाया को भी कुछ ऐसे ही सिम्टम्स दिखाई दिए. जब पूरे परिवार की जांच हुई तो पता चला कि उनका पूरा परिवार कोरोना का शिकार हो चुका है.

 

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Out of love still getting very well deserved attention!! #throwback #BTS #outoflove

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हालांकि आगे एक्टर ने लिखा है कि इसमें ज्यादा घबराने की जरुरत नहीं है अपने इम्यूनिटी को बढ़ाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है. इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन इससे बचने के पूरे चांसेज है अगर आप अपना ख्याल अच्छे से रखें तो.

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जिन लोगों को पूरब कोहली के बारे में नहीं पता है तो बता दें की लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड लूसी से साल 2018 में पूरब ने शादी की थी. लेकिन वह शादी से पहले ही बेटी ईनाया के पिता बन चुके थें. ईनाया का जन्म साल 2015 में हुआ था.

 

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Hey guys, we’ve just had a flu and given our symptoms our GP says we were down with Covid 19. Pretty similar to a regular flu with a stronger cough and a feeling of breathlessness. Inaya got it first and very mild. A cough and a cold for two days. Then Lucy got it more in the chest, quite similar to the cough symptom everyone has been talking about. Then me, i got a solid cold for one day which was horrid then it vanished and this irritating cough set in for 3 days. Three of us had only mild 100-101 temperatures and fatigue. Osian got it last with a 104 fever for 3 nights. Also a runny nose and a slight cough. His fever disappeared only on his 5th day. We were constantly in touch with the GP on the phone. Apparently everyone in London is getting it and its rampant here, and a few people we know have gotten it. Just wanted to share it with you if it helps reduce the panic a little to know someone who has had it and is fine. On Wednesday last week we were out of self imposed quarantine and are not contagious any longer. We were doing 4 to 5 steams and salt water gargles a day, ginger haldi honey mixtures to sooth the throat really helped. Also warm water bottles on the chest really helped relax the chest. Hot baths helped the fluie feelings. And of course lots and lots of rest even now after two weeks we can feel our bodies still recovering. Please stay safe. I hope none of you get it but if you do, know that your body is strong enough to fight it. Seek proper advice from your doctors as intensity of each case is different as was in my household alone. And please stay home and rest the body as much as possible. Lots of love. #CoronaVirus #Covid19 #Recovery #DontPanic #Breathe #Calm

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लंबे समय से वह अपने परिवार के साथ लंदन में ही रह रहे हैं. इन सबके बावजूद वह सोशल मीडिया पर अपने निजी जीवन से जुड़ी हुई जानकारी भी देते रहते हैं.

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वह शो सारेगामापा के होस्ट भी रह चुके हैं. लोग उन्हें बेहद पसंद करते हैं. फिलहाल वह अपने आप और फैमली का ख्याल रख रहे हैं.

#lockdown: लौकडाउन से गेहूं की कटाई रुकी, किसान कर रहे हैं वित्तीय मदद की मांग

देश में कोविड-19 महा inमारी तेजी से फैल रही है.अब कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इस संक्रमण का असर देश के किसानों और फसलों पर भी पड़ रहा है.इस वक्त ज्यादातर हिस्सों में फसल पक कर कटने को तैयार है.नए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में रिकॉर्ड 106.21 मिलियन टन गेहूं कटाई के लिए तैयार है. हालांकि, संक्रमण के डर और लौकडाउन के चलते किसान अपनी फसल नहीं काट सकते.वित्तीय वर्ष 2019 में कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन से अर्थव्यवस्था में 18.55 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई थी.
लौकडाउन बना किसानों की मुसीबत
किसानों की फसल पक कर तैयार है, लेकिन 21 दिनों के लौकडाउन की वजह से उन्हें मजदूर नहीं मिल रहे हैं. फसल को बर्बाद होने से बचाने के लिए किसान खुद ही फसल काटने और ढुलाई की कोशिश कर रहे हैं.फसल कटाई के बाद इस का भंडारण कराना और बेचना भी एक समस्या बन जाएगी.इस वक्त किसानों को फसल मंडी तक ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान फसल को सीधे खेत से बेचने के विकल्प ढूंढ रहे हैं, ताकि उन के पास कुछ पैसा आ सके. ऐसे में कई किसान सरकार से मांग कर रहे हैं कि एक ऐसी योजना बनाई जाए, जिस से फसल बर्बाद होने से बच जाए.साथ ही, खाद्य सामग्री की कीमतें भी न बढ़ें.

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इस बारे में सौल्व के फाउंडर ने बताया कि सौल्व ऐसा प्लेटफौर्म है, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय से जुड़ी संस्थाओं को साथ ले कर आते हैं, ताकि वे एकदूसरे को जान पाएं और आपस में खरीदफरोख्त कर पाएं. जैसे, दक्षिण भारत वाले को उत्तर भारत के व्यापारी से कुछ खरीदना है तब वे इस काम को आसानी से कर पाएं, क्योंकि इन के बीच में आसानी से विश्वास पैदा नहीं होता तो हमारी कोशिश इन्हें मिलाने और इन में एकदूसरे के प्रति विश्वास दिलाने की होती है. हम प्लेटफौर्म से जुड़े व्यापारियों को कर्ज दिलाने में भी मदद करते हैं.
सौल्व के फील्ड एजेंट्स ऐप की मदद से उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात समेत देश के कई राज्यों में जा कर डेटा इकठ्ठा करते हैं. वे फील्ड में होने वाले लेन देन को रिकौर्ड करते हैं.साथ ही तय सवालों के आधार पर वे डेटा जुटाते हैं. उन्होंने बताया कि इन दिनों देश के सभी राज्यों में किसानों के लिए लगभग एक जैसे हालात बने हुए हैं.

सेब उत्पादक भी परेशान
कश्मीर में इन दिनों सेब की फसल ज्यादा हो रही है, लेकिन पड़ों से सेब तोड़ने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं, जो सेब तोड़ लिए गए हैं उन्हें बेचने के लिए यातायात की व्यवस्था नहीं है. किसानों के पास कोल्ड स्टोरेज भी बहुत कम है, जिस की वजह से सेबों के सड़ने की आशंका बढ़ गई है।.ऐसे में सेब उत्पादकों को क्षेत्रीय बाजार में ही कम कीमत पर सेब बेचने पड़ रहे हैं.
दूसरी तरफ, कर्नाटक में ज्वार की फसल पक कर तैयार है, लेकिन वहां भी वही स्थिति है. लौकडाउन ने किसानों को घर में बिठा दिया गया है.मजदूर और ट्रांसपोर्ट भी नहीं मिल रहे हैं. राज्य सरकार ने अब तक ऐसी योजना भी नहीं बनाई कि लौकडाउन में चीजों को कैसे मैनेज किया जाए?

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सरकार करे किसानों की सहायता
देशभर में लगे लौकडाउन को देखते हुए राज्य सरकारों को किसानों की मदद के लिए जरूरी कदम उठाने पड़ेंगे और उन की वित्तीय मदद भी करनी होगी. सरकारों को चाहिए कि लौकडाउन खुलते ही किसानों की फसल सुरक्षित मंडी तक पहुंचने में मदद करे. इस के लिए मजदूर और ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करनी चाहिए. अभी मंडियों में पुराना स्टौक है. नया माल नहीं पहुंच पा रहा है.
हालांकि, जो शहरों से लगे गांव हैं, वहां बड़ी कंपनियां या ईकौमर्स कंपनियां जिन के पास खुद के वाहन हैं, वे किसानों से सीधे फसल खरीद रही हैं। इस से किसानों को मदद मिल रही है.सरकार भी इस काम में उन की मदद कर रही है. इस वजह से उत्पाद भी ग्राहकों तक पहुंच पा रहे है.
उम्मीद है कि देश के ज्यादातर शहरों और राज्यों से लौकडाउन हटा दिया जाएगा. उत्तर भारत, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत कई अन्य राज्यों के किसानों का यही मानना है कि 14 के बाद लौकडाउन की स्थिति नहीं रहेगी।.ऐसे में सरकार द्वारा किसानों को खाद, मजदूर, ट्रांसपोर्टेशन, मंडियां, स्टोरेज जैसी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, क्योंकि किसानों का रौमेटेरियल, प्रौडक्शन यूनिट तक नहीं पहुंचेगा, तो स्थिति में सुधार भी नहीं होगा.

किसानों को वित्तीय मदद ज्यादा मिले
इस वक्त किसानों के साथ दिहाड़ी मजदूरों के साथ सब से ज्यादा समस्या बनी हुई है. हालांकि, कई अलगअलग योजनाओं के तहत उन्हें पैसा भी मिलेगा.जैसे, प्रधानमंत्री किसान योजना एक तरीका है.मनरेगा में जिन लोगों को पैसे दिए जाते हैं, उन्हें इस वक्त किसानों को दिए जाना चाहिए, ताकि किसानों पर फसल कटाई और ढुलाई का अतिरिक्त भार नहीं आए.साथ ही सरकार द्वारा अलग-अलग योजनाओं पर मिलने वाली सब्सिडी भी किसानों के मिले.
खेतिहर कामों में छूट: सरकार ने खेतिहर कामों में छूट दी है। खेतिहर मजदूरों, मंडियों और खरीद एजेंसियों, बुआई से जुड़ी खादों के निर्माण व पैकेजिंग इकाइयों को बंदी के नियमों से मुक्त रखा गया है.
सुरक्षा और स्वच्छता सुनिश्चित करना: सरकार का कृषि-शोध संगठन आईसीएआर ने किसानों को खेतों में सामाजिक दूरी और सुरक्षा संबंधी ऐहतियात बरतने को कहा है, मशीन चलाते हुए भी और खेतों में मजदूरों के साथ भी.इन मामलों में किसानों को फसल-प्रबंधन या पशुपालन में कोई दिक्कत होती है, तो वे कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), आईसीएआर शोध संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में संपर्क कर सकते हैं.

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प्रधानमंत्री किसान योजनाः अप्रैल में 8.69 करोड़ किसानों को सरकार पीएम-किसान योजना के तहत दो हजार रुपए देगी, ताकि कोरोना वायरस के कारण हुए देशबंदी से किसानों को राहत मिले.वैसे ही, पीएम-किसान योजना से हर साल किसानों को 6000 रुपए मिलते हैं, उन्हें अब अप्रैल में छूट के तौर पर इसकी पहली किस्त दी जाएगी.आपूर्ति शृंखला की आवाजाही: गृह मंत्रालय ने आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ई-वाणिज्य के माध्यम से जरूरी सेवाओं की आपूर्ति हेतु कुछ मानक संचालन प्रक्रिया स्थापित किए.इसमें खाद्य, किराने के सामान, फल, सब्जी, दूध उत्पाद से जुड़ी राशन इकाइयां शामिल हैं. इससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने में मदद मिलेगी. वहीं, इससे ई-कॉमर्स कंपनियों और बड़ी संगठित खुदरा दुकानों में जरूरी सामान की उपलब्धता बरकरार रहेगी.बंद के दौरान आपूर्ति सामान्य करने के सरकारी उपायों के बाद फलों और सब्जियों की करीब 1900 मंडियां सुचारु रूप से काम कर रही हैं.

निरंतर निगरानी और समन्वय: दिल्ली में मदर डेरी की सफल सब्जी दुकानें, कोलकाता में सफल बांग्ला दुकानें, बेंगलुरु में हॉपकम्स खुदरा दुकानें और चेन्नई और मुंबई में इसी तरह की दुकानें स्थानीय प्रशासन के साथ आपूर्तियों के संचार और समन्वय पर निगरानी रखेंगी. स्थानीय पुलिस, जिला कलेक्टर और परिवहन संगठनों के बीच सुचारू संपर्क और समन्वय के लिए मंडियों में कंट्रोल रूम बनाए गए हैं.
राज्य सरकारों द्वारा खरीदः पंजाब के कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि राज्य सरकार कटाई की इजाजत देगी और बाजार से हर अनाज को खरीदेगी.

#lockdown: सीएमआईई की रिपोर्ट्स में महामंदी की आहट

‘सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई)’ से आई ताजा रिपोर्ट भारत के लिए बड़ी चिंता का सबब बन सकता हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लाकडाउन के कारण बेरोजगारी दर 23.4 प्रतिशत तक उछल सकती है. शहरों में इस की दर 30 प्रतिशत तक जा सकती है. यह आकड़े 5 अप्रैल रविवार यानी जिस दिन पूरा देश दिया और मोमबती जला रहा था उस दिन तक के हैं. इसे पब्लिश 6 अप्रैल सोमवार को किया गया. इन आकड़ों को समझा जाए तो 15 मार्च 2020 तक भारत की बरोजगारी दर जो 8.4 प्रतिशत थी (हालांकि यह भी बहुत अधिक थी) वह मात्र 23 दिनों में 23.4 प्रतिशत तक जा पहुंची है. जब कि यह आकड़े शहरों में बढ़कर तक 30.93 प्रतिशत तक बताए गए हैं. सीएमआईई भारत का सब से बड़ा स्वतंत्र व्यावसायिक और आर्थिक रिसर्च ग्रुप है जिस की स्थापना 1976 में नरोत्तम शाह ने की थी. इस का हेडक्वार्टर मुंबई में स्थित है. यह अर्थव्यस्था और व्यापार को ले कर डेटाबेस तैयार करता है.

आज पुरे विश्व के ऊपर कोरोना संक्रमण की दोहरी मार पड़ी है. पहला, बिमारी से संक्रमित होने व मरने वालों की लगातार बढ़ती संख्या और दूसरा, लम्बे लाकडाउन से पुरे विश्व की चोपट होती अर्थव्यवस्था. अभी हाल ही अमेरिका में 1 हफ्ते के भीतर ही 68 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते का फॉर्म भर कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. वहीँ 15 दिनों का हाल देखें तो लगभग 1 करोड़ लोग बेरोजगारी के लिए यह फॉर्म भर चुके थे. यह अपने आप में एक साथ अमेरिका में दर्ज की गई सब से बड़ी बेरोजगारी की रिपोर्ट थी. यही हाल अलग अलग देशो का चल रहा है.

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आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी हाल ही में देश की अर्थव्यवस्था को ले कर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि “आजादी के बाद भारत इस समय अब तक के सब से बड़े आर्थिक आपातकाल से गुजर रहा है.” अपनी बात में उन्होंने सरकार को सुझाव दिया की लाकडाउन के बाद एहतियात के साथ कम संक्रमित क्षेत्रों को दोबारे से पटरी पर उतारा जाए. साथ ही उन्होंने सरकार को गरीबों के हितों को प्राथमिकता देने की बात कही. जिसमें उन्होंने कम जरूरी खर्चों को फिलहाल के लिए टालने को कहा.

वहीँ एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रोणब सेन ने मोटामोटी गणना के तौर पर इस बात की सम्भावना व्यक्त की है की “लाकडाउन के दो हफ्तों के भीतर ही भारत में 5 करोड़ लोगों ने अपनी नोकरी खो दी है.” यह वही है जिन्होंने सरकार को चेताया था की “अगर माइग्रेट वर्कर के पास खाना नहीं पहुंचा तो खाने को ले कर दंगों की संभावना बढ़ सकती है.”

फिलहाल सीएमआईई के जारी किये यह आकड़े भारत के लिए चिंता का विषय जरुर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि लाकडाउन के पहले भारत रोजगार उत्पादन के मामले में बेहतर स्थिति में था. ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के रिपोर्ट वर्ष 2018-19 के मुताबिक़ ‘अधिकतर भारतीय लोग रोजगार के अवसरों की कमी को देश की सब से बड़ी समस्या मानते है. इस के अलावा लगभग 1 करोड़ 86 लाख लोग देश में बेरोजगार हैं.’

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हांलाकि लाकडाउन के कारण बेरोजगारी के बढ़ने की संभावना पहले से ही व्यक्त की जा रही थी लेकिन इस की जमीन काफी समय पहले खुद सरकार द्वारा डाल दी गई थी. जिस में प्रधानमंत्री द्वारा की गई नोटबंदी भी जिम्मेदार थी. जिस ने भारत की अर्थव्यवस्था की मानो कमर ही तोड़ दी थी. एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक 2017-18 में भारत ने पिछले 45 सालों की सब से बड़ी बेरोजगारी झेली. यह बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी. रिपोर्ट के अनुसार युवाओं में इस का सब से अधिक प्रभाव था. ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की बेरोजगारी दर 17.6 फ़ीसदी था वहीँ शहरों में यह 18.7 फीसदी था. वहीँ शहरी युवतियों में यह 27.2 फीसदी था. यह वह समय था जब छोटे उद्योग धंधे धड़ल्ले से बंद हो रहे थे. देश की सब से निचली आबादी जिन अनौपचारिक फैक्ट्रियों में काम कर रही थी वहां मजदूरों की छटनी धड़ाधड़ चल रही थी. इस के बाद बाकी बचीकुची कसर जीएसटी के फैसले ने पूरी कर दी थी.

जाहिर है देश में यह स्थिति काफी समय पहले से ही चलती आ रही थी यही कारण था कि लाकडाउन के दुसरे दिन से ही पलायन करने वाले मजदूरों की फौज बिना किसी की परवाह किये अपने घरों की तरफ कूच करने निकल पड़ी. अब जो रिपोर्ट्स सीएमआईई की तरफ से लाकडाउन से पैदा हुई बेरोजगारी को ले कर आई है वह महामंदी की तरफ इशारा कर रही है. अगर यह आकड़े सही निकलते है तो देश की अधिकतम आबादी की कन्जुमिंग पॉवर ख़त्म हो जाएगी. यानी बहुसंख्यक आबादी के पास लाकडाउन खुलने के बाद भी सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं होगा. अगर लोगों के पास उपभोग क्षमता नहीं होगी तो इस का नकारात्मक असर छोटे बड़े उद्योग धंधो की उत्पादन प्रणाली पर पड़ेगा. अगर उपभोक्ता सामान खरीदने की स्थिति में नहीं है तो उद्योगपति उत्पादन नहीं कर पाएंगे. फिर बड़ीबड़ी इंडस्ट्री में भी छटनीयां शुरू होने लगेगी. अगर इस साइक्लिंग प्रक्रिया की गिरफ्त में देश की अर्थव्यवस्था आती है तो हमें वापस उभरने में लंबा समय लग जाएगा.

इस समय लगभग 90 देशों में लाकडाउन किया गया है. यानी अर्थव्यवस्था के चक्के को रोका गया है. वेश्विक स्तर पर इस तरह का लाकडाउन एक साथ पहली बार किया गया. हमारे लिए यह जानना ज्यादा जरुरी है कि इस से पैदा हुई अर्थव्यवस्था की हानि हर देश के लिए एक सामान नहीं है. ख़ासकर जब विश्व पहले ही विकसित, विकासशील और अविकसित देशों में बंटा हुआ है. यही कारण है कि निर्धनता की मार झेल रहा भारत पहले ही आर्थिक मोर्चे पर रगड़ खा रहा है. ऐसी स्थिति में हमारे लिए संभलना कितना कठिन होगा यह देखना बाकी है.

#coronavirus: जमातियों ने ही नहीं अफसरों तक ने छिपाई कोरोना की जानकरी

जमाती तो बदनाम है कि उन्होनें कोरोना छिपा कर समाज को बीमार कर दिया.लखनऊ की कनिका और मध्य प्रदेश की अधिकारी पल्लवी जैन ने भी ऐसी तरह से लापरवाही की.

पूरे देश मे इस बात पर हंगामा है कि जमातियों ने कोरोना की जानकारी छिपा कर देश भर में कोरोना को रोकने में मंसूबों पर पानी फेर दिया. पूरा देश एक स्वर में इस बात की आलोचना भी कर रहा है. जमातियों का यह वर्ग कम जानकार था ऐसे में वह उतने गुनाहगार नही है. जितने गुनहगार वह लोग है जो समझदार भी है और सरकार में मुख्य पदों पर बैठे भी है.
हनीमून से वापस आये अफसर ने नही दी जानकारी :
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले आईएएस अधिकारी अनुपम मिश्रा केरल कैडर से है, वो अपनी पत्नी के साथ 10 दिन के टूर पर सिंगापुर मलेशिया गए थे.जब वह वापस आये तो एयर पोर्ट पर उनको सलाह दी गई कि वो 14 दिन अपने घर मे अकेले रहे.अनुपम मिश्रा अपने जिला सुल्तानपुर चले आये और खुद को कोरोनो से बचाने के लिए किसी नियम का पालन नही की. यह जानकारी एयरपोर्ट अथॉरिटी ने केरल सरकार को दी वँहा से उत्तर प्रदेश सरकार को पता चला.

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उत्तर प्रदेश में अनुपम मिश्रा की लोकेशन पहले कानपुर फिर सुल्तानपुर मिली। तब सुल्तानपुर जिले के अफसरों ने उनको एकांत में रहने के बारे में बताया. इसके बाद ही उनको घर पर रहने के लिए कहा गया.प्रशासन यह पता लगा रहा था कि उनके सम्पर्क में कितने लोग इस दौरान उनसे मिले और उनकी क्या हालत है. एक जिम्मेदार अफसर होते हुए इस तरह का काम ठीक नही था. केरल सरकार ने उनके खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला भी किया.

एमपी की अफसर की लापरवाही
केरल कैडर के आईएएस अनुपम मिश्रा कोरोना के प्रति लापरवाही बरतने वाले अकेले अफसर नही है.मध्य प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य विभाग में प्रमुख सचिव पल्लवी जैन का बेटा विदेश से आया. पल्लवी जैन ने यह बात छिपाई.पल्लवी जैन खुद कोरोना से तो पीड़ित हुई ही उनके सम्पर्क में आ कर 3 दर्जन से अधिक लोग कोरोना को लेकर जांच के घेरे में आ गए.

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जब देश के यह जिम्मेदार लोग इस तरह का कार्य कर सकते है तो जमाती औऱ दूसरे लोगो से हम कैसे यह उम्मीद कर की वह अपना इलाज कराएंगे या सरकार को इस बीमारी की जानकारी देगें.

अकेले रहने का डर सताता है
कोरोना में मर्ज को बताने में लोग डरते क्यो है ? इसकी सबसे प्रमुख वजह यह होती है कि लोगो को लगता है कि कोविड 19 पॉजिटिव होते ही उनको एक अलग थलग जगह पर घर परिवार से दूर रहना होगा.इस डर से वह कोरोना को बीमारी को नही बताते. डॉक्टरों का कहना है कि हमारे यँहा यह अघिक हो रहा है. विदेशों में लोग इसको छिपाते नही है. वह लोग पूरी जांच कराकर इसका इलाज करते है. हमारे देश मे जांच और बीमारी से बचने के दूसरे रास्ते चुने जाने लगते है.जिसकी वजह से मरीज को तलाश करना ही बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है. अगर मरीज समय से अस्पताल पहुच जाए तो बेहतर इलाज मिल जाता है औऱ लोग स्वस्थ हो कर अपने घर वापस पहुच जाते है. हमारे देश के लोग मानते है कि यह कैंडिल जलाने, ताली और थाली बजाने से कोरोना भाग जाएगा.

पुनर्विवाह: भाग 3

शालू, दुनिया में अकेली औरत का जीवन दूभर हो जाता है. मानसजी भले इंसान हैं तथा विधुर भी हैं. उन का हाथ थाम लेना. तुम सुरक्षित रहोगी तो मुझे शांति मिलेगी.’ मेरी चुप्पी पर अधीर हो कर बोले थे, ‘शालू, मान जाओ, हां कह दो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की पीड़ा, उन की अधीरता देख मैं ने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया था. मेरी स्वीकृति मान उन्होंने हलकी मुसकराहट से कहा था, ‘मेरी शादी वाली अंगूठी मेरी सहमति मान, मानस को पहना देना. उस में लिखा ‘एम’ अब उन के लिए ही है.’ किंतु मैं भी आप की दोस्ती न खो बैठूं, इस संकोच में आप से कुछ कह न सकी,’’ वह हलके से मुसकरा दी. मानस इत्मीनान से बोले, ‘‘चलो, सुगंधा की जिद के कारण सभी बातें साफ हो गईं. मैं तो तुम्हें चाहने लगा हूं, यह स्वीकार करता हूं. तुम्हारा प्यार भी उस दिन अस्पताल में उजागर हो चुका है. मेरी  सुगंधा तो हमारी शादी के लिए तैयार बैठी है. तुम भी इस विषय में अपने बेटे से बात कर लो.’’ शालिनी ने उदासीनता से कहा, ‘‘मेरा बेटा तो सालों पहले ही पराया हो गया. अमेरिका क्या गया वहीं का हो कर रह गया. 4 साल से न आता है न हमारे आने पर सहमति व्यक्त करता है. उस की विदेशी पत्नी है तथा उस ने तो हमारा दिया नाम तक बदल दिया है. ‘‘मनोज के क्रियाकर्म हेतु बहुत कठिनाई से उस से संपर्क कर सकी थी. मात्र 3 दिन के लिए आया था. मानो संबंध जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने आया था. कह गया, ‘यों व्यर्थ मुझे आने के लिए परेशान न किया करें, मेरे पास व्यर्थ का समय नहीं है.’

‘‘अकेली मां कैसे रहेगी, न उस ने पूछा, न ही मैं ने बताया. अजनबी की तरह आया, परायों की तरह चला गया,’’ शालिनी की आंखें भीग आई थीं. मानस ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘शालू, जिस बेटे को तुम्हारी फिक्र नहीं है, जिस ने तुम से कोई संबंध, संपर्क नहीं रखा है, उस के लिए क्यों आंसू  बहाना. मैं तुम से एक वादा कर सकता हूं, हम दोनों एकदूसरे का इतना मजबूत सहारा बनेंगे कि हमें अन्य किसी सहारे की आवश्यकता ही नहीं होगी.’’ शालिनी अभी भी सिमटीसकुचाई सी बैठी थी. मानस ने उस की अंतर्दशा भांपते हुए कहा, ‘‘शालू, यह तुम भी जानती होगी तथा मैं भी समझता हूं कि इस उम्र में शादी शारीरिक आवश्यकता हेतु नहीं बल्कि मानसिक संतुष्टि के लिए की जाती है. शादी की आवश्यकता हर उम्र में होती है ताकि साथी से अपने दिल की बात की जा सके. एक साथी होने से जीवन में उमंगउत्साह बना रहता है.’’ फोन के जरिए सुगंधा सब बातें जान कर खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस रविवार यह शुभ कार्य कर लेते हैं, मैं और कुणाल इस शुक्रवार की रात में पहुंच रहे हैं.’’ रविवार के दिन कुछ निकटतम रिश्तेदार एवं पड़ोसियों के बीच मानस एवं शालिनी ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई, फूलमाला पहनाई तथा मानस ने शालिनी की सूनी मांग में सिंदूर सजा दिया.

सभी उपस्थित अतिथियों ने करतल ध्वनि से उत्साह एवं खुशी का प्रदर्शन किया. सभी ने सुगंधा की सोच एवं समझदारी की प्रसंशा करते हुए कहा कि मानस एवं शालिनी के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रख, सुगंधा ने प्रशंसनीय कार्य किया है. सुगंधा ने घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन रखा था. सोमवार की पहली फ्लाइट से सुगंधा एवं कुणाल को लौट जाना था. शालिनी भावविभोर हो बोली, ‘‘अच्छा होता, बेटा कुछ दिन रुक जातीं.’’ सुगंधा ने अपनेपन से कहा, ‘‘मम्मी, अभी तो हम दोनों को जाना ही पड़ेगा, फाइनल रिपोर्ट का समय होने के कारण औफिस से छुट्टी मिलना संभव नहीं है.’’ ‘‘ठीक है, इस बार जाओ किंतु प्रौमिस करो, दीवाली पर आ कर जरूर कुछ दिन रहोगे,’’ शालिनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सुगंधा को शालिनी का मां जैसा अधिकार जताना भला लगा. वह भावविभोर हो उस के गले लग गई. उसे आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था. होता भी क्यों नहीं, उसे  मां जो मिल गई थी. दोनों के अपनत्त्वपूर्ण व्यवहार को देख कर मानस की आंखें भी सजल हो उठीं.

पुनर्विवाह: भाग 1

मनोज के गुजर जाने के बाद शालिनी नितांत तन्हा हो गई थी. नया शहर व उस शहर के लोग उसे अजनबी मालूम होते थे. पर वह मनोज की यादों के सहारे खुद को बदलने की असफल कोशिश करती रहती. शहर की उसी कालोनी के कोने वाले मकान में मानस रहते थे. उन्होंने ही जख्मी मनोज को अस्पताल पहुंचाने के लिए ऐंबुलैंस बुलवाई थी. मनोज की देखभाल में उन्होंने पूरा सहयोग दिया था. सो, मानस से शालिनी का परिचय पहचान में बदल गया था. मानस ने अपना कर्तव्य समझते हुए शालिनी को सामान्य जीवन गुजारने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, ‘‘शालिनीजी, आप कल से फिर मौर्निंगवाक शुरू कर दीजिए, पहले मैं ने आप को अकसर पार्क में वाक करते हुए देखा है.’’

‘‘हां, पहले मैं नित्य मौर्निंगवाक पर जाती थी. मनोज जिम जाते थे और मुझे वाक पर भेजते थे. उन के बाद अब दिल ही नहीं करता,’’ उदास शालिनी ने कहा.

‘‘मैं आप की मनोदशा समझ सकता हूं. 4 साल पहले मैं भी अपनी पत्नी खो चुका हूं. जीवनसाथी के चले जाने से जो शून्य जीवन में आ जाता है उस से मैं अनभिज्ञ नहीं हूं. किंतु सामान्य जीवन के लिए खुद को तैयार करने के सिवा अन्य विकल्प नहीं होता है.’’ दो पल बाद वे फिर बोले, ‘‘मनोजजी को गुजरे हुए 3 महीने से ज्यादा हो चुके हैं. अब वे नहीं हैं, इसलिए आप को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. आप खुद को सामान्य दिनचर्या के लिए तैयार कीजिए.’’

मानस ने अपना तर्क रखते हुए आगे कहा, ‘‘शालिनीजी, मैं आप को उपदेश नहीं दे रहा बल्कि अपना अनुभव बताना चाहता हूं. सच कहता हूं, पत्नी के गुजर जाने के बाद ऐसा महसूस होता था जैसे जीवन समाप्त हो गया, अब दुनिया में कुछ भी नहीं है मेरे लिए, किंतु ऐसा होता नहीं है. और ऐसा सोचना भी उचित नहीं है. किंतु मृत्यु तो साथ संभव नहीं है. जिस के हिस्से में जितनी सांसें हैं, वह उतना जी कर चला जाता है. जो रह जाता है उसे खुद को संभालना होता है. मैं ने उस विकट स्थिति में खुद को व्यस्त रखने के लिए मौर्निंगवाक शुरू की, फिर एक कोचिंग इंस्टिट्यूट जौइन कर लिया. रिटायर्ड प्रोफैसर हूं, सो पढ़ाने में दिल लगता ही है. इस के बाद भी काफी समय रहता है, उस में व्यस्त रहने के लिए घर पर ही कमजोर वर्ग के बच्चों को फ्री में ट्यूशन देता हूं तथा हफ्ते में 2 दिन सेवार्थ के लिए एक अनाथाश्रम में समय देता हूं. इस तरह के कार्यों से अत्यधिक आत्मसंतुष्टि तो मिलती ही है, साथ ही समय को फ्रूटफुल व्यतीत करने का संतोष भी प्राप्त होता है. आप से आग्रह करना चाहता हूं कि आप इन कार्यों में मुझे सहयोग दें.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं. कल सुबह कौलबैल दूंगा, निकल आइएगा, मौर्निंगवाक पर साथ चलेंगे, शुरुआत ऐसे ही कीजिए.’’

अन्य विकल्प न होने के कारण शालिनी ने सहमति में सिर हिला दिया. सच में मौर्निंगवाक की शुरुआत से वह एक ताजगी सी महसूस करने लगी. उस ने मानस के साथ कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाना व अनाथालय में समय देना भी प्रारंभ कर दिया. इन सब से उसे अद्भुत आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता. दो दिनों से मानस मौर्निंगवाक के लिए नहीं आए. शालिनी असमंजस में पड़ गई, शायद मानस ने सोचा हो कि शुरुआत करवा दी, अब उसे खुद ही करना चाहिए. शालिनी पार्क तक चली गई. किंतु उसे  मानस वहां भी दिखाई नहीं दिए. जब तीसरे दिन भी वे नहीं आए तब उसे भय सा लगने लगा कि कहीं एक विधवा और एक विधुर के साथ का किसी ने उपहास बना, मानस को आहत तो नहीं कर दिया, कहीं उन के साथ कुछ अप्रिय तो घटित नहीं हो गया, ऐक्सिडैंट…? नहींनहीं, वे ठीक हैं, उन के साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ है. इन्हीं उलझनों में उस के कदम मानस के घर की ओर बढ़ चले. दरवाजे पर ताला पड़ा था. दो पल संकोचवश ठिठक गई, फिर वह उन के पड़ोसी अमरनाथ के घर पहुंच गई. अमरनाथ और उन की पत्नी ने उस का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइए, शालिनीजी, कैसी हैं? हम लोग आप के पास आने की सोच रहे थे किंतु व्यस्तता के कारण समय न निकाल पाए.’’

शालिनी ने उन्हें धन्यवाद देते हुए पूछा, ‘‘आप के पड़ोसी मानसजी क्या बाहर गए हुए हैं? उन के घर पर…’’

‘‘नहींनहीं, उन्हें डिहाइड्रेशन हो गया था. वे अस्पताल में हैं. हम उन से कल शाम मिल कर आए हैं. अब वे ठीक हैं,’’ अमरनाथजी ने बताया. शालिनी सीधे अस्पताल चल दी. विजिटिंग आवर होने के कारण वह मानस के समक्ष घबराई सी पहुंच गई, ‘‘कैसे हैं आप, क्या हो गया, कैसे हो गया, आप ने मुझे इतना पराया समझा जो अपनी तबीयत खराब होने की सूचना तक नहीं दी. मैं पागलों सी परेशान हूं. न दिन में चैन है न रात में नींद.’’

‘‘ओह शालू, इतना मत परेशान हो, मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हें खबर करनी चाहिए थी किंतु तुम्हें मेरा हाल कैसे मालूम हुआ?’’ मानस ने आश्चर्य से कहा.

‘‘आज मैं हैरानपरेशान अमरनाथजी के घर पहुंच गई. वहीं से सब जान कर सीधी चली आ रही हूं. आप बताइए, अब आप कैसे हैं, तथा यह हाल कैसे हुआ?’’ शालिनी की आंखें सजल हो उठीं. मानस भी भावुक हो उठे, उन्होंने शालिनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘प्लीज, परेशान मत हो, मैं एकदम ठीक हूं. उस दिन रामरतन रात में खाना बनाने न आ सका, साढ़े 8 बजे के बाद फोन करता है, ‘सर, आज नहीं आ सकूंगा, पत्नी को बहुत चक्कर आ रहे हैं.’ मैं ने कह दिया कि ठीक है, तुम पत्नी को डाक्टर को दिखाओ, अभी मैं ही कुछ बना लेता हूं. सुबह सब ठीक रहे तो जरूर आ जाना.

‘‘मैं ने कह तो दिया, किंतु कुछ बना न सका. सो, नुक्कड़ की दुकान से पकौड़े ले आया, वही हजम नहीं हुए बस, रात से दस्त और उल्टियां शुरू हो गईं.’’ ‘‘मनजी, आप मुझे कितना पराया समझते हैं. मेरे घर पर, खाना खा सकते थे, किंतु नहीं, आप नुक्कड़ की दुकान पर पकौड़े लेने चल दिए, जबकि आप के घर से दुकान की अपेक्षा मेरा घर करीब है. सिर्फ आप बात बनाते हैं कि तुम्हें अपनत्व के कारण समझाता हूं कि स्वयं को संभालो और सामान्य दिनचर्या का पालन करो. मैं ने आज आप का अपनापन देख लिया.’’ ‘‘सौरी शालू, मुझे माफ कर दो,’’ मानस ने अपने कान पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे अच्छा ही हुआ, तुम्हें खबर कर देता तो तुम्हारा यह रूप कैसे देख पाता, तुम्हें मेरी इतनी फिक्र है, यह तो जान सका.’’

शालिनी ने हौले से मानस की बांह में धौल जमाते हुए अपनी आंखें पोंछ लीं तथा मुसकरा दी. भावनाओं की आंधी सारी औपचारिकताएं उड़ा ले गई. मानस शालिनी को ‘शालू’ कह बैठे, वही हाल शालिनी का था, वह  ‘मानसजी’ की जगह ‘मनजी’ बोल गई. भावनाओं के ज्वार में मानस भूल ही गए कि उन के कमरे में उन की बेटी सुगंधा भी मौजूद है. शालिनी तो उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ थी, अतिभावुकता में उसे मानस के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं दिया. एकाएक मानस की नजरें सुगंधा से टकराईं. संकोचवश शालिनी का हाथ छोड़ते हुए उन्होंने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘शालिनी, इस से मिलो, यह मेरी प्यारी बेटी सुगंधा है. यह आई तो औफिस के काम से थी किंतु मेरी तीमारदारी में लग गई.’’

शालिनी को सुगंधा की उपस्थिति का आभास होते ही उस की हालत तो रंगे हाथों पकड़े गए चोर सी हो गई. वह सुगंधा से दोचार औपचारिक बातें कर झटपट विदा हो ली. अस्पताल से लौटते समय शालिनी अत्यधिक सकुचाहट में धंसी जा रही थी. वह भावावेश में क्याक्या बोल गई, न जाने मानस क्या सोचते होंगे. सुगंधा का खयाल आते ही उस की सकुचाहट बढ़ जाती, न जाने वह बच्ची क्या सोचती होगी, कैसे उस का ध्यान सुगंधा पर नहीं गया, वह स्वयं को समझाती. मानस के लिए व्यथित हो कर ही तो वह अस्पताल पहुंच गई थी, भावनाओं पर उस का नियंत्रण नहीं था. इसलिए जो मन में था, जबान पर आ गया. मानस घर आ गए थे. अब वे पूरी तरह स्वस्थ थे. सुगंधा को कल लौट जाना था. सुगंधा ने मानस एवं शालिनी के  परस्पर व्यवहार को अस्पताल में देखा था. इतना तो वह समझ चुकी थी कि दोनों के मध्य अपनत्व पप चुका है, बात जाननेसमझने की इच्छा से उस ने बात छेड़ते हुए कहा, ‘‘पापा, शालिनी आंटी इस कालोनी में नई आई हैं, मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा?’’

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