कान न हुए कचरापेटी हो गई. जो आया उडे़ल कर चला गया जमाने भर की गंदगी और हम ने खुली छूट दे रखी है कानों को. आजकल हमारा देखना भी कानों से ही होता है. लोग कान में आ कर धीरे से फुसफुसा जाते हैं और हमें लगता है कि यह हमारा खास, घनिष्ठ और विश्वसनीय है जो इतनी महत्त्वपूर्ण बातें हमें बता कर चला गया. कान से सुन कर हमें इतना विश्वास हो जाता है कि अब हमारा मानना हो गया है कि आंखें धोखा खा सकती हैं लेकिन कान नहीं. कानों से हमें खबरें मिलती हैं कि फलां की लड़की फलां के लड़के के साथ भाग गई. फलां की पत्नी का फलां के साथ चक्कर है. हम ऐसी चटपटी मसालेदार बातें सुन कर आत्मसुख का अनुभव करते हैं. अफवाहें कानों से ही बढ़ती हैं, फैलती हैं, दावानल का रूप लेती हैं. किसी ने कहा, ‘दंगा हो गया.’ कानों ने विश्वास किया. यही हम ने दूसरे के कान में कहा. उस ने तीसरे के कान में. एक कान से दूसरे, फिर तीसरे तक होती हुई बातें कानोंकान चारों तरफ फैल जाती हैं. हमारे कान उस सार्वजनिक शौचालय की तरह हो गए हैं जिस में आ कर कोई भी निवृत्त हो कर, हलका हो कर, गंदगी उड़ेल कर चला जाता है.

हम एक के कान में कहते हैं, देख, तुझे अपना समझ कर बता रहे हैं. किसी और तक बात नहीं पहुंचनी चाहिए. वह कसम उठा कर कहता है कि भरोसा रखो, नहीं पहुंचेगी. लेकिन तुरंत वह अपने किसी परिचित के कान में फुसफुस करता है और उसे भी यही हिदायत देता है. वह भी पहले वाले की तरह सौगंध खा कर कहता है, नहीं पहुंचेगी और तुरंत किसी नए कान की तलाश में लग जाता है. कानों का काम है सुनना लेकिन हम कानों को क्याक्या सुनाते रहते हैं, जो नहीं सुनाना चाहिए. जहां कान बंद कर लेने चाहिए वहां भी हम कान खड़े कर लेते हैं. कानों को हम ने ऐसे शौक दे रखे हैं कि जब तक वे भड़काऊ बयान, शोर भरा संगीत, गुप्त बातें, रहस्य की बातें और अश्लील वार्त्ता सुन न लें, तृप्त ही नहीं होते. कुछ कान बेचारे ऐसे हैं जो धमाकों की आवाजें, चीखपुकार सुन कर बहरे हो गए हैं. उन के लिए हम बहरे शब्द का प्रयोग करते हैं यानी यदि आप के कान हमारी बात, हमारी बकवास, हमारे प्रवचन, हमारे बोलवचन न सुनें तो कहते हैं कि तुम बहरे हो. जैसे आंख के अंधे वैसे कान के बहरे. कुछ कान बड़े संवेदनशील होते हैं. वे दूसरों की व्यथाकथा सुन कर द्रवित हो जाते हैं. कुछ कान जासूस की तरह होते हैं. कहीं खुसुरफुसुर सुनी और फौरन खड़े हो जाते हैं.

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साधुसंत तो कानों के विषय में कहते हैं कि यदि आप ने हमारे श्रीमुख से हरिकथा नहीं सुनी तो आप के कान कान नहीं, सांप के बिल हैं. कुछ कान लापरवाह किस्म के होते हैं. वे एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. आज के जमाने में आप का अंधा या लंगड़ा होना चल जाएगा लेकिन कानों का ठीकठाक होना बहुत जरूरी है. आजकल सुनने के साथसाथ देखना भी कानों से हो रहा है. आंख में दोष हो सकता है लेकिन कान पर हमें पूरा विश्वास है क्योंकि हमारे कानों ने सुना है. किस से सुना है, क्या सुना है? ये महत्त्वपूर्ण नहीं है. हमारे कानों ने सुना है, यह ही काफी है. हम उन कानों तक भी अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करते हैं जो कान ऊंचा सुनते हैं. भले ही उन्हें सुनाने के चक्कर में चार लोग और सुन लें. लेकिन हमारा धर्म हो गया है कि जो सुनें वह दूसरे को सुना दें. तथाकथित ईश्वर के विषय में कहा गया है कि बिना कान के सुनते हैं. सुनने के लिए कान का होना आवश्यक है और कान ठीकठाक सुनें, इस के लिए बीचबीच में तेल आदि डालते रहना चाहिए.

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कुछ लोगों के ऐसे भी कान होते हैं जो सुनना पसंद नहीं करते. ऐसे लोग कहते हैं, कान पक गए हैं सुनतेसुनते. ऐसे कान किस काम के जिन्हें सुनने में तकलीफ हो. कान तो वे जो सदा सुनने को व्याकुल हों. हमारे पास 1 नहीं 2 कान हैं. इस का अर्थ यही हुआ कि प्रकृति ने कान का महत्त्व समझ कर हमें 1 नहीं 2 कान दिए हैं. ऐसे में कान की विश्वसनीयता और उपयोगिता दोनों बढ़ जाती हैं. कान का अपना एक निजी गुण यह है कि ये बुराई सुनने में खुशी से खड़कने लगते हैं. जहां किसी की निंदा सुनी, समझो कान का होना सार्थक हो गया. हमारे कान ऊलजलूल, बकवास, निंदा, शोरशराबा, अफवाहें, समाचार, खबरें सब सुनने में दक्ष हैं लेकिन कुछ बातें कानों को बिलकुल रास नहीं आतीं, जैसे मांबाप की सलाहसमझाइश और गुणी लोगों का सत्संग-प्रवचन. हमारे कान नाराज हो कर एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. वैसे तो सुनते ही नहीं. 2 कानों का फायदा यही है कि बात अच्छी न लगे तो एक से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आदमी कानोंसुनी पर इतना भरोसा करने लगा है कि वह प्रत्यक्ष देखना जरूरी नहीं समझता. कौन जा कर देख कर समय बरबाद करे. कानों तक बात पहुंच गई, समझो देख लिया. स्त्रियां तो कानोंसुनी आंखों देखी एक बराबर मानती हैं. सुनसुन कर ही वे इतना बड़ा झमेला खड़ा कर देती हैं कि परिवार बिखरने लगते हैं. घर में द्वेष फैलने लगता है. तो फिर कचराघर हैं न कान. आप के क्या हैं?

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