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फेक न्यूज़– पौराणिक काल से वर्तमान तक सक्रिय है भगवा गैंग

आपके द्वारा असत्य एवं भ्रामक खबरें फैलाई जा रहीं हैं जबकि जनपद फिरोजाबाद में न तो किसी मेडिकल टीम एवं न ही एंबुलेंस गाड़ी पर किसी तरह का पथराव किया गया है आप अपने द्वारा किए गए ट्वीट को तत्काल डिलीट करें.

यह फटकार बीती 6 अप्रैल को फिरोजाबाद पुलिस ने कट्टर हिंदूवादी माने जाने बाले चैनल जी न्यूज़ को लगाई थी क्योंकि इस चेनल के उत्तरप्रदेश उत्तराखंड ट्विटर हेंडल से हुये एक ट्वीट में वाकई भ्रम फैलाने बाला ट्वीट यह किया गया था- फिरोजाबाद में 4 तबलीगी जमाती कोरोना पॉजटिव, इन्हें लेने पहुंची मेडिकल टीम पर हुआ पथराव.

जी न्यूज़ गलत भ्रामक और असत्य खबरें जिन्हें फेक ही कहा जा सकता है फैलाने कितना बदनाम हो चुका है इसकी एक और बानगी उस वक्त देखने में आई जब फिरोजाबाद मामले से कोई सबक न लेते हुये उसने दूसरे दिन ही यह खबर चला दी थी कि अरुणाचल प्रदेश में कोरोना संक्रमित 11 मरीज जमात के हैं जिन्होंने पिछले महीने दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तबलीगी जमात में हिस्सा लिया था . चूंकि खबर सरासर गलत थी इसलिए आईपीआर (सूचना व जनसम्पर्क विभाग) अरुणाचल प्रदेश को इस का खंडन करना पड़ा .

थूक कर चाटा-

थूक कर चाटना हालांकि एक पुराना मुहावरा है लेकिन इस चेनल को उक्त दो मामलों में थूक कर चाटना ही पड़ा . फिरोजाबाद पुलिस के एतराज के बाद चैनल ने न केवल झूठा बल्कि माहौल बिगाडता अपना ट्वीट हटा लिया और अरुणाचल के मामले में तो बाकायदा ब-जरिए खबर खेद भी उसे व्यक्त करना पड़ा. अपनी माफ़ीनुमा खबर में इस चेनल ने कहा – मानवीय भूल से zee news पर अरुणाचल प्रदेश में तबलीगी जमात के 11 लोगों के संक्रमित होने की खबर दिखाई

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इस गलती का हमें खेद है

इन दोनों गलत खबरों में एक खास बात यह है कि ये दोनों ही तबलीगी जमात से ताल्लुक रखती हुईं थीं यानि उस एक वर्ग विशेष से जो मुसलमान कहलाता है. साफ दिख रहा है कि मंशा पत्रकारिता की कतई नहीं बल्कि अपनी पहुँच का फायदा उठाते उन्हें बदनाम करने की ज्यादा थी.  इससे कितनी नफरत फैली होगी इसकी गणना करने बाला कोई नहीं. हैरत तो इस बात की भी है कि गलत खबरें बुरी नियत और मंशा से दिखाए जाने के बाबजूद भी जी न्यूज़ के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की गई. (शुक्र इस बात का कि दोबारा कोई इनाम इस चेनल को देने का ऐलान नहीं किया गया)

चारों तरफ थूक ही थूक –

कोरोना के कहर और लाक डाउन की त्रासदी के दौर से गुजरते देश को क्या ऐसी झूठी खबरों की जरूरत है इस सवाल का जबाब तो आप खुद तय करें और दें लेकिन एक नजर और फेक न्यूज़ की फेकटरी पर डाल लें जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि इस तरह की खबरें कौन फैलाता है और एक वर्ग विशेष के कुछ लोग क्यों इन्हें चाव और दिलचस्पी से देखते हैं. बाबजूद यह जानने और समझने के कि यह सब सुनियोजित होता है और इस सर्किट के तार कहीं न कहीं हिन्दू राष्ट्र के निर्माण अभियान से जुड़े हैं.

जी न्यूज़ घोषित तौर पर हिन्दूवादी चेनल है इसके मालिक को भाजपा राज्यसभा में ले चुकी है. उक्त दो मामलों में तो उसे इसलिए थूक कर चाटना पड़ा क्योंकि इस बार एतराज जताने बाले 2 सरकारी विभाग थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केवल जी न्यूज़ ही नहीं बल्कि इस तरह की फेक न्यूज़ के उत्पादन और प्रचार , प्रसार और प्रवाह में पूरी गेंग सक्रिय है. इसके पहले एक प्रमुख समाचार एजेंसी एएनआई और एक प्रमुख हिन्दी दैनिक अमर उजाला भी फेक न्यूज़ फैलाते हुये पकड़े गए हैं.

इन दिनों थूकने को लेकर लोगों को सचेत किया जा रहा है जिससे कोरोना वायरस न फैले  लेकिन कुछ मीडिया घरानों को झूठी खबरें थूकने की छूट मिली हुई है जिससे नफरत का वायरस और तेजी से फैले.

7 अप्रेल को एएनआई उत्तरप्रदेश ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया– नोएडा के हरौला के सेक्टर 5 में जो तबलीगी जमात के सदस्यों के संपर्क में आए थे उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया गया है. इस खबर में नोएडा के डीसीपी संकल्प शर्मा का हवाला देकर इसे सच ठहराने की कोशिश की गई थी.

जैसे ही ट्वीट की बात नोएडा पुलिस की जानकारी में आई तो उसने इसे फर्जी करार दे दिया.  डीसीपी नोएडा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हेंडल से एएनआई को टेग करते लिखा- ऐसे लोग जो कोरोना पाजिटिव के संपर्क में आए थे उन्हें निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार क्वारेंटाइन किया गया. इसमें तबलीगी जमात का कोई जिक्र नहीं था. आप गलत हवाला देते हुये खबरें फैला रहे हैं.

इस फटकार के बाद उक्त एजेंसी ने भी थूक कर चाट लिया यानि अपना ट्वीट डिलीट कर दिया.

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हद है –

ऐसी पोस्टों की तादाद सैकड़ों में है जो वायरल होने के बाद फर्जी साबित हुईं इनमें से ज़्यादातर तबगीली जमात से जुड़ी हुई थीं. आइये एकाध दो पर नजर डाल लें–

`सहारनपुर में क्वारइंटाइन वार्ड में भर्ती जमातियों ने मांसाहारी खाना न मिलने पर खाना फेक दिया और खुले में ही शौच किया `यह खबर प्रमुखता से कई न्यूज़ चेनल पर दिखाई गई थी और समाचार पत्रों में भी छपी थी. सोशल मीडिया तो इससे भरा पड़ा था और देखने बाले जमातियों के साथ साथ आम मुसलमानो को भी कोस रहे थे.

इस फेक न्यूज़ का खंडन भी सहारनपुर पुलिस ने किया.

एक और फेक न्यूज़ अभी तक सोशल मीडिया पर अभी भी वायरल हो रही है जिसके वीडियो में  एक शख्स तोड़ फोड़ करता दिखाई दे रहा है. विश्वास सनातनी हिन्दू जय भारत नाम से बनाए गए ट्विटर एकाउंट से एक यूजर ने कमेन्ट किया- तबलीगी जमात का मुल्ला देखो नग्न होकर क्या कर रहा है.

यह पोस्ट भी खूब वायरल हुई एक अखबार दैनिक भास्कर ने अपनी पड़ताल में इसे फर्जी साबित करते बताया कि उक्त वायरल हो रहा वीडियो पाकिस्तान का है. दैनिक भास्कर ने विस्तार से ऐसी कई और फेक न्यूज़ का भांडा फोड़ किया है इसलिए वह भक्तों के निशाने पर इस आरोप के साथ अक्सर रहता है कि यह हिन्दू विरोधी और मुसलमान हिमायती अखबार है.

समझें फेक की मानसिकता को –

लाक डाउन के चलते घरों में कैद करोड़ों हिंदुओं को ऐसी फेक न्यूज़ देख और सुन जो सुख मिल रहा है उसका आधार वह नफरत और कट्टरवादी मानसिकता है जो उन्हें विरासत में मिली है और वे इसके इतने आदी हो गए हैं कि जब यह पूर्वाग्रह खंडित होता है तो वे घबरा उठते हैं. ये सभी खासे पढ़े लिखे हैं लेकिन घर में बड़ों और समाज में पंडे पुजारियों से सीखा दलित, ईसाई, आदिवासी, मुस्लिम विरोधी पाठ जब झूठ और बेमानी इन्हें लगता है तो इसका सच स्वीकारने के बजाय वे पुश्तैनी झूठ पर ही टिके रहने में ज्यादा सहज महसूस करते हैं.

भगवा गेंग इसी मानसिकता और कमजोरी को भुनाने फेक न्यूज़ का उत्पादन करती है जिसे इन लोगों को अपने नशे की खुराक मिलती रहे. दिक्कत तो यह है कि इन  4-6 करोड़ लोगों ने मान लिया है कि अगर फेक न्यूज़ देश को हिन्दूराष्ट्र बनाने में सहायक हैं तो हम उन्हें बतौर सच ही देखेंगे. ये लोग सिर्फ यही चाहते हैं कि जो वे सोचते और चाहते हैं वह अगर झूठ की शक्ल में भी होगा तो चलेगा ठीक वैसे ही जैसे ईश्वर का अस्तित्व प्रमाणित नहीं है लेकिन वह है कहीं और हो न हो हमारे मन में तो है.

भगवा गैंग की दुकान इन्हीं लोगों से चल रही है जो मीडिया के रूप में हो तो भी अपना आर्थिक फायदा ही देखती है फिर उसके झूठ से देश को क्या और कैसे नुकसान होते हैं इससे उसे कोई सरोकार नहीं.

फेक न्यूज़ की पौराणिक मानसिकता

हिन्दू यानि सनातन धर्म में फेक न्यूज़ कोई हैरानी की बात नहीं है बल्कि उसका तो आधार यही है और तमाम धर्म ग्रंथ ऐसी ही फेक न्यूज़ से भरे पड़े हैं. हनुमान ने खेल खेल में  बचपन में ही सूर्य को मुंह में रख लिया था यह प्रसंग भी किसी फेक न्यूज़ से कम नहीं इनही हनुमान जी ने पूरा पर्वत हथेली पर उठा लिया था और कभी समुद्र पार करते समय सुरसा नाम की राक्षसी को छकाने वे मच्छर के बराबर हो गए थे ये सभी फेक न्यूज़ के पौराणिक उदाहरण हैं .

कुरुक्षेत्र के मैदान में कृष्ण द्वारा अर्जुन को जो विराट स्वरूप दिखाया था वह द्वापर की फेक न्यूज़ का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. इनही कृष्ण ने बचपन में गोवर्धन पर्वत उंगली पर उठा लिया था.  ऐसी फेक न्यूजों के रस्वादन से जिन भक्तों की सुबह की शुरुआत होती हो उनके लिए मौजूदा फेक न्यूज़ हैरानी या चिंता का विषय होंगी यह सोचना ही बेमानी है क्योंकि फेक न्यूज़ तो उनके जीवन का सहज हिस्सा हैं जिसका फायदा आज भी धर्म के कारोबारी मीडिया बाले बनकर उठा रहे हैं.

Coronavirus: हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई इस एक्टर की फैमिली, फैंस को किया अलर्ट

बॉलीवुड और टीवी स्टार पूरब कोहली ने कुछ दिनों पहले अपने सोशल मीडिय पर इस बात की जानकारी दी थी कि उनके पूरे परिवार को कोरोना हो गया है. इस बात से उनके फैंस और करीबी दोस्त परेशान हो गए थे. अब पूरब कोहली के फैंस के लिए खुशी की खबर है कि उनके हालात ठीक है. उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है.

पूरब का पूरा परिवार इस बीमारी के खतरनाक चूंगल से निकल गया है. उन्हें अब कोई खतरा नहीं है. अब एक्टर अपने पूरे परिवार के साथ राहत की सांस ले सकेंगे.

 

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I’m coming with you. #OsianNur climbing already, and he is not even walking yet!

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एक्टर ने सोशल मीडिया पर अपने सभी फैंस और परिवार वालों को शुक्रिया लिखते हुए कहा है कि आप सभी का दिल से धन्यवाद अपने हमें इतनी सारी दुआएं और शुभकामनाएं दी.

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मुझे यह प्यार पाकर साहस मिला है. अब मैं और मेरा पूरा परिवार सही से हैं. उनहोंने बताया कि इस बीमारी में सबसे पहले बताए गए नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है. तभी आप खुद को सुरक्षित रख सकते हैं.

इन दिनों पूरब कोहली लंदन में है. वह अपनी गर्लफ्रेंड लूसी से साल 2018 में शादी के बंधन में बंध गए थे. बता दें कि पूरब शादी से पहले एक बेटी के पिता बन गए थे. साल 2015 में उनकी गर्लफ्रेंड ने एक बेटी को जन्म दिया था. जिसके बाद दोनों ने शादी करने का फैसला लिया था.

पूरब टीवी सीरियल के अलावा बॉलीवुड के कई फिल्मों में भी काम कर चुके हैं. इन दिनों अपने फैमली के साख कोरोनटाइन हैं.

लॉकडाउन टिट बिट्स – 5

56 हुआ 26 

2014 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धौंस वह भी खुलेआम देने की जुर्रत की. इससे मोदी भक्तों में तो मायूसी है ही लेकिन पूरा देश उनके दुख में शामिल है और होना भी चाहिए क्योंकि यह तो 130 करोड़ देशवासियों का अपमान है. क्या ऐसे हम विश्व गुरु बनेगे. पोल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भी खुली है कि वे पैसों और अपने स्वार्थ के अलावा किसी के सगे नहीं. जबकि हमारे लिए पैसा हाथ का मेल है जिसे हमने ट्रम्प के स्वागत में पानी की तरह बहाया था.
धमकी देकर ट्रम्प ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नाम की क्षुद्र दवा तो देने मोदी जी को मजबूर कर दिया और हामी भरने के बाद धन्यवाद देकर जले पर नमक भी छिड़क दिया. इस पर जाने क्यों मोदी और उनके भक्त रहस्यमय चुप्पी साधे हुये हैं. मोदी के 56 इंच के सीने बाले डायलोग से तो लगा ऐसा ही था कि वे कभी किसी के आगे नहीं झुकेंगे और पूरी दुनिया उनकी बुद्धि और दुःसाहस का लोहा मानती रहेगी.
लेकिन अब लग रहा है कि अमेरिका की नजर में हम दीनहीन हैं ठीक वैसे ही जैसे सवर्णों के सामने शूद्र होते हैं जो सीधे काम न करें तो उनसे हड़काकर काम लिया जाता है और फिर मानव मात्र समान हैं का जुमला छोडकर उन्हें बराबरी से बैठालकर अगली गुलामी के लिए तैयार कर लिया जाता है. बहरहाल जो हुआ वह ठीक नहीं हुआ इसलिए हम तो ट्रम्प को राष्ट्रपति पद का चुनाव हारने की बददुआ ही दे सकते हैं जो हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से तो सस्ती ही है.

आईएनएस बनाम सोनिया –

इंडियन न्यूज़ पेपर सोसाइटी के बारे में आम तो क्या खास लोग भी कुछ खास नहीं जानते हैं कि यह अखबार मालिकों का सबसे बड़ा संगठन है जो अखबारों के हित के लिए कुछ और करे न करे सालाना मीटिंग कर चुनाव जरूर करता है. इधर सोनिया गांधी ने जैसे ही बिना मांगे सुझावों में सरकार को यह मशवरा दिया कि खर्चे कम करने मीडिया को दो साल तक सरकारी विज्ञापन न दिये जाएँ तो आईएनएस को बात बुरी लग गई जो सच भी है कि आप किसी के भरे ही सही पेट पर लात घूंसे मारने की बात कहेंगी तो वह चुप तो बैठने से रहा.

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एक बयान आईएनएस की तरफ से सोनिया गांधी की सलाह की निंदा करता जारी हुआ कि मीडिया पर विज्ञापनो पर आने बाला खर्च सरकार के लिए छोटी रकम हो सकती है लेकिन न्यूज़ पेपर इंडस्ट्री के लिए यह बहुत बड़ी है. आज यह इंडस्ट्री बजूद के लिए संघर्ष कर रही है. बात कुछ कुछ सही है क्योंकि लाक डाउन के चलते मोटे अखबार दुबले हो गए हैं और दुबलों ने साँसे त्याग दी हैं यानि मार उन प्रकाशकों पर ज्यादा पड़ी है जो गरीब गुरबे हैं और आईएनएस उन्हें अपना मेम्बर तक नहीं बनाती . इन लोगों के लिए कोई कुछ नहीं सोच रहा जो दिन रात एक कर जैसे तैसे अखबार निकाल रहे थे और दरअसल में पत्रकारिता इनही से मूल रूप में जिंदा है. बाकी तो सब मोदी सरकार भक्त हैं इसीलिए सोनिया गांधी ने इन्हें निशाने पर लिया.

बेहतर होगा कि बड़े अखबारों के सरकारी विज्ञापन बंद किए जाएं क्योंकि उनके पास बेशुमार प्राइवेट विज्ञापनों के अलावा आमदनी के और भी सोर्स होते हैं जबकि छोटे अखबार बालों के पास जीविका चलाने कोई दूसरा रास्ता नहीं होता. इन्हें सरकारी विज्ञापन भी हक की तरह नहीं बल्कि एहसान ,खैरात और झूठन की तरह मिलते हैं. बहरहाल सोनिया गांधी ने जानबूझकर बड़े अखबारों से पंगा तो ले ही लिया है क्योंकि वे अखबार कम सरकार के भोंपू ज्यादा बने हुये हैं. इसलिए कोई उनकी मंशा नहीं समझेगा कि ये अखबार चल नहीं रहे बल्कि सरकार इन्हें चला रही है वजह इनका भक्ति भाव और सरकार में आस्था व श्रद्धा है.

कपिल बनाम शोएब –
कोरोना के चलते क्रिकेट का कारोबार भी बंद है. इसके बाद भी पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब अख्तर ने यह पेशकश कर डाली कि अगर भारत और पाकिस्तान तीन वन डे मेचो की सीरीज खेलें तो खासा फंड दोनों देशो के कोरोना पीड़ितों के लिए जुटाया जा सकता है.
इस पर दिग्गज भारतीय क्रिकेटर कपिल देव लगभग भड़क गए कि भारत को पैसों की जरूरत नहीं और मेच खेलकर खिलाड़ियों की जान जोखिम में डालना ठीक यानि तुक की बात नहीं. कपिल ने शोएब को जता दिया कि हम रईस हैं और तुम गरीब हो और खेलकर हम तुम्हारी गरीबी दूर क्यों करें. बात में दम होता अगर कपिल पैसों का गुरूर न दिखाते जो गैर जरूरी था बात सिर्फ खिलाड़ियों की जान के खतरे की होती तो उसमें वजन आ जाता.
सच देखने कपिल देव पूरे देश नहीं बल्कि हरियाणा के मजदूरों की बदहाली पर ही एक नजर डाल लेते तो उन्हें ज्ञान प्राप्त हो जाता कि हमारे देश में भी सब कुछ ठीकठाक नहीं है लाखों गरीब मजदूर लाक डाउन के चलते भूख से हलकान हैं और उन्हें तुरंत जिस चीज की जरूरत है वह रोटी है फिर अमीरी का झूठा दंभ भरने से क्या फायदा.
फिर पिटा दलित –

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हुआ यूं कि भाजपा सांसद सुब्रत पाठक ने उत्तरप्रदेश के कन्नोज में एक दलित तहसीलदार अरविंद कुमार को ठोक पीट दिया . पिटाई के इस कार्यक्रम का भव्य आयोजन स्थल अरविंद कुमार का घर ही था जहां जाकर इसे समारोहपूर्वक सम्पन्न किया गया जिसमें सुब्रत पाठक के साथ कोई 25 सवर्ण और थे और इनमें भी उनकी तरह ब्राह्मणो की तादाद ज्यादा थी.
बात अब तूल पकड़ रही है क्योंकि बहुत दिनों बाद बसपा प्रमुख मायावती को यह बात अखर रही है कि यूपी दलितों का पिटना हर कभी की बात हो चली है. दूसरी तरफ सपा नरेश अखिलेश भी हमलावर हैं क्योंकि कन्नोज सपा का गढ़ है. बुआ भतीजा दोनों मिलकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पर कुछ करने का दबाब बना रहे हैं कि कुछ करो नहीं तो …..
योगी जी पहले से ही काफी परेशान चल रहे हैं और भाजपा आलाकमान यानि नरेंद्र मोदी भी इस कांड से नाराज बताए जा रहे हैं. लिहाजा दिखाबे के लिए ही सही कुछ न कुछ काररवाई तो होगी उधर अरविंद कुमार की पत्नी अलका रावत किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त कह रहीं हैं कि उनके पति का तबादला किसी और शहर में कर दिया जाये.
अब कौन इस दहशतजदा दलित दंपत्ति को समझाए कि कहाँ तक भागोगे हर जगह सुब्रत पाठक हैं और यह दलित होने की सजा है, इसे तो भुगतना ही पड़ेगा क्योंकि धर्म ग्रन्थों में इसका विस्तार से वर्णन और निर्देश भी है. होना तो यह चाहिए था कि जब पाठक जी मय अपनी भगवा गेंग के साथ दलित की कुटिया में पधारे थे तब पति पत्नी दोनों को पाँ लागू महाराज कहकर उनका स्वागत करना चाहिए था तो शायद ब्राह्मण के क्रोध प्रकोप से बच जाते.

#coronavirus: ‘एकता’ ही कोरोना को हराने का एकमात्र विकल्प – डब्ल्यूएचओ

इंट्रो- यह सच है कि एकता से बड़ी बड़ी मुश्किलें हल की जा सकती हैं किंतु बंटे हुए समाज में एकता लाने के प्रयास राजनेताओं द्वारा किये नहीं जा रहे बल्कि लोगों को और बांटने का प्रयास किया गया.

पूरे विश्व में फैले कोरोना महामारी को ले कर ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ)’ के महानिदेशक टेड्रोस एडहैनम घेब्रिएसुस ने सभी देशों को कड़ा संदेश देते हुए कहा “कोरोना को हराने का एकमात्र विकल्प ‘एकता’ है.” साथ ही उन्होंने सभी देशों के राजनेताओं की तरफ इशारा करते हुए कहा “अगर आप कोरोना से जीतना चाहते है और अपने देश के लोगों को बचाना चाहते हैं तो राजनीतिकरण को क्वारंटाईन में रखें. यह समय ब्लेम गेम खेलने का नहीं है.” अपनी बात को आगे बढाते हुए उन्होंने सभी को चेताया “बिना एकता के जो सब से प्रभुत्वशाली देश है, जहां बेहतर व्यवथा है वो भी इस की चपेट से बच नहीं पाएगा. कोरोना को ले कर राजनीति करना आग में खेलने जैसा है.”

जाहिर है यह बयान अमेरिका की डब्ल्यूएचओ को दिए धमकी के प्रतिउत्तर के तौर पर समझा जा रहा है. जिस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वाइट हाउस ब्रीफिंग में डब्लूएचओ को खुलेआम फण्ड कट करने की धमकी दे डाली. यहां तक कि डब्लूएचओ पर चीन का पक्षपाती होने का आरोप लगाया गया. यह धमकी कोई मामूली बात नहीं थी. इस धमकी ने अंतराष्ट्रीय संगठन डब्ल्यूएचओ की साख को वेश्विक स्तर पर हानि पहुंचाई. स्वास्थ्य को ले कर इस वक्त पुरे विश्व का नेतृत्व डब्ल्यूएचओ कर रहा है जिस के दिशानिर्देशो का अनुपालन हर देश की सरकारें कर रही है.

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डब्ल्यूएचओ द्वारा या बयान ऐसे समय दिया गया जब आरोप प्रत्यारोप तीखे और तीव्र हो रहे हैं, धमकियाँ खुले आम दी जा रही है, नफरत और द्वेष को बढाया जा रहा है. इसलिए यह जरुरी बयान दो तरफ़ा दिया गया. एक राष्ट्र के आन्तरिक एकता के तौर पर दूसरा अन्तराष्ट्रीय एकता के तौर पर. किन्तु क्या यह सिर्फ कह देने भर जितना आसान है?

आज प्रभुत्वशाली देश कमजोर देशों पर अपनी मनमानी चलाने से कतरा नहीं रहे हैं. उदाहरण अभी हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत द्वारा मलेरिया की दवा नहीं उपलब्ध करवाने पर भारत के खिलाफ प्रतीकात्मक कार्रवाई करने की खुलेआम धमकी दे डाली. इस में कोई शक नहीं कि भारत को कोरोना पीड़ित देशों की यथासंभव मदद करनी चाहिए किंतु जिस तरह से यह धमकी दी गई उस ने भारत की सम्प्रभुता पर हमला किया.

याद कीजिये यह वही राष्ट्रपति है जो इसी साल फरवरी में अपनी चुनावी यात्रा पर भारत आए थे. जिन के मात्र 3 घंटे के गुजरात दौरे के लिए मोदीजी ने सरकारी खाते से 85 करोड़ रुपए खर्च कर दिए. उन के लिए मोदीजी ने गुजरात के गरीब लोगों का मजाक उड़ा कर उन की बस्तियों को दीवार चुनवा कर पीछे छुपा दिया. नमस्ते ट्रम्प नाम से भव्य कार्यक्रम रखा गया जहां लाख के आसपास लोगों की भीड़ जुटा उन का स्वागत किया गया. ऐसे में ट्रम्प की इस धमकी ने और सरकार के बिना प्रतिउत्तर धमकी के अनुपालन ने मोदीजी की झूटी बनाई शान की हवा निकाली. किंतु यह सिर्फ शान का मसला नहीं, यह धमकी साम्राज्यवादी मानसिकता के साथ दिया गया जिस में कमजोर देशों को अपनी बपौती समझ बड़े देश अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते रहते हैं.   .

वहीँ अमेरिका-चीन के बीच कोरोना को ले कर चलती आ रही जुबानी जंग पूरी दुनिया के सामने है. एक दूसरे पर नुख्ताचीनी कर वह अंतराष्ट्रीय सामंजस्य के माहौल को खराब करने में ही लगे हैं. इस तरह के माहौल से विश्व की अंतराष्ट्रीय राजनीति पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहा है. खासकर राष्ट्रपति के ओहदे पर बैठे डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नस्लीय टिप्पणी ने पूरे विश्व का माहौल खराब किया. जाहिर है जब डोनाल्ड ट्रंप कोरोना को चीनी वायरस कहते हैं तो जाने अनजाने वह इस बात को सोच नहीं पा रहे कि इस का सीधा असर भारत में रह रहे उत्तरपूर्वी राज्यों के लोगों को भी भुगतना पड़ सकता है. और यह हुआ भी कि हमारे देश का एक नागरिक (पुरुष) द्वारा देश के दूसरे नागरिक (महिला) को कोरोना वायरस कहने और थूकने की खबर आने लगी. जाहिर है यह नस्लीय और पुरुषवादी विचार कहीं से बह कर तो आए ही होंगे. जिस के लिए हमारी सरकार तो जिम्मेदार है ही साथ ही अन्तराष्ट्रीय राजनीति भी जिम्मेदार है.

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जहां विश्व स्तर पर आपसी सहयोग से चीजों को हल करने की जरुरत थी वहां धमकियां दे कर या उटपटांग बात कर स्थिति को और भी गंभीर बनाया जा रहा है. अन्तराष्ट्रीय स्तर पर डोनाल्ड ट्रंप की मुर्खता के कारण विश्व का तानाबाना टूट रहा है. वहीँ भारत की आतंरिक स्थिति भी चिंताजनक है. भाजपा प्रायोजित साम्प्रदायिकता का विष जनमानस को योजनाबद्ध तरीके से पिलाया जा रहा है. कोरोना वायरस को मुसलामान समुदाय से जोड़ा जा रहा है. झूटी अफवाहें जानबूझ कर फैलाई जा रही हैं. इस समय जहां देश को एकजुट करने की कोशिश की जानी चाहिए वहां लोगों को हिंदू मुसलमान में बांटा जा रहा है और सरफिरे लोगों की फौज तैयार की जा रही है ताकि इन्ही सरफिरों के नाम पर राजनीति की जा सके.

डब्ल्यूएचओ द्वारा ऐसे समय दिया यह बयान जरुरी तो है किंतु विश्व में ‘एकता’ शब्द बिखरे हुए समाज में बैमानी सा है. आज भी समाज इतना सुदृढ़ नहीं हो पाया है कि इस शब्द को प्रासंगिक बना सके. हांलाकि इस शब्द को महसूस कर के खुश तो हुआ जा सकता है किंतु हकीकत यह है कि जिस बुनियाद में इसे गढ़ने की कोशिश की जा रही है वो बुनियाद कई अंतर्विरोधों से भरी हुई है. वो कहते है न “बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, यहां हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा.” यानी जात, धर्म, नस्ल, वर्ग हर चीज काफी है हम और वे में बांटने के लिए.

डब्ल्यूएचओ ने कह तो दिया कि पूरे विश्व को कोरोना से लड़ने के लिए एकता दिखाने की जरुरत है चाहे वह राष्ट्र के भीतर हो या बाहर किन्तु यह वह भलीभांति जानती है कि न तो देशों के भीतर वहां की सरकारें एकता कायम करना चाहती है और न ही अन्तराष्ट्रीय स्तर पर साम्राज्यवादी देश. विश्व के बड़े देश कमजोर देशों पर अपना प्रभुत्व को खोना नहीं चाहते वहीँ कमजोर देश अपने अंधविश्वास, अमीरी-गरीबी, जात-धर्म में खंडित हुआ पड़ा है. हांलाकि डब्ल्यूएचओ की एकता की अपील पूरे विश्व के लिए इस वक्त बेहतर सन्देश है किंतु यह महज़ फौरी न बन जाए. बस अब देखना यह है कि यह अपील कितनी कारगर सिद्ध होती है?

#lockdown: लॉक डाउन में अष्टमी पूजन  पत्नी की हत्या का कारण बना

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने पूरे देश में लागू किया गया  लाक डाउन एक महिला के लिए मौत की वजह बन गया.मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के साईंखेड़ा ब्लाक  में एक छोटा सा गांव बेलखेड़ी है. मूलतः खेती किसानी करने वाले इस गांव मेंगुंटू नौरिया का भरा पूरा रहता है. गांव के एक किसान के खेत में सब्जी भाजी उगाने वाले 50 साल के गुंटू नौरिया के तीन वेटो में से बड़े वेटे ओमप्रकाश की शादी सात साल पहले गाडरवारा में रिंकी नौरिया से हुई थी.  गुंटू की पत्नी रानी गांव के आंगनवाड़ी केंद्र में सहायिका का काम करती है.

3 अप्रैल 2020 को खेत पर  गुंटू अऔर उसकी पत्नी रानी खेत पर काम कर रहे थे कि दोपहर लगभग साढ़े ग्यारह बजे ओमप्रकाश का 5 साल का वेटा आकाशा रोते रोते खेत पर पहुंच गया. गुंटू ने प्यार से अपने पोते आकाश के सिर पर हाथ फेरते हुआ पूछा – “क्या हुआ वेटा रो क्यों रहे हो?”आकाश ने आंसू पोछते हुए कहा-“दादाजी पापा और मम्मी  घर पर लड़ रहे हैं और पापा ने मम्मी को मारा है”.दादा और दादी ने जब पोते के मुंह से बहू वेटे की लड़ाई-झगड़े की बात सुनी तो तुरंत ही काम धाम छोड़ कर अपने घर पहुंच गए.
घर पहुंच कर दादा और दादी ने जो मंजर देखा तो उनके होश उड़ गए. उनकी बहू रिंकी घर की दहलान पर खून से लथपथ पड़ी थी.  दादा और दादी भी दहाड़ मारकर रोने लगे तो आस पास के लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी.

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घटना की जानकारी गांव के सरपंच और गांव कोटवार के माध्यम से नजदीकी पुलिस चौकी सालीचौका दी गई. जहां से गाडरवारा पुलिस थाना को सूचना देने के बाद टीआई विजय सिंह ठाकुर और एसडीओ पी सीताराम यादव पुलिस बल के साथ बेलखेड़ी गांव पहुंचे. घटना का मौका मुआयना कर लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्ट मार्टम के बाद गाडरवारा सिविल अस्पताल भेजा गया पुलिस ओमप्रकाश की तलाश में जुट गई.

देश व्यापी लौक डाउन के कारण गांव कस्बों की सीमाओं पर बने चैक पोस्ट पर पूछताछ में पता चला कि ओमप्रकाश आया तो था, लेकिन उसे गांव से बाहर जाने से मना कर दिया गया था.पुलिस टीम ने गांव के निर्जन स्थानों पर दबिश दी तो ओमप्रकाश जल्द ही पुलिस के हत्थे लग गया.पूछताछ करने पर उसने पत्नी रिंकी की हत्या की बात कबूल करते हुए जो कहानी पुलिस को बताई वह इस प्रकार है-
बेलखेड़ी गांव के गुंटू नौरिया का 35 साल का बड़ा वेटा शादी के एक साल बाद से ही अपनी पत्नी रिंकी को लेकर गाडरवारा के जगदीश वार्ड में रहने लगा था.मेहनत मजदूरी करने वाले ओमप्रकाश की ग‌हस्थी की गाड़ी ठीक ठाक चल रही थी, परन्तु नरसिंहपुर जिले में 23 मार्च से ही लौक डाउन होने की वजह से काम धंधा न कर पाने के कारण ओमप्रकाश परेशान रहने लगा था. जमा पैसा धीरे धीरे खर्च होने लगा था. इसी दौरान चैत्र मास की नवरात्रि आ गई. गांव कस्बों में साल में दो वार चैत्र और क्वार के महिने में पड़ने वाली नवरात्रि में अष्टमी के दिन गांव के पैतृक घर में स्थापित कुल देवी की पूजन की जाती है. गांव के लोग आज भी यह मानते हैं कि यदि वहां जाकर  पूजन नहीं की तो कोई अनर्थ हो जायेगा. कुछ लोग तो कोरोना की महामारी को भी दैवीय प्रकोप बताने लगे थे.

कोरोना वायरस के डर से शहर के रास्तों पर पुलिस का पहरा था. यैसे में 1 अप्रैल को सुबह मुंह अंधेरे अष्टमी पूजन के लिए ओमप्रकाश पत्नी और बेटा आकाश को लेकर पैतृक गांव बेलखेड़ी पहुंच गया.
गांव के घर में  विधि विधान से कुल देवी की पूजा की .शहर की आवो हवा में रहने वाली रिंकी को दो दिन में गांव में बुरा लगने लगा तो उसने पति से शहर चलने की बात कही. 3 अप्रैल को ओमप्रकाश के माता-पिता घर से थोड़ी दूर खेत पर काम करने चले गए और ओमप्रकाश की पत्नी रिंकी और‌ वेटा आकाश घर पर ही थे . तभी रिंकी ओमप्रकाश से  अपने घर गाडरवारा जाने की कहने लगी .पति ओमप्रकाश लॉक डाउन के दौरान कुछ दिन अपने माता-पिता के यहां रूकना चाहता था, पर पत्नी जिद करने लगी कि शहर अपने घर चलो. इस पर पति-पत्नी में हुई नोक-झोंक से बात इतनी बढ़ गई कि गुस्साए पति ने पास में ही पड़े पलंग के पाये को सिर पर दे मारा. वेटा आकाश डर के मारे खेत की तरफ दौड़ पड़ा.  रिंकी के जमीन पर गिरने के बाद गुस्साए पति ने उस पाए से दो-तीन बार और प्रहार किए, जिससे रिंकी की मौत हो गई.पत्नी की हत्या कर ओमप्रकाश भागने की जुगत में था, परन्तु लौक डाउन के कारण चप्पे चप्पे पर पुलिस की मौजूदगी के कारण वह भागने में सफल न हो सका.

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जोश में आकर होश खो‌ देने वाले ओमप्रकाश को पत्नी रिंकी की हत्या के आरोप में धारा 302 के तहत मामला कायम कर जेल भेज दिया गया है. देवी देवताओं को लेकर समाज में फैले डर और अंधविश्वास ने रिंकी की न केवल जान ले ली ,बल्कि

#lockdown: चोरी छिपे घरों के लिए पलायन कर रहे मजदूर

केंद्र और प्रदेश की सरकार के लाख दावों के बाद भी मजदूर अभी भी अपने घरों तक नहीं पहुंचे हैं. धीरे धीरे जैसे-जैसे पुलिस की कार्यवाही थोड़ी नरम पड़ती जा रही है वैसे वैसे जिलों की अलग-अलग फैक्ट्रियों से निकल कर मजदूर अपने घर का रास्ता पकड़ रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में एक कोल्ड स्टोरेज में काम करने वाले 100 से अधिक मजदूर अपने घर जाने के लिए बेचैन थे जब उनको कोई रास्ता नजर नहीं आया तब यह लोग आपस में चंदा करके एक ट्रक बुक करते हैं इस ट्रक में 100 से अधिक मजदूर एक साथ बैठकर रात में चोरी-छिपे अपने प्रदेश बिहार जाने के लिए अलीगढ़ से निकल पड़ते हैं. अलीगढ़ से लखनऊ के रास्ते तक उनको कहीं पर किसी भी तरीके से रोका नहीं जाता जब यह ट्रक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सुल्तानपुर जाने वाली रोड पर गोसाईगंज थाने के पास पहुंचता है तब टोल प्लाजा पर इस ट्रक को रोक लिया जाता है. टोल प्लाजा पर ट्रक के अंदर मजदूर भरे मिलते हैं.

लाखो रुपये दिया किराया

अलीगढ़ से बिहार के लिए निकले मजदूरों को लखनऊ सुल्तानपुर रोड पर गोसाँईगंज थाने अंतर्गत बने टोल प्लाजा पर पुलिस ने पकड़ा. मजदूरों ने इस ट्रक को भाड़े पर बुक किया था. इसमे से 103 मजदूरों को ट्रक से किया गया बरामद. पुलिस ने सभी मजदूरों को राधा स्वामी सत्संग व्यास में कोरेन्टीन के लिए रख दिया. यह सभी मजदूर अलीगढ़ के एक कोल्ड स्टोर में मजदूरी करते थे. 10 अप्रैल की देर रात अलीगढ़ से बिहार के लिए सभी मजदूर ट्रक द्वारा रवाना हुए थे. आपस मे पैसा एकत्र करके सभो मज़दूरो ने यह ट्रक 1 लाख 63 हजार रुपये भाड़े पर बुक किया था.

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मजदूरों के पलायन की यह पहली घटना नहीं है इसके पहले भी दिल्ली बॉर्डर पर मजदूरों के उत्तर प्रदेश बिहार और उत्तराखंड जाने के मामले सामने आए थे इनमें उत्तर प्रदेश सरकार ने मजदूरों को अपने घर पहुंचाने का इंतजाम भी किया था.इस इंतजाम के बाद भी बहुत सारे मजदूर सरकार की बस सेवा के बजाए ट्रक पैदल साइकल या दूसरे साधनों से अपने घर जा रहे थे कहीं-कहीं प्राइवेट और सरकारी बसों में मजदूरों से किराया लेने की घटनाएं भी सामने आई थी अब लॉक डाउन के अंतिम चरण में पहुंचने पर भी मजदूर अपने घरों तक नहीं पहुंचे इसके कारण वह अब चोरी छुपे अपने खर्चे पर अपने घर जाने का रास्ता तय कर रहे हैं.

बेकारी बन रही बड़ी वजह
मजदूरों के वापस घर जाने के पीछे की वजह फैक्ट्री में काम ना होना है. शुरुआती दिनों में मजदूरों को यह लगा कि कुछ दिन में हालात सुधर जाएंगे और वह वापस काम पर लौट आएंगे पर जैसे-जैसे लॉक डाउन के दिन बढ़ते जा रहे हैं मजदूरों को यह समझ आ रहा है कि लॉक डाउन का समय जल्दी व्यतीत होने वाला नहीं है ऐसे में उनका फैक्ट्री में रुकना ठीक नहीं है क्योंकि उनकी मजदूरी वहां मिलने नहीं है और बेरोजगारी बढ़ती जा रही हो बेरोजगारी और बेकारी के इस भय से मजदूर अपने घरों की तरफ लौटने के लिए मजबूर हैं उनको यह यकीन तो है कि कम से कम गांव में तो समय की रोटी तो मिल जाएगी शहर और फैक्ट्रियों में उनको दो समय की रोटी मिलती भी नजर नहीं आ रही है.

सरकार के लाख दावों के बाद की सभी मजदूरों तक सरकारी सहायता नहीं पहुचा पा रही है. जिसकी वजह से बहुत सारे मजदूर भुखमरी  के कगार पर पहुंच रहे हैं और उनके लिए शहर में रहकर जीवन गुजर-बसर करना आसान नहीं है.वह इन दिनों में अपने घर वापस जाना चाहते हैं रास्ते में कर्फ्यू लगा होने के कारण उनका जाना संभव नहीं है. इस कारण यह लोग चोरी-छिपे घर जाने का प्रयास करते हैं. इस प्रयास में अगर वह सफल भी हो जाते हैं तो संभव है कि अपने साथ सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के कारण कोरोना वायरस का संक्रमण भी ले जा रहे हो.सरकार की जिम्मेदारी है कि कम से कम मजदूरों को सुरक्षित तरीके से उनके घर तक पहुंचाने का इंतजाम करें.

सौगात: भाग 3

अंत में अशोक चक्रधरजी की सारगर्भित, व्यंग्यात्मक कविताओं का रसास्वादन सभी ने किया. तत्पश्चात विपिन चंद्र ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया व सभा की समाप्ति अपनी कविता के साथ की. सभा समाप्ति के बाद स्मिता ने देखा विपिनजी ने प्रणव को बुलाया. स्मिता उत्सुकतावश वहीं पड़े एक बड़े से टेबल के पीछे छिप गई. उस ने सुना, विपिनजी कह रहे थे, ‘‘प्रणव, विश्वनाथजी तुम्हारे काम की बड़ी तारीफ कर रहे थे. क्या तुम मेरी फैक्टरी में मैंनेजिंग डायरैक्टर का पद संभालना चाहोगे? 80 हजार प्रति माह वेतन के साथ मकान और गाड़ी भी दी जाएगी.’’ प्रणव को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने बड़ी मुश्किल से कहा, ‘‘ये…ये आप क्या कह रहे हैं? क्या यह सच है?’’ स्मिता ने देखा, विपिनजी और विश्वनाथजी दोनों मुसकरा कर हामी भरते हुए सिर हिला रहे थे. विपिनजी ने कहा, ‘‘बिलकुल सच कह रहे हैं. विश्वनाथ को जब तक नया मैनेजर नहीं मिल जाता, तुम इन का कार्यभार भी रोज कुछ समय के लिए आ कर संभाल देना. कंप्यूटर पर भी इन का औफिशियल काम कर सकते हो. हां, यदि तुम्हें कोई आपत्ति है तो बता सकते हो.’’

प्रणव बोला, ‘‘आपत्ति क्या सर, बस, यही लग रहा है कि ऐसा काम पहले कभी किया नहीं है तो…’’ अब विश्वनाथजी ने उस से कहा, ‘‘प्रणव, तुम ने हर तरह का काम किया है. यही तुम्हारी काबिलीयत का सुबूत है. आज तुम्हें अच्छा अवसर मिल रहा है. जाओ, खूब मेहनत करो और अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी दो.’’ प्रणव के कानों में अपनी ही कही बातें गूंजने लगीं, जिंदगी अचानक घटी घटनाओं का क्रम है. उस ने भावातिरेक में विपिन व विश्वनाथजी को झुक कर प्रणाम किया. स्मिता ने देखा पास ही एक दरवाजा है, वह बैठेबैठे ही टेबल के पीछे से दरवाजे तक पहुंच गई और एक ही झटके में दरवाजे से निकल पड़ी. इस के बाद लौबी पार कर वह सीधी होटल के बाहर निकल गई. इधर, थोड़ी देर बाद प्रणव स्मिता को ढूंढ़ते हुए रिसैप्शनिस्ट के पास पहुंचा. रिसैप्शनिस्ट ने बताया, ‘‘स्मिता सहाय, वे मैडम तो अभी 5 मिनट पहले होटल से निकल गई हैं. बहुत जल्दी में लग रही थीं. शायद उन की गाड़ी का समय हो गया होगा.’’

प्रणव ने स्मिता को याद किया और मुसकरा दिया. सोचा, स्मिता की कन्नी काटने की आदत अभी गई नहीं है. थोड़ी देर रुकती तो बताता कि उस से दोबारा मिलना हसीन यादें ही नहीं दे गया बल्कि उस की जिंदगी में आर्थिक बदलाव की बहुत बड़ी सौगात ले कर आया. प्रणव ने पदोन्नति की  खबर देने के लिए तुरंत घर पर फोन किया और अपनी पत्नी मोना से बातें करने लगा. मन ही मन सोचने लगा, जीवन के सफर में ऐसे खूबसूरत मोड़ आते रहे तो सफर अब आसान हो जाएगा. होटल से बाहर आ कर स्मिता ने एक अजीब हलकापन महसूस किया. उसे विवेकानंद की कही बातें याद आ गईं. उन के अनुसार, जब किसी दूसरे की भलाई के लिए व्यक्ति कुछ काम करता है तो उस में किसी सिंह की तरह अपार शक्ति का संचार हो जाता है. शायद इसी कारण स्वभावत: चुप रहने वाली स्मिता आज मुखर हो पाई थी. उस ने मन ही मन विपिनजी को धन्यवाद दिया. हालांकि सच्चे प्यार में बदला लेना या देना संभव नहीं है. तब भी कालेज में प्रणव से ली गई छोटीछोटी मदद के बदले आज उस का उपकार कर आंतरिक खुशी हुई. मनमयूर जैसे नाच उठा. शायद प्रणव से दोबारा मुलाकात न हो, इस से कोई फर्क भी नहीं पड़ता. जिंदगीभर के लिए आज की यादें उस के तनहा पलों को गुदगुदाने के लिए काफी थीं. स्मिता आंखों में आंसू और होंठों पर मुसकान लिए चलती रही. आखिरकार स्टेशन की बैंच पर बैठ कर दिनभर की घटनाओं को याद करने लगी. उसे लगा प्रणव से उस का प्रेम किसी भी आशा अपेक्षा से परे था. बिलकुल निस्वार्थ, बंधनहीन.

#lockdown: कोरोना कहर के बीच बनते-बिगड़ते रिश्ते-

सीमा अखबार की हेडलाइन बड़े ध्यान से पढ़ रही थी.”लगता है अब अखबार भी बंद करना पड़ेगा…यह कोरोना तो किसी भी सतह पर चिपक कर घर के अंदर प्रवेश पा सकता है”

तभी लंबी लंबी सांस लेते अभय सामने सोफे पर आकर बैठ गये, ”क्या हुवा…तबीयत तो ठीक है….आपकी सांस इतनी क्यों फूल रही है” सीमा घबराई सी बोलीं

”लगता है…एन्जाइटी लेवल फिर बढ़ गया है…डाॅक्टर को फोन मिलाया था…उठा ही नहीं रहे”

”ओह! दवाइया ंतो हैं न पूरी” सीमा चिंतित सी बोली.

पिछले कुछ महीनों से अभय एन्जाइटी की समस्या से जूझ रहे थे और कोरोना के कहर ने उनकी इस समस्या को और भी बढ़ा दिया था, क्योंकि एक तरफ उन्हें बंगलुरू में रह रहे बेटे बहु व न्यूयाॅर्क में रह रहे बेटी दामाद की चिंता सता रही थी तो दूसरी तरफ अजमेर में रह रहे बुजुर्ग माता पिता की.

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59 वर्षीय अभय कुछ महीनों में रिटायर होने वाले थे. उनकी तबीयत को देखते हुये उनका बेटा श्रीष व बेटी प्राची उन्हें रिटायरमेंट लेकर अजमेर जाकर दादा दादी के साथ अपने घर पर रहने के लिये कह रहे थे. एन्जाइटी के कारण अभय खुद को कार ड्राइव करने में भी असमर्थ महसूस रहे थे. सीमा कोरोना के कारण सामने आई विकट परिस्थितियों से किसी तरह निपट रही थी. बच्चों, पति, सास ससुर की चिंता के साथ साथ काम वालियों के न आने के कारण, घर के काम काज मैनेज करना, सावधानी बरतना…सब उसीके ज़िम्मे पड़ गया था. जिससे वह कई बार खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी.

”एन्जाइटी की दवाइयां मुश्किल से 4, 5 दिन की और बची हैं…ब्लडप्रेशर की तो आज की ही है…सोच रहा था, डाॅक्टर से एक बार बात हो जाती तो पैदल जाकर ले आता” अभय लगभग हाँपते हुये बोले.

अभय की हालत देखकर सीमा का ह्रदय रोने को हो आया. अभय ठीक होने पर आ गये थे. लेकिन कोरोना के भय व अपनों की चिंता ने उनकी समस्या को फिर से बढ़ा दिया. इस वक्त उनकी हालत बहुत नाजु़क सी हो रही थी.

”आप मत जाओ…मैं जाती हूँ…मैं तो स्कूटी से चली जाऊँगी…पैदल जाने में आपको बहुत टाइम लग जायेगा और थक भी जायेंगे…”

”नहीं, तुम कहाँ जाओगी….घर के काम करने में ही इतनी थक जाती हो….मैं चला जाऊँगा”

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अभय बेहद स्नेहिल मगर शिथिल शब्दों में बोले. उनका घायल स्वर सीमा के दिल में अंदर तक उतर गया. कामवाली के न आने पर कभी उसके झाड़ू हाथ में उठाने या बरतन धोने को लेकर अभय पूरा घर सिर पर उठा लेते थे. जिस दिन काम वाली न आये, खाना बाहर से आ जायेगा या फिर आसपास के घरों से किसी कामवाली को ढंूढ लाते थे. घर गंदा पड़ा है तो पड़ा रहे कोई बात नहीं…लेकिन झाड़ू नहीं लगाना है. सीमा को काम करने के लिये अभय के आॅफिस जाने का इंतजा़र करना पड़ता था. पर उम्र, बीमारी व परिस्थितियां इन्सान को कितना मजबूर कर देती है. लेकिन प्रेम व भावनायें बेबस नहीं होतीं, वे तो शब्दों में, हाव भाव में छलक ही जातीं हैं.

आज भी उनकी आँखों की भाषा से तो बहुत कुछ छलक रहा था लेकिन शब्द उतनी दृढता नहीं दिखा पा रहे थे. क्योंकि वे खुद को पैदल जाने में असमर्थ महसूस कर रहे थे.

”नहीं, आप फिक्र मत करो….ऐसे भी थकी नहीं हूँ मैं…आज खाने में खिचड़ी ही बना देती हूँ….नाश्ते में दलिया खालो…काम कम हो जायेगा….दवाइयां ज्यादा जरूरी हैं, खाने में तो कुछ भी खा लेंगे…” वह जैसे खुद को व पति को तसल्ली देती हुई सी बोली.

बरतन आकर धो लेगी उसने सोचा. प्रेशर कुकर में खिचड़ी भिगाई. नहा धोकर तैयार होकर बाहर निकली. कुछ दिनों से लोवर बैक बहुत दर्द कर रहा था. दिल कर रहा था थोड़ी देर लेट जाय पर अभय की दवाइयां लानी जरूरी थीं. केमस्ट की दुकान की बगल में डिपार्टमेंटल स्टोर है. वहाँ से किचन का कुछ आवश्यक सामान भी ले आयेगी.

बाहर निकलते हुये उसने अभय से कहा कि अजमेर फोन करके माँजी पिताजी का हालचाल पता कर लें…सावधानी बरतने की हिदायत देदें…अजमेर में उनके घर में सर्वेंट क्वार्टर में रमेश का परिवार रह रहा था. उन्हीं को माँजी पिताजी की देखभाल के लिये वे बार बार फोन कर रहे थे.

उसने स्कूटी स्टार्ट की ही थी कि बंगलुरू से बेटे श्रीष का फोन आ गया, ”कैसी हो मम्मी?”

”ठीक हूँ बेटा..” लोवर बैक में पेन के कारण वह टूटी सी आवाज़ में बोली.

”क्या हुवा…आपकी तबीयत तो ठीक है न…?” वह घबरा गया.

”हाँ, हाँ वैसे ठीक है…बस कमर दर्द हो रहा है….पापा की दवाइयां लेेने जा रही थी…” श्रीष चुप हो गया. मम्मी की करूण आवाज़ दिल में उतर गई थी. उसके मम्मी पापा को इस पल उसकी कितनी जरूरत है. लेकिन वह चाहते हुये भी उनकी कोई मदद नहीं कर सकता.

”मम्मी आस पास कोई नहीं है…जो आपकी दवाइयां ला दे”

”ऐसे समय कौन घर से बाहर जायेगा बेटा..”

”पैसे तो हैं न आप लोगों के पास…” उसे मालुम था मम्मी पापा अधिकतर पेमेंट कैश देकर करते हैं. आॅन लाइन सबकुछ सिखाकर भी वे करना नहीं चाहते.

”हाँ, निकाल लिये थे, पहले ही बैंक से…”

”मास्क लगाया है आपने..?”

”हाँ, लगाया है…तू कितनी फिक्र करता है…मुझे देर हो रही है…तू पापा से बात कर ले…तुम दोनों भाई बहन के लिये वे बहुत चितिंत हो रहे हैं…”

”हमारे लिये चिंतित रह कर अपनी तबीयत खराब क्यों कर रहे हो मम्मी…अपनी दोनों की फिक्र करो…बुर्जुगों को ज्यादा खतरा है…दादा दादी के लिये तो और भी ज्यादा…कल ही बात की मैने दादाजी से….बात तो ऐसे कर रहे थे, जैसे कुछ हुवा ही न हो…” वह हँसता हुवा बोला, ”उनके लिये कोरोना के बारे में कुछ कम जानना ही सही है, इससे उनके अंदर भय जोर नहीं पकड़ेगा…बस मैंने रमेश को अच्छी तरह समझा दिया है कि उन्हें घर से बाहर किसी सूरत में न जाने दे और न खुद जाय बिना कारण…”

”अच्छा आप जाओ मम्मी…अपना ध्यान रखना….थोड़ी दूरी रखकर बात करना किसी से भी…बाहर से आकर हाथ अच्छी तरह धो लेना और कपड़े भी बदल लेना…सिर भी ढक कर हेलमेट पहनना…” श्रीष उसे किसी बच्चे की तरह समझाता हुवा बोला.

स्नेह के अतिरेक में सीमा की पलकें भीग गईं. बच्चों को समझाते समझाते कब वे बड़े होकर तुम्हें समझाने लगते हैं….कब उनकी फिक्र करते करते वे तुम्हारी फिक्र करने लगते हैं…पता ही नहीं चलता…कब उम्र का पहिया कुछ साल और आगे सरक जाता है अहसास ही नहीं हो पाता.

58 साल की सीमा यूं तो अभी हर तरह से फिट थी पर उम्र बाहर से न सही अंदर से तो अपना असर दिखाती ही है. बच्चों की चिंता, अभय की तबीयत व सास ससुर की फिक्र में वह अपने लोवर बैक की तकलीफ को लगातार नज़र अंदाज़ कर रही थी. ऊपर से सारा काम करने में वह बुरी तरह से थक रही थी.

21 दिन का लाॅकडाउन पहाड़ की तरह लग रहा था. और फिर बात 21 दिन की ही हो यह भी तो पक्का नहीं है. पता नहीं कितनी लंबी व विकराल होती है यह समस्या. स्कूटी चलाते समय वह अपनी सोचों में गुम थी. सड़क पर न के बराबर लोग थे. उसने केमेस्ट से दवाइयां खरीदी. उसने खुद भी ग्लब्स व मास्क पहने हुये थे व केमेस्ट ने भी. बगल के डिपार्टमेंटल स्टोर से जरूरत का सामान खरीदा और वापस आ गई.

सामान दरवाजे के पास बाहर ही रख दिया और पीछे के बाथरूम के दरवाजे से अंदर घुसकर हाथ धोकर कपड़े बदल लिये. पहने हुये कपड़े डिटर्जेंट में भिगो दिये और अंदर चली गई. अपनी तरफ से पूरी सावधानियां बरती. बुजुर्गों व बच्चों के लिये ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि उनके शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. यह वाक्य उसके मस्तिष्क में हर समय गूंजता रहता था. लेकिन फिर भी पता नहीं कौन से माध्यम से कोरोना घर में प्रवेश पा जाय.

अंदर गई तो अभय सोफे पर अधलेटे हो रखे थे, ”क्या हुवा…तबीयत तो ठीक है?”

”हाँ, श्रीष व प्राची से बात की तो कुछ सहारा महसूस हुवा उनकी आवाज़ सुनकर..” बोलते बोलते उनकी आवाज़ भावुक सी हो गई थी. सीमा का ह्रदय भर गया. अभय की एक आवाज़ से पूरा घर अर्लट हो जाता था. हर किसी की समस्या का समाधान अभय के पास ही होता था. आज वे खुद को कितना असहाय व बेचैन महसूस कर रहे थे कि बच्चों की आवाज़ भी उन्हें सहारा दे रही थी….साथ ही संतोष भी कि वे ठीक हंै.

”अजमेर बात हुई आपकी..?” वह बात बदलती हुई बोली.

”नहीं…पर श्रीष की बात हो गई…कह रहा था कि उनकी फिक्र मत करो….रमेश को अच्छी तरह समझा दिया है…कि गेट पर ताला डाल दे…मार्निंग वाॅक का जुनून है पिताजी को…कहीं सुबह बाहर न चले जांय…हर बात को बहुत लाइटली लेते हैं”

”हाँ, यह तो ठीक किया…श्रीष और प्राची ही हैं उनके गुरू…”

”पता नहीं जयपुर में शीना के पेरेंट्स कैसे होंगे…उनसे भी बात नहीं हो पा रही है…प्राची की ससुराल में तो कल बात कर ली थी…टाइम ही नहीं मिल पाता है मुझे…आपकी तबीयत ठीक नहीं…और मैं काम में उलझ जाती हूँ”

तभी सीमा का मोबाइल बज गया. बहु शीना का फोन था, ”कैसी हैं मम्मी..?”

”ठीक हैं बेटा…तेरे मम्मी पापा कैसे हैं?”

”बहुत परेशान हैं…मम्मी का ज्वाइंट्स पेन बहुत बढ़ गया है…सीजन चेंज में उनको बहुत परेशानी होती है….तनाव के कारण पापा का शुगर लेवल बहुत अप डाउन हो रहा है….समझ नहीं आ रहा क्या करूं…” बोलते बोलते शीना फोन पर रो पड़ी. शीना अपने मम्मी पापा की इकलौती बेटी थी.

”मत रो बेटा…सब ठीक हो जायेगा” सबकी परेशानियां सुनते सुनते सीमा घबराहट महसूस करने लगी थी फिर भी बातों से वह फोन पर शीना को भरोषा देकर चुप कराने लगी.

”तुम अपने मम्मी पापा से रोज बात कर लिया करो बेटा…मानसिक सहारा दिया करो उन्हें”

”मम्मी, उनसे घर के काम भी नहीं हो पा रहे हैं…इतने दिनों से एक टाइम या तो दलिया बनाते हैं या खिचड़ी….और तीनों टाइम खाते हैं…सफाई की तो कौन कहे….उनको न्यूनतम काम जो जिंदा रहने के लिये जरूरी है….वे ही करने मुश्किल हो रहे हैं….पता नहीं कब कोरोना का कहर खत्म होगा” रोते रोते शीना की हिचकियां बंध गईं. तभी फोन पर श्रीष की आवाज़ सुनाई दी. वह शीना को चुप करवा रहा था.

”मम्मी, आप अपना और पापा का खयाल रखना” वह

#lockdown: कोरोना से खतरे के बीच फल और सब्जियों को ऐसे बनाएं सुरक्षित

कई हाथों से होकर गुजरती हुई रसोई तक पहुंची सब्जियां और फलों के कोरोना वायरस   संक्रमति होने से इनकार नहीं किया जा सकता. कल तक इनके कीटनाशकों के विषाणु, विषाक्त धूल-कण, गंदे पानी का बैक्टिीरिया और रसायनों से प्रभावित होने की आशंका थी, लेकिन अब इनके जरिए कोविड-19 के फैलाने का खतरा भी बन गया है. कई शोध से स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना वायरस फल और सब्जियों के माध्यम से हमें संक्रमित कर सकता है. इससे बचाव के कई अनाप-शनाप सुझावों के वीडियो वायरल हो चुके हैं.अधिकतर में सब्जियों और फलों को डिश वाश  से धोने की सलाह दी गई है. जबकि इस तरीके को स्वास्थ्य और कृषि एवं खाद्य वैज्ञानिक गलत बताते हैं. उनका कहना है कि फलों और सब्जियों को डिश सोप या हैंड वाश से धोना बहुत ही बुरा विचार हो सकता है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें खरीदने से पहले अपने हाथ धोकर या सैनिटाइजर इस्तेमाल के बाद छूने के निर्देश दिए गए हैं.

अमेरिका में नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और फूड सेफ्टी विशेषज्ञ बेंजामिन चैपमैन ने विज्ञान की पत्रिका लाइव सांइस को बताया कि सब्जियों और फलों को साबुन से धोने से विषाक्तता का खतरा बढ़ सकता है. खासकर सलाद के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियों, जैसे टमाटर, प्याज, मूली, नींबू गाजर आदि और फलों के खाने से मतली आ सकती है या फिर पेट खराब हो सकता है. साबुन के रसयान हमारे पेट के लिए हानिकारक होते हैं. इसे विषाणु रहित बनाने के लिए ठंडे पानी, क्लोरीन के घोल या नींबू या सिरका मिश्रित पानी से अच्छी तरह धोना ही बेहतर तरीका हो सकता है. यह सब सब्जियों के प्रकार पर भी निर्भर करता है किसे किस तरह से साफ और स्वच्छ बनाया जाए.

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मिशिगन में ग्रैंड रेपिड्स के एक निजी प्रैक्टिस करने वाले डाॅक्टर ने इस बारे में यूट्यूब पर वीडियो पोस्ट किया है. वीडियो में लोगों को किराने की दुकानों पर कम से कम समय बिताने और  कोविड-19 रोकथाम एवं रोग नियंत्रण केंद्र के अनुसार कीटाणुनाशक के तरीके इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है.न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन के अध्ययन के अनुसार कोरोना वायरस  6-7 घंटे तक लकड़ी की सतह या कार्डबोर्ड,  24 घंटे तक प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे तक बना रहता है.इस हालत में सवाल खड़ा हो गया है कि फलों और सब्जियों को हानिकारक वैक्टिीरिया, वायरस या विषाक्त पदार्थों से कैसे बचाया जाए? ताज फलों और सब्जियों की सफाई और स्वच्छता  सिलसिले में बारीकी से ध्यान केंद्रीत करने की जरूरत है.सलाद, डेसर्टस और गार्निश में कच्चे परोसे जाने वाली सब्जियों और फलों से जोखिम बढ़ सकता है. उसे संभालने और किटाणुरहित बनाने के टिप्स इस प्रकार हो सकते हैं.

o   इस्तेमाल में ताजा और गुणवत्ता की सब्जियां व फल की जानी.बाजार से लाई गई सब्जियां कटे-फटे नहीं होने चाहिए.

सामान्यतः उनसे बैक्टिरिया को खत्म करने के लिए क्लोरीन के घोल से साफ करने की सलाह दी गई है, लेकिन इसका इस्तेमाल दिशा-निर्देश के अनुसार किया जाना चाहिए.

o   क्लोरीन आधारित रसायन सोडियम हाइपोक्लोराइट को समान्य तौर पर ब्लीच के रूप मंे जाना जाता है. यह खाद्य पदार्थों के लिए एक स्वीकृत रसायन है और इसे वाशिंग एजेंट के तौर पर काम लया जाता है. इनके सैनिटाइजर वाश बनाने के समय सही माप का होना जरूरी होता है.

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o   क्लोरीन तेजी से गंदगी, कार्बनिक पदार्थ, हवा और प्राकश या धातुओं के संपर्क में आने पर अपनी प्रभावशीलता खो देता है. इसलिए यह सब्जियों की मात्रा के अनुसार क्लोरीन सैनिटाइजर के स्तर की जांच किया जाना जरूरी है.इसके इस्तेमाल से पहले सब्जियों को पानी से धो लेना चाहिए.

o   अमेरिका के यूटा विश्वविद्यालय की विशेषज्ञ टेरेसा हंसकर का कहना है कि सब्जियों को पानी से धोना भर ही पर्याप्त है.इन्हें सिरका या नींबू वाले पानी से धोना ज्यादा अच्छा होता है.

सब्जियों या फलों को 30 मिनट के लिए एक बड़े बर्तन में पानी के साथ किसी एक घोल में भिगो कर रखना चाहिए.उसके बाद अच्छी तरह से साफ पानी से धो लेना चाहिए.

o   चमकीला दिखने वाले वैक्स किए हुए फल और विभिन्न रसायनों व कीटनाशकों से प्रभावित सब्जियों के लिए एक कप पानी, आधा कप सिरका, एक बड़ा चम्मच बेकिंग सोड़ा से बने घोल का छींटा मारकर एक घंटे के लिए छोड़ दें.उसके बाद सामान्य नल के पानी से धो लें.

o   इनमें से किसी एक घोल को तैयार करें, उसका फल और सब्जियों पर छिड़काव करें और 5 से 10 मिनट छोड़ने के बाद साफ पानी से धोएं.

o   शुरूआती तरीके में सब्जियों-फलों को नल के साफ चलते पानी से धोना चाहिए. बाद में उसे क्लोरीन के घोल या सिरके मिश्रित पानी से बर्तन में रखकर धोने के बाद साफ कपड़े से सुखाना चाहिए.

o   जमीन के नीचे उगने वाली आलू, मूली, गाजर, शलजम आदि सब्जियों को 10 सेकेंड तक धोने के बाद साफ कपड़े से पोछना चाहिए. इसके लिए हल्के गुनगुने पानी से धोना ठीक होता है.

o   पत्तेदार सब्जियों में बंदगोभी की ऊपरी परत उतारने के बाद धोना सही होता है, जबकि छिलका उतार कर पकाई जाने वाली लौकी, तोरई को सामान्य पानी से धोया जा सकता है.

o   छिलका सहित खाने वाले फलों और सब्जियों को कम से कम आधा घंटे तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए.ऐसी सब्जियों को  नींबू, सिरके या गर्म पानी से धोना सही होता है.

o   फल और सब्जियों को 5 से 10 मिनट तक सिरका मिले पानी में भिगोना चाहिए और उसके बाद अच्छी तरह से सादे पानी से धो लेना चाहिए.

o   फूलगोभी, पालक, ब्रोकली, बंदगोभी या पत्तियों वाले शाक को दो प्रतिशत साधारण नमक वाले गर्म पानी से धोएं, जबकि गाजर और बैंगन जैसी सब्जियों को इमली वाले पानी के घोल से धोया जा सकता है.

  • धोनेके लिए पानी का तापमान भी मायने रखता है, जो सब्जियों या फलों को तापमान पर निर्भर करता है. सामान्यतः करीब 5 से 10 डिग्री होनी चाहिए.यदि धोने का पानी सब्जियों की तुलना में ठंडा है तो सब्जियों पर पाए जाने वाले बैक्टिीरिया को शोषित कर लेता है.ज्यादा गर्म पानी सब्जियों द्वारा सोख ली जा सकती है.

सौगात: भाग 2

‘‘हैदराबाद आ कर मैं ने राजनीतिशास्त्र में उस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर यानी एमए की डिगरी हासिल की,’’ स्मिता सहज हो कर बोलने लगी, ‘‘इस के बाद डेढ़ साल स्कूल में शिक्षिका रही. बस. फिर शादी हो गई. एक बेटा हो गया. बेटा अब बड़ा हो गया है. उसे पढ़ाने की जिम्मेदारी अब मेरी नहीं है, कोचिंग वालों की है. इसलिए अब खाली समय में थोड़ा लिखने का प्रयास करती हूं. कहानी खत्म.’’ यह कह कर स्मिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर प्रणव से पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे आए, यह तुम ने अब तक नहीं बताया?’’

प्रणव बोला, ‘‘क्या करोगी जान कर? हर कहानी रोचक नहीं होती है न.’’

‘‘इसीलिए तो जानना चाहती हूं. यह कहानी रोचक कैसे नहीं बन पाई? प्लीज, अपनी मित्रता की खातिर ही सही, कालेज के बाद की जिंदगी के बारे में बताओ. हो सकता है, शायद मैं तुम्हारे कुछ काम आ सकूं.’’

‘‘मेरे काम? तुम्हारे पतिदेव को बताऊं, स्मिता ऐसा कह रही है?’’ कह कर प्रणव हंसने लगा. स्मिता झेंप गई, फिर बोली, ‘‘मेरे कहने का मतलब तुम्हारी मदद करना था. तुम्हारी बात पकड़ने की आदत अभी गई नहीं है.’’ प्रणव मुसकरा रहा था. थोड़ी देर बाद उस ने शांतभाव से कहना शुरू किया, ‘‘तुम्हारे जाने के बाद मैं ने भी राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर का कोर्स जौइन किया. प्रथम वर्ष में ही मैं ने आईएएस की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली और मुख्य परीक्षा की तैयारियों में लग गया. जिस दिन मुख्य परीक्षा पास की तो मैं और निश्ंिचत हो गया. सोचा, बस, अब अंतिम सीढ़ी साक्षात्कार रह गई है. साक्षात्कार को अभी कुछ दिन बाकी थे कि मेरे पिताजी अकस्मात हार्टअटैक के कारण चल बसे. मैं ने जोधपुर अपने घर जा कर मां और दीदी को संभाला. जिस दिन साक्षात्कार था, उसी दिन पिताजी का श्राद्ध था. मैं रस्मों और रिश्तेदारों में उलझा हुआ था.’’ यह कहतेकहते प्रणव शांत हो गया. थोड़ी देर बाद यंत्रवत फिर कहने लगा, ‘‘रिश्तेदारों के जाने के बाद मैं ने प्राइवेट ही स्नातकोत्तर डिगरी हासिल करने के लिए फौर्म भर दिया. साथ ही, घर चलाने के लिए छोटेमोटे काम ढूंढ़ने लगा. कभी दुकान का सेल्समैन तो कभी स्कूल का क्लर्क.’’

स्मिता व्यथित हो कर बोली, ‘‘आईएएस की तैयारी बीच में ही छोड़ दी, दोबारा प्रयास कर सकते थे?’’ प्रणव के स्वर में झुंझलाहट सुनाई पड़ी जब वह बोला, ‘‘अरे मैडम, कविताएं और कहानियां वास्तविक नहीं होती हैं,’’ यह कह कर वह चुप हो गया. स्मिता ने कहना चाहा कि कविता और कहानी सभी यथार्थ से ही प्रेरित होती हैं. तभी तो साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है. इस समय स्मिता ने चुप रहना ही बेहतर समझा. थोड़ी देर बाद प्रणव स्वयं ही संयत हो बोला, ‘‘मेरे बाबूजी अपनी ईमानदारी की कमाई से केवल घर का खर्च चलाते और हमें पढ़ाते थे. उन के जाने के बाद सिर्फ पुश्तैनी मकान रह गया था. दीदी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती और मैं अपनी कमाई से घर और बाहर का काम संभालने लगा. जिंदगी मंथर गति से चल रही थी कि पता चला, मां ब्लड कैंसर से ग्रस्त हैं. शायद हम दोनों भाईबहन के भविष्य की चिंता में ही मां ऐसा रोग लगा बैठी थीं. उन्होंने बीमारी को हम से छिपा कर भी रखा था, पड़ोस की आंटी को पता था. 4 महीने में मां भी हमें छोड़ गईं.’’ प्रणव थोड़ा रुका. स्मिता को उस की आंखों में आंसू दिखे. उस ने भी महसूस किया कि मांबाप का साया सिर से उठ जाए तो कैसी बेचारगी होती है. यों ही बच्चे अनाथ नहीं कहलाते. प्रणव फिर संवेदनशून्य हो कर कहने लगा, ‘‘अब मेरी दीदी के ब्याह की जिम्मेदारी मेरी थी. पता चला दूल्हे तो शादी के बाजार में भारी दहेज में बिकते थे. कहीं कोई बात बन नहीं रही थी. ऐसे में एक परिवार में बात चली तो लड़के वाले हमारे पुश्तैनी मकान के बदले दीदी को बहू बनाने को तैयार हो गए. मैं अपने ही घर में अपने जीजा और दीदी के सासससुर का नौकर बन कर रह गया. दीदी कुछ कह नहीं पाती थीं क्योंकि वे अपने पति को छोड़ कर भाई पर दोबारा बोझ बनना नहीं चाहती थीं.

‘‘जब जीवन असहनीय हो गया तो मैं यहां भाग आया. यहां भी छोटेमोटे काम किए, फिर दीप होटल में काम मिला. अब शादीशुदा हूं 2 बच्चे हैं. कह सकती हो कि जिंदगी कट रही है.’’ स्मिता सोचने लगी, जीवन खुल कर जीना और सिर्फ काटने में अंतर होता है. पैदा होते ही हम मौत की तरफ बढ़ते हुए जिंदगी काटते ही तो हैं. प्रणव की आवाज आई तो स्मिता ध्यान से सुनने लगी. प्रणव कह रहा था, ‘‘मेरा अनुभव यह कहता है कि जिंदगी अचानक ही घटी घटनाओं का क्रम है. जैसे आज इतने सालों बाद तुम मिली हो, वह भी कवयित्री बन कर. पता है, कभीकभी ऐसा लगता है यदि जिंदगी को फ्लैशबैक में जा कर दोबारा जीने का अवसर मिलता तो शायद मैं अलग ढंग से जीता.’’ प्रणव ज्यादा बोलने की वजह से हांफ रहा था. स्मिता ने सोचा कि कहीं प्रणव हाई ब्लडप्रैशर का रोगी तो नहीं. इस से पहले कि स्मिता कुछ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती, होटल का एक कर्मचारी आया और प्रणव से बोला, ‘‘सर, बाहर मेहमान लोग आना शुरू हो गए हैं, उन्हें लौबी में बिठाऊं या कन्वैंशन हौल में?’’

प्रणव ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘अरे, समय का पता ही नहीं लगा. तुम उन्हें लौबी में ही बिठाओ. पानी सर्व करवाओ, मैं अभी आता हूं.’’ इतना कह कर प्रणव स्मिता से बोला, ‘‘तुम्हें भी मैं अन्य कवियों के साथ छोड़ देता हूं. मुझे सभागार की व्यवस्था दोबारा चैक करनी है. तुम्हारी कविताएं अवश्य सुनूंगा, पक्का वादा. सम्मेलन के बाद मिलते हैं.’’ प्रणव ने स्मिता को लौबी में छोड़ा और तेजी से सभागार की ओर बढ़ गया. स्मिता अन्य कवियों से नमस्ते, आदाब वगैरह कहने लगी. उन में अशोक चक्रधर की स्मिता बहुत बड़ी प्रशंसक थी. उन से बातचीत कर वह बहुत प्रसन्न हुई. इतने में सभी कविगणों को सभागार में बैठाया गया. इस के बाद विपिन चंद्र, होटल के मालिक, विश्वनाथ के साथ पधारे तो सभी ने उठ कर उन दोनों का अभिवादन किया. विश्वनाथ ने मंच पर जा कर अतिथि कवियों का स्वागत किया और कवि सम्मेलन शुरू करने की घोषणा अपनी एक छोटी सी कविता से की. कवियों में सर्वप्रथम जानेमाने कवि गौरव को बुलाया गया. गौरव मूलत: हास्य कवि हैं जो अपनी छोटीछोटी कविताओं में व्यंग्य के रूप में बड़ीबड़ी बात समझा जाते हैं. उन्होंने आते ही अपनी आत्महत्या की योजना के बारे में व्यंग्यात्मक ढंग की कविता सुनाई. वातावरण पूरा हास्यमय हो गया. इस के बाद दिल्ली के उभरते कवि विनय विनम्र ने नेताओं की देशभक्ति पर एक गीत प्रस्तुत किया तो श्रोताओं ने तालियों से उन का जोरदार समर्थन किया. ऐसे ही कार्यक्रम बढ़ता रहा पर स्मिता का मन कहीं और भटक रहा था. उसे यह खयाल बारबार परेशान कर रहा था कि प्रणव जैसा मेधावी छात्र अपनेआप को समाज में प्रतिष्ठित न कर पाया. मां से बचपन में सुनी कहावत ‘पढ़ोगे, लिखोगे तो बनोगे नवाब…’ उसे झूठी लग रही थी.

इसी बीच जलपान करने के लिए सभी कवियों और श्रोताओं को पास ही के हौल में बुलाया गया. स्मिता ने देखा कि विश्वनाथ और विपिन चंद्र बैठे बातचीत कर रहे थे. स्मिता ने मन ही मन साहस बटोरा और उन दोनों के पास पहुंच गई. उस ने अभिवादन कर विपिनजी से कहा, ‘‘सर, मैं आप से थोड़ी देर बात करना चाहती हूं.’’ विपिनजी स्मिता को जानते थे, बोले, ‘‘हां जी, कहिए, आप को चैक तो मिल गया है न?’’ स्मिता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जी, वह तो मिल गया है. पर आज मैं आप से इस होटल के मैनेजर प्रणव के बारे में बात करना चाहती हूं.’’ इतना कह कर स्मिता ने कालेज के सब से प्रतिभावान छात्र प्रणव की कहानी संक्षेप में कह डाली. उस ने फिर कहा, ‘‘आप जैसे कलापारखी शायद प्रणव की प्रतिभा का उचित मूल्य दे सकेंगे. क्या आप उसे अपने व्यवसाय में किसी प्रकार का कार्य दिला सकते हैं?’’ विपिनजी बोले, ‘‘अरे स्मिताजी, आप के सहपाठी को हम भी अच्छी तरह जानते हैं. दरअसल, अभी विश्वनाथ भी हमें यही बता रहे थे कि आर्थिक तंगियों की वजह से यह होटल बंद होने की कगार पर था कि तभी प्रणव ने जौइन किया. कर्मचारी कम होने की वजह से प्रणव ने हर तरह का काम किया. आज फिर से यह होटल चल पड़ा है. मेरी एक फैक्टरी, जिस में साबुन, शैंपू वगैरह बनते हैं, ऐसे ही हालात से गुजर रही है. ठीक है, देखते हैं, प्रणव वहां भी अपनी जादू की छड़ी घुमा सकता है या नहीं.’’

स्मिता खुश हो कर बोली, ‘‘धन्यवाद, सर, मुझे उम्मीद थी कि आप मेरी विनती का मान जरूर रखेंगे.’’ विपिनजी बोले, ‘‘अरेअरे, इस में धन्यवाद कैसा? भई, हमें भी तो कर्मठ और ईमानदार स्टाफ की जरूरत पड़ती है या नहीं?’’ स्मिता थोड़ा सोच कर बोली, ‘‘एक और बात है सर, प्रणव को यह मालूम नहीं होना चाहिए कि मैं ने आप से उस की सिफारिश की है. इस से उस के आत्मसम्मान को ठेस लग सकती है. मुझे विश्वास है प्रणव स्वयं ही अपनी काबिलीयत साबित कर पाएगा. आप को निराशा नहीं होगी. अच्छा सर, अब मैं चलती हूं. सब लोग जलपान हौल से वापस आ रहे हैं.’’ इतना कह कर स्मिता तेजी से सभागार की अपनी सीट पर जा बैठी. कवि सम्मेलन जलपान के अल्पविराम के बाद फिर से शुरू हुआ. कई जानेमाने गीतकार भी आए. हमारे फिल्म संगीत की एक विचित्र परंपरा यह है कि गीतकार का गीत चाहे जनजन की जबां पर आ जाए पर उस के पीछे गीतकार को कोई जानता ही नहीं है. कोई जानना चाहता भी नहीं है. गीत के गायक या बहुत हुआ तो संगीतकार, जिस ने धुन बनाई है, पर आ कर बात थम जाती है. फिल्म ‘शोर’ का गाना इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है…इसे गुनगुनाते समय कितने लोग भला उस गीत के गीतकार संतोष आनंद को याद करते होंगे. ऐसे में गीतकारों को अपने गीत कह कर, गा कर सुनाते देख अच्छा लगा. इतने में स्मिता का नाम पुकारा गया तो वह भी साड़ी संभालती हुई, हाथ में कविता की डायरी लिए पहुंच गई. सभी को नमस्कार कर उस ने प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज की कुछ लाइनें पढ़ीं. इस के बाद स्मिता ने उड़ान नामक अपनी कविता, जिस में एक पंछी के माध्यम से जीवन की वास्तविकता और उस से समझौता कर कैसे अपनी उड़ान जारी रखी जा सकती है, का सस्वर पाठ किया. इस के बाद उस ने अपनी मधुमेह रोग पर लिखी हास्य कविता का पाठ किया. उस ने मंच से देखा, प्रणव श्रोताओं में पीछे खड़ा था और उस की कविता सुन कर ‘वाहवाह’ कहता हुआ तालियां बजा रहा था.

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