केंद्र और प्रदेश की सरकार के लाख दावों के बाद भी मजदूर अभी भी अपने घरों तक नहीं पहुंचे हैं. धीरे धीरे जैसे-जैसे पुलिस की कार्यवाही थोड़ी नरम पड़ती जा रही है वैसे वैसे जिलों की अलग-अलग फैक्ट्रियों से निकल कर मजदूर अपने घर का रास्ता पकड़ रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में एक कोल्ड स्टोरेज में काम करने वाले 100 से अधिक मजदूर अपने घर जाने के लिए बेचैन थे जब उनको कोई रास्ता नजर नहीं आया तब यह लोग आपस में चंदा करके एक ट्रक बुक करते हैं इस ट्रक में 100 से अधिक मजदूर एक साथ बैठकर रात में चोरी-छिपे अपने प्रदेश बिहार जाने के लिए अलीगढ़ से निकल पड़ते हैं. अलीगढ़ से लखनऊ के रास्ते तक उनको कहीं पर किसी भी तरीके से रोका नहीं जाता जब यह ट्रक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सुल्तानपुर जाने वाली रोड पर गोसाईगंज थाने के पास पहुंचता है तब टोल प्लाजा पर इस ट्रक को रोक लिया जाता है. टोल प्लाजा पर ट्रक के अंदर मजदूर भरे मिलते हैं.

लाखो रुपये दिया किराया

अलीगढ़ से बिहार के लिए निकले मजदूरों को लखनऊ सुल्तानपुर रोड पर गोसाँईगंज थाने अंतर्गत बने टोल प्लाजा पर पुलिस ने पकड़ा. मजदूरों ने इस ट्रक को भाड़े पर बुक किया था. इसमे से 103 मजदूरों को ट्रक से किया गया बरामद. पुलिस ने सभी मजदूरों को राधा स्वामी सत्संग व्यास में कोरेन्टीन के लिए रख दिया. यह सभी मजदूर अलीगढ़ के एक कोल्ड स्टोर में मजदूरी करते थे. 10 अप्रैल की देर रात अलीगढ़ से बिहार के लिए सभी मजदूर ट्रक द्वारा रवाना हुए थे. आपस मे पैसा एकत्र करके सभो मज़दूरो ने यह ट्रक 1 लाख 63 हजार रुपये भाड़े पर बुक किया था.

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मजदूरों के पलायन की यह पहली घटना नहीं है इसके पहले भी दिल्ली बॉर्डर पर मजदूरों के उत्तर प्रदेश बिहार और उत्तराखंड जाने के मामले सामने आए थे इनमें उत्तर प्रदेश सरकार ने मजदूरों को अपने घर पहुंचाने का इंतजाम भी किया था.इस इंतजाम के बाद भी बहुत सारे मजदूर सरकार की बस सेवा के बजाए ट्रक पैदल साइकल या दूसरे साधनों से अपने घर जा रहे थे कहीं-कहीं प्राइवेट और सरकारी बसों में मजदूरों से किराया लेने की घटनाएं भी सामने आई थी अब लॉक डाउन के अंतिम चरण में पहुंचने पर भी मजदूर अपने घरों तक नहीं पहुंचे इसके कारण वह अब चोरी छुपे अपने खर्चे पर अपने घर जाने का रास्ता तय कर रहे हैं.

बेकारी बन रही बड़ी वजह
मजदूरों के वापस घर जाने के पीछे की वजह फैक्ट्री में काम ना होना है. शुरुआती दिनों में मजदूरों को यह लगा कि कुछ दिन में हालात सुधर जाएंगे और वह वापस काम पर लौट आएंगे पर जैसे-जैसे लॉक डाउन के दिन बढ़ते जा रहे हैं मजदूरों को यह समझ आ रहा है कि लॉक डाउन का समय जल्दी व्यतीत होने वाला नहीं है ऐसे में उनका फैक्ट्री में रुकना ठीक नहीं है क्योंकि उनकी मजदूरी वहां मिलने नहीं है और बेरोजगारी बढ़ती जा रही हो बेरोजगारी और बेकारी के इस भय से मजदूर अपने घरों की तरफ लौटने के लिए मजबूर हैं उनको यह यकीन तो है कि कम से कम गांव में तो समय की रोटी तो मिल जाएगी शहर और फैक्ट्रियों में उनको दो समय की रोटी मिलती भी नजर नहीं आ रही है.

सरकार के लाख दावों के बाद की सभी मजदूरों तक सरकारी सहायता नहीं पहुचा पा रही है. जिसकी वजह से बहुत सारे मजदूर भुखमरी  के कगार पर पहुंच रहे हैं और उनके लिए शहर में रहकर जीवन गुजर-बसर करना आसान नहीं है.वह इन दिनों में अपने घर वापस जाना चाहते हैं रास्ते में कर्फ्यू लगा होने के कारण उनका जाना संभव नहीं है. इस कारण यह लोग चोरी-छिपे घर जाने का प्रयास करते हैं. इस प्रयास में अगर वह सफल भी हो जाते हैं तो संभव है कि अपने साथ सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के कारण कोरोना वायरस का संक्रमण भी ले जा रहे हो.सरकार की जिम्मेदारी है कि कम से कम मजदूरों को सुरक्षित तरीके से उनके घर तक पहुंचाने का इंतजाम करें.

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