सीमा अखबार की हेडलाइन बड़े ध्यान से पढ़ रही थी.”लगता है अब अखबार भी बंद करना पड़ेगा...यह कोरोना तो किसी भी सतह पर चिपक कर घर के अंदर प्रवेश पा सकता है”

तभी लंबी लंबी सांस लेते अभय सामने सोफे पर आकर बैठ गये, ”क्या हुवा...तबीयत तो ठीक है....आपकी सांस इतनी क्यों फूल रही है” सीमा घबराई सी बोलीं

”लगता है...एन्जाइटी लेवल फिर बढ़ गया है...डाॅक्टर को फोन मिलाया था...उठा ही नहीं रहे”

”ओह! दवाइया ंतो हैं न पूरी” सीमा चिंतित सी बोली.

पिछले कुछ महीनों से अभय एन्जाइटी की समस्या से जूझ रहे थे और कोरोना के कहर ने उनकी इस समस्या को और भी बढ़ा दिया था, क्योंकि एक तरफ उन्हें बंगलुरू में रह रहे बेटे बहु व न्यूयाॅर्क में रह रहे बेटी दामाद की चिंता सता रही थी तो दूसरी तरफ अजमेर में रह रहे बुजुर्ग माता पिता की.

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59 वर्षीय अभय कुछ महीनों में रिटायर होने वाले थे. उनकी तबीयत को देखते हुये उनका बेटा श्रीष व बेटी प्राची उन्हें रिटायरमेंट लेकर अजमेर जाकर दादा दादी के साथ अपने घर पर रहने के लिये कह रहे थे. एन्जाइटी के कारण अभय खुद को कार ड्राइव करने में भी असमर्थ महसूस रहे थे. सीमा कोरोना के कारण सामने आई विकट परिस्थितियों से किसी तरह निपट रही थी. बच्चों, पति, सास ससुर की चिंता के साथ साथ काम वालियों के न आने के कारण, घर के काम काज मैनेज करना, सावधानी बरतना...सब उसीके ज़िम्मे पड़ गया था. जिससे वह कई बार खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी.

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