मौनसून में हरी सब्जियों को गृहिणियों को त्याग देना चाहिए, मगर आधुनिक महिलाएं रसोई से इतनी अधिक अनभिज्ञ  हैं, कि वे इस मौसम में भी धड़ाधड़ पालक, लालभाजी ,चौलाई इत्यादि  सब्जियां खरीदती रहती हैं. आज मैंने  बाज़ार में एक  पत्रकार की  बाईक चलाने में निपुण धर्म पत्नी को देखा, वे बोलीं कि बालक  कहता है, कि इससे खून बढ़ता है. बस खून बढ़ने और नासमझी में हम हरिदार पत्ती पत्तेदार सब्जियों को सेवंथ करते रहते हैं और अनेक प्रकार की बीमारियों से घिर जाते हैं. आइए आज आपको बताते हैं मौनसून में हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज क्यों करना चाहिए और क्या लाभ है.

मौनसून में पत्तेदार सब्जी की ज्ञान जरूरी

देश के सुप्रसिद्ध पत्रकार शंभू नाथ शुक्ल हरी पत्तेदार सब्जियों पर लिखते हैं आज सुबह मैंने अपने मित्र और उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी श्री सुलखान सिंह की एक पोस्ट देखी थी, कि बरसात में छाछ और हरी पत्तीदार सब्जियों को छोड़ देना चाहिए. खुद किसानों का संचित अनुभव है, कि- ‘सावन सुकसा न भादों दही!’ अर्थात सावन में हरी सब्जियाँ न खाएं और भादों में दही. यह ज्ञान पूर्ण थे उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखी है निसंदेह यही परम सत्य है इसे हमें आत्मसात करना होगा अन्यथा सावन में जो बीमारियां गिरेगी उससे हमारा यह महीना बर्बाद हो जाने की पूरी संभावना है. इसकी वजह यह है कि हरे पत्तेदार सब्जियां इस मौसम में बाजार में बहुत ज्यादा उपलब्ध हो जाती हैं सस्ते दर पर भी मिलने लगती है रामस्वरूप जब हमें नौलेज नहीं होता तो हम इन्हें खुशी खुशी खरीदकर ले आते हैं हम यह नहीं जानते कि यह एक तरह से बीमारी का घर है.

ब्लड बढ़ाने का और भी जरिया

दरअसल हमें घर परिवार में बच्चों को बताना चाहिए कि स्वास्थ्य और खून बढ़ाने के लिए हरी सब्जियों के अलावा और भी बहुत कुछ उपलब्ध है अगर हम थोड़ा सामान्य ज्ञान अपना बढ़ाने तो यह आराम से संभव है, आप अपने  अपने बच्चों से से कहो कि सावन में खून ही बढ़ाना है, तो मिथौरी, अमृतसरी बड़ी, या गट्टे की सब्जियां खायी जा सकती हैं और बनाकर खिलाइए भी. दरअसल ऐसी बहुत सी सब्जियां हैं जिनके नाम भी आज की ग्रहणी नहीं जानती.

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पूर्व महानिदेशक पुलिस सुलखान सिंह लिखते हैं-

“चौमासे में साग, मट्ठा आदि क्यों नहीं खाना चाहिए, इसका औचित्य लोग तरह तरह के कारण देते हैं. एक कारण अकसर बताया जाता है कि बरसात में पत्तों पर कीट-पतिंगे अण्डे देते हैं जो खाने के साथ पेट में चले जायेंगे. मेरे मत में यह सही कारण नहीं है.  अण्डे अगर होंगे तो साग के उबालने,छौंकने से पक जायेंगे और प्रोटीन ही देंगे. तो फिर क्या ये प्राचीन भारतीय कहावतें गलत हैं? तो उत्तर है कि कहावतें पूरी तरह सटीक हैं. तो फिर सही कारण क्या है?  कारण आयुर्वेद बताता है, परन्तु एलोपैथी इसे नहीं समझती.इसीलिये वैज्ञानिक से प्रतीत होने वाले कारण दिये जाते हैं. वर्षा ऋतु में गैस की प्रधानता होती है.पत्ते वाले शाग तथा मट्ठा वात प्रधान हैं अर्थात गैस बढ़ाते हैं. इसलिये इनसे बचना चाहिए. मानव शरीर वात, पित्त और कफ के संतुलन से स्वस्थ रहता है और असन्तुलन होने पर रोगी हो जाता है. हमारी ऋतुयें इन त्रिदोषों को प्रभावित करती हैं. वर्षा ऋतु में वात (Gas), जाड़े में कफ (mucus/ sticky matter) और गर्मी में पित्त (bile/acidic juices) प्रधान होने लगते हैं. अतः इन ऋतुओं में त्रिदोषों का साम्य बनाये रखने के उद्देश्य से आहार व्यवहार ऐसा होना चाहिये जो ऋतु के प्रभाव को जज्ब (adjust/balance) कर सके.

ध्यान रखें ये बातें

  1. जाड़े में घृत, खट्टे फल, सन्तरा, प्रोटीन इत्यादि युक्त भोजन और कठोर परिश्रम/व्यायाम अपेक्षित हैं.
  2. गर्मी में हल्की सब्जियां, अधिक जलयुक्त फल/ तरकारी अर्थात् क्षारीय भोजन और हल्के काम/ व्यायाम तथा सूर्य से बचाव अपेक्षित है.
  3. बरसात में पत्तियों वाले साग (वात प्रधान/गैस करने वाले), प्रोटीन युक्त पदार्थ, दही/मट्ठा आदि गैस बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल न्यूनतम रखें. साथ ही व्यायाम खूब कर सकते हैं. गीले कपड़ों तथा रात्रि में बाहर ओस में सोने से बचा जाये.

आहार-विहार के प्राचीन पथ-प्रदर्शक सिद्धांत यही हैं  अपनी सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार यथासंभव व्यवहृत करना चाहिए. याद रखने योग्य- “हित भुक् ऋत भुक् मित भुक्”.बरसात के मौसम में  खानपान में विशेष सावधानी अनिवार्य है.

यह भी  जनमानस में मान्यता है कि हरी पत्तेदार सब्जियां सेहत के लिए सबसे अधिक लाभकारी मानी जाती है, लेकिन बारिश के मौसम में यही सब्जियां कई तरह के बीमारियों को न्यौता देती है .कहा जाता है कि इस मौसम में पत्तेदार सब्जियां बीमार बना सकती है, खासतौर पर सलाद या कच्ची सब्जियां बारिश में बिलकुल नहीं या कम खानी चाहिए. बरसात के मौसम में बीमारियों का प्रकोप सबसे ज्यादा देखा जाता है . हमे इस मौसम में बीमार होने का सबसे बड़ा कारण है हमारे आहार का तौर तरीका  हमे अपने खाने-पीने का विशेष ध्यान देना होगा. बता दें कि पत्तेदार सब्जियों के सेवन से बारिश के दिनों में पेट संक्रमण होने का खतरा सबसे अधिक होता है.

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 पत्तेदार सब्जियों से परहेज करना क्यों जरूरी है

मौसम में अधिकतर बादल छाये रहते हैं जिससे पौधों को पर्याप्त मात्रा मे धूप नही मिल पाता है. जिसके कारण पत्तों में कीटाणु और बैक्टीरिया पनपने की आशंका ज्यादा रहती है . पत्तेदार सब्जियों का सेवन करने से ये बैक्टीरिया हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिससे कई प्रकार की संक्रामक रोग हो जाते हैं . इसके साथ ही हमारी शारीरिक ऊर्जा का स्तर बहुत कम हो जाता है और पाचन तंत्र में अत्यंत बाधायें उत्पन्न हो जाती हैं. इस संबंध में डा. बीएल कमल बताते हैं परिणामस्वरूप दस्त, बुखार, पेट में दर्द, बदहजमी, उल्टी और अन्य पेट सम्बन्धी रोग हो जाते हैं .मौनसून के दौरान पत्तेदार सब्जियों में कीड़े-मकोड़े अपना घर बना लेते हैं .पत्तागोभी, फुलगोभी, ब्रोकली, बैंगन, पालक, धनिया मेथी भाजी, मुनगा भाजी, करेले, अरबी के पत्ते, हरी भाजीयां और शाक इत्यादि में कीड़े लगे रहते हैं. ज्यादातर ये कीड़े हरे रंग के होते हैं और पत्तियों और हरे सब्जियों रंग से मिल जाते हैं, इसलिए ठीक से दिखाई भी नहीं देते. जरा सी लापरवाही के कारण ये खाने के माध्यम से हमारे पेट में चले जाते हैं . जहां तक हो सके तो हमे ऐसे सब्जियों और पत्तों का सेवन नहीं करना चाहिए.

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पत्तेदार सब्जियां पानी वाले क्षेत्र या दलदली भूमि में उगते हैं. जबकि बरसाती पानी कई जगह के पानी का मिश्रण होता है और कई  तरह  कीटाणु को जन्म देते है .जिसके कारण इन पानी में उत्पन्न सब्जियों में भी संक्रमण का खतरा उत्पन्न हो जाता है.

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