एक प्रचलित कहावत है कि रोगों से बचाव, उस के इलाज की अपेक्षा बेहतर विकल्प है, इसलिए कुछ खास रोगों से बचाव के लिए समय पर टीके लगवाएं. पशुओं को अनेक संक्रामक रोगों से बचाने के लिए उन्हें समय पर टीके लगवाना बहुत जरूरी है.
टीके खास रोगों की रोकथाम के लिए बनाए जाते हैं और ये टीके सही समय पर डाक्टरों द्वारा लगाए जाते हैं. ये टीके होने वाले रोगों को रोकने की कूवत बढ़ाते हैं और अप्रैल महीने के आखिरी सप्ताह को विश्वभर में ‘विश्व टीकाकरण सप्ताह’ के रूप में भी मनाया जाता है.
भारत में पशुओं के लिए टीकाकरण खासकर 4-5 बीमारियों के विरुद्ध चलाया जाता है. अब समय के साथसाथ पशुपालक भी इस टीकाकरण का ध्यान रखने लगे हैं. जो लोग पशुपालन करते हैं, उन्हें अपने पशुओं के टीकाकरण को ले कर डायरी बनानी चाहिए, जिस से कोई टीका छूटने न पाए.
पशुओं में लगने वाले टीके
खुरपका व मुंहपका : पशुओं में होने वाला यह खास रोग है और इस की रोकथाम के लिए पशुओं में यह टीका 4 से 8 माह की उम्र में लगाया जाता है उसे 4 हफ्ते के बाद बूस्टर डोज दी जाती है. इस के बाद साल में 2 बार टीके लगवाने चाहिए. एक टीका फरवरी माह के आखिरी हफ्ते से मार्च माह के पहले हफ्ते तक और दूसरा टीका अगस्त माह से सितंबर माह तक लगाया जाता है.
पशु जब 6 माह का हो जाए, तब गलघोंटू और लंगड़ी का टीका लगाया जाता है. इस बीमारी का टीका मई से जून माह तक लगवा लें. कोशिश करें, यह टीका बारिश के मौसम से पहले लगवा लें.
4 से 8 माह की उम्र में गर्भपात का टीका लगाया जाता है, जो पशु को जीवनभर रोग प्रतिरोधात्मक कूवत को बढ़ाता है.
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पशु टीकाकरण में सावधानी
* टीके लगवाते समय पशु स्वस्थ होना चाहिए.
* पशु बीमारी वाले मौसम (बरसात से) एक महीने पहले तक टीका लगवा लेना चाहिए.
* टीके का सही तापमान पर रखना चाहिए.
* टीका लगवाते समय कोई अन्य दवा या एंटीबायोटिक्स पशु को नहीं दिए जाने चाहिए.
* अगर पशु गर्भ से है तो टीकाकरण से पहले पशु विशेषज्ञ को इस की जानकारी देनी चाहिए.
* टीकाकरण की सभी जानकारी डायरी में नोट करनी चाहिए.
* पशु को टीका लगाने के बाद उसे धूप में नहीं छोड़ना चाहिए.
* टीकाकरण के लिए सुबह का समय अच्छा रहता है.
* टीके को गरमी व सीधे धूप से बचा कर रखना चाहिए.
* अगर टीके को गलत तरीके से लगाया जाता है या समय पर नहीं लगाया जाताहै, तो वह टीका बेकार भी हो सकता है, इसलिए सभी टीके समय पर लगाएं.
* अगर आप के झुंड में पशु हैं तो खास ध्यान रखें. पूरे झुंड का टीकाकरण समय पर सही तरीके से करवाएं, वरना उन में बीमारी फैल सकती है.
* पशुओं में अनेक टीके मुफ्त भी लगाए जाते हैं. इस के किए जगहजगह कृषि केंद्रों में पशु विशेषज्ञ भी हैं, इसलिए पशु में कोई भी समस्या आने पर या टीकों की
जानकारी लेने के लिए आप उन से भी संपर्क कर सकते हैं.
प्रवींद्र और संगीता सगे मामाभांजी थे, लेकिन जब उन्होंने मर्यादाएं लांघी तो अपने ही परिवार पर इतने भारी पड़े कि…
उस दिन जनवरी, 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह अपने कक्ष में मौजूद थे. तभी उन के कक्ष में सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने प्रवेश किया. शैलेंद्र सिंह के अचानक आने पर वह समझ गए कि जरूर कोई खास बात है. उन्होंने पूछा, ‘‘शैलेंद्र सिंह, कोई विशेष बात?’’
‘‘हां सर, खास बात पता चली है, सूचना देने आप के पास आया हूं.’’ शैलेंद्र सिंह ने कहा.
‘‘बताओ, क्या बात है?’’ एसपी ने पूछा.
‘‘सर, 3 महीने पहले थाना गुरसहायगंज के गौरैयापुर गांव में जो डबल मर्डर हुआ था, उस के आरोपियों की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर में मिल रही है. अगर पुलिस टीम वहां भेजी जाए तो उन की गिरफ्तारी संभव है.’’ शैलेंद्र सिंह ने बताया. शैलेंद्र सिंह की बात सुन कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह चौंक गए. इस की वजह यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड ने उन की नींद उड़ा रखी थी. लोग पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहे थे. कानूनव्यवस्था को ले कर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही थीं.
दरअसल, गौरैयापुर गांव में रमेशचंद्र दोहरे और उन की पत्नी ऊषा की हत्या कर दी गई थी. उन की युवा बेटी संगीता घर से लापता थी. घर में लूटपाट होने के भी सबूत मिले थे. इसलिए यही आशंका जताई गई थी कि बदमाशों ने लूटपाट के दौरान दंपति की हत्या कर दी और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया.लेकिन बाद में जांच से पता चला कि संगीता के अपने ममेरे भाई प्रवींद्र से नाजायज संबंध थे. इस से यह आशंका हुई कि कहीं इन दोनों ने ही तो इस हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया. पुलिस उन की तलाश में जुटी थी और पुलिस ने उन दोनों की सही जानकारी देने वाले को 25-25 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था. उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगे थे, जिन की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर की मिल रही थी.
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सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह से यह सूचना मिलने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्काल एएसपी के.सी. गोस्वामी को कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने उन्हें दोहरे हत्याकांड के आरोपियों के बारे में जानकारी दी. फिर उन के निर्देशन में एसपी ने एक पुलिस टीम गठित कर दी.टीम में गुरसहायगंज के थानाप्रभारी नागेंद्र पाठक, इंसपेक्टर विजय बहादुर वर्मा, टी.पी. वर्मा, दरोगा मुकेश राणा, सिपाही रामबालक तथा महिला सिपाही कविता को सम्मिलित किया गया. यह टीम संगीता और प्रवींद्र की तलाश में पश्चिम बंगाल के हुगली शहर के लिए रवाना हो गई.4 जनवरी को पुलिस टीम पश्चिम बंगाल के हुगली शहर पहुंच गई और स्थानीय थाना भद्रेश्वर पुलिस से संपर्क कर अपने आने का मकसद बताया. दरअसल, प्रवींद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उस समय भद्रेश्वर थाने के आरबीएस रोड की मिल रही थी, जो झोपड़पट्टी वाला क्षेत्र था.
झोपड़पट्टी में ज्यादातर मजदूर लोग रह रहे थे. पुलिस टीम ने थाना भद्रेश्वर पुलिस की मदद से छापा मारा और एक झोपड़ी से संगीता और प्रवींद्र को हिरासत में ले लिया. जिस झोपड़ी से उन दोनों को हिरासत में लिया था, वह झोपड़ी नगमा नाम की महिला की थी.
पकड़ में आए प्रवींद्र और संगीता
नगमा ने पुलिस को बताया कि करीब ढाई महीने पहले प्रवींद्र और संगीता ने झोपड़ी किराए पर ली थी. प्रवींद्र ने संगीता को अपनी पत्नी बताया था. दोनों मजदूरी कर अपना भरणपोषण करते थे. नगमा को जब पता चला कि दोनों हत्यारोपी हैं तो वह अवाक रह गई.पुलिस टीम ने संगीता और प्रवींद्र को हुगली की जिला अदालत में पेश किया. अदालत से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस दोनों को कन्नौज ले आई. एएसपी गोस्वामी तथा एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने संगीता और प्रवींद्र से एक घंटे तक पूछताछ की.
पूछताछ में दोनों ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. हत्या का जुर्म कबूल करने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद ने प्रैसवार्ता कर दोहरे हत्याकांड का खुलासा किया.प्रवींद्र और संगीता से की गई पूछताछ में मामाभांजी के कलंकित रिश्ते की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.
उत्तर प्रदेश के कन्नौज का बड़ी आबादी वाला एक व्यापारिक कस्बा गुरसहायगंज है. यहां बड़े पैमाने पर आलू तथा तंबाकू का व्यवसाय होता है. बीड़ी के कारखानों में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. गुरसहायगंज कस्बा पहले फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत आता था लेकिन जब कन्नौज नया जिला बना तो यह कस्बा कन्नौज जिले का हिस्सा बन गया. इसी गुरसहायगंज कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर सौरिख रोड पर बसा है एक गांव गौरैयापुर. कोतवाली गुरसहायगंज के अंतर्गत आने वाले इसी गांव में रमेशचंद्र दोहरे का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा एक बेटी संगीता थी. रमेशचंद्र के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. उसी की उपज से वह परिवार का भरणपोषण करता था.
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संगीता सुंदर थी. जब उस ने 17वां बसंत पार किया तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया, बातें भी बड़ी मनभावन करती थी. लेकिन पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. जिस के चलते वह 8वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकी. इस के बाद वह घर के रोजमर्रा के काम में मां का हाथ बंटाने लगी. संगीता जिद्दी स्वभाव की थी. वह जिस चीज की जिद करती, उसे हासिल कर के ही दम लेती थी.संगीता के घर प्रवींद्र का आनाजाना लगा रहता था. वह संगीता की मां ऊषा देवी का सगा छोटा भाई था यानी संगीता का सगा मामा. वह हरदोई जिले के कतन्नापुर गांव का रहने वाला था और अकसर अपनी बहन ऊषा के ही घर पड़ा रहता था. जब भी आता हफ्तेदस दिन रुकता था. ऊषा का पति रमेशचंद्र इसलिए कुछ नहीं बोलता था क्योंकि वह उस का साला था.
संगीता और प्रवींद्र हमउम्र थे. प्रवींद्र उस से 2 साल बड़ा था. हमउम्र होने के कारण दोनों में खूब पटती थी. प्रवींद्र बातूनी था, इसलिए संगीता उस की बातों में रुचि लेती थी. ऊषा समझती थी कि प्रवींद्र को उस से लगाव है, इसलिए वह उस के घर आता है. लेकिन सच यह था कि प्रवींद्र की लालची नजर अपनी भांजी संगीता पर थी. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए आता था.प्रवींद्र ने अपने व्यवहार से बहन और बहनोई के दिल में ऐसी जगह बना ली थी कि वे उसे अपना हमदर्द समझने लगे थे. वे लोग उस से सुखदुख की बातें भी साझा करते थे. दरअसल, रमेशचंद्र उसे इसलिए वफादार समझने लगे थे क्योंकि प्रवींद्र उन के खेती के कामों में भी हाथ बंटाने लगा था. खाद बीज लाने की जिम्मेदारी भी वही उठाता था. इन्हीं सब कारणों से प्रवींद्र रमेश की आंखों का तारा बन गया था.
हमारे समाज में युवा हो रही लड़कियों के लिए तमाम बंदिशें होती हैं. वह किसी बाहरी लड़के से हंसबोल लें तो उन्हें डांट पड़ती है. यह उम्र जिज्ञासाओं की होती है. मन हवा में उड़ान भरने को मचलता है.
पारिवारिक और सामाजिक वर्जनाओं की वजह से आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां अपने रिश्ते के करीबी युवक से ज्यादा घुल जाती हैं. वह उन का मामा, जीजा, चचेरा या मौसेरा या ममेरा भाई कोई भी हो सकता है. वे उसे ही अपना दोस्त बना लेती हैं. संगीता के सब से नजदीक मामा प्रवींद्र ही था, अत: उन दोनों में भी ऐसा ही रिश्ता था.
प्रवींद्र की नजर थी खूबसूरत भांजी पर
शुरुआती दिनों में जब प्रवींद्र ने बहन ऊषा के घर आना शुरू किया था, तब उस के मन में संगीता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी. रिश्ते में वह उस की भांजी थी. किंतु भावनाओं में तूफान आते और रिश्ता बदलते कितनी देर लगती है. संगीता से मेलमिलाप की वजह से प्रवींद्र की भावनाओं में भी तूफान आ गया और मामाभांजी के पवित्र रिश्ते पर कालिख लगनी शुरू हो गई. हुआ यह कि एक दिन प्रवींद्र ऊषा के घर पहुंचा तो वह परिवार सहित गांव में एक परिचित के घर समारोह में जाने को तैयार थी. संगीता भी खूब बनीसंवरी थी. उस ने गुलाबी सलवारसूट पहना था और खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे. उस समय संगीता बेहद खूबसूरत दिख रही थी.
संगीता का वह रूप प्रवींद्र की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. प्रवींद्र के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनाते को ढक लिया. वह भूल गया कि संगीता उस की भांजी है.प्रवींद्र का मन चाह रहा था कि संगीता उस के सामने रहे और वह उसे अपलक देखता रहे, लेकिन ऐसा कहां संभव था. वे लोग तो समारोह में जाने को तैयार थे. प्रवींद्र को घर की तालाकुंजी दे कर वे सब चले गए. प्रवींद्र की नजरें तब तक संगीता का पीछा करती रहीं जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.उन के जाने के बाद प्रवींद्र खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस की आंखों में संगीता का अक्स बसा था और जेहन में उसी के खयाल उथलपुथल मचा रहे थे. कई बार प्रवींद्र की अंतरात्मा ने उसे झिंझोड़ा, ‘संगीता तुम्हारी भांजी है, उस के बारे में गंदे विचार तक मन में लाना पाप है. संगीता के बारे में गलत सोचना बंद कर दो.’
प्रवींद्र ने हर बार यह सोच कर अंतरात्मा की आवाज को दबा दिया कि हर लड़की किसी न किसी की भांजी होती है. अगर लोग मामाभांजी का ही रिश्ता निभाते रहे तो चल गई दुनिया. कहते हैं कि बुरे विचार अच्छे विचारों को जल्दी ही दबा देते हैं. प्रवींद्र की अच्छाई पर बुराई हावी हो गई.इधर ऊषा और रमेश रात को काफी देर से लौटे. सुबह वे जल्दी उठ कर अपनेअपने काम से लग गए. रमेशचंद्र और ऊषा खेत पर चले गए थे, जबकि संगीता घरेलू कामों में व्यस्त थी. प्रवींद्र की आंखें खुलीं तो उस की नजर आंगन में काम कर रही संगीता पर पड़ी. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन टकटकी लगाए संगीता को देखने लगा.
प्रवींद्र को इस तरह अपनी ओर ताकते देख संगीता ने टोका, ‘‘क्या बात है मामा, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे. बस टकटकी लगा कर मुझे ही देखे जा रहे हो.’’
‘‘इसलिए देख रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत हो. जी चाहता है कि तुम सामने खड़ी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं. यह कमबख्त नजरें तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं.’’ वह बोला.
संगीता मामा के मन का मैल न समझ कर उन्मुक्त हंसी हंसने लगी. हंसी पर विराम लगा तो बोली, ‘‘यह कौन सी नई बात है. गांव में भी सब कहते हैं कि संगीता तुम खूबसूरत हो.’’फिर वह शरारत से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘कैसे मामा हो जिसे आज पता चला कि मैं खूबसूरत हूं.’’‘‘आज नहीं, मैं ने कल जाना कि तुम खूबसूरत हो.’’ प्रवींद्र के मन की बात उस की जुबान पर आ गई, ‘‘गुलाबी रंग का सलवारसूट तुम्हारे गोरे बदन पर बेहद फब रहा था. ऊपर से तुम्हारा मेकअप तो मेरे दिल पर बिजली गिरा गया. किसी दुलहन से कम नहीं लग रही थी तुम…’’संगीता अपने सौंदर्य की तारीफ सुन कर गदगद हो गई, उस ने शरम से नजरें झुका लीं. साथ ही उस के मन में कांटा सा चुभा. वह सोचने लगी कि क्या मामा के दिल में खोट आ गया है, जो ऐसी बातें उस से कर रहे हैं. वह अभी ऐसा सोच ही रही थी कि तभी प्रवींद्र 2 कदम आगे बढ़ कर संगीता की कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘संगीता, तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से प्यार करता हूं.’’
संगीता काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि उस के मामा प्रवींद्र के मन में उस के लिए बेपनाह प्यार है. सच तो यह था कि संगीता भी मन ही मन मामा प्रवींद्र को चाहती थी. यही कारण था कि जब प्रवींद्र ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया तो संगीता ने फौरन इकरार करते हुए कह दिया, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहती हूं.’’
मोहब्बत को मिली जुबान
खामोश मोहब्बत को जुबान मिली तो संगीता और प्रवींद्र की आशिकी के रंग निखरने लगे. प्रवींद्र का पहले से ही घर में आनाजाना था. रमेशचंद्र दोहरे भी उसे बेटे की तरह मानते थे, इसलिए संगीता से उस के मिलनेजुलने या एकांत में बातचीत करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं थी. प्रवींद्र जब अपने गांव कतरतन्ना में होता तब वे दोनों मोबाइल फोन पर देर तक बातें करते थे. संगीता उसे अपना हालेदिल सुनाया करती.बहन के घर जाने में भाई को बहाने की जरूरत नहीं होती. संगीता के बुलाने पर वह उस के यहां आ जाता. सब उसे देख कर खुश होते कि देखो भाईबहन में कितना प्यार है.लेकिन यह तो केवल संगीता जानती थी कि प्रवींद्र किसलिए आता है. ज्योंज्यों दिन गुजरते गए, संगीता और प्रवींद्र की मोहब्बत के तकाजे भी बढ़ते गए. उन की चाहत तनहाई और खुफिया मुलाकात की मांग करने लगी. यह तकाजा पूरा करने के लिए उन दोनों ने किसी तरह की कोताही नहीं की.
रात को जब सब लोग सो जाते, तब संगीता और प्रवींद्र चुपके से उठ कर छत पर चले जाते और वहां एकदूजे की बांहों में खो जाते. तनहाई और रात के सन्नाटे में 2 जिस्म मिले तो जज्बात भड़कते ही हैं. संगीता और प्रवींद्र भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा सके. पे्रमोन्माद में वे एकदूसरे को समर्पित हो गए.समय बीतता रहा. किसी को अब तक नहीं खबर नहीं थी कि संगीता और प्रवींद्र एकदूसरे से प्यार करते हैं. मन से ही नहीं, दोनों तन से भी एक हो चुके हैं. प्रवींद्र और संगीता के इश्क का खेल 2 सालों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन एक रोज उन का भांडा फूट ही गया.
उस दिन शाम को प्रवींद्र आया तो पता चला रमेश जीजा रिश्तेदारी में उन्नाव गए हैं. वह 3 दिन बाद घर लौटेंगे. ऊषा आंगन में अकेली बैठी थी और संगीता रसोई में खाना बना रही थी. ज्यों ही प्रवींद्र ऊषा के पास आ कर बैठा, उस ने वहीं से रसोई की ओर मुंह कर आवाज दी, ‘‘बेटी संगीता, मामा आए हैं, इन के लिए भी खाना बना लेना.प्रवींद्र चारपाई पर पसर गया और हंस कर बोला, ‘‘हां दीदी, मैं खाना भी खाऊंगा और रुकूंगा भी. जीजा बाहर गए हैं न इसलिए घर और तुम दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज है. वैसे भी दीदी तुम मुझे फोन पर बता देती तो मैं दौड़ा चला आता.’’
‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ ऊषा भी हंसने लगी, ‘‘मैं खुद तुझ से यहीं रुकने को कहने वाली थी. लेकिन तूने मेरे मुंह की बात छीन ली.’’ संगीता को पता चला कि मामा आए हैं तो उस का शरीर रोमांच से भर गया. वह जान गई कि आज की रात रंगीन होने वाली है. उस ने खाना बना कर तैयार किया फिर मां और मामा को खिलाया. उस के बाद खुद खाना खा कर घर की साफसफाई की.प्रवींद्र छत पर सोने चला गया और संगीता मां के साथ नीचे कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद ऊषा तो सो गई लेकिन संगीता की आंखों में नींद नहीं थी. ऊषा जब गहरी नींद सो गई तो संगीता दबेपांव उठी और प्रवींद्र के पास छत पर जा पहुंची. प्रवींद्र भी उस के आने का ही इंतजार कर रहा था. संगीता के पहुंचते ही उस ने उसे बांहों में भर लिया.
इधर आधी रात को ऊषा की आंखें खुलीं तो उस ने संगीता को चारपाई से नदारद पाया. वह उसे खोजते हुए आंगन में आई तो उसे छत पर खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी. वह जीने की ओर बढ़ी, तभी संगीता जीने से नीचे उतरी. शायद उसे मां के जागने का आभास हो गया था. कमरे में पहुंचते ही ऊषा ने पूछा, ‘‘संगीता, तू आधी रात को छत पर क्यों गई थी?’’‘‘मामा उल्टियां कर रहे थे. उन्हें पानी देने गई थी.’’ संगीता ने बहाना बना दिया.ऊषा ने संगीता की बात पर विश्वास तो कर लिया किंतु उस के मन में शक का बीज अंकुरित होने लगा. अब वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगीं. संगीता और प्रवींद्र कड़ी निगरानी के कारण सतर्कता बरतने लगे थे, लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात ऊषा ने संगीता और प्रवींद्र को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रात ऊषा ने संगीता की जम कर फटकार लगाई और उस की पिटाई भी कर दी. उस ने छोटे भाई प्रवींद्र को भी भलाबुरा कहा और रिश्ते को कलंकित करने का दोषी ठहराया.
इज्जत के नाम पर दबा दी बात
अपराधबोध के कारण प्रवींद्र ने सिर झुका लिया. फिर जब ऊषा का गुस्सा ठंडा पड़ गया तो प्रवींद्र ने बहन के पैर पकड़ लिए, ‘‘दीदी, जवानी के जोश में हम और संगीता बहक गए थे. इस बार माफ कर दो. आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.’’चूंकि बेटी का मामला था. ज्यादा शोर मचाने से उसी की बदनामी होती, इसलिए ऊषा ने हिदायत दे कर प्रवींद्र को माफ कर दिया. प्रवींद्र अपने घर चला गया. इस के बाद करीब 3 महीने तक प्रवींद्र बहन के घर नहीं आया. हां, इतना जरूर था कि संगीता और प्रवींद्र जबतब मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे और अपने दिल की लगी बुझा लेते थे.
3 माह बाद जब प्रवींद्र को संगीता की ज्यादा याद सताने लगी तो वह एक रोज बहन के घर आ पहुंचा. ऊषा ने प्रवींद्र के आने पर ऐतराज तो नहीं जताया, लेकिन संगीता से दूर रहने की हिदायत दी. प्रवींद्र अब ऊषा के सामने ही संगीता से बात करता तथा रात को घर के अंदर के बजाए घर के बाहर सोता. इस तरह प्रवींद्र का आनाजाना फिर से शुरू हो गया.कहावत है कि आग और फूस एक साथ होंगे तो धुआं तो उठेगा ही और जलेंगे भी. संगीता और प्रवींद्र भी आगफूस की तरह थे. कुछ दिनों तक तो वे दोनों सुलगते रहे. आखिर में जब नहीं रहा गया तो वे पुन: सतर्कता के साथ मिलने लगे. ऊषा और रमेश दोनों ही संगीता व प्रवींद्र पर नजर रखते थे, परंतु वे उन की पकड़ में नहीं आए.
संगीता अब तक 20 साल की उम्र पार करचुकी थी और उस के कदम भी बहक गए थे. इसलिए ऊषा और रमेश चाहते थे कि जितना जल्दी हो, उस के हाथ पीले कर दिए जाएं. संगीता का विवाह करने के लिए दोनों ने उपयुक्त घरवर की तलाश भी शुरू कर दी.संगीता को शादी वाली बात पता चली तो वह प्रवींद्र की छाती से मुंह छिपा कर बिलख पड़ी, ‘‘कुछ करो मामा, किसी दूसरे से मेरी शादी हो गई तो मैं जहर खा कर मर जाऊंगी.’’प्रवींद्र की आंखें भी बरसने लगीं, ‘‘तुम्हारे बगैर मैं भी कहां जिंदा रह सकता हूं. तुम ने जहर खाया तो मैं भी जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगा.’’
‘‘हमारी आशिकी का जनाजा निकलने में देर नहीं है, इसलिए कह रही हूं कि जल्दी ही कुछ करो.’’
‘‘करना तो चाहता हूं पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं.’’ प्रवींद्र उलझन में पड़ा हुआ था, ‘‘हम दोनों की शादी हो नहीं सकती और हमेशा के लिए तुम्हें अपना बनाने का रास्ता सूझ नहीं रहा है.’’
‘‘प्रवींद्र, मुझे एक तरकीब सूझी है,’’ संगीता अचानक उल्लास से भर गई, ‘‘अगर तुम उस पर अमल करने को राजी हो जाओ तो हम हमेशा के लिए एक हो सकते हैं.’’‘कैसी तरकीब?’’ प्रवींद्र ने पूछा ‘‘चलो हम भाग चलें,’’ संगीता ने राह सुझाई, ‘‘दिल्ली, मुंबई जैसे शहर में हम अपने प्यार की अलग दुनिया बसाएंगे. वहां इतनी भीड़ रहती है कि कोई भी हमें ढूंढ नहीं सकेगा.’’प्रवींद्र कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘संगीता, तुम्हारी तरकीब तो सही है लेकिन मुझे डर सता रहा है.’’
‘‘कैसा डर?’’ संगीता ने अचकचा कर पूछा. ‘‘यही कि मैं तुम्हें ले कर भागा तो तुम्हारे घर वाले मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगे. फिर पुलिस हमें पकड़ेगी. उस के बाद तुम अपने मातापिता के सुपुर्द कर दी जाओगी. और मैं जेल जाऊंगा. जब तक मैं जेल से बाहर आऊंगा, तब तक पता चलेगा कि घर वालों ने तुम्हें समझाबुझा कर किसी दूसरे से तुम्हारी शादी कर दी है. ऐसे मामलों में अकसर यही होता है.’’ प्रवींद्र बोला. प्रवींद्र की बात सुन कर संगीता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. अपनी बात का असर पड़ता देख प्रवींद्र आगे बोला, ‘‘दूसरी बात यह है कि घर से भाग कर दूसरे शहर में बसना आसान नहीं. उस के लिए पैसे चाहिए. और पैसे हमारे पास हैं नहीं.’’
संगीता कुछ देर सोच में डूबी रही. उस के बाद बोली, ‘‘प्रवींद्र, मुझे मातापिता का विरोध और तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हम हर हाल में अपना घर बसाना चाहते हैं. इस के लिए तुम कुछ भी करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’ ‘‘तो सुनो, एक तरकीब है मेरे पास. लेकिन उस के लिए तुम्हें अपना कलेजा मजबूत करना होगा. उस तरकीब से हमारी सारी समस्या हल हो जाएगी और धन भी मिल जाएगा.’’ प्रवींद्र ने कहा.
‘‘ऐसी कौन सी तरकीब है?’’ संगीता ने विस्मय से पूछा.‘‘मुझे अपने बहनबहनोई और तुम्हें अपने मातापिता को मौत की नींद सुलाना होगा. फिर घर से नकदी और गहने ले कर फरार हो जाएंगे. इस तरकीब से किसी को हम पर शक भी नहीं होगा. लोग समझेंगे कि बदमाशों ने घर में लूट की और विरोध पर दोनों की हत्या कर दी और लड़की का अपहरण कर लिया.’’
बन गई खून बहाने की योजना
संगीता, प्रवींद्र के प्यार में अंधी हो चुकी थी, इसलिए वह खूनी मांग सजाने को तैयार हो गई. उस ने प्रेमी मामा प्रवींद्र की तरकीब को मान लिया और अपनों का खून बहाने को राजी हो गई.इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने रमेशचंद्र और ऊषा के कत्ल की योजना बनाई. योजना के तहत प्रवींद्र अपने गांव चला गया ताकि बहन के पड़ोसियों को उस पर शक न हो. गांव में रहने के दौरान वह संगीता के संपर्क में बना रहा.
8 अक्तूबर, 2019 की सुबह प्रवींद्र ने संगीता से मोबाइल पर बात की और रात में घटना को अंजाम दे कर फरार होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि वह रात 10 बजे उस के घर पहुंचेगा, दरवाजा खुला रखे. प्रेमी मामा से बात होने के बाद संगीता घर से भागने की तैयारी में जुट गई.
उस ने मां से चोरीछिपे बैग में अपने कपड़े तथा जरूरी सामान रख लिया. बैग को उस ने कमरे में रखे बड़े संदूक में छिपा दिया. अन्य दिनों के अपेक्षा उस शाम संगीता ने कुछ जल्दी खाना बना कर मांबाप को खिला दिया. खाना खा कर ऊषा और रमेश कमरे में पड़े तख्त पर जा कर लेट गए. कुछ देर बाद दोनों गहरी नींद सो गए.इधर रात 10 बजे प्रवींद्र संगीता के दरवाजे पर पहुंचा. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो संगीता ने दरवाजा खोल कर उसे घर के अंदर कर लिया. वह बेसब्री से उसी का इंतजार कर रही थी. संगीता प्रवींद्र को कमरे में ले गई. एकांत पा कर प्रवींद्र का मन मचल उठा और वह संगीता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा.
प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’
इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई.उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया.
2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी.सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी.
दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.
शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह
कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए.
एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.
जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे.
प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.
इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए.
नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.
8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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कोरोना महामारी के चलते पूरा देश लाॅक डाउन के दौर से गुजर रहा है.17 मार्च से फिल्म और टीवी सीरियल की शूटिंग्स बंद हैं.कुछ कलाकार अपने आपको सूर्खियों में बनाए रखने के लिए आए दिन कूकिंग करते या कसरत करते या कुछ अन्य काम करते हुए अपने वीडियो सोशल मीडिया पर डालते रहते हैं.मगर अभिनेता कार्तिक आर्यन इन दिनों ख्ुाद को सर्वाधिक व्यस्त दिखा रहे हैं.वह हर दिन कोई न कोई वीडियो जरुर डालते हैं.तो वहीं वह कोरोना से लड़ाई जीतकर निकलने वालों से बातें भी कर रहे हैं.
कुछ दिन पहले कार्तिक आर्यान ने ‘इंस्टाग्राम’लाइव सत्र मंें अपने प्रशंसको से सवाल पूछा था कि वह अपनी दाढ़ी बनाए यानीकि शेव करे या न करे.इस पर उनके प्रश्ंासको की तरफ से कार्तिक को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली है.मजेदार बात यह है कि आज उनके नन्हे प्रशंसकों ने उनके सवाल का जवाब संभवतः सबसे मधुर तरीके से दिया है.
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Cut The Beard Concert ? ??? . . #Repost @kartikaaryanfans_club @dishalalalala ??
उधर कार्तिक आर्यन की माँ और दीपिका पादुकोण चाहती हंै कि कार्तिक आर्यन ‘गो क्लीन-शेव‘रहे. उनके छोटे प्रशंसक भी ऐसा ही चाहते हैं.कार्तिक आर्यन ने अपने कुछ युवा फैन्स का एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया है, यह वीडियो एक नन्हे फैन्स बैंड का है ,जो उनसे कह रहे हैं कि वह अपने प्यारे चेहरे से उस ‘दाढ़ी‘ को साफ कर दे.इस वीडियो में पांच बच्चों का यह ग्रुप फिल्म ‘‘सोनू के टीटू की स्वीटी’’के गीत ‘दिल चोरी साडा हो गया‘’की धुन पर कुछ बेहतरीन पंक्तियां गाते हुए नजर आ रहे हैं.यह पंक्तियां हैं-‘मंुह साधु जैसे हो गया है,की करिये की करिये …‘ अब यह निश्चित रूप से सबसे प्यारी और सबसे अच्छी चीज है जो आज इंटरनेट पर दिखाई दी है.
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सर्वविदित है कि इस दौर के युवा अभिनेताआंे में कार्तिक आर्यन के सर्वाधिक प्रशंसक लड़कियां हैं.तो वहीं वह बच्चों के बीच उनके पसंदीदा हीरो में से एक हैं.कार्तिक ने यह वीडियो अपने इंस्टाग्राम पर ‘द क्यूट बीयर्ड कॉन्सर्ट ’के रूप में साझा किया है.इस वीडियो को उनकी बढ़ती लोकप्रियता और देश भर में लोगों द्वारा उन्हें कितना पसंद और प्यार किया जा रहा है,उसका प्रमाण भी माना जा रहा है.
कार्तिक आर्यन घर में रहते हुए भी लोगों के बीच कोरोना व लाॅक डाउन को लेकर जागरूकता फैलाने में भी लगे हैं.इसके लिए उन्होंने ‘‘कोकी पूछेगा‘‘ यह सीरीज यूट्यूब पर बनाई है.इस सीरीज के तहत वे कोरोना फाइटर्स के इंटरव्यू ले रहे हैं.जबकि इस महामारी से लड़ने के लिए पीएम केयर रिलीफ फंड में कार्तिक एक करोड़ की राशि भी दान कर चुके हैं.
कोरोना के बढ़ते कहर को देखते हुए देश में लॉकडाउन का चौथा चरण लागू हो गया है. ऐसे में सभी लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए हर वो उपाय कर रहे हैं जिससे बचा जा सकता है. ऐसे में बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने परिवार के साथ ईद का त्योहार मनाने उत्तर प्रदेश के बुढ़ाना अपने परिवार के साथ पहुंचे जहां उन्हें 14 दिनों के लिए उऩके परिवार के साथ क्वारेंटीन किया गया है.
इस बात की जानकारी पीटीआई ने ट्वीट के जरिए दी है. हालांकि नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ परिवार के कई सदस्यों का भी टेस्ट हुआ जो निगेटिव पाएं गए हैं. बता दें कि महाराष्ट्र सरकार से अऩुमति लेने के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने निजी वाहन से ईद का त्योहार मनाने के लिए अपने परिवार के साथ अपने पुश्तैनी गांव जा रहे थें.
वहीं अगर वर्कफ्रंट की बात करें तो हाल ही में उनके फिल्म धूमकेतू का टीजर रिलीज हुआ है. जिसे लेकर एक्टर काफी चर्चा में बने हुए हैं फैंस इस टीजर को खूब पसंद कर रहे हैं.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी की यह फिल्म 22 मई को जी 5 पर रिलीज होने वाली है. वहीं अगर कोरोना वायरस की बात करें तो वह लगातार बढ़ते ही जा रहा है. लोग इससे बचने के लिए लाख उपाय कर रहे हैं लेकिन यह रुकने का नाम नही ले रहा है. कोरोना के चलते देश की कई अर्थव्यवस्थ रूक गई है. हालांकि अब सरकार इस तरफ रुख कर रही है कि इससे बचा जा सके लेकिन अभी तक इसकी कोई वैकशिन नहीं बन पाई है.
इसका सामना सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग के लोगों को करना पड़ रहा है. कोरोना वायरस ने देश ही नहीं पूरे विश्व को भी परेशान कर रखा है.
पूरी दुनिया में अब तक कोरोना वायरस की वजह से संक्रमितों की संख्या 45.6 लाख तक पहुंच गई है जबकि 3.08 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. यह आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है. इसमें सुपर पावर कहलाने वाले देश अमेरिका की हालत सबसे ज़्यादा चिंताजनक है. अमेरिका में कोरोना वायरस हर बढ़ते दिन के साथ भयानक रूप लेता जा रहा है. जॉन्स हॉकिंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक, अमेरिका में मरने वालों की कुल संख्या 88,237 पहुंच चुकी है. यहाँ 14.7 लाख लोग कोरोना संक्रमित हैं. भारत में अबतक इस संक्रमण से 85,940 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 2,752 की मौत हो चुकी है.
कोरोना वायरस पर नकेल कसने के प्रयास यूं तो सारी दुनिया में बहुत गंभीरता से चल रहे हैं. प्लाज्मा थेरेपी से लेकर इसका वैक्सीन बनाने के लिए तमाम प्रयोग हो रहे हैं. इज़राइल और इटली ने तो ये दावा भी किया है कि वे कोरोना का वैक्सीन जल्दी ही मार्किट तक लाने वाले हैं मगर इन तमाम दावों पर विश्व स्वास्थ संगठन के बयानों ने पानी फेर दिया है और ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या बनने वाले वैक्सिंग वास्तव में कोरोना पर अंकुश लगा पाएंगे?
कोरोना वायरस को लेकर विश्व स्वास्थ संगठन के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि हो सकता है कि यह वायरस अब इस दुनिया से कभी न जाए, जैसे कि एचआईवी आज भी जीवित है. वो हमारे बीच ही है और इसका वैक्सीन आज तक नहीं बन पाया.
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उल्लेखनीय है कि चार दशकों से अब तक एचआईवी से करीब 3.2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन दुनियाभर के विज्ञानविद उसका वैक्सीन नहीं ढूंढ पाए हैं. वहीं, डेंगू की बात की जाए तो यह वायरस भी हर साल चार लाख लोगों को प्रभावित करता है. हालांकि, कुछ देशों का दावा है कि उनके पास डेंगू का वैक्सीन मौजूद है.
डब्ल्यूएचओ के शीर्ष अधिकारी डॉ. माइकल जे रायन का कहना है कि कोरोना वायरस भी दुनिया के उन वायरस की तर्ज पर हो सकता है, जो कभी नहीं जाएगा, जैसे कि एचआईवी.एचआईवी आज तक कहीं नहीं गया. हम इस वायरस के साथ रह रहे हैं और हमने इसके लिए थेरेपी और इसके बचाव के उपाय ढूंढे और अब लोग पहले की तरह इससे डरते नहीं हैं. हम अब एचआईवी मरीजों को स्वस्थ और लंबी जिंदगी दे पा रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि कोई भी यह बता सकता है कि यह बीमारी कब खत्म होगी.
डब्ल्यूएचओ हेल्थ इमर्जेंसीज प्रोग्राम के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर डॉ. रायन कहते हैं कि कोरोना भी हमारे समुदाय में कभी न खत्म होने वाला वायरस बन सकता है इसलिए हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए.
रायन कहते हैं, ‘मैं इन दो बीमारियों की तुलना नहीं कर रहा हूं लेकिन मैं सोचता हूं कि यह जरूरी है कि हम वास्तविकता को मानने के लिए भीतर से तैयार रहें. मुझे नहीं लगता कि कोई इस बात की भविष्यवाणी कर सकता है कि कब और कैसे यह बीमारी गायब हो जाएगी. कोई इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता है कि यह बीमारी कब खत्म होगी.
रायन ने बिना पर्याप्त सर्विलांस उपायों के लॉकडाउन के नियमों में छूट देने को लेकर भी कड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने कहा, ‘हमें इस बात का ख्याल रखना होगा कि लॉकडाउन हटने के बाद लोगों की मौत में इजाफा न हो. हमारे सामने एक नया वायरस है जो लोगों के अदंर पहली बार प्रवेश कर रहा है और इसलिए यह अनुमान लगाना बहुत कठिन है कि हम कब उस पर हावी हो पाएंगे. यह वायरस कभी भी जाने वाला नहीं है.’
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डॉ. रायन से पहले विश्व स्वास्थ संगठन में कोविड-19 के विशेष दूत डॉ.डेविड नैबोरो ने भी कहा था, ‘सबसे बुरी स्थिति यह हो सकती है कि कोरोना के खिलाफ कभी कोई वैक्सीन ही न हो.’ उन्होंने कहा कि लोगों की उम्मीदें बढ़ रही हैं और फिर खत्म हो रही हैं, क्योंकि आखिरी मुश्किलों से पहले ही कई समाधान फेल हो रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन का बयान भी निराश करने वाला है. स्वामीनाथन कहती हैं कि कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने में चार से पांच साल का समय लग सकता है. मगर उम्मीद है कि एक प्रभावी टीके से वायरस का अंत हो सकता है. शायद अगले चार से पांच सालों के अंदर हम इसे नियंत्रित कर पाएंगे.
उन्होंने कहा कि प्रभावशाली कारकों में यह देखना होगा कि क्या वायरस मैच्योर (परिपक्व) होता है. इसके अलावा रोकथाम और वैक्सीन विकास के उपाय करने होंगे. उन्होंने कहा कि इसका टीका बनाना सबसे बेहतरीन उपाय है लेकिन इसकी सुरक्षा, प्रभाव, उत्पादन और समान वितरण को लेकर बहुत सारे किंतु-परंतु हैं.
विश्व स्वास्थ संगठन का मानना है कि कोरोना से निपटना जादू का खेल नहीं है. यह इंसानी दुनिया के लिए दुश्मन नंबर एक है. डब्ल्यूएचओ ने चेताया है कि लॉकडाउन में मर्जी से छूट और हल्के प्रतिबंध लगाकर इम्यूनिटी बढ़ने के बारे में सोचना भी गलत बात होगी. संगठन का कहना है कि कोई भी देश कोविड-19 से मुकाबले के लिए अपनी आबादी पर कोई “जादू” चलाकर उसमें इम्यूनिटी नहीं भर सकता है.
हर्ड इम्यूनिटी बकवास : डब्ल्यूएचओ
बिना वैक्सीन कोरोना वायरस से लड़ रही दुनिया के लिए अभी इम्यूनिटी और एंटीबॉडीज ही उम्मीद की किरण हैं, लेकिन, कई हफ्तों से ‘हर्ड इम्यूनिटी’ पाने के नाम पर लगातार एक बहस जारी है. हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधकता दरअसल एक पेचीदा गणितीय सोच है. कुछ वैज्ञानिक इसे कोरोना नियंत्रण के लिए सही भी मान रहे हैं. उनका कहना है कि जब 80-95 फ़ीसदी इंसानी आबादी कोरोना से संक्रमित हो जायेगी तो इस वायरस को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलेगा और उसके बाद ये इंसानी दुनिया को छोड़ कर चला जाएगा. लेकिन डब्ल्यूएचओ ने सामूहिक प्रतिरोधकता या हर्ड इम्यूनिटी के इस नए विचार या अवधारणा को खतरनाक बताया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में हेल्थ इमरजेंसी डायरेक्टर डॉ माइकल रेयान ने दुनिया की सरकारों की उस सोच की भी आलोचना की है जिसमें वे लॉकडाउन में मर्जी से छूट और बेहद हल्के प्रतिबंध लगाकर यह सोच रहे हैं कि अचानक से उनके देशवासी “जादुई इम्यूनिटी” प्राप्त कर लेंगे.
डॉ. रेयान ने चेतावनी देते हुए कहा है कि, ‘यह सोचना गलत था और आज भी है कि कोई भी देश कोविड-19 के लिए अपनी आबादी पर कोई “जादू” चलाकर उसमें इम्यूनिटी भर देगा. इंसान जानवरों के झुंड नहीं हैं. हर्ड इम्यूनिटी की बात तब करते हैं, जब यह देखना होता है कि किसी आबादी में कितने लोगों को वैक्सीन की जरूरत है. यह एक बहुत ही खतरनाक अंकगणित होगा. इससे लोग, उनका जीवन और उनकी पीड़ा का समीकरण उलझ जाएगा. जिम्मेदार सदस्य देशों को हर एक इंसान को महत्व देना चाहिए. कोरोना बेहद गंभीर बीमारी है. यह दुश्मन नंबर एक है. हम इसी बात को बार-बार कह रहे हैं.’
डब्ल्यूएचओ की कोविड -19 रिस्पांस टीम की तकनीकी प्रमुख डॉ मारिया वान केरखोव ने भी कहा है कि शुरुआती आंकड़ों से पता चला है कि अभी जनसंख्या का बहुत कम स्तर कोरोना से संक्रमित है. लोगों में कम अनुपात में एंटीबॉडीज हैं. हम हर्ड इम्यूनिटी शब्द का इस्तेमाल तब करते हैं जब लोगों को वैक्सीन लगाने के बारे में सोचते हैं.
क्या है हर्ड इम्यूनिटी
हर्ड इम्यूनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्यूनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता. इस तरह हर्ड इम्यूनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी में बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना.
इस वैज्ञानिक आइडिया के अनुसार, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की इम्यूनिटी उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है. इस दौरान जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं. यानी उनमें प्रतिरक्षा के गुण पैदा हो जाते हैं. इसके बाद झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुंचना बहुत मुश्किल होता है. एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है. इसे ही ‘हर्ड इम्यूनिटी’ कहा जा रहा है.
हर्ड इम्युनिटी महामारियों के इलाज का एक पुराना तरीका है. व्यवहारिक तौर पर इसमें बड़ी आबादी को नियमित वैक्सीन लगाए जाते हैं जिससे लोगों के शरीर में प्रतिरक्षी एंटीबॉडीज बन जाती हैं. जैसा चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ. दुनियाभर में लोगों को इनकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि किसी देश की आबादी में कोविड-19 महामारी के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कोरोना वायरस उसकी करीब 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर चुका हो. वे मरीज अपने शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाकर और उससे लड़कर इम्यून हो गए हों.
विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 संक्रमण के मामलो में तो मौजूदा हालात को देखते हुए 60 से 85 प्रतिशत आबादी में प्रतिरक्षा आने के बाद ही हर्ड इम्यूनिटी बन पाएगी. पुरानी बीमारी डिप्थीरिया में हर्ड इम्यूनिटी का आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में 85 प्रतिशत और खसरा में करीब 95 प्रतिशत है.
मार्च में पहली बार ब्रिटिश सरकार ने उम्मीद जताई थी कि उनके यहां फैल रहे कोरोना को हर्ड इम्यूनिटी से नियंत्रित किया जा सकता है. इसके समर्थकों की ओर से तर्क दिया गया था कि वायरस को आबादी में फैलने दिया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इम्यून हो सकें. हालांकि बाद में देश के स्वास्थ्य सचिव मैट हैनकॉक ने इस बात से इनकार किया कि यह सोच कभी भी सरकार की रणनीति का हिस्सा थी.
दुनिया में सिर्फ स्वीडन एकमात्र देश है जहां पर बिना वैक्सीन के हर्ड इम्युनिटी को अपरोक्ष रूप से आजमाया गया है. वहां के 2000 से भी ज्यादा रिसर्चर्स ने बकायदा एक याचिका पर दस्तखत करके सरकार से कहा कि हमें हर्ड इम्युनिटी पर आगे बढ़ना चाहिए.
स्वीडन ने अपने यहां छोटे बच्चों के लिए 9वीं कक्षा तक के स्कूल, रेस्तरां, स्टोर, पब, बार और अन्य व्यवसाय भी बंद नहीं किए हैं. सवा करोड़ की आबादी वाले इस देश में 70 साल से ऊपर के बुजुर्गों का खास ध्यान रखा गया और सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन हुआ. अब दुनियाभर में इसी मॉडल की चर्चा हो रही है.
स्वीडन में कोरोना वायरस के 29 हजार 677 केस सामने आए हैं जिसमें से 4 हजार 971 लोग ठीक हो गए हैं जबकि 3 हजार 674 लोगों की मौत हो गई. आंकड़ाें के लिहाज से स्वीडन में डेथ रेट 40 प्रतिशत और रिकवरी रेट 60% है.
एक तरफ देश में कोरोना के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे. हर दिन हजारों की संख्या में कोरोना मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. वहीँ दूसरी तरफ धर्म में अंधे हुए लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे. ऐसी ही धार्मिक अंधता का मामला फिर कर्नाटक से सामने आया है जहां सैकड़ों लोग धार्मिक आयोजन के तौर पर मेले में इकठ्ठा हुए.
कर्नाटक स्थित रामनगर के कोलागोंडनाहल्ली गांव में गुरुवार को एक मेले का आयोजन किया गया जहां सैकड़ों की संख्या में लोग इकठ्ठा हुए. न्यज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, लोगों को मेले के आयोजन के लिए पंचायत विकास अधिकारी एनसी कलमट ने अनुमति दी थी. इस घटना की वीडियो जब सोशल मीडिया में वायरल हुई तो उसके बाद रामनगर के उपायुक्त ने एनसी कलमट को निलंबित कर दिया.
सोशल डिस्टेंस की उड़ी धज्जियां
देश में लाकडाउन के चलते सामाजिक दूरी को नियमित तौर पर पालन करने की सख्त हिदायत दी गई थी. कम से कम एक मीटर की दूरी आपस में बनाने को कहा गया था. लेकिन वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि बड़ी संख्या में लोग वहां मौजूद थे. लोग एक दुसरे से बुरी तरह सट के खड़े थे. लोगों ने न तो सोशल डिस्टेंस का पालन किया था न ही मास्क लगाया था. वीडियो में सैकड़ों की भीड़ सर पर पूजा की थाल लिए देखे जा सकते हैं.
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पहले भी ऐसे मामले हो चुके हैं
इससे ठीक पहले 12 मई, मंगलवार को मध्यप्रदेश के सागर जिले के बांदा में जैन संत प्रणामसागर के स्वागत के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी. यह उन राज्यों में से है जहां कोरोना के 4000 से ऊपर मामले हो चले हैं. उस समय भी सोशल डिस्टेंसिंग की बुरी तरह धज्जियां उडी थीं. हजारों की संख्या में संत प्रणामसागर के शिष्य और अनुयाई अपने घरों से बाहर निकल पड़े. यहां भी बहुत से लोग बिना मास्क के नजर आए थे.
ऐसा ही मामला 16 अप्रैल को कर्नाटक के जिला कलबुर्गी से आया था, जहां सिधिलिंग्वेश्वर मेला का आयोजन किया गया था. चितपुर तालुका में यह मेला आयोजित किया गया जहां सैकड़ों लोग उमड़ पड़े थे. यहां स्थानीय शिव मंदिर में रथ आयोजन रखा हुआ था जहां रथ को खींचने की परंपरा है. इस धार्मिक आयोजन की भी सामान्य बात यह थी कि यहां भी सामाजिक दूरी को बुरी तरह नजरअंदाज किया गया. उस समय तो कोरोना के मामले इस इलाके से काफी संख्या में आ रहे थे और देश में पहली कोरोना की मौत इसी जिले से हुई थी.
धर्म के आगे लाकडाउन फैल
देश में बढ़ते कोरोना के खतरे को देखते हुए पुरे देश में तालाबंदी की गई थी. यह इसलिए की गई ताकि लोग घरों से गैरजरूरी तौर पर बाहर न निकलें और कोरोना की कड़ी को तोड़ी जा सके. सबसे जरुरी बात यह कि ऐसी चीजो पर विशेष तौर पर रोक लगाई गई जिसके माध्यम से भीड़ होने का खतरा बढ़ सकता है. यही कारण था कि पुरे देश के सभी धार्मिक स्थलों तथा आयोजनों पर पूरे तौर पर पाबन्दी लगा दी गई थी.
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देश के सभी बड़े से बड़े धार्मिक स्थल चाहे वह बालाजी मंदिर हो या स्वर्ण मंदिर, चाहे केथोलिक चर्च हो या जामा मस्जिद सभी जगह को लोगों के लिए बंद कर दिया गया था. लेकिन उसके बावजूद भी लोगों ने खुलकर लाकडाउन के नियमों को तोडा. समय समय पर इस तरह के धार्मिक आयोजन किये गए जिसने देश के लिए चिंता बढाने का काम किया.
आज देश में कोरोना के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. हाल यह है कि अब तक देश में कोरोना के मामले बढ़कर 81000 पार पहुंच चुके हैं. मरने वालों का आकड़ा ढाई हजार से ऊपर हो गया है ऐसे में सवाल है कि इस तरह के आयोजन की अनुमति आधिकारिक तौर पर कैसे दी जा सकती है? किन्तु सवाल सिर्फ आधिकारिक अनुमति की ही नहीं है. सवाल है हम, आप, सबका. आखिर कब तक हम धार्मिक अंधविश्वास के नाम पर ऐसी गलतियां करते रहेंगे? हमारे पास जमात में आए धर्मान्धों का उदाहरण है. इसी प्रकार हर धर्म के धर्मान्धो के उदहारण देखे जा सकते हैं.
लाकडाउन खुद में धर्म न बन जाए
भारत में खासकर यह देखा गया है कि किसी भी समस्या को तार्किक तौर पर ख़त्म करने की जगह उसे आस्था का बिंदु बना दिया जाता है. पुराने समय में कई तरह की गैरजरुरी परम्पराएं ऐसी ही शुरू होती आई. कुछ आते आते ख़त्म हुई कुछ हमारे साथ चिपक गई. उदाहरण सती प्रथा. मात्र योनि को महिला और घर की इज्जत मानना तथा भाईयों के बंटवारे में किसी महिला का हिस्सा न बने इसलिए यह प्रथा शुरू हुई.
आज भी गांव देहात में धर्म के नाम पर ऐसे कुकर्म और काण्ड होते है जिसमें इंसानी जान मात्र खिलौना बन के रह जाती है. कई जगह जलते अंगारों में छोटे छोटे बच्चों को धकेल दिया जाता है. देवी देवता के नाम पर हिंसक कर्मकांड किये जाते हैं. तथाकथित आधुनिक शहर भी इससे अछूते नहीं है जिसे गांव में कुकर्म कह कर पुकारा जाता है वह शहरों में हवन, पाठ, कथा कह कर मॉडर्न हो जाता है. सदियों से धर्म सफलतापूर्वक अपने भक्तों को धर्म के लिए मरने के लिए उकसाता रहा है. धर्म के नाम पर भोले भक्तों से पहले से ही जोर शोर से ठगी चलती थी और अब तो ठगी का पूरा काम योजनाबद्ध शुरू हो गया है.
लाकडाउन के समय में जहां कोरोना महामारी को सही तथ्यों और तर्कों से ख़त्म करने की जरुरत थी वहां खुद प्रधानमंत्री मोदीजी ने इस बिमारी को आस्था से जोड़ दिया. जब भी मोदीजी इस दौरान टीवी पर दिखे वैज्ञानिक तर्कों की जगह धार्मिक लफ्फाजी करते हुए देखे गए. यही कारण तो था कि एक बार लोगों ने जम कर भीड़ लगा कर घरों के बर्तन फोड़ डाले. और एक बार दिए जलाकर पटाखे फोड़ डाले. उल झुलूल सन्देश फोन पर यहां वहां तैरने लगेंगे. कुछ लोगों ने तो हर शाम दिया जलाने और बर्तन बजाने का कार्यक्रम चालू भी कर दिया और उसके लिए सुनियोजित तर्क भी प्रस्तुत करने लगे. यहां तक कि इस वायरस को मसलमानों से जोड़ा जाने लगा. एक जगह से तो कोरोना वायरस का रावणरूपी पुतला बना दिया गया. ऐसे में चिंता बनती है कहीं यह लाकडाउन खुद में धर्म न बन जाए.
विज्ञान जरुरी है
जाहिर है आज पूरी दुनिया की आश विज्ञान पर टिकी है. हर देश की सरकारें अपने छोटे बड़े दायरों में इस महामारी से निजात पाने के लिए वैक्सीन की खोज में लगी है. जिसके लिए जाहिर है विज्ञान ही एकमात्र रास्ता है. दुनिया में लाखों स्वास्थयकर्मी अपनी जान जोखिम में डाल कर वैज्ञानिक तरीके से लोगों की जान बचा रहे हैं. यह इसलिए कि वैज्ञानिक से लेकर डॉक्टरों तक हर कोई जानता है कि बिमारियों को गोबर या गोमूत्र से नहीं बल्कि वैज्ञानिक नजरिये से ही हल किया जा सकता है.
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह वो आपातकालीन समय है जब तमाम धार्मिक स्थल बंद कर दिए गए हैं और दुनिया में हर जगह एकमात्र दरवाजा विज्ञान का खोला गया है. चाहे किसी देश की कितनी ही धार्मिक कट्टर सरकार क्यों न हो उसको तक सिर्फ और सिर्फ अस्पतालों को अनिवार्य तौर पर खोलने का निर्देश देना पड़ा है. इसलिए यही वह क्षण है जब आंखो के सामने छाया अंधविश्वास का कोहरा हटाया जा सकता है और भौतिक जरूरतों जैसे बेहतर स्वास्थय, शिक्षा, रोजगार इत्यादि पर गहन चिंता समस्त लोगों द्वारा की जाए. यही कारण है कि न सिर्फ आधिकारिक तौर पर अनुमति देने वाले वरन अनुमति लेने वाले लोगों की भी इस पर पूरी तरह जिम्मेदारी बनती है कि कोरोना से आए बदलाव को समझें और ऐसे कर्मकांडों को सिरे से न कारें.
हिमालयी राज्य उत्तराखंड इन दिनों चर्चा में बना हुआ है. कारण है इस राज्य में हो रहा रिवर्स माइग्रेशन. पहले यह राज्य माइग्रेशन के चलते काफी संकट की स्थिति से गुजर रहा था. लाखों लोग इस खूबसूरत हिमालयी श्रंखला से मजबूरन टूट कर शहरों की तरफ भाग रहे थे. अब कोरोना के चलते काफी लोग वापस अपने गृहराज्य जाने की इच्छा सरकार द्वारा किये जा रहे पंजीकरण से जता चुके हैं.
उत्तराखंड सरकार की तरफ से 12 मई मंगलवार को प्रेस वार्ता में बताया गया कि भिन्न राज्यों से 1,98,584 प्रवासी लोग अपने गृहराज्य वापस आने के लिए पंजीकरण करवा चुके हैं. जिसमें से अब तक सबसे अधिक हरियाणा से 13,799, उत्तरप्रदेश से 11,957 इसी प्रकार दिल्ली से 9,452, चंडीगढ़ से 7,163, राजस्थान से 2,981, पंजाब से 2,438 और गुजरात से 1060 तथा अन्य राज्य से लगभग 1000 लोगों को लाया भी जा चुका है. हांलाकि यह संख्या अभी और भी बढ़ सकता है. वहीँ एक जिले से दूसरे जिले (यानि अंतर राज्यीय माइग्रेशन) जाने वाले लोगों की संख्या 52,621 है.
उत्तराखंड के परिवहन सचिव ने प्रेस वार्ता में वापस गृहराज्य आने वाले प्रवासियों को लेकर आकड़े सामने रखे. जिसमें उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सरकार द्वारा अभी तक यानी सोमवार तक कुल 51,394 प्रवासी लोगों को वापस गृहराज्य लाए जा चुका हैं.
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इस बीच कई ट्रेनें अलग अलग राज्यों से प्रवासी लोगों को लेकर निकल चुकी है. तथा कई राज्यों से लाने की प्रक्रिया जारी है. जिसमें सभी की थर्मल स्क्रीनिंग करवा कर जांच की गई है. जिसके बाद उन्हें अपने गांव के लिए रवाना किया गया. इससे यह तो समझ आ रहा है कि कोरोना काल में प्रवासियों की बड़ी संख्या में रिवेर्स माइग्रेशन देखने को मिल रही है लेकिन क्या उत्तराखंड सरकार बढ़ते पलायन संकट के खिलाफ इस मोके का फायदा उठा पाएगी?
पलायन के कारण ‘भुतहा गांव’ बनने की नौबत
उत्तराखंड की आबादी लगभग 1 करोड़ 20 लाख के आसपास है. ग्रामीण विकास प्रवासी आयोग के मुताबिक़ उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से 36.2 प्रतिशत अबादी माइग्रेंट कर चुकी है. यह अपने आप में भयावह आकड़ा है. रिपोर्ट के अनुसार हर दिन राज्य से ओसतन 138 लोग दूसरे राज्यों में शहरों की तरफ पलायन करते हैं. जिसमें ओसतन 33 लोग ऐसे है जो कभी मुड़ कर वापस नहीं आते यानी पूरी तरह से विच्छेद हो जाते हैं, और बाकी ओसतन 105 की संख्या में लोगों का समय समय पर आना जाना लगा रहता है.
पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ वर्ष 2018 में ही 1700 गांव भुतहा हो चुके हैं, यानी गांव में इंसानी जीव वहां रहा नहीं. पूरा गांव का गांव खाली हो चुका है. इसके अलावा 1000 ऐसे गांव हैं जहां 100 से भी कम लोग बचे हैं. इसी साल लगभग 3900 गांव से लोगों का पलायन हो चुका है. कुछ गांव ऐसे हैं जहां 10-12 लोग ही रह रहे हैं वो भी बुजुर्ग जो शायद उन गांव की अंतिम कड़ी हो. हालत यह है कि यहां के निवासी जो राज्य से बाहर जा चुके हैं उनका पर्यटक के तौर पर ही अपने घरों में कभी कभार आना होता है.
सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 सालों में लगभग 5 लाख के आसपास लोग उत्तराखंड से पलायन कर चुके हैं. जिसमें 28 प्रतिशत 25 साल से कम उम्र, 42 प्रतिशत 26 से 35 की उम्र तथा 29 प्रतिशत 35 से ऊपर उम्र के लोग हैं. रिपोर्ट के अनुसार कई गांव में जनसंख्या 50 प्रतिशत से कम हो चली है. वहीँ ‘इंटीग्रेशन माउंटेन इनिशिएटिव’ के अनुसार 35 प्रतिशत आबादी वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अपना पैतृक गांव छोड़ चुके हैं.
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आईएमआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 32 लाख लोग अपना घर छोड़ पलायन कर चुके हैं. यह स्थिति वर्ष 2000 में राज्य के अस्तित्व में आने के बाद अधिक गहराने लगा. जो उत्तराखंड की कुल आबादी के अनुपात में बहुत बड़ी संख्या है. इस बीच 2001 से 2011 के बीच उत्तराखंड में पलायन के पोड़ी और अल्मोरा जिले में जनसंख्या में कमी भी देखने को मिली है.
पलायन होने की वजह
पलायन के कारणों में मूलभूत सुविधाओं की कमी सबसे ज्यादा सामने देखने को मिली है. जिसमें राज्य के लोगों को रोजगार की समस्या सबसे अधिक झेलनी पड़ती है. रोजगार के नाम पर उत्तराखंड की ग्रामीण आबादी के अधिकतम युवा 17 से 24 साल की उम्र तक आर्मी भर्ती के लिए जीतोड़ कोशिशों में लगे होते हैं अन्यथा साथ में नाममात्र की डिग्री करकुरा शहरो में पलायन कर जाते हैं. यही कारण भी है कि 25 से 35 उम्र के युवा सबसे ज्यादा पलायन की स्थिति में आते हैं. हालत यह है कि राज्य से 50.16 प्रतिशत प्रवासी लोग रोजगार के कारण ही प्रदेश से पलायन कर रहे हैं.
इसके अलावा सड़कें, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा स्वास्थय इत्यादि कई ऐसी चीजे है जो पलायन होने के कारणों में से है. एक हकीकत यह भी है कि ग्रामीण इलाकों में गांव छोटी छोटी आबादी में दूर दूर बंटे होते हैं. फलस्वरूप सरकार को इन इलाकों का विकास करना मुश्किल लगता है. सरकार खुद जनसंख्या को कंसोलिडेट करना चाह रही है. ताकि एक ही जगह पर सुविधा मौहैया कर पाए. यह कारण भी है कि शहरी इलाकों के मुकाबले गांव में लोगों को सरकार की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है.
सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों की अनदेखी में तथा सुविधाओं की चाव में ग्रामिण इलाकों में एक बड़ी आबादी अंतर राज्यीय पलायन करने लगे हैं. लोग ग्रामीण इलाकों से निकल कर राज्य के भीतर कस्बों, तहसीलों, जिला मुख्यालयों तथा छोटे छोटे टाउन शहरों में आने लगे हैं जैसे रामनगर, कोटद्वार, रूडकी, अल्मोरा, श्रीनगर, देहरादून इत्यादि.
पलायन से राजनीति शहर केन्द्रित हो चली है
जाहिर है राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों की जनसंख्या में आई कमी के कारण उत्तराखंड की राजनीति भी बहुत प्रभावित हुई है. राजनीति में नारों से लेकर कार्यकारी नए बने कस्बों, तहसीलों, जिला मुख्यालयों के इर्दगिर्द केन्द्रित होने लगी है. वर्ष 2002 में परिसीमन के बाद जनसंख्या कम होने से ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्रों की सीटें 40 से घटकर 34 हो गई थी, और शहरी क्षेत्रों की सीटें 30 से बढ़कर 36 हो गई.
जनसंख्या के आधार पर किया गया परिमीसन ने ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कम कर दिया है. परिसीमन का यह बिंदु आज वर्ष 2002 के बाद फिर से राज्य के सामने खड़ा हो गया है. जाहिर है इस बार भी यही हाल हुआ तो ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व लगभग ख़त्म हो जाएगा. इससे न सिर्फ विधानसभा में ग्रामीण आवाज दबने खतरा बढेगा बल्कि उत्तराखंडी बोली और संस्कृति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
उत्तराखंड के अलावा बाकी पर्वतीय राज्य भी माइग्रेशन से ग्रसित
माइग्रेशन की समस्या महज उत्तराखंड में ही विकराल नहीं है बल्कि तमाम पर्वतीय राज्य इसकी चपेट में है. बात अगर हिमांचल की हो तो पलायन आयोग के अनुसार हिमांचल प्रदेश में 36.1 प्रतिशत (यानी उत्तराखंड से मात्र दशमलव 1 कम) लोग अपने गृहराज्य से माइग्रेंट कर चुके हैं. उसी तौर पर सिक्किम में 34.5 प्रतिशत लोग और जम्मू कश्मीर में 17.8 प्रतिशत अपने राज्यों से रोजगार तथा बाकी सुविधाओं को लेकर माइग्रेंट कर चुके हैं.
जाहिर है इसमें सरकारों की की नाकामी तो है कि उन्होंने राज्यों खासकर ग्रामीण इलाकों में रोजगार उत्पादन का काम ठीक से नहीं किया. आज भी बचे कुचे पर्वतीय ग्रामीण लोगों को गांव गांव से सड़क तक आने में 1 घंटा पैदल तक चलना पड़ता है. अपात्कालिक स्थिति में अस्पताल के लिए 100-200 किलोमीटर किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. और बहुत बार वहां से भी दुसरे राज्यों खासकर दिल्ली महानगर की तरफ आना ही पड़ता है. लेकिन इसके साथ मामला यह भी है कि जितना खूबसूरत हिमालय पर्वत श्रंखला दिखाई पड़ता है उतना कष्टदायक जीवन वहां रह रहे लोगों को झेलना भी पड़ता है. सीढ़ीनुमा खेत होने के कारण आधुनिक तकनीक यानि ट्रेक्टर पहाड़ी इलाकों तक पहुँच नहीं पाता, पूरी खेती मोसम और इंसानी मेहनत पर टिकी होती है.
रिवेर्स माइग्रेशन से नई उम्मीद?
आज कोरोना महामारी के कारण पुरे देश की स्थिति उलटपुलट हो रखी है. जहां इस समय देश में महामारी के कारण लगभग 74,000 मामले सामने आ चुके हैं वहीँ 2,415 लोग अब तक जान गवां चुके हैं. ऊपर से इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचा दी है. देश इस समय कठोर तालाबंदी से भी गुजर रहा है. जिसके कारण लाखों प्रवासी मजदूर फटेहाल स्थिति में अपने घरगांव जाने को मजबूर हुए. किन्तु देश में हुए इस प्रवासी मजदूरों का रिवर्स माइग्रेशन का प्रभाव क्या हर राज्यों के लिए एक जैंसा है?
जाहिर है उत्तराखंड और बाकी पर्वतीय राज्यों को इस विषय पर गहन मंथन की आवश्यकता है. इन राज्यों को बढ़ते पलायन की स्थिति का आंकलन करने की इस समय सख्त जरुरत है. आज जो लोग त्रस्त होकर वापस अपने गांव जाने की स्थिति में आएं हैं वे जीने के न्यूनतम विश्वास के साथ अपने घरों की तरफ मुड़े हैं. उनमें से बहुत से लोग फिलहाल वापस शहरों की तरफ आने की मुद्रा अथवा इच्छा में नहीं है.
आज बड़ी संख्या में पर्वतीय लोगों ने फिर से अपने राज्य पर विश्वास किया है. ऐसे समय में प्रदेश की राज्य सरकार चाहे तो इस विश्वास का सकारात्मक उपयोग ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्रों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भरपूर कर सकती है. ऐसे समय में स्वरोजगार के उपायों के माध्यम से तथा ग्रामीण इलाकों में सहकारी कार्यों को बढ़ावा दिया जा सकता है. पहाड़ों में खेती को आसान बनाने के लिए आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल को सुगम बनाया जा सकता है. फिलहाल वापस आ चुके लोगों की बुनियादी जरुरत को ध्यान में रखते हुए नए अवसर मुहैय्या किये जाने चाहिए. यही मोका हो सकता है जब सरकार पहाड़ों से पलायन को रोकने के लिए ठोस कदम उठा कर बाकी शहरी प्रवासियों को वापस आने के लिए प्रेरित करसकती है. वरना पलायन के संकट पर सरकार छाती तो पहले भी पीट रही थी, आगे भी पीट लेगी.