पूरी दुनिया में अब तक कोरोना वायरस की वजह से संक्रमितों की संख्या 45.6 लाख तक पहुंच गई है जबकि 3.08 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. यह आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है. इसमें सुपर पावर कहलाने वाले देश अमेरिका की हालत सबसे ज़्यादा चिंताजनक है. अमेरिका में कोरोना वायरस हर बढ़ते दिन के साथ भयानक रूप लेता जा रहा है. जॉन्स हॉकिंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक, अमेरिका में मरने वालों की कुल संख्या 88,237 पहुंच चुकी है. यहाँ 14.7 लाख लोग कोरोना संक्रमित हैं. भारत में अबतक इस संक्रमण से 85,940 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 2,752 की मौत हो चुकी है.

कोरोना वायरस पर नकेल कसने के प्रयास यूं तो सारी दुनिया में बहुत गंभीरता से चल रहे हैं. प्लाज्मा थेरेपी से लेकर इसका वैक्सीन बनाने के लिए तमाम प्रयोग हो रहे हैं. इज़राइल और इटली ने तो ये दावा भी किया है कि वे कोरोना का वैक्सीन जल्दी ही मार्किट तक लाने वाले हैं मगर इन तमाम दावों पर विश्व स्वास्थ संगठन के बयानों ने पानी फेर दिया है और ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या बनने वाले वैक्सिंग वास्तव में कोरोना पर अंकुश लगा पाएंगे?

कोरोना वायरस को लेकर विश्व स्वास्थ संगठन के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि हो सकता है कि यह वायरस अब इस दुनिया से कभी न जाए, जैसे कि एचआईवी आज भी जीवित है. वो हमारे बीच ही है और इसका वैक्सीन आज तक नहीं बन पाया.

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उल्लेखनीय है कि चार दशकों से अब तक एचआईवी से करीब 3.2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन दुनियाभर के विज्ञानविद उसका वैक्सीन नहीं ढूंढ पाए हैं. वहीं, डेंगू की बात की जाए तो यह वायरस भी हर साल चार लाख लोगों को प्रभावित करता है. हालांकि, कुछ देशों का दावा है कि उनके पास डेंगू का वैक्सीन मौजूद है.

डब्ल्यूएचओ के शीर्ष अधिकारी डॉ. माइकल जे रायन का कहना है कि कोरोना वायरस भी दुनिया के उन वायरस की तर्ज पर हो सकता है, जो कभी नहीं जाएगा, जैसे कि एचआईवी.एचआईवी आज तक कहीं नहीं गया. हम इस वायरस के साथ रह रहे हैं और हमने इसके लिए थेरेपी और इसके बचाव के उपाय ढूंढे और अब लोग पहले की तरह इससे डरते नहीं हैं. हम अब एचआईवी मरीजों को स्वस्थ और लंबी जिंदगी दे पा रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि कोई भी यह बता सकता है कि यह बीमारी कब खत्म होगी.

डब्ल्यूएचओ हेल्थ इमर्जेंसीज प्रोग्राम के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर डॉ. रायन कहते हैं कि कोरोना भी हमारे समुदाय में कभी न खत्म होने वाला वायरस बन सकता है इसलिए हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए.

रायन कहते हैं, ‘मैं इन दो बीमारियों की तुलना नहीं कर रहा हूं लेकिन मैं सोचता हूं कि यह जरूरी है कि हम वास्तविकता को मानने के लिए भीतर से तैयार रहें. मुझे नहीं लगता कि कोई इस बात की भविष्यवाणी कर सकता है कि कब और कैसे यह बीमारी गायब हो जाएगी. कोई इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता है कि यह बीमारी कब खत्म होगी.

रायन ने बिना पर्याप्त सर्विलांस उपायों के लॉकडाउन के नियमों में छूट देने को लेकर भी कड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने कहा, ‘हमें इस बात का ख्याल रखना होगा कि लॉकडाउन हटने के बाद लोगों की मौत में इजाफा न हो. हमारे सामने एक नया वायरस है जो लोगों के अदंर पहली बार प्रवेश कर रहा है और इसलिए यह अनुमान लगाना बहुत कठिन है कि हम कब उस पर हावी हो पाएंगे. यह वायरस कभी भी जाने वाला नहीं है.’

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डॉ. रायन से पहले विश्व स्वास्थ संगठन में कोविड-19 के विशेष दूत डॉ.डेविड नैबोरो ने भी कहा था, ‘सबसे बुरी स्थिति यह हो सकती है कि कोरोना के खिलाफ कभी कोई वैक्सीन ही न हो.’ उन्होंने कहा कि लोगों की उम्मीदें बढ़ रही हैं और फिर खत्म हो रही हैं, क्योंकि आखिरी मुश्किलों से पहले ही कई समाधान फेल हो रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन का बयान भी निराश करने वाला है. स्वामीनाथन कहती हैं कि कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने में चार से पांच साल का समय लग सकता है. मगर उम्मीद है कि एक प्रभावी टीके से वायरस का अंत हो सकता है. शायद अगले चार से पांच सालों के अंदर हम इसे नियंत्रित कर पाएंगे.

उन्होंने कहा कि प्रभावशाली कारकों में यह देखना होगा कि क्या वायरस मैच्योर (परिपक्व) होता है. इसके अलावा रोकथाम और वैक्सीन विकास के उपाय करने होंगे. उन्होंने कहा कि इसका टीका बनाना सबसे बेहतरीन उपाय है लेकिन इसकी सुरक्षा, प्रभाव, उत्पादन और समान वितरण को लेकर बहुत सारे किंतु-परंतु हैं.

विश्व स्वास्थ संगठन का मानना है कि कोरोना से निपटना जादू का खेल नहीं  है. यह  इंसानी दुनिया के लिए दुश्मन नंबर एक है. डब्ल्यूएचओ ने चेताया है कि लॉकडाउन में मर्जी से छूट और हल्के प्रतिबंध लगाकर इम्यूनिटी बढ़ने के बारे में सोचना भी गलत बात होगी. संगठन का कहना है कि कोई भी देश कोविड-19 से मुकाबले के लिए अपनी आबादी पर कोई “जादू” चलाकर उसमें इम्यूनिटी नहीं भर सकता है.

हर्ड इम्यूनिटी बकवास : डब्ल्यूएचओ

बिना वैक्सीन कोरोना वायरस से लड़ रही दुनिया के लिए अभी इम्यूनिटी और एंटीबॉडीज ही उम्मीद की किरण हैं, लेकिन, कई हफ्तों से ‘हर्ड इम्यूनिटी’ पाने के नाम पर लगातार एक बहस जारी है. हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधकता दरअसल एक पेचीदा गणितीय सोच है. कुछ वैज्ञानिक इसे कोरोना नियंत्रण के लिए सही भी मान रहे हैं. उनका कहना है कि जब 80-95 फ़ीसदी इंसानी आबादी कोरोना से संक्रमित हो जायेगी तो इस वायरस को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलेगा और उसके बाद ये इंसानी दुनिया को छोड़ कर चला जाएगा.  लेकिन डब्ल्यूएचओ ने सामूहिक प्रतिरोधकता या हर्ड इम्यूनिटी के इस नए विचार या अवधारणा को खतरनाक बताया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में हेल्थ इमरजेंसी डायरेक्टर डॉ माइकल रेयान ने दुनिया की सरकारों की उस सोच की भी आलोचना की है जिसमें वे लॉकडाउन में मर्जी से छूट और बेहद हल्के प्रतिबंध लगाकर यह सोच रहे हैं कि अचानक से उनके देशवासी “जादुई इम्यूनिटी” प्राप्त कर लेंगे.

डॉ. रेयान ने चेतावनी देते हुए कहा है कि, ‘यह सोचना गलत था और आज भी है कि कोई भी देश कोविड-19 के लिए अपनी आबादी पर कोई “जादू” चलाकर उसमें इम्यूनिटी भर देगा. इंसान जानवरों के झुंड नहीं हैं. हर्ड इम्यूनिटी की बात तब करते हैं, जब यह देखना होता है कि किसी आबादी में कितने लोगों को वैक्सीन की जरूरत है. यह एक बहुत ही खतरनाक अंकगणित होगा. इससे लोग, उनका जीवन और उनकी पीड़ा का समीकरण उलझ जाएगा. जिम्मेदार सदस्य देशों को हर एक इंसान को महत्व देना चाहिए. कोरोना बेहद गंभीर बीमारी है. यह दुश्मन नंबर एक है. हम इसी बात को बार-बार कह रहे हैं.’

डब्ल्यूएचओ की कोविड -19 रिस्पांस टीम की  तकनीकी प्रमुख डॉ मारिया वान केरखोव ने भी कहा है कि शुरुआती आंकड़ों से पता चला है कि अभी जनसंख्या का बहुत कम स्तर कोरोना से संक्रमित है. लोगों में कम अनुपात में एंटीबॉडीज हैं. हम हर्ड इम्यूनिटी शब्द का इस्तेमाल तब करते हैं जब लोगों को वैक्सीन लगाने के बारे में सोचते हैं.

 

क्या है हर्ड इम्यूनिटी

 

हर्ड इम्यूनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्यूनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता. इस तरह हर्ड इम्यूनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी में  बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना.

इस वैज्ञानिक आइडिया के अनुसार, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की इम्यूनिटी उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है. इस दौरान जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं. यानी उनमें प्रतिरक्षा के गुण पैदा हो जाते हैं. इसके बाद झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुंचना बहुत मुश्किल होता है. एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है. इसे ही ‘हर्ड इम्यूनिटी’ कहा जा रहा है.

हर्ड इम्युनिटी महामारियों के इलाज का एक पुराना तरीका है. व्यवहारिक तौर पर इसमें बड़ी आबादी को नियमित वैक्सीन लगाए जाते हैं जिससे लोगों के शरीर में प्रतिरक्षी एंटीबॉडीज बन जाती हैं. जैसा चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ. दुनियाभर में लोगों को इनकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं.

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि किसी देश की आबादी में कोविड-19 महामारी के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कोरोना वायरस उसकी करीब 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर चुका हो. वे मरीज अपने शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाकर और उससे लड़कर इम्यून हो गए हों.

विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 संक्रमण के मामलो में तो मौजूदा हालात को देखते हुए 60 से 85 प्रतिशत आबादी में प्रतिरक्षा आने के बाद ही हर्ड इम्यूनिटी बन पाएगी. पुरानी बीमारी डिप्थीरिया में हर्ड इम्यूनिटी का आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में  85 प्रतिशत और खसरा में करीब 95 प्रतिशत है.

मार्च में पहली बार ब्रिटिश सरकार ने उम्मीद जताई थी कि उनके यहां फैल रहे कोरोना को हर्ड इम्यूनिटी से नियंत्रित किया जा सकता है. इसके समर्थकों की ओर से तर्क दिया गया था कि वायरस को आबादी में फैलने दिया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इम्यून हो सकें. हालांकि बाद में देश के स्वास्थ्य सचिव मैट हैनकॉक ने इस बात से इनकार किया कि यह सोच कभी भी सरकार की रणनीति का हिस्सा थी.

दुनिया में सिर्फ स्वीडन एकमात्र देश है जहां पर बिना वैक्सीन के हर्ड इम्युनिटी को अपरोक्ष रूप से आजमाया गया है. वहां के 2000 से भी ज्यादा रिसर्चर्स ने बकायदा एक याचिका पर दस्तखत करके सरकार से कहा कि हमें हर्ड इम्युनिटी पर आगे बढ़ना चाहिए.

स्वीडन ने अपने यहां छोटे बच्चों के लिए 9वीं कक्षा तक के स्कूल, रेस्तरां, स्टोर, पब, बार और अन्य व्यवसाय भी बंद नहीं किए हैं. सवा करोड़ की आबादी वाले इस देश में 70 साल से ऊपर के बुजुर्गों का खास ध्यान रखा गया और सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन हुआ. अब दुनियाभर में इसी मॉडल की चर्चा हो रही है.

स्वीडन में कोरोना वायरस के 29 हजार 677 केस सामने आए हैं जिसमें से 4 हजार 971 लोग ठीक हो गए हैं जबकि 3 हजार 674 लोगों की मौत हो गई. आंकड़ाें के लिहाज से स्वीडन में डेथ रेट 40 प्रतिशत और रिकवरी रेट 60% है.

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