कोरोना वायरस एवं लॉकडाउन में आर्थिक तंगी से गुजर रहे परिवारों को राहत देते हुए सरकारों ने इस साल निजी स्कूलों की फीस वृद्धि पर रोक लगा दी है. लेकिन अभिभावकों की परेशानी कम नहीं हुई हैं. लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं, इसके बाद भी निजी स्कूलों में किताबों के जरिये लूटने का धंधा शुरू हो गया हैं.

स्कूल संचालक अभिभावकों के मोबाइल पर मैसेज भेज कर उन पर किताब खरीदने का दबाव बना रहे हैं. किताब खरीदना तो ठीक है. लेकिन अभिभावकों की समस्या यह है कि हर निजी स्कूल संचालक ने अपनी स्टेशनरी दुकान फिक्स कर रखी है. उस विद्यालय की किताबें सिर्फ उस दुकान पर ही मिलती हैं. लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही के चलते फिक्स दुकान से अभिभावक महंगी किताब खरीद कर लुटने को मजबूर हैं.

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50 फीसदी कमीशन का खेल

हर बड़े प्राइवेट स्कूल अलग-अलग लेखकों की पुस्तकें सिर्फ इसलिए चलाते हैं कि उन्हें विक्रेता से मोटा कमीशन मिलता रहे. अभिभावकों का कहना है कि इस साल भी पुस्तकों के दाम 20 फीसदी तक बढ़ा दिए गए हैं. उनकी मजबूरी यह है कि दूसरी दुकानों में बुक न मिलने के कारण वह फिक्स दुकान से महंगी किताबें खरीदने को मजबूर हैं.

अक्टूबर में शुरू हो जाता है खेल

जयपुर शहर के नामी निजी विद्यालय से जुड़े सूत्रों ने बताया, ” स्कूल फीस से अधिक कमीशन किताब विक्रेता व प्रकाशक से कमाते हैं. कमीशन फिक्सिंग का खेल सितंबर-अक्टूबर में शुरू हो जाता है. प्रकाशक स्कूल में आकर छात्र संख्या के हिसाब से सिलेबस तय करते हैं और उनकी छपाई का कार्य शुरू कर देते हैं.

हर साल बदल देते हैं किताब

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सीबीएसई कोर्स संचालित करने वाले निजी विद्यालय बड़े पुस्तक विक्रेताओं से मिलकर अभिभावक को किताबों का महंगा सेट बिकवाते हैं. दूसरे साल इन किताबों का उपयोग न हो पाए, इसलिए चालबाजी कर स्कूल संचालक हर साल सेट की 2-3 किताबें बदल देते हैं.

शिकायत के बाद भी नहीं होती कार्रवाई

लॉकडाउन के चलते आर्थिक तंगी से गुजर रहे अभिभावक स्कूल संचालकों की मिलीभगत के कारण किताबों का महंगा सेट खरीदने को मजबूर हैं. अभिभावक इस परेशानी की शिकायत करने से बच रहे हैं. निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाले एक अभिभावक ने कहा कि शिकायत करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती. उल्टा, शिकायत करने के बाद स्कूल संचालक बच्चों पर दबाव बनाते हैं. इसलिए किताबों का महंगा सेट खरीदने के बाद भी अभिभावक मौन हैं.

मैसेज भेज किताबें खरीदने का बना रहे दबाव

अभिभावकों के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर निजी स्कूलों द्वारा मैसेज भेजा जा रहा हैं कि जल्द से जल्द किताबे तथा स्टेशनरी खरीदें. वही इस तरह के मैसेज को देख अभिभावकों के पसीने छूटने लगे. वही अभिभावकों द्वारा स्कूलों के ऑफिस से संपर्क किया जा रहा हैं तो वो स्पष्ट कह रहे हैं कि किताबें और स्टेशनरी लेना अनिवार्य है, अन्यथा बच्चों को आगे जाकर दिक्कत आएगी.

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