एक तरफ देश में कोरोना के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे. हर दिन हजारों की संख्या में कोरोना मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. वहीँ दूसरी तरफ धर्म में अंधे हुए लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे. ऐसी ही धार्मिक अंधता का मामला फिर कर्नाटक से सामने आया है जहां सैकड़ों लोग धार्मिक आयोजन के तौर पर मेले में इकठ्ठा हुए.
कर्नाटक स्थित रामनगर के कोलागोंडनाहल्ली गांव में गुरुवार को एक मेले का आयोजन किया गया जहां सैकड़ों की संख्या में लोग इकठ्ठा हुए. न्यज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, लोगों को मेले के आयोजन के लिए पंचायत विकास अधिकारी एनसी कलमट ने अनुमति दी थी. इस घटना की वीडियो जब सोशल मीडिया में वायरल हुई तो उसके बाद रामनगर के उपायुक्त ने एनसी कलमट को निलंबित कर दिया.
सोशल डिस्टेंस की उड़ी धज्जियां
देश में लाकडाउन के चलते सामाजिक दूरी को नियमित तौर पर पालन करने की सख्त हिदायत दी गई थी. कम से कम एक मीटर की दूरी आपस में बनाने को कहा गया था. लेकिन वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि बड़ी संख्या में लोग वहां मौजूद थे. लोग एक दुसरे से बुरी तरह सट के खड़े थे. लोगों ने न तो सोशल डिस्टेंस का पालन किया था न ही मास्क लगाया था. वीडियो में सैकड़ों की भीड़ सर पर पूजा की थाल लिए देखे जा सकते हैं.
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पहले भी ऐसे मामले हो चुके हैं
इससे ठीक पहले 12 मई, मंगलवार को मध्यप्रदेश के सागर जिले के बांदा में जैन संत प्रणामसागर के स्वागत के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी. यह उन राज्यों में से है जहां कोरोना के 4000 से ऊपर मामले हो चले हैं. उस समय भी सोशल डिस्टेंसिंग की बुरी तरह धज्जियां उडी थीं. हजारों की संख्या में संत प्रणामसागर के शिष्य और अनुयाई अपने घरों से बाहर निकल पड़े. यहां भी बहुत से लोग बिना मास्क के नजर आए थे.
ऐसा ही मामला 16 अप्रैल को कर्नाटक के जिला कलबुर्गी से आया था, जहां सिधिलिंग्वेश्वर मेला का आयोजन किया गया था. चितपुर तालुका में यह मेला आयोजित किया गया जहां सैकड़ों लोग उमड़ पड़े थे. यहां स्थानीय शिव मंदिर में रथ आयोजन रखा हुआ था जहां रथ को खींचने की परंपरा है. इस धार्मिक आयोजन की भी सामान्य बात यह थी कि यहां भी सामाजिक दूरी को बुरी तरह नजरअंदाज किया गया. उस समय तो कोरोना के मामले इस इलाके से काफी संख्या में आ रहे थे और देश में पहली कोरोना की मौत इसी जिले से हुई थी.
धर्म के आगे लाकडाउन फैल
देश में बढ़ते कोरोना के खतरे को देखते हुए पुरे देश में तालाबंदी की गई थी. यह इसलिए की गई ताकि लोग घरों से गैरजरूरी तौर पर बाहर न निकलें और कोरोना की कड़ी को तोड़ी जा सके. सबसे जरुरी बात यह कि ऐसी चीजो पर विशेष तौर पर रोक लगाई गई जिसके माध्यम से भीड़ होने का खतरा बढ़ सकता है. यही कारण था कि पुरे देश के सभी धार्मिक स्थलों तथा आयोजनों पर पूरे तौर पर पाबन्दी लगा दी गई थी.
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देश के सभी बड़े से बड़े धार्मिक स्थल चाहे वह बालाजी मंदिर हो या स्वर्ण मंदिर, चाहे केथोलिक चर्च हो या जामा मस्जिद सभी जगह को लोगों के लिए बंद कर दिया गया था. लेकिन उसके बावजूद भी लोगों ने खुलकर लाकडाउन के नियमों को तोडा. समय समय पर इस तरह के धार्मिक आयोजन किये गए जिसने देश के लिए चिंता बढाने का काम किया.
आज देश में कोरोना के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. हाल यह है कि अब तक देश में कोरोना के मामले बढ़कर 81000 पार पहुंच चुके हैं. मरने वालों का आकड़ा ढाई हजार से ऊपर हो गया है ऐसे में सवाल है कि इस तरह के आयोजन की अनुमति आधिकारिक तौर पर कैसे दी जा सकती है? किन्तु सवाल सिर्फ आधिकारिक अनुमति की ही नहीं है. सवाल है हम, आप, सबका. आखिर कब तक हम धार्मिक अंधविश्वास के नाम पर ऐसी गलतियां करते रहेंगे? हमारे पास जमात में आए धर्मान्धों का उदाहरण है. इसी प्रकार हर धर्म के धर्मान्धो के उदहारण देखे जा सकते हैं.
लाकडाउन खुद में धर्म न बन जाए
भारत में खासकर यह देखा गया है कि किसी भी समस्या को तार्किक तौर पर ख़त्म करने की जगह उसे आस्था का बिंदु बना दिया जाता है. पुराने समय में कई तरह की गैरजरुरी परम्पराएं ऐसी ही शुरू होती आई. कुछ आते आते ख़त्म हुई कुछ हमारे साथ चिपक गई. उदाहरण सती प्रथा. मात्र योनि को महिला और घर की इज्जत मानना तथा भाईयों के बंटवारे में किसी महिला का हिस्सा न बने इसलिए यह प्रथा शुरू हुई.
आज भी गांव देहात में धर्म के नाम पर ऐसे कुकर्म और काण्ड होते है जिसमें इंसानी जान मात्र खिलौना बन के रह जाती है. कई जगह जलते अंगारों में छोटे छोटे बच्चों को धकेल दिया जाता है. देवी देवता के नाम पर हिंसक कर्मकांड किये जाते हैं. तथाकथित आधुनिक शहर भी इससे अछूते नहीं है जिसे गांव में कुकर्म कह कर पुकारा जाता है वह शहरों में हवन, पाठ, कथा कह कर मॉडर्न हो जाता है. सदियों से धर्म सफलतापूर्वक अपने भक्तों को धर्म के लिए मरने के लिए उकसाता रहा है. धर्म के नाम पर भोले भक्तों से पहले से ही जोर शोर से ठगी चलती थी और अब तो ठगी का पूरा काम योजनाबद्ध शुरू हो गया है.
लाकडाउन के समय में जहां कोरोना महामारी को सही तथ्यों और तर्कों से ख़त्म करने की जरुरत थी वहां खुद प्रधानमंत्री मोदीजी ने इस बिमारी को आस्था से जोड़ दिया. जब भी मोदीजी इस दौरान टीवी पर दिखे वैज्ञानिक तर्कों की जगह धार्मिक लफ्फाजी करते हुए देखे गए. यही कारण तो था कि एक बार लोगों ने जम कर भीड़ लगा कर घरों के बर्तन फोड़ डाले. और एक बार दिए जलाकर पटाखे फोड़ डाले. उल झुलूल सन्देश फोन पर यहां वहां तैरने लगेंगे. कुछ लोगों ने तो हर शाम दिया जलाने और बर्तन बजाने का कार्यक्रम चालू भी कर दिया और उसके लिए सुनियोजित तर्क भी प्रस्तुत करने लगे. यहां तक कि इस वायरस को मसलमानों से जोड़ा जाने लगा. एक जगह से तो कोरोना वायरस का रावणरूपी पुतला बना दिया गया. ऐसे में चिंता बनती है कहीं यह लाकडाउन खुद में धर्म न बन जाए.
विज्ञान जरुरी है
जाहिर है आज पूरी दुनिया की आश विज्ञान पर टिकी है. हर देश की सरकारें अपने छोटे बड़े दायरों में इस महामारी से निजात पाने के लिए वैक्सीन की खोज में लगी है. जिसके लिए जाहिर है विज्ञान ही एकमात्र रास्ता है. दुनिया में लाखों स्वास्थयकर्मी अपनी जान जोखिम में डाल कर वैज्ञानिक तरीके से लोगों की जान बचा रहे हैं. यह इसलिए कि वैज्ञानिक से लेकर डॉक्टरों तक हर कोई जानता है कि बिमारियों को गोबर या गोमूत्र से नहीं बल्कि वैज्ञानिक नजरिये से ही हल किया जा सकता है.
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह वो आपातकालीन समय है जब तमाम धार्मिक स्थल बंद कर दिए गए हैं और दुनिया में हर जगह एकमात्र दरवाजा विज्ञान का खोला गया है. चाहे किसी देश की कितनी ही धार्मिक कट्टर सरकार क्यों न हो उसको तक सिर्फ और सिर्फ अस्पतालों को अनिवार्य तौर पर खोलने का निर्देश देना पड़ा है. इसलिए यही वह क्षण है जब आंखो के सामने छाया अंधविश्वास का कोहरा हटाया जा सकता है और भौतिक जरूरतों जैसे बेहतर स्वास्थय, शिक्षा, रोजगार इत्यादि पर गहन चिंता समस्त लोगों द्वारा की जाए. यही कारण है कि न सिर्फ आधिकारिक तौर पर अनुमति देने वाले वरन अनुमति लेने वाले लोगों की भी इस पर पूरी तरह जिम्मेदारी बनती है कि कोरोना से आए बदलाव को समझें और ऐसे कर्मकांडों को सिरे से न कारें.