Download App

झंझावात: भाग 1

लेखक- राकेश भ्रमर 

पैसा जब रिश्तों के बीच आता है तो सब बदल जाता है. रीना इस बात को नहीं समझ पाई थी. जब समझी, तो बहुत देर हो गई थी, बीता वक्त अब हाथ नहीं आ सकता था…

रीना के पिता गिरधारी लाल सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. रिटायरमैंट के पहले इलाहाबाद में ही एक छोटा सा मकान बनवा लिया था. बड़े बेटे की नौकरी भी लगवा दी थी. लेकिन शेष दोनों बेटे और बेटी बेरोजगार ही रह गए थे. रीना बीए कर चुकी थी. वह उन की तीसरी संतान थी. उस की मां अधिक पढ़ीलिखी नहीं थी, साधारण गृहिणी थीं.

बड़े बेटे की शादी के बाद रीना की शादी के बारे में सोचा, जबकि उस से बड़ा एक भाई अभी तक अविवाहित था. परंतु वह बेरोजगार था. रिटायरमैंट के बाद उन्हें जो पैसा मिला था, उस से बेटी की शादी कर के निश्ंिचत हो जाना चाहते थे.

रीना के पिता सरकारी नौकरी में बहुत अच्छे पद पर नहीं थे, लेकिन चालाक किस्म के इंसान थे. रीना के लिए उन्होंने अनिल को पसंद किया था. वह सिविल इंजीनियर था और लोक निर्माण विभाग में असिस्टैंट इंजीनियर के पद पर तैनात था. उस के पिता नहीं थे. घर में बस उस की मां थीं. उस की चारों बहनों की शादी हो चुकी थी.

इस से अच्छा लड़का रीना के लिए कहां मिलता.

डाक्टरइंजीनियर लड़कों की दहेज की मांग बड़ी लंबी होती है. लेकिन गिरधारी लाल ने अपने दामाद और उस के रिश्तेदारों को पता नहीं क्या घुट्टी पिलाई कि रीना की शादी बिना दहेज के हो गई.

रीना जब ब्याह कर ससुराल आई, तो पति का बड़ा मकान देख कर दंग रह गई. पता चला, ससुरजी ने बनवाया था. वे भी राज्य सरकार में किसी अच्छे पद पर थे.

शादी के बाद रीना जब दूसरीतीसरी बार ससुराल आई, तो पता चला कि उस के पति की आय के कई स्त्रोत थे. हर तीसरेचौथे दिन अनिल नोटों की मोटी गड्डियां ले कर घर आता था.

उस की सास भी उस की मां की तरह बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं, सीधी थीं. धीरेधीरे उस ने महसूस किया कि सासुजी का झुकाव अपनी बेटियों की तरफ कुछ ज्यादा ही था. कोई न कोई बेटी सदा घर में बनी रहती, जैसे सभी ननदों ने आपस में तय कर रखा था कि बारीबारी से वे मायके आती रहेंगी.

यहां तक तो सब ठीक था. रीना को ननदों के अपने मायके आने पर एतराज नहीं था, परंतु उस ने महसूस किया कि जब भी कोई ननद आती, तो पैसों की डिमांड ले कर आती और जाते समय 10-20 हजार रुपए ले कर ही जाती. सासुजी बेटियों को पैसा देते समय यह न सोचतीं कि बेटियों की मांग जायज है या नाजायज.

उस की ननदों के बहाने भी वही गढ़ेगढ़ाए से होते, ‘वो कह रहे थे कि  इस बार एक कमरा बनवा लें. 50 हजार रुपए जोड़ कर रखे हैं. अम्मा, आप कुछ मदद कर दो तो कमरा बन जाएगा.’

‘बेटे का ऐडमिशन दून स्कूल में करवाना है. कई लाख लगेंगे. अम्मा, आप कुछ मदद कर देना.’

‘बहुत दिनों से घर में एसी लगवाने की सोच रही थी. अम्मा, आप कहो तो लगवा लूं.’

‘अम्मा, एक नई कार आई है. 8 लाख रुपए की है. दामादजी का बड़ा मन है लेने का. वैसे तो बैंक से फाइनैंस करवा रहे हैं, परंतु 2 लाख रुपए अपनी तरफ से देने पड़ेंगे.’

सभी का आशय यही होता था कि अम्माजी पैसे दें, तो ननदों के काम हो जाएं और अम्मा भी इतनी उदार कि उन के मुंह से, बस, यही निकलता-

‘ठीक है, कर दूंगी.’ यह वे ऐसे कहतीं जैसे कि उन के पास पैसों का कोई गड़ा हुआ खजाना हो. सच भी था. अनिल सारा पैसा ले कर मां के ही हाथ में देता था. रीना का तो जैसे वहां कोई अस्तित्व ही नहीं था या वह उस घर की सदस्य ही नहीं थी.

रीना को यह अच्छा नहीं लगता था कि कोई उस के पति की कमाई पर इस तरह ऐश करे. परंतु उस की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे इसे रोके, यह सिलसिला अपनेआप रुकने वाला नहीं था. पति से कहने में डरती थी, कहीं वे बुरा न मान जाएं. वह कशमकश में जी रही थी. शादी को अभी अधिक दिन भी नहीं हुए थे कि घर में अपना पूरा अधिकार जताए. घर के माहौल को समझने और उसे अपने पक्ष में करने के लिए सब से पहले पति को अपने काबू में करना होगा.

वह अपने पिता की तरह चालाक तो थी, परंतु खूबसूरती में थोड़ा कम थी, इसलिए अपने पति से दबती थी. अकसर वह सोचा करती, पति ने उस के साथ शादी करने के लिए हां कैसे कर दी, जबकि वे अच्छे पद पर थे और उस से ज्यादा गोरे व खूबसूरत भी. परंतु अब वह उस की पत्नी थी और इस घर की बहू.

अनिल का स्वभाव बहुत अच्छा था. किसी चीज में मीनमेख निकालने की उस की आदत नहीं थी. फिर भी पति से रीना ने कोई बात नहीं की. अगली बार जब वह मायके गई तो अपनी मम्मी से घर की एकएक बात विस्तार से बताई और अपने संशयों का समाधान पूछा.

उस की मम्मी चिंतित हो कर बोलीं, ‘‘बेटी, हम ने इसलिए नहीं तुम्हारे लिए इतना अच्छा कमाऊ पति ढूंढ़ा था कि तुम उस की संपत्ति को दूसरों के ऊपर लुटते हुए देखोगी. वह तुम्हारा घर है. वहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. दामादजी अच्छे पद पर हैं, अच्छा कमाते हैं, परंतु वे बहुत भोले हैं. उन के इसी भोलेपन का फायदा उन की बहनें उठा रही हैं. वे अपनी मां को पटा कर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं. ऐसा ही चलता रहा, तो तुम्हारे पति की सारी कमाई तुम्हारी ननदों के घर चली जाएगी और एक दिन तुम कंगाल हो जाओगी.’’

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ रीना ने अनजान बन कर पूछा.

‘‘अरे, तुम एक स्त्री हो. अपने स्त्रीहठ का प्रयोग करो. पति को काबू में करो और जो भी वे कमा कर लाएं, उस को अपने हाथों में रखो. सास के हाथ में गया, तो समझो बरसात का पानी है. कहीं भी बह कर चला जाएगा.’’

‘‘उन्हें कैसे काबू में करूं?’’

‘‘हाय दहया, तू जवान है. शादीशुदा है. पति के साथ रह चुकी है. अभी भी बताना पड़ेगा कि तुझे पति को कैसे काबू में रखना है. अरे, दोचार दिन उस से दूर रह. जब भी वह पास आने की कोशिश करे, मुंह बना कर उस से दूर चली जाओ. रात में भी उसे पास मत आने दो. बस, जब वह उतावला हो जाए, तो जो चाहे करवा लो.’’

रीना हौले से शरमाते हुए मुसकराई और मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया.

इस बार जब वह ससुराल गई तो बहुतकुछ सीख कर गई थी. उस के तेवर बदले हुए थे. वह पति से बात तो करती, परंतु उस के मुख से हंसी गायब हो गईर् थी, स्वर में रुखापन आ गया था. काम की व्यस्तता के चलते पति अनिल ने महसूस नहीं किया. परंतु जब रात में उस ने उसे अपनी आगोश में लेना चाहा, तो वह छिटक कर परे हो गई. अनिल को आश्चर्य हुआ. वह एक पल रीना को देखता रहा, जो बिस्तर के किनारे मुंह दूसरी तरफ कर के लेटी थी, परंतु उस का बदन हिलोरें मार रहा था, जैसे वह किसी बात को ले कर बहुत उत्तेजित हो. अनिल ने उस की कमर को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाने का प्रयास किया, परंतु रीना जैसे बिस्तर के किनारे चिपक गई थी.

 

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी ने लगाई तलाक की अर्जी, जानें क्या है पूरा मामला

बॉलीवुड एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी आलिया सिद्दीकी ने तलाक की अर्जी दाखिल की है. जिससे उनका पूरा परिवार परेशान और हैरान है. आइए जानते हैं नवाजुद्दीन की पत्नी ने आखिर क्यों तालाक की अर्जी दी है. क्या है इसके पीछे की वजह..

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की यह दूसरी शादी थी आलिया के साथ उनकी पहली सादी टूट चुकी थी, आलिया औऱ नवाजुद्दीन के दो बच्चे थें. हंसता खेलता पूरा परिवार था तभी अचानक परिवार में कुछ ऐसा हुआ जिससे पत्नी ने तलाक की अर्जी डाल दी.

ये भी पढ़ें-दीपिका कक्कड़ के कपड़ों पर यूजर्स ने उठाया सवाल तो मिला मुंहतोड़ जवाब

पत्नी ने नवाजुद्दीन और उनके भाई पर गंभीर आरोप लगाया है. वहीं कई ऐशी तस्वीर है जो नवाजुद्दीन और आलिया के प्यार को खूबसूरती से बयां कर रही है.

नवाजुद्दीन और आलिया हमेशा प्लान बनाकर बाहर घूमने जाते थें, दोनों साथ में खूब एंजॉय करते थें, दोनों अपने बच्चों की परवरिश भी साथ में करते थें. फिलहाल लॉकडाउन में दोनों अपने पैतृक गांव में  होम क्वारेंटाइन हैं. अभी पूरा मामला खुलकर सामने नहीं आया है कि इस तलाक के पीछे की खास वजह क्या है.

नवाजुद्दीन की पत्नी ने नवाज को अपने वकील के माध्यम से कानूनी नोटिस भेजी है.यह नोटिस सात मई को भेजी गयी थी.इसके अलावा नवाज की पत्नी आलिया ने भी नवाज को एक लंबा चोड़ा पत्र भेजा था,जिसका नवाज ने अब तक जवाब नही दिया है.  वकील की नोटिस और आलिया का पत्र कई जगह छप चुका है.

उसके बाद ग्यारह मई को नवाजुद्दीन सिद्दिकी अपनी मां,भाई,भाभी और दोनों बच्चों के साथ अपने गाॅंव बुढाना गए हैं और मंुबई पुलिस से उन्होेने 18 अगस्त 2020 तक वापस आने की इजाजत ली है. उनकी पत्नी आलिया मंुबई में हैं. आलिया अब अपने पुराने नाम अंजली पांडे के नाम से आगे की जिंदगी जीना चाहती हैं.

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन: 86 की उम्र में आशा भोसलें ने lanuch किया खुद का यूट्यूब चैनल

फिल्म‘‘मांझी’’में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने दशरथ मांझी का किरदार निभाया था,दशरथ मांझी को ‘माउंटेन मैन’ कहा जाता ैहै,जिसने बिहार के गया जिले में अपने गाॅव गेहलौर और वजीरगंज के बीच पड़ने वाले पहाड़ को अकेले ही तोड़कर गाॅंव वालांे के लिए रास्ता बनाया था.

दीपिका कक्कड़ के कपड़ों पर यूजर्स ने उठाया सवाल तो मिला मुंहतोड़ जवाब

टीवी एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ आएं दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं. हाल ही में दीपिका पर एक यूजर्स ने निशाना साधते हुए सवाल उठाया की दीपिका हर वक्त सलवार कमीज में ही क्यों नजर आती हैं. इस पर दीपिका के पति शोएब गुस्सा से लाल बबूला  हो गए.

उन्होंने  यूजर्स का जवाब न देते हुए उन्होंने कहा कि आप लोगों को जो भी सोचना है वो सोचो हमें आपकी सोचो हमें आपकी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता सच्चाई क्या है यह सिर्फ मैं और दीपिका जानते हैं. ऐसे में हमें बाहर वालों से कोई फर्क नहीं पड़ता हैं.

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन: 86 की उम्र में आशा भोसलें ने lanuch किया खुद का यूट्यूब चैनल

वहीं दूसरी तरफ दीपिका ने अपने इंस्टाग्राम पर फोटो शेयर किया है जिसमें उन्होंने सलवार सूट पहना हुआ है, आगे उन्होंने लिखा है कि लोग ऐसा इसलिए सोचते हैं क्योंकि वह सब एक ऐसे जैसे है हम सबसे अलग है इसलिए लोगों को हमसे दिक्कत होती है.

 

View this post on Instagram

 

I love you Deepika kakar

A post shared by Deepika kakar (@deepika_kakar) on

दीपिका के इस पोस्ट को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका सीधा निशाना यूजर्स को जवाब देना था. दीपिका अपने फैमली के साथ खूब एंजॉय करती है. हर वक्त नए-नए पोस्ट डालती रहती हैं. शोएब के परिवार की लाडली बहू है. अपने घर के हर एक सदस्यों का ख्याल रखती हैं.  उन्हें बाहरी दिखावा से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन में कार्तिक आर्यन का दाढीं वाला वीडियो हुआ वायरल, फैंस बोले शेव करा लो

दीपिका बिग बॉस की विनर भी रह चुकी हैं. शादी के बाद वह बिग बॉस गई थीं, जहां लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया था. अपने फैंस के प्यार की वजह से दीपिका शो की विनर बन पाई थीं.

लॉकडाउन: 86 की उम्र में आशा भोसलें ने launch किया खुद का यूट्यूब चैनल

सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण, सदाबहार व्यक्तित्व और अपनी कर्णप्रिय मीठी आवाज के जादू से कई पीढ़ियों के दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती आ रही गायिका आशा भोसले ने भी अब ‘यूट्यूब’चैनल पर धमाका करने पहंुॅच गयी हैं.आशा भोसले अपने यू ट्यूब चैनल‘‘आशा भोसले ऑफिशियल‘’पर युवा पीढ़ी के लिए मूल कंटेंट को परोस रही हैं.

मगर सवाल यह है कि 86 साल की उम्र में आशा भोसले को ‘‘यूट्यूब’’की तरफ मुड़ने के लिए किसने प्रेरित किया? इस पर वह कहती हैं-‘‘वर्तमान हालातों यानी कि कोरोना और लॉकडाउन के समय मैं भी दूसरे अन्य आम इंसानों की ही तरह अपने घर के अंदर बैठी हुई हूं.घर पर बैठकर अपने पोते पोतियों के इंटरनेट प्रेम व तकनीक कौषल को देख रही हूं,इसने मेरे सामने एक नई दुनिया खोलकर रख दी.कई वर्षों से लोग मुझसे निवेदन करते रहे हंै कि मैं अपने विचारों,अपने अनुभवों और अपनी भावनाओं को कमलबद्ध करूं.मगर ऐसा करने के लिए मेरे पास समय ही नहीं था.लेकिन अब जब मैं घर पर खाली बैठी हॅंू,तो मेरे दिमाग में आया कि इस वक्त मुझे अपने 86 वर्ष के अनुभवों को रिकार्ड करना चाहिए.हो सकता है कि उनमें से कुछ लोगों का मनोरंजन कर सकें,कुछ उन्हें सोचने पर विवष कर सकें या उन्हें हंसा सकंें और बस उनका अच्छा समय बीत जाए.’’

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन में कार्तिक आर्यन का दाढीं वाला वीडियो हुआ वायरल, फैंस बोले शेव करा लो

आशा भोसले आगे कहती हंैं- ‘‘हमारे आस-पास प्रचुर मात्रा में नकारात्मकता है.मैं चाहती हॅूं कि हमारा यह ‘यूट्यूब’चैनल एक ऐसा माध्यम साबित हो,जिससे लोगों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने के साथ ही उनका मूड़ भी हल्का हो सके.इसके अलावा मुझे लगा कि यूट्यूब चैनल दूर दराज स्थानों में रह रहे मेरे सभी दोस्तों के साथ चैट करने का एक अद्भुत माध्यम होगा.‘‘

आशा भोसले की बातों में सच्चायी है.वास्तव लॉकडाउन के दिनो में अपनी प्रिय 18 साल की पोती जानई भोसले को ‘यूट्यूब’के लिए काम करते देख प्रेरित हुई.खुद आषा भोसले बताती हैं-‘‘मुझे जानई विशेष रूप से प्रिय है.क्योंकि उसे एक कलात्मक पक्ष मिला है.वह एक गीतकार, लेखक,गायिका,संगीतकार और शास्त्रीय कथक नर्तकी है … वह मुझे खुद की याद दिलाती है और शायद इसीलिए मैं खुद को उसके करीब महसूस करती हूं.वह उम्र में मुझसे बहुत छोटी है,पर कभी-कभी वह ऐसी बातें कह जाती है,जिसे सुनकर मैं खुद को और अधिक शिक्षित कर पाती हूं.इसीलिए वह मुझे पसंद है.‘‘

ये भी पढ़ें-लॉकडाउन में मुंबई से यूपी पहुंचे नवाजुद्दीन, कोरोना टेस्ट के बाद 14 दिन के लिए हुए क्वारंटीन

वह आगे कहती हैं-‘‘जब जानई ने अपना यू ट्यूब चैनल शुरू किया,तो उसे काम करते देखकर मैं प्रेरित र्हुइं.सच ह है कि जानई ने मेरे उत्साह को भांपते हुए मुझे अपने जीवन के अनुभवों को रिकॉर्ड करने के लिए अपना स्वयं का चैनल बनाने की सलाह दी.मुझे यकीन है कि मैं अपने जीवन की कई कहानियों को अपने यूट्यूब चैनल पर प्रस्तुत करने जा रही हूं,जो कि भावी पीढ़ी के लिए जीवित रह सकती हैं.’’

अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का: भाग 3

अपर्णा की जिस दोस्त को प्रभा देखना तक नहीं चाहती थी और उसे बंगालनबंगालन कह कर बुलाती थी, आज उसी की बदौलत भरत की जान बच पाई, वरना पता नहीं क्या हो जाता. डाक्टर का कहना था कि मेजर अटैक था. अगर थोड़ी और देर हो जाती मरीज को लाने में, तो वे इन्हें नहीं बचा पाते.तब तक अपर्णा और मानव आ चुके थे. फिर कुछ देर बाद रंजो भी आ गई. बेटेबहू को देख कर बिलखबिलख कर रो पड़ी प्रभा और कहने लगी, आज अगर शोना न होती, तो शायद तुम्हारे पापा जिंदा न होते.’’

अपर्णा के भी आंसू रुक नहीं रहे थे. उस ने अपनी सास को ढांढ़स बंधाया और अपनी दोस्त को तहेदिल से धन्यवाद दिया कि उस की वजह से उस के ससुर की जान बच पाई. अपनी भाभी को मां के करीब देख कर रंजो भी मगरमच्छ के आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मां, मैं तो मर ही जाती अगर पापा को कुछ हो जाता. कितनी खराब हूं मैं जो आप की कौल नहीं देख पाई. वह तो सुबह आप की मिस्डकौल देख कर वापस आप को फोन लगाया तो पता चला, वरना यहां तो कोई कुछ बताता भी नहीं है.’’ यह कह कर अपर्णा की तरफ घूरने लगी रंजो.

तभी उस का 7 साल का बेटा बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, आप झूठ क्यों बोल रही हो? नानी, मम्मी झूठ बोल रही हैं. जब आप का फोन आया था, हम टीवी पर ‘बाहुबली’ फिल्म देख रहे थे. मम्मी यह कह कर फोन नहीं उठा रही थीं कि पता नहीं कौन मर गया जो मां इतनी रात को हमें परेशान कर रही हैं. पापा ने कहा भी उठा लो, पर मां ने फोन नहीं उठाया और फिल्म देखती रहीं.’’ यह सुन कर तो सब हैरान हो गए.

?सचाई खुलने से रंजो की तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उसे लगा, जैसे उसे करंट लग गया हो. अपने बेटे को एक थप्पड़ लगाते हुए बोली, ‘‘पागल कहीं का, कुछ भी बकवास करता रहता है.’’ फिर हकलाते हुए कहने लगी, ‘‘अरे, वह तो कि…सी और का फोन आ रहा था, मैं ने उस के लिए कहा था,’’ दांत निपोरते हुए आगे बोली, ‘‘देखो न मां, कुछ भी बोलता है, बच्चा है न इसलिए.’’

प्रभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. कहने लगी, ‘‘इस का मतलब तुम उस वक्त जागी हुई थी और तुम्हारा फोन भी तुम्हारे आसपास ही था? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि इतनी रात को तुम्हारी मां किसी कारणवश ही तुम्हें फोन कर रही होगी? अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार और विश्वास का, बेटा. आज मेरा सुहाग उजड़ गया होता, अगर यह शोना न होती. जिस बहू के प्यार को मैं ढकोसला और बनावटी समझती रही, आज पता चल गया कि वह, असल में, प्यार ही था. मैं तो आज भी इस भ्रम में ही जीती रहती अगर तुम्हारा बेटा सचाई न बताता तो.’’अपने हाथों से सोने का अंडा देने वाली मुरगी निकलते देख कहने लगी रंजो, ‘‘ना, नहीं मां, आप गलत समझ रही हैं.’’

‘‘समझ रही थी, पर अब मेरी आंखों पर से परदा हट चुका है. सही कहते थे तुम्हारे पापा कि तुम मेरी ममता का सिर्फ फायदा उठा रही हो, कोई मोह नहीं है तुम्हारे दिल में मेरे लिए,’’ कह कर प्रभा ने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया और अपर्णा से बोली, ‘‘चलो बहू, देखें तुम्हारे पापा को कुछ चाहिए तो नहीं?’’ रंजो, ‘‘मां, मां’’ कहती रही. पर पलट कर एक बार भी नहीं देखा प्रभा ने, मोह टूट चुका था उस का.

मेरी एक परिचिता के बेटे का विवाह होने वाला था. शादी का जो कार्ड पसंद किया गया, वह काफी महंगा था. उन्होंने ज्यादा कार्ड न छपवा कर एक तरकीब आजमाई, जिस में उन्हें पूरी सफलता मिली. पति व बेटे के बौस और कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण लोगों को तो कार्ड दे दिए, बाकी जिस के घर भी गईं, कार्ड पर उन्हीं के सामने नाम लिखने से पहले बोलतीं, ‘‘बस, क्या बताऊं, कैसे गलती हो गई, कार्ड्स कम हो गए.’’

सुनने वाला फौरन बोलता, ‘‘अरे, हमें कार्ड की जरूरत नहीं, हम आ जाएंगे.’’परिचिता पूछतीं, ‘‘सच, आप आ जाओगे? फिर आप को कार्ड रहने दूं?’’सामने वाला कहता है, ‘‘हां, हां, हम ऐसे ही आ जाएंगे.’’

सामने वाला भी अपने को उन का खास समझता कि वे ऐसी बात शेयर कर रही हैं. परिचिता ने सब को एक खाली कार्ड दिखाते हुए निबटा दिया.मैं उन के साथ 2 घरों में कार्ड देने गई थी, इसलिए इस कलाकारी की प्रत्यक्षदर्शी हूं. खैर, कार्ड मुझे भी नहीं मिला. मैं ने बाद में उन्हें छेड़ा, ‘‘जब सब को दिखा देना, तो आखिर में कार्ड मुझे चाहिए.’’  इस पर

वे खुल कर हंसीं, बोलीं, ‘‘नहीं मिलेगा, बहुत खर्चे हैं शादी के. चलो, कार्ड के तो

पैसे बचाए.’’मेरी मौसी ने एक दिलचस्प किस्सा बताया. वे रोडवेज की बस से बनारस जा रही थीं. उन की दूसरी तरफ की सीट पर एक बूढ़ी अम्मा आ कर बैठ गईं. कंडक्टर भला आदमी था, उस ने बूढ़ी अम्मा से टिकट के लिए पैसे भी नहीं लिए.बस चल पड़ी. थोड़ी देर में कंडक्टर ने देखा कि अम्मा कुछ परेशान सी हैं. उस ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘बेटा, इलाहाबाद आ जाए तो बता देना.’’

कंडक्टर ने हां बोला और चला गया. लेकिन बाद में वह भी भूल गया, तब तक बस इलाहाबाद से आगे निकल गई थी.कंडक्टर को अच्छा न लगा, उस ने बस वापस मुड़वाई. इलाहाबाद आया तो सोती हुई को जगाते हुए वह बोला, ‘‘अम्मा, इलाहाबाद आ गया.’’

‘‘अच्छा बेटा, चलो, अपनी दवाई खा लेती हूं.’’‘‘अरे अम्मा, यहां उतरना नहीं है क्या,’’ कंडक्टर बोला.‘‘मुझे तो बनारस जाना है. बेटी ने कहा था कि इलाहाबाद आने पर दवाई खा लेना,’’ अम्मा बोलींसवारियों का हंसहंस कर बुरा हाल हो गया और कंडक्टर की शक्ल देखने लायक थी.

 

अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का: भाग 2

‘‘ओ, कमअक्ल औरत, रंजो मेरी आंखों की किरकिरी नहीं बनी है बल्कि अपर्णा बहू तुम्हें फूटी आंख नहीं सुहाती है. पूरे दिन घर में बैठी आराम फरमाती रहती हो, हुक्म चलाती रहती हो. कभी यह नहीं होता कि बहू के कामों में थोड़ा हाथ बंटा दो और तुम्हारी बेटी, वह तो यहां आ कर अपना हाथपैर हिलाना भी भूल जाती है. क्या नहीं करती है बहू इस घर के लिए. बाहर जा कर कमाती भी है और अच्छे से घर भी संभाल रही है. फिर भी तुम्हें उस से कोई न कोई शिकायत रहती ही है. जाने क्यों तुम बेटीबहू में इतना भेदभाव करती हो?’’

‘‘कमा कर लाती है और घर संभालती है, तो कौन सा एहसान कर रही है हम पर. घर उस का है, तो संभालेगा कौन?’’ ‘‘अच्छा, सिर्फ उस का घर है, तुम्हारा नहीं? बेटी जब भी आती है उस की खातिरदारी में जुट जाती हो, पर कभी यह नहीं होता कि औफिस से थकीहारी आई बहू को एक गिलास पानी दे दो. बस, तानें मारना आता है तुम्हें. अरे, बहू तो बहू, उस की दोस्त को भी तुम देखना नहीं चाहती हो. जब भी आती है, कुछ न कुछ सुना ही देती हो. तुम्हें लगता है कहीं वह अपर्णा के कान न भर दे तुम्हारे खिलाफ. उफ्फ, मैं भी किस पत्थर से अपना सिर फोड़ रहा हूं, तुम से तो बात करना ही बेकार है,’’ कह कर भरत वहां से चले गए.

सही तो कह रहे थे भरत. अपर्णा क्या कुछ नहीं करती है इस घर के लिए. पर फिर भी प्रभा को उस से शिकायत ही रहती थी. नातेरिश्तेदार हों या पड़ोसी, हर किसी से वह यही कहती फिरती थी, ‘भाई, अब बहू के राज में जी रहे हैं, तो मुंह बंद कर के ही जीना पड़ेगा न, वरना जाने कब बहूबेटे हम बूढ़ेबूढ़ी को वृद्धाश्रम भेज दें.’ यह सुन कर अपर्णा अपना चेहरा नीचे कर लेती थी पर अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं बोलती थी. पर उस की आंखों के बहते आंसू उस के मन के दर्द को जरूर बयां कर देते थे.

अपर्णा ने तो आते ही प्रभा को अपनी मां मान लिया था, पर प्रभा तो आज तक उसे पराई घर की लड़की ही समझती रही. अपर्णा जो भी करती, प्रभा को वह बनावटी लगता था और रंजो का एक बार सिर्फ यह पूछ लेना, ‘मां आप की तबीयत तो ठीक है न?’ सुन कर कर प्रभा खुशी से कुप्पा हो जाती और अगर जमाई ने हालचाल पूछ लिया, तो फिर प्रभा के पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे.

उस दिन सिर्फ इतना ही कहा था अपर्णा ने, ‘मां, ज्यादा चाय आप की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है और वैसे भी, डाक्टर ने आप को चाय पीने से मना किया है. वुमन हौर्लिक्स लाई हूं, यह पी लीजिए.’ यह कह कर उस ने गिलास प्रभा की ओर बढ़ाया ही था कि प्रभा ने गिलास उस के हाथों से झटक लिया और टेबल पर रखते हुए तमक कर बोली, ‘तुम मुझे ज्यादा डाक्टरी का पाठ मत पढ़ाओ बहू, जो मांगा है वही ला कर दो,’ फिर बुदबुदाते हुए अपने मन में ही कहने लगी, ‘बड़ी आई मुझे सिखाने वाली, अच्छे बनने का नाटक तो कोई इस से सीखे.’ अपर्णा की हर बात उसे नाटक सरीखी लगती थी.

मानव औफिस के काम से शहर से बाहर गया हुआ था और अपर्णा भी अपने कजिन भाई की शादी में गई हुई थी. मन ही मन अपर्णा यह सोच कर डर रही थी कि अकेले सासससुर को छोड़ कर जा रही हूं, कहीं पीछे कुछ… यह सोच कर जाने से पहले उस ने रंजो को दोनों का खयाल रखने और दिन में कम से कम एक बार उन्हें देख आने को कहा. जिस पर रंजो ने आग उगलते हुए कहा, ‘‘आप नहीं भी कहतीं न, तो भी मैं अपने मांपापा का खयाल रखती. आप को क्या लगता हैख् एक आप ही हैं इन का खयाल रखने वाली?’’

पर अपर्णा के जाने के बाद वह एक बार भी अपने मायके नहीं आई वह इसलिए कि उसे वहां काम करना पड़ जाता. हां, फोन पर हालचाल जरूर पूछ लेती और साथ में यह बहाना भी बना देती कि वक्त नहीं मिलने के कारण वह उन से मिलने नहीं आ पा रही, पर वक्त मिलते ही आएगी.

एक रात अचानक भरत की तबीयत बहुत बिगड़ गई. प्रभा इतनी घबरा गई कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. उस ने मानव को फोन लगाया पर उस का फोन विस्तार क्षेत्र से बाहर बता रहा था. फिर उस ने अपनी बेटी रंजो को फोन लगाया. घंटी तो बज रही थी पर कोई उठा नहीं रहा था. जमाई को भी फोन लगाया, उस का भी वही हाल था. जितनी बार भी प्रभा ने रंजो और उस के पति को फोन लगाया, उन्होंने नहीं उठाया. ‘शायद सो गए होंगे’ प्रभा के मन में यह खयाल आया. फिर हार कर उस ने अपर्णा को फोन लगाया. इतनी रात गए प्रभा का फोन आया देख कर अपर्णा घबरा गई. प्रभा कुछ बोलती, उस से पहले ही वह बोल पड़ी.

‘‘मां, क्या हुआ, पापा ठीक हैं न?’’ लेकिन जब उसे प्रभा की सिसकियों की आवाज आई तो वह समझ गई कि कुछ बात जरूर है. घबरा कर वह बोली, ‘‘मां, मां, आप रो क्यों रही हैं, कहिए न क्या हुआ?’’ अपने ससुर के बारे में सब जान कर कहने लगी, ‘‘मां, आ…आ…आप घबराइए मत, कुछ नहीं होगा पापा को. मैं कुछ करती हूं.’’ उस ने तुरंत अपनी दोस्त शोना को फोन लगाया और सारी बातों से उसे अवगत कराते हुए कहा कि तुरंत वह पापा को अस्पताल ले कर जाए, जैसे भी हो.

आस्था पूंजी में या भगवान में ?

देश के धार्मिक ट्रस्टों व मंदिरों में सोने को लेकर विवाद सदियों से रहे है.प्राचीन इतिहास में धर्म व सत्ता का गठजोड़ रहा है और धर्म ही राजाओं को राजा होने व सत्ता चलाने की मान्यता देते थे.मौर्यकालीन इतिहास का अध्ययन करते है तो कुछ धार्मिक शास्त्र उनको क्षेत्रियों के रूप में लिखते है तो कुछ क्षुद्रों के रूप में.

असल मे जो राजा जिस धर्म का समर्थन करता था उसको धर्मशास्त्रों में क्षेत्रीय मान्यता दे दी जाती थी.मध्यकालीन युग मे  जब बाहरी आक्रमण हुए थे उस समय ज्ञात होता है कि पूंजी मंदिरों में जमा थी और राजा जंग लगे,पुरानी पद्धति के हथियारों से लड़कर हार गए थे.अफगानी गांव गजनी का एक लुटेरा 400-500 लोगों को लेकर निकला था और तोपखाना हासिल करके भारत फतेह कर गया था.

ये भी पढ़ें-पाखंड और धर्म की दुकानदारी जान पर भारी

999 ई. में जब महमूद ग़ज़नवी सिंहासन पर बैठा, तो उस ने प्रत्येक वर्ष भारत पर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की. उस ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया यह स्पष्ट नहीं है, किन्तु सर हेनरी इलियट ने महमूद ग़ज़नवी के 17 आक्रमणों का वर्णन किया.महमूद के भारतीय आक्रमण का वास्तविक उद्देश्य धन की प्राप्ति था. वह एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था. महमूद की सेना में सेवंदराय एवं तिलक जैसे हिन्दू उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति थे. महमूद के भारत आक्रमण के समय उस के साथ प्रसिद्ध इतिहासविद्, गणितज्ञ, भूगोलावेत्ता, खगोल एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता तथा ‘किताबुल हिन्द’ का लेखक अलबरूनी भारत आया.

अलबरूनी महमूद का दरबारी कवि था. ‘तहकीक-ए-हिन्द’ पुस्तक में उस ने भारत का विवरण लिखा है. इस के अतिरिक्त इतिहासकार ‘उतबी’, ‘तारीख-ए-सुबुक्तगीन’ का लेखक ‘बेहाकी’ भी उस के साथ आये. बेहाकी को इतिहासकार लेनपूल ने ‘पूर्वी पेप्स’ की उपाधि प्रदान की है. ‘शाहनामा’ का लेखक ‘फ़िरदौसी’, फ़ारस का कवि जारी खुरासानी विद्धान तुसी, महान् शिक्षक और विद्वान् उन्सुरी, विद्वान् अस्जदी और फ़ारूखी आदि दरबारी कवि थे.

दरअसल भारत की प्राचीन काल से समस्या यही रही कि धर्म और विज्ञान के बीच सामंजस्य बिठाने में सदा नाकाम रहा है.इतिहास से कभी सबक नहीं लिया और गलती पर गलती करता रहा जिसके कारण हजारों साल विदेशियों का गुलाम रहा है.कल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कहा कि सरकार को मंदिरों में रखे सोने को 2%ब्याज पर लेकर जन कल्याण के काम मे लगाना चाहिए.आज देश मे संकट है और अर्थव्यवस्था डांवाडोल है तो बेहतरीन सुझाव माना जा सकता है मगर वो ही ऐतिहासिक गलती को दोहराने के लिए रेंटेड साधुओं को टीवी पर बैठाकर कहा जाने लगा कि भक्तों की आस्था पर काली नजर डाली जा रही है.क्या बकवास है!विभिन्न अनुमानों के मुताबिक भारत मे 3000टन सोना धर्मस्थलों के पास पड़ा है!जब राजा धन के अभाव से जूझ रहा है और कोरोना जैसे संकट में देश फंसा है तो धर्मस्थलों का असली धर्म यही बनता है कि शास्त्रों में महान लिखने के बजाय असल मे राजा का सहयोग करे.इतिहास की गलतियां दोहराकर देश को विदेशी कंपनियों के हवाले करने की लाचारी से देश को उभारा जाएं.

ये भी पढ़ें-स्कूल बंद, लेकिन किताबों के जरिए लूटने का धंधा किया शुरू

भक्तों की आस्था भगवान/अल्लाह/गॉड में है इस पूंजी में नहीं है.अगर पूंजी में आस्था होती तो भक्त घरों की अलमारी में सहेजकर रखते!इंसानियत पे-बेक के सह-अस्तित्व से चलती है.अगर भक्तों ने दान भी किया है तो संकटों से मुक्ति के लिए दान किया है और आज भारत के करोड़ों भक्त जीवन जीने की जंग में फंसे है तो कम से कम इस पूंजी का उपयोग इनके संकटों को दूर करने के लिए किया ही जाना चाहिए.

दुनिया 21वीं सदी के संचार माध्यमों का उपयोग कर रही है इसलिए दुनियांभर की व्यवस्थाओं को समझ रही है.इस समय जरूरत इस बात की है कि पूरा देश समझदारी के साथ एकजुट होकर इस संकट से मुकाबला करें.हमारे पास अकूत संपदा पड़ी है और उसको उपयोग में लेने के बजाय राजा की मजबूरी है कि विदेशी कंपनियों को भारत मे जगह देकर बैठाएं!मुगल साम्राज्य की डोलती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जहांगीर ने थॉमस रो को सूरत में सस्ती जमीन पर फैक्ट्री लगाने की जो गलती की थी वो रास्ता अभी हमारे राजा के पास है.उसके बाद क्या हुआ व इसके बाद क्या होगा आप समझ लीजिए.

जब अंग्रेजों ने कब्जा करना शुरू किया था तब भारत के राजा आपस मे जूतमपैजार कर रहे थे और अब विदेशी कंपनियां फिर से कब्जा कर रही है और भारत की राजनैतिक पार्टियां वो ही काम करने लग गई!उस समय अंग्रेजों के मुखबिर और अंग्रेजों से नौकरी पाकर पेट पालने वाले लोगों की भूमिका में भारत का मीडिया है.अगर भक्तों को लगे कि उनके द्वारा दी गई पूंजी का उपयोग संकट से उभारने में नहीं हो रहा है तो वापिस लेने का दावा ठोकने का विकल्प भी पास में है.भक्तों से निवेदन है कि इतिहास मत दोहराने देना.देश को बचाने का भार भगवानों से भक्तों के कंधों पर आ चुका है.

हमें गुस्सा क्यों आता है?

लेखक-डा. दीपक कोहली

निराश, अधीर या परेशान होने पर सब से ज्यादा गुस्सा ही आता है. गुस्सा किसी भी व्यक्ति में प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है. कभीकभी गुस्सा किसी खास परिस्थिति की वजह से भी आ सकता है.
ऐसे में गुस्से पर काबू करना जरूरी है, नहीं तो इस का नकारात्मक असर पड़ सकता है. अकसर और अत्यधिक हद तक गुस्सा महसूस करना रिश्तों और एक व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थिति और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है.

वैसे, गुस्सा या क्रोध हम सभी के जीवन का एक हिस्सा है. कई बार हम लोग अपने आसपास घट रही घटनाओं की वजह से या अनुकूल वातावरण न होने के कारण भी क्रोधित हो जाते हैं.

मनोविज्ञान से जुड़े एक्सपर्टों के अनुसार, एक सप्ताह में थोड़ा गुस्सा आना सामान्य हो सकता है, लेकिन छोटीछोटी बातों पर गुस्सा होना आप को परेशानी में डाल सकता है. गुस्से की वजह से कई बीमारियों का खतरा भी शुरू हो जाता है.

ये भी पढ़ें-रिलेशनशिप टिप्स: जब पति में दिलचस्पी लेने लगे पड़ोसन

गुस्सा एक तरह से अपनी भावना को व्यक्त करने का तरीका है. गुस्सा आने पर आप खुद को दुखी या कभीकभी असहाय भी महसूस कर सकते हैं.

ऐसे में अपने गुस्से का कारण समझें, अपनी परेशानी किसी खास प्रियजनों से साझा करें. ऐसा करने से आप अच्छा महसूस करेंगे और आप का गुस्सा भी जल्दी शांत होगा.

गुस्सा आने पर उस दौरान शारीरिक बदलाव महसूस किया जा सकता है, जैसे- शरीर का सख्त होना या हाथपैर कांपना वगैरह.

आप अगर क्रोध में नहीं फंसना चाहते हैं तो अपना ध्यान केंद्रित रखें. ऐसी किसी बातों में न उलझें, जिन में नकारात्मक विचार हों.

अगर आप अपनेआप को परफेक्ट मानते हैं, तो जरा अपने शब्दों पर विचार करें. अपनेआप को समझने की कोशिश करें, दोनों ही नकारात्मक और सकारात्मक तरीकों से.

ऐसा करने से आप अपनेआप को समझ पाएंगे कि आप का गुस्सा कितना जायज है. गुस्से के कारण को समझें और निष्कर्ष निकालें कि परेशानी वास्तव में कहां है. बच्चों की तरह जिद न करें. जिद करना बच्चों के साथसाथ दूसरे लोगों के लिए भी नुकसानदायक है.

ये भी पढ़ें-मदर्स डे स्पेशल: तू-तू,मैं-मैं से काफी आगे है सास-बहू का रिश्ता!  

गुस्से की वजह से भेदभाव हो सकता है. इस कारण आप अपने करीबियों से भी अलग हो सकते हैं, इसलिए अपनी बोलचाल की भाषा में शांति रखें. गुस्से की भावना किसी कारण ही आती है. लेकिन इसे समझना बेहद जरूरी है कि आखिर गुस्सा किस बात को ले कर आया और फिर इसे सुलझाना आसान होता है.

किसी भी तरह की समस्याओं को प्यार से और आराम से सुलझाने की कोशिश करें, क्योंकि कभीकभी काम ठीक से न होने की स्थिति में गुस्सा होने के अलावा कोई और विकल्प मौजूद नहीं होता है. गुस्सा करें लेकिन ज्यादा गुस्सा न करें.

गुस्से की वजह से आप बीमार भी पड़ सकते हैं. आप का ब्लडप्रेशर बढ़ने के साथसाथ और भी तमाम परेशानी शुरू हो सकती हैं. इसलिए समय रहते इन बीमारियों के बचाव के लिए आप डाक्टर से संपर्क करें.

गुस्से से जुड़े फैक्ट में यह भी सचाई है कि इस वजह से लोगों को शारीरिक परेशानी हो सकती है, जैसे- सिरदर्द  की समस्या, डाइजेशन की परेशानी जैसे पेटदर्द या अपच, इंसोम्निया होना यानी नींद न आना, एंग्जाइटी की परेशानी, बेचैनी महसूस करना, डिप्रेशन की समस्या, हाई ब्लडप्रेशर की परेशानी, त्वचा संबंधी परेशानी भी हो सकती है,  हार्ट अटैक की संभावना हो सकती है, कभीकभी स्ट्रोक के पीछे गुस्सा भी एक कारण हो सकता है.

5 साल पहले की तुलना में अब 84 फीसदी लोग काम की वजह से ज्यादा तनाव में रहते हैं. इस वजह से गुस्सा ज्यादा आता है.

एक रिसर्च के अनुसार, दफ्तर में काम करने वाले 65 फीसदी व्यक्ति खुद ही गुस्से में आ जाते हैं. वहीं शोध में यह बात भी सामने आई है कि तकरीबन 45 फीसदी कर्मचारी दफ्तर में अत्यधिक क्रोधित हो जाते हैं.

ब्रिटेन के लोगों पर किए गए रिसर्च के मुताबिक, 33 फीसदी लोग अपने पड़ोसियों से बात नहीं करते हैं. गुस्से से जुड़े फैक्ट ये भी बताते हैं कि लोग अपनी बातें पूरी करने के लिए भी गुस्सा करते हैं.

वैसे, हम सभी की यही चाहत होती है, हम जैसा चाहें वैसा ही होना चाहिए, लेकिन ऐसा न होने पर निराश, दुखी और गुस्से में आ जाते हैं. अगर आप किसी भी क्रोधित व्यक्ति के संपर्क में रहते हैं तो उन्हें समझाना चाहिए, क्योंकि गुस्से की वजह से उन की शारीरिक परेशानी बढ़ सकती है.

इसलिए गुस्से से बचने के लिए नियमित रूप से वर्कआउट करना चाहिए, सुबह की सैर पर जाना चाहिए, स्विमिंग क्लास जाना चाहिए, मनपसंद काम जैसे म्यूजिक सुनना, गीत गाना, डांस क्लास जाना चाहिए वगैरह.

अगर आप को किताबों का शौक है, तो किताबें पढ़नी चाहिए. ऐसा करने से आप अपनेआप को गुस्से से बचा सकते हैं.

अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार का: भाग 1

‘‘वाह मां, ये झुमके तो बहुत सुंदर हैं, कब खरीदे?’’ रंजो ने अपनी मां प्रभा के कानों में झूलते झुमकों को देख कर कहा.

‘‘पिछले महीने हमारी शादी की सालगिरह थी न, तभी अपर्णा बहू ने मुझे ये झुमके और तुम्हारे पापा को घड़ी दी थी. पता नहीं कब वह यह सब खरीद लाई,’’ प्रभा ने कहा.

अपनी आंखें बड़ी कर रंजो बोली, ‘‘भाभी ने, क्या बात है.’’ फिर आह भरते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे तो कभी इस तरह से कुछ नहीं दिया उन्होंने. हां भई, सासससुर को मक्खन लगाया जा रहा है, लगाओ,’ लगाओ, खूब मक्खन लगाओ.’’ उस का ध्यान उन झुमकों पर ही अटका हुआ था, कहने लगी, ‘‘जिस ने भी दिए हों मां, पर मेरा दिल तो इन झुमकों पर आ गया.’’

‘‘हां, तो ले लो न, बेटा. इस में क्या है,’’ कह कर प्रभा ने वे झुमके उतार कर तुरंत अपनी बेटी रंजो को दे दिए. उस ने एक बार यह नहीं सोचा कि अपर्णा को कैसा लगेगा जब वह जानेगी कि उस के दिए उपहारस्वरूप झुमके उस की सास ने अपनी बेटी को दे दिए.

प्रभा के देने भर की देरी थी कि रंजो ने झट से वे झुमके अपने कानों में डाल लिए, फिर बनावटी मुंह बना कर कहने लगी, ‘‘मन नहीं है तो ले लो मां, नहीं तो फिर मेरे पीठपीछे घर वाले, खासकर पापा, कहेंगे कि जब आती है रंजो, कुछ न कुछ ले कर ही जाती है.’’

‘‘कैसी बातें करती हो बेटा, कोई क्यों कुछ कहेगा. और क्या तुम्हारा हक नहीं है इस घर में? तुम्हें पसंद है तो रख लो न, इस में क्या है. तुम पहनो या मैं पहनूं, बात बराबर है.’’

‘‘सच में मां? ओह मां, आप कितनी अच्छी हो,’’ कह कर रंजो अपनी मां के गले लग गई. हमेशा से तो वह यही करती आई है, जो पसंद आया उसे रख लिया, यह कभी न सोचा कि वह चीज किसी के लिए कितना माने रखती है. कितने प्यार से और किस तरह से पैसे जोड़ कर अपर्णा ने अपनी सास के लिए वे झुमके खरीदे थे, पर प्रभा ने बिना सोचेसमझे उठा कर झुमके अपनी बेटी को दे दिए.

अरे, वह यह तो कह सकती थी कि ये झुमके तुम्हारी भाभी ने बड़े शौक से मुझे खरीद कर दिए हैं, इसलिए मैं तुम्हें दूसरे बनवा कर दे दूंगी. पर नहीं, कभी उस ने बेटी के आगे बहू की भावना को समझा है, जो अब समझेगी?

‘‘मां, देखो तो मेरे ऊपर ये झुमके कैसे लग रहे हैं, अच्छे लग रहे हैं न, बोलो न मां?’’ आईने में खुद को निहारते हुए रंजो कहने लगी, ‘‘वैसे मां, आप से एक शिकायत है.’’

‘‘अब किस बात की शिकायत है?’’ प्रभा ने पूछा.‘‘मुझे नहीं, बल्कि आप के जमाई को, कह रहे थे आप ने वादा किया था उन से ब्रेसलेट देने का, जो अब तक नहीं दिया.’’

‘‘ओ, हां, याद आया, पर अभी पैसे की थोड़ी तंगी है, बेटा. तुझे तो पता ही है कि तेरे पापा को कितनी कम पैंशन मिलती है. घर तो अपर्णा बहू और मानव की कमाई से ही चलता है,’’ अपनी मजबूरी बताते हुए प्रभा ने कहा.‘‘वह सब मुझे नहीं पता है मां, वह आप जानो और आप के जमाई. बीच में मुझे मत घसीटो,’’ झुमके अपने पर्स में सहेजते हुए रंजो ने कहा और चलती बनी.

‘‘बहू के दिए झुमके तुम ने रंजो को दे दिए?’’ हैरत से भरत ने अपनी पत्नी प्रभा से पूछा‘‘हां, उसे पसंद आ गए तो दे दिए,’’ बस इतना ही कहा प्रभा ने और वहां से जाने लगी, जानती थी वह कि अब भरत चुप नहीं रहने वाले.

‘‘क्या कहा तुम ने, उसे पसंद आ गए? हमारे घर की ऐसी कौन सी चीज है जो उसे पसंद नहीं आती है, बोलो? जब भी आती है कुछ न कुछ उठा कर ले ही जाती है. जरा भी शर्म नहीं है उसे. उस दिन आई तो बहू का पर्स, जो उस की दोस्त ने उसे दिया था, उठा कर ले गई. कोई कुछ नहीं कहता तो इस का मतलब यह नहीं कि वह अपनी मनमरजी करेगी,’’ गुस्से से आगबबूला होते हुए भरत ने कहा.

तिलमिला उठी प्रभा. अपने पति की बातों पर बोली, ‘‘ऐसा कौन सी जायदाद उठा कर ले गई वह, जो तुम इतना सुना रहे हो? अरे एक जोड़ी झुमके ही तो ले गई है. जाने क्यों रंजो, हमेशा तुम्हारी आंखों में खटकती रहती है?’’

भरत भी चुप नहीं रहे. कहने लगे, ‘‘किस ने मना किया तुम्हें जायदाद देने से, दे दो न जो देना है, पर किसी का प्यार से दिया हुआ उपहार यों ही किसी और को देना, क्या यह सही है? अगर बहू ऐसा करती तो तुम्हें कैसा लगता? कितने अरमानों से वह तुम्हारे लिए झुमके खरीद कर लाई थी और तुम ने एक मिनट भी नहीं लगाया उसे रंजो को देने में.’’‘‘किसी को नहीं, बेटी को दिए हैं, समझे, बड़े आए बहू के चमचे, हूं…’’

‘‘अरे, तुम्हारी बेटी तुम्हारी ममता का फायदा उठा रही है और कुछ नहीं. किस बात की कमी है उसे? हमारे बेटेबहू से ज्यादा कमाते हैं वे दोनों पतिपत्नी, फिर भी कभी हुआ उसे कि अपने मांबाप के लिए

2 रुपए का भी उपहार ले कर आए? और हमारी छोड़ो, क्या कभी उस ने अपनी भतीजी को एक खिलौना भी खरीद कर दिया है? नहीं, बस लेना जानती है. क्या मेरी आंखें नहीं हैं? देखता हूं मैं, तुम बहूबेटी में कितना फर्क करती हो. बहू का प्यार तुम्हें ढकोसला लगता है और बेटी का ढकोसला प्यार. ऐसे घूरो मत मुझे, पता चल जाएगा तुम्हें भी एक दिन.’’

‘‘कैसे बाप हो तुम, जो बेटी के सुख पर भी नजर लगाते रहते हो. पता नहीं क्या बिगाड़ा है रंजो ने आप का, जो हमेशा वह तुम्हारी आंखों की किरकिरी बनी रहती है?’’ अपनी आंखें लाल करते हुए प्रभा बोली.

केंद्र हो या राज्य सरकारें, सबके लिए बोझ बने सरकारी कर्मचारी

केंद्र हो या राज्य सरकारें आज की तारीख में सभी के लिए बोझ बन गए हैं सरकारी कर्मचारी.ज्यादातर राज्य सरकारों ने इस लॉकडाउन की स्थिति में भी अगर शराब की दुकानों या ठेकों को खोलने का फैसला किया है तो इसलिए क्योंकि इनकी वित्तीय हालत बहुत खस्ता है और इस खस्ता वितीय हालत का सबसे बड़ा कारण है सरकारी कर्मचारियों का भारीभरकम बोझ.देश का कोई भी ऐसा राज्य नहीं है ,जिसके कुल राजस्व का 70-80 फीसदी अपने कर्मचारियों के वेतन,भत्ते और पेंशन देने में न खत्म हो जाता हो.यही वजह है कि विकास के नाम पर सरकारें केवल इधर से उधर टोपियां घुमाते रहते हैं.सच बात यह है कि सरकारों पर अपने कर्चारियों की तनख्वाहों का इतना बोझ होता है कि वे किसी दूसरे काम पर फोकस ही नहीं कर पातीं.क्योंकि जरूरी फंड ही नहीं होता.

देश में केंद्र,विभिन्न राज्यों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कुल मिलाकर [जिसमें सेना और अर्द्धसैनिक बल भी शामिल हैं] 2 करोड़ से थोड़े ज्यादा कर्मचारी हैं.जबकि इनकी सैलरी,भत्ते और दूसरे पर्क्स में देश के सकल घरेलू उत्पाद का 8 % से ज्यादा खर्च हो जाता है.आठ प्रतिशत जीडीपी का [साल 2019 के सकल घरेलू उत्पाद के हिसाब से] मतलब है,  करीब 24 लाख करोड़ रूपये.यह रकम इसलिए बहुत बड़ी रकम है; क्योंकि भारत का सालाना बजट 2019 में करीब 28 लाख करोड़ रूपये का था.इस तरह देखें तो देश के कुल केन्द्रीय बजट के बराबर की धनराशि सरकारी कर्मचारियों के वेतन भत्तों में खर्च हो जाती है.इसे हम चाहे तो हम यूँ भी कह सकते हैं कि 2 करोड़ बनाम 130 करोड़ और चाहे तो ये कि 2 करोड़ को जितनी सैलरी देनी पड़ती है ,करीब उतने नेह ही देश चलाने की जद्दोजहद करनी पड़ती है.

ये भी पढ़ें-उत्तराखंड के लिए रिवर्स माइग्रेशन समस्या या मोका – एक नजर

सरकारी कर्मचारियों को अगर इस तरह बात करने में बुरा लगे तो माफी लेकिन इन आंकड़ों का इशारा यही है कि जल्द ही अगर इस आंकड़े में कुछ रैशनल सुधार नहीं किया गया तो देश की अर्थव्यवस्था सरकारी कर्मचारियों के बोझ से दब जायेगी.सरकारी कर्मचारी किस तरह विभीन्न राज्य सरकारों  के लिए बोझ बन गए हैं,इसका सबूत यह है कि  दिल्ली के मुख्यमंत्री ने शराब की दुकानों को खोलने के संबंध में मिल रही तमाम तोहमतों को लेकर पिछले दिनों कहा था कि उनके पास सरकारी कर्मचारियों को मई की तनख्वाह देने के बाद सिर्फ एक महीने की तनख्वाह दे सकने लायक पैसे ही खजाने में बचेंगे.इसलिए जल्द से जल्द शराब की दुकानें खोली गयीं.

चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्यों की सरकारें  हों,शिक्षा,स्वास्थ्य और दूसरी जनकल्याण की योजनाओं पर जरूरी रकम सिर्फ और सिर्फ इसलिए नहीं खर्च कर पातीं क्योंकि सरकारी कर्मचारियों के वेतनों के बाद ज्यादा कुछ बचता ही नहीं है.इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में तंत्र नाम की जो चीज है,जो सिस्टम है.वह सरकारी कर्मचारियों की बदौलत ही है.लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इनका कोई विकल्प नहीं है. न…सच यह है कि विकल्प को मौका नहीं मिलता.इसके लिए सिर्फ एक ही उदाहरण दूंगा.1998-99 तक दिल्ली की तमाम टेलीफोन व्यवस्था यानी पूरा कम्युनिकेशन सिस्टम सरकार के हाथ में था.तब यह स्थिति होती थी कि आपका फोन खराब हो जाय तो कब सही होगा, इस पर दावे से कोई कुछ नहीं कह सकता था.महीनों लग जाते थे.आज प्राइवेट कम्पनियां 24 घंटे में सही करने का दावा करके जब 48 घंटे में करती हैं तो हमें लगता है कि इनकी सर्विस खराब है.

एक ज़माना था कि फोन खराब हो जाय तो उसे सही कराने के लिए लोग बड़े बड़े अधिकारियों की सिफारिश लगवाया करते थे.यह सब सरकारी कर्मचारियों के चरित्र का नायाब उदाहरण है.1999 में दिल्ली में 18 लाख से ज्यादा लैंडलाइन फोन एमटीएनएल के थे. आज बमुश्किल 2 लाख हैं और इसमें भी एक लाख से ज्यादा सरकारी फोन हैं.सिर्फ दिल्ली और मुंबई में ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी वीएसएनएल की सांसें उखड़ गयी हैं.यह सब नेताओं की घूसखोरी से नहीं हुआ.यकीन मानो यह सब सरकारी कर्मचारियों की इलाली के चलते हुआ है.

ये भी पढ़ें-क्यों नौकरी छोड़ रहे हैं आईएएस अफसर? 

देश में सेना के बाद सबसे ज्यादा सरकारी अध्यापकों के वेतन में खर्च होता है.देश में 83%शिक्षा व्यवस्था सरकारी है.इसलिए 75 देशों में से हमारे देश का स्थान अगर 73 वां आता है तो यह कलंक सरकारी अध्यापकों के सिर पर आना ही चाहिए. क्या आपको मालूम है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था पर शिक्षको को दिए जाने वाले कुल वेतन का महज 33% खर्च होता होता है.यह तो वैसे ही है कि किसी खेत पर फसल बोई जाए .वह फसल 50,000 रूपये की बिके और उस फसल को बोने काटने आदि के मेहनताने पर 200000 रूपये खर्च कर दिए जाये.ऐसी फसल से भला किसको फायदा होगा ?

भारत के सरकारी कर्मचारी इसलिए देश पर बोझ नहीं हैं कि उन्हें ज्यादा पैसा दिया जाता है ? नहीं,वे पाने वाले पैसे की कीमत का 1/115 वां काम भी नहीं करते.डीयू में औसतन एक लेक्चर के लिए प्रोफ़ेसर को 5000 रूपये मिलते हैं,जबकि प्राइवेट कोचिंग में महज 500 रूपये में उससे 10 गुना ज्यादा पढ़ाई होती है और 100% ज्यादा नतीजा मिलता है.सरकारी कर्मचारी इसलिए बोझ हैं क्योंकि उनके मुकाबले प्राइवेट कर्मचारी औसतन 500% ज्यादा काम करता है.फिर भी सरकारी कर्मचारी से ज्यादा कुशलता दिखाता है. सरकारी कर्मचारी का यह सफ़ेद सीमेंट का हाथी होना इसलिए खलता है ; क्योंकि हम सब देशवासी अपने खून पसीने की कमाई पर इसे झेलते हैं.

हिन्दुस्तान के सरकारीकर्मचारियों के बारे में दीपक श्रीवास्तव जी ने बिलकुल सटीक लिखा है , ‘दुनिया के तमाम देशों में देश के लिये सरकारी कर्मचारी होते हैं, भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिये देश है.अनावश्यक विभागों को और आवश्यक विभागों में अनावश्यक कर्मचारियों को हटाना जरूरी है,दरअसल वर्तमान सरकारी कर्मचारी जिस सेटअप की देन हैं वो अंग्रेजी राज का निर्माण है और उस समय अंग्रेजों की नौकरी को अच्छा नहीं माना जाता था, इसलिये अंग्रेजों ने सरकारी नौकरी में तमाम तरह के लाभों को देना शुरू किया ताकि लोग लोभवश नौकरी में आयें, आजादी के बाद इस प्रवृति पर रोक लगाने की जरूरत थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और वही परंपरा आगे बढ़ती रही, आज स्थिति यह है कि एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का जो वेतन है अगर उसकी तुलना खेती करने वाले की कमाई से की जाये तो पचास बीघा जमीन के मालिक के बराबर होगा, इस पर गंभीरता से विचार कर सरकारी कर्मचारी की वेतन संबंधी निर्णय किया जाना चाहिये.’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें