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आड़ू की खेती पहाड़ों से मैदानों में

उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आम की बागवानी ही होती है. अब आम के प्रदेश में आडू ने दस्तक दे दी है. यही वजह है कि अब उत्तर प्रदेश में आडू दिवस मनाया जाने लगा है. इस साल लखनऊ के फल बाजार में लखनऊ के ही आड़ू बिकने आ गये हैं आड़ू की खेती आमतौर पर पहाडों पर होती थी. अब आडू की ऐसी किस्म भी तैयार हो गई है जिसकी खेती मैदानी इलाकों में भी हो रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तमाम किसान अब इसकी खेती करते है.आड़ू की उत्पति को लेकर अलग-अलग तरह के विचार है. कुछ लोग आड़ू की उत्पत्ति का स्थान चीन को मानते है और कुछ इसे ईरान का मानते है. यह पर्णपाती वृक्ष है, भारत के पर्वतीय तथा उप पर्वतीय भागों में इसकी सफल खेती होती है.

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इसके ताजे फल खाए जाते हैं. फलों से चटनी भी बनती है. फल में चीनी की मात्रा पर्याप्त होती है.जहाँ जलवायु न अधिक ठंडी न अधिक गरम हो और 15 डिग्री फारनहाइट. से 100 डिग्री फारनहाइट तक के ताप वाले पर्यावरण मे इसकी खेती सफल हो सकती है. इसकी अच्छी पैदावार के लिये लिए सबसे उत्तम मिट्टी बलुई दोमट है. आड़ू का फल ऐसे समय पर पक कर तैयार होता है, जिस समय बाजार में ज्यादा फल नहीं होते हैं. ऐसे में फल 200 रुपये प्रति किग्रा की दर से बिकता है.बहुत से किसानों ने आड़ू  के पौधे पहली बार देखे. इन लोगों ने दूसरे किसानों को खेती करते देखकर इसे शुरू किया. दो ही वर्षो में पौधों पर अच्छी संख्या में लगे फल देखकर काफी उत्साहित होकर इसकी खेती करनी शुरू कर दी . आड़ू की खेती आडू के पौधे 15 से 18 फुट की दूरी पर दिसंबर या जनवरी के महीने में लगाए जाते हैं. सड़े गोबर की खाद या कंपोस्ट 80 से 100 मन तक प्रति एकड़ प्रति वर्ष नवंबर या दिसंबर में देना चाहिए. जाडे में एक या दो तथा ग्रीष्म ऋतु  में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए.

सुंदर आकार तथा अच्छी वृद्धि के लिए आड़ू के पौधे की कटाई तथा छंटाई प्रथम दो वर्ष भली भांति की जाती है. इसके बाद प्रति वर्ष दिसंबर में छटाई की जाती है. जून में फल पकता है. प्रति वृक्ष 30 से 50 किलो तक फल प्राप्त होते है आडू को जिन कीटो से नुकसान पहुंच सकता है उनमें स्तंभ छिद्रक (स्टेम बोरर), आडू आसपास के किसानों ने आडू की खेती के प्रति उत्साह दिखाया. इसके प्रचार प्रसार के लिये आडूं दिवस (पीच डे ) भी मनाया जाता है. अच्छी फसल मिलने से लखनऊ और आसपास के इलाकों के

अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी आड़ू की खेती में रुचि दिखाई देने लगी है.अभी तक आड़ू की खेती ठंडे इलाकों में ही होती है.

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अब कई ऐसी किस्मों का सफल प्रयोग किया है, जो कम समय की ठंड पड़ने पर भी विकसित हो जाती हैं. फ्लोरडा प्रिंस, पंत पीच-1, शर्बती, शर्बती सुर्ख जैसी कई प्रजातियां है. जिन्हें कुछ दिन भी सात डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान मिल जाए तो फल आने लगता है. संस्थान में पिछले दो साल में इसके पौधे तैयार किए गए.

आड़ू दो जाति के होते है. देशीय उपजातियाँ जिसमें आगरा, पेशावरी तथा हरदोईया और विदेशी उपजातियाँ में बिडविल्स अर्ली, डबल फ्लावरिंग, चाइना फ्लैट, डाक्टर हाग, फ्लोरिडाज ओन, अलबर्टा प्रमुख है. अब किसानों में आड़ू की खेती के प्रति दिलचस्पी बढ रही है.

इंसानियत का खून: केरल में पटाखे से भरे अनानास खाने से गर्भवती हथिनी की मौत

पिछले सोमवार को 25 मई थी. अगर शब्दों पर ध्यान दिया जाए तो ‘मई’ और ‘मां’ में ज्यादा फर्क नहीं है, चाहे वह मां कोई औरत हो या फिर हथिनी. और जब कोई मादा अपने पेट में नन्ही जान को पाल रही होती है, तो उसे भूख भी खूब लगती है. इसी बात का फायदा कुछ सिरफिरों ने ऐसी जगह पर उठाया, जहां हाथी के बल पर बहुत से लोगों की रोजीरोटी चलती है.

उत्तरी केरल का मल्लपुरम इलाका. वहां से बुधवार, 27 मई को एक खबर आई कि एक गर्भवती हथिनी की मौत हो गई है, पर यह मौत स्वाभाविक कतई नहीं थी और न ही कोई ऐसा हादसा था, जिस पर कुछ पलों का शोक मना कर उसे नजरअंदाज कर दिया जाए. यह तो एक ऐसी हैवानियत थी, जिस ने पूरे राज्य को ही शर्मसार कर दिया था.

इस घटना की जानकारी एक वन अधिकारी मोहन कृष्णन ने सोशल मीडिया पर साझा की थी कि यह हथिनी खाने की तलाश में भटकते हुए जंगल के पास के एक गांव में आ गई थी और वहां की गलियों में घूम रही थी. इस के बाद कुछ लोगों ने उसे अनानास खिला दिया.

हथिनी की मानो मुराद पूरी हो गई, पर उस अनानास में पटाखे भरे हुए थे, जो हथिनी के पेट में जा कर फूटने लगे. इस से वह तिलमिला गई, पर उस ने गांव वालों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया.

उस वन अधिकारी ने आगे बताया कि वह हथिनी इतनी ज्यादा जख्मी हो गई थी कि कुछ भी नहीं खा पा रही थी. चूंकि अभी उस की भूख नहीं मिटी थी और वह दर्द से भी बेहाल थी, इसलिए आगे वेल्लियार नदी तक पहुंची और नदी में मुंह डाल कर खड़ी हो गई. हो सकता है कि उसे ऐसा करने ने थोड़ा आराम मिला हो.

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जब इस घटना की जानकारी वन विभाग के लोगों को हुई तो वे हथिनी को बचाने पहुंचे. उसे पानी से निकालने के लिए बड़ी जद्दोजेहद की गई, पर 27 मई को उस की पानी में खड़ेखड़े मौत हो गई. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में पता चला कि उस हथिनी में एक नन्ही जान पल रही थी, जो इस दुनिया में आने से पहले ही खत्म हो गई.

वन प्रशासन को यह नहीं पता चला कि पटाखों भरा अनानास खिलाने वाले का मकसद क्या था और पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज कर लिया, पर यह वाकिआ सवाल खड़ा करता है कि एक बेजबान को इस तरह मारने के बाद क्या हम इनसान कहलाने के लायक हैं?

जंगलों में बसे गांवों में जानवरों और इनसानों के बीच संघर्ष होना कोई नई बात नहीं है. कई बार हाथी जैसे बड़े जीव इनसानों का बड़ा नुकसान कर देते हैं, पर ज्यादातर मामलों में इनसान उन्हें अपने गांव या खेतों से दूर भगाने की कोशिश करते हैं. हां, कोई हाथी हद तक पगला जाए तो वन विभाग वाले खुद उसे मारने से नहीं झिझकते हैं, पर यहां तो कोई ऐसी बात नजर नहीं आई, बल्कि ऐसा लगा मानो किसी ने हंसीमजाक में इस वहशियाना करतूत को अंजाम दे दिया.

पहले भी हुए हैं शर्मसार

पिछले साल की बात है. महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक आदमी ने एक पिल्ले को पीटपीट कर मार डाला था. यह घटना 3 जुलाई, 2019 को भायंदर के शांति नगर इलाके में आवासीय परिसर में हुई थी. उस आदमी ने सोशल मीडिया पर एक चेतावनी भरा संदेश भेजा था कि परिसर में घुसने वाले जानवरों के साथ यही सुलूक होगा.

अक्तूबर, 2019 का एक और मामला देखिए. पश्चिम बंगाल के शहर मिदनापुर में एक औरत ने अपने पालतू कुत्ते को सिर्फ इसलिए जिंदा जला दिया था कि उस कुत्ते ने घर के लोगों के लिए बना मांस खा लिया था, जबकि उस औरत ने इसे महज हादसा बताया था. पर वहां के लोकल लोगों ने कहा कि उस औरत ने उस कुत्ते पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी थी.

जानवरों पर क्रूरता के ऐसे और भी उदाहरण मिल जाएंगे, जिन में किसी इनसान ने अपनी भड़ास बेजबान जानवर पर निकाली होगी, पर उस समय वह इनसान कहलाने लायक तो बिलकुल नहीं रहा होगा.

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Crime Story: शराबी की विनाश लीला

शराब पीना अलग बात है और शराबी होना अलग. शराबी जब मनमाफिक शराब पी लेता है तो उसे न तो अच्छेबुरे का ज्ञान रहता है और न रिश्तेनातों का. शराब ने हजारों घर उजाड़े हैं. यही हाल रामभरोसे  का था. दुख की बात यह है कि सजा उस की पत्नी और 4 बेटियों को भोगनी पड़ी. अगर… श्यामा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में रसोइया के पद पर कार्यरत थी. वह

छात्राओं के लिए मिड डे मील तैयार करती थी. वह 2 दिन से काम पर नहीं आ रही थी, जिस से छात्राओं को मिड डे मील नहीं मिल पा रहा था. श्यामा शांतिनगर में रहती थी. वह काम पर क्यों नहीं आ रही, इस की जानकारी लेने के लिए कालेज की प्रधानाचार्य ने एक छात्रा प्रीति को उस के घर भेजा. प्रीति श्यामा के पड़ोस में रहती थी और उसे अच्छी तरह जानती थी.

प्रीति सुबह 9 बजे श्यामा देवी के घर पहुंची. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. प्रीति ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला, न ही अंदर कोई हलचल हुई. श्यामा की बेटी प्रियंका प्रीति की सहेली थी, दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. प्रीति ने आवाज दी, ‘‘प्रियंका, ओ प्रियंका दरवाजा खोलो. मुझे मैडम ने भेजा है.’’

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प्रीति की काफी कोशिश के बाद भी दरवाजा नहीं खुला, न ही कोई हलचल हुई.

पड़ोस में श्यामा का ससुर रामसागर रहता था. प्रीति ने दरवाजा न खोलने की जानकारी उसे दी तो वह श्यामा के घर आ गया. उस ने दरवाजा पीटा और ‘बहू…बहू’ कह कर आवाज दी. लेकिन दरवाजा नहीं खुला.

रामसागर ने दरवाजे की झिर्री से झांकने की कोशिश की तो अंदर से तेज बदबू आई. इस से उसे लगा कि जरूर कोई गंभीर बात है. उस ने घबरा कर पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने उसे पुलिस में सूचना देने की सलाह दी. यह 1 फरवरी, 2020 की बात है.

सुबह 10 बजे रामसागर बदहवास सा फतेहपुर सदर कोतवाली पहुंचा. कोतवाल रवींद्र कुमार श्रीवास्तव कोतवाली में ही थे. उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति को बदहवास हालत में देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है, इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रामसागर है. मैं शांतिनगर में रहता हूं. पड़ोस में मेरा बेटा रामभरोसे अपनी पत्नी श्यामा और 4 बेटियों के साथ रहता है. उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद है और भीतर से तेज दुर्गंध आ रही है. मुझे किसी अनिष्ट की आशंका हो रही है. आप मेरे साथ चलें.’’

रामसागर ने जो कुछ बताया, गंभीर था. थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने पुलिस टीम साथ ली और रामसागर के साथ रामभरोसे के घर पहुंच गए. उस समय वहां पड़ोसियों का जमघट लगा था. लोग दबी जुबान से कयास लगा रहे थे.

थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव लोगों को परे हटा कर दरवाजे पर पहुंचे. दरवाजा अंदर से बंद था, उन्होंने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे. घर के अंदर मां और उस की 4 बेटियां थीं. अंदर से दुर्गंध आ रही थी. निस्संदेह कोई गंभीर बात थी. थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने इस मामले की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी.

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जानकारी मिलने पर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा मौके पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने पहले जानकारी जुटाई, फिर थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव को कमरे का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया. रवींद्र कुमार ने अपनी पुलिस टीम की मदद से दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तेज दुर्गंध का भभका निकला.

पुलिस अधिकारियों ने घर के अंदर जा कर देखा तो उन का दिल कांप उठा. वहां का दृश्य बड़ा वीभत्स था. फर्श पर आड़ीतिरछी 5 लाशें एकदूसरे के ऊपर पड़ी थीं. मृतकों की पहचान रामसागर ने की. उस ने बताया कि मृतकों में एक उस की बहू श्यामा है, 4 उस की नातिन पिंकी (20 वर्ष), प्रियंका (14 वर्ष), वर्षा (13 वर्ष) और रूबी उर्फ ननकी (10 वर्ष) हैं.

सभी लाशें फर्श पर पड़ी थीं. देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे सभी ने जहरीला पदार्थ पी कर आत्महत्या की थी. क्योंकि लाशों के पास ही एक भगौना रखा था, जिस में कोई जहरीला पदार्थ आटे में घोला गया था. संभवत: उसी पदार्थ को पी कर मां तथा बेटियों ने आत्महत्या की थी.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच हेतु फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच की तो पता चला कि उन लोगों ने जहरीला पदार्थ (क्विक फास) पी कर जान दी थी. घर से क्विक फास के 7 पैकेट मिले, 4 खाली 3 भरे हुए.

फोरैंसिक टीम ने जहरीले पदार्थ के सातों पैकेट जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिए. भगौना तथा उस में घोला गया जहरीला पदार्थ भी जांच के लिए रख लिया गया.

श्यामा और उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबर जिस ने भी सुनी, वही स्तब्ध रह गया. इस दुखद घटना की खबर जब निरंकारी बालिका इंटर कालेज पहुंची तो वहां शोक की लहर दौड़ गई. प्रधानाचार्य ने कालेज की छुट्टी कर दी. छुट्टी के बाद 20-25 छात्राएं शांतिनगर स्थित मृतकों के घर पहुंची. दरअसल, मृतका प्रियंका, रूबी और वर्षा निरंकारी बालिका इंटर कालेज में ही पढ़ती थीं.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे कि श्यामा ने आर्थिक तंगी और शराबी पति की क्रूरता से तंग आ कर बेटियों सहित आत्महत्या की है. हत्या जैसी कोई बात नहीं थी. पुलिस अधिकारियों ने पांचों शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घर में 5 लाशें पड़ी हुई थीं, इतना कुछ हो गया था, लेकिन घर के मुखिया रामभरोसे का कुछ अतापता नहीं था. पुलिस अधिकारियों ने उस के संबंध में पिता रामसागर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामभरोसे शराबी है. वह दिन भर मजदूरी करता है और शाम को शराब के ठेके पर जा कर शराब पीता है. उस की तलाश ढाबों व शराब ठेकों पर की जाए तो वह मिल सकता है.

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एसपी प्रशांत वर्मा ने सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिसे रामभरोसे की खोज में लगा दिया गया. पुलिस टीम ने कई शराब ठेकों पर उस की खोज की लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस टीम रामभरोसे की खोज करते हुए जब जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर पहुंची तो वह वहां बरतन साफ करते मिल गया. रामभरोसे को हिरासत में ले कर पुलिस टीम सदर कोतवाली लौट आई.

थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने श्यामा के नशेड़ी पति रामभरोसे के पकड़े जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी तो एसपी प्रशांत वर्मा और एएसपी राजेश कुमार कोतवाली आ गए. पुलिस अधिकारियों ने रामभरोसे को जब उस की पत्नी और 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या करने की बात बताई तो उस के चेहरे पर पत्नी और बेटियों के खोने का कोई गम नहीं था.

पूछताछ में उस ने बताया कि उस की नशे की लत को ले कर घर में अकसर झगड़ा होता था. 3 दिन पहले उसका पत्नी से झगड़ा और मारपीट हुई थी. श्यामा ने जहर खा कर जान देने की धमकी भी दी थी, लेकिन उस ने नहीं सोचा था कि श्यामा सचमुच बेटियों के साथ जान दे देगी. वह ठंडी सांस ले कर बोला, ‘‘साहब, पूरा परिवार खत्म हो गया है, अगर कोई मुझे जहर ला कर दे दे तो मैं भी जहर खा कर मर जाऊंगा.’’

एएसपी राजेश कुमार ने रामभरोसे पर नफरत भरी निगाह डाली, फिर बोले, ‘‘रामभरोसे, तेरी क्रूरता और नशेबाजी की वजह से तेरी पत्नी व बेटियों ने अपनी जान दे दी. वह तो मर गई, लेकिन तुझे तिलतिल मरने को छोड़ गई. अब पश्चाताप के आंसू बहाने से कोई फायदा नहीं. तुझे तेरे कर्मों की सजा कानून देगा.’’

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव को आदेश दिया कि रामभरोसे के विरुद्ध आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज करें और उसे जेल भेज दें. रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने मृतका श्यामा के ससुर रामसागर को वादी बना कर रामभरोसे के खिलाफ भादंवि की धारा 309 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के दौरान श्यामा की हताश जिंदगी के दुखद अंत की मार्मिक घटना प्रकाश में आई.

फतेहपुर जिले में एक गांव है नौगांव. इसी गांव के निवासी जयराम की बेटी थी श्यामा. बेटी सयानी हो गई तो 1996 में उस ने श्यामा की शादी रामभरोसे से कर दी.

रामभरोसे का परिवार फतेहपुर शहर के शांतिनगर मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस के पिता रामसागर, मां गौरा के अलावा एक भाई दिनेश था.

रामसागर ट्रक ट्रैक्टर की कमानी की मरम्मत करने वाली दुकान पर काम करता था. उस ने रामभरोसे को भी उसी दुकान पर काम में लगा दिया था.

शादी के बाद अन्य औरतों की तरह श्यामा को भी पहले बेटे की चाहत थी. लेकिन उस की यह चाहत तो पूरी नहीं हुई. हां, उस की गोद में एक के बाद एक 4 बेटियां आ गईं. श्यामा की चारों बेटियां पिंकी, प्रियंका, वर्षा और रूबी भले ही किसी को न सुहाती हों, लेकिन उसे तो बेटों जैसी ही लगती थीं. बेटा न हो पाने से श्यामा की सास उस से नाराज रहने लगी थीं.

4-4 बच्चों का पालनपोषण कोई साधारण बात नहीं होती. श्यामा जब बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी तो घरेलू कामों में उस का योगदान कम हो गया. काम न करने को ले कर श्यामा और उस की जेठानी सुषमा में झगड़ा होने लगा. वह श्यामा के रूपसौंदर्य से तो जलती ही थी, उस की बेटियों से भी नफरत करती थी. साथ ही सास के कान भी भरती रहती थी. सास सुषमा का पक्ष ले कर श्यामा को भलाबुरा कहती थी.

देवरानीजेठानी का झगड़ा बढ़ा तो घर में कलह ने पांव पसार लिए. रामभरोसे जब मां, भाभी और पत्नी के बीच पिसने लगा तो वह शराब पीने लगा. जिस दिन घर में कलह होती, उस दिन वह कुछ ज्यादा ही पी कर आता. श्यामा उसे टोकती तो वह उसे मारनेपीटने लगता.

नशे में वह मांबाप और भाईभौजाई को भी खूब खरीखोटी सुनाता. इतना ही नहीं, वह घर में तोड़फोड़ भी करता था. उस के उत्पात से पूरा घर सहम जाता था. धीरेधीरे पत्नीबच्चों को भूल कर रामभरोसे अपनी पूरी कमाई नशाखोरी में उड़ाने लगा था.

रोजरोज की कलह से आजिज आ कर रामसागर ने रामभरोसे को घर से अलग कर दिया. रहने के लिए उसे पड़ोस में ही एक कमरे बरामदे वाला मकान दे दिया. रामभरोसे अपनी पत्नी श्यामा और 4 बेटियों के साथ उसी एक कमरे वाले घर में रहने लगा.

लड़ाईझगड़े से निजात मिली तो श्यामा ने राहत की सांस ली. उस ने अपने विनम्र स्वभाव से पति को भी समझाया कि वह शराब पीना छोड़ दे और बेटियों की पढ़ाईलिखाई, पालनपोषण पर ध्यान दे. उस ने यह भी कहा कि वह कमाई का कोई दूसरा रास्ता खोजे, जिस से घरगृहस्थी ठीक से चल सके.

रामभरोसे शराबी जरूर था, लेकिन पत्नीबच्चों से उसे प्यार था. उस ने पत्नी की बात मान कर शराब पीनी छोड़ी तो नहीं, लेकिन कम जरूर कर दी. तब तक रामभरोसे कमानी मरम्मत का हुनर सीख चुका था. उस ने पिता के साथ काम करना छोड़ दिया और शांतिनगर स्थित एक गैराज में कमानी मरम्मत का काम करने लगा. गैराज से उसे अच्छी कमाई होने लगी.

पति कमाने लगा तो श्यामा की घरगृहस्थी सुचारू रूप से चलने लगी. वह पति की कमाई से पूर्णरूप से संतुष्ट न सही, पर असंतुष्ट भी नहीं थी. उस की बड़ी बेटी पिंकी शांतिनगर स्थित निरंकारी बालिका इंटर कालेज में पहले से पढ़ रही थी. अब उस ने प्रियंका, वर्षा और रूबी को भी इसी बालिका विद्यालय में दाखिल करा दिया.

श्यामा अपनी बेटियों का जीवन संवारना चाहती थी, इसलिए वह उन के पालनपोषण तथा पढ़ाईलिखाई पर खास ध्यान देने लगी. बेटियों की पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए वह पड़ोस के एक धनाढ्य परिवार में खाना बनाने का काम करने लगी.

समय के साथ श्यामा की बेटियां साल दर साल बड़ी होती गईं. सन 2015 में एक बार फिर श्यामा के जीवन में ग्रहण लगना शुरू हो गया. इस ग्रहण ने उस के जीवन में ही नहीं, बल्कि बेटियों के जीवन में भी अंधेरा कर दिया.

हुआ यह कि जिस गैराज में रामभरोसे कमानी मरम्मत का काम करता था, उसी में एक युवक विपिन काम करता था. साथसाथ काम करते हुए विपिन और रामभरोसे में दोस्ती हो गई. दोस्ती गहरी हुई तो दोनों साथ खानेपीने लगे. दोस्ती के नाते एक रोज रामभरोसे विपिन को अपनेघर ले आया.

घर पर पीनेखाने के दौरान विपिन की नजर रामभरोसे की खूबसूरत बीवी श्यामा पर पड़ी. श्यामा 4 बेटियों की मां जरूर थी, लेकिन उस में यौनाकर्षण बरकरार था. पहली ही नजर में श्यामा विपिन के दिलोदिमाग पर छा गई. वह श्यामा को अपनी अंकशायिनी बनाने के सपने संजोने लगा.

विपिन जानता था कि श्यामा के बिस्तर तक पहुंचने का रास्ता रामभरोसे से हो कर जाता है, इसलिए उस ने रामभरोसे से और भी गाढ़ी दोस्ती कर ली. वह उसे मुफ्त में शराब और मीट खिलाने लगा. यही नहीं, वह गाहेबगाहे उस की आर्थिक मदद भी करता था. विपिन ने जब देखा कि रामभरोसे पूर्णरूप से उस के अहसान तले दब चुका है, तब उस ने कहा, ‘‘रामभरोसे, ठेके पर पीने से मजा किरकिरा हो जाता है. घर में बैठ कर पीने का मजा ही कुछ और है. भाभी के हाथ का पका गोश्त मजा और भी दूना कर देगा.’’

मुफ्त की शराब और गोश्त के लालच में रामभरोसे ने विपिन की बात मान ली. इस के बाद वह मीट की थैली और शराब की बोतल ले कर रामभरोसे के घर पहुंचने लगा. श्यामा मीट पकाती और वे दोनों बैठ कर शराब पीते. फिर साथ बैठ कर ही खाना खाते.

विपिन इस बीच श्यामा को ललचाई नजरों से देखता और उस की खूब तारीफ करता. बच्चों को ललचाने के लिए वह टौफीबिस्कुट लाता था. कभीकभी बच्चों को नकद रुपए भी थमा देता था. यहीं नहीं, वह श्यामा को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसे भी 5 सौ का नोट थमा देता था.

कहते हैं औरत को मर्द की निगाह की अच्छी परख होती है. श्यामा ने भी विपिन की नजर परख ली थी. वह जान गई थी कि विपिन की नजर उस के जिस्म पर है. उस ने उसे पापकुंड डुबोने के लिए पति का सहारा लिया है.

उस के मन में पाप है, अगर इस पाप में वह भागीदार बन गई तो वह बेटियों को भी नहीं छोड़ेगा. श्यामा उस के बढ़ते कदमों को रोकना चाहती थी.

एक दिन शाम को जब विपिन और रामभरोसे आए तो श्यामा दीवार बन कर दरवाजे पर खड़ी हो गई. उस ने साफ कह दिया, ‘‘विपिन, रोजरोज घर पर पीने का तमाशा नहीं चलेगा. पीना है तो ठेके पर जाओ. घर में हमारी बेटियां हैं. मैं उन के सामने तुम्हें शराब नहीं पीने दूंगी.’’

‘‘भाभीजी, आज आप को क्या हो गया जो खानेपीने को मना कर रही हो?’’ विपिन असहज सा हुआ तो वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘विपिन, मैं कोई बच्ची नहीं हूं. सब जानती हूं, तुम मेरे घर में पैर क्यों पसार रहे हो. क्यों मेरे पति को गुमराह कर रहे हो, क्यों मेरी आर्थिक मदद करते हो. इन सब बातों का जवाब जानना चाहते हो तो सुनो, क्योंकि तुम्हारी निगाह मेरे जिस्म पर है.’’

कड़वी सच्चाई सुन कर विपिन की बोलती बंद हो गई. वह वापस लौट गया. ठेके पर पीने के दौरान विपिन ने श्यामा के खिलाफ रामभरोसे के खूब कान भरे, बेइज्जत करने का इलजाम लगाया.

देर रात नशे में धुत हो कर रामभरोसे घर आया तो विपिन को घर से बेइज्जत कर भगाने को ले कर श्यामा से भिड़ गया. श्यामा ने पति को समझाने का प्रयास किया, लेकिन उस की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने श्यामा को जम कर पीटा. बड़ी बेटी पिंकी मां को बचाने आई तो उस ने उस की भी पिटाई कर दी.

विपिन की चाहत पूरी नहीं हुई तो उस ने श्यामा के जीवन को बरबाद करने का निश्चय कर लिया. शाम होते ही विपिन रामभरोसे को ठेके पर ले जाता. उसे जम कर शराब पिलाता, फिर श्यामा के खिलाफ भड़काता.

इस के बाद रामभरोसे नशे में धुत हो कर घर पहुंचने लगा. वह बातबेबात श्यामा से उलझता, फिर उसे जानवरों की तरह पीटता. बेटियां बचाने आतीं तो उन्हें गला दबा कर मारने की धमकी देता. पासपड़ोस के लोग चीखपुकार सुन कर श्यामा को बचने आते तो वह उन से भी भिड़ जाता. उन्हें भद्दीभद्दी गालियां देता और वापस जाने को कहता.

रामभरोसे जब रातदिन नशे में धुत रहने लगा तो गैराज मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया. विपिन ने भी अब उसे मुफ्त में शराब पिलाना बंद कर दिया था. वह शराब के जुगाड़ के लिए कभी रिक्शा चलाता तो कभी ढाबों पर जा कर बर्तन मांजता. शराब पीने के बाद कभी वह घर आता तो कभी ढाबे पर ही सो जाता. उसे अब न पत्नी की चिंता थी और न बेटियों की.

पति की नशेबाजी से घर की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी. जब बेटियों के भूखे मरने की नौबत आ गई, तब श्यामा नौकरी की तलाश में जुटी. 8वीं पास श्यामा को अच्छी नौकरी कहां मिलती. उस ने मोहल्ले में ही स्थित निरंकारी बालिका इंटर कालेज की प्रधानाचार्या से संपर्क किया और अपनी व्यथा बता कर जीवनयावन के लिए काम मांगा. प्रधानाचार्या ने श्यामा पर तरस खा कर उसे रसोइया की नौकरी दे दी. इस तरह श्यामा को 2 हजार रुपए माह वेतन पर मिड डे मील बनाने का काम मिल गया.

नौकरी मिलने के बाद श्यामा किसी तरह अपनी बेटियों का पालनपोषण करने लगी. उस की बड़ी बेटी पिंकी अब तक निरंकारी बालिका इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर महात्मा गांधी महाविद्यालय में बीए (फर्स्ट ईयर) में पढ़ने लगी थी.

उस की 3 बेटियां प्रियंका, वर्षा और रूबी निरंकारी बालिका विद्यालय में ही पढ़ रही थीं. श्यामा उन्हें सुबह अपने साथ ले जाती और फिर छुट्टी होने के बाद साथ ही ले आती थी. मिड डे मील का बचा खाना भी वह अपने साथ ले आती जो शाम को मांबेटियों के खाने के काम आता था.

नशेड़ी पति की दहशत से श्यामा व उस की बेटियां डरीसहमी रहती थीं. जब वह ज्यादा नशे में होता तो श्यामा दरवाजा नहीं खोलती थी. इस पर वह दरवाजा तोड़ने का प्रयास करता और खूब गालियां बकता. श्यामा के कमरे के सामने खाली जगह पड़ी थी. उस ने खाली जगह पर घासफूस का एक छप्पर रखवा कर एक चारपाई डलवा दी थी ताकि नशेड़ी पति कमरे के बजाए उसी छप्पर के नीचे सो जाए.

श्यामा की बड़ी बेटी पिंकी 19 साल की हो चुकी थी. वह मोहल्ले के कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना व अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल लेती थी. पिंकी की एक सहेली पूजा थी, जो उस के साथ ही पढ़ती थी. वह उस से कहती थी कि मां के हौसले से ही वह जिंदा है.

पहले वह छोटी बहनों को पढ़ा कर पैरों पर खड़ा करेगी. उस के बाद अपनी शादी की सोचेगी. वह मां का हौसला कभी नहीं टूटने देगी. उस की 14 वर्षीय छोटी बहन प्रियंका कक्षा 9 में और 13 साल की वर्षा 7वीं कक्षा में थीं, जबकि 10 वर्षीय रूबी अभी कक्षा 5 में थी.

रामभरोसे पक्का शराबी था. जिस दिन उस के पास शराब पीने को पैसे नहीं होते, उस दिन वह श्यामा से मांगता. इनकार करने पर वह उसे मारतापीटता और बक्से में रखे पैसे निकाल लेता. पैसा न मिलने पर वह घर का सामान बर्तन, अनाज व कपड़े उठा कर ले जाता और बेच कर शराब पी जाता. वह ऐसा कमीना बाप था, जो बेटियों के गुल्लक तक तोड़ कर पैसे निकाल लेता था.

नशेड़ी पति की हरकतों से परेशान श्यामा की हसरतें अधूरी रह गई थीं. उस के हौसले टूटने लगे थे, वह मानसिक तनाव में रहने लगी थी. कभीकभी वह अपना दर्द अपनी सहयोगी तारावती से बयां करती थी. वह उस से कहती थी कि बड़ी बेटी पिंकी के ब्याह की चिंता सता रही है. घर की माली हालत खराब है, ऐसे में उस की शादी कैसे होगी. पिंकी के अलावा 3 अन्य बेटियां भी हैं, जो साल दर साल बड़ी हो रही हैं.

30 जनवरी की शाम 4 बजे रामभरोसे घर आया. उस समय श्यामा के अलावा उस की चारों बेटियां घर पर ही थीं. रामभरोसे ने आते ही श्यामा से शराब पीने के पैसे मांगे. उस ने पैसा देने से मना किया तो रामभरोसे ने पास में रखा डंडा उठाया और श्यामा को पीटने लगा.

प्रियंका और रूबी शोर मचाने लगीं तो रामभरोसे ने उन्हें भी पीटना शुरू कर दिया. मांबेटी अपनी जान बचा कर भागीं तो उस ने उन का पीछा किया. उन्होंने किसी तरह रामशरण के घर में घुस कर जान बचाई. गुस्से से लाल रामभरोसे घर आया. उस ने घर का सामान तहसनहस कर दिया, घर के बाहर पड़ा छप्पर उलट दिया. फिर वह  शराब पीने ठेके पहुंच गया.

इधर श्यामा पति की हैवानियत से इतनी ऊब गई थी कि उस ने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया था. वह बाजार से फसलों के बीज बेचने वाली दुकान से क्विक फास के 7 पाउच खरीद लाई. यह दवा गेहूं को घुन से बचाने के लिए गेहूं भंडारण में रखी जाती है.

दवा लाने के बाद श्यामा ने चारों बेटियों को अपने सामने बिठाया और बोली, ‘‘तुम्हारे नशेड़ी बाप की हैवानियत से मैं टूट चुकी हूं. उस के जुल्म अब और नहीं सह पाऊंगी. इसलिए मैं ने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया है.’’

यह सुन कर पिंकी बोली, ‘‘मां, आप तो मेरी संबल हो. आप के हौसले से ही हम जिंदा हैं. जब आप ही नहीं रहोगी तो हम जी कर क्या करेंगे. हम सब एक साथ ही मरेंगे.’’

‘‘शायद तुम ठीक कहती हो. क्योंकि मेरे न रहने पर वह नशेड़ी अपने नशे के लिए या तो तुम सब को बेच देगा या फिर घर को देह व्यापार का अड्डा बना देगा. इसलिए उस के जुल्मों से बचने के लिए आत्महत्या करना ही बेहतर है.’’

जब श्यामा की चारों बेटियां एक राय हो कर मां के साथ आत्महत्या करने को राजी हो गईं, तब श्यामा ने कमरे की अंदर से कुंडी बंद कर दी.

इस से बुरा क्या हो सकता है कि श्यामा के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि जहर मिलाने के लिए कोल्डडिंक या कोई पेय ले आती.

वह चूंकि फैसला कर चुकी थी, इसलिए उस ने भगौने में आटे का घोल बनाया और जहर की 7 में से 4 पुडि़या घोल में मिला दीं.

इस के बाद दिल को कड़ा कर के बारीबारी से चारों बेटियों को घोल पिला दिया और खुद भी पी लिया. जहरीले घोल ने कुछ देर बाद ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. सभी मूर्छित हो कर आड़ेतिरछे एकदूसरे पर गिर गईं. उन के प्राणपखेरू कब उड़े, किसी को पता नहीं चला.

लगभग 33 घंटे बाद इस घटना की जानकारी तब हुई, जब निरंकारी बालिका विद्यालय की छात्रा प्रीति श्यामा के घर आई. उस ने दरवाजा न खोलने की जानकारी श्यामा के ससुर रामसागर को दी. रामसागर ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तो मां व उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की जानकारी हुई. पुलिस ने शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो नशेड़ी पति की हैवानियत से ऊब कर आत्महत्या करने की यह घटना प्रकाश में आई.

5 फरवरी, 2020 को थाना सदर कोतवाली पुलिस ने रामभरोसे को फतेहपुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया.

नई राह- भाग 1: कैसे हटा अंधविश्वास का परदा?

विहान होने को था. मैं ने खिड़की से बाहर झांका, कालिमा से ढकी शहर की इमारतें उभरने लगी थीं. पंछियों की चहचहाहट भोर का संदेश पढ़ रही थी, तभी फोन भी उन के साथ संगीत देने लगा. बिस्तर छोड़ कर फोन उठाया. मां का फोन था. बिना किसी खास प्रयोजन के मां ने कभी इतनी सुबह फोन नहीं किया. कुछ बात जरूर है, मन में अंदेशा हुआ. तब सुबह के 6 बज रहे थे.

‘‘जय गुरुदेव मां, सब ठीक है न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जय गुरुदेव. यहां सब ठीक है, निधि कैसी है?’’

‘‘अच्छी है, आजकल उसे पेंटिंग बनाने का शौक लगा है.’’

‘‘यह तो अच्छी बात है. अब एक बात ध्यान से सुनो, बेटा. तुम्हें 2 लाख रुपयों की व्यवस्था करनी है. इसे गुरु महाराज का आदेश ही समझना,’’ मां सीधे काम की बात पर आ गईं.

मुझे काटो तो खून नहीं. कैसे अपनी विवशता बताऊं. एक उलझन पहेली बन कर मुझ से प्रश्न करने लगी.

‘‘मां, इस वक्त मैं ऐसी स्थिति में नहीं कि रुपए भेज सकूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘इतने साल हो गए नौकरी लगे. कहां जा रहा है पैसा? बीवी के पल्लू से बंधा रहेगा तो कंगाल ही रहेगा,’’ मां अपना लहजा जरा सख्त करते हुए बोलीं.

मां द्वारा बारबार पैसों की मांग. बारबार मकान बदलना. औफिस जाने-आने का खर्च और ऊपर से गृहस्थी चलाना. किस तरह बचत होगी, मैं ने सोचा.

मां कहती चली गईं, ‘‘तेरे बाद ही कन्नू का जौब लगा है. वह 3 लाख रुपए आश्रम को दे रहा है.’’

सुबहसुबह सारा मूड खराब हो गया. मां से बहस करना व्यर्थ था. मैं चुप रह गया.

‘‘दीक्षा तू ने भी ली, कन्नू ने भी. वह भक्ति मार्ग में कितना आगे बढ़ गया, तू जहां का तहां रह गया. बीवी ने तुझे कहीं का नहीं छोड़ा. अरे मूर्ख, आश्रम में गुरु महाराज एक बड़ा हौल बनवा रहे हैं, कुछ कमरे भी बनेंगे. जब कभी गंगा स्नान को जाएंगे तो वहां जब तक चाहें निशुल्क रह सकेंगे.’’

‘‘वह तो ठीक है लेकिन अभी 2 लाख रुपए कहां से लाऊं? मैं फ्लैट खरीदने की सोच रहा था, मां,’’ अंतर्मन पीड़ा से आहत हो गया.

‘‘अभी कौन सी उम्र जा रही है, ले लेना बाद में. कन्नू से कुछ सीख. गुरु महाराज की एक बार कृपा चली गई तो फिर कुछ हासिल नहीं होगा,’’ मां ने गुस्से में फोन पटक दिया.

मैं झुंझलाहट और खीझ से भर उठा. हर चीज से बैर होने लगा. जिंदगी एकाएक मुश्किलों का पहाड़ बन गई. इस उम्र तक भी मेरे निर्णय अपने नहीं थे. मांबाप के हाथों की कठपुतली बने नाच रहे थे हम सब. इन हालात की उत्पत्ति में मूल कारण मातापिता ही थे जो हमें सहीगलत का फर्क नहीं सिखा पाए. हम तीनों भाईबहन कैसे बड़े हुए, पता नहीं चला.

पिताजी सरकारी नौकरी में थे. मां पुराने खयालों की थीं, साथ ही तेजतर्रार और तीखे स्वभाव की. वहीं पिता का शांत स्वभाव. विडंबना थी कि हर फैसले मां के ही अनुरूप होते. चाहे गलत ही हों, कभी विरोध नहीं हुआ. 3 भाईबहनों में मैं सब से बड़ा था. सब से छोटी बहन थी. मां की बातों से असहमत हो कर भी पिताजी खामोश रह जाते और मां की हर बात पत्थर की लकीर बन जाती.

मां अथाह अंधश्रद्धा के रास्ते पर चल दीं. पिता भी उसी राह पर घिसटने को मजबूर हो गए. संतअसंत के भेद को समझ नहीं पाए. समयकुसमय सत्संगों में जाने लगे. धीरेधीरे क्रम बढ़ता ही चला गया.

तब मेरी उम्र ऐसी न थी कि परिस्थितियों का विवेचन कर पाता. पढ़नेखेलने की उम्र थी. स्कूल से आते तो घर सूना नजर आता. पिता या तो औफिस में होते या मां के साथ किसी संतसमागम में. हम कई बार भूखे रह जाते. छोटी बहन भूख से बिलबिला उठती. हम घर का कोनाकोना छान मारते. जो कुछ हाथ लगता, मैं पका लेता.

कई बार आग से हाथ जल जाते. हमारा किसी से कोई सरोकार न था. रिश्तेदार बिना खास प्रयोजन के फोन तक नहीं करते थे. एक गुमनाम सी जिंदगी बिता रहे थे. मांबाप को इसी में जिंदगी का सच दिखता. हम कच्ची उम्र में यथार्थ के आईने से दूर थे. कुछ दिखाई नहीं दिया. अब यह एहसास रहरह कर मन में कौंधता है और धूधू कर जलने को विवश कर देता है. पिताजी की कमाई सामान्य थी. इतनी नहीं थी कि हर आवश्यकता की पूर्ति हो. किराए के घर में अभावों का डेरा था. तंगहाली में जिंदगी जीने के आदी हो गए थे हम लोग.

मां वेतन का हिसाबकिताब रखतीं और जमापूंजी आश्रमों में भेंट कर देतीं. सोच और दिशा जब काबू में नहीं रह जाते तब इंसान सही रास्ते का चुनाव करने से चूक जाता है.

समय बीत रहा था. मातापिता का विरक्ति की ओर रुझान था. यथार्थ से कहीं दूर, एक डोर थी जो हमें खुदबखुद खींचती जा रही थी. पढ़ने में सभी औसत से ऊपर थे, आगे बढ़ते रहे. छोटी बहन को लाड़प्यार ने जिद्दी बना दिया. उस की महत्त्वाकांक्षाओं ने सीमाएं लांघ दीं. एमबीए करने के बाद भी घर में रह गई. छोटामोटा जौब नहीं करना चाहती थी. शादी की बात उठती तो वह होने वाले हर रिश्ते में मीनमेख निकालने लगती. रिश्ता भी ऊंचे दरजे का चाहिए था. उम्र खिसक रही थी. न मां को, न पिताजी को ही चिंता होती.

दोनों आश्रमों के चक्करों में लट्टू बने रहे. हमें भी गुरु महाराज से दीक्षा दिलवाई गई. चमत्कार और कल्याण की अपेक्षा में दोनों भरेपूरे परिवार को छोड़ इधरउधर दौड़ते रहे.

नतीजतन, आज तक बहन के हाथ पीले न हो सके. इस का मलाल उन्हें तब भी नहीं था, आज भी नहीं है. आज भी बहन एक जौब करती है, दूसरा पकड़ लेती है.

ऐसे माहौल में हम ने किस तरह पढ़ाई पूरी की, कैसे जौब मिला, इस की अलग दास्तान है. जीवन में उतारचढ़ाव, सफलताअसफलता मेहनत और पुरुषार्थ पर निर्भर है. कभी इच्छाएं थोड़े परिश्रम से पूरी हो जाती हैं, कभी कठिनाई से लेकिन इस तरह नहीं जैसे हमारा परिवार चाहता था.

मेरे औफिस के सभी सहकर्मियों के पास अपना घर है, गाड़ी है. एक खुशहाल जिंदगी है. मेरे पास किराए का फ्लैट है और थोड़ाबहुत सामान. हमारा रुपयापैसा सत्संगों, समागमों की भेंट चढ़ रहा था. पूरा परिवार किसी अज्ञात अग्निपथ पर बढ़ा जा रहा था.

जब विवाह हुआ तब पत्नी के गुणों को समझने लायक न था. उस की सच्ची बातें व्यर्थ लगतीं. जब उम्र ने समझाया, लोगों का उत्थान देखा तब हकीकत की जमीन दिखाई दी.

आंखों के आगे घुप अंधेरा सा छा गया. जब अंधेरा छंटा तो काफी समय बीत गया. तनाव बादल की शक्ल में अभी तक दिलोदिमाग में तैरे ही जा रहे थे.

कुछ दूर बैठी रश्मि खिड़की पर लगे परदे के फटे हिस्से को तल्लीनता से सी रही थी. उस के चेहरे में एक गंभीरता थी जो वह पढ़ रहा था.

ससुराल में रश्मि के पैर पड़े. उस ने घर की जीर्णशीर्ण व्यवस्था बदलनी चाही किंतु आजादी न मिली. उसे विरोधी और धर्माचरण विपरीत कहा गया. अब वह इसी परिवेश में खो गई है. विवाह के चंद महीनों तक जो कांति और चुलबुलाहट थी उसे निराशा के शृंगार ने ढक लिया था. मातापिता अकसर छोटे भाई के पास ही रहते. हमारे साथ होते तो विचारों में एकरूपता नहीं रहती. कन्नू पर उन का प्यार हर वक्त बरसता रहता क्योंकि कन्नू और उस की पत्नी रिचा मां के हर आदेश पर एकसाथ खड़े हो जाते.

रश्मि सुशील और व्यावहारिक थी किंतु उन्हें पसंद न थी. रश्मि के मन में आदरसम्मान था और वे उपेक्षा करते.

इसी सप्ताह मैं ने फ्लैट खरीदने का फैसला किया तो रश्मि की आंखों में हसीन सपने तैरने लगे. इधर मैं 35 लाख रुपए जुटाने की जुगत में लग गया. बैंक से कर्ज उठाने के लिए दौड़धूप करने लगा. इतने सालों में कुल 4 लाख रुपए बैंक में जमा हो पाए थे. रिश्तेदारों से कहना मूर्खता थी. रश्मि के पिता ने भी खुशी से सहायता करने की हामी भर दी. अब मां के आदेश ने अरमानों के हसीन घर की चूलें हिला कर रख दीं.

‘‘रश्मि, इधर आओ तो जरा. तुम से राय लेनी है.’’

‘‘आती हूं. बस, 2 मिनट,’’ रश्मि परदे को यथावत लटकाते हुए बोली.

थोड़ी देर बाद वह आई, ‘‘बताओ, क्या बात है?’’

8 टिप्स: खाने का सामान पैक करते वक्त रखें इन बातों का खास ख्याल

हम लोग एक बार उदयपुर घूमने गए. रास्ते में एक दिन के लिए हम अपने एक परिचित के यहां रुक गए. चलते समय उन परिचित ने रास्ते के लिए डब्बे में पैक कर के खाना दिया. भूख लगने पर जब हम ने डब्बा खोला तो पाया कि जिस मिठाई के डब्बे में उन्होंने खाना रख कर दिया था उस में चारों ओर से फफूंद लगी थी. सारा खाना फेंकना पड़ा. इन सब घटनाओं के विपरीत, मेरी एक भाभी खाना इतनी अच्छी तरह से पैक करती हैं कि भूख न होने पर भी खाना खाने की इच्छा हो जाती है. वे साफसुथरे डब्बे में खाने के साथसाथ अचार, सलाद और मिठाई सब अलगअलग सिल्वर फौइल में पैक कर के रखती हैं. साथ ही जिस बैग में खाना होता है उस में डिस्पोजल प्लेट, गिलास, चम्मच, पेपर नैपकिन और बिछाने के लिए पेपर भी मौजूद होता है.

1. आप जब किसी के यहां खाने का कुछ सामान भिजवाएं अथवा पैक करें तो इस प्रकार से हो जिसे देख कर सामने वाले का मन खुश हो न कि खिन्न. आप की जरा सी लापरवाही आप की समस्त सुघड़ता पर प्रश्नचिन्ह लगा देती है. इसलिए ध्यान रखें:

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2. खाना पैक करने वाला डब्बा चाहे स्टील, प्लास्टिक या गत्ते का हो, वह पूरी तरह से साफसुथरा होना चाहिए. टूटेफूटे, मैलेकुचैले या फफूंद लगे डब्बे का प्रयोग न करें.

3. खाना पेपर या कौपी के कागज में न लपेट कर सिल्वर फौइल में लपेटें. सब्जी, अचार, पूड़ी के लिए अलगअलग सिल्वर फौइल का प्रयोग करें. सब्जी, अचार आदि रखने के लिए जिप वाले छोटे प्लास्टिक बैग का प्रयोग भी कर सकती हैं.

6. पैक करते समय जहां तक संभव हो, गीली सब्जी रखने से बचें क्योंकि हिलनेडुलने पर सब्जी बाहर निकलने की संभावना रहती है.

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7. जिस बैग में खाना रख रही हैं उस में खाना खाते समय प्रयोग होने वाली समस्त वस्तुओं को एकसाथ रखें ताकि बारबार अलगअलग बैग न खोलने पड़ें.

8. रास्ते में खाना स्वादिष्ठ लगे, इस के लिए खाने के साथसाथ अचार, पापड़, सलाद और नमकीन आदि भी रखें.

नई राह- भाग 3: कैसे हटा अंधविश्वास का परदा?

टे्रन आ चुकी थी. मैं रश्मि और निधि के साथ प्लेटफौर्म पर पहुंचा ही था कि निधि अपनी उंगलियों को छुड़ाती हुई चिल्लाई, ‘‘वे रहे दादादादी,’’ और दौड़ कर दादाजी से लिपट गई.

‘‘जय गुरुदेव, बच्चो,’’ मां ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाया.

रश्मि ने बढ़ कर मां के पांव छूते हुए कहा, ‘‘प्रणाम, मांजी.’’

मां ने आंखें तरेरीं, ‘‘जय गुरुदेव बोलो, हम जो संस्कार दे रहे हैं उन पर चलोगे तभी कल्याण होगा.’’

‘‘बातें बाद में हो जाएंगी, पहले आश्रम पहुंचो,’’ पिताजी ने बहस का अंत करने का माध्यम ढूंढ़ा.

आश्रम तक पहुंचने का मार्ग पक्का था, सड़क के दोनों ओर छायादार व घने पेड़पौधे थे. मुख्यद्वार से सटी कई दुकानें थीं. पूजा सामग्री, भांतिभांति के वस्त्र, जड़ीबूटियां और गुरु महाराज के सान्निध्य में बनाई जाने वाली दवाओं, पत्रिकाओं इत्यादि से दुकानें सुसज्जित थीं. मां प्रसन्नचित्त हो कर हमारा मार्गदर्शन कर रही थीं. प्रवेशद्वार को पार करते ही आश्रम की भव्यता ने बरबस आंखें खींच लीं. हम लोग आगे बढ़ते रहे. पंक्तिबद्ध पीत वस्त्रधारी श्रद्धालु भजन गाते हुए जा रहे थे. लंबे भूभाग में कई भवन थे. गुरु भवन, गुरु कृपा भवन, गुरु तीर्थ भवन, गुरु वाणी भवन और उस के बाईं ओर गुरु नियंत्रण और व्यवस्था भवन थे. मैदान के ठीक सामने नवनिर्मित धर्मशालाएं थीं.

हमें सर्वप्रथम ठहरने की व्यवस्था करनी थी, इसलिए हम सभी व्यवस्थापक कक्ष की ओर चल दिए. कुरसी पर दाढ़ी वाला एक अधेड़ बैठा था. रेशमी भगवा कुरतापजामा पहने और रेशमी राम नाम की शौल ओढ़े बड़ा सा चंदन का टीका, बड़ीबड़ी आंखें और चेहरा कुटिलता से भरा प्रतीत हो रहा था. 2 युवतियां भगवा कपड़ों में उस के हाथ दबा रही थीं. एक सिर की मालिश कर रही थी.

‘‘जय गुरुदेव, क्या आप ही व्यवस्थापक हैं?’’ मां ने पूछा.

‘‘जय गुरुदेव. कहिए?’’ उस ने लंबी दाढ़ी पर हाथ घुमाते हुए कहा.

‘‘हम सभी बाहर से आए हैं. धर्मशाला में कमरा चाहिए,’’ पिताजी ने आने का प्रयोजन बताया.

‘‘फिलहाल कमरे तो खाली नहीं हैं. परसों गुरु पर्व है, यहां काफी गुरु परिवार हैं,’’ उस व्यक्ति ने कहा.

‘‘हम भी गुरु परिवार से हैं. चलने से पहले फोन भी किया था,’’ मां ने अधीर स्वर में कहा.

‘‘किया होगा, लेकिन जो पहले आ गए उन्हें तो देना ही पड़ेगा. यदि आप लोग शिविर में रहना चाहते हैं तो उस की व्यवस्था हो सकती है,’’ उस ने कहा.

‘‘हम ने धर्मशाला हेतु योगदान किया है. तब हम से कहा गया था कि जब कभी आप आश्रम में आएंगे आप को कमरा दिया जाएगा.’’

‘‘आप ने सहर्ष दान दिया होगा, आश्रम ने किसी को बाध्य नहीं किया है. जहां तक ठहरने का प्रश्न है वह आश्रम के नियमानुसार ही होगा,’’ उस व्यक्ति ने उठने का उपक्रम किया.

‘‘बच्चों का सुख छीन कर 5 लाख रुपए भेजे थे आश्रम के लिए. मेरे सम्मान के लिए एक कमरा भी नहीं है यहां,’’ मां ने क्रोध में तिलमिलाते हुए कहा.

दाढ़ी वाला व्यक्ति भड़क उठा, ‘‘5 लाख रुपए से एक कमरा नहीं बनता. दान देने वाले भक्त करोड़ों रुपए दे डालते हैं.’’

‘‘मुझे मत समझाओ. गुरु महाराज से कह कर हटवा भी सकती हूं तुम्हें,’’

मां ने चेतावनी भरे लहजे में कहा तो वह आगबबूला हो गया, ‘‘आप लोग सम्मानपूर्वक यहां से जाते हैं या धक्के मार कर भेजा जाए? फैसला आप लोगों पर है.’’

मां अपमान के घूंट पी कर रह गईं. दोनों बहुओं के सामने शर्म से पानीपानी हो गईं. चेहरा ग्लानिवश पीला पड़ गया था. क्रोध की ज्वाला भी रहरह कर आंखों से उठगिर रही थी. फिर थोड़ी ही देर में आंसुओं की अनवरत धारा बहने लगी.

पिताजी से नहीं रहा गया. उन का चेहरा तमतमा उठा, ‘‘अब खड़ीखड़ी क्या टेसुए बहा रही हो. सामान उठाओ और चलो यहां से. बहुत देख ली अपनी और बच्चों की बरबादी. मैं सहता रहा क्योंकि मैं एक कमजोर इंसान था. घर की सुखशांति की खातिर मौन रहा, यह मेरा अपराध है. मैं ही बच्चों की बरबादी का असली कारण हूं. आज तक मैं चुप रहा, अब नहीं रहूंगा.’’

मां ने आग्नेय दृष्टि पिताजी पर डाली. लेकिन उन के कड़े तेवर देख कर नरम पड़ गईं और फिर धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘गुरु महाराज से इस व्यवस्थापक की शिकायत जरूरत करूंगी, देखना.’’

‘‘जैसा इसे निर्देश दिया होगा यह वैसा ही करेगा. मूर्ख तो हम थे जो अपनी मेहनत की जमापूंजी ऐसे ठगों पर लुटाते रहे. दुख इस बात का है कि बच्चों की नजर में हम गिर गए.’’

‘‘गुरु महाराज से मिलना ही पड़ेगा. आप नहीं जाते तो मैं जाऊंगी जरूर,’’ मां रोआंसी हो कर बोलीं.

‘‘तुम्हें जाना है जाओ. मैं तो वृद्धाश्रम जा रहा हूं और बच्चों को अपने विवेक से जीने की आजादी देता हूं. मैं यह भी चाहता हूं कि तुम भी बच्चों को खुली हवा में सांस लेने दो.’’

कन्नू मेरी तरफ देख रहा था, और मैं उस की. आज पहली बार पिताजी के इस रवैये ने हम सभी को अचंभित कर दिया था. मां की हर बात को पत्थर की लकीर मानने वाले आज खुद चट्टान की तरह सख्त हो गए थे.

‘‘पिताजी ठीक ही कह रहे हैं. जो हुआ सो हुआ. इस से हमें सीख लेनी चाहिए,’’ कन्नू की आंखों में आंसू झिलमिला उठे.

मैं ने कन्नू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘पिताजी कहीं नहीं जाएंगे, हमारे साथ ही रहेंगे. हमें विकास के रास्ते पर जाना है, तबाही के नहीं. इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता रुचि के लिए रिश्ता ढूंढ़ने की रहेगी.’’

‘‘हां भैया, आप ठीक कहते हो. अब बहुत हो गया. भाभी ने आप को इस दलदल से बाहर निकाला है, अब हमारा भी मार्गदर्शन करो. मांपिताजी के प्रति हमारी श्रद्धा आज भी है, कल भी रहेगी. किंतु ऐसे दलदल में हम कभी पैर

नहीं रखेंगे, जहां से पतन का रास्ता निकलता हो.’’

मां की मुखाकृति सामान्य होती जा रही थी. दोनों बहुओं के कपोल खुशी से दमक रहे थे. रुचि ने बढ़ कर मां का हाथ अपने दोनों हाथों से ढक लिया. उधर, कन्नू बोलता ही जा रहा था, ‘‘इन साधुअसाधु में फर्क करना हमारे बूते में नहीं है. बहुत हो गया, अब हम और नहीं लुटेंगे.’’

‘‘अब चलो, होटल चलते हैं जहां खर्चा तो होगा लेकिन ठाट से रहेंगे. कल सुबह हम नदी की सैर करेंगे और पिछली भूलों को उस गंदे नाले में बहा देंगे.’’

मेरे इतना कहते ही सब ने अपनाअपना सामान उठाया और आगे बढ़ गए एक नई राह पर. द्य

जीवन में सफलताअसफलता मेहनत और पुरुषार्थ पर निर्भर है. इच्छाएं कभी थोड़े से परिश्रम से पूरी हो जाती हैं, कभी कठिनाई से लेकिन उस तरह नहीं जैसे हमारा परिवार चाहता था.

Hyundai #AllRoundAura: ऑल राउंड औरा

स्टाइलिश नई हुंडई औरा एक कॉम्पैक्ट सेडान है, जो पहली नजर में ही अपनी एक अलग पहचान बनाती है. इस में कुछ ऐसे खास गुण है जो बाकी गाड़ियों से अलग है. और हम उन सबके बारे में आपको बताएंगे हमारी इस नई श्रृंखला में, जो ख़ास तौर पर है हुंडई औरा के बारे में. वैसे तो इसके फीचर्स की सूची पर एक नज़र डालते ही आप समझ जाएंगे कि हुंडई औरा इतनी लोकप्रिय क्यों है, लेकिन हम यहां बात करेंगे कुछ ऐसे बेहतरीन फीचर्स के बारे में, जो इसे और अधिक विशेष बनाते हैं.

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7 टिप्स: आंखों को इन सात बीमारियों से ऐसे बचाएं

आंखों की सुदंरता के लिये जरूरी यह होता है कि उसके आसपास की त्वचा भी सुदंर हो. आंखांे के आसपास की सुदंर त्वचा से आंखों की सुदंरता बढ जाती है. आंखों में होने वाली कुछ बीमारियों से आंखों के आसपास की त्वचा खराब हो जाती है. इसलिये जरूरत इस बात की है कि इन बीमारियो से बचाव करके आंखो को सुंदर बनाया जाय. आंखों के आसपास की त्वचा को खराब करने के लिये होने वाली बीमारियां किसी भी उम्र में हो सकती है. इनमें आदमी, औरते और बच्चे सभी शामिल है. आंखों के आसपास की त्वचा कई बीमारियों से खराब होती है. इन बीमारियों में बरौनी में होने वाली रूसी, बिलनी ;पलको पर गांठ बननाद्ध, आंख आना ;कंजक्टिवाइटिसद्ध, आंखों का रूखापन, डार्क सरकल ;आंखों के चारो तरपफ काला घेराद्ध, भवों और पलको के बीच चकत्ते नुमा हल्के उभार प्रमुख है. आंखो के वि}ोषज्ञ डाक्टर सौरभ चन्द्रा के साथ इस मुददे पर खास बातचीत हुई.

डार्क सरकल- आंखो के नीचे काले घेरे

आंखों के आसपास की त्वचा को खराब करने वाली सबसे बडी बीमारी को डार्क सरकल कहा जाता है. इस बीमारी में आंखो के चारो तरपफ काले रंग का घेरा बन जाता है. यह आंखो के आसपास की त्वचा के खराब होने से होता है. यह आंखों की सुदंरता को सबसे ज्यादा खराब करता है. यह कालापन नींद की कमी, मानसिक तनाव, शारीरिक थकान, भोजन में विटामिन और दूसरे तत्वो की कमी से हो जाता है. इसको दूर करने के लिये जीवन को नियमित करे. भरपूर नींद ले. तनाव को कम करे. भोजन में पफल हरी सब्जी का प्रयोग खूब करे. सापफ पानी का सेवन भी खूब करे. खीरे को काट कर आंखों के उफपर रखने से डार्क सरकल हटाने में मदद मिलती है.

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बरौनी में रूसी

बरौनी में होने वाली रूसी से आंखो के आसपास की त्वचा खराब हो जाती है. रूसी से  बरौनी में लगातार खुजली होती है. बरौनी के बालों में रूसीनुमा पपडी सी जम जाती है. इससे पलको पर भारीपन महसूस होता है. कभी कभी सूजन भी आ जाती है. इस बीमारी से बरौनी झडने लगती है. उसके आसपास की त्वचा भी खराब लगने लगती है. त्वचा पर चकत्ते पड जाते है वह बदरंग हो जाती है.

जिन लोगो के सिर के बालों में रूसी होती है उनमें यह बीमारी जल्दी हो जाती है. इसके अलावा गंदे हाथों से बार बार पलको का छूना, प्रदूषण वाले माहौल में रहना, खराब किस्म का आइलाइनर, मस्कारा, काजल, आर्टीपिफशियल आइलेंस का प्रयोग करने, किसी दूसरे का प्रयोग किया कास्मेटिक लगाने, जिन लोगो को यह बीमारी हो उनका तौलिया, तकिया और रूमाल प्रयोग करने से यह बीमारी हो जाती है.

बरौनी में रूसी की परेशानी हो तो सबसे पहले बालों की रूसी कस इलाज कराना चाहिये. इसके लिये किसी अच्छे शैम्प्ूा का प्रयोग करे. जिसमें रूसी को खत्म करने की ताकत हो. यह शैम्प्ूा इस तरह का हो जो त्वचा को नुकसान न पहुचाता हो. जब भी कही बाहर से वापस शाम को एक बार गुनगुने पानी से बरौनी को सापफ करके उसकी सिंकाई जरूर करे. सापफ हाथो से इसकी मालिश ध्ीरे ध्ीरे करे. रूई को लेकर कंाच की गोली के आकार की छोटे छोटे 5 से 7 गोले बना ले. इनको थोडे से पानी में उबाल कर ठंडा कर ले. जब त्वचा इस गर्मी को सहने के लिये तैयार हो जाये तो रूई के गोलों का पानी निचोड कर पलको के किनारो की इससे सिकांई करे.

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अच्छे किस्म की क्रीम को हाथ में थोडा सा लेकर बरौनी और पलको के किनारो पर उफपर से नीचे की ओर कम से कम 15 से 20 बार हल्के दबाव के साथ मालिश करनी चाहिये. उफपर की पलको की मालिश करने के लिये नीचे पैरो की ओर देखते हुये करे. नीचे की पलको की मालिश करने के लिये उफपर देखते हुये करनी चाहिये. यह काम रात को सोने से पहले करे और इसको करने के लिये कभी भी आंखों में किसी तरह का कोई मेकअप न करे.

बिलनी – पलको पर गांठ बनना

आंखों के उफपर या नीचे की पलको पर गांठ बन जाने को बिलनी कहते है. इससे आंख के आसपास की त्वचा काली पड जाती है. बिलनी की गांठ को दबाने से आमतौर पर दर्द नही होता है. केवल गांठ सी बन जाती है जो आंखों के आसपास की त्वचा को खराब कर देती है. आंखों की खूबसूरत शेप बिगड जाती है. गुनगुने पानी और कपडे की सिकाई और मलहम की मालिश से यह आमतौर पर ठीक हो जाता है. अगर यह बार बार निकले तो होशियार हो जाये. इसका इलाज आंखो के डाक्टर से मिल कर करे. कभी कभी ज्यादा मीठा खाने से भी यह परेशानी बढ जाती है. चश्में का नम्बर बढने से भी ऐसा हो जाता है. अगर गांठ लम्बे समय से हो और बडी हो तो डाक्टर से मिले.

कभी कभी यह बिलनी आखों की अंदर या बाहर की तरपफ निकलती है तो बहुत दर्द करती है. इसके लिये भी गुनगुनी सिकाई पफायदेमंद होती है. अगर परेशानी इससे ठीक न हो तो डाक्टर से मिले वह इस जगह पर लगाने के लिये मलहम और आंखों में डालने के लिये आईड्राप दे सकते है. जिससे यह जल्दी ठीक हो जाता है. यह दाने आंखों की सही तरह से सपफाई न करने से हो जाते है. मस्कारा या आई लाइनर लगाने और रात को सोने से पहले उनको निकालने में सावधनी नही बरतने से ऐसा हो जाता है.

नाखूना

आंख की श्लेष्मला में एक त्रिाकोण जैसी भददी मटमैली चीज आंख के अदरूनी कोने से स्वच्छ पटल की ओर बढने लगती है. इसका सिरा स्वच्छ पटल की ओर होता है. यह ज्यादातर आंख के नाक वाले कोने की तरपफ से शुरू होता है. कभी कभी यह बडी गोल पुतली के दोनो तरपफ हो जाता है. यह आंखों में दाग का काम करता है. आंखो की सुदंरता का खराब करता है. यह अक्सर गंदे पानी , ध्ूल , ध्ुआं और ध्ूप से लाल होने वाली वाली आंखों में हो जाता है. इससे आंखे बदसूरत हो जाती है और यह आंखों में चुभने भी लगता है.

अगर  नाखूना के बढने की रपतार ज्यादा है तो तत्काल डाक्टर से मिले. ध्ूप में निकलने से पहले रंगीन चश्मे को प्रयोग करे. चश्मा ऐसा हो जो आंखो को पूरी तरह ये ढक लेता हो. जिससे आंख को सीध्े सूर्य की रोशनी न लगे. ध्ूप , ध्ुआ और ध्ूल से आखांे को बचाये.  आंखो को ढकने के लिये अच्छी टोपी भी पहने सकते है. आपरेशन के जरीये ही इसको हटाया जा सकता है. यह आपरेशन आंखोंे के डाक्टर द्वारा किया जाता है. यह आसान भी होता है.

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आंख आना – कंजक्टिवाइटिस

आंखों का लाल होना , उनमें कीचड आना , दर्द होना , बरौनियो का आपस में चिपक जाना और आंखों में जलन का होना आंख आना यानि कंजक्टिवाइटिस कहलाता है. यह अक्सर मौसम बदलने और बीमार आदमी के सम्पर्क में आने से होता है. जब आप बीमार आदमी का तकिया , रूमाल और तौलिया इस्तेमाल करते है तो कंजक्टिवाइटिस हो जाता है. आमतौर पर जब घर में किसी एक को यह बीमारी हो जाती है तो दूसरे लोगो को भी यह बीमारी हो जाती है. कुछ सावधनियां अपनाकर इससे बचा जा सकता है. इस रोग के रोगी के संपर्क में जब भी आये तो हर बार अपने हाथो को अच्छे साबुन से धेये. इस तरह के रोगी की देखभाल सावधनी से करनी होती है. इसके लिये सापफ सपफाई का पूरा ख्याल रखना चाहिये.पानी को उबाल कर थोडा ठंडा हो जाने दे. इसके बाद आंखो को इससे सापफ करे और रूई के गोलो में पानी लेकर आंखो की सिकाई भी करे. आंख में लाली और सूजन ज्यादा हो तो बपर्फ से भी इसकी सिकाई की जा सकती है. डाक्टर की दी गयी दवा आंख में डाले इससे लाभ होगा.

पलको और बरौनियो के बीच पीले रंग के चकत्ते

पलको और बरौनियो के बीच पीले रंग के चकत्ते बन जाते है. इससे कोई बहुत नुकसान नही होता. यह देखने में खराब लगता है. इसको काट कर निकाला जा सकता है. यह आमतौर पर त्वचा की बीमारी होती है. इसको किसी तरह की क्रीम, लोशन और टेबलेट से दूर नही किया जा सकता है.

आंखों में रूखापन

आंख में चुभन , रगडन , जलन का होना , आंख का लाल हो जाना , चिपचिपा लगना और ध्ुंध्ला नजर आना आंखो में रूखेपन की निशानी है. इसका कारण आंसू का अच्छी तरह से न बनना होता है. पलको के ठीक से न खुलने और बंद होने से भी यह रोग हो जाता है. कम पानी पीने वालो और मेनोपॉज होने वाली औरतो को भी यह बहुत होता है. एयरकंडीशन में ज्यादा बैठने वालो को भी इस तरह की परेशानी हो जाती है. सही देखभाल और डाक्टर की सलाह से इसको दूर किया जा सकता

नई राह- भाग 2: कैसे हटा अंधविश्वास का परदा?

‘‘मां का फोन आया था अभीअभी.

2 लाख रुपए मांग रही थीं गुरु महाराज के आश्रम में भवन निर्माण के लिए,’’ मैं ने रश्मि की राय लेनी चाही.

‘‘कब विवेक जागेगा इन का. क्यों इन बाबाओं के पीछे बरबाद होने पर तुले हैं. आप ने यह नहीं बताया कि हम फ्लैट बुक कर रहे हैं.’’

‘‘बताया था, लेकिन सुनें तब न. तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं? कन्नू तो 3 लाख रुपए दे रहा है.’’

‘‘बड़ी दुविधा में डाल दिया है मांजी ने,’’ रश्मि निराशा से बोली.

‘‘फ्लैट का क्या होगा. इस बार कदम वापस खींचे तो जिंदगी किराए के घरों में ही कटेगी,’’ मैं ने हताशाभरे स्वर में कहा.

‘‘इस वक्त इन्हें हमारी मदद करनी चाहिए थी. खैर, चिंता छोड़ो और 2 लाख रुपए भेज दो. जब फ्लैट लेने की ठान ली है तो कुछ न कुछ करेंगे,’’ उस ने समझाया.

‘‘ठीक है, तुम कहती हो तो…’’

मुझे लगा जैसे एक बड़े बैलून की हवा एक क्षण में निकाल दी गई हो. शरीर रुई सा हलका हो गया. लेकिन एक नई मुश्किल खड़ी हो गई कि कैसे 2 लाख रुपए की अतिरिक्त व्यवस्था की जाए.

किसी तरह मां को 2 लाख रुपए भेज दिए. कन्नू से अपनी जरूरत बताई तो वह टाल गया किंतु कुछ मित्रों ने आड़े समय मदद कर दी. समय पर रश्मि के पिता ने भी रुपए भेज दिए. इस तरह फ्लैट बुक हो गया. कुछ दिनों में बैंक से लोन भी पास हो गया. इस भागमभाग में शरीर थक सा गया. अब समस्या थी कर्ज चुकाने के साथ गृहस्थी चलाने की. कठिन समय था. रश्मि साइंस से ग्रेजुएट थी, सो उस ने कुछ ट्यूशन पकड़ लीं. एकएक दिन पहाड़ की तरह कठोर और लंबा लगता. खर्चों में कटौती, किस्तों की भरपाई करते हुए साल कट गया. रश्मि पगपग पर मेरा हौसला बढ़ाती रही.

साल बीतते ही फ्लैट का पजेशन मिल गया. ख्वाब सच हो गया. मन तितलियों के झुंड की तरह इधरउधर मंडराने लगा. जिंदगी के कैनवास में हम रुपहले रंग भरने को आतुर हो उठे. मैं 3 साल की निधि और रश्मि के साथ नए घर में प्रविष्ट हो गया. जितनी यादगार और उपयोगी वस्तुएं थीं, नए घर में सज गईं.

रश्मि घर की बालकनी में खड़ी थी. नया नजारा था, नई भोर थी और नया एहसास. उस का तनमन स्फूर्ति से भर उठा. विवाह के बाद उस के सपनों ने पहली बार अंगड़ाई ली थी. रश्मि भीतर ही भीतर प्रफुल्लित और रोमांचित थी जिस का मैं अनुभव कर रहा था. तभी पीछे से मैं ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचा.

‘‘रश्मि, तुम्हारा कैसे धन्यवाद दूं,’’ मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘इस में धन्यवाद वाली बात कहां आ गई,’’ वह मुसकराई.

‘‘तुम्हारा योगदान सब से बड़ा है, रश्मि. मैं पिताजी को बता देता हूं कि हम नए घर में आ गए हैं,’’ कह कर मैं ने फोन मिला दिया. उन्हें खुशखबरी दी तो उन की आवाज भर्रा गई, ‘‘बेटा, बहुतबहुत मुबारक हो. काश, कन्नू भी मकान खरीद पाता.’’

मैं चुप हो गया. दिल तो कह रहा था कि कह दूं कि आप लोग उसे खरीदने दो तब न. उस की पाईपाई तो तीर्थस्थानों के भ्रमण और आश्रम की भेंट चढ़ रही है. मैं न जाने कैसे इस काले जादू के प्रभाव से मुक्त हो गया. आज भी कन्नू का परिवार एक लो प्रोफाइल जगह में किराए के मकान में है. पत्नी उस की भी सुशील और शांत है. वह मुझ से अच्छा कमाता है फिर भी उस के पास कुछ नहीं है.

पिताजी से बात हुई. मां ने भी बधाई दी लेकिन तानों के साथ. मन दुखी हो गया.

यह 2 कमरों का घर था. जो सामान साथ लाए थे वह कमरों में ऐसे समा गया जैसे सागर में घड़ा भर पानी. रश्मि इधर आ कर घर की व्यवस्था के साथसाथ ट्यूशन भी ढूंढ़ने लगी. मैं दंग था कि रश्मि में कितना संयम और हौसला है. काफी दौड़धूप के बाद रश्मि को कामयाबी मिल ही गई. 1 माह तक  3 बच्चे ही आते रहे, फिर संख्या बढ़ गई. पुरानी जगह से यहां अच्छा रिस्पौंस मिल रहा था.

समय करवट बदल रहा था. भविष्य की रुपहली किरणों का प्रसार दिखाई पड़ने लगा था. मैं बैंक के कर्ज और दोस्तों की मदद वापस करने में जुट गया. जिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगी.

मां के फोन अब पहले से कम हो गए. इस फैसले से वे बेहद कुपित थीं. हर बार उन का क्रोध झलक उठता. रश्मि तो फोन बजते ही थरथर कांपनी शुरू हो जाती. इसलिए वह मुझ से ही फोन उठाने का आग्रह करती. इस से पहले वह कई बार अनावश्यक डांट खा चुकी थी.

आज छुट्टी का दिन था. मां का फोन आया तब मैं बालकनी में निधि के साथ बैठा था. रश्मि ने डरतेडरते फोन मुझे थमा दिया और भीतर चली गई.

‘‘मां, आप कैसी हो, कन्नू की भी छुट्टी होगी, क्या कर रहे हैं सब?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आज घर में ही है. अगले सप्ताह हम सभी इलाहाबाद जा रहे हैं गंगा स्नान करने. तुम लोगों की इच्छा हो तो इलाहाबाद चले आओ. गुरु महाराज के आश्रम में कमरा मिलेगा. कोई परेशानी नहीं है,’’ मां एक सांस में पूरी बात कानों में उड़ेल गईं.

‘‘ओहो, मैं अगले सप्ताह से औडिट में व्यस्त रहूंगा. क्या कुछ दिन बाद प्रोग्राम नहीं बना सकते?’’ मैं ने असमर्थता बताई.

‘‘विशेष पर्वों पर ही गंगा स्नान का महत्त्व होता है. रश्मि ने तुझे अपनी तरह नास्तिक बना दिया है. धर्मकर्म सब भूल गए हो, और तो और, गुरु महाराज को भी नहीं याद करते.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है, मां.’’

‘‘फ्लैट क्या खरीदा कि दिमाग सातवें आसमान पर चला गया है. तुम लोग मर्यादा तक भूल गए हो. लखनऊ से कितनी दूर है इलाहाबाद, मेरा फर्ज है कहना, बाकी फैसला तुम्हारा,’’ इतना कह कर मां ने फोन काट दिया.

मन क्षुब्ध हो गया. मां कितना वैमनस्य पालती हैं. हम ने तो हमेशा मातापिता का आदरसम्मान किया, कभी कटु शब्द नहीं बोले. उन के सुखदुख का खयाल रखा फिर भी दोनों भाइयों को अलगअलग तराजू से तौलती रहीं. फ्लैट खरीदा तो वह भी फूटी आंख न सुहाया.

मैं अगले दिन से ही औडिट की तैयारी में जुट गया. पता नहीं चला कि कब दिन निकला, कब डूब गया. लेकिन औडिट कुछ दिनों के लिए टल गया. मैं ने निश्चय किया कि हमें भी इलाहाबाद चलना चाहिए, इस बहाने आउटिंग भी हो जाएगी. निधि और रश्मि को भी बदलाव मिलेगा. इस आशय से रश्मि से बात की तो उस ने अनिच्छापूर्वक हामी भर दी. कन्नू से संपर्क किया तो पता चला कि वे लोग हैदराबाद से चल चुके थे और कल दोपहर तक इलाहाबाद पहुंच जाएंगे. हम लोग भी तैयारी में जुट गए. तय समय में हम तीनों भी इलाहाबाद पहुंच गए.

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