उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक आम की बागवानी ही होती है. अब आम के प्रदेश में आडू ने दस्तक दे दी है. यही वजह है कि अब उत्तर प्रदेश में आडू दिवस मनाया जाने लगा है. इस साल लखनऊ के फल बाजार में लखनऊ के ही आड़ू बिकने आ गये हैं आड़ू की खेती आमतौर पर पहाडों पर होती थी. अब आडू की ऐसी किस्म भी तैयार हो गई है जिसकी खेती मैदानी इलाकों में भी हो रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तमाम किसान अब इसकी खेती करते है.आड़ू की उत्पति को लेकर अलग-अलग तरह के विचार है. कुछ लोग आड़ू की उत्पत्ति का स्थान चीन को मानते है और कुछ इसे ईरान का मानते है. यह पर्णपाती वृक्ष है, भारत के पर्वतीय तथा उप पर्वतीय भागों में इसकी सफल खेती होती है.
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इसके ताजे फल खाए जाते हैं. फलों से चटनी भी बनती है. फल में चीनी की मात्रा पर्याप्त होती है.जहाँ जलवायु न अधिक ठंडी न अधिक गरम हो और 15 डिग्री फारनहाइट. से 100 डिग्री फारनहाइट तक के ताप वाले पर्यावरण मे इसकी खेती सफल हो सकती है. इसकी अच्छी पैदावार के लिये लिए सबसे उत्तम मिट्टी बलुई दोमट है. आड़ू का फल ऐसे समय पर पक कर तैयार होता है, जिस समय बाजार में ज्यादा फल नहीं होते हैं. ऐसे में फल 200 रुपये प्रति किग्रा की दर से बिकता है.बहुत से किसानों ने आड़ू के पौधे पहली बार देखे. इन लोगों ने दूसरे किसानों को खेती करते देखकर इसे शुरू किया. दो ही वर्षो में पौधों पर अच्छी संख्या में लगे फल देखकर काफी उत्साहित होकर इसकी खेती करनी शुरू कर दी . आड़ू की खेती आडू के पौधे 15 से 18 फुट की दूरी पर दिसंबर या जनवरी के महीने में लगाए जाते हैं. सड़े गोबर की खाद या कंपोस्ट 80 से 100 मन तक प्रति एकड़ प्रति वर्ष नवंबर या दिसंबर में देना चाहिए. जाडे में एक या दो तथा ग्रीष्म ऋतु में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए.
सुंदर आकार तथा अच्छी वृद्धि के लिए आड़ू के पौधे की कटाई तथा छंटाई प्रथम दो वर्ष भली भांति की जाती है. इसके बाद प्रति वर्ष दिसंबर में छटाई की जाती है. जून में फल पकता है. प्रति वृक्ष 30 से 50 किलो तक फल प्राप्त होते है आडू को जिन कीटो से नुकसान पहुंच सकता है उनमें स्तंभ छिद्रक (स्टेम बोरर), आडू आसपास के किसानों ने आडू की खेती के प्रति उत्साह दिखाया. इसके प्रचार प्रसार के लिये आडूं दिवस (पीच डे ) भी मनाया जाता है. अच्छी फसल मिलने से लखनऊ और आसपास के इलाकों के
अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी आड़ू की खेती में रुचि दिखाई देने लगी है.अभी तक आड़ू की खेती ठंडे इलाकों में ही होती है.
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अब कई ऐसी किस्मों का सफल प्रयोग किया है, जो कम समय की ठंड पड़ने पर भी विकसित हो जाती हैं. फ्लोरडा प्रिंस, पंत पीच-1, शर्बती, शर्बती सुर्ख जैसी कई प्रजातियां है. जिन्हें कुछ दिन भी सात डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान मिल जाए तो फल आने लगता है. संस्थान में पिछले दो साल में इसके पौधे तैयार किए गए.
आड़ू दो जाति के होते है. देशीय उपजातियाँ जिसमें आगरा, पेशावरी तथा हरदोईया और विदेशी उपजातियाँ में बिडविल्स अर्ली, डबल फ्लावरिंग, चाइना फ्लैट, डाक्टर हाग, फ्लोरिडाज ओन, अलबर्टा प्रमुख है. अब किसानों में आड़ू की खेती के प्रति दिलचस्पी बढ रही है.