लेखिक-पद्मा अग्रवाल
लेखिक-पद्मा अग्रवाल
लेखिक-पद्मा अग्रवाल
अब गार्गी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. कोरोना ने पैर पसार लिए थे. यहां भी लौकडाउन की आहट थी. वह परेशान हो कर पुरू को फोन करती, ‘’तुम ने पैसे ट्रांसफर नहीं किए, मेरा खर्च कैसे चले? फ्लैट का किराया, गाड़ी वगैरह… जो फ्लैट बुक किया था, वहां से भी मेल आई है. वह डील कैंसिल कर देने की धमकी दे रहा है.“
“हां, मुझे सब मालूम है. मेरी कंपनी बंद हो गई है और यहां कोरोना फैल गया है. इसलिए लौकडाउन कर दिया गया है. मैं स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत में हूं.”
उस के इंतजार में 3-4 महीने बीत गए थे. गार्गी को समझ आ गया था कि वह ठगी गई है और फिर उस के बाद उस ने अपना सिम बदल कर उस से संबंध समाप्त कर लिया. वह फ्लैट किसी और का था, केवल कुछ महीनों के लिए ही लिया गया था. इसलिए अब मजबूर हो कर वह अपनी मां के पास आ गई और फिर से नौकरी करने लगी.
कुछ दिनों तक तो पुरू के दिए धोखे से वह बाहर नहीं आ पा रही थी. वह खोईखोई और उदास रहती. मां ने पहले ही उसे जल्दबाजी में शादी करने से बहुत मना किया था. परंतु वह तो उस के बड़े पैकेज की दीवानी थी. गुस्से में गारगी ने अब तो पुरु का मोबाइल नंबर भी ब्लौक कर दिया था और अपनी शादी की यादों के पन्ने को फाड़ कर अपने जीवन में आगे बढ़ चली थी.
कुछ दिनों तक तो वह रोबोट की तरह भावहीन चेहरा लिए घूमती रही. फिर अपना पुराना औफिस जौइन कर लिया. वहीं पर एक पार्टी में उस ने एक सुदर्शन व्यक्तित्व के युवक को देखा. उस की उम्र लगभग 30 – 35 वर्ष के आसपास, गेहुंआ रंग, इकहरा बदन, लंबा कद, कुल मिला कर सौम्य सा व्यक्तित्व. कनपटी पर एकदो सफेद बाल उस के चेहरे को गंभीर और प्रभावशाली बना रहे थे. कहा जाए तो लव ऐट फर्स्ट साइट जैसा ही कुछ था. काला ट्राउजर और स्काईब्लू शर्ट पर उस की नजरें ठहर गईं थीं.
शायद उस का भी यही हाल था, क्योंकि वह भी उसी जगह ठहर कर खड़ा उसी पर अपनी निगाहें लगाए हुए था.
“हैलो, मी विशेष.‘’
“माईसेल्फ गार्गी.‘’
विशेष को देखते ही गार्गी का तनमन खुशी से झूम उठा था. वह सोच रही थी कि खुशी तो उस के इतने करीब थी, लगभग उस के आंचल में थी, उसे पता ही नहीं था. दोनों के बीच हैलोहाय का रिश्ता जल्दी ही बातों और मुलाकातों में बदल गया था. बातोंबातों में गार्गी को विश्वास में लेने के लिए विशेष ने अपने जीवन की सचाई को निसंकोच बता डाला था. पापा उस पर शादी के लिए दबाव डालते रहे लेकिन जिस को मैं ने चाहा, वे उस से राजी नहीं हुए. बस, मैं ने भी सोच लिया कि शादी ही नहीं करूंगा. एक दिन पापा का हार्टफेल हो गया. फिर दुख की मारी अम्मा भी अपनी बहू का मुंह देखने को तरसती रहीं और पापा के बिछोह को सहन नहीं कर पाईं, जल्दी ही इस दुनिया से विदा हो गईं. अब उस की जिंदगी पूरी तरह से आजाद और सूनी हो गई थी.
विशेष ने आगे बताया, “मैं एक एमएनसी में अच्छी पोस्ट पर हूं. अच्छाभला पैकेज है. परंतु अपने जीवन के एकाकीपन से तंग आ चुका हूं. शादी डाट काम जैसी साइट पर अपने लिए लड़की ढूंढता रहता हूं. खोज अभी जारी है. आप को देख कर लगा कि शायद आप मेरे लिए परफेक्ट साथी हो सकती हैं.”
वह तो उसी के औफिस के दूसरे सेक्शन में था.
दोनों के मन में एक सी हिलोरें उठ रही थीं. कभी लिफ्ट तो कभी पार्किंग, तो कभी कैंटीन में मिलना जरूरी सा लगने लगा था दोनों को.
व्हाट्सऐप और फोन पर लंबी बातें देररात तक होने लगीं. दीवानगी अपने चरम पर थी. एक दिन गार्गी ने जानबूझ कर अपना फोन बंद कर दिया और औफिस भी नहीं गई. इस तरह 2 दिन बीत गए थे. उस के मन में अपराधबोध का झंझावात चल रहा था कि वह अपने पति पुरू के साथ अन्याय कर रही है.
क्यों? उस का अंतर्मन बोला था कि विशेष उस का केवल अच्छा दोस्त है. वह उस के दिल की भावनाओं को समझता है, परंतु वह उस से सचाई बताने में क्यों डर रही है. उस का मन उसे धिक्कारता रहता, लेकिन विशेष को देखते ही वह सबकुछ भूल जाती थी. इसी पसोपेश में वह घर में ही लेटी रही थी.
उस के घर की कौलबेल बजी तो वह चौंक पड़ी थी. दरवाजे पर विशेष को खड़ा देख गार्गी प्रफुल्लित हो उठी थी.
“अरे, आप !‘’
“आप को 2 दिनों से देखा नहीं, इसलिए चिंतित हो उठा था. आखिर आप का दोस्त जो ठहरा.’’
“बस, यों ही, सिर में दर्द था और सच कहूं तो मूड ठीक नहीं था.’’
“मेरे होते हुए मूड क्यों खराब है? आज मेरा औफिस नहीं है, वर्क फ्रौम होम ले रखा है. आज की मीटिंग पोस्टपोन कर देता हूं. चलिए, कहीं बाहर चलते हैं. वहीं कहीं लंच कर लेंगे.‘’
उस के मन में लड्डू फूट पड़े थे. वह तो कब से चाह रही थी कि वह उस की बांहों में बांह डाल कर कहीं बाहर घूमने जाए, किसी फाइवस्टार होटल में लंच और फिर शौपिंग करवाए.
उस के मन में पुलकभरी सिहरन थी. दिसंबर का महीना था. बादल छाए हुए थे. हवा में ठंडापन होने से मौसम खुशनुमा था. वह मन से तैयार हुई थी. उस ने स्कर्ट और टॉप पहना था. जब वह तैयार हो कर बाहर आई तो विशेष की निगाहें उस पर ठहर कर रह गईं थीं. वह उसे अपलक निहारता रह गया था .
मां ने उस दिन गार्गी को टोका भी था, “अब यह नया कौन आ गया तेरे जीवन में?”
“यह विशेष है, मेरा अच्छा दोस्त. इस से ज्यादा कुछ भी नहीं. मेरे ही औफिस में काम करता है.”
जब विशेष ने शिष्टता के साथ उस के लिए कार का दरवाजा खोला तो उस के मन में पुरु की यादें ताजा हो उठीं. उस ने तो इस तरह से उस के लिए कभी भी गाड़ी का गेट नहीं खोला, लेकिन उन यादों को झटकते हुए वह फ़ौरन वर्तमान में लौट आई थी.
‘’पहले कहां चलोगी, आप ने लंच कर लिया?“
“नहीं,” वह सकुचा उठी थी.
“फिर तो चलिए, पहले लंच करते हैं. मेरे पेट में भी चूहे बहुत जोरजोर से चहलकदमी कर रहे हैं.‘’ विशेष यह कह कर अपनी बात पर ही जोर से हंस पड़ा था.
कमला बार-बार फ़ोन करती है, पूछती है, ‘बीबीजी काम पर कबसे आ जाऊं ?’ हर बार उसको टका सा जवाब मिलता है कि ‘अभी मत आ. अभी सोसाइटी में किसी बाहरी को आने की परमिशन नहीं है.’ पिछले तीन महीने से कमला घर में बंद बैठी है. खाने के लिए बेटे की मोहताज हो गयी है. लॉक डाउन से पहले वो छह घरों में बर्तन-झाड़ू करके 18000 हज़ार रुपया महीना कमा रही थी. उसका और उसके बीमार पति का गुज़ारा इस पैसे से चल जाता था. लॉक डाउन हुआ तो डेढ़ महीने में सारी बचत ख़तम हो गयी. अब सुबह शाम की रोटी बेटा देता है, वो भी बड़ा अहसान जता कर. अब उसकी भी तो कमाई खटाई में पड़ी है. किराए की ऑटो चलाता है. दो महीने तो बिलकुल काम बंद रहा और अब जो थोड़ा बहुत खुला है तो दिन भर में दो सौ रूपए भी कमाई नहीं है. जिसमे से आधा ऑटो मालिक ले लेता है. फिर उसके भी तीन बच्चे हैं, बीवी है, उनको भी रोटी खिलानी है.
इसीलिए कमला चाहती है कि इससे पहले कि बेटा भी रोटी देने से मना कर दे, जिन घरों में वो काम करती थी वो उसको अब जल्दी ही वापस बुला लें. लेकिन कोरोना के डर से नब्बे फ़ीसदी लोगों ने अपनी कामवालियों को अभी आने की अनुमति नहीं दी है.
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दिल्ली कीर्ति नगर में ऍफ़ ब्लॉक कॉलोनी में रहने वाली मिसेज़ सेठी कहती हैं, ‘पता नहीं कहाँ-कहाँ से आती हैं, किससे-किससे मिलती हैं, कितनी बीमारियां समेटे घूमती हैं. जब तक कोरोना की मुसीबत टल ना जाए, कोई पुख्ता दवाई ना आ जाए, तब तक इन कामवालियों से दूरी बनाये रखने में ही भलाई है. इनको बुला कर कौन बीमारी को न्योता दे.’
दिल्ली के ज़्यादातर मध्यम और उच्चवर्गीय घरों में कामवाली, ड्राइवर, धोबी, माली, कबाड़ीवाला इन सबकी एंट्री पर रोक है. ये एक बहुत बड़ा गरीब तबका है जिनकी रोज़ी-रोटी कोरोना ने छीन ली है. हाल ही में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमे कहा गया है कि कोरोना काल में 5.5 करोड़ घरेलू कामगारों की जिंदगी मुश्किल में आ गयी है और इनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. एक अनुमान के आधार पर इस महीने के अंत तक घर में काम करने वाली बेरोजगार महिलाओं की संख्या बढ़कर 3 करोड़ 70 लाख हो जाएगी.
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दिल्ली जैसे बड़े शहरों में अभी पांच सात प्रतिशत महिलाएं ही ऐसी हैं जो काम पर लौट सकीं हैं. ज्यादातर महिलाओं को काम पर इसलिए नहीं बुलाया जा रहा है क्योंकि वो मलिन बस्तियों में रहती हैं जहां साफ-सफाई का वो उस तरह से ख्याल नहीं रख सकती जिस तरह से रखना चाहिए. ऐसे हालातों में मसला इनकी रोजी-रोटी का है.
पन्द्रह साल से झाड़ू-पोछा का काम करने वाली मालती दो महीने से पैसा न मिलने से काफी परेशान है. मालती का पति दिहाड़ी मजदूर है. इधर काम बंद होने से वो भी घर में बैठा है. मालती के तीन बच्चे हैं. मालती इन दिनों बहुत ज़्यादा परेशान है. हर वक़्त बस यही मनाती है कि किसी तरह उसकी मेमसाहब काम पर बुला ले. वो कहती है, ‘वो काम पर नहीं बुला रहीं इसमें मेरी क्या गलती? मार्च के बाद से पैसा नहीं दिया क्योंकि हमने काम नहीं किया. हम तो रोज फोन करके पूछते हैं मेमसाहब कब आ जाएं? वो हर बार एक ही जबाब देती हैं जब लॉकडाउन खुलेगा बुला लूंगी.’
मालती की छोटी बेटी अक्सर ही बीमार रहती है. मालती बताती है, ‘हफ्ते भर से पेचिश लगी है मगर डॉक्टर को नहीं दिखा पा रही हूँ. हाथ में पैसा नहीं है. राशन तक की तबाही मच गयी है. रोज इस इंतजार में रहते हैं कोई लोग राशन बांटने आ जाए तो कुछ दिन खाना बन सके.’
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आमतौर पर घर में काम करने वाले वर्कर्स माइग्रेंट होते हैं जो अपनी आजीविका चलाने के लिए परिवार के साथ या अकेले ही दूसरे शहरों में जाकर घरेलू कामकाम करते हैं. ये स्लम एरिया में किराए के छोटे-छोटे बाड़ेनुमा खोलियों में रहते हैं. ऐसे कई घरेलू कामगार हैं जो अब भारी आर्थिक तंगी से जूझे रहे हैं. हमारे देश में इनकी संख्या लगभग 5.5 करोड़ है. इनमें सबसे अधिक महिलाएं हैं. इनकी हालत कोरोना काल में इतनी बदतर है जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की स्टडी के अनुसार सारी दुनिया के लगभग तीन चौथाई घरेलू कामगार कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन में अपना कामकाज खो चुके हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद भी कई घर ऐसे हैं जो कोरोना फैलने के डर से घरेलू कामों के लिए इन्हें बुलाना नहीं चाहते. इससे कामगारों की इनकम का एकमात्र साधन भी बंद हो गया है. इस महामारी के प्रकोप से बचने के लिए घरेलू कामगारों के लिए सारी दुनिया में मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस समय अमेरिका में 74%, अफ्रीका में 72% यूरोप में 45% घरेलू काम करने वाले लोग बेरोजगार हैं. उनके सामने दो वक्त का खाना जुटाना भी चुनौती पूर्ण है.
एक अनुमान के आधार पर भारत में इस महीने के अंत तक घर में काम करने वाली बेरोजगार महिलाओं की संख्या बढ़कर 3 करोड़ 70 लाख हो जाएगी.
इस रिपोर्ट के आधार पर बिना किसी दस्तावेज के काम करने वाले लोगों में बेरोजगारी की संख्या 76% है. वे ऐसी किसी योजना के तहत भी काम नहीं करते जहां उन्हें सामाजिक सुरक्षा की वारंटी मिलती हो. इस रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि सिर्फ 10% घरेलू कामगारों को बीमारी की हालत में पूरा पैसा मिलता है. हालांकि इन्हें भी काम करते हुए बीमार हो जाने पर किसी तरह की अन्य सुविधाएं नहीं मिलती.
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इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार कई घरेलू कामगार अपने काम के हिसाब से सिर्फ 25% सैलेरी ही पाते हैं. जिसकी चलते बचत कर पाना भी मुश्किल होता है. घरेलू काम करने वाली महिलाओं में बडी संख्या उन काम वाली बाईयों की है जो अपने परिवार का पेट भरने के लिए अन्य शहरों में जाकर काम कर रही हैं.
दिन में 9-10 घंटे काम करने के बाद भी इन्हें अपनी मेहनत के हिसाब से या तो पैसा कम मिलता है या कई बार एक या दो दिन न आने पर काट लिया जाता है. बीते तीन महीने से जब इनका काम पूरी तरह ठप्प है तो थोड़ी बहुत बचत जो पहले की थी वो खर्च हो चुकी है. ये उम्मीद भी नहीं है कि लॉक डाउन खुलने पर जब वो काम पर वापस जाएंगी तो इन इन महीने का वेतन उनको मिलेगा. ज़्यादातर मध्यम वर्गीय परिवार तो खुद ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. इसलिए चाहते हुए भी घरेलू कामगारों को वापिस बुलाना नहीं चाहते. अगर बुला भी लिया तो पिछले महीने का पैसा देना उनके बस का नहीं है. ऐसे में बहुत बड़ी तादात में ये मजदूर और कामगार तबका क़र्ज़ और कुपोषण का शिकार होगा, इसे दोराय नहीं है.
घरेलू कामगरों के लिए देश में कोई कानून नहीं है. जिसका जितने पैसे में मन किया रख लिया, इनकी न कोई छुट्टी है और न ही इन्हें मजदूरों का दर्जा मिला है. अपार्टमेंट और कोठियों में काम करने वाली महिलाओं के आगे ज्यादा मुश्किल हैं. वो तो सीधे अपनी मालकिन से मिलने और उनसे अपना दुखड़ा रोने जा भी नहीं सकतीं हैं. गेटमैन फाटक पर ही रोक देता है. वो मालकिन से बात करने के लिए नम्बर मिलवाती हैं, गेटमैन को ही उधर से जबाव मिल जाता है – इसे भगा दो. ये बहुत ही आमानवीय स्थिति है. अगर पैसे वाले लोग महीने का दो तीन चार हजार रुपए दे भी देंगे तो उनके ऊपर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन इनके लिए बहुत सहूलियत हो जाएगी. मगर इनके लिए इतना कोई सोचता नहीं है. लॉकडाउन के दौरान स्पष्ट रूप से यह सरकारी आदेश था कि किसी का भी इस दौरान पैसा न काटा जाये लेकिन हकीकत में इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ. इन घरेलू कामगार महिलाओं की स्थिति मुश्किल भरी है क्योंकि इनके लिए कोई नियम कानून ही नहीं बने हैं. जिसकी वजह से सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रहती हैं.
झारखंड, बिहार और बंगाल की ज्यादातर महिलाएं आजीविका की तलाश में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और सूरत जैसे बड़े शहरों में आ बसी हैं. कोरोना काल में इन प्रवासी घरेलू कामगारों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गयी है. एक ओर इन महिलाओं को उनके मालिक पैसे नहीं दे रहे जहां ये काम करती हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हें सरकारी योजनाओं लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि ये प्रवासी हैं. इनके सामने अब हर दिन पेट भरना चुनौती बन गया है. कुछ महिलाएं वापस जाना चाहती हैं पर ज्यादातर महिलाएं इस आस में बैठी हैं कि जल्दी से लॉकडाउन खुले और उन्हें काम पर वापस बुलाया जाए.
जब बच्चों के दांत निकलते है तो वह बहुत परेशान हो जाते है. कई बार मां को भी दांत निकलते समय क्या करे इसका पता नही होता इस कारण वह परेषान हो जाती है. इससे बचने के लिये जरूरी है कि बच्चों के दांत निकलने की पूरी जानकारी होनी चाहिये. डंेटल स्पेशलिस्ट डाक्टर मृणालिनी षाही कहती है ‘आम तौर पर शिशुओं के दांत 6 माह की उम्र में निकलना शुरू होते है. 3 से 4 माह या 1 साल की उम्र में भी दांत निकलने को सामान्य माना जाता है. दांत निकलने से पहले शिशु के मसूढों में भीतर ही भीतर बढते है. इससे शिशुओं में परेशानी हो सकती है.दांत निकलने के समय शिशु लार टपकाने लगता है. इस समय वह हर चीज को चबाने की कोशिश करता है. दांत निकलने के समय शिशु कुछ चिडचिडा हो जाता है. अगर कुछ सावधनियां बरती जाये तो इन मुश्किलों से बचा जा सकता है.‘
लखनऊ की रहने वाली डाक्टर मृणालिनी षाही ने बच्चों के दांत की परेषनियों पर विषेष अध्ययन किया है. उनका कहना है बचपन से दांतों की सही देखभाल होने से बुढापे तक यह दांत सही तरह से साथ देते है.
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1 शिशु के मसूढों को अपनी छोटी उंगली साफ करके हल्के हल्के रगडे.
2 बच्चे को चबाने के लिये कुछ ठोस चीज जैसे कच्ची गाजर, रस्क का टुकडा या फिर टीथिंग रिंग दे.
3 बच्चे को पीने की चीजे कप में दे. क्योकि चूसने में बच्चें को दर्द हो सकता है.
4 दांत निकलने के समय बच्चे को ठंडी हवा में न घुमाये. इससे दांत निकलने का दर्द और बढ जाता है.
6 दूध के दांतो की सफाई बहुत जरूरी होती है. इसलिये बचपन से ही बच्चे को सही तरह से ब्रश करने की आदत डालनी चाहिये.
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7 सही तरह से ब्रश करने के लिये गोल और मुलायम बालों वाला ब्रश दे. दांतों की सफाई को इस तरह से करे. जिसमें बच्चे को मजा आये तो वह आराम से ब्रश करने लगेगा. इससे बडे चाव से बच्चा अपने दांत की सफाई करने लगेगा.
8 अगर आपके बच्चे को खाने मंे मिठाई, केक, चाकलेट, बिस्कुट और मीठे पेय पदार्थ पीता हो. तो दांतों से सफाई बहुत जरूरी होती है. दांतो की सफाई से इन बीमारियों को रोका जा सकता है.
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दांत निकलने के समय बच्चों के खाने में भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी भरपूर मात्रा में होनी चाहिये. इन दोनो के खाने में शामिल होने से दांतो की सेहत अच्छी रहती है.
जवान हसीन औरत किसी के भी मन को भा सकती है. अगर वह थोड़ी तेज और वाचाल हो तो कहना ही क्या. रूबी में ये सारी खूबियां थीं. अपनी इन्हीं खूबियों की बदौलत उस ने अपने पति धर्मेंद्र को… —’/अशोक कुमार 23मार्च, 2020 को शाम 6 बजे दरिगापुर आमौर गांव का 30 वर्षीय धर्मेंद्र यादव उर्फ माना
सामान लेने आमौर तिराहे पर गया था. धर्मेंद्र देर रात तक घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए.
धर्मेंद्र मोबाइल भी घर छोड़ गया था. उस के न लौटने और मोबाइल घर छोड़ जाने से घर वालों की चिंता और भी बढ़ गई. कुछ लोगों को साथ ले कर घर वालों ने रात में ही धर्मेंद्र की तलाश शुरू कर दी. वे लोग रात 2 बजे तक उसे इधरउधर खोजते रहे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. अगले दिन धर्मेंद्र के तहेरे भाई अवधेश कुमार ने सिरसागंज थाने में उस की गुमशुदी दर्ज करा दी. लापता होने के तीसरे दिन यानी
25 मार्च की दोपहर 12 बजे नगला जीवन के पास आमौर नहर में धर्मेंद्र का शव देखा गया. पूरे इलाके में यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो नहर किनारे लोगों का हुजूम जुट गया.
दरिगापुर आमौर के लोग भी नहर पर पहुंच गए. घर वाले धर्मेंद्र का फूला हुआ शव नहर के पानी से निकाल कर घर ले आए. लाश देखते ही परिवार में कोहराम मच गया. इसी बीच किसी ने इस की सूचना सिरसागंज थाने में दे दी. खबर पाते ही थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए.
धर्मेंद्र के घर पर ग्रामीणों के साथ महिलाएं भी जुटी हुई थीं. उधर सूचना पर पहुंची पुलिस ने कोरोना वायरस के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए गांव वालों को वहां से हटाने का प्रयास किया. शव के पास जुटी भीड़ हटाने पर गांव के लोग आक्रोशित हो गए, उन्होंने पुलिस टीम पर पथराव शुरू कर दिया.
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पथराव में थानाप्रभारी की गाड़ी के आगे व पीछे के शीशे टूट गए. किसी तरह पुलिस ने ग्रामीणों को समझा कर शांत किया. थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पर सीओ डा. ईरज राजा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार वहां पहुंच गए.मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि धर्मेंद्र की पत्नी रूबी का एक साल से चंदन नाम के युवक से अफेयर चल रहा था. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. बात बढ़ी तो मामला मारपीट तक पहुंच गया.
इस पर रूबी 3 साल के बेटे को ले कर अपने मायके चली गई. ससुराल वालों ने धर्मेंद्र पर दहेज का मुकदमा कर रखा है. बाद में समझौता होने के बाद रूबी ससुराल वापस आ गई थी. रूबी ने ही अपने प्रेमी व मायके के लोगों के साथ मिल कर धर्मेंद्र की हत्या कराई है.
मृतक धर्मेंद्र के तहेरे भाई अवधेश कुमार ने मुकदमा दर्ज कराने के लिए पुलिस को एक तहरीर दी, जिस में 6 लोगों चंदन निवासी कुतुकपुर, नसीरपुर, बहनोई धर्मवीर निवासी भांडरी, मृतक की पत्नी रूबी, दो सालों ओमवीर, दयानवीर उर्फ छोटा और ससुर सत्यवीर उर्फ सत्यदेव निवासी ग्राम ककरारा के नाम थे. लेकिन पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद स्थिति साफ होने पर केस दर्ज करने को कहा. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने धर्मेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.
पति की मौत पर रूबी का रोरो कर बुरा हाल था. ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी.
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रूबी ने बताया कि धर्मेंद्र के किसी आदमी पर रुपए उधार थे. 23 मार्च को शाम 6 बजे वह आमौर चौराहे पर उस से पैसे लेने गए थे. घर के लिए कुछ सामान भी लाना था.
घटना के 2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मृत्यु का कारण उस के शरीर पर आई चोटों और पानी में डूबना बताया गया. पोस्ट मार्टमरिपोर्ट आने के बाद 27 मार्च को पुलिस ने अवधेश की ओर से रूबी सहित 6 लोगों के विरूद्ध हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि मृतक की पत्नी रूबी चरित्रहीन थी, उस के अपने बहनोई धर्मवीर व प्रेमी चंदन से विवाहेतर संबंध थे. धर्मेंद्र इस का विरोध करता था. इसी बात को ले कर धर्मेंद्र और रूबी के बीच अकसर झगड़ा होता था.पुलिस ने मृतक की पत्नी रूबी के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. पुलिस ने जब उस नंबर को ट्रैस किया तो वह चंदन का निकला. रूबी के नंबर पर जो अंतिम काल आई थी, वह चंदन की थी.
रूबी को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. रूबी बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह शक के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो रूबी टूट गई. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. रूबी ने पुलिस को बताया कि चंदन ने उसे फोन किया था कि धर्मेंद्र को 23 मार्च को शाम 6 बजे आमौर चौराहे पर भेज देना. उस ने चंदन के कहे अनुसार पति को आमौर चौराहे पर भेज दिया था. धर्मेंद्र की हत्या चंदन ने कैसे की, यह वही बता सकता है. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था.
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रूबी से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं मिली. सिवाय इस के कि चंदन और रूबी ने धर्मेंद्र की हत्या षडयंत्र रच कर की थी. पुलिस ने मुख्य आरोपी चंदन की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश में उन के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े.इस पर पुलिस ने हत्यारों की सुरागरसी के लिए मुखबिरों का जाल फैला दिया. 14 मई की दोपहर सिरसागंज के थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर को एक मुखबिर ने सूचना दी कि घटना का मुख्य आरोपी चंदन गांव धातरी के पेट्रोल पंप पर है. इस सूचना पर थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने पुलिस टीम के साथ उस जगह की घेराबंदी कर के चंदन को गिरफ्तार कर लिया.
आरोपी चंदन को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी के साथ उपनिरीक्षक अंकित मलिक, कांस्टेबिल विजय कुमार, छविराम व कर्मवीर सिंह शामिल थे.
पुलिस ने रूबी, उस के प्रेमी चंदन को धर्मेंद्र की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर के दोनों से पूछताछ की. पता चला रूबी पति के सीधेपन को कम अक्ल का बता कर प्रेमी चंदन से शादी रचाने का सपना देख रही थी, वहीं चंदन की नजर रूबी को पाने के साथ ही धर्मेंद्र की जमीन व मकान पर भी थी.
धर्मेंद्र की मौत के बाद वह रूबी से शादी कर जमीन जायदाद पर कब्जा करना चाहता था. साली के प्रेम में दीवाना जीजा धर्मवीर भी राह का रोड़ा बने धर्मेंद्र को रास्ते हटाने को तैयार था. जीजा और प्रेमी को एक राह पर लाने का काम किया रूबी ने. धर्मवीर, चंदन और रुबी ने मिल कर धर्मेंद्र की हत्या का षडयंत्र रचा. हत्यारोपियों ने इस जघन्य अपराध की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—
धर्मेंद्र के पिता सत्यभान यादव रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी थे. धर्मेंद्र उन का इकलौता बेटा था. गांव में सत्यभान के पास 16 बीघा खेती के अलावा पक्का मकान था. 9 साल पहले उन के बेटे धर्मेंद्र की शादी सत्यवीर उर्फ सत्यदेव की बेटी रूबी के साथ हुई थी. दोनों का 3 साल का बेटा है.
शादी के बाद दोनों के कुछ साल हंसीखुशी से बीते. धर्मेंद्र वैसे तो सीधासादा था लेकिन शराब का शौकीन था. चंदन धर्मेंद्र की मां का दूर का रिश्तेदार था. इसी रिश्ते की वजह से उस के लिए घर के रास्ते खुले हुए थे. पिछले एक साल से चंदन धर्मेंद्र के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा था. साथसाथ शराब पीने से दोनों एकदूसरे के गहरे दोस्त बन गए थे. चंदन का आटो था जिसे वह सिरसागंज में चलाता था.
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भरेपूरे बदन की रूबी को देख कर चंदन का मन डोल गया था. वह रूबी को भाभी कहता था. चंदन धर्मेंद्र से हंसी ठिठोली में कह देता था, तुम तो कम अक्ल हो, ताज्जुब है तुम्हें इतनी सुंदर बीबी मिल गई. सीधासादा धर्मेंद्र चंदन की बात को हंस कर टाल देता था. लेकिन चंदन के मुंह से अपनी सुंदरता की बात सुन कर रूबी शरमा जाती.धर्मेंद्र के दारू पीने के शौक का चंदन ने भरपूर फायदा उठाया. वह जब भी रूबी से मिलने आता अपने साथ शराब की बोतल जरूर लाता. दोनों घर में ही बैठ कर शराब पीते. चंदन धर्मेंद्र को ज्यादा शराब पिलाता. जब वह नशे में बेसुध हो कर सो जाता, चंदन और रूबी घंटों बातें करते.
धीरेधीरे दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. अपने प्यार का इजहार करने के लिए उन के पास पर्याप्त अवसर थे. इसलिए उन्हें न मोहब्बत के इजहार में वक्त लगा न इश्क के इकरार में. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. रूबी फोन पर चंदन से लंबीलंबी बातें करने लगी. वह उस के खयालों में खोईखोई सी रहती थी.
प्रेम के हिंडोले में झूलती रूबी चंदन से कहती, ‘‘चंदन मैं दिल दे कर अब पूरी तरह तुम्हारी हो चुकी हूं, तुम भी मेरा साथ निभाना. कभी भूल से भी मेरा दिल मत तोडना.’’ ‘‘कैसी बात करती हो रूबी, तुम्हारा दिल अब मेरी जान है और कोई भी अपनी जान को यूं ही नहीं छोड़ता.मैं तुम्हें जल्दी ही ले जाऊंगा. मैं ने भी तुम पर पूरा भरोसा कर के प्यार किया है.’’ चंदन रूबी को विश्वास दिलाता.लेकिन इस बीच धर्मेंद्र को उन के बीच पक रही खिचड़ी की भनक लग गई थी. वह अपनी पत्नी के चरित्र से भलीभांति परिचित था. उस ने रूबी को कई बार समझाया कि चंदन जब घर आए तो वह उस से बात न करे. लेकिन पति की बातों का रूबी पर कोई असर नहीं होता था.
पतिपत्नी में विवाद बढ़ने के बाद रूबी अपने मायके चली गई. चंदन उस के मायके में भी जाने लगा था. समझौते के बाद रूबी फिर धर्मेंद्र के पास ससुराल आ गई थी. घटना से एक माह पहले धर्मेंद्र के पिता की मृत्यु हो गई थी. घर में धर्मेंद्र, रूबी, बेटे के अलावा विधवा मां रह गई थीं. ससुराल आने के बाद कुछ दिन तो रूबी का रवैया ठीक रहा लेकिन बाद में उस का प्रेमी चंदन फिर से घर आने लगा. धर्मेंद्र की हत्या से 10 दिन पहले चंदन और धर्मेंद्र में इसी बात को ले कर कहासुनी भी हुई थी.
इस के बाद चंदन का उस के घर आना बंद हो गया था. अब रूबी चंदन से मोबाइल पर चोरीछिपे बात करने लगी. एक सप्ताह पहले अच्छा मौका देख चंदन ने फोन पर रूबी से बात कर के धर्मेंद्र की हत्या की साजिश रची.योजना के अनुसार 23 मार्च की शाम 6 बजे रूबी ने धर्मेंद्र को सामान मंगाने के बहाने आमौर चौराहे पर भेज दिया. साथ ही चंदन को भी फोन कर दिया. चंदन चौराहे पर पहुंचा. धर्मेंद्र वहां उसे एक दुकान पर सामान खरीदते मिल गया. उस ने धर्मेंद्र की कमजोर नस को दबाते हुए कहा, ‘‘चलो पार्टी करते हैं.’’
धर्मेंद्र चाह कर भी मना नहीं कर सका. पुराने शिकवेगिले भूल कर धर्मेंद्र चंदन को अपने औटो में बैठा कर आमौर चौराहे वाले शराब के ठेके पर ले गया. वहीं से शराब की बोतल खरीदी.
रास्ते में रूबी का जीजा धर्मवीर भी मिल गया. दोनों ने उसे जम कर शराब पिलाई, साथ ही उस के साथ मारपीट भी की. तब तक अंधेरा घिर आया था. अधिक शराब पीने से धर्मेंद्र बेसुध हो गया तो दोनों धर्मेंद्र को औटो से नगला जीवन के पास आमौर नहर पर ले गए, जहां उसे नहर में धकेल दिया. पानी में डूबने से उस की मौत हो गई. लापता होने के तीसरे दिन धर्मेंद्र की लाश नहर से बरामद हो गई थी.
पुलिस ने गिरफ्तार रूबी व उस के प्रेमी चंदन को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. प्रेमी चंदन के प्यार में रूबी इस कदर अंधी हो गई थी कि अपने हाथों से ही अपनी हंसतीखेलती दुनिया बरबाद कर ली. अब वह अपने अबोध बेटे से भी दूर हो गई.
सवाल
मुझे पिछले 3 साल से मानसिक तनाव है. रात को सोते समय कान से ‘सन्नसन्न’ की आवाज आती है. इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आती है. इलाज बताएं?
जवाब
टिनिटस ऐसी आवाज का सुनना है जब कोई बाहरी आवाज न हो. जहां इसे आमतौर पर रिंगिंग के तौर पर परिभाषित किया जाता है, वहीं इस की आवाज क्लिकिंग, फुफकार या गरजने जैसी भी हो सकती है. यह आवाज तेज या ज्यादा तेज भी हो सकती है या यह एक या दोनों कानों से आती हुई महसूस हो सकती है. टिनिटस खुद ही खत्म हो जाएगी.
कुछ लोगों के लिए एंटीएंक्जाइटी ड्रग या एंटीडिप्रेसैंट्स के कम डोज के साथ किया गया इलाज टिनिटस को कम करने में मददगार हो सकता है.
कई भावनात्मक या शारीरिक कारण भी टिनिटस की शुरुआत से जुड़े हो सकते हैं जिन में तनाव भी शामिल है. तनाव से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर से मिलें.
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आपके कानों में बार-बार बजती है घंटी की आवाज
दिन प्रतिदिन हमारे अन्दर होने वाले बदलाव की वजह से हमारा दिमाग आराम की मुद्रा में कम और सतर्कता की मुद्रा में ज्यादा आ जाता है. एक शोध के मुताबिक, अगर आपको बैचेन करने वाली टिनिटस (कान में बजती आवाज) है, तो संभवत: आपको ध्यान संबंधी समस्या भी होगी, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपका ध्यान जरूरत से ज्यादा आपके टिनिटस यानी कान में बजने वाली आवाज पर होगा और अन्य बातों पर आपका ध्यान कम होगा.
रिसर्च का नेतृत्व करने वाली अमेरिका के यूनिवर्सिटी आफर इलिनायस की फातिमा हुसैन कहती हैं, “जिस तरह हम डायबिटीज या हाइपरटेंशन को नहीं माप सकते, उसी तरह हमारे पास उपलब्ध किसी भी यंत्र से इसे मापा नहीं जा सकता क्योंकि टिनिटस अदृश्य है.”
उन्होंने कहा, यह आवाज लगातार आपके दिमाग में रह सकती है, लेकिन कोई अन्य व्यक्ति इसे सुन नहीं सकता और क्योंकि वह सुन नहीं सकता इसलिए शायद वह आपकी बातों पर विश्वास भी न करेगा. वह यह सोच सकता है कि जो चीजे ऐप कह रही हैं वो महज आपकी कल्पना है. चिकित्सकीय रूप से हम इसके कुछ लक्षणों को ठीक कर सकते हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता क्योंकि हम यह नहीं जानते कि यह किस वजह से होता है.
दिमाग के कार्य और संरचना को देखने के लिए एमआरआई के प्रयोग के बाद यह पाया गया कि टिनिटस तो सुनने वाले के दिमाग में था. दिमाग के इस क्षेत्र को प्रिकुनियस कहते हैं, जो दिमाग में विपरीत रूप से जुड़े दो तंत्रों पृष्ठीय और डिफाल्ट मोड तंत्र से जुड़ा होता है. पृष्ठीय तंत्र तब सक्रिय होता है, जब किसी व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है, जबकि डिफाल्ट मोड पृष्ठभाग में कार्यरत रहता है, जब व्यक्ति आराम कर रहा होता है या कुछ खास नहीं सोच रहा होता है. इसके अलावा, टिनिटस की गंभीरता बढ़ने पर तंत्रिका तंत्र पर इसका प्रभाव पड़ता है.
बॉलीवुड की मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान को बीते दिन सांस लेने में हो रही दिक्कत के कारण मुंबई के बांद्रा में स्थित गुरू नानक अस्पताल में एडमिट कराया गया. सरोज खान की तबीयत को लेकर उनके फैंस भी लगातार दुआ कर रहे हैं.
सरोज खान को बीते शनिवार को सांस की तकलीफ के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. डाइरेक्टर कुणाल कोहली ने बुधवार 24 जून को सरोज खान के स्वास्थ्य को लेकर ये जानकारी दी. कुणाल ने साथ ही बताया कि सरोज खान का कोरोना टेस्ट भी कराया गया था, जो कि नेगेटिव आया.
कुणाल ने बुधवार को ट्वीट कर बताया कि उन्होंने सरोज खान के बेटे राजू खान से बात की, जिन्होंने अपनी मां के स्वास्थ्य को लेकर अपडेट दिया. कुणाल ने अपने ट्वीट में लिखा, “अभी सरोज खान के बेटे राजू खान से बात की. उन्होंने बताया कि ‘मास्टरजी’ अब बेहतर हैं और उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है उन्हें सांस लेने में तकलीफ के कारण अस्पताल ले जाया गया था. कोरोना नहीं है. वो अब बेहतर हैं.” सरोज खान अब धीरे-धीरे स्वस्थ हो रही हैं. वह एक या दो दिन में हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो सकती हैं.
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कुणाल ने दुआओं और प्रार्थनाओं के लिए सभी को धन्यवाद कहा है. साथ ही जल्द स्वस्थ होने की कामना की और कहा कि हम दुआ और उम्मीद कर रहे हैं कि हमारी प्यारी मास्टरजी जल्द ही घर वापस लौटें.
सरोज खान के डांस स्टेप्स की बात करें तो उनके डांस मूव्स इंडस्ट्री के आइकोनिक स्टेप्स में से एक हैं. अपनी पूरी लाइफ में सरोज खान ने अब तक 2000 से ज्यादा गानों को कोरियोग्राफ किया है. श्रीदेवी से लेकर माधुरी दीक्षित तक सभी सरोज खान के डांस स्टेप्स के द्वारा ही लोगों के दिलोें में अपनी छाप छोड़ चुकी हैं. 50 के दशक में सरोज ने बतौर बैकग्राउंड डांसर काम करना शुरू कर दिया था और खूब नाम कमाया.
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71 वर्षीय सरोज खान को 3 बार नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है. इसके साथ ही सरोज खान ने कई मशहूर गानों पर बेहतरीन कोरियोग्राफी की है, जिसमें ‘डोला रे डोला’, ‘एक दो तीन’, ‘ये इश्क हाये’ और ‘निंबुड़ा’ ‘निबोड़ा’ शामिल है.
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कोरियॉग्राफर सरोज खान ने बॉलीवुड पर अपने गानों से राज किया है, सरोज खान श्री देवी, माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय बच्चन से लेकर आलिया भट्ट को अपनी ताल पर नचा चुकी है. सरोज खान ने आखिरी फिल्म ‘कलंक’ के तबाह हो गए गाने को कोरियोग्राफ किया था, जिसमें माधुरी दीक्षित ने बेहतरीन डांस किया था. माधुरी दीक्षित ने कोरियोग्राफर सरोज खान के साथ कई हिट नंबर दिए हैं.
लॉकडाउन में सभी लोग अपने घर पर बंद हो गए थें. अब एक-एक करके सभी को अपने काम पर जाने की अनुमति मिल रही है. ऐसे में टीवी सीरियल्स में भी आपको लंबा बदलाव देखने को मिल सकता है. ऑनलॉक 1 के बाद अब धीरे-धीरे टीवी स्टार्स अपनी शूटिंग शुरू कर रहे हैं.
इसी बीच खबर आ रही है कि सीरियल कसौटी जिंदगी 2 में आपको बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. इस सीरियल के मैकर्स बहुत कुछ बदलने वाले हैं. ऐसे में आपको बता दें कि कसौटी में बहुत सी नई चीजें देखने को मिल सकती हैं.
1.इस सीरियल को कुछ दिन पहले ही करण सिंह ग्रोवर ने बॉय बोल दिय़ा था. करण सिंह ग्रोवर के साथ –साथ उनकी ऑन स्क्रिन बेटी भी सीरियल को अलविदा कह दी थीं. करण के शो छोड़ने के बाद सीरियल्स के मेकर्स मिस्टर बजाज की तलाश कर रहे हैं.
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2. इसी बीच किरदार के लिए कई नाम सामने आएं हैं जिसके नाम कुछ इस तरह से हैं- करण पटेल, गौरव चोपड़ा, शरद कलकर.
3.मिस्टर बजाज का ट्रेक एक बार फिर से शुरू होने वाला है तो जाहिर सी बात है उनकी बेटी कुक्की का किरदार भी नजर आएगा ही.
4. हालांकि नई गाइड लाइन की वजह से अब सेट पर बच्चे और बुढ़ें नजर नही आएंगे. और साथ ही सेट पर किसी तरह के रोमांटिक सीन नहीं होगा.
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लोगों को सेट पर सावधानी से काम करना होगा तथा साथ ही समय से घर वापस आ जाना होगा. लोग पहले की तरह देर-देर तक सेट पर नजर नहीं आएंगे.
5. महाराष्ट्र सरकार के सभी नियमों का पालन करना होगा. वरना उन्हें सजा भी हो सकता है.
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एकता कपूर के सीरियल्स में हमेशा नए-नए ट्विस्ट आते रहते हैं. इसमें कोई नई बात नहीं है. इसके अलावा और भी कई टीवी सीरियल्स हैं जिन्होंने अपनी शूटिंग शुरू कर दी है. लेकिन सावधानी का खास ख्याल रखते हैं.
बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत अब हमारे बीच नहीं है लेकिन लोगों के मन में कई तरह के सवाल छोड़कर चले गए हैं. सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. सुशांत के मौत के बाद लोग कई तरह के सवाल उठा रहे थें.
सुशांत के मौत के बाद लोगोॆ के मन में सवाल खड़े हो रहे थे कि वह खुद से मरा नहीं है उसे मारा गया है. इस खबर को कई न्यूज ऐजेंसी ने छापा था.
वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद सबके मन में चल रहे सवाल आज साफ हो गया है कि सुशांत को मारा नहीं गया है. उन्होंने आत्महत्या कि है. सुशांत के पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार पूरे देश को था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु फांसी लगने से ही हुई है. फांसी के कारण सुशांत सिंह राजपूत का दम घुट गया, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई।.सुशांत सिंह राजपूत के शरीर पर बाहरी चोट के कोई निशान नहीं थे और उनके नाखून भी पूरी तरह से साफ थे.
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सुशांत सिंह के रिपोर्ट आने के बाद पुलिस उन सभी लोगों से पूछताछ कर सकती है जिन्होंने सुशांत के मर्डर की खबर फैलाई थी.
सुशांत अब नहीं रहे बहुत लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. सुशांत अपने पीछे कई सारे खूबसूरत यादें छोड़कर जा चुके है. जिसे देखकर लगता है मानों वह अब भी हमारे आस-पास ही हैं.
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सुशांत के परिवार वालों के लिए यह समय बहुत मुश्किल भरा है. वहीं कुछ फैंस सुशांत के ऐसे भी हैं जो रिया चक्रवर्ती को उनकी मौत की वजह बता रहे हैं. जबकी पुलिस ने रिया चक्रवर्ती के साथ-साथ कई लोगों से पूछताछ की है. रिया चक्रवर्ती सुशांत के बारे में उन सभी चीजों का खुलासा किया जबसे वह सुशांत के साथ रिलेशन में आई थीं. सुशांत और रिया इस साल के आखिरी में शादी भी करने वाले थें.
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इस बीच रिया औऱ सुशांत की लड़ाई भी हुई थी. सुशांत के डिप्रैशन को देखते हुए लृरिया ने सुशांत से धीरे-धीरे दूरी बनानी शुरू कर दी थी. सुशांत फांसी लगाने से पहले रिया को आखिरी फोन किए थें.
हकीकत क्या थी, यह तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन यह सच है कि कुछ लोग मौका मिलने पर भी नहीं सुधरना चाहते. शीला भी सुधर सकती थी अगर दिनेश थोड़ी कोशिश करता. लेकिन उस ने… छत्तीसगढ़ का औद्योगिक नगर कोरबा एशिया के नक्शे में अपनी कोयला खदानों, सार्वजनिक
क्षेत्र के एल्युमिनियम कारखाने, एनटीपीसी के विद्युत प्लांट के कारण अहम स्थान रखता है. 30 वर्षीय खूबसूरत शीला अपने दूसरे पति दिनेश कंवर और बच्चे के साथ कोरबा के उपनगर कटघोरा में किराए के मकान में रहती थी.
15 नवंबर, 2019 की शाम शीला के मोबाइल पर पति दिनेश कंवर की काल आई. दिनेश ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘शीला, तुम कहां हो? बहुत बुरी खबर है.’’
पति की बात सुन कर शीला घबरा गई. वह बोली, ‘‘मैं कटघोरा बसस्टैंड पर हूं. क्या हो गया, जो इतना घबराए हुए हो?’’
‘‘शीला, तुम कहीं मत जाना, मैं आ रहा हूं. नरेश चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है. हमें उन के यहां जाना है.’’ दिनेश ने कहा.
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पति की बातें सुन कर शीला कंवर चिंतित हो उठी. वह घर से कोरबा जाने के लिए निकली थी, मगर पति की बातें सुन उस ने अपना इरादा बदल दिया. उस समय शीला के साथ उस की फ्रैंड धनश्री और मीना भी थीं. उस ने दोनों को बताया कि अचानक घर में जरूरी काम आ गया है, इसलिए वह कोरबा नहीं जा पाएगी. वे दोनों चली जाएं.
इस पर धनश्री ने तुनक कर कहा, ‘‘ये क्या बात हुई, छोटी सी बात पर तुम कोरबा जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर रही हो. इस से तो पूरा खेल बिगड़ जाएगा.’’
‘‘अरे यार, तुम जानती नहीं हो. दिनेश आजकल छोटीछोटी बातों पर उखड़ जाता है. बातबात में मुझ पर शक करता है. अगर मैं घर नहीं गई तो वह फिर झगड़ा करेगा.’’ शीला ने दोनों फ्रैंड्स को समझाते हुए कहा. इस पर धनश्री बोली, ‘‘अरे यार, ज्यादा भाव खा रहा है तो छोड़ दे इसे भी.’’
‘‘नहीं यार, वह जैसा भी है मुझे बहुत चाहता है. कमाता कम है मगर दिल से प्यार करता है. ऐसा पति मिलना मुश्किल है. पहले वाला तो मेरी सुनता भी नहीं था, मगर यह सुनता तो है.’’ शीला ने कहा.
‘‘क्या सुनता है?’’
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‘‘मेरी हर बात सुनता है. मैं ही उस की नहीं सुनती. तुझे पता है, अपने हाथ और सीने पर उस ने मेरे नाम का टैटू भी बनवाया है. अब तू ही सोच, क्या ऐसा प्यार करने वाला पति फिर मिलेगा? हां, थोड़ा कड़क है, वो चाहता है कि मैं उस के हिसाब से चलूं, घर पर रहूं, कहीं आऊंजाऊं नहीं, मगर…’’
‘‘तू तो पूरी पागल हो गई है.’’ धनश्री ने हंस कर ठिठोली की.
‘‘औरत को हर कदम पर पति की जरूरत होती है. बाप न हो तो बच्चों पर भी गलत असर पड़ता है. हर बात माननी जरूरी नहीं, मगर कुछ तो मानना ही पड़ता है. इसलिए आज तुम लोग जाओ, हम कल मिलते हैं.’’ कह कर शीला ने मीना और धनश्री को कटघोरा बसस्टैंड पर छोड़ कर घर की ओर रुख किया.
शीला कटघोरा के स्टेट बैंक के पास किराए के मकान में रहती थी. उस का दूसरे पति दिनेश कंवर से 3 साल का बेटा अमन था. जब शीला घर पहुंची तो शाम के 5 बज रहे थे. थोड़ी देर बाद घबराया हुआ दिनेश वहां पहुंचा.
दिनेश और शीला ने 4 साल पहले विवाह किया था. शीला अपने पूर्व पति महेश महंत को छोड़ चुकी थी. महेश से उस का 10 साल पहले विवाह हुआ था. वह कटघोरा में कपड़े की दुकान में काम करता था.
लगभग 7 साल तक दोनों की गृहस्थी जैसेतैसे चली और अंतत: शीला ने सामाजिक रूप से महेश महंत से तलाक ले लिया और उस से अलग रहने लगी.
इसी बीच उस की मुलाकात 30 साल के दिनेश कंवर से हुई. दिनेश कटघोरा से बिलासपुर, रायपुर ट्रक चलाता था. वह कोयला खदान में ड्राइवर था. जो भी कमाता, वह सब शीला पर लुटा देता था. दिनेश के दिलफेंक अंदाज के कारण शीला ने उस के साथ मंदिर में शादी कर ली और उस के साथ रहने लगी.
दिनेश घर पहुंचा तो उस ने बाहर से ही आवाज दी, ‘‘शीला कहां हो?’’
पति का तेज स्वर सुन कर शीला घर से बाहर आई तो देखा सामने पति दिनेश और उस का हमउम्र चाचा नरेश खड़े थे.
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दिनेश ने कहा, ‘‘चलो, चलते हैं. देखो, चाचा भी आए हैं. बांगो के आगे राजू का एक्सीडेंट हो गया है. जाने के लिए मैं ने बोलेरो मंगाई है.’’
शीला पति की बात सुन गंभीर हो गई. बच्चे को पड़ोसी की देखरेख में छोड़ वह दिनेश के भाई सोनू और चाचा नरेश के साथ बोलेरो में बैठ गई.
बोलेरो संतोष यादव चला रहा था. गाड़ी आगे बढ़ी तो बांगो का घना जंगल शुरू हो गया. करीब 30 किलोमीटर आगे बालागांव के निकट एक जगह दिनेश ने संतोष से कह कर बोलेरो रुकवाई. तभी दिनेश ने बहाने से शीला को भी बोलेरो से उतार लिया.
शीला बाहर आई तो दिनेश कंवर का बोलने का लहजा बदल गया. वह शीला पर चीखा, ‘‘तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरी गैरमौजूदगी में तुम अय्याशी करती हो. मुझे तुम्हारी पलपल की खबर मिल जाती है.’’ वह शीला को गालियां देने लगा.
अचानक माहौल बदला देख शीला घबराई. दिनेश कह रहा था, ‘‘कल दोपहर तुम प्रकाश के साथ थी. बोलो, सच है कि नहीं. मैं…मैं तुम से कितना प्यार करता हूं और तुम बेवफा निकली…’’
यह सुन शीला के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, क्योंकि उस की चोरी पकड़ी गई थी.
‘‘मैं आज तुझे बेवफाई की सजा दूंगा.’’ कहते हुए वह बोलेरो में रखी लोहे की रौड उठा लाया और उस के सिर पर 2-3 वार कर दिए. शीला वहीं गिर गई. थोड़ी देर तड़प कर उस की मृत्यु हो गई.
पास खड़े चाचा नरेश कोरची और सोनू ने मृत पड़ी शीला को उठाया और बोलेरो में डाला और खुद भी बैठ गए. बोलेरो चालक संतोष यादव यह सब देख रहा था. दिनेश ने उसे पैसों का लालच दे कर साथ मिला लिया था.
गाड़ी में शीला की लाश रख कर ये लोग आगे बढ़े. शीला की लाश को ठिकाने लगाना जरूरी थी. चाचा नरेश ने दिनेश से कहा, ‘‘इस को कहीं दफन कर देते हैं. ऐसे लाश फेंक देंगे तो जरूर पकड़े जाएंगे. मैं ने कहीं सुना है कि लाश दफन करने से चंद दिनों में मिट्टी में मिल जाती है. हम ने इसे दफन कर दिया तो किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’
दिनेश को चाचा की राय अच्छी लगी. उस ने कहा, ‘‘चाचा, एक काम और करते हैं. इस के कपड़े वगैरह भी उतार देते हैं क्योंकि कपड़ों से लाश की शिनाख्त हो सकती है.’’
‘‘ठीक है.’’ चाचा नरेश ने स्वीकृति दी.
कुछ दूर गाड़ी चलने के बाद सलिहाभाटा गांव का बुड़बुड़ नाला आया. वहां पहुंच कर संतोष ने गाड़ी रोक दी तो दिनेश, चाचा नरेश और नाबालिग सोनू ने लाश ठिकाने लगाने की जुगत लगानी शुरू की. उन्होंने नाले में उतर कर एक गड्ढा खोदा ताकि लाश को उस में दफन किया जा सके.
थोड़ी मशक्कत के बाद गड्ढा खुद गया तो शीला की लाश उस गड्ढे में डाल, ऊपर से मिट्टी भर दी. फिर चारों कटघोरा के लिए निकल गए.
19 नवंबर, 2019 को सलिहाभाटा का एक किसान बैजू बुड़बुड़ नाले के पास अपने मवेशी चरा रहा था.
उस की नजर नाले की तरफ गई तो उसे एक इंसान का हाथ दिखाई दिया. बैजू चौंका, उस ने पास जा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. वह सचमुच किसी इंसान का ही हाथ था. आसपास दुर्गंध फैली हुई थी.
बैजू भागता हुआ गांव के कोटवार (चौकीदार) लालू के पास पहुंचा और यह जानकारी उसे दी. लालू गांव के कुछ लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां बुरी तरह बदबू फैली हुई थी, लाश आधी बाहर थी, आधी मिट्टी में दबी हुई थी. कोटवार घटना की जानकारी देने के लिए बांगो थाने के लिए रवाना हो गया.
बांगो थाना कटघोरा से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है. थाना कोरबा-अंबिकापुर फोरलेन पर सड़क के एक किनारे है. यहां छत्तीसगढ़ का बहुउद्देशीय हसदेव बांगो बांध है, जो पर्यटन के लिहाज से जाना जाता है.
बांगो थाने के टीआई एस.एस. पटेल थाने में ही थे. चौकीदार लालू ने उन्हें नाले के किनारे लाश दबी होने की सूचना दी.
चौकीदार लालू की बात सुन टीआई एस.एस. पटेल पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जब वह सलिहाभाटा स्थित बुड़बुड़ नाले के पास पहुंचे तो वहां लोगों का हुजूम लगा हुआ था. टीआई पटेल ने मामले की गंभीरता को समझते हुए एसडीपीओ संदीप मित्तल को पूरी जानकारी दी. वह भी वहां पहुंच गए.
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जब मिट्टी हटवाई गई तो गड्ढे में एक महिला की नग्न लाश निकली. वहां से कुछ दूरी पर झाडि़यों में महिला के कपड़े और चप्पल पड़ी थीं. अंदाजा लगाया गया कि कपड़े और चप्पल मृतका के होंगे. सबूत एकत्र करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.
मौके पर ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से महिला की लाश की शिनाख्त हो पाती. केवल उस के एक हाथ पर ‘ॐ’ गुदा हुआ था. एसडीपीओ संदीप मित्तल ने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने की जिम्मेदारी टीआई एस.एस. पटेल को दी.
पटेल के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थीं. पुलिस ने आसपास के गांवों के लोगों को बुला कर शिनाख्त कराने की कोशिश की. पुलिस ने शव के चेहरे का फोटो ले कर पोस्टर और पैंफ्लेट छपवाए और आसपास के ग्रामीण बाजारों में बंटवाए. पुलिस जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि जिस तरह से हत्या कर के शव दफन किया गया था, उस से जाहिर था मृतका की हत्या कहीं और की गई थी और शव वहां दफनाया गया था.
21 नवंबर को दोपहर में एक महिला बांगो थाने पहुंची. टीआई एस.एस. पटेल से मिल कर उस ने उन्हें पैंफ्लेट देते हुए कहा कि इस में जिस महिला की हत्या की बात कही गई है, वह उस की फ्रैंड शीला कंवर हो सकती है. एस.एस. पटेल ने महिला का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम धनश्री बताते हुए कहा कि वह शीला की फ्रैंड है. कुछ दिनों से शीला दिखाई नहीं दे रही है.
पुलिस ने धनश्री को शीला के अन्य फोटोग्राफ्स और कपड़े दिखाए तो उस की आंखों में आंसू छलक आए. क्योंकि वह शीला के ही थे. एक जगह हाथ में ॐ भी लिखा था, जिसे उस ने पहचाना और कपड़ों की भी शिनाख्त कर दी. उस ने बताया, ‘‘सर, 15 नवंबर को हम साथ थे. तब शीला यही कपड़े पहने थी.’’
धनश्री ने टीआई को अपने मोबाइल में वही कपड़े पहने शीला का फोटो दिखाया.
टीआई को लगा कि अब उन के हाथ जो सिरा आ गया है, उस के सहारे वह आसानी से शीला कंवर के हत्यारों तक पहुंच जाएंगे. धनश्री से बातचीत कर के टीआई ने शीला के घर वालों की जानकारी ले ली और पता ले कर जांच प्रारंभ कर दी. पटेल ने धनश्री से शीला के पति का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.
उन्होंने शीला के पति दिनेश कंवर का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ था. पुलिस को सब से पहले उसी से पूछताछ करनी थी. दिनेश का फोन नहीं मिला तो शीला के मातापिता को फोन कर के कोरबा जिले के दीपका टाउन बुलाया. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस जब शीला की लाश उन के सुपुर्द करने लगे तो उस के पिता मोहन महंत ने हाथ खड़े कर के कहा, ‘‘साहब, शीला तो हमारे लिए बहुत पहले ही मर चुकी थी.’’
उस ने बताया कि 5 साल पहले शीला ने दिनेश कंवर से प्रेम विवाह कर लिया था. उस के बाद से उन का उस से संबंध विच्छेद हो गया था और सामाजिक परंपरा के कारण वह शीला का अंतिम संस्कार नहीं कर सकते.
पुलिस ने शीला का अंतिम संस्कार अपने खर्चे पर कराया. अंतिम संस्कार के बाद पुलिस दिनेश कंवर की तलाश में जुट गई. पुलिस की क्राइम टीम ने जांच में पाया कि उसका मोबाइल बीचबीच में औन हो रहा था और लगातार उस की लोकेशन बदल रही थी.
ऐसी स्थिति में पुलिस की यह शंका बलवती होती गई कि शीला की हत्या में उस के पति का हाथ हो सकता है. जांच में यह तथ्य भी सामने आ चुका था कि दिनेश कंवर और शीला में अकसर विवाद होता था. शीला तीखे नाकनक्श की सुंदर महिला थी, जिसे कोई भी एक नजर देख फिदा हो जाता.
इसी के चलते उस के कदम बहक गए थे. वह महंगे शौक पाले हुए थी. पुलिस की जांच में यह तथ्य भी सामने आ गया कि उस की दोस्ती कई पुरुषों से थी.
दरअसल, कोरबा का इंडस्ट्रियल एरिया होने की वजह से वहां तमाम ऐसे लोग रहते थे, जिन्हें महिलाओं की जरूरत होती थी. शीला और उस की फ्रैंड्स उन्हीं लोगों के पास जाती थीं.
क्राइम टीम ने आखिरकार 23 नवंबर, 2019 को कोरबा जिले के चोटिया के पास से दिनेश को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर टीआई एस.एस. पटेल व एसडीपीओ संदीप मित्तल ने शीला की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को पूरा घटनाक्रम बता दिया.
उस के इकबालिया बयान के अनुसार शीला और दिनेश की मुलाकात लगभग 5 साल पहले हुई थी और वह उसे देखते ही पसंद करने लगा था. धीरेधीरे दोनों के संबंध बने और उन्होंने विवाह कर लिया.
कुछ समय सुखमय बीता, मगर धीरेधीरे शीला का सच उस के सामने आने लगा. उसे उस के कई परिचित बताने लगे कि शीला को तो आज एक पुरुष के साथ देखा था. यह बारबार जानसुन कर वह गुस्से से भर उठता और प्रयास करता कि शीला सिर्फ उस की हो कर रहे. मगर उस की सारी कोशिश बेकार साबित हुईं.
एक साल बाद शीला ने एक बेटे अमन को जन्म दिया. मगर इस के बाद भी शीला नहीं सुधरी. उस का अन्य पुरुषों से मेलजोल बना रहा. घटना के एक दिन पहले दिनेश के एक मित्र ने उसे बताया कि शीला को एक पुरुष के साथ कोरबा में देखा था. उस ने व्यंगपूर्ण शब्दों में कहा, ‘‘यार, तू अपनी बीवी को संभाल नहीं पाता, कैसा मर्द है तू?’’
यह बात दिनेश को चुभ गई. उस ने उसी समय से शीला की हत्या करने की योजना बनानी शुरू कर दी. दिनेश ने अपने हमउम्र चाचा नरेश से मदद मांगी तो वह तैयार हो गया. जब दोनों शीला की हत्या की योजना बना रहे थे, उन की बातें सुन दिनेश का छोटा भाई सोनू भी उस में शामिल हो गया. वह भी अपनी भाभी शीला के चरित्रहीन होने से खुद को अपमानित महसूस किया करता था.
अंतत: योजना बनी कि 15 नवंबर को शीला को जंगल में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए. उसी योजना के अनुसार दिनेश ने बोलेरो किराए पर ले ली. चालक संतोष यादव, जो दिनेश का दोस्त भी था, का सहयोग ले कर उन्होंने शीला की हत्या कर के सलिहाभाटा के बुड़बुड़ नाले में दफन कर दिया.
पुलिस ने दिनेश कंवर के बयान के आधार पर उस के चाचा नरेश, भाई आकाश उर्फ सोनू और बोलेरो चालक संतोष यादव को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ.
पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें कटघोरा जेल भेज दिया गया. जबकि आकाश उर्फ सोनू को बाल सुधार गृह भेजा गया. द्य
—कथा में आकाश नाम परिवर्तित है