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लॉकडाउन के बाद रैस्टोरैंट्स का हाल 

कोरोना ने जीवन के हर पहलू को तो बदल ही दिया है तो खाना खाने की सामन्य शैली कैसे न प्रभावित होती. डाइनिंग के नए स्टाइल व सुरक्षा नीतियों से लैस रैस्टोरैंट्स लौकडाउन के बाद कुछ इस तरह के दिखेंगे.

कोविड-19 के चलते यातायात, स्कूल, कालेज, औफिस, जिम, होटल, रैस्टोरैंट, सिनेमाघर आदि बंद हुए तो सामाजिक जीवन पर विराम लग गया व लोगों को क्वारंटाइन में रखने के लिए लौकडाउन लागू कर दिया गया. पहले 3 लौकडाउनों में केवल अत्यधिक जरूरी सामग्री ही उपलब्ध थी तो वहीं लौकडाउन-4 में कुछ चीजों में छूट दी गई. वहीं रैस्टोरैंट बंद ही रखे गए. ज्ञातव्य है कि रैस्टोरैंट ऐसी जगह है जहां लोगों के कोरोना से संक्रमित होने की संभावना अधिक है. रैस्टोरैंट में घुसने से ले कर टेबल पर बैठना, मेनू या बिल को छूना, खाना खाते समय हाथों का उपयोग व मुंह पर मास्क न लगा पाना कोरोना को निमंत्रण देने जैसा है.

लौकडाउन के चलते रैस्टोरैंट्स में ताला लग गया जिस का अर्थ है

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4.2 लाख करोड़ रुपए और 70 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को आर्थिक क्षति हुई. इस के चलते ज्यादा से ज्यादा रैस्टोरैंट्स की कोशिश यही रही कि वे होम डिलीवरी द्वारा अपना बिजनैस जारी रख पाएं लेकिन हर किसी के लिए यह भी संभव नहीं हुआ.

पश्चिम और दक्षिण भारत में मैकडोनल्ड्स रैस्टोरैंट की मालिक कंपनी वैस्टलाइफ डैवलपमैंट का कहना है कि उन्होंने कौंटेक्टलैस डिलीवरी का औप्शन जारी किया है जिस के द्वारा कस्टमर और डिलीवरी बौय दोनों को ही कोरोना वायरस के खतरे से बचाया जा सकता है. वैस्टलाइफ डैवलपमैंट के अनुसार, खाना बनाने वाले, उसे पैक करने वाले व उसे ले जाने वाले व्यक्ति द्वारा खाने को नंगेहाथों से नहीं छुआ जाएगा व हाइजीन के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाएगी.

भारत में डौमिनोज पिज्जा चलाने वाली कंपनी जुबिलैंट्स फूड वर्क्स लिमिटेड यानी जेएफएल ने भी जीरो-कौंटैक्ट डिलीवरी सर्विस जारी की है. इस के अंतर्गत कस्टमर बिना किसी तरह से डिलीवरी बौय के संपर्क में आए अपना फूड पैकेज ले सकते हैं. ये सुरक्षा के कदम कंपनी द्वारा एक्स्ट्रा मेजरमैंट के लिए उठाए गए हैं.

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रैस्टोरैंट्स उठाएंगे ये कदम

सोशल डिस्टैंसिंग को मद्देनजर रखते हुए रैस्टोरैंट्स कस्टमर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कदम उठा सकते हैं. लौकडाउन खत्म होने पर यदि रैस्टोरैंट खुलते हैं तो उन में सोशल डिस्टैंसिंग का अर्थ होगा डाइनिंग में

40-50 फीसदी की गिरावट, यानी यदि 100 लोगों के बैठने की जगह है तो एक समय में वहां केवल 40-50 लोग ही बैठ सकेंगे. इस से रैस्टोरैंट्स की कमाई पर यकीनन असर पड़ेगा.

रैस्टोरैंट्स में खाना खाने का तरीका पूरी तरह प्रभावित होगा. आप को रैस्टोरैंट के गेट पर टैंपरेचर जांच करानी होगी, हाथों को सैनिटाइज कर के ही अंदर प्रवेश करना होगा, खाना खाने के अलावा हर समय मुंह पर मास्क लगाना अनिवार्य होगा. आप किसी भी व्यक्ति के आसपास नहीं बैठ सकेंगे, किसी चीज को छूने पर उसे जल्द से जल्द सैनिटाइज करना अनिवार्य होगा.

जोमैटो के को-फाउंडर और चीफ औपरेटिंग औफिसर गौरव गुप्ता ने अपने ब्लौग पोस्ट में लिखा कि जोमैटो ऐप रैस्टोरैंट्स को ‘कौंटेक्टलैस’ डाइनिंग का औप्शन दे रहा है जिस से कस्टमर्स को अपना और्डर देने के लिए अपनी सीट से उठ कर नहीं जाना होगा और न ही किसी स्टाफ के कौंटेक्ट में आना होगा. वे अपनी सीट पर बैठेबैठे ही जोमैटो के जरिये खाना और्डर कर सकते हैं. इस से मेनू कार्ड, डिजिटल कियोस्क व बिल कार्ड की जरूरत नहीं पड़ेंगी और पेमैंट औनलाइन ही आसानी से की जा सकेगी.

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यूनाइटेड स्टेट्स औफ अमेरिका की बात करें तो मैकडोनल्ड्स ने अपनी फ्रैंचाइजी को 59 पन्नों की एक लिस्ट जारी की है जिस में रैस्टोरैंट को खोलने और डाइनिंग को ले कर कुछ नियम बताए गए हैं जिन में से मुख्य इस प्रकार हैं.

1.  सोशल डिस्टैंसिंग प्रोमोट करने के लिए कुछ टेबल्स पर ‘क्लोज्ड’ साइन लगाना होगा.

2 .बाथरूम की हर घंटे सफाई करनी होगी.

3.  हर और्डर के बाद डिजिटल कियोस्क को साफ करना होगा.

4.  सभी हाई टच सरफेसेस को संक्रमित होने से बचाने के लिए हर आधे घंटे में साफ करना होगा.

5.  फ्लोर पर साइनबोर्ड लगाने होंगे जिस से कस्टमर्स आतेजाते हुए एकदूसरे से न टकराएं.

6.  कर्मचारियों को रैस्टोरैंट में घुसने से पहले अपना टैंपरेचर चेक कराना होगा, ग्लव्स और मास्क पहने रहना होगा और हर घंटे अपने हाथ धोने होंगे.

7.  डाइन इन और्डर्स के लिए फूड बैग्स को सैनिटाइज्ड ट्रे पर रखा जाएगा और कस्टमर तक सोशल डिस्टैंस मेंटेन करते हुए पहुंचाया जाएगा.

इसी तरह के कदम भारत के रैस्टोरैंट्स को भी उठाने होंगे अन्यथा उन के खुलने पर पाबंदी लगा दी जाएगी या उस से भी बुरा कि वे खुलें तो कोरोना फैलाने का जरिया भी बन सकते हैं.

रैस्टोरैंट्स हो सकते हैं बंद

नैशनल रैस्टोरैंट एसोशिएशन औफ इंडिया के अनुसार 10 में से 4 रैस्टोरैंट्स हमेशा के लिए बंद हो सकते हैं. डाइनिंग में 40-50 फीसदी की गिरावट करना घाटे का सौदा साबित हो सकता है.

लौकडाउन खत्म होने पर रैस्टोरैंट्स को अपने कस्टमर्स की सुरक्षा को

देखते हुए विभिन्न तकनीकों को अपनाना होगा जोकि हर रैस्टोरैंट के बस की बात नहीं है. इस में आने वाले

खर्च की रकम बड़ी होगी. इंडिपैंडैंट आउटलेट्स के लिए यह खासा मुश्किल समय है जब उन्हें अपने कर्मचारियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी है और कस्टमर्स की भी. छोटे रैस्टोरैंट्स एग्रीगेटर्स से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं परंतु वे रैस्टोरैंट्स की इस कमजोर स्थिति में मुनाफे का बड़ा मार्जिन मांग सकते हैं जो इस समय देना रैस्टोरैंट्स के लिए मुमकिन नहीं है.

प्रौपर सैनिटाइजेशन, बिलिंग, मेनू, किचन डिस्प्ले जिस से लोग अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकें, टेबल्स और फ्लोर की बारबार सफाई इत्यादि का खर्च हर रैस्टोरैंट नहीं उठा सकता. इस के ऊपर रैस्टोरैंट्स के स्टाफ का अपने घर से रैस्टोरैंट तक पहुंचना भी चिंता का विषय है. प्रौपर उपकरणों की कमी को पूरा करने में भी छोटे रैस्टोरैंट असमर्थ हैं.

कोरोना वायरस के चलते कई रैस्टोरैंट्स अपने स्टाफ की तनख्वाह में कटौती कर रहे हैं, अपने आउटलैट्स पूरी तरह बंद कर रहे हैं व स्टाफ को नौकरी से निकाल रहे हैं. कारण स्पष्ट है कि बिजनैस पर पड़ी भारी मार के चलते रैस्टोरैंट्स की कमाई पूरी तरह बंद है. हालत यह है कि लौकडाउन पूरी तरह खुलने पर आप का पसंदीदा रैस्टोरैंट शायद नहीं खुलेगा.

जीत-भाग 3 : रमा को लेकर गंगा क्यों चिंतित थी?

और फिर दोनों पहले की तरह एकदूसरे से मिलते रहे. एक दिन रजत ने रमा से कहा, ‘‘रमा, जो बात तुम ने मुझ से कही है, वही अगर मां से कह दो तो उन का दुख कम हो जाएगा और वह शादी के लिए राजी हो सकती.’’

रमा थोड़ी देर के लिए चुप हो गईर् थी. फिर बोली, ‘‘अगर मां मुझे प्रेम से बुलाएं तो मैं जाऊं. सौ बार माफी मांगूं, लेकिन इस तरह मैं क्यों जाऊं? फिर मेरी बेइज्जती कर दें तो…?’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, मेरा दिल कहता है.’’ और रजत के दिल की बात मान कर रमा फिर गंगा से मिलने गईर् थी. लेकिन गंगा ने फिर उस की बेइज्जती कर दी थी. पूरी तरह बेइज्जत हो कर वापस हुई थी वह. रजत ने उसे तो समझाया था, लेकिन अपनी मां से एक भी शब्द नहीं कह सका था. अगर कहा होता तो आज रमा की यह हालत न हुईर् होती.

उस के दिल में रजत के लिए जहां प्यार था वहां नफरत पैदा होने लगी. अच्छा हुआ कि रजत उस समय वहां नहीं था, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.

4 दिन बीत गए. लेकिन इन 4 दिनों में एकसाथ बहुतकुछ घट गया. रमा ने अपना तबादला लखनऊ करवा लिया, जहां उस का अपना घर था.

5 वर्षों पहले एमए करने के बाद उस की नौकरी इलाहाबाद में लगी थी. वह चाहती तो अपने शहर में भी रह सकती थी. लेकिन यहां इस शहर में रह कर वह नौकरी के साथसाथ आईएएस की तैयारी भी करना चाहती थी. इसलिए इलाहाबाद में ही अपने मामा के साथ रहने लगी थी. जब वह अपने शहर लौटी तो उस के मांबाप ने उस के चेहरे पर छाई उदासी देख कर पूछा था कि क्या बात है, तुम इतनी उदास क्यों हो? लेकिन रमा ने सिर्फ इतना कहा था, ‘वहां अच्छा नहीं लगा. अब मुझे लगने लगा है कि मेरा दाखिला आईएएस में नहीं होगा, इसलिए उदास हो कर लौट आई हूं.’ शहर छोड़ने से पहले वह शाम को औफिस के पीछे रजत से मिली थी.

रमा उदास चेहरे से चुपचाप रजत को देखती रही. रजत ऊबने सा लगा. चुप्पी उसे बहुत अखर रही थी. उस ने बहुत धीरे से, उदास स्वर में कहा था, ‘रमा, अभी थोड़े दिन और धीरज रखो.’

तब रमा हंसी थी, ‘तुम्हारी इस सीख के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’

रजत ने सिर झुकाए हुए कहा, ‘फिर क्या कहूं मैं?’

‘कुछ नहीं, जो कुछ कहना है मुझे कहना है, मुझे करना है. मैं तुम से इसलिए मिलने आई हूं कि अपने प्रेम के लिए, सुख के लिए तुम्हारी जो शर्तें हैं, वे मुझे मंजूर नहीं हैं.’

‘मेरी शर्तें? मेरी कोई शर्त नहीं है.’

‘तुम्हारी मां को मनाने की. तुम चाह कर भी यह काम नहीं कर सकते.’

रजत जमीन की ओर ही ताकता रहा.

‘और मुझे विश्वास हो गया है कि…’

रजत ने बात काटते हुए कहा, ‘यही कि मैं तुम से प्रेम नहीं करता?’

‘नहीं.’

‘तो?’

‘तुम डरपोक हो. तुम किसी से प्यार करने लायक नहीं हो.’

और आगे बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने उस ने एक झटके के साथ गरदन घुमाई और रजत को वहीं छोड़ कर चली गई. दूसरे दिन वह लखनऊ चली गई थी.

रमा के चले जाने के बाद रजत कुछ दिनों तक उदास रहा. लेकिन गंगा बहुत खुश थी. लड़का अभी जवान है,

इस की उदासी 2-4 दिनों में चली जाएगी, यह उस को विश्वास था. दिन बीतने लगे.

एक दिन सुबह पोस्टमैन ने आवाज दी और एक लिफाफा फेंक कर चला गया. रजत औफिस जाने के लिए तैयार हो चुका था. लिफाफा उस ने उठाया. ऊपर रमा की लिखावट देख कर उस का चेहरा खिल उठा.

‘‘किस की चिट्ठी है?’’ गंगा ने पूछा.

रजत ने कुछ नहीं कहा. लिफाफा खोल कर देखा, उस में सिर्फ एक फोटो था. एक दिन रमा और रजत ने साथसाथ फोटो खिंचवाई थी. वही फोटो थी. उस की कौपी रजत के पास भी थी. रमा ने वही भेजी थी. फोटो में रजत रमा को हंसते हुए देख रहा था, और उसे अपनी बांहों में भरे हुए था.

फोटो देख कर रजत का चेहरा

खिल उठा.

गंगा रजत के पास आ गई और उस के हाथ से फोटो छीन लिया. वह थोड़ी देर तक उसे देखती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘छिनाल.’’

लेकिन फोटो के पीछे जो लिखा था, उसे पढ़ कर भड़क उठी. फोटो के पीछे लिखा था, ‘माताजी, मैं आप के बेटे के साथ ही शादी करूंगी.’

लिखावट पढ़ कर गंगा कांपने लगी. फोटो रजत के ऊपर फेंक दी, ‘‘देख लिया न,’’ चीखती हुई गंगा बोली, ‘‘जैसी थी, वैसी करामात कर गई? मैं तो पहले ही कह रही थी कि…’’

रजत ने चेहरा घुमा कर कहा, ‘‘इस तरह की तो नहीं थी…’’

‘‘क्या कहा?’’

लेकिन रजत ने आगे कुछ नहीं कहा और औफिस चला गया.

गंगा ने नीचे पड़े फोटो को उठाया और ले जा कर अलमारी में नीचे डाल दिया.

वह काम में मन लगाने की कोशिश करने लगी. पर काम में उस का मन नहीं लगा और एक बार फोटो निकाल कर उस ने फिर से देखा. काफी देर तक  वह फोटो को देखती रही. फिर वापस काम में लग गई.

रात में गंगा को नींद नहीं आ रही थी. उस की आंखों के सामने वही फोटो नाचती रही. 2 दिनों बाद फिर उसी तरह का एक लिफाफा आया. इस दिन लिफाफा गंगा को ही मिला. लिफाफे में उसी तरह का फोटो और उसी तरह की बात लिखी थी, जो पहले फोटो में लिखी थी.

औफिस जाने के लिए रजत कपड़े पहन रहा था. गंगा ने फोटो उस के ऊपर फेंकी, ‘‘ले जा, अपनी फोटो.’’

पता नहीं क्यों रजत को हंसी आ गई.

इस पर गंगा को गुस्सा आ गया, लेकिन बिना कुछ बोले ही वह आंगन में चली गई.

रजत के चले जाने के बाद वह बाहर आई. फोटो देखे बिना उसे चैन नहीं आया. फोटो के पीछे जो लिखा था, उसे फिर से पढ़ना चाहती थी. खीझते हुए उस ने फोटो को उठाया और ले जा कर अलमारी में रख दिया.

अगले दिन पोस्टमैन ने फिर एक लिफाफा फेंका. गंगा उस के ऊपर नाराज हो गई, ‘‘इस के अलावा और कोई चिट्ठी नहीं आती है, क्या?’’

पोस्टमैन हंसा, ‘‘दूसरी आएगी तो दूंगा ही माताजी,’’ और हंसते हुए चला गया.

गंगा को लगा, रजत भी उस पर हंस रहा है. उस का मजाक उड़ा रहा है. लिफाफा ले कर वह रजत के पास गई और बोली. ‘‘ले, और हंस ले.’’

रजत सहम सा गया.

गंगा मारे गुस्से के कांप उठी. फिर बिना कुछ बोले चली गई.

फिर तो रोजाना ही डाक से एक लिफाफा आने का सिलसिला चल पड़ा. उस में रमा और रजत का वही फोटोग्राफ होता और वही लिखा होता. गंगा का गुस्सा अब कम होने लगा था. वह खीझती भी नहीं थी. लिफाफा आता तो पोस्टमैन के हाथ से खुद ही जा कर ले आती. लिफाफा खोलती, फोटो देखती और जो लिखा होता उसे प्यार से पढ़ती. मुसकराते हुए फोटो ले जा कर अलमारी में रख देती. अब वह दिन में कई बार फोटो देखती.

एक दिन रजत ने पोस्टमैन से कहा, ‘‘लिफाफा तुम मुझे दे दिया करो. मेरी मां को नहीं.’’

‘‘लेकिन पता तो उस पर गंगा मां का ही लिखा रहता है और चिट्ठी भी उन्हीं के नाम आती है,’’ पोस्टमैन ने कहा.

इतनी देर में गंगा आ गई. बोली, ‘‘मेरा लिफाफा मुझे ही देना. मेरी बहू का फोटो मुझे देना, किसी दूसरे को नहीं.’’

पोस्टमैन चला गया तो गंगा ने रजत की ओर रुख किया, ‘‘डरपोक कहीं का. जब तुझ में इतना दम नहीं था तो प्यार ही क्यों किया था? तुझ से बहादुर तो मेरी बहू ही है, जिस ने मुझे हरा दिया.’’

रजत मंदमंद मुसकराता हुआ घर से बाहर निकल गया.

 

जीत-भाग 2 : रमा को लेकर गंगा क्यों चिंतित थी?

यह वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि गंगा तीर की तरह पलटी और बोली, ‘क्या कहा…? क्या कहा तुम ने? अच्छा, अब यह सब भी बोलने लायक हो गए हो? जाओ, करो प्रेम, शादी करो और घूमो उस के साथ. लेकिन शादी करने के बाद मुझे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’

‘लेकिन मां, जरा तुम सोचो तो…’‘इस में मुझे क्या सोचना है? मुझे अब करना ही क्या है?’

रजत सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा. फिर धीरे से बोला, ‘ऐसा करो न मां, तुम एक बार रमा से मिल लो. मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा.’

‘खबरदार, अगर उस का नाम तुम ने मेरे सामने लिया. मैं उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती. अब तुम उसी के पास जाओ, मेरातुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’

रजत थोड़ी देर तक खड़ा सोचता रहा. वह निराश हो गया था. उस ने सोचा, इस का निबटारा इस वक्त नहीं हो सकता. भारी दिल से वह घर के बाहर चला गया.

रमा से मिलने से गंगा ने इनकार कर दिया था. फिर भी गंगा ने दूसरे ही दिन रमा को घर बुलाया. रमा को ऐसे समय में बुलाया जिस समय रजत घर में नहीं था.

अपनी होने वाली सास से रमा सहमतेसहमते मिलने आई. लेकिन गंगा प्यार से बातें करने के बजाय उस से कर्कश स्वर में बोली, ‘तुम औफिस में काम करने जाती हो या वहां काम करने वाले जवान लड़कों को फंसाने जाती हो?’ गंगा की इस बात से रमा को काठ मार गया.

‘सुनो, मेरे बेटे की तरफ अगर फिर से नजर उठा कर देखा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’ रमा भी संभलते हुए बोली, ‘आप कैसी बातें कर रही हैं, मांजी.’

‘दूसरे लड़कों के साथ तुम्हें गुलछर्रे उड़ाना हो तो उड़ाओ, पर मेरे लड़के के साथ…’

‘आप अपने लड़के के बारे में कुछ जानती हैं?’‘उस के बारे में मुझ से ज्यादा कौन जानेगा भला? अब तुम उस के सामने नखरे मत करना.’

‘उस से भी कह दीजिएगा, मेरे सामने नहीं आएगा.’ ‘उस से तो कह दूंगी, पर तुम्हें…’

‘मुझे कहने वाली आप कौन होती हैं. अगर आप को अपना लड़का बहुत सुंदर लगता है, तो उसे ओढ़नी ओढ़ा कर घर में ही बैठा लीजिए.’

‘क्या कहा?’ ‘जो आप ने सुना,’ रमा गुस्से से कांपने लगी थी. जो शब्द उस के मुंह से निकल रहे थे उन्हें सुन कर वह खुद ही स्तब्ध रह गईर् थी. दुख भी हुआ था कि इस तरह भी बोलना उसे आता है. लेकिन शोले की तरह ये शब्द पता नहीं कहां से निकल रहे थे.

‘‘एक बार और कह रही हूं, ठीक से सुन लीजिए. आप को अपना लड़का बहुत प्यारा है तो उसे घर में रखिए. नहीं तो कोई भगा ले जाएगा.’

‘अब तुम यहां से चली जाओ, नहीं तो…’

‘आप ने बुलाया है, इसलिए आई हूं,’ रमा नफरत से बोली, ‘नहीं तो आप का मुंह देखने की मुझे क्या जरूरत थी,’ और जातेजाते मुंह घुमा कर थूक दिया था.

गंगा गुस्से से लाल हो उठी थी. थोड़ी देर बाद जब वह शांत हुई तो स्तब्ध रह गई थी. अब तो रजत पैर पकड़ कर भी रोएगा तो भी वह इस लड़की के लिए नहीं मानेगी. एकदम नहीं मानेगी.

लेकिन जवानी तो दीवानी होती है. इस के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता. इतना अपमानित होने के बाद भी रमा जब रजत से मिली तो पता नहीं रजत ने क्या समझाया कि वह फिर गंगा से माफी मांगने के लिए चली आई थी.

गंगा को लगा था कि गलती तो उस की खुद की थी. जो कुछ किया, उस ने खुद किया. घर बुला कर जो नहीं कहना चाहिए था, वह भी उस ने कहा. उस की बेइज्जती की. फिर भी आ कर वह माफी मांग रही थी. थोड़ी देर के लिए तो वह नरम पड़ गई थी. रमा उसे समझा रही थी. उस के सामने शिकायत की जाए, इस तरह का कुछ भी नहीं कहा था. उस के परिवार के बारे में उस ने जो कुछ भी कहा था, वह सब झूठ था.

लेकिन थोड़ी देर के लिए नरम पड़ी गंगा एकाएक कठोर हो गईर् थी और रमा को उस ने दुत्कार कर भगा दिया था. वह बेचारी रोती हुई घर से बाहर गईर् थी और उसे सुनाने के लिए गंगा खूब जोर से हंसी थी.

मन में यह सवाल उठा था कि इस तरह वह क्या कर रही है? आखिर वह चाहती क्या है? एक बार उस के मन में यह विचार उठा कि क्या इस की शादी रजत से नहीं हो सकती. लड़की तो ठीक ही है.

लेकिन उस का मन फिर बदल गया. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है. रमा रास्ते में चलते हुए सोचती जा रही थी. उस के पैर लड़खड़ा रहे थे. एक बार बेइज्जती सहन कर के जिस घर से निकली थी, उस घर में दोबारा क्यों गई, अपनी और ज्यादा बेइज्जती कराने?

उसे रजत के ऊपर गुस्सा आया. खुद के ऊपर गुस्सा आया. आखिर क्यों उस ने रजत की बात मान ली. सचमुच शायद वह रजत के प्रेम में अंधी हो गई है.

गंगा के साथ पहली बार झगड़ा होने के बाद उसे रजत की याद आने लगी थी. गंगा के साथ झगड़ा करने के बजाय चुपचाप उन की बात सुन कर वापस चली आना चाहिए था. आखिर उस ने झगड़ा बढ़ाया ही क्यों था. कुछ भी हो, आखिर वह रजत की मां है. यदि उस की अपनी मां ने कुछ कड़वा बोला होता तो क्या वह उसे भी इसी तरह जवाब देती?

अपने इस व्यवहार पर उसे पछतावा हुआ था. दूसरे दिन जब रजत मिला तो उस ने माफी मांगी थी, ‘‘रमा, मेरी मां पुराने विचारों वाली है. मेरे अलावा उस का कोई नहीं है. उस ने जो कुछ कहा, उस का बुरा मत मानना. प्लीज, सब भूल जाना.’’

रमा ने नरम हो कर कहा था, ‘‘तुम अपने मन में किसी तरह का विचार मत लाना, रजत. मां का प्यार मैं समझ सकती हूं. लेकिन पता नहीं क्यों मैं गुस्से में जो कुछ नहीं कहना चाहती थी, वह भी कह गई थी. रजत, तुम मुझे माफ कर देना.’’

देसी किचन में विदेशी खाना

बदलते लाइफस्टाइल के साथ लोगों के खानेपीने की आदतों में खासा बदलाव आया है. लोग एकदूसरे के खानपान को अपनाने लगे हैं. उस में उन्हें स्वाद भी आने लगा है जैसे पंजाब के छोलेभठूरे तो दक्षिण का इडलीडोसा, हैदराबाद की बिरयानी तो कश्मीर का कहवा व फिरनी, उत्तर प्रदेश की जलेबी, समोसा तो राजस्थान का दालबाटी चूरमा. यह सब एकदूसरे के प्रति प्यार को दर्शाता है. विदेशी व्यंजनों को भी हमारी रसोइयों में खासा स्थान मिल गया है.

हाल ही में एक गृहिणी मंजू मेहता ने एक किटी पार्टी दी. उस में समोसे, पकोड़े, टिक्की यानी पूरी चाट का इंतजाम था. उन की किटी पार्टी की सदस्यों में कुछ बड़ी उम्र की भी थीं. समोसे, पकोड़े तो महिलाएं बहुत जराजरा सा ले रही थीं क्योंकि हैल्थ के प्रति जागरूक होने के साथसाथ उन में उन्हें औयल दिखाई दे रहा था. ‘डीप फ्राइड चीजें हैं, ज्यादा नहीं खाना,’ पर जैसे ही वैज पास्ता आया, सभी ने खूब खाया. सभी चर्चा कर रही थीं कि हमारे घर में तो हम सब को नूडल्स, चाउमीन, पास्ता आदि खूब पसंद हैं. पसंद भी क्यों न हो, झटपट बन जो जाता है, साथ ही उन के स्वाद भी अच्छे लगते हैं.

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झटपट से तैयार

70 वर्षीय उमा अकेली रहती हैं. उन का कहना है, ‘मैं खूब सारी सब्जियां काट कर रख लेती हूं. जब थकी होती हूं या खाने में बदलाव चाहती हूं तो झटपट नूडल्स उबाले, सब्जियां, सौस आदि मिलाया और खा लिया. समय की बचत के साथसाथ दांतों को भी ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती,’ ट्रेडीशनल खाने में रोटी, दाल, सब्जी, रायता आदि बनाओ. यह तो फुल वन मील है. बरतन भी ज्यादा नहीं होते. बाई नहीं आए तो भी परेशानी नहीं.

हर वर्ग द्वारा सब से अधिक पसंद किया जाने वाला व्यंजन है चाइनीज. विदेशी व्यंजनों में भारतीय स्टाइल में बने चाइनीज व्यंजन खूब पसंद आते हैं. युवाओं और हर वर्ग उम्र के लोगों का झुकाव इस ओर खूब है. इन व्यंजनों की विशेषता यह है कि इन में विभिन्न प्रकार की सौस, पौली अनसैचुरेटेड औयल का प्रयोग किया जाता है. दूध से बनी चीजों का प्रयोग बहुत ही कम होता है. सोया सौस, जिस में अमीनो एसिड अधिक मात्रा में होता है, शरीर के नर्वस सिस्टम के लिए उपयुक्त है. स्टरफ्राई हरी व रंगबिरंगी सब्जियों का इस्तेमाल खूब होता है जो सेहत के लिए अच्छी हैं. चाइनीज नूडल्स, चाउमीन की मांग को देखते हुए बाजार में अब आटा नूडल्स, मल्टीग्रेन नूडल्स आदि भी आ गए हैं.

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फ्यूजन का जमाना

भारतीय किचन में जो विदेशी चीजें बनाई जाती हैं उन में मिर्चमसाला आदि का प्रयोग भारतीय स्टाइल में किया जाता है. यों कहा जा सकता है कि भोजन में भी ‘फ्यूजन’ का जमाना है. हमारे ‘टैस्ट बड्स’ भारतीय हैं, इसलिए हम चटपटा, कुरकुरा, मसालेदार और तीखा पसंद करते हैं. नूडल्स बने या पास्ता, स्पाइसी ही खाते हैं. पिज्जा की बात करें तो हमारे यहां लोग लाल टमाटर सौस के साथ खाना अधिक पसंद करते हैं.

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विदेशी खाने में ‘तीखापन’ न के बराबर होता है तथा खाने में कई तरह की हर्ब्स का इस्तेमाल किया जाता है जबकि हमारे यहां लाल तीखी मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है. अब तो नई कंपनियां ग्राहक की पसंद को देखते हुए भारतीय स्टाइल में विदेशी व्यंजन सर्व कर रही हैं.

समय, धन और ऊर्जा की बचत धान की सीधी बोआई

लेखक- डा. टीके दास, डा. वीके सिंह

महामारी कोविड-19 से खेती में श्रमिकों की उपलब्धता कम हुई है. ऐसे में धन, ऊर्जा, मानवशक्ति, पानी की बचत और उत्पादन लागत में कमी कर के अधिक उत्पादन के लिए चावल की सीधी बोआई द्वारा खेती कर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं.

धान की सीधी बोआई एक प्राकृतिक संसाधन संरक्षण तकनीक है, जिस में उचित नमी पर यथासंभव खेत की कम जुताई कर के अथवा बिना जोते हुए भी खेतों में जरूरत के मुताबिक खरपतवारनाशी का प्रयोग कर जीरो टिल मशीन से सीधी बोआई की जाती है.

जिन किसानों ने अपने गेहूं की कटाई कंबाइन से की हो, वे बिना फसल अवशेष जलाए धान की सीधी बोआई हैप्पी सीडर या टर्बो सीडर से कर सकते हैं. इस तकनीक से लागत में बचत होती है और फसल समय से तैयार हो जाती है.

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उपयुक्त क्षेत्र

* उन क्षेत्रों में, जहां सिंचाई के लिए पानी की कमी हो, जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ वगैरह.

* वे राज्य, जहां जलभराव के हालात हों, उदाहरण के लिए, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम व पश्चिम बंगाल.

* उन राज्य में, जहां वर्षा आधारित खेती होती हो, जैसे ओडिशा, झारखंड, उत्तरपूर्वी राज्य.

सीधी बोआई के लाभ

* श्रमिकों की आवश्यकता में 30-40 प्रतिशत की कमी.

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* पानी की 20-30 प्रतिशत बचत.

* उर्वरक उपभोग क्षमता में वृद्धि.

* समय से पहले (दिन 7-10) फसल तैयार, जिस से आगे बोई जाने वाली फसल की समय से बोआई.

* ऊर्जा की बचत (50-60 प्रतिशत डीजल).

* मीथेन उत्सर्जन में कमी, जिस से पर्यावरण सुरक्षा में इजाफा.

* उत्पादन लागत में 3,000-4,000 रुपए/प्रति हेक्टेयर की कमी.

बोआई का समय

सही समय पर फसल की बोआई एक बढि़या काम करती है, इसलिए सीधी बोआई वाले धान की फसल को मानसून आने के

10-15 दिन पहले बो देना चाहिए, जिस से फसल वर्षा शुरू होने तक 3-4 पंक्तियों वाली अवस्था में हो जाए. इस से पौधों की जड़ों की बढ़वार अच्छी होगी तथा ये खरपतवारों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे.

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प्रजातियों का चयन

सीधी बोआई के लिए ऐसी प्रजातियों का चयन करें, जो अच्छी बढ़वार के साथसाथ खरपतवारों से भी प्रतिस्पर्धा कर सकें. जैसे पूसा सुगंध 5, पूसा बासमती 1121, पीएचबी 71, नरेंद्र 97, एमटीयू 1010, एचयूआर 3022, आरएमडी (आर)-1, सहभागी धान, सीआर धान 40, सीआर धान 100, सीआर धान 101 आदि.

बोने की विधि

यदि जीरो कम फर्टिसीड ड्रिल से बोआई करते हैं, तो इस के लिए महीन दानों

वाली प्रजातियों (बासमती) के लिए

15-20 किलोग्राम, मोटे दाने वाली प्रजाति के लिए 20-25 किलोग्राम और संकर प्रजातियों के लिए 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त रहता है. पंक्ति से पंक्ति की दूरी

20 सैंटीमीटर उपयुक्त रहती है. बीज को सही गहराई पर बोने से फसल का अंकुरण अच्छा होता है, इसलिए बीज को 2-3 सैंटीमीटर गहराई पर ही बोना चाहिए. बोआई से पहले बीजों को पानी में 8-10 घंटे (सीड प्राइमिंग) भिगो कर छायादार जगह पर सुखा लें, जिस से बीजों के जैव रसायनों में अनुकूल परिवर्तन होता है और अंकुरण में वृद्धि होती है.

बीजों को बोआई से पहले 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को बाविस्टीन या थीरम से उपचारित जरूर करें, जिस से मृदा व बीजजनित रोगों में कमी पाई जाती है.

उर्वरक प्रबंध

100-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश व

25 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.

नाइट्रोजन की एकतिहाई और फास्फोरस, पोटाश और जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय और शेष नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा बोआई के 30 दिन बाद और शेष बची हुई मात्रा बोआई के 55 दिन बाद दें. यदि मृदा में लोह तत्त्व की कमी हो, तो आयरन सल्फेट (19) का 0.5 प्रतिशत घोल बना कर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

खरपतवार प्रबंधन

खरपतवारों की रोकथाम के लिए बोआई से एक हफ्ता पहले ग्लाईफोसेट नामक खरपतवारनाशी (1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व) का प्रयोग करें. बोआई के 1-2 दिन के अंतराल पर पेंडिमिथेलिन (सक्रिय तत्त्व 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और 20-25 दिन के अंतराल पर बिसपायरीबैक (नोमनी गोल्ड) की 25 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें.

कीट/सूत्रकृमि प्रबंधन

यदि फसल में सूत्रकृमि का प्रकोप हो, तब बोआई के 30-40 दिन के अंतराल में कार्बोफ्यूरान (सक्रिय तत्त्व 0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) छिड़कें. तना छेदक की रोकथाम के लिए बोआई के 25-30 दिन बाद करटप हाइड्रोक्लोराइड का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व का छिड़काव करना चाहिए.      ठ्ठ

 

बाग लगाने के लिए गड्ढा करें तैयार

] श्रीराम सिंह

आम के बाग लगाने की योजना जो किसान बना रहे हैं, उन के लिए गड्ढे खोदने का उपयुक्त समय है. किसान को जिस खेत में बाग लगाना हो, सब से पहले उस खेत की मिट्टी की जांच करा लें, ताकि पोषण प्रबंधन आसानी से समय से किया जा सके. इस समय तकरीबन 8 से 12 मीटर की दूरी पर 1 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और

1 मीटर गहरे गड्ढे खोद कर छोड़ दें. इन गड्ढों को जून के अंत में आधा भाग मिट्टी और आधा भाग सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट मिला कर भरते हैं.

दीमक से बचाव के लिए हरेक गड्ढे में 50 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास का 2 लिटर पानी में घोल बना कर गड्ढे में भरे जाने वाले मिश्रण में मिला लेना चाहिए. उस के बाद गड्ढे में भर कर सिंचाई कर देनी चाहिए, फिर गड्ढों को छोड़ देते हैं.

पौधों की रोपाई का सही समय बरसात का मौसम है. परंतु कोशिश करनी चाहिए कि बरसात का मौसम जब खत्म होने वाला हो, उस समय पौधों को लगाना चाहिए. बरसात में गड्ढे की मिट्टी दब जाने के कारण अगर अतिरिक्त मिट्टी को मिलाना हो तो उपरोक्तानुसार मिश्रण तैयार कर के दोबारा मिला देना चाहिए.

इस तरह किसान आम के बाग लगाने के लिए समय का सदुपयोग कर के अच्छा बाग लगा सकते हैं. वैश्विक महामारी से निबटने में सभी प्रकार की सावधानी बरतने के साथ ही बाकी काम करने हैं. समयसमय पर जारी सरकारी निर्देश का पालन करते हुए अपने काम में लगे रहें.

बाबा रामदेव की कोरोना दवा में झोल ही झोल

स्वदेशी के नाम पर दुनियाभर के उत्पादों से बाजार को पाटने और उन पर ताबड़तोड़ कमाई करने वाले बाबा रामदेव और उन के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण कोरोना काल में भी कमाई का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं. जहां दुनियाभर के डाक्टर, वैज्ञानिक कोरोना का तोड़ नहीं ढूंढ पा रहे हैं, वहीं कुछ दिनों के अंदर ही बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने कोरोना की दवा बना कर सौ कोरोना रोगियों पर इस के सफल प्रयोग का दावा ठोंका है.

बाबा ने क्या सोचा था कि सरदार खुश होगा, शाबाशी देगा, मगर हो गया सब उलटापुलटा. सरकार ने पहले तो दवा के विज्ञापन पर रोक लगाई और अब रामदेव एंड कंपनी पर नोटिस ठोंक दिया है.

दरअसल, पतंजलि को सर्दीखांसी और इम्युनिटी बढ़ाने की दवा बनाने का लाइसेंस जारी किया गया था, लेकिन अतिउत्साह में रहने वाले बाबा रामदेव ने इस लाइसेंस पर कोरोना की दवा बना डाली और सौ लोगों पर ट्रायल भी कर डाला.

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इस के उपलक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने खुद मीडिया को बताया कि उन की दवा की क्लीनिकल जांच की गई है. बाबा ने दावा किया था कि क्लिनिकल टैस्ट में दवा से 100 फीसदी सफल परिणाम सामने आया है.

हालांकि, लौंच होने के बाद से ही पतंजलि की दवा ‘कोरोनिल‘ विवादों में है. हैरान करने वाली बात है कि कंपनी को सर्दीजुकाम और खांसी की दवा बनाने का लाइसेंस मिला था और उस ने इस लाइसेंस के जरीए बनी दवा को कोरोना के नाम पर लौंच कर दिया.

बाबा की कंपनी द्वारा बनाई गई दवा कोरोनिल लौंच होते ही बुरी तरह विवादों में घिर गई. आयुष मंत्रालय के बाद अब प्रदेश आयुर्वेदिक ड्रग लाइसेंस अथौरिटी ने भी बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि को नोटिस जारी कर जवाबतलब किया है.

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23 जून की शाम बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा दवा लौंच किए जाने के बाद भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने दवा के प्रचारप्रसार पर रोक लगा दी थी. केंद्र सरकार की ओर से दवा पर रोक लगाने के साथ ही यह कहा गया है कि बिना अनुमति इलाज का दावा करना गलत है. इस के लिए रिसर्च का ब्योरा देना होगा. दवा लौंच होने के कुछ ही घंटे बाद आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से कहा कि वो जल्द से जल्द उस दवा का नाम और उस के घटक बताए, जिस का दावा कोविड-19 का उपचार करने के लिए किया जा रहा है.

साथ ही, मंत्रालय ने यह भी कहा कि पतंजलि संस्थान नमूने का आकार, स्थान, अस्पताल जहां अध्ययन किया गया और आचार समिति की मंजूरी के बारे में विस्तृत जानकारी दे. इस के साथ ही मंत्रालय ने उत्तराखंड सरकार के लाइसेंसिंग प्राधिकरण से दवा के लाइसेंस की कौपी मांगी है और प्रोडक्ट के मंजूर किए जाने का ब्योरा भी मांगा है.

आयुष मंत्रालय के इस आदेश के आते ही उत्तराखंड सरकार में हड़कंप मचा और दूसरे ही दिन 24 जून को बाबा रामदेव की दवा को एक और झटका तब लगा, जब उत्तराखंड की आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथौरिटी ने बाबा की दवा पर सवाल उठाते हुए उन को नोटिस जारी कर दिया.

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अथौरिटी के उपनिदेशक यतेंद्र सिंह रावत का कहना है कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि को कोरोना की दवा के लिए नहीं, बल्कि इम्युनिटी बूस्टर और खांसीजुकाम की दवा के लिए लाइसेंस जारी किया गया था. हमें तो मीडिया के माध्यम से पता चला कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि द्वारा कोरोना की किसी दवा का दावा किया जा रहा है, जबकि उन्हें इम्युनिटी बढ़ाने वाली और खांसीजुकाम की दवा के लिए लाइसेंस जारी किया गया था.

उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार का निर्देश है कि कोई भी कोरोना के नाम पर दवा बना कर उस का प्रचारप्रसार नहीं कर सकता. आयुष मंत्रालय से वैधता मिलने के बाद ही ऐसा करने की अनुमति होगी.

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साथ ही, उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल तो विभाग की ओर से पतंजलि को नोटिस जारी कर जवाबतलब किया गया है. इसी बीच जयपुर में भी उन के खिलाफ गांधी नगर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है. मुकदमा जयपुर के डा. संजीव गुप्ता ने दर्ज कराया है. उन का कहना है कि बाबा रामदेव कोरोना की दवा बनाने का दावा कर के लोगों को गुमराह कर रहे हैं.

Medela Flex Breast Pump: इजी टू हैंडल, इजी टू यूज

हर मां चाहती है कि उसके बच्चे को भरपूर पोषण मिले, इसके लिए वह बच्चे के जन्म लेते ही उसे अपना दूध पिलाती है, चाहे उसे इसके लिए कितनी भी पीड़ा क्यों सहनी पड़े. आखिर ये रिश्ता होता ही ऐसा है. मां से अपने बच्चे की पीड़ा देखी नहीं जाती. वह जानती है कि अगर बच्चे को हैल्थी रखना है, उसकी इम्युनिटी को बढ़ाना है तो उसे मां का दूध पिलाना ही होगा

लेकिन कई बार ऐसी स्थिति  जाती है जब मां चाहा कर भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती. जैसे कई बार स्तनों में दूध नहीं आता या फिर अधिक दूध आने के कारण स्तनों में अत्यधिक पीड़ा होती है या जौब के कारण मजबूरन उसे अपने बच्चे का पेट भरने के लिए  फार्मूला मिल्क का सहारा लेना ही पड़ता है. जो भले ही बच्चे की भूख को शांत कर दे लेकिन इससे बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल पाते हैं, जो आगे चलकर उसमें कई कमियों का कारण भी बन सकते हैं

लेकिन अब नई टेक्नोलॉजी के आने के कारण हमारा जीवन आसान हो गया है. हमारे सामने आज ढेरों विकल्प होते हैं. इसी में एक है ब्रैस्ट पंपअब ऐसे ब्रैस्ट पंप्स  गए हैं जिसने मां की परेशानी को दूर करने का काम किया है

क्या है ब्रैस्ट पंप 

ब्रैस्ट पंप एक ऐसा यंत्र है, जिसकी मदद से मां अपने दूध को संग्रहित करके रख सकती है और जब बच्चे को इसकी जरूरत हो आसानी से पिलाया जा सकता है. एक बार दूध संग्रहित होने के बाद मां दूसरे काम भी आसानी से टेंशन फ्री हो कर कर सकती है. हर मां के मन में ये सवाल जरूर आता है कि कहीं ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से हमें दर्द तो नहीं होगा या फिर बच्चे को इस दूध से कोई नुकसान तो नहीं पहुंचेगा. तो आपको बता दें कि ये पूरी तरह से सेफ है. बस आप पंप की साफ़ सफाई का खास ध्यान रखें

आपको बता दें कि ब्रैस्ट पंप वैक्यूम के कारण काम करते हैं. जब इन पंप्स को दोनों स्तनों पर अच्छे से लगाया जाता है तो वैक्यूम के कारण स्तनों से दूध निकल कर पंप से जुड़ी हुई बोतल में भरने लगता है. जिन्हें आप आसानी से फ्रिज में स्टोर करके रख सकती हैं. बस इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को दूध तभी पिलाएं जब दूध नोर्मल टेम्परेचर पर जाए. इससे जहां आपको सुविधा होगी वहीं आपके बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी मिल जाएंगे

वैसे को मार्केट में आपको ढेरों ब्रैस्ट पंप मिल जाएंगे. लेकिन सवाल है बच्चे की हैल्थ का जिससे कोई समझौता नहीं हो सकता. ऐसे में मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप का जवाब नहीं. क्योंकि उन्होंने एक मां की जरूरतों को ध्यान में रखकर ब्रेस्ट पंप बनाए हैं. जिसमें  हैल्थ भी और कम्फर्ट भी. चाहे बच्चा जन्म से पहले जन्मा  हो, स्तनों से दूध बाहर पा रहा हो, ऐसे में उच्च क्षमता वाले मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप मां के दूध को स्तनों से आसानी से बाहर निकाल के  बच्चे तक मां के दूध को पहुंचाने का काम करते हैं. इसके अधिकांश पम्प में 2 फेज एक्सप्रेशन टेक्नोलोजी है, जो काफी यूनिक है

तो फिर मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप से आप भी रहें रिलैक्स और बच्चे को भी दें पूरा पोषण. साथ ही में अपनी पर्सनल और प्रौफेशनल लाइफ का भी रखें ख्याल.

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‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ पर वेब सीरीज बनाएंगे विद्या बालन के पति सिद्धार्थ रौय कपूर

जब पूरे विश्व में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि हर देश के बड़े औघोगिक घराने व बड़ी बड़ी कारपोरेट कंपनियां हर इंसान और अपने राष्ट् की सत्ता पर अपना नियंत्रण रखने चाहती है,तभी भारतीय फिल्म निर्माता सिद्धार्थ रौय कपूर ने   ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’के इतिहास पर रोशनी डालने वाली किताब‘‘द अनार्की’’पर वेब सीरीज बनाने का निर्णय लिया है.ज्ञातब्य है कि लंदन में तीस इंसानो द्वारा शुरू की गयी ‘‘द ईस्ट इंडिया कंपनी’’ने व्यापार करते करते धीरे धीरे राष्ट्रों पर अपना कब्जा जमाना शुरू किया था, और एक दिन पूरे उपमहाद्वीप पर अपना प्रभुत्व जमा लिया था.

जी हां पुरस्कृत इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल की अप्रत्याषित बिक्री वाली किताब ‘‘द अनाकीर्ःद रिलेंटलेस  राइज ऑफ द ईस्ट इंडिया कंपनी‘’को पढ़ने के बाद फिल्म निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर ने  इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने इस किताब के अधिकार हासिल कर लिए और अब वह इस कितबा पर आधारित एक वेब सीरीज अपने प्रोडक्शन हाउस‘‘रौय कपूर फिल्मस’’ के तहत बनाने का निर्णय लेकर काम करना शुरू कर दिया है.

 

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ज्ञातब्य है कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2019 में पुरस्कृत लेखक व इतिहासकार की किताब ‘‘द अनार्की‘’ को अपनी पसंदीदा दस किताबों का हिस्सा घोषित किया था. इस किताब में 1599 से लेकर 1802 तक  की अवधि को शामिल किया गया है.‘द अनार्की‘ में मुगल  साम्राज्य के पतन की वजह ‘द ईस्ट इंडिया कंपनी’के उदय को बताया गया है.

उल्लेखनीय है कि किस तरह लंदन की एक ईमारत से तीस लोगों ने मिलकर इस प्रादेशिक व्यवसाय की शुरुआत की और पूरे उप-महाद्वीप के शासक बन गए.  साथ ही साथ दुनिया के इतिहास में सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना भी की.

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इस वेब सीरीज में विश्व स्तर पर उपनिवेशवाद पर चर्चा के साथ भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चित्रण होगा.

विलियम डेलरिम्पल की किताब‘‘द अनार्की’’के बाजार में आने के बाद अंतरराष्ट्रीय समीक्षकों ने इसकी काफी प्रषंसा की थी.‘‘द टेलीग्राफ’’ने ‘द हिस्ट्री आफ ईस्ट इंडिया कंपनी इज टूर-डे- फोर्स’कहा.जबकि गार्डियन  ने  अपने लेख में लिखा कि यह किताब  ब्रिटिश और दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण  और उपेक्षित इतिहास का वास्तविक चित्रण है.और उनकी यात्रा को  जानकारीपूर्ण और किसी महल में कविता और संगीत की मनोरंजक शाम की तरह पेष किया गया है. जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा -‘‘यह किताब इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि जब एक कॉर्पोरेट लीडर की शालीनता में कमी होती है,तो चीजें गलत हो सकती हैं,या यूं कहें कि बहुत ज्यादा गलत हो  सकती हैं.‘’

सिद्धार्थ रौय कपूर अब  लेखकों और रचनात्मक सेाच वालो की एक विविध अंतरराष्ट्रीय टीम को एक साथ लाना चाहते हैं,जो इस  वेब सीरीज को बेहतरीन और उच्चतम स्तर पर बना सके.वह कहते हैं-‘‘मेरा मानना है कि जो कहानियाँ  सम्मोहक, प्रासंगिक और प्रामाणिक होती हैं, उनमें सभी राष्ट्रीयताओं और संस्कृतियों के दर्शकों के साथ प्रतिध्वनित करने की क्षमता होती  है.विलियम डेलरिम्पल की ‘द ईस्ट इंडिया कंपनी’ की इस महाकाव्यनुमा कृति‘‘द अनार्की’’ऐसी ही कहानियों में से एक है.जबकि आज दुनिया भर में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि बड़ी बड़ी कंपनियां और शक्तिशाली व्यक्ति मन और राष्ट्र पर नियंत्रण रखना चाहते हैं,वैश्विक दर्शकों के लिए इससे अधिक प्रासंगिक क्या हो सकता है कि वह एक सच्ची कहानी देखेंगे कि कैसे एक छोटी सी ट्रेडिंग कंपनी ने सम्पूर्ण उपमहाद्वीप को नियंत्रण में कर लिया था.हमें खुशी है कि हम विलियम के साथ मिलकर इन अविश्वस्नीय पात्रों की आकर्षक झांकी को

जीवंत करेंगें, जिसमें सभी ने सबसे अमीर उपमहाद्वीप पर प्रभुत्व जमाने के लिए एक दूसरे का साथ निभाया है.‘‘

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इस वेब सीरीज के सलाहकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल कहते हैं-‘‘मुझे लगता है कि मेरी किताब ‘द अनार्की‘को एक वेब सीरीज के लिए चुना जाना एक उचित निर्णय है.इस किताब को वेब सीरीज के रूप में रूपांतरित करने के लिए मैं भारतीय फिल्म निर्माता   सिद्धार्थ रॉय कपूर को बधाई देता हॅंू,उनसे बेहतर यह काम कोई और कर ही नही सकता.इसका शुरूआती एपीसोड जिस तरह से लिख गया है,उससे मैं बेहद उत्साहित हूं. इसमें  इस किताब को पुनर्जीवित करने की बात बताई गई है.इसके किरदारों के साथ मैं पिछले 6 साल से पर्दे पर हूं ताकि सभी लोग इसे हाड़-मांस के रूप में देख सकें.मेरे लिए यह बेहद अतुलनीय और रोमांचित कर देने वाला पल है.इस पर बनने वाली वेब सीरीज से मुझे काफी उम्मीदें हैं.‘‘

सुष्मिता सेन ने नेपोटिज्म पर दिया बड़ा बयान, जानें क्या कहा

बॉलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई हैं इसकी खास वजह है हालिया रिलीज हुई वेब सीरिज ‘आर्या’. इस वेब सीरीज के जरिए एक्ट्रेस ने करीब 10 साल बाद एक बार फिर से  एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा है.

सुष्मिता सेन ने कई ऐसी फिल्मों में अपनी शानदार प्रर्दशन तो दिखाया लेकिन वह फिल्म वॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई इस पर बात करते हुए सुष्मिता सेन ने एक रिपोर्ट में कहा है कि मैं कई ऐसी फिल्मों में काम कि उसे मैं सेटेलाइट हिट मानती हूं.  क्योंकि वह जब सेटेलाइट पर आय़ा तो लोगों ने लेकिन जब यह फिल्म सिनेमा घर में था तबयह उतना काम नहीं कर रहा था जितना अब कर रहा है.

 

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#selfportrait ❤️ “depth of a knowing” ??I love you guys!! Mmuuuaaah #duggadugga ?

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इसी बीच जब सुष्मिता सेन से बॉलीवुड में इन दिनों चल रहे विबाद सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या और नेपोटिज्म के बारे में बात किया गया तो उन्होंने बताया कि बॉलीवुड में बाहरी लोगों को टिकना थोड़ा मुश्किल है.

अंदरुनी लोग और बाहरी लोगों के बीच कंप्टीशन कोई बड़ी बात नहीं है लिए सबके लिए एक समानता होनी जरूरी है.

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आगे उन्होंने कहा इस समय इस बात की चर्चा खूब चल रही है लेकिन यह कुछ ऐसा है जिसे हम सराह कर रहे हैं. यह लोगों के सामने अभी आया है लेकिन यह बहुत पहले से चलता आ रहा है. लोगों के आंख के पर्दे अभी हटे हैं.

सोशल मीडिया के तहत आप इस बात से जागरूक हुए हैं लेकिन यह एक ऐसा सत्य है आप तभी इसे समझ और जान सकते हैं जब तक आप इसके अस्तित्व में हैं.

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इस तरह के लोग यहां मौजूद है जो हमेशा दूसरों के बारे में बुरा ही सोचते हैं. यह एक ऐशी भ्रष्ट चीज है जो शायद कभी खत्म नहीं हो सकती है. लेकिन इसका नुकसान हर किसी को हो रहा है.

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