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दुनिया के 10 बेहतरीन योद्धाओं में शामिल हुए Vidyut Jammwal, देखें पूरी लिस्ट

एक विदेशी वेबसाइट  “द रिचेस्ट ” ने पूरे विश्व के 10 बेहतरीन योद्धाओं की एक सूची जाहिर की है, जिसमें उसने भारतीय अभिनेता विद्युत जामवाल के साथ ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और जानवरों पर आधारित कार्यक्रम के विश्व प्रसिद्ध संचालक वेयर ग्रिल्स के नाम जाहिर किए हैं.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तायक्वोंडो में 9 वें डैन ब्लैक बेल्ट हैं. ग्रिल्स एक विश्व-प्रसिद्ध एडवेंचरर हैं, और मार्शल आर्ट में माहिर विद्युत जामवाल सबसे ख़तरनाक योद्धाओं में से एक हैं . इन्हें ” द रिचेस्ट ” द्वारा ’10 पीपल यू डॉन्ट वांट मेस विथ ‘ में फीचर किया गया है.

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युवा पीढ़ी के चर्चित भारतीय अभिनेता विद्युत जमवाल  एकमात्र ऐसे भारतीय अभिनेता हैं ,जिन्होंने इस प्रतिष्ठित सूची में अपना नाम दर्ज कर गौरव प्राप्त किया है. विद्युत फिल्मों में बिना “बॉडी डबल “का इस्तेमाल किए ख़तरनाक से ख़तरनाक  स्टंट्स किए जाने के लिए जाने जाते हैं.  इस वेबसाइट में उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  मार्शल आर्ट्स में उच्च शिक्षा हासिल किए जाने के लिए मान्यता प्राप्त की है.

एक्शन स्टार विद्युत जामवाल का मानना है कि लड़ना सिर्फ मसल्स और ताकत के बारे में नहीं है. विद्युत् के अनुसार एक सच्चा मार्शल आर्टिस्ट पंचिंग और किक से एक महान मार्शल आर्टिस्ट नहीं बन सकता हैं, बल्कि अपने प्रतिद्वंद्वी का संतुलन बिगाडने और धैर्य बनाए रखने से बनता है.”

3 साल की उम्र से ही एक्शन स्टार विद्युत जामवाल ने कलारीपयट्ट कि ट्रेनिंग लेना शुरू कर दी थी. अब तक गुरु जामवाल 25 से अधिक खतरनाक एक्शन के लाइव शो भी कर चुके हैं. फिटनेस प्रेमी विद्युत जामवाल हैंड टू हैंड कोमबाट में वे लाजवाब है. हाल ही में अपने यूट्यूब चैनल पर उन्होंने ‘एक्स रयेड बाय विद्युत’  सेंगमेंट को इंट्रोड्यूस किया था,जो एक्शन की दुनिया के लेजेंड्स के जीवन को दर्शाता है.

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द रिचेस्ट इस सूची में विद्युत जामवाल के अलावा इन लोगों के नाम भी शामिल है…

  1. ताइक्वांडो में 9थ डेन ब्लैक बेल्ट रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन,
  2. चाइना से वॉरियर मोंक शिफू शी यन मिंग शाओलिन,
  3. फिटनेस विशेषज्ञ  विटो पिरबजारी ,
  4. रियल लाइफ निंजा गीगा गुरु,
  5. दुनिया के सबसे फेमस निंजा हट्सुमी मसाकी,
  6. आईस मेन जेडी एंडरसन,
  7. इजिप्त के बॉडी बिल्डर मुस्तफा इस्माईल,
  8. विश्व के सबसे प्रसिद्ध वेट लिफ्टर मार्टिन लिचिस,
  9. द मेन्स वर्सेस वाइल्ड फेम बेयर ग्रिल्स 

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वेबसाइट “द रिचेस्ट” से पहले  विद्युत् जामवाल का नाम  ‘टॉप 10 मार्शल आर्टिस्ट्स ऑफ द वर्ल्ड’, ‘मोस्ट डिज़ायरेबल’, ‘फिटेस्ट मेन विद द बेस्ट बॉडीज़’ और ‘सेक्सिएस्ट मेन अलाइव’ में भी शामिल हो चुका है. उन्हें पेटा इंडिया द्वारा हॉटेस्ट वेजिटेरियन सेलिब्रिटी के रूप में भी चुना गया था.

हरिद्वार में आसमानी बिजली का कहर

कहर पे कहर, एक तरफ पूरी दुनिया में कोविड 19 अपने पैर पसार चुका है और मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. लोग घरों में रहने को मजबूर हैं. वहीं भूकंप से बारबार धरती हिल रही है, भले ही झटके तेज न हों, पर लोगों के दिल जरूर दहला रही है. उधर आसमान में उड़ रही लाखों टिड्डियों के फसलों पर बैठ जाने के चलते बरबाद हो रही खेती से किसानों की कमर टूट रही है.

कुदरत के कहर के चलते  एक ओर जहां बिहारअसम में बाढ़ देखने को मिल रही है, वहीं बिहार और उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली गिरने के चलते अलगअलग इलाकों में कइयों की जानें जा चुकी हैं.

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पूरे उत्तर भारत में मानसून का सीजन होने के कारण लगातार बारिश हो रही है. दिल्ली और आसपास के इलाकों में 19 जुलाई को तेज बारिश हुई और जगहजगह पानी भर गया था. वहीं नई दिल्ली के मिंटो ब्रिज के नीचे इतना पानी भर गया कि एक बस ही डूब गई, वहीं एक आदमी की मौत भी हो गई. आईटीओ के नाले के पास बने तकरीबन 10 कच्चे मकान भी बह गए.

इतना कुछ होने के बाद भी प्रकृति का रौद्र रूप अभी थमा नहीं है. उत्तराखंड के हरिद्वार में हर की पौड़ी में 20 जुलाई, 2020 की देर रात तकरीबन ढाई बजे ब्रह्मकुंड के पास तेज बारिश होने के साथ ही आकाशीय बिजली गिरी और 80 फुट की दीवार ढह गई.

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यह आकाशीय बिजली ट्रांसफार्मर पर गिरी और 80 फुट की दीवार मलबे में तबदील हो गई. लेकिन गनीमत यह रही कि लौकडाउन और रात का समय होने के चलते आवजाही नहीं थी, जिस से किसी जानमाल का नुकसान नहीं हुआ.

पुलिस प्रशासन और सेवादारों ने आसपास बैरिकेडिंग लगा कर वहां फैले मलबे को हटाने का काम कर लिया. पर सरकार के पास इस से ज्यादा बचने का कोई उपाय नहीं है.

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भले ही तेज बारिश और आकाशीय बिजली गिरने से यह हादसा हुआ, लेकिन दीवार में पानी का रिसाव भी हो रहा था. यही वजह रही कि दीवार कमजोर हुई और बिजली की कंपन से ढह गई.

यह एक भयानक हादसा हो सकता था, अगर वहां मेला या भीड़ होती. ऐसे में सरकार और प्रशासन की तैयारी पर प्रश्न उठता है? क्या यह विभागीय लापरवाही नहीं?

प्याज की प्रोसेसिंग से होगी ज्यादा कमाई

प्याज काटने से अकसर आंखों में आंसू आ जाते हैं, लेकिन पिछले दिनों मंडियों में प्याज के दाम गिरने से किसान खून के आंसू रोते रहे. किसान मुनाफा तो दूर, उपज की लागत व मंडी में प्याज लाने का भाड़ा तक नहीं निकाल पाए. लिहाजा बहुत से किसानों ने इस बार प्याज की खेती से तोबा कर ली. प्याज ही क्या आलू हो या गन्ना, मिर्च हो या टमाटर, जब जिस फसल की पैदावार ज्यादा हो जाती है, तो उस की कीमतें धड़ाम से नीचे गिर जाती हैं. इस से नुकसान किसानों का होता है. अकसर वे बरबाद हो जाते हैं. लिहाजा बेहद जरूरी है कि किसान इस मुसीबत से नजात पाने के लिए कारगर उपाय अपनाएं.

प्याज की प्रोसेसिंग

उपज की कीमत बढ़ाने व उसे बरबाद होने से बचाने के लिए उस की प्रोसेसिंग करना एक कारगर तरीका साबित हुआ है. प्याज की भी प्रोसेसिंग यानी डब्बाबंदी की जा सकती है. प्याज उत्पादक तकनीक सीख कर प्याज प्रोसेसिंग इकाई लगा सकते हैं और प्याज से कई तरह के उत्पाद बना सकते हैं. बाजार में सिरके की प्याज, प्याज का पेस्ट व पाउडर आदि कई उत्पाद मिलते हैं. ज्यादातर किसान नहीं जानते कि अब देशविदेश में प्याज का पेस्ट, क्रीम, भुनी प्याज, करारी प्याज, प्याज के छल्ले, प्याज का तेल, प्याज का अचार, प्याज फ्लेक्स, सूखा प्याज, प्याज का सिरका, प्याज का सास, प्याज का सूप, प्याज का जूस, छिली प्याज व प्याज के बेवरेज पेय आदि की मांग दिनोंदिन तेजी से बढ़ रही है.

दरअसल, ताजे प्याज के मुकाबले प्याज के प्रोसेस्ड उत्पादों को इस्तेमाल करना ज्यादा आसान है. नई तकनीक से प्याज का इस्तेमाल रंग व एसेंस आदि बनाने में भी किया जा सकता है. साथ ही बचे प्याज का कचरा व सड़ी हुई प्याज भी बेकार नहीं जाती. उसे बायोगैस बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. लिहाजा सूझबूझ के साथ व चेन बना कर उत्पादन करने से उत्पादों की लागत घटती है, उपज खपती है व मुनाफा बढ़ता है.

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भरपूर पैदावार

प्याज की पैदावार के मामले में भारत दुनिया भर में दूसरे नंबर पर है. देश में प्याज का कुल रकबा 11 लाख, 50 हजार हेक्टेयर है, जिस में 187 लाख 36 हजार टन प्याज की पैदावार होती है. पड़ोसी देश चीन सिर्फ 9 लाख 30 हजार हेक्टेयर जमीन में भी हम से ज्यादा यानी 205 लाख टन प्याज पैदा करता है. भारत में प्याज को महफूज रखने के लिए भंडारण के सही इंतजाम कम हैं, लिहाजा काफी प्याज हर साल गलसड़ कर खराब हो जाता है. बेहतर भंडारण से ही उसे बचाया जा सकता है. ज्यादातर भारतीय किसानों की माली हालत कमजोर है, लिहाजा अपना खर्च चलाने के लिए उन्हें उपज बेचने की जल्दी रहती है. बड़े व्यापारी प्याज का भंडारण कर के मौके का फायदा उठाते हैं और किसान बेचारे देखते रह जाते हैं.

जागरूकता जरूरी

कुल पैदा होने वाले प्याज के करीब 7 फीसदी हिस्से की ही प्रोसेसिंग होती है, जबकि प्याज उत्पादों के बढ़ रहे निर्यात से इस काम में भारी इजाफा होने की उम्मीद है. बढ़ती मांग को देखते हुए प्याज की प्रोसेसिंग व उस के कारोबार की बड़ी गुंजाइश है. प्याज प्रोसेसिंग की तकनीक सीखना मुश्किल नहीं है. जरूरत किसानों के जागरूक होने व पहल करने की है. प्याज की प्रोसेसिंग सीखने व उस का तजरबा करने की है. यदि किसान ठान लें तो वे आपस में मिल कर प्याज प्रसंस्करण की बड़ी इकाई भी लगा सकते हैं. अपनी उपज को कच्चे माल की तरह न बेच कर खुद उसे प्रोसेस करने में इस्तेमाल कर सकते हैं. वे अपने बच्चों को बेहतर रोजगार का जरीया दे सकते हैं.

लागत घटाएं

किसानों के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्याज की उत्पादन लागत 12 रुपए प्रति किलोग्राम आ रही है, जबकि पिछले दिनों मेरठ की मंडी में प्याज के दाम घट कर 3-4 रुपए प्रति किलोग्राम तक रह गए थे. लिहाजा प्याज की बोआई से कटाई तक नई तकनीक अपना कर लागत में कमी लाने की जरूरत है. इस के अलावा कम जमीन में ज्यादा उपज लेना भी लाजिम है, ताकि प्रति हेक्टेयर औसत उपज बढ़े. साथ ही किसान प्याज को महफूज रखने के लिए भंडारण की कूवत भी जरूर बढ़ाएं. प्याज की पैदावार में महाराष्ट्र सब से आगे है, दूसर नंबर पर मध्य प्रदेश है व तीसरे पर कर्नाटक है. अब उत्तर प्रदेश में भी प्याज की खेती बहुत तेजी से बढ़ रही है.

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प्याज की खेती में नई तकनीक अपना कर व नई किस्में उगा कर प्याज की पैदावार बढ़ाई जा सकती है, लेकिन सिर्फ पैदावार ही नहीं, उस से आमदनी बढ़ाने की भी जरूरत है. जब भी प्याज की पैदावार ज्यादा होती है, उस की कीमतें गिर जाती हैं और खेतों व गोदामों में प्याज सड़ जाता है. प्याज की प्रोसेसिंग में हम आज भी बहुत पीछे हैं. प्याज की बड़ी मंडियां महाराष्ट्र के नासिक व लासलगांव में हैं. प्याज के जमाखोर किसानों व प्याज की मंडियों को आसानी से काबू कर लेते हैं. ऐसे में किसानों व उपभोक्ताओं को बचाने के लिए जमाखोरों का जाल तोड़ना बेहद जरूरी है.

कमजोर ढांचा

प्याज की मांग व खपत देश में सब से ज्यादा है, लिहाजा भारत सरकार के लघु कृषक कृषि व्यापार संघ ने निगरानी के लिए मार्केट इंटेलीजेंस सिस्टम बना रखा है, लेकिन इस के बावजूद प्याज उत्पादकों को उन की उपज की वाजिब कीमत नहीं मिलती, दूसरी ओर फुटकर ग्राहकों को प्याज खरीदने के लिए मुंहमांगी कीमत चुकानी पड़ती है. प्याज की प्रोसेसिंग को बढ़ावा दे कर और प्याज की खरीद व बिक्री सहकारिता के जरीए कर के यह मसला काफी हद तक हल हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय सहकारी कृषि विपणन महासंघ, नैफेड जैसी संस्थाएं भी नाकाम हैं. लिहाजा किसान पिस रहे हैं और बिचौलिए चांदी काट रहे हैं.

पुरानी तकनीक

भारत में आज भी ऐसे कई इलाके हैं, जिन में प्याज की प्रति हेक्टेयर औसत उपज 10 टन से भी कम है. दरअसल किसान प्याज की खेती तो करते हैं, लेकिन ज्यादातर किसान प्याज की पुरानी किस्में उगाते हैं और खेती के पुराने तौरतरीके अपनाते हैं. लिहाजा प्याज की खेती में फायदा दूर, लागत भी मुश्किल से निकलती है. लिहाजा प्याज की खेती में सुधार व बदलाव लाना जरूरी है.

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खोजबीन

दरअसल, अभी तक नकदी फसलों पर ज्यादा जोर होने की वजह से प्याज जैसी फसलों पर खास ध्यान नहीं दिया गया. बहुत से किसान यह नहीं जानते कि प्याजलहसुन की खेती को बढ़ावा देने के लिए साल 1994 से पुणे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक अनुसंधान निदेशालय चल रहा है. देशभर में उस के 28 सेंटर हैं.

प्याज निदेशालय के वैज्ञानिकों ने प्याज की पैदावार, क्वालिटी व निर्यात बढ़ाने के लिए काफी खोजबीन की है. उन्होंने प्याज की नई किस्में खोजने के साथसाथ प्याज महफूज रखने की तकनीक व उस की प्रोसेसिंग के तरीके भी निकाले हैं. वहां प्याज की उन्नत खेती करने के लिए किसानों को बीज, सलाह व ट्रेनिंग भी दी जाती है. यह बात अलग है कि तमाम किसानों को ऐसी बातों का पता ही नहीं चलता. लिहाजा वे इन सहूलियतों का फायदा नहीं उठा पाते. प्याज परियोजना निदेशालय में खेती व बागबानी महकमों के मुलाजिमों, कारोबारियों व किसानों को प्याज की ज्यादा पैदावार देने वाली नई संकर किस्मों, खेती की नई तकनीक, प्याज फसल का रोगोंकीटों से बचाव, प्याज का बेहतर भंडारण व उस की बिक्री जैसे पहलुओं पर ट्रेनिंग दी जाती है. लिहाजा वहां के माहिरों से तालमेल बना कर उस का फायदा उठाया जा सकता है.

प्याज निदेशालय ने 5 व 10 टन कूवत के किफायती भंडारघरों के 2 डिजाइन निकाले हैं, जिन में तली व दीवारों से हवा जाने का इंतजाम है. साथ ही बड़ी, छोटी व मझली साइजों की प्याज को छांट कर अलग करने वाली ग्रेडर मशीन भी बनाई है. इस से हाथ से काम करने के मुकाबले 20 गुना ज्यादा व जल्दी प्याज की बेहतर छंटाई होती है.

उम्दा किस्में

देश के अलगअलग इलाकों में लाल प्याज की 45, सफेद प्याज की 10, पीली प्याज की 3 व भूरी प्याज की 1 किस्म सहित कुल 59 किस्में फिलहाल चलन में हैं. इन में से खासतौर पर एन 2-4-1, एन 53, एन 257-9-1, फुले सफेद, पूरा रेड, भीमा सुपर, भीमा रेड, भीमा शक्ति, भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता व भीमा डार्क रेड वगैरह किस्में ही ज्यादा बोई जाती हैं. आमतौर पर ज्यादातर किसान जल्दी पक कर ज्यादा उपज देने वाली किस्मों की प्याज बोना पसंद करते हैं. इस लिहाज से करीमनगर, तेलंगाना में डब्ल्यूएम 514 किस्म की 4-6 कंद वाली सफेद गुच्छेदार प्याज पहचानी गई है., जो सिर्फ 110 से 125 दिनों में पक कर 20 टन प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार देती है. जरूरत उस का बीज मुहैया कराने की है.

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हालांकि प्याज की नई किस्मों की खोजबीन करने पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने काफी काम किया है, लेकिन वह खोज बेकार है, जो गांवों तक न पहुंचे. पिछले दिनों असम व अरुणाचल प्रदेश से जंगली व बोई जा रही प्याज की 49 किस्में इकट्ठा की गई हैं. साथ ही जल्दी पकने व ज्यादा उपज देने वाली अमेरिकन प्याज की 40 किस्मों को भी भारत की आबोहवा में बो कर आजमाया जा रहा है. जल्द ही इस खोजबीन के नतीजे आने की उम्मीद है. जरूरत जागरूकता बढ़ाने व प्याज उत्पादकों को बाजार, बिक्री, वाजिब कीमत व प्रोसेसिंग आदि की सहूलियतें मुहैया कराने की है, ताकि प्याज पैदा करने वालों की आमदनी में इजाफा हो सके. सरकार के भरोसे रह कर कुछ होने वाला नहीं है, लिहाजा किसानों को खुद एकजुट हो कर कोशिशें करनी होगी. प्याज के बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए किसान निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं.

Crime Story: एक सिपाही की प्रेमी लीला

हत्या बड़ा अपराध है, इस के बावजूद ऐसे अपराध होते रहते हैं, लेकिन अगर कोई कानून का रक्षक हत्या जैसा अपराध करे तो बात गंभीर हो जाती है. यतेंद्र यादव ने पिस्तौल उठाई तो पत्नी को ही ठिकाने लगा दिया, आखिर क्यों…

सिपाही यतेंद्र कुमार यादव ने 26 अप्रैल, 2020 को रात 9 बजे अपने चचेरे साले सुरजीत

के मोबाइल पर फोन किया. फोन सुरजीत के छोटे भाई योगेंद्र ने उठाया. यतेंद्र ने कहा, ‘‘सुनो, जैसे ही गेट में घुसोगे, घुसते ही नेमप्लेट लगी है. उस के ऊपर ग्रिल है, चाबी वहीं रखी है और अंदर पिंकी (पत्नी) आंगन में है. आप उन लोगों (ससुरालीजनों) को बता देना. मतलब हम ने पिंकी को गोली मार दी है. साफसीधी बात है.’’

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योगेंद्र ने पूछा, ‘‘कब?’’

यतेंद्र ने बताया, ‘‘आज रात में.’’

‘‘बच्चियां कहां हैं?’’

इस पर यतेंद्र ने कहा, ‘‘बच्चियां भी गायब हैं. आप उन को (ससुरालीजनों को) बता देना, बहुत सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाएं. हमें जो करना था कर दिया. आप समझदार हो, जो भी गलती हुई माफ करना. अभी चाहो अभी काल कर लो. रात की बात है. जो भी काररवाई करवानी है करवाओ.’’

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जनपद के शिकोहाबाद थानांतर्गत हाइवे स्थित आवास विकास कालोनी 3/39 के सेक्टर-3 में 32 वर्षीय सरोज देवी उर्फ पिंकी अपनी 3 बेटियों 10 साल की आकांक्षा, 8 साल की आरती व सब से छोटी 4 साल की अन्या के साथ अपने निजी मकान में रहती थीं. सरोज का पति यतेंद्र कुमार यादव आगरा के थाना सैंया में डायल 112 पर सिपाही पद पर तैनात था.

बीचबीच में यतेंद्र घर पर अपनी पत्नी व बेटियों के पास आताजाता रहता था. कहते हैं कभीकभी खून सिर चढ़ कर बोलता है. यही बात यतेंद्र के साथ भी हुई.

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उस ने अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद अपने चचेरे साले को फोन कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और अपने ससुरालीजनों को सूचना देने व आगे की काररवाई करने को कहा. इस के साथ ही उस ने उन्हें धमकी भी दी कि वे जो भी काररवाई करें, खूब सोचसमझ कर करें.

योगेंद्र ने पूरी बात रिकौर्ड कर ली थी. उसे जैसे ही बहनोई यतेंद्र से अपनी चचेरी बहन पिंकी की हत्या की जानकारी मिली उस के हाथपैर फूल गए. उस समय लौकडाउन चल रहा था. उसे इस बात की जानकारी थी कि पिंकी और यतेंद्र के बीच विवाद चल रहा है. लेकिन हालात हत्या तक पहुंच जाएगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

योगेंद्र ने रात में ही पिंकी के मायके में फोन कर अपने चचेरे भाई हरिओम को घटना की जानकारी दी. हरिओम ने जैसे ही बहन पिंकी की हत्या की खबर बताई, घर में कोहराम मच गया. रोनापीटना शुरू हो गया.

इस से पहले 26 अप्रैल की सुबह 9 बजे हरिओम के पास आवास विकास कालोनी में रहने वाले एक परिचित का फोन आया था. उस ने बताया कि वह उस की बहन सरोज उर्फ पिंकी के घर गया था. मकान का गेट अंदर से बंद था. कई आवाजें देने पर भी गेट नहीं खुला.

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इस पर हरिओम ने अपने बहनोई यतेंद्र व बहन सरोज उर्फ पिंकी के मोबाइलों पर फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया. हरिओम ने अनुमान लगाया कि वे लोग कहीं गए होंगे, मोबाइल घर पर भूल गए होंगे.

रात को हरिओम के पास योगेंद्र का फोन आने पर बहनोई यतेंद्र द्वारा बहन सरोज उर्फ पिंकी की हत्या किए जाने की जानकारी हुई. हरिओम ने थाना शिकोहाबाद पुलिस को घटना की जानकारी दे दी.

इस पर थाना पुलिस रात में ही आवास विकास कालोनी स्थित उस मकान पर पहुंची, लेकिन मकान का दरवाजा बंद देख कर लौट गई. पुलिस ने हरिओम से थाने आने को कहा.

इन सब बातों के चलते काफी रात हो गई. इस के साथ ही लौकडाउन के चलते और गांव में एक गमी होने के कारण हरिओम व उस के घरवाले शिकोहाबाद नहीं आ पाए थे.

दूसरे दिन 27 अप्रैल को सुबह होते ही हरिओम यादव अपने पिता रामप्रकाश व अन्य रिश्तेदारों के साथ शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी पहुंच गए और पुलिस को सूचना दी. घर वालों के आने की सूचना पर थानाप्रभारी अनिल कुमार पुलिस टीम के साथ आवास विकास कालोनी पहुंच गए.

हरिओम ने पुलिस को बताया कि बहनोई यतेंद्र ने फोन पर ताऊ के लड़के योगेंद्र को मकान की चाबी ग्रिल के ऊपर रखी होने की जानकारी दी थी. इस पर चाबी को तलाशा गया. बताई गई जगह पर चाबी मिल गई. मकान का ताला खोल कर पुलिस अंदर गई.

आंगन में सरोज की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. तीनों बच्चियां भी गायब थीं. थानाप्रभारी अनिल कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

सूचना पर सीओ इंदुप्रभा सिंह व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार फोरैंसिक टीम को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गए. हत्या की जानकारी होते ही कालोनी के लोग भी एकत्र हो गए. सिपाही द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की खबर से सनसनी फैल गई.

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पुलिस अधिकारियों ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के शरीर पर चोटों के साथ ही गोलियों के 4 निशान भी मिले. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर पूरे घर से साक्ष्य जुटाए. लाश के पास की दीवारों पर खून के छींटे मिलने के साथ ही टूटी हुई चूडियां भी मिलीं. इस से अनुमान लगाया कि मृतका ने अंतिम सांस तक पति के साथ संघर्ष किया था.

हरिओम ने हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र द्वारा किए गए फोन की रिकौर्डिंग भी पुलिस अधिकारियों को सुनवाई.

मकान से पुलिस को 2 मोबाइल फोन मिले. यह मृतका के बताए जा रहे थे. पुलिस ने फोनों के लौक खुलवा कर जांच कराने की बात कही. तीनों बेटियों के स्कूल आईडी कार्ड घर के बाहर पड़े मिले.

4 साल पहले यतेंद्र ने अपने परिचित के जरिए शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी में प्लौट खरीदा और रजिस्ट्री पत्नी सरोज के नाम कराई थी. इस के बाद मकान बनवाया था.

आवास विकास कालोनी का इलाका आबादी से दूर होने से सिपाही यतेंद्र ने सुरक्षा की दृष्टि से 5 सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे. शातिर सिपाही ने पत्नी की हत्या के बाद सारे सुबूत मिटाने की कोशिश की थी. वह घर के अंदर और बाहर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग डिलीट करने के बाद तीनों बेटियों को ले कर इस तरह घर निकला कि किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी.

पूछताछ में मृतका के भाई हरिओम यादव व पिता रामप्रकाश ने बताया कि यतेंद्र के मथुरा की एक युवती से अवैध संबंध थे. इस के चलते पतिपत्नी में विवाद होता रहता था. यतेंद्र मकान बेचने का दबाव बनाने के साथ ही दहेज की मांग को ले कर बहन पिंकी का उत्पीड़न करता था. सरोज की शिकायत पर घर वालों ने यतेंद्र को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा. यतेंद्र आए दिन पिंकी के साथ मारपीट करता था और इसी के चलते यतेंद्र ने उस की हत्या कर दी.

घटना के बाद से तीनों बच्चियां भी गायब थीं. घर वालों को आशंका थी कि आरोपी ने बच्चियों के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो. पड़ोसियों ने बताया कि रात में उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं दी.

मृतका के भाई हरिओम यादव की तहरीर पर पुलिस ने सिपाही यतेंद्र कुमार यादव, उस के पिता रामदत्त व यतेंद्र के बहनोई हरेंद्र के खिलाफ सरोज की गोली मार कर हत्या करने का केस दर्ज कर लिया.

पुलिस का अनुमान था कि कालोनी हाइवे के किनारे स्थित है, मकान दूरी पर बने हैं. रात का समय होने पर संभव है कि पड़ोसियों को गोली की आवाज सुनाई न दी हो. एक पड़ोसी ने इतना जरूर बताया कि शनिवार की शाम सरोज को घर के दरवाजे पर बैठा देखा था.

एसपी (ग्रामीण) ने बताया कि या तो कैमरे बंद किए गए थे या फिर रिकौर्डिंग डिलीट कर दी गई थी. आगरा से जानकारी करने पर पता चला कि यतेंद्र 26 अप्रैल को दोपहर 2 बजे से अनुपस्थित चल रहा था, उस के खिलाफ आगरा में रपट लिखी गई है.

पुलिस का मानना था कि हो सकता है कि तीनों बेटियों को आरोपी यतेंद्र अपने साथ ले गया हो. बेटियों को ले कर वह कहां गया, इस का कोई पता नहीं चल रहा था.

पुलिस व फोरैंसिक टीम ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भिजवा दिया.

हत्यारोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए लौकडाउन में पुलिस ने 3 टीमें गठित कीं. इन टीमों ने मैनपुरी और इटावा स्थित सिपाही के घर व रिश्तेदारियों के अलावा आगरा व मथुरा में भी दबिशें दीं.

मथुरा के थाना हाइवे क्षेत्र निवासी उस की प्रेमिका से भी पूछताछ की गई लेकिन हत्यारोपी सिपाही का कोई सुराग नहीं मिला. प्रेमिका ने पुलिस को बताया कि यतेंद्र से एक साल से बात नहीं हुई है.

आरोपी का एक मामा भी कांस्टेबल था. मामा के मोबाइल की भी काल डिटेल्स खंगाली गई. जांच में पता चला कि मामा के मोबाइल पर एक भी फोन आरोपी का नहीं आया था. आरोपी की तलाश में पुलिस द्वारा लगातार दबिशें दिए जाने पर भी पुलिस के हाथ खाली थे. सरोज उर्फ पिंकी इटावा जनपद के थाना भरथना अंतर्गत गांव नगला नया कुर्रा निवासी रामप्रकाश यादव की बड़ी बेटी थी. स्वभाव से मिलनसार. पिंकी की शादी 2008 में मैनपुरी जनपद के कुर्रा थानांतर्गत गांव अंबरपुर सौंख निवासी रामदत्त यादव के बेटे यतेंद्र कुमार यादव के साथ हुई थी. यतेंद्र 2005 बैच का सिपाही है.

ससुरालीजनों ने बताया कि डेढ़ साल पहले यतेंद्र की तैनाती मथुरा जनपद के थाना हाइवे में हुई थी. ड्यूटी के दौरान यतेंद्र की मुलाकात उसी क्षेत्र की रहने वाली एक युवती से हुई. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा तो वह यह भी भूल गया कि पहले से शादीशुदा है.

सिपाही यतेंद्र अपनी प्रेमिका को ले कर फरार हो गया. जब ये बात प्रेमिका के घरवालों को पता चली तो उन्होंने थाना हाइवे में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस संबंध में यतेंद्र कुमार सस्पेंड भी रहा था. 2 माह बाद युवती वापस आ गई और उस ने सिपाही यतेंद्र के पक्ष में बयान दिया था. बाद में यह मामला रफादफा हो गया था.

पति की इस करतूत से पिंकी को गहरी ठेस लगी. दोनों के बीच इस बात को ले कर तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. इस के चलते जीवन भर साथ निभाने वाली पत्ली पिंकी पति की नजरों में खटकने लगी थी.

घटना के 3 दिन बाद मृतका पिंकी की तीनों बेटियां नाना के गांव नगला नया कुर्रा से 3-4 किलोमीटर दूर रौरा गांव की रोड पर मिलीं. उन्हें दिन के समय यतेंद्र छोड़ गया था. बच्चियों को देख कर गांववालों ने उन से पूछताछ की. इस पर सब से बड़ी लड़की आकांक्षा ने अपने नाना रामप्रकाश यादव के साथ ही गांव का नाम भी बता दिया.

पास का गांव होने के कारण गांव वाले उन के परिवार को जानते थे. गांव वालों ने तीनों बच्चियों को उन के गांव पहुंचा दिया. बच्चियों ने बताया कि पापा उन्हें कार से छोड़ कर चले गए थे.

बच्चियों के मिलने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई. आकांक्षा ने बताया कि उस ने पापा को मम्मी को गोली मारते देखा था. हम लोग डर गए थे.

घटना के बाद आरोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने काफी प्रयास किए, लेकिन सफलता न मिलने पर एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इसे गंभीरता से लिया और आरोपी पर 15 हजार का इनाम घोषित कर दिया. उन्होंने थानाप्रभारी अनिल कुमार को उस की गिरफतारी के भी निर्देश दिए.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. लौकडाउन में फरार चल रहे हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र को पुलिस ने शिकोहाबाद के सुभाष तिराहे से लगभग एक माह बाद 24 मई की सुबह पौने 6 बजे तब गिरफ्तार कर लिया, जब वह कहीं जाने के लिए वाहन का इंतजार कर रहा था. सिपाही के कब्जे से 32 बोर की देशी पिस्टल भी बरामद हुई. इसी पिस्टल से उस ने अपनी पत्नी पिंकी की हत्या की थी.

पुलिस ने सिपाही यतेंद्र के खिलाफ हत्या के साथ ही 25 आर्म्स एक्ट के अंतर्गत भी मुकदमा दर्ज किया. थाने में एसपी ग्रामीण राजेश कुमार ने प्रैसवार्ता में हत्यारोपी यतेंद्र कुमार यादव उर्फ सिंटू की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

घटना के बाद वह बच्चियों को नाना के गांव के पास छोड़ गया था. पुलिस ने उस के घर से गिरफ्तारी से 15 दिन पूर्व कार बरामद कर ली थी. विवेचना में यह बात सामने आई कि सिपाही के एक युवती से प्रेम संबंधों को ले कर पिछले डेढ़ साल से पतिपत्नी के बीच कलह शुरू हो गई थी.

यतेंद्र पत्नी पर मकान को बेचने का दबाव डालता था. 26 अप्रैल को यतेंद्र आगरा से शिकोहाबाद स्थित अपने घर आया हुआ था. पुरानी बातों को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद हो गया. मामला इतना बढ़ा कि यतेंद्र ने पत्नी सरोज उर्फ पिंकी के साथ मारपीट की. इस से भी जब उस का मन नहीं भरा तो उस ने साथ लाई देशी 32 बोर की पिस्टल से 4 गोलियां उस के सीने में उतार दीं.

घटना को अंजाम देने से पहले उस ने अपनी तीनों बेटियों को मकान के बाहर खड़ी कार में बैठा दिया था. बड़ी बेटी आकांक्षा अपने पिता की करतूत को पूरी तरह समझ गई थी, लेकिन पिता द्वारा धमकी देने से वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी थी.

घटना को अंजाम देने के बाद सिपाही यतेंद्र तीनों बेटियों को ले कर फरार हो गया. गिरफ्तारी के बाद आरोपी सिपाही ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

सुंदर, सुशील पत्नी के होते हुए भी युवती से प्रेम संबंधों के चलते सिपाही यतेंद्र ने अपनी खुशहाल जिंदगी को ग्रहण लगा लिया.

कटु सत्य- भाग 2 : छवि की दादी के साथ क्या हुआ था

नील उस की बात का कोई उत्तर नहीं दे पाई. वे दोनों निशब्द आगे बढ़ते गए. चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा था. वह उसे आत्मसात करने का प्रयत्न करने लगी.

‘‘दीदी, देखो यह ट्यूबवैल. याद है, यहां हम नहाया करते थे. यहां से देखो तो जहां तक नजर आ रहा है वह पूरी जमीन  अपनी है. यह देखो गेहूं, सरसों के खेत, यह मटर तथा गन्ने के खेत. यहां से गन्ने वीरपुर स्थित शूगर फैक्टरी में जाते हैं. देखो, गन्ने ट्रकों पर लादे जा रहे हैं. दीदी, गन्ना खाओगी?’’ अचानक नील ने पूछा.

‘‘हां, क्यों नहीं.’’

छवि को गन्ना चूसना बेहद पसंद था. शहर में भी मां गन्ने के सीजन में गन्ने मंगा लेती थीं. वह और प्रियेश आंगन में बैठ कर आराम से गन्ना चूसा करते थे. अब जब गन्ने के खेत के पास खड़ी है तब बिना गन्ना चूसे कैसे आगे बढ़ सकती है. नील ने गन्ना तोड़ा और वे दोनों गन्ने का स्वाद लेने लगीं. गन्ने की मिठास से मन की कड़वाहट दूर हो गई. घर लौटने से पूर्व  उस ने प्राकृतिक सौंदर्य को कैद करने के लिए कैमरा औन किया ही था कि कुछ लोगों के चिल्लाने व एक औरत के भागने की आवाज सुनाई दी. उस ने नील की ओर देखा.

‘‘दीदी, यह औरत बालविधवा है. इस के देवर के घर बच्चा पैदा हुआ था. पर कुछ ही दिनों में वह मर गया. उस के देवर ने इसे यह कह कर घर से निकाल दिया कि यह डायन है, इसी ने उस के बच्चे को खा लिया है. तब से यह घरघर मांग कर खाती है और इधरउधर घूमती रहती है. बच्चे वाली औरतें तो इसे अपने पास फटकने भी नहीं देतीं. आज किसी बच्चे से अनजाने में टकरा गई होगी, जिस की वजह से इसे पीटा जा रहा है,’’ नील ने उस की जिज्ञासा शांत करने का प्रयत्न किया.

‘‘नील, क्या तुम्हें भी ऐसा लगता है कि यह डायन है?’’

‘‘नहीं दीदी, पर गांव के लोग ऐसा मानते हैं.’’

‘‘लोग नहीं, अशिक्षा उन के मुंह से यह कहलवा रही है. अगर ये शिक्षित होते तो ऐसा कभी नहीं कहते,’’ कहते हुए वह आगे बढ़ी तथा उस औरत को बचाने का प्रयत्न करते हुए अपने मन की बात उस ने लोगों से कही.

‘‘आप यहां की नहीं हो. आप क्या जानो इस की करतूतें,’’ एक गांववाला बोला.

‘‘भाई, यह एक इंसान हैं और एक इंसान के साथ ऐसा व्यवहार शोभा नहीं देता.’’

‘‘अगर इंसान होती तो बच्चों की मौत नहीं होती, 1-2 नहीं, पूरे 4 बच्चों को डस गई है यह डायन.’’

‘‘भाई, बच्चों की मृत्यु संयोग भी तो हो सकता है. किसी बेसहारा पर इस तरह के आरोप लगाना उचित नहीं है.’’ वह कुछ और कहने जा रही थी, तभी पीछे से किसी ने कहा,‘‘चलो भाई, चलो, ये बड़े ठाकुर साहब की पोती हैं. इन के मुंह लगना उचित नहीं है.’’ यह कह कर सब चले गए.

छवि ने उस औरत को अपने हाथ में पकड़ा गन्ने का टुकड़ा देना चाहा पर वह औरत, ‘‘मैं डायन नहीं हूं, डायन नहीं हूं. मैं बड़े ठाकु र को नहीं छोड़ूंगी,’’ कहते हुए भाग कर झाडि़यों में छिप गई. उस के चेहरे पर डर स्पष्ट नजर आ रहा था.

‘बड़े ठाकुर को नहीं छोड़ूंगी,’ ये शब्द छवि के दिल पर हथौडे़ की तरह प्रहार कर रहे थे. उस ने नील की तरफ देखा. वह इस सब से बेखबर गन्ना चूस रही थी.

 

उस औरत की बातें तथा गांव वालों का व्यवहार देख कर वह समझ नहीं पा रही थी कि लोगों के मन में दादाजी के प्रति डर उन के प्रति सम्मान के कारण है या उन के आंतक के कारण. दादाजी गांव के सर्वेसर्वा हैं. लोग कहते हैं उन की मरजी के बिना इस गांव में एक पत्ता भी नहीं हिलता. तो क्या दादाजी का इन सब में हाथ है. अगर दादाजी न्यायप्रिय होते तो न छोटी दादी के साथ ऐसी घटना घटती और न ही लोग उस औरत को डायन कह कर मारतेपीटते. अजीब मनोस्थिति के साथ वह घर लौटी. मन की बातें मां से करनी चाही पर वे ताईजी के साथ विवाह की तैयारियों में इतना व्यस्त थीं कि बिना सुने ही कहा, ‘‘मैं बहुत व्यस्त हूं. कुछ चाहिए तो जा शिखा या नील से कह, वे दिलवा देंगी. शिखा के मेहंदी लगने वाली है, तू भी नीचे आ जा.’’

मां की बात मान कर वह नीचे आई. मेहंदी की रस्म चल रही थी. वह कैमरा औन कर वीडियो बना रही थी. तभी एक आदमी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘माईबाप, मेरे बेटे को क्षमा कर दीजिए, वे उसे फांसी देने वाले हैं.’’

‘‘तेरे बेटे ने काम ही ऐसा किया है. उसे यही सजा मिलनी चाहिए जिस से दूसरे लोग सबक ले सकें और दोबारा इस गांव में ऐसी घटना न हो,’’ दादाजी कड़कती आवाज में बोले.

‘‘माईबाप, सूरज की कोई गलती नहीं थी. वह तो कल्लू की बेटी ने उसे फंसा लिया. इस बार उसे क्षमा कर दीजिए, आगे वह कोई ऐसा काम नहीं करेगा.’’

मानसून स्पेशल: जब बनाना हो टेस्टी खाना तो ध्यान रखें ये छोटी-छोटी बातें

  1. ढोकले में कुनकुने पानी का ही प्रयोग करें. इस से ढोकला स्पंजी बनता है.

2. करेलों का कड़वापन दूर करने के लिए उन्हें खुरच कर सिरके में नमक व हलदी का बना घोल लगा दें. 1 घंटे बाद अच्छी तरह धो लें. कड़वापन दूर हो जाएगा.

3. धनियापुदीने की चटनी बनाते समय उस में पानी की जगह बर्फ के क्यूब्स डाल कर पीसें. चटनी कई दिनों तक हरी बनी रहेगी.

4. फूलेफूले स्वादिष्ठ पौपकौर्न बनाने के लिए उन्हें बनाने से थोड़ी देर पहले फ्रीजर में रख दें. फिर बनाएं. अच्छे फूलेंगे.

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5. आलू, गोभी आदि का अचारी परांठा बनाने के लिए आम या मिर्च के अचार को मिक्सी में पीस कर पेस्ट ना लें. परांठा बेलें. पहले उस पर अचार का पेस्ट लगाएं, फिर भरावन की सामग्री. परांठा बहुत ही स्वादिष्ठ बनेगा.

6. चाय बनाते समय यदि अदरक कम हो तो चाय बनने के बाद उस में कद्दूकस कर के अदरक डालें और एक उबाल लगा दें. चाय में अदरक का पूरा स्वाद आएगा.

7. मलाईकोफ्ता या दूसरे प्रकार के कोफ्ते बहुत मुलायम हों तो उन्हें बना कर 1 घंटा फ्रिज में रखें और फिर तैयार ग्रेवी में सर्व करते समय डालें. कोफ्ते बिखरेंगे नहीं.

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8. शलगम की सब्जी बनानी हो तो पहले शलगम के टुकड़ों को थोड़े से तेल में सौते कर लें, साथ ही पालक के 2-3 पत्ते भी डाल दें. सब्जी स्वादिष्ठ बनेगी.

9. बचे सलाद को मिक्सी में पीस कर प्यूरी बनाएं और उसे आटे में गूंध कर रोटी या परांठे बनाएं. खाने में मजा आ जाएगा.recipe

10. छोटी इलायची को चाय या किसी मीठी चीज में डालने के लिए पीसना हो तो उसे फ्रिज में रखें. ठंडी इलायची मिक्सी में बारीक पिसती है.

11 शाही पनीर, खसखसी आलू आदि बनाने में खसखस का प्रयोग होता है. मगर उसे हर समय पीसना आसान नहीं रहता. अत: खसखस को हलका रोस्ट करें, साथ ही चारों मगज और काजू टुकड़ा भी. सभी को मिक्स कर के मिक्सी में पाउडर बना कर रख लें. सब्जी बनाने से 1/2 घंटा पहले थोड़े से दही में या कुनकुने पानी में आवश्यकतानुसार भिगो दें और प्रयोग में लाएं.

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12. भिंडी की चिपचिपाहट दूर करनी हो तो इस के लिए स्टील के चाकू में नीबू का रस लगाएं, फिर काटें. इस से भिंडी का लेस हाथों में नहीं लगेगा.

13, सूजी का हलवा बनाएं तो 1 कप सूजी में 1 बड़ा चम्मच बेसन डाल कर भूनें और पानी की जगह दूध डालें. हलवा स्वादिष्ठ बनेगा.

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14. उपमा बनाते समय 1 कप सूजी में लगभग एकचौथाई कप गाढ़ा दही फेंट कर पानी डालते समय मिलाएं. उपमा स्वादिष्ठ और खिलाखिला बनेगा.

15. खस्ता परांठे बनाने के लिए 2 कप आटे में 1/2 कप ताजा जमा दही डाल कर मांडें. परांठे खस्ता बनेंगे.

16. धुली उरद की दाल बनाते समय उस में 1 चम्मच धुली मूंग दाल व 1 बड़ा चम्मच दही डाल कर पकाएं. दाल स्वादिष्ठ बनेगी.

17. मूली व उस के पत्तों की भुजिया बनाते समय उस में थोड़ा सा भुना बेसन डाल दें. सब्जी तो स्वादिष्ठ होगी ही, साथ ही मूली की गंध भी नहीं आएगी.

18. मुलायम और अच्छी रोटी बनाने के लिए आटे में आधा पानी व आधा दूध डाल कर गूंधें. रोटियां अच्छी बनेंगी.

बेबी मास्क: बच्चों के लिए जानलेवा बन सकता है मास्क

कोरोना वायरस कहर के बीच आजकल बाजार में डिजाइनर मास्क की धूम है. और हों भी क्यों नहीं क्योंकि मास्क अब जरूरत ही नहीं फैशन में शुमार हो चुका है. अब तो सोनेचांदी और हीरे जङित मास्क भी दिखने लगे हैं. इतना ही नहीं, राजनीतिक पार्टियों के लोगो लगे मास्क तक बाजार में उतर आए हैं.

ऐसे में अब बच्चों के लिए भी कार्टून कैरेक्टर वाले मास्क ने बाजार में ऐंट्री ले ली है, जिस में डोरेमोन, शिनचैन से ले कर पोकेमोन जैसे मास्क शामिल हैं.

महामारी से बचाव के लिए सरकार ने मास्क पहनना सब से जरूरी बताया है, क्योंकि कोरोना से अभी हमारी लड़ाई लंबी चलने वाली है. अभी जब भारत में कोरोना वायरस मरीजों का आंकड़ा 11 लाख पार हो गया है, तो हर किसी को मास्क पहनना बहुत जरूरी है. और अब तो हवा में भी कोरोना वायरस फैलने का दावा किया जा रहा है.

ऐक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना वायरस हवा में 1 से डेढ़ घंटे तक जीवित रह सकता है. इसलिए मास्क जरूर पहनें ताकि आप खुद को संक्रमित होने से बचा सकें.

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ऐक्सपर्ट का कहना है कि लौकडाउन पूरी तरह से खुल जाने के बाद सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करना लोगों के लिए असंभव हो जाएगा. ऐसे में मास्क पहन कर ही आप खुद को सुरक्षित रख सकते हैं.

तमाम शोध भी यही कहते हैं कि मास्क पहनने से लगभग 90% तक कोरोना संक्रमण से बचाव होता है.

हालांकि, मास्क पहनने की बात अकसर बड़ों के लिए की जाती है, लेकिन कई बार लोगों के जेहन में यह सवाल भी आता है कि क्या छोटे बच्चे को भी मास्क पहनना जरूरी है?

घातक हो सकता है

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि बच्चों के लिए मास्क पहनना घातक साबित हो सकता है और यह बात एक स्टडी से सामने आई है.

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अमेरिका और जापान में हुई स्टडी में सामने आया है कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों को मास्क पहनना उस की सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है. स्टडी में दावा किया गया  है कि इतने छोड़े बच्चों में सांस लेने की जगह इतनी संकरी होती है कि मास्क पहनने से उन के दिल पर दबाव पड़ सकता है. बच्चों को सांस से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए इस का यही उपाय है कि बच्चों को जितना हो सके घर में रखा जाए. बाहर निकालना बहुत जरूरी हो तो भी बच्चे को भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रखें. बाहरी लोगों के संपर्क से बच्चों को दूर रखें.

डाक्टरों ने भी चेतावनी देते हुए कहा है कि लंबे समय तक बच्चों को मास्क पहनाना अमूमन अच्छा नहीं होता. लेकिन कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहनाना जरूरी है, इसलिए बच्चों के लिए किसी भी तरह के फैंसी या मैडिकेटैड मास्क से अलग साधारण मास्क ही बेहतर होते हैं.

बेहतर मास्क

बच्चे शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव होते हैं ऐसे में सिंथैटिक या मैडिकेटैड मास्क से उन्हें दिक्कत हो सकती है जबकि साधारण और सूती कपङे से बने कपड़े का मास्क पहनाना ही बेहतर है.

ऐसे बच्चे जिन्हें सांस संबंधी शिकायत हो तो उन्हें मास्क पहनाना खतरनाक हो सकता है, खासकर बच्चा जब 2 वर्ष से कम उम्र का हो. इस से बच्चे का दम घुट सकता है और वह बेहोश हो सकता है.

छोटे बच्चे बिना किसी सहायता के मास्क हटाने में असमर्थ होते हैं. गरमी के दिनों में मास्क पहनाने से उन की त्वचा पर रैशेज हो सकते हैं.

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यूएस सैंटर फौर डीजीज कंट्रोल और अमेरिकन ऐकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने छोटे बच्चों को मास्क न पहनाने की चेतावनी दी है.

ध्यान रखें

अपने बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए इन सुझावों पर ध्यान दें :

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• पेरैंट्स अगर बाहर से आ रहे हैं तो वे अपने बच्चे को छूने से पहले हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लें.

• 2 साल से बड़े बच्चों को हाथ धोना सिखाएं. उन्हें बारबार अपना चेहरा छूने से मना करें.

•बच्चे को दूध पिलाते समय या गोद में लेते समय मास्क जरूर पहनें.

• हमेशा सूती कपड़े से बने मास्क के प्रयोग को प्राथमिकता दें.

• पुराने सूट, दुपट्टे, साड़ी से काट कर भी घर में स्वास्थ्यवर्धक मास्क बनाया जा सकता है.

• बच्चों के लिए मास्क बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उन का मास्क सूती कपड़े का हो और वह पतला हो, ताकि उन्हें सांस लेने में कोई परेशानी न हो.

• पेरैंट्स को कोशिश यही करनी चाहिए कि वे 3 साल से कम उम्र के बच्चों को बाहर ले कर न जाएं.

कटु सत्य- भाग 5 : छवि की दादी के साथ क्या हुआ था

‘‘व्यर्थ के पचड़ों में मत फंसो. जो मुझ से कहा है वह घर में किसी अन्य से न कहना. हलदी की रस्म प्रारंभ होने वाली है, कपडे़ बदल कर वहां पहुंचो.’’ मां किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उसे आदेश देती हुई चली गईं.

दादाजी, जिन्हें वह सदा सम्मान देती आई थी, आज उसे दरिंदा नजर आने लगे- इंसान के रूप में खूंखार जानवर, जिन्होंने जायदाद के लिए अपने छोटे भाई की पत्नी को मरने को मजबूर किया, कम्मो को बरबाद किया. इन जैसे लोगों के  लिए किसी का मानसम्मान कोई माने नहीं रखता, यहां तक कि जायदाद के आगे इंसानी रिश्तों, भावनाओं की भी इन के लिए कोई अहमियत नहीं है. वे अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं. पर उन से भी ज्यादा मां का व्यवहार उसे आश्चर्यजनक लग रहा था. वे शहर में महिला मुक्ति आंदोलन की संरक्षक हैं. जहां कहीं अत्याचार होते, वे अपनी महिला वाहिनी ले कर पहुंच जातीं हैं तथा पीडि़ता को न्याय दिलवाने का प्रयत्न करती हैं. पर यहां सबकुछ जानतेसमझते हुए भी वे मौन हैं. पर क्यों?

 

यह सच है कि यह घटना उन के सामने घटित नहीं हुई लेकिन उस वृद्धा को तो न्याय दिलवा सकती थीं जो अब भी न्याय की आस में भटक रही है. तो क्या वे दादाजी, अपने ससुर, के विरुद्ध आवाज उठातीं, अवचेतन मन ने सवाल किया, अगर वे ऐसा करतीं तो क्या उन का भी वही हाल नहीं होता जो उस वृद्धा का हुआ. और फिर वे सुबूत कहां से लातीं. किसी आरोप को सिद्ध करने के लिए सुबूत चाहिए. कौन दादाजी के विरुद्ध गवाही देता? आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि पापा जज होते हुए भी मौन रहे.

छवि का मन बारबार उसे धिक्कार रहा था, ‘पर अब तुम क्या कर रही हो, तुम्हें भी तो अब सब पता है. क्यों नहीं सब के सामने जा कर सचाई उगल देती. क्यों नहीं दादाजी के चेहरे पर लगे मुखौटे को हटा कर उन का वीभत्स चेहरा समाज के सामने ला कर उन्हें बेनकाब कर देती.

पर क्या यह इतना आसान है. सचाई यह है कि इंसान दूसरों से तो लड़ भी ले लेकिन अपनों के आगे बौना हो जाता है. गांव की जिन मधुर स्मृतियों को वह सहेजे हुए थी, उन में ग्रहण लग गया था. उस का मन कर रहा था कि यहां के घुटनभरे माहौल से कहीं दूर भाग जाए जहां उसे सुकून मिल सके. पर जाए भी तो जाए कहां, जहां भी जाएगी, क्या इन विचारों से मुक्ति पा पाएगी? तो वह क्या करे? क्या वह भी पूरा जीवन अपने परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही इस अन्याय को दिल में समाए जीवन गुजार दे. पर वह ऐसे नहीं जी पाएगी. तब, वह क्या करे?

उस का सर्वांग सुलग उठा. मन का ज्वालामुखी फटने को आतुर था. ‘आज तो मीडिया का जमाना है. इस घटना को किसी पत्रपत्रिका में प्रकाशित करवा दो,’ अवचेतन मन से आवाज आई.

हां, यही ठीक होगा. आरोपी को दंड नहीं दिलवा पाई तो क्या हुआ, समाज का यह विदू्रप चेहरा, कटु सत्य तो कम से कम सामने आएगा. कम से कम ऐसी घटनाओं को अंजाम देने से पहले लोग एक बार तो सोचेंगे, किसी को आत्मदाह के लिए बाध्य तो नहीं किया जाएगा.

उस ने डायरी निकाली तथा अपने विचारों को कलमबद्ध करने लगी. मन के झंझावातों से मुक्त होने का उस के पास एक यही साधन था. अपने लेख को किसी पत्रिका में छपवा कर दादाजी को बेनकाब करने का उस ने मन ही मन प्रण कर लिया था.

‘‘दीदी, आप क्या कर रही हैं, यहां भी आप का लिखनापढ़ना नहीं छूटा. चलिए, नीचे सब आप को ढूंढ़ रहे हैं.’’ नील ने आ कर कहा.

‘‘हां, चल रही हूं,’’ उस ने डायरी अपने सूटकेस में रख दी.

नील उसे लगभग खींचते हुए नीचे ले आई. शिखा को हलदी लगाई जा रही थी. कुछ औरतें ढोलक पर बन्नाबन्नी गा रही थीं. मां के चेहरे पर उसे देखते ही चिंता की रेखाएं खिंच गईं. शायद, उन्हें डर था कि वह कहीं किसी से कुछ कह न दे, व्यर्थ रंग में भंग हो जाएगा.

सब को हंसतेगाते देख कर भी वह स्वयं को सहज नहीं कर पा रही थी. उसे लग रहा था कि वह भीड़ में अकेली है. तभी उस ने सोचा, उसे जो करना है वह तो करेगी ही पर वह हंसीखुशी के माहौल को बदरंग नहीं करेगी.

 

जब लौट कर आई तो उस ने डायरी के पन्ने फटे पाए. पीछेपीछे उस की मां भी आ गई. उसे परेशान देख कर बोली, ‘‘बेवकूफ लड़की, गड़े मुरदे उखाड़ने की कोशिश मत कर, मत भूल कि वे तेरे दादाजी हैं, इस गांव के सम्मानित व्यक्ति. लोगों के लिए देवतास्वरूप. ऐसा तो सदियों से होता आ रहा है. वैसे भी , तेरी बात पर विश्वास कौन करेगा? वह तो अच्छा हुआ कि मैं किसी काम से यहां आई थी, तेरा सूटकेस खुला देख कर बंद करने लगी तो डायरी देख कर शक हुआ और मैं ने देख लिया. अगर तेरी यह हरकत घर में किसी को भी पता चल गई तो तेरे साथ हमारा जीना भी दूभर हो जाएगा.

फिर जायदाद, आखिर यह पैसा इंसान को किस हद तक गिराएगा. नीचे ताईजी की आवाज सुन कर मां दनदनाती हुई चली गई थी. वह लाचार सी बैठी सोचने लगी कि हर काल, हर समय में ‘जिस की लाठी उस की भैंस’ वाली कहावत ही चरितार्थ होती रही है. जिस के हाथ में ताकत है वही समर्थ है. कानून उस के हाथ का खिलौना बन कर रह जाता है. शायद इसीलिए मांपापा सबकुछ जानते और समझते हुए भी चुप रहे और शायद इसी मानसिकता के तहत उस के अन्याय के विरुद्ध मुंह खोलने की कोशिश को मां गलत ठहरा कर उसे चुप रहने के लिए विवश कर रही हैं. बारबार उस वृद्धा के शब्दों के साथ उस का अट्टहास मनमस्तिष्क में गूंज कर उसे बेचैन करने लगा. ‘पिछले 40 वर्षों से मैं उसे न्याय दिलवाने के लिए भटक रही हूं पर कोई मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करता. सब मुझे पगली कहते हैं, पगली.’ वह तो उस वृद्धा से भी अधिक लाचार है. वह कम से कम न्याय की गुहार तो लगा रही है पर  वह तो सब जानतेबूझते हुए भी चुप रहने को विवश है.

वह बेचैनी में अपना मोबाइल सर्च करने लगी. तभी मंदिर में वृद्धा से बातचीत का वीडियो नजर आया. साथ ही, गन्ने के खेत में लोगों का कम्मो के साथ जोरजबरदस्ती का भी वीडियो था. साथ ही, उस में कम्मो की आवाज, ‘मैं डायन नहीं हूं, डायन नहीं हूं. मैं बड़े ठाकुर को नहीं छोड़ूंगी.’ यह आवाज उसे विचलित करने लगी थी. अपने बेटे के जीवन की भीख मांगते आदमी का तथा उस की आवाज को नकारते दादाजी की आवाज के साथ कम्मो को मारने का आदेश देते हुए दादाजी की आवाज ने उसे संज्ञाशून्य बना दिया था. सारे सुबूत सिर्फ एक ही ओर इशारा कर रहे थे.

‘तुम विवश नहीं हो, संवेदनशील मस्तिष्क कभी विवश नहीं हो सकता,’ अपने भीतर की यह आवाज सुन कर एकाएक उस ने निर्णय लिया कि वह अपनी पत्रकार मित्र शिल्पा की सहायता से वीडियो क्लिप के जरिए अपराधियों को दंड दिलवाएगी तथा समाज का यह विद्रूप चेहरा सामने लाएगी. समाज का कटु सत्य तो कम से कम समाज के सामने आएगा, सोच कर छवि ने संतोष की सांस ली.

शिल्पा और उस की टीम के एक महीने के अथक परिश्रम के बाद आखिर धीरजपुर गांव का धीरज टूट गया और दादाजी का घिनौना रूप समाज के सामने आ ही गया. टीवी पर फ्लैश होती वीडियो क्लिप को देख कर मां बाप हैरान थे पर छवि संतुष्टि का अनुभव कर रही थी.

कटु सत्य- भाग 1 : छवि की दादी के साथ क्या हुआ था

करीब 10 वर्षों बाद छवि अपने गांव धीरजपुर आई है. इस गांव में उस का बचपन बीता है. यहां उस के दादाजी, तायाजी, ताईजी और उन के बच्चे व चचेरे भाईबहन हैं. तायाजी की बड़ी बेटी शिखा का विवाह है. चारों ओर धूमधाम है. कहीं हलवाई बैठा मिठाई बना रहा है तो कहीं मसाले पीसे जा रहे हैं, कहीं दरजी बैठा सिलाई कर रहा है तो कहीं हंसीठिठोली चल रही है. पर वह सब से अनभिज्ञ घर की छत पर खड़ी प्राकृतिक सौंदर्य निहार रही थी. चारों तरफ हरेभरे खेत, सामने दिखते बगीचे में नाचते मोर तथा नीचे कुएं से पानी भरती पनिहारिन के दृश्य आज भी उस के जेहन में बसे थे. वह सोचा करती थी न जाने कैसे ये पनिहारिनें सिर पर 2 और बगल में 1 पानी से भरे घड़े ले कर चल पाती हैं.

यह सोच ही रही थी कि छत पर एक मोर दिखाई दिया. फोटोग्राफी का उसे बचपन से शौक था और जब से उस के हाथ में स्मार्टफोन आया है, हर पल को कैद करना उस का जनून बनता जा रहा था, मानो हर यादगार भोगे पल से वह स्वयं को सदा जोड़े रखना चाहती हो. कुतूहलवश उस ने उस के नृत्य का वीडियो बनाने के लिए अपने मोबाइल का कैमरा औन किया पर वह मोर जैसे आया था वैसे ही चला गया, शायद प्रकृति में आए बदलाव से वह भी अछूता नहीं रह पाया.

अनमने मन से वह अंदर आई. दीवानखाने में लगे विशालकाय कपड़े का कढ़ाईदार पंखा याद आया जिसे बाहर बैठा पसीने में लथपथ नौकर रस्सी के सहारे झला करता था और वह व अन्य सभी आराम से बैठे पंखे की ठंडी हवा में मस्ती किया करते थे. वह सोचने लगी, न जाने कैसी संवेदनहीनता थी कि हम उस निरीह इंसान के बारे में सोच ही नहीं पाते थे.

पिछले 10 वर्षों में सबकुछ बदल गया है, कच्चे घरों की जगह पक्के घरों, टूटीफूटी कच्ची सड़कों की जगह पक्की सड़कों तथा हाथ के पंखों की जगह बिजली से चलने वाले पंखों ने ले ली है. किसीकिसी घर में गैस के चूल्हे तथा पानी की पाइपलाइन भी आ गई हैं. विकास सिर्फ शहरों में ही नहीं, गांव में भी स्पष्ट नजर आने लगा है.

‘‘दीदी, चलिए आप को गांव घुमा लाऊं,’’  छोटी बहन नील ने उस के पास आ कर कहा.

गांव घूमने की चाह उस के अंदर भी थी. सो वह उस के साथ चल पड़ी. पहले वह मंदिर ले कर गई. मंदिर परिसर में ही एक छोटा सा मंदिर और दिखा. रानी सती मंदिर. वहां पहुंचने के बाद छवि ने नील की ओर आश्चर्य से देखा.

‘‘दीदी, हमारी छोटी दादी अपने पति के साथ यहीं सती हुई थीं. उन की स्मृति में दादाजी ने उन के नाम से मंदिर बनवा दिया. जिस दिन वे सती हुई थीं, उस दिन यहां हर साल बहुत बड़ा मेला लगता है. दूरदूर से औरतें आ कर अपने सुहाग की मंगलकामना करते हुए उन के समान बनने की कसमें खाती हैं,’’ श्रद्धा से नतमस्तक होते हुए नील ने कहा.

‘‘छोटी दादी सती हो गई थीं पर यह तो आत्मदाह हुआ. क्या किसी ने उन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया?’’ आश्चर्य से छवि ने पूछा.

‘‘यह तो पता नहीं दीदी, पर लोग कहते हैं कि वे अपने पति को बेहद चाहती थीं. वे उन की मृत्यु को सहन नहीं कर पाईं. अंतिम क्षण तक साथ रहने की कामना के साथ वे श्मशान घाट तक गईं. जब अग्नि ने जोर पकड़ लिया तब वे चिता में कूद पड़ीं. जब तक लोग कुछ समझ पाते तब तक उन का शरीर धूधू कर जलने लगा. उन को बचाने की सारी कोशिशें व्यर्थ हो गई थीं,’’ नील ने कहा.

‘‘यह घटना कब घटित हुई?’’

‘‘करीब 40 वर्ष हो गए होंगे.’’

नील की बात सुन कर छवि अपने विचारों में खोने लगी थी…

 

इस मंदिर की उसे याद क्यों नहीं है? ‘बचपन की सब बातें याद थोड़े ही रहती हैं,’ सोच कर मन को तसल्ली दी. फिर यहां रही ही कितना है वह.

4 वर्ष की थी तभी अपने मांपापा के साथ शहर चली गई थी. बीचबीच में कभी आती भी थी तो हफ्तादोहफ्ता रह कर चली जाती थी. पिछले 10 वर्षों  से तो उस का आना ही नहीं हो पाया. कभी उस की परीक्षा तो कभी भाई प्रियेश की. इस बार शिखा दीदी के विवाह को देखने की चाह उसे गांव लाई थी, वरना उस की तो मैडिकल में प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग चल रही हैं.

वह तो आ गई पर उस का भाई प्रियेश आ ही नहीं पाया. अगले सप्ताह से उस की पै्रक्टिकल परीक्षा होने वाली है. शहर की भागदौड़ वाली जिंदगी में गांव की सहज, स्वाभाविक एवं नैसर्गिक स्मृतियां उस के जेहन में जबतब आ कर उसे सदा गांव से जोड़े रखती थीं. इन स्मृतियों को जबजब उस ने अपनी कहानी और कविताओं में ढाला था, चित्रों में गढ़ा था, उस की सहेलियां मजाक बनातीं, ‘साइंस स्टूडैंट हो कर भी इतनी भावुक क्यों हो, कल्पनाओं की दुनिया से निकल कर यथार्थ की दुनिया में रहना सीखो.’ तब वह कहती, ‘यह मेरा शौक है. दरअसल, मैं जीवन में घटी हर घटना को मस्तिष्क से नहीं दिल से महसूस करना चाहती हूं, उन का हल खोजना चाहती हूं. शायद, शहर की मशीनी जिंदगी से त्रस्त जीवन को मेरा यह शौक मेरे दिल को सुकून पहुंचाता है, जीवन के हर पहलू को समझने की शक्ति देता है और यही दर्द, मेरे दिल से निकली ध्वनियों में प्रतिध्वनित होता है.’

तभी विचारों के भंवर से निकलते हुए छवि ने नील से कहा, ‘‘और तू कह रही है कि हर वर्ष यहां मेला लगता है तथा स्त्रियां उन के जैसा ही बनने की कामना करती हैं.’’

‘‘हां दीदी.’’

‘‘इस का अर्थ है कि हम सतीप्रथा का विरोध करने के बजाय उसे बढ़ावा देने का प्रयत्न कर रहे हैं.’’

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