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सुर्खाब के पंख टूटे तो- भाग 2: क्यों मां के लिए आवाज नहीं उठा पा रहा था सौरभ?

सौरभ का चेहरा गंभीर हो गया. वे बोले, ‘‘मां ने बहुत संघर्ष किया है. मैं जब 10वीं में था, पापा गुजर गए. संकेत 5वीं में था. मम्मी नौकरी करती थीं तो हम किसी तरह पढ़ेलिखे और व्यवसाय खड़ा किया. माना कि मम्मी को इसलिए हर परिस्थिति में रहने की आदत है, रितु, पर…’’ सौरभ कुछ और कहते कि रितु ने टोक दिया.

‘‘बच्चों पर तुम उन्हें थोप रहे हो, सौरभ. जबरदस्ती मत करो.’’

ज्यादा बहस किए बिना सौरभ वहां से उठ कर ड्राइंगरूम में आ गए.

बच्चे उठे और कुछ तरोताजा हुए तो करुणा मिलने उन के कमरे में गईं. पूरा कमरा अत्याधुनिक सामानों से लैस था. पलंग के पास मूविंग टेबल पर आईमी का आधा खाया खाना पड़ा था. पूरा बिस्तर अब भी फैला हुआ था, शायद पार्टटाइम मेड सुधा, जो अब तक पूरा घर सजा कर जा चुकी थी, आईमी के कमरे को समेट नहीं पाई थी क्योंकि उसे अपने सोने में किसी का खलल मंजूर नहीं था.

दादी के कमरे में आने से और उस के पलंग पर बैठने से आईमी को खास फर्क नहीं पड़ा. वह व्यस्त थी कुछ नटखटपन में मुसकराती, फोन पर फर्राटे से उंगलियां चलाते हुए.

करुणा को यह उपेक्षा बहुत बुरी लग रही थी. मगर परिस्थितियां संभालने की उन की पुरानी आदत थी. उन्होंने कहा, ‘‘आईमी, कितनी बड़ी हो गई तू. 7 साल से नहीं देखा, पूरी 24 की होने जा रही है. आजा, दादी के गले नहीं लगेगी?’’

ग्रैनी, प्लीज 1 मिनट, जरूरी बात कर रही हूं न.’’

‘‘बेटा, मुझ से तो मिल ले, कितनी दूर से आई हूं तुम सब से मिलने.’’

‘‘अरे, आई तो दूर से हो मगर कौन सा भागी जा रही हो. अभी तो यहां रहोगी ही न.’’

करुणा आहत थीं. बड़ों को थोड़ा मान देने, अपने हाथों से अपना काम करने, दूसरों से मधुर व्यवहार करने, कुछ अनुशासित रहने में भला कौन सा पिछड़ापन झलकता है, सोचती हुई वे लौट कर हौल में दीवान पर आ कर बैठ गईं.

इसी बीच, ईशान को अपने कमरे से बाहर आया देख करुणा अवाक रह गईं. सिर के बाल खड़ेखड़े, हिप्पी सी ड्रैस, कान में इयरफोन लगा हुआ.

करुणा इस से पहले कुछ कह पातीं, ईशान ने करुणा की ओर देख कर हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘हाय ग्रैनी, हाउ आर यू? सीइंग आफ्टर लौंग टाइम. हैव अ ग्रेट डे.’’ फिर ईशान मां से मुखातिब हुआ, ‘‘ममा, आज फ्रैंड्स के साथ मेरी कुछ प्लानिंग है, लंच बाहर ले लूंगा. डिनर के बाद ही आऊंगा. डौंट कौल मी.’’

‘‘रात को थोड़ा जल्दी आना, बेटा,’’ रितिका ने धीरे से कहा.

‘‘ऐज यूजुअल, चाबी है मेरे पास, डौंट वरी ममा.’’

लंच के समय आईमी को बुलाते वक्त करुणा ने देखा वह फोन पर व्यस्त थी. रितिका और करुणा आईमी का इंतजार कर रही थीं कि आईमी एक स्लीवलैस डीप कट ब्लाउज और मिनी स्कर्ट में उन के सामने आ खड़ी हुई. स्कूटी की चाबी घुमाते हुए उस ने कहा, ‘‘ममा, कालेज में अर्जैंट क्लास रखे गए हैं, मैं देर से आऊंगी.’’

करुणा के अब परेशान होने की बारी थी. व्याकुल हो, पूछ बैठीं, ‘‘बेटा, क्लासैज कब तक चलेंगी?’’

‘‘ग्रैनी, ये हमारे हाथ में नहीं,’’ गुस्से से कहती हुई आईमी निकल गई.

करुणा बिस्तर पर लेटे अनायास ही विचारों में डूबने लगीं. उन्होंने जिंदगीभर साड़ी ही पहनी लेकिन अमेरिका जा कर एलिसा के कहने पर पैंटशर्ट भी पहनी. वहां की संस्कृति से बहुतकुछ सीखा. मगर अपने व्यक्तित्व को यथावत बनाए रखा. भाषा को ज्ञान के लिहाज से लिया और दिया. अपनी शालीनतासभ्यता को कभी भी उन्होंने जाने नहीं दिया. देर रात हो चुकी थी लेकिन आईमी और ईशान का कोई अतापता न था. वे चिंतित थीं, मगर बहू के कारण कुछ खुल कर कह नहीं पा रही थीं. फिर भी जब रहा न गया तो डाइनिंग टेबल पर वे सौरभ से बोल पड़ीं, ‘‘रात के 10 बज चुके हैं, दोनों का ही पता नहीं. कम से कम आईमी के लिए तो पूछपरख करो?’’

रितिका कुछ उत्तेजित सी बोलीं, ‘‘मम्मीजी, आप जब से आई हैं, बस, दोनों बच्चों के पीछे पड़ी हैं.’’

बहू मेरी अनुभवी आंखें चैन नहीं रख पा रहीं. कहीं कुछ ठीक नहीं है. तुम लोग गहराई में नहीं देख रहे.’’

‘‘आप जब नहीं थीं, तब भी हमारी जिंदगी ऐसी ही चल रही थी, सब को अपनी जिंदगी जीने दें, आईमी की ही क्यों पूछपरख हो. वह लड़की है इसलिए? वह भी बेटे की तरह जिएगी. आप लोग अपनी दकियानूसी सोच बदलिए.’’

‘‘रितु, मैं ने बेटे की भी चिंता समानरूप से की, लेकिन बेटियों का खयाल ज्यादा रखना पड़ता है क्योंकि कुछ भी दुर्घटना हो जाए, भुगतना उसे ही पड़ता है. थोड़ा वास्तविकता को समझो.’’

सौरभ बेबस सा महसूस करने लगे थे. उन्होंने देखा, रितिका अब ऐसा कुछ कह सकती है जिस से मां ज्यादा आहत हो जाएंगी. उन्होंने टोका, ‘‘मम्मी, रहने दो, उन के लिए रात के 12 बजे तक घर लौटना आमबात है.’’

रितिका और सौरभ के अपने कमरे में चले जाने के बाद करुणा निढाल हो, अपने बिस्तर पर पड़ गईं. विदेश में 5 साल की कुक्कू यानी संकेत की बेटी उन्हें दादी कहती है. संकेत ने उसे ऐसा ही कहना सिखाया है. एलिसा और कुक्कू दोनों ही खूब प्यारी हैं, और एलिसा कितनी व्यवहारकुशल. और यहां ये लोग विदेशी सभ्यता की गलतियों को आधुनिक होने के नाम पर मैडल बना कर गले में लटकाए घूम रहे हैं.

अचानक फ्लैट के दरवाजे पर चाबी घूमने की आवाज आई. करुणा ने देखा, आईमी लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे में चली गई. करुणा निश्चिंत भी हुईं और परेशान भी. 11 बजे चुके थे. करुणा की नजर दरवाजे पर टिकी थी. इतने में ईशान भी आ गया और अपने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया.

सीरो सर्वे में दिल्ली के 23 प्रतिशत लोग संक्रमित पाए गए, खुद से रिकवर हुए

क्या आप यकीन करेंगे कि दिल्ली में 46 लाख लोग कारोना संक्रमण की चपेट में आए थे और अब ठीक भी हो चुके हैं? जी हां, यह सच है. हैरानी वाली बात यह कि इतने लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ और उन्हें पता भी नहीं चला. दिल्ली में कोरोना संक्रमण किस हद तक फैला है इसे लेकर राज्य और केंद्र सरकार ने मिल कर सीरोलोजिकल सर्वे किया था. यह सर्वे 27 जून से लेकर 10 जुलाई के बीच हुआ. सीरो सर्वे में पता चला है कि 22.8 प्रतिशत दिल्ली की आबादी कोरोना की चपेट में आ चुकी है. यानी दिल्ली का हर चौथा व्यक्ति कोरोना से संक्रमित होकर ठीक भी हो चुका है.

सीरो सर्वे के आकडे केंद्र सरकार की हेल्थ मिनिस्ट्री ने जारी किये. इस सर्वे को नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल (एनसीडीसी) और दिल्ली सरकार ने मिलकर किया था. इस सर्वे में पाया गया कि अधिकतम संक्रमित लोग बिना लक्षण के पाए गए थे. यानी उनके भीतर कोरोना के या तो हलके लक्षण थे या लक्षण नहीं थे.

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कैसे हुआ था सीरो सर्वे?

यह सर्वे दिल्ली के सभी 11 जिलों में किया गया था. जिसमें रैंडम सैंपलिंग की गई. एनसीडीसी के डायरेक्टर ने बताया कि इस सर्वे में कुल 21,387 ब्लड सैंपल जमा किए गए. इसके बाद इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसलिंग के मानकों के मुताबिक एंटीबॉडी टेस्ट किया गया. इस टेस्ट से यह पता लगाया जा सका कि आखिर दिल्ली में कितने लोगों के भीतर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी तैयार हो चुकी है.

सीरोलोजिकल सर्वे में जो ब्लड सैंपल लिया गया उससे यह भी पता लगाया गया कि सख्स कोरोना से संक्रमित था या नहीं या वह पहले किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया था. सर्वे में 20,000 घरों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया था. जो दिल्ली के अलग अलग इलाकों में होना था. इन इलाकों का जो डाटा आया है उसमें मध्य दिल्ली में 27.86 प्रतिशत के साथ सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित मामले आए. वहीँ शाहदरा जिले में संक्रमितों का औसत 27.6 प्रतिशत था. बाकी जिलों में 20 प्रतिशत से ऊपर ही रहा.

इस पर प्रशाशन ने क्या कहा?

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने कहा सीरो सर्वे को कहा “दिल्ली की 24 प्रतिशत लोग यानि एक चोथाई आबादी के भीतर एंटीबाडी पाई गई है. इन लोगों के भीतर इन्फेक्शन हो चुका है और वो रिकवर कर चुके हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों को नहीं पता था कि उनको इन्फेक्शन हुआ है.” उन्होंने अपनी बात में आगे कहा “सरकार अब हर महीने सीरो सर्वे कराएगी. जिसे 1-5 अगस्त के बीच कराया जाएगा.” उन्होंने आगे बताया कि “शरीर में एंटीबाडी 15 दिन के बाद बनती है इसलिए सर्वे में आया यह स्टेटस 1 महीने पुराना है.” इसके साथ उन्होंने कम्युनिटी स्प्रेड होने की बात कही और कहा कि “वे 1 महीने पहले कह चुके थे कि दिल्ली में कम्युनिटी स्प्रेड हो चुका है. अब इसके बारे में डिसीजन केंद्र सरकार लेगी.”

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राज्य में हुए सीरो सर्वे को लेकर एनसीडीसी के डायरेक्टर डॉक्टर सुजीत कुमार सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस की. जिसमें उन्होंने कहा कि दिल्ली में कोरोना का एक्स्पोसर 8 जिलों में अधिक देखने को मिला है. मुख्य तौर पर सेंट्रल, नार्थईस्ट, नार्थ और शाहदरा में 27 प्रतिशत तक रहा. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इसे सफलता माना और कहा कि बाकी देशों के मुकाबले इसका एक्सपोजर कम है जिसका श्रेय उन्होंने सरकार द्वारा लगाए लाकडाउन और कोंटेनमेंट जोन को दिया. उन्होंने आगे कहा कि “77 प्रतिशत दिल्ली की आबादी अभी भी खतरे में है. इसलिए एहतियात बरतने की जरुरत है.”

इससे पहले भी किया जा चुका है सीरोलाजिकल सर्वे

इससे पहले भी इस तरह का सर्वे आईसीएमआर ने देश के 65 जिलों में किया था. जिसमें लगभग 26,400 रेंडम सैंपल कलेक्ट किये गए थे. यह स्टडी तालाबंदी शुरूआती समय में किया गया था. जिस समय देश में कोरोना के मामले 40 हजार से नीचे थे. उसी सर्वे को आधार बना कर सरकार ने तालाबंदी को सफल भी बताया था, और कहा था कि देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन वाली स्थिति नहीं हुई है. किन्तु किसी राज्य स्तर पर विशेष तौर पर यह पहली बार देश में किया गया.

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वैसे तो सीरोलाजिकल टेस्ट साउथ कोरिया, सिंगापुर, चीन में धड़ल्ले से शुरू किया गया था जब वहां बहुत ही कम समय में तेजी से कोरोना मामले बढ़ने लगे थे. हर हफ्ते साउथ कोरिया ओसतन 20 से 25 हजार टेस्ट किया करता था. यह साउथ कोरिया के लिए एक मजबूत हथियार के तौर पर काम भी किया जिससे उन्होंने अपने देश में कोरोना के मामले रोके. इसी तरह से चीन और सिंगापुर ने भी कई माध्यमों में से एक इस माध्यम से अपने देश में इसी तरह कोरोना के मामलों पर नियंत्रण पाने में कामयाबी हांसिल की थी.

सर्वे को लेकर अहम् बिंदु

फिलहाल यह संतुष्ट करने वाली बात है कि दिल्ली में कोरोना के मामलों में गिरावट आई है. इस सोमवार को दिल्ली में 1000 से भी कम कोरोना मामलों ने पुरे देश को चौंका दिया. इससे पहले 1000 से कम मामले 1 जून को दर्ज किये गए थे. वहीँ मंगलवार को इसमें थोड़ी सी बढ़ोतरी हुई जिसमें 1,300 मामले दर्ज हुए. इस समय दिल्ली में लगभग 1,24,000 मामले आए हैं जिसमें से 1,06,000 लोग रिकवर हो चुके हैं. दिल्ली में इस समय रिकवरी रेट 85 फीसदी है वही देश में यह रेट 63 फीसदी है. एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया भी कह चुके हैं कि दिल्ली का पीक आ चुका है. यानी अब मामले बढ़ोतरी की जगह गिरावट दर्ज होगी.

दिल्ली में सीरो सर्वे रिजल्ट आने के बाद हर्ड इम्युनिटी अथवा कोरोना प्रूफ होने की अटकलें जताई जा रही हैं. हर्ड इम्युनिटी मेडिकल साइंस का एक पुराना तरीका है, जिसके तहत आबादी का एक तय बड़ा हिस्सा संक्रमित हो जाए और उस हिस्से के शरीर से एंटीबॉडीज बनने लगे तो यह एंटीबाडीज शरीर में कुछ महीने तक बने रहते हैं. इससे अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस के संपर्क में आता भी है या ट्रांसफर होता है तो उसकी क्षमता धीरे धीरे कमजोर होते जाती है. हांलाकि हर्ड इम्युनिटी को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद है और वे इसे भी खतरनाक बताते हैं.

स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की बात में ध्यान दिया जाए तो सर्वे में संक्रमित लोगों की संख्या 1 महीने पुरानी है. यानी जून 15 से पहले की. यह वही समय भी था जब दिल्ली में कोरोना के मामले काफी तेजी बढ़ भी रहे थे. और मोतों का आकड़ा भी बढ़ रहा था. इसमें एनसीडीसी ने कहा कि 77 प्रतिशत लोग अभी इसकी चपेट से बाहर है, किन्तु एक महीने बाद इस आकडे पर पुख्ता नहीं कहा जा सकता है. हो सकता है 23 प्रतिशत वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई हो.

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सरकार से बड़ी चूक

जाहिर इसमें कोई दोराह नहीं है कि कोरोना को रोकने में सरकार ने भारी चूक दिखाई. लगभग 2 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में अगर अनुमानतः 46 लाख लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में आए और खुद से ठीक भी हो गए तो व्यवस्था पर सवाल बनता है कि वह कर क्या रही थी? इसमें राज्य सरकार निशाने पर तो होनी चाहिए ही किन्तु केंद्र सरकार को भी नहीं छोड़ा जाना चाहिए जो कम्युनिटी स्प्रेड की बात को नकारती आ रही थी और जरुरी कदम उठाने में देरी करती रही. एनसीडीसी ने सीरो सर्वे पर कांफ्रेंस करते हुए लाकडाउन और कांटेंमेंट जोन बनाए जाने की तारीफ़ की. फिर सवाल बनता है कि इतने बड़े स्तर पर सरकार की नाक के नीचे कारोना फैलता रहा और सरकार को पता भी नहीं चला.

खुद एनसीडीसी के डायरेक्टर ने कहा कि 11 में से 8 जिलों में 20 प्रतिशत से ऊपर कोरोना संक्रमण फैला. जिसमें से 4 जिलों सेंट्रल, नार्थईस्ट, नार्थ और शाहदरा में 27 प्रतिशत के ऊपर रहा. फिर तालाबंदी और कांटेनमेंट जोन ने कोन से संक्रमण रोके? यानी यह साफ़ है कि कोरोना को लेकर सरकार का काम राम भरोसे चल रहा था. वह लोगों के बीच इसे फैलने को रोक नहीं पाई. दिल्ली में कोरोना के मामले कम जरूर आ रहे हैं लेकिन सीरो सर्वे आने के बाद यह तय है कि लोगों ने खुद अपनी जंग अभी तक खुद जीती है इसमें सरकार की कार्यवाही नाकाफी रही.

दीपिका प्रियंका पर लगा ये बड़ा आरोप, पुलिस कर सकती है पूछताछ

सुशांत सिंह मामले में मुंबई पुलिस लगातार एक महीने से जांच कर रही है. लेकिन अभी तक सच्चा का पता नहीं चल पाया है. ऐसे में इस मामले में करीब 30 से ज्यादा लोगों से पूछताछ हो चुकी है. वहीं मुंबई पुलिस कुछ समय से ऐसे सेलेब्स पर भी अपनी नजर बनाएं हुए है जो पैसे देकर फॉलोअर्स खरीदते हैं.

 

ताजा तरीन खबर की माने तो मुंबई पुलिस जल्द ही दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा से पूछताछ करने वाली है. मुंबई पुलिस के ज्वांइट कमिश्नर विजय चौबे का कहना है कि वह 54 ऐसी कंपनियों का पता लगा लिए हैं जो फॉलोअर्स  बढ़ाने का काम करती है और किसी भी हद तक सोशल मीडिया पर जा सकती है.

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उन्होंने बताया कि वह क्राइम ब्रांच और साइबर सेल की मदद ली है जिससे वह इस गलत काम पर रोक लगा सके. यह आने वाले समय के लिए और भी खतरनाक साबित हो सकता है.

बता दें कि प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण के अलावा 48 फिल्मी हस्तियां जांच के दायरे में हैं. मुंबई क्राइम ब्रांच पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है जो कि लाखों रुपए लेकर फेसबुक टि्वटर आदि पर फॉलोअर्स बढ़ाने का काम कर रहे थे. और इनके तार जर्मन और शान से भी जुड़े हुए हैं. जब गायक भूमि त्रिवेदी ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच में शिकायत की उसके बाद जांच शुरू हुई थी और अब तक यह खुलासा हुआ है अब इसमें विदेश मंत्रालय भी जांच करने लगा है.

 

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पुलिस इस समय सोशल मीडिया मार्केटिंग टीम पर नजर बनाएं हुए है. जल्द ही उन्हें हिरासत में लेंगी कुछ दिनों पहले गायिका भूमि त्रिवेदी ने पुलिस से शिकायत की थी कि उनका फेक प्रोफाइल सोशल मीडिया पर बना हुआ है. जिसके बाद से यह मुद्दा लगातार आगे बढ़ते चला गया.

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अगर बात करें प्रियंका चोपड़ा की तो उनके इंस्टाग्राम पर करीब 55.2 मिलियन फॉलोअर्स हैं तो वहीं दीपिका पादुकोण के 50.8 मिलियन फॉलोअर्स है. इसे देखकर ये लोग पुलिस के नजरों में आ गए हैं.

अंकिता लोखडें के बाद कंगना ने भी दी सुशांत को श्रद्धांजलि, ऐसे किया याद

सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून 2020 को आत्महत्या कर ली थी. इस घटना के बाद लाखों लोगों का दिल टूट गया था. फैंस परेशान थे कि आखिर इतनी कम उम्र में सुशांत ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया. आज तक यह सवाल बना हुआ है. पुलिस अभी तक इसका पता नहीं लगा पाई है कि आखिर सुशांत ने आत्महत्या कि है या उन्हें मारा गया है.

सुशांत की कई पुरानी तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. जिसे देख फैंस को ऐसा लग रहा है कि मानो सुशांत अभी भी हमारे आस पास हैं. वहीं कुछ फैंस औऱ बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता सुशांत के मौत पर सीबीआई जांच की लगातार मांग कर रहे हैं.

सुशांत को याद करते हुए फैंस 22 जुलाई के रात 8 बजे मोमबत्ती जलाकर उन्हें श्रद्धाजली दी है. फैंस के अलावा सुशांत की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखड़े ने भी मोमबत्ती जलाते हुए तस्वीर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा की हैं.

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बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत जो हमेशा से सुशांत सिंह को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ खुलासे करती रहती हैं. उन्होंने भी सुशांत के याद में मोमबत्ती जलाया है.

कुछ दिनों पहले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का नाम आ रहा था  सुशांत मामले के केस की जांच करने को लेकर . हालांकि अभी तक सुब्रमण्यम स्वामी ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

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वहीं सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म को देखने के लिए फैंस बेताब हैं. फैंस ने इस फिल्म के ट्रेलर को खूब पसंद किया है. उन्हें इंतजार है इस फिल्म का यह फिल्म 24 जुलाई को डिजनी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज होगी.

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सुशांत ने इस फिल्म में बेहद ही उम्दा किरदार निभाया है. इसके ट्रेलर को देखकर पता चल रहा है कि यह फिल्म कमाल दिखाने वाली है. इस फिल्म में सुशांत एक कॉलेज बॉय के रूप में नजर आ रहे हैं.

Raksha Bandhan Special: दागी कंगन- प्रकाश ने कौन सी बात सभी से छुपा रखी थी?

‘‘मुन्नी, तुम यहां पर कैसे?’’ ये शब्द कान में पड़ते ही मुन्नी ने अपनी गहरी काजल भरी निगाहों से उस शख्स को गौर से देखा और अचानक ही उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘निहाल भैया…’’

वह शख्स हामी भरते हुए बोला, ‘‘हां, मैं निहाल.’’

‘‘लेकिन भैया, आप यहां कैसे?’’

‘‘यही सवाल तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि मुन्नी तुम यहां कैसे?’’ अपनी आंखों में आए आंसुओं के सैलाब को रोकते हुए मुन्नी, जिस का असली नाम मेनका था, बोली, ‘‘जाने दीजिए भैया, क्या करेंगे आप जान कर. चलिए, मैं आप को किसी और लड़की से मिलवा देती हूं. मुझ से तो आप के लिए यह काम नहीं होगा.’’

‘‘नहीं मुन्नी, मैं हकीकत जाने बगैर यहां से नहीं जाऊंगा. आखिर तुम यहां आई कैसे? तुम्हें मालूम है कि तुम्हारा भाई राकेश और तुम्हारे मम्मीपापा कितने दुखी हैं?

‘‘वे सब तुम्हें ढूंढ़ढूंढ़ कर हार गए हैं. पुलिस में रिपोर्ट की, जगहजगह के अखबारों में तुम्हारी गुमशुदगी के बारे में खबर दी, लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं चला.

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‘‘और आज… जब इतने बरसों बाद तुम मिली, तो इन हालात में… एक कालगर्ल के रूप में.

‘‘मुन्नी, सचसच बताओ, तुम यहां कैसे पहुंची. हमें तो लगा कि तुम प्रकाश, वह तुम्हारा प्रेमी, के साथ भाग गई?थी.

‘‘कितनी पूछताछ की राकेश ने उस से तुम्हारे लिए, लेकिन वह तो कुछ दिनों के लिए खुद ही नदारद था.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं निहाल भैया, लेकिन अब सच जान कर भी क्या फायदा? सब मेरी ही तो गलती है, सो सजा भुगत रही हूं.’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसा मत कहो. तुम मुझे सच बताओ.’’

मुन्नी कहने लगी, ‘‘भैया, आप ने जो सुना था, सच ही था. मैं और प्रकाश एकदूसरे को प्यार करते थे. वह मेरे कालेज का दोस्त था. आप को याद होगा कि हम दोनों कालेज से एक फील्ड ट्रिप के लिए शहर से बाहर गए थे. वहीं पर हमारे मन में प्यार के अंकुर फूटे और धीरेधीरे हमारा प्यार परवान चढ़ गया था. ‘‘कालेज की पढ़ाई पूरी होतेहोते हमारे घर में मेरी सगाई की बातें चलने लगी?थीं. मैं ने पापामम्मी को जैसे ही प्रकाश के बारे में बताया, वे आगबबूला हो उठे. मुझे लगा कि कहीं वे लोग मेरी शादी जबरदस्ती किसी और से न करा दें. सो, मैं ने सारी बात प्रकाश को बताई. ‘‘प्रकाश ने मुझे भरोसा दिलाया और कहा, ‘मेनका, ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें अपने से अलग नहीं होने दूंगा. बस, तुम मुझ पर?भरोसा रखो.’

‘‘मुझे उस पर पूरा भरोसा था. अब मैं घर में होने वाली हर बात उसे बताने लगी थी. और जैसे ही मुझे लगा कि पापामम्मी मेरी मरजी के खिलाफ शादी तय करने जा रहे हैं, मैं ने प्रकाश को सब बता दिया. ‘‘उसी शाम वह मुझ से मिला. मैं खूब रोई और बोली, ‘मुझे कहीं भगा कर ले चलो प्रकाश, वरना मैं किसी और की हो जाऊंगी और हम हमेशा के लए बिछड़ जाएंगे.’ ‘‘प्रकाश ने कहा, ‘मैं अपने घर में बात करता हूं मेनका, तुम बिलकुल चिंता मत करो.’

‘‘अगले ही दिन प्रकाश मेरे लिए अपनी मम्मी के दिए कंगन ले कर आया और बड़े ही अपनेपन से बोला, ‘मेनका, यह मां का आशीर्वाद है हमारे लिए. वे तो तुम्हें बहू बनाने के लिए राजी हैं, पर पिताजी नहीं मान रहे हैं. सो, हम दोनों घर से भाग जाते?हैं.’

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‘‘मैं ने पूछा, ‘लेकिन, हम भाग कर जाएंगे कहां?’

‘‘वह बोला, ‘वैसे तो हमारे पास कोई ठिकाना नहीं है, लेकिन वाराणसी में मेरा एक दोस्त रहता है. मैं ने उस से बात की है. वह वहां नौकरी करता?है. हम उसी के पास चलेंगे. वह अपनी ही कंपनी में मेरे लिए नौकरी का इंतजाम भी कर देगा.’

‘‘प्रकाश ने यह भी समझाया, ‘हम वहां रजिस्टर्ड शादी कर लेंगे और फिर अपने घर का इंतजाम भी वहीं कर लेंगे. शायद कुछ समय में हमारे मम्मीपापा भी इस शादी को रजामंदी दे दें.’

‘‘मुझे उस की बातों में सचाई नजर आई और मैं ने उस के साथ भाग जाने का फैसला कर लिया.

‘‘अगले ही दिन मैं घर से कुछ कपड़े व रुपए ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गई.

‘‘हम दोनों प्रकाश के दोस्त के घर पहुंचे और वहां 2 दिन में ही प्रकाश ने नौकरी शुरू कर दी. ‘‘5 दिन बाद उस का दोस्त मुझ से बोला, ‘भाभी, प्रकाश ने आप को बाहर कहीं बुलाया है. आप तैयार हो जाइए. मैं आप को वहां ले चलता हूं.’

‘‘एक बार तो मुझे लगा कि प्रकाश ने मुझे क्यों नहीं बताया, पर अगले ही पल मैं उस के दोस्त के साथ चली गई. मैं जहां पहुंची, वहां प्रकाश पहले से ही मौजूद था.

‘‘उस ने मुझे एक आंटी से मिलवाया और बोला, ‘जिस कंपनी में मैं काम करता हूं, ये उस की मालकिन हैं.’

‘‘वे आंटी भी मुझ से बड़े प्यार से मिलीं. कुछ देर बाद प्रकाश बोला, ‘मेनका, मैं कुछ देर के लिए बाहर हो कर आता हूं, तब तक तुम यहीं रहो.’

‘‘एक बार को मुझे घबराहट हुई, पर आंटी की प्यार भरी छुअन में मुझे मां का रूप नजर आया, सो मैं वहां रुक गई. उस के बाद मेरी जिंदगी में जैसे तूफान आ गया. मुझे एक ही रात में समझ आ गया कि प्रकाश मुझे थोड़े से रुपयों के लालच में उन आंटी के हाथों बेच गया था. ‘‘अब हर रात अलगअलग तरह के ग्राहक आने लगे. मैं ने आंटी के खूब हाथपैर जोड़े और रोरो कर कहा, ‘आंटी प्लीज मुझे जाने दीजिए, मैं भले घर की लड़की हूं. मेरे मम्मीपापा, भाई क्या सोचेंगे मेरे बारे में.’

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‘‘लेकिन, आंटी ने मेरी एक न सुनी. पहले 2 लड़कों ने मेरा बलात्कार किया और मुझे कई दिन तक भूखा रखा गया. जब मैं मानी, तब खाना दिया गया और इलाज भी कराया गया. सब लड़कियों ने कहा कि इन की बात मान जाओ, क्योंकि बाहर तो अब कोई अपनाएगा ही नहीं. मैं रोज सजधज कर तैयार होने लगी.

‘‘लेकिन, मुझे बारबार अपने किए पर पछतावा होता. एक बार वहां से भागने की कोशिश भी की, पर पकड़ी गई. उस रात आंटी ने मेरी खूब पिटाई की और उन के दलाल भूखे भेडि़यों की तरह मेरे ऊपर टूट पड़े. ‘‘वहां की एक लड़की प्रिया ने मुझे समझाया, ‘मेनका, अब तुम्हारे पास इस नरक से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं?है. तुम्हारे साथ कितनी बार तो आंटी के आदमियों ने गैंगरेप किया, तुम्हें क्या हासिल हुआ? इस से तो ग्राहकों की भूख मिटाओगी, कम से कम पैसे तो मिलेंगे. समझौता करने में ही समझदारी है.  ‘‘उस समय मुझे प्रिया की बात ठीक ही लगी और मैं ने अपनेआप को आंटी को सौंप दिया. आंटी बहुत खुश हुईं और मुझे प्यार से रखने लगीं. बस, तब से मेरी ग्राहक को पटाने की ट्रेनिंग शुरू हुई.

‘‘मुझे दूसरी औरतों के साथ रात के समय सजधज कर भेज दिया जाता. सड़क के किनारे खड़ी हो कर दूसरी लड़कियां अपनी अदाओं से आतेजाते मर्दों को रिझातीं. मैं उन्हें देख कर दंग रह जाती. हर कोई मोटा मुरगा फंसाने की फिराक में रहती.’’ मेनका की बात सुन कर निहाल ने थोड़ा गुस्से में पूछा, ‘‘तुम जब बाहर निकली, तो रात के समय वहां से भाग क्यों नहीं गई?’’

‘‘कैसी बातें करते हैं भैया आप. इतना आसान होता, तो क्या मैं इस धंधे में टिकी रहती? आंटी के दलाल पूरी चौकसी रखते हैं हम पर.’’

मेनका की कहानी सुन कर निहाल की आंखों से आंसू बह निकले. मेनका आगे बताने लगी, ‘‘दूसरी लड़कियों के साथ मैं भी धीरेधीरे ग्राहक पटाने की ट्रेनिंग ले चुकी थी. शुरू में तो ग्राहक पटाना भी बहुत बुरा लगता था. रात के समय सड़क पर घटिया हरकतें कर अपने अंग दिखा कर उन्हें पटाना पड़ता था. ‘‘उस पर भी लड़कियों में आपस में होड़ मची रहती थी. मैं किसी ग्राहक को जैसेतैसे पटाती, तो रास्ते से ही दूसरी लड़कियां कम पैसों में उसे खींच ले जातीं. ‘‘भैया, मैं नई थी. मुझ से ग्राहक पटते ही नहीं थे, तो आंटी बहुत नाराज होतीं. सड़क पर ग्राहक ढूंढ़ने के लिए खड़ी होती, तो लोगों की लालची मुसकान देख कर मेरा दिल दहल जाता. जब कोई पास आ कर बात करता, तो डर के मारे दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. कोईकोई तो मेरे पूरे बदन को छू कर भी देखता.

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‘‘बस, इतना ही? और उस के लिए तुम्हारी देह का सौदा हर रात होता है,’’ निहाल ने कहा. उस की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे, जिन्हें रोकने की वह नाकाम कोशिश कर रहा था.

‘‘बहुत बुरा हाल था भैया. एक बार एक आदमी बहुत नशे में था. मुझे उस के मुंह से आती शराब की बदबू बरदाश्त नहीं हुई और मैं ने उस से अपना मुंह फेर लिया. वह मुझे गाली देते हुए बोला, ‘तू खुद क्या दूध की धुली है?’ ‘‘और उस ने मुझे पूरे बदन पर सारी रात दांतों से काट डाला. मैं बहुत रोई, चीखीचिल्लाई, पर कोई मेरी मदद को न आया.

‘‘अगले दिन आंटी ने चमड़ी उधेड़ दी और बोली, ‘हर ग्राहक को नाराज कर देती है. तेरे प्रेमी को ऐसा क्या दिखा था तुझ में? क्या सुख देती तू उस को? इसीलिए शायद यहां सड़ने को पटक गया तुझे.’ ‘‘यह सब सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा. मैं ने सोच लिया कि अब काम करूंगी, तो ठीक से.’’

‘‘फिर तुम वाराणसी से मुंबई कैसे पहुंच गई मुन्नी?’’ निहाल ने पूछा.

‘‘वाराणसी छोटा सा शहरहै. लोग पैसा कम देते हैं. ऊपर से कई तरह की छूत की बीमारियां हमें दे जाते हैं. जो पैसे मिलते, वे बीमारियों पर ही खर्च हो जाते. ‘‘एक बार मुंबई की कुछ लड़कियां हमें ट्रेनिंग देने आईं, तो मैं ने उन से कहा कि मुझे भी मुंबई ले चलिए. कम से कम बड़े शहर के लोग रकम तो अच्छी देंगे. मैं थोड़ी पढ़ीलिखी हूं और अंगरेजी भी बोलती हूं, इसलिए उन्हें मैं मुंबई के लायक लगी. सो, मुझे यहां भेज दिया. बस, तब से मैं ने इसे अपने कारोबार की तरह अपना लिया. ‘‘कई बार रेड पड़ी. थाने भी गई. शुरू में डरती थी, लेकिन अब मन को मजबूत कर लिया. अब कोई डर नहीं. जब तक जिंदगी है, इसी नरक में जीती रहूंगी. अब तो ग्राहक भी सोशल मीडिया और ह्वाट्सऐप पर मिल जाते हैं. कोडवर्ड होता है, जिस से हमारे दलाल बात करते हैं,’’ और वह ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

निहाल मेनका के चेहरे पर ढिठाई की हंसी पढ़ चुका था, फिर भी उस ने पूछा, ‘‘निकलना चाहती हो इस नरक से?’’ वह बोली, ‘‘कौन निकालेगा भैया… आप? और उस के बाद कहां जाऊंगी? अपने मम्मीपापा के घर या आप के घर? कौन अपनाएगा मुझे?

‘‘निहाल भैया, अब तो मेरी अर्थी इन गंदी गलियों से ही उठेगी,’’ वह बोली और फिर जोर से ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

‘‘भैया, मेरी तो सारी बातें पूछ लीं, पर आप ने अपनी नहीं बताई कि

आज आप यहां कैसे? आप की शादी हुई या नहीं? आप तो बहुत नेक इनसान हुआ करते थे, फिर यहां कैसे?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘पूछो मत मुन्नी, मेरी पत्नी किसी और के साथ संबंध रखती है. मुझे तो जैसे नकार ही दिया है. 2 बच्चे भी हैं. मन तो उन के साथ लगा लेता हूं, पर तुम से कैसे कहूं? तन की भूख मिटाने यहां चला आता हूं कभीकभी.

‘‘मुझे नहीं मालूम था कि आज इस जगह तुम से मिलना होगा. सच पूछो तो समझ नहीं आ रहा है कि आज मैं तुम्हें गलत समझूं या सही.

‘‘तुम जैसी न जाने कितनी लड़कियां हम मर्दों को सुख देती हैं और हमारे घर टूटने से बचाती हैं. हम मर्द तो एक रात का सुख ले कर खुश हो जाते?हैं. पर हमारे चलते मजबूरी की मारी लड़कियां अपनी जिंदगी को इस नरक में जीने के लिए मजबूर होती हैं और इन बंद गलियों में कीड़ेमकौड़े की जिंदगी जीती?हैं.

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‘‘मुझे माफ करो मुन्नी, यह लो तुम्हारी एक रात की कीमत,’’ इतना कह कर निहाल ने मुन्नी की तरफ पैसे बढ़ा दिए. मेनका ने कहा, ‘‘भैया, मेरा दर्द बांटने के लिए शुक्रिया, पर किसी को घर में न बताना कि मैं यहां हूं. मेरे मम्मीपापा और भाई मुझे गुमशुदा ही समझ कर जीते रहें तो अच्छा, वरना वे तो जीतेजी मर जाएंगे. और इस रात की कोई कीमत नहीं लूंगी आप से.

‘‘आज आप ने मेरा दर्द बांटा है, किसी दिन शायद मैं आप का दर्द बांट सकूं. अपनी बहन समझ कर आना चाहें तो फिर आ जाइए कभी.’’

सुबह होने को थी. निहाल चुपचाप वहां से उठ कर अपने घर आ गया.

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आजकल हर कोई स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है और यह जरूरी भी है, क्योंकि हमारे देश में भी मोटे लोगों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा होता जा रहा है. इस का मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या व फास्ट फूड को माना जाता है. ऐसी कितनी ही बीमारियां हैं, जो पहले उम्रदराज होने पर होती थीं पर आजकल कम उम्र में ही होने लगी हैं. मसलन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन, हार्ट डिजीज आदि. ऐसे में चिकित्सक यही कहते सुने जाते हैं कि वजन कम करो और खाना समय से व लो कैलोरी वाला खाओ. तलाभुना भोजन मोटापे के लिए जिम्मेदार माना जाता है.

अकसर लोग भोजन के बारे में यही सोचसोच कर परेशान होते नजर आते हैं कि क्या करें उबला खाना खाया नहीं जाता. किसी न किसी तरीके से वे पेट तो भर लेते हैं पर तृप्ति नहीं होती है. मगर अब परेशान होने की जरूरत नहीं है. कुछ बातों का ध्यान रख कर लो कैलोरी खाने को भी स्वादिष्ठ बनाया जा सकता है:

1 खुशबूदार मसाले और तड़के

खुशबूदार मसालों जैसे लौंग, इलायची, दालचीनी, जीरा, हींग आदि का इस्तेमाल दाल व सब्जी में तड़का लगाने के लिए किया जाए तो दाल, सब्जी आदि बहुत स्वादिष्ठ लगती है. गरम दाल को सर्व करने से पहले अपने तड़के वाले चम्मच को खूब गरम कर उस में बिना घी या तेल डाले जीरा, हींग, साबूत लालमिर्च, लौंग आदि भून कर दाल में, कढ़ी में तड़का लगा कर ढक दें ताकि खुशबू उस में समा जाए.

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दाल मक्खनी, राजमा आदि बनाते समय जब उबलने के लिए रखें तभी उन में अदरक, लहसुन, प्याज, टमाटर आदि छोटाछोटा काट कर अन्य सूखे मसालों के साथ डाल दें. ज्यादा देर उबलने के कारण उस में उन की खुशबू समा जाएगी और फिर कच्चापन भी नहीं लगेगा. इस के बाद जीरा, कसूरी मेथी, हींग आदि को बिना घी के सूखा भून कर उस में टोमैटो प्यूरी डालें और भून कर दाल, राजमा आदि में मिला दें. यकीन मानिए दाल या राजमा बिना तेल या घी के बहुत ही स्वादिष्ठ लेगेंगे.

चावलों के पानी में तेजपत्ता, लौंग, दालचीनी आदि मसाले जो आप को पसंद हैं डाल कर उबालें. चावल खुशबूदार बनेंगे.

2 प्याज, अदरक व लहसुन का प्रयोग

– प्याज, लहसुन व अदरक का प्रयोग करते समय समस्या यह आती है कि बिना घी या तेल के इन का पेस्ट कैसे भूना जाए ताकि ग्रेवी स्वादिष्ठ बने. याद रखें, सभी आहार विशेषज्ञों का मानना है कि एक दिन में 3 छोटे चम्मच तेल या घी का इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि फिर भी आप बिलकुल भी घी या तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहती हों तो इन चीजों को मोटामोटा काटें और प्रैशरपैन में 1 बड़े चम्मच पानी के साथ 1 सीटी आने तक पकाएं. ठंडा कर के पीस लें. सूखे मसाले डाल कर भूनें व सब्जी डाल कर पकाएं. बिना तेल के बढि़या सब्जी तैयार है.

– प्याजलहसुन को आंच पर ऐसे ही भून कर पीस लें अथवा माइक्रोवेव है, तो उस में मसाले का पेस्ट ऐसे ही हाई पर मसाला सूख जाने तक पकाएं. बढि़या  पेस्ट तैयार है.

– ग्रेवी वाली सब्जी में समस्या आती है कि लालमिर्च पाउडर का इस्तेमाल न करने पर कलर नहीं आता. इस के लिए आप कश्मीरी सूखी मिर्च को थोड़ी देर कुनकुने पानी में भिगोएं. फिर बीज निकाल कर पेस्ट बना कर सब्जी में डालें. इस के अलावा देगी मिर्च पाउडर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि यह भी नहीं करना तो मसाला भूनने के साथ चुकंदर का एक टुकड़ा डाल दें. जब सब्जी गल जाए तब निकाल दें. कलर आ जाएगा.

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3 खाने के 5 यार

जैसे खिचड़ी के लिए 4 यार की बात कही जाती है- घी, पापड़, चटनी, अचार उसी तरह लो कैलोरी खाने को स्वादिष्ठ बनाने के लिए 5 यार की बात कही जाती है और ये हैं- प्याज, टमाटर, पुदीना, इमली और दही.

ये ऐसी चीजें हैं, जो किसी भी खाने को स्वादिष्ठ बनाती हैं. मसलन, पुदीनाइमली में अन्य चीजें मिक्स कर के खट्टीमीठी चटनी बनाई जा सकती है. प्याजटमाटर का सलाद दही में भी डाला जा सकता है. दही को जीरा पाउडर से सजा कर सर्व किया जा सकता है.

इन के अलावा नीबू, मौसंबी, संतरा, आंवला आदि का सेवन करने से विटामिन सी तो मिलेगा ही, साथ ही शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी.

4 परफैक्ट बरतनों का चुनाव

कम तेल या घी का खाना बनाने में सही बरतनों का चुनाव बहुत ही अहम भूमिका निभाता है. अच्छी क्वालिटी के नौनस्टिक और सिरैमिक के बरतन भोजन बनाने के लिए उपयुक्त रहते हैं. इन में न तो भोजन चिपकता है और न ही जलता है. इस के अलावा माइक्रोवेव, एअरफ्रायर में भी अच्छी तरह भूना जा सकता है. स्टफ्ड शिमलामिर्च, भिंडी, टिंडे, टमाटर आदि के साथसाथ कबाब, कटलेट आदि के लिए भी ये दोनों चीजें बहुत उपयुक्त हैं.

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5 हैल्दी कुकिंग टिप्स

– कोफ्ते, कबाब आदि खाने का मन हो या मूंगदाल के पकौड़े, तो चिंता किस बात की. अप्पा पात्रम में बहुत कम तेल यानी 1 छोटे चम्मच तेल में 10-12 कोफ्ते बनाए जा सकते हैं. खांचों को चिकना करें और उन में मिश्रण डालें. उलटेंपलटें. बढि़या कोफ्ते, पकौड़े तैयार हैं. इस के अलावा भाप में पकाएं या ओवन में पका लें. इसी तरह दहीबड़े भी बनाए जा सकते हैं.

– बिना प्याजलहसुन पीसे गाढ़ी ग्रेवी तैयार करनी हो तो भुने चनों को मिक्सी में पीस कर पाउडर बना लें या भुनी मूंगफली को पीस कर पाउडर बनाएं और ग्रेवी में डाल दें. सब्जी स्वादिष्ठ बनेगी.

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– कम कैलोरी की सूखी सब्जी बनानी हो, तो थोड़ा जूसी बनाएं. प्रैशरपैन में थोड़ा सा पानी डाल कर गलाएं.

– मांड निकले चावलों में कैलोरी कम होती है. अत: इन्हें खुशबूदार बनाने के लिए एक नौनस्टिक पैन को चिकना कर उस में जीरा, तेजपत्ता, दालचीनी और इच्छानुसार बाकी मसाले डाल कर भूनें और फिर चावल डाल दें. एक बार मिक्स कर के बंद कर दें. 15 मिनट में खुशबूदार चावल तैयार हो जाएंगे.

– मसाले, प्याज, टमाटर व सब्जी आदि को तुरंत काट कर पकाएं. ऐसा करने पर यह ज्यादा स्वादिष्ठ लगती है.

जीवन लीला-भाग 1: अनिता पत्र पाकर क्यों हैरान थी?

लेखकसंतोष सचदेव

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

घर में हम हिंदी बोलते थे, जबकि स्कूल में फ्रेंच और अंग्रेजी पढ़नी और बोलनी पड़ती थी. वहां की भाषा फ्रेंच थी. वहां सभी फ्रेंच में बातें करते थे. दुकानों के साइन बोर्ड, सड़कों के नाम, सब कुछ फ्रेंच में थे. जबकि मुझे फ्रेंच से बड़ी चिढ़ थी. स्कूल की कोई यूनीफार्म नहीं थी, फीस भी नहीं, किताबकापियां सब फ्री में मिलती थीं.

सर्दी में भी सभी लड़कियां छोटेछोटे कपड़े पहनती थीं. हम भारतीयों को यह सब बड़ा अजीब लगता था. बचपन के लगभग 10 साल वहीं बीते. मांट्रियल के बारे में सुना था कि वहां बहुत बड़ा पहाड़ था, जिसे माउंट रायल कहते थे. बोलतेबोलते वह माउंट रायल मांट्रियल बन गया. ऊंचे पहाड़ से बहते झरने की तरह मेरी जीवनधारा भी कभी कलकल करती, कभी हिलोरें भरती, कभी गहरी झील की गहराई सी समेटे आगे बढ़ रही थी. वह मधुरिम समय आज भी मेरे जीवन की जमापूंजी है.

मैं थोड़ा बड़ी हो गई. भारतीय परंपराओं के बंधनों से मेरा परिचय कराया जाने लगा. लड़कियां मित्र हो सकती हैं, लड़के नहीं. स्कूल सीमा के बाहर किसी लड़के के साथ न बोलना, न घूमना. पिता नए जमाने के साथ चलने के पक्षधर थे, पर मौसी ने जो बचपन में सिखाया था, उसे तब तक भूली नहीं थीं. वह उस परंपरा को आगे भी जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्प थीं. मैं स्कर्ट नहीं पहन सकती थी. कमीज भी पूरी बाहों की, जिसे गले तक बंद करना पड़ता था. भले ही स्कूल में दूसरे बच्चों के बीच हंसी का पात्र बनूं, लेकिन मौसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी.

मैं दसवीं में पढ़ रही थी, तभी अचानक पिताजी का तबादला हो गया. हम अपने देश भारत आ गए. रहने को दिल्ली के आरकेपुरम में सरकारी मकान मिला. वह काफी खुला इलाका था, मां बहुत खुश थीं. क्योंकि उन्हें चांदनी चौक के पुराने कटरों की तंग गलियों वाले अपने पुश्तैनी मकान में नहीं जाना पड़ा था.

दिल्ली के स्कूलों में दाखिला कोई आसान काम नहीं था. पर पिताजी की सरकारी नौकरी और तबादले का मामला था, इसलिए घर के पास ही सर्वोदय स्कूल में दाखिला मिल गया. बारहवीं की परीक्षा मैं ने अच्छे नंबरों से पास की, जिस से दिल्ली विश्वविद्यालय में बीए में एडमिशन में कोई परेशानी नहीं हुई. इंगलिश औनर्स से बीए कर के मैं युवावस्था की दहलीज तक पहुंच गई.

मां बीमार रहने लगी थीं, भाई रोहन डाक्टरी की ऊंची शिक्षा के लिए लंदन चले गए. जैसा कि भारतीय हिंदू परिवारों में होता है, उसी तरह घर में मेरी शादी की चिंता होने लगी. मेरे पिताजी के एक बड़े पुराने मित्र थे सुंदरदास अरोड़ा. वह ग्रेटर कैलाश में एक बड़ी कोठी में रहते थे.

कनाडा से आने के बाद हम अकसर उन के यहां आयाजाया करते थे. एक दिन उन्होंने मेरे पिताजी से कहा, ‘‘हम दोनों अच्छे मित्र हैं, हमारे परिवार एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं. क्यों न हम इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें. मैं चाहता हूं कि डा. वरुण की शादी अनिता से कर दी जाए.’’

वरुण उन दिनों अमेरिका में रह रहा था. वह वहीं अपनी क्लिनिक चलाता था. उन्होंने डा. वरुण को बुला लिया. उस ने मुझे पसंद कर लिया. मेरी पसंद, नापसंद के कोई मायने नहीं थे. बात आगे बढ़ी और मैं मिस अनिता मेहरा से मिसेज अनिता अरोड़ा हो गई.

शादी के बाद मैं वरुण के साथ अमेरिका के कैलीफोर्निया में रहने लगी. एक साल में ही मैं एक बेटे की मां बन गई. बेटे का नाम रखा गया रोहित. वक्त के साथ रोहित 3 साल का हो गया और स्कूल जाने लगा. पति ने उस की देखभाल के लिए एक आया रख ली थी. इसी बीच दिल्ली में मेरी सास सुमित्राजी के गंभीर रूप से बीमार होने की सूचना मिली. वरुण ने कहा कि रोहित को आया संभाल लेगी, इसलिए मैं सास की देखभाल के लिए दिल्ली चली जाऊं.

दिल्ली आ कर पता चला कि सास को कैंसर था. ससुर और मैं उन्हें ले कर अस्पतालों के चक्कर काटने लगे. उन की देखभाल के लिए घर पर नर्स रख ली गई थी. लेकिन मेरा मौजूद रहना जरूरी था.

6 महीने से ज्यादा बीत गए. सास की हालत में काफी सुधार आ गया तो मैं ने कैलीफोर्निया जाने की तैयारी शुरू कर दी. शुरूशुरू में वरुण लगभग रोज ही फोन कर के मां का हालचाल पूछता रहा. मैं भी अकसर फोन कर के रोहित के बारे में जानकारी लेती रहती थी. लेकिन अचानक वरुण के फोन आने बंद हो गए. मैं फोन करती तो उधर से फोन नहीं उठता. मुझे चिंता होने लगी.

वरुण से बात किए बगैर वहां कैसे जा सकती थी. जब वरुण से बात नहीं हो सकी तो मेरे ससुर ने अपने दूर के किसी रिश्तेदार से वरुण के बारे में पता करने को कहा. उन्होंने पता कर के बताया कि वरुण किसी डा. मारिया से शादी कर के नाइजीरिया चला गया है. उस के बाद वरुण का कुछ पता नहीं चला.

जीवन लीला-भाग 3: अनिता पत्र पाकर क्यों हैरान थी?

शादी के 3-4 दिनों बाद नवीन अपना सामान ले कर शालिनी के साथ किराए के मकान में रहने चला गया. मुझे यह अच्छा नहीं लगा. मैं सोच में पड़ गई, अपने अकेलेपन से छुटकारा पाने के लिए मैं ने एक बेटे को उस के पिता से अलग कर दिया. मुझे अपराधबोध सा सताने लगा. लगता, बहुत बड़ी गलती हो गई. इस बारे में मैं ने पहले क्यों नहीं सोचा? अपने स्वार्थ में दूसरे का अहित करने की बात सोच कर मैं मन मसोस कर रह जाती. भीतर एक टीस सी बनी रहती.

पर मैं ने आशा का दामन कभी नहीं छोड़ा था, फिर अब क्यों चैन से बैठ जाती. मैं ने एक नियम सा बना लिया. स्कूल से छुट्टी होने के बाद मैं शालिनी से मिलने उस के घर जाती. एक गाना है ना ‘हम यूं ही अगर रोज मिलते रहे तो देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा…’ शालिनी एक सहज और समझदार लड़की थी. कुछ ही दिनों में उस ने मुझे अपनी सास के रूप में स्वीकार कर लिया.

मुझे ले कर उन पत्नी पति के बीच संवाद चलता रहा, नतीजतन धीरेधीरे नवीन ने भी मुझे अपनी मां का दर्जा दे दिया. एक भरेपूरे परिवार का मेरा सपना साकार हो गया. मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. प्रेमकुमारजी के रिश्तेदारों की कानाफूसी से मुझे पता चला कि इतना अपनापन तो प्रेमकुमारजी की पहली पत्नी भी नहीं निभा पाई, जितना मैं ने निभाया है. मैं आत्मविभोर हो उठती.

अपनी हृदय चेतना से निकली आकांक्षाओं को मूर्तरूप में देख कर भला कौन आनंदित नहीं होता. जो कभी परिवार में नहीं रहे, वे इस पारिवारिक सुख आह्लाद की कल्पना भी नहीं कर सकते. हर दिन खुशियों की सतरंगी चुनरी ओढ़े मैं पूरे आकाश का चक्कर लगा लेती. दिनों को जैसे पंख लग गए, 3 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

नवीन का ट्रांसफर देहरादून हुआ तो उस के घर को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से 15-20 दिन के लिए मैं उस के साथ देहरादून चली गई. लौट कर आई तो सीढि़यों पर लगे लैटर बौक्स से अपने पत्र, पानी, बिजली और टेलीफोन के बिल निकाल कर लेती आई. उसी में एक लिफाफा था, जिस पर मेरा नामपता लिखा था. उस में डाक टिकट नहीं लगा था, इस का मतलब वह डाक से नहीं आया था. उस में उसी बीच की तारीख पड़ी थी, जिन दिनों मैं देहरादून में थी.

मैं ने लिफाफा खोला, तो उस में से एक पत्र निकला. उस में लिखा था, ‘मां, मैं न्यूयार्क से सिर्फ आप से मिलने आया था. मेरा नाम रोहित है. मिसेज एंटनी ने बताया था कि मेरा यह नाम आप ने ही रखा था. वैसे मुझे सब रौबर्ट कहते हैं. स्कूल में मेरा यही नाम है. मुझे पता नहीं, मैं कब पैदा हुआ, पर स्कूल रिकौर्ड के अनुसार मैं अब 16 साल का हो गया हूं. मैं मिसेज एंटनी को ही अपनी मां समझता रहा. मैं ने उन से कभी उन के पति (अपने पिता) के बारे में नहीं पूछा. सोचता था कि कहीं उन का दिल न दुखे. पर अचानक एक महीने पहले मृत्यु शैय्या पर पड़ी मिसेज एंटनी ने मुझे बताया कि वह मेरी मां नहीं हैं.

‘उन्होंने तो शादी ही नहीं की थी. उन का कहना था कि वह कई सालों पहले कैलीफोर्निया में मेरे पिता वरुण अरोड़ा के साथ नर्स के रूप में काम करती थीं. स्वास्थ्य खराब होने की वजह से वह नौकरी छोड़ कर अपने भाई के पास न्यूयार्क आ कर रहने लगी थीं. अपने एक मित्र से उन्हें पता चला कि डा. वरुण अरोड़ा ने भारत की एक महिला से शादी की थी और उन का एक बेटा है. उन की पत्नी ने अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने बेटे का नाम रोहित रखा था. कभी साल में एकाध बार डा. साहब से उन की बात हो जाती थी. वह कैलीफोर्निया से वाशिंगटन चले गए थे.

‘एक दिन अचानक डा. वरुण मुझे ले कर उन के घर आ पहुंचे और कहा कि रोहित की मां उसे छोड़ कर भारत चली गई है. इस की देखभाल के लिए कोई नहीं है, इसलिए मैं चाहता हूं कि इस की गवर्नेस बन कर वह इसे संभालें. डा. वरुण मेरे पालनपोषण का खर्च भेजते रहे, लेकिन कुछ महीनों बाद खर्च आना बंद हो गया. मिसेज एंटनी ने कैलीफोर्निया में अपने पुराने मित्रों से डा. वरुण के बारे में पता किया तो पता चला कि उन्होंने डा. मारिया नाम की एक अमेरिकी महिला से शादी कर ली है और उस के साथ नाइजीरिया चले गए हैं.

‘डा. वरुण और मेरी भारतीय मां का पता लगाने की उन्होंने बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला. थकहार कर वह मुझे अपना बेटा मान कर मेरा पालनपोषण करने लगी. पर मरने से पहले उन का यह रहस्योद्घाटन मेरे लिए एक बड़ी पहेली बन गया. मेरे पिता हैं तो कहां हैं? मेरी मां भारत में हैं तो कहां हैं?

‘दिनरात मैं इसी उधेड़बुन में पड़ा रहता. मेरी पढ़ाई छूट रही थी. मैं मिसेज एंटनी के पुराने सामान को खंगालता रहता. अचानक उन के भाई डेविड के साथ उन के पत्राचार में एक जगह लिखा मिला कि जर्मनी में कोई सरदार नानक सिंह हैं, जो मेरी भारतीय मां के बारे में जानते हैं. बस मैं ने उन्हें खोज निकाला और आप का पता पा लिया.

‘अब समस्या थी कि भारत में आप से कैसे संपर्क करूं? तभी मेरे एक मित्र स्टीफन के बड़े भाई की शादी दिल्ली में तय हो गई. वे लोग एक सप्ताह के लिए दिल्ली आ रहे थे. मेरे अनुरोध पर वे एक सप्ताह के लिए मुझे अपने साथ दिल्ली ले आए. मैं पहले ही दिन से आप के घर के चक्कर लगाने लगा, पर वहां ताला लगा था. पड़ोसियों से पता चला कि आप किसी दूसरे शहर देहरादून गई हैं, 15-20 दिनों में लौटेंगी.

‘मैं इतने दिनों तक नहीं रुक सकता था. मेरे लिए दिल्ली और यहां के लोग बिलकुल अजनबी थे. मुझे कल अपने मित्र के परिवार के साथ न्यूयार्क जाना है, अपने भीतर एक गहरी पीड़ा लिए मैं वापस जा रहा हूं, लेकिन आशा की डोर थामे हुए. नीचे मेरा पता और फोन नंबर लिखा है. मेरे मित्र का फोन नंबर और पता भी लिखा है. आप मेरा यह पत्र पढ़ते ही मुझे फोन करना. अब दुनिया में सिवाय आप के मेरा कोई नहीं है. आशा है, आप से जल्दी ही मिल पाऊंगा.

आप का रोहित.’

पत्र पढ़ते ही मेरा चेहरा बदरंग हो गया. सहमी और अधमरी सी हो गई मैं. मेरे भीतर का गहरा घाव फिर हरा हो गया. मैं कैसी मां हूं, अपने ही बेटे को भूल गई. बेटा तड़प रहा है और मैं? मेरे पति प्रेमकुमारजी ने मेरा अवाक चेहरा देखा तो मेरे हाथ से पत्र ले कर एक सांस में पढ़ गए. उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी खुशी, चलो अभी फोन करो.’’

मोबाइल, इंटरनेट का जमाना नहीं था. एसटीडी पर फोन बुक किया. कई घंटे बाद फोन मिला. घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया. समय काटे नहीं कट रहा था. हम ने रोहित के मित्र स्टीफन को फोन बुक किया. फोन मिला, पर जो सुनने को मिला, लगा जैसे किसी ने कोई विषैला तीर सीधा मेरे सीने में उतार दिया है. उस ने बताया, ‘‘रोहित ने एक सप्ताह पहले आत्महत्या कर ली थी. मरने से पहले उस ने अपनी स्कूल की कौपी के आखिरी पन्ने पर लिखा था, ‘मेरा इस दुनिया में कोई नहीं. काश, मिसेज एंटनी मरने से पहले मुझे यह न बतातीं कि वह मेरी मां नहीं थी. मैं अन्य अनाथ बच्चों की तरह मनमसोस कर रह जाता. पर मांबाप के होते हुए भी मैं अनाथ हूं. पिता का तो पता नहीं, उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी पर मेरी भारतीय मां, वह भी मुझे भूल गई. दोनों ने मुझे बस पैदा किया और छोड़ दिया. कितने उत्साह और कितनी कोशिशों के बाद मैं ने अपनी भारतीय मां को ढूंढ़ निकाला था.

पिछले 15 दिनों से मेरे फोन की हर घंटी मुझे मां के फोन की लगती थी. सुना था कि मां में अपने बच्चे के लिए बड़ी तड़प होती है, लेकिन मेरी मां तो अपने में ही मस्त है. क्या मां ऐसी ही होती हैं? जब मेरा कोई नहीं तो मैं किस के लिए जिऊं. हर एक का कोई बाप, मां, भाई बहन है, मेरा कोई नहीं तो मैं क्यों हूं? बस, अब और नहीं… बस.’’

फोन पर जो सुनाई दिया, मैं जड़वत सुनती रही. फिर क्या हुआ पता नहीं. मैं ने बिस्तर पकड़ लिया. 3-4 महीने तक मैं बिस्तर पर मरणासन्न पड़ी रही. प्रेमकुमार मेरी सेवा में लगे रहे. मैं अभागी मां, सिर्फ अपने को कोसती छत की कडि़यों में 3 साल के अपने बच्चे के बड़े हुए रूप के काल्पनिक चित्र को निहारती रहती. सुना था, वक्त वह मरहम है, जो हर घाव को भर देता है. घाव यदि गहरा हो तो निशान छोड़ जाता है, पर मेरा घाव तो फिर से हरा हो गया था. मन करता, मैं भी आत्महत्या कर लूं. पर आत्महत्या के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए, यह कायरों का काम नहीं है.

कहते हैं, कि जब मनुष्य जन्म लेता है तो उस की मौत तभी तय हो जाती है. पैदा होते ही मरने वालों की लाइन में लग जाती है. कब बुलावा आ जाए, पता नहीं. मैं तो नहीं मरी, पर प्रेमकुमारजी चले गए. मैं फिर अकेली रह गई. अब क्या करूं, किस का आश्रय ढूंढू? जानती थी, पर आश्रित होने से तो अच्छा है मृत्यु की आश्रित हो जाऊं.

बुढ़ापे में परआश्रित होने पर तो असहनीय पीड़ा, घुटन भरा जीवन, अपमानित होने का डर, रहीसही जीवन की आकांक्षाओं को डस लेता है. मैं सुबहशाम एक वृद्धाश्रम में अपना समय बिताने लगी.

जीवन का 85वां सोपान चढ़ चुकी हूं. जब इतना कुछ सहने पर भी मैं पाषाण की तरह अडिग हूं तो आने वाला कल मेरा क्या बिगाड़ लेगा? कहीं पढ़ा था, ‘‘चलते रहो, चलते रहो.’’ और मैं चल रही हूं. अंतिम क्षण तक चलती रहूंगी.

जीवन लीला-भाग 2: अनिता पत्र पाकर क्यों हैरान थी?

लेखकसंतोष सचदेव

हम सभी हैरान रह गए. रोहित के बारे में पता करने मैं कैलीफोर्निया गई. पर उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. न परिचितों को न आसपड़ोस वालों को. मैं अकेली होटलों में कितने दिन रुक सकती थी. थकहार कर लौट आई.

मेरे ससुर और पिता की तमाम कोशिशों के बाद भी न वरुण का पता चला, न रोहित का. एक गहरा घाव भीतर ही भीतर रिसता रहा. कुछ दिन बीते थे कि मेरे मातापिता की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. भाई रोहन एक अंग्रेज महिला से शादी कर के लंदन में बस गया था. मातापिता की मौत पर दोनों दिल्ली आए थे. वे लोग चांदनी चौक का पुश्तैनी मकान बेच कर वापस चले गए. मुझे सांत्वना देने के सिवाय और वे कर भी क्या सकते थे.

ग्रेटर कैलाश की उस विशाल कोठी में मेरे दिन गुजरने लगे. समय बिताने और मानसिक तनाव से बचने के लिए मैं एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी. स्कूल से घर लौटती तो मेरे सासससुर दरवाजे पर मेरी बाट जोहते मिलते. उन्होंने मुझे मांबाप से कम प्यारदुलार नहीं दिया. मेरे ससुर की उदास आंखें सदा मेरे चेहरे पर कुछ खोजती रहतीं. वह अकसर कहते, ‘‘मैं तुम्हारे पिता और तुम्हारा अपराधी हूं. मेरे बेटे ने मेरे हाथों न जाने किस जन्म का पाप करवाया है.’’

सास भी अकसर अपनी कोख को कोसती रहतीं, ‘‘मेरे बेटे ने जघन्य पाप किया है. इतनी सुंदर पत्नी के रहते उस ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली. मेरे पोते को भी ले गया. जिंदा भी हो तो मैं कभी उस का मुंह न देखूं.’’

पोते का ध्यान आते ही उन की आंखों में एक चमक सी आ जाती, पर वह मेरी तरह पत्थर के दिल वाली नहीं थीं. कुछ ही दिनों में चल बसीं. मेरे ससुर ने भी चारपाई पकड़ ली.

6-7 महीने बीते होंगे कि एक दिन उन्होंने पास बैठा कर कहा, ‘‘बेटा, तुम से एक खास बात करनी है. मैं ने अपने छोटे बेटे अरुण से बात कर ली है. मैं तुम्हारे नाम मकान की वसीयत करना चाहता था. उसे इस में कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन उस का कहना है कि वसीयत में कभीकभी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं, खास कर ऐसे मामलों में, जब दूसरे वारिस कहीं दूर दूसरे देश में रह रहे हों. उस की राय है कि वसीयत के बजाय यह संपत्ति अभी तुम्हारे नाम कर दूं.’

अरुण मेरे पति का छोटा भाई था, जो जर्मनी में रहता था. उस का कहना था कि यह संपत्ति मेरे नाम हो जाएगी तो मेरे मन में एक आर्थिक सुरक्षा की भावना बनी रहेगी. ससुर ने कोठी मेरे नाम पर कर दी. कुछ दिनों बाद ससुर भी अपने मन का बोझ कुछ हल्का कर के स्वर्ग सिधार गए. इस के बाद मैं अकेली रह गई. कहने को नौकर राजू था, लेकिन वह इतना छोटा था कि उस की सिर्फ गिनती ही की जा सकती थी.

जब वह 5 साल का था, तब उस की मां उसे साथ ले कर हमारे यहां काम करने आई थी. उस की मां की मौत हो गई तो राजू मेरे यहां ही रहने लगा था. कुछ दिनों तक वह स्कूल भी गया था, लेकिन पढ़ाई में उस का मन नहीं लगा तो उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. इस के बाद मैं ने ही उसे हिंदी पढ़नालिखना सिखा दिया था.

जिंदगी का एकएक दिन बीतने लगा. लेकिन अकेलेपन से डर जरूर लगता था. ससुरजी की मौत पर देवर अरुण जर्मनी से आया था. मेरे अकेले हो जाने की चिंता उसे भी थी. इसी वजह से कुछ दिनों बाद उस ने फोन कर के कहा था कि उस के एक मित्र के पिता सरदार नानक सिंह अपनी पत्नी के साथ दिल्ली रहने आ रहे हैं. अगर मुझे आपत्ति न हो तो मकान का निचला हिस्सा उन्हें किराए पर दे दूं. वह सज्जन पुरुष हैं. उन के रहने से हमें सुरक्षा भी मिलती रहेगी और कुछ आमदनी भी हो जाएगी.

मुझे क्या आपत्ति होती. मैं मकान के ऊपर वाले हिस्से में रहती थी, नीचे का हिस्सा खाली पड़ा था, इसलिए मैं ने नीचे वाला हिस्सा किराए पर दे दिया. सचमुच वह बहुत सज्जन पुरुष थे. अब मैं नानक सिंह की छत्रछाया में रहने लगी.

जितना स्नेह और अपनापन मुझे नानक सिंहजी से मिला, शायद इतना पिताजी से भी नहीं मिला था. पतिपत्नी अपने लंबे जीवनकाल के अनुभवों से मेरा परिचय कराते रहते थे. मैं मंत्रमुग्ध उन्हें निहारती रहती और अपनी टीस भरी स्मृतियों को उन के स्नेहभरे आवरण के नीचे ढांप कर रख लेती.

समय बीतता रहा. हमेशा की तरह उस रविवार की छुट्टी को भी वे मेरे पास आ बैठे. इधरउधर की थोड़ी बातें करने के बाद नानक सिंहजी ने कहा, ‘‘आज तुम से एक खास बात करना चाहता हूं. मेरा बेटा जर्मनी से यहां आ कर रहने के लिए कह रहा है. वैसे भी अब हम पके आम हैं, पता नहीं कब टपक जाएं. बस एक ही बात दिमाग में घूमती रहती है. तुम्हें बेटी माना है, इसलिए अब तुम्हें अकेली नहीं छोड़ सकता, इतने बड़े मकान में अकेली और वह भी यहां की लचर कानूनव्यवस्था के बीच. इसी उधेड़बुन में मैं कई दिनों से जूझ रहा हूं.

पलभर रुक कर वह आगे बोले, ‘‘अपने काम से मैं अकसर स्टेट बैंक जाया करता हूं. वहां के मैनेजर प्रेम कुमार से मेरी गहरी दोस्ती हो गई है. एक दिन बातोंबातों में पता चला कि उन की पत्नी का स्वर्गवास हो गया है. उस के बाद से उन्हें अकेलापन बहुत खल रहा है. कहने को उन के 3 बच्चे हैं, लेकिन सब अपनेअपने में मस्त हैं. बड़ी बेटी अपने पति के साथ जापान में रहती है. बेटा बैंक में नौकरी करता है. उस की शादी हो चुकी है. तीसरी बेटी संध्या थोड़ाबहुत खयाल रखती थी, लेकिन उस की भी शादी हो गई है. उस के जाने के बाद से वह अकेले पड़ गए हैं. एक दिन मैं ने कहा कि वह शादी क्यों नहीं कर लेते? लेकिन 3 जवान हो चुके बच्चों के बाप प्रेम कुमार को मेरा यह प्रस्ताव हास्यास्पद लगा.

मैं सुनती रही, नानक सिंहजी कहते रहे, ‘‘मैं विदेशों में रहा हूं. मेरे लिए यह कोई हैरानी की बात नहीं थी. पर भारतीय संस्कारों में पलेबढ़े प्रेमकुमार को मेरा यह प्रस्ताव अजीब लगा. मैं ने मन टटोला तो लगा कि अगर कोई हमउम्र मिल जाए तो शेष जीवन के लिए वह उसे संगिनी बनाने को तैयार हो जाएंगे. मैं ने उन से यह सब बातें तुम्हें ध्यान में रख कर कही थीं. क्योंकि मेरा सोचना था कि तुम बाकी का जीवन उन के साथ उन की पत्नी के रूप में गुजार लोगी. क्योंकि औरत का अकेली रह कर जीवन काटना कष्टकर तो है ही, डराने वाला भी है.’’

इस के बाद एक दिन नानक सिंहजी प्रेम कुमार को मुझ से मिलवाने के लिए घर ले आए. बातचीत में वह मुझे अच्छे आदमी लगे, इसलिए 2 बार मैं उन के साथ बाहर भी गई. काफी सोचने और देवर से सलाह कर के मैं ने नानक सिंहजी के प्रस्ताव को मौन स्वीकृति दे दी.

इस के बाद प्रेमकुमारजी ने अपने विवाह की बात बच्चों को बताई तो एकबारगी सभी सन्न रह गए. बड़ी बेटी रचना विदेशी सभ्यता संस्कृति से प्रभावित थी, इसलिए उसे कोई आपत्ति नहीं थी. संध्या अपने पिता की मन:स्थिति और घर के माहौल से परिचित थी, इसलिए उस ने भी सहमति दे दी. पर बेटा नवीन और बहू शालिनी बौखला उठे. लेकिन उन के विरोध के बावजूद हमारी शादी हो गई.

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