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कटु सत्य- भाग 3 : छवि की दादी के साथ क्या हुआ था

‘‘सिर्फ उसे ही नहीं, कल्लू की बेटी को भी फांसी देने का फैसला पंचायत सुना चुकी है. मैं उस में कोई फेरबदल कर समाज को गलत संदेश नहीं देना चाहता.’’ इतना कह कर दादाजी अंदर चले गए औैर वह आदमी वहीं सिर पटकने लगा. नौकर लोग उसे घसीट कर बाहर ले जाने लगे.

पूरा परिवार मूकदर्शक बना पूरी घटना देख रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस आदमी के लड़के ने किया क्या है जो वह आदमी, दादाजी से अपने पुत्र का जीवनदान मांग रहा है. तभी बूआजी का स्वर गूंजा, ‘‘लड़कियो, रुक क्यों गईं, अरे भई, नाचोगाओ. ऐसा मौका बारबार नहीं आता. ’’

 

इतनी संवेदनहीनता, ऐसा आचरण वह भी गांव के लोगों का, जिन के  बारे में वह सदा से यही सुनती आई है कि गांव में एक व्यक्ति का दुख सारे गांव का दुख होता है. उसे लग रहा था कैसे हैं इस गांव के लोग, कैसा है इस गांव का कानून जो एक प्रेमी युगल को फांसी पर लटकाने का आदेश देता है. इस को रोकने का प्रयास करना तो दूर, कोई व्यक्ति इस के विरुद्ध आवाज भी नहीं उठाता मानो फांसी देना सामान्य बात हो.

जब उस से रहा नहीं गया तब वह नील का हाथ पकड़ कर उसे अपने कमरे में ले आई. इस पूरे घर में एक वही थी जो उस के प्रश्न का उत्तर दे सकती थी. कमरे में पहुंच कर छवि ने उस से प्रश्न किया तब नील ने उस का आशय समझ कर उस का समाधान करने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘दीदी, गांव में हम सब एक परिवार की तरह रहते हैं, उस आदमी के बेटे ने इस गांव की ही एक लड़की से प्रेम किया तथा उस के साथ विवाह करना चाहता था. उन का गोत्र  एक है. एक ही गोत्र में विवाह करना हमारे समाज में वर्जित है. उसे पता था कि उन के प्यार को गांव वालों की मंजूरी कभी नहीं मिल सकती. सो, उन दोनों ने भागने की योजना बनाई. इस का पता गांव वालों को लग गया. पंचायत ने दोनों को मौत की सजा सुना दी. अगर दादाजी चाहते तो वे बच सकते थे पर दादाजी गांव के रीतिरिवाजों के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं.’’

नील ने जो कहा उसे सुन कर उस के रोंगटे खड़े हो गए. भावनाओं पर अंकुश न रख पाई और कहा, ‘‘गांव वाले कानून अपने हाथ कैसे ले सकते हैं, दादाजी ने पुलिस को क्यों नहीं बुलाया?’’

‘‘दीदी, हमारे गांव में पुलिस का नहीं, दादाजी का शासन चलता है. कोई कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘दादाजी का शासन, क्या दादाजी इस देश के कानून से ऊपर हैं?’’

‘‘यह तो मैं नहीं जानती दीदी, पर दादाजी की इच्छा के विरुद्ध हमारे गांव का एक पत्ता भी नहीं हिलता.’’

‘‘अरे, तुम दोनों यहां बैठी गपशप कर रही हो. नीचे तुम्हें सब ढूंढ़ रहे हैं,’’ ताईजी ने कमरे में झांकते हुए कहा.

‘‘चलो दीदी, वरना डांट पड़ेगी,’’ सकपका कर नील ने कहा.

 

छवि उस के पीछे खिंची चली गई. शिखा को मेहंदी लगाईर् जा रही थी. कुछ औरतें ढोलक पर बन्नाबन्नी गा रही थीं. सब को हंसतेगाते देख कर उसे लग रहा था कि वह भीड़ में अकेली है. गाने की आवाज के साथ हमउम्र लड़कियों को थिरकते देख उस के भी पैर थिरकने को आतुर हो उठे थे पर मन ने साथ नहीं दिया.

अवसर पा कर मन की बात मां से की तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, यह गांव है, यहां के रीतिरिवाज पत्थर की लकीर की तरह हैं. यहां हमारा कानून नहीं चलता.’’

‘‘तो क्या दबंगों का राज चलता हैं?’’ तिक्त स्वर में छवि ने कहा.

‘‘चुप रह लड़की, मुंह बंद रख. अगर तेरे दादाजी ने तेरी बात सुन ली या किसी ने उन तक पहुंचा दी तो तुझे अंदाजा भी नहीं है कि हम सब के साथ कैसा व्यवहार होगा?’’

‘‘मां, क्या इसी डर से सब उन की गलत बात का भी समर्थन करते रहें.?’’

‘‘नहीं बेटा, वे बड़े हैं, उन्होंने दुनिया देखी है. वे जो कर रहे हैं वही शायद गांव के लिए उचित हो,’’ मां ने स्वर में नरमी लाते हुए कहा.

‘‘मां कहने को तो हम 21वीं सदी में पहुंच चुके हैं पर 2 प्यार करने वालों को इतनी बेरहमी से मृत्युदंड?’’

‘‘बेटा, मैं मानती हूं यह गलत है, लेकिन जिन बातों पर हमारा वश नहीं, उन के बारे में  सोचने से कोई लाभ नहीं.’’

‘‘मां, बात हानिलाभ की नहीं, उचितअनुचित की है.’’

‘‘कहां हो छवि की मां, शिखा का सूटकेस पैक करा दो,’’ ताईजी की आवाज आई.

‘‘आई दीदी,’’ कह कर मां शीघ्रता से चली गईं.

उस के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं है, विचारों का झंझावात उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. पहले सती दादी, फिर डायन और अब यह खाप पंचायत का फैसला, कहीं तो कुछ गलत हो रहा है जिसे उस का मासूम मन पचा नहीं पा रहा था. मन की शांति के लिए वह अकेली ही मंदिर की ओर चल दी.

मंदिर पहुंचते ही फिर सती दादी का विचार मन पर हावी हो गया. जिन से वह कभी मिली नहीं थी,  देखा भी नहीं था, उन से कुछ ही दिनों में न जाने कैसा तारतम्य स्थापित हो गया था. बारबार उन का चेहरा उस के जेहन में आ कर उसे बेचैन कर रहा था. वह मंदिर के सामने खड़ी हो कर मंदिर में लगी उन की तसवीर को निहारने लगी. तसवीर में वे 20-22 वर्ष से ज्यादा नहीं होंगी, चेहरे पर छाई भोली मुसकान ने उस का मन मोह लिया. वह कल्पना ही नहीं कर पा रही थी कि जब वे जली होंगी तो उन का यही चेहरा कितना वीभत्स हो गया होगा.

‘‘बेटी, तुम कभी विवाह नहीं करना और अगर विवाह हो गया है तो कभी कन्या को जन्मने नहीं देना,’’ पीछे से आवाज आई. आवाज सुन कर उस ने पलट कर देखा तो पाया सफेद बाल तथा झुर्रियों वाला चेहरा उस की ओर निहार रहा था. छवि को अपनी ओर देख कर उस ने अपनी बात फिर दोहराई.

‘‘यह आप क्या कर रही हैं?’’

‘‘मैं सच कह रही हूं बेटी, बेटी के दुख से बड़ा कोई दुख इस दुनिया में नहीं है.’’

हताशनिराश औरत की दुखभरी आवाज सुन कर छवि का मन विचलित हो उठा. ध्यान से देखा तो पाया वह लगभग 80 वर्ष की बुढि़या है. वह मंदिर की दीवार के सहारे टेक लगा कर बैठी थी तथा उसी की तरह मंदिर को निहारे जा रही थी. चेहरे पर दर्द की अजीब रेखाएं खिंच आई थीं. उसे एहसास हुआ कि यह अनजान वृद्धा भी उसी की भांति किसी बात से परेशान है. इस से बातें कर के शायद उस के मन का द्वंद्व शांत हो जाए. वह नहीं जानती थी कि वह वृद्धा उस की बात समझ भी पाएगी या नहीं. पर कहते हैं मन का गुबार किसी के सामने निकाल देने से मन शांत हो जाता है, यही सोच कर वह जा कर उस के पास बैठ गई तथा मन की बातें जबान पर आ ही गईं.

कटु सत्य- भाग 4 : छवि की दादी के साथ क्या हुआ था

‘‘दादी, यह सती रानी का मंदिर है. कहते हैं ये अपने पति को बहुत प्यार करती थीं, उन के जाने का गम नहीं सह पाईं, इसलिए उन के साथ सती हो गईं. पर क्या एक औरत की अपने पति से अलग कोई दुनिया नहीं होती, यह तो आत्मदाह ही हुआ न? ’’ कहते हुए उस ने फोन पर यह सोच कर रिकौर्डिंग करनी प्रारंभ कर दी कि शायद इस घटना से संबंधित कोई सूत्र उसे मिल जाए.

वृद्धा कुछ क्षण के लिए उसे देखती रही, फिर कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारा प्रश्न जायज है पर मर्द के लिए औरत सिर्फ औरत है. मर्द ही उसे कभी पत्नी बनाता है तो कभी मां, यहां तक कि सती भी. इस संसार की जननी होते हुए भी स्त्री सदा अपनों के हाथों ही छली गई है.’’

‘‘आप क्या कहना चाहती हैं, दादी?’’

‘‘मैं सच कह रही हूं बिटिया, लगता है तुम इस गांव में नई आई हो?’’

‘‘हां दादी, प्यार अलग बात है, पर मुझे विश्वास ही नहीं होता कि कोई औरत अपनी मरजी से अपनी जान दे सकती है.’’

‘‘तू ठीक कह रही है, बेटी. मैं तुझे सचाई बताऊंगी पर पता नहीं तू भी औरों की तरह बात पर विश्वास करेगी या नहीं. मेरी बात पर किसी ने भी विश्वास नहीं किया, बल्कि पगली कह कर लोग सदा मेरा तिरस्कार ही करते रहे. सती रानी और कोई नहीं, मेरी अपनी बेटी सीता है.’’

‘‘आप की बेटी सीता?’’आश्चर्य से छवि ने कहा.

‘‘हां बेटी, मेरी बेटी, सीता. पिछले 40 वर्षों से मैं इसे न्याय दिलवाने के लिए भटक रही हूं पर कोई मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करता. इस के पति वीरेंद्र प्रताप सिंह की मृत्यु एक बीमारी में हो गई थी. उस समय यह पेट से थी. उस समय उस के जेठ को लगा भाई तो गया ही, अब दूसरे घर की यह लड़की उन की सारी संपत्ति में हिस्सा मांगेगी, इसलिए बलपूर्वक इसे अपने भाई की चिता के साथ जलने को मजबूर कर दिया. इस बात की खबर उस घर में काम करने वाली नौकरानी ने हमें दी थी. हम ने जब अपनी बात ठाकुर के सामने रखी तो वे आगबबूला हो गया. हम ने गांव वालों के सामने अपनी बात रखी तब ठाकुर के डर से किसी गांव वाले ने हमारा समर्थन नहीं किया. और तो और, नौकरानी भी अपनी बात से मुकर गई. जब मेरे पति और बेटे ने ठाकु र को देख लेने की धमकी दी तब ठाकुर ने न केवल मेरे पति बल्कि मेरे बेटे को भी अपने गुंडों के हाथों मरवा दिया. सबकुछ समाप्त हो गया बेटी.’’

‘‘दादी, वह दरिंदा कौन था?’’

‘‘ठाकुर राघवेंद्र प्रताप सिंह.’’

‘‘ठाकुर राघवेंद्र्र प्रताप सिंह?’’ सुन कर छवि स्तब्ध रह गई.

‘‘हां बेटी, वह दरिंदा ठाकुर राघवेंद्र प्रताप सिंह ही है जिस ने मेरी बेटी को मरने के लिए मजबूर किया. हमारे विरोध करने पर उस ने मेरे पूरे परिवार को मिटा डाला. मैं किसी तरह बच भागी तो मुझे पागल घोषित कर दिया.’’

‘‘दादाजी ने ऐसा किया, नहींनहीं. ऐसा नहीं हो सकता. मेरे दादाजी ऐसा नहीं कर सकते,’’ अचानक छवि के मुंह से निकला.

‘‘क्या तुम ठाकुर राघवेंद्र की पोती हो?’’ उस वृद्धा के चेहरे पर आश्चर्य झलका पर उस के उत्तर देने से पूर्र्व ही वह फिर कह उठी, ‘‘मैं जानती थी, तुम भी औरों की तरह मेरी बातों पर विश्वास नहीं करोगी. मुझ पर कोई विश्वास नहीं करता, सब मुझे पगली कहते हैं, पगली.’’

 

अट्टहास करती हुई वृद्धा उठी और टेढ़ेमेढे रास्तों में खो गई. वह वृद्धा सचमुच उसे पगली ही लगी. पर वह झूठ क्यों कहेगी. एक मां हो कर वह भला अपनी बेटी की छवि को धूमिल क्यों करेगी. किसी पर बेबुनियाद आरोप क्यों लगाएगी. यह नहीं हो सकता, अगर यह नहीं हो सकता तो आखिर सचाई क्या है? तभी पिछली सारी घटनाएं उस के मनमस्तिष्क में घूमघूम कर उस बुढि़या की बात की सत्यता का एहसास कराने लगीं.

नील भी यही कह रही थी कि सती दादी

हमारी छोटी दादी हैं तो क्या, दादाजी ने जायदाद के लिए अपने छोटे भाईर् की पत्नी को सती होने के लिए मजबूर किया. उन पर किसी को शक न हो, इसलिए उन्होंने सती दादी को इतना महिमामंडित कर दिया कि वहां हर वर्ष मेला लगने लगा. छवि का मन कल से भी ज्यादा अशांत हो गया था. दादाजी का एक वीभत्स चेहरा सामने आया था. एक दबंग और उस से भी अधिक लालची, जिस ने पैसों के लिए अपने ही छोटे भाई की गर्भवती पत्नी की जान ले ली. उस का मन किया कि जा कर सीधे दादाजी से पूछे पर उन से पूछने की हिम्मत नहीं थी. वे इतने रोबीले थे कि बच्चे, बड़े सभी उन से डरते थे. जमींदारी चली गई पर जमींदार होने का एहसास अभी भी बाकी था. वैसे भी, वे अपना गुनाह क्यों कुबूल करेंगे. जिस गुनाह को छिपाने के लिए उन्होंने छोटी दादी के घर वालों को मिटा डाला, गांव वालों का मुंह बंद कर दिया.

दादाजी से छवि का बात करना या बहस करना व्यर्थ था पर उस के जमीर ने उस का साथ नहीं दिया. वह अपने प्रश्नों का भंडार ले कर उन के कमरे की ओर गई. कमरे से आती आवाजों ने उसे चौकन्ना कर दिया. सुराग पाने की कोशिश में उस ने मोबाइल औन कर दिया- ‘‘ठाकुर साहब, संभालिए अपनी पोती को, आज जब वह गन्ने के खेत में थी तभी हम उस कम्मो को सताते हुए उधर से गुजरे. आप की बात मान कर हम ने कम्मो को लोगों की नजरों में डायन बना दिया है. कम्मो को मारते देख कर आप की पोती ने हमें मना किया. जब हम ने कहा कि वह डायन है तब उस ने कहा कि डायनवायन कोई नहीं होती, बच्चे उस की बुरी नजर के कारण नहीं बल्कि अन्य कारणों से मरे हैं. वह बड़ीबड़ी बातें कर रही थी. आज उसे मंदिर में उस बुढि़या से बातें करते भी देखा. अगर कुछ दिन और वह  यहां रही तो हमें डर है कि कहीं कम्मो का भेद न खुल जाए. आज तो कम्मो ने उस से बात नहीं की, कहीं…’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. ऐसा करो, कम्मो को समाप्त कर दो.’’

‘‘ आप क्या कह रहे हैं, ठाकुर साहब?’’

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं. मैं नहीं चाहता कि उस की वजह से हमारे चरित्र पर कोई दाग लगे. बस, इतना ध्यान रखना कि उस की मृत्यु एक हादसा लगे. इतना अभी रखो, बाद में और दूंगा.’’ दादाजी ने उस के हाथ में नोट की गड्डी रखते हुए कहा.

तो क्या दादाजी और कम्मो…पहले उसे भोगा, फिर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका. वह किसी को सचाई न बता पाए, इसलिए उसे डायन बना दिया. यह सुन कर वह अवाक रह गई. दरवाजा खुलने की आवाज ने उसे चैतन्य किया. वह ओट में खड़ी हो गई. दादाजी का एक अन्य घिनौना रूप उस के सामने था.

अवसर पा कर मां से बात कही तो वे एकदम घबरा गईं. उन्होंने इधरउधर देखा, फिर उस का हाथ पकड़ कर कोने में ले गईं और संयत हो कर बोलीं, ‘‘क्या बकवास कर रही है, छवि?’’

‘‘मां, आप का व्यवहार देख कर लग रहा है, मेरी बातों में सचाई है. कम्मो, वह वृद्ध औरत जो सीता दादी की मां है और जिसे सब पगली कहते हैं, ने मुझ से जो कुछ भी कहा, वह सच है.’’

हुंडई ग्रैंड आई 10 नियोस –सेफ्टी

हुंडई  ग्रैंड आई 10 नियोस की बात करें तो अभी तक हमने नियोस कार की बहुत सारे पार्ट्स के खासियत के बारे में जाना हैं. आज हम बात करेंगे नियोस के बॉडी के बारे में तो आईए जानते हैं क्यों खास है नियोस की बॉडी.

ग्रैंड आई 10 नियोस के बहुत सारे पार्टस स्टील के बने हुए हैं. लगभग इसका 65 प्रतिशत हिस्सा स्टील से बना हुआ है. इससे कार की वजन कम होती है और साथ ही साथ इसकी मजबूती भी बढ़ती है.
हुंडई ग्रैंड आई 10 नियोस में दो एयर बैग , ABS के साथ EBD और सीट-बेल्ट प्रेटेंसर भी उपलब्ध है. जो टकराव की स्थिति में यात्री की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है.

यह जानते हुए कि आप हमेशा हुंडई  ग्रैंड आई 10 नियोस में सुरक्षित हैं #MakesYouFeelAlive.

नदियों की पूजापाठ से रूकेगी बाढ़

जब ताली और थाली बजाने से कोरोना नहीं रोका जा सका तो नदियों की पूजा करके बाढ को कैसे रोका जा सकता है. इसका परिणाम यह होगा कि जनता अव्यवस्था और निकम्मेपन के लिये सरकार की जगह पर भाग्य या नियति को दोष दे सके.

बरसात के दिनों में नदियों के पानी से बाढ का खतरा कम करने के लियं बांध, तालाब और सहायक नदियों में पानी को छोडकर बाढ रोकने की बातें पुराने जमाने की है. 21 वीं सदी और कंप्यूटर युग में अब नदियों से होने वाली बाढ कोे रोकने के लिये उनकी पूजापाठ करने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश के जलमंत्री डाक्टर महेन्द्र सिंह ने सरकारी अफसरों को आदेश दिया किया है. अब हर षाम सिंचाई विभाग के लोग नदियों की पूजा करेगे. जिससे नदी खुश होगी और वह बाढ का पानी रोक लेगी. उत्तर प्रदेष सरकार में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री के रूप में अपने सरकारी आवास में गये तो वहां के शुद्वीकरण के लिये पूजापाठ हवन के साथ गंगा के जल से सफाई भी हुई.

जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद ऐसा करते हो और वह खुद मठ के पुजारी रहे हो वहां इस तरह के काम चैकानें वाले नहीं होते है.यह बात जरूर है कि ऐसे बहुत सारे कामों के बाद भी उत्तर प्रदेश के हालात जस के तस है. केवल उत्तर प्रदेश  सरकार ही नहीं भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार के केन्द्रीय मंत्री भी ऐसे टोटके कर चुके है. लडाकू विमान राफेल की खरीददारी के समय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का फोटो चर्चा में आया था. जिसमें राजनाथ सिंह लडाकू विमान राफेल के टायर के नीचे नारियल फोड कर पूजा करते है. राफेल की बौडी पर स्वास्तिक और ओम का निशान बना रहे थे. चीन के साथ तनातनी के समय एक कार्टून जारी हुआ था जिसमें राजनाथ सिंह को भारतचीन सीमा पर लगें कटीले तारों पर नींबू मिर्चा बांधते दिखाया गया था. कार्टून की बात को सच साबित करते हुये जब राजनाथ सिंह ने लेह में अपने दौरे के समय वहां बाबा बर्फानी के मंदिर में पूजा की और उन फोटो को पूरी प्रमुखता के साथ प्रसारित भी किया गया.

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ना ताली काम आई ना थाली:

भारत में इससे बडी घटनायें भी घट चुकी है. पूरा विश्व जब कोविड 19 के संक्रमण से गुजर रहा था. भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना को भगाने के लिये ताली, थाली और शंख बजाने के साथ ही साथ सरसों के तेल से 5 दीयें जलाने के लिये देष की जनता से कहा. देश के अधिकांश लोगों ने यह काम बडी हंसी खुशी से किया. मार्च के तीसरे सप्ताह में जब भारत में कारोना ने दस्तक दी थी तब कोरोना को रोकने के लिये यह काम किया गया. इसके बाद भी देश में करोना का फैलना जारी रहा. देश करोनो के रेस में सबसे उपर के देशों से मुकाबला करने लगा. करोनो ने देश की आर्थिक और सेहत दोनो स्तर पर बेहद नुकसान पहुंचाया. इस तरह के टोटको से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हा रहा. इसके बाद भी टोटके फैलाने का काम जारी है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह ने बाढ़ रोकने के लिए सिंचाई विभाग को उन नदियों की नियमित पूजा करने के निर्देश दिए हैं जहां जल स्तर बारिश के चलते हाल-फिलहाल में काफी बढ़ा है. नदियों की पूजा करने के साथ ही साथ उनको फूल भी अर्पित करने के लिये कहा गया. जलमंत्री महेन्द्र सिंह ने खुद भी बलरामपुर की राप्ती नदी के कटान स्थल बेलहा चरनगहिया गांव के पास राप्ती नदी की विधिवत पूजा पाठ किया. जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह ने कहा कि सभी नदियां मां के समान है. यह पूरी मानवता को जीवन प्रदान करती है. इनकी निर्मलता एवं पवित्रता बनाये रखने के लिए सभी लोगों को जागरूक करना चाहिए. जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने बताया कि नदियों की पूजा कोई नहीं परंपरा नहीं है. ऐसा नदियों के आसपास रहने वाले ग्रामीण भी लंबे समय से करते आ रहे हैं. हिंदू परंपरा में नदियों को देवी के तौर पर मानते हैं और उनकी पूजा भी की जाती है. बाढ़ पर काबू करने के लिए भी फील्ड स्टाफ को भी ग्रामीणों की ही नदियों की पूजा करनी चाहिए.

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जब पूजा ही करनी तो साधनों की क्या जरूरत ?

एक तरफ जल संसाधन मंत्री महेंद्र सिंह नदियों की पूजा करने को कहते है. दूसरी तरफ  602.86 लाख रुपये की लागत से तटबंध को बचाने के लिए जीओ बैग, परक्यूपाइन व पैचिंग कार्य करने के लिये भी कहा गया. अधिकारियों को निर्देश दिए कि तटबंध के संवेदनशील स्थानों पर कैम्प लगाकर 24 घंटे निगरानी रखी जाय. बाढ़ से संवेदनशील स्थलों व तटबंधों पर सीसीटीवी कैमरे व ड्रोन कैमरे से नजर भी रखी जाय. जलशक्ति मंत्री ने बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, बाराबंकी व सीतापुर के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण भी किया. सवाल उठता है अगर नदियों की पूजा से ही बाढ रूक सकती है तो यह पैसे खर्च करने और निगरानी की क्या जरूरत है ? मंत्री जी भी हवाई दौरे करके जनता के पैसे को क्यों बरबाद कर रहे है ? नदियों की पूजा से ही बाढ को रोक लिया जायेगा.

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अगर पूजापाठ से ही बाढ और आपदा रूकती तब तो धार्मिक स्थलों पर ऐसे संकट आने ही नहीं पडते. केदारनाथ मंदिर देश का सबसे शक्तिशाली मंदिर माना जाता है. वहां बाढ के पानी से हुई तबाही को कौन भूल सकता है ? कुंभ के दौरान तमाम ऐसे हादसे हो जाते है. जिनमें सैकडों की जान जाती है. तमाम मंदिरों में होने वाले हादसे नहीं होने चाहिये. बाढ का सबसे बडा कारण गंगा नदी होती है. गंगा के किनारे रिषीकेष से लेकर हरिद्वार और वाराणसी जैसी तमाम जगहांे पर गंगा की पूजा होती है. इसके बाद भी गंगा कई प्रदेष में बाढ का कारण बनती है. पूजापाठ से नदियों की बाढ रूक सकती है यह सबसे बडा भ्रम है. इसे केवल सरकार इसलिये फैला रही जिससे जनता बाढ के समय सरकार की व्यवस्था को नहीं अपने भाग्य को दोशी मान सके. बाढ की जिम्मेदारी जनता सरकार पर नहीं नियति पर डाल सके.

लड़की में क्या क्या ढूंढते हैं लड़के 

गुप्ता जी पिछले तीन साल से अपनी बेटी सोनिया की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. दर्जनों लड़के इन तीन सालों के दौरान सोनिया को देखने आये और अच्छी-भली लड़की को रिजेक्ट करके चले गए. चार्टर्ड अकाउंटेंट का कोर्स ख़त्म करने के बाद जब सोनिया की शादी की बात उठनी शुरू हुई थी, तो सोनिया कैसे शरमाई-लजाई मगर खुश दिखती थी, उसकी सारी सहेलियों की शादी हो चुकी थी, मगर उसकी जिद थी कि सीए की पढ़ाई पूरी करके ही शादी करेगी. पढ़ाई पूरी होते ही उसके माता पिता ने उसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया था, तमाम लड़के देखे, कितने परिवार उसके घर भी आये, और कई बार पब्लिक प्लेसेज पर भी सोनिया की दिखाई हुई मगर बात बनी नहीं. लड़के वाले कोई ना कोई नुक्स निकाल कर रिश्ता करने से मना कर देते थे. इन बीते तीन सालों में बार-बार रिजेक्ट होने के चलते सोनिया हताश हो गयी है, मुरझा सी गयी है, अवसाद ग्रस्त होने लगी है.

अब तो कोई उसको देखने आता है तो बड़े अनमने ढंग से तैयार होकर उनके सामने जाती है. उसका व्यवहार भी रूखा होता जा रहा है. उसके माता पिता बेटी की इस हालत से काफी चिंतित हैं. पता नहीं इसके भाग्य में शादी लिखी है या नहीं, पता नहीं कुंडली में कोई दोष हो, पता नहीं किसी ने जलन में कोई टोना टोटका करवा दिया हो, इन आशंकाओं से घिरे अब वो पंडितों-बाबाओं के चक्कर लगाने लगे हैं. इस चक्कर में जहां उनकी जमा पूंजी उड़ रही है, वहीँ सोनिया का व्यवहार इन सब बातों से और ज़्यादा नेगेटिव होता जा रहा है. वो सोचती है कि उसने थ्रू-आउट फर्स्ट डिवीज़न में अपनी पढ़ाई पूरी की, दिखने में भी ठीक ठाक है, कल को अच्छी नौकरी भी करेगी, फिर भी कोई उससे शादी के लिए हाँ क्यों नहीं बोल रहा है ?

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पहले जहां लड़के को लेकर सोनिया की अपनी कुछ चॉइसेस थीं, कि लड़के में ये होना चाहिए, वो होना चाहिए, वहीँ अब बार-बार ठुकराए जाने और अपने माता पिता की गहरी होती चिंताओं को देख कर वो सोचती है कि कोई भी, कैसा भी लड़का हो, चलेगा, बस कोई हाँ तो कर दे.

दरअसल सोनिया एक सीधी-सरल लड़की है. वो दिखावे और कृतिमता में कतई विश्वास नहीं करती है. वो सोचती है जैसी वो है, बस वैसी ही कोई उसको पसंद कर ले. इसलिए जब भी लड़के वाले आते हैं तो वो शालीन मगर साधारण तरीके से तैयार होकर उनके सामने प्रस्तुत होती है. सोनिया समझ नहीं रही है कि ये डिजिटल युग है. हर आदमी रंगीन परदे की चकमक और ग्लैमर को अपने स्मार्ट फ़ोन में समेटे घूम रहा है. दिन रात उन तस्वीरों से अपनी आँखें सेंकता है. सपने बुनता है. उस ग्लैमर में वो इतना रच बस गया है कि वास्तविक, सरल और साधारण चीज़ें उसको फूहड़ और पिछड़ी नज़र आती हैं. आजकल लड़के ही नहीं वरन उनके माँ बाप भी होने वाली बहू में कुछ एक्सट्रा आर्डिनरी खूबियां तलाशते हैं, भले वो आर्टिफिशल क्यों ना हों.

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दरअसल सोनिया के रिजेक्शन की बड़ी वजह है उसकी हाइट और साधारण तरीके से एक चोटी में गुंथे उसके बाल. सोनिया पांच फुट दो इंच लम्बी है. आमतौर पर भारत में लडकियां इसी लम्बाई की ही होती हैं, मगर ज़्यादातर लडकियां हाई हील में खुद को और लंबा शो करती हैं और लड़के उनकी इस कृतिम हाइट पर फ़िदा हो जाते हैं. वहीँ सोनिया ने आज तक हाई हील ट्राई ही नहीं की. वो साड़ी के नीचे भी फ्लैट चप्पल या सैंडल ही पहनती है. अपने घने, लम्बे और चमकीले बालों को वो हमेशा एक चोटी में गूंथ कर रखती है. जबकि फैशन है खुले लहराते बालों का. यही कुछ छोटे-मोटे कारण हैं कि लड़के वाले सोनिया को रिजेक्ट करके चले जाते हैं.

दरअसल कोई लड़का जब शादी के लिए लड़की देखने निकलता है तो आमतौर पर वो चार-पांच चीज़ें अपनी होने वाली बीवी में देखना चाहता है. पहली नज़र में वो कुछ बातें नोटिस करता है और अगर आप उन बातों में मात खा जाएँ तो आपको रिजेक्ट होने में देर नहीं लगेगी. क्या कभी आपने सोचा है कि पहली मुलाकात में पुरुष आपके बारे में क्या सोचते हैं? वह आपको किस रूप में देखते हैं?

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किसी ने कहा है ‘Human beings are visual beings’ यानी जिन लोगों से हम मिलते हैं, उनके शारीरिक हाव-भाव पर हमारा ध्यान सबसे पहले जाता है और ये बहुत स्वाभाविक है, कि जब हमें वो व्यक्ति शारीरिक रूप से आकर्षित करता है तभी आगे की बात बढ़ती है, अन्यथा वहीँ ख़त्म हो जाती है. आपकी पढ़ाई-लिखाई, गुण, आदतें, विचार, पैसा, बैंक बैलेंस ये सब तो बहुत बाद की बातें हैं. पुरुष जब पहली बार किसी महिला से मिलता है तो वह उसकी कुछ शारीरिक बातों की तरफ ही सबसे ज्यादा आकर्षित होता है. जी हां, यह बात सुनने ने जरूर अटपटी लग सकती है, लेकिन ऐसा सच है. पुरुष कुछ बेहद छोटी-छोटी बातों को नोटिस करते हैं. और इन्ही बातों पर उनकी हाँ-ना टिकी होती है. आपकी शानदार उपस्थिति के अलावा, आपकी समझदारी, बॉडी लैंग्वेज, मुस्कान, आँखें, लम्बाई यहां तक कि पुरुष आपके बालों को भी नोटिस करते हैं. पहली बार लड़की देखने जा रहे लड़के मन ही मन इन्ही चीज़ों को सोचते हैं, हालांकि वे कभी बताते नहीं हैं. हम आपको बताते हैं वो पांच बातें, जो लड़की देखने जा रहा लड़का जरूर नोटिस करता है. अगर आप भी इन पांच बातों का ख्याल रखें तो मजाल है कि कोई आपका रिश्ता ठुकरा दे.

आपकी लम्बाई

अधिकांश पुरुष उन महिलाओं से दूर भागते हैं जो उनसे बहुत ज्यादा लंबी या छोटी होती हैं. पहली मीटिंग में लड़के ज्यादातर लड़कियों की हाइट पर ध्यान देते हैं. लड़के उन्हीं लड़कियों की तरफ सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं, जिनकी लंबाई उनके समान हो. या लड़की कम से कम उनकी गर्दन तक तो ज़रूर हो. इसलिए शादी के लिए लड़के वाले आ रहे हों तो लड़के की हाइट पहले से पता कर लें और उसी के मुताबिक़ हाई हील सैंडल का चुनाव करके खुद को तैयार करें. अगर लड़के की हाइट कम है तो हाई हील हरगिज़ ना पहने क्योंकि लड़के कभी भी ये नहीं चाहते कि लड़की की लम्बाई उससे ज़्यादा निकली हुई हो. हालांकि, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि लंबी लड़कियों की तरफ लड़के आकर्षित नहीं होते या छोटी हाइट वाली लड़कियां उन्हें नहीं भातीं, लेकिन यह पूरी तरह सभी की पसंद-नापसंद पर निर्भर करता है.

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आपकी मुस्कान

किसी ने ठीक ही कहा है कि एक खूबसूरत मुस्कान किसी का भी दिल जीत सकती है. जी हां, जो महिलाएं मुस्कुराती हैं, उन्हें काफी आकर्षक माना जाता है. शायद यही एक कारण भी है कि ऐसी महिलाओं से पुरुषों को बात करने में काफी आसानी होती हैं. ऐसे में अगर आपको लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो अपनी मुस्कान के साथ पर्सनालिटी का भी ध्यान रखें. ना बहुत ज़्यादा मुस्कुराएं और ना होंठ सी कर बैठें. आपके चेहरे की लज्जाशील मुस्कराहट किसी का भी दिल जीत लेगी, इसलिए हल्की मुस्कान ज़रूर ओढ़े रहें.

आपकी आंखें

आप एक व्यक्ति की आंखों में देखकर उनके बारे में बहुत कुछ पता लगा सकते हैं. यही नहीं, आंखें एक चुंबक की तरह हैं जो किसी भी अजनबी को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं. ऐसे में ज्यादातर पुरुष एक महिला की आंखों में देखने का जरूर प्रयास करते हैं. वे बातचीत के दौरान आपकी आंखों में देख कर यह जानने की कोशिश करते हैं कि आप उनको कैसे फील कर रही हैं. आपकी आँखों में उनके लिए प्यार और विश्वास है कि नहीं. ऐसे में बाकी बॉडी पार्ट्स की तरह अपनी आंखों पर भी विशेष ध्यान दें. आपकी आँखें छोटी-बड़ी जैसी भी हों, उन्हें मेकअप के जरिये थोड़ा और आकर्षक बनाएं. काजल, मकसारा और आई लाइनर ये तो अब रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें हैं, इनसे परहेज़ ना करें. आँखों को साफ़ भी रखें. ऐसा न हों कि उनसे बात करते-करते आपकी आईज के साइड बट्स पर जमा मैल उनको नज़र आ जाए और बनती बात बिगड़ जाए.

आपकी ड्रेसिंग स्टाइल

यह आपको थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन ऐसा सच है कि लड़के ज्यादातर लड़कियों को उनकी ड्रेसिंग स्टाइल से भी जज करते हैं. हालांकि, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आपने फर्स्ट मीटिंग में इम्प्रेस करने के लिए एक सुपर हॉट ड्रेस चुन ली, या जो ड्रेस आपने चुनी है उसका रंग आपके टैक्सचर पर बिल्कुल भी सूट ना करे. ऐसे में वहां बात बनने से पहले ही बिगड़ जाएगी. हर लड़की को पता होता है कि उस पर सबसे ज़्यादा कौन सा रंग खिलता है. कौन से कलर में उनका शरीर आकर्षक दिखता है. तो जिस रंग को लेकर आप पहले से कॉन्फिडेंट हैं, उसी रंग की पोशाक ट्राई करें. किसी और के कहने पर कोई भड़काऊ रंग के कपड़े ना पहने. जिसके बारे में आपको पहले से पता है कि ये कलर आपको सूट करता है तो उसमे आपका आत्मविश्वास जागेगा, जो आपकी बॉडी लैंग्वेज में भी पता चलेगा और आपकी आँखों से भी छलकेगा.

हमारी इस बात को गांठ बांध लीजिए कि एक आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्ति सबसे अधिक आकर्षक लगता है. यदि आप फुल कॉन्फिडेंस के साथ बातचीत करती हैं या उनकी हर बात बेबाक तरीके से जवाब देती हैं तो आपकी बात बनना तो पक्का है. कोई कैसे आपको रिजेक्ट कर सकता है ?

कर्नाटका में कथित बाइक छूने भर से दलित व्यक्ति की पिटाई, निर्वस्त्र किया

देश में आजादी का मतलब महज सरकार चुनने भर से नहीं है बल्कि देश में किसी नागरिक द्वारा सम्मानपूर्वक जीवन जीने से भी है. पिछले कुछ समय से जाति और धर्म आधारित भेदभाव देखने को खूब मिल रहे हैं. जहां जाति धर्म के आधार पर एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को कुचलते हुए देखा जा सकता है. और सरकार इन मामलों में सिर्फ ओपचारिक बयान देने के अलावा मूलभूत कदम नहीं उठा रही है.

शनिवार, 18 जुलाई को कर्नाटका में फिर से दलित उत्पीडन की घटना सामने आई है. यह घटना कर्नाटका के बिजयपुर की है जो राज्य की राजधानी बैंगलोर से लगभग 530 किलोमीटर दूर है. खबर के अनुसार दलित व्यक्ति व उसके परिवारजन को ऊँची जाति के लोगों ने बुरी तरह से पीटा. गुस्से में भीड़ ने पीड़ित व्यक्ति को न सिर्फ पीटा बल्कि उसे निर्वस्त्र भी किया.

इस घटना की 32 सेकंड की वीडियो सोशल मीडिया में भी वायरल हुई है जिसमें साफ़ दिख रहा है कि कुछ लोग पीड़ित व्यक्ति को पेरों से पकड़ कर घसीट रहे हैं. अन्य उसे निर्वस्त्र कर रहे हैं. वीडियो में देखा जा सकता हैं कि दो लोग पीड़ित व्यक्ति के मुह पर चप्पलों, लातों और शरीर पर डंडों से हमला कर रहे हैं.

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पूरा मामला क्या है?

यह घटना तालीकोट के मीनाजी गांव की है. जहां पर दलित सख्स की पिटाई की गई. आरोप है कि पीड़ित व्यक्ति ने कथित तौर पर उंची जाति के व्यक्ति की बाइक को छू दिया था जिसके बाद उसकी और उसके परिवार वालों की 13 व्यक्तियों ने बुरी तरह पिटाई कर दी.

घटना के बाद पीड़ित व्यक्ति पुलिस स्टेशन पहुंचा और अपने ऊपर हुए हमले की जानकारी दी. इस मामले में जो शिकायत दर्ज की गई उसमें 13 लोगों के नाम दर्ज किये गए हैं. केस एससी/एसटी एक्ट और आईपीसी की धारा-143, 147, 324, 354, 504, 506 और 149 के तहत दर्ज किया गया है. जिसमें कुछ आरोपियों से पूछताछ चल रही है.

एनडीटीवी ने इस घटना पर पुलिस ऑफिसर अनुपम अग्रवाल से बात की तो उन्होंने बताया कि “उत्पीडन की यह घटना शनिवार की है जिसमें मीनाजी गांव के एक दलित व्यक्ति को प्रताड़ित किया गया. आरोप है कि जब उसने गलती से ऊँची जाति के व्यक्ति की बाइक छुई तो उसके और उसके परिवार जन को पीता गया.”

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राज्य में दलितों पर हमले के मामले बढ़े हैं

यह राज्य का कोई पहला मामला नहीं है जब किसी दलित को ऐसे पीटा गया हो. राज्य में दलितों को लेकर मामलों में बढ़ोतरी दिख रही है. पिछले साल 3 जून को प्रताप नाम के युवक, जो गुन्द्लुपेट इलाके का रहने वाला था, को मंदिर में घुसने को लेकर बुरी तरह पीटा गया. उसे पीटने वाले ठोक पीट कर कहते रहे कि उसने मंदिर में घुस कर स्थान को अपवित्र कर दिया है. पीड़ित युवक जिस समुदाय से था वह होलेया समुदाय था जो एससी केटगरी में आता है. उसके हाथों को बुरी तरह से जख्मी किया गया यह कहा कर कि इसी से इसने मंदिर को छुआ. उसके कपडे फाड़े गए और सबक सिखाने के लिए उसे गांव में नंगा घुमाया गया.

इसी प्रकार हरामागाथा गांव में भी दलित उत्पीडन की घटना सामने आई थी. जिसमें ऊँची जाति के समूह ने दलित बस्ती में घुस कर दलित युवकों पीट दिया था. यह घटना दलित युवक के मंदिर में भगवान् पर फूल चढाने के बाद शुरू हुई. पहले युवक को मोके पर पीटा गया उसके बाद उसके बस्ती में घुसकर भी दुकानों में तोड़फोड़ किया और आंबेडकर के पोस्टर फाड़े गए. और वहां के 3 दलित युवाओं को पीटा गया. वहीँ पिछले साल ही अप्रैल में एक युवक को महज इसलिए पीट दिया गया कि वह नहाने के लिए उस नदी में गया जिसमें ऊँची जाति के लोग नहाते थे. कथित आरोपियों ने उस कारण 3 बार उस दलित व्यक्ति की पिटाई की.

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यह कुछ घटनाए हैं जो राज्य के हाल बताने के लिए काफी हैं, इसके अलावा ऐसे कई मामले है जिन्हें देख कर समझा जा सकता है कि आज भी दलितों पर अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. इसे समझने के लिए एनसीआरबी 2017 के आकड़ों को देखा जा सकता है. इन आकड़ों में देश में बढ़ते दलित उत्पीडन साफ दिख जाएगा. जिसमें सबसे आपत्तिजनक मामले कर्नाटका राज्य से सामने आए थे.

एनसीआरबी के आकडे, 2017

एनसीआरबी के आकड़ों के अनुसार पुरे देश में 2017 में 5,775 एससी/एसटी उत्पीडन के मामले दर्ज किये गए, जिनमें 3,172 मामले यानी 55 फीसदी “जानबूझ कर अपमान करना या इरादे से अपमानित करने” से जुड़े रहे. 47 मामले ऐसे थे जिनमें दलितों के “जमीन पर कब्ज़ा” किया गया. 63 मामले ऐसे थे जिसमें दलितों का “सामाजिक बहिष्कार” किया गया. 12 मामले ऐसे थे जिसमें दलितों को “सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल” करने से रोका गया. कर्नाटका राज्य एससी/एसटी नागरिकों पर उत्पीडन में पहले स्थान पर था.

इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश में उस साल 2309 मामले दर्ज किये गए थे. जिसमें पीड़ितों की संख्या 2358 थी. इस हिसाब से उत्तरप्रदेश में एससी/एसटी पर उत्पीडन का दर 5.6 प्रति 1 लाख आबादी रही.

उसी साल कर्नाटका में वैसे तो 1298 मामले दर्ज किये गए, जिनमें पीड़ितों की संख्या 1520 थी. इन मामलों में से 1175 ऐसे मामले थे जो जानबूझ कर अपमान करने से जुड़े हुए थे. सबसे अधिक 16 मामले जमीन कब्जाने से जुड़े थे. इस हिसाब से कर्नाटका में एससी/एसटी पर उत्पीडन का दर 12.8 प्रति 1 लाख आबादी थी. एनसीआरबी की रिपोर्ट यह भी बताती है कि एससी/एसटी उत्पीडन के मामले कर्नाटका राज्य में सबसे ज्याद रिकॉर्ड किये गए हैं. यह भी देखने की जरुरत है कि ऐसे अनेकों दलित उत्पीडन के मामले है जो न तो एनसीआरबी में दर्ज हो पाते हैं न थानों में, और न मीडिया के द्वारा सामने आ पाते हैं.

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यह आकडे बताते है कि राज्य में दलित उत्पीडन की घटनाए लगातार बढती रहीं है. जिसमें साल दर साल बढ़ोतरी हुई है. इसका ताजा उदाहरण अब 18 जुलाई को विजयपुर सामने आया है. जहां पर दलित युवक को निर्वस्त्र कर घसीट कर पीटा गया.

कब तक चलेगा यह भेदभाव

आंबेडकर ने कहा था कि “छुआछुत की जड़ें जाति व्यवस्था में है, जाति व्यवस्था की जड़ें वर्ण व्यवस्था में है, और वर्ण व्यवस्था की जड़ें राजनीतिक ताकत में हैं.” इसे संक्षेप में समझने का प्रयास करें तो आंबेडकर यह बताने की कोशिश कर रहे थे की जाति व्यवस्था को बनाए रखने का मूल कारण राजनितिक संरक्षण है और जिस समुदाय के पास यह ताकत होती है वह उसी के हितों को साधते हैं.

आज हकीकत यह है कि देश में अधिकतर जनप्रतिनिधि निगम पार्षद, एमएलए, सांसद सवर्ण जाति से संबंध रखते हैं. जो ओनेपाने एससी/एसटी/बीसी के प्रतिनिधि विधानसभा और सांसदों के दहलीज तक पहुँचते भी है तो वे संवेधानिक ओपचारिकता से ही पहुँचते हैं या दलित वोटों को साधने की मजबूरी को लेकर.

प्रधानमंत्री मोदी जब 2014 में सत्ता में आए तो वे “अच्छे दिन” और “शाइन इंडिया” के नारों के साथ आए थे. क्या यही वो शाइन इंडिया या अच्छे दिन है जिसकी भाजपा पार्टी बात कर रही थी. देश की जनता इन नारों के पीछे उस छलावे को समझ नहीं पाई जिसमें मनुवाद को स्थापित करने, मुस्लिमों से नफरत और महिलाओं के शोषण पर आधारित ब्राह्मणवादी विचारधारा थी. आज जब पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है तो देश इन घटनाओं से शर्मशार हो रहा है.

आज पुरे देश में दलितों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं. सरकार एससी/एसटी एक्ट को कमजोर कर रही है. ज़ाहिर सी बात है जब सत्ता में बैठे हुए नेता ही जातिवादी, सांप्रदायिकता और मनु को मानने वाले होंगे तो उनके समर्थक भी उसी मानसिकता से प्रेरित होंगे. जब तक मनुस्मृति को मानने वाले सत्ता में बेठे रहेंगे तब तक देश में यह घटनाएं रुकेंगी नहीं. आज भारत में ऐसे हमले होना अनायास नहीं है, बल्कि इसके पीछे बदलता राजनीतिक परिदृश्य है. जो हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं जो नए या ऐसे भारत का एहसास करवा रहा है जिसमें लोकतंत्र, बराबरी और धर्मनिरपेक्षता कमजोर होती दिखाई दे रही है.

क्वारंटाइन पीरियड तोड़ने को लेकर ट्रोल हुईं सोनम कपूर को ऐसे दिया करारा जवाब

बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर कोरोना टाइम में कुछ दिनों तक अपने पति के साथ दिल्ली में थी फिर कुछ दिनों तक मुंबई में कुछ समय बीताने के बाद अपने पति आनंद आहूजा के साथ लंदन रवाना हो गई थीं. वहां जाकर सोनम ने 14 दिनों तक खुद को क्वारंटाइन रखा था.

दरअसल इस कोरोना समय में अगर आप कही भी बाहर यात्रा पर जा रहे हैं तो वहां पहुंचने के बाद सेल्फ क्वारंटाइन करीब 14 दिनों तक खुद को रखना होगा. इसके बाद आप कोई काम कर पाएंगे.

सोनम कपूर के विदेश जानें वाले यात्रा पर लोग कई तरह के प्रतिक्रिया दे रहे हैं वहीं सोनम ने इसी बीच अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो पर शेयर किया है जिसमें वह गार्डेन में बैठी हुई हैं और चिडियों के चहचहाने की आवाज आ रही है.

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सोनम के इस वीडियो को देखने के बाद लोगों का कहना है कि वह उन्होंने कोरोना के नियम का पालन नहीं किया है कोरोना के नियम का उल्धंन किया है. जिसपर सोनम ने भी यूजर्स का करारा जवाब दिया है.

सोनम ने कहा है कि मैं अपने घर पर हूम यह मेरे घर का गार्डेन है. जिसमें मैं बेठी हूं लोगों के पास बहुत टाइम हैं अनदेखा करें.

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बता दें फिलहाल सोनम अपने कोई प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर रही हैं. सोनम लास्ट टाइम दलकीर सलमान की फिल्म जोया फैक्टर में नजर आई थी. जिसमें इनके कारिदार को लोगों ने खूब पसंद किया था.

सोनम कपूर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर खूब एक्टिव रहती हैं. अपनी हर एक सूचना फैंस तक पहुंचाती रहती हैं. सोनम अपने परिवार के साथ भी कई बार क्वालिटी टाइम स्पेंड करती नजर आती रहती हैं.

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सोनम अपने पापा की लाडली है. आए दिन अपने पापा को सरप्राइज देती रहती हैं. कई पर टीवी शोज में भी दोनों को साथ में देखा जाता है. इस बाप- बेटी की जोड़ी को लोग खूब पसंद करते हैं.

सही वसीयत-सावित्री की मौत का क्या कारण : भाग 1

हरीश बाबू और उन की पत्नी सावित्री सरकारी मुलाजिम थे. रुपए पैसों की कोई कमी नहीं थी, मगर निसंतान होने की कसक दोनों को हमेशा रहती. हरीश बाबू का साला सुधीर उन के करीब ही किराए के मकान में रहता था. उस की माली हालत ठीक न थी. उस का 4 वर्षीय बेटा सुमंत हरीश बाबू से घुलामिला था. एक तरह से दोनों की जिंदगी में निसंतान न होने के चलते जो शून्यता थी वह काफी हद तक सुमंत से भर जाती. हरीश बाबू अकसर सुमंत को अपने घर ले आते. कंधे पर बिठा कर बाजार ले जाते. उस की हर फरमाइश पूरी करते. उस की हर खुशी में वे अपनी खुशी तलाशते. सावित्री भी सुमंत के बगैर एक पल न रह पाती. दोनों सुमंत की थका देने वाली धमाचौकड़ी पर जरा भी उफ न करते. वहीं सुधीर व सुनीता, उस की बेजा हरकतों के लिए उसे डांटते, ‘‘जाओ फूफाजी के पास. वही तुम्हारी शैतानी बरदाश्त करेंगे.’’ एक दिन सुनीता सुमंत पर चिल्ला रही थी कि तभी हरीश बाबू उन के घर में घुसे. उन्हें देख कर सुमंत लपक कर उन की गोद में चढ़ गया.

‘‘बच्चे को डांट क्यों रही हो?’’ हरीश बाबू रोष से बोले.

‘‘आप के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है. हर समय कोई न कोई फरमाइश करता रहता है. आप तो जानते हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति क्या है. उस की जरूरतों को पूरा करना हमारे वश में नहीं है,’’ सुधीर का भी मूड खराब था. उस रोज हरीश बाबू निराश घर आए. सावित्री से कहा, ‘‘अब वे सुमंत को नहीं लाएंगे.’’

‘‘क्यों, कुछ हो गया,’’ सावित्री आशंकित स्वर में बोली.

‘‘सुधीर को बुरा लगता है.’’

‘‘वह क्यों बुरा मानेगा? आप ही को कोई गलतफहमी हुई है. वह मेरा भाई है. मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूं,’’ हंस कर सावित्री ने टाला.

2 दिन सुमंत नहीं आया. दोनों बेचैन हो उठे. उन का किसी काम में मन नहीं लग रहा था. बारबार ध्यान सुमंत पर चला जाता. हरीश बाबू से कहते नहीं बन रहा था, गैर के बेटे पर क्या हक? सावित्री, हरीश बाबू का मुंह देख रही थी. वह उन की पहल का इंतजार कर रही थी. जब उसे लगा कि वे संकोच कर रहे हैं तो उठी, ‘‘मैं सुधीर के घर जा रही हूं.’’

‘‘जाने की कोई जरूरत नहीं,’’ उन्होंने रोका.

‘‘आप भी बच्चों की तरह रूठ जाते हैं. वह मेरा भाई है. आप न जाएं, मैं तो जा सकती हूं,’’ कह कर वह निकलने लगी.

‘‘सुमंत को लाने की कोई जरूरत नहीं,’’ हरीश बाबू ने बेमन से कहा. पर सावित्री ने उन के भीतर छिपे भावों को पढ़ लिया. वह मंदमंद मुसकराने लगी.

‘‘आप सच कह रहे हैं?’’ सावित्री ने रुक कर पूछा तो हरीश बाबू नजरें चुराने लगे. तभी फाटक पर किसी की आहट हुई. सुमंत, सुधीर की उंगली पकड़ कर अंदर घुसा. जैसे ही उस की नजर हरीश बाबू पर पड़ी, उंगली छुड़ा कर तेजी से भागा. हरीश बाबू उस की बोली सुनते ही भावविभोर हो गए. झट से उठ कर उसे गोद में उठा लिया.

‘‘आप के पास आने की जिद कर रहा था. रोरो कर इस का बुरा हाल था,’’ सुधीर थोड़ा नाराज था.

‘‘तो भेज देता. बच्चों को कोई बांध सकता है,’’ सावित्री रुष्ट स्वर में बोली. सुधीर बिना कोई प्रतिक्रिया जताए चला गया. हरीश बाबू, सुमंत के साथ 2 दिनों की कसर निकालने लगे. खूब मौजमस्ती की दोनों ने. हरीश बाबू ने उस के लिए बाजार से बड़ी मोटर खरीदी. सावित्री ने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया. आइसक्रीम की जिद की तो वह भी दिलवाई. थक गया तो अपने सीने से लगा कर थपकी दे कर सुलाया. शाम को सुनीता आई. तब वह अपने घर गया. वह तब भी नहीं जा रहा था, कहने लगा, ‘‘मम्मी, तुम भी यहीं रहो.’’ लेकिन सुनीता किसी तरह से उसे पुचकार कर घर ले गई.

उस के जाते ही फिर वही उदासी, अकेलापन. हरीश बाबू और सावित्री के पास करने को कुछ था नहीं. साफसफाई का काम नौकरानी कर जाती. सिर्फ खाना बनाना भर रह जाता. हरीश बाबू का काम ऐसा था कि वे बहुत कम औफिस जाते. वहीं सावित्री के स्कूल की 2 बजे तक छुट्टी हो जाती. उस के बाद शुरू होती सुमंत की तलब. सुमंत आता, तो घर में चहलपहल हो जाती.

एक दिन हरीश बाबू सावित्री से बोले, ‘‘सावित्री, बुढ़ापे के लिए कुछ सोचा है. 15 साल बाद हम रिटायर हो जाएंगे. फिर कैसे कटेगी बिना औलाद के जिंदगी? अकेला घर काटने को दौड़ेगा?’’

‘‘तब की तब देखी जाएगी. उस के लिए अभी से क्या सोचना?’’ सावित्री ने टालने के अंदाज में कहा.

हरीश बाबू कुछ सोचने लगे. क्षणिक विचारप्रक्रिया से उबरने के बाद बोले, ‘‘क्यों न हम सुमंत को गोद ले लें?’’

‘‘खयाल तो अच्छा है, पर सुधीर तैयार होगा?’’ सावित्री बोली.

‘‘उसे तुम तैयार करोगी,’’ कह कर हरीश बाबू चुप हो गए. सावित्री ने अनुभव किया कि वे कुछ और कहना चाह रहे थे, पर संकोचवश कह नहीं रहे थे. सावित्री ने ही पहल की, ‘‘आप कुछ और कहना चाह रहे थे?’’

Crime Story: मौत की गहरी चाल

झारखंड के रांची जिले के कस्बा अरगोड़ा की 33 वर्षीय अंजलि उर्फ विनीता तिर्की पति मुंसिफ खान के साथ किराए के मकान में रहती थी. दोनों ने कई साल पहले प्रेम विवाह किया था. हालांकि अंजलि पहले से शादीशुदा थी. पहला पति रमन सिमडेगा शहर के सलगापुर गांव में अपने दोनों बच्चों के साथ रहता था. रमन मानसिक रूप से अस्वस्थ था.

स्वच्छंदता और आधुनिकता का अंजलि पर ऐसा रंग चढ़ा कि पति और बच्चों को छोड़ कर वह अरगोड़ा के मोहल्ला महावीर नगर में प्रेमी से पति बने मुंसिफ खान के साथ आ कर बस गई थी.

ऐसे में जब बच्चों की ममता अंजलि को तड़पाती थी तब वह बच्चों से मिलने चली जाया करती थी. एकदो दिन उन के पास बिता कर फिर महावीर नगर मुंसिफ खान के पास चली आती थी.

वर्षों से अंजलि और मुंसिफ खान दोनों साथ मिल कर सूद पर रुपए बांटने का धंधा करते थे. सूद के कारोबार में उन के लाखों रुपए बाजार में फंस चुके थे. इस के बावजूद भी उन्हें इस धंधे में बड़ा मुनाफा हो रहा था. सूद के साथसाथ उन्होंने जुए का भी धंधा शुरू कर दिया था. जुए के धंधे ने उन के बिजनैस में चारचांद लगा दिए. दिन दूनी, रात चौगुनी आमदनी उन्हें हो रही थी.

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अंजलि एक बेहद खूबसूरत और चंचल किस्म की महिला थी. महिला हो कर भी उस ने एक ऐसे धंधे में अपने पांव पसार दिए थे जहां ग्राहक घड़ी दर घड़ी औरतों को भूखे भेडि़ए की नजरों से घूरते हैं. ऐसे में अंजलि ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ जैसा व्यवहार रखती थी. पते की बात तो यह थी कि सूद और जुए का धंधा तो गंदा जरूर था पर अंजलि चरित्र के मामले में बेहद पाकसाफ और सतर्क रहती थी. बुरी नजरों से देखने वालों के साथ वह सख्ती से पेश आती थी.

बहरहाल, अंजलि और मुंसिफ खान के धंधे में साथ देने वालों में कई नाम शुमार थे. जिन में फिरदौस रसीद और आरती के नाम मुख्य थे. फिरदौस रसीद और आरती दोनों ही लोअर बाजार इलाके के कलालटोली चर्च रोड मोहल्ले में अगलबगल रहते थे.

धंधे की वजह से फिरदौस और आरती का अंजलि के यहां आनाजाना लगा रहता था. जिस की वजह से दोनों पर अंजलि अंधा विश्वास करती थी. कभीकभी वह अपना धंधा फिरदौस और आरती के भरोसे छोड़ जाती थी. ईमानदारी के साथ वे दोनों धंधा करते और सही हिसाब उन्हें सौंप देते थे.

बात 25 दिसंबर, 2019 की है. अंजलि शाम करीब साढ़े 6 बजे घर से किसी काम से अपनी आल्टो 800 कार ले कर निकली. कई घंटे बीत जाने के बाद भी न तो उस का फोन आया और न ही वह घर लौटी. जबकि घर से निकलते वक्त वह पति मुंसिफ खान से कह गई थी कि जल्द ही लौट कर आ जाएगी. उस के जाने के बाद मुंसिफ भी थोड़ी देर के लिए बाजार टहलने निकल गया था.

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करीब 2 घंटे बाद जब वह बाजार से घर लौटा तो अंजलि तब तक घर नहीं लौटी थी. ये देख कर वह परेशान हो गया. मुंसिफ खान ने अंजलि के मोबाइल फोन पर काल की तो उस का फोन बंद आ रहा था. यह देख कर वह और भी हैरान हो गया कि उस का फोन बंद क्यों आ रहा है? क्योंकि वह कभी भी फोन बंद नहीं रखती थी.

रात भर ढूंढता रहा मुंसिफ खान

बारबार फोन स्विच्ड औफ आने से मुंसिफ खान बहुत परेशान हो गया था. पहली बार ऐसा हुआ था जब अंजलि का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. मुंसिफ ने अपने जानपहचान वालों को फोन कर के अंजलि के बारे में पता किया, लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस के बाद मुंसिफ को यह बात खटकने लगी कि कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच की बात तो नहीं हो गई.

अंजलि की तलाश में मुंसिफ खान ने पूरी रात यहांवहां ढूंढ़ते हुए बिता दी, लेकिन उस का पता नहीं चला. अगली सुबह मुंसिफ थकामांदा घर पहुंचा तो दरवाजा देख कर आश्चर्य के मारे उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस के कमरे का ताला टूटा हुआ था. कमरे के भीतर रखी अलमारी के दोनों पाट खुले हुए थे और अलमारी का सारा सामान फर्श पर बिखरा हुआ था.

अलमारी की हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी को अलमारी में किसी खास चीज की तलाश थी और उस व्यक्ति को पता था कि वह खास चीज इसी अलमारी में है, इसीलिए उस ने अलमारी के अलावा घर में रखी किसी भी वस्तु को हाथ नहीं लगाया था. मुंसिफ अंजलि को ले कर पहले से ही परेशान था, ऊपर से एक और मुसीबत ने दस्तक दे कर परेशानी और बढ़ा दी थी. मुंसिफ ने जब अलमारी चैक की तो उस में रखी ज्वैलरी और रुपए गायब थे. ये सोच कर वह परेशान था कि यह किस की हरकत हो सकती है?

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मुंसिफ को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? किस के पास जाए? इसी उलझन में डूबे हुए कब दिन के 11 बज गए उसे पता ही नहीं चला. उसी समय उस ने अपना व्हाट्सएप यह सोच कर औन किया कि अंजलि के बारे में कहीं कोई सूचना तो नहीं आई है. एकएक कर के ग्रुप में आए मैसेज को सरसरी निगाहों से वह देखता चला गया.

एक मैसेज पर जा कर उस की नजर ठहर गई. मैसेज में एक महिला की बुरी तरह जली लाश की फोटो पोस्ट की गई थी. लाश झुलसी हुई थी इसलिए पहचान में नहीं आ रही थी. वह लाश खूंटी थाना क्षेत्र में कालामाटी के तिरिल टोली गांव के एक खेत से मिली थी. उस मैसेज में लाश का जो हुलिया दिया गया था, वह उस की पत्नी अंजलि की कदकाठी से काफी मेल खाता हुआ नजर आ रहा था.

मैसेज पढ़ कर मुंसिफ खान दंग रह गया था. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. अंजलि को ले कर उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे. मैसेज पढ़ कर मुंसिफ जल्द ही बाइक से खूंटी की तरफ रवाना हो गया. रांची से खूंटी करीब 50-60 किलोमीटर दूर था. तेज गति से बाइक चला का मुंसिफ खान करीब एक घंटे में वह खूंटी थाना पहुंच गया था. उस ने थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो से मुलाकात की.

थानाप्रभारी ने अपने मोबाइल द्वारा उस लाश के खींचे गए फोटो मुंसिफ को दिखाए. फोटो देख कर मुंसिफ की सारी आशंका दूर हो गई क्योंकि लाश उस की पत्नी अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की ही थी. हत्यारों ने बेरहमी से उसे जला दिया था. थानाप्रभारी को इस बात की आशंका थी कि कहीं अंजलि के साथ रेप कर के उस की हत्या तो नहीं कर दी.

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थानाप्रभारी ने मुंसिफ से बात की तो उन्हें मुंसिफ की बातों और बौडी लैंग्वेज से उसी पर शक हो रहा था. उन्हें लग रहा था कि कहीं इसी ने तो अपनी पत्नी की हत्या कर के लाश यहां फेंक दी हो और पुलिस से बचने का नाटक कर रहा हो. इसी आशंका के मद्देनजर थानाप्रभारी टोप्पो ने मुंसिफ खान को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उस से की गई लंबी पूछताछ के बाद पुलिस को उस से कुछ भी हासिल नहीं हुआ.

पूछताछ में उस ने बताया कि अंजलि उस की पत्नी थी. दोनों 10 सालों से दीया और बाती की तरह घुलमिल कर रहते थे. दोनों ने प्रेम विवाह किया था. उन का जीवन खुशहाली में बीत रहा था, तो वो भला पत्नी की हत्या क्यों करेगा.

उस की यह बात सुन कर थानाप्रभारी भी सोच में पड़ गए कि वह जो कह रहा है, सच हो सकता है. इसलिए उन्होंने कुछ हिदायत दे कर उसे छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 27 दिसंबर, 2019 को अंजलि उर्फ विनीता तिर्की की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस के पास आ चुकी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि मृतका के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया था. रिपोर्ट में यह जरूरी उल्लेख किया गया था कि मृतका की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद बदमाशों ने लाश पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा थी.

एसपी ने संभाली कमान

अंजलि उर्फ विनीता तिर्की हत्याकांड की मानिटरिंग एसपी आशुतोष शेखर कर रहे थे. उन्होंने घटना के खुलासे के लिए एसडीपीओ आशीष कुमार के नेतृत्व में एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी टीम) का गठन किया. उस टीम में इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी, दिग्विजय सिंह, राजेश प्रसाद रजक, खूंटी थानाप्रभारी जयदीप टोप्पो, एसआई मीरा सिंह, नरसिंह मुंडा, पुष्पराज कुमार, रजनीकांत, रंजीत कुमार यादव, बिरजू प्रसाद, दीपक कुमार सिंह, पंकज कुमार और विवेक प्रशांत शामिल थे.

चूंकि मृतका अंजलि दूसरे जिला यानी रांची की रहने वाली थी. इसलिए पुलिस ने सच की तह तक पहुंचने के लिए रांची से ही घटना की जांच शुरू की. इंसपेक्टर राधेश्याम तिवारी ने रांची पहुंच कर अंजलि के पति मुंसिफ खान से फिर से पूछताछ की और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि अंजलि के मोबाइल फोन पर आखिरी बार काल 25 दिसंबर, 2019 को शाम साढ़े 6 बजे की गई थी. जिस नंबर से काल की गई थी, छानबीन में वह नंबर इसी जिले के लोअर बाजार थाने के कलालटोली चर्च मोहल्ले की रहने वाली आरती का निकला.

28 दिसंबर को लोअर बाजार थाना पुलिस की मदद से एसआईटी टीम और खूंटी पुलिस ने आरती को उस के घर से पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस उसे लोअर बाजार थाने ले आई. पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो आरती उस के सामने पूरी तरह से टूट गई और अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस के सामने सच्चाई उगल दी. उस पता चला कि उस ने अपने साथियों फिरदौस रसीद और रमन कुमार के साथ मिल कर अंजलि की हत्या की थी. लाश की शिनाख्त आसानी से न होने पाए, इसलिए तीनों ने मिल कर उसे जला दिया था.

हत्थे चढ़े आरोपी

फिर क्या था? आरती के बयान के बाद पुलिस ने फिरदौस रसीद को कलालटोली चर्च मोहल्ले में स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और दोनों को रांची से खूंटी ले आई. दोनों का तीसरा साथी रमन फरार था.

पूछताछ में आरती और फिरदौस ने अंजलि की हत्या की वजह बता दी. उस के बाद दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने अंजलि की हत्या के बाद लूटी गई उस की अल्टो कार, उस के घर से लूटे गए जेवरात और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. गिरफ्तार दोनों आरोपियों के द्वारा बताई गई कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

बिंदास अंजलि उर्फ विनीता तिर्की सूद कारोबार से बेहद फलफूल गई थी. जिंदगी और बिजनैस दोनों का साथ देने वाला प्रेमी पति मुंसिफ खान साये के समान 24 घंटे उस से चिपका रहता था. वह पत्नी के एक हुक्म पर आसमान से तारे तोड़ लाने के लिए तैयार रहता था.

सूद के कारोबार से उस ने बहुत पैसे कमाए. जब पैसे आने लगे तो उस ने अपने कारोबार का विस्तार किया और मोहल्ले के एक गुप्त स्थान पर बड़ा कमरा ले कर जुए का अड्डा बना लिया और वहीं जुआ खिलाती थी. जब अंजलि का कारोबार बढ़ा तो उसे बिजनैस संभालने के लिए आदमियों की जरूरत महसूस हुई. उस ने ऐसे आदमियों की तलाश शुरू की जो उसी की तरह ईमानदार और विश्वासपात्र हो. बिजनैस में बेईमानी करने वाला न हो.

अंजली के पड़ोस में फिरदौस रसीद, रमन और आरती रहते थे. तीनों से अंजलि की खूब पटती थी. वे उस से अकसर सूद पर पैसे लेते थे और समय पर ब्याज चुकता भी कर देते थे. तीनों की ईमानदारी और व्यवहार से अंजलि बेहद खुश थी. उस के कहने पर वे कभीकभी जुए का अड्डा संभालने में उस की मदद कर दिया करते थे.

फिरदौस रसीद, रमन और आरती तीनों कलालटोली चर्च मोहल्ले में अगलबगल रहते थे. तीनों एकदूसरे के पड़ोसी थे. तीनों का अपना भरापूरा परिवार था. बस कुछ नहीं था तो वह थी अच्छी सी नौकरी. इस वजह से उन के पास पर्याप्त और खाली समय रहता था. खाली समय में वे करते तो क्या करते?

आरती को छोड़ कर दोनों बालबच्चेदार थे. परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी. शार्टकट तरीके से वे कम समय में ज्यादा पैसे कमाना चाहते थे. पैसे कमाने के लिए जुआ खेलने अंजलि के अड्डे पर चले जाते थे.

जुए की लत ने बनाया कंगाल

फिरदौस रसीद को जुए की लत ने कंगाल बना दिया था. फिरदौस के साथसाथ आरती और रमन भी जुएबाज बन गए थे. फिरदौस तो जुए में बीवी के गहने तक हार गया था. गहने वापस पाने के लिए फिरदौस यारदोस्तों से कुछ कर्ज ले कर फिर से अपनी किस्मत आजमाने अंजलि के अड्डे पर चला गया.

लेकिन उस की किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दी. कर्ज ले कर जिन पैसों से अपनी किस्मत बदलने फरदौस आया था, वो तो हार ही गया, धीरेधीरे वह अंजलि का लाखों रुपए का कर्जदार भी हो गया. ये बात दिसंबर, 2019 के पहले हफ्ते की थी.

अंजलि अपने पैसों के लिए फिरदौस रसीद से हर घड़ी तगादा करती थी. फिरदौस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उस का कर्ज चुकता कर सके. अंजलि के तगादे से वह बच कर भागाभागा यहांवहां फिरता था. धीरेधीरे एक पखवाड़ा बीत गया. न तो वह कर्ज का एक रुपया चुका सका और न ही वह अंजलि के सामने ही आया.

उस के बारबार टोकने से फिरदौस खुद की नजरों में अपमानित महसूस करता था. उस की समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे. कैसे उस से छुटकारा पाए.

इसी परेशानी के दौर में उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म लिया. उस ने सोचा कि क्यों न अंजलि को ही रास्ते से हटा दें. न वह रहेगी और न ही उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा. यानी न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. यह विचार मन में आते ही वह खुशी से झूम उठा.

फिरदौस रसीद ने योजना तो बना ली थी लेकिन योजना को अंजाम देना उस के अकेले के बस की बात नहीं थी. उस ने अपनी योजना में आरती और रमन को भी शामिल कर लिया. आरती और रमन साथ देने के लिए तैयार हो गए थे. दरअसल, वे दोनों भी अंजलि से नफरत करते थे. वे भी उस से जुए में एक बड़ी रकम हार चुके थे. जिस से कर्जमंद हो गए थे. रकम वापसी के लिए अंजलि उन पर तगादे का चाबुक चलाए हुई थी. आरती और रमन के पास एक फूटी कौड़ी नहीं थी. तो वे इतनी बड़ी रकम कहां से चुकाते. अंजलि के बारबार तगादा करने से वे परेशान हो चुके थे, इसलिए उन्होंने फिरदौस का साथ देना मंजूर कर लिया.

तीनों दुश्मनों ने बनाई योजना

अब एकदो नहीं बल्कि अंजलि के 3 दुश्मन सामने आ चुके थे. तीनों ही मिल कर अंजलि से बदला लेने के लिए तैयार थे. तीनों ने मिल कर योजना बना ली थी कि किस तरह अंजलि को रास्ते से हटाना है. 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का त्यौहार था. उन के लिए यह मौका सब से अच्छा था क्योंकि क्रिसमस के त्यौहार की वजह से सभी लोग अपनेअपने घरों में दुबके रहेंगे.

वैसे भी अंजलि को कोई पूछने वाला तो था नहीं, इसलिए सुनहरे मौके को तीनों किसी कीमत पर हाथ से गंवाना नहीं चाहते थे. यही मौका उन्हें ठीक लगा. इसी योजना के मुताबिक, फिरदौस ने अंजलि को फोन कर के शाम साढ़े 6 बजे एक पार्टी दी और रिंग रोड बुलाया. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारे पैसे तैयार हैं, उन्हें भी लेती जाना.

पैसों का नाम सुनते ही अंजलि की आंखों में चमक जाग उठी थी. उसे क्या पता था कि पैसे तो एक बहाना है, दरअसल उन्होंने उस के इर्दगिर्द मौत का जाल बिछा दिया था. उस जाल में वह फंस चुकी थी. वह दिन उस का आखिरी दिन था. बहरहाल, अंजलि ने फिरदौस से बता दिया कि वो रिंग रोड पर ही उस का इंतजार करे, कुछ ही देर में वह वहां पहुंच रही है.

अंजलि की ओर से हां का जवाब मिलते ही फिरदौस, आरती और रमन की आंखों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. तकरीबन शाम 7 बजे अंजलि रिंग रोड पहुंच गई. जहां पर फिरदौस, आरती और रमन उसी के इंतजार में पलक बिछाए बैठे थे. फिरदौस के साथ आरती और रमन को देख कर अंजलि थोड़ी चौंकी थी.

अंजलि के रिंग रोड पहुंचते ही तीनों उस की कार में सवार हो गए. फिरदौस आगे की सीट पर बैठ गया था और आरती व रमन पीछे वाली सीट पर सवार थे. अंजलि ड्राइविंग सीट पर बैठी कार चला रही थी. उस ने कार जैसे ही आगे बढ़ाई, अचानक पीछे से अंजलि ने अपनी गरदन पर दबाव महसूस किया और वह चौंक गई.

उस के हाथ से स्टीयरिंग छूटतेछूटते बचा और कार हवा में लहराती हुई सड़क के दाईं ओर जा कर रुक गई. अभी वह कुछ समझ पाती तब तक फिरदौस और आरती भी उस पर भूखे भेडि़ए के समान टूट पड़े. रमन पहले ही फिरदौस के इशारे पर टूट पड़ा था.

चलती कार में घोटा गला

तीनों दरिंदों के चंगुल से आजाद होने के लिए अंजलि फड़फड़ा रही थी लेकिन उन की मजबूत पकड़ से वह आजाद नहीं हो पाई और वह मौत की आगोश में सदा के लिए समा गई. अंजलि की मौत हो चुकी थी. उस की मौत के बाद तीनों बुरी तरह डर गए कि अब इस की लाश का क्या होगा? जल्द ही फिरदौस ने इस का रास्ता भी निकाल लिया.

पहले तीनों ने मिल कर उस की लाश पीछे वाली सीट पर बीच में ऐसे बैठाई जैसे वह आराम से बैठीबैठी सो रही हो. उस के अगलबगल में रमन और आरती बैठ गए. फिरदौस ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. वहां से तीनों खूंटी पहुंचे. खूंटी के कालामाटी के तिरिल टोली गांव के बाहर सूनसान खेत में अंजली का शव ले कर गए. उस के ऊपर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा दी और कार ले कर वापस रांची पहुंचे.

इधर मुंसिफ खान अंजलि की तलाश में यहांवहां भटक रहा था. उधर तीनों अंजलि के घर पहुंचे और उस के घर की अलमारी तोड़ कर उस में से उस के सारे गहने लूट लिए और वहां से रफूचक्कर हो गए. तीनों ने जिस चालाकी से अंजलि की हत्या कर के उस की पहचान मिटाने की कोशिश की थी उन की चाल सफल नहीं हुई.

आखिरकार पुलिस उन तक पहुंच ही गई और उन्हें उन के असल ठिकाने तक पहुंचा दिया. तीनों आरोपियों से पुलिस ने अंजलि के घर से लूटे गहने और कार बरामद कर ली थी.  कथा लिखने तक पुलिस अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी थी.

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