कुछ दिनों पूर्व मैंने अपनी टीनेजर बेटी के साथ एकदुकान से सेनेटरी पैड्स का एक पैकेट खरीदा. दुकानदार ने एक काली पॉलीथीन में पैक करके मुझे वह पैकेट थमा दिया. इसे देखकर मेरी बेटी बोली, ” मां सेनेटरी पैड्स कोई गन्दी चीज़ होती है.” मेरे मना करने पर उसने अगला प्रश्न किया” फिर हमेशा इन्हें काली पॉलीथीन में रखकर क्यों दिया जाता है जब कि बच्चों और बड़ों के डायपर तो ऐसे ही दे दिए जाते हैं.’
” बात तो तुम्हारी सही है परन्तु अभी इस तथ्य को समाज को समझने में कई वर्ष लग जाएंगे कि सेनेटरी पैड्स और दूसरे पैड्स में कोई अंतर नहीं होता.”
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मैंने उसे तो उत्तर दे दिया परन्तु स्वयम ही सोच में पड़ गयी क्योंकि पिछले 40 वर्ष से मै स्वयम यही दंश झेलती आयी हूँ. मुझे याद है मैंने जब बचपन में एक बार मां से पैड्स को पेपर में पैक करके देने का कारण पूछा था तो वे झुंझलाते हुए बोलीं थीं, ‘अरे आदमी लोग देखेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा न.” उस वक़्त मैं भी चुप हो गयी थी. परन्तु आज की पीढ़ी बहुत जागरूक है और तार्किक है एम बी ए की छात्रा प्रगति कहती है,” जिस मासिक धर्म से इस सृष्टि का निर्माण होता है उसे लोगों के द्वारा गन्दी नजरों से देखना उनकी गन्दी सोच को ही परिलक्षित करता है.” इसी प्रकार के विचार एक गृहिणी नमिता के हैं वे कहतीं हैं, ‘”जब मुझे पहली बार पीरियड्स हुए तो मां मुझे एक कमरे में ले गईं और बोलीं, अब ये हर माह होगा और ध्यान रखना घर में किसी को पता न चले….मैं सहम गयी और मुझे लगा कि ये बहुत बुरी चीज है इसीलिए मुझे किसी के सामने इसका जिक्र नहीं करना है परन्तु जब मेरी बेटी को पहली बार पीरियड्स हुए तो मैंने उसे कहा, “ये एक जैविक क्रिया है जो संसार की हर महिला को होती है इसके होने का तातपर्य है कि आपका प्रजनन तंत्र दुरुस्त है इस दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना है शरीर के लोअर पार्ट को आराम देना है.'” अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करती हुई वह आगे कहती है जैसे नहाना, धोना, और नित्य कर्म करना दैनिक क्रियाकलाप है उसी प्रकार मासिक धर्म भी हम महिलाओं का मासिक क्रियाकलाप है इसमें छुपाने या गन्दा जैसा क्या है.” आई टी इंजीनियर रश्मि अपने मुखर शब्दों में कहती हैं, “यदि एक माह भी लडक़ी को नियमित पीरियड्स नहीं आएं तो अभिभावक उसे डॉक्टर के पास लेकर दौड़ते हैं और इलाज करवाते हैं, जिन पीरियड्स के न आने पर महिला संतानोत्पत्ति तक नहीं कर पाती उन पीरियड्स में गन्दा जैसा क्या है मुझे समझ नहीं आता ये केवल पिछड़ी और दकियानूसी सोच है और कुछ नहीं.”
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क्यों देखा जाता है मासिक धर्म को गन्दी नजर से
मासिक धर्म को गन्दा या घृणास्पद माने जाने का सबसे बड़ा कारण हमारे धार्मिक ग्रन्थ हैं जिनमें मासिक धर्म को लेकर अनेको भ्रांतियों का वर्णन किया गया है. न केवल हिन्दू बल्कि सभी धर्मों में महिलाओं के मासिक धर्म को अपवित्र माना गया है जिससे इस दौरान महिलाएं अशुद्ध हो जातीं हैं.
हिन्दूधर्म ग्रन्थों में महिलाओं के मासिक धर्म को इंद्र के द्वारा किये गए ब्रह्महत्या के पाप का एक हिस्सा माना जाता है. उसी पाप के परिणामस्वरूप स्त्री को मासिक धर्म होता है अतः धर्म ग्रन्थों में रजस्वला को पापी माना गया है इसीलिए रजस्वला स्त्री मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं. इस दौरान स्त्रियों के लिए नियम सयंम बरतने और अनेकों कार्य करना निषिद्ध बताते हुए उन्हें एक अशुद्ध और अश्पृश्य प्राणी माना गया है. अंगिरस स्मृति (पद 35)के अनुसार मासिक धर्म समाप्त होने के चौथे दिन शुद्धि स्नान के बाद स्त्रियां पुनः शुद्ध हो जातीं है और तब वे किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले सकतीं हैं.
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कुछ समय पूर्व केरल के सबरीमाला मंदिर में रजस्वला स्त्रियों (10 से 50 वर्ष) के प्रवेश को लेकर बहुत हंगामा हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दिया कि “हर उम्र की महिला को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है.” परन्तु इस निर्णय के विरोध में प्रदेश में भारी प्रदर्शन हुये और लगभग 50 पुनर्विचार याचिकायें दाखिल की गईं और अब ये मामला कोर्ट में लंबित है. यहां भी 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश न दिए जाने का कारण मासिक धर्म के दौरान उनका अशुद्ध होना ही है क्योंकि मंदिर में विराजे भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और अशुद्ध महिलाओं की उन पर छाया भी नहीं पड़नी चाहिए.
अनुष्ठान के नाम पर छलावा
भारत के कई प्रान्तों में जब लड़की प्रथम बार रजस्वला होती है तो निकट के रिश्तेदारों और परिचितों को बुलाकर विभिन्न आयोजन करके खुशियां मनाई जाती हैं. तमिलनाडु में इस आयोजन को “मंजल नीरातु विझ” नाम से जाना जाता है. मेहमानों को बुलाकर लड़की को हल्दी के पानी से स्नान कराया जाता है और घर के पास नारियल, नीम और आम के पत्तो से बनी झोपड़ी बनायी जाती है जिसमें मासिक धर्म के दौरान लड़की को रहना होता है. फिर 9 वें, 11 वें और 15 वें दिन पुनः आयोजन करके लड़की को सिल्क की साड़ी और ज्वैलरी पहनाई जाती है अर्थात अब वह शुद्व हो गयी.
इसी प्रकार के आयोजन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और असम में पृथक पृथक नामों से किये जाते हैं जिन्हें खुशी मनाने का प्रतीक बताया जाता है परन्तु वास्तव में यह एक छलावा मात्र है क्योंकि यहां भी पीरियड्स के दौरान लड़की का झूठा खाना कुत्ते तक को न दिए जाने का अंधविश्वास है क्योंकि ये माना जाता है कि रजस्वला का जूठा भोजन खाने से कुत्ते के पेट में दर्द हो जाएगा. लड़की को एक कमरे में ही निवास करना होता है, उसे खाने के अलग बर्तन और सोने के लिए अलग गद्दा दिया जाता है. यद्यपि वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में इस प्रकार के आयोजन भले ही मृत प्राय हो चुके हैं परन्तु इसके पीछे जुड़े अंधविश्वास आज भी जस के तस बरकरार हैं.
कैसे कैसे अंधविश्वास
अगस्त माह में मालवा क्षेत्र की महिलाएं ऋषि पंचमी नामक एक व्रत करतीं हैं जिसका उद्देश्य मासिक धर्म के दौरान अनजाने में हुए किसी पाप से मुक्ति पाना होता है. यहां पाप से तात्पर्य मासिक धर्म के दौरान रसोईघर अथवा मंदिर के किसी वस्तु को छूने से है. क्योंकि ऋषिपंचमी व्रत की कथा ही इस प्रकार है कि ,”एक ब्राह्मण कन्या मासिक धर्म के दौरान किसी प्रतिबंध को नहीं मानती थी तो कुछ समय बाद उसके शरीर में कीड़े पड़ गए फिर उसने सात ऋषियों की मूर्ति बनाकर पूजा की तब कहीं जाकर उसे अपने इस पाप से मुक्ति मिली. इस प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास मासिक धर्म को एक पाप की संज्ञा देकर महिलाओं के अंदर भय उत्पन्न करने का काम करते हैं और इसी भय के कारण वे अपने ही शरीर की इस स्वाभाविक क्रिया को गंदा मानने लगतीं हैं.
धार्मिक ग्रंथों में इस दौरान महिलाओं को अचार न छूने, पेड़ पौधों विशेषकर तुलसी, नीम आदि में पानी न डालने और न ही छूने, रसोईघर में न जाने, पूजा पठन करने, धार्मिक स्थलों पर न जाने, नए कपड़े न पहनने, घड़े को हाथ न लगाने, पति के साथ बिस्तर पर न सोने जैसे अन्य अनेकों कार्य न करने को कहा गया है क्योंकि इस दौरान वे अशुद्ध और अपवित्र हो जातीं हैं. आश्चर्यजनक रूप से आज भी शहरी शिक्षित महिलाएं तक इनमें से अधिकांश नियमों का खुशी खुशी पालन करतीं हैं.
क्या है मासिक धर्म
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर श्रीमती सुधा अस्थाना कहती हैं,”पीरियड्स स्त्री के शरीर में प्रतिमाह होने वाली एक आवश्यक और स्वाभाविक जैविक क्रिया है जिसका नियमित और उचित उम्र पर होना आवश्यक है. इसमें अपवित्र और अशुद्ध जैसा कुछ नहीं होता वे आगे कहतीं हैं, “पुराने समय में स्त्रियों का बहुत शोषण होता था, न तो दर्द निवारक दवाइयां थीं और न पैड्स तो उन दिनों में उनके स्वास्थ्य की दृष्टि से अलग कमरे में सुकून से रहने के लिए कहा जाता था. इसके अतिरिक्त कई बार स्त्रियों के पति इस अवस्था में भी संसर्ग करना नहीं छोड़ते थे अतः उन्हें आराम देने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की गई परन्तु बाद में हमारे ही धर्म ने उसमें अंधविश्वासों का पुलिंदा जोड़ दिया. अपनी बात को वे और स्पष्ट करतीं हैं,”अचार न छूना, खाना न बनाना, मंदिर न जाना या पूजा न करना, साफ कपड़े न छूना, बिस्तर पर न सोना ये सब कोरे अंधविश्वास हैं. इनका मासिक धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है.”
एक सच्चाई यह भी
स्वास्थ्य के नजरिए को परे रखकर यदि विचार किया जाए तो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर की प्रत्येक गतिविधि से पृथक करने का कारण था कि प्राचीनकाल में एक राजा के अनेकों पत्नियां होतीं थीं ऐसे में रजस्वला पत्नी को गन्दा, अस्पृश्य और अशुद्ध बताकर घर के एक कोने में डालकर बाकियों के साथ वे मजे करते थे. इस प्रकार महिलाओं से स्वयम को शक्तिशाली बताने का और उन पर शासन करने का एक प्रयास भी था परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि इतने वर्षों बाद भी महिलाएं पुरुषों के द्वारा बनाये गए उन्हीं उसूलों को खुशी खुशी मानने में गर्व का अनुभव करतीं हैं और जो महिलाएं इन अंधविश्वासयुक्त नियम कायदों का पालन नहीं करतीं उन्हें अमर्यादित और असंस्कारी माना जाता है.
आवश्यकता है दिमाग से सोचने की
आज तकनीक और विज्ञान का युग है ऐसे में सदियों पुराने दकियानूसी और अंधविश्वास से परिपूर्ण नियम कायदों पर चलना कोरी मूर्खता है. इस संदर्भ में हम महिलाओं को ही आगे आना होगा अपनी सोच को तर्कशील बनाकर इन सड़ी गली परम्परा और मान्यताओं को समूल उखाड़ फेंकना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ विचारधारा दे सकें.अपनी विचारधारा को परिष्कृत करके इस विषय में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है. बालिकाओ को प्रारम्भ से ही इस प्रकार की शिक्षा और संस्कार दिए जाने चाहिए ताकि वे इसे एक गन्दगी और पाप नहीं बल्कि अपने शरीर की एक सहज स्वाभाविक और आवश्यक क्रिया मानकर गर्व अनुभव करें.
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