बिहार विधानसभा चुनाव में राजद,कांग्रेस व वाम दलों को लेकर बने महागठबंधन ने जारी अपने संयुक्त घोषणा पत्र में, सरकार बनते ही 10 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया है. इस अवसर पर पटना के मौर्या होटल में आयोजित संयुक्त प्रेस वार्ता में महागठबंधन के नेताओं ने कहा कि यह संकल्प पत्र है. इन नेताओं ने बिहार की नीतीश सरकार को सभी मोर्चों पर विफल बताया और कहा कि इस सरकार ने जनहित के कामों की अनदेखी की है जिस कारण अब प्रदेश की जनता इस सरकार से हर हाल में मुक्ति चाहती है.
पत्रकारों से बात करते हुए तेजस्वीी यादव ने कहा कि महागठबंधन की सरकार बनी तो शपथग्रहण करते ही दस लाख बेरोजगारों को नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी . गौरतलब है महागठबंधन में शामिल तमाम दलों ने इस साझे घोषणापत्र में अपनी साझी प्राथमिकताएं तय की हैं,इस घोषणापत्र में किसी दल की नितांत निजी मान्यताओं को जगह नहीं दी गयी ,जिनसे बाकी दल इत्तफाक नहीं रखते. यही वजह है कि साझे घोषणापत्र वामदलों की बातों और रोजगार संबंधी रणनीति को ही प्राथमिकता दी गयी है . साझा विकास कार्यक्रम मुख्यतः रोजगार की समस्या को संबोधित है.
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इसमें उन सामाजिक तनावों को संबोधित करने से अमूमन बचा गया है जो हाल के महीनों एनआरसी जैसे मुद्दों के कारण पूरे देश चर्चा का विषय रहे हैं. घोषणापत्र में नीतीश कुमार को विशेष रूपसे घेरने की कोशिश की गयी है . इसमें कहा गया है कि नीतीश कुमार पिछले 15 साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन आज तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला पाए. यही नहीं उन्होंने साल 2015 में वायदा किया था कि वह सरकार बनाने के बाद प्रदेश में विशेष रूपसे औद्योगिक वातावरण तैयार करेंगे और सभी बीमार उद्योगों को जीवनदान देंगे लेकिन हकीकत यह है कि चाहे राज्य के बीमार शुगर मिल हो या जूट अथवा पेपर मिल सब के सब ठप हैं. मालूम हो कि बिहार में मकई, लीची, गन्नेस, केले आदि की खेती देश में नंबर वन होती है,लेकिन भरपूर उत्पाचदन के बावजूद प्रदेश में एक भी फूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है.
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जाहिर है राजद के संयुक्त घोषणापत्र में इन सभी चीजों पर विशेष रूपसे ध्यादन देने का वायदा किया गया है. इस तरह संयुक्त घोषणापत्र में रोजगार पैदा करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है. शायद लॉकडाउन के बाद बड़े पैमाने पर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों की हुई वापसी को भी ध्यान में रखकर इस मुद्दे को प्राथमिकता दी गयी है . क्योंकि बिहार में प्रवासी मजदूरों के साथ जिस तरह का व्योहार किया गया,उससे वे काफी आहत हैं . तेजस्वी यादव कहते हैं, ‘सरकार का ध्याान न तो प्रवासियों पर रहा और न ही अब बाढ़ प्रभवितों पर है. प्रदेश के 18 जिले और करीब 85 लाख जनता बाढ़ से हर वर्ष प्रभावित होती है. लेकिन आज तक केंद्र सरकार का कोई दल उनके नुकसान का आकलन करने तक नहीं आया. लगता है कि नीतीश की सरकार को कोई परवाह नहीं है,उन्हें सिर्फ अपनी कुर्सी की चिंता है.’
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तेजस्वीा यादव मुख्य मंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए यह भी कहते हैं, ‘ वह सेवा और मेवा की बात करते हैं लेकिन उनके राज में बिहार में 60 घोटाले हो गए. सृजन घोटाले के आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं. चाहे भ्रष्टाघचार का मामला हो या अपराध का, सरकार हर मोर्चे पर पूरी तरह से फेल है. साल 2015 में जब कांग्रेस, राजद और जद यू की सरकार थी तब के 18 महीने और उसके बाद भाजपा के साथ सरकार बनने के कार्यकाल के दौरान हुई आपराधिक वारदातों की तुलना कर लीजिये सब पता चल जाएगा कि सुशासन बाबू का शासन कितना सुशासन है . एनसीआरबी के आंकड़ों साफ़ पता चलता है कि बिहार में नीतीश के कार्यकाल में कितना अपराध बढ़ा है.’
बॉक्स संयुक्त घोषणापत्र की प्रमुख बातें
अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है तो छात्रों से परीक्षाओं के लिए भरे जाने वाले आवेदन फार्म पर फीस पूरी तरह से माफ़ होगी. नौजवानों को परीक्षा केंद्रों तक जाने का किराया सरकार देगी. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि केवल बिहार के भीतर ही या बिहार के बाहर भी. वैसे राज्य विधानसभा चुनाव का घोषणापत्र है,इसलिए सैधांतिक रूप से लगता है,यह बिहार तक ही सीमित होगा. घोषणापत्र में कहा गया है कि महागठबंधन की सरकार कामगारों का राज्य से पलायन रोंकने की हर संभव कोशिश करेगी. घोषणापत्र के मुताबिक़ विधानसभा के पहले ही सत्र में केंद्र के कृषि संबंधी तीनों बिल के प्रभाव से बिहार के किसानों को मुक्ति दिलायी जायेगी. प्रदेश में कर्पूरी श्रम सहायता केंद्र खोलें जायेंगे जिसके जरिये बेरोजगारों की मदद करना आशान होगा. घोषणापत्र में एक और संवेदनशील मुद्दे को छुआ गया है कि शिक्षकों के लिए समान काम का समान वेतन दिया जाएगा,साथ ही जीविका दीदियों का मानदेय दोगुना करने का वादा भी किया गया है.