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जीवनसाथी – भाग 2 : मृदुल के प्रेम की फुहार क्या प्रांजल के जीवन में फूल खिला सकी

बेटी के दुख से दुखी हो कर प्रीतिजी ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं. उसी समय दबेपांव डा. मृदुल उन के पास आ कर खड़े हो गए थे. आहट होते ही उन्होंने आंखें खोलीं तो मृदुल को देखते ही वे उठ कर बैठ गईं.

‘‘बैठिए मृदुलजी.’’

‘‘कैसी हैं, आंटी, प्रांजल ने बताया था कि आप की तबीयत नासाज है, इसलिए मेरा मन नहीं माना और मैं आप से मिलने आ गया.’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. मुझे तो प्रांजल की फिक्र रहती है. मेरे बाद वह बिलकुल अकेली हो जाएगी.’’

‘‘चलिए, आप की फिक्र मैं आज ही दूर करता हूं. आंटी, मैं प्रांजल का हाथ आप से मांगता हूं.’’

प्रीतिजी मृदुल को पसंद करती थीं परंतु उन की बेटी तो राजी हो? फिर उस का अतीत जानने के बाद मृदुल की प्रतिक्रिया क्या होगी? यह सोच कर वे डर गईं. उन्होंने मृदुल का हाथ अपने हाथ में ले लिया, ‘‘तुम तो मेरे बेटे की तरह हो. क्या आज अस्पताल में कोई सीरियस केस आया था?’’

‘‘हां, एक लड़की के बलात्कार का केस आया था. उस को देखने के बाद से ही प्रांजल का मूड उखड़ाउखड़ा हो गया. उसे देख कर वह रोंआसी हो उठी थी.’’

‘‘ओह,’’ वे डा. मृदुल की ओर देख कर बोलीं, ‘‘काश, वह घिनौना पल उस के जीवन में न आया होता.

‘‘मैं पल्लव और बेटी प्रांजल के साथ खुशनुमा जिंदगी जी रही थी. पल्लव स्वयं डाक्टर थे. उन का अपना क्लीनिक था जिस में अब प्रांजल बैठती है. उन की प्रैक्टिस ठीकठाक चलती थी. वे मरीजों का इलाज अपने पैसे से करते थे. वे दिल के बहुत दयालु थे. गरीबों को मुफ्त में दवा देते थे, ऊपर से फल खरीदने के लिए अपनी जेब से पैसा देते थे. इसलिए हम लोगों की माली हालत खस्ता रहती थी. उन्होंने बेटी के पैदा होते ही उसे डाक्टर बनाने का निश्चय कर लिया था. उन्होंने अपनी जरूरतों में कटौती कर के उस का ऐडमिशन शहर के सब से अच्छे स्कूल में करवाया था. प्रांजल शुरू से पढ़ने में बहुत तेज थी.

‘‘बलवंत इसी के साथ पढ़ता था. वह रईस बाप का बेटा था. पढ़नेलिखने से उस का कोई वास्ता नहीं था. उस का पसंदीदा काम लड़कियों को छेड़ना था. वह प्रांजल को अपनी प्रेमिका बता कर उल्टीसीधी बातें फैलाया करता था. एक दिन तो उस ने सारी सीमाओं को तोड़ते हुए कैंटीन में बैठी प्रांजल को किस कर लिया. उस के जवाब में प्रांजल ने उस को जोरदार थप्पड़ मार दिया और उस का हाथ पकड़ कर घसीटते हुए पिं्रसिपल के कमरे में ले गई. पिं्रसिपल साहब भी बलवंत की हरकतों से परेशान थे, उन्होंने कालेज से उस का नाम काट दिया. उस के रईस बाप ने रातोंरात उस को कहीं बाहर भेज दिया. प्रांजल ने कठिन परिश्रम कर के पहली बार में ही एमबीबीएस की प्रवेश परीक्षा पास की थी.

‘‘वह रहती थी दिल्ली में परंतु उस का मन अटका रहता था मम्मीपापा पर. रोज सुबहशाम वह फोन कर के हम दोनों का हालचाल पूछना नहीं भूलती थी. समय कब बीत गया, पता ही नहीं लगा था. वह फाइनल ईयर भी पूरा करने वाली थी.

‘‘पल्लव ने अपनी गांव की जमीन बेच कर बेटी के लिए बहुत सुंदर सा आधुनिक चैंबर बनवाया था. डा. प्रांजल की नेमप्लेट बनवा कर लगा दी थी. मुझ से कहते, ‘देखो, इसी चैंबर में बैठ कर मेरी बेटी मरीजों को देखा करेगी. मैं अपनी बेटी को अपनी नजरों से दूर नहीं करूंगा. बेटीदामाद को क्लीनिक सौंप कर खुद रिटायर्ड लाइफ का आनंद उठाऊंगा.’

‘‘अकसर मुझ से कहते, ‘बीवीजी, कुछ दिनों की ही तो बात है, फिर तो हम दोनों आराम से झूले पर बैठ कर गरम चाय की प्याली का आनंद लिया करेंगे.’ जब से उस ने प्रियांशु के बारे में बताया था तब से उन्होंने उस के लिए लड़का ढूंढ़ना भी बंद कर दिया था. उन्होंने बिना मिले ही बेटी की पसंद पर अपनी मोहर लगा दी थी. प्रांजल के फाइनल पेपर चल रहे थे. उस ने खुश हो कर बताया था, ‘मम्मी, मेरे पेपर बहुत अच्छे हुए हैं. हो सकता है इस बार का गोल्ड मैडल मुझे ही मिले.’

‘‘वह अपने पापा से कहती, ‘पापा, फेयरवैल पार्टी में हम लोगों ने बहुत मजे किए. मैं ने लैपटौप में वीडियो भी बनाया है और फोटो भी डाले हैं. मैं आऊंगी तो आप दोनों को दिखाऊंगी.’

‘‘फिर बोली, ‘मां, आप को दिल्ली से कुछ मंगाना हो तो बता दो, मैं बाजार जा रही हूं, लेती आऊंगी.’

‘‘ ‘न बेटा, मुझे कुछ नहीं चाहिए.’

‘‘वह बोली थी, ‘मम्मी आप की आवाज क्यों धीमी है? क्या हुआ? क्या पापा से झगड़ा हुआ है? मम्मी, प्लीज, पापा से बहस मत किया करो. आप जानती तो हैं कि आप से झगड़े के बाद

वे कितने चुप हो जाते हैं. छोडि़ए, मैं आ रही हूं. उस के बाद सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘मैं उस से कहती थी, ‘प्रांजल, आजकल दिल्ली में गुंडागर्दी बहुत है, तुम देर रात में मत निकला करो. तुम रात की टे्रन से मत आना. सुबह की ट्रेन से आना.’

‘‘प्रांजल ने तेजी से उत्तर दिया था, ‘मां, आप को डरने की जरूरत नहीं है. मैं देश की राजधानी में रहती हूं. यहां की पुलिस बहुत चौकस रहती है. आप की बेटी की जूडोकराटे की टे्रनिंग किस दिन काम आएगी.’

‘‘फिर जोर से ठहाका मार कर बोली थी, ‘कोई बदमाशगुंडा उस के सामने आ कर तो देखे, पलभर में धूल चटा दूंगी. मम्मी, आप को घबराने की जरूरत नहीं है. आप की बेटी बहुत बहादुर है.’

‘‘वह हमारे पास आने की तैयारी में लगी हुई थी. उस ने तमाम खरीदारी कर ली थी. उस ने पापा के लिए शर्ट खरीदी और मेरे लिए कश्मीरी कढ़ाई की प्योर सिल्क की खूबसूरत साड़ी ली, साथ में मैचिंग क्लिप और लैदर का पर्स भी खरीदा था. खरीदारी कर के वह बहुत खुश थी. उस ने बताया था, ‘मम्मी, मेरे साथ लावण्या और चैरी लखनऊ घूमने आ रही हैं. घर जरा ठीक कर लेना. थोड़ा नाश्ता भी बना लेना. ये लोग तुम्हारी लड्डूमठरी की दीवानी हैं.’

‘‘‘अच्छाअच्छा, बना लूंगी.’

‘‘वह मेरी धीमी आवाज सुन कर बेचैन हो उठी थी. उस का मन नहीं माना था. उस ने तुरंत पापा को फोन मिलाया था.

‘‘‘पापा, आप ठीक हैं?’

‘‘‘हांहां, क्यों बेटा?’

‘‘‘आप और मम्मी दोनों मेरे आने को ले कर खुश नहीं लग रहे हैं? क्या बात है?’

‘‘‘न बेटा, ऐसा कुछ नहीं है.’

‘‘‘पापा, सचसच बताइए. मुझे अभी पढ़ना है. पेपर की तैयारी भी बाकी है.’

‘‘वे धीमी आवाज में बोले थे, ‘बलवंत क्लीनिक में आया था और धमकी दे कर गया है.’

‘‘‘अच्छा, उस की हिम्मत इतनी बढ़ गई है. क्या मेरा थप्पड़ भूल गया है?’

‘‘‘देखो प्रांजल, तुम बिलकुल चुप रहोगी. तुम्हें उस की ओर देखने की भी जरूरत नहीं है.’

‘‘‘पापा, मैं डरपोक नहीं हूं. यदि वह मुझे परेशान नहीं करेगा तो मुझे उस से कोई मतलब नहीं है.’

जीवनसाथी – भाग 1 : मृदुल के प्रेम की फुहार क्या प्रांजल के जीवन में फूल खिला सकी

अपने नाम का एनाउंसमैंट सुनते ही डा. प्रांजल राउंड अधूरा छोड़ कर तेज कदमों से इमरजैंसी की ओर चल पड़ी. आज सुबह से उस के सिर में हलकाहलका दर्द हो रहा था. मन बेचैन था, जी घबरा रहा था. डा. मृदुल भी तेजी से इमरजैंसी की ओर जा रहे थे.

डा. प्रांजल को देखते ही गर्मजोशी से उस से हाथ मिला कर बोले, ‘‘मैं बहुत खुश हूं. नर्सिंगहोम में आते ही सब से पहले तुम दिख गईं, अब आज का दिन मेरा बहुत अच्छा बीतेगा. तुम मेरी परफैक्ट जीवनसाथी हो.’’

‘‘क्या डा. मृदुल, आप भी, सुबहसुबह ही शुरू हो गए.’’

दोनों ने साथ ही इमरजैंसी में प्रवेश किया. डा. नीरज और डा. हंसा रोगी को प्राथमिक उपचार दे रहे थे.

डा. प्रांजल ने आगे बढ़ कर देखा.

12-13 वर्ष की नाजुक सी लड़की खून से लथपथ लेटी हुई थी. रक्तस्राव बहुत तेजी से हो रहा था. उसे सांस रुकरुक कर आ रही थी.

डा. प्रांजल की निगाह लड़की के चेहरे पर पड़ी, वह चौंक पड़ी. जानापहचाना चेहरा था. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. एकबारगी उस की सोचनेसमझने की शक्ति समाप्त हो गई थी. यह वही चेहरा था जिस ने उस के जीवन से खुशियों को दूर कर दिया था. उस के पापा को उस से दूर कर दिया था.

लड़की का चैकअप करते हुए वह एक पल को ठिठक गई थी. उस की आंखें डबडबा उठी थीं. डा. मृदुल की आंखों से डा. प्रांजल के आंसू छिप न सके थे.

‘‘डा. प्रांजल, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘जी, डा. मृदुल, आप फिक्र न करें.’’

अपने सिर को झटकते हुए

डा. प्रांजल ने तुरंत आवश्यक उपचार शुरू किया. डाक्टरों की टीम का अथक प्रयास अपना असर शीघ्र दिखाने लगा था. लगभग घंटेभर बाद लड़की की सांसों की गति सुधरने लगी थी. परंतु बलात्कारी ने मासूम के नाजुक अंगों को बर्बरतापूर्वक चोट पहुंचाई थी, इसलिए उस का रक्तस्राव लगातार जारी था. उस को ठीक करने के लिए औपरेशन तुरंत आवश्यक था.

आईसीयू के बाहर रोतेबिलखते परिजनों की भारी भीड़ एकत्र थी. डाक्टर ने लड़की के पिता को बुलवा भेजा था. लड़की का पिता बलवंत आते ही डा. प्रांजल के पैरों पर गिर पड़ा. वह आर्त स्वर में रोते हुए गुहार लगा रहा था, ‘डाक्टर, मेरी बच्ची को बचा लो.’ यह बोलते हुए उस ने जैसे ही अपनी निगाह डाक्टर पर डाली, एकबारगी वह पत्ते की तरह कांप उठा.

अब उस की जबान पर ताला पड़ चुका था. डा. प्रांजल रूखे स्वर में बोली, ‘‘आप की बेटी की हालत नाजुक है. 3-4 बोतल खून की आवश्यकता पड़ेगी. आप औफिस में जा कर जरूरी कागजों पर दस्तखत कर दीजिए और पैसे जमा कर दीजिए.’’

वह गिड़गिड़ा कर डाक्टर के पैरों पर गिर पड़ा था. बुदबुदा कर बोला, ‘डाक्टर, प्लीज मुझे माफ कर देना.’

प्रांजल तेजी से भागती हुई मरीज की ओर चली गई.

बलवंत घबराया हुआ यहांवहां फोन कर रहा था.

2 घंटे की कठिन सर्जरी के बाद डाक्टरों की टीम औपरेशन थिएटर से बाहर निकली.

डाक्टरों ने औपरेशन सफल बताया था.

डा. मृदुल प्रांजल से बोले, ‘‘तुम बहुत परेशान लग रही हो. डाक्टरी के पेशे में भावनाओं से काम नहीं होता. दिल पर पत्थर रख कर यहां काम

करना पड़ता है. आओ, एकएक कौफी हो जाए.’’

‘‘आप चलिए, मैं फ्रैश हो कर आती हूं.’’

वह डा. मृदुल से दूर रहना चाहती थी क्योंकि वे उस को कमजोर बना देते थे.

डा. मृदुल उस से सीनियर हैं. उन के परिवार के विषय में किसी को कुछ पता नहीं है. उन का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है. उन की विशेषता उन के चेहरे की प्यारी सी मुसकान है, जिस के कारण सब लोग उन्हें पसंद करते थे.

डा. मृदुल डा. प्रांजल को पसंद करते थे. उस के सुंदर चेहरे की बड़ीबड़ी, गहरी, उदास आंखों में वे पूरी तरह खो गए थे. वे जितना भी प्रांजल से बातचीत करना चाहते थे उतना ही वह हांहूं में बात को टालते हुए पैर पीछे खींच कर अपने में सिमट जाती थी.

मृदुल और प्रांजल में हायहैलो वाली दोस्ती हो गई थी. वे उस का बहुत खयाल रखते थे. हर समय उस की सहायता के लिए तैयार रहते थे.

यद्यपि डा. मृदुल उसे बहुत ही सुलझे हुए अच्छे इंसान लगते थे. उन का मजाकिया लहजा और मीठी मुसकान उस के दिल के तारों को झनझना देती थी. परंतु वह क्या करे? उसे पुरुष जाति से घृणा थी. किसी भी पुरुष के पास आते ही उसे बलवंत का लिजलिजा स्पर्श याद आ जाता था.

‘‘कहां खो गईं, प्रांजल?’’

‘‘कहीं नहीं.’’

‘‘तुम्हारी कौफी ठंडी हो चुकी है. मैं दूसरी ले कर आता हूं.’’

प्रांजल एक घूंट में कौफी समाप्त कर बोली, ‘‘मैं अब घर जाऊंगी. मां परेशान हो रही होंगी.’’

‘‘चलो, मैं आज तुम को घर छोड़ दूंगा और आंटी के हाथ के गरमगरम परांठे भी खाने को मिल जाएंगे.’’

‘‘नहीं, डा. मृदुल, मम्मी का ब्लडप्रैशर काफी हाई चल रहा है, इसलिए आज मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘डा. प्रांजल, इस नाचीज को आप की दयादृष्टि का लंबे समय से इंतजार है.’’

वह चुपचाप उन की गाड़ी में बैठ गई. ‘‘डा. मृदुल, प्लीज बारबार मुझ से एक बात ही मत कहा करिए. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. आप मेरे बारे में जानते ही क्या हैं?’’

‘‘तुम्हारे बारे में मुझे कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं है,’’ मृदुल अपने को रोक नहीं पाए और उस का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘प्रांजल, मुझे तुम्हारी आदत हो गई है. मैं सोचता हूं, अपना बोरियाबिस्तर ले कर तुम्हारे घर ही रहने के लिए आ जाऊं. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

अचानक मृदुल की बातें सुन कर प्रांजल सकपका कर बोली, ‘‘डा. मृदुल, आप मेरे विषय में कुछ जानते नहीं हैं. मुझे मर्द जाति से घृणा है. मुझे पुरुष जाति से डर लगता है.’’

डा. मृदुल जोर का ठहाका लगा कर बोले, ‘‘क्या मेरी सूरत इतनी भयानक है कि तुम्हें मेरे चेहरे से डर लगता है?’’

उस का घर आ गया था. गाड़ी रुकते ही प्रांजल बाहर जाने के लिए दरवाजा खोलने लगी, तभी मृदुल ने आगे बढ़ कर उस की हथेली पर गहरा चुंबन अंकित कर दिया. उस का पूरा वजूद हिल गया. चेहरा लाल हो उठा था.

मृदुल की निगाहों से बचती हुई वह तेजी से घर के अंदर घुस गई. जल्दीजल्दी चलने के कारण वह हांफ रही थी.

‘‘क्या बात है, प्रांजल?’’

‘‘कुछ नहीं मम्मी. आइए, आप का ब्लडप्रैशर देखूं.’’

ब्लडप्रैशर नाप कर वह बोली, ‘‘अच्छा हुआ, आप का ब्लडप्रैशर नौर्मल तो हुआ.’’

प्रीतिजी भावुक हो उठी थीं. उन की लाड़ली आज भी कितनी अकेली है. प्यार से उस का हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे सिर में तेल लगा कर मालिश कर दूं, सारा दर्द तुम्हारा हवा हो जाएगा.’’

‘‘नहीं मम्मी, नहीं, मैं माथे पर बाम लगा कर कुछ देर चुपचाप लेटूंगी. मम्मी, आज अस्पताल में बलवंत अपनी लड़की को ले कर आया था. उसी वजह से मेरा मूड खराब हो गया और सिर में भी दर्द बढ़ गया है.’’

‘‘आओ, मेरे पास लेट जाओ.’’

लेकिन प्रांजल मां की बात अनसुनी कर अपने आंसू छिपाते हुए तेजी से अपने कमरे की ओर चली गई.

वह लेट कर कुछ देर सिसकती रही. आज बलवंत को देख उस के घाव ताजा हो गए थे. थोड़ी देर रो लेने से उस का मन कुछ हलका हुआ तो वह सोचने लगी. उस के मन में कशमकश थी. वह मृदुल के साथ अपना जीवन बिताना चाहती है. परंतु वह अपना अतीत मृदुल को कैसे बताए? क्या मृदुल सबकुछ जानने के बाद उस से दोस्ती रख पाएंगे. प्रिय दोस्त के दूर हो जाने का डर कुछ भी बताने से उसे रोके हुए था. उदास मन से वह शून्य में निहार रही थी.

साफ तरीकों से करें दूध का उत्पादन, बढ़ाएं मुनाफा

लेखकडा. एसके सिंह 

दूध में भोजन के सभी जरूरी तत्त्व जैसे प्रोटीन, शक्कर, वसा, खनिजलवण, विटामिन वगैरह उचित मात्रा में पाए जाते हैं, जो लोगों की सेहत और बढ़ोतरी के लिए बहुत जरूरी होते हैं, इसीलिए दूध को एक संपूर्ण आहार कहा गया है.

लेकिन दूध में जीवाणुओं की बढ़ोतरी होते ही दूध जल्दी खराब होने लगता है. इसे ज्यादा समय तक साधारण दशा में सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है. कुछ दूसरे हानिकारक जीवाणु दूध के जरीए दूध पीने वालों में कई तरह की बीमारियां पैदा कर देते हैं, इसलिए दूध को ज्यादा समय तक सुरक्षित रखने, गंदे व असुरक्षित दूध को पीने से होने वाली बीमारियों से लोगों को बचाने व ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दूध का उत्पादन साफ तरीकों से करना बहुत जरूरी है.

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अगर भारत जैसे देश की बात करें तो यहां की दूध की क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है. दूध की क्वालिटी पर असर डालने वाले जीवाणुओं की तादाद की बात करें तो प्रति मिलीलिटर कच्चे दूध में इन की तकरीबन 2 लाख से 10 लाख के बीच तादाद होती है, जबकि विदेशों में अच्छे से प्रबंधन करने के चलते इन की तादाद प्रति मिलीलिटर 30,000 से ज्यादा नहीं होती.

अगर हम पैकेटबंद दूध की बात करें तो इस में भी तादाद प्रति मिलीलिटर 30,000 से ज्यादा नहीं होती.

इन हालात को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हमारे देश में पशुपालक दूध की क्वालिटी पर इतना ध्यान नहीं देते.

दूध में 2 तरह की

गंदगियां पाई जाती हैं

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* आंख से दिखाई देने वाली गंदगियां, जैसे गोबर के कण, घासफूस के तिनके, बाल, धूल के कण, मच्छरमक्खियां वगैरह. इन्हें साफ कपड़े या छलनी से छान कर अलग किया जा सकता है.

* आंख से न दिखाई देने वाली गंदगियां. इस के तहत सूक्ष्म आकार वाले जीवाणु आते हैं, जो केवल सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा ही देखे जा सकते है. इन्हें नष्ट करने के लिए दूध को गरम करना पड़ता है. दूध को लंबे समय तक रखना हो तो इसे ठंडा कर के रखना चाहिए.

इन गंदगियों के 2 स्रोत हैं

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* जानवरों के अयन से : थनों के अंदर से पाए जाने वाले जीवाणु.

* बाहरी वातावरण से.

* जानवर के बाहरी शरीर से.

* जानवर के बंधने वाली जगह से.

* दूध के बरतनों से.

* दूध दुहने वाले ग्वाले से.

* दूसरे साधनों जैसे मच्छरमक्खियों, गोबर व धूल के कणों, बालों वगैरह से.

हमारे देश में जो दूध उत्पादन हो रहा है, वह ज्यादातर गांवों में या शहर की निजी डेरियों में ही उत्पादित किया जा रहा है, जहां सफाई पर ध्यान न देने के चलते दूध में जीवाणुओं की तादाद बहुत ज्यादा होती है और दिखाई देने वाली गंदगियां जो नहीं होनी चाहिए, भी मौजूद रहती हैं. इस के मुख्य कारण ये हैं :

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* पशुओं को दुहने से पहले ठीक से सफाई न करना.

* पशुओं को दुहने वाले के हाथ व कपड़े साफ न होना.

* गांवों व शहरों में गंदी जगहों पर दूध निकालना.

* गंदे बरतनों में दूध निकालना व रखना.

* गाय के बच्चे को थन से दूध का पिलाना.

* दूध दुहने वाले का बीमार होना.

* दूध बेचने ले जाते समय पत्तियों, भूसे व कागज वगैरह से ढकना.

* देश की जलवायु का गरम होना.

* गंदे पदार्थों से दूध का अपमिश्रण करना.

साफ दूध का उत्पादन सेहत व ज्यादा मुनाफे के लिए जरूरी है, इसलिए ऐसे दूध का उत्पादन करते समय इन बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है :

दूध देने वाले पशु से

संबंधित सावधानियां

* दूध देने वाला पशु पूरी तरह सेहतमंद होना चाहिए. उसे टीबी, थनैला वगैरह बीमारियां नहीं होनी चाहिए. पशुओं की जांच समयसमय पर पशु चिकित्सक से कराते रहना चाहिए.

* दूध दुहने से पहले पशु के शरीर की अच्छी तरह सफाई कर लेना चाहिए. दुहने से पहले पशु के शरीर पर चिपके हुए गोबर, धूल, कीचड़, घास वगैरह साफ कर लेना चाहिए. खासतौर से पशु के शरीर के पीछे वाले हिस्से, पेट, अयन, पूंछ व पेट के निचले हिस्से की सफाई करनी चाहिए.

* दुहने से पहले अयन की सफाई पर खास ध्यान देना चाहिए व थनों को किसी जीवाणु नाशक के घोल के भीगे हुए कपड़े से पोंछ लेना चाहिए.

* अगर किसी थन में कोई बीमारी हो तो उस से दूध नहीं निकालना चाहिए.

* दुहने से पहले दूर थन की 2-4 दूध की धारें जमीन पर गिरा देनी चाहिए या अलग बरतन में इकट्ठा करनी चाहिए.

दूध देने वाले पशु के

बांधने की जगह

* पशु बांधने का व खड़े होने की जगह पूरी होनी चाहिए.

* फर्श पक्का हो. अगर पक्का फर्श नहीं हो तो कच्चा फर्श समतल हो. उस में गड्ढे वगैरह न हों, जिस से पेशाब व पानी बह जाए.

* दूध दुहने से पहले पशु के चारों ओर सफाई कर देनी चाहिए, गोबर, पेशाब हटा देना चाहिए. यदि बिछावन बिछाया गया हो तो दुहने से पहले उसे हटा देना चाहिए.

* दूध निकालने वाली जगह की दीवारें, छत वगैरह साफ होनी चाहिए. उन की समयसमय पर चूने से पुताई करवाते रहना चाहिए और फर्श की फिनाइल से धुलाई 2 घंटे पहले कर लेनी चाहिए.

दूध के बरतन से

संबंधित सावधानियां

* दूध दुहने का बरतन साफ होना चाहिए. उस की सफाई पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए. दूध के बरतन को पहले ठंडे पानी से, फिर सोडा या दूसरे जीवाणु नाशक रसायन से मिले गरम पानी से, फिर सादे खौलते हुए पानी से धो कर धूप में सुखा लेना चाहिए.

* साफ किए हुए बरतन पर मच्छरमक्खियों को नहीं बैठने देना चाहिए और  कुत्ता बिल्ली उसे जूठा न कर सकें.

* दूध दुहने के बरतन का मुंह चौड़ा व सीधा और ऊपर की तरफ खुलने वाला नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस से मिट्टी, धूल, गोबर वगैरह के कण व घासफूस के तिनके, बाल वगैरह सीधे दुहाई के समय बरतन में गिर जाएंगे इसलिए बरतन संकरे मुंह वाला हो और मुंह थोड़ा टेढ़ा होना चाहिए.

दूध दुहने वाले शख्स से

संबंधित सावधानियां

* दूध दुहने वाला आदमी या औरत सेहतमंद होना चाहिए. उसे किसी तरह की कोई बीमारी न हो.

* उस के हाथों के नाखून कटे होने चाहिए और दुहाई से पहले हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धो लेना चाहिए.

* ग्वाले या दूध दुहने वाले आदमी के कपड़े साफ होने चाहिए और सिर कपड़े से ढका हो.

* दूध निकालते समय सिर खुजलाना व बात करना, तंबाकू खा कर थूकना, छींकना, खांसना वगैरह गंदी आदतें नहीं होनी चाहिए.

दूसरी सावधानियां

* पशुओं को चारा, दाना, दुहाई के समय नहीं देना चाहिए, बल्कि पहले या बाद में दें.

* दूध में मच्छर मक्खियों का प्रवेश रोकना चाहिए.

* ठंडा करने से यानी 4-7 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर रखने से दूध में पाए जाने वाले जीवाणुओं की बढ़ोतरी रुक जाती है.

* दूध को कभी भी बिना गरम हुए इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए.

इन बातों पर अगर किसान भाई ध्यान दे तो स्वच्छ दूध का उत्पादन कर ज्यादा मुनाफा कमा सकतें हैं.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक से संपर्क करें.         ठ्ठ

इस मशीन से गाय और भैंस दोनों का दूध निकाला जा सकता है

गाय और भैंस के थनों की बनावट में थोड़ा फर्क होता है, इसलिए गाय का दूध दुहने वाली मशीन में थोड़ा सा बदलाव कर के इस मशीन से ही भैंस का दूध भी निकाला जा सकता है. भैंस का दूध निकालने के लिए मशीन का प्रैशर बढ़ाना होता है. डेरी डद्योग के लिए पशुपालक किसानों को सरकार अनुदान भी दे रही है. यह अनुदान पिछले दिनों तक केवल अनुसूचित जाति के लोगों को ही मिलता था, जो 33.33 फीसदी था. लेकिन अब सभी वर्ग के लोग इस अनुदान का लाभ ले सकते हैं.

मशीन से दूध निकालने की शुरुआत डेनमार्क और नीदरलैंड से हुई और आज यह तकनीक दुनियाभर के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जा रही है. आजकल डेरी उद्योग से जुड़े अनेक लोग पशुओं से दूध उत्पादन मशीन के द्वारा ले रहे हैं.

पशुओं का दूध दुहने वाली मशीन को हम मिल्किंग मशीन के नाम से भी जानते हैं. इस मशीन से दुधारू पशुओं का दूध बड़ी ही आसानी से निकाला जा सकता है. इस से पशुओं के थनों को कोई नुकसान नहीं होता है. इस से दूध की गुणवत्ता बनी रहती है और उस के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. यह मशीन थनों की मालिश भी करती और दूध निकालती है. इस मशीन से पशु को वैसा ही महसूस होता है, जैसे वह अपने बच्चे को दूध पिला रही हो.

मिल्किंग मशीन से दूध निकालने से लागत के साथसाथ समय की भी बचत होती है और दूध में किसी तरह की गंदगी नहीं आती. इस से तिनके, बाल, गोबर और पेशाब के छींटों से बचाव होता है. पशुपालक के दूध निकालते समय उन के खांसने व छींकने से भी दूध का बचाव होता है. दूध मशीन के जरीए दूध सीधा थनों से बंद डब्बों में ही इकट्ठा होता है.

“मेरी पहली शादी एक महीना, दूसरी शादी एक साल और तीसरी शादी 2 साल रही, मैं ने पहली और दूसरी शादी में तो तलाक ले लिया परंतु तीसरी शादी बस टूट गई”

सवाल…

मैं 45 वर्षीय बिजनैसमैन हूं. मेरी पहली शादी एक महीना, दूसरी शादी एक साल और तीसरी शादी 2 साल रही. मैं ने पहली और दूसरी शादी में तो तलाक ले लिया परंतु तीसरी शादी बस टूट गई. हम पतिपत्नी अलग हो गए. तलाक नहीं लिया. अब मेरी शादी करने की कोई इच्छा नहीं थी तो मैं ने सरोगेसी तकनीक से 2 बच्चे कर लिए हैं. मेरे मातापिता का कहना है कि बच्चे को मां की जरूरत है. ऐसी स्थिति में क्या मुझे चौथी शादी करनी चाहिए?

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जवाब…

आप ने यह नहीं बताया कि आप की तीनों शादियां टूटी क्यों. खैर, यह आप का पर्सनल मैटर है. अब जब आप ने सरोगेसी के माध्यम से 2 बच्चे कर लिए हैं तो आप को चौथी शादी के बारे में न सोच कर अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. अभी आप इस पूरी प्रक्रिया को समय दीजिए. जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं है. बच्चों को मां की जरूरत है, इस में दोराय नहीं, लेकिन यह बात आप को सरोगेसी से बच्चे करने से पहले सोचनी चाहिए थी. यदि आप ने चौथी शादी कर ली और वह भी निभ नहीं पाई तो क्या करेंगे. और मान लें कि निभ गई और चौथी पत्नी से बच्चा हो गया तो फिर आप की संपत्ति के बंटवारे में भी किचकिच होगी. वे सभी लड़ेंगे यदि आप ने वसीयत सही समय पर नहीं बनवाई तो. आपसी कलह, टैंशन वगैरह से आप का बुढ़ापा सुकून वाला नहीं, बल्कि दुखदायी हो सकता है. फैसला करना आप के हाथ में है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Crime Story: दगाबाज दोस्त

सौजन्या- सत्यकथा

जिला मुरादाबाद से करीब 19 किलोमीटर दूर है थाना मूंढापांडे. इसी थाना क्षेत्र का
एक गांव है जैतपुर विशाहट. रोहित सिंह इसी गांव का मूल निवासी था. वैसे वह अपनी पत्नी अन्नू के साथ मुरादाबाद शहर में रहता था. मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार में उस ने 400 वर्गगज में अपना मकान बनवा रखा था. रोहित पेशे से ट्रक ड्राइवर था और बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी करता था.

रोहित हफ्ते में कम से कम एक बार अपने गांव जैतपुर जरूर जाता था. गांव में उस के पिता सत्यभान सिंह परिवार के साथ रहते थे. रोहित का गांव मूंढापांडे कस्बे से करीब 6 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह गांव से बाइक से मूंढापांडे तक आता था और वहां पर भारतीय स्टेट बैंक के पास एक मोटर मैकेनिक की दुकान पर बाइक खड़ी कर के बस से बरेली चला जाता था.

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23 अगस्त, 2020 को रोहित बरेली जाने के लिए अपने गांव जैतपुर विशाहट से दोपहर करीब 12 बजे बाइक ले कर निकला. रात करीब 8 बजे रोहित के पिता सत्यभान सिंह ने रोहित को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. पिता ने उसे कई बार फोन मिलाया लेकिन हर बार फोन बंद मिला.ऐसा कभी नहीं होता था, इसलिए फोन न मिलने से सत्यभान सिंह चिंतित हुए. उन्होंने बरेली की उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में फोन किया, जहां रोहित नौकरी करता था. पता चला रोहित उस दिन अपनी ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था.
सत्यभान परेशान हो गए. उन्होंने मुरादाबाद में रह रही रोहित की पत्नी अन्नू से पूछा तो उस ने बताया कि वह मुरादाबाद नहीं आए, अपनी ड्यूटी पर ही होंगे. जबकि रोहित ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था.

बेटे की चिंता में सत्यभान और उन के घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. सुबह होने पर वह उस मोटर मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे, जहां रोहित अपनी बाइक खड़ी किया करता था. मैकेनिक ने बताया कि रोहित ने उस के यहां बाइक खड़ी नहीं की थी और न ही आया था.उधर अन्नू भी पति का फोन बंद मिनने से परेशान थी. अपनी चिंता वह ससुर से व्यक्त कर रही थी. सत्यभान ने अपने तमाम रिश्तेदारों के यहां भी फोन कर के रोहित के बारे में पता किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

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अंतत: सत्यभान ने 24 अगस्त, 2020 को थाना मूंढापांडे में बेटे रोहित की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी नवाब सिंह ने गुमशुदगी दर्ज होने के बाद जरूरी काररवाई शुरू कर दी.2 दिन हो गए, रोहित का कहीं पता नहीं चला. घरवाले उस की चिंता में परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें.
25 अगस्त, 2020 मंगलवार के अखबारों में अमरोहा देहात थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की लाश मिलने की खबर छपी. लाश गांव कंकरसराय के गन्ने के एक खेत से मिली थी. उस का सिर कुचला हुआ था.

सत्यभान के एक रिश्तेदार अमरोहा में रहते थे. रिश्तेदार ने सत्यभान को गन्ने के खेत में लाश मिली होने की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया कि मृतक के हाथ पर रोहित लिखा हुआ है, इसलिए आप अमरोहा देहात थाने आ कर लाश देख लें.खबर मिलते ही सत्यभान सिंह 26 अगस्त को परिवार के लोगों के साथ अमरोहा देहात थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी ने सत्यभान को बरामद लाश के फोटो व कपड़े दिखाए. कपड़ों से सत्यभान ने पहचान लिया कि कपड़े उन के बेटे रोहित के हैं.

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थानाप्रभारी लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें जिला अस्पताल ले गए. मोर्चरी में रखी लाश देखते ही सत्यभान फूटफूट कर रोने लगे. वह लाश उन के बेटे रोहित की ही थी.लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लाश उसी दिन मृतक के घर वालों को सौंप दी गई.

पोस्टमार्टम में पता चला कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई थी. इस के अलावा उस के सिर और लिंग को ईंट से बुरी तरह कुचला गया था. चूंकि गुमशुदगी का मामला थाना मूंढापांडे में दर्ज हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट थाना मूंढापांडे पुलिस के पास आ गई.थानाप्रभारी नवाब सिंह मामले को सुलझाने में जुट गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे की मृतक रोहित से कोई
गहरी दुश्मनी थी, इसलिए उस ने इतनी क्रूरता दिखाई.

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उन्होंने मृतक के पिता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है? अगर उन्हें किसी पर कोई शक हो तो बता दें. सत्यभान सिंह ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार निवासी अजय पाल व 2 अन्य लोगों पर शक जताया.इस के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम गठित की और 28 अगस्त को नामजद आरोपी अजय पाल और उस के साथी कुलदीप सैनी को मुरादाबाद स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मान लिया कि रोहित की हत्या उन्होंने ही की थी और यह सब  कुछ मृतक की पत्नी अन्नू के इशारे पर किया था. पुलिस ने अन्नू और अजय पाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन दोनों ने आपस में कई बार बात की थी और एकदूसरे को मैसेज भी भेजे थे.

दोनों से पूछताछ के बाद रोहित की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी. करीब 10 साल पहले रोहित सिंह की शादी संभल जिले के गांव भोजपुर की अन्नू के साथ हुई थी. उस समय रोहित मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाया करता था.

रोहित का गांव मुरादाबाद शहर से करीब 19 किलोमीटर दूर था, इसलिए उसे रोजाना आनेजाने में परेशानी होती थी. इस परेशानी से बचने के लिए उस ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती में 400 वर्गगज का एक प्लौट खरीद लिया. 5 साल पहले उस ने प्लौट पर अपना मकान बनवा लिया. उस की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. उस के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी.

रोहित का एक दोस्त था अजय पाल. वह भी मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाता था. इसलिए दोनों की दोस्ती हो गई थी. शाम को दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. अजय पाल का रोहित के घर आनाजाना लगा रहता था. बाद में रोहित सिंह की बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग गई. वह ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक चलाता था, जिस की वजह से वह कईकई दिन बाद घर लौटता था.

उसी दौरान अजय पाल के रोहित की पत्नी अन्नू से अवैध संबंध बन गए. पति की गैरमौजूदगी में अन्नू अपने प्रेमी के साथ खूब मौजमस्ती करती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए किसी का डर भी नहीं था.

रोहित जब बरेली से घर लौटता तो पत्नी को फोन कर के सूचना दे देता था. अन्नू सतर्क हो जाती और प्रेमी से भी सतर्क रहने के लिए कह देती थी. घर लौटने के बाद रोहित की अपने दोस्त अजय पाल के साथ महफिल सजती थी. रोहित दोस्त पर विश्वास करता था, यह अलग बात थी कि वही दोस्त विश्वास की आड़ में उस के घर में सेंध लगा चुका था.

2-3 दिन घर रुकने के बाद रोहित मातापिता से मिलने अपने गांव जैतपुर वशाहट जाता और फिर अगले दिन वहीं से ड्यूटी पर बरेली चला जाता था.उधर अन्नू और अजय पाल के संबंध गहरे होते जा रहे थे. उन्होंने जीवन भर साथ रहने की कसम खा ली थी. अजय अन्नू पर घर से भाग चलने का दबाव डालता था, लेकिन अन्नू घर से भागने को मना कर देती. वह कहती थी कि घर से भागने की जरूरत क्या है, यदि रोहित का काम तमाम कर दो तो रास्ता अपने आप साफ हो जाएगा.

अन्नू के प्यार में अंधे हो चुके अजय पाल को प्रेमिका की यह सलाह बहुत अच्छी लगी. उस ने अन्नू से वादा कर दिया कि वह रोहित का काम तमाम करा देगा. इस के बाद अन्नू और अजय पाल ने रोहित को ठिकाने लगाने की योजना बनानी शुरू कर दी.अजय ने इस बारे में अपने दोस्त कुलदीप सैनी से बात की. वह भी अजय का साथ देने को तैयार हो गया. फिर वे उचित मौके का इंतजार करने लगे.
23 अगस्त, 2020 को उन्हें यह मौका मिल गया. क्योंकि उस दिन रोहित ड्यूटी से अपने घर मुरादाबाद आया हुआ था और उसी दिन उसे मुरादाबाद से अपने गांव जैतपुर वशाहट जाना था. सुबह 9 बजे नाश्ता करने के बाद वह बाइक से गांव जाने के लिए निकल गया.

अन्नू ने यह जानकारी फोन से अजय को दे दी. योजना के अनुसार अजय पाल अपने साथी कुलदीप सैनी को ले कर पीतल बस्ती के आगे गुलाबबाड़ी में सड़क किनारे खड़े हो कर रोहित के आने का इंतजार करने लगा. रोहित वहां पहुंचा तो अजय ने हाथ दे कर उस की बाइक रुकवाई. अजय ने कुलदीप का परिचय रोहित से कराते हुए कहा कि इस की बहन मूंढापांडे में रहती है. हम लोग वहीं जा रहे हैं. तुम हमें मूंढापांडे छोड़ कर अपने गांव निकल जाना.

रोहित दोस्त की बात नहीं टाल सका. वह दोनों को अपनी बाइक पर बैठा कर चल दिया. अजय पाल और कुलदीप को मूंढापांडे छोड़ने के बाद रोहित अपने गांव जैतपुर विशाहट चला गया. उस ने अजय को बता दिया कि वह मातापिता से मिलने के बाद आज ही ड्यूटी पर बरेली चला जाएगा. उस का गांव मूंढापांडे से करीब 6 किलोमीटर दूर था.

अजय पाल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए वह मूंढापांडे में ही रोहित के लौटने का इंतजार करने लगा. अजय को यह बात पता थी कि रोहित अपनी बाइक मूंढापांडे में एक मैकेनिक के पास खड़ी कर के बस से बरेली जाता है, इसलिए अजय  और कुलदीप उस के आने का इंतजार करने लगे.

मातापिता से मिलने के बाद रोहित ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकल गया. उसे अपनी बाइक मैकेनिक के पास खड़ी करनी थी, लेकिन उस से पहले ही रास्ते में उसे अजय पाल और कुलदीप खड़े मिले. उन्हें देखते ही रोहित ने बाइक रोक दी. उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग अभी तक यहीं हो.’’ ‘‘हां, हम तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.’’ अजय बोला. ‘‘क्यों, क्या कोई खास बात है?’’ रोहित ने पूछा.
‘‘हां भाई, बात खास है तभी तो तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ अजय ने कहा.
‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘रोहित बात यह है कि यहां पर कुलदीप के किसी के पास मोटे पैसे फंसे हुए थे. आज सारे पैसे मिल गए. इसलिए हम लोग बहुत खुश हैं और इसी खुशी में आज पार्टी करना चाहते हैं.’’ अजय बोला.‘‘नहीं यार, अभी तो मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं. फिर कभी पार्टी कर लेंगे.’’ ‘‘अरे यार, एकएक पेग लेने में क्या बुराई है.’’ अजय ने जोर डाला.रोहित अपने दोस्त की बात को टाल नहीं सका. तभी अजय का दोस्त कुलदीप सैनी एक बोतल और पकौड़े ले आया. तीनों ने पकौड़े के ठेले पर ही शराब पीनी शुरू कर दी.

रोहित पर नशा ज्यादा चढ़ गया तो वह बोला, ‘‘आज मैं ड्यूटी नहीं जाऊंगा.’’ वे तीनों बाइक से दलपतपुर जीरो पौइंट हाइवे पर आ गए. हाइवे से सटा हुआ एक गांव है मछरिया. वहीं पर कुलदीप ने रोहित का मोबाइल ले कर उस की बैटरी निकाल दी, ताकि उस का किसी से संपर्क न हो सके.इस के बाद तीनों हाइवे से होते हुए कस्बा पाकवड़ा पहुंचे. पाकवड़ा में तीनों ने फिर शराब पी और खाना खाया. खाना खाने के बाद रोहित ने घर चलने को कहा तो अजय बोला, ‘‘अभी चलते हैं. हमें अमरोहा में कुछ जरूरी काम है. अमरोहा यहां से थोड़ी ही दूर है. बस, काम निपटा कर आ जाएंगे.’’

अजय और कुलदीप अपनी योजना के अनुसार रोहित को अमरोहा ले गए. रात करीब 10 बजे तीनों अमरोहा देहात के गांव कंकरसराय पहुंचे. उस समय तक रोहित को ज्यादा नशा चढ़ चुका था. नशे की हालत में दोनों उसे गन्ने के खेत में ले गए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

रोहित की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का सिर ईंट से कुचल दिया, जिस से उस का चेहरा पहचान में न आ सके. इस के अलावा उन्होंने उस के लिंग को भी ईंट से कुचल दिया. हत्या से पहले अजय के मोबाइल पर रोहित की पत्नी अन्नू का फोन आया था. अंजू ने उस से कहा था कि किसी भी हालत में रोहित को जिंदा मत छोड़ना. मरने से पहले रोहित दोनों के सामने गिड़गिड़ाया था कि यार मुझ से क्या गलती हो गई, मुझे क्यों मार रहे हो लेकिन उन का दिल नहीं पसीजा. कुलदीप ने रोहित की टांगें पकड़ लीं और अजय ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी.

अजय ने हत्या की जानकारी अन्नू को दे दी थी. हत्यारों को विश्वास था कि यहां रोहित की लाश कुछ दिनों में सड़गल जाएगी और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंचेगी लेकिन उन की यह सोच गलत साबित हुई. वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए.अभियुक्त अजय पाल और कुलदीप सैनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें रोहित की हत्या कर शव छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर 28 अगस्त, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया.

इस मामले में मृतक रोहित की पत्नी अन्नू का भी हाथ था, इसलिए पुलिस ने 29 अगस्त को अन्नू को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अन्नू ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

शादीखर्च: मरजी से करें न कि सामाजिक दबाव में

लेखक- शहनवाज 

शादी यानी 2 इंसानों का मिलन. शादियों के मौकों पर अकसर रिश्तों में पड़ी खटास को मिटाया जाता है, मगर कई बार इस का उलटा भी होता है. शादी के रिश्ते में बंधने के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है.

वर्ष 2018 में मुझे मेरे दोस्त ने अपने चाचा की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. यह शादी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होनी थी. मैं शादी से एक दिन पहले वहां पहुंच गया. घर को देख कर महसूस हो गया था कि उन की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर उस के चाचा खेती करते थे और औफसीजन में शहर में जा कर मजदूरी करते थे. मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि लड़के वालों की तरफ से किसी तरह की दहेज़ की डिमांड नहीं है. उन्होंने कहा है कि सिर्फ बरातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए.

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जब वर और वधू को सात फेरों के लिए खड़ा किया जा रहा था तब मेरी नजर पंडाल के बाहर एक ट्रक पर पड़ी जिस में घरेलू सामान, जैसे टीवी, फ्रिज, डबल बैड, अलमारी इत्यादि लोड किया जा रहा था. मुझे अपने दोस्त की बात याद आई पर उस समय मैं ने उस से इस विषय पर कुछ भी पूछना जरूरी नहीं समझा. जब शादी कार्यक्रम निबट गया और हम दिल्ली के लिए वापस रवाना हुए तो बस में मैं ने उस से पूछ ही लिया कि वह सामान किसलिए लोड किया जा रहा था?

उस ने जवाब दिया की वह सारा सामान उस के चाचा ने अपनी तरफ से तोहफे के तौर पर दिया था, ताकि कल को अगर कुछ भी होता है तो कोई उन की बेटी को ताना न मार सके. लड़के वालों के घर का डर नहीं, बल्कि उन के खानदान के लोग उन को ताना न मारें. उस ने यह भी बताया कि परिवार में बाकी शादियों में इसी तरह से ही घर का सामान देना पड़ा था. सो, उस के चाचा यह नहीं चाहते थे कि उन के घरपरिवारखानदान के लोग उन की बेटी की शादी के लिए कानाफूसी करें, बातें बनाएं और उन्हें ताने मारें. आखिर, वे अपने परिवार में अपना रुतबा बनाए रखने के लिए भी खुल कर खर्चा कर रहे थे.

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कुछ ऐसा ही हम ने हिंदी सिनेमा की कई सारी फिल्मों में भी होते हुए देखा है जिस में लड़की के पिता पूरी जिंदगी पाईपाई जोड़ कर बेटी की शादी के समय उन पैसों को खर्च करता है. यह भी हो सकता है कि कई लोगों को ऐसी शादी करने का सपना रहा हो परंतु जो व्यक्ति इन समारोह के लिए धनदौलत खर्च करता है, उसे ही पता होता है कि किस प्रकार से उस ने अपने बच्चों की शादी करवाई है.

कुछ ऐसा होता है सामाजिक दबाव

शादी के मौके पर कई प्रकार के सामाजिक दबाव आते हैं जो हमआप देखते हैं और उन को नजरअंदाज करते रहते हैं. मेरे पड़ोस में रहने वाले रामदास जी ने अपने बेटे रवि की शादी करवाई. कोरोना के कारण एक तो वैसे ही सभी की जेबें खाली थीं और ऐसे में शादी पर होने वाला खर्चा मामूली नहीं बल्कि किसी पहाड़ जितना बड़ा ही होगा. यों तो रामदास जी का दिल्ली में अपना मकान है, जिस कारण उन्हें लौकडाउन के इन कठिन दिनों में किसी किराएदार की तरह घर का भाड़ा नहीं देना पड़ा. लेकिन जब से लौकडाउन लगाया गया तो ज्यादातर लोगों की तरह उन की नौकरी भी छुट गई.

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इन्हीं दिनों रवि को एक युवती से प्रेम हो गया और वह अपने पिता से उस युवती से शादी करने की जिद्द करने लगा. रामदास जी ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि घर की माली हालत अभी सही नहीं है, जब सबकुछ नौर्मल हो जाएगा तो उस की शादी करवा देंगे. लेकिन रवि नहीं माना. आखिर, रामदास जी को अपने बेटे की शादी करने के लिए झुकना पड़ा. उन्होंने भी सोचा कि कोरोना के समय ज्यादा लोगों को आमंत्रित नहीं करेंगे और लड़की वालों से किसी तरह की कोई डिमांड नहीं करेंगे.

पर, युवा तो युवा होते हैं, थोड़ाबहुत करतेकरते रवि के दोस्त, रिश्तेदार और कुछ जानपहचान वालों को  मिला कर 50 लोगों के आसपास बरातियों की लिस्ट तैयार की गई. शादी हो जाने के बाद पता चला कि रवि को ससुराल की तरफ से एक बाइक और घर का थोड़ाबहुत सामान मिला है.

शादी के 3 दिनों बाद रवि अपने पिता से लड़की वालों और अपने दोस्तों को अपने घर पर छोटामोटा रिसैप्शन देने की मांग करने लगा. उस ने कहा कि अगर हम ऐसा नहीं करते तो लड़की वालों के परिवार और रिश्तेदारों के बीच क्या इज्जत रह जाएगी. सो, रामदास जी को उस की यह बात भी माननी पड़ी.

रामदास जी और रवि के इस किस्से से साफ है कि किस प्रकार सिर्फ सामाजिक दबाव ही नहीं, बल्कि एक पिता पर अपने बेटे का या फिर कई जगह अपनी बेटी का दबाव भी रहता है. अब इस छोटी सी शादी में होने वाले खर्चे के बारे में आप खुद सोच सकते हैं. एक तो जेब में पैसे नहीं, इस के बावजूद, लोगों को ऐसे समारोह में सिर्फ सामाजिक दबाव के कारण खर्चा करना पड़ता है, मात्र इस लिए कि उन के सम्मान का मजाक न बनाया जा सके.

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अब कोई यह कह सकता है कि क्या लोग शादी करना छोड़ दें या फिर अपने रिश्तेदारों को न बुलाएं. यहां पर लोगों के सामूहिक मेलमिलाप पर रोक लगाने की बात नहीं हो रही, और ना ही किसी को शादी न करने की सलाह दी जा रही है, बल्कि इस विषय का सार संग्रह बेहद सिंपल है. वह, बस, इतना है कि लोग शादियों में खर्चा करने से पहले समाज के बाकी लोगों के बारे में सोचते हैं. लोगों के दिमाग में उन की आर्थिक स्थिति, अपने बच्चों की खुशी से ज्यादा यह सोच हावी रहती है कि अगर ऐसा नहीं किया, तो लोग क्या कहेंगे.

लौकडाउन के आजकल के दिनों में शादी के मौके पर पैसा खर्च करना अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है. इस से कई तरह के व्यापार जुड़ें हैं, उदाहरण के लिए कैटरर (हलवाई) से खाना बनवाना, बैंक्वेट हौल बुक करवाना या फिर समुदाय भवन बुक करना, वेटर का काम, शादी कराने के लिए पंडित, मौलवी या पादरी की सेवा इत्यादि.

ये हैं उपाय

सामाजिक दबाव में संपन्न हुई शादी के खर्चे का समाज पर बुरा असर पड़ता है. सामाजिक दबाव के कारण किया गया खर्चा दूसरों को भी उसी प्रकार से खर्च करने के लिए मजबूर करता है. शादियां आजकल सिर्फ 2 लोगों के दिलों का बंधन नहीं हैं बल्कि स्टेटस को प्रदर्शित करने का ढोंग भी बन गई हैं. शादियां एकदूसरे को ताना मारने का जरिया भी हो गई हैं.

किसी पिता का यह सपना हो सकता है कि वह अपने बच्चों की शादी धूमधाम से करे, या फिर किसी का खुद का ही यह सपना हो सकता है कि वह अपनी शादी बाकियों से अच्छे से करेगा. यहां किसी को उस के सपनों को पूरा करने से रोकने की बात नहीं हो रही, बल्कि लोगों को एक ऐसी मानसिकता के विकास की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है कि लोग अपनी और अपने बच्चों की शादियों पर खर्चा अपने अनुसार करें,  उन के भविष्य को ध्यान में रख कर करें.

जितना खर्चा एक शादी के संपन्न होने में लगाया जाता है, उस का यदि आधा पैसा भी लोग बचा लें, तो रकम छोटी नहीं होगी. गरीबों के लिए, निम्नमध्य आयवर्ग के लोगों के अनिश्चित भविष्य के लिए आने वाले समय में यह पैसा काम आ सकता है. मेरे एक दोस्त (प्रवीण) की कहानी इसी से प्रेरित है.

प्रवीण के पिता ने उस की शादी किसी बड़े बैंक्वेट हौल में या किसी बड़े से पार्क को बुक कर नहीं की, बल्कि इलाके के एसडीएम औफिस में जा कर मैरिज रजिस्ट्रेशन करा कर कानूनी तरीके से करवाई. रजिस्ट्रेशन हो जाने के 3 दिनों बाद रिसैप्शन के लिए उन्होंने सरकारी समुदाय भवन बुक किया जिस में कुल 150 लोगों को आमंत्रित किया. अगर वे परंपरागत तरीके से अपने बेटे की शादी करवाते तो शायद मौजूदा खर्चे का 3 गुना अधिक खर्च होता. उन्होंने बाकी बचे हुए पैसों की प्रवीण के नाम पर एफडी करवा दी, जो कि आने वाले समय में उस के काम आएगी. और सिर्फ यही नहीं, लड़की वालों ने भी के वधू के नाम पर बैंक में एफडी करवा दी, जिस से जरूरत के वक्त उसे कैश कराया जा सके.

कितनी समझदारी से प्रवीण के पिताजी ने उस की शादी करवाई, आप खुद भी अंदाजा लगा सकते हैं. आज समाज की जरूरत भी यही है की वह इस बढ़ती हुई महंगाई को ध्यान में रखे. समाज की इस बोझ वाली मानसिकता को तोड़ने के लिए जरूरी है कि हम सब कदम बढ़ा कर परंपरागत तरीके से नहीं, बल्कि कानूनी तरीके से मैरिज रजिस्ट्रेशन करवाएं. रिश्तेदारों से मेलमिलाप खत्म करने की नहीं, बल्कि उसे एक नया स्वरूप देने की जरूरत है. परंपरागत तरीकों से शादियां करनेकरवाने से सिर्फ दिखावे और अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिलता है. इस के अलावा, रिश्तेदारों द्वारा छत्तीस चीजों में कमियां निकाली जाती हैं अलग से.

जीवनसाथी – भाग 3 : मृदुल के प्रेम की फुहार क्या प्रांजल के जीवन में फूल खिला सकी

‘‘वे मन ही मन बुदबुदा कर बोले, ‘मुझे तो अपनी बेटी को ले कर सारी दुनिया से डर लगता है.’

‘‘मैं बेटी और उस की सहेलियों के लिए लड्डू, मठरी वगैरह बना रही थी तो पल्लव बोले, ‘कल तो तुम्हारी लाड़ो आ रही है लेकिन आज सुबह से ऐसी तैयारी चल रही है जैसे बेटी नहीं, तुम्हारा दामाद ही आ रहा हो.’

‘‘मैं बोली, ‘आप भी, बस, दामाद भी समय पर आ जाएगा. उस की सहेलियां आ रही हैं कि नहीं?’

‘‘‘हांहां, लाओ, परची दो तो सामान ला दूं.’

‘‘‘तुम्हारी बेटी हम लोगों के लिए गिफ्ट ला रही है,’ पल्लव हंस कर बोले, ‘तुम्हारी बेटी तो तुम्हारी तरह पक्की गृहस्थिन है. रहती वहां है लेकिन मन उस का यहां रहता है. जाने कितनी उस की फुजूलखर्ची की आदत है.’

‘‘रात में उन्हें करवट बदलते देख मैं बोली, ‘क्या बेटी के आने की खुशी में नींद उड़ी हुई है?’

‘‘‘नहीं, बलवंत आया था. वह धमकी दे कर गया है.’

‘‘‘मैं ने प्रांजल को समझा दिया है. वह आखिर आप की बेटी है, आप का कहना जरूर मानेगी. आप सो जाइए, सुबह स्टेशन जाना है. उस की सहेलियां भी तो आ रही हैं.’

‘‘सुबह हंसतीचहचहाती लड़कियां आ गई थीं. हम लोगों के लिए तो घर में जश्न का माहौल था. मुझे किचन से फुरसत नहीं थी तो पल्लव को बाजार के कामों से. पल्लव ने टैक्सी बुला दी थी. हम सब इमामबाड़ा, भूलभुलैया, रेजीडैंसी देखने गए. अमीनाबाद की मशहूर चाट खा कर सब खुश हो गई थीं. फिर हजरतगंज में जा कर चिकन का सूट सब ने खरीदा.

‘‘अगला दिन भी मस्ती में बीता था. पल्लव सुबह से कुछ ढीले थे इसलिए वे घर में ही रहे. हम सब रात में प्रांजल की सहेलियों को टे्रन में बिठा कर थके हुए घर पहुंचे तो पल्लव बेचैनी की हालत में यहांवहां चहलकदमी कर रहे थे. पूछने पर बोले, ‘बेटा, मेरा ब्लडप्रैशर शायद बढ़ा हुआ है. दिनभर की भागदौड़ में अपनी दवा लाना भूल गया था. इसलिए कल से दवा नहीं खाई है.’

‘‘प्रांजल नाराज हो कर बोली, ‘पापा, आप को मैं क्या कहूं? खुद डाक्टर हो कर इतनी बड़ी लापरवाही.’

‘‘उस ने ब्लडप्रैशर नापा और घबरा कर दवा के डब्बे में दवा ढूंढ़ती रही और न मिलने पर एकदम स्कूटी ले कर दवा लेने के लिए चल दी थी. पल्लव की हालत देख उस का चेहरा उतर गया था. दवा खरीदते वक्त साढ़े 10 बज गए थे. दिसंबर की सर्द रात थी. सड़क सुनसान थी. तभी एक बाइक सवार ने उस की स्कूटी में पीछे से टक्कर मार दी. वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर गई. बाइक पर 2 लड़के थे. दोनों उसे घसीट कर सड़क के किनारे झाड़ी में ले गए. प्रांजल ने जूडोकराटे के सारे दांव उस समय आजमाए लेकिन उन दोनों के बलिष्ठ हाथों की मजबूती में वह विवश होती जा रही थी. प्रांजल ने मौका लगते ही एक लड़के के हाथ में जोर से दांत गड़ा दिए, जिस से वह बिलबिला उठा परंतु वह फिर और बर्बर हो उठा. प्रांजल ने उस के मुंह पर थूक दिया. उन दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से छिपाए हुए थे. धीरेधीरे वह अशक्त होती जा रही थी.

‘‘तभी पैट्रोलिंग वाली पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनते ही उस में से एक चिल्ला उठा था, ‘भाग बलवंत, पुलिस आ रही है.’ दोनों ने बाइक स्टार्ट की और जाने किधर उड़नछू हो गए. तब तक वह बाइक का नंबर याद कर चुकी थी. बदहवासी की हालत में भी उस ने पापा की दवा का पैकेट वहां से उठा लिया था.

‘‘पिछले कुछ पलों में ही उस के साथ इतना कुछ हो चुका था कि सहसा वह उस पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. परंतु उस ने अपना साहस नहीं खोया और पुलिस को बाइक का नंबर व बलवंत का नाम बता कर तेजी से स्कूटी चला कर घर चली आई.

‘‘मैं परेशानी की हालत में बरामदे में चहलकदमी कर रही थी.

‘‘‘बड़ी देर लग गई, बेटा?’

‘‘‘पापा ठीक हैं?’

‘‘‘नहीं, बहुत बेचैन हैं.’

‘‘वह पापा की नजरों से बचना चाहती थी. लेकिन वह उन की नजरों से नहीं बच सकी क्योंकि वे बाहर आ गए थे. प्रांजल के फटे हुए कपड़े, बिखरे हुए बाल, यहांवहां खरोंचों के निशान, उस का उड़ा हुआ बेजान चेहरा किसी अनहोनी का स्पष्ट संकेत कर रहा था. पल्लव एकबारगी चिल्ला कर बोले, ‘यह  बलवंत की ही कारस्तानी होगी, गुंडा कहीं का. तुम रात के समय अकेले घर से क्यों गई थीं?’

‘‘गुस्से में आपे से बाहर हो कर मुझ पर चिल्लाने लगे, ‘तुम उस के साथ नहीं जा सकती थीं. मैं मर थोड़े ही जाता. मैं ने तुम से कहा था कि बलवंत मुझे धमकी दे कर गया है. मेरा मोबाइल दो, मैं पुलिस को फोन करूंगा.’

‘‘प्रांजल बोली, ‘पापा, प्लीज, आप शांत हो जाइए. आप की तबीयत ठीक नहीं है. पहले आप दवा खाइए.’ उस के चेहरे पर गहरा दर्द और निराशा झलक रही थी.

‘‘पल्लव के मुंह से निकला, ‘हाय, यह क्या हो गया? अब मैं क्या करूं,’ पल्लव मुंह पकड़ कर तेजी से बाथरूम की ओर बढ़े और वहीं धड़ाम से गिर पड़े.

‘‘प्रांजल ने अपने पापा को बचाने का भरपूर प्रयास किया परंतु सबकुछ एक क्षण में ही समाप्त हो चुका था. मैं बेहोश हो चुकी थी.’’

प्रांजल शायद पहले से ही अपनी मां की सारी बातें सुन रही थी. आगे की बातें वह बताने लगी, ‘‘एक ओर पापा पड़े हुए थे तो दूसरी ओर बेहोश मां, साथ में मेरा तनमन दोनों गंभीर रूप से घायल थे. किसी तरह कोशिश कर के मां को होश में लाई थी.

होश में आते ही मम्मी के रोने की आवाज से पासपड़ोस और रिश्तेदारों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. सुबह होते ही पुलिस आ गई थी और बलवंत की कहानी लोगों को पता चल चुकी थी.

‘‘सब की निगाहों में पापा की मौत के लिए मैं गुनाहगार थी. उन सब की निगाहों में मेरे प्रति घृणा थी. चाचा, बूआ, मामा, मौसी आदि सब का एक ही विचार था, ‘गुंडे से भिड़ने की क्या जरूरत थी. उस के बाप की ऊपर तक पहुंच है, वे तो उसे छुड़ा ही लेंगे. नुकसान तो तुम्हारा ही हुआ. बिनबाप की हो गईं. तुम्हारी शादी भी वे नहीं कर पाए. सारे अरमान उन के मन में ही रह गए.’

‘‘रातदिन रिश्तेदारों की कानाफूसी और तानों से मैं परेशान हो चुकी थी. परंतु मैं  कान बंद कर मां का हाथ पकड़े बैठी रहती. इधर घर में दुखद अध्याय चल रहा था. मां कठपुतली की तरह रिश्तेदारों के कहने के अनुसार सारे काम कर रही थीं. उधर, बलवंत पकड़ा जा चुका था, इसलिए मेरा थानाकोतवाली का चक्कर चालू हो गया था. मेरे द्वारा बताया गया बाइक नंबर और मेरे दांतों की छाप मेरे हक में थी परंतु पुलिस, कोर्टकचहरी के चक्कर लगातेलगाते मैं थक चुकी थी. कानूनी प्रक्रिया, कोर्ट में वकीलों की पूछताछ, बयान, गवाही आदि बहुत लंबा और एक दुखद अध्याय था.

‘‘आखिरकार बलवंत को 1 वर्ष का सश्रम कारावास और 10 हजार का जुर्माना हुआ.

‘‘मां मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पापा के क्लीनिक में ले गई थीं. वहां हम दोनों मांबेटी फूटफूट कर रो पड़े थे. मैं रोज सुबहशाम क्लीनिक जाने लगी थी. किसी का मुंह तो बंद नहीं कर सकते थे. क्लीनिक आतेजाते लोगों के ताने मेरे कान में अकसर पड़ जाते थे, ‘ऐसे ही लड़कों ने थोड़े ही पकड़ लिया होगा? इस ने जरूर उन्हें उकसाया होगा. आधी रात में दवा के बहाने से अकेले घर से जाने का क्या काम था. डाक्टर बुला लेती. बड़ी बहादुर बनती थी. अपने बाप की जान ले ली वगैरह.’

‘‘थाना कोतवाली में पुलिसवालों की गंदी, लोलुप निगाहों को मैं ने झेला है. वे इस प्रकार देखते थे मानो मेरे आरपार देख रहे हैं. एकदूसरे से कहते थे, ‘ऐसी सुंदरी को देख कर बलवंत क्या, मेरी भी लार टपकने लगती है.’

‘‘यह सब सुनतेसुनते मैं पत्थर बन चुकी थी. प्रैक्टिस चलती नहीं थी तभी मैं ने वात्सल्य नर्सिंग होम में जाना शुरू किया जहां मेरी मुलाकात आप से हुई थी. मैं आप से भी दूरदूर रहती हूं कि फिर कोई मुझ पर अपनी उंगली दिखा कर न कहे  कि यही वह लड़की है जिस के साथ 2 लड़कों ने बलात्कार किया था.

‘‘पापा तो एक पल में दुनिया से कूच कर गए थे जिस की जिम्मेदार मैं हूं परंतु मैं तो हर पल मरती हूं. यह समाज के ताने और व्यंग्यबाण मेरे दिल को लहूलुहान करते रहते हैं. मेरे मन में अपने पापा की मौत का अपराधबोध है.

‘‘मैं अपने को भूलना चाहती थी, इसलिए अपने को रातदिन अपने पेशे में व्यस्त रखती. मैं एक नामी सर्जन बन गई. नैशनल, इंटरनैशनल अवार्ड मुझे मिलते रहते हैं. परंतु डा. मृदुल, मैं कैसे विश्वास करूं कि भविष्य में कोई दुराचारी मुझ पर हमला नहीं करेगा. क्या स्त्री होना अभिशाप है कि पुरुष बल प्रयोग कर के उस की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करे? पुरुष बलशाली है, इसलिए उस को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने से शारीरिक रूप से कमजोर स्त्री के साथ कोई भी घिनौनी हरकत कर के समाज में सम्मानपूर्वक जीवित रहे. जबकि स्त्री, जिस का कोई कसूर नहीं होता, अपमान का दंश उसे ही झेलना पड़ता है. मैं ने तब सोचा था कि वह वहशीपन में कामयाब तो हो गया है परंतु भविष्य में उस का प्रतिफल उसे अवश्य भुगतना पड़ेगा जब दूसरा गुंडा या वहशी उस की मां, बहन, पत्नी या बेटी के साथ ऐसी जलील हरकत करेगा, उस क्षण उस के पास करुणक्रंदन के अतिरिक्त कुछ न होगा.

‘‘गलत काम की सजा चाहे देर से मिले पर मिलती जरूर है. आज बलवंत के आंसू देख कर मुझे यही महसूस हुआ. लेकिन उस बेचारी निरपराध बच्ची के कष्ट को देख कर मेरा मन बहुत विचलित हो उठा है,’’ बोलतेबोलते प्रांजल फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘शांत हो जाओ, प्रांजल, इसे एक हादसा समझो. दुर्घटना तो किसी के साथ भी घट सकती है,’’ डा. मृदुल सांत्वना देते हुए बोले.

‘‘मृदुल, प्लीज, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. आप को एक से एक सुंदर जीवनसाथी मिल जाएगा.’’

‘‘प्रांजल, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. इस घटना में तुम्हारा क्या दोष है. मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं. मेरे मन में तुम्हारे लिए बहुत इज्जत है.’’

‘‘मृदुल, आज आप मुझे दयाभाव से अपना भी लेंगे तो बाद में समाज के तानों को सुन कर पछताएंगे. इसलिए मैं आप से प्रार्थना करती हूं, मेरे जीवन से दूर चले जाइए.’’

‘‘आंटी, प्लीज, अब आप ही प्रांजल को समझाइए. मैं इस से सच्चा प्यार करता हूं. शादी करना चाहता हूं.’’

प्रीतिजी ने प्रांजल का हाथ डा. मृदुल के हाथ में पकड़ा कर दोनों को अपने गले से लगा लिया. उन की आंखें खुशी के आंसुओं से भीग उठी थीं.

‘‘प्रांजल, मैं बहुत खुश हूं, जो तुम्हें डा. मृदुल जैसा जीवनसाथी मिला है.’’

‘‘नहीं मां, मेरा जीवनसाथी तो मेरा डाक्टरी का पेशा है.’’

‘‘बेटी, जिद छोड़ो. डा. मृदुल ने भी अकेले रह कर डाक्टरी को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया है. इसलिए तुम दोनों एक और एक मिल कर ग्यारह के बराबर हो जाओगे. तुम दोनों अपने पेशे को नए उत्साह, उमंग के साथ नई ऊंचाइयों पर ले जाओगे,’’ अपनी बात कह कर प्रीतिजी अंदर चली गईं.

डा. मृदुल भीगे स्वर में बोले, ‘‘प्रांजल, मैं अपने जीवनसाथी का इंतजार करूंगा.’’

मृदुल ने देखा, प्रांजल की आंखों में मूक सहमति थी.

 

बिग बॉस 14 से हुई गौहर खान की विदाई , सिद्धार्थ और हिना भी जल्द होंगे बाहर

बिग बॉस 14 को शुरुआत से ही मजेदार बनाने के लिए शो के मेकर्स ने पहले से ही कुछ ऐसा प्लान बनाया था कि टीआरपी में कोई कमी न हो. घर के अंदर बीते सीजन में तीन सीनियर्स को बतौर एंट्री करवाई गई है. जो कि इस साल के कंटेस्टेंट को गाइड करते नजर आ रहे थे.

शो ने अपने दूसरे हफ्ते को पूरा कर तीसरे हफ्ते में पहुंच चुका है इसमें आएं दिन कुछ न कुछ नया होते रहता है. ऐसे में इस शो में तीन सीनियर्स आएं थें. गैहर खान, हिना खान , सिद्धार्थ शुक्ला. जिसमें से गौहर खान कि घर से विदाई हो चुकी है.

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#BiggBoss2020 #Breaking: #GauaharKhan has just left the house!! Guess #HinaKhan and #SidharthShukIa will soon follow!!

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खबर के मुताबिक सिद्धार्थ शुक्ला और हिना खान भी घर से जल्द विदा लेंगे. अब देखना यह है कि सिद्धार्थ और हिना खान में से पहले कौन घर से बाहर जाएगा.

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बीते दिनों सीनियर्स ने एक टास्क दिया था जिसमें अलग-अलग टीम बनाई गई थी. जिसमें घर में रहने वाले सदस्यों को ही ये हक दिया गया था कि वह अपनी टीम को चुन सकते हैं. जिसके बाद सभी ने अपने- अपने पसंदीदा सीनियर्स के साथ अपनी टीम बनाई थी.

वहीं शो के दौरान सिद्धार्थ शुक्ला और हिना खान में तगड़ी बहस भी छिड़ गई थी. जिसमें दोनों ने अपने- अपने काम और अपनी टीम को बेहतर बताया था.

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वहीं खबर ये भी है कि सलमान खान सीनियर्स से ये सवाल पूछने वाले हैं कि आखिरकर सीनियर्स अपनी टीम को मैनेज क्यों नहीं कर पा रहे हैं. क्या दिक्कत आ रही है.

शो को अश्लील बताने पर कपिल शर्मा ने तोड़ी चुप्पी, मुकेश खन्ना को दिया ये जवाब

मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा ने हाल ही में अपने शो पर महाभारत की पूरी टीम को बुलाया था. ऐसे में सभी लोग आएं थे लेकिन लीड रोल में नजर आने वाले मकेश खन्ना कहीं नजर नहीं आएं थे. शो के बाद मुकेश खन्ना ने कपिल शर्मा शो को फूहड़ और अश्लील बताया.

इसके बाद कपिल शर्मा ने अपनी निराशा पर चुप्पी तोड़ी है. इनविटेशन को अस्वीकार करते हुए उन्होंने कहा था कि भले ही कपिल शर्मा शो देश में लोकप्रिय है लेकिन मुझे इससे खराब और फूहड़ शो कोई नहीं लगता है.

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इसमें पुरुष महिलाएं का कपड़ा पहनते हैं और लोग इसे देखकर अपना पेट पकड़कर हंसते हैं. मुझे इससे खराब कुछ लगता ही नहीं है. इसलिए इस को मैं नहीं पसंद करता हूं.

इस बात  का जवाब देते हुए कपिल शर्मा ने कहा कि लोग अपना कमेंट करते रहें मैं लोगों को हंसाने का काम करता रहूंगा. मुझे लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

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वहीं एक रिपोर्ट में कपिल शर्मा ने बात करते हुए कहा है कि मैं और मेरी टीम इस महामारी में भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते रहे हैं. ऐसे में हमें किसी से कोई शिकायत नहीं है.

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मैं भविष्य में भी अपने काम को करना जारी रखूंगा. मुझे लोगों से कुछ लेना देना नहीं है. वहीं कुछ लोग सोशल मीडिया पर कपिल शर्मा का सपोर्ट भी कर रहे हैं. उनके काम की सराहना भी कर रहे हैं.

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हालांकि इस देश में कुछ प्रतिशत लोग ही होगें जो कपिल शर्मा के शो को देखना नहीं पसंद करते होंगे. वैसे बहुत ज्यादा लोग ऐसे हैं जो इस शो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

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