लेखिका- स्नेहा सिंह 

‘ना’ एक सरल शब्द है जो महज एक अक्षर का है लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए दूसरे के सामने ना उच्चारण कर पाना कठिन होता है. आइए जानें कुछ तरीके जिन्हें अपना कर आप ‘ना’ कहने की कला में हिचकेंगे नहीं और अपना जीवन आसान बना सकेंगे. हम को अकसर ऐसा लगता है कि अगर कोई अपना थोड़ा बदल जाए या हमारी सुनने लगे तो परिस्थितियां काफी आसान हो जाएंगी.

ऐसी शिकायत लगभग हर आदमी की होती है. पर, इस तरह की सारी जिम्मेदारी हम सभी दूसरे पर डालते हैं. हम दुखी हैं, इस के लिए भी कोई दूसरा आदमी ही जिम्मेदार है. दूसरों पर आरोप लगाना या अपनी तकलीफों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराना, यह मनुष्य का स्वभाव है. खासकर जब आदमी मुश्किलों में होता है, तब ऐसा ही लगता है. हम इस ‘अगर और ‘तब’ के चक्कर में न पड़ें, तो दूसरों के प्रति हमारी जो शिकायतें हैं, वे अपनेआप खत्म हो जाएंगी. यह हैरानी की ही बात है कि हम खुद को बदलने के बजाय दूसरे को बदलने के बारे में सोचते हैं. अगर हम खुद प्रयास करें,

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तो परिस्थितियों को बेहतर बना सकते हैं. परिस्थितियों को सुधारने का एक दूसरा उपाय भी है और वह है मौके पर ‘ना’ कहना. ‘ना’ कहने की भी एक रीति होती है. इस कला को सीखना अतिआवश्यक है. परिस्थितियों को बदलने की जरूरत नहीं है. दूसरी बात यह कि जब हम व्यस्त होते हैं तो हमें धीरज और आराम की जरूरत होती है. इस के लिए हमें बारबार ‘ना कहने की जरूरत पड़ सकती है. महत्त्वपूर्ण कामों के लिए अपनी ऊर्जा को बचाना जरूरी है. यह बात जानते हुए भी हम ‘ना’ कर नहीं पाते और दुखी होते हैं. ना कहने की कला में आप माहिर हैं तो कभी भी आप तनाव में नहीं रहेंगे. सभी आप को सक्षम और कुशल मानेंगे. लोग आप के नेतृत्व में काम करने के लिए तैयार रहेंगे.

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