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निशांत मलखानी होगें बिग बॉस के घर के पहले कैप्टन, फैंस ने जाहिर कि अपनी खुशी

टीवी जगत के मशहूर एक्टर निशांत मलखानी ने हाल ही में बिग बॉस में एंट्री मारी है. कुछ समय पहले दर्शके इन्हें सीरियल ‘गुड्डन तुमसे न हो पाएगा’ में खूब पसंद करते थें. इस सीरियल में इनका अंदाज दर्शकों कोकाफी पसंद आता था.

दरअसल, घर में आज रात कैप्टसीं का टास्क खत्म होने के बाद पहले कैप्टन का ऐलान कर दिया जाएगा. खबर है कि सिद्धार्थ मलखानी इस सीजन के पहले कप्तान बनने वाले हैं.

निशांत मलखानी के आने के बाद इस शो के पत्ते धीरे-धीरे खुलते नजर आ रहे हैं. शो की शुरुआत से ही वो हर कदम फूंक- फूंककर रख रहे हैं.

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वहीं फैंस निशांत मलखानी के कैप्टन बनने की खबर को सुनने के बाद से फूले नहीं समा रहे हैं. एक यूजर ने कमेट करते हुए कहा है कि भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं कि निक्की नहीं बनी वरना इसका इगो तो बिग बॉस से भी ज्यादा बड़ा है.

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कैप्टेंसी के टास्क के दौरान निक्की और जान कुमार सानू के बीच खूब लड़ाई हुई थीं. दोनों एक- दूसरे से खूब भीड़ते नजर आ रहे थें.

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वहीं बीती रात बिग बॉस ने पवित्रा और एजाज खान को रेड जोन में रखने के लिए कहा है. रेड जोन में जो भी कंटेस्टेंट होगें उन्हें एलिमिनेशन का सबसे ज्यादा खतरा है.

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वहीं बिग बॉस के कुछ मेंबर्स ऐसे भी हैं जो निशांत मलखानी के एंट्री से खुश नहीं हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि क्या यह अपना टास्क सभी से कर पाएंगे या लोगों के इनकी बॉन्डिंग कैसी होगी. अब देखना यह है कि आगे होता क्या है.

द चिकन स्टोरी-भाग 1 : उपकार की सफलता से उसके दोस्त हैरान क्यों थें?

‘अरे यार, यह उपकार तो बड़ा छिपा रुस्तम निकला, पूरी यूनिवर्सिटी में टौप मार दिया,’ इकबाल ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहा.

‘हमें तो लग रहा था वंदना या रुचि ही क्लास में टौप करेंगी.  इस ने तो क्लास ही नहीं, पूरी यूनिवर्सिटी को पछाड़ दिया,’ विनोद ने अपनी राय दी.

‘तुम्हारा तो वह सब सेअच्छा दोस्त है, वह टौप और तुम मुश्किल से, बस, पास हुए हो,’ अजहर ने मेरी तरफ देखते हुए यह कहा तो सब हंसने लगे और मैं खिसिया कर रह गया.

दोस्त अगर फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन अगर दोस्त टौप कर जाए, तो ज्यादा दुख होता है.  यह डायलौग भले ही अभिनेता व निर्माता आमिर खान की फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ में आया हो लेकिन अपना हाल भी कुछ ऐसा ही था.

उपकार बहुत कम बोलने वाला लड़का था और क्लास में उस की बातचीत ज्यादातर मुझ से ही होती थी.  अपनी क्लास में वंदना, रुचि, नेहा, जेबा और निधि जैसी एक से बढ़ कर एक इंटैलिजैंट लड़कियां थीं तो शंकर और अतीक भी किसी से कम नहीं थे. फिर भी उपकार इन सब को पीछे छोड़ कर न सिर्फ क्लास, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी में टौप आया था.

‘बधाई हो भाई, अब चुपचाप पार्टी दे दो,’ अगले दिन मैं ने उपकार को देखा तो उस को गले लगा लिया और आगे कहा, ‘तुम ने मेरा नाम रोशन कर दिया.’ मैं ने बनावट के साथ कहा तो सब हंसने लगे.

उपकार से मेरी दोस्ती कालेज के पहले ही दिन हो गई थी.  मेरी तरह वह भी कम बोलने वाला था.  इस के अलावा उस का घर मेरे घर के पास ही था. हम दोनों रोजाना कालेज साथ ही जाते थे. उपकार की माताजी का देहांत कई बरस पहले हो गया था. उस के पिताजी सरकारी औफिसर थे, सेवानिवृत्ति के बाद वे गांव में रह रहे थे.  शहर में उन का एक घर था जहां उपकार अकेला रहता था.

‘यार, कुछ टिप्स हमें भी दे दो,’ एक दिन कालेज जाते समय मैं ने उपकार से कहा और ठहाका लगते हुए आगे बोला, ‘क्लास में सब हमें देख कर हंसते हैं कि एक ऊपर से टौपर है और एक नीचे से.’

‘अरे, मैं कुछ अनोखा थोड़ी पढ़ता हूं. मैं भी वही सब पढ़ता हूं जो सब पढ़ते हैं,’ उपकार ने मुसकराते कहा.

‘अरे यार, मैं तुम्हारी टौप पोजीशन नहीं छीन लूंगा. मेरा लैवल मैं जानता हूं और तुम भी,’ मैं ने जोर से हंसते हुए कहा.  मैं मन ही मन समझ रहा था, यह अपना सीक्रेट नहीं बताना चाहता.

‘अच्छा, तुम खुद आ कर देख लेना. आज शाम को घर आ जाओ साथ मिल कर पढ़ते हैं,’ उस ने मुझे अपने घर आने की दावत दी तो मैं तुरंत तैयार हो गया.

शाम को मैं उस के घर पहुंचा. वह मेज पर किताबें फैलाए बैठा था और बड़े से रजिस्टर में कुछ लिख रहा था.

‘आओ बैठो. देखो, मैं कैसे प्रैक्टिस करता हूं. मैं हर सवाल को 5-7 बार अच्छी तरह पढ़ लेता हूं और फिर उस को लिख कर देखता हूं.  इस से मेरी प्रैक्टिस अच्छी रहती है और लिखने की वजह से मुझे जवाब भी अच्छे से याद रहता है,’ उपकार ने मुझे समझाते हुए कहा.

‘बस,’  मुझे तो तरीका कुछ खास नहीं लगा.

‘चलो अच्छा, हम दोनों यह सवाल साथसाथ पढ़ते हैं, फिर इस का जवाब लिख कर देखेंगे,’ उपकार ने मुझे कैमिस्ट्री का एक सवाल देते हुए कहा.

मैं ने सवाल एक बार पढ़ा. दूसरी बार पढ़ने पर मुझे तो लगा कि मुझे सब याद हो गया लेकिन उपकार ने सवाल को 4-5 बार पढ़ा.  फिर हम ने अपनेअपने रजिस्टर पर उस का जवाब लिखा और एकदूसरे के जवाब की जांच की. वाकई में उपकार ने पूरा जवाब एकदम सही लिखा था जबकि मैं ने कई चीजें छोड़ दी थीं.

‘देखा तुम ने.  बारबार पढ़ने और लिखने से मेरी अच्छी प्रैक्टिस हो जाती है,’ उपकार ने कहा.

मुझे उस की बात समझ में आ गई. फिर तो मैं रोज ही उस के घर जाने लगा और हम साथसाथ ही पढ़ाई करते.

‘सुनो, तुम्हारे घर कभी चिकन नहीं बनता क्या?’  उस दिन उपकार ने पढ़ाई करतेकरते अचानक मुझ से पूछा.

‘बनता है. क्यों?’ मैं ने पूछा.

‘अरे, तो कभी ला कर खिला न,’ उस ने बोला, तो मेरे हाथ से रजिस्टर गिरतेगिरते बचा.

‘मजाक कर रहे हो न?’  मैं ने संभल कर मुसकराते हुए पूछा.

‘इस में मजाक जैसा क्या है.  किसी दिन ले कर आओ, तो साथ खाते हैं,’ उपकार ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया.

‘अच्छा, तुम चाहते हो कि मैं एक उच्च कोटि के ब्राह्मण के घर चिकन ले कर आऊं ताकि तुम्हारे पिताजी मेरा कचूमर बना दें,’ मैं ने हंसते हुए कहा, ‘और तुम यह नौनवेज कब से खाने लगे?’ मैं ने जानना चाहा.

‘मैं तो स्कूलटाइम से ही खाता आ रहा हूं,’ उपकार ने जवाब दिया.

‘और क्या, तुम्हारे पिताजी को पता है तुम्हारी इस उपलब्धि के बारे में,’ मैं ने उस पर व्यंग्य कसा.

‘अरे, पिताजी यहां रहते कहां हैं. महीने में एकदो बार आते हैं. उन को पता कैसे चलेगा. और मैं कौन सा रोजरोज खाता हूं,’ अपने रजिस्टर में लिखतेलिखते उपकार बोला.

‘नहीं भाई, नहीं. मैं यह रिस्क नहीं ले सकता. अगर अंकलजी को पता चल गया, मैं यहां चिकन लाया था, तो मेरा यहां आना तो बंद हो ही जाएगा, मेरे बापू मेरी धुलाई करेंगे सो अलग,’ मैं ने हाथ खड़े कर दिए.

‘अरे, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, यार. मैं हर बार किसी होटल पर ही खाता हूं, लेकिन घर के चिकन की बात ही कुछ और होगी. तू, बस, अगली बार ले कर आ.’

वह किसी भी तरह मान ही नहीं रहा था. अब मैं भी था तो एक टीनेजर ही, आ गया उस की बातों में परिणाम की चिंता किए बगैर.

कुछ दिनों बाद घर पर चिकन बना, तो मैं ने थोड़ा सा चिकन एक डब्बे में डाला और शाम को पहुंच गया उपकार के घर. मेरे हाथ में डब्बा देख कर वह समझ गया कि उस में क्या है. खुशी से उस की आंखें चमक उठीं.

‘यार, खुश कर दिया तूने तो. आज तो मजा आ जाएगा. पढ़ाई कर के खाते हैं.’ उपकार की बातों से उस कीखुशी छलक रही थी.

दोनों बैठे पढ़ रहे थे कि अचानक गांव से उपकार के पिताजी आ गए. उन को देखते ही मेरी घिग्गी बंध गई, आंखों के सामने अंधेरा छा गया और जबान तालू से जा चिपकी. एक क्षण के लिए तो उपकार भी घबरा गया लेकिन फिर सामान्य सा बन कर बैठा रहा. घबराहट के मारे मैं अंकलजी को नमस्ते भी नहीं कर पाया.

‘कैसे हो बेटा, पढ़ाई हो रही है. बहुत अच्छे,’ अंकलजी ने मुझ से कहा, तो मेरी हालत और खराब हो गई.उपकार ने मुझे सामान्य रहने का इशारा किया.

‘मैं जरा पाठक साहब से मिल कर आता हूं,’ अंकलजी ने उपकार से कहा और कपड़े बदलने अंदर कमरे में चले गए. मैं ने जल्दी से चिकन का डब्बा टेबल के नीचे छिपा दिया.

स्वस्थ नर्सरी भरपूर उत्पादन

लेखक- आदित्य, डा. आरएस जारियाल, डा. कुमुद जारियाल और डा. जेएन भाटिया,

पादप रोग विज्ञान विभाग किसी भी उत्पादन प्रणाली की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम किस तरह के बीज बो रहे हैं. एक अच्छी तरह से प्रबंधित नर्सरी में उगाए गए स्वस्थ अंकुर उपज के मुनाफे को तय करते हैं. स्वस्थ अंकुर का उत्पादन मुख्य क्षेत्र में एक स्वस्थ फसल की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उच्च पैदावार प्राप्त करने और फसल की गुणवत्ता में सुधार के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले रोपों का उत्पादन जरूरी है. अब ज्यादातर वाणिज्यिक किसान उत्पादकता बढ़ाने के लिए उच्च उपज वाले हाईब्रिड बीज का उपयोग कर के गहन सब्जी की खेती करते हैं.

चूंकि ये हाईब्रिड बीज महंगे होते हैं, इसलिए हर किसी के बीज को एक स्वस्थ अंकुर में बदलना जरूरी हो जाता है और इस के लिए गहन नर्सरी प्रबंधन की जरूरत होती है. सब्जियों के बीज उत्पादन को विशेष किसानों/कंपनियों द्वारा या ज्यादातर उन्नत देशों में एक खास गतिविधियों के रूप में लिया जा रहा है, लेकिन रोपाई की तैयारी के दौरान किसानों को कई बीमारियों और कीड़ों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो रोपाई मुक्त रोपाई हासिल करने के लिए नियंत्रित और प्रबंधित करना बहुत जरूरी है. नर्सरी की परिभाषा एक सब्जी नर्सरी युवा सब्जी पौध को बढ़ाने या संभालने के लिए एक जगह या एक प्रतिष्ठिन है, जब तक कि वे अधिक स्थायी रोपण के लिए तैयार न हों.

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हमें नर्सरी की आवश्यकता क्यों है? कुछ सब्जियों को अपने शुरुआती विकास काल के दौरान खास देखभाल की जरूर होती है. बहुत छोटे आकार के बीज वाली कुछ सब्जियां होती हैं. बेहतर देखभाल के लिए नर्सरी में पहली बार बोआई की जाती है और खेत की तैयारी के समय के साथ और बीज बोने के तकरीबन एक महीने बाद मुख्य खेत में रोपाई की जाती है. ऐसी सब्जियां, जिन की रोपाई तैयार की जाती है टमाटर, बैगन, प्याज, मिर्च, शिमला मिर्च, गोभी, पत्ता गोभी, नोलखोल (कोहल रबी), चीनी गोभी, ब्रसल स्प्राउट, अंकुरित ब्रोकली, चिकोरी (लाल और हरा), अजवायन और अन्य कई और सब्जियां.

नर्सरी के फायदे – नर्सरी में विकास के साथसाथ उन के अंकुरण के लिए बीजों को अनुकूल विकास की स्थिति प्रदान करना संभव है.

– युवा पौधों की बेहतर देखभाल के रूप में रोगजनक संक्रमण और कीटों के खिलाफ छोटे क्षेत्र में नर्सरी की देखभाल करना आसान है.

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– नर्सरी उगाने से उगाई जाने वाली फसल काफी शुरुआती है और बाजार में इस की कीमत ज्यादा है, इसलिए आर्थिक रूप से यह ज्यादा फायदेमंद है.

-भूमि और श्रम की बचत होती है, क्योंकि और अधिक सघन फसल चक्रणों का पालन किया जा सकता है.

-मुख्य खेत की तैयारी के लिए अधिक समय उपलब्ध है, क्योंकि नर्सरी अलग से उगाई जाती है.

– चूंकि सब्जियों के बीज बहुत महंगे होते हैं, विशेष रूप से हाईब्रिड बीज, इसलिए हम नर्सरी में बोआई कर के बीजों के अंकुरण के उच्च स्तर तक ले जा सकते हैं. नर्सरी में सामान्य बीमारियों और कीड़ों का प्रबंधन सुरक्षात्मक नर्सरी संरचना के सावधानपूर्वक निर्माण और रखरखाव से कीट और रोग की समस्याओं को कम किया जा सकता है. कुछ सामान्य सावधानियां स्प्रे की संख्या को कम करने में मदद करेंगी, जैसे कि :

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– कीड़ों को बाहर करने के लिए बिना किसी अंतराल के दरवाजे को ठीक से बंद करना. नियमित रूप से जाल में छेद की मरम्मत करना. * अतिरिक्त सिंचाई से बचना, जो बीमारियों को बढ़ावा देता है. * रोपाई ट्रे, नर्सरी उपकरण और नर्सरी क्षेत्र कीटाणुरहित करना.

प्रवेश करने वाले किसी भी कीड़े को पकड़ने के लिए 2 दरवाजों के बीच में स्टिकी ट्रैप लगाना.

-मई और जून के महीने में नर्सरी क्षेत्र की मिट्टी की सोलराइजेशन की जानी चाहिए. नर्सरी में सब से अधिक देखे जाने वाले कीड़ेह्वाइटफ्लाइज लीफ माइनर्स  थ्रिप्स और एफिड्स स्टिकी ट्रैप का उपयोग कर कीड़ों की निगरानी करना स्टिकी ट्रैप एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) कार्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.

-स्टिकी ट्रैप लागू करने में आसान और सस्ती है. स्टिकी कार्ड व्यस्क कीटों जैसे कि थ्रिप्स, ह्वाइटफ्लाइज, लीफ माइनर्स और पंख वाले एफिड्स के व्यस्क चरणों को फंसाने में मदद करते हैं. स्टिकी ट्रैप के प्रकार पीला : सामान्य कीट निगरानी के लिए सर्वश्रेष्ठ. ह्वाइटफिज, लीफ माइनर्स और पंख वाले एफिड्स को आकर्षित करते हैं. नीला : थ्रिप्स के लिए और अधिक आकर्षक. थ्रिप्स जनसंख्या का पता लगाने के लिए उपयोग किया जाता है.

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रासायनिक प्रबंधन  ह्वाइटफ्लाइज : डायफेंटिहुरोन 2 ग्राम प्रति लिटर या एसिटोमाप्रिड 0.2 ग्राम प्रति या थियोमेटैक्सम 0.3 ग्राम लिटर या फ्लुक्नीडैम 150 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर या पायरीप्रोक्सीफेन 625 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर.

 लीफ माइनर्स : क्लोरोपाइरीफास 2 मिलीलिटर प्रति लिटर या थायोमेथोक्साम 0.3 ग्राम प्रति लिटर पृथ्वी पर डायटोमेसियस का छिड़काव (पाउडर फार्म).

थ्रिप्स और एफिड्स : फिप्रोनिल 5 फीसदी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर या डायफेनथियुरोन 2 ग्राम प्रति लिटर या थायोमेथाक्साम 0.3 ग्राम प्रति लिटर या स्पिनोसैड 175 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर. नर्सरी में सब से अधिक देखे जाने वाले रोग

 डंपिंग औफ  ब्लाइट  विल्ट डंपिंग औफ : इस रोग का प्रकोप मिर्च की नर्सरी में भूमिजनित फफूंदी के कारण होता है. यह रोग नर्सरी में नवजात पौधों को भूमि की सतह पर आक्रमण करता है. रोग से पौधे अंकुरण से पहले और बाद में भी मर जाते हैं. ग्रसित पौधे सूख कर जमीन की सतह पर गिर जाते हैं. पानी की अधिकता से रोग की उग्रता बढ़ जाती है.

प्रबंधन  बोआई के लिए शुद्ध व स्वस्थ बीज काम में लेना चाहिए.  बोआई के पूर्व बीज का थिरम या कैप्टान या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर के बोना चाहिए.  नर्सरी में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.  नर्सरी में पौध उगने पर क्यारियों को 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी) कैप्टान या बाविस्टिन के घोल से सिंचाई करनी चाहिए. ब्लाइट : यह एक तीव्र और पूर्ण क्लोरोसिस है, जिस के लक्षण में अचानक और गंभीर पीलापन, भूरापन, धब्बे पड़ना, मुरझाना या पत्तियों, तनों या पूरे पौधे का मरना शामिल है.

प्रबंधन  इस के नियंत्रण के लिए प्रभावित पौधे उखाड़ देने चाहिए और मैंकोजेब या डाइफोलेटान की 2.5 मिली. मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.  इस के अतिरिक्त फाइटोलान 2 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में 7-8 दिन के अंतर पर छिड़काव कर भी इस रोग के प्रकोप से छुटकारा पाया जा सकता है या मैंकोजेब+कार्बंडाजिम 2.5-3 ग्राम प्रति लिटर पानी या सिमोक्सानिल+मैंकोजेब 2-3 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर पानी स्टीकर के साथ स्प्रे करें.

विल्ट : विल्टिग की विशेषता है ऊपरी पत्तियों का पीलापन, जो सूखने के साथ मुड़ जाती हैं. पौधे की संवहनी प्रणाली गंभीर रूप से प्रभावित होती है, खासकर निचले तने और जड़ों में और पौधे मुरझा जाते हैं. प्रबंधन  कौपरऔक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लिटर के साथ ड्रिंचिंग करें.  स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज बोआई से पहले उपचारित करें.  कार्बंडाजिम 1 ग्राम प्रति लिटर विल्ट प्रभावित पौधों के लिए साथ स्पौट ड्रिंचिंग करें.

रीति रिवाजों में छिपी पितृसत्तात्मक सोच

हम पुरुषवादी समाज में रहते हैं जहां स्त्रियों को हमेशा से दोयम दर्जा दिया जाता रहा है. स्त्री कितना भी पढ़लिख ले, अपनी काबिलीयत के बल पर ऊंचे से ऊंचे पद पर काबिज हो जाए पर घरपरिवार और समाज में उसे पुरुषों के अधीन ही माना जाता है. उस के परों को अकसर काट दिया जाता है ताकि वह ऊंची उड़ान न भर सके. स्त्रियों को दबा कर रखने और उन की औकात दिखाने के लिए तमाम रीतिरिवाज व परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं.

रक्षाबंधन : भाईबहन के रिश्ते को मजबूत करते इस त्योहार को मनाने का रिवाज हमारे देश में बरसों से चला आ रहा है. बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और भाई यह प्रण लेते हैं कि वे जीवनभर अपनी बहन की रक्षा करेंगे. गौर किया जाए तो यहां पितृसत्तात्मक सोच की परछाईं दिखती नजर आएगी. सवाल उठता है कि आखिर क्यों हमेशा बहन को ही भाई से सुरक्षा की आस होनी चाहिए? आजकल बहनें पढ़लिख कर ऊंचे पदों पर पहुंच रही हैं, काबिल और शक्तिशाली बन रही हैं. कई दफा ऐसे मौके आते हैं जब वे अपने भाई के लिए संबल बन कर आगे आती हैं. कई बहनें अपने छोटे भाई की परवरिश भी करती हैं. वे भाई का मानसिक संबल बनती हैं. लेकिन रक्षाबंधन जैसी प्रथाओं में हमेशा बहनों के दिमाग में यह डाला जाता है कि भाई का खयाल रखना, उस की पूजा करना, उसे खुद से बहुत ऊंचा मानना जरूरी है. उन्हें सम झाया जाता है कि भाई ही उन के काम आएगा, वही उसे सुरक्षा देगा. यदि बहन बड़ी है, काबिल है और भाई का संबल बन रही है, तो फिर क्यों ऐसा कोई त्योहार या रिवाज नहीं जिस में बड़ी बहन को उस के हिस्से का महत्त्व दिया जाए?

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करवाचौथ : करवाचौथ को सुहागिन महिलाओं के लिए खास त्योहार माना जाता है. इस दिन रिवाज है कि सभी सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूरे दिन व्रत रखेंगी और शाम में सुहागिनों वाले सारे शृंगार कर के चांद को पूजने के बाद पति के हाथ से अपना व्रत खोलेंगी. इस रिवाज की पहली शर्त यह है कि इसे केवल सुहागिन ही मनाएंगी. यानी, यह रिवाज शुरुआत में ही भेदभाव स्थापित करता है. इस में इस बात को बल दिया जाता है कि पतिहीन औरतों को सजनेसंवरने या खुश होने व धार्मिक रीतिरिवाजों व उत्सवों का हिस्सा बनने का कोई हक नहीं. यानी, पुरुष से ही उस के जीवन की सारी खुशियां हैं और पुरुष ही उस के जीवन का आधार है. पुरुष की उम्र बढ़ाने के लिए उसे भूखा रहना है और इस भूख को भी बहुत प्यार से एंजौय करना है क्योंकि पति से बढ़ कर उस के लिए कुछ है ही नहीं. पतिपत्नी तो एक गाड़ी के दो पहिए हैं. दोनों का साथ ही संसाररूपी गाड़ी को आगे बढ़ाता है. ऐसे में यदि पति के बिना पत्नी के जीवन में कुछ नहीं रखा तो पत्नी के बिना पति की जिंदगी में कोई अंतर क्यों नहीं पड़ता? पति अपनी पत्नी की लंबी उम्र के लिए व्रत क्यों नहीं रखता?

सुहाग की निशानियां : शादी हर किसी की जिंदगी का एक खास मौका होता है. इस दिन दो दिल एक हो जाते हैं. इसी दिन एक लड़की महिला बनती है और उस की वेशभूषा, आचारविचार, बातव्यवहार सब में आमूलचूल परिवर्तन आता है. सिंदूर और मंगलसूत्र उस के जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन जाते हैं. उसे हर वक्त इन्हें धारण करना होता है. इस के अलावा अंगूठी, बिछुआ और देश के ज्यादातर हिस्सों में चूडि़यां भी स्त्री के शादीशुदा होने की निशानी होती हैं. यह सदियों से चलता आ रहा रिवाज है कि स्त्री के लिए शादी के बाद इन चीजों को धारण करना जरूरी है. जाहिर है, स्त्रियों को सुहाग की निशानियां पहनाने के पीछे धर्म के ठेकेदारों की मंशा यही रही होगी कि स्त्री को पति की अहमियत हमेशा, हर पल महसूस हो. उसे पता चले कि पति के बिना वह कुछ भी नहीं. पति से ही उस का शृंगार है. पति से ही चेहरे की रौनक और रंगबिरंगे कपड़े हैं. पति से ही उस के जीवन में खुशियां हैं वरना जीवन में कालेपन और रीतेपन के सिवा कुछ नहीं. इन रिवाजों के मुताबिक तो पति बिना स्त्री अधूरी सी है. सवाल उठता है कि स्त्री के बिना पुरुष अधूरा क्यों नहीं? ऐसा कोई रिवाज क्यों नहीं जिस से पुरुषों को देख कर भी पता चल जाए कि वह अविवाहित है? उसे सुहाग की कोई भी निशानी पहनने का भार क्यों नहीं सौंपा गया? पत्नी के गुजरने के बाद पति को केवल काले या सफेद कपड़े क्यों नहीं पहनाए जाते? विधुर होने के बावजूद वह हर तरह के शौक पूरे कैसे कर सकता है? उस के जीवन में रत्तीभर भी बदलाव क्यों नहीं आता?

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दहेजप्रथा : पितृसत्ता का पोषक एक और रिवाज है जो सदियों से चलता आ रहा है और वह है दहेजप्रथा. इस प्रथा ने जाने कितनी ही लड़कियों की जान ली, कितनी ही लड़कियों की खुशियां उन से छीन ली. जन्म लेने के बाद ही नहीं, इस रिवाज ने तो अजन्मी बच्चियों को भी काल का ग्रास बना दिया. आखिर लड़की के मांबाप को बेटी के साथ एक मोटी रकम ससुराल वालों को क्यों सौंपनी पड़ती है? यह रकम इतनी ज्यादा होती है कि मांबाप की कमर ही टूट जाती है. बेटी के जन्म के साथ मांबाप उस के लिए दहेज इकट्ठा करने की चिंता में घुलते रहते हैं और इसी वजह से वे पुत्री नहीं, बल्कि पुत्रप्राप्ति की कामना करते हैं. दहेज के नाम पर ससुराल वाले महिला को मारतेपीटते हैं, उस पर अत्याचार करते हैं और इस का नतीजा यह होता है कि औरत को समाज में दीनहीन और बेचारी का तमगा दे दिया जाता है. विदाई : विवाह के बाद विदाई के रिवाज पर जरा गौर कीजिए. शादी में लड़की और लड़के दोनों जीवनसाथी बन कर एक नए बंधन में बंधते हैं. दोनों के ही जीवन में बदलाव आता है, लेकिन विदाई हमेशा लड़कियों की ही होती है, क्योंकि यह रिवाज है. सवाल उठता है कि लड़की को ही अपना घर छोड़ कर ससुराल जाने की जिम्मेदारी क्यों दी गई है? वह लड़के के रिश्तेदारों की सेवा करती है, पति के घर की खुशियां और गम को अपनाती है और अपने मांबाप, जिन्होंने उसे जन्म दिया, से मिलने के लिए ससुराल वालों का मुंह ताकती रह जाती है. यह कैसा न्याय है? कभी लड़का अपना घर छोड़ कर लड़की के घर को क्यों नहीं अपनाता? अगर कोई लड़का ऐसा करता भी है तो उसे पितृसत्तात्मक सोच वाले इस समाज में मजाक का पात्र बनना पड़ता है. आज पुरुष भी कमाते हैं और स्त्री भी. कई घरों में स्त्री की सैलरी पुरुष से ज्यादा होती है. ऐसे में शादी के बाद लड़की की ही विदाई हो, इस रिवाज को हम पितृसत्तात्मक सोच की कवायद ही मानें. यह रिवाज भी दूसरे रिवाजों की तरह ही लड़कियों को कमजोर और पराधीन दिखाने की वकालत करता है.

कन्यादान : कन्यादान को भारत में महादान कहा जाता है. कन्यादान की रस्म हर शादी में निभाई जाती है, जिस का मतलब होता है कि अपनी बेटी को किसी और को दान किया जा रहा है. सवाल उठता है कि बचपन से बड़े होने तक बेटी को लाड़प्यार से पालने वाले मातापिता अपनी बेटी को दान कैसे कर सकते हैं? अपनी बेटी पर उन का अधिकार कैसे खत्म हो सकता है? क्या लड़की कोई चीज है, जिसे दान कर दिया? पुरुषवादियों की सोच लड़कियों की भावनाओं को कोई अहमियत नहीं देती. दूल्हे के पैर धोना शादी के दौरान लड़की वालों को कमतर दिखाने वाली यह एक और रस्म है. सदियों से दुलहन के मातापिता दूल्हे के पैर धोते हैं. ऐसा कहीं भी नहीं देखा गया कि दूल्हे के मातापिता दुलहन के पैर धो रहे हों. इस तरह की रस्में हर कदम पर लड़की और उस के मांबाप को नीचा दिखाती हैं. सोलह सोमवार का व्रत बचपन से ही लड़कियों को शिक्षा दी जाती है कि अच्छा पति पाना है तो व्रतउपवास करो, तपस्या करो. खासकर सोलह सोमवार का व्रत करने से अच्छे पति की प्राप्ति होती है, ऐसा कहा जाता है. सोचने वाली बात है कि क्या अच्छा जीवनसाथी पाना लड़कियों का ही सपना होना चाहिए? क्या लड़कों को अच्छे जीवनसाथी की जरूरत नहीं? इस तरह की बातें कहीं न कहीं लड़कियों के मन में यह भरती हैं कि उस की खुशियों का आधार केवल उस का पति है. पति से ही उस का वजूद है. संपत्ति में भाइयों का नैसर्गिक तौर पर बराबर के हिस्से पर बहन को हिस्सा देने में नाक कटना : हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे और बेटी दोनों को बराबर का हिस्सा देने की बात करता है. महिला का इस पैतृक संपत्ति पर पूरा मालिकाना हक होता है. वह चाहे तो इसे बेच सकती है या किसी के नाम कर सकती है. विवाह के बाद यदि बेटी का वैवाहिक जीवन सही तरह से न चले, तो यह पैतृक संपत्ति उसे एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देती है. लेकिन जैसी कि हमेशा की रीत रही है,

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बहनों को बचपन से ही भाइयों के लिए अपने छोटेबड़े हकों को छोड़ने की सीख दी जाती रही है. भाई हमेशा से घर पर और घर की चीजों पर अपना एकछत्र साम्राज्य सम झते रहे हैं. इसी वजह से बड़े होने पर भाई इस बात के लिए तैयार नहीं हो पाते कि संपत्ति में उन्हें अपनी बहनों को बराबर का हिस्सा देना है. घर के बड़ेबुजुर्ग भी इसी बात पर मुहर लगाते हैं. नतीजा, यह कानून एक तरफ जहां महिलाओं को मजबूत आर्थिक आधार देता है वहीं दूसरी तरफ गहरी भावनात्मक टूटन का कारण भी बनता नजर आता है. यदि बहन पैतृक संपत्ति में अपना बराबर का हक लेने की बात करती है तो भाई इस बात से आहत हो कर उस से अपने संबंध खत्म कर लेते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए अकसर बहनें अपने आर्थिक हकों को छोड़ देती हैं. पत्नी का नाम बदलना ज्यादातर महिलाएं शादी के बाद अपना सरनेम बदल लेती हैं. वैसे, यह जरूरी नहीं. उन पर कोई दबाव नहीं डाला जा सकता. यह उन का कानूनी अधिकार भी है. लेकिन फिर भी महिलाएं चाह कर भी इस का खुल कर विरोध नहीं कर पाती हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम के दौरान ऐलान किया था कि महिलाएं अब अपनी शादी से पहले वाले नाम के साथ भी विदेश यात्रा कर सकती हैं. अब महिलाओं को पासपोर्ट के लिए अपनी शादी या तलाक के दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं है.

महिलाएं इस बात को ले कर पूरी तरह स्वतंत्र होंगी कि वे अपने मातापिता के नाम का इस्तेमाल करें. मगर सदियों पुरानी रीत इतनी आसानी से कैसे बदल सकती है. एक स्टडी से पता चला है कि जो महिलाएं शादी के बाद भी पहले का सरनेम इस्तेमाल करती हैं, पुरुष उन के प्रति नकारात्मक भावना रखते हैं. शोध में यह भी सामने आया कि जो महिलाएं पति का नाम लगाती हैं वे उन के प्रति अपनी वफादारी दिखाती हैं. लोगों की सोच यही है कि लड़की जिस घर जाती है वहीं की हो जाती है. इसलिए नाम में क्या रखा है? जो पति का नाम है वही उस की पहचान है. पर क्या आप को नहीं लगता कि पुरुषसत्ता वाली इस रीत से आजाद होने का समय आ गया है. नाम इंसान की पहचान होती है और भला, शादी के बाद पहचान क्यों बदली जाए? हालांकि, हमारा समाज अभी भी इस बदलाव के लिए तैयार नहीं है.

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पिंडदान : हिंदू धर्म में पुत्र का कर्तव्य माना जाता है कि वह अपने जीवनकाल में मातापिता की सेवा करे और उन के मरने के बाद उन की बरसी तथा पितृपक्ष में पिंडदान करे. इसे श्राद्ध भी कहा जाता है. पुराणों और स्मृति ग्रंथों के अनुसार, पिता की मृत्यु के बाद आत्मा की तृप्ति और मुक्ति के लिए पुत्र द्वारा पिंडदान और तर्पण कराना जरूरी है. इस के बिना जहां पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता है वहीं पुत्रों को भी पितृऋण से छुटकारा नहीं मिलता. इन रिवाजों की मानें तो मांबाप बेटी पर कोई कर्ज नहीं छोड़ते. बेटे को ही कर्ज चुकाना है और बेटे के हाथों ही उन्हें मुक्ति व सद्गति मिल सकती है. जिन के बेटे नहीं, उन के भतीजे या भाई यह काम कर सकते हैं. कुल मिला कर लड़कियों का कोई वजूद ही नहीं. विधवा विवाह पर आपत्ति : भले ही 16 जुलाई, 1856 को भारत में विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई हो, मगर आज भी लोगों के दिमाग में पुरानी रीत ही गहरी बैठी हुई है कि विधवाओं के लिए फिर से शादी करने की बात सोचना भी पाप है और उसे दोबारा खुशियां ढूंढ़ने का हक नहीं क्योंकि वह तो अपने कर्मों की सजा भोग रही है. वहीं, हमारा समाज पुरुषों की दूसरी शादी को सौ प्रतिशत सही मानता है. यह भेदभाव और पुरुषवादी सोच विधवा महिलाओं को कहीं का नहीं छोड़ती.

हरतालिका तीज : पति की लंबी उम्र की कामना और पति को पाने की चाहत को पूरा करने के लिए यह व्रत किया जाता है. इस में महिलाएं सजधज कर पूरे दिन भूखी रहती हैं. सवाल यहां भी यही है कि पुरुष ऐसा कोई व्रत क्यों नहीं करते. परदा प्रथा : ज्यादातर भारतीय महिलाओं को शादी के बाद परदे में कैद कर दिया जाता है. उन्हें घर के पुरुष सदस्यों के आगे परदा करना अनिवार्य माना जाता है. शहर की पढ़ीलिखी महिलाएं भी अकसर जेठ या ससुर के आगे सिर पर पल्लू डाल लेती हैं. ऐसा न करने पर उन्हें बेशर्म का तमगा दिया जाता है. जबकि पुरुषों को किसी से परदा नहीं करना पड़ता. परदा प्रथा एक तरह से महिलाओं के बढ़ते कदमों को रोकने और उन पर पुरुषों का आधिपत्य जताने का बहाना है. कुछ क्षेत्रीय त्योहार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में झीं झीं टेसू, गोरखपुर में जौतिया, बनारस में छठपूजा, पूर्वांचल में छड़ी शगुन, गुडि़या पटक्का आदि कुछ ऐसे त्योहार हैं जिन में एक बात सामान्य है कि सब में औरत ही अपने घर के पुरुषों की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि की कामना करती है. छड़ी शगुन परंपरा में जब लड़की विदा हो कर ससुराल आती है तो उस की सास उसे तालाब के किनारे ले जा कर सात छड़ी लगाते हुए बहू का स्वागत करती है. अफसोस इस बात का है कि ऐसे बहुत सारे रीतिरिवाज हैं जिन का पालन हमारे देश का हर इंसान करता है. इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि लोग अशिक्षित हैं या शिक्षित, अमीर हैं या गरीब. भारत के हर तबके और हर वर्ग के लोग आंख बंद कर इन रीतिरिवाजों को पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाते हैं. किसी के दिमाग में कोई सवाल नहीं उठता कि आखिर वे ऐसा कर क्यों रहे हैं? ऐसा करने के पीछे तर्क क्या है? लोग यह नहीं सम झते कि ये सारे रिवाज पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा हैं और आज जमाना बहुत बदल चुका है.

आज लड़कियों का स्थान समाज में बहुत अलग है. लड़कियों ने काफीकुछ हासिल किया है. पर जब बात इन रिवाजों की आती है तो सब के दिमाग कुंद हो जाते हैं. न कोई सवाल पूछता है न कोई तर्क करने की हिम्मत करता है. बस, जो जैसा चला आ रहा है, वे निभाते जाते हैं. और इस निभाने के चक्कर में यह बात और गहराई से दिमाग में बैठती जाती है कि लड़कों से लड़कियां कमजोर हैं. वे पुरुष के अधीन रहने के लिए बनी हैं. उन को सहारे और पुरुष के साथ की जरूरत है. पुरुष ही समाज का नेतृत्व कर सकता है. जब तक हम अपने अंदर नई सोच और तर्क करने की शक्ति पैदा नहीं करते, हम पितृसत्तात्मक सोच वाले समाज के बुने हुए जालों से आजाद नहीं हो सकेंगे. जाल में फंसे रहेंगे और अपनी उन्नति के रास्ते का अवरोध हम खुद तैयार करते जाएंगे.

Crime Story: जिन्न की हत्या

सौजन्या- सत्यकथा

उस दिन अगस्त 2020 की 20 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. हरिद्वार जिले के थाना भगवानपुर केथानाप्रभारी संजीव थपलियाल थाना स्थित अपने आवास में थे और औफिस के लिए तैयार हो रहे थे. तभी थाने के संतरी ने आ कर सूचना दी कि गांव खुब्वनपुर की लाव्वा रोड पर एक आदमी का कत्ल हो गया है. उस की लाश सब्जी के एक खेत में पड़ी है.

सुबह-सुबह कत्ल की सूचना पा कर थपलियाल का मन कसैला हो गया. वह तुरंत थाने आए और पुलिस टीम को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने कत्ल की सूचना सीओ अभय प्रताप सिंह, एसपी (देहात) एस.के. सिंह और एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को दे दी. इस के बाद थपलियाल खुब्वनपुर क्षेत्र के इंचार्ज थानेदार मनोज ममगई सहित मौके पर पहुंच गए.

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थपलियाल मौके पर पहुंचे तो वहां ग्रामीणों की भीड़ जमा थी. पुलिस को देख कर भीड़ तितरबितर हो गई. थपलियाल ने शव पर नजर डाली. वह 47-48 साल का अधेड़ व्यक्ति था, जिस का गला 2 जगह से कटा हुआ था. उस के कपड़े खून से सने थे. वहां मौजूद लोगों में से एक ग्रामीण ने मृतक की शिनाख्त कर दी थी.

उस ने बताया कि मृतक ग्राम खुब्वनपुर के पूर्व प्रधान ब्रह्मपाल का भाई बालेश है. पुलिस ने तुरंत ब्रह्मपाल के घर सूचना भिजवा दी.

इस के बाद थपलियाल ने वहां खड़े लोगों से बालेश के बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी. जब वे जानकारी ले रहे थे, तभी वहां सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने भी थपलियाल व ग्रामीणों से बालेश की हत्या की बाबत जानकारी ली और थपलियाल को आवश्यक निर्देश दे कर चले गए.

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थपलियाल ने थानेदार मनोज ममगई को बालेश के शव का पंचनामा भरने को कहा और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की एक टीम बालेश के घर भेजी दी.प्राथमिक काररवाई कर के पुलिस ने बालेश का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस खुब्वनपुर स्थित बालेश के घर पहुंची और उस की पत्नी बबली व उस के बेटे अरुण से पूछताछ की. बबली ने बताया कि बालेश बीती रात खाना खा कर बीड़ी पीने के लिए पड़ोस में गया था, इस के बाद वह वापस नहीं लौटा. वह रात भर उस का इंतजार करती रही. बबली ने बताया कि पिछले 2 सालों में बालेश पर 2 बार हमला हो चुका था.

पुलिस ने उस समय जब इन हमलों की जांच की थी, तो मामला पारिवारिक निकला था.पूछताछ के दौरान थपलियाल ने पाया कि बबली व अरुण के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. लगता था, वे पुलिस से कुछ छिपा रहे हैं. इस के बाद पुलिस ने बालेश की हत्या का मामला धारा 302 के तहज दर्ज कर के जांच शुरू की दी.

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सब से पहले थपलियाल ने बालेश के परिवार की सुरागरसी व पतारसी करने के लिए खुब्वनपुर में सादे कपड़ों में 2 पुलिसकर्मी तैनात कर दिए. अगले दिन उन दोनों ने थपलियाल को जो जानकारी दी, उसे सुन कर वह चौंके.जानकारी यह थी कि 25 साल पहले बालेश की शादी पास के ही गांव भक्तोवाली निवासी बबली से हुई थी, जिस से उस की 6 संतान हुईं. बालेश और बबली का बड़ा बेटा अरुण है. बालेश के पास मात्र 7 बीघा खेती की जमीन थी. घर का खर्च चलाने के लिए बबली को घर से निकलना पड़ा.

3 साल पहले बबली को घर से 3 किलोमीटर दूर सिकंदरपुर स्थित मां दुर्गा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई थी. दूसरी ओर बालेश अकसर नशा कर के बबली व बेटे अरुण से मारपीट करता रहता था. इसी बीच बबली की दोस्ती फैक्ट्री के एक सहकर्मी लाल सिंह से हो गई थी.

बबली अपने पति बालेश से खासी परेशान थी. कुछ समय बाद लाल सिंह और बबली के बीच अवैध संबंध बन गए थे. लालसिंह अकसर बालेश के घर आने जाने लगा था. जब लालसिंह का आनाजाना ज्यादा बढ़ गया, तो इस की चर्चा गांव में आम हो गई.

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पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तो थी कि बालेश अकसर रात में अपनी बीबी बबली व बेटे अरुण के साथ मारपीट करता है, मगर जब पड़ोसियों को इस बात की जानकारी हुई कि बबली के साथ फैक्ट्री में काम करने वाले लाल सिंह के उस से अवैध संबंध है तो गांव में कानाफूसी होने लगी. कुछ समय बाद दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी बालेश को भी हो गई थी.

एक दिन बालेश ने अपने घर पर आए लाल सिंह को घर आने से मना कर दिया और बबली को भी फटकारा. इस के बाद लाल सिंह के घर न आने से बबली खोईखोई सी रहने लगी थी एक दिन लाल सिंह व बबली फैक्ट्री के बाहर मिले और उन्होंने अपने रास्ते के रोड़े बालेश को हटाने की योजना बनानी शुरू कर दी. योजना के तहत बबली ने गांव में यह कहना शुरू कर दिया कि उस के पति बालेश पर जिन्न का साया है और जिन्न रात को आता है.

जिन्न के सवार होने पर बालेश उसे व बेटे अरुण को मारतापीटता है. इस के बाद अरुण को भी अपने बाप बालेश पर संदेह होने लगा था कि सचमुच उस के बाप पर जिन्न का साया है. अरुण पास ही एक दूसरी फैक्ट्री में कर्मचारी था. वह भी मां के कहने पर विश्वास करने लगा था और उसे बाप से नफरत हो गई थी.

गांव खुब्वनपुर के गांव वालों को संदेह था कि बालेश की हत्या के तार कहीं न कहीं बबली व लाल सिंह से जुडे़ हुए हैं इस बारे में थानाप्रभारी संजीव थपलियाल को सटीक सूचना मिली थी, अत: उन्होंने बालेश की हत्या के मामले में उस की पत्नी बबली को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

पूछताछ के दौरान बबली पुलिस को इतना ही बता पाई कि बालेश घटना वाले दिन खाना खा कर बीड़ी पीने के लिए पड़ोस में गया था और रात भर वापस नहीं लौटा था. उसे सुबह पुलिस द्वारा उस की हत्या की सूचना मिली थी.

बालेश की हत्या के बारे में बबली से कोई सूत्र न मिलने पर सीओ अभय प्रताप सिंह ने थपलियाल को लाल सिंह व बबली के मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाने को कहा. जब दोनों के मोबाइलों की लोकेशन व कालडिटेल्स मिली, तो पुलिस को यकीन हो गया कि बालेश की हत्या में दोनों शामिल हैं.

इस के बाद थपलियाल ने लाल सिंह निवासी ग्राम बढेड़ी थाना भगवानपुर को बालेश की हत्या के बारे में पूछताछ के लिए बुलवाया और उस से पूछताछ करने लगे. पहले तो लाल सिंह पुलिस को गच्चा देने का प्रयास करता रहा, मगर जब थपलियाल ने उस से बालेश की हत्या वाले दिन उस की मौजूदगी के सवाल पूछे, तो वह टूट गया. उस ने पुलिस के सामने बालेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

लाल सिंह द्वारा बालेश की हत्या की बात कबूलने की सूचना पा कर बालेश का पूर्व प्रधान भाई ब्रह्मपाल, सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी थाना भगवानपुर पहुंच गए थे.

पूछताछ के दौरान लाल सिंह ने पुलिस को बताया कि कई सालों से वह और बबली फैक्ट्री में साथसाथ काम करते थे. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. बबली अकसर मुझ से कहती रहती थी कि मेरा पति बालेश मुझ से तथा मेरे बच्चों से मारपीट करता है. मुझ पर शक करते हुए घर का खर्च भी नहीं देता.

इस के बाद मैं और बबली बालेश की हत्या की योजना बनाने लगे. 19 अगस्त, 2020 को मैं ने एक स्थानीय मैडिकल स्टोर से नींद की 20 गोलियों की स्ट्रिप खरीदी और बबली को दे दी.

उसी रात बबली ने मुझे मोबाइल पर बताया कि उस ने बालेश को नींद की 10 गोलियां खाने में डाल कर खिला दी हैं और वह घर में बेहोश पड़ा है. यह सुन कर मैं तुरंत बाइक से बबली के घर पहुंच गया.

वहां पहुंच कर मैं ने और बबली ने कमरे में बेहोश पड़े बालेश का गला घोंट कर मार डाला. बालेश की हत्या करने के बाद बबली व उस के बेटे अरुण के सहयोग से मैं ने बालेश की लाश को एक बोरे में डाल दिया.

वह और अरुण लाश वाले बोरे को लाव्वा रोड पर सब्जी के एक खेत में फेंक कर अपनेअपने घर चले गए.पुलिस ने लालसिंह के बयान दर्ज कर लिए. तभी पुलिस बबली व उस के बेटे अरुण को भी थाने ले आई. बबली व अरुण ने जब हवालात में बंद लालसिंह को देखा, तो सारा माजरा समझ गए. उन दोनों ने अपने बयानों में लालसिंह के ही बयानों का समर्थन करते हुए बालेश की हत्या का सच पुलिस को बता दिया.

बबली ने पुलिस को जानकारी दी कि वह रोजरोज की मारपीट से परेशान थी. उस के मन में बालेश के प्रति नफरत पैदा हो गई थी .जब लाल सिंह व अरुण बालेश के शव को सब्जी के खेत में फेंक कर वापस आ गए. तब भी मुझे चैन नहीं मिला. इस के बाद मैं खुद अपने बेटे अरुण के साथ दरांती ले कर उस जगह पर गई, जहां बालेश की लाश पड़ी थी. वहां पहुंच कर मैं ने दरांती से बालेश का गला रेत दिया था.

बबली ने बेटे अरुण को बता रखा था कि बालेश पर जिन्न का साया है, जिस की वजह से वह हम लोगों से मारपीट करता है. इसी की आड़ में मैं ने अपनी इस योजना में अरुण को भी शामिल कर लिया था. बबली के बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी संजीव थपलियाल ने लाल सिंह, बबली व अरुण को बालेश की हत्या के आरोप में भादंवि की धाराओं 302, 201 व 34 के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया.

अगले दिन एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. ने कोतवाली सिविललाइन रुड़की में प्रैसवार्ता के दौरान बालेश हत्याकांड का परदाफाश किया और तीनों आरोपियों कोे मीडिया के सामने पेश कियाप्रैसवार्ता में एसएसपी द्वारा 24 घंटे में बालेश हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

पुलिस ने हत्याकांड के आरोपियों लाल सिंह, बबली व अरुण का मैडिकल कराने के बाद उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. तीनों आरोपी अपने बुने जाल में फंस गए.इन तीनों की प्लानिंग थी कि बालेश को नींद की गोलियां खिला कर उस का गला दबा कर हत्या कर देंगे. बालेश की हत्या के बाद समाज के लोगों से कह देंगे कि वह बुखार से पीडि़त था, हो सकता है कोरोना वायरस से पीडि़त रहा हो. कुछ समय बाद लोग बालेश की मौत को भूल जाएंगे.

पुलिस ने बालेश की हत्या में इस्तेमाल बाइक, नींद की गोलियों का रैपर तथा बालेश के शव को ले जाने वाला बोरा बरामद कर लिया. बालेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण गला घोंटा जाना तथा धारदार हथियार से गला कटने से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

द चिकन स्टोरी-भाग 3 : उपकार की सफलता से उसके दोस्त हैरान क्यों थें?

‘उन की चिंता तुम मत करो. उन को मैं किसी तरह मना ही लूंगा. मुझे पहले तुम्हारी अनुमति की आवश्यकता थी,’ उपकार ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘मेरी अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है. नयना और तुम दोनों समझदार हो. मुझे पूरा विश्वास है तुम दोनों की आपस में खूब बनेगी,’ मैं एक बड़े भाई की तरह ज्ञान दे रहा था.

फिर घर आ कर मैं ने पहले मां व पिताजी से नयना और उपकार के बारे में बात की. मां तो बहुत प्रसन्न थीं, पिताजी यद्यपि थोड़े सशंकित थे कि एक कट्टर ब्राह्मण परिवार नयना को कैसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार होगा. लेकिन मैं ने उन को विश्वास दिलाया कि शादी उपकार के पिताजी की सहमति के बाद ही शादी होगी.

फिर एक दिन उपकार ने मौका देख कर अपने पिताजी से नयना के बारे में बात की. जब उस ने बताया कि लड़की ब्राह्मण नहीं है तो वे थोड़े निराश हो गए. जानते तो थे ही कि उपकार जातपांत में विश्वास नहीं रखता, इसलिए उन्होंने भी अपने मन को समझा लिया.

लेकिन अगले ही पल उन का सवाल था, ‘लड़की मांसाहारी तो नहीं है?’अब उपकार ठहरा आज के जमाने का महाराजा हरिश्चंद्र, बता दिया सच. सुनते ही पिताजी हत्थे से उखड गए.

‘लड़की ब्राह्मण नहीं है, मैं यह तो स्वीकार कर सकता हूं, लेकिन एक मांसाहारी लड़की को मैं अपनी बहू स्वीकार नहीं कर सकता,’  पिताजी अपने रौद्र रूप में आ गए थे.

‘आप एक बार उस से मिल तो लीजिए. वह एक बहुत अच्छी लड़की है,’ उपकार ने पिताजी को मनाने की कोशिश की.‘चाहे वह कितनी भी अच्छी हो और कितनी भी सुंदर हो, मैं तुम्हें उस से शादी की अनुमति नहीं दे सकता,’ पिताजी ने उपकार से साफसाफ बोल दिया.

‘लेकिन मैं उस के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगा,’ अब उपकार को भी थोड़ा गुस्सा आने लगा था.‘ठीक है, तो जाओ और कर लो उस से शादी. लेकिन उस से पहले तुम्हें मुझे और इस घर को त्यागना होगा,’  उपकार के पिताजी ने हाथ उठा कर उपकार को आगे कुछ भी बोलने से रोक दिया और उठ कर अपने कमरे में चले गए.

यहीं आ कर उपकार अपने को बड़ा असहाय पा रहा था. वह जानता था कि उस के पिताजी ने उस को किस तरह पाला है. मां के देहांत के बाद जब सभी रिश्तेदार उन से दूसरी शादी के लिए कह रहे थे, उन्होंने कहा था कि वे अपना सारा जीवन उपकार के लिए बिता देंगे. उन्होंने कभी भी उपकार को किसी चीज की कमी नहीं होने दी, कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया. लेकिन आज जब उपकार को पसंद की जीवनसाथी का साथ चाहिए था, तो उस के पिताजी किसी भी तरह तैयार नहीं थे.

उपकार ने एकदो बार फिर पिताजी को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.  बड़ी मुश्किल थी. उधर उपकार, इधर नयना – दोनों दुखी और निराश थे.

‘यार, कोई रास्ता तो बताओ पिताजी को मनाने का. वे तो मेरी बात सुनने को ही तैयार नहीं हैं,’ एक दिन उपकार मुझ से मिला और बोला.

यार, मैं ने कहीं पढ़ा था अगर लड़की के पिता को मनाना हो तो एक काले कपड़े पर मिटटी का पुतला रख कर उस पर लाल धागा बांध कर लालमिर्च और नारियल चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है, लेकिन मुझे यह नहीं पता कि इस से लड़के के पिता भी मानेंगे या नहीं,’ मैं ने उस को एक टोटके के बारे में बताया.

‘यार, तुम को मजाक सूझ रही है. यहां मैं टेंशन लेले कर गंजा न हो जाऊं,’ उपकार ने मुझे घूरते हुए कहा.‘मैं मजाक नहीं कर रहा. अब तुम न मानो तो तुम्हारी मरजी,’ मैं ने सुरेश के मशहूर गोलगप्पे मुंह में डालते हुए कहा.

‘तुम ही चल कर एक बार पिताजी को समझा लो,’ उस ने मेरी बात को अनसुनी करते हुए कहा.‘अरे नहीं रे बाबा.’ गोलगप्पा मेरे मुंह से बाहर निकलतेनिकलते बचा. मैं तो आज तक भी उन के सामने आने से घबराता हूं. याद है, कैसे तुम ने मुझे फंसवा दिया था. अब तुम दोनों ही कुछ रास्ता निकालो,’ मैं ने साफ इनकार कर दिया.

पिताजी और उपकार दोनों ही झुकने के लिए तैयार नहीं थे. फिर कुछ दिनों बाद उपकार को एक मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए एक हफ्ते के लिए अमेरिका जाना पड़ा. अभी वह अमेरिका पहुंचा भी नहीं था कि उस के पिताजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. रातभर बेचारे दर्द से तड़पते रहे. अगले दिन जब खाना बनाने वाली आंटी आईं तो उन्होंने झट से अस्पताल से एम्बुलेंस मंगवा कर उन को एडमिट कराया. उन्होंने उपकार को फोन कर के सूचित किया. उपकार के लिए इतनी जल्दी वापस आना लगभग असंभव था. किसी भी सूरत में वह दोतीन दिनों से पहले वापस नहीं आ सकता था. उस ने मुझे फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरा फोन खराब होने की वजह से मुझ से बात नहीं हो पाई. तब उस ने नयना को फोन किया तो वह तुरंत पिताजी के पास अस्पताल पहुंच गई.

अंकलजी की हालत में अब काफी सुधार था. नयना 2 दिनों तक उन के पास अस्पताल में ही रही. नयना ने उपकार को फोन कर के वापस आने से मना कर दिया कि अब अंकल की तबीयत बिलकुल सही है और वह अपना काम खत्म कर के ही लौटे.

फिर वह उन को अस्पताल से घर ले आई और उन की खूब सेवा की.‘तुम पाठक साहब की बेटी हो न. पाठक साहब तो काशी गए हुए हैं. तुम दिल्ली से कब आईं. सौरी, तुम को मेरे लिए इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है.’ उपकार के पिताजी नयना को पाठक साहब की बेटी समझ रहे थे. शहर में पाठक साहब ही उन के एकमात्र मित्र थे, इसलिए उन को लगा शायद नयना पाठक साहब की बेटी है.

‘मैं आप की बेटी हूं और मुझे आप की सेवा करने में कोई कष्ट नहीं है. और आप को डाक्टर ने ज्यादा बोलने के लिए मना किया है, इसलिए आप ज्यादा बात न करें,’ नयना ने उन को दवाई देते हुए कहा.

‘कितनी सुशील और संस्कारी लड़की है. काश, उपकार इस से शादी के लिए तैयार हो जाए.’ नयना को अपनी सेवा करते देख अंकलजी ने मन ही मन सोचा.

उपकार रोज ही अंकलजी से फोन पर बात करता. अंकलजी ने उस को बिलकुल भी चिंता नहीं करने की बात कही.

नयना ने मुझे फोन कर के अंकलजी के बारे में बता दिया था, तो मैं उन से मिलने आया. नयना ने मुझे मना किया था कि मैं उस के बारे में अंकलजी को बताऊं. अंकलजी की तबीयत अब काफी अच्छी थी. उपकार  2 दिनों बाद वापस आने वाला था.

‘बेटा, तुम तो उपकार के सब से अच्छे दोस्त हो. उस को समझाओ कि वह इस लड़की से शादी के लिए तैयार हो जाए. इस से अच्छी लड़की उस को कहां मिलेगी. पता नहीं, वह किस लड़की से शादी करने की जिद पकड़े बैठा है.’ अंकल जी ने यह मुझ से धीरे से कहा.

अब मैं अंकलजी से क्या कहता. चुपचाप चाय पी कर वहां से चला आया.फिर जिस दिन उपकार को वापस आना था, नयना वापस अपने घर आ गई. उपकार के आने से पहले ही पाठक साहब काशी से वापस आ गए थे.

‘अरे पंडित जी, यह क्या हाल बना लिया. मैं तो मिठाई लाया था अपनी पारुल का रिश्ता काशी में कर दिया है.  अब जल्दी से ठीक हो जाइए, शादी अगले महीने ही है,’ पाठक साहब अंकल जी के पास बैठते हुए बोले.

‘अरे बिटिया की शादी तय भी कर आए इतनी जल्दी.’ पाठक साहब की बेटी की शादी की बात सुन अंकल जी बिलकुल निराश हो गए.

‘जी, बस, सबकुछ जल्दी ही तय हो गया. एक छोटे से समारोह में पारुल और शैलेश की सगाई भी कर दी है,’ पाठक साहब ने अंकल जी को बताया.

‘सगाई भी हो गई, लेकिन बिटिया तो यहीं थी, फिर कैसे?’ अंकलजी हैरानी से बोले.नहीं, पारुल तो हमारे साथ काशी में ही थी.  वह दिल्ली से वहीं आ गई थी,’ पाठक साहब ने कहा तो अंकल जी सोच में पड़ गए कि अगर पारुल काशी में थी तो उन के साथ इतने दिनों तक कौन थी.

फिर शाम तक उपकार भी वापस आ गया. अंकलजी ने उपकार से पूछा कि आखिर इतने दिनों तक उन की सेवा करने वाली लड़की कौन थी.‘मेरे एक दोस्त की बहन थी,’ उपकार ने छोटा सा जवाब दिया, ‘कल से आप की देखभाल के लिए एक नर्स आ रही है. आप जल्दी से अच्छे हो जाइए, तो मैं आप को प्रयाग ले कर चलूंगा,’ उपकार ने मुसकरा कर अंकलजी से कहा.

‘मेरी एक बात मान ले बेटा, नर्स की जगह तू उसी लड़की को इस घर में ले आ मेरी बहू बना कर,’  अंकल जी ने उपकार का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा.

‘मैं तो कब का माना हुआ हूं, आप ही नहीं मान रहे,’ उपकार ने हताशाभरी मुसकान से कहा, तो अंकलजी को मानो एक झटका सा लगा.

‘तो क्या यह वही लड़की है जिस से तुम शादी करना चाहते हो,’ अंकलजी ने बड़ी हैरत से कहा.‘जी बाबूजी, लेकिन अब नहीं. मेरे लिए वह आप से बढ़ कर नहीं है. आप को यह शादी मंजूर नहीं है, तो फिर यह शादी नहीं होगी,’ उपकार अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए बोला और फिर वहां से चला गया. लेकिन अंकल जी विचलित हो गए.

रातभर अंकलजी सही से सो नहीं पाए. बारबार उन्हें नयना की सेवा और उपकार की आंखों में आंसू याद आते रहे. एक तरफ उन का धर्म था, तो दूसरी तरफ बेटे की खुशियां. वे किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे. फिर सुबह होतेहोते उन्होंने एक फैसला कर लिया.

‘अगर तुम मुझे इतना ही मान देते हो तो जहां मैं कहूं वहां शादी करोगे,’ अंकलजी ने चाय पीते हुए उपकार से कहा.‘जैसा आप कहें पिताजी,’ उपकार ने हार मानते हुए कहा.

‘तो फिर नयना को बोलो जल्दी से मेरी बहू बन कर इस घर में आ जाए,’ अंकलजी ने मुसकरा कर कहा तो उपकार को विश्वास ही नहीं हुआ.

‘पिताजी, क्या आप सच कह रहे हैं?’  उपकार की बांछें खिल गईं.‘हां, अभी के अभी उस को यहां बुलाओ. 2 दिनों से उस को नहीं देखा, तो कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा,’ अंकल जी उपकार की खुशी देख कर खुद भी बहुत खुश थे.

उपकार ने झट से नयना को फोन कर के घर बुला लिया.‘बेटी, क्या तुम इस घर की बहू बनोगी,’ अंकलजी ने आते ही नयना से कहा, तो नयना आंखों में आंसू लिए उन के गले लग गई.

‘नालायक, तूने भी मुझ को नहीं बताया,’ कुछ दिनों बाद दोनों की सगाई के मौके पर अंकलजी ने मेरे कान खींचते हुए कहा.फिर उपकार और नयना दोनों ने एकदूसरे को सगाई की अंगूठी पहनाई.

‘आज मैं अगर तुम से कुछ मांगूं, तो दोगे,’ नयना ने उपकार से मेरी मौजूदगी में कहा.‘जी बोलिए, आज आप जो कहेंगी, मैं वह करूंगा,’ उपकार ने हंसते हुए कहा.

‘तो आज से आप और मैं पूर्ण शाकाहारी होंगे. हम पिताजी के लिए इतना तो कर सकते हैं न,’ नयना ने गंभीरता से कहा तो मुझे अपनी बहन पर बड़ा गर्व हुआ.

‘जो हुक्म मल्लिका का.’ चिकन छोड़ने के ख़याल से उपकार का मुंह लटक तो गया लेकिन फिर उस ने  नयना से नाटकीय अंदाज में झुकते हुए यह कहा, तो हम सब हंस पड़े. हम ने ध्यान भी नहीं दिया कि हमारे पीछे अंकलजी हमारी बातें सुन कर अपनी आंखों में आए पानी को साफ कर रहे थे.

द चिकन स्टोरी-भाग 2 : उपकार की सफलता से उसके दोस्त हैरान क्यों थें?

अभी मेरी सांस में सांस वापस आई भी नहीं थी कि अंदर से अंकलजी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. ‘यह राक्षस फिर आ गया इस घर में.’ अब तो मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई. मुझे लगा, अंकलजी को शायद पता चल गया. मैं तो उठ कर भागने ही वाला था कि अंदर से एक थैली उड़ती हुई आई और बाहर आंगन में आ कर गिरी. उस में से ढेर सारा प्याज निकल कर चारों तरफ फैल गया.

‘तुझे कितनी बार मना किया है लहसुनप्याज खाने को, सुनता क्यों नहीं,’ अंकलजी आग्नेय नेत्रों से उपकार को घूरते हुए बोले. अंकल जी को देख कर मुझे शिवजी की तीसरी आंख याद आ गई, लगा कि आज हम दोनों भस्म हुए ही हुए.

उपकार मुंह नीचे किए चुपचाप बैठा था. मुझे काटो तो खून नहीं. और अंकल जी बड़बड़ाते हुए घर से बाहर चले गए.

मैं ने तुरंत टेबल के नीचे से डब्बा निकाला और बाहर की तरफ जाने लगा.‘यह डब्बा तो छोड़ता जा, कल ले जाना,’ उपकार की दबीदबी सी आवाज आई.‘इतना सुनने के बाद तुझे अभी भी चिकन खाना है,’ मैं हैरत में डूबा हुआ उपकार को देख रहा था.

जवाब में उपकार ने मेरे हाथ से डब्बा ले लिया. उसी समय अंकलजी वापस आए और मैं उन को नमस्ते कर के घर से निकल गया.

पूरे एक हफ्ते तक मैं ने उपकार के घर की तरफ रुख न किया. पूरे एक साल तक मैं ने चिकन को हाथ भी नहीं लगाया. घर वाले हैरान थे कि मुझे क्या हो गया. कहां मैं इतने शौक से चिकन खाता था और कहां मैं चिकन की तरफ देखता भी नहीं.

मैं अकसर उपकार को समझाता कि एक ब्राह्मण के लिए मांसाहार उचित नहीं है.  साथ ही, उस को अपने पिताजी की भावनाओं का सम्मान करते हुए लहसुनप्याज भी नहीं खानी चाहिए. लेकिन, उस पर कोई असर हो तब न. उलटे, उस को तो मेरे घर का चिकन इतना अच्छा लगा कि कभी भी मेरे घर आ जाता और मां से चिकन बनवाने की फरमाइश कर बैठता. छोटी बहन नयना तो चिकन बहुत ही स्वादिष्ठ बनाती थी.

मां कहती थी, ऐसा स्वादिष्ठ चिकन पूरे महल्ले में कोई नहीं बनाता था. पता नहीं मां ऐसा, बस, अपनी बेटी के मोह में कहती थी या सचमुच नयना सब से अच्छा चिकन बनाती थी. हमें तो महल्ले की किसी कन्या के हाथ का बना चिकन खाने का सौभाग्य मिला नहीं था, इसलिए नयना का बनाया चिकन ही हमारे लिए सब से अच्छा था.

यों ही समय कटता चला गया और फिर हमारी ग्रेजुएशन पूरी हो गई. उपकार ने पूरी यूनिवर्सिटी में टौप किया था. मैं भी उस के साथ पढ़पढ़ कर ठीकठाक नंबर से पास हो गया था. उपकार ने तो अपने ही कालेज में एमएससी में ऐडमिशन ले लिया था जबकि मुझे दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. महीने में एक बार ही मैं घर आ पाता. उपकार मुझ से मिलने आ जाता और फिर चिकन खा कर ही जाता.

देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. उपकार को अपने ही कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. बधाई देने के लिए मैं उस के घर गया, तो उस ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया. मुझे लगा जैसे वह मुझ से कुछ कहना चाह रहा है लेकिन कह नहीं पा रहा था.

‘क्या बात है, कुछ कहना चाह रहे हो?’ मैं ने उस से पूछ ही लिया.‘हां, नहीं…  कुछ नहीं.’ मेरे पूछने पर वह थोड़ा हड़बड़ा गया.‘कालेज में सब ठीक तो है?’ मुझे लगा शायद उसे नई नौकरी में एडजस्ट करने में कोई दिक्कत हो रही हो.

‘कालेज में तो सब ठीक है, असल में, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं, पर डरता हूं कि पता नहीं तुम क्या सोचो,’ उस ने थोड़ी हिम्मत जुटाई.

‘अरे, तो बोल न. अगर कुछ चाहिए तो बता. बस, मुझ से चिकन लाने को मत बोलना,’ मैं बोल कर जोर से हंस दिया.

‘मैं चिकन नहीं, चिकन वाली को इस घर में लाना चाहता हूं,’ उपकार ने धीमी सी आवाज में कहा.‘मतलब?’ मैं सच में कुछ नहीं समझा था.‘मैं नयना से शादी करना चाहता हूं, अगर तुम को कोई आपत्ति न हो.’ आखिर उस ने हिम्मत कर के बोल ही दिया.

‘नयना, अपनी नयना.’ मुझे उपकार की बात सुन कर एक झटका सा लगा, लेकिन अगले ही पल मुझे लगा नयना के लिए उपकार से अच्छा लड़का और कहां मिलेगा.

‘हां,  हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं,’ उपकार ने नजरें नीची किए हुए कहा.सच कहूं तो मुझे तो बहुत खुशी होगी अगर नयना को इतना अच्छा घरपरिवार मिल जाए,’ मैं ने मुसकरा कर कहा लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के आगे अंकलजी यानी उपकार के पिताजी का चेहरा घूम गया.

‘लेकिन तुम्हारे पिताजी? वे तो लहसुनप्याज को भी घर में नहीं आने देते, भला एक मांसाहारी, गैरब्राह्मण लड़की को अपनी बहू बनाने के लिए कैसे तैयार होंगे,’ मैं ने अपनी शंका उपकार के सामने रखी.

डायबिटीज को करना है कंट्रोल तो खाएं ये 5 फ़ूड

दुनिया भर में लाखों लोग डायबिटीज से प्रभावित हैं.इसलिए जरूरी है कि वह अपने खानपान का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि हमारे मुंह में गया हर कौर हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है इसलिए खाने से पहले सोचे.

डायबिटीज रोग मनुष्य के साथ जीवन भर रहता है इस स्थिति में हमारा शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर रहा है या उत्पादित इंसुलिन का रिसपॉन्ड नहीं दे पाता है.

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इस बारे में मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत, नई दिल्ली के डायबिटीज एडुकेटेर डॉक्टर मंजू पंडा कहतीं हैं कि डायबिटीज रोगियों को नियमित अंतराल में भोजन करते रहना चाहिए ताकि अचानक ब्लड शुगर में कमी न हो. इसके अलावा फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए. इस बात का खास ध्यान रखें कि सुबह के नाश्ते और दोपहर के लंच के बीच जो टाइम होता है, जिसको प्री लंच कहते हैं उस टाइम कोशिश करें कि हल्का-फुल्का कुछ खाएं. इसमें आपको अपने भोजन को डिवाइड करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आपको अपनी डाइट में रोजाना कितनी कैलोरी लेनी है. क्योंकि, डायबेटिक रोगियों के लिए ज्यादा कैलोरी शुगर और वजन बढ़ाता है.

1.मौसमी फल: कोई भी लोकल या मौसमी फल जो फाइबर में उच्च और ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम है, आपके ब्लड शुगर के उतार-चढ़ाव को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है.

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2. पालक और पत्तागोभी का जूस: अक्सर जूस में सब्जी या फल की फाइबर सामग्री कम हो जाती है, इसलिए इन्हें ऐसे ही खाने के सलाह दी जाती है. हालांकि, एक बार जूस पीने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन यह सुनिश्चित करें कि यह ताजा, घर का बना और नैचुरल हो. आप चाहे तो ताजे पालक के पत्तों के साथ पत्तागोभी के पत्तों को एक साथ मिलाकर थोड़ा सा पानी डालकर ब्लेंड करके ऐसे ही पीने की कोशिश कर सकते हैं.

3- नट्स का मिश्रण: बादाम, कद्दू के बीज, काजू, तिल के बीज, अलसी का बीज और अखरोट को एक साथ मिलाकर आप एक होममेड नट-ट्रेल तैयार कर सकते हैं. आप इसको खा सकते हैं। इस बात का खास ध्यान रखें कि इसका सेवन सीमित मात्रा में करें.

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4. टमाटर और धनिया का सैलेड : यह लो कैलोरी वाला सैलेड आपके दिन में ताजगी का संचार कर सकता है. आप इस सिम्पल से सैलेड को तब भी बना सकते हैं, जब आपके पास बहुत ही कम समय हो. इस टमाटर सैलेड में कटा हुआ टमाटर, कटा हरा धनिया, नींबू का रस और काली मिर्च जैसी सभी चीजों को मिलाकर इसे तैयार कर सकते हैं.

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5. कैरेट स्टिक एंड हम्मस: गाजर साफ करके ​छील लें और इसे लम्बाई में काट लें. इन्हें हम्मस में डिप कर सकते हैं, यह एक लो-कार्ब स्नैक का बहुत ही बढ़िया विकल्प है. अगर आपको गाजर पसंद नहीं है, तो आप इसकी जगह खीरे का उपयोग कर सकते हैं.

टीआरपी घोटाले के बहाने मीडिया पर शिकंजा

मुंबई पुलिस के टीआरपी शिकंजे में फंसने के बाद अर्णब गोस्वामी ने सनातनी चोला ओढ़ लिया. अर्णब को मुंबई पुलिस से बचाने के लिए लखनऊ में टीआरपी को ले कर पुलिस में हुई एफआईआर को योगी सरकार ने 2 दिन के भीतर ही सीबीआई को सौंप दिया और आननफानन में सीबीआई ने मामला स्वीकार भी कर लिया.

इस बहाने महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सरकार आमनेसामने है. महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि बिना कोर्ट की अनुमति के सीबीआई महाराष्ट्र में जांच नहीं कर सकेगी. टीआरपी कांड के जरीए योगी सरकार उन समाचार चैनलों को भी शिकंजे में कस सकेगी, जो सरकार के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं. टीआरपी घोटाले से दर्शकों को यह समझने की जरूरत है कि समाचार चैनल भरोसे लायक नहीं हैं. यह भ्रामक खबरें भी दिखाते हैं.

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‘गोल्डन रैबिट’ कंपनी के क्षेत्रीय निदेशक कमल शर्मा ने 17 अक्तूबर, 2020 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज थाने में उत्तर प्रदेश के टीआरपी यानी टैलीविजन रेटिंग प्वाइंटस घोटाले की शिकायत दर्ज कराई, जिस में कहा गया कि ‘गलत तरह से टीआरपी को ज्यादा दिखा कर विज्ञापनदाताओं और उपभोक्ताओं को ठगा जा रहा है. इसी टीआरपी के आधार पर विज्ञापनदाता तय करते हैं कि किस चैनल को विज्ञापन देना है. कई विज्ञापन एजेंसियां भी इसी टीआरपी को मानक मान कर अपने उपभोक्ताओं से डील करती हैं कि फलां चैनल में कितनी देर तक का विज्ञापन दे, जो उन के लिये फायदेमंद रहता है.‘

टीआरपी को दिखाने के लिए चैनल एक संस्था के द्वारा रैंडम सर्वे कराती है. पर फर्जीवाड़े में रैंडम सर्वे न करा कर ये लोग घरों को चिन्हित कर लेते हैं, फिर मिलीभगत कर के उन के यहां पीपुल मीटर डिवाइस लगा देते हैं. इस डिवाइस से ही डेटा तैयार किया जाता है कि उस घर में कौन सा चैनल और उस का कौन सा प्रोग्राम ज्यादा व कितने समय तक देखा गया. इस की मौनिटरिंग सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय द्वारा अधिकृत बीएआरसी यानी ब्रौडकास्टिंग औडियंस रिसर्च काउंसिलिंग द्वारा की जाती है.

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इस के बाद भी कई चैनल फर्जी टीआरपी से उपभोक्ताओं व विज्ञापनदाताओं से धोखाधड़ी कर रहे हैं. इस पूरी प्रक्रिया में शामिल हर व्यक्ति व संस्था के खिलाफ साजिश में शामिल होने के तहत कार्यवाही करनी चाहिए.

कमल शर्मा की शिकायत पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 120बी, 34, 406, 408, 409, 463, 465 और धारा 468 के तहत मुकदमा कायम किया गया. 20 अक्तूबर, 2020 को अपर मुख्य सचिव, गृह, अवनीश अवस्थी ने इस विषय की जानकारी देते हुए कहा कि सरकार ने इस फर्जीवाडे़ की सीबीआई जांच की सिफारिश की और सीबीआई ने केस स्वीकार भी कर लिया है.

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संदेह के बिंदु :

उत्तर प्रदेश के टीआरपी घोटाले को जिस तरह से फ्रेम किया गया है, उस में कुछ संदेह के बिंदु हैं, जो बताते हैं कि टीआरपी घोटाला तो बहाना है. उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार मिलजुल कर खिचड़ी पका रही है. इस की आड़ में मीडिया पर शिकंजा कसने की तैयारी की जा रही है. टीआरपी घोटाले की एफआईआर बिना किसी पुख्ता आधार के एक शिकायतपत्र पर पुलिस में दर्ज कर ली गई. अमूमन ऐसी एफआईआर सामान्यतौर पर पुलिस नहीं लिखती है. एफआईआर होने को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया. एफआईआर कराने वाले व्यक्ति ने पुलिस की जांच मांगी थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने दो कदम आगे जाते हुए उम्मीद से दोगुना सीबीआई को जांच की सिफारिश कर दी. सीबीआई के लिए भी यह मुद्दा इतना महत्वपूर्ण हो गया कि उस ने कुछ ही घंटे में जांच की सिफारिश स्वीकार कर ली. इस के बाद ही इस बात की सूचना लोगों को दी गई.

उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के शव को जलाने और गैंगरेप की जांच के लिए सीबीआई जांच की सिफारिश की गई. सीबीआई ने 5 दिन के बाद मामले को स्वीकार किया. टीआरपी जांच को घंटेभर में ही स्वीकार कर लिया. इस तेजी के पीछे हाथरस और मुंबई का टीआरपी कांड है.

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असल बात यह है कि हाथरस कांड में कुछ टीवी चैनलों की भूमिका को जिम्मेदार माना गया. सरकार का मानना है कि चैनलों ने लोगों को भड़काने का काम किया, जिस से डर कर जिला प्रशासन ने लड़की के शव को आननफानन में ही आधी रात को जलाने का फैसला किया. इस को ले कर पूरी दुनिया में उत्तर प्रदेश सरकार की बेहद किरकिरी हुई.

चैनलों पर नकेल की तैयारी :

प्रमुख रूप से ‘आजतक’ चैनल का नाम सामने आया. उस की एंकर चित्रा त्रिपाठी की वाइस काल भी वायरल हुई थी. चित्रा का डीएम हाथरस के साथ विवाद भी खूब दिखा था. हाथरस कांड में केवल अर्णब गोस्वामी का चैनल ‘रिपब्लिक भारत’ सरकार के पक्ष में खड़ा दिख रहा था. टीआरपी कांड में सब से पहले मुंबई पुलिस ने ‘रिपब्लिक भारत’ और मराठी चैनलों के खिलाफ मुकदमा कायम किया था. मुंबई पुलिस मीडिया से जुडे़ 8 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है. मुंबई पुलिस ने अर्णब गोस्वामी को भी नोटिस जारी कर दिया था. लखनऊ में टीआरपी मामले की एफआईआर और सीबीआई जांच से अब इस के तार मुंबई तक पहुंच जाएंगे. पूरी जांच सीबीआई अपने अधीन ले लेगी. महाराष्ट्र सरकार कभी भी इस मामले की जांच सीबीआई को नहीं देती. इस कारण उत्तर प्रदेश को जरीया बनाया गया.

हिंदुत्व का संदेश :

जानकार लोग बताते हैं कि पूरा मामला शुरू से ही केंद्र सरकार की जानकारी में था. इसी कारण सीबीआई ने बिना किसी प्रकार की देरी के मुकदमा स्वीकार कर लिया. इस फैसले से एक तीर से दो निशाने साधने का काम किया गया है. मुंबई में टीआरपी मामले की जांच में सीबीआई दखल दे पाएगी और उत्तर प्रदेश के समाचार चैनलों की नकेल कसने का रास्ता निकल सकेगा. हाथरस कांड के बाद सरकार के खिलाफ समाचार दिखाने से बदनामी हो रही थी.

जिस तरह से महाराष्ट्र सरकार ने सुशांत सिंह राजपूत केस के साथ ही साथ मुंबई ड्रग्स मामले को ले कर अपने खिलाफ बोलने वाले टीआरपी कांड में ‘रिपब्लिक’ टीवी को निशाने पर लिया, अब उत्तर प्रदेश सरकार भी अपने यहां मीडिया पर शिकंजा कसने की तैयारी में है.

उत्तर प्रदेश सरकार यह मान रही है कि कानपुर के विकास दुबे कांड के बाद से मीडिया लगातार सरकार को गलत तरह से घेर रही है. हर अपराध को जातीय रंग दे रही है. घटनाओं के मुख्य तथ्यों से लोगों को गुमराह कर रही है. ऐसे में अब टीआरपी कांड से उन पर रोक लगाई जा सकेगी. टीआरपी एक ऐसा मुद्दा है, जिस को ले कर समाचार चैनल गलत बयानी करते रहे हैं. ऐसे में उन की कमियों को निकालना सरल हो जाएगा. इस के साथ ही साथ टीआरपी कांड के बाद ‘रिपब्लिक’ टीवी के अर्णब गोस्वामी ने खुद को सनातन धर्म से जोड़ा है. उस के बाद धर्म की चिंता करने वाली जनता में उन की अलग इमेज बन गई. सोशल मीडिया पर लोगों ने अर्णब को फंसाने को ले कर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की. उत्तर प्रदेश सरकार अब अर्णब की रक्षा कर के जनता में अपनी हिंदूवादी छवि को और मजबूत करेगी. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि धर्म के रक्षक की है. इस मामले में दखल के बाद वह खुद को और भी अधिक प्रभावी दिखाना चाहते हैं.
…………..

बाक्सः 1
यह है मुंबई का टीआरपी मामला

मुंबई पुलिस ने फेक टीआरपी रैकेट का परदाफाश किया था. इस में 3 चैनलों के नाम सामने आए थे, जिस में ‘रिपब्लिक भारत’, ‘बौक्स सिनेमा’ और ‘फक्त मराठी’ का नाम शामिल था. पुलिस ने बताया कि ये टीवी चैनल पैसा दे कर टीआरपी को मैन्युपुलेट करने का काम कर रहे थे.

पुलिस के मुताबिक, रिपब्लिक टीवी पैसा दे कर टीआरपी बढ़ाता था. टीआरपी को कैलकुलेट करने वाली एजेंसी से जुड़ी ‘हंसा’ नाम की एक एजेंसी पर शिकंजा कसा. देशभर में 3,000 से ज्यादा पैरामीटर्स, मुंबई में तकरीबन 2,000 पैरामीटर्स के मेंटेनेंस का जिम्मा ‘हंसा’ एजेंसी के पास था, जो टीआरपी के साथ छेड़छाड़ कर रही थी.

जिन घरों में ये कौंफिडेंशियल पैरामीटर्स लगाए गए थे, उस डेटा को किसी चैनल के साथ शेयर कर उन के साथ टीआरपी से छेड़छाड़ की गई. इन घरों में एक खास चैनल को ही लगा कर रखने के लिए कहा गया था, जिस के बदले में उन्हें पैसे दिए जाते थे.

इस मामले में पुलिस ने 2 लोगों को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार किए गए शख्स के बैंक अकाउंट से तकरीबन 10 लाख और 8 लाख रुपए नकद बरामद किए गए. इस के लिए अनपढ़ लोगों के घरों में इंगलिश के चैनल को औन करने की भी डील की गई थी. महीना फिक्स था. लोगों के घरों में पैसा देते थे. 20 लाख रुपए एक अकाउंट से सीज किए गए. एक आदमी से 8 लाख कैश बैंक लौकर से रिकवरी हुई है. धारा 409, 420 के तहत केस दर्ज किया गया था.

पुलिस ने कहा कि चैनल के लोग जो जिम्मेदार हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी. इन में सब से बड़ा और प्रमुख नाम ‘रिपब्लिक’ टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी का था.

बौंबे हाईकोर्ट, मुंबई पुलिस और अर्णब गोस्वामी के बीच एकदूसरे का सामना करने के लिए कानूनी दांवपेंच का प्रयोग हो रहा था. इस बीच उत्तर प्रदेश में टीआरपी कांड की जांच के लिए सीबीआई को मुकदमा दे दिया गया. अब पूरे मामले की जांच सीबीआई करेगी, जिस से मुंबई पुलिस मनमानी नहीं कर सकेगी. इस बहाने अर्णब गोस्वामी को बचाया जा सकता है.

बाक्सः 2
भरोसे के लायक नहीं हैं टीवी चैनल

टीआरपी घोटाले से एक बात यह साफ हो गई है कि टीवी चैनल भरोसे के लायक नहीं हैं. यह दर्शकों को प्रोपेगैंडा फैलाने वाली खबरें दिखाते हैं, जिस की वजह से अब इन के समर्थक भी नाराज होने लगे हैं. ‘रिपब्लिक भारत’ ने महाराष्ट्र के पालघर में संतों की हत्या को हिंदूमुसलिम विवाद में उलझाने का प्रयास किया था, जबकि पालघर मामला पूरी तरह से मौब लिंचिंग का मामला था. इस में मुसलिम वर्ग का कोई हाथ नहीं था. सुशांत सिंह राजपूत का मामला भी ऐसा ही था. आत्महत्या के मामले को हत्या का मामला बताया जा रहा था. कोरोना को फैलाने के लिए मार्च और अप्रैल माह में टीवी चैनलों ने जमातियों को बदनाम करने का काम किया था. नोटबंदी के समय चैनलों ने यह बताने का काम किया था कि 2,000 के नोट में माइक्रो चिप लगी है, जिस की वजह से उस को ट्रेस करना सरल होगा. इसी तरह से नागनागिन को अवतार बताना, स्वर्ग में सीढ़िया लगाने और जमीन के अंदर सोने का खजाना जैसी तमाम खबरें ऐसी थीं, जो भ्रामक थीं. हर चैनल खुद को सब से पहले और सब से तेज बताने का दावा करता है. इस के बाद भी सारी भ्रामक खबरें दिखाता है. असल बात यह है कि टीवी केवल टीआरपी के लिए खबरें दिखाता है. उसे जनता तक सही सूचनाएं और जानकारी देने का काम करना चाहिए. यह अपने एजेंडा के चलते दर्शकों को भ्रामक जानकारी देते हैं.

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