‘उन की चिंता तुम मत करो. उन को मैं किसी तरह मना ही लूंगा. मुझे पहले तुम्हारी अनुमति की आवश्यकता थी,’ उपकार ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.
‘मेरी अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है. नयना और तुम दोनों समझदार हो. मुझे पूरा विश्वास है तुम दोनों की आपस में खूब बनेगी,’ मैं एक बड़े भाई की तरह ज्ञान दे रहा था.
फिर घर आ कर मैं ने पहले मां व पिताजी से नयना और उपकार के बारे में बात की. मां तो बहुत प्रसन्न थीं, पिताजी यद्यपि थोड़े सशंकित थे कि एक कट्टर ब्राह्मण परिवार नयना को कैसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार होगा. लेकिन मैं ने उन को विश्वास दिलाया कि शादी उपकार के पिताजी की सहमति के बाद ही शादी होगी.
फिर एक दिन उपकार ने मौका देख कर अपने पिताजी से नयना के बारे में बात की. जब उस ने बताया कि लड़की ब्राह्मण नहीं है तो वे थोड़े निराश हो गए. जानते तो थे ही कि उपकार जातपांत में विश्वास नहीं रखता, इसलिए उन्होंने भी अपने मन को समझा लिया.
लेकिन अगले ही पल उन का सवाल था, ‘लड़की मांसाहारी तो नहीं है?’अब उपकार ठहरा आज के जमाने का महाराजा हरिश्चंद्र, बता दिया सच. सुनते ही पिताजी हत्थे से उखड गए.
‘लड़की ब्राह्मण नहीं है, मैं यह तो स्वीकार कर सकता हूं, लेकिन एक मांसाहारी लड़की को मैं अपनी बहू स्वीकार नहीं कर सकता,’ पिताजी अपने रौद्र रूप में आ गए थे.
‘आप एक बार उस से मिल तो लीजिए. वह एक बहुत अच्छी लड़की है,’ उपकार ने पिताजी को मनाने की कोशिश की.‘चाहे वह कितनी भी अच्छी हो और कितनी भी सुंदर हो, मैं तुम्हें उस से शादी की अनुमति नहीं दे सकता,’ पिताजी ने उपकार से साफसाफ बोल दिया.
‘लेकिन मैं उस के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगा,’ अब उपकार को भी थोड़ा गुस्सा आने लगा था.‘ठीक है, तो जाओ और कर लो उस से शादी. लेकिन उस से पहले तुम्हें मुझे और इस घर को त्यागना होगा,’ उपकार के पिताजी ने हाथ उठा कर उपकार को आगे कुछ भी बोलने से रोक दिया और उठ कर अपने कमरे में चले गए.
यहीं आ कर उपकार अपने को बड़ा असहाय पा रहा था. वह जानता था कि उस के पिताजी ने उस को किस तरह पाला है. मां के देहांत के बाद जब सभी रिश्तेदार उन से दूसरी शादी के लिए कह रहे थे, उन्होंने कहा था कि वे अपना सारा जीवन उपकार के लिए बिता देंगे. उन्होंने कभी भी उपकार को किसी चीज की कमी नहीं होने दी, कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया. लेकिन आज जब उपकार को पसंद की जीवनसाथी का साथ चाहिए था, तो उस के पिताजी किसी भी तरह तैयार नहीं थे.
उपकार ने एकदो बार फिर पिताजी को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. बड़ी मुश्किल थी. उधर उपकार, इधर नयना – दोनों दुखी और निराश थे.
‘यार, कोई रास्ता तो बताओ पिताजी को मनाने का. वे तो मेरी बात सुनने को ही तैयार नहीं हैं,’ एक दिन उपकार मुझ से मिला और बोला.
यार, मैं ने कहीं पढ़ा था अगर लड़की के पिता को मनाना हो तो एक काले कपड़े पर मिटटी का पुतला रख कर उस पर लाल धागा बांध कर लालमिर्च और नारियल चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है, लेकिन मुझे यह नहीं पता कि इस से लड़के के पिता भी मानेंगे या नहीं,’ मैं ने उस को एक टोटके के बारे में बताया.
‘यार, तुम को मजाक सूझ रही है. यहां मैं टेंशन लेले कर गंजा न हो जाऊं,’ उपकार ने मुझे घूरते हुए कहा.‘मैं मजाक नहीं कर रहा. अब तुम न मानो तो तुम्हारी मरजी,’ मैं ने सुरेश के मशहूर गोलगप्पे मुंह में डालते हुए कहा.
‘तुम ही चल कर एक बार पिताजी को समझा लो,’ उस ने मेरी बात को अनसुनी करते हुए कहा.‘अरे नहीं रे बाबा.’ गोलगप्पा मेरे मुंह से बाहर निकलतेनिकलते बचा. मैं तो आज तक भी उन के सामने आने से घबराता हूं. याद है, कैसे तुम ने मुझे फंसवा दिया था. अब तुम दोनों ही कुछ रास्ता निकालो,’ मैं ने साफ इनकार कर दिया.
पिताजी और उपकार दोनों ही झुकने के लिए तैयार नहीं थे. फिर कुछ दिनों बाद उपकार को एक मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए एक हफ्ते के लिए अमेरिका जाना पड़ा. अभी वह अमेरिका पहुंचा भी नहीं था कि उस के पिताजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. रातभर बेचारे दर्द से तड़पते रहे. अगले दिन जब खाना बनाने वाली आंटी आईं तो उन्होंने झट से अस्पताल से एम्बुलेंस मंगवा कर उन को एडमिट कराया. उन्होंने उपकार को फोन कर के सूचित किया. उपकार के लिए इतनी जल्दी वापस आना लगभग असंभव था. किसी भी सूरत में वह दोतीन दिनों से पहले वापस नहीं आ सकता था. उस ने मुझे फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरा फोन खराब होने की वजह से मुझ से बात नहीं हो पाई. तब उस ने नयना को फोन किया तो वह तुरंत पिताजी के पास अस्पताल पहुंच गई.
अंकलजी की हालत में अब काफी सुधार था. नयना 2 दिनों तक उन के पास अस्पताल में ही रही. नयना ने उपकार को फोन कर के वापस आने से मना कर दिया कि अब अंकल की तबीयत बिलकुल सही है और वह अपना काम खत्म कर के ही लौटे.
फिर वह उन को अस्पताल से घर ले आई और उन की खूब सेवा की.‘तुम पाठक साहब की बेटी हो न. पाठक साहब तो काशी गए हुए हैं. तुम दिल्ली से कब आईं. सौरी, तुम को मेरे लिए इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है.’ उपकार के पिताजी नयना को पाठक साहब की बेटी समझ रहे थे. शहर में पाठक साहब ही उन के एकमात्र मित्र थे, इसलिए उन को लगा शायद नयना पाठक साहब की बेटी है.
‘मैं आप की बेटी हूं और मुझे आप की सेवा करने में कोई कष्ट नहीं है. और आप को डाक्टर ने ज्यादा बोलने के लिए मना किया है, इसलिए आप ज्यादा बात न करें,’ नयना ने उन को दवाई देते हुए कहा.
‘कितनी सुशील और संस्कारी लड़की है. काश, उपकार इस से शादी के लिए तैयार हो जाए.’ नयना को अपनी सेवा करते देख अंकलजी ने मन ही मन सोचा.
उपकार रोज ही अंकलजी से फोन पर बात करता. अंकलजी ने उस को बिलकुल भी चिंता नहीं करने की बात कही.
नयना ने मुझे फोन कर के अंकलजी के बारे में बता दिया था, तो मैं उन से मिलने आया. नयना ने मुझे मना किया था कि मैं उस के बारे में अंकलजी को बताऊं. अंकलजी की तबीयत अब काफी अच्छी थी. उपकार 2 दिनों बाद वापस आने वाला था.
‘बेटा, तुम तो उपकार के सब से अच्छे दोस्त हो. उस को समझाओ कि वह इस लड़की से शादी के लिए तैयार हो जाए. इस से अच्छी लड़की उस को कहां मिलेगी. पता नहीं, वह किस लड़की से शादी करने की जिद पकड़े बैठा है.’ अंकल जी ने यह मुझ से धीरे से कहा.
अब मैं अंकलजी से क्या कहता. चुपचाप चाय पी कर वहां से चला आया.फिर जिस दिन उपकार को वापस आना था, नयना वापस अपने घर आ गई. उपकार के आने से पहले ही पाठक साहब काशी से वापस आ गए थे.
‘अरे पंडित जी, यह क्या हाल बना लिया. मैं तो मिठाई लाया था अपनी पारुल का रिश्ता काशी में कर दिया है. अब जल्दी से ठीक हो जाइए, शादी अगले महीने ही है,’ पाठक साहब अंकल जी के पास बैठते हुए बोले.
‘अरे बिटिया की शादी तय भी कर आए इतनी जल्दी.’ पाठक साहब की बेटी की शादी की बात सुन अंकल जी बिलकुल निराश हो गए.
‘जी, बस, सबकुछ जल्दी ही तय हो गया. एक छोटे से समारोह में पारुल और शैलेश की सगाई भी कर दी है,’ पाठक साहब ने अंकल जी को बताया.
‘सगाई भी हो गई, लेकिन बिटिया तो यहीं थी, फिर कैसे?’ अंकलजी हैरानी से बोले.नहीं, पारुल तो हमारे साथ काशी में ही थी. वह दिल्ली से वहीं आ गई थी,’ पाठक साहब ने कहा तो अंकल जी सोच में पड़ गए कि अगर पारुल काशी में थी तो उन के साथ इतने दिनों तक कौन थी.
फिर शाम तक उपकार भी वापस आ गया. अंकलजी ने उपकार से पूछा कि आखिर इतने दिनों तक उन की सेवा करने वाली लड़की कौन थी.‘मेरे एक दोस्त की बहन थी,’ उपकार ने छोटा सा जवाब दिया, ‘कल से आप की देखभाल के लिए एक नर्स आ रही है. आप जल्दी से अच्छे हो जाइए, तो मैं आप को प्रयाग ले कर चलूंगा,’ उपकार ने मुसकरा कर अंकलजी से कहा.
‘मेरी एक बात मान ले बेटा, नर्स की जगह तू उसी लड़की को इस घर में ले आ मेरी बहू बना कर,’ अंकल जी ने उपकार का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा.
‘मैं तो कब का माना हुआ हूं, आप ही नहीं मान रहे,’ उपकार ने हताशाभरी मुसकान से कहा, तो अंकलजी को मानो एक झटका सा लगा.
‘तो क्या यह वही लड़की है जिस से तुम शादी करना चाहते हो,’ अंकलजी ने बड़ी हैरत से कहा.‘जी बाबूजी, लेकिन अब नहीं. मेरे लिए वह आप से बढ़ कर नहीं है. आप को यह शादी मंजूर नहीं है, तो फिर यह शादी नहीं होगी,’ उपकार अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए बोला और फिर वहां से चला गया. लेकिन अंकल जी विचलित हो गए.
रातभर अंकलजी सही से सो नहीं पाए. बारबार उन्हें नयना की सेवा और उपकार की आंखों में आंसू याद आते रहे. एक तरफ उन का धर्म था, तो दूसरी तरफ बेटे की खुशियां. वे किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे. फिर सुबह होतेहोते उन्होंने एक फैसला कर लिया.
‘अगर तुम मुझे इतना ही मान देते हो तो जहां मैं कहूं वहां शादी करोगे,’ अंकलजी ने चाय पीते हुए उपकार से कहा.‘जैसा आप कहें पिताजी,’ उपकार ने हार मानते हुए कहा.
‘तो फिर नयना को बोलो जल्दी से मेरी बहू बन कर इस घर में आ जाए,’ अंकलजी ने मुसकरा कर कहा तो उपकार को विश्वास ही नहीं हुआ.
‘पिताजी, क्या आप सच कह रहे हैं?’ उपकार की बांछें खिल गईं.‘हां, अभी के अभी उस को यहां बुलाओ. 2 दिनों से उस को नहीं देखा, तो कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा,’ अंकल जी उपकार की खुशी देख कर खुद भी बहुत खुश थे.
उपकार ने झट से नयना को फोन कर के घर बुला लिया.‘बेटी, क्या तुम इस घर की बहू बनोगी,’ अंकलजी ने आते ही नयना से कहा, तो नयना आंखों में आंसू लिए उन के गले लग गई.
‘नालायक, तूने भी मुझ को नहीं बताया,’ कुछ दिनों बाद दोनों की सगाई के मौके पर अंकलजी ने मेरे कान खींचते हुए कहा.फिर उपकार और नयना दोनों ने एकदूसरे को सगाई की अंगूठी पहनाई.
‘आज मैं अगर तुम से कुछ मांगूं, तो दोगे,’ नयना ने उपकार से मेरी मौजूदगी में कहा.‘जी बोलिए, आज आप जो कहेंगी, मैं वह करूंगा,’ उपकार ने हंसते हुए कहा.
‘तो आज से आप और मैं पूर्ण शाकाहारी होंगे. हम पिताजी के लिए इतना तो कर सकते हैं न,’ नयना ने गंभीरता से कहा तो मुझे अपनी बहन पर बड़ा गर्व हुआ.
‘जो हुक्म मल्लिका का.’ चिकन छोड़ने के ख़याल से उपकार का मुंह लटक तो गया लेकिन फिर उस ने नयना से नाटकीय अंदाज में झुकते हुए यह कहा, तो हम सब हंस पड़े. हम ने ध्यान भी नहीं दिया कि हमारे पीछे अंकलजी हमारी बातें सुन कर अपनी आंखों में आए पानी को साफ कर रहे थे.