हमारे देश में सूरजमुखी बेहद कारगर तिलहन फसल मानी जाती है. यह भारत में 1969-70 में हुई खाद्य तेल की कमी के बाद उगाई जाने लगी है. सूरजमुखी का तिलहनी फसलों में खास स्थान है. हमारे देश में मूंगफली, सरसों, तोरिया व सोयाबीन के बाद यह भी एक खास तिलहनी फसल है. सूरजमुखी की औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि बहुत कम है. उपज कम होने के खास कारणों में अच्छी किस्मों के कम इस्तेमाल व खाद के असामान्य इस्तेमाल के साथ फसल को कीटों व बीमारियों द्वारा नुकसान पहुंचाना भी शामिल है. सूरजमुखी की फसल 80-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.
मिट्टी व जलवायु : पानी के अच्छे निकास वाली सभी तरह की मिट्टियों में इस की खेती की जा सकती है. लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5-8.5 हो, इस के लिए बेहतर होती है. 26 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान में सूरजमुखी की अच्छी फसल ली जा सकती है.
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खेत की तैयारी : खेत की पहले हलकी फिर गहरी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी और बराबर कर लेना चाहिए. आखिरी जुताई से पहले एफवाईएम की सही मात्रा डाल दें. रीज प्लाऊ की मदद से बोआई के लिए तय दूरी पर मेंड़ें बना लें.
बोआई की विधि : बीजों को बोआई से पहले 1 लीटर पानी में जिंक सल्फेट की 20 ग्राम मात्रा मिला कर बनाए गए घोल में 12 घंटे तक भिगो लें. उस के बाद छाया में 8-9 फीसदी नमी बच जाने तक सुखाएं. उस के बाद बीजों को थायरम या बावेस्टिन से उपचारित करें.