सितंबर माह में केन्द्र सरकार ने खेती किसानी को लेकर जिस तरह से तीन कानून बनायें उसके विरोध में किसान आन्दोलन करने लगे. केन्द्र सरकार को शुरूआत में यह लग रहा था कि इस आन्दोलन के पीछे किसानो की आड में कांग्रेस पार्टी है. पंजाब में कांग्रेस की सरकार है इस लिये पंजाब के किसान ही आन्दोलन कर रहे है. धीरे धीरे जब किसानों ने लंबे समय तक अपना आन्दोलन जारी रखा और ‘दिल्ली कूच‘ का नारा दिया तब भी केन्द्र सरकार ने किसानों को हरियाणा में ही रोकने का काम किया. दिल्ली में प्रवेष से पहलें किसानों को जिस तरह से परेषान किया गया. उन पर लाठी डंडे चले उसकी देश भर में आलोचना शुरू हो गई.
भाजपा का समर्थन करने वाली ‘ट्रोल सेना‘ ने सोषल मीडिया में इन किसानों को खालिस्तान समर्थक और पाकिस्तान से प्रेरित होने का आरोप लगाते कहा ‘यह समय किसानों को खेत में रहकर अपनी फसल की बोआई करने का है. ऐसे समय में सडको पर आन्दोलन करने वाले यह किसान नहीं है. यह विरोधी दलों के समर्थक है.’ ‘ट्रोल सेना‘ का यह मैसेज वायरल तो हुआ पर जैसे जैसे किसानो पर पुलिस के अत्याचार और परेशान होने की खबरे सोशल मीडिया पर आने लगी यह मैसेज बेकार होने लगा. खुद दिल्ली की केजरीवाल सरकार किसानों के साथ खडी नजर आई. केन्द्र सरकार को यह लग रहा था कि इंडिया किसान कोआर्डिनेषन कमेटी के साथ इस आन्दोलन में राष्ट्रीय किसान महासंघ और भारतीय किसान यूनियन जैसे छोटे बडे किसान संगठन पूरे देश से आवाज को उठाने लगेगे.
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भारतीय किसान यूनियन टिकैत ने फैसला किया है कि हर जिले में उसका संगठन पंजाब-हरियाणा के किसानो साथ है. उत्तर प्रदेश में जिन जगहो पर किसानों का प्रदर्षन हुआ वहां उसके पीछे किसान यूनियन के ही पदाधिकारी प्रमुख रूप से सामने दिखे. किसान यूनियन भी कई गुटों में बंटी होने के कारण कमजोर दिख रही है. इसके बाद भी हौसलें बुलंद है. किसानों का कहना है कि कम संख्या के बाद भी हमारी आवाज बुलन्द है और केन्द्र सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगे. हमारा संगठन जितने लंबे आन्दोलन को कहेगा हम तैयार है.
स्टोरेज से बढेगी मंहगाई और कालाबाजारी: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को घेरने के लिये जब किसानों ने आना शुरू किया तो यहां एक दिन पहले ही धारा 144 लागू कर दी गई थी. किसानों को हाईवे पर ही रोकना शुरू कर दिया गया. मोहनलालगंज में भारतीय किसान यूनियन टिकैत गुट के जिला महामंत्री सरदार दिलराज सिंह की अगुवाई में लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग को जाम कर दिया गया. इनके साथ मंडल उपाध्यक्ष राजेश सिंह चैहान, जिला अध्यक्ष सरदार गुरूमीत सिंह, महिला जिला अध्यक्ष माना सिंह इसके साथ किसान रामानंद रावत, बद्री प्रसाद और बाबूलाल पाल जैसे सैकडों किसान मौजूद थे. किसानों ने लखनऊ-सुल्तानपुर राजमार्ग पर गोसाईंगज और लखनऊ-सीतापुर मार्ग पर इंटौजा पर भी जाम लगाकर धरना दे दिया.
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सरदार दिलराज सिंह ने कहा ‘केंद्र सरकार मंडियों को खत्म कर देना चाहती है. केन्द्र सरकार को देखना चाहिये कि मंडियों को खत्म करने के बाद भी बिहार में किसानों का भला नहीं हुआ. बिहार में 2006 में मंडियो को खत्म कर दिया गया था. अभी तो केवल इस कानून के लागू होने की बात ही हुई है इसका यह असर है कि धान की खरीद बंद हो गई है. धान का समर्थन मूल्य 1868 रूपये सरकार ने रखा है सरकारी खरीद सभी किसानों के धान नहीं खरीद पाती. ऐसे में मजबूर किसान का धान 8 सौ रूपये से लेकर 11 सौ रूपये तक ही है. जब मंडियां बंद हो जायेगी तब सोचिए किसान कितना परेषान होगा.‘
सरदार दिलराज सिंह ने कहा ‘सरकार को चाहिये कि किसानों को राहत देने के लिये हर फसल का न्यूनतम मूल्य तय कर दे. तय मूल्य से कम कीमत में खरीददारी करने वाले को सजा दी जाये. केन्द्र सरकार ने आवष्यक वस्तु अधिनियम में संषोधन करके स्टोरेज की क्षमता को असीमित कर दिया है. जिसके कारण देश के बाजार पर व्यापारियांे का नियंत्रण हो जायेगा. इससे कालाबाजारी और मंहगाई बढेगी. जो भी चीज स्टोर हो सकती है उसकी कीमत को मनचाहे तरीके से बढाने का अधिकार हासिल हो जाता है.‘
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और भी है किसानों के मुददे: कृषि कानून को वापस लेने और उसमें सुधार के अलावा स्थानीय मुददें भी किसान उठा रहे थे. राजेष सिंह चैहान ने कांट्रैक्ट फार्मिग पर सवाल उठाते कहा ‘कांट्रैक्ट फार्मिग‘ देष के हित में नहीं है.‘ भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के जिला अध्यक्ष आशीष यादव ने गोंसाईगंज कस्बे के पास सडक पर धरना दिया. उनका कहना है ‘पराली के मुददे पर किसानों को पुलिस परेषान कर रही है. जो किसान अपने खेत में नहीं जलाते उनको भी पुलिस परेशान कर रही है. तमाम किसानों को जेल भेजा गया. ऐसे किसानों को तुरंत रिहा किया जाये.’ यही नहीं किसानों ने नहरों में पानी ना आने, धान की सही खरीद ना होने, बिजली का बढा बिल 2020 वापस लेने और हरियाणा के किसानों पर से मुकदमा हटाकर उनको रिहा करने की मांग भी उठाई.
छोटेछोटे शहरों के किसानों के यह तेवर देखते हुये भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ आरएसएस से जुडे किसान संगठन भी बैकफुट पर आ गये है. भारतीय किसान संघ ने केन्द्र सरकार से कहा कि किसानों की मांगे जल्द से जल्द पूरी की जाये. अगर किसानों की मांग केन्द्र सरकार ने नहीं मानी तो विरोधी दल किसानों का उपयोग करेगे. किसानों का दबाव इस बात पर है कि सरकार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बना दे. जिससे एक तय कीमत मिलने का भरोसा सभी किसानों को हो जाये.