लेखक-रोहित और शाहनवाज
“सरकार सोचती है,धोती पहने, गमछा ओढ़े वे अनपढ़ किसान आएंगे जिन की चपल्लें फटी होंगी, बनियान में 4 छेद होंगे. जिन को, मोटीमोटी दीवारों के सरकारी बंगले में बैठा कोई भी ऐरागैर अफसर आ कर धमका दे या बहलाफुसला दे तो शांत हो जाएंगे. पर साहब वो पुराना ज़माना गया. आज का नया किसान जींसकमीज पहनता है, हल की जगह ट्रेक्टर चलाता है.पढ़ता भी है और चीजों को समझता भी है. उसे अपने अच्छेबुरे का पता है. उसे जुमलेबाजी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता.” यह कहना हैसिंधु बोर्डरमें किसान आंदोलन में शामिल हुए खुशवंत सिंह का.
52 वर्षीय खुशवंत सिंह पंजाब के गुरदासपुर में छोटे किसान हैं. उन के पास खेती के लिए मात्र5-6 एकड़ जमीन है. वे लगभग 440 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां तक पहुंचे हैं. और अब मानते हैं कि सब्र इतना कर लिया है कि बिना मांगो के पूरा हुए वापस जाना, आगे का जीवन बर्बाद होते हुए देखने जैसा है.
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देश की संसद से 38 किलोमीटर दूर दिल्ली हरियाणा का बोर्डर इन दिनों देश के किसानों के लिए ठीक वैसा ही बन गया है जैसा पिछले साल की सर्दियों में शाहीन बाग बना हुआ था.दोनों में समानता यही कि संसद के प्राचीर से ऐसे काले विवादित बिल पास हुए, जिस के बाद जन आंदोलनों काशैलाब उमड़ पड़ा.यह आंदोलन सरकार की नजरों में खटके तो आंदोलनों को कुचलने के लिए सरकार ने हर भरसक तरीके से दमनकारी चक्र चलाया, जिस से पूरी दुनिया वाकिफ रही है.
सिंधु बोर्डर जाने से पहले हम बुराड़ी में स्थित निरंकारी मैदान में गए, जहां सरकार ने पिछले ही दिन 27 नवंबर को, भारी मशक्कत के बाद किसान प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रदर्शन करने की इजाजतदी थी. लेकिन वहां जाकर देखा तो किसान उतनी संख्या में पहुंचे ही नहीं. सरकार ने यह इजाजत किसानों पर इतने दमन के बाद दिया कि पंजाब और हरियाणा के किसान इस से खिन्न हो गए थे और वे बुराड़ी मैदान में आए ही नहीं. जिस कारण वहां देश के अन्य राज्यों के किसानों का जमावड़ा कुछ देर के लिए तो लगा लेकिन वे भी धीरेधीरे सिंधु बोर्डर या बाकी बोर्डरों की तरफ शिफ्ट होते गए.
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चंडीगढ़ के लंदुडी गांव के 28 वर्षीय हरपिंदर सिंह पेशे से किसान हैं, वे कहते हैं, “आखिर हम किसानों का क्या कसूर है? क्या हम अपनी दिल्ली में नहीं आ सकते? हम तो लगते ही नहीं कि इस देश के वासी हैं. सुबहसुबह 6 बजे हमारे ऊपर टीयर गेस और वाटर केनन चलाया गया. अनाज उगाने के बदले हमारे ऊपर यह कैसा सुलूक है?हम किसान भाइयों और हमारी यूनियनों ने एप्लीकेशन के द्वारा सरकार से रामलीला मैदान या जंतरमंतर के लिए जगह मांगी थी लेकिन इन्होने दी नहीं, और अब बिना एप्लीकेशन के बुराड़ी में जगह दे रहे हैं. हम पुरे देश को खिलाते हैं यहसरकार हमें क्या जगह देगी, हम ने अपने हक की जगह छीनी है. अब हम चाहें तो वहां जाएं या ना जाएं, वह अब हमारी जगह है.”
यूं तो देश के कई जगहों जैसेयूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र इत्यादि में इस समय किसान आंदोलन चल रहे हैं, किंतु इन आंदोलनों की धुरी इस समय सिंधु बोर्डर का किसान आंदोलन बन चुका है. सिंधु बोर्डर वह जगह है, जहां से दिल्ली और हरियाणा का डिवीज़न होता है. इस बोर्डर का रास्ता हरियाणा के रास्ते होते हुए सीधे पंजाब में घुसता है. यही कारण है कि ‘चलो दिल्ली’ के आह्वान पर पंजाब और हरियाणा से आने वाले हजारों की संख्या में किसानों ने इसी बोर्डर पर ‘डेरा’ डाल रखा है. और यह ‘डेरा’ डाला भी ऐसा गया है कि दिल्ली के लगभग 2 किलोमीटर इस छोर से ले कर बोर्डर क्रोस करते हुए 6-7 किलोमीटर उस छोर,सोनीपत (हरियाणा), तक ट्रकों, ट्रेक्टरों, गाड़ियों इत्यादि से हाईवे सनी पड़ी है.
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तेरा बोर्डर – मेरा बोर्डर
सिंधु बोर्डर का नजारा दो तरफा एंगल से देखा जा सकता है. एक, बोर्डर के इस तरफ दिल्ली के छोर पर साजोसमान से लैस सैकड़ों की संख्या में तैनात सुरक्षा बल ऐसा तनाव प्रतीत करातेहैं जैसे यह दिल्ली-हरियाणा का बोर्डर नहीं बल्कि बाघा बोर्डर सरीखे हो और किसान इस देश के निवासी नहीं बल्कि पड़ोसी देशों से खदेड़े गए मायग्रंट्स हों. प्रदर्शन स्थल पर कई लेयर की बेरिकेटिंग की गई हैं. जिस में भारीभरकम रोड डिवाइडर, वाटर कैनन, और लोहे की बेरिकेटों के ऊपर बिछाई गई ‘कटीली तारें’ हैं. जिसे देख कर ऐसा लगा, जैसे समय के अनुकूल अब भारत देश का जम्मू कश्मीर हो जाना ही बाकी रह गया है. इस में कंटीले तारों से किसानों को रोकने का यह नायब प्रयोग सरकार की मंशा सामने ला देता है.
वहीँ बोर्डर के दूसरे छोर पर, कई सो किलोमीटर का रास्ता माप चुके किसान ट्रकों-ट्रेक्टरों में गैस सिलेंडर, खाना, कंबल और जरूरत का सामान साथ में लाए हैं. इन की आंखों में भले ही थकावट है लेकिन अपनी मांगों के पूरा होने की भारी उम्मीद भी है, जो इन्हें हमेशा जोश से भर कर रखती है. प्रदर्शन का माहौल पूरा मेलामई है. दूरदूर तक जहां नजर जाती है, वहां ट्रक ही ट्रक खड़े हैं. आंदोलन में शामिल किसान उल्लास से भरे हुए हैं, मानों वें, सरकार द्वारा सदन में पास कराए कथित काले बिलों की नाराजगी से ज्यादा अब इस बात से खुश हैं कि सच में दिल्ली अब दूर नहीं और किसान भाई सब साथ में हैं.
आमतौर पर भाजपा सरकार और सरकार के चाटुकारों द्वारा लगातार यह कहा जा रहा है कि इस आंदोलन में सिर्फ पंजाब के ही किसान शामिल हैं, क्योंकि उन्हें वहां के सीएम अमरिंदर सिंह बरगला रहे हैं. भाजपा प्रायोजित आईटी सेल और ओनेपाने नेताओं द्वारा किसानों को यहां तक कहा जा रहा है कि ये किसान नहीं बल्कि खालिस्तानी उग्रवादी हैं, देशद्रोही हैं. लेकिन इन सभी आरोपों की धज्जियां तभी उड़ जाती हैं, जब देश के कई अलगअलग राज्यों में भी ऐसे किसान आंदोलन बनने लगे हैं. इस में खुद भाजपा शासित राज्य यूपी और हरियाणा के किसान भी शामिल हो रहे हैं. सिंधु बोर्डर के पास आंदोलन में न सिर्फ पंजाब बल्कि, हरियाणा से आए हुए किसानों की अच्छी खासी संख्या है.
प्रशाशन का दमन
हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के जिला कुरुक्षेत्र के 6 में से एक सलालाबाद ब्लाक के अध्यक्ष साहब सिंह, शांति नगर कुर्डी गांव में रहते हैं. वे कहते हैं, “हमें यहां तक पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. हमारे सीएम खट्टर ने हमें रोकने की भरषक कोशिशें की. हमें यहां तक पहुंचने के लिए 5 मोर्चों को तोड़ना पड़ा. मोढ़ा, त्योव्ड़ा, करनाल, सोनीपत और फिर सिंधु बोर्डर पर, दिल्ली आने की जीत. खट्टर सरकार ने कभी 9-9 फुट रोड़ पर खड्डे खुदवा दिए तो, कभी लाठी चार्ज, आंसू गेस के गोले और पानी के फुन्वारो से हमारे बुजुर्ग किसानों पर हमला किया.जिस से काफी बुजुर्गों को चोट आईं. ऐसे में अब देश का कोई व्यक्ति यदि भाजपा की गलत नीतियों के खिलाफ बोलता है तो क्या वह उग्रवादी हो जाएगा?”
वे आगे कहते हैं,“सरकार, किसानों के इस देशव्यापी आंदोलन को बदनाम करने के लिए जानबूझ कर इसे पंजाब तक ही सीमित कर रही है, जब कि हम हरियाणा में पिछले 6 महीनों से, जब से बिल संसद में पास हुआ, तब से आंदोलन कर रहे हैं. कभी रोड़ रोकी,कभी पटरी पर बैठे, कभी भवनों के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन आंदोलन को सिर्फ बदनाम करने के लिए मीडिया और सरकार इसे छुपा रही है.”
साहब सिंह कहते हैं, “यह तीनों बिल हम छोटे किसानों के लिए बहुत खतरनाक है. शहरी लोग सोचते होंगे कि इस बिल के पास होने के बाद ‘वाह क्या आजादी मिल रही है किसानों को’, लेकिन यह हमीं जानते हैं कि हम निचले दर्जे के किसान अब अपाहिज हो जाएंगे.” आगे की रणनीति पर वे कहते हैं कि फिलहाल सभी किसान यूनियनों जिस में देश भर से लगभग 350 यूनियनें इस आन्दोलन में शामिल हैं, का दिल्ली के बोर्डरों को डेरा बनाने की योजना है. और वे सिंधु बोर्डर पर ही डेट रहेंगे.”
संगरूर से 27 वर्षीय मंजीत बताते हैं, “अकेले पंजाब से इस समय 31 जत्थेबंदी किसान यूनियन यहां मौजूद हैं.जो पंजाब के सभी हिस्सों से यहां पहुंचे हैं.” रास्ते में हरियाणा सरकार की बर्बर कार्यवाही पर वे बताते हैं, “26 तारिख कोहम सभी जत्थे में निकले थे. जैसे ही गुल्ला चीका बोर्डर पर आए तो उन्होंने (पुलिस) पत्थर, कांटों की तारों को बढ़ा बना कर, वाटर कैनन से हमला किया. इस के चलते कई लोगों को चोटे आईं. कई बुजुर्गों की पगड़ी खुल गईं. जो सरकार के लिए शर्मनाक है.”
काले कानून का विवाद
किसान आंदोलनों के भड़कने का बड़ा कारण, भाजपा सरकार द्वारा लौकडाउन के समय आननफानन में बिना नियमित चर्चा के किसानों से जुड़े 3 बिलों को दोनों सदनों में पास करवाना था. यह 3 बिल- फार्मर्स प्रोड्युसड ट्रेड एंड कामर्स, फार्मर अग्रीमेंट और प्राइस एस्युरेंस और फार्म्स सर्विसेज एंड असेंशियल कमोडिटी हैं. जिसे लेकर किसानों के भीतर तभी से रोष पैदा हो गया था. शुरू में किसान अपने जिले और राज्य स्तर पर आंदोलित रहे लेकिन इस 26 तारिख को लगभग 350 किसान यूनियनों संयुक्त मोर्चा बनाकर दिल्लीमें चढ़ाई की योजना बनाई.
54 वर्षीय गुरदीप सिंह फतहपुर साहब के रहने वाले हैं. उन का अभी जौइंट परिवार है तो भाइयों के बीच जमीन के पट्टे का बंटवारा नहीं किया गया है. पुरे परिवार के पास खेती के लिए जमीन लगभग 20 एकड़ है जिसे साथ में मिल कर बोते हैं. इसी के सहारे पुरे परिवार का पेट पलता है.
वे बताते हैं, “यह कानून हमारी मंडियों को ख़त्म करेगा. भारत की मंडियों में कई बुराइयां ही सही पर वही हमारे लिए रीढ़ की तरह काम करते है. सरकार कहती है अब किसान आजाद हैं कहीं भी अपना सामान बेचने के लिए, मैं कहता हूं इस के लिए हम गुलाम ही कब थे? हमारे पास ना तो भंडार गृह हैं, ना ही अपनी फसल को किसी दुसरे राज्य में बेचने की औकात. फिर क्या लानेलेजाने का खर्च सरकार देगी? इन्ही मंडियों से कर्जा भी मिल जाता है.”
गुरदीप सिंह कहते हैं, “यह पंजाब को भी अब बिहार असम और बाकि राज्यों की तरह बना देना चाहते हैं. आज बिहार का किसान मजबूर है हमारे यहां अपनी फसल बेचने को. क्योंकि हमारे यहां एमएसपी है. फिक्स दाम है. चाहे भाव बढ़े या घटे. इन राज्यों की मंडियों पर सरकार का रोल ही ना के बराबर है. वहां कोई एमएसपी लागू नहीं. अब यहां (पंजाब) भी ये यही करना चाहते हैं. सारी फसल कॉर्पोरेट के हाथों करना चाहते हैं. अब कॉर्पोरेट तो अपना मुनाफा ही देखता है.” जब उन से कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी और कृषि मंत्री एमएसपी को बनाए रहने की बात कह रहे हैं, तो उन्होंने झट से कहा, “इस की कोई गारंटी दे रहे हैं क्या?”
सिंधु बोर्डर से 450 किलोमीटर दूर मोंगा जिला से आए दीपक (28) पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं और साथ ही अभी थिएटर एक्टिविस्ट हैं. वे किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उन का कहना है, “यह कानून किसानों को बंधवा बना देगा. किसानों को आजादी नहीं होगी कि वे अपने खेत में क्या उगाएं. उन्हें कारपोरेटों के अनुसार ही फसल उगानी पड़ेगी. जो वो कहेंगे वही करना पड़ेगा. सरकार छोटे किसानों को आपसी सहयोग से खेती करने की बात तो कह रही है, जो ठीक है लेकिन मुनाफा कौरपोरेटों, बिसनेसमेन, पूंजीपतियों केहाथों क्यों?”
वे आगे कहते हैं, “आज हालत यह है कि देश का किसान, जिस कीमत पर अपनी फसल बेचता है उस से कई गुना कीमत पर बाजार में लोगों को मिलता है. जिसे लोग महंगाई कहते हैं. इस की वजह क्या है? यही कौर्पोरेट लोग हैं जो अपने निजी मुनाफे के लिए मार्किट को अपने अनुसार चलाते हैं. ऐसे में अगर पूरा एग्रीकल्चरल सेक्टर इन्ही के हाथों सोंप दिया जाए तो हस्र पुरे देश की जनता भुगतेगी.”
राजनीतिक पार्टियों का नहीं चाहिए साथ
यह अच्छी बात है कि आंदोलित किसान हर बात को ले कर सजग हैं. किसी भी मीडिया के घुसने से पहले किसानों के चेहरे पर संदेह की सुईं लटकी है. घटनास्थल पर लटकता पोस्टर जिसमें कुछ विशेष गोदी मीडिया के चैनलों को आन्दोलन से दूर रहने की सलाह दी गई है. यहां तक कि जितने लोगों से भी वहां हमारी बात हुई उन्होंने भी जांच पड़ताल के साथ ही अपनी बात कही. यह दिखाता है कि मीडिया की एक धड़े की खराब रिपोर्टिंग को ले कर किसानों में भारीरोष है.
वैसे तो भले ही तमाम विपक्षी पार्टियां ट्विटर ट्विटर खेल कर किसानों की हिमायती होने का दिखावा कर रही हों, लेकिन यह हकीकत है कि किसान भी अब तमाम पार्टियों के नेताओं से खिन्न हो चुकी है. मौजूदा समय में भाजपा इस बिल के चलते किसानों के निशाने पर जरूर है लेकिन कांग्रेस ने भी देश में मंडी व्यवस्था और एमएसपी के छप्पर पर छेद करने और कई जगह तो पूरा छप्पर गायब करने में कोरकसर नहीं छोड़ी. हांलाकि पंजाब सरकार और हरियाणा में हूडा ने भी किसानों को खुला समर्थन की बात कही है. लेकिन यह सिर्फ सिर्फ मीडिया के ख़बरों तक सीमित है. वहीँ लेफ्ट भी इस मसले पर शहरी युवाओं को लामबंद नहीं कर पा रहा है. तो दिल्ली की सत्ता में बैठे केज्रिवार भी बस धरनास्थल के फीते काटने और स्टेटमेंट देने तक ही सीमित हैं.
हरियाणा में भाजपा सहयोगी दुष्यंत चौटाला की जेजेपी पार्टी खुद को किसान पार्टी घोषित करती है लेकिन किसान आन्दोलन पर ऐसे मूक बनी हुई है जैसे उसे सांप सूंघ गया हो. यह ध्यान रखने वाली बात है कि यह वही दुष्यंत हैं जिसने इन तीनों बिलों पर भाजपा के साथ थी.
सिंधु बोर्डर के धरनास्थल पर ना तो कोई जानापहचाना नेता दिखा है ना ही पार्टी होंर्डिंग के झंडे डंडे. यह दिखाता है कि यह शुद्धतम किसानों का आन्दोलन है, जिसे ना तो किसी पार्टी के झंडों की जरूरत हैं और न ही उन के होर्डिंग और आश्वासन की. हांलाकि, आन्दोलन को अलगअलग किसान यूनियन नेतृत्व दे रहे हैं.जिस में भारतीय किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान यूनियन, एआईकेएस, जय किसान आन्दोलन इत्यादि हैं.
धरना स्थल पर दिक्कतें और बढ़ते जरुरत मंद हाथ
किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए सिंधु बोर्डर पर पंजाब हरियाणा के छात्र ढपली पर थाप देते और गाना गा कर, किसानों का मनोरंजन करते हुए नजर आए हैं, जिन का कहना है कि वे भी इन्ही परिवारों का हिस्सा हैं, इन काली नीतिओं से कहीं ना कहीं उन पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.वे तब तक यहां रहेंगे जब तक मांगे नहीं मान ली जाती.दिल्ली से कुछ छात्र व्यक्तिगत स्तर पर पानी और बिस्कुट जैसी सामग्री पहुंचाने का भी काम कर रहे हैं.
वहीँ हर बार की तरह गुरुद्वारा कमिटी ने भी आन्दोलनकारियों के पक्ष में मदद का हाथ बढ़ाया है. रमिंदर सिंह, जो इस समय दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी के एलेक्टेड सदस्य है और एक्स चेयरमेन रह चुके हैं. वे कहते हैं, “जब तक प्रोटेस्ट है खाने की कमी नहीं रहेगी. किसान भी इसी देश का हिस्सा हैं. सरकार से गुजारिश है कि अब भी सुधर जाएं. किसान इतने किलोमीटर तय कर के आए हैं. इन की मांग जायज है, जो पूरी होनी चाहिए.”
जाहिर है किसानों ने सिंधु बोर्डर पर ही नया शाहीन बाग बनाने का फैसला कर लिया है. घर सेही अपना राशन, कंबल रजाई से भरे उन के ट्रेक्टर साफ़ दिखाते हैं कि वे सरकार के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं.किंतु धरना स्थल में सामने आ रही समस्या यह कि हरियाणा सरकार और केंद्र पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीटने का बंदोबस्त तो पूरा कर रखा है लेकिन एमबुलेंस के नाम पर मात्र दो गाड़ियां ही दिखने में आई हैं. गौरतलब है कि आन्दोलन में शामिल हुए दो किसानों की तथाकथित तौर से रास्ते में दुर्घटना से मौत भी हुई थी.
वहीँ सोचालय के लिए किसानों को या तो खुले में जाना पड़ रहा है या लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर एकमात्र पेट्रोल पम्प की तरफ. ऐसे में पुरुष तो हो यहांवहां हो आते हैं लेकिन महिलाओं के लिए खासा समस्या पैदा हो सकती है. हांलाकि सिंधु बोर्डर में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले फिलहाल बहुत कम है. जो चिंता का विषय है कि भारत में कृषि क्षेत्र में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है.
खैर, देखना यह है कि भाजपा सरकार और किसान के बीच यह रार कहां तक चलेगी. फिलहाल सरकार ने 3 तारीख तक की बात का आश्वासन दिया है और अमित शाह ने बुराड़ी में आने की बात कही है लेकिन देख के लगता है कि किसानों को अब सरकार परभरोसा नहीं रह गया है.