देश में अभी फिलहाल एक ही मुद्दा हर जगह छाया हुआ है, वह है किसानों का आन्दोलन. सरकार और मीडिया के इस आन्दोलन को बदनाम करने के हर संभव प्रयास किये जा चुके हैं. ऐसे में देश भर के किसान अब दिल्ली की तरफ कूच करने के बारे में सोच रहे हैं. हर कोई चाहता है की दिल्ली पहुंच कर वह इन ऐतेहासिक पलों का साक्षी बने. लेकिन दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की संख्या पंजाब हरियाणा की तुलना में कम है. आखिर क्यों?

 राइटर- रोहित और शाहनवाज

ये सन 1988 की बात है. दिन था 25 अक्टूबर का. भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में बी.के.यू. के हजारों किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब में रैली के लिए उमड़े थे. फसल का उचित मूल्य, बिजली, सिंचाई की दरे घटाने सहित 35 सूत्रीय मांगों को ले कर हजारों की तादाद में किसानों ने दिल्ली की सड़कों को जाम कर दिया था. इन किसानों को रोकने के लिए उस समय की दिल्ली की पुलिस ने लोनी बॉर्डर पर फायरिंग भी की थी, जिस में 2 किसानो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.

देखते ही देखते आन्दोलन काफी उग्र हो गया था. फिर क्या होना था, देश भर के 14 राज्यों से 5 लाख से ज्यादा की संख्या में किसान प्रदर्शन के लिए दिल्ली आ गए थे. जिसे देखते हुए प्रशासन ने पूरी राजधानी में ही धारा 144 लागु कर दी थी.

इसी के बाद बी.के.यू. के संस्थापक और किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने पुलिस प्रशासन और प्रदर्शनकारियों के बीच रेखा खींचते हुए धारा 288 का ऐलान कर दिया. टिकैत ने ये ऐलान किया की जिस प्रकार धारा 144 के तहत अगर हम उन के इलाके में नहीं जा सकते तो हमारी धारा 288 के तहत पुलिस भी हमारे इलाके में नहीं आ सकती. सिर्फ यही नहीं यदि कोई असामाजिक तत्व आन्दोलन में घुस कर आन्दोलन को उग्र करने का भी प्रयास करता है तो किसान धारा 288 के तहत उस के ऊपर भी कार्यवाही की जाएगी. अंततः उस समय कि राजीव गाँधी सरकार को किसानों के आगे अपने घुटने टेकने पड़े थे और किसानों की सभी मांगों को मानना पड़ा था.

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