‘‘मेरे घर में तो वह अब कदम भी नहीं रख सकता.’’
‘‘क्यों, ऐसा क्या कर दिया उस ने? क्या गुनाह हो गया उस से?’’
‘‘गुनाह की तो सजा होती है माणिकचंद, लेकिन उस की हरकत ने मेरे पूरे खानदान को समाज से बाहर कर देने की वजह बना दी है.’’
‘‘आखिर क्या किया है अशरफ ने, साफसाफ बताइए न मंजूर साहब,’’ माणिकचंद चिंतित हो गए.
‘‘आप के अशरफ ने शादी कर ली है.’’
‘‘दैट्स गुड.’’ बांछें खिल गईं माणिकचंद परिवार की. ‘‘कब? कहां? किस से?’’ माणिकचंद ने जानना चाहा.
‘‘उस नालायक ने एक महीने पहले नासिक में गैरकौम की लड़की से शादी कर के हमारे मुंह पर कालिख पोत दी है.’’ मंजूर के ये चुभते शब्द सुन कर अशरफ की बहन के चेहरे पर उदासी के बादल घिर गए.
‘‘लड़की किस धर्म की है?’’ माणिकचंद बोले.
मंजूर ने बीवी की तरफ देखा, ‘बतलाएं कि नहीं? लेकिन बतलाना तो पड़ेगा ही.’ बीवी की आंखों में अपील थी. ‘‘लड़की हिंदू है,’’ मंजूर के शब्द धमाके की तरह गूंजे.
कड़ाके की सर्दी में भी माणिकचंद के माथे पर पसीना चुहचुहा गया. बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल कर होंठों पर जबान फेर कर बोले, ‘‘कहां की है लड़की?’’
‘‘नासिक की है. निकाह कर के घर पर ले कर आया तो इन्होंने उसे घर में घुसने नहीं दिया क्योंकि इन की भांजी के साथ अशरफ की बात पक्की हो गई थी. इन्होंने कह दिया कि हिंदूमुसलिम फसाद की वजह से पहले ही शहर की हवा गरम है. तुम हिंदू लड़की को ले कर हमारे घर में रहोगे, तो हिंदू हमारा घर फूंक देंगे,’’ कहती हुई अशरफ की बहन हिचकियां ले कर रो पड़ी.
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