Download App

अर्पण-भाग 2 : अदिति आईने से बात करते हुए किसके ख्याल में खो जाती

‘सर,’ अदिति ने हिचकी लेते हुए कहा, ‘मैं पढ़ना चाहती हूं, इसीलिए तो नौकरी करती हूं.’

उन्होंने ‘आई एम सौरी, मुझे पता नहीं था,’ अदिति के सिर पर हाथ रख कर कहा.

‘इट्स ओके, सर.’

‘क्या काम करती हो?’

‘एक वकील के औफिस में मैं टाइपिस्ट हूं.’

‘मैं नई किताब लिख रहा हूं. मेरी रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करोगी?’

अदिति ने आंसू पोंछते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

उसी दिन से अदिति डा. हिमांशु की रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करने लगी. इस बात को आज 2 साल हो गए हैं. अदिति ग्रेजुएट हो गई है. वह फर्स्ट क्लास आई थी यूनिवर्सिटी में. डा. हिमांशु एक किताब खत्म होते ही अगली पर काम शुरू कर देते. इस तरह अदिति का काम चलता रहा. अदिति ने एमए में ऐडमिशन ले लिया था. अकसर उस से कहते, ‘अदिति, तुम्हें पीएचडी करनी है. मैं तुम्हारे नाम के आगे डाक्टर लिखा देखना चाहता हूं.’

फिर तो कभीकभी अदिति बैठी पढ़ रही होती, तो  कागज पर प्रोफैसर के साथ अपना नाम जोड़ कर लिखती फिर शरमा कर उस कागज पर इतनी लाइनें खींचती कि वह नाम पढ़ने में न आता. परंतु बारबार कागज पर लिखने की वजह से यह नाम अदिति के हृदय में इस तरह रचबस गया कि वह एक भी दिन उन को न देखती तो उस का समय काटना मुश्किल हो जाता.

पिछले 2 सालों में अदिति प्रोफैसर के घर का एक हिस्सा बन गई थी. सुबह घंटे डेढ़ घंटे उन के घर काम कर के वह साथ में यूनिवर्सिटी जाती. फिर 5 बजे साथ ही उन के घर आती, तो उसे अपने घर जाने में अकसर रात के 8 बज जाते. कभीकभी तो 10 भी बज जाते. डा. हिमांशु मूड के हिसाब से काम करते थे. अदिति को भी कभी घर जाने की जल्दी नहीं होती थी. वह तो उन के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी.

इन 2 सालों में अदिति ने देखा था कि प्रोफैसर को जानने वाले तमाम लोग थे. उन से मिलने भी तमाम लोग आते थे. अपना काम कराने और सलाह लेने वालों की भी कमी नहीं थी. फिर भी एकदम अकेले थे. घर से यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी से घर, यही उन की दिनचर्या थी. वे कहीं बाहर आनाजाना या किसी गोष्ठी में भाग लेना पसंद नहीं करते थे. बड़ी मजबूरी में ही वे किसी समारोह में भाग लेने जाते थे. अदिति को यह सब बड़ा आश्चर्यजनक लगता था. वे पढ़ाई के अलावा किसी से भी कोई फालतू बात नहीं करते थे. अदिति उन के साथ लगभग रोज ही गाड़ी से आतीजाती थी. परंतु इस आनेजाने में शायद ही कभी उन्होंने उस से कुछ कहा हो. दिन के इतने घंटे साथ बिताने के बावजूद उन्होंने काम के अलावा कोई भी बात अदिति से नहीं की थी. अदिति कुछ कहती तो वे चुपचाप सुन लेते. मुसकराते हुए उस की ओर देख कर उसे यह आभास करा देते कि उन्होंने उस की बात सुन ली है.

किसी बड़े समारोह या कहीं से डा. हिमांशु वापस आते तो अदिति बड़े ही अहोभाव से उन्हें देखती रहती. उन की शौल ठीक करने के बहाने, फूल या किताब लेने के बहाने, अदिति उन्हें स्पर्श कर लेती. टेबल के सामने डा. हिमांशु बैठ कर लिख रहे होते तो अदिति उन के पैर पर अपना पैर स्पर्श करा कर संवेदना जगाने का प्रयास करती. वे उस की नजरों और हावभाव से उस के मन की बात जान गए थे. फिर भी उन्होंने अदिति से कुछ नहीं कहा. अब तक अदिति का एमए हो गया था. डा. हिमांशु के अंडर में ही वह रिसर्च कर रही थी. उस की थिसिस भी अलग से तैयार ही थी.

अदिति को आभास हो गया था कि डा. हिमांशु उस के मन की बात जान गए हैं. फिर भी वे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. उन के प्रति अदिति का आकर्षण धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा था. आईने के सामने खड़ी स्वयं को निहार रहीअदिति ने तय कर लिया था कि आज वह डा. हिमांशु से अपने मन की बात अवश्य कह देगी. फिर वह मन ही मन बड़बड़ाई, ‘प्रेम करना कोई अपराध नहीं है. प्रेम की कोई उम्र नहीं होती.’

इसी निश्चय के साथ अदिति डा. हिमांशु के घर पहुंची. वे लाइब्रेरी में बैठे थे. अदिति उन के सामने रखे रैक से टिक कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बरसने की तैयारी में थे. उन्होंने अदिति को देखते ही कहा, ‘‘अदिति, बुरा मत मानना, डिपार्टमैंट में प्रवक्ता की जगह खाली है. सरकारी नौकरी है. मैं ने कमेटी के सभी सदस्यों से बात कर ली है. तुम अपनी तैयारी कर लो. तुम्हारा इंटरव्यू फौर्मल ही होगा.’’

अर्पण-भाग 1: अदिति आईने से बात करते हुए किसके ख्याल में खो जाती

आदमकद आईने के सामने खड़ी अदिति खुद के ही प्रतिबिंब को मुग्धभाव से निहार रही थी. उस ने कान में पहने डायमंड के इयररिंग को उंगली से हिला कर देखा. खिड़की से आ रही साढ़े 7 बजे की धूप इयररिंग से रिफ्लैक्ट हो कर उस के गाल पर पड़ रही थी, जिस से वहां इंद्रधनुष चमक रहा था. अदिति ने आईने में दिखाई देने वाले अपने प्रतिबिंब पर स्नेह से हाथ फेरा, फिर वह अचानक शरमा सी गई. इसी के साथ वह बड़बड़ाई, ‘वाऊ, आज तो हिमांशु मुझे जरूर कौंपलीमैंट देगा.’

फिर उस के मन में आया, यदि यह बात मां सुन लेतीं तो कहतीं, ‘हिमांशु कहती है? वह तेरा प्रोफैसर है.’

‘सो व्हाट?’ अदिति ने कंधे उचकाए और आईने में स्वयं को देख कर एक बार फिर मुसकराई.

अदिति शायद कुछ देर तक स्वयं को इसी तरह आईने में देखती रहती लेकिन तभी उस की मां की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘अदिति, खाना तैयार है.’’

‘‘आई, मम्मी,’’ अदिति बाल ठीक करते हुए डाइनिंग टेबल की ओर भागी.

अदिति का यह लगभग रोज का कार्यक्रम था. प्रोफैसर साहब के यहां जाने से पहले आईने के सामने ही वह अपना अधिक से अधिक समय स्वयं को निहारते हुए बिताती थी. शायद आईने को यह सब अच्छा लगने लगा था, इसलिए वह भी अदिति को थोड़ी देर बांधे रखना चाहता था. इसीलिए तो उस का इतना सुंदर प्रतिबिंब दिखाता था कि अदिति स्वयं पर ही मुग्ध हो कर निहारती रहती. आईना ही क्यों अदिति को तो जो भी देखता, देखता ही रह जाता. वह थी ही इतनी सुंदर. छरहरी, गोरी काया, मछली जैसी काली आंखें, घने काले रेशम जैसे बाल. वह हंसती तो सुंदरता में चारचांद लगाने के लिए गालों में गड्ढे पड़ जाते थे. अदिति की मम्मी उस से अकसर कहती थीं, ‘तू एकदम अपने पापा जैसी लगती है. एकदम उन की कार्बनकौपी.’ इतना कहतेकहते अदिति की मम्मी की आंखें भर आतीं और वे दीवार पर लटक रही अदिति के पापा की तसवीर को देखने लगतीं.

अदिति जब ढाई साल की थी, तभी उस के पापा का देहांत हो गया था. अदिति को तो अपने पापा का चेहरा भी ठीक से याद नहीं था. उस की मम्मी जिस स्कूल में नौकरी करती थीं उसी स्कूल में अदिति की पढ़ाई हुई थी. अदिति स्कूल की ड्राइंगबुक में जब भी अपने परिवार का चित्र बनाती, उस में नानानानी और मम्मी के साथ वह स्वयं होती थी. अदिति के लिए उस का इतना ही परिवार था.

अदिति के लिए पापा घर की दीवार पर लटकती तसवीर से अधिक कुछ नहीं थे. कभी मम्मी की वह आंखों से बहते आंसुओं में पापा की छवि महसूस करती तो कभी अलबम की ब्लैक ऐंड ह्वाइट तसवीर में वह स्वयं को जिस पुरुष की गोद में पाती वह ही तो उस के पापा थे. अदिति की क्लासमेट अकसर अपनेअपने पापा के बारे में बातें करतीं. टैलीविजन के विज्ञापनों में पापा के बारे में देख कर अदिति शुरूशुरू में कच्ची उम्र में पापा को मिस करती थी. परंतु धीरेधीरे उस ने मान लिया कि उस के घर में 2 स्त्रियां वह और उस की मम्मी रहती हैं और आगे भी वही दोनों रहेंगी.

बिना बाप की छत्रछात्रा में पलीबढ़ी अदिति कालेज की अपनी पढ़ाई पूरी कर के कब कमाने लगी, उसे पता  ही नहीं चला. वह ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में पढ़ रही थी, तभी वह अपने एक प्रोफैसर हिमांशु के यहां पार्टटाइम नौकरी करने लगी थी. डा. हिमांशु जानेमाने साहित्यकार थे. यूनिवर्सिटी में हैड औफ द डिपार्टमैंट. अदिति इकोनौमिक्स ले कर बीए करना चाहती थी परंतु डा. हिमांशु का लैक्चर सुनने के बाद उस ने हिंदी को अपना मुख्य विषय चुना था.

डा. हिमांशु अदिति में व्यक्तिगत रुचि लेने लगे थे. उसे नईनई पुस्तकें सजैस्ट करते, किसी पत्रिका में कुछ छपा होता तो पेज नंबर सहित रैफरेंस देते. यूनिवर्सिटी की ओर से. प्रमोट कर के 2 सेमिनारों में भी अदिति को भेजा. अदिति डा. हिमांशु की हर परीक्षा में प्रथम आने के लिए कटिबद्ध रहती थी. इसी लिए वे अदिति से हमेशा कहते थे कि वे उस में बहुतकुछ देख रहे हैं. वह जीवन में जरूर कुछ बनेगी.

वे जब भी अदिति से यह कहते, तो कुछ बनने की लालसा अदिति में जोर मारने लगती. उन्होंने अदिति को अपनी लाइब्रेरी में पार्टटाइम नौकरी दे रखी थी. वे जानेमाने नाट्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार थे. उन की हिंदी की तमाम पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगी हुई थीं. उन का लैक्चर सुनने और उन से मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी. नवोदित लेखकों से ले कर नाट्य जगत, साहित्य जगत और फिल्मी दुनिया के लोग भी उन से मिलने आते थे.

अदिति यूनिवर्सिटी में डा. हिमांशु को मात्र अपने प्रोफैसर के रूप में जानती थी. वे पूरे क्लास को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, यह भी उसे पता था. उसी क्लास में अदिति भी तो थी. अदिति उन की क्लास कभी नहीं छोड़ती थी. पहली बैंच पर बैठ कर उन्हें सुनना अदिति को बहुत अच्छा लगता था. लंबे, स्मार्ट, सुदृढ़ शरीर वाले डा. हिमांशु की आंखों में एक अजीब सा तेज था. सामान्य रूप से हल्के रंग की शर्ट और ब्लू डेनिम पहनने वाले डा. हिमांशु पढ़ने के लिए सुनहरे फ्रेमवाला चश्मा पहनते, तो अदिति मुग्ध हो कर उन्हें देखती ही रह जाती. जब वे अदिति के नोट्स या पेपर्स की तारीफ करते, तो उस दिन अदिति हवा में उड़ने लगती.

फाइनल ईयर में जब डा. हिमांशु की क्लास खत्म होने वाली थी तो एक दिन उन्होंने मिलने के लिए उसे डिपार्टमैंट में बुलाया. अदिति उन के कक्ष में पहुंची तो उन्होंने कहा, ‘अदिति, मैं देख रहा हूं कि इधर तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है. तुम अकसर मेरी क्लास में नहीं रहती हो. पहले 2 सालों में तुम फर्स्ट आई हो. यदि तुम्हारा यही हाल रहा तो इस साल तुम पिछले दोनों सालों की मेहनत पर पानी फेर दोगी.’

डा. हिमांशु अपनी कुरसी से उठ कर अदिति के पास आ कर खड़े हो गए. उन्होंने अपना हाथ अदिति के कंधे पर रख दिया. उन के हाथ रखते ही अदिति को लगा, जैसे वह हिमाच्छादित शिखर के सामने खड़ी है. उस के कानों में घंटियों की मधुर आवाज गूंजने लगी थीं.

‘तुम्हें किसी से प्रेम हो गया है क्या?’ उन्होंने पूछा.

अदिति ने रोतेरोते गरदन हिला कर इनकार कर दिया.

‘तो फिर?’

‘सर, मैं नौकरी करती हूं, इसलिए पढ़ने के लिए समय कम मिलता है.’

‘क्यों? डा. हिमांशु ने आश्चर्य से कहा, ‘शायद तुम्हें शिक्षा का महत्त्व पता नहीं है. शिक्षा केवल कमाई का साधन ही नहीं है. शिक्षा संस्कार, जीवनशैली और हमारी परंपरा है. कमाने के चक्कर में तुम्हारी पढ़ाई में रुचि खत्म हो गई है. इस तरह मैं ने तमाम विद्यार्थियों की जिंदगी बरबाद होते देखी है.’

म्यूचुअल फंड: निवेश का अच्छा विकल्प

आप कम जोखिम में अच्छा मुनाफा चाहते हैं? कुछ पैसा कम समय के टारगेट के लिए और कुछ लंबे समय के लिए रखना चाहते हैं? यदि हां तो म्यूचुअल फंड में निवेश करना आप के लिए एक अच्छा औप्शन है. जानें कि क्या है म्यूचुअल फंड और इस में निवेश कैसे करें. म्यूचुअल फंड में कई निवेशकों का पैसा एक जगह जमा किया जाता है और इस फंड में से फिर बाजार में निवेश किया जाता है.

यानी, यह बहुत सारे लोगों के पैसों का एक फंड होता है जिस में लगाया गया पैसा अलगअलग जगह निवेश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और कोशिश की जाती है कि निवेशक को उस के निवेश पर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा दिया जाए. म्यूचुअल फंड को एसेट मैनेजमैंट कंपनियों (एएमसी) द्वारा मैनेज किया जाता है. जो लोग ज्यादा प्रौफिट के लिए रिस्क लेना चाहते हैं पर शेयर बाजार में निवेश के बारे में ज्यादा नहीं जानते, उन के लिए म्यूचुअल फंड निवेश का अच्छा विकल्प है.

ये भी पढ़ें- लव जिहाद: पौराणिकवाद थोपने की साजिश

फायदे सुविधाजनक निवेश : म्यूचुअल फंड किसी भी दिन खरीदे या बेचे जा सकते हैं जबकि बैंक के एफडीए, पीपीएफ या बीमा आदि सरकारी छुट्टी या रविवार के दिन खरीदेबेचे नहीं जा सकते. विकल्प अधिक : म्यूचुअल फंड आप को कई तरह के स्टौक और बौंड लेने की सुविधा देता है. आप जिस म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं उस फंड में से किसी एक जगह पैसा नहीं लगाया जाता है बल्कि अलगअलग जगह निवेश किया जाता है.

इस से किसी एक क्षेत्र में मंदी आने से भी अन्य क्षेत्र से आप को लाभ मिलने की उम्मीद बनी रहती है. ज्यादा पारदर्शिता : म्यूचुअल फंड सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया द्वारा रैगुलेट किए जाते हैं और उन के नैट एसेट वैल्यू या कीमत की घोषणा प्रतिदिन के आधार पर की जाती है. उन के पोर्टफोलियो की घोषणा भी हर महीने की जाती है. इन के बारे में जनता को हर तरह की जानकारी दी जाती है. इस तरह यह काफी पारदर्शी निवेश औप्शन है.

ये भी पढ़ें- कोढ़ में कहीं खाज न बन जाए ‘बर्ड फ्लू’

म्यूचुअल फंड के प्रकार  इक्विटी म्यूचुअल फंड द्य डेट म्यूचुअल फंड द्य हाइब्रिड म्यूचुअल फंड द्य सौल्यूशन ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड इक्विटी म्यूचुअल फंड : इस में निवेश का अधिकतर भाग कंपनियों के शेयरों में लगाया जाता है. छोटी अवधि में यह स्कीम जोखिमभरी हो सकती है लेकिन लंबी अवधि में बेहतरीन रिटर्न कमाने में मदद मिलती है.

डेट म्यूचुअल फंड स्कीम्स : ये म्यूचुअल फंड स्कीम्स डेट सिक्योरिटीज में निवेश करती हैं. छोटी अवधि के लिए निवेशक इन में निवेश कर सकते हैं. 5 साल से कम अवधि के लिए इन में निवेश करना ठीक है. ये म्यूचुअल फंड स्कीम शेयरों की तुलना में कम जोखिम वाली होती हैं और बैंक के फिक्स्ड डिपौजिट की तुलना में बेहतर रिटर्न देती हैं.

ये भी पढ़ें- हवेली चाहे जाए मुजरा होगा ही

हाइब्रिड म्यूचुअल फंड स्कीम्स : ये म्यूचुअल फंड स्कीम्स इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करती हैं. सौल्यूशन ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड स्कीम्स : ये म्यूचुअल फंड स्कीम्स किसी खास लक्ष्य के हिसाब से बनी होती हैं. इन में रिटायरमैंट स्कीम या बच्चे की शिक्षा जैसे लक्ष्य हो सकते हैं. इन में कम से कम 5 सालों के लिए निवेश करना होता है. म्यूचुअल फंड कैसे चुनें आप को पहले यह तय करना होगा कि आप किस प्रकार के फंड में निवेश करना चाहते हैं. इक्विटी फंड तभी चुने जाने चाहिए जब आप ज्यादा जोखिम उठाने को तैयार हों. यह एक लौंग टर्म निवेश है जिस में 3 साल का लौकइन पीरियड होता है. अगर आप मध्यम जोखिम उठा सकते हैं तो हाइब्रिड फंड में निवेश करें. कम जोखिम के लिए आप को डेट फंड में निवेश करना चाहिए. कोई भी फंड चुनने के लिए एक समयसीमा के अंदर उस का प्रदर्शन देखें. इस के अलावा यह भी ध्यान दें कि फंड मैनेजर कौन है, उस का अनुभव कितना व किन कंपनियों में रहा है और उस का ट्रैक रिकौर्ड क्या है.

म्यूचुअल फंड का पोर्टफोलियो भी देखें. वह कहां और किनकिन कंपनियों में निवेश कर रहा है. आप को यह भी देखना चाहिए कि वह म्यूचुअल फंड किसी एक क्षेत्र में अपना पैसा लगा रहा है या अलगअलग में. यह भी देखें कि कितना पैसा इक्विटी में लगाया गया है और कितना डेट में. म्यूचुअल फंड स्कीम्स में होने वाले सभी खर्च को एक्सपैंस रेश्यो कहते हैं. एक्सपैंस रेश्यो से आप को यह पता लगता है कि किसी म्यूचुअल फंड के प्रबंधन में प्रतियूनिट क्या खर्च आता है. आमतौर पर एक्सपैंस रेश्यो किसी म्यूचुअल फंड स्कीम के साप्ताहिक नैट एसेट के औसत का 1.5-2.5 प्रतिशत होता है.

ये भी पढ़ें- अचानक क्यों मरने लगे पक्षी

ज्यादा एक्सपैंस रेश्यो से आप जितना लाभ कमाते हैं उस का एक बड़ा हिस्सा उस के लिए दे देते हैं और इस तरह आप का लाभ घट जाता है. एक्सपैंस रेश्यो कम हो तो आप का फायदा ज्यादा होगा. निवेश की प्रक्रिया आप को सब से पहले केवाईसी करानी होगी. इस के लिए पैन कार्ड और एक पहचानपत्र की जरूरत पड़ती है. केवाईसी की प्रक्रिया औनलाइन भी की जा सकती है. केवाईसी की प्रक्रिया पूरी होने पर आप को अपनी पसंद के म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए आवेदन करना होता है. आप यह प्रक्रिया औनलाइन भी कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड में कोई भी व्यक्ति निवेश कर सकता है.

आप भारतीय नागरिक हों या एनआरआई, दोनों ही म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. पर एनआरआई के लिए कुछ कंडीशंस होती हैं. आप म्यूचुअल फंड में न्यूनतम 500 रुपए तक का निवेश कर सकते हैं. अपने जीवनसाथी या बच्चों के नाम पर भी निवेश किया जा सकता है. यदि आप का बच्चा नाबालिग है तो उस के नाम पर निवेश करते समय बच्चे के साथसाथ अभिभावक की जानकारी दी जाती है. बच्चे के पास पैन कार्ड होना भी जरूरी है. आप किसी म्यूचुअल फंड की वैबसाइट से सीधे निवेश कर सकते हैं. अगर आप चाहें तो किसी म्यूचुअल फंड एडवाइजर की सेवा भी ले सकते हैं. अगर आप सीधे निवेश करते हैं तो आप म्यूचुअल फंड स्कीम के डायरैक्ट प्लान में निवेश कर सकते हैं.

अगर आप किसी एडवाइजर की मदद से निवेश कर रहे हैं तो आप स्कीम के रैगुलर प्लान में निवेश करते हैं. म्यूचुअल फंड के किसी डायरैक्ट प्लान में निवेश करने का फायदा यह है कि आप को कमीशन नहीं देना पड़ता है. इसलिए लंबी अवधि के निवेश में आप का रिटर्न बहुत बढ़ जाता है. इस तरीके से म्यूचुअल फंड में निवेश करने में एक दिक्कत यह है कि आप को खुद रिसर्च करनी पड़ती है.

फिल्म ‘ मास्टर’ को मिले इतने स्टार्स

फिल्म समीक्षा:

“मास्टर: खोदा पहाड़ निकली चुहिया”
रेटिंग: दो स्टार
निर्माता :झेवियर ब्रिटो
निर्देशक व लेखक: लोकेश कनगराज
कलाकार: थलापति विजय, विजय सेटुपति, मालविका मोहनन ,अर्जुन दास, अंडे्जा जेरेमियाह, शांतनु भरद्वाज, नासर, रम्या, धीना ,संजीव व अन्य
अवधि :3 घंटे
परिस्थिति वश अपराध करने वाले बच्चों को बाल सुधार गृह में भेजकर यह उम्मीद की जाती है कि यह बच्चे अच्छे नागिन बनकर बाल सुधार गृह से बाहर आएंगे, मगर बाल सुधार गृह से यह बच्चे बहुत बड़े अपराधी बन कर बाहर आते हैं, यह वास्तव में चिंता का विषय है. इसी विषय पर तमिल फिल्मों के मशहूर फिल्मकार लोकेश कनागराज तमिल और हिंदी भाषा में  एक्शन व रोमांचक फिल्म’ मास्टर’ लेकर आए हैं. अफसोस की बात यह है कि तमिल में ‘मानागरम’ और ‘कैथी’ जैसी सुपर डुपर हिट फिल्में दे चुके लोकेश कनागराज इस बार पूरी तरह से चूक गए हैं.
ये भी पढ़ें- बिग बॉस 14: राहुल से शादी को लेकर लोगों ने किया दिशा परमार को ट्रोल तो
कहानी:
फिल्म की कहानी शुरू होती है 3 दबंग लोगों द्वारा एक मकान को जलाए जाने से. पता चलता है कि इस जले हुए मकान के अंदर ट्रांसपोर्ट यूनियन के चेयरमैन को भी जिंदा जला दिया गया है. उसके बाद यह तीनों दबंग भवानी से कबूल करवाते हैं कि सिलेंडर फटने से घर में आग लगी. इसके अलावा भवानी पर चोरी का इल्जाम लगाकर बाल सुधार गृह में भिजवा देते हैं. तीनों दबंगों के कहने पर बाल सुधार गृह के वार्डन , भवानी को तरह-तरह की यातनाएं देते हैं.
ये भी पढ़ें- कॉमेडियन डेनियल फर्नाडिस ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत का बनाया मजाक तो फैंस ने ऐसे लगाई क्लास
उधर भवानी(विजय सेटुपति )इस बाल सुधार गृह से एक बहुत बड़ा अपराधी बन कर बाहर निकलता है और अपने पिता के तीनों हत्यारों को जाकर धमकी देता है. भवानी बाल सुधार गृह के बच्चों को गांजा ,चरस, अफीम, शराब, सिगरेट सब कुछ मुफ्त में मुहैया  कराता है. भवानी जितने भी अपराध करता है, जितनी हत्याएं करता है ,उसका श्रेय किसी न किसी बालक को ही लेना पड़ता है . फिर बालक बाल सुधार गृह में पहुंचकर ऐश की जिंदगी जीता है.इस बार सुधार गृह में कोई भी शिक्षक एक या 2 दिन से ज्यादा टिक नहीं पाता है. उधर एक मशहूर कॉलेज में साइकोलॉजी के प्रोफेसर जेडी(थलापति विजय) से सभी परेशान हैं. प्रिंसिपल भी परेशान हैं.
क्योंकि जेडी शाम 6 बजे के बाद शराब में डूबे रहते हैं पर वह कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए बहुत कुछ अच्छा काम कर रहे हैं जिसके चलते सारे विद्यार्थी उनके इशारों पर कुछ भी करने को तैयार है. एक दिन कॉलेज के प्रिंसिपल जीतू को बताते हैं कि अंकित 3 माह की छुट्टी कबूल कर ली गई है और अब उन्हें बाल सुधार गृह में बच्चों को पढ़ाने जाना है. बाद में पता चलता है कि ऐसा कॉलेज की चारू(मालिका मोहनन) नामक शिक्षिका की करतूत के कारण हुआ है. चारु कभी  एनजीओ के साथ मिलकर बाल सुधार गृह में काम करते हुए सच देख चुकी थी और उन्हें लगा कि इस बाल सुधार गृह के बच्चों को केवल जेडी ही सुधार सकता है.
 बाल सुधार गृह में पहुंचने के बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अब जेडी तथा भवानी आमने-सामने हो जाते हैं. अंततः जे डी के हाथों भवानी की हत्या हो जाती है और जेडी को सजा हो जाती है.
लेखन व निर्देशन:
फिल्म मास्टर देखने के बाद यह एहसास करना मुश्किल हो जाता है कि इस फिल्म के निर्देशक पहले मानागरम और कैथी जैसी फ़िल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं.इसकी कहानी और पटकथा काफी कमजोर है. कहानी को बेवजह रबड़ की तरह तीन घंटे में खींचा गया है .
फिल्म का एक्शन भी अच्छा नहीं बना है. अफसोस की बात यह है कि क्लाइमेक्स से पहले निर्देशक लोकेश ने अपनी पुरानी फिल्म ‘कैथी’ के एक्शन दृश्य की अति घटिया नकल की है . फिल्म का बीएफ एक्स भी बहुत खराब है. फिल्म 3 घंटे लंबी है, लेकिन जेडी का किरदार  सही ढंग से लिखा नहीं  गया जेडी क्यों शराबी बना, इसके पीछे की क्या कहानी है ? इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है. चारु यानी कि मालविका मोहनन के किरदार को भी सही ढंग से विकसित नहीं किया गया.
अभिनय:
थलापति विजय और विजय सेटुपति दोनों ने अपने अपने किरदारों को पूरी तरह से जीवंतता के साथ जिया है ,मगर अफसोस पूरी फिल्म इतनी घटिया बनी है कि थालापति विजय और विजय सेटुपति दोनों का उत्कृष्ट अभिनय भी इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं दिला सकता.

बिग बॉस 14: राहुल से शादी को लेकर लोगों ने किया दिशा परमार को ट्रोल तो मिला ऐसा रिएक्शन

बिग बॉस 14 कंटेस्टेंट राहुल वैद्या और उनकी गर्लफ्रेंड दिशा परमार लगातार सुर्खियों में छाए हुए हैं. इस सीजन के शुरुआत से ही दिशा परमार और राहुल वैद्य की स्टोरी चर्चा में बनी हुई है.

राहुल वैद्य नेशनल टीवी पर सभी के सामने दिशा परमार को प्रपोज किया था. जिसके बाद फैंस के बीच राहुल की टीआरपी और भी ज्यादा बढ़ गई.

ये भी पढ़ें- तो क्या सच में सीरियल ‘तारक मेहता’ में हो जाएंगी पोपाटलाल की शादी

वहीं राहुल और दिशा के फैंस उनके शादी का इंतजार कर रहे हैं. तो दूसरी तरफ राहुल वैद्या बहुत अच्छा गेम खेल रहे हैं. दिशा परमार लगातार राहुल वैद्या को कमेंट कर सपोर्ट कर रही हैं. इसके साथ ही दिशा परमार ने सोशल मीडिया पर एक बेहतर तस्वीर शेयर कि है जिसके बाद यूजर ने राहुल वैद्या की गर्लफ्रेंड को ट्रोल करना शुरू कर दिया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by DP (@dishaparmar)


ये भी पढ़ें- बिग बॉस 14: घर से बाहर आते ही बदले जैस्मिन के तेवर , राखी सावंत को लेकर कह दी ये बात

इसके बाद दिशा परमार ने जवाब देते हुए लिखा कि तुम्हे क्या लगता है जो इस बात पर कमेंट कर रहे हो मुझे क्या करना चाहिए या नहीं, जिसके बाद सभी ट्रोलर्स की बोलती बंद हो गई.

ये भी पढ़ें- “स्टार भारत” के सीरियल “सावधान इंडिया f.i.r.” सीरीज में अब मानिनी मिश्रा मुख्य किरदार में नजर आएंगी

दिशा परमार कि इस फोटो को देखने के बाद कई लोगों ने दिशा परमार का समर्थन भी किया है. बता दें कि दिशा और राहुल परमार काफी लंबे समय से एक –दूसरे के साथ रिलेशन में हैं. रिपोर्ट की माने तो बिग बॉस 14 के घर से बाहर आते ही राहुल और दिशा जल्द एक- दूसरे के साथ शादी कर सकते हैं.

हालांकि अभी तक राहुल वैद्या ने इस पर खुलकर अपनी बातों को नहीं रखा है. अब देखना है कि क्या वाकई राहुल और दिशा परमार शादी के बंद में बंधेंगे.

कॉमेडियन डेनियल फर्नाडिस ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत का बनाया मजाक तो फैंस ने ऐसे लगाई क्लास

गुरुवार को यानि 14 जनवरी को सुशांत सिंह राजपूत के मौत को पूरे 7 महीने पूरे हो गए है. इस दिन को याद करके फैंस बहुत ज्यादा भावुक हो गए हैं. इसी बीच कॉमेडियन डेनियल फर्नाडिस ने सुशांत और रिया को लेकर स्टैंडअप कॉमेडि के जरिए माजाक बनाया है.

मामला इतना ज्यादा बढ़ गया कि डेनियल को माफी मांगी पड़ी. 11 जनवरी को डेनियल ने एक शो किया था जिसमें उन्होंने हंसाने के लिए सुशांत सिंह राजपूत और रिया का नाम लिया था जिसके बाद से लोगों ने इतना ज्यादा विरोध किया कि उन्हें मांफी मांगनी पड़ी.

ये भी पढ़ें- तो क्या सच में सीरियल ‘तारक मेहता’ में हो जाएंगी पोपाटलाल की शादी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Daniel Fernandes (@absolutelydanny)


सुशांत सिंह राजपूत के फैंस ने डेनियल पर गुस्सा दिखाते हुए कहा था कि वह अपनी हद से आगे बढ़ रहे हैं. जिसके बाद डेनियल ने एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा था कि मैं एक कॉमेडिय हूं मेरा काम हंसाना है हालांकि हो सकता है कि मुझसे कोई गलती हो गई हो.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस 14: घर से बाहर आते ही बदले जैस्मिन के तेवर , राखी सावंत को लेकर

उन्होंने गलती से रिया का नाम बरी के नाम पर ले लिया था जबकी रिया रिहा हुई थीं, जिसके बाद सभी उन्हें खरी खोटी सुनाने लगे थें. मालूम हो कि सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून 2020 को अपने घर के अंदर फांसी लगाकर मर गए थें, जिसके बाद आज तक किसी को पता नहीं चल पाया कि आखिर सुशांत सिंह राजपूत ने ऐसा कदम क्यों उठाया था.

ये भी पढ़ें- “स्टार भारत” के सीरियल “सावधान इंडिया f.i.r.” सीरीज में अब मानिनी मिश्रा मुख्य किरदार में नजर आएंगी


सुशांत सिंह राजपूत को लेकर देश भर में कई तरह के प्रोटेस्ट हुए थें जिसके बाद से सुशांत सिंह राजपूत के फैंस ने रिया चक्रवर्ती को दोषी बताया था. रिया कुछ दिनों तक सलाखों के पीछे भी रही जिसके कुछ वक्त बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया.

हालांकि अभी भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत एक पहेली है किसी को सच्चाई का पता नहीं चल पाया है. सभी हैरान है कि कब मिलेगा सुशांत सिंह को न्याय.

लव जिहाद: पौराणिकवाद थोपने की साजिश

पौराणिकवादी विचारधारा का पोषक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू लड़कियों को आजाद नहीं छोड़ना चाहता. वह उन्हें अपनी पसंद का जीवन जीने या जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं देना चाहता. मनुवादी व्यवस्था का समर्थक संघ पितृसत्ता को प्रभावशाली बनाना चाहता है ताकि ब्राह्मणों की दुकान चलती रहे. लव जिहाद का नाम ले कर बनाए गए धर्मांतरण कानून के जरिए हिंदू स्त्री को दहलीज के भीतर धकेले रखने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन यह ‘सरकारी हिंदुत्व’ लव जिहाद की आड़ में और भी बहुतकुछ करना चाहता है.

लव जिहाद जैसे शब्द गढ़ कर कट्टरपंथ और रूढि़यों से चिपके रहने वाले संघ और भाजपा, युवाओं से प्यार करने की स्वतंत्रता छीन कर जीवन जीने के उन के निजी अधिकार को खत्म कर देना चाहते हैं. हालांकि, उन के ‘प्रथमग्रासे मक्षिकापात:’ यानी उन के पहले ही कौर में ही मक्खी पड़ गई है. लव जिहाद कानून के तहत दर्ज पहले ही केस में उत्तर प्रदेश सरकार के मुंह पर कानून का जबरदस्त तमाचा पड़ा है.

ये भी पढ़ें- कोढ़ में कहीं खाज न बन जाए ‘बर्ड फ्लू’

मुरादाबाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार जोड़े को जिस में मुसलिम युवक को हाईकोर्ट के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया है और हिंदू युवती, जिस ने उस से विवाह करने के लिए इसलाम कबूल कर लिया था, शेल्टर होम से निकल कर अपने मायके जाने के बजाय अपनी मुसलिम ससुराल पहुंच गई है. यह है प्यार को सर्वोपरि सम झने वाले प्रेमियों का उत्तर प्रदेश की कट्टरपंथी सरकार को करारा जवाब.

उल्लेखनीय है कि संघ और भाजपा द्वारा कथित लव जिहाद का होहल्ला मचा कर युवादिलों को धर्म की सलाखों में कैद रखने की साजिश को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कानूनी जामा पहना दिया है. मानो लाखों धर्म परिवर्तन केवल लव जिहाद के कारण हुए हैं और हिंदुओं की संख्या घट गई है.

ये भी पढ़ें- आईना -भाग 2 : गरिमा की मां उसकी गृहस्थी क्यों बिखरने में लगी हुई थी

नए कानून ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ के लागू होते ही उत्तर प्रदेश पुलिस लाठी के बल पर प्यार करने वालों को अलग करने में जुट गई है. कई गिरफ्तारियां हुई हैं. इन्हीं में एक गिरफ्तारी मुरादाबाद के कांठ नामक गांव की निवासी पिंकी उर्फ मुसकान जहां और उस के पति मोहम्मद राशिद की हुई. पिंकी जहां शादी से पहले दलित हिंदू परिवार से ताल्लुक रखती है, वहीं राशिद मुसलमान परिवार से है. ये दोनों देहरादून में काम करते थे, जहां उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया और दोनों ने शादी करने का फैसला किया.

24 जुलाई, 2020 को मुसलिम रीतिरिवाज से दोनों की शादी हुई, जब योगी सरकार का नया कानून लागू भी नहीं हुआ था. पिंकी ने स्वेच्छा से मुसलिम धर्म अपनाया. शादी के बाद से यह जोड़ा देहरादून में ही रह रहा था. 28 नवंबर, 2020 को योगी का कानून आया और बजरंग दल के तमाशाइयों को तमाशा करने का असंवैधानिक पर कानूनी हथियार मिल गया. उन्होंने पिंकी की मां को डराधमका कर उन से बेटीदामाद के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई. मुरादाबाद पुलिस ने भी ताल से ताल मिलाई और इस शादीशुदा जोड़े को गिरफ्तार कर लिया जबकि पिंकी उर्फ मुसकान जहां 2 महीने की गर्भवती थी.

ये भी पढ़ें- बनफूल: सुनयना बचपन से दृष्टिहीन क्यों थी

लड़की कहती रही कि उस के साथ कोई धोखा नहीं हुआ, कोई जोरजबरदस्ती नहीं हुई, दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे और इसलिए उन्होंने शादी की. उस ने यह भी कहा कि शादी के लिए उस ने अपनी मरजी से इसलाम धर्म कबूल किया था. लेकिन योगी की पुलिस ने उस की एक न सुनी. मजे की बात यह है कि जब वे अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए सरकारी दफ्तर गए हुए थे, उसी समय बजरंग दल के सदस्यों के कहने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ के तहत केस दर्ज कर के मोहम्मद राशिद व उस के छोटे भाई को जेल भेज दिया और पिंकी उर्फ मुसकान जहां को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के महिला शेल्टर होम में दाखिल कर दिया.

जिम्मेदार कौन

लव जिहाद का बहाना बना कर हिंदू कट्टरपंथी युवाओं की प्रेम करने की स्वतंत्रता भी छीन लेने के लिए कानून चाहते हैं. उन की मंशा है कि युवा प्रेम कर के शादी करें ही नहीं, क्योंकि लड़कियों को प्रेम करने की आजादी कैसे दी जा सकती है. जब लड़कियां अपनी इच्छा से शादी नहीं कर सकेंगी तो युवाओं की प्रेम करने की स्वतंत्रता छिन जाएगी.

ये भी पढ़ें- एहसास-भाग 4 :मालती के प्यार में क्या कमी रह गई थी बहू निधि के लिए

यह कानून लागू हुआ 28 नवंबर, 2020 से और शादी हुई थी 24 जुलाई को. यानी कानून बनने से पहले ही शादी हो चुकी थी. इसलिए यह गिरफ्तारी पूरी तरह गैरकानूनी थी. इस के लिए किसकिस को सजा मिलनी चाहिए और किसकिस को उन पतिपत्नी से माफी मांगनी चाहिए? क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस पर गौर फरमाएंगे? सरकार के लिए कितना शर्मनाक है कि एक महिला, जो गर्भवती थी, ने किस कदर तनाव और डर का सामना किया कि उस का गर्भ गिर गया? इस भ्रूणहत्या का जिम्मेदार कौन है?

गर्भावस्था के जिन पहले 3 महीने में एक गर्भवती को उस के पति और परिजनों की जरूरत होती है, ऐसे वक्त में वह लड़की बिलकुल अकेली, असहाय, तनाव व तकलीफों से भरी सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर तड़पती रही.

यह वाकेआ एक मुसलिम युवा व उस के परिजनों को डराने, उन पर जुल्म करने और एक ब्याहता व गर्भवती हिंदू महिला को प्रताडि़त करने का है, जो बालिग हैं, एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादीशुदा हैं और अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के इच्छुक थे. लेकिन धर्म के ठेकेदारों को यह मंजूर नहीं है.

देश के उन राज्यों, जहां भाजपा या उस के गठबंधन की सरकारों का शासन है, लव जिहाद के नाम पर कानून बनाने को ले कर सियासत चरम पर है. उत्तर प्रदेश में तो नया कानून लागू भी हो गया है और इस नए कानून ने प्रेम करने वालों की गिरफ्तारियां भी शुरू कर दी हैं. बड़े ही शातिराना तरीके से योगी सरकार ने लव जिहाद का नाम लिए बिना ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ बना कर इस के तहत एक भारतीय नागरिक को उस के संविधान द्वारा प्रदान किए गए जीवन जीने के मौलिक अधिकारों से वंचित करने और समाज को पंडेपुजारियों, खापों, धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों की आज्ञानुसार चलने को बाध्य करने की साजिश को मूर्तरूप देना शुरू कर दिया है.

दावा है कि इस नए कानून के तहत उन लोगों को गिरफ्तार कर के जेल भेजा जाएगा जो धोखा दे कर विवाह करेंगे, बलात्कार के दोषी पाए जाएंगे या जबरन धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी होंगे. सवाल यह उठता है कि जब इन सभी अपराधों के लिए पहले ही देश के संविधान में आईपीसी के तहत पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं, तो एक और कानून का औचित्य क्या है?

साफ है कि लव जिहाद का नाम लिए बिना योगी सरकार का यह नया कानून हिंदुओं को छोड़ कर अन्य सभी धर्मों- सिखों, ईसाइयों और मुसलमानों और खासकर दलितों को हताहत करने का नया हथियार है, जिस में अधिकतम 10 वर्ष कारावास और भारी जुर्माने का प्रावधान है और अब इस हथियार को अन्य भाजपा शासित राज्य भी हासिल करने को उतावले हुए जा रहे हैं, ताकि संघ के हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके.

आइए, जरा एक नजर इस नए कानून की मोटीमोटी बातों पर डालें. इस नए कानून को गैरजमानती संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है. अर्थात यदि किसी व्यक्ति ने गैरधर्म के व्यक्ति से विवाह कर लिया और उन में से किसी एक के अथवा दोनों के परिजन, रिश्तेदार ही नहीं अनजान, पड़ोसी, कोई (भगवा) संस्था, कोई (भाजपा) दल या किसी भी दुश्मन ने शिकायत दर्ज करवा दी तो पुलिस बिना देर किए आप के दरवाजे पर पहुंच जाएगी और आप शादी के बाद हनीमून पर जाने की जगह जेल भेज दिए जाएंगे. थाना और जिला स्तर से आप की जमानत नहीं होगी और इस के लिए आप को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

अगर आप का और आप के जीवनसाथी का प्यार सच्चा है और दोनों ने अपनीअपनी मरजी से धर्म परिवर्तन और शादी की है, उस में कोई छलकपट या जबरन विवाह नहीं किया गया है, तो भी इस के सुबूत देने की जिम्मेदारी धर्म परिवर्तन कराने वाले और करने वाले व्यक्ति पर होगी. बिना सुबूत दिए आप को जेल से मुक्ति नहीं मिल सकती. इस कार्रवाई को पूरा होने में एक लंबा समय लगेगा और तब तक आप जेल की सलाखों में रहेंगे और आप का जीवनसाथी उन लोगों की कैद में होगा जो आप दोनों की शादी के खिलाफ थे, जिन्होंने आप के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, जो प्रेम के दुश्मन हैं, जो रूढि़वादी संस्कृतियों के पोषक हैं, जो स्त्री की आजादी के विरोधी हैं और जो औनर किलिंग जैसे कुकृत्यों को बढ़ावा देने वाले हैं.

इस भयानक तनाव और प्रताड़ना से गुजरने के बाद अगर आप कोर्ट में यह साबित कर पाए कि जबरन कोई धर्म परिवर्तन नहीं हुआ है और दोनों की रजामंदी से शादी हुई है, तब आप अपने वैवाहिक जीवन को प्राप्त कर पाएंगे और वह भी तब जब आप का जीवनसाथी आप की शादी के दुश्मनों के बीच सहीसलामत बच जाए और निडर हो कर आप के पास आ जाए. बहुत संभव है कि ऐसा नहीं हो पाएगा, क्योंकि जब तक आप जेल में रहेंगे, जमानत पाने के लिए जद्दोजेहद करेंगे, कानूनी दांवपेचों से खुद को बचाने और खुद को निर्दोष साबित करने की लड़ाई लड़ेंगे, तब तक आप की जीवनसंगिनी को उस के परिजनों, रिश्तेदारों, समाज और धर्म के ठेकेदारों द्वारा डराधमका कर आप के विरुद्ध कर दिया जाएगा. उस को मजबूर किया जाएगा कि वह आप के खिलाफ कोर्ट में गवाही दे.

अगर कहीं आप की जीवनसाथी आप के लिए वफादार निकली, आप को ही अपना पति मानने की जिद पर अड़ी रही तो उस को औनर किलिंग के तहत खत्म कर दिया जाएगा, जो कि इस देश में मामूली बात है. साफ है कि नया कानून प्यार का ही दुश्मन नहीं है, बल्कि स्त्री की स्वतंत्रता, उस की पसंदनापसंद और उस के जीवन का भी दुश्मन है. वरना स्त्रीविरोधी सड़ी हुई सोच के वाहक और स्त्रीविरोधी अपराधियों को प्रश्रय देने वाले कब से स्त्रियों के मुक्तिदाता हो गए?

रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास कह गए हैं- ‘जिमि स्वतंत्र होई बिगरही नारी’ यानी नारी अगर स्वतंत्र हुई तो बिगड़ जाएगी. तुलसी बाबा के अनुयायियों को ऐसा यकीन भी है. इसलिए हिंदू लड़कियों को वे आजाद नहीं छोड़ना चाहते. उन्हें अपनी पसंद का पति चुनने का अधिकार नहीं देना चाहते.

मनुस्मृति के विधान के आधार पर स्त्रियों को पिता, भाई, पति या पुत्र की छत्रछाया में ही जीवनयापन करना चाहिए. उस के अनुसार, पुरुष आखिर स्त्री के भले के लिए ही तो ऐसा करता है. बहरहाल, हिंदूत्ववादी इस प्रोपेगंडा की मारफत स्त्री को दहलीज के भीतर धकेलने की कोशिश शुरू हो गई है लेकिन यह ‘सरकारी हिंदुत्व’ लव जिहाद की आड़ में और भी बहुतकुछ करना चाहता है.

धर्मांतरण का डर

गौरतलब है कि नए कानून के अनुसार नाबालिगों और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की महिला के मामले में 3 से 10 वर्ष तक की कैद और 25,000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है. आइए, अब इस का थोड़ा और छिद्राविश्लेषण करते हैं. इस कानून में व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह के धर्मांतरण को रोकने का प्रावधान किया गया है. वास्तव में अगर हिंदू लड़कियों के धर्मांतरण और उन के जीवन के लिए यह सरकार इतनी फिक्रमंद है तो सामूहिक धर्मांतरण रोकने के लिए कानून में प्रावधान क्यों किया गया है? कहीं लव जिहाद के नाम पर असली निशाना सामूहिक धर्मांतरण रोकना तो नहीं है?

संघ-भाजपा और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की मंशा को अगर सही मान लिया जाए और मुसलमानों से कथित हिंदुओं की रक्षा की बात को स्वीकार भी कर लिया जाए तो पूछा जाना चाहिए कि सामूहिक धर्मांतरण कौन कर रहा है? क्या हिंदू लड़कियां सामूहिक धर्मांतरण कर रही हैं? नहीं.

एक आंकड़े के अनुसार देश में औसतन तकरीबन 5.8 प्रतिशत अंतरजातीय तो केवल 2.2 प्रतिशत ही अंतरधार्मिक विवाह होते हैं. ऐसे में सोचा जा सकता है कि भाजपा और संघ परिवार इस के नाम पर साजिश कर के लोगों को मूर्ख ही बना रहे हैं.

ऐसे कानून की आवश्यकता इस सरकार को क्यों पड़ी? आखिर हिंदूत्ववादी सरकार को किस के धर्मांतरण का डर सता रहा है? क्या इस के आंकड़े उत्तर प्रदेश सरकार के पास हैं कि कितने हिंदू समूहों ने इसलाम धर्म अपना लिया?

पिछले एक दशक में देश के अलगअलग हिस्सों से सामूहिक धर्मांतरण के जो मामले सामने आए हैं, उन में हिंदुओं द्वारा धर्म परिवर्तन का कोई मामला नहीं है. उन में सत्ता संरक्षित हिंदूत्ववादी तत्त्वों (ब्राह्मणों-क्षत्रियों), जो खुद को सवर्ण हिंदुओं की प्रथम पंक्ति में रखते हैं, द्वारा प्रताडि़त दलितों के धर्मांतरण की घटनाएं सामने आई हैं. कुछ समय पहले ही हाथरस में वाल्मीकि समाज की लड़की के बलात्कार और हत्या के विरोध में गाजियाबाद के वाल्मीकि समाज के कुछ लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. गुजरात, महाराष्ट्र आदि कई राज्यों में दलितों द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकारने की घटनाएं हुई हैं.

कुछ स्थानों पर दलितों ने इसलाम और ईसाई धर्म को भी अपनाया है. अकसर दबंगों द्वारा सताए जाने पर दलित दुखी हो कर हिंदू धर्म छोड़ने की बात कहते हैं.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया धर्मांतरण विरोधी कानून, दलितों को दलित बनाए रखने की एक शैतानी साजिश है. एक कानून के तहत नाबालिग और दलित लड़कियों व महिलाओं के धर्मांतरण कराने की सजा सामान्य वर्ग के व्यक्ति के धर्मांतरण से दोगुनी यानी अधिकतम 10 साल की जेल और 25 हजार रुपए आर्थिक दंड लगाने का प्रावधान किया गया है. आखिर ऐसा क्यों किया गया? इस के मारफत योगी सरकार दलितों के बीच एक संदेश भेजना चाहती है कि भाजपा सरकार उन के लिए ज्यादा फिक्रमंद है और दलित लड़कियों को मुसलमानों से खतरा है. एक स्तर पर यह दलितों को हिंदू और अपना वोटबैंक बनाए रखने की रणनीति है.

पिछले कुछ समय से दलित और मुसलमानों के बीच एकजुटता भी दिखाई दे रही है. दोनों ही संघ के पैदा किए पौराणिक हिंदुत्व से परेशान और प्रताडि़त हैं. तो यह कानून दलितों और मुसलमानों के बीच एकजुटता को खत्म करने और सांप्रदायिकता की खाई को चौड़ा करने का षड्यंत्र है.

ब्राह्मणवाद के खतरे की चेतावनी

वास्तव में, दलितों को असली खतरा बढ़ते हिंदुत्व से है. बाबा साहब अंबेडकर ने 1946 में दलितों को हिंदू महासभा और आरएसएस से सतर्क रहने की हिदायत दी थी. हिंदू धर्म की वर्णव्यवस्था में पिसते शूद्रोंअछूतों के यातनाभरे अतीत को बाबा साहब बखूबी जानते थे. उन्होंने खुद भी ब्राह्मणवाद की अन्याय और ऊंचनीच की व्यवस्था को भोगा था. इसीलिए उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दौर में दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने का विकल्प दिया. 14 अक्तूबर, 1956 को धम्मदीक्षा के समय 3 लाख 80 हजार दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाया था. डा. अंबेडकर के निर्वाण (6 दिसंबर, 1956) के समय भी 1 लाख 20 हजार दलितों ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था.

गौरतलब है कि हिंदू धर्म छोड़ने और बौद्ध धर्म अपनाने का बाबा साहब का फैसला अचानक नहीं था. 1935 में हिंदू धर्म छोड़ने का संकल्प करने से पहले  डा. अंबेडकर ने करीब 2 दशक तक हिंदू धर्म में सुधार के लिए ढेरों प्रयत्न किए.

20 मार्च, 1927 में महाड़ सत्याग्रह कर के उन्होंने अछूतों को सार्वजनिक तालाब से पानी लेने के लिए संघर्ष किया. 25 दिसंबर, 1927 को उन्होंने असमानता और अन्याय की पोथी मनुस्मृति को जलाया. 2 मार्च, 1930 को नासिक के कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश के लिए आंदोलन किया. 1935 तक वे मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन करते रहे. लेकिन ब्राह्मणों और ऊंची जाति के हिंदुओं की सोच में कोई अंतर नहीं आया. इसलिए उन्होंने पाया कि हिंदू धर्म छोड़े बिना असमानता और अन्याय की चक्की में पिसने वाले दलितों के जीवन में उजाला लाना संभव नहीं है.

दलितों पर अत्याचार

अब आज के हालात पर गौर कीजिए. जिन राज्यों में संघ-भाजपा की सत्ता स्थापित हुई वहां कभी गाय के नाम पर, कभी मूंछ रखने के कारण, कभी घोड़े पर सवारी करने पर दलितों के साथ सामूहिक रूप से मारपीट की गई. उन्हें पेशाब तक पिलाया गया. उन की बहनबेटियों को अपमानित किया गया. दलित महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार, बलात्कार, हत्या के तमाम मामले योगी सरकार की नाक के नीचे उत्तर प्रदेश में हुए. मगर किसी को न्याय नहीं मिला.

इसी तरह? गुजरात के ऊना में मरी गाय की खाल निकालने पर दलितों को बांध कर बड़ी बेरहमी से पीटा गया. इस के बाद वहां दलितों ने आंदोलन किया. उस आंदोलन का बहुचर्चित नारा था,  ‘‘गाय की पूंछ तुम रखो, हमें हमारा अधिकार चाहिए.’’ इस के बाद गुजरात में कुछ दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लियदेशा. इन्हीं दलित धर्मांतरण की घटनाओं को रोकने के लिए मुसलामानों को बदनाम कर के और लव जिहाद का नाम दे कर यह नया कानून लाया गया है ताकि भाजपा का हिंदू वोटबैंक बना रहे. जबरा मारे और रोए भी न दे, यानी दलितों पर जूतेलाठियां भी बरसाते रहो और उन्हें कानून का डर दिखा कर हिंदू धर्म त्यागने भी न दो.

2 दशकों की कट्टर हिंदुत्ववादी राजनीति द्वारा सामाजिक परिवर्तन की हर प्रक्रिया को बाधित करने की पुरजोर कोशिश हो रही है. अतीत का गौरवबोध और वर्चस्व भावना पैदा कर के सवर्ण नौजवानों को आक्रामक बना कर भाजपा अपना आधार पुख्ता बनाए रखना चाहती है. आज जिस प्रकार हिंदू धर्म के अतीत की व्यवस्था यानी मनुवादी व्यवस्था को दोबारा स्थापित करने की कोशिश हो रही है, उस के प्रतिरोध में बाबा साहब का रास्ता अपनाने की जरूरत अब दलित ही नहीं, बल्कि चेतनासंपन्न पिछड़ी जाति के लोग भी महसूस कर रहे हैं.

पौराणिकवादियों की मंशा

संघ परिवार और इस की कट्टर पौराणिक रूढि़वादी छत्रछाया में विकसित हुआ भाजपाई मानस लव जिहाद के नाम पर कई चीजें एकसाथ करना चाहता है. वह लव जिहाद के  झूठ के सहारे आम जनता का ध्यान जीवन से जुड़े असली मुद्दों से भटकाना चाहता है. इस समय देश की अर्थव्यवस्था भयंकर दयनीय दौर से गुजर रही है. मोदी सरकार द्वारा देश पर लादे गए नोटबंदी जैसे कुकर्मों के बाद से अर्थव्यवस्था अभी संभली भी नहीं थी कि कोरोना महामारी ने लोगों से उन के रहेसहे रोजगार भी छीन लिए.

मोदी सरकार के देश की जनता पर बिना सोचेसम झे और बिना किसी ठोस कार्ययोजना के थोपे गए लौकडाउन ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा और भी गर्क कर दिया है. आर्थिक संकट की सब से बड़ी मार देश की गरीब जनता के ऊपर पड़ रही है. उन के रोटीरोजगार खत्म हो ही चुके हैं, कुछ तरह के हक भी सरकार द्वारा लगातार छीने जा रहे हैं, जनता पर टैक्सों का पहाड़ बढ़ता जा रहा है, महंगाई कमर तोड़ रही है, बैंकों के पास पैसा नहीं बचा है, तमाम बैंक घाटे में हैं, तमाम बंद हो चुके हैं, युवाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं, शिक्षा व्यवस्था को बरबाद किया जा रहा है, चिकित्सा व्यवस्था बेहाल होती जा रही है, किसानमजदूर सड़कों पर हैं.

दूसरी ओर देश के धन्नासेठ और सरकार के खासमखास उद्योगपति मंदी के इस दौर में भी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं. ऐसा होगा भी कैसे नहीं, भाजपा के चुनावी अभियानों में पूंजीपति जमात रुपयों की बोरियों के जो मुंह खोलती है. उस पैसे को उन के हक में नीतियां बना कर सूद समेत लौटाना भी तो है.

पूंजीपतियों की लूट जारी रह सके, इस के लिए भाजपा सरकार जनता को बांटने और  झूठे मुद्दों पर उल झाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. और असल में संकट की यह स्थिति पूंजीवादी व्यवस्था के लिए कोई संकट न बन जाए, इसीलिए जातिमजहब, मंदिरमसजिद, गाय और लव जिहाद जैसे  झूठे मुद्दों पर राजनीति जारी है.

हिंदुत्ववादी सरकार देश की जनता को हिंदूमुसलमान के  झगड़े में उल झाए रखना चाहती है. दोनों के बीच नफरत की खाई बनी रहे, इसी में सरकार के हिंदुत्व का विकास है. मुसलमानों को निशाना बना कर सरकार उन के लिए बहुसंख्य गरीब हिंदुओं के दिलों में नफरत का जहर घोलना चाहती है और खुद को हिंदू हितरक्षक दिखा कर अपनी फर्जी छवि को चमकाना चाहती है.

जनता अपने जीवन की बरबादी के असल कारणों को न पहचान जाए, इसीलिए उसे बरगला कर आपस में ही सिरफुटौवल के लिए तैयार किया जा रहा है. लव जिहाद जैसा जुमला भी नफरत की राजनीति को बढ़ाने का हथियार है, जिसे कानूनी जामा पहना कर और धारदार बना दिया गया है.

संघ का दूसरा निशाना हैं हिंदू महिलाएं. अपनी स्त्रीविरोधी सोच के तहत वह हिंदू महिलाओं व युवतियों

की स्वतंत्र इच्छा और जीवनसाथी चुनने की आजादी को खत्म करना चाहता है.

वह हिंदू महिलाओं को हिंदुत्ववाद व पितृसत्ता की मातहती में रखना चाहता है. हिंदू महिला आजाद हो और अपनी पसंद से किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय के व्यक्ति से विवाह करे, यह संघ को हरगिज मंजूर नहीं है. वह औरतों को पंडेपुजारियों की इच्छा का दास बनाए रखना चाहता है क्योंकि इसी से उन का धंधा बढ़ेगा, हिंदुत्व परवान चढ़ेगा. हिंदू महिला हिंदू पुरुष से विवाह करेगी, तो विवाहसंबंधी तमाम संस्कार होंगे जिन्हें पंडित पूरा कराएगा. इस से उस का रोजगार बचा रहेगा. मंदिर में दानचढ़ावा आता रहेगा. संतान होने पर भी तमाम तरह के संस्कार पंडित संपन्न कराएगा और मृत्यु होने पर भी तमाम रीतिरिवाज, हवन, दान, भोज आदि का फायदा पंडित को मिलेगा.

वहीं यदि कोई हिंदू महिला किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह कर लेगी तो पंडित का तो पत्ता ही कट जाएगा. अगर हिंदू महिलाओं को अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की आजादी दे दी गई तो पंडितों का घर कैसे चलेगा? लिहाजा हिंदू औरत को धर्म की बेड़ी में बांध कर रखने की साजिश को अंजाम देने के लिए लव जिहाद का डर दिखा कर कानून लाया गया है.

धार्मिक अत्याचार

लव जिहाद का  झूठ चूंकि हिंदूमुसलिम के बीच होने वाली शादियों के संदर्भ में फैलाया गया है, तो पहले इसी संदर्भ में बात करते हैं. हिंदूमुसलिम पहचान रखने वालों के बीच आमतौर पर 3 तरह से अंतरधार्मिक शादियां होती हैं. पहली, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत, जिस में प्रेमी जोड़े में से किसी को भी अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं होती और कोर्ट में स्पैशल मैरिज एक्ट के तहत उन की शादी हो जाती है. इस के अलावा धार्मिक रीतिरिवाज से भी अंतरधार्मिक शादियां होती हैं. अंतरधार्मिक शादियां चूंकि असमान धर्म वालों के बीच होती हैं, इसलिए इन में जोड़े में से किसी एक को अपना धर्म बदलना पड़ता है.

इसलाम धर्म के रीतिरिवाज से होने वाली शादी में युवक या युवती धर्म परिवर्तन कर के इसलाम के रीतिरिवाज से शादी करते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार होने वाली शादी में प्रेमी जोड़े में से कोई एक अपना धर्म परिवर्तन करता है और आर्यसमाज या किसी हिंदू रीति से शादी होती है.

उपरोक्त तीनों ही तरह से होने वाली शादियों के हजारों उदाहरण इस देश में मौजूद हैं. बौलीवुड ऐसी शादियों से भरा पड़ा है. यहां तक कि भाजपा के तमाम हिंदूवादी राग अलापने वाले नेताओं के घरों में भी इसी तरह की शादियों के उदाहरण भरे पड़े हैं. उच्चशिक्षा प्राप्त, धनी, आधुनिकता के हिमायती, पाश्चात्य संस्कृति को अपना चुके और कैरियर को महत्त्व देने वाले तमाम युवा अब धर्म के दायरों से बाहर निकल कर अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने में संकोच नहीं करते हैं.

आमतौर पर धर्म जनता के जीवन में अपनेआप में कोई खास मुद्दा नहीं है. एकसाथ रहने वाले लोग नजदीक भी आते हैं, उन के पूर्वाग्रह भी टूटते हैं और वे रोटीबेटी के बंधन में भी बंधते हैं. यह बेहद सामान्य प्रक्रिया है और इस से व्यापक जनता को कोई परेशानी भी नहीं होती. परेशानी होती है केवल कट्टरपंथियों, फासीवादियों और उन के जहरीले प्रचार से प्रभावित लोगों को, जिन्हें इस बात की चिंता ज्यादा है कि अगर गैरधर्मीय शादियां आम प्रचलन में आ गईं तो उन की अहमियत खत्म हो जाएगी.

स्पैशल मैरिज एक्ट, जिस के तहत विवाह करने पर किसी को अपना धर्म नहीं बदलना पड़ता, लोगों को वह थोड़ा जोखिमभरा लगता है. क्योंकि इस में समस्या यह होती है कि लड़केलड़की को शादी के एक महीना पहले से ही अपनी पहचान और फोटो कोर्ट में सार्वजनिक करने पड़ते हैं, जिस के चलते संघी गुंडागिरोह और प्रेमी जोड़े की राय से असहमत परिजनों को उन्हें प्रताडि़त करने का मौका मिल जाता है. कहींकहीं तो जिन परिजनों को अपने बच्चों की ऐसी शादी से कोई दिक्कत नहीं होती, वहां भी बजरंग दल, हिंदू महासभा और इन्हीं जैसा कोई नफरती गिरोह युवकयुवती की जान के पीछे लग जाता है.

ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे जब अंतरधार्मिक विवाह करने के या साथ रहने के इच्छुक प्रेमी युगलों को मौत के घाट उतार दिया गया. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्य औनर किलिंग के ऐसे मामलों से भरे पड़े हैं. इसलिए आमतौर पर चारों तरफ के दबाव से बचने का आसान रास्ता धार्मिक रीति से विवाह करना लगता है जिस में अग्रिम तौर पर पहचान सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं पड़ती और इस के बाद कोर्ट से भी शादी को रजिस्टर करा लिया जाता है.

अब तथाकथित लव जिहाद के नाम पर बने कानून के अनुसार, हरेक अंतरधार्मिक विवाह में स्थानीय प्रशासन को पहचान के साथ अर्जी देना अनिवार्य कर दिया गया है. धर्म परिवर्तन के लिए 2 महीने पहले से अर्जी देनी जरूरी है. ऐसे में प्रेमी जोड़े की पहचान सार्वजनिक होने का खतरा और भी बढ़ गया है. जैसा कि उत्तर प्रदेश के नए बने कानून के तहत 2 महीने पहले स्थानीय प्रशासन को सूचित करना होगा तथा शादी के लिए धर्मांतरण साबित होने पर गैरजमानती धाराओं के तहत 10 साल तक की कैद का प्रावधान होगा. ऐसे में हिंदूवादी संगठनों, हिंदुत्व के कथित रक्षकों को उत्पात करने, हिंसा फैलाने, दंगे करवाने, औनर किलिंग जैसी कुरीतियों को बढ़ाने का अवसर आसानी से उपलब्ध होगा.

कुल मिला कर अब हिंदू लड़कियों के लिए जीवनसाथी चुनने के हक को कुचलना और भी आसान हो जाएगा और तथाकथित लव जिहाद के नाम पर बने कानून के तहत किसी को भी निशाने पर लेना शासन, सत्ता और सांप्रदायिक गिरोहों के लिए मामूली बात होगी. वे आसानी से कहीं भी पहुंच कर हिंसा और उत्पात मचा सकेंगे. शादी स्थल को मरघट बनाते उन्हें देर न लगेगी.

लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी नागरिकों को बराबरी का दर्जा देती है. यह अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाहों को प्रोत्साहन देती है तथा इस के मार्ग में रुकावट बनने वाले लंपट तत्त्वों को दंडित करती है. लेकिन भारत में इस का उलटा हो रहा है. कहने को हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है. धर्मनिरपेक्षता का असल मतलब होता है धर्म का राजनीति और सामाजिक जीवन से पूर्ण विलगाव. लेकिन हमारे यहां सामाजिक जीवन को नरक बनाने के लिए धर्म का राजनीति में खुल कर इस्तेमाल हो रहा है. लव जिहाद के नाम पर लाया गया ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून-2020’ है, जो न केवल अंतरधार्मिक विवाहों को हतोत्साहित करेगा, बल्कि जीवन जीने के मौलिक अधिकारों को भी खत्म कर देगा.

–विभागीय लेखक द्य

 

कासिम बन गया करमवीर

 

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में शादी के 8 साल बाद एक मुसलिम व्यक्ति ने अपना धर्मांतरण किया है. 8 साल पहले उस ने हिंदू युवती से शादी की थी. अब वह हिंदू संगठनों की मदद से इसलाम छोड़ हिंदू धर्म अपना कर कासिम खान से करमवीर सिंह बन गया है. 28 वर्षीय कासिम उर्फ करमवीर सिंह का कहना है, ‘‘मु झे किसी ने मजबूर नहीं किया. मैं ने खुद ही यह फैसला लिया है.’’

8 साल पहले कासिम की मुलाकात 24 वर्षीय अनीता कुमारी से हुई थी. कासिम के पिता ने वर्कशौप के लिए अनीता का घर किराए पर लिया था. वहां मुलाकात के बाद दोनों में प्यार हो गया. दोनों ने 2012 में शादी कर ली. शादी मुसलिम रीतिरिवाज से हुई थी. अनीता का परिवार इस शादी के लिए राजी नहीं था.

शादी के एक साल बाद दंपती ने एक और शादी समारोह का आयोजन किया. इस बार यह आयोजन हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार किया गया. इस दंपती के 2 बच्चे कासिफा (7) और अयाज (4) हैं.

यूपी में धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश 2020 लागू होने के बाद कासिम ने मुसलिम धर्म छोड़ कर हिंदू धर्म अपना लिया है. कासिम ने कहा कि उसे अब सुरक्षा चाहिए क्योंकि उसे डर लग रहा है. उस ने कहा, ‘‘मैं ने जिला प्रशासन से सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला. मैं सरकार से फिर से अनुरोध करता हूं,  मु झे सुरक्षा की जरूरत है.’’

उधर उस की पत्नी अनिता का कहना है, ‘‘मु झे अपनी मुसलिम ससुराल में पति या किसी भी ससुरालीजन ने कभी भी धर्मांतरण या हिंदू रीतिरिवाजों का पालन न करने के लिए फोर्स नहीं किया. अब एक हिंदू संगठन की मदद से कासिम ने हिंदू धर्म अपनाया है. उस के ऊपर भी किसी ने दबाव नहीं बनाया है.’’

हिंदू संगठन के एक सदस्य नीरज भारद्वाज ने बताया कि उन्होंने कासिम का धर्मांतरण करवाया है. उन्होंने कहा, ‘‘उन का हिंदू धर्म में स्वागत है.’’

गौरतलब है कि इस मामले में किसी हिंदू संगठन को आपित्त नहीं हुई, किसी ने तमाशा नहीं किया और पुलिस ने भी नए कानून के तहत हस्तक्षेप नहीं किया. अगर कोई मुसलिम संगठन कासिम द्वारा धर्मांतरण पर आवाज उठाए तो सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगेगी.

 

तमतमाया केरल हाईकोर्ट

केरल की श्रुति और अनीस अहमद खुश हैं कि आखिर अदालत ने उन्हें साथ रहने की अनुमति दे दी. इस दंपती की खुशियां उस समय बिखर गई थीं जब श्रुति के पिता ने उन की रजिस्टर्ड शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया और अपनी बेटी को घर पर कैद कर के रखा. कन्नूर जिले के अनीस ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका डाली, जिस की सुनवाई करते हुए जस्टिस वी चिदम्बरेश और जस्टिस सतीश नाइनन की खंडपीठ ने उन के पक्ष में अभूतपूर्व फैसला सुनाया.

कोर्ट ने प्रेमविवाह की नैतिक और सामाजिक मान्यता पर उंगली उठाने वालों को फटकार लगाई और कहा कि प्रेम को धर्म और जाति की संकीर्णता में बांधना बंद करो. केरल में सामुदायिक सौहार्द मत बिगाड़ो.

श्रुति के साहस और धैर्य की प्रशंसा करते हुए कोर्ट ने प्रख्यात अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और कवयित्री माया एजेंलु की कुछ पंक्तियां भी उद्धृत कीं, ‘‘प्रेम नहीं पहचानता कोई अवरोध, वो पार कर लेता है बाधाएं, लांघ जाता है बाड़े, भेद देता है दीवारें, पहुंच जाता है उम्मीदों से भरे अपने गंतव्य पर.’’

कोर्ट ने संवैधानिक अधिकारों के साथसाथ नागरिक दायित्वों की याद भी दिलाई. उस ने न सिर्फ स्त्री अधिकारों पर मुहर लगाई, बल्कि निजता, मानवाधिकार, वयस्क अधिकार पर भी स्थिति स्पष्ट कर दी है. लोकतंत्र का निर्माण जिन उसूलों से होता है, कोर्ट ने उन उसूलों को अपने फैसले में पुनर्स्थापित किया है.

योगी सरकार को कोर्ट की फटकार

लव जिहाद का बवंडर खड़ा कर के देश में सांप्रदायिक उन्माद खड़ा करने की कुचेष्टा में बनाए गए नए कानून के तहत शादीशुदा जोड़ों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की घटनाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को कस कर फटकार लगाई है. सरकार के रवैये पर नाराजगी प्रकट करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘‘किसी भी शख्स को जीवनसाथी चुनने का मौलिक अधिकार है.’’

हाईकोर्ट ने कहा है कि महज अलगअलग धर्म या जाति का होने की वजह से किसी को साथ रहने या शादी करने से नहीं रोका जा सकता. 2 बालिग लोगों के रिश्ते को सिर्फ हिंदू या मुसलमान मान कर नहीं देखा जा सकता. अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ शादी करने वालों के रिश्ते पर एतराज जताने और विरोध करने का हक न तो उन के परिवार को है और न ही किसी व्यक्ति या सरकार को. अगर राज्य या परिवार उन के शांतिपूर्वक जीवन में खलल पैदा कर रहा है तो वह उन की निजता के अधिकार का अतिक्रमण है.

हाईकोर्ट ने ये बातें प्रियंका खरवार और सलामत अंसारी के विवाह के बारे में कही हैं. दरअसल, कुशीनगर की रहने वाली प्रियंका खरवार ने अपनी पसंद के सलामत अंसारी के साथ प्रेम विवाह किया था. प्रियंका ने शादी से पहले अपना धर्म छोड़ कर इसलाम धर्म अपना लिया था और वह प्रियंका से आलिया हो गई थी. इस के बाद प्रियंका के पिता ने सलामत अंसारी के खिलाफ अपहरण और पोक्सो समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया था. सलामत और प्रियंका ने इसी एफआईआर को रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. अर्जी में कहा गया था कि दोनों ने पिछले साल 19 अक्तूबर को अपनी मरजी से अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ निकाह कर लिया. दोनों पिछले एक साल से खुश रहते हुए अपना जीवन बिता रहे हैं. ऐसे में परिवार और पुलिस के लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं जो उन के निजी व शांतिपूर्ण जीवन में गैरकानूनी खलल है.

योगी सरकार की तरफ से इस अर्जी का विरोध किया गया और कहा गया कि धर्म परिवर्तन सिर्फ शादी के लिए किया गया है. हाईकोर्ट की सिंगल बैंच भी ऐसे मामलों को अवैध करार दे चुकी है. कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि जब बालिग होने पर समान लिंग के 2 लोग साथ रह सकते हैं और उन्हें कानूनी संरक्षण हासिल होता है तो अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने और शादी करने वालों का विरोध सिर्फ हिंदू और मुसलमान होने के आधार पर नहीं किया जा सकता.

अदालत ने साफतौर पर कहा कि एतराज और विरोध करने वालों की नजर में कोई हिंदू या मुसलमान हो सकता है, लेकिन कानून की नजर में अर्जी दाखिल करने वाले प्रेमी युगल सिर्फ बालिग जोड़े हैं और शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद पतिपत्नी के तौर पर साथ रह रहे हैं. कोर्ट ने धर्म बदलने वाली प्रियंका उर्फ आलिया के पिता की तरफ से पति सलामत अंसारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है.

योगी सरकार की दलील खारिज :  हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में लव जिहाद से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए योगी सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिस में हाईकोर्ट की सिंगल बैंच के फैसलों के आधार पर महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने को अवैध बताया गया था. हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच ने सिंगल बैंच से आए फैसलों पर भी असहमति जताई और कहा कि उन फैसलों में निजता और स्वतंत्रता के अधिकारों की अनदेखी की गई थी. जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की डिवीजन बैंच ने इसी आधार पर कुशीनगर में प्रेम विवाह करने वाले युवक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को भी रद्द कर दिया है.

पक्षपातपूर्ण कानून

आज पूरे देश में लव जिहाद पर कानून को ले कर चर्चा गरम है. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के बिधूना कसबे में दिल्ली की रहने वाली एक मुसलिम लड़की ने हिंदू लड़के से हिंदू परंपरा के साथ मंदिर में शादी की और दोनों धर्मसंप्रदाय, रीतिरिवाजों, सड़ीगली परंपराओं से ऊपर उठ कर एकदूजे के हो गए. इन की शादी में न बजरंग दल ने कोई उत्पात मचाया और न ही हिंदू युवा वाहिनी ने.

लड़की और लड़के दोनों के घरवाले शादी से खुश नजर आए. परिवार वालों का कहना है कि जिस में दोनों खुश, उस में वे भी खुश. उल्लेखनीय है कि औरैया जिले के बिधूना के पास के गांव का लड़का अमन दिल्ली में नौकरी करने गया था. इस दौरान अमन की जानपहचान दिल्ली की रहने वाली रेशमा से हुई और दोनों में दोस्ती हो गई. इस के बाद रेशमा और अमन एकदूसरे को चाहने लगे और दोनों ने साथ जीनेमरने का प्रण कर लिया.

जब इस की जानकारी रेशमा एवं अमन के घर वालों को हुई तो दोनों परिवारों के लोग बच्चों की खुशी के लिए उन की शादी पर राजी हो गए. औरैया के बिधूना में दोनों परिवारों की मौजूदगी में अमन और रेशमा हिंदू रीतिरिवाज से एकदूजे के हो गए.

लड़की के पिता सलीम भी अपनी बेटी की शादी से खुश हैं, उन्हें किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है. उन का कहना है कि दोनों बच्चों की खुशी में वे खुश हैं. दोनों बालिग हैं. एकदूसरे से मोहब्बत करते हैं, तो उन की शादी पर हमें क्या एतराज हो सकता है. जो लोग ऐसी शादियों पर एतराज करते हैं, दरअसल, वे मोहब्बत के दुश्मन हैं. वे देश में अमनचैन के दुश्मन हैं. वे हिंदूमुसलिम एकता और भाईचारे के दुश्मन हैं. वे हमें एक होते नहीं देखना चाहते.

मचान और 3जी विधि से दोगुना फायदा

लेखक-पिंटू मीणा पहाड़ी सहायक कृषि अधिकारी, सरमथुरा 

आज ज्यादातर किसान मचान और ३जी पद्धति को अपना रहे हैं. हमारे छोटेछोटे प्रयासों से वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा मिलता है, तो दिल खुश हो जाता है. गरमियों में अगेती किस्म की बेल वाली सब्जियों को मचान विधि से लगा कर किसान अच्छी उपज पा सकते हैं. इन की नर्सरी तैयार कर के इन की खेती की जा सकती?है. पहले इन सब्जियों की पौध तैयार की जाती है और फिर खेत में जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाए रोपण किया जाता है.

इन सब्जियों की पौध तैयार करने से पौधे जल्दी तैयार होते हैं. मचान में लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली फसलों की खेती की जा सकती है. मचान विधि से खेती करने से कई फायदे हैं. मचान में खेत में बांस या तार का जाल बना कर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुंचाया जाता है.

ये भी पढ़ें- जनवरी महीना है खास : करें खेती किसानी से जुड़े जरूरी काम

मचान का इस्तेमाल सब्जी उत्पादक बेल वाली सब्जियों को उगाने में करते हैं. मचान से 90 फीसदी फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है. मचान की खेती के रूप में सब्जी उत्पादक करेला, लौकी, खीरा, सेम जैसी फसलों की खेती की जा सकती है. बरसात में मचान की खेती फल को खराब होने से बचाती है. फसल में यदि कोई रोग लगता है, तो दवा छिड़कने में आसानी होती है. मचान के फायदे * गरमी व बरसात के दिनों में फल जमीन से लग कर खराब नहीं होता.

गरमियों के दिनों में बेल की छाया के नीचे धनिए की फसल ले कर दोगुना फायदा कमा सकते हैं.रोग और कीट का प्रकोप बहुत कम हो जाता है.  फल दिखने में बहुत आकर्षक और स्वस्थ रहता है.  फल का बाजार भाव अच्छा मिलता है.  शस्य क्रिया करने में आसानी रहती है.  उत्पादन सामान्य की तुलना में ज्यादा होता है.  इस मचान के नीचे छाया रहने वाली व कम बढ़ने वाली सब्जियों की खेती की जा सकती है.

ये भी पढ़ें- टमाटर उत्पादन की उन्नत तकनीक

किसान की प्रति इकाई क्षेत्र में ज्यादा आमदनी मिलेगी और माली हालत मजबूत रहेगी. ३जी कटिंग क्या है इस में हम मुख्य शाखा से 20-25 पत्तियां आने पर उस के टौप भाग को हटा देते हैं. उस के बाद उस में 2 शाखाएं निकलती हैं. उन में भी 20-25 पत्तियां आने पर उस को काट देते हैं. इस के अलावा जितनी भी नई शाखाएं निकलेंगी, वे सब ३जी शाखाएं कहलाएंगी और उन सब में फल आएंगे. आप एक बार इसे आजमा कर देखें, बेहतरीन नतीजे आप को मिलेंगे, मुख्य शाखा में अकसर नर पुष्प आते हैं और सहायक शाखा में अकसर मादा पुष्प आते हैं, जिस से फलों की संख्या ज्यादा रहती है.

फांस: कामरान और सुलतान अपने अब्बू से क्यों मिलना चाह रहे थे

जनवरी के दिन थे. कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. दीवार घड़ी ने थोड़ी देर पहले ही रात के 12 बजने की घोषणा की थी. कामरान और सुलतान अभी अभी सोए थे. कामरान इस वर्ष 12वीं में था और सुलतान 10वीं में. दोनों की बोर्ड की परीक्षाएं थीं. मैं ने आरंभ से ही उन में प्रतिदिन 1 घंटा अभ्यास करने की आदत डाल रखी थी.

केवल शनिवार को उन की छुट्टी होती थी. 1 घंटा अभ्यास करने के बाद वे हम लोगों के साथ मिल कर ताश या कैरम खेलते या कामिक्स पढ़ते थे. दोनों ही अपनी अपनी कक्षा में प्रथम आते थे और अपनी परीक्षाओं में वे दोनों विशेष योग्यता सूची में आएंगे, इस का हमें पूरा विश्वास था.

ये भी पढ़ें- आईना -भाग 3 : गरिमा की मां उसकी गृहस्थी क्यों बिखरने में लगी हुई थी

मैं पढ़ाई में हमेशा से कच्ची रही थी. हमारा जमाना और था. तब लड़कियों पर बहुत पाबंदियां थीं. घर से स्कूल, स्कूल से घर. न अध्यापकों से अधिक बात करो, न साथी लड़कों से मेलजोल बढ़ाओ. न कोई घर में पढ़ाने वाला था, न मार्गदर्शन करने वाला. अब्बू खेतीबाड़ी के कामों में व्यस्त रहते थे और दोनों भाई शहर के विद्यालयों में छात्रावास में रह कर पढ़ते थे.

10वीं पास किया ही था कि सलमान  से विवाह हो गया. बच्चे भी जल्दीजल्दी हो गए. सलमान अपने कारोबार के कारण अधिकतर दौरे पर रहते. मुझे मां और पिता दोनों का ही दायित्व निभाना पड़ता. मेरेबच्चे परीक्षा में अच्छे अंक लाएं, खूब पढ़ेंलिखें, इस के लिए मैं ने उन पर कभी जबरदस्ती नहीं की, बल्कि कुछ ऐसी आदतें उन में डाल दीं, जिस से वे स्वयं धीरेधीरे अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित करते गए.

ये भी पढ़ें- दुर्घटना: शालिनी अचानक रोड पर खड़े लोगों पर क्यों चिल्लाने लगी

इतना अवश्य था कि अभ्यास के समय मुझे साथ जागना पड़ता. जब तक वे पढ़ाई करते तब तक मैं सवेरे के लिए सब्जी काट कर फ्रिज में रख देती या पुस्तकें पढ़ती रहती. मार्च में परीक्षा थी. अब वे दोनों रात को 11 बजे तक पढ़ते. मैं ने आधा घंटा पहले ही दोनों को गरम दूध पीने को दिया था. उन के लेटते ही मैं भी लेट गई थी, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी.

ये भी पढ़ें- एक प्रश्न लगातार

2 दिन से सलमान ने फोन नहीं किया था. वह जहां कहीं भी होते, वहां से प्रतिदिन फोन पर बात करना उन का नियम था. इधर अब्बू की भी कोई खबर नहीं मिली थी. न जाने क्यों मन अब्बू को बहुत याद कर रहा था. मैं थोड़ी ही देर सोई होऊंगी कि घंटी की आवाज के साथ ही चौकीदार का स्वर कानों में पड़ा, ‘‘बीबीजी, तार ले लीजिए.’’

मैं ने उठ कर द्वार खोला और तार लिया. बब्बन चचा का तार था. अब्बू की हालत खराब बता कर फौरन आने के लिए लिखा था. मैं ने घड़ी पर नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. मैं ने तुरंत निर्णय ले लिया कि सवेरे 5 बजे वाली गाड़ी से निकल पड़ूंगी. चौकीदार से मैं ने बाबू और उस की पत्नी को बुलाने के लिए कहा. वह नौकरों के लिए बने मकानों की ओर गया और मैं ने कामरान को धीरे से जगाया. वह उठा और पूछने लगा, ‘‘क्या बात है, अम्मी? आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘बेटे, तुम्हारे नानाजान की तबीयत खराब है. मैं सवेरे की गाड़ी से चली जाऊं?’’

‘‘जरूर जाइए, अम्मी, नानाजान अकेले हैं,’’ वह बोला.

‘‘पर, बेटे, तुम लोगों की पढ़ाई?’’

‘‘अम्मी, हम दोनों बराबर पढ़ाई करेंगे, आप हमारी बिलकुल चिंता न करें.’’

कामरान को सुलतान की देखभाल करने को कह कर मैं ने बाबू और उस की पत्नी को घर सौंपा और थोड़ा सा सामान ले कर स्टेशन की राह ली. स्टेशन 3 किलोमीटर दूर था और सवारी मिलने की कोई संभावना नहीं थी. बाबू ने मेरा बक्सा संभाला और हम लोग निकल पड़े.

2 किलोमीटर चलने के बाद शहर दिखाई देने लगा. होटलों के चूल्हों में आग सुलगनी शुरू हो गई थी. एक रिकशा दिखाई दिया. रिकशा वाला बैठाबैठा ऊंघ रहा था. दोनों पांव लंबे कर के सीट पर फैला रखे थे. बाबू ने उसे बहुत आवाजें दीं, तब कहीं वह जागा. पर स्टेशन चलने से उस ने इनकार कर दिया, ‘‘बहुत सर्दी है,’’ कह कर वह फिर सो गया.

थोड़ी दूरी पर एक दूसरा रिकशा वाला मिला, जो होटल की भट्ठी के सामने खड़ा आग ताप रहा था. बाबू के बोलने पर उस ने चाय पिए बिना वहां से हटने से इनकार कर दिया, जबकि चाय कब बनेगी इस का कोई पता न था. गाड़ी का समय करीब था. मैं और बाबू तेजी से कदम बढ़ाने लगे. तभी एक तख्ती पर मेरी दृष्टि जा पड़ी.

ठंडी राख के ढेर के एक तरफ एक कुत्ता बेखबर सो रहा था और दूसरी तरफ रिकशा वाला एक पतली सी चादर ओढ़े सो रहा था. करीब ही रिकशा खड़ा था, जिस पर गत्ते की एक तख्ती लटक रही थी. कुछकुछ रोशनी में मैं ने पढ़ा, ‘‘आप को रिकशा की जरूरत है और मुझे पैसों की, मुझे सोता देख कर उठाने में हिचकिचाइए मत.’’

बाबू ने उसे आवाज दी. वह एक आवाज में उठ बैठा और चादर लपेट कर रखता हुआ बोला, ‘‘बैठिए, बहनजी, कहां चलना है? भावताव न करें, जो मुनासिब समझें दे दें.’’

मैं बाबू को वापस लौटने को कह कर रिकशे में बैठ गई. रास्ते में मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने यह तख्ती क्यों लगा रखी है?’’

उस की बातचीत से वह किसी अच्छे घराने का लड़का लग रहा था. मुझे उस के बारे में जानने की सहज ही उत्सुकता हुई. जो कुछ उस ने बताया वह बहुत ही आश्चर्यजनक था. वह एक साधारण गरीब परिवार से था और एक विद्यालय में चपरासी था. जो वेतन मिलता था उस में पत्नी व बच्चों का पेट बड़ी मुश्किल से भर पाता था. पिछले दिनों उस की बहन को उस के पति ने तलाक दे कर वापस मायके भेज दिया था, उसे कोई बीमारी थी, जिस के लिए रोज 15 रुपए की दवाई लानी पड़ती थी.

‘‘मेरी बहन केवल 18 वर्ष की है, बहनजी, उस ने अभी जिंदगी में देखा ही क्या है? मैं उसे मरने नहीं देना चाहता. इसलिए रात को अपने दोस्त का यह रिकशा चलाता हूं. 15 रुपए हाथ आते ही घर लौट जाता हूं, इतने रुपए न मिलें तो रिकशे पर यह तख्ती लगा कर सो जाता हूं ताकि कोई सवारी हाथ से न चली जाए.’’

मेरा मन श्रद्धा से झुक गया. मैं ने मुक्तकंठ से उस की प्रशंसा की. मन में सोचा कि लौटने पर सलमान से कह कर उसे किसी जगह चौकीदार लगवा दूंगी. उस से विदा ली तो मन में कहीं एक फांस गड़ी सी रह गई. कोई बात दिल में खटक रही थी. पर क्या, पकड़ में ही नहीं आ रही थी. गाड़ी में बैठी तो अब्बू की याद रहरह कर आने लगी.

ये भी पढ़ें- बोया पेड़ बबूल का…

मेरे दोनों बड़े भाई कनाडा और इंडोनेशिया में सिलेसिलाए कपड़ों का कारोबार करते थे. अब्बू को हर महीने नियमित रूप से पैसे भेजते और साल दो साल में आ कर मिल भी जाते. अम्मां तो बहुत चाहती थीं कि दोनों भाभियों में से कोई उन के  पास रहे, पर किसी ने भी यहां रहना पसंद न किया. बेटों से जुदाई अम्मां के लिए जानलेवा सिद्ध हुई.

अम्मां के जाते ही अब्बू नितांत अकेले रह गए. मैं उन्हें अपने पास रखना चाहती थी, पर उन्होंने बेटी के घर रहना पसंद नहीं किया. मैं और सलमान महीने दो महीने में जा कर उन से मिल आते. मैं ने हमेशा यह बात महसूस की कि जितना मेरे मिलने पर वह खुश होते, उस से कहीं ज्यादा मेरे बिछड़ने पर वह रोते. पर

मैं करती भी क्या? अपने घर, अपने

पति और बच्चों के लिए मुझे लौटना ही पड़ता.

घर पहुंची तो बाहरी द्वार खुला हुआ मिला. मैं अब्बू के कमरे की ओर बढ़ी ही थी कि बब्बन चचा की आवाज ने मेरे कदम जड़ कर दिए, ‘‘तुम तो सठिया गए हो. दवाइयां जो लाभ पहुंचाएंगी वह क्या बच्चों की याद कर सकेगी?’’

‘‘मैं कहां याद करता हूं, बब्बन?’’ अब्बू की आवाज बहुत धीमी थी.

‘‘क्या मैं सुनता नहीं? नींद में बेटों से, पोतेपोतियों से बातें करते रहते हो. क्या तुम्हारे याद करने से वे लोग तुम्हारे पास लौट आएंगे?’’

बब्बन चचा की बात में वजन था. इसीलिए अब्बू ने शायद अपनी कमजोरी स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘बब्बन, दोनों बच्चे जब छोटे थे तब उन्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाता था और सोचता था कि जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा तो ये दोनों बच्चे दोनों तरफ से थाम कर मुझे चलाएंगे. वे कपड़े गीले कर देते थे तो सोचता था कि मेरी बीमारी में ये ही हाथ कभी मेरे कपड़े बदलेंगे. अपने हाथों से छोटेछोटे कौर बना कर उन के मुंह में देता था और सोचता था ये ही बच्चे बड़े हो कर मुझे दवा पिलाएंगे…’’

‘‘बस करो, मेरे दोस्त,’’ बब्बन चचा की आवाज भर्रा गई, ‘‘इनसान को पेड़ लगा कर स्वयं फल खाने की इच्छा नहीं करनी चाहिए. आज का जमाना ऐसा है कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना, मांबाप को कर्तव्य समझ कर करना चाहिए. बच्चों से उन के कर्तव्य की बात करना ही गलत है. दोस्त, मेरा खयाल है इस प्रकार एकांत में पड़े रहने से कहीं अच्छा है कि तुम अपनी बेटी के पास चले जाओ.’’

अब्बू बहुत देर तक कुछ नहीं बोले. उन का उत्तर सुनने के लिए मैं बेताब हो गई. बहुत देर बाद वह बोले, ‘‘बिटिया ने तो मुझ से कई बार कहा पर मुझे अच्छा नहीं लगता दामाद के घर रहना, इसीलिए इनकार करता रहा. अब मैं स्वयं उस से कैसे कहूं? बब्बन, बिटिया के बच्चे मुझे चाहते भी बहुत हैं. मैं यहां नहीं रहना चाहता पर अब बेटी से कह भी तो नहीं सकता.’’

‘‘मैं बात करूंगा बिटिया से,’’ बब्बन चचा बोले तो अब्बू ने तड़प कर उन्हें रोक दिया, ‘‘नहीं, ऐसा न करना, बब्बन, बेटी जब ससुराल जाती है तो मांबाप से संबंध रखने में उसे बड़ा चौकस रहना पड़ता है. उसे मायके की इज्जत रखने के साथ ससुराल की इज्जत भी निभानी पड़ती है. बात रुपएपैसे की नहीं. बेटे मुझे कितना रुपया भेजते हैं, पर मैं बैंक से निकालता हूं कभी? पड़े रहें, उन्हीं के काम आएंगे. मैं बेटों से अपनी व्यथा नहीं कहता. बेटी तो ससुराल की इज्जत है, उस से क्या कहूं?’’

मौन के वे क्षण न जाने कितने लंबे हो गए. मैं कोई आहट किए बिना खड़ी थी और भीतर अब्बू और बब्बन चचा मौन भाषा में बात कर रहे थे. कोई 40 मिनट के बाद मैं अपने हवास में लौटी और कमरे में दाखिल हो गई.

‘‘अरे, बिटिया, आ गई,’’ बब्बन चचा के स्वर से अब्बू की आंख खुल गई. मैं उन के पास बैठ कर रोने लगी, वे सभी बातें याद कर जो अभी पिछले 40 मिनट से सुन रही थी. जब बहुत देर तक मेरा रोना नहीं रुका तो अब्बू भी घबरा गए, ‘‘क्या बात है, बिटिया? क्यों इतना रोए जा रही है?’’

‘‘अब्बू, आप के दामाद और बच्चों ने मुझे घर से निकाल दिया है,’’ मैं ठीक ऐसे ही बोली जैसे कोई मंझी हुई अभिनेत्री किसी फिल्म में कहा करती है.

‘‘क्या कह रही है, बेटी?’’ अब्बू एकदम घबरा गए.

मुझे डर लगा कि कहीं सदमा न लग जाए उन्हें, तुरंत बनावटी रुलाई रोते हुए बोली, ‘‘हां, अब्बू, उन लोगों ने कहा है, तुम्हारे अब्बू वहां अकेले बीमार पड़े रहते हैं और मैं ठाट से रहती हूं. इस के लिए मुझे शरम आनी चाहिए.’’

‘‘अरे वाह, यह भी कोई बात हुई,’’ अब्बू सचमुच हैरान थे.

‘‘मुझ से कहा है अपने अब्बू को ले कर आओगी तो घर में घुसने देंगे, नहीं तो नहीं.’’ मैं ने बच्चों की तरह ठुनकते हुए कहा, ‘‘अब्बू, आप को कितनी बार कहा है, मेरे साथ चल कर रहिए. पर आप सुनते ही नहीं. क्या आप मुझ से मेरा घर छुड़वा देंगे? यहां सब लोग ताने देते हैं. मेरी सास कहती है, ‘जो अपने बाप की नहीं हुई वह सासससुर की क्या होगी? जो बाप की सेवा नहीं करती वह बेटी क्या हुई?’’’

अब्बू किसी सोच में पड़ गए, ‘‘बिटिया, सच बता, कामरान और सुलतान मेरी याद करते हैं?’’

‘‘अरे अब्बू, उन्हीं दोनों ने तो अपने अब्बा को बहकाया है. एक दिन बोले, ‘हम दोनों भी बड़े हो कर आप लोगों को अकेला छोड़ देंगे.’ यह सुन कर आप के दामाद डर गए और मुझे यहां भेज दिया. तो फिर आप क्या कहते हैं, अब्बू?’’ मैं ने अब्बू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘बेटी, बेटों के होते हुए मैं बेटी के घर रहूं यह अच्छा नहीं लगता.’’ अब्बू का मन नहीं मान रहा था.

मेरा मन पुन: भर आया, ‘‘ठीक है, अब्बू, हमेशा के लिए न सही, पर उस समय तक मेरे घर चल कर रहिए जब तक बड़े भैया आप को लेने नहीं आ जाते.’’

‘‘क्या? बब्बू आ रहा है यहां? कब?’’ अब्बू भावविह्ल हो कर बोले.

‘‘मैं ने बड़े भैया, छोटे भैया दोनों को पत्र लिखा था. बड़े भैया अगले महीने आ कर आप को अपने साथ ले जाएंगे. फिर पता नहीं कब आप की सेवा का अवसर मिले, इसलिए तब तक मेरे घर चल कर रहिए. 20-22 दिन की ही तो बात है.’’

ये भी पढ़ें- कशमकश

अब्बू बब्बन चचा का सहारा ले कर उठ बैठे. बब्बन चचा मेरी ओर यों देख रहे थे जैसे वह मेरे मन पर टंगी उस तख्ती को स्पष्ट देख रहे हों जिस पर लिखा है- ‘‘मुझे पितृछाया की जरूरत है.’’

रिकशे वाले से मिलने के बाद से जो फांस मन में गड़ कर पीड़ा पहुंचा रही थी वह अब निकल चुकी थी.

तो क्या सच में सीरियल ‘तारक मेहता’ में हो जाएंगी पोपाटलाल की शादी

यह बात कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि तारक मेहता का उल्टा चश्मा लगभग हर घर में देखा जाने वाला शो है. इस शो को लोग खूब पसंद भी करते हैं. ऐसे में इस शो के सारे कलाकार का किरदार मजेदार होता है. लेकिन पोपाटलाल का किरदार सभी को खूब पसंद आता है.

पिछले 12 साल से पोपोट लाल अपनी शादी को लेकर चर्चा में बने रहते हैं उन्हें कोई लड़की ही नहीं मिलती जो वह शादी कर पाएं लेकिन इस साल पोपाट लाल को देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि पोपोट लाल शादी के सात फेरे ले पाएंगे.

ये भी पढ़ें- “स्टार भारत” के सीरियल “सावधान इंडिया f.i.r.” सीरीज में अब मानिनी मिश्रा मुख्य किरदार में नजर आएंगी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shyam Pathak (@shyampathakpopu)

दरअसल, सीरियल में ट्विस्ट आ गया है . एक बुलबुल  की लड़की शादी की तैयारी कर रही है. बुलबुल एक गांव की लड़की है. जो अपे ब्यॉफ्रेंड से शादी करना चाहती है. लेकिन बुलबुल के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं होते हैं. जिसके बाद से वह शहर भागकर आ जाती है.

ये भी पढ़ें- राज प्रीतम मोरे की लघु फिल्म ” खीसा” (पॉकेट) का भारत के 51 अंतर्राष्ट्रीय

पोपाट लाल को अपना पति बनाने का प्लान करती है और कहती है कि कुछ दिन के लिए मेरे पति बन जाओ जिसके बाद से सोसायटी के लोगों को लगता है कि अब पोपाट लाल की शादी हो ही जाएंगी पूरी सोसायटी वाले धूम मचाना शुरू कर देते हैं.

ये भी पढ़ें- रामगोपाल वर्मा के खिलाफ “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज

अब जब पोपोट लाल बारात लेकर आते हैं तो टिप्पू सेना पोपाट लाल को मंडप से हटा देते हैं और उनकी जगह राहुल को बैठा दिया जाता है . जिससे पोपाट लाल फिर से कुंवारे रह जाते हैं. अब देखना है कि जब सोसायटी वाले को इस बात का पता चलेगा तो क्या होगा उनका रिएक्शन .

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें