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मौनपालन से आमदनी बढ़ाएं

लेखक-  डा. अजय कुमार, वैज्ञानिक (कृषि प्रसार)

मधुमक्खीपालन एक ऐसा कारोबार है, जिसे दूसरे धंधों से कम धन, कम श्रम और कम जगह पर किया जा सकता है. मधुमक्खीपालन से मौनपालकों को शहद हासिल होता है, साथ ही साथ मधुमक्खियों के जरीए परपरागण के चलते फसलों और औद्योगिक फसलों से अच्छी उपज होती है.

भारतीय चिकित्सा पद्धति में शहद का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस में रोगनाशक और स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं. यही वजह है कि भारत में मधुमक्खीपालन पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाता है.
मधुमक्खीपालन को छोटे लैवल पर और व्यवसाय के रूप में भी अपनाया जा सकता है. इस के लिए मौनपालकों को आधुनिक  व वैज्ञानिक तरीके से अपनाने के लिए सभी पहलुओं की अच्छी जानकारी होनी चाहिए.

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मधुमक्खीपालन प्रबंध
* मौनगृह का निरीक्षण 8-10 दिन के आसपास करते रहना चाहिए.
* इस के लिए मुंहरक्षक जाली पहन कर हाथों में दस्ताने पहन कर ऊपरी ढक्कन हटाते हैं और उलट कर नीचे साइड में रख देते हैं. उस के बाद मधुखंड की चौखट की जांच करते हैं.
* जांच करते हुए जांच करने वाले को सादा कपड़ों में होना चाहिए. चटकीले या भड़कीले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए.
* मधुखंड की जांच में देखते हैं कि किसकिस चौखट में शहद है.
* जिन चौखटों में शहद 70-80 फीसदी तक शील्ड है, उस फ्रेम को निकाल कर उस की मधुमक्खियां मधुखंड में ही झाड़ देते हैं.
* इस के बाद शील्ड मधु छत्ते को स्क्रेयर या चाकू की मदद से खरोंच कर बाहर करते हैं व चौखट को दोबारा मधुखंड में रख देते हैं.
* मधुखंड की जांच करने के बाद मधुखंड को उलटा रखे हुए ऊपरी ढक्कन के ऊपर रख देते हैं व इस के बाद शिशुखंड की जांच करते हैं. शिशुखंड की जांच
* रानी का निरीक्षण : सब से पहले शिशु खंड की विभिन्न चौखटों में रानी को देखा जाता है.
* रानी सब से लंबी उदर वाली सुनहरे रंग की होती है, जिस के चारों तरफ श्रमिक मधुमक्खी साथसाथ चलती हैं.

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* रानी की पहचान के बाद देखा जाता है कि रानी को कोई चोट तो नहीं है.
* साथ ही, कोषों में देख कर पता लगाया जाता है कि रानी अंडे दे रही है या नहीं. अगर रानी बूढ़ी हो गई हो या अंडे नहीं दे रही है हो या फिर दुर्घटना में रानी की मौत हो गई हो तो तकनीक के द्वारा रानी बनाई या दी जा सकती है.

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* जब किसी मौनवंश में रानी न हो, तब दूसरे मौनवंश, जिस में रानी कोष तैयार हो (रानी कोष मूंगफली के आकार का कोष होता है) उस रानी कोष को ऊपर से छत्ता समेत काट कर जिस मौनवंश में देना हो, उन में 2 छत्तों के बीच में दे देना चाहिए. इस प्रक्रिया को रानी कोष देना कहते हैं.

इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डा. अजय कुमार के मोबाइल 9450306419 पर संपर्क करें .

चक्रव्यूह : ईमानदार सुशील के दामन पर किसने लगाया था कलंक 

यौन दुराचार के आरोप में निलंबन, धूमिल सामाजिक प्रतिष्ठा और एक लंबी विभागीय जांच प्रक्रिया के बाद निर्दोष साबित हो कर फिर बहाल हुए सुशील आज पहली बार औफिस पहुंचे. पूरा स्टाफ उन के सम्मान में खड़ा हो गया, मगर उन्होंने किसी की तरफ भी नजर उठा कर नहीं देखा और चपरासी के पीछेपीछे सीधे अपने केबिन में चले गए. आज उन की चाल में पहले सी ठसक नहीं थी. वह पुराना आत्मविश्वास कहीं खो सा गया था.

कुरसी पर बैठते ही उन की आंखों में नमी तैर गई. उन के उजले दामन पर जो काले दाग लगे थे वे बेशक आज मिट गए थे मगर उन्हें मिटातेमिटाते उन का चरित्र कितना बदरंग हो गया, यह दर्द सिर्फ भुक्तभोगी ही जान सकता है.

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कितना गर्व था उन्हें अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर, बहुत भरोसा था अपने व्यवहार की पारदर्शिता पर. हां, वे काम में सख्त और वक्त के पाबंद थे. मगर यह भी सच था कि अपने स्टाफ के प्रति बहुत अपनापन रखते थे. वे कितनी बड़ी खुशफहमी पाले हुए थे अपने दिल में कि उन का स्टाफ भी उन्हें बहुत प्यार करता है. तभी तो उन्हें अपने चपरासी मोहन की बातों पर जरा भी यकीन नहीं हुआ था जब उस ने रजनी और शिखा के बीच हुई बातचीत ज्यों की त्यों सुना कर उन्हें खतरे से आगाह किया था. उन्हें आज भी वह सब याद है जो मोहन ने उस दिन दोनों की बातें लगभग फुसफुसा कर कही थीं…

‘इन सुशील का भी न, कुछ न कुछ तो इलाज करना ही पड़ेगा. जब से डिपार्टमैंट में हेड बन कर आए हैं, सब को सीट से बांध कर रख दिया है. मजाल है कि कोई लंचटाइम के अलावा जरा सा भी इधरउधर हो जाए,’ शिखा की टेबल पर टिफिन खोलते हुए रजनी ने अपनी भड़ास निकाली.

‘हां यार, विमल सर के टाइम में कितने मजे हुआ करते थे. बड़े ही आराम से नौकरी हो रही थी. न सुबह जल्दी आने की हड़बड़ाहट और न ही शाम को 6 बजे तक सीट पर बैठने की पाबंदी. अब तो सुबह अलार्म बजने के साथ ही मोबाइल में सुशील का चेहरा दिखाई देने लगता है,’ शिखा ने रजनी की हां में हां मिलाते हुए उस की बात का समर्थन किया.

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‘याद करो, कितनी बार हम ने औफिस से बंक मार कर मैटिनी शो देखा है, ब्यूटीपार्लर गए हैं, त्योहारों पर सैल में शौपिंग के मजे लूटे हैं. और तो और, औफिसटाइम में घरबाहर के कितने ही काम भी निबटा लिया करते थे. अब तो बस, सुबह साढ़े 9 बजे से शाम 6 बजे तक सिर्फ फाइलें ही निबटाते रहो. लगता ही नहीं कि सरकारी नौकरी कर रहे हैं,’ रजनी ने बीते हुए दिनों को याद कर के आह भरी.

‘और हां, सुशील सर पर तो तुम्हारी आंखों का काला जादू भी काम नहीं कर रहा, है न,’ शिखा ने जानबूझ कर रजनी को छेड़ा?

‘सही कह रही हो तुम. विमल सर तो मेरी एक मुसकान पर ही फ्लैट हो जाते थे. सुशील को तो यदि बांहोें में भर के चुंबन भी दे दूं न, तब भी शायद कोई छूट न दें,’ रजनी ने ठहाका लगाते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली.

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‘शिखा मैडम, आप को साहब ने याद किया है,’ तभी मोहन ने आ कर कहा था.

‘अभी आती हूं,’ कहती हुई शिखा ने अपना टिफिन बंद किया और सुशील के चैंबर की तरफ चल दी.

‘साहब का चमचा,’ कह कर रजनी भी बुरा सा मुंह बनाती हुई अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

सुशील को एकएक बात, एकएक घटना याद आ रही थी. रजनी उन के औफिस में क्लर्क है. बेहद आकर्षक देहयष्टि की मालकिन रजनी को यदि खूबसूरती की मल्लिका भी कहा जाए तो भी गलत न होगा. उस की मुखर आंखें उस के व्यक्तित्व को चारचांद लगा देती हैं. रजनी को भी अपनी इस खूबी का बखूबी एहसास है और अवसर आने पर वह अपनी आंखों का काला जादू चलाने से नहीं चूकती.

मोहन ने ही उन्हें बताया था कि 3 साल पहले जब रजनी ने ये विभाग जौइन किया था तब प्रशासनिक अधिकारी मिस्टर विमल उस के हेड थे. शौकीनमिजाज विमल पर रजनी की आंखों का काला जादू खूब चलता था. बस, वह अदा से पलकें उठा कर उन की तरफ देखती और उस के सारे गुनाह माफ हो जाते थे.

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विमल ने कभी उसे औफिस की घड़ी से बांध कर नहीं रखा. वह आराम से औफिस आती और अपनी मरजी से सीट छोड़ कर चल देती. हां, जाने से पहले एक आखिरी कौफी वह जरूर मिस्टर विमल के साथ पीती थी. उसी दौरान कुछ चटपटी बातें भी हो जाया करती थीं. मिस्टर विमल इतने को ही अपना समय समझ कर खुश हो जाते थे. रजनी की आड़ में शिखा समेत दूसरे कर्मचारियों को भी काम के घंटों में छूट मिल जाया करती थी, इसलिए सभी रजनी की तारीफें करकर के उसे चने के झाड़ पर चढ़ा रखते थे.

लेकिन रजनी की आंखों का काला जादू ज्यादा नहीं चला क्योंकि मिस्टर विमल का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह सुशील उन के बौस बन कर आ गए. दोनों अधिकारियों में जमीनआसमान का फर्क. सुशील अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार थे और साथ ही, वक्त के भी बहुत पाबंद, औफिस में 10 मिनट की भी देरी न तो खुद करते हैं और न ही किसी स्टाफ की बरदाश्त करते. शाम को भी 6 बजे से पहले किसी को सीट नहीं छोड़ने देते.

जैसा कि अमूमन होता आया है कि लंबे समय तक मिलने वाली सुविधाओं को अधिकार समझ लिया जाता है. रजनी को भी सुशील के आने से कसमसाहट होने लगी. उन की सख्ती उसे अपने अधिकारों का हनन महसूस होती थी. उसे न तो जल्दी औफिस आने की आदत थी और न ही देर तक रुकने की. उस ने एकदो बार अपनी अदाओं से सुशील को शीशे में उतारने की कोशिश भी की मगर उसे निराशा ही हाथ लगी. सुशील तो उसे आंख उठा कर देखते तक नहीं थे. फिर? कैसे चलेगा उस की आंखों का काला जादू? इस तरह तो नौकरी करनी बहुत मुश्किल हो जाएगी. रजनी की परेशानी बढ़ने लगी तो उस ने शिखा से अपनी परेशानी साझा की थी. तभी मोहन ने उन की बातें सुन ली थीं और सुशील को आगाह किया था.

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उन्हीं दिनों विधानसभा का मौनसून सत्र शुरू हुआ था. इन सत्रों में विपक्ष द्वारा सरकार से कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं और संबंधित सरकारी विभाग को उन के जवाब में अपने आंकड़े पेश करने पड़ते हैं. साथ ही, जब तक उस दिन का सत्र समाप्त नहीं हो जाता,

तब तक उस विभाग के सभी अधिकारियों व उन से जुड़े कर्मचारियों को औफिस में रुकना पड़ता है. हां, देरी होने पर महिला कर्मचारियों को सुरक्षित उन के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जरूर विभाग की होती है. इस बाबत सुशील भी हर रोज उन के लिए कुछ टैक्सियों की एडवांस में व्यवस्था करवाते थे.

रजनी के अधिकारक्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण विकास योजनाओं की जानकारी वाली फाइलें थीं. इसलिए सुशील की तरफ से उसे खास हिदायत थी कि वह बिना उन की इजाजत के औफिस छोड़ कर न जाए. और फिर उस दिन जो हुआ उसे भला वे कैसे भूल सकते हैं.

‘साहब ने आज आप को फाइलों के साथ रुकने के लिए कहा है,’ मोहन ने जैसे ही औफिस से निकलने के लिए बैग संभालती रजनी को यह सूचना दी, उस के हाथ रुक गए. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और सुशील के चैंबर की तरफ बढ़ गई.

‘सर, आज मेरे पति का जन्मदिन है, प्लीज आज मुझे जल्दी जाने दीजिए. मैं कल देर तक रुक जाऊंगी,’ रजनी ने मिन्नत की.

‘मगर मैडम, हमारे विभाग से जुड़े प्रश्न तो आज के सत्र में ही पूछे जाएंगे. कल रुकने का क्या फायदा? लेकिन आप फिक्र न करें, जैसे ही आप का काम खत्म होगा, हम तुरंत आप को टैक्सी से जहां आप कहेंगी वहां छुड़वा देंगे. अब आप जाइए और जल्दी से ये आंकड़े ले कर आइए,’ सुशील ने उस की तरफ एक फाइल बढ़ाते हुए कहा. रजनी कुछ देर तो वहां खड़ी रही मगर फिर सुशील की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर निराश सी चैंबर से बाहर आ गई.

‘सर, क्या मैं आप के मोबाइल से एक फोन कर सकती हूं? अपने पति को देर से आने की सूचना देनी है, मैं जल्दबाजी में आज अपना मोबाइल लाना भूल गई,’ रजनी ने संकोच से कहा.

‘औफिस के लैंडलाइन से कर लीजिए,’ सुशील ने उस की तरफ देखे बिना ही टका सा जवाब दे दिया.

‘लैंडलाइन शायद डेड हो गया है और शिखा भी घर चली गई. पर

खैर, कोई बात नहीं, मैं कोई और व्यवस्था करती हूं,’ कहते हुए रजनी वापस मुड़ गई.

‘यह लीजिए, कर दीजिए अपने घर फोन. और हां, मेरी तरफ से भी अपने पति को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीजिएगा,’ सुशील ने रजनी को

अपना मोबाइल थमा दिया और फिर से फाइलों में उलझ गए. रजनी उन

का मोबाइल ले कर अपनी सीट पर आ गई. थोड़ी देर बाद उस ने मोहन के साथ सुशील का मोबाइल वापस भिजवा दिया और फिर अपने काम में लग गई.

‘रजनीजी, आज आप अभी तक औफिस नहीं आईं?’ दूसरे दिन सुबह लगभग 11 बजे सुशील ने रजनी को फोन किया.

‘सर, कल आप के साथ रुकने से मेरी तबीयत खराब हो गई. मैं 2-4 दिनों तक मैडिकल लीव पर रहूंगी, रजनी ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या हुआ?’ सुशील के शब्दों में चिंता झलक रही थी.

‘कुछ खास नहीं, सर. बस, पूरी बौडी में पेन हो रहा है. रैस्ट करूंगी तो ठीक हो जाएगा. मैं अलमारी की चाबियां शिखा के साथ भिजवा रही हूं. शायद आप को कुछ जरूरत पड़े,’ कह कर रजनी ने अपनी बात खत्म की.

2 दिनों बाद सुशील के पास महिला आयोग की अध्यक्ष सुषमा का फोन आया जिसे सुन कर सुशील के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. रजनी ने उन पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था. रजनी ने अपने पक्ष में सुशील द्वारा भेजे गए कुछ अश्लील मैसेज और एक फोनकौल की रिकौर्डिंग उन्हें उपलब्ध करवाई थी. सुशील ने लाख सफाई दी, मगर सुषमा ने उन की एक  न सुनी और रजनी की लिखित शिकायत व सुबूतों को आधार बनाते हुए यह खबर हर अखबार व न्यूज चैनल वालों को दे दी. सभी समाचारपत्रों ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया.

चूंकि खबर एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ी थी और वह भी ऐसे विभाग का जोकि खास महिलाओं की बेहतरी के लिए ही बनाया गया था, सो सत्ता के गलियारों में भूचाल आना स्वाभाविक था. न्यूज चैनलों पर गरमागरम बहस हुई. महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर खामियों को ले कर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरा गया. सुशील के घर के बाहर महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया. सरकार से उन्हें बरखास्त करने की पुरजोर मांग की गई.

सरकार ने पहले तो अपने अधिकारी का पक्ष लिया मगर बाद में जब रजनी के मोबाइल में भेजे गए सुशील के अश्लील संदेश और फोनकौल की रिकौडिंग मीडिया में वायरल हुए तो सरकार भी बैकफुट पर आ गईर् और तुरंत प्रभाव से सुशील को सस्पैंड कर के एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक महिला प्रशासनिक अधिकारी उपासना खरे को जांच अधिकारी बनाया गया.

उपासना की छवि एक कर्मठ और ईमानदार अधिकारी की रही थी. उसे इस से पहले भी ऐसी कई जांच करने का अनुभव था. साथ ही, एक महिला होने के नाते रजनी उस से खुल कर बात कर सकेगी, शायद उसे जांच अधिकारी नियुक्त करने के पीछे सरकार की यही मंशा रही होगी.

इधर सुशील के निलंबन को रजनी अपनी जीत समझ रही थी. उस ने एक दिन बातों ही बातों में शेखी मारते हुए शिखा के सामने सारे घटनाक्रम को बखान कर दिया तो शिखा को सुशील के लिए बहुत बुरा लगा. उधर शर्मिंदगी और समाज में हो रही थूथू के कारण सुशील ने अपनेआप को घर में कैद कर लिया.

उपासना ने पूरे केस का गंभीरता से अध्ययन किया. सुशील और रजनी के अलगअलग और एकसाथ भीबयान लिए. दोनों के पिछले चारित्रिक रिकौर्ड खंगाले. पूरे स्टाफ से दोनों के बारे में गहन पूछताछ की और सुशील के पिछले कार्यालयों से भी उन के व्यवहार व कार्यप्रणाली से जुड़ी जानकारी जुटाई.

मोहन और शिखा से बातचीत के दौरान अनुभवी उपासना को रजनी की साजिश की भनक लगी और उन्हीं के बयानों को आधार बनाते हुए उस ने रजनी को पूछताछ के लिए दोबारा बुलाया. इस बार जरा सख्ती से बात की. थोड़ी ही देर के सवालजवाबों में रजनी उलझ गई और उस ने सारी सचाई उगल दी.

‘मैं ने औफिस के लैंडलाइन फोन की पिन निकाल कर उसे डेड कर दिया. फिर बहाने से सुशील का मोबाइल लिया और उस से अपने मोबाइल पर कुछ अश्लील मैसेज भेजे. दूसरे दिन जब सर ने मुझे फोन किया तो मैं ने उन की बातों के द्विअर्थी जवाब देते हुए उस कौल को रिकौर्ड कर लिया और फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए सारे सुबूत देते हुए महिला आयोग से उन की शिकायत कर दी. नतीजतन, वे सस्पैंड हो गए. इस कांड से सबक लेते हुए नए अधिकारी भी मुझ से दूरदूर रहने लगे और मुझे फिर से मनमरजी से औफिस आनेजाने की आजादी मिल गई,’ रजनी ने उपासना से माफी मांगते हुए यह सब कहा. अब यह केस शीशे की तरह बिलकुल साफ हो गया.

‘रजनी, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ने ऐसी गिरी हुई हरकत कर के महिलाओं का सिर शर्म से नीचा कर दिया. तुम ने अपने महिला होने का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर के महिला जाति के नाम पर कलंक लगाया है. तुम्हें इस की सजा मिलनी ही चाहिए…’ उपासना ने रजनी को बहुत ही तीखी टिप्पणियों के साथ

दोषी करार दिया और सुशील को बहाल करने की सिफारिश की. उपासना ने अपनी जांच रिपोर्ट में रजनी को बतौर सजा न सिर्फ शहर बल्कि राज्य से भी बाहर स्थानांतरण करने की अनुशंसा की.

मामला चूंकि सरकार के उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा था और आरोप भी बहुत संगीन थे, इसलिए मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत स्तर पर गुपचुप तरीके से भी मामले की जांच करवाई और आखिरकार, उपासना की जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए सुशील को बहाल करने के आदेश जारी हो गए, हालांकि उन का विभाग जरूर बदल दिया गया था. रजनी का ट्रांसफर दिल्ली से लखनऊ कर दिया गया.

रजनी ने कई बार मौखिक व लिखित रूप से विभाग में अपना माफीनामा पेश किया, मगर आरोपों की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने उस का प्रार्थनापत्र ठुकरा दिया और आखिरकार रजनी को लखनऊ जाना पड़ा.

आज भले ही सुशील अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से बरी हो चुके हैं मगर महिलाओं को ले कर एक अनजाना भय उन के भीतर घुस गया है. महिलाओं के प्रति उन के अंदर जो एक स्वाभाविक संवेदना थी उस की जगह कठोरता ने ले ली. वे शायद जिंदगीभर यह हादसा न भूल पाएं कि महज काम के घंटों में छूट न देने की कीमत उन्हें क्याक्या खो कर चुकानी पड़ी.

सुशील ने मुख्य सचिव को पत्र लिख कर अपील की कि या तो

उन के अधीन कार्यरत सभी महिलाओं को दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाए या फिर उन्हें ही ऐसे सैक्शन में लगा दिया जाए. जहां महिला कर्मचारी न हों. आखिर दूध का जला छाछ भी फूंकफूक कर पीता है.

स्वाभाविक है यह मांग नहीं मानी गई और सालभर बाद सुशील ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना छोटा सा कंसल्ंिटग का व्यवसाय शुरू कर दिया. एक औरत ने इस तरह उन की कमर तोड़ दी कि अब वे पत्नी व बेटी से भी आंख नहीं मिला पाते हैं.

मेनोपौज: ढलती उम्र में ऐसे रखें अपना ख्याल

शाम के 7 बजे थे. 45 वर्षीय वर्षा को एक ओर घर जाने की जल्दी थी तो दूसरी ओर बौस को रिपोर्ट भी देनी थी. वह एक निजी कंपनी में बतौर मार्केटिंग मैनेजर काम करती थी. उस ने जल्दी से सारी रिपोर्ट पर एक उड़ती नजर डाली और फटाफट बौस के चैंबर में जा कर रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट को देखते ही बौस गरज उठे. रिपोर्ट में कई सारी गलतियां थीं. वर्षा को डांटते हुए उन्होंने कहा कि आजकल कुछ समय से उस के काम में कुछ न कुछ गलती नजर आती है. कहीं उस की याददाश्त तो कम नहीं हो गई? उसे बादाम खाने चाहिए जैसे व्यंग्य भी किए.

वर्षा को स्वयं भी लगा कि वह कितनी भी सावधानी बरते, उस से कोई न कोई गलती हो ही जाती है. क्या सचमुच उस की याददाश्त कमजोर हो गई है? ऐसे खयाल आते ही उस की आंखों में आंसू भर आए. पर वह अपनी परेशानियां किसे और किस तरह समझाती?

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48 वर्षीय रश्मि अपने बौस के साथ बैठ कर एसी चैंबर में पूरे दिन के हिसाब का लेखाजोखा कर रही थी. उस के सीनियर अफसर सहायता कर रहे थे. उसी वक्त बौस ने देखा, हिसाब की एंट्रियों के पिं्रटों पर रश्मि के पसीने की बूंदें गिर रही थीं. पिं्रट बिगड़ने की वजह से उन्होंने रश्मि को डांट दिया.

वर्षा या रश्मि की जैसी परेशानियों का सामना ज्यादातर औरतों को अकसर करना ही पड़ता है. आम लोगों को इस की जानकारी न होने से वे औरतों की इस प्रकार की परेशानियों को समझ नहीं पाते. उन के साथ हमदर्दी से पेश आने के बजाय उन के साथ बेअदबी भरा बरताव करते हैं. 40 या 45 की उम्र में ज्यादातर महिलाएं किसी न किसी समस्या का सामना करती दिखती हैं. हालांकि 21वीं सदी में महिलाओं की औसतन आयु 80+ मानी जाती है.

एक अनुमान के अनुसार, 2025 के साल में विश्व की कुल आबादी के 70 प्रतिशत लोग 60 से ऊपर की उम्र के होंगे. इन में स्त्रियों की संख्या बहुत ज्यादा होगी. इतनी लंबी आयु को यदि महिलाएं स्वास्थ्य की दृष्टि से तंदुरुस्त रखें तो न सिर्फ परिवार और समाज का भला होगा, वे स्वयं भी सुखी रहेंगी.

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महिलाओं पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी होने के कारण उन की तकलीफों के चलते पूरे परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हालांकि हार्मोनल बदलाव के कारण 40 की उम्र के बाद स्वस्थ रहने के लिए महिलाओं को एक निश्चित कार्यक्रम तैयार करना होता है. इस के तहत उन के परिवार का सहयोग अत्यंत आवश्यक हो जाता है.

इस उम्र के दौरान अंत:स्राव के बदलाव से नई हड्डियां नहीं बनतीं और जो हैं उन की घिसाई ज्यादा बढ़ जाती है. इसी दौरान  हड्डियों में छिद्र बनते हैं जिन्हें मैडिकल लैंग्वेज में औस्टियोपोरोसिस कहा जाता है. एक सर्वे के अनुसार, भारत में 6 करोड़ व्यक्ति इस रोग से पीडि़त हैं. उन में 5 करोड़ महिलाएं हैं. प्रतिवर्ष औस्टियोपोरोसिस की वजह से होने वाले फ्रैक्चर्स की तादाद हार्ट अटैक, लकवा और सीने के कैंसर की तादाद से कई गुना ज्यादा है.

महिलाओं में 35 की उम्र के बाद जोरदार हार्मोनल बदलाव होते हैं. हार्मोंस  असंतुलित होने से महिलाओं की पूरी जिंदगी असंतुलित हो जाती है. आम लोग शायद इस स्थिति को मेनोपौज पीरियड के नाम से जानते हैं, पर सचाई यह है कि यह जानकारी आधीअधूरी है.

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हकीकत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में हार्मोनल बदलाव लगातार होते रहते हैं. इन सारी समस्याओं की जड़ में जिम्मेदार तत्त्व इस्ट्रोजन है. जन्म के बाद 10 से 12 साल तक लड़केलड़कियों में विशेष भेद देखने को नहीं मिलता. परंतु लड़की के 12 साल की होने पर मासिक धर्म की शुरुआत के बाद से भिन्नता दिखाई देती है. उम्र के इस पड़ाव को मोनार्की कहा जाता है.

लड़के या लड़कियों में जन्म के 12-13 साल के बाद होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण लड़कियां शारीरिक व मानसिक ढंग से अलग दिखाई देती हैं. उन का शारीरिक विकास तेजी से होता है, बालों का जत्था बढ़ता है, उन की त्वचा में चमक आती है, आवाज पतली होने लगती है. यह पूरी प्रक्रिया इस्ट्रोजन हार्मोंस  की वजह से होती है. यह पीरियड 12 से 15 वर्ष के बीच प्रारंभ होता है और 35 से 40 वर्ष की उम्र तक रहता है.

प्रकृति ने स्त्री को बच्चे को जन्म देने की अमूल्य शक्ति दी है. अपनी शारीरिक रचना के कारण सबला होने के बावजूद उसे अबला माना जाता है. 12 से 35 साल तक महिलाएं हर ढंग से सक्षम होती हैं. 35 वर्ष की आयु के बाद उन के शरीर में हार्मोनल इंबैलैंस शुरू हो जाता है. उस में मुख्यत: इस्ट्रोजन ही होता है.

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अब तक यह माना जाता था कि मेनोपौज के दौरान महिला के शरीर में इस्ट्रोजन समाप्त हो जाता है लेकिन मैडिकल साइंस के एक हालिया अन्वेषण के अनुसार, महिलाओं के शरीर में इस्ट्रोजन का एकतिहाई हिस्सा ताउम्र रहता है.

35 वर्ष की उम्र के बाद हार्मोंस  की कमी के कारण कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक परेशानियां आती हैं. उन में घुटनों की तकलीफ, औस्टियोपोरोसिस, आंखों की शक्ति क्षीण होना, त्वचा ढल जाना, झुर्रियां पड़ना, विटामिन की कमी होना, बाल झड़ना, बाल की ग्रोथ कम होना, हौट फ्लैशेज होना, एसी में भी पसीना आना, एनीमिक हो जाना, धड़कन बढ़ना, अटैक आने सा महसूस होना, बारबार गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन बढ़ जाना, छोटीछोटी बातों में दुखी होना, रोने लगना, नेगेटिव सोच होना, लोगों से उम्मीदें बढ़ जाना इत्यादि का समावेश होता है. इस्ट्रोजन कम होते ही मासिक धर्म भी बंद हो जाता है.

मैडिकल हैल्थ क्लब की कोऔर्डिनेटर डा. जयश्री गांधी बताती हैं कि मनोरंजन से ले कर परिवार के साथ रह कर और अन्य ऐक्टिविटी के जरिए मेनोपौज के दौरान किस तरह फ्रैश रहा जा सके, यह हम क्लब के माध्यम से समझाते हैं.

डा. जयश्री के अनुसार, इस उम्र में औरतों को बड़े व गंभीर रोगों से बचने के लिए कुछ परीक्षण कराने आवश्यक हैं. इन में पैप स्मीयर टैस्ट, पैल्विक टैस्ट, सोनोग्राफी, ब्रैस्ट परीक्षण मुख्य हैं. औरतों के ये दोनों महत्त्वपूर्ण अंग उन की परेशानियों का सबब बन जाते हैं. इस वजह से उन को नियमित चैकअप कराना चाहिए. इन टैस्टों से कैंसर की जानकारी मिल सकती है.

डा. जयश्री के अनुसार, ‘‘यदि जीवन के समय को आप अच्छे से गुजारना चाहती हैं तो सब से पहले आप को यह कबूल करना चाहिए कि जीवन के अन्य समय की तरह यह भी कुदरत की देन है. हकीकत को स्वीकार करने के साथसाथ बजाय दुखी होने के जीवन को मनपसंद ढांचे में ढालना सीख लेना चाहिए. मानसिक ढंग से मजबूत हो कर शारीरिक ऐक्सरसाइज, प्रोटीन, विटामिनयुक्त आहार, योगासन, वौकिंग, संगीत, मनपसंद रुचियों आदि के लिए समय निकालना चाहिए.’’

मासिक धर्म के कुछ दिन पूर्व औरत गुस्से की भावना का शिकार बनती है, चिड़चिड़ी हो जाती है. इस समयावधि में हार्मोंस के असंतुलन से औरतें कमजोरी महसूस करती हैं. अगर आप चाहें तो इस उम्र में भी सकारात्मक सोच के चलते स्वस्थ व तंदुरुस्त रह कर जीवन बिता सकते हैं.

हिसाब किताब-भाग 3 : भाभी के आने के बाद से परिवार में क्या बदलाव आएं

भाभी का मायका आर्थिक रूप से कमजोर था. पिता एक प्राइवेट स्कूल में ड्राइवर थे. मां यह सोच कर उन्हें लाईं कि गरीब घर की बहू रहेगी तो निबाह हो जाएगा. मगर हुआ उलटा. कुछ न देखने वाली भाभी को जब सरकारी नौकरी वाला आर्थिक रूप से संपन्न पति मिला तो वे स्वार्थी और अहंकारी हो गईं. उन्हें लगा कि अब उन्हें किसी की जरूरत नहीं. मायके से उन्हें शह मिलती. उन की मां चाहती थीं कि किसी तरह उन के बेटीदामाद अपना अचल हिस्सा ले कर स्वतंत्र गृहस्थी बसाएं. मां के मरने के बाद भरसक उन का यही प्रयास रहा कि किसी तरह मैं इस मकान का अपना हिस्सा उन्हें बेच दूं. मैं ने मन बना लिया था कि चाहे वे जो भी कर लें, मैं पिताजी की अमानत नहीं छोड़ूंगा. मुझे मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के पीछे उन की यही मंशा थी. इस प्रताड़ना से बचने के लिए जब मुझे तनख्वाह मिलने लगी तो उन के यहां खाना छोड़ दिया. यह भी उन्हें बरदाश्त न हुआ. कभी बिजली तो कभी मकान के टैक्स के नाम पर वे मुझे जबतब परेशान करतीं. एक दिन मुझ से रहा न गया, बोला, ‘‘भाभी, सब से ज्यादा बिजली आप खर्च करती हैं. टीवी, फ्रिज, इन्वर्टर, प्रैस सभी आप के पास हैं.’’

‘‘आप भी खरीद लीजिए. मैं ने मना तो नहीं किया है,’’ उन की वाणी में व्यंग्य का पुट था, ‘‘मगर बिजली का बिल आधा आप को देना ही होगा.’’

‘‘आधा क्यों?’’

‘‘कनैक्शन पिताजी के नाम है. घर की आधी हिस्सेदारी आप की भी बनती है. तो बिल भी तो आधा देना होगा.’’

‘‘अच्छा तर्क है आप का. बराबर क्यों?’’ मैं उखड़ा, ‘‘आप ज्यादा खर्च करेंगी, तो ज्यादा देंगी. मैं कम खर्च करूंगा तो कम दूंगा. बिजली के नाम पर मैं सिर्फ एक 15 वाट का सीएफएल और एक पंखे का इस्तेमाल करता हूं.’’ उन्हें मेरा तर्क नागवार लगा. तुनक कर भैया के पास गईं. भैया चुपचाप सुन रहे थे. मुझे अस्पताल की जल्दी थी, सो जल्दीजल्दी कपड़े पहन कर निकल गया. मेरे जाने के बाद दोनों के बीच जो भी खुसुरफुसुर हुई हो, मुझे पता नहीं. हां, 2 दिनों बाद भैया ने मुझे अपना फैसला सुनाया.

‘‘मैं रोजरोज की किचकिच से ऊब चुका हूं. बेहतर होगा हम इस मकान को बेच कर अलग हो जाएं.’’

यह सुन कर मैं सन्न रह गया. मुझे सपने में भी भान नहीं था कि भैया पिताजी की विरासत के प्रति इस कदर निर्मम होंगे. आदमी जानवर पालता है तो उस से भी मोह हो जाता है. यहां तो पिताजी के सपनों का आशियाना था. इस से कितनी यादें हम लोगों की जुड़ी थीं. कितने कष्टों को झेल कर उन्होंने यह मकान बनवाया था. किराए के मकान में रह कर उन्होंने बहुत परेशानी झेली थी. 10 किराएदारों के बीच सुबह 4 बजे ही मम्मीपापा को उठना पड़ता था ताकि सब से पहले पानी भर सकें. साझा बाथरूम अलग सिरदर्द था. चीलकौओं को पानी देने वाला समाज व्यवहार में भैया जैसा ही होता है. लिहाजा, मैं ने मन मार कर उन के फैसले पर मुहर लगा दी.

मकान बिकने के बाद भैया ने दीदी को फूटी कौड़ी भी न दी. मामा ने मुझे सलाह दी कि अगर बड़े भैया गैरजिम्मेदार हो गए हैं तो तुम अपनी जिम्मेदारी निभाओ. उन्हीं के कहने पर मैं ने 50 हजार रुपए दीदी को पापा के हक के नाम कर दे दिए. उन्होंने भरसक मना किया. यहां तक कि रिश्तों की कसम देने की कोशिश की मगर मैं टस से मस नहीं हुआ. जीजाजी थोड़े रुष्ट हुए, कहने लगे, ‘किस चीज की हमारे पास कमी है. उस धन पर तुम दोनों भाइयों का हक है.’ भले ही उन्होंने मना किया पर मैं ससुराल वालों की मानसिकता को जानता था. पीठपीछे सासससुर जरूर ताना मारते. थोड़े रुपयों के लिए मैं नहीं चाहता था कि उन का सिर नीचा हो.

मैं एक किराए के मकान में रहने लगा. वक्त ने मुझे काफीकुछ सिखा दिया. दीदी के प्रयासों से मेरी शादी हो गई. मेरी शादी में भैया की तरफ से कोई नहीं आया. मैं ने भी मनुहार नहीं की. जब उन्हें अपने फर्ज की याद नहीं रही तो मैं क्यों पहल करूं. 10 साल गुजर गए. इस बीच भैयाभाभी का थोड़बहुत हालचाल अन्य स्रोतों से मिलता रहा. 1 लड़की पहले से ही थी, 2 और हो गईं. वे 3 बच्चियों के पिता बन गए. शायद यही वजह रही जो उन्हें शराब की लत लग गई. लड़कियों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बनाने की जगह जिम्मेदारियों से भागने का उन का यह तरीका मुझे कायराना लगा. एक दिन दीदी से खबर लगी कि उन की हालत बेहद खराब है. वे अस्पताल में भरती हैं. मैं सपरिवार उन्हें देखने गया. भाभी ने हमें खास तवज्जुह न दी. उलटे उलाहना देने लगीं कि इस संकट की घड़ी में किसी ने साथ नहीं दिया. चाहता तो मैं भी कह सकता था कि आप ने कौन सा रिश्ता निभाया? कभीकभार दीदी उन से मिलने जातीं तो इन का मुंह टेढ़ा ही रहता.

भैया किसी तरह ठीकठाक हुए इस चेतावनी के साथ कि अगर उन्होंने शराब नहीं छोड़ी तो निश्चय ही उन का गुर्दा खराब हो सकता है, फिर उन्हें कोई भी नहीं बचा पाएगा. भाभी सहम गईं. वे इस कदर कमजोर हो गए थे कि ठीक से उठबैठ नहीं सकते थे. औफिस कहने के लिए जाते. उन से कोई काम हो नहीं पाता था. पीने की लत अभी भी नहीं छूटी थी. शाम पी कर घर आते तो लड़ाईझगड़ा करते. वे हद दरजे के चिड़चिड़े हो गए थे. अपनी लड़कियों को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते थे. जबकि उन की बड़ी बेटी ही उन की देखभाल करने में आगे रहती थी. वे उन्हें हमेशा लताड़ते रहते. कहते कि तुम लोग मेरे लिए बोझ हो. उन्हें एक पुत्र की आस थी. 3 पुत्रियां ही हुईं.

एक दिन उन के पेट में फिर दर्द उठा. डाक्टर के पास ले गए तो उस ने वही पुरानी नसीहत दी मगर भैया पर कोई असर नहीं पड़ा. शराब ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था. एक हफ्ते औफिस नहीं गए. जा कर करते भी क्या? एक दिन साहब ने भाभी को बुलाया, ‘‘मैडम, काम नहीं तो तनख्वाह कैसी?’’

यह सुन कर भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. साहब ने उन की परेशानी भांप ली. एक रास्ता सुझाया, ‘‘आप कितनी पढ़ी हैं?’’

‘‘इंटर.’’

‘‘नियमानुसार ठीक तो नहीं मगर मानवता के नाते मैं एक रास्ता सुझाता हूं. आप इन की जगह यहां आ कर 10 से 5 बजे तक ड्यूटी करें.

‘‘काम बेहद आसान है. आप को सिर्फ लिफाफों पर मुहर लगानी है व फाइलों को इधर से उधर ले जाना है.’’

भाभी राजी हो गईं. इस तरह घर में भैया की देखभाल बड़ी बेटी करती और वे नौकरी. भैया की देखभाल की वजह से बड़ी बेटी की पढ़ाईलिखाई हमेशाहमेशा के लिए छूट गई.? इन्हीं झंझावतों के बीच एक दिन खबर आई कि भैया नहीं रहे. सुन कर मुझे तीव्र आघात लगा. मैं अपनी बीवीबच्चों के साथ आया. भाभी का रोरो कर बुरा हाल था. तीनों लड़कियों के भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. एक तरह से वे असहाय हो गए थे. मेरी पत्नी ने ढाढ़स बंधाया. ‘सब ठीक हो जाएगा.’

वे अपना रुदन रोक बोलीं, ‘‘मैं अकेली औरत 3-3 बेटियों को ले कर कैसे पहाड़ जैसी जिंदगी काटूंगी? कैसे इन की शादी होगी?’’

मैं ने अपनी ओर से आश्वासन दिया कि भैया की कमी भरसक पूरी करने की कोशिश करूंगा. 15 दिन बाद जब मैं सपत्नी वापस आने लगा तो भाभी रुंधे कंठ से बोलीं, ‘‘अगर सब एकसाथ होते तो अच्छा होता. कम से कम बुरे वक्त में एकदूसरे के करीब होते. एकदूसरे के काम आते.’’ मुझे मौका मिला अपने भीतर वर्षों से जमे जज्बातों को उड़ेलने का. किंचित भावुक स्वर में बोला, ‘‘भाभी, नौकरी के दरम्यान मृत्यु होने पर सरकार, उन के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर इसलिए नौकरी देती है कि परिवार आर्थिक समस्या से न जूझे और वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों को वैसे ही निभाएं जैसे मृतक. क्या भैया ने वैसा किया? उन्होंने तो नौकरी पा कर ऐसे मुख मोड़ लिया, जैसे उन्हें यह नौकरी उन की योग्यता पर मिली हो. वे यह भूल गए कि यह नौकरी उन्हें पिताजी की अधूरी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मिली थी, न कि अपना घर बसा कर ऐश करने के लिए.’’ भाभी चुप थीं. क्या जवाब देतीं? आज विपत्ति आई है तब सब की याद आई. जब उन का सब ठीकठाक था तो मुझे ठीक से खाना तक नहीं देती थीं. बिजली के बिल तक का हिसाब लेती थीं. आज परिस्थिति प्रतिकूल हुई तो पता चला कि जिंदगी का हिसाबकिताब कितना जटिल होता है. क्या उन के पास इस जटिल हिसाब का कोई समाधान है? शायद नहीं.

 

 

हिसाब किताब-भाग 2 : भाभी के आने के बाद से परिवार में क्या बदलाव आएं

घर में भैयाभाभी का मेरे प्रति कोई सहयोगात्मक रवैया नहीं था. वे मेरे साथ बेगानों की तरह व्यवहार करते. आखिरकार, जब मेरी पढ़ाई रुक गई तो मैं ने एक अस्पताल में वार्ड बौय की नौकरी कर ली. तनख्वाह कोई खास न थी. हां, लोगों की टिप्स ठीकठाक मिल जाया करती थी. अभी एक महीना भी न गुजरा था कि एक दिन मैं ने भाभी को भैया से यह कहते सुना, ‘‘कब तक मुफ्त की रोटियां तोड़ते रहेंगे देवरजी?’’

‘‘1 महीना होने दो,’’ भैया बोले.

‘‘अभी से कान भरोगे तभी कुछ सोचेगा,’’ भाभी बोलीं.

भैया ने घुमाफिरा कर भाभी की बात मेरे सामने दोहरा दी. मुझे नागवार लगा. भाभी न सही, कम से कम भैया को तो सोचसमझ कर बात करनी चाहिए. एक तो मेरी पढ़ाई बीच में छूट गई, दूसरे, नौकरी लगे जुम्माजुम्मा चार दिन हुए और घरखर्च का ताना देने लगे. अस्पताल से लौटने में कभीकभी मुझे देर हो जाया करती थी. ऐसे ही एक रात मैं देर से घर लौटा तो पाया कि घर के फाटक पर ताला लटक रहा था. मैं ने पड़ोसी से चाबी ले कर फाटक खोला. कमरे की चाभी भैया एक खास जगह रख कर जाते थे जिस का सिर्फ मुझे पता था. वहां से चाभी ले कर मैं ने कमरा खोला. बहुत भूख लगी थी. रसोई में जा कर बरतन उलटापुलटा कर के देखे, खाने के लिए कुछ न मिला. खिन्न मन से भैया को फोन लगाया तो पता चला कि वे ससुराल में हैं. अगले दिन दशहरा था, सो मना कर ही लौटेंगे. मैं ने स्वयं रोटी बनानी चाही. जैसे ही गैस जलाई, कुछ सैकंड जली, फिर बंद हो गई.

रात 12 बज गए. अब इतनी रात मुझे बाहर भी कुछ खाने को मिलने वाला न था. ऐसा ही था तो भैया मुझे फोन कर देते, मैं बाहर ही खापी कर आ जाता. खुद तो ससुराल में दावत उड़ा रहे हैं और मुझे भूखा मरने के लिए छोड़ गए. यह सोच कर मुझे तीव्र क्रोध आया, वहीं अपने हाल पर रोना भी. भैया को मुझ से क्या अदावत है, जो इतना दुराव कर रहे हैं. भाभी ही उन की सबकुछ हैं, मैं कुछ नहीं. अगर इतना ही है, साफसाफ कह देते, मैं अपना खाना खुद बना लूंगा. यही सब सोच कर क दिन मैं ने स्वयं पहल की. तनाव में रहने से अच्छा है, मैं खुद ही अलग हो जाऊं.

दशहरा बीतने के बाद भैयाभाभी घर लौट आए.

‘‘आप लोग नहीं चाहते हैं तो मैं अपना खाना खुद बना लूंगा.’’

भाभी ने सुना तो तुनक गईं, बोलीं, ‘‘यह तो अच्छी बात हुई. 6 महीने से हमारा खा रहे थे, अब जब कमाने लगे तो अलग गुजारे की बात करने लगे.’’

‘‘अलग गुजारे के लिए आप लोगों ने विवश किया. वैसे भी 6 महीने खिला कर कोई एहसान नहीं किया. 2 लाख रुपए थे मां के खाते में जिसे आप लोगों ने छल से निकाल लिया.’’ मैं ने भी कहने में कोई कसर न छोड़ी. अब जब अलग रहना ही है तो मन की भड़ास निकालना ही मुझे उचित लगा.

‘‘बेशर्म, हम लोगों पर इस तरह इलजाम लगाते हुए शर्म नहीं आती,’’ भैया चीखे.

‘‘हकीकत है, भैया, आज वह रुपया होता तो मुझे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर अस्पताल की मामूली नौकरी न करनी पड़ती.’’

‘‘तो क्या कलैक्टरी करते?’’

‘‘कलैक्टरी नहीं करता मगर ढंग से नौकरी तो करता. आप ने पिता का फर्ज निभाना तो दूर, मेरा हक मार लिया.’’ उन्हें मेरा कथन इतना बुरा लगा कि मुझे थप्पड़ मारने के लिए उठे. मगर न जाने क्या सोच कर रुक गए.

‘‘आज से तुम्हारा हमारा संबंध खत्म,’’ कह कर भैया अपने कमरे में चले गए. पीछेपीछे भाभी भी पहुंचीं, ‘‘ऐसा भाई मैं ने जिंदगी में नहीं देखा था. बड़े भाई पर इलजाम लगा रहा है. 6 महीने से खिलापिला रहे थे यह सोच कर कि भाई है. उस का यह सिला दिया, एहसानफरामोश.’’ भैया सुनते रहे. तभी बड़ी बहन गीता आ गईं. मैं ने भरसक माहौल बदलने की कोशिश की तो भी वे समझ गईं. जब तक मां जिंदा थीं भैयाभाभी ने उन की खूब आवभगत की. मां पैंशन का आधा हिस्सा उन्हीं लोगों को दे देती थीं. शेष अपने लिए रखतीं. गीता के बच्चों की डिमांड वही पूरा करतीं. भैयाभाभी सिर्फ समय से नाश्ताखाना खिला देते. भाभी को इतना भी फर्ज पहाड़ सा लगता. पीठ पीछे भैया से भुनभुनातीं. दोचार दिन के लिए गीता दीदी आतीं तो भाभी चाहतीं कि दीदी किचन में उन का हाथ बंटाएं. अपने बच्चों का एक भी सामान वे गीता दीदी के बच्चों को देना नहीं चाहती थीं.

एक दिन रात सोने के समय उन का बौर्नविटा खत्म हो गया. दीदी का बड़ा बेटा उस के बिना दूध नहीं पीता था. सो, वे भाभी के पास गईं, ‘भाभी, जरा सा बौर्नविटा ले लेती हूं अपने सोनू के लिए. कल सुबह मंगा लूंगी.’ भाभी हंस कर टालने की नीयत से बोलीं, ‘अपना भी यही हाल है, थोड़ा सा बचा है, खत्म हो जाएगा तो मुश्किल होगी. इन का हाल तो जानती हैं,’ भैया की ओर मुखातिब हो कर बोलीं, ‘कोई सामान लाने में ये कितने आलसी हैं?’ भैया नजरें चुराने लगे.

दीदी को सबकुछ समझते देर न लगी. उन का मन तिक्त हो गया. वे उलटे पांव लौट आईं. मां को पता चला तो उन की त्योरियां चढ़ गईं. भाभी को सुनाने के लिए उठीं तो दीदी ने रोक दिया, ‘क्यों मेरे लिए उन से बैर लेती हो? मैं आज हूं कल अपने ससुराल चली जाऊंगी. रहना तो तुम्हें इन्हीं लोगों के साथ है.’ मां मन मसोस कर रह गईं.

Crime Story: समुद्र से सागर तक

3 दिनों से बंद फ्लैट की साफसफाई और हर चीज व्यवस्थित कर के साक्षी लैपटौप और मोबाइल फोन ले कर बैठी तो फोन में बिना देखे तमाम मैसेज पड़े थे. लैपटौप में भी तमाम मेल थे. पिछले 3 दिनों में लैपटौप की कौन कहे, मोबाइल तक देखने को नहीं मिला था. मां को फोन भी वह तब करती थी, जब बिस्तर पर सोने के लिए लेटती थी. मां से बातें करतेकरते वह सो जाती तो मां को ही फोन बंद करना पड़ता.

पहले उस ने लैपटौप पर मेल पढ़ने शुरू किए. वह एकएक मैसेज पढ़ने लगी. ‘‘हाय, क्या कर रही हो? आज आप औनलाइन होने में देर क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरे कहां है आप? कल भी पूरा दिन इंतजार करता रहा, पर आप का कोई जवाब ही नहीं आया?’’

‘‘अब चिंता हो रही है. सब ठीकठाक तो है न?’’

‘‘मानता हूं काम में बिजी हो, पर एक मैसेज तो कर ही सकती हो.’’ सारे मैसेज एक ही व्यक्ति के थे.

मैसेज पढ़ कर हलकी सी मुसकान आ गई सरिता के चेहरे पर. उसे यह जान कर अच्छा लगा कि कोई तो है जो उस की राह देखता है, उस की चिंता करता है. उस ने मैसेज टाइप करना शुरू किया.

‘‘मैं अपने इस संबंध को नाम देना चाहती हूं. आखिर हम कब तक बिना नाम के संबंध में बंधे रहेंगे. आप का तो पता नहीं, पर मैं तो अब संबंध की डोर में बंध गई हूं. यही सवाल मैं ने आप से पहले भी किया था, पर न जाने क्यों आप इस सवाल का जवाब टालते रहे. जवाब देने की कौन कहे, आप बात ही करना बंद कर देते हो. आखिर क्यों.?

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‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?

‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.

‘‘मेरे लिए आप का जवाब महत्त्वपूर्ण है. मैं आप की कौन हूं? इतनी निकटता के बाद भी यह पूछना पड़ रहा है, जो मुझे बहुत खटक रहा है. —आप के जवाब के इंतजार में सरिता.’’

सरिता काफी देर तक लैपटौप पर नजरें गड़ाए रही. उन के बीच पहली बार ऐसा नहीं हो रहा था. इस के पहले भी सरिता ने कुछ इसी तरह की या इस से कुछ अलग तरह की बात कही थी. पर हर बार किसी न किसी बहाने बात टल जाती थी. देखा जाए तो दोनों के बीच कोई खास संबंध नहीं था. दोनों कभी मिले भी नहीं थे. एकदूसरे से न कोई वादा किया था, न कोई वचन दिया था.

बस, उन के बीच बातों का ही व्यवहार था. कभी खत्म न हो, ऐसी बातें. उस की बातें सरिता को बहुत अच्छी लगती थीं. दोनों दिनभर एकदूसरे को मेल या चैटिंग करते रहते. बीचबीच में अपना काम कर के फिर चैटिंग पर लग जाते. समयसमय पर मेल भी करते.

दोनों की जानपहचान अनायास ही हुई थी. मेल आईडी टाइप करने में हुई एक अक्षर की अदलाबदली की तरह से. ध्यान नहीं दिया और मेल सैंड हो गया. उस के रिप्लाय में आया. सौरी, सामने से फिर जवाब, करतेकरते दोनों को एकदूसरे का जवाब देने की आदत सी पड़ गई.

जल्दी ही उन की बातें एकदूसरे की जरूरत बन गईं. दोनों का परिचय हुए 3 महीने हो चुके थे, पर ऐसा लगता था, जैसे वे न जाने कब से परिचित हैं, दोनों में गहरा लगाव हो गया था, उन का स्वभाव भी अलग था और व्यवसाय भी, फिर भी दोनों नजदीक आ गए थे.

वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में हिंदी का प्रोफेसर था. साहित्य का भंडार था उस के पास. कभी वह खुद की लिखी कोई गजल या शायरी सुनाता तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी की मजाकिया बातें कह कर हंसाता. सरिता उस की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनती और पढ़ती. उस के साथ के क्षणों में, उस की बातों में आसपास का सब बिसार कर खो सी जाती.

पर जब वह 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई तो मन जैसे अपनी बात कहने को विकल हो उठा. आज दिल की बात कह ही देनी है, यह निश्चय कर के वह दाहिने कान के पीछे निकल आई लट को अंगुलियों में ले कर डेस्क पर रखे लैपटौप की स्क्रीन में खो गई. जैसे वह सामने बैठा है और वह उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही है. वह मैसेज टाइप करने लगी.

‘‘हाय 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई थी. जाने का प्लान अचानक बना, इसलिए तुम्हें बता नहीं सकी, बहुत परेशान किया न तुम्हें? पर सच कहूं, 3 दिनों तक तुम से दूर रह कर मेरे मन में हिम्मत आई कि मैं अपने मन की बात तुम से खुल कर कह सकूं. क्या करूं, थोड़ी डरपोक हूं न? आज तुम्हें मैं अपने एक दूसरे मित्र से मिलवाती हूं. अभी नईनई मित्रता हुई है जानते हो किस से? जी हां, दरिया से… हां, दरिया, समुद्र, सागर…

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‘‘नजर में न भरा जा सके, इतना विशाल, चाहे जितना देखो, कभी मन न भरे. इतना आकर्षक कि मन करता है हमेशा देखते रहो. मेरे लिए यह सागर हमेशा एक रहस्य ही रहा है. कहीं कलकल बहता है तो कहीं एकदम शांत तो कहीं एकदम तूफानी.

‘‘समुद्र मुझे बहुत प्यारा लगता है. घंटों उस के सान्निध्य में बैठी रहती हूं, फिर भी थकान नहीं लगती. पर मेरा यह प्यार दूरदूर से है. दूर से ही बैठ कर उस की लहरों को उछलते देखना, उस की आवाज को मन में भर लेना. इस तरह देखा जाए तो यह सागर मेरा ‘लौंग डिसटेंस फ्रेंड’ कहा जा सकता है, एकदम तुम्हारी ही तरह. हम मन भर कर बात करते हैं, कभीकभी एकदूसरे से गुस्सा भी होते हैं, पर जब नजदीकी की बात आती है तो मैं डर जाती हूं. दूर से ही नमस्कार करने लगती हूं.

‘‘पर इस सब को कहीं एक किनारे रख दो. मैं भले ही सागर के करीब न जाऊं, दूर से ही उसे देखती रहूं, पर वह किसी न किसी युक्ति से मुझे हैरान करने आ ही जाता है. दूर रहते हुए भी उस की हलकी सी हवा का झोंका मेरे शरीर में समा जाता है. मजाल है कि मैं उस के स्पर्श से खुद को बचा पाऊं. एकदम तुम्हारी ही तरह वह भी जिद्दी है.

‘‘उस की इस शरारत से कल मेरे मन में एक नटखट विचार आया. मन में आया कि क्यों न हिम्मत कर के एक कदम उस की ओर बढ़ाऊं. चप्पल उतार कर उस की ओर बढ़ी. एकदम किनारे रह कर पैर पानी में छू जाए इतना ही बढ़ी थी. वह पहले से भी ज्यादा पागल बन कर मेरी ओर बढ़ा और मुझे पूरी तरह भिगो दिया. जैसे कह रहा हो, बस मैं तुम्हारी पहल की ही राह देख रहा था, बाकी मैं तो तुम्हें कब से भिगोने को तैयार था.

‘‘मैं उस के इस अथाह प्रेम में डूबी वहीं की वहीं खड़ी रह गई. मैं ने तो केवल पैर धोने के लिए पानी मांगा था, उस ने मुझे पूरी की पूरी अपने में समा लिया था. कहीं सागर तुम्हारा रूप ले कर तो नहीं आया था? शायद नाम की वजह से दोनों का स्वभाव भी एक जैसा हो. वह समुद्र और तुम सागर. दोनों का स्थान मेरे मन में एक ही है. सच कहूं, अगर मैं एक कदम आगे बढ़ाऊं तो क्या तुम मुझे खुद में समा लोगे? —तुम्हारी बनने को आतुर सरिता’’

क्या जवाब आता है, यह जानने के लिए सरिता का दिल जोजोर से धड़कने लगा था. दिल में जो आया, वह कह दिया. अब क्या होगा, यह देखने के लिए वह एकटक स्क्रीन को ताकती रही.

सागर में उछाल मार रहे समुद्र की एक फोटो भेजी. मतलब सरिता की पहल को उस ने स्वीकार कर लिया था.

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प्रकृति के नियम के अनुसार फिर एक सरिता बहती हुई अपने सागर मे मिलने का अनोखा मिलन रचने जा रही थी.

जब भी मैं इरोटिक उपन्यास पढ़ती हूं मुझे डिस्चार्ज होने लगता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 19 साल की युवती हूं. इधर कुछ समय से जब भी मैं कोई सैक्सुअली रोमांटिक उपन्यास पढ़ती हूं या कोई ऐसेवैसे चित्र देखती हूं तो मेरे शरीर में अजीब सी हलचल मच जाती है. मन में कामुक विचार गहरा उठते हैं और योनि से डिस्चार्ज होने लगता है. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? घर में कोई ऐसा नहीं जिस से यह बात बांट सकूं. कृपया मार्गदर्शन करें?

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जवाब

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आप बिलकुल परेशान न हों. मन में कामुक विचार जाग्रत होने पर योनि की तरलता का बढ़ना बिलकुल स्वाभाविक है. इस का संबंध मस्तिष्क में पाए जाने वाले सैक्स सैंटर से है. जब भी यह सैंटर उत्तेजित होता है, स्पाइनल कोर्ड और कुछ विशेष तंत्रिकाओं में अपने आप आवेग उत्पन्न होता है और उस से प्रेरित संदेश से पेट के निचले भाग के अंगों में खून का दौरा बढ़ जाता है.

इसी से योनि के भीतर लबलबापन उत्पन्न हो जाता है और यह भीतर ही भीतर तरल हो उठती है. यह प्राकृतिक मैकेनिज्म शारीरिक मिलन की क्रिया को सहज बनाने के लिए रचा गया है.

 

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हिसाब किताब-भाग 1 :भाभी के आने के बाद से परिवार में क्या बदलाव आएं

पिताजी गुजरे तब मेरी उम्र 12 साल की थी. गीता दीदी 18 और भैया 22 साल के थे. अचानक हुए इस हादसे को हम सब बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं थे. मुझे समझ थोड़ी कम थी, फिर भी इतना भी नासमझ नहीं था कि पिताजी के जाने का अर्थ न समझ सकूं. मां का रोरो कर बुरा हाल था. कच्ची गृहस्थी थी. ऐसे में उन्हें चारों तरफ सिवा अंधकार के कुछ नहीं दिख रहा था. सारे रिश्तेदार जमा थे. वे मां को समझाने का भरसक प्रयास कर रहे थे. मगर वे कुछ समझने को तैयार ही नहीं थीं. बस, एक ही रट लगाए थीं कि अब वे शेष जीवन कैसे गुजारेंगी. कैसे गीता की शादी होगी? हम सब को वे कैसे संभालेंगी? उन का रुदन सुन कर सभी की आंखें नम थीं. थोड़ाबहुत वे मामाजी को समझने को तैयार थीं.

मामाजी भरे मन से बोले, ‘दीदी, दिल छोटा मत करो. मैं तुम्हारे लिए सुरक्षाकवच बन कर तब तक खड़ा रहूंगा जब तक तुम्हारा परिवार संभल नहीं जाता.’ उन्होंने अपना वादा निभाया. रोजाना शाम को बैंक की ड्यूटी से खाली होते तो सीधे घर आ कर हमारा हालचाल जरूर लेते. उन के आने से हम सब को बल मिलता. उन्हीं के प्रयास से भैया को पापा की जगह पोस्ट औफिस में नौकरी मिली. फंड से मिले रुपयों से गीता दीदी की शादी हुई. पापा का बनाया मकान था, सो रहने की समस्या नहीं थी. आहिस्ताआहिस्ता हमारा घर संभलने लगा. गीता दीदी की शादी के बाद बचे रुपयों को मां ने अपने पास बुरे वक्त के लिए रख लिया. इस बीच भैया की शादी के लिए लड़की वालों के रिश्ते आने लगे. मां को एक जगह रिश्ता अच्छा लगा, सो मामा से रायमशविरा कर के भैया की शादी कर दी. अब वे निश्ंचत थीं. लेदे कर एक मैं ही बचा था. उन्हें विश्वास था कि मैं कहीं न कहीं पढ़लिख कर सैटल हो ही जाऊंगा. मगर नियति को और ही कुछ मंजूर था. मां को अचानक ब्रेनहेमरेज हुआ और वे हम सब को रोताबिलखता छोड़ चली गईं. भैया को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा पर मैं अकेला हो गया. मैं उस रोज फूटफूट कर रोया क्योंकि एक मां ही थीं जो मेरी राजदां थीं. मैं जब भी कभी उलझन में होता, वे बड़ी आसानी से मेरी समस्या का समाधान कर देतीं. एक तरह से वे मेरी संबल थीं.

मां की तेरहवीं तक गीता दीदी मेरे पास रहीं. जब तक थीं मेरी तन्हाई पर अंकुश लगा रहा. पर जैसे ही वे चली गईं, घर काटने को दौड़ने लगा. सब से बुरी बात यह हुई कि जिन भैयाभाभी पर मेरी जिम्मेदारी थी वे ही मुझ से विमुख होने लगे. एक दिन मैं ने मां की पासबुक देखी तो पाया कि उस में फूटी कौड़ी भी न थी. यह जान कर मैं स्तब्ध रह गया. भैया से पूछा तो बड़े तल्ख शब्दों में बोले, ‘‘मैं क्या जानूं?’’ ‘‘पूरे 2 लाख थे, भैया. मां ने मेरी पढ़ाईलिखाई के लिए रखे थे,’’ मैं लगभग रोंआसा हो गया. ‘‘जब तू जानता था कि पूरे 2 लाख रुपए थे तो तुझे यह भी पता होगा कि रुपए कहां गए. मुझे तो पता भी नहीं था कि मां ने इतने रुपए बैंक में रखे हैं,’’ भैया बड़ी सफाई से अपना दामन बचा ले गए.

‘‘भैया, याद कीजिए, मां ने आप को मेरी अनुपस्थिति में कुछ दिया हो?’’

‘‘तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया. मां से दिनरात तो तू चिपका रहता था. तुम दोनों क्या खिचड़ी पकाते थे, मैं ने कभी जानने की भी कोशिश नहीं की. फिर वे कहां से मुझे रुपए देंगी? मुझे रुपयों की जरूरत ही क्या है जो उन से मांगूंगा और वे मुझ को देंगी.’’

‘‘खिचड़ी? कैसी बात कर रहे हैं. न मैं ने, न मां ने आज तक आप से कुछ छिपाया. पापा का जो भी फंड मिला उस से गीता दीदी की शादी हुई और शेष रुपए जस के तस बैंक में जमा थे तो इसलिए कि अगर मुझे बेहतर पढ़ाई करनी होगी तो आप से मांगने की जरूरत न पड़े.’’

‘‘इतना घमंड?’’

‘‘मां आप पर आर्थिक बोझ नहीं डालना चाहती थीं. अब आप इसे जिस रूप में लें,’’ कह कर मैं ने इस विवाद को विराम दिया. क्योंकि जब मैं ने देखा ही नहीं तो क्या कर सकता हूं. जबकि सचाई यही थी कि रुपए भैया ही ने लिए थे. मां की आदत थी. वे चैकों पर अग्रिम हस्ताक्षर बना कर रखती थीं ताकि पैंशन के रुपए लेने के लिए मुझे मां का इंतजार न करना पड़े. कभीकभी मां दीदी के पास चली जाती थीं, तो वहीं से फोन कर देतीं कि मैं ने चैक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, तू पैंशन निकाल लेना. मां के इस विश्वास का भैया ने नाजायज फायदा उठाया. मां के मरने की खबर रिश्तेदारों को देने जब मैं घर से बाहर निकला, उसी समय भैयाभाभी को मौका मिला मां का बक्सा खोल कर चैक और उन के रखे कुछ गहनों को चुराने का. मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि एक तरफ मां की लाश जमीन पर पड़ी हो, दूसरी तरफ भैया ऐसे कुत्सित प्रयास में लिप्त रहेंगे. ये सब सोच कर मेरा मन भीग गया. उस रोज मांपिताजी की खूब याद आई. अगर आज वे जिंदा होते तो शायद यह सब न देखना पड़ता? इन सब वजहों से मैं ज्यादा पढ़लिख भी नहीं पाया.

‘‘मेरा संघर्ष मुझसे बेहतर कोई नहीं जान सकता’- रितु फोगाट, मिक्स मार्शल आर्टिस्ट

राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता व भारत की महिला पहलवान रितु फोगाट भारतीय खेल में प्रसिद्ध फोगाट परिवार से आती हैं. फोगाट परिवार की वे पहली सदस्य हैं जो अखाड़े में ताल ठोंकने के बाद अब मिक्स मार्शल आर्ट्स यानी एमएमए में उतरी हैं.

अगर आप में आत्मविश्वास, मेहनत, लगन, हिम्मत आदि हो तो आप को मंजिल तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता, ऐसी सोच रखती हैं रितु. मिक्स मार्शल आर्टिस्ट रितु फोगाट, जिन्हें इंडियन टाईग्रेस के नाम से भी जाना जाता है, ने 30 अक्तूबर को सिंगापुर में आयोजित ‘वन चैंपियनशिप’ में जीत हासिल की है और एशिया की पहली महिला मिक्स मार्शल आर्टिस्ट बन चुकी हैं.

पूर्व पहलवान महावीर सिंह फोगाट की तीसरी पुत्री रितु ने 8 वर्ष की उम्र से अपने पिता से कुश्ती की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी. उन्होंने कुश्ती के कैरियर पर ध्यान देने के लिए 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. कुश्ती में सफलता हासिल करने के बाद वे मार्शल आर्ट की तरफ मुड़ीं और कई चैंपियनशिप जीतीं.

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26 साल की रितु अपनी इस जीत से बहुत खुश हैं. यह जीत उन के मार्शल आर्ट कैरियर की सब से महत्त्वपूर्ण जीत है.

इस जीत से आप क्या महसूस कर रही हैं?

कोरोना महामारी के दौरान मैं ने जितनी मेहनत की है, उस का फल मु?ो मिला. मैं भारत की ओर से मार्शल आर्ट को ऊंचाइयों तक ले जाना चाहती हूं. कोरोना में जब सबकुछ बंद था, मैं प्रैक्टिस करती रही, क्योंकि मेरे कोच मु?ो वीडियो की सहायता से ट्रेनिंग देते थे. मैं परिवार, दोस्तों और सभी देशवासियों की आभारी हूं जिन्होंने मु?ो यहां तक पहुंचने में मेरे मनोबल को ऊंचा किया. मेरी कोच भी धन्यवाद की पात्र हैं जिन्होंने मु?ो इस मुश्किल समय में भी हर दिन ट्रेनिंग दी. अभी मैं ग्रैंड प्रिक्स की तैयारी कर रही हूं ताकि मैं वर्ल्ड चैंपियनशिप को जीत सकूं.

फाइट करते समय आप अपने मनोबल को ऊंचा कैसे रखती हैं?

इस के लिए अधिक मात्रा में अभ्यास, आत्मविश्वास और दर्शकों की आवाज मनोबल को बढ़ाती है. इस के अलावा, एक एथलीट को मानसिक रूप से मजबूत होने की जरूरत होती है, जिस के लिए मैं व्यायाम करती हूं. जब मैं फाइट के लिए जाती हूं, तो वहां सिर्फ प्रतिद्वंद्वी ही मु?ो सामने दिखते हैं और जीत के लिए खुद की सौ प्रतिशत शक्ति वहां लगा देती हूं.

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खुद को मजबूत रखने के लिए आप की डाइट क्या होती है?

जब मैं अपने घर में रहती हूं तो घर में सारी चीजें देसी मिल जाती हैं, इस से प्रोटीन और विटामिन की कमी नहीं होती, लेकिन बाहर जाने से प्रोटीन की कमी हो जाती है, तब विटामिन की गोली लेती हूं. कोच के हिसाब से डाइट लेनी पड़ती है.

आप का नाम इंडियन टाईग्रेस कैसे पड़ा?

जब मैं कुश्ती करती थी तो सभी मु?ो कहते थे कि मैं शेरनी की तरह अपने प्रतिद्वंद्वी पर ?ापटती हूं और उसे हिलने नहीं देती. इस से प्रेरित हो कर मैं ने अपना नाम इंडियन टाईग्रेस रखा है.

कुश्ती से मिक्स मार्शल आर्ट में आने पर आप को किस तरह का लाभ मिला?

बहुत अधिक लाभ मिला है. इस से जमीन पर प्रतिद्वंद्वी को होल्ड करना आसान हुआ है. शुरूशुरू में थोड़ी मुश्किलें मिक्स मार्शल आर्ट सीखने में आई थीं, पर अब सही हो चुका है.

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ग्रैंड प्रिक्स टाइटिल से आप कितनी दूर हैं?

अभी तो मु?ो वन चैंपियनशिप का यह खिताब मिला है. आगे मैं और अधिक तैयारियां कर रही हूं, क्योंकि ग्रैंड प्रिक्स में केवल एक लड़की इंडिया से चुनी जाएगी और मैं वह लड़की होना चाहती हूं. देश के लिए वर्ल्ड चैंपियनशिप की बैल्ट ले कर आऊंगी. मैं हमेशा प्रतिद्वंद्वी की कमजोरी और मजबूत पौइंट को सम?ाने की कोशिश कर उसी हिसाब से खुद को तैयार करती हूं. इस के अलावा मैं प्रसिद्ध मिक्स मार्शल आर्टिस्ट खबीब नुरमागोमेदोव की वीडियोज बहुत देखती हूं और वैसा स्टाइल अपनाने की कोशिश करती रहती हूं.

हमारे देश में मिक्स मार्शल आर्ट में बहुत कम लड़कियां है, वजह क्या है? आप इसे और अधिक पौपुलर करने के लिए क्या करना चाहती हैं?

पहले इस खेल के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी थी, वे सम?ाते थे कि यह मारपीट का खेल है, लेकिन अब मीडिया की कवरेज की वजह से लोग इस में रुचि लेने लगे हैं. इंडिया में अब प्रतिभा की कमी नहीं है, पर उस को निखारने और प्लेटफौर्म देने की जरूरत है. इसलिए मैं वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत कर सब का ध्यान इस ओर लाना चाहती हूं ताकि मिक्स मार्शल आर्ट को भी दूसरे स्पोर्ट्स की तरह जगह मिले. इस के अलावा, मैं सभी लड़कियों से यह कहना चाहती हूं कि खेल चाहे कोई भी हो, अनुशासन और मेहनत के साथ अपने टारगेट को पाने की कोशिश करनी चाहिए.

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फाइट के समय मानसिक स्थिति कैसी होनी चाहिए?

एक खिलाड़ी को सब से अधिक जरूरत मानसिक रूप से मजबूत रहने की होती है. मेहनत करने के बाद भी अगर आप की मानसिक स्थिति मजबूत नहीं है तो जीत हासिल करने में मुश्किल होती है. इस के लिए मैं व्यायाम करती हूं. हालांकि, मैं मानसिक रूप से बहुत स्ट्रौंग हूं.

आप के यहां तक पहुंचने में पिता का सहयोग कितना रहा. पूरे परिवार ने कैसे सहयोग दिया?

मेरे पिता ने बहुत सहयोग दिया है. शुरू में जब मैं कुश्ती से मिक्स मार्शल आर्ट की तरफ मुड़ी, तो पहले बहनों से बात की, उन्होंने पिता से कहा. पिता ने एक बार भी मना नहीं किया. उन्होंने कहा कि अगर मेरी रुचि मिक्स मार्शल आर्ट में जाने की है, तो मैं जा सकती हूं, लेकिन इस बात का ध्यान रखूं कि देश का ?ांडा हमेशा ऊंचा रहे. मैं वही कर रही हूं.

मेरे यहां तक पहुंचने में मेरे पूरे परिवार ने बहुत सहयोग दिया है. उन के बिना यहां तक पहुंचना संभव नहीं था. जब भी मैं ने परिवार को मिस किया, बड़ी बहन की बेटी के साथ बात की.

परिवार से दूर रह कर जीत हासिल करना कितना मुश्किल होता है?

दूसरे देश में जा कर जीत हासिल करना बहुत मुश्किल होता है. कई बार ट्रेनिंग के बाद इतनी थकान हो जाती है कि खुद खाना बनाना संभव नहीं होता. ऐसे में बाहर से खाना ला कर खाना पड़ता है. परिवार के साथ होने पर खानेपीने की चिंता नहीं रहती और ट्रेनिंग अच्छी तरह से हो जाती है.

खाली समय में क्या करना पसंद करती हैं?

रविवार को मेरी ट्रेनिंग नहीं होती. तब मैं घर की साफसफाई करती हूं. कुछ अलग डिशें, जो मैं ट्रेनिंग के दौरान नहीं खा सकती, उन्हें बनाती हूं, जिन में हलवा और खीर खास हैं.

अगर आप की बायोपिक बनती है, तो उस में बौलीवुड की किस अभिनेत्री को देखना पसंद करेंगी?

मैं कामयाबी के लिए बहुत मेहनत कर रही हूं. मेरी जर्नी और संघर्ष को मु?ा से अधिक बेहतर कोई नहीं जान सकता. इसलिए मैं ही उस बायोपिक को बनाने की इच्छा रखती हूं.

महिलाओं को क्या मैसेज देनाचाहती हैं?

आप जो भी सोचें वह कर सकती हैं. खुद पर विश्वास रखें और आगे बढ़ती जाएं. इस के अलावा परिवार की भी पूरी जिम्मेदारी होती है कि वे अपनी लड़कियों को उन की मनचाही दिशा में आगे बढ़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें.

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