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‘सर,’ अदिति ने हिचकी लेते हुए कहा, ‘मैं पढ़ना चाहती हूं, इसीलिए तो नौकरी करती हूं.’

उन्होंने ‘आई एम सौरी, मुझे पता नहीं था,’ अदिति के सिर पर हाथ रख कर कहा.

‘इट्स ओके, सर.’

‘क्या काम करती हो?’

‘एक वकील के औफिस में मैं टाइपिस्ट हूं.’

‘मैं नई किताब लिख रहा हूं. मेरी रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करोगी?’

अदिति ने आंसू पोंछते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

उसी दिन से अदिति डा. हिमांशु की रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करने लगी. इस बात को आज 2 साल हो गए हैं. अदिति ग्रेजुएट हो गई है. वह फर्स्ट क्लास आई थी यूनिवर्सिटी में. डा. हिमांशु एक किताब खत्म होते ही अगली पर काम शुरू कर देते. इस तरह अदिति का काम चलता रहा. अदिति ने एमए में ऐडमिशन ले लिया था. अकसर उस से कहते, ‘अदिति, तुम्हें पीएचडी करनी है. मैं तुम्हारे नाम के आगे डाक्टर लिखा देखना चाहता हूं.’

फिर तो कभीकभी अदिति बैठी पढ़ रही होती, तो  कागज पर प्रोफैसर के साथ अपना नाम जोड़ कर लिखती फिर शरमा कर उस कागज पर इतनी लाइनें खींचती कि वह नाम पढ़ने में न आता. परंतु बारबार कागज पर लिखने की वजह से यह नाम अदिति के हृदय में इस तरह रचबस गया कि वह एक भी दिन उन को न देखती तो उस का समय काटना मुश्किल हो जाता.

पिछले 2 सालों में अदिति प्रोफैसर के घर का एक हिस्सा बन गई थी. सुबह घंटे डेढ़ घंटे उन के घर काम कर के वह साथ में यूनिवर्सिटी जाती. फिर 5 बजे साथ ही उन के घर आती, तो उसे अपने घर जाने में अकसर रात के 8 बज जाते. कभीकभी तो 10 भी बज जाते. डा. हिमांशु मूड के हिसाब से काम करते थे. अदिति को भी कभी घर जाने की जल्दी नहीं होती थी. वह तो उन के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी.

इन 2 सालों में अदिति ने देखा था कि प्रोफैसर को जानने वाले तमाम लोग थे. उन से मिलने भी तमाम लोग आते थे. अपना काम कराने और सलाह लेने वालों की भी कमी नहीं थी. फिर भी एकदम अकेले थे. घर से यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी से घर, यही उन की दिनचर्या थी. वे कहीं बाहर आनाजाना या किसी गोष्ठी में भाग लेना पसंद नहीं करते थे. बड़ी मजबूरी में ही वे किसी समारोह में भाग लेने जाते थे. अदिति को यह सब बड़ा आश्चर्यजनक लगता था. वे पढ़ाई के अलावा किसी से भी कोई फालतू बात नहीं करते थे. अदिति उन के साथ लगभग रोज ही गाड़ी से आतीजाती थी. परंतु इस आनेजाने में शायद ही कभी उन्होंने उस से कुछ कहा हो. दिन के इतने घंटे साथ बिताने के बावजूद उन्होंने काम के अलावा कोई भी बात अदिति से नहीं की थी. अदिति कुछ कहती तो वे चुपचाप सुन लेते. मुसकराते हुए उस की ओर देख कर उसे यह आभास करा देते कि उन्होंने उस की बात सुन ली है.

किसी बड़े समारोह या कहीं से डा. हिमांशु वापस आते तो अदिति बड़े ही अहोभाव से उन्हें देखती रहती. उन की शौल ठीक करने के बहाने, फूल या किताब लेने के बहाने, अदिति उन्हें स्पर्श कर लेती. टेबल के सामने डा. हिमांशु बैठ कर लिख रहे होते तो अदिति उन के पैर पर अपना पैर स्पर्श करा कर संवेदना जगाने का प्रयास करती. वे उस की नजरों और हावभाव से उस के मन की बात जान गए थे. फिर भी उन्होंने अदिति से कुछ नहीं कहा. अब तक अदिति का एमए हो गया था. डा. हिमांशु के अंडर में ही वह रिसर्च कर रही थी. उस की थिसिस भी अलग से तैयार ही थी.

अदिति को आभास हो गया था कि डा. हिमांशु उस के मन की बात जान गए हैं. फिर भी वे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. उन के प्रति अदिति का आकर्षण धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा था. आईने के सामने खड़ी स्वयं को निहार रहीअदिति ने तय कर लिया था कि आज वह डा. हिमांशु से अपने मन की बात अवश्य कह देगी. फिर वह मन ही मन बड़बड़ाई, ‘प्रेम करना कोई अपराध नहीं है. प्रेम की कोई उम्र नहीं होती.’

इसी निश्चय के साथ अदिति डा. हिमांशु के घर पहुंची. वे लाइब्रेरी में बैठे थे. अदिति उन के सामने रखे रैक से टिक कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बरसने की तैयारी में थे. उन्होंने अदिति को देखते ही कहा, ‘‘अदिति, बुरा मत मानना, डिपार्टमैंट में प्रवक्ता की जगह खाली है. सरकारी नौकरी है. मैं ने कमेटी के सभी सदस्यों से बात कर ली है. तुम अपनी तैयारी कर लो. तुम्हारा इंटरव्यू फौर्मल ही होगा.’’

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