जनवरी के दिन थे. कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. दीवार घड़ी ने थोड़ी देर पहले ही रात के 12 बजने की घोषणा की थी. कामरान और सुलतान अभी अभी सोए थे. कामरान इस वर्ष 12वीं में था और सुलतान 10वीं में. दोनों की बोर्ड की परीक्षाएं थीं. मैं ने आरंभ से ही उन में प्रतिदिन 1 घंटा अभ्यास करने की आदत डाल रखी थी.

केवल शनिवार को उन की छुट्टी होती थी. 1 घंटा अभ्यास करने के बाद वे हम लोगों के साथ मिल कर ताश या कैरम खेलते या कामिक्स पढ़ते थे. दोनों ही अपनी अपनी कक्षा में प्रथम आते थे और अपनी परीक्षाओं में वे दोनों विशेष योग्यता सूची में आएंगे, इस का हमें पूरा विश्वास था.

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मैं पढ़ाई में हमेशा से कच्ची रही थी. हमारा जमाना और था. तब लड़कियों पर बहुत पाबंदियां थीं. घर से स्कूल, स्कूल से घर. न अध्यापकों से अधिक बात करो, न साथी लड़कों से मेलजोल बढ़ाओ. न कोई घर में पढ़ाने वाला था, न मार्गदर्शन करने वाला. अब्बू खेतीबाड़ी के कामों में व्यस्त रहते थे और दोनों भाई शहर के विद्यालयों में छात्रावास में रह कर पढ़ते थे.

10वीं पास किया ही था कि सलमान  से विवाह हो गया. बच्चे भी जल्दीजल्दी हो गए. सलमान अपने कारोबार के कारण अधिकतर दौरे पर रहते. मुझे मां और पिता दोनों का ही दायित्व निभाना पड़ता. मेरेबच्चे परीक्षा में अच्छे अंक लाएं, खूब पढ़ेंलिखें, इस के लिए मैं ने उन पर कभी जबरदस्ती नहीं की, बल्कि कुछ ऐसी आदतें उन में डाल दीं, जिस से वे स्वयं धीरेधीरे अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित करते गए.

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