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Best Hindi Story : जंगल में रात कैसे कटेगी?

Best Hindi Story : मनचाहा शिकार तो मिल गया, लेकिन शिकारी थक कर चूर हो चुका था. एक तो थकान, दूसरे ढलती सांझ और तीसरे सात कोस का सफर. उस में भी दो कोस पहाड़ी चढ़ाई, फिर उतनी ही ढलान. समर सिंह ने पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज पर निगाह डाल कर घोड़े की गर्दन पर हाथ फेरा. फिर घोड़े की लगाम थामे खड़े सरदार जुझार सिंह को टोकते हुए थके से स्वर में बोले, ‘‘अंगअंग दुख रहा है, सरदार! …ऊपर से सूरज भी पीठ दिखा गया. धुंधलका घिरने वाला है, अंधेरे में कैसे पार करेंगे इस पहाड़ी को?’’

जुझार सिंह थके योद्धा की तरह सामने सीना ताने खड़ी पहाड़ी पर नजर डालते हुए बोले, ‘‘थक तो हम सभी गए हैं, हुकुम. सफर जारी रखा, तो और भी बुरा हाल हो जाएगा. अंधेरे में रास्ता भटक गए तो अलग मुसीबत. मेरे ख्याल से तो…’’ जुझार सिंह की बात का आशय समझते हुए समर सिंह बोले, ‘‘लेकिन इस बियाबान जंगल में रात कैसे कटेगी? हम लोगों के पास तो कोई साधन भी नहीं है. ऊपर से जंगली जानवारों का अलग डर.’’

पीछे खड़े सैनिक समर सिंह और जुझार सिंह की बातें सुन रहे थे. उन दोनों को चिंतित देख एक सैनिक अपने घोड़े से उतरकर सरदार के पास आया और सिर झुका कर खड़ा हो गया. सरदार समझ गए, सैनिक कुछ कहना चाहता है. उन्होंने पूछा, तो सैनिक उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘सरदार, अगर रात इधर ही गुजारनी है, तो सारा बंदोबस्त हो सकता है. आप हुक्म करें.’’

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‘‘क्या बंदोबस्त हो सकता है, मोहकम सिंह?’’ जुझार सिंह ने सवाल किया, तो सैनिक दाईं ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘इस छोटी सी पहाड़ी के पार मेरा गांव है. बड़ी खूबसूरत रमणीक जगह है उस पार. इस पहाड़ी को पार करने के लिए हमें सिर्फ एक कोस चलना पड़ेगा. आधे कोस की चढ़ाई और उस ओर की आधे कोस ढलान. रास्ता बिलकुल साफ है. अंधेरा घिरने से पहले हम गांव पहुंच जाएंगे. मेरे गांव में हुकुम को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

जुझार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से समर सिंह की ओर देखा. वह शांत भाव से घोड़े की पीठ पर बैठे थे. उन्हें चुप देख सरदार ने कहा, ‘‘सैनिक की सलाह बुरी नहीं है हुकुम. रात भी चैन से बीत जाएगी और इस बहाने आप अपनी प्रजा से मिल भी लेंगे. जो लोग आप के दर्शन को तरसते हैं, आप को सामने देख पलकें बिछा देंगे.’’

…और ऐसा ही हुआ था. मोहकम सिंह का प्रस्ताव स्वीकार करके जब समर सिंह अपने साथियों के साथ उसके गांव पहुंचे, तो गांव वालों ने उनके आगे सचमुच पलकें बिछा दीं.

छोटा सा पहाड़ी गांव था, राखावास. साधन विहीन. फिर भी वहां के लोगों ने अपने राजा के लिए ऐसेऐसे इंतजाम किए, जिन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हुकुम के आने से मोहकम सिंह को तो जैसे पर लग गए थे. उस ने गांव के युवकों को एकत्र कर के सूखी मुलायम घास का आरामदेह आसन लगवाया. उस पर सफेद चादर बिछवाई. सरदार के लिए अलग आसन का प्रबंध किया और सैनिकों के लिए अलग. चांदनी रात थी, फिर भी लकडि़यां जला कर रोशनी की गई.

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आननफानन में सारा इंतजाम कराने के बाद गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को शिकार भूनने और बनाने की जिम्मेदारी सौंप कर मोहकम सिंह घोड़ा दौड़ाता हुआ दो कोस दूर समलखा गांव गया और वहां से वीरन देवल से चार बोतल संतूरी ले आया. राजस्थान की बेहतरीन शराब, जो केवल राजामहाराजाओं के लिए बनाई जाती थी.

उन का अदना सा एक सिपाही कितने काम का साबित हो सकता है, यह बात समर सिंह को तब पता चली, जब उस के अपने हाथों मारे गए शिकार का जायकेदार गोश्त परोसा गया, भोजन के साथ संतूरी का लुत्फ लेते हुए उन की नजर घुंघरू छनका कर मस्त अदाओं के साथ नाचती मौली पर पड़ी. ऐसा रूपलावण्य, ऐसा अछूता सौंदर्य, ऐसा मदमाता यौवन और अंगअंग में ऐसी लोच, समर सिंह ने पहली बार देखी थी. उन के महल तक में नहीं थी, ऐसी अनिंद्य सुंदरी. ऊपर से फिजाओं में रंग बिखेरती मौली का सधा हुआ स्वर और एक ही ताल पर बजते घुंघरूओं की झंकार. रहीसही कसर मानू की ढोलक की थाप पूरी कर रही थी. घुंघरूओं की रुनझुन और ढोलक की थाप को सुन लगता था, जैसे दोनों एक दूसरे के पूरक हों.

पूरक थे भी. मौली का सधा स्वर, घुंघरूओं की रुनझुन और मानू की ढोलक की थाप ही नहीं, बल्कि वे दोनों भी. यह अलग बात थी कि इस बात को गांव वाले तो जानते थे, पर समर सिंह और उन के साथी नहीं.

मौली और मानू खूब खुश थे. उन्हें यह सोच कर खुशी हो रही थी कि अपने राजा का मनोरंजन कर रहे हैं. इस के लिए उन दोनों ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश भी की. लेकिन उन की सोच, उनके उत्साह, उन के समर्पण भाव और कला पर पहली बिजली तब गिरी, जब शराब के नशे में झूमते राजा समर सिंह ने मौली को पास बुला कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आज हम ने अपने जीवन में सब से बड़ा शिकार किया है. हमारी शिकार यात्रा सफल रही. ये रात कभी नहीं भूलेगी.’’

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इस तरह मौली का हाथ कभी किसी ने नहीं पकड़ा था. मानू ने भी नहीं. उसे मानू के हाथों का स्पर्श अच्छा लगता था. लेकिन उस ने उस के पैरों के अलावा कभी किसी अंग को नहीं छुआ था. मौली के पैरों में भी उस के हाथों का स्पर्श तब होता था, जब वह अपने हाथों से उस के पैरों में घुंघरू बांधता था.

मौली को राजा द्वारा यूं हाथ पकड़ना अच्छा नहीं लगा. उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, तो समर सिंह उस की कलाई पर दबाव बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आज के बाद तुम सिर्फ हमारे लिए नाचोगी, हमारे महलों में. हम मालामाल कर देंगे, तुम्हें और तुम्हारे घरवालों को ही नहीं, इस गांव को भी.’’

घुंघरूओं की झनकार भी थम चुकी थी और ढोलक की थाप भी. सब लोग विस्मय से राजा की ओर देख रहे थे. कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मानू भी अवाक बैठा था. मौली राजा से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘मौली रास्ते की धूल है हुकुम… और धूल उन्हीं रास्तों पर अच्छी लगती है, जो उस की गगनचुंबी उड़ानों के बाद भी उसे अपने सीने में समेट लेते हैं. इस खयाल को मन से निकाल दीजिए हुकुम. मैं इस काबिल नहीं हूं.’’

समर सिंह ने लोकलाज की वजह से मौली का हाथ तो छोड़ दिया, लेकिन उन्हें मौली की यह बात अच्छी नहीं लगी.

रात बड़े ऐश ओ आराम से गुजरी. मोहकम सिंह और गांव वालों ने हुकुम तथा उन के साथियों की खातिरतवज्जो में कोई कसर न उठा रखी थी. सुबह जब सूरज की किरणों ने पहाड़ से उतर कर राखावास की मिट्टी को छुआ, तो वहां का कणकण निखर गया. राजा समर सिंह ने उस गांव का प्राकृतिक सौंदर्य देखा तो लगा, जैसे स्वर्ग के मुहाने पर बैठे हों. मौली की तरह ही खूबसूरत था उस का गांव. चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा, नीलमणि से जलवाली आधा कोस लंबी झील के किनारे स्थित. पहाड़ों से उतर कर आने वाले बरसाती पानी का करिश्मा थी वह झील.

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रवाना होने से पहले समर सिंह ने मौली के मांबाप को तलब किया. दोनों हाथ जोड़े आ खड़े हुए, तो समर सिंह बोले, ‘‘तुम्हारी बेटी महल की शोभा बनेगी. उसे ले कर महल आ जाना. हम तुम्हें मालामाल कर देंगे.’’

‘‘मौली को हम महल ले आएंगे हुकुम.’’ मौली के मांबाप डरतेसहमते बोले, ‘‘नाचनागाना हमारा पेशा है, पर मौली के साथ मानू को भी आप को अपनी शरण में लेना पड़ेगा. उस के बिना तो मौली का पैर तक नहीं उठ सकता.’’

‘‘हम समझे नहीं.’’ समर सिंह ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में पूछा, तो मौली के पिता बोले, ‘‘मौली और मानू बचपन के साथी हैं. नाचगाना भी दोनों ने साथसाथ सीखा. बहुत प्यार है दोनों में. मौली तभी नाचती है, जब मानू खुद अपने हाथों उस के पांव में घुंघरू बांध कर ढोलक पर थाप देता है. आप लाख साजिंदे बैठा दें, मौली नहीं नाचेगी हुकुम… इस बात को सारा इलाका जानता है.’’

‘‘हमारे लिए भी नहीं?’’ समर सिंह ने अपमान का सा घूंट पीते हुए गुस्से में कहा, तो मौली के पिता बोले, ‘‘आप के लिए नाचेगी हुकुम…जरूर नाचेगी. लेकिन उस के साथ मानू का होना जरूरी है. सारा गांव जानता है, मौली और मानू दो जिस्म एक जान हैं. अलग कर के सिर्फ दो लाशें रह जाएंगी. उन्हें अलग करना सम्भव नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे मुंह से बगावत की बू आ रही है. …और हमें बागी बिल्कुल पसंद नहीं.’’ समर सिंह गुस्से में बोले, ‘‘मौली को खुद महल लेकर आते तो हम मालामाल कर देते तुम्हें, लेकिन अब हम खुद उसे साथ लेकर जाएंगे. जाकर तैयार करो उसे, यह हमारा हुक्म है.’’

अच्छा तो किसी को नहीं लगा, लेकिन राजा की जिद के सामने किस की चलती? आखिरकार वही हुआ, जो समर सिंह चाहते थे. रोतीबिलखती मौली को उन के साथ जाने को तैयार कर दिया गया. विदा बेला में मौली ने पहली बार मानू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मौली तेरी है मानू, तेरी ही रहेगी. राजा इस लाश से कुछ हासिल नहीं कर पाएगा.’’

मानू के होंठों से जैसे शब्द रूठ गए थे. वह पलकों में आंसू समेटे चुपचाप देखता रहा. आंसू और भी कई आंखों में थे, लेकिन राजा के भय ने उन्हें पलकों से बाहर नहीं आने दिया. अंतत: मौली राखावास से राजा के साथ विदा हो गई.

राखावास में देवल, राठौर और नाड़ीबट््ट रहते थे. मौली और मानू दोनों ही नट जाति के थे. दोनों साथसाथ खेलतेकूदते बड़े हुए थे. दोनों के परिवारों का एक ही पेशा था, नाचगाना और भेड़बकरियां पालना. मानू के पिता की झील में डूबने से मौत हो गई थी. घर में मां के अलावा कोई न था. जब यह हादसा हुआ, मानू कुल नौ साल का था. पिता की मौत के बाद मां ने कसम खा ली कि वह अब जिंदगी भर न नाचेगी, न गाएगी. घर में 10-12 भेड़बकरियों के अलावा आमदनी का कोई साधन नहीं था. भेड़बकरियां मांबेटे का पेट कैसे भरतीं? फलस्वरूप घर में रोटियों के लाले पड़ने लगे. कभीकभी तो मानू को जंगली झरबेरियों के बेर खा कर दिन भर भेड़बकरियों के पीछे घूमना पड़ता था.

मौली बचपन से मानू के साथ रही थी. वह उस का दर्द समझती थी. उसे मालूम था, मानू कितना चाहता है उसे. कैसे अपने बदन को जख्मी कर के झरबेरियों में से कुर्ते की झोली भरभर लाललाल बेर लाता था उस के लिए… और बकरियों के पीछे भागतेदौड़ते उस के पांव में कांटा भी चुभ जाता था, तो कैसे तड़प उठता था वह. खून और दर्द रोकने के लिए उस के गंदे पांवों के घाव पर मुंह तक रखने से परहेज नहीं करता था वह.

अमीर तो मौली का परिवार भी नहीं था. बस, जैसेतैसे रोजीरोटी चल रही थी. मौली को जो भी घर में खाने को मिलता, उसे वह अकेली कभी नहीं खाती. बहाना बना कर भेड़बकरियों के पीछे साथ ले जाती. फिर किसी बड़े से पत्थर पर बैठ कर अपने हाथों से मानू को खिलाती. मानू कभी कहता, ‘‘मेरे नसीब में भूख लिखी है. मेरे लिए तू क्यों भूखी रहती है?’’ तो मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर, उस की आंखों में झांकते हुए कहती, ‘‘मेरी आधी भूख तुझे देख कर भाग जाती है और आधी, रोटी खा कर. मैं भूखी कहां रहती हूं मानू?’’

इसी तरह भेड़बकरियां चराते, पहाड़ी ढलानों पर उछलकूद मचाते मानू चौदह साल का हो गया था और मौली बारह साल की. दुनियादारी को थोड़ाबहुत समझने लगे थे दोनों. इस बीच मानू की मां उस के पिता की मौत के गम को भूल चुकी थी. गांव के ही एक दूसरे आदमी का हाथ थाम कर अपनी दुनिया आबाद कर ली थी उस ने. सौतेला बाप मानू को भी साथ रखने को तैयार था, लेकिन उस ने इनकार कर दिया.

मानू और मौली जानते थे, नाचगाना उन का खानदानी पेशा है. थोड़ा और बड़ा होने पर उन्हें यही पेशा अपनाना पड़ेगा. उन्हें यह भी मालूम था कि उन के यहां जो अच्छे नाचनेगाने वाले होते हैं, उन्हें राजदरबार में जगह मिल जाती है. ऐसे लोगों को धनधान्य की कमी नहीं रहती. हकीकतों से अनभिज्ञ वे दोनों सोचते, बड़े होकर वे भी कोशिश करेंगे कि उन्हें राज दरबार में जगह मिल जाए.

एक दिन बकरियों के पीछे दौड़ते, पत्थर से टकरा कर मौली का पांव बुरी तरह घायल हो गया. मानू ने खून बहते देखा, तो कलेजा धक से रह गया. उस ने झट से अपना कुर्ता उतार कर खून पोंछा. लेकिन खून था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मानू का पूरा कुर्ता खून से तर हो गया, पर खून नहीं रुका. चोट मौली के पैर में लगी थी, पर दर्द मानू के चेहरे पर झलक रहा था. उसे परेशान देख मौली बोली, ‘‘कुर्ता खून में रंग दिया, अब पहनेगा क्या?’’

हमेशा की तरह मानू के चेहरे पर दर्दभरी मुस्कान तैर आई. वह खून रोकने का प्रयास करते हुए दुखी स्वर में बोला, ‘‘कुर्ता तेरे पांव से कीमती नहीं है. दसपांच दिन नंगा रह लूंगा, तो मर नहीं जाऊंगा.’’

काफी कोशिशों के बाद भी खून बंद नहीं हुआ, तो मानू मौली को कंधे पर डाल कर झील के किनारे ले गया. मौली को पत्थर पर बैठा कर उस ने झील के जल से उस का पैर धोया. आसपास झील का पानी सुर्ख हो गया. फिर भी खून था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था.

कुछ नहीं सूझा तो मानू ने अपने खून सने कुर्ते को पानी में भिगो कर उसे फाड़ा और पट्टियां बदलबदलकर घाव पर रखने लगा. उस की यह युक्ति कारगर रही. थोड़ी देर में मौली के घाव से खून बहना बंद हो गया. उस दिन मौली को पहली बार पता चला कि मानू उसे कितना चाहता है. मानू मौली का पांव अपनी गोद में रखे धीरेधीरे घाव को सहला रहा था, ताकि दर्द कम हो जाए. तभी मौली ने उसे टोका, ‘‘खून बंद हो चुका है, मानू. दर्द भी कम हो गया. तेरे शरीर पर, धवले (लुंगी) पर खून के दाग लगे हैं. नहा कर साफ कर ले.’’

मौली का पैर थामे बैठा मानू कुछ देर शांत भाव से झील को निहारता रहा. फिर उस की ओर देख कर उद्वेलित स्वर में बोला, ‘‘झील के इस जल में तेरा खून मिला है मौली. मैं इस झील में कभी नहीं नहाऊंगा… कभी नहीं.’’

थोड़ी देर शांत रहने के बाद मानू उसके पैर को सहलाते हुए गम्भीर स्वर में बोला, ‘‘अपने ये पैर जिंदगी भर के लिए मुझे दे दे मौली. मैं इन्हें अपने हाथों से सजाऊंगा, सवारुंगा.’’

‘‘मेरा सब कुछ तेरा है मानू’’ मौली उस के कंधे पर हाथ रख कर उस की आंखें में झांकते हुए बोली, ‘‘सब कुछ. अपनी चीज को कोई खुद से मांगता है क्या?’’

पलभर के लिए मानू अवाक रह गया. उसे वही जवाब मिला था, जो वह चाहता था. वह मौली की ओर देख कर बोला, ‘‘मौली, अब हम दोनों बड़े हो चुके हैं, ज्यादा दिन इस तरह साथसाथ नहीं रह पाएंगे. लोग देखेंगे, तो उल्टीसीधी बातें करेंगे. जबकि मैं तेरे बिना नहीं रह सकता. हमें ऐसा कुछ करना होगा, जिस से जिंदगी भर साथ न छूटे.’’

‘‘ऐसा क्या हो सकता है?’’ मौली ने परेशान से स्वर में पूछा, तो मानू सोचते हुए बोला, ‘‘नाचनागाना हमारा खानदानी पेशा है न, हम वही सीखेंगे. तू नाचेगीगाएगी, मैं ढोलक बजाऊंगा. हम दोनों इस काम में ऐसी महारत हासिल करेंगे कि दो जिस्म एक जान बन जाएं. कोई हमें अलग करने की सोच भी न सके.’’

मौली खुद भी यही चाहती थी. वह मानू की बात सुन कर खुश हो गई. मौली का पांव ठीक होने में एक पखवाड़ा लगा और मानू को दूसरा कुर्ता मिलने में भी. इस बीच वह पूरे समय नंगा घूमता रहा. आंधी, धूप या बरसात तक की चिंता नहीं की उस ने. उसे खुशी थी कि उस का कुर्ता मौली के काम तो आया.

मानू के पिता की ढफ घर में सहीसलामत रखी थी. कभी उदासी और एकांत के क्षणों में बजाया करता था वह उसे. मौली का पैर ठीक हो गया, तो एक दिन मानू उसी ढफ को झाड़पोंछ कर ले गया जंगल. मौली अपने घर से घुंघरू ले कर आई थी.

मानू ने एक विशाल शिला को चुन कर अपना साधनास्थल बनाया और मौली के पैरों में अपने हाथों से घुंघरू बांधे. उसी दिन से मानू की ढफ की ताल पर मौली की नृत्य साधना शुरू हुई, जो अगले 2 वर्षों तक निर्बाध चलती रही. इस बीच ढफ और ढोलक पर मानू ने नएनए ताल ईजाद किए और मौली ने नृत्य एवं गायन की नईनई कलाएं सीखीं.

अपनीअपनी कलाओं में पारंगत होने के बाद मौली और मानू ने होली के मौके पर गांव वालों के सामने अपनीअपनी कलाओं का पहला प्रदर्शन किया, तो लोग हतप्रभ रह गए. उन्होंने इस से पहले न ऐसा ढोलक बजाने वाला देखा था, न ऐसी अनोखी अदाओं के साथ नृत्य करने वाली. कई गांव वालों ने उसी दिन भविष्यवाणी कर दी थी कि मौली और मानू की जोड़ी एक दिन राजदरबार में जा कर इस गांव का मान बढ़ाएगी.

समय के साथ मानू और मौली का भेड़करियां चराना छूट गया और नृत्यगायन पेशा बन गया. कुछ ही दिन में इलाकेभर में उन की धूम मच गई. आसपास के गांवों के लोग अब उन दोनों को तीजत्योहार और विवाहशादियों के अवसर पर बुलाने लगे. इस के बदले उन्हें धनधन्य भी मिल जाता था. मानू ने अपनी कमाई के पैसे जोड़ कर सब से पहले मौली के लिए चांदी  के घुंघरू बनवाए. घुंघरू मौली को सौंपते हुए वह बोला, ‘‘ये मेरे प्यार की पहली निशानी है, इन्हें संभाल कर रखना. लोग घुंघरूओं को नाचने वाली के पैरों की जंजीर कहते हैं, लेकिन मेरे विचार से किसी भी नृत्यांगना के लिए इस से बढि़या कोई तोहफा नहीं हो सकता. तुम इन्हें जंजीर मत समझना. इन घुंघरूओं को तुम्हारे पैरों में बांधूगा भी मैं और खोलूंगा भी मैं.’’

मौली को मानू की बात भी अच्छी लगी और तोहफा भी. उस दिन के बाद से वही हुआ, जो मानू ने कहा था. मौली को जहां भी नृत्यकला का प्रदर्शन करना होता, मानू खुद उस के पैरों में घुंघरू बांधकर ढोलक पर ताल देता. ताल के साथ ही मौली के पैर थिरकने लगते. जब तक मौली नाचती, मानू की निगाह उस के पैरों पर ही जमी रहती. प्रदर्शन के बाद वही अपने हाथों से मौली के पैरों के घुंघरू खोलता.

प्यार क्या होता है, यह न मौली जानती थी, न मानू. वे तो केवल इतना जानते थे कि वे दोनों बने ही एकदूसरे के लिए हैं. मरेंगे तो साथ, जिएंगे तो साथ. मौली और मानू अपने प्यार की परिभाषा भले ही न जानते हों, पर गांववाले उन के अगाध प्रेम को देख जरूर जान गए थे कि वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. उन्हें उन के इस प्यार पर नाज भी था. किसी ने उन के प्यार में बाधा बनने की कोशिश भी नहीं की. मौली के मातापिता तक ने भी नहीं.

एक बार एक पहुंचे हुए साधू घूमतेघामते राखावास आए, तो गांव के कुछ युवकयुवतियां उन से अपनाअपना भविष्य पूछने लगे. उन में मौली भी शामिल थी. साधू बाबा उस के हाथ की लकीरें देखते ही बोले, ‘‘तेरी किस्मत में राजयोग लिखा है. किसी राजा की चहेती बनेगी तू.’’

मौली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मानू से बिछुड़ने की. उस के लिए वह राजवाज तो क्या, सारी दुनिया को ठोकर मार सकती थी. उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मेरी किस्मत में राजयोग लिखा है, तो मानू का क्या होगा बाबा? …वह तो मेरे बिना…?’’

साधू बाबा पल भर आंखें बंद किए बैठे रहे. फिर आंखें खोल कर वह नीली झील की ओर निहारते हुए बोले, ‘‘वह इस झील में डूब कर मरेगा.’’

मौली सन्न रह गई. लगा, जैसे धरतीआकाश एक साथ हिल रहे हों, न चाहते हुए भी उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ऐसा होने नहीं दूंगी. मुझे मानू से कोई अलग नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर साधू बाबा ठहाका लगा कर हंसे. थोड़ी देर हंसने के बाद वे शांत स्वर में बोले, ‘‘होनी को कौन टाल सकता है बालिका.’’

बाबा अपनी राह चले गए. मौली को लगा, जैसे उस के सीने पर सैकड़ों मन वजन का पत्थर रख गए हों. यह बात सोचसोच कर वह पागल हुई जा रही थी कि बाबा की भविष्यवाणी सच निकली, तो क्या होगा? उस दिन जब मानू मिला, तो मौली उसे खींचते हुए झीलकिनारे ले गई और उस का हाथ अपने सिर पर रख कर बोली, ‘‘मेरी कसम खा मानू, तू आज के बाद जिंदगी भर कभी इस झील में कदम तक नहीं रखेगा.’’

मानू को मौली की यह बात बड़ी अजीब लगी. वह उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘यह कसम तो मैंने उसी दिन खा ली थी, जब तेरा खून इस झील के जल में मिल गया था. फिर भी तू कहती है, तो एक बार फिर कसम खा लेता हूं …पर बात क्या है? …इतनी घबराई हुई क्यों है?’’

मानू के कसम खा लेने के बाद मौली ने बाबा की बात उसे बताई, तो मानू हंसते हुए बोला, ‘‘तू इतना डरती क्यों है? जब मैं झील के पानी में कभी उतरूंगा ही नहीं, तो डूबूंगा कैसे? फिर कोई जरूरी तो नहीं कि बाबा की भविष्यवाणी सच ही हो.’’

साधू की भविष्यवाणी को वर्षों बीत चुके थे. इस बीच मौली 17 साल की हो गई थी और मानू 19 का. दोनों ही बाबा की बात भूल चुके थे.

…और तभी शिकार से लौटते समय राजा समर सिंह राखावास में रुके थे.

समर सिंह मौली को अपने साथ क्या ले गए, राखावास के प्राकृतिक दृश्यों की शोभा चली गई, गांव वालों का अभिमान चला गया और चली गई मानू की जान. पागलसा हो गया मानू. बस झील किनारे बैठा उस राह को निहारता रहता, जिस राह  राजा के साथ मौली गई थी. खानेपीने का होश ही नहीं था उसे. लगता था, जैसे राजा उस की जान निकाल कर ले गया हो.

बात तब की है, जब हिन्दुस्तान में मुगलिया सल्तनत का पराभव हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी का परचम पूरे देश में फहराने के प्रयास किए जा रहे थे. देश के कितने ही राजेरजवाड़े विलायती झंडे के नीचे आ चुके थे, और कितने आने को मजबूर थे. उन्हीं दिनों अरावती पर्वतमाला की घाटियों में बसी एक छोटीसी रियासत थी चंदनगढ़. इस रियासत के राजा समर सिंह थे तो अंग्रेज विरोधी, पर शक्तिहीनता की वजह से उन्हें भी ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले आना पड़ा था. उन पर अंग्रेजों का इतना प्रभाव था कि उन्हें अपने घोड़े गोरा का नाम बदल कर गोरू करना पड़ा था.

समर सिंह उन राजाओं में थे, जो रासरंग में डूबे रहने के कारण राजकाज और प्रजा का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते थे. राजा समर सिंह को 2 ही शौक थे, पहला शिकार का और दूसरा नाचगाने और मौजमस्ती का. मौली को भी उन्होंने इसी उद्देश्य से चुना था. लेकिन यह उन की भूल थी. वह नहीं जानते थे कि मौली दौलत की नहीं, प्यार की दीवानी है.

राजा समर सिंह मौली के रूपलावण्य, मदमाते यौवन और उस की नृत्यकला से प्रभावित हो कर उसे साथ जरूर ले आए थे, लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी भान नहीं था कि यह सौदा उन्हें सस्ता नहीं पड़ेगा.

राजमहल में पहुंच कर मौली का रंग ही बदल गया. राजा ने उस की सेवा के लिए दासियां भेजीं, नएनए वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार प्रसाधन भेजे, लेकिन मौली ने किसी चीज की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा. वह जिंदा लाशसी शांत बैठी रही. किसी से बोली तक नहीं, मानों गूंगी हो गई थी वह. दासियों ने समझाया, पड़दायतों ने मनुहार की, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

राजा समर सिंह को पता चला, तो वे स्वयं मौली के पास पहुंचे. उन्होंने उसे पहले प्यार से समझाने की कोशिश की, फिर भी मौली कुछ नहीं बोली, तो राजा ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम्हें महल ला कर हम ने जो इज्जत बख्शी है, वह हर किसी को नहीं मिलती… और एक तुम हो, जो इस सब को ठोकर मारने पर तुली हो. यह जानते हुए भी कि अब तुम्हारी लाश भी राखावास नहीं लौट सकती. हां, तुम अगर चाहो, तो हम तुम्हारे वजन के बराबर धनदौलत तुम्हारे मातापिता को भेज सकते हैं. लेकिन अब तुम्हें हर हाल में हमारी बन कर हमारे लिए जीना होगा.’’

मौली को मौत का डर नहीं था. डर था तो मानू का. वह जानती थी, मानू उस के विरह में सिर पटकपटक कर जान दे देगा. उसे यह भी मालूम था कि उस की वापसी संभव नहीं है. काफी सोचविचार के बाद उस ने राजा समर सिंह के सामने प्रस्ताव रखा, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि मैं आप के महल की शोभा बन कर रहूं, तो मेरे लिए पहाड़ों के बीचवाली उस झील के किनारे महल बनवा दीजिए, जिस के उस पार मेरा गांव है.’’

अपने इस प्रस्ताव में मौली ने 2 शर्तें भी जोड़ीं. एक यह कि जब तक महल बन कर तैयार नहीं हो जाता, राजा उसे छुएंगे तक नहीं और दूसरी यह कि महल में एक ऐसा परकोटा बनवाया जाएगा, जहां से वह हर रोज अपनी चुनरी लहराकर मानू को बता सके कि वह जिंदा है. मानू उसी के सहारे जीता रहेगा.

मौली, मानू को जान से ज्यादा चाहती है, यह बात समर सिंह को अच्छी नहीं लग रही थी. कहां एक नंगाभूखा लड़का और कहां राजमहल के सुख. लेकिन मौली की जिद के आगे वह कर भी क्या सकते थे. कुछ करते, तो मौली जान दे देती. मजबूर हो कर उन्होंने उस की शर्तें स्वीकार कर लीं.

राखावास के ठीक सामने झील के उस पार वाली पहाड़ी पर राजा ने महल बनवाना शुरू किया. बुनियाद कुछ इस तरह रखी गई कि झील का पानी महल की दीवार छूता रहे. झील के 3 ओर बड़ीबड़ी पहाडि़यां थीं. चौथी ओर वाली छोटी पहाड़ी की ढलान पर राखावास था. महल से राखावास या राखावास से महल तक आध कोस लंबी झील को पार किए बिना किसी तरह जाना संभव नहीं था.

उन दिनों आज की तरह न साधनसुविधाएं थीं, न मार्ग. ऐसी स्थिति में चंदनगढ़ से 7 कोस दूर पहाड़ों के बीच महल बनने में समय लगना स्वाभाविक ही था. मौली इस बात को समझती थी कि यह काम एक साल से पहले पूरा नहीं हो पाएगा. और इस एक साल में मानू उस के बिना सिर पटकपटक कर जान दे देगा. लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राजा ने उस की सारी शर्तें पहले ही मान ली थीं.

लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. मोहब्बत कहीं न कहीं अपना रंग दिखा कर ही रहती है. मौली के जाने के बाद मानू सचमुच पागल हो गया था. उस का वही पागलपन उसे चंदनगढ़ खींच ले गया. मौली के घुंघरू जेब में डाले वह भूखाप्यासा, फटेहाल महीनों तक चंदनगढ़ की गलियों में घूमता रहा. जब भी उसे मौली की याद आती, जेब से घुंघरू निकाल कर आंखों से लगाता और जारजार रोने लगता. लोग उसे पागल समझ कर उस का दर्द पूछते, तो उस के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता मौली.

मानू चंदनगढ़ आ चुका है, मौली भी इस तथ्य से अनभिज्ञ थी और समर सिंह भी. उधर मानू ने राजमहल की दीवारों से लाख सिर टकराया, पर वह मौली की एक झलक तक नहीं देख सका. महीनों यूं ही गुजर गए.

राजा समर सिंह जिस लड़की को राजनर्तकी बनाने के लिए राखावास से चंदनगढ़ लाए हैं, उस का नाम मौली है, यह बात किसी को मालूम नहीं थी. राजा स्वयं उसे मालेश्वरी कह कर पुकारते थे. उस की सेवा में दासदासियां रहती थीं. एक दिन उन्हीं में से एक दासी ने बताया, ‘‘नगर में एक दीवाना मौलीमौली पुकारता घूमता है. पता नहीं कौन है मौली, उस की मां, बहन या प्रेमिका. बेचारा पागल हो गया है उस के गम में. न खाने की सुध, न कपड़ों की. एक दिन महल के द्वार तक चला आया था, पहरेदारों ने धक्के दे कर भगा दिया. कहता था, इन्हीं दीवारों में कैद है मेरी मौली.’’

मौली ने सुना तो कलेजा धक्क से रह गया. प्राण गले में अटक गए. लगा, जैसे बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. वह संज्ञाशून्य सी पलंग पर बैठ कर शून्य में ताकने लगी. दासी ने उस की ऐसी स्थिति देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है? आप मेरी बात सुन कर परेशान क्यों हो गईं? आप को क्या, होगा कोई दीवाना. मैंने तो जो सुना था, आप को यूं ही बता दिया.’’

मौली ने अपने आप को लाख संभालना चाहा, लेकिन आंसू पलकों तक आ ही गए. दासी पलभर में समझ गई, जरूर कोई बात है. उस ने मौली को कुरेदना शुरू किया, तो वह न चाहते हुए भी उससे दिल का हाल कह बैठी. दासी सहृदय थी. मौली और मानू की प्रेम कहानी सुनने और उन के जुदा होने की बात सुन उसका हृदय पसीज गया. मौली ने उस से निवेदन किया कि वह किसी तरह मानू तक उस का यह संदेश पहुंचा दे कि वह उस से मिले बिना न मरेगी, न नाचेगी. वह वक्त का इंतजार करे. एक न एक दिन दोनों का मिलन होगा जरूर. जब तक मिलन नहीं होता, तब तक वह अपने आप को संभाले. प्यार में पागल बनने से कुछ नहीं मिलेगा.

दासी ने जैसेतैसे मौली का संदेश मानू तक पहुंचाया भी, लेकिन उस पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

उन्हीं दिनों एक अंग्रेज अधिकारी को चंदनगढ़ आना था. राजा समर सिंह ने अधिकारी को खुश करने के लिए उस की खातिरदारी का पूरा इंतजाम किया. महल को विशेष रूप से सजाया गया. नाचगाने का भी प्रबंध किया गया. राजा समर सिंह चाहते थे कि मौली अपनी नृत्य कला से अंग्रेज रेजीडेंट का दिल जीते. उन्होंने इस के लिए मौली से मानमनुहार की, तो उस ने शर्त बता दी, ‘‘मानू नगर में मौजूद है, उसे बुलाना पड़ेगा. वह आ कर मेरे पैरों में घुंघरू बांध देगा, तो मैं नाचूंगी.’’

समर सिंह जानते थे कि जो बात मौली की नृत्यकला में है, वह किसी दूसरी नर्तकी के नृत्य में हो ही नहीं सकती. अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. राजा ने मौली की शर्त स्वीकार कर ली. मानू को ढुंढ़वाया गया. साफसफाई और स्नान के बाद नए कपड़े पहना कर उस का हुलिया बदला गया.

अगले दिन जब रेजीडेंट आया, तो पूरी तैयारी के बाद मौली को सभा में लाया गया. सभा में मौजूद सब लोगों की निगाहें मौली पर जमी थीं और उस की निगाहें उस सब से अनभिज्ञ मानू को खोज रही थीं. मानू सभा में आया, तो उसे देख मौली की आंखें बरस पड़ीं. मन हुआ, आगे बढ़ कर उस से लिपट जाए, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा न कर सकी. करती, तो दोनों के प्राण संकट में पड़ जाते. उस ने लोगों की नजर बचा कर आंसू पोंछ लिए.

आंसू मानू की आंखों में भी थे, लेकिन उसने उन्हें बाहर नहीं आने दिया. खुद को संभाल कर वह ढोलक के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठा. मौली धीरेधीरे कदम बढ़ा कर उस के पास पहुंची, तो मानू थोड़ी देर अपलक उस के पैरों को निहारता रहा. फिर उस ने जेब से घुंघरू निकाल कर माथे से लगाए और मौली के पैरों में बांध दिए. इस बीच मौली उसे ही निहारती रही. घुंघरू बांधते वक्त मानू के आंसू पैरों पर गिरे, तो मौली की तंद्रा टूटी. मानू के दर्द का एहसास कर उस के दिल से आह भी निकली, पर उस ने उसे जैसेतैसे जज्ब कर लिया.

इधर ढोलक पर मानू की थाप पड़ी और उधर मौली के पैर थिरके. पलभर में समां बंध गया. मौली उस दिन ऐसा नाची, जैसे वह उस का अंतिम नृत्य हो. लोगों के दिल धड़कधड़क कर रह गए. अंग्रेज रेजीडेंट बेहद खुश हुआ. उस ने नृत्य, गायन और वादन का ऐसा अनूठा समन्वय पहली बार देखा था. राजा समर सिंह का जो मकसद था, पूरा हुआ. महफिल समाप्त हुई, तो मौली ने मानू से हमेशा की तरह घुंघरू खुलवाने चाहे, लेकिन राजा ने इस की इजाजत नहीं दी.

अंग्रेज अधिकारी वापस चला गया, तो मानू को महल के बाहर कर दिया गया. मौली अपने कक्ष में चली गई. उस ने कसम खा ली कि उस के पैरों के घुंघरू खुलेंगे, तो मानू के हाथों से ही.

झील किनारे वाला महल तैयार होने में एक वर्ष लगा. छोटे से इस महल में राजा समर सिंह ने मौली के लिए सारी सुविधाएं जुटाई थीं. मौली की इच्छानुसार एक परकोटा भी बनवाया गया था, जहां खड़ी हो कर वह झील के उस पार स्थित अपने गांव को निहार सके.

राजा समर सिंह जानते थे कि मौली और मानू एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं. प्यार में वे दोनों किसी भी हद तक जा सकते थे. इसी बात को ध्यान में रख कर राजा समर सिंह ने महल से सौ गज दूर झील के पानी में पत्थरों की एक ऐसी अदृश्य दीवार बनवाई, जिस के आरपार पानी तो जा सके, पर जीवों का जाना संभव न हो. दीवार के इस पार उन्होंने पानी में 2 मगरमच्छ छुड़वा दिए. यह सब उन्होंने इसलिए किया था, ताकि मानू झील में तैर कर इस पार न आ सके. आए, तो मगरमच्छों का शिकार बन जाए.

पूरी तैयारी हो गई, तो मौली को झील किनारे निर्मित महल में भेज दिया गया. जिस दिन मौली को महल में ले जाया गया, उस दिन महल को खूब सजाया गया. राजा समर सिंह की उस दिन वर्ष भर पुरानी आरजू पूरी होनी थी.

वादे के अनुसार मौली ने राजा के सामने स्वयं को समर्पित कर दिया. उस दिन उस ने अपना श्रृंगार खुद किया था, बेहद खूबसूरत लग रही थी वह. समर सिंह की बाहों में सिमटते हुए उस ने सिर्फ इतना कहा था, ‘‘आज से मेरा तन आप का है, पर मन को आप कभी नहीं छू पाएंगे. मन पर मानू का ही अधिकार रहेगा.’’

राजा को मौली के मन से क्या लेनादेना था. उन की जिद भी पूरी हो गई और हवस भी. उस दिन के बाद मौली स्थाई रूप से उसी महल में रहने लगी. सेवा में दासदासियां और सुरक्षा के लिए सैनिकों की व्यवस्था थी. महीने में 6-7 दिन मौली के साथ गुजारने के लिए राजा समर सिंह झीलवाले महल में आते रहते थे. वहीं रह कर वह पास वाले जंगल में शिकार भी खेलते थे.

मौली का रोज का नियम था. हर शाम वह महल के परकोटे पर खड़ी हो कर अपनी वही चुनरी हवा में लहराती, जो गांव से ओढ़ कर आई थी.

मानू को मालूम  था कि मौली झीलवाले महल में आ चुकी है. वह हर रोज झील के किनारे बैठा मौली की चुनरी को देखा करता. इस से उस के मन को काफी तसल्ली मिलती. कई बार उस का दिल करता भी, कि वह झील को पार कर के मौली के पास जा पहुंचे, लेकिन मौली की कसम उस के पैर बांध देती थी.

देखतेदेखते एक वर्ष और गुजर गया. मौली को गांव छोड़े दो वर्ष होने को थे. तभी एक दिन राजा समर सिंह को अंग्रेज रेजीडेंट का संदेश मिला कि वह उन की रियासत के मुआयने पर आ रहे हैं और उसी नर्तकी का नृत्य देखना चाहते हैं, जो पिछली यात्रा में उन के सामने पेश की गई थी.

राजा समर सिंह ने जब यह बात मौली को बताई, तो उस ने अपनी शर्त रखते हुए कहा, ‘‘यह तभी संभव है, जब मानू मेरे साथ हो. उस के बिना नृत्य का कोई भी आयोजन मेरे बूते में नहीं है.’’

समर सिंह ने मौली को समझाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. फलस्वरूप राजा समर सिंह को झुकना पड़ा. मौली ने राजा से कहा कि वह चंदनगढ़ जाने के बजाय उसी महल में नृत्य करेगी और मानू को भी वहीं बुलाना होगा.

राजा समर सिंह नहीं चाहते थे कि मानू किसी भी रूप में मौली के सामने आए. जबकि अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करना भी उन की मजबूरी थी. सोचविचार कर राजा ने झील में बनी अदृश्य दीवार (पानी के नीचे) पर ठीक महल के परकोटे के सामने पत्थरों का एक बड़ा सा गोल चबूतरा बनवा कर उस पर प्रकाश स्तंभ स्थापित कराया. इस चबूतरे और महल के बीच ही वह कुंड था, जिस में मगरमच्छ थे. मगरमच्छों को भोजन चूंकि उसी कुंड में डाला जाता था, अत: वे वहीं मंडराते रहते थे. महल के परकोटे से 2 मजबूत रस्सियां इस प्रकार प्रकाश स्तंभ में बांधी गईं, कि आदमी एक रस्सी के द्वारा स्तंभ तक जा सके और दूसरी से आ सके.

अंग्रेज रेजीडेंट के आने का दिन तय हो चुका था. उसी हिसाब से राजा ने झीलवाले महल में मेहमानवाजी की तैयारियां कराईं. जिस दिन रेजीडेंट को आना था, उस दिन 2 सैनिक इस आदेश के साथ राखावास भेजे गए कि वे झील के रास्ते मानू को प्रकाश स्तंभ तक भेजेंगे. मौली ने मानू को झील में न उतरने की कसम दे रखी थी, यह बात समर सिंह नहीं जानते थे.

तयशुदा दिन जब अंग्रेज रेजीडेंट चंदनगढ़ पहुंचा, राजा समर सिंह यह कह कर उसे झीलवाले महल में ले गए, कि उन्होंने इस बार उन के मनोरंजन की व्यवस्था प्रकृति की गोद में की है. राजा का झीलवाला महल अंग्रेज रेजीडेंट को खूब पसंद आया.

मौली भी उस दिन खूब खुश थी. मानू से मिलने की खुशी उस के चेहरे से फूटी पड़ रही थी. उसे क्या मालूम था कि मानू को उस के सामने झीलवाले रास्ते से लाया जाएगा और वह ठीक से उस की सूरत भी नहीं देख पाएगी.

जब सारी तैयारियां हो गईं और अंग्रेज रेजीडेंट भी आ गया, तो महल के परकोटे से मौली की चुनरी से राखावास की ओर वहां मौजूद सैनिकों को इशारा किया गया. सैनिकों ने मानू से झील के रास्ते प्रकाश स्तंभ तक तैर कर जाने को कहा, तो उस ने इनकार कर दिया कि वह मौली की कसम नहीं तोड़ सकता. इस पर सैनिकों ने उस से झूठ बोला कि मौली ने अपनी कसम तोड़ दी है, वह अपनी चुनरी लहरा कर उसे बुला रही है. मानू ने महल के परकोटे पर चुनरी लहराते देखी, तो उसे सैनिकों की बात सच लगी. उस ने बिना सोचेसमझे मौली के नाम पर झील में छलांग लगा दी.

जिस समय मानू झील को पार कर प्रकाश स्तंभ तक पहुंचा, उस समय तक  राजा समर सिंह का एक कारिंदा रस्सी के सहारे ढोलक लेकर वहां जा पहुंचा था. उसी ने मानू को बताया कि महल और प्रकाश स्तंभ के बीच मगरमच्छ हैं. उसे उसी स्तंभ पर बैठ कर ढोलक बजानी होगी और मौली उसी धुन पर परकोटे पर नाचेगी. कारिंदा राजा का हुक्म सुना कर दूसरी रस्सी के सहारे वापस लौट आया.

मौली को जब राजा की इस चाल का पता चला, तो वह मन ही मन खूब कुढ़ी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. उस ने मन ही मन फैसला किया कि आज वह अंतिम बार राजा की महफिल में नाचेगी और नाचतेगाते ही हमेशाहमेशा के लिए अपने मानू से जा मिलेगी.

राजा की महफिल छत पर सजी थी. प्रकाश स्तंभ और महल की छत पर विशेष प्रकाश व्यवस्था कराई गई थी. जब अंधेरा घिर आया और चारों ओर निस्तब्ध्ता छा गई, तो मौली को महफिल में बुलाया गया. उस समय उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. सजीधजी मौली घुंघरू खनकाती महफिल में पहुंची, तो लोगों के दिल धड़क उठे. मौली ने परकोटे पर खड़े हो कर श्वेत ज्योत्सना में नहाई झील को देखा. प्रकाश स्तंभ के पास सिकुड़ेसिमटे बैठे मानू को देखा और फिर आकाश के माथे पर टिकुली की तरह चमकते चांद को निहारते हुए बुदबुदाई, ‘‘हे मालिक, तुम से कभी कुछ नहीं मांगा, पर आज मांगती हूं. इस नाचीज को एक बार, सिर्फ एक बार उस के प्यार के गले जरूर लग जाने देना.’’

मन की मुराद मांग कर मौली ने एक बार जोर से पुकारा, ‘‘मानू…’’

उस की आवाज के साथ ही मानू के हाथ ढोलक पर चलने लग. ढोलक की आवाज वादियों में गूंजने लगी और उस के साथ ही मौली के पैरों के घुंघरू भी. पल भर में समां बंध गया. सभा में मौजूद लोग दिल थामे मौली की कला का आनंद लेने लगे. अभी महफिल जमे ज्यादा देर नहीं हुई थी.

मौली का पहला नृत्य पूरा होने वाला था. लोग वाहवाह कर रहे थे. तभी मौली तेजी से पीछे पलटी और कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही मानू का नाम ले कर चीखते हुए परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक जानेवाले रस्से को पकड़ कर झूल गई. मौली का यह दुस्साहसिक रूप देख पूरी सभा सन्न रह गई.

महल के परकोटे से प्रकाश स्तंभ तक आनेजाने वाले कारिंदे रस्सों में विशेष प्रकार के कुंडे में बंध झूला डाल कर आतेजाते थे. काम के बाद कुंडे और झूला निकाल कर रख दिए जाते थे. मौली चूंकि रस्से को यूं ही पकड़ कर झूल गई थी, फलस्वरूप रस्से की रगड़ से उस के हाथ बुरी तरह घायल हो गए. वह ज्यादा देर तक अपने आप को संभाल नहीं पाई और झटके के साथ कुंड में जा गिरी.

हतप्रभ मानू यह दृश्य देख रहा था. मौली के गिरने की छपाक की आवाज उभरी, तो मानू ने भी कुंड में छलांग लगा दी. अंग्रेज रेजीडेंट, राजा और उस की महफिल इस भयावह दृश्य को देखती रह गई. कुछ देर मानू और मौली पानी में डूबतेउतराते दिखाई दिए भी, लेकिन थोड़ी देर में वे आंखों से ओझल हो गए.

Romantic Story : क्यों शेफाली की जिंदगी बदल गई?

Romantic Story : वह है शेफाली. मात्र 24-25 वर्ष की. सुंदर, सुघड़, कुंदन सा निखरा रूप एवं रंग ऐसा जैसे चांद ने स्वयं चांदनी बिखेरी हो उस पर. कालेघुंघराले बाल मानों घटाएं गहराई हों और बरसने को तत्पर हों. किंतु उस धमाके ने उसे ऐसा बना दिया गोया एक रंगबिरंगी तितली अपनी उड़ान भरना भूल गई हो, मंडराना छोड़ दिया हो उस ने.

मुझे याद है जब हम पहली बार पैरिस में मिले थे. उस ने होटल में चैकइन किया था. छोटी सी लाल रंग की टाइट स्कर्ट, काली जैकेट और ऊंचे बूट पहने बालों को बारबार सहेज रही थी. मेरे पति भी होटल काउंटर पर जरूरी औपचारिकता पूरी कर रहे थे. हम दोनों को ही अपनेअपने कमरे के नंबर व चाबियां मिल गई थीं. दोनों के कमरे पासपास थे. दूसरे देश में 2 भारतीय. वह भी पासपास के कमरों में. दोस्ती तो होनी ही थी. मैं अपने पति व 2 बच्चों के साथ थी और वह आई थी हनीमून पर अपने पति के साथ.

मैं ने कहा, ‘‘हाय, मैं रुचि.’’ उस ने भी हाथ बढ़ाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘आई एम शेफाली. आप की बेटी बहुत स्वीट है.’’ उस की मुसकराहट ऐसी थी गोया मोतियों की माला पिरोई हो 2 पंखुडि़यों के बीच. रात के खाने के समय बातचीत में मालूम हुआ कि उन्होंने भी वही टूर बुक किया था जो हम ने किया था. अगले ही दिन मैं अपने परिवार के साथ और वह अपने पति के साथ निकल पड़ी ऐफिल टावर देखने, जोकि पैरिस का मुख्य आकर्षण एवं 7 अजूबों में से एक है. वहां पहुंच वह तो बूट पहने भी खटखट करती सीढि़यां चढ़ गई, मगर मैं बस 2 फ्लोर चढ़ कर ही थक गई और फिर वहीं से लगी पैरिस के नजारे देखने और फोटो खिंचवाने. वह और ऊपर तक गई और फिर थोड़ी ही देर में अपने पति के कंधों पर अपने शरीर का बोझ डाल कर व उस की कमर पकड़े चलती हुई लौट आई. हमारे पास आ कर जब उस ने कहा कि क्या आप हमारे फोटो खींचेंगे तो मैं ने कहा हांहां क्यों नहीं?

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वह अलगअलग पोज में फोटो खिंचवा रही थी और जब मन होता अपने डायमंड से सजे फोन से सैल्फी भी ले लेती. इस के बाद हम चले पैलेस औफ वर्साइल्स के लिए जोकि अब म्यूजियम में तबदील हो गया है. वहां के लिए स्पैशल ट्रेन चलती है. उस की कुरसियां मखमल के कपड़े से ढकी थीं और ट्रेन में पैलेस के चित्र बने थे. वे दोनों पासपास बैठे एकदूसरे से प्यार भरी छेड़छाड़ कर रहे थे. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान उन पर चला ही जाता. आरामदेह और एसी वाली ट्रेन से हम पैलेस औफ वर्साइल्स पहुंचे. इतना बड़ा पैलेस और उस का बगीचा देखते ही बनता था. बगीचे में लगे फुहारे उस की शान को दोगुना कर रहे थे. उस पैलेस की मशहूर चीज है मोनालिसा की पेंटिंग जिसे देखने भीड़ उमड़ी थी. वह उस भीड़ को चीरते हुए आगे जा कर पेंटिंग के फोटो ले आई और मिहिर को इतनी खुशी से दिखा रही थी गोया उस ने कोई किला जीत लिया हो.

पैलेस में यूरोपियन सभ्यता को दर्शाते सफेद पुतले भी हैं, जिन में पुरुष व स्त्रियां वैसे ही नग्न दिखाई गई हैं जैसेकि हमारे अजंताऐलोरा की गुफाओं में. कोई भी पुरुष उन्हें देख अपना नियंत्रण खो ही देगा. वही मिहिर के साथ हुआ और उस ने शेफाली के गालों और होंठों को चूम ही लिया. वैसे भी यूरोप में सार्वजनिक जगहों पर लिप किस तो आम बात है. पति के किस करने पर शेफाली इस तरह इधरउधर देखने लगी कि उन्हें ऐसा करते किसी ने देखा तो नहीं. फिर हम साइंस म्यूजियम, गार्डन आदि सभी जगहें घूम आए. अब था वक्त शौपिंग का. मैं तो हर चीज के दाम को यूरो से रुपए में बदल कर देखती. हर चीज बहुत महंगी लग रही थी. और शेफाली, वह तो इस तरह शौपिंग कर रही थी जैसे कल तो आने वाला ही न हो. हर पल को तितली की तरह मस्त हो कर जी रही थी वह. बस एक ही दिन और बचा था उस का व हमारा वहां पर. अत: शाम को मैट्रो स्टेशन, जोकि अंडरग्राउंड होते हैं और उन में दुकानें भी होती हैं, में भी वह शौपिंग करने लगी. फिर वापसी में जैसे ही हम ट्रेन पकड़ने को दौड़े तो वह पीछे रह गई. हम सब के ट्रेन में चढ़ते ही ट्रेन के दरवाजे बंद हो गए और वह रवाना हो गई. मैं चलती ट्रेन से उसे देख रही थी. एक बार को तो लगा कि अब क्या होगा? लेकिन अगले ही स्टेशन पर हम उतरे और उस का पति उलटी दिशा में जाती ट्रेन में चढ़ कर उसे 5 ही मिनट में ले आया.

मैं ने जब उस से पूछा कि तुम्हें डर नहीं लगा तो वह कहने लगी कि बिलकुल नहीं. उसे मालूम था कि मिहिर उसे लेने जरूर आएगा. मैं सोच रही थी कि कितने कम समय में वह अपने पति को पूरी तरह पहचान गई है. होटल में रात के खाने के समय वह हमारे पास आ कर कहने लगी कि भारत जा कर न जाने हम मिलें न मिलें, इसलिए चलिए आज साथ ही खाना खाते हैं. मेरी 7 वर्षीय बेटी उस से बहुत हिलमिल गई थी. अगले दिन सुबह हम वक्त से पहले तैयार हो गए. नाश्ता कर अपने पैरिस के अंतिम दिन का लुत्फ उठाने होटल से सड़क पर आ गए. अपने टूर की बस की राह देखते हुए चहलकदमी कर ही रहे थे कि तभी एक जोर के धमाके की आवाज आई और फिर न जाने कहां से कुछ लोग आ कर धायंधायं गोलियां बरसाने लगे. जिसे जहां जगह मिली छिप गया. मेरे पति बेटी को गोद में उठा कर भाग रहे थे और मेरा बेटा मेरे साथ भाग रहा था. मैं एक कार के पीछे छिप गई थी. तभी शेफाली का भागते हुए पैर मुड़ गया. उस का पति उसे गोद में ले कर भागा, किंतु इसी बीच 1 गोली उस के पैर में व 1 पीठ में लग गई. अगले ही पल शेफाली चीखचीख कर पुकार रही थी कि मिहिर उठो, मिहिर भागो. पर शायद मिहिर इस दुनिया को अलविदा कह चुका था. बाद में मालूम हुआ वह एक आतंकी हमला था. पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. बंदूकधारी वहां से भाग चुके थे. मैं यह सब कार के पीछे छिपी देख रही थी. पुलिस वाले मिहिर को अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

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मैं शेफाली को संभालने की कोशिश कर रही थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. शाम को जिस विमान से हनीमून का जोड़ा लौटने वाला था उस तक सिर्फ शेफाली जीवित पहुंची और मिहिर की लाश. हम भारत अपने शहर मुंबई पहुंचे फिर अगले ही दिन दिल्ली शेफाली के घर पहुंचे. उस के घर मातम पसरा था. शेफाली तो पत्थर हो चुकी थी. न हंसती थी न बोलती थी. हां, मुझे देख कर मुझ से लिपट कर रो पड़ी. मैं उस से कह रही थी, ‘‘रो मत शेफाली. सब ठीक हो जाएगा.’’ किंतु मैं स्वयं अपनेआप को नहीं रोक पा रही थी. वह धमाका जो हम ने एकसाथ सुना था, शायद हम उसे हादसा समझ भूल जाएं, लेकिन शेफाली की तो उस ने दुनिया ही उजाड़ दी थी. तब से वह पत्थर की मूर्ति बन गई है. ऐसा लगता है जैसे एक तितली के पर कट गए हों और वह उड़ान भरना भूल गई हो. मैं अब भी सोचती रहती हूं कि काश, वह धमाका न हुआ होता.

Short Hindi Story : प्यार उसका न हो सका

लेखक- किशन लाल शर्मा

Short Hindi Story : ‘‘कौन है?’’ दरवाजे पर कई बार दस्तक देने के बाद अंदर से आवाज आई पर अब भी दरवाजा नहीं खिड़की खुली थी.

‘‘मैं, नेहा. दरवाजा खोल,’’ नेहा बोली, ‘‘कब से दरवाजा खटखटा रही हूं.’’

‘‘सौरी,’’ प्रिया नींद से जाग कर उबासी लेते हुए बोली, ‘‘तू और कहीं कमरा तलाश ले.’’

‘‘कमरा तलाश लूं,’’ नेहा ने हैरानी से प्रिया की ओर देखा व बोली, ‘‘कमरा तो तुझे तलाशना है?’’

‘‘अब मुझे नहीं, कमरा तुझे तलाशना है,’’ प्रिया बोली.

‘‘क्यों?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘मैं ने और कर्ण ने शादी कर ली है.’’

‘‘क्या?’’ नेहा ने आश्चर्य से प्रिया को देखा. उस के माथे की बिंदी और मांग में भरा सिंदूर इस बात के गवाह थे.

‘‘पतिपत्नी के बीच तेरा क्या काम?’’ और इतना कहने के साथ ही प्रिया ने खिड़की बंद कर ली.

नेहा खड़ीखड़ी कभी खिड़की को तो कभी दरवाजे को ताकती रह गई. प्रिया औैर कर्ण के बारे में सोचतेसोचते उस के अतीत के पन्ने खुलने लगे.

नेहा और कर्ण कानपुर में इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थीं, तभी कालेज कैंपस में प्लेसमैंट के लिए कई कंपनियां आईं. मुंबई की एक कंपनी में नेहा और कर्ण का सलैक्शन हो गया. परीक्षा समाप्त होने के बाद दोनों मुंबई चले गए.

मुंबई में नेहा और कर्ण ने मिल कर एक फ्लैट किराए पर ले लिया और दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. साथ रहतेरहते दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.

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एक रात जब कर्ण ने नेहा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो वह चौंकते हुए बोली, ‘कर्ण, क्या कर रहे हो?’

‘प्यार… लव…’

‘नहीं,’ नेहा बोली, ‘अभी हमारी शादी नहीं हुई है.’

‘क्या प्यार करने के लिए शादी करना जरूरी है?’

‘हां, हमारे यहां शादी के बाद ही पतिपत्नी को शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत है.’

‘कैसी दकियानूसी बातें करती हो, नेहा. जब शादी के बाद हम सैक्स कर सकते हैं तो पहले क्यों नहीं,’ कर्ण बोला, ‘अगर तुम शादी को जरूरी समझती हो तो वह भी कर लेंगे.’

नेहा शिक्षित और खुले विचारों की थी, लेकिन सैक्स के मामले में उस का मानना था कि शादी के बाद ही शारीरिक संबंध बनाने चाहिए. लेकिन कर्ण ने अपने प्यार का विश्वास दिला कर शादी से पहले ही नेहा को समर्पण के लिए मजबूर कर दिया.सैक्स का स्वाद चखने के बाद नेहा को भी उस का चसका लग गया. रोज रात को समर्पण करने से तो वह इनकार नहीं करती थी, लेकिन सावधानी जरूर बरतने लगी थी.

शुरू में तो नेहा ने कर्ण से शादी के लिए कहा, लेकिन दिन गुजरने के साथ वह भी सोचने लगी थी कि औरतआदमी दोनों अगर साथ जीवन गुजारने को तैयार हों तो जरूरी नहीं कि समाज को दिखाने के लिए शादी के बंधन में बंधें. बिना शादी के भी वे पतिपत्नी बन कर रह सकते हैं.

नेहा को कर्ण के प्यार पर पूरा विश्वास था इसीलिए उस ने शादी का जिक्र तक करना छोड़ दिया था और उसे शादी का खयाल आता भी नहीं अगर उन के बीच प्रिया न आती.

प्रिया पिछले दिनों ही उन की कंपनी में नई नई आई थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. मुंबई में उस का कोई परिचित नहीं था. जब तक प्रिया को कहीं कमरा नहीं मिल जाता तब तक के लिए कर्ण और नेहा ने उसे अपने साथ फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी.

प्रिया नेहा से ज्यादा सुंदर और तेजतर्रार थी. कर्ण प्रिया की सुंदरता और उस की मनमोहक बातों से इतना प्रभावित हुआ कि वह उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगा.

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जिस कर्ण को नेहा सब से ज्यादा सुंदर नजर आती थी, वही कर्ण अब प्रिया के पीछे घर में ही नहीं औफिस में भी लट्टू था.

नेहा ने कई बार कर्र्ण को रोका, लेकिन कर्ण ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. नेहा समझ गई कि अगर जल्दी कर्ण को शादी के बंधन में नहीं बांधा गया तो वह हाथ से निकल जाएगा.

नेहा शादी के बारे में अपनी मां से बात करने एक सप्ताह की छुट्टी ले कर कानपुर चली गई. उस ने मां से कुछ नहीं छिपाया. मां ने उसे डांटते हुए कहा, ‘देर मत कर, उस से शादी कर ले.’

लेकिन नेहा आ कर कर्ण से शादी करती उस से पहले ही प्रिया ने उसे अपना बना लिया था.

कर्ण पर विश्वास कर के नेहा शादी से पहले अपना सबकुछ कर्ण को समर्पित कर चुकी थी और समर्पण कर के वह बुरी तरह ठगी जा चुकी थी. अपना सबकुछ लुटा कर भी नेहा कर्ण को अपना नहीं बना पाई.

Emotional Hindi Story : कोमल ने चैन की सांस कब ली

Emotional Hindi Story : सुबह का शांत समय था. कोमल खिड़की से बाहर देख रही थी. यह बरसात का महीना था. बाहर के लौन में घास हरीभरी और ताजी लग रही थी. हवा ठंडी और दिल खुश करने वाली गीली मिट्टी की महक लिए वातावरण को सुगंधित कर रही थी. कोमल को 30 साल पहले के ऐसे ही बारिश से भीगे हुए दिन की याद आई…

‘मुबारिक हो मैडम, बेटा हुआ है,’ नर्स ने कोमल से कहा.

यह सुन कर कोमल ने चैन की सांस ली. उस को बेहद डर था कि कहीं दुर्भाग्य से बेटी पैदा हुई तो पति के परिवार की नजरों में उस का दर्जा का गिर जाता. इस के दो कारण थे. पहला था कि लाखों और लोगों की तरह, उस के सासससुर के सिर अपने वंश को आगे बढ़ाने का भूत सवार था. दूसरा, कोमल से पहले घर में आने वाली बहू, उस के जेठ की पत्नी ने बेटा पैदा किया था.

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जल्द ही सारे खानदान में बेटा पैदा होने का शुभ समाचार फैल गया. सब से पहले कोमल के सासससुर अस्पताल पहुंचे. उसे बधाई देने के बाद उस के ससुर ने कहा ‘‘मुझे जैसे ही समाचार मिला, मैं ने यश को जरमनी फोन कर दिया. वह बेहद खुश था.’’

यश उन का बेटा और कोमल का पति था. वह उस समय, कारोबार के सिलसिले में यूरोप का दौरा कर रहा था.

उस के सासससुर के आने के कुछ ही देर पश्चात, एक के बाद एक, दोस्त और रिश्तेदार अस्पताल पहुंचने लगे. साथ में फूलों के गुलदस्ते, मिठाई, बच्चे के लिए कपड़े और खिलौने लाए. पर अस्पताल उच्च श्रेणी का था. उस के नियम बहुत कड़े थे. कोमल के सासससुर के अलावा एक समय पर केवल दो लोग ही उस के कमरे में जा सकते थे. और जितने तोहफे और फूल वगैरह आए थे, उन सब को अलग एक छोटे कमरे में रखवा दिया. कमरे का ताला लगा कर चाभी कोमल की सास को पकड़ा दी गई.

2 दिन बाद कोमल अपने बेटे को ले कर घर आई. यश भी उसी शाम को जरमनी से लौटा. फिर कई दिनों तक बच्चे के पैदा होने का जश्न मनाया गया.

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कोमल की ससुराल में बहुत बड़ा भव्य घर था, पर उस के ससुर को लगा कि एक ही दिन सारे रिश्तेदारों और सब के दोस्तों को बुलाना तो मेले की भीड़ की तरह होगा, किसी से खुल कर बातचीत भी न हो सकेगी. अत: हर दूसरे दिन पार्टी रखी गई. एक दिन उन के रिश्तेदारों को बुलाया गया. दो दिन बाद सुसर के व्यापारी मित्र आए थे. उस के बाद कोमल की सास की सहेलियां पार्टी में आईं. तब आया वह दिन, जब यश और कोमल के मित्रगण खुशी मनाने आए.

कोमल के बेटे के नामकरण पर बच्चे के दादाजी ने उस का नाम महावीर रखा.
धीरेधीरे महावीर बड़ा हुआ. पढ़ाई में काफी तेज था और हमेशा अपनी कक्षा में पहले या दूसरे स्थान पर आता था. पर बचपन से ही वह काफी अड़ियल स्वभाव का था और अपनी मनमरजी के मुताबिक ही काम करता था.

10वीं कक्षा पास करने के बाद जब वह 11वीं में जा रहा था, तो उस के पिता यश ने चाहा कि वह कौमर्स और इकोनोमिक्स पढ़े, ताकि आगे जा कर कालेज में वह ‘सीए’ या ‘एमबीए’ कर सके और डिगरी हासिल करने के बाद महावीर उन के कपड़ों के निर्यात के कारोबार में उन का साथ दे.

पर, महावीर के कुछ और ही इरादे थे. वह एक शानदार फाइवस्टार होटल खोलना चाहता था. इस कारण उस ने 11वीं कक्षा में होम साइंस लिया, और 12वीं करने के बाद वह होटल मैनेजमेंट में चला गया.

लगभग 3 साल हो गए, तब महावीर की पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरी होने वाली थी. एक शाम जब वह घर आया, तो बहुत प्रसन्न लग रहा था.

‘‘मम्मीजीपापाजी, मैं आप के लिए एक खुशखबरी लाया हूं.’’

‘‘क्या तुम अपने सालाना इम्तिहान में अव्वल नंबर पर आए हो?’’ कोमल ने पूछा.

‘‘नहीं मम्मी, यह इम्तिहान में नंबर जैसी छोटी चीज की बात नहीं है,’’ उस के बेटे ने जवाब दिया, ‘‘यह मेरे जीवन और भविष्य के बारे में बात है.’’

‘‘अब हमें और लटका कर मत रखो,’’ यश बोला, ‘‘बता ही दो क्या बात है.’’

‘‘तो सुनिए,’’ महावीर ने कहा, ‘‘मैं ने शादी के लिए एक लड़की चयन कर ली है. मैं ने उस से बात भी कर ली है और उस को यह रिश्ता मंजूर है.’’

यश और कोमल को जोर का झटका लगा. थोड़ी देर तक दोनों कुछ बोल नहीं सके. फिर बड़ी मुश्किल से यश ने अपनी आवाज पाई,
‘‘यह क्या कह रहे हो बेटा? तुम हमारे साथ मजाक तो नहीं कर रहे हो?’’

‘‘नहीं पापाजी. मैं आप लोगों के साथ भला ऐसा कैसे कर सकता हूं,’’ महावीर ने जवाब दिया.

‘‘यही लड़की कौन है? उस का बाप क्या करता है? क्या वह हमारी तरह राजपूत खानदान की है?’’ सवाल पर सवाल महावीर की तरफ फेंके गए.

‘‘उस लड़की का नाम पूनम है. वह मेरे साथ होटल मैंनेजमेंट सीख रही है. उस का पिता एक ओटोरिकशा चलाता है. उस की जात और खानदान के बारे में मैं ने कभी पूछा ही नहीं. शायद वह दलित है, पर इस से क्या फर्क पड़ता है.’’

महावीर का जवाब सुनते ही यश आगबबूला हो गया. ‘‘क्या यश राठौर जैसे करोड़पति का इकलौता बेटा एक रिकशा चलाने वाले की बेटी के साथ शादी करेगा?’’ वे गुस्सीले स्वर में चिल्लाए, ‘‘क्या एक राठौर खानदान का सुपुत्र एक दलित लड़की से रिश्ता जोड़ेगा? यह मैं कभी होने नहीं दूंगा. सारे समाज में हमारी नाक कट जाएगी. लोग हम पर हंसेंगे. स्वर्ग में हमारे पुरखों की शांति भंग हो जाएगी. तुम यह शादी नहीं कर सकते हो,’’ कह कर यश पैर पटकता हुआ उस कमरे से चला गया.

‘‘बेटा, तुम यह बहुत गलत काम कर रहे हो. उस दलित लड़की का खयाल छोड़ दो,’’ कह कर कोमल भी कमरा छोड़ कर चली गई.

महावीर की बचपन की पुरानी आदत अब भी थी कि वह अपने मन की मरजी करता था, चाहे उस के मातापिता कुछ भी कहें. उसे और पूनम को एक फाइवस्टार होटल में नौकरी का बुलावा मिल चुका था, जिस के बारे में उस ने डर के मारे अपने मातापिता को नहीं बताया था.

पूनम ने तो प्रस्ताव मिलते ही होटल को ‘हां’ कह दिया था. उस दिन मातापिता के विचारों को सुनने के बाद महावीर ने तय किया कि वह भी उसी होटल की नौकरी स्वीकार कर लेगा. फिर जल्दी ही वह एक छोटा सा मकान किराए पर ले लेगा.

अगला कदम भी उस के विचारों में था कि वह तब पूनम से कोर्ट में शादी कर के अपनी गृहस्थी बसाएगा.

पूनम को महावीर की योजना सही लगी, पर वह पहले अपने पिता से अनुमति लेना चाहती थी. जब पूनम के पिता को पता चला कि उस की बेटी किस से शादी करने जा रही है, तो शुरूशुरू में तो वह डर गया. उसे पता था कि यश राठौर बड़ा आदमी था और उस की जानपहचान शहर के वरिष्ठ पुलिस आईएएस अफसरों से थी. वह चाहते तो उस का लाइसेंस जब्त करवा सकते थे या उसे किसी बहाने जेल भिजवा सकते थे.

पर, महावीर ने उसे आश्वासन दिया कि उस का पिता गुस्सैल जरूर था, और उसे जब गुस्सा आ जाता है, तो वह कुछ भी कर सकता था, लेकिन महावीर सब स्थिति संभाल लेगा.

मुश्किल से पूनम के पिता शादी के लिए राजी हो गए.
पहले दिन के झगड़े के बाद महावीर ने अपने पिता के सामने अपनी शादी की बात कभी नहीं उठाई, और न ही अपनी मां को कुछ बताया.

ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पूनम और महावीर की नौकरी लग गई. अपनी योजना के अनुसार दोनों ने कोर्ट में नोटिस दे दिया कि वह शादी करना चाहते हैं. कानून के अनुसार पहला नोटिस देने के 3 महीने के बाद ही वह शादी कर सकते थे. कायदे के मुताबिक, उन की अर्जी कोर्ट के नोटिस बोर्ड पर लग गई. धीरेधीरे दिन गुजरने लगे.

लगभग एक महीने बाद अदालत के ही एक मुलाजिम ने कुछ पैसे ऐंठने की नीयत से कोमल का पता कर उस को फोन किया और बता दिया कि उस का बेटा कोर्ट में शादी करने जा रहा है.

महावीर की होने वाली शादी की खबर सुनते ही कोमल के होश उड़ गए. वह जानती थी कि उस के पति यश बेटे महावीर से पहले ही नाराज थे, क्योंकि उस ने उन के साथ काम करने से इनकार कर दिया था और उस की जगह एक होटल में नौकरी कर रहा था. इस के ऊपर अगर वह यह सुनेंगे कि उन का बेटा एक ओटोरिकशा चलाने वाले की लड़की से शादी कर रहा है, तो वह गुस्से में आ कर महावीर को अपनी जायदाद से वंचित कर सकते थे. कोमल किसी हालत में यह नहीं सह सकती थी. आखिर महावीर उस का एकलौता बेटा था.

कोमल सोचने लगी कि वह क्या करे, ताकि महावीर और पूनम अलग हो जाएं. वह चाहती थी कि उस का कारगर उपाय कुछ ऐसा हो कि वह दोनों इस शादी के बंधन में न उलझे रहे.

धीरेधीरे कोमल के दिमाग में एक उपाय सब से ऊंचा बन कर पांव जमाने लगा.
वह यश को इस उपाय में सांझी नहीं बनाना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि यश का गुस्सा महावीर को सुधारने में और भी भड़क जाए. अकसर अपना कारोबार बढ़ाने के लिए सिलसिले में यश विदेशों के लंबे टूर पर जाते थे. एक ऐसे ही अवसर पर कोमल ने महावीर को फोन किया और कहा, ‘‘बेटे, तुम्हें देखने को मेरी आखें तरस गई हैं. कल शाम को चाय पर घर आ कर मुझ से कुछ देर बातें कर लो. तुम्हारे पिताजी इस समय हिंदुस्तान से बाहर हैं. इसलिए, जिस लडक़ी से तुम शादी करने की बात कर रहे थे, उस को भी साथ ले आओ. कम से कम मैं अपने बेटे की पसंद से मिल तो लूं.

वह मान गया कि कल शाम को पूनम को साथ ले कर आएगा.

अगले दिन सुबह अपनी योजना के अनुसार कोमल बाजार गई. ड्राइवर को कार पार्किंग में छोड़ वह खरीदारी करने पैदल निकल गई, ताकि किसी को कोई शक न पड़े कि वह असल में क्या लेने आई थी. उस ने एक जोड़ी चप्पल, कुछ रूमाल और एक पर्स खरीदा. फिर अपने मन में उठ रही योजना को पूरा करने के विचार से एक चीज खरीदी- चूहे मारने की दवा.

शाम को, कहने के मुताबिक, महावीर और पूनम उस से मिलने आए. कोमल ने उन से काफी बातचीत की, उस ने पूनम की प्रशंसा की और उस से मिल कर बहुत खुश होने का नाटक भी रचा. फिर नौकर से चाय मंगाई.
जब चाय आई, तो कोमल ने उसे अलग टेबल पर रखने को कहा, और खुद उठी चाय बनाने के लिए.

कोमल जानती थी कि उस की खरीदी हुई दवा, चूहों का खून पतला कर के उन को मारती थी. मनुष्यों को भी जब खून में थक्का आ जाने का डर होता, तो इसी तरह की दवा बहुत कम मात्रा में दी जाती थी, ताकि खून पतला हो जाए. यदि किसी इनसान को चूहे मारने वाली दवा काफी मात्रा में दी जाए तो उस का खून इतना पतला हो जाता है कि उस की मौत निश्चित थी. पर मौत आने में कुछ घंटे लगते हैं.

कोमल ने एक प्याले में चाय डाली, अपनी लाई हुई दवा की चार चुटकियां डाल दीं, फिर दूध और चीनी मिला कर प्याला पूनम के सामने रख दिया. वह दूसरे प्याले में चाय डाल ही रही थी कि दूसरे कमरे में फोन बजा. ‘‘मैं अभी आती हूं’’ कह कर वह दूसरे कमरे में फोन सुनने चली गई.

पूनम ने अपनी चाय का प्याला महावीर को पकड़ाया और उठ कर अपने लिए एक और प्याला बनाया. कोमल को आने में देर लग रही थी, तो दोनों ने अपनीअपनी चाय पीनी शुरू कर दी.

कोमल वापस आई तो देरी के लिए माफी मांगी और अपने लिए चाय बना कर पीने लगी. उस ने सोचा कि पूनम ने महावीर के लिए चाय बना दी होगी.

चाय खत्म होने के बाद पूनम और महावीर ने अपनेअपने घर जाने की इजाजत मांगी और निकल पड़े.

कोमल के मन में विचार उठा कि जल्दी ही उस का बेटा आजाद हो जाएगा. आकाश की तरफ उस ने निगाहें उठाईं तो देखा कि बादल घिर रहे थे पर लगता था कि अभी वर्षा शुरू होने में समय लगेगा.

रात हो गई. कोमल खाना खाने बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजी. फोन पर पूनम थी. उस ने कहा कि वह अस्पताल से बोल रही थी. उस की आवाज कांप रही थी और लगता था कि वह किसी क्षण रोने लगेगी. उस ने बताया कि जब वह और महावीर कोमल को छोड़ कर निकले तो वह दोनों काफी देर तक शहर के एक बड़े पार्क में घूम रहे थे, गप्पें भी हांक रहे थे और भविष्य के लिए योजनाएं भी बना रहे थे. अचानक महावीर की तबीयत खराब हो गई. पूनम उसे टैक्सी में अस्पताल ले गई. वहां डाक्टरों ने कहा कि लगता था कि महावीर ने किसी किस्म का जहर खाया था. उस का बचना मुश्किल था.

यह सब सुन कर कोमल को जोर का झटका लगा. यह क्या अनर्थ हो गया था. उस ने सोचा कि जो जाल उस ने पूनम के लिए फैलाया था, उस जाल में उसी का बेटा फंस गया था. उस ने तुरंत ड्राइवर को बुलवाया और अपनी कार से अस्पताल के लिए रवाना हो गई.

रास्ते में बारिश शुरू हो गई और जल्दी ही घनघोर वर्षा होने लगी.

उस समय सड़कें वाहनों से खचाखच भरी हुई थीं. लम्बेलम्बे ट्रैफिक जाम थे. वर्षा के कारण जाम और जटिल हुए जा रहे थे. कोमल का मोबाइल उस के पर्स में था. रास्ते में उस का फोन 2-3 बार बजा, पर बाहर के शोर के कारण, कोमल ने नहीं सुना. कोमल को अस्पताल पहुंचने में लगभग एक घंटा लग गया. वहां उसे पूनम मिली. वह रो रही थी.

‘‘मांजी, महावीर हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए,’’ सिसकियों के बीच में उस ने कहा. कोमल वहीं पास में एक बेंच पर बैठ गई. उसे लगा कि उस ने अपने सपनों को स्वयं ध्वस्त कर दिया, वह क्या करना चाह रही थी, पर जाने क्यों मामला उलट गया. बड़ी हिम्मत कर के उस ने यश को फोन लगाया. कोमल की बात सुन कर उस का भी दिल बैठ गया. उस ने कहा कि वह अगली फ्लाइट से वापस आ रहा है.

अस्पताल के डाक्टर महावीर के शव का पोस्टमार्टम करना चाहते थे, पर कोमल ने मना कर दिया. वहांं के बड़े डाक्टर उस के पति यश को जानते थे. कोमल के दबाव में आ कर मौत का कारण उन्होंने ‘दिल का दौरा’ लिख दिया.
आखिर वह बड़े उद्योगपति की बीवी होने के अलावा मृतक की मां भी थी.

कोमल आज बरसात की सुबह खिड़की के पास बैठ कर सोच रही थी. महावीर को मरे हुए 7 साल हो गए थे. उस ने महावीर का पोस्टमार्टम रुकवा कर शायद अपनेआप को कई साल कानून के कारागार में कैद होने से बचा लिया था. उस ने यश को भी सचाई नहीं बताई थी. पर उसे अपने मन, खयालात और आत्मा की कैद से कौन बचा सकता था. आत्मग्लानि ने तो उसे आजीवन कैद की सजा सुना दी थी.

Sky Force : वीर पहाड़िया को बनाया जा रहा ‘जबरिया स्टार’

Entertainment : बौलीवुड में नेपो किड्स को ‘पेड पीआर’ की बदौलत ‘जबरिया स्टार’ बताया जाता है. ऐसे में नेपो किड्स खुद बरबाद होने के साथ ही अपने साथ कईयों को बरबाद करते हैं और इस का सब से ताजा उदाहरण ‘स्काई फोर्स’ से कैरियर की शुरूआत करने वाले अभिनेता वीर पहाड़िया हैं.

वक्त बदल चुका है. अब सोशल मीडिया और प्रचारतंत्र का जमाना है. अब हर चीज यहां तक कि हर इंसान भी ‘पीआर’ के मार्फत बेचा जा रहा है पर अहम सवाल यह है कि क्या तेल, साबुन, कार की तरह किसी ‘प्रतिभाहीन इंसान’ को ‘अति प्रतिभावान इंसान’ बनाया जा सकता है? सदियों से कहा जाता रहा है कि गधे को चाहे जितना साबुन से नहलाएं, वह घोड़ा नहीं बन सकता.
मगर इन दिनों पीआर टैक्टिक्स और सोशल मीडिया की ताकत पर गधे को भी साबुन से नहला कर घोड़ा बनाने का काम बहुत तेजी से हो रहा है. सोशल मीडिया के सभी प्लेटफौर्म पर नकली फौलोअर्स व फैंस खरीदे जा रहे हैं. यही कृत्य जब बौलीवुड के नेपो किड्स के साथ होता है और उसे ‘पेड पीआर’ की बदौलत ‘जबरिया स्टार’ बताया जाता है तो ऐसा नेपो किड खुद बरबाद होने के साथ ही अपने साथ कईयों को बरबाद करता है तथा सब से बड़ा नुकसान तो वे सिनेमा का करते हैं.

‘स्काई फोर्स’ से अक्षय कुमार के साथ कैरियर की शुरूआत

हाल के दिनों में बौलीवुड में एक नेपोकिड को भी ‘जबरिया स्टार’ बनाया जा रहा है. कुछ लोग गाली देते हुए कह रहे हैं कि क्यों फोर्सफुली स्टार बना रहे हो. इस कलाकार को ले कर ‘न्यू स्टार बौर्न’, ‘न्यू सुपर स्टार बौर्न’, ‘जीता लोगों का दिल’ सहित कई तरह के तमगों के साथ दर्शकों की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास किया जा रहा है. यह सारा खेल ‘पेड पीआर’ का है. सोशल मीडिया और यूट्यूबर के नाम पर पत्रकार बने हुए लोग जम कर पीआर के इशारे पर नाचते हुए अंटशंट कह रहे हैं. पर क्या वास्तव में दर्शक मूर्ख हैं, जो इन की बात को सच मान लेंगे, ऐसा लग तो नहीं रहा.
हम बात कर रहे हैं

24 जनवरी को रिलीज हुई फिल्म ‘स्काई फोर्स’ से अक्षय कुमार के साथ अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाले अभिनेता वीर पहाड़िया की, जिन्हें ‘न्यू बौर्न स्टार’ कहा जा रहा है. लोग उस के अभिनय के ऐसे कसीदे पढ़ रहे हैं कि क्या कहें. ऐसा किसी राज दरबार के चापलूस कवि भी नहीं करते रहे होंगे. उन का भी अपना कुछ जमीर रहा होगा पर जब ‘पेड पीआर’ का जमाना हो तो कैसा जमीर. किस का जमीर. पैसे की ताकत का ही असर है कि 24 जनवरी को रिलीज हुई फिल्म ‘स्काई फोर्स’ लगभग मुफ्त में दिखाई जा रही है, फिर भी दर्शक नहीं मिल रहे हैं.
सब से पहले यह जानना जरुरी है कि वीर पहाड़िया कौन हैं? वीर पहाड़िया भी ‘नेपोकिड’ ही हैं, जो कि ‘नेपोटिजम की बयार को आगे बढ़ाने का झंडा ले कर मैदान में कूद चुके हैं. वह एक मशहूर राजनीतिक, उद्योगपति व सिनेमा के परिवार का ही हिस्सा हैं. वीर पहाड़िया के नाना सुशील कुमार शिंदे महाराष्ट्र राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व गृहमंत्री रह चुके हैं. वीर पहाड़िया के पिता संजय पहाड़िया बहुत बड़े उद्योगपति हैं और मुकेश अंबानी के साथ उन के व्यावसायिक संबंध हैं.

 

संजय पहाड़िया की 3 कंपनिया हैं- वमोना डेवलपर्स प्रा. लिमिटेड, महाशन रियालिटी प्रा. लिमिटेड, बुटाला फार्म लैंड्स प्रा. लिमिटेड. उन का नाम ‘मिनिस्ट्री औफ कौरपोरेट अफेयर’ के साथ रजिस्टर्ड है. वीर पहाड़िया की मां स्मृति संजय शिंदे फिल्म निर्माता हैं, उन के प्रोडक्शन हाउस का नाम ‘‘सोबो फिल्मस’ है. इस बैनर के तले वह ‘एक महानायक डाक्टर बीआर आंबेडकर, तुक्ष्यात जीव रंगला, ‘राजा बेटा’, ‘काशीबाई बाजीराव बलाल’ सहित कुछ मराठी में फिल्मों व सीरियलों का निर्माण कर चुकी हैं. यह अलग बात है कि 2008 में वीर के मातापिता का तलाक हो चुका है. पर वीर पर दोनों का वरदहस्त है.

सारा अली खान को डेट कर रहे थे वीर पहाड़िया

 

1995 में जन्मे वीर पहाड़िया की शिक्षा धीरूभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल के बाद लंदन की रीजेंट यूनिवर्सिटी से हुई. अभिनेता बनने से पहले वह सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान के साथ डेट कर रहे थे. अब सारा अली खान के साथ ही वीर की जोड़ी फिल्म ‘स्काई फोर्स’ में नजर आ रही है. पर इन के बीच कोई कैमिस्ट्री नहीं है.

वीर पहाड़िया मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ और दिनेश वीजन की कंपनी ‘मैडोक फिल्म्स’ निर्मित फिल्म भेड़िया में बतौर सहायक निर्देशक काम कर चुके हैं. तो वहीं 2018 में वीर पहाड़िया ने अपने छोटे भाई शिखर पहाड़ि़या संग ‘इंडिया विन गेमिंग’ की नींव भी रखी थी. इन दिनों वीर पहाड़िया, मानुशी छिल्लर संग डेट कर रहे हैं.

वीर पहाड़िया ने फिल्म ‘स्काई फोर्स’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत की है. इस फिल्म में उन्होंने एयरफोर्स पायलट शहीद स्क्वार्डन लीडर अज्जामदा बोप्पय्या देवय्या का किरदार निभाया है. इसी फिल्म के आधार पर उन की पीआर टीम उन्हें बौलीवुड का सब से बड़ा स्टार साबित करने पर तुली हुई है. जिस में कई यूट्यूबरों का भी साथ मिल रहा है.

 

इतना ही नहीं पैसे दे कर ‘बौम्बे टाइम्स’ जैसे अखबारों में उन्हें नए जन्मे स्टार के रूप में स्थापित कलाकार बताया जा रहा है. मजेदार बात यह है कि इन अखबारों में वीर पहाड़िया के अभिनय का महिमामंडन करते हुए इन्हें चने के झाड़ पर चढ़ाया जा रहा है. पर यह एडोटोरियल है और इन लेखों को लिखने वाले पत्रकार अपना नाम देना तक गंवारा नहीं समझते. सभी को पता है कि ‘बौम्बे टाइम्स’ में आप चैक से 2 लाख रूपए से ले कर 20 लाख रूपए तक की पेमेंट कर अपने संबंध में कुछ भी छपवा सकते हैं.

वास्तव में फिल्म ‘स्काई फोर्स’ कथानक, निर्दशन सहित हर स्तर पर बहुत बेकार बनी है. टीए विजय के किरदार में वीर पहाड़िया कहीं से भी उत्कृष्ट अभिनेता नजर नहीं आते. उन के अंदर हीरो मटेरियल भी नहीं है. यूं तो निर्देशक को वीर की कमजोरी पता थी, इसलिए वीर पहाड़िया के हिस्से ऐसे दृश्य कम ही आए हैं, जहां उन की अभिनय क्षमता का आंकलन किया जा सके.
शहीद देवय्या के किरदार के लिए जिस तरह का जुनून कलाकार के अंदर चाहिए, उस का वीर पहाड़िया में घोर अभाव नजर आता है. फाइटर प्लेन में बैठ कर पायलट के रूप में प्लेन चलाते हुए आधे से ज्यादा चेहरा ढंक कर जो कुछ एक्शन होता है, उसे अभिनय का नाम देना मूर्खता ही है. दर्शक भी समझता है कि इस तरह के दृश्यों को वीएफएक्स की मदद से गढ़ा जाता है.

फिल्म ‘स्काई फोर्स’ की एडवांस बुकिंग 22 जनवरी को देर शाम शुरू हुई थी. 23 की दोपहर तक एडवांस बुकिंग बामुश्किल कुछ हजार रूपए की हुई. शाम होतेहोते विज्ञापन आ गया कि ‘स्काई फोर्स’ की हर टिकट पर 250 रूपए की छूट मिलेगी. इस तरह जो दर्शक 250 रूपए तक की टिकट खरीद रहे थे उन के लिए तो यह फिल्म फ्री में थी. इस के बावजूद पहले दिन 24 जनवरी को सिनेमाघरों की क्षमता का 20 प्रतिशत दर्शक भी फिल्म देखने नहीं पहुंचा, तब पेड पीआर ने वीर पहाड़िया को देश का महान अभिनेता बताने की मुहीम शुरू की.

फिलहाल इस का भी असर नहीं हो रहा है, बल्कि अब तो लोग गाली देने लगे हैं कि भाई कितना फोर्सफुली किसी को अच्छा कलाकार बताओगे. इसी के साथ अब यह मीडिया में चर्चा शुरू हो गई है कि सिनेमाघरों को जो रकम चुकानी पड़ रही है, वह वीर पहाड़िया के मातापिता चुका रहे हैं.

वीर पहाड़िया को लोग ‘जबरदस्ती बनवाया जा रहा स्टार’ तक कहने लगे हैं. वीर पहाड़िया को महान कलाकार बताने वाले सैकड़ों वीडियो इंस्टाग्राम पर छाए हुए हैं. मजेदार बात तो यह है कि पाकिस्तान में फिल्म ‘स्काई फोर्स’ रिलीज नहीं हुई, मगर वहां के दो यूट्यूबरों ने वीर पहाड़िया के अभिनय की तरीफ करते हुए वीडियो बना कर इंस्टाग्राम पर डाले हुए हैं. सोशल मीडिया पर दो दिन से केवल वीर पहाड़िया ही ट्रेंड कर रहे हैं.

‘न्यू बोर्न स्टार’ की संज्ञा कितना सही 

अफसोस की बात यह है कि वीर पहाड़िया और उन्हें ‘न्यू बोर्न स्टार’ की संज्ञा देने वाले लोगों को याद रखना चाहिए कि अगर कलाकार के अंदर अभिनय क्षमता नहीं है तो वह अपनी अगली फिल्मों में क्या करेगा. कब तक आप फ्री में टिकट दे कर या पेड पीआर के बल पर अपनेआप को स्टार साबित करेंगे.

कलाकार के अंदर अभिनय क्षमता होगी तो पत्रकार ही नहीं दर्शक भी उस की कला की तारीफ करेंगे. अन्यथा इस पानी के बुलबुले को फूटने से कोई रोक नहीं पाएगा, पर तब तक सिनेमा को काफी नुकसान हो चुका होगा. जब 2007 में नेपोकिड रणबीर कपूर की फिल्म ‘सांवरिया’ आई थी, तब पहली बार कहा गया था कि ‘न्यू स्टार बौर्न’. फिल्म सांवरिया असफल हो गई थी. मगर रणबीर कपूर के अंदर प्रतिभा थी, जिस ने रणबीर कपूर को स्टार बना दिया.

वीर पहाड़िया के इस हौव्वा का नतीजा यह होगा कि कुछ दिन में धर्मा प्रोडक्शन, यशराज फिल्म्स सहित कई बड़े बैनर उसे अपनी फिल्मों से लौंच करने की घोषणा करेंगे, क्योंकि उन्हें पीछे से पैसा मिल जाएगा. उस के बाद कई नए छोटे निर्माता अपनी जमीन बेच कर वीर पहाड़िया को ले कर फिल्में बनाएंगे और नतीजा वही होगा जो कि वरूण धवन जैसे नेपोकिड की फिल्मों का हो रहा है. इस से सिनेमा का ही नुकसान हो रहा है.

Bollywood : ‘आजाद’ और ‘इमरजेंसी’ का बुरा हाल, कंगना-अजय की उम्मीदें चकनाचूर

Bollywood : जनवरी माह के दूसरे सप्ताह में प्रदर्शित फिल्मों का बाक्स आफिस पर बुरी तरह से बंटाधार हो गया था. जनवरी माह के तीसरे सप्ताह यानी कि 17 जनवरी को रिलीज हुई दो फिल्मों ‘आजाद’ और ‘इमरजेंसी’ से काफी उम्मीदें थीं. लेकिन यह फिल्म जिस बुरी तरह से बौक्स औफिस पर मुंह के बल गिरी हैं, उस की उम्मीद तो इन फिल्मों के दुश्मनों को भी नहीं थी.

जनवरी के तीसरे सप्ताह 17 जनवरी को प्रदर्शित फिल्म ‘आजाद’ का वितरण मशहूर व अति शक्तिशाली तथा फिल्म ‘पुष्पा 2: द रूल’ का वितरण कर चुके वितरक अनिल थडाणी ने किया है. इस फिल्म में अनिल थडाणी की बेटी राशा थडाणी हीरोईन है. लोग सोच रहे थे कि इस फिल्म को बाक्स आफिस पर सफलता दिलाने के लिए अनिल थडाणी एड़ी चोटी का जोर लगा देंगे. अनिल थडाणी ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगाया, लेकिन उन्होंने अपनी जेब से धन निकाल कर टिकट खरीद कर लोगों को मुफ्त में बांटने से इंकार कर दिया.

अब जब निर्माता व कलाकारों ने फिल्म की टिकटें खरीद कर नही बांटी तो फिल्म का डूबना तय था. ‘आजाद’ में राशा थडाणी के ही साथ अजय देवगन के भांजे अमन देवगन की भी हीरो के तौर पर यह पहली फिल्म है. इस फिल्म में अजय देवगन, डायना पेंटी, मोहित मलिक और पीयूष मिश्रा के भी अहम किरदार हैं. लेकिन फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर ने इस फिल्म को डुबाने में अपनी सारी ताकत लगा दी.

सबसे पहले तो वह मौलिक कहानी सोच नहीं पाए, ऊपर से ‘लगान’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘तेरी मेहरबानियां’ सहित कम से कम 50 फिल्मों को मिला कर चूंचूं का मुरब्बा बना दिया. फिल्म के नए पुराने किसी भी कलाकार से वह अभिनय ही नही करवा सके. जिस के चलते 80 करोड़ रूपए में बनी फिल्म ‘आजाद’ ने पूरे सप्ताह यानी कि 7 दिन में बामुश्किल 6 करोड़ रूपए ही कमाए, वह भी तब जब 17 जनवरी को ‘सिनेमा लवर्स डे’ के नाम पर टिकट की दर केवल 99 रूपए थी. इन 6 करोड़ रूपए में से निर्माता की जेब मे महज एक करोड़ ही आएंगे. अजय देवगन के करीबी दावा कर रहे हैं कि अपने करियर के ही साथ अपने भांजे अमन देवगन का करियर बनने से पहले ही डुबाने का पश्चाताप करने के लिए अब अजय देवगन अभिनय से संन्यास लेने जा रहे हैं.

17 जनवरी को भाजपा सांसद कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ प्रदर्शित हुई थी, जिस में इंदिरा गांधी का किरदार निभाने के साथ ही इस का सह निर्माण, निर्देशन व लेखन भी कंगना रनौत ने ही किया है. इस फिल्म को किसी अन्य ने नहीं बल्कि कंगना रनौत ने खुद ही डुबा डाला. कंगना रनौत का मानना है कि आजादी 2014 में मिली थी. उन्होंने कांग्रेस शासन की बुराई व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने के अलावा पिछले 10-12 साल में कुछ नहीं किया. इस वजह से सभी मान कर चल रहे थे कि कंगना ने अपनी फिल्म ‘इमरजेंसी’ में इमरजेंसी यानी कि आपातकाल लागू करने व उस दौरान को बदनाम करने वाले दृश्य/तथ्य पेश करेंगी. पर हुआ उल्टा.

फिल्म में इमरजेंसी का मसला तो 20 मिनट से ज्यादा है ही नही. अपनी भाजपा भक्ति को दिखाने के लिए कंगना ने इंदिरा गांधी को एक कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने के अलावा वह पूरी फिल्म में इंदिरा गांधी का महिमामंडन ही करती रहीं. आखिर उन के पास इंदिरा गांधी के करनामों को दिखाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नही रहा. क्योंकि फिल्म तो इंदिरा गांधी की बायोपिक है. इमरजेंसी लगाने के अलावा इंदिरा ने हर काम देशहित में किए. इमरजेंसी व नसबंदी के लिए कंगना ने इंदिरा गांधी की बजाय संजय गांधी को दोष दिया. लेकिन कंगना के इस उबल गेम के चक्कर में वह कांग्रेस व भाजपा दोनों का साथ नही पा सकी.

फिल्म कहानी के अलावा बहुत घटिया तरीके से बनी है. किसी भी कलाकार ने ठीक से अभिनय नहीं किया तो फिल्म की बुराई काफी हुई. यह एक अलग बात है कि कंगना रनौत ने अपने चंद चापलूस यूट्यूबरों व कुछ अन्य पत्रकारों की मदद से उन सभी फिल्म आलोचकों की निंदा कराई जिन्होंने ‘इमरजेंसी’ को खराब फिल्म बताया या लिखा. ऐसा करते हुए कंगना ने दोहरा नुकसान कर डाला.

उधर अब लोगों को उन के चापलूस यूट्यूबरों पर से भी यकीन उठ गया. पूरे एक सप्ताह में फिल्म ‘इमरजेंसी’ ने बौक्स औफिस पर 14 करोड़ रूपए कमा लिए. फिल्म का बजट 70 करोड़ रूपए से अधिक बताया जा रहा है.

जनवरी माह के चौथे सप्ताह, 24 जनवरी को कुछ छोटी फिल्मों के ही साथ अक्षय कुमार की फिल्म ‘स्काई फोर्स’ प्रदर्शित हुई है. जिसे 3 दिन तक 250 रूपए से 400 रूपए की छूट के साथ मुफ्त मे लोग देख सकते हैं. ऐसे में इस का बौक्स औफिस कलेक्शन पर अब अगले सप्ताह बात करेंगें.

Make In India : मेक इन इंडिया बनाम मेक इन अमेरिका

Make In India : जो सवर्ण भारतीय प्रवासी अमेरिकी धरती पर भारत में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था पर हाएतौबा मचाते रहे और मजे से वहां अश्वेत यानी अल्पसंख्यक आरक्षण का लाभ उठा रहे, वे अब ट्रंप के आने के बाद अपना माथा पीटने पर मजबूर हुए हैं, जाने क्यों?

अमेरिका में जौन एफ कैनेडी व मार्टिन लूथर किंग के आदर्शों से प्रेरित साल 1960 में अल्पसंख्यकों को नौकरियों में अवसर देने वाला आरक्षण लागू किया गया था, लेकिन श्वेत बहुसंख्यक समुदाय की लगातार मांग थी कि इस आरक्षण को खत्म किया जाए. डोनाल्ड ट्रंप ने आज उसी सोच का नेतृत्व कर किया है. ट्रंप ने इस आरक्षण को खत्म करने का फैसला किया है. इस में कुल 32 लाख फेडरल कर्मचारियों में से 8 लाख कर्मचारी इसी आरक्षण के तहत नौकरी प्राप्त किए हुए हैं और इसी आरक्षण का लाभ उठाते हुए तकरीबन 1 लाख भारतीय भी नौकरी कर रहे थे.

गौरतलब है कि यह नियम प्राइवेट सैक्टर पर भी लागू था. गूगल, फेसबुक, वालमार्ट,अमेजन, मैक डोनाल्ड आदि कंपनियों ने इस फैसले को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया है. ज्ञात रहे कि ज्यादातर भारतीय प्रवासी इन्हीं कंपनियों में पेशेवर हैं. इस बंदी के बाद बड़ी आबादी बेरोजगार हो गई है. ये प्रवासी भारतीय भारत में लागू संवैधानिक आरक्षण को गालियां देते हुए अमेरिका में आरक्षण लाभ ले रहे थे.

इधर, ट्रंप की जीत के लिए भारत में भी लोग हवनयज्ञ कर रहे थे. उसी सोच वाले लोग भारत की सत्ता पर काबिज हैं. भारत में सीधा फैसला तो नहीं लिया जा सकता क्योंकि आरक्षण का विरोध करने वाली स्वर्ण आबादी खुद अल्पसंख्यक है इसलिए अघोषित मोनोपोली के तहत आरक्षण के मायने बदल दिए गए हैं. निजी सैक्टर में आरक्षण लागू ही नहीं किया जा सका तो बड़े पदों पर इंटरव्यू के कारण पहुंचने ही नहीं दिया गया और खाली पदों को न भर कर खत्म किया गया. न्यायपालिका में आरक्षण लागू नहीं है. 55% ओबीसी आबादी को 27% के दायरे में सीमित कर दिया गया और सरकारी उपक्रमों का निजीकरण कर के आरक्षण खत्म कर दिया.

इसलिए अमेरिका जो भी कदम उठा रहा है उस से भारत के ओबीसी/एससी/एसटी व अल्पसंख्यक लोगों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. हर रोज भारत की सत्ता इन के खिलाफ उठाती रही है. ट्रंप ने कैनेडी व मार्टिन लूथर के सपनों का कत्ल किया है लेकिन भारत ने जिंदा गांधी का कत्ल आजादी के समय ही कर दिया था. डा अंबेडकर के संवैधानिक सपनों को कभी ईमानदारी से लागू ही नहीं किया गया था. बस पूना पैक्ट का बोझ उठाए घूम रहे हैं.

Hindi Kahani : ऐसे ढोंगी बाबा यहां मिलेंगे!

Hindi Kahani : नारायण-नारायण… नारदमुनि रोहरा नंद के साथ आकाश मार्ग में भ्रमण कर रहे हैं उन्होंने सुखद,शीतल वायुप्रवाह के आनंदतिरेक में कहा,- भारत भूमि में बाबाओं द्वारा- भोले-भाले लोगों को ठगा जा रहा है! बड़ा अनर्थ हो रहा है.

रोहरानंद ने आकाश से नीचे, धरा की और उचटती निगाह डाल हाथ जोड़कर कहा,-मुनिवर ! कम से कम आप तो ऐसा न कहें! यह सब आपके मुंह से शोभा नहीं देता.

नारदमुनि के चेहरे पर वक्र भाव उदित हुआ,- भला क्यों ? क्या हम सच न कहें, सिर्फ गेरुआ वस्त्र पहन लेने के कारण हम ऐसे ढोंगियों के तरफदार बन जाएं हिमायत करें  .

मुनिवर ! यह कलयुग है, ऐसा तो चलता रहेगा.अब पावन पवित्र बाबाजी कहां मिलेंगे, मैं तो कहता हूं कम से कम ऐसे बाबा भी हैं तो सही, यही क्या कम बड़ी उपलब्धि है.

नारदमुनि- (वीणा के तार झंकृत करते हुए ) अर्थात…

रोहरानंद- ( हाथ जोड़कर )हे देवर्षि! कलयुग में सौ फ़ीसदी खरे बाबा कहां से आएंगे, चहूं और लूट और षडयंत्र फैला हुआ है. हर आदमी खून के आंसू रो रहा है, व्यवस्था ही ऐसी है. ऐसे में मैं तो कहता हूं, कोई आदमी अगर काला चोर है, डाकू है और गेरुए वस्त्र धारण कर या रुद्राक्ष कंठी माला पहन कर, स्वयंभू बाबा और भगवान की डीलरशिप लेकर बैठा हुआ है तो वह प्राणाम्य है.

नारदमुनि-  तुम से बुद्धिजीवी से यह उम्मीद हमें नहीं थी, तुम अगर ऐसे ढोंगी और ठग बाबाओं के पक्षधर बन जाओगे तो इसका संदेश देश में अच्छा नहीं जाएगा. कम से कम तुम जैसे लोगों को, सदैव बुरे लोगों का, विरोध करते रहना चाहिए.

रोहरानंद- मुनिवर विरोध करने से क्या होगा. अपनी ताकत हमें विध्वंस में नहीं निर्माण में खर्च करनी चाहिए.

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नारदमुनि- देखो ! साध्य और साधन हमेशा निर्विवाद होने चाहिए.मैं इन बाबाओं की करतूत देख कर दंग हूं, दाढ़ी बढा ली, ऊंची ऊंची बातें कर रहे हैं और लोगों से दोनो हाथों से माया (रुपए) लिए जा रहे हैं ,इन्हें शर्म नहीं आती…

रोहरानंद-( हाथ जोड़कर ) देवर्षि! आप क्यों अपना खून जला रहे हैं .आकाश मार्ग से देशभर में भ्रमण करते हुए क्या इन बाबाओं के दर्शन करने निकले हैं, छोड़िए इन्हें… मुझे तो लगता है यह सब सौतिया दाह का मामला है.

नारदमुनि- नारायण नारायण. यह तुम क्या कह रहे हो…

रोहरानंद- मुनिवर ! आप अन्यथा न लें, मगर मुझे शंका तो है.

नारदमुनि- नारायण नारायण, इस देश में क्या सच बोलना भी गुनाह है. अगर मैं स्वर्गलोक से आया हूं, ज्ञानी हूं तो, सच तो कहूंगा.मुझे कैसा लार-फांस. न उधो का लेना, न माधो का देना. तो मैं तो सच कहूंगा जो, मैं देखूगा… कहूंगा. अगर इसके बाद भी मुझ पर आक्षेप लगते हैं तो लगाओ, मैं झेलूंगा. मुझ पर तुमने सौतिया दाह का आरोप मढ़ा है…

रोहरानंद- ( करुण भाव से ) मुनिवर क्षमा करें .मैं तो ऐसा हास्य बोध अर्थात ह्यूमर के तहत कह रहा था.

नारदमुनि-( कुद्र स्वर में ) यह इस राष्ट्र की तासीर बन गई है. जब कोई सच बात कहता है तो उसे झूठा सिद्ध किया जाता है और कोई झूठ फरेब करता है तो आंखें मूंद ली जाती है.

रोहरानंद- मुनिवर… यह धर्म का मामला है. इस संदर्भ में कोई कुछ नहीं कहेगा. अगर मैंने साधु-संत का वेश धारण कर लिया तो समझो मेरी पौ बारह हो गई .मैं रात दिन हाथ-पैर की सेवा करवाऊंगा. सुबह-शाम देसी घी का माल पुआ खाऊंगा. धनी मानी क्या, देश के प्रधानमंत्री और क्या राष्ट्रपति मेरी चरण वंदना करेंगे. मुझे और क्या चाहिए.

नारदमुनि- मगर इतनी समझ तो होनी चाहिए की आप समझ सको की सही क्या है और गलत क्या है.

रोहरानंद- मुनिवर! इतनी बुद्धि तो यहां किसी में नहीं है .यहां तो सिर्फ श्रद्धा और विश्वास का मामला है. लोगों के हुजूम ने अगर आपको स्वीकार कर लिया तो आप नारदमुनि हैं, देवर्षी हैं और अगर नहीं माना तो आपकी खैर नहीं.

नारदमुनि- क्या अभिप्राय है. क्या हमें डरा रहे हो…

रोहरानंद- मुनिवर ! यह डराने की बात नहीं हकीकत है.

नारदमुनि- यह कैसा देश है भाई .

रोहरानंद- मुनिवर… यहां चेहरा देखकर श्रद्धा भक्ति उमड़ती है और हवा का रुख देखकर काफूर भी हो जाती है.

नारदमुनि- नारायण नारायण… अजीब देश है अजीब.

रोहरानंद- मुनिवर यह स्वीधान राष्ट है. हर एक स्वाधीनता की आनंद उठा रहा है । कोई बोलने वाला नहीं…

नारदमुनि- अर्थात समय की मार सबसे बड़ी मार है.

रोहरानंद-( हाथ जोड़कर ) मुनिवर! आप सही कह रहे हैं, इस देश में समय से बड़ा कोई नहीं है. समय राजा को धन कमाना देता है और समय ही राजा को रंक.

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Romantic Story : जल्दी आना, मैं राह देखूंगी!

Romantic Story : हम आर्मी के लोगों की जिंदगी बहुत कठिन होती है. घर-परिवार सबसे दूर सीमा पर चौबीस घंटे की मुस्तैदी. महीनों बीत जाते हैं घरवालों से मिले. छुट्टी भी जल्दी मंजूर नहीं होती है. मगर इस बार तो मेरा घर जाना वाकई बहुत जरूरी था. छोटे भाई की शादी थी. कई महीने पहले मैंने हफ्ते भर की छुट्टी के लिए आवेदन भेजा था. बड़ी मुश्किल से छुट्टी मंजूर हुई थी. अगर इतना जरूरी न होता तो मैं न लेता मगर घर में बड़े के नाम पर सिर्फ मैं और मां ही थी. सारी तैयारियां होनी थीं. रंजीत इंजीनियर है. बंगलुरु की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में लगा है. पद भी अच्छा है पैसे भी. उसे भी फुर्सत कम ही मिलती है. ऑफिस की जिम्मेदारियां बहुत हैं कंधे पर. रंजीत को भी अपनी शादी के लिए मुश्किल से ही छुट्टी मिली थी. हम दोनों भाई अभी तक कुंवारे थे मगर अब दोनों में से एक की तो बहुत जरूरी थी. पापा की मृत्यु के बाद अब घर में मां की देखभाल के लिए कोई भी नहीं था. उनकी भी उम्र हो रही थी. बीमार पड़ जातीं तो कोई डॉक्टर के पास ले जाने वाला भी पास न होता था. मैं सीमा पर और भाई बंगलुरु में. खैर, उसकी शादी एक सुंदर और सीधी सादी घरेलू लड़की से तय हो गयी थी, जो मां के साथ ग्वालियर में ही रहने को तैयार हो गयी थी.

शादी वाले दिन सारे रिश्तेदार घर में जमा थे. शाम होते-होते रंजीत को घोड़ी पर बिठाने सहित बारात की सारी तैयारियां चरम पर पहुंच गयीं. सारे के सारे लोग सजने-धजने में जुटे थे. मां की खुशी तो वर्णन से बाहर थी. पूरा घर रोशनी में नहाया हुआ था. घोड़ीवाला दरवाजे पर शाम से ही पहुंच गया था. बैंड वाले भी अपना तामझाम लेकर जमा थे. बीच-बीच में संगीत की सुरलहरियां गूंज उठती थीं. शाम घिर आयी थी. मां ने मुझे आवाज लगा कर कहा कि मैं जाकर छोटे को उसके कमरे से ले आऊं, बारात उठने में देर हो रही है. दो घंटे तो रास्ते में ही नाचते-गाते ही निकल जाएंगे.

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मैं भागा-भागा ऊपर के कमरे में गया, जहां छोटा भाई रंजीत तैयार होने गया था. पूरा कमरा खाली पड़ा था. बाहर बालकनी, बाथरूम सब देख लिए. कहीं नहीं. नीचे आकर नीचे के कमरों में भी झांक आया. तमाम आवाजें लगायीं, मोबाइल मिलाया, मगर कोई जवाब नहीं. मोबाइल स्विच ऑफ़ था. मैं वापस उसके कमरे में गया तो उसके शादी के जोड़े के ऊपर एक पत्र मिला.

लिखा था – ‘भइया, मैं किसी घरेलू साधारण सी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था. मैंने मां को बहुत समझाया था कि मैं शादी नहीं करूंगा, मगर वह जिद्द पकड़ कर बैठी थी. उसकी जिद्द पर मैं यहां आ गया कि आप दोनों से मिल कर सारी बातें समझा दूंगा, मगर यहां तो मां सारी तैयारियां करके बैठी थी. रिश्तेदारों को भी बुला लिया था. भइया, मुझे यह बात पहले बता देनी चाहिए थी, मगर मैं मां को और आपको मिल कर ही बताना चाहता था. पिछले महीने बंगलुरु में अपनी कंपनी में ही कार्यरत एक इंजीनियर लड़की से मैंने कोर्ट मैरिज कर ली है. मैं उससे बहुत प्यार करता हूं. उसे छोड़ नहीं सकता. भइया, मां को समझा देना. मैं उनसे नजरें नहीं मिला पाऊंगा. उनका दिल टूट जाएगा. मैं वापस जा रहा हूं. संभाल लेना. –  रंजीत

यह पढ़ते ही मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गयी. भाग कर नीचे आया. चाचाजी को बताया. उन्होंने किसी तरह संभाल-संभाल कर पूरी बात मां को बतायी. खुशी वाले घर में अचानक श्मशान की खामोशी पसर गयी. क्या करें? किसी को कुछ सुझायी नहीं दे रहा था. इतने में चाचाजी मेरे पास आए. बोले, ‘बेटा, घर की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. मैं लड़कीवालों से बात कर लूंगा, तू सेहरा बांध ले…’

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मैं अवाक्. ये कैसी मुसीबत में फंसा गया छोटा. मैं तो खुद किसी मिलिट्री मैन की लड़की से शादी का ख्बाव देख रहा था. मगर अब क्या किया जाए? बारात चलने को उतावली थी, बस दूल्हे का इंतजार था. घराती-बराती सब आ जुटे थे. मेरा तो दिमाग ही सुन्न पड़ गया. घरवालों के दबाव के आगे मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था. कब सेहरा बांध कर घोड़ी पर सवार हुआ, पता ही नहीं चला. कब फेरे पड़े, कब विदायी हुई, कब मैं दुल्हन को लेकर अपने घर आ गया, कुछ होश न रहा.

सुहागसेज पर लंबे घूंघट में सिसकती सीमा को देखकर ही मेरे होश वापस आये थे. उसके चेहरे से घूंघट हटा कर मैंने पहली बार उसका चेहरा देखा तो उस भोले चेहरे पर एक ही सवाल था – मेरी क्या गलती थी?

सच ही तो था. उसने छोटे भाई रंजीत की फोटो देखने के बाद न जाने कितने सपने बुने होंगे, कितनी जुड़ गयी होगी वह उसके व्यक्तित्व से. एक स्मार्ट और अच्छा वेतन पाने वाले इंजीनियर की जगह उसे एक सख्त और कम तनख्वाह पाने वाले जवान से ब्याह दिया गया था, जिसके जीवन का भी कोई भरोसा नहीं था. उसके तो सारे सपने ही बिखर गये थे. वह रात हम दोनों के बीच खामोशी से गुजर गयी. दूसरी रात कुछ बातचीत शुरू हुई. सीमा बहुत ही कोमल और मधुर स्वभाव की थी. ग्रेजुएट थी और घर-परिवार में रच-बस कर रहने वाली घरेलू लड़की थी. कई तरह के पकवान बनाने में माहिर और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करने वाली लड़की थी. उसके साथ हफ्ता कैसे छूमंतर हो गया पता ही नहीं चला. ससुराल में दूसरे ही दिन से उसने पूरी रसोई संभाल ली थी. मां तो उस पर न्योछावर हुई जाती थी.

हफ्ते भर की छुट्टियां खत्म होने पर जब मैं वापस सीमा पर जाने के लिए तैयार हुआ तो उसने आकर धीरे से कान में कहा था, ‘जल्दी वापस आना. मैं राह देखूंगी.’

उसकी वह बात मेरे कानों में आज तक गूंज रही है. छुट्टी की एप्लीकेशन दे दी है. पता नहीं कब मंजूर होगी. क्योंकि जल्दी तो मुझे भी है.

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Short Hindi Story : ठगी का कोचिंग सेंटर

Short Hindi Story : वे कल मूंछों पर ताव देते आए तो मैं हक्काबक्का रह गया. कारण, इस से पहले तक तो वे हर पल अपनी पूंछ पर ही ताव देते रहते थे. वैसे, औरों की पूंछों पर ताव देना तो दूर, उसे छूना उतना ही डैंजरस होता है जितना बिन सावधानी के बिजली के नंगे तार छूना.

आते ही पहली बार समाज सुधारक वाले मोड में लगे, तो मैं फिर चौंका. यार, कल तक का घोर स्वार्थी आज समाजचिंतक? पर फिर सोचा, यहां आदमी को किसी भी मोड में आते कौन सी देर लगती है? इस देश में कोई किसी भी वक्त किसी भी मोड में आ सकता है, पर आदमी के मोड में कभी नहीं आ सकता. यह सोचा तो मेरी चिंता कुछ कम हुई. आते ही वे मुझ से अपनी समाजसेवा के लिए पुख्ता जानकारी जुटाने लगे, ‘‘यार, अपने महल्ले में कितने पढ़ेलिखे बेरोजगार होंगे?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘सरकार उन को रोजगार न दे सकी, तो क्या हुआ. मेरे पास उन के लिए उन का अपना काम करने का आइडिया है. मैं नहीं चाहता मेरे देश का कोई भी अनपढ़ तो अनपढ़, पढ़ालिखा हाथ तक खाली रहे.’’

‘‘इस देश में आइडियों की कमी नहीं, मेरे दोस्त. नकारे से नकारे आदमी के पास भी ऐसेऐसे धांसू आइडिए मिल जाएंगे कि… कमी है तो बस आइडियों को मूर्तरूप देने वालों की. हवा में तो जितनी मारना चाहो, मार लो पर…’’

‘‘नहीं यार, मैं अपने आइडिए से बेरोजगारी का समूल नाश करना चाहता हूं.’’

‘‘बेरोजगारी का समूल नाश तो छोड़ो, नाश ही हो जाए तो भी…’’ कहते हुए मैं उन के आइडिए को अभी निरखपरख ही रहा था कि वे चहकते हुए बोले, ‘‘मैं पढ़ेलिखे हाथों को भी रोजगार देना चाहता हूं?’’

‘‘अरे दोस्त, पहले खुद को तो रोजगार दे लो. आदमियों तो आदामियों, भगवानों तक से उधार खा डकार चुके हो,’’ मैं ने कहा तो वे मुझ पर गुस्साते बोले, ‘‘हद है यार, मैं तहेदिल से बेरोजगारों का भला करना चाहता हूं और एक तुम हो कि… इस देश के साथ बस एक ही दिक्कत है, और वह यह कि हम गंभीर मुद्दों को भी हवा में उछाल देते हैं खोटे सिक्कों की तरह.’’ उन्होंने यह कहा तो मैं गंभीर हुआ, ‘‘तो क्या आइडिया है तुम्हारे पास?’’

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‘‘सोच रहा हूं कि अब अपने देश के पढे़लिखे बेरोजगारों के लिए कोचिंग सैंटर खोल लूं,’’ उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से कहा तो मैं हंसता रहा. मन किया कह दूं कि अपने देश में कोचिंग सैंटरों के बाद ही तो बेरोजगारी बढ़ी है, पर चुप रहा. सिर्फ इतना कहा, ‘‘मतलब? पर वे तो पहले ही कोचिंग करने के बाद बेरोजगार हुए हैं.’’

‘‘मैं देश में सब से अनूठा पहला कोचिंग सैंटर अपने देश के पढ़ेलिखे बेरोजगारों के लिए खोलना चाहता हूं.’’

‘‘मतलब? अब एक और कोचिंग सैंटर? देखो यार, इस देश में सबकुछ खोलो पर कोई और कोचिंग सैंटर न खोलो. मेरे देश के मांबाप बच्चों को कोचिंग करवाते हुए पहले ही लुट चुके हैं. वैसे, मांबाप अब बच्चा पैदा करने से पहले ही आने वाले के लिए कोचिंग सैंटर में एडवांस में सीट बुक करवाने लगे हैं. तो तुम कौन सा नए टाइप का कोचिंग सैंटर खोलना चाहते हो?’’

‘‘ठगी का कोचिंग सैंटर,’’ कह वे मेरा मुंह देखने लगे, फिर बोले, ‘‘क्यों? कैसा है मेरा आइडिया?’’

मैं ने अपने दांतों तले अपनी उंगली दे डाली.

‘‘यार, उस ठगी के कोचिंग सैंटर में आएगा ही कौन, जबकि मेरे चरित्र प्रमाणपत्र जारी करने वाले औफिसर तक का हर दूसरा बंदा ठग है.’’

‘‘तो होता रहे. पर मेरा ठगी का कोचिंग सैंटर ठगी के घिसेपिटे तरीकों से नहीं, ठगी के अल्ट्रा मौडर्न तकनीकों से लैस होगा. वहां पर ठगी की ट्रेनिंग देने वाले देशी नहीं, इंटरनैशनल लैवल के होंगे.

‘‘माना दोस्त, आज समाज ठगों से भरा हुआ है. धर्म से ले कर कर्म तक हर जगह आज ठगी ही ठगी है. पर वह ठगी, स्किल्ड ठगी नहीं. समाज में साक्षरता दर बढ़ने के बाद भी अधिकतर अनस्किल्ड ठग हैं. अधजल ठगी की छलकती गगरी सिर पर उठाए सब एकदूसरे को ठग रहे हैं और देरसवेर पकड़े जा रहे हैं. ठगी के काम में जो पारंगतता होनी चाहिए, वह बहुत कम लोगों में देखने को मिल रही है.

‘‘वैसे भी, अब ठगी बहुआयामी हो गई है. पारंपरिक ठगी के दिन गए. आजकल ठगी का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है. रोज नई किस्म की ठगी बाजार में देखने को मिल रही है. सच कहूं तो ठगी के क्षेत्र में आज जितने प्रयोग हो रहे हैं, उतने किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं. गुरु से ले कर चेला तक सब ठगी के पाठ पढ़ातेपढ़ते, ठगी करतेकरते आगे बढ़ रहे हैं. मतलब, आज कणकण में भगवान व्याप्त हो या न, पर ठगी कणकण में विद्यमान है. ठगी ही आज के समय की सब से शुद्ध नैतिकता है. जो ठग नहीं, वह नैतिक नहीं.

‘‘जरा नजरें उठा कर देखो तो, दोस्त. आज ठगी की धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक बोलें तो पूछ मत कि हर क्षेत्र में रोजगार की कितनी संभावना है. जितना मन करे ठगी करते जाओ, आगे बढ़ते जाओ. अब जरूरत है तो बस उन्हें नए संदर्भों में एक्सप्लोर करने की. मैं अपने ठगी के सैंटर में बस इन्हीं संभावनाओं को एक्सप्लोर करने की ऐसी क्वालिटीपूर्ण कोचिंग दूंगा, ऐसी क्वालिटीपूर्ण कोचिंग दूंगा कि मेरे कोचिंग सैंटर से निकला छात्र ठगी के क्षेत्र में सगर्व एक से एक कीर्तिमान स्थापित कर सके. ठगी करने के बाद उसे विदेश भागने की जरूरत न पड़ेगी, अपने देश में ही शान से सिर ऊंचा कर रहे. देश को उस पर नाज हो.

‘‘माना, सड़क से ले कर संसद तक आज ठगी का कारोबार चल रहा है, पर कुछ डरासहमा सा. बहुत कम लोग ठगी के फुलटाइमर हैं.

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‘‘मैं अपने कोचिंग सैंटर की तारीफ अपने मुंह से तो नहीं करता, पर इतना जरूर कहना चाहूंगा कि मेरे कोचिंग सैंटर से जो भी ठगी की कोचिंग लेगा, वह पकड़ा नहीं जाएगा. ठगी में उसे कभी भी शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ेगी. वह सिर गर्व से ऊंचा कर ठगी कर सकेगा. इस से पुलिस और कानून दोनों की परेशानी कम होगी. कुल मिला कर मेरे ठगी के कोचिंग सैंटर में ठगी के ऐसेऐेसे अनूठे गुर सिखाए जाएंगे कि जीते जी तो जीते जी, बंदे के मरने के बाद भी मेरे कोचिंग सैंटर का छात्र पकड़ा न जाए. देख लेना, अपने बेटे को भी भेजना हो तो. 4 के साथ एक फ्री रखा है मैं ने अभी. कोई 4 मेरे यहां ऐडमिशन को ले आना और अपने बेटे की फीस बचा लेना,’’ दोस्त ने नेक सलाह दी और समाज कल्याण हेतु आगे हो लिए.

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