Download App

World : क्या दुनिया खत्म होने वाली है?

World : महासागरों में कुछ असामान्य हो रहा है. गहरे समुद्र में अजीबोगरीब जीव सतह पर आ रहे हैं. हाल ही में मैक्सिको के समुद्र तट पर एक दुर्लभ ‘डूम्सडे’ मछली दिखाई दी है. इस मछली को ओरफिश कहा जाता है और यह दक्षिणी बाजा कैलिफोर्निया प्रायद्वीप के तट पर देखी गई है. क्या ये बदलते पर्यावरण के संकेत हैं या किसी बड़ी चीज की चेतावनी?

कहा जाता है कि यह मछली जबजब धरती पर आती है तब अपने साथ तबाही का भंयकर मंजर लाती है. हालांकि, विज्ञान ने इस मान्यता की पुष्टि नहीं की है. इसे सिर्फ संयोग माना जा सकता है.

सब से चर्चित रहस्यों में से एक है ओरफिश का अचानक प्रकट होना. यह एक मायावी, सांप जैसा प्राणी जिसे अकसर आपदा मिथकों से जोड़ा जाता है. यह आशंका फिर से बढ़ गई कि गहरे समुद्र में रहने वाली ये मछलियां भूकंप या सुनामी का संकेत देती हैं.

जापानी लोककथाओं में इन्हें ‘समुद्र देवता के दूत’ के रूप में देखा जाता है. ओरफिश एक गहरे समुद्र का जीव है जो आमतौर पर समुद्र की सतह से सैकड़ों-हजारों फुट नीचे रहता है. यह इंसानों को शायद ही कभी दिखाई देता है.

हालांकि, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि साल 2011 में जापान में आए विनाशकारी सुनामी और 9.0 तीव्रता के भूकंप से कुछ महीने पहले 20 से ज्यादा ओरफिश समुद्र तट पर मृत पाई गई थीं. इसलिए ओरफिश के समुद्र किनारे आने से भूकंप या सुनामी आने की संभावना जताई जा रही है.

वहीं, एंगलर फिश भी वहां दिखाई दे रही हैं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए. वैज्ञानिक इस पर ध्यान दे रहे हैं. यह मछली आमतौर पर 2,000 मीटर अंदर पानी में पाई जाती है. ऐसे में इस का ऊपर आना भी चिंता का विषय बन गया है.

हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि एंगलर फिश सतह के करीब क्यों दिखाई दे रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि महासागर के पानी के गरम होने से उन के प्राकृतिक आवास में बदलाव हो सकता है. ये परिवर्तन गहरे समुद्र में रहने वाली प्रजातियों के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं.

सभी असामान्य घटनाएं एक बड़े कारक की ओर इशारा करती हैं, वह है जलवायु परिवर्तन. जैसेजैसे ग्रह गरम होता है, वैसेवैसे महासागर का इकोसिस्टम बदल रहा है जिसे हम अब देख सकते हैं. बढ़ते तापमान, बदलती धाराएं और बदलते समुद्री आवास यह बता सकते हैं कि गहरे समुद्र के जीव अप्रत्याशित स्थानों पर क्यों दिखाई दे रहे हैं.

Politics : क्या ओबीसी को वानर सेना समझती है भाजपा ?

Politics : मंडल की राजनीति से ले कर पौराणिक कहांनियों तक के उदाहरण बताते हैं कि ओबीसी को इस्तेमाल कर के छोड़ दिया जाता है. राज करने का अधिकार अभी भी राजा का होता है.

भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में अपने संगठन के चुनाव को ले कर हो होहल्ला मचा रही है. वैसे यह चुनाव से अधिक मनोनयन है. इस के जरिए प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है. इस चुनाव के जरिए भाजपा जाति के कार्ड की काट करना चाहती है. ऐसे में एक बार भाजपा ओबीसी को ढाल के रूप में प्रयोग करने की योजना बना रही है. उत्तर प्रदेश को भाजपा प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी कर दी है. इन 70 नामों में 25 ओबीसी, 6 एससी और 39 जनरल वर्ग के से हैं. जनरल में सब से अधिक 19 ब्राह्मण हैं. 70 नामों से 26 दूसरी बार जिलाध्यक्ष बने हैं. भाजपा ने महिला आरक्षण बिल का बड़ा शोर मचाया. महिला आरक्षण बिल का नाम नारी वंदन अधिनियम रखा लेकिन जब संगठन में हिस्सेदारी का सवाल आया तो 70 में से केवल 5 महिला नेताओं को जगह दी गई.

भाजपा ने उत्तर प्रदेश संगठन को 75 जिलें और 13 महानगर समेत 98 जिले माने जाते हैं. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए 50 जिलों में अध्यक्षों का निर्वाचन होना जरूरी होता है. अब प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम की घोषणा होनी है. भाजपा भविष्य के लाभ को देखते हुए ओबीसी का प्रयोग कर सकती है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा इन को फैसले लेने लायक पद भी देगी या केवल तमाशाई ही बना कर रखेगी.

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य थे. उन की अगुवाई में विधानसभा के चुनाव हुए. 1991 के बाद 2017 में भाजपा को बहुमत मिला. बहुमत हासिल करने के बाद जब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का समय आया तो योगी आदित्यनाथ का नाम आगे कर दिया गया. इस को ले कर भाजपा संगठन में खींचतान बनी हुई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सब से अधिक नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ. जहां उसे केवल 33 सीटें मिलीं और वह समाजवादी पार्टी से पीछे रह गई. इस नुकसान को समझते हुए भाजपा ओबीसी को अधिक महत्व देने का दिखावा कर रही है.

1990 के दशक में चलें तो मंडल कमीशन के दौर में भाजपा ओबीसी का विरोध कर रही थी. मंडल कमीशन का मुकाबला करने के लिए अयोध्या के मंदिर का आंदोलन शुरू कर दिया. ‘मंडल‘ बनाम ‘कमंडल’ की राजनीति ने पिछडों को बहुत नुकसान पहुंचाया था. पिछड़ों की अगुवाई करने वाली सपा और बसपा में तोड़फोड़ कर माया और मुलायम को अलगअलग कर दिया. इसी तरह से बिहार में रामविलास पासवान के साथ किया. उत्तर प्रदेश और बिहार में ओबीसी राजनीति का खत्म कर दिया.

काम निकल जाने के बाद छोड़ देने की पंरपरा

देखा जाय तो यह पंरपरा पुरानी है. रामायण काल में भी राम ने रावण से लड़ने की योजना तैयार की तो वानर सेना तैयार की. एक लाख की वानर सेना ने पगपग पर रावण से लड़ाई में राम का साथ दिया. समुद्र में वह स्थान खोजा जहां से लंका तक पहुंचना सरल था. समुद्र पर पुल बनाने सीता का पता लगाने जैसे काम में वानर सेना का प्रमुख रोल था. रावण की विशाल सेना को वानरों की सेना ने पसीने छुड़ा दिए थे. वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध में वानर सेना की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

रामायण के उत्तर कांड में बताया गया है कि जब लंका से सुग्रीव लौटे तो राम ने उन्हें किष्किन्धा का राजा बनाया. अंगद को युवराज बना दिया. नल नील सुग्रीव के राज्य में मंत्री बने. अयोध्या में जब राम का राज्याभिषेक हुआ तो वानर सेना वहां भी आई थी. राजा बनने के बाद राम ने वानर सेना को अपने दरबार में कोई पद नहीं दिया. इस के बाद वानर सेना वापस चली गई. जिस वानर सेना ने राम का साथ दिया उन को युद्व जितने में मदद की उसे राजा बनने के बाद कुछ नहीं दिया गया.

रामायण ही नहीं महाभारत में भी ऐसे उदाहरण हैं. भीम ने हिडिंबा से विवाह किया था. हिडिंगा राक्षसी थी. भीम और हिडिंबा से घटोत्कच नाम का पुत्र हुआ. जिस को कभी भी पांडव ने स्वीकार नहीं किया. जब कौरव और पांडव के बीच महाभारत का युद्व होने लगा तो कौरव की सेना भारी पड़ने लगी. ऐसे में पांडव को घटोत्कच की जरूरत पड़ी तब उस को भीम के पुत्र के रूप में लड़ाई में शामिल करने को कहा गया. घटोत्कच का पता था कि लड़ाई के मैदान में उस का मुकाबला कर्ण से होगा. वह मारा जाएगा इस के बाद भी घटोत्कच ने लड़ाई लड़ी और मारा गया.

महाभारत में ही दूसरा प्रंसग एकलव्य का है. एकलव्य अर्जुन से भी अधिक श्रेष्ठ धनुर्धारी था. गुरू द्रोणाचार्य यह नहीं चाहते थे कि उन के शिष्य अर्जुन से श्रेष्ठ कोई दूसरा धनुर्धारी हो, इसलिए उन्होने अपनी गुरूदक्षिणा के नाम पर एकलव्य का अंगूठा ही मांग लिया था. जहां भी राजा को राज करने की जरूरत पड़ती है वह घटोत्कच को अपना लेता है और जहां ही उसे बराबरी का हक देने की बात आती है वहां उस को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

मनुस्मृति के दिखाए राह पर चल रहे ओबीसी और एससी

समुद्र मंथन के समय भी ऐसा हुआ. समुद्र मंथन के लिए देवताओं ने राक्षसों का साथ लिया. जब अमृत पीना था तो आपस में बांट लिया और मदिरा राक्षसों के हवाले कर दी. भाजपा पौराणिक कथाओं पर यकीन कर उसी राह पर चलने वाली पार्टी है ऐसे में वह राजनीति में भी इसी तरह का काम कर रही है. जब जरूरत होती है ओबीसी को अपना लेती है और बराबरी का अधिकार देते समय पीछे हट जाती है. भाजपा के ओबीसी या एससी नेता मनुस्मृति के दिखाए रास्ते पर ही चल रहे हैं.

भाजपा संगठन हो या सरकार यह ओबीसी का प्रयोग कर रहे हैं. कमोवेश यही बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के पहले से कहते आ रहे हैं. वह ओबीसी स्तर के सचिवों के नाम पूछते हैं. राहुल गांधी ने अपने चुनावी भाषण में कहा कि देश की सरकार को 90 आईएएस अफसर चलाते हैं. इन में केवल 3 ओबीसी जाति के हैं. ब्यूरोक्रेसी की बात हो या राजनीति की हर जगह पर ओबीसी केवल प्रयोग किए जा रहे हैं. असल में इन को अधिकार नहीं दिए जा रहे है.

भाजपा संगठन को चलाने का काम आरएसएस करता है. वहां केवल मनुस्मृति की दिखाई राह पर चलने वाले लोग हैं. ऐसे में संगठन के पदों पर कितने ही ओबीसी बैठ जाएं उन का महत्व उतना ही है जितना यूपी की सरकार चलाने में केशव प्रसाद मौर्य की.

अगर भाजपा ओबीसी की शुभचिंतक होती तो जातीय गणना कराने को ले कर उस के खिलाफ नहीं होती. देश में 60 फीसदी से अधिक ओबीसी के लोग हैं लेकिन उन को ब्राहमण राज के आधीन काम करना पड रहा है. जातीय गणना से सही तस्वीर सामने आएगी इस कारण भाजपा उस को सामने लाने से बच रही है. अपने संगठन में नाममात्र के पदों पर ओबीसी को आगे कर के जातीय गणना के मसले को टालना चाहती है.

Motivational : अनुशासन, उत्साह, आत्मीयता उत्पादकता की कुंजी

Motivational : यदि व्यक्ति अनुशासित और व्यवस्थित है तो वह बेहतर उत्पादक होने के साथसाथ सफल भी होता है. उस में नेतृत्व क्षमता भी होती है और वह ज्यादा भरोसेमंद होता है.

हर काम एक खास चीज की मांग करता है. उस का नाम है अनुशासन और समर्पण. अपने भीतर आत्मअनुशासन को जाग्रत कर के कोई काम करने का संकल्प करना चाहिए. आत्मअनुशासन अर्थात अपने बिखरे हुए विचारों को एक तरफ लगा देना. आत्मअनुशासन से काम का आरंभ इतना अच्छा हो जाता है कि सफलता तय हो जाती है. एकाग्रता इतनी फलदायक है कि इसे धारण करते ही काम में निखार आने लगता है. एकाग्रता को हम बाजार से नहीं खरीद सकते. यह हम को अपने संकल्प से अपनी इच्छाशक्ति से विकसित करनी होती है. एकाग्रता से आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और आत्मनियंत्रण भी प्राप्त हो जाते हैं.

सकारात्मक चिंतन जरूरी

स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए हैं. वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गए. कलाकार उन्हें अपने स्टूडियो में ले गया और मूर्तियां दिखाने लगा. दिखातेदिखाते एक मूर्ति के सामने आया बोला, ‘यह मेरी नई रचना है.’ इतना कह कर उस ने उस पर से गीला कपड़ा हटाया. फिर मूर्ति को ध्यान से देखा.

उस की निगाह उस पर जमी रही. जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया, ‘इस के कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है.’ उस ने ठीक किया. फिर कुछ कदम दूर जा कर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया. इस तरह एक घंटा निकल गया.

ज्विग चुपचाप खड़ेखड़े देखते रहे. जब मूर्ति से संतोष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया. दरवाजे पर पहुंच कर उस की निगाह पीछे गई तो देखता क्या है कि कोई पीछेपीछे आ रहा है. अरे, यह अजनबी कौन है? उस ने सोचा, घड़ीभर वह उस की ओर ताकता रहा. अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था. वह लज्जा गया, बोला, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना. मैं आप को एकदम भूल ही गया था.’’

ज्विग ने अपनी आत्मकथा में प्रसंग लिखा है, ‘‘उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं में सब से बड़ी क्या और कौन सी कमी थी. शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है जब आदमी अपनी सारी शक्तियां बटोर कर उन को एक ही जगह पर केंद्रित कर देता है.’’

ऐसा भी कहते हैं कि सफलता केवल तब ही मिल पाती है जब हमारे भीतर एक सकारात्मक चिंतन की अविरल धारा चलती है. सकारात्मक विचार अगर स्वभाव में होते हैं तब लक्ष्य साधने में ज्यादा कठिनाई नहीं आती.

उदाहरण के लिए वनवासी एकलव्य की सकारात्मक दूरदृष्टि. उस ने बिना किसी शिकवा और शिकायत के गुरु को साक्षी मान कर धनुर्विद्या सीखनी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप वह एक सर्वोत्तम धनुर्धर बना. यह सकारात्मकता विविधरंगी है- कभी उमंग और तरंग, कभी कल्पनाशीलता, कभी उत्साह, कभी आत्मीयता, कभी समाज के लिए अपनापन, मददगार भाव आदि के रूप में परिलक्षित होती रहती है.

मिशन के प्रति समर्पित विनोबा

कई बार अनुशासन या सकारात्मकता शोर मचा कर अभिव्यक्त नहीं होती. शब्दों से परे और भावनाओं से लबरेज यह सकारात्मकता समुचित दृष्टिकोण वालों के लिए दर्शनीय, मोहक और मौन होती है.

हजारों शब्दों की जगह यही मौन सबकुछ कह देता है. अगर सही विचार हों तो इस अद्भुत सकारात्मक भाव की एक झलक में पूरा जीवन दिख जाता है. एक सफल और संतुष्ट जीवन जो सकारात्मक है वह जीवन के अंधकार में भी उजाला, पराजय में जय और प्रसन्नता तथा अच्छी गति की तरफ ही देखता है और उसे पा भी लेता है. इसे महर्षि विनोबा भावे के जीवन से कुछ इस तरह समझ सकते हैं.

10 साल तक विनोबाजी सारे देश में पैदल घूमते रहे. वे प्यार से उन लोगों से जमीन लेते जिन के पास थी और प्यार से उन्हें दे देते थे जिन के पास नहीं थी. विनोबाजी के पेट में अल्सर था. वह कभीकभी बड़ा दर्द करता था. उन्हें बड़ी हैरानी होती थी पर उन की यात्रा नहीं रुकती थी. एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डाक्टरों ने उन की जांच की. अच्छी तरह से देखभाल कर के उन्होंने विनोबाजी से कहा, ‘‘आप की हालत गंभीर है. आप 8 महीने आराम करें.’’

विनोबाजी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हालत अच्छी नहीं है तो आप ने 4 महीने क्यों छोड़ दिए? अरे, आप को कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करो.’’ डाक्टरों ने कहा, ‘‘आप पैदल चलना छोड़ दें.’’

विनोबाजी ने उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे पेट में दर्द है, पैरों में नहीं.’’ विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नहीं की. लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होंने जवाब दे दिया, ‘‘सूर्य कभी नहीं रुकता, नदी कभी नहीं ठहरती, उसी अखंड गति से मेरी यात्रा चलेगी.’’

उन की इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर उन्हें कोई 45 लाख एकड़ भूमि मिल गई. यह अनुशासन है ही इतना चमत्कारी कि इस से आत्मरुचि, आत्मनियंत्रण, स्वावलंबन भी उत्पन्न होते हैं.

रचनात्मक बनाता अनुशासन

अनुशासन का अभ्यास हम को रचनात्मक, आनंददायक और उत्पादक जीवन जीने के योग्य बनाता है. अनुशासन से हम समय प्रबंधन की कला भी सीख लेते हैं. समय प्रबंधन हम को किसी भी चुनौती को समझने तथा उस से निबटने में दक्ष व कुशल बनाता है. कुल मिला कर अनुशासन हमारी भीतरी ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जो हम को जीवन में बेहद आगे ले जा सकता है.

Hindi Kahani : उस रात – क्या सलोनी और राकेश की शादी हुई?

Hindi Kahani : राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं.

2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे

2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे.

बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

Best Romantic Story : जीत – मंजरी और पीयूष की बेपनाह मुहब्बत

Best Romantic Story : वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को छेड़ रहे थे. बारबार लटें उस के गालों पर आ कर झूल जातीं, जिन्हें वह बहुत ही प्यार से पीछे कर देता. ऐसा करते हुए जब उस के हाथ उस के गालों को छूते तो वह सिहर उठती. कुछ कहने को उस के होंठ थरथराते तो वह हौले से उन पर अपनी उंगली रख देता. गुलाबी होंठ और गुलाबी हो जाते और चेहरे पर लालिमा की अनगिनत परतें उभर आतीं.

मात्र छुअन कितनी मदहोश कर सकती है. वह धीरे से मुसकराई. पेड़ से कुछ पत्तियां गिरीं और उस के सिर पर आ कर इस तरह बैठ गईं मानो इस से बेहतर कोमल कालीन कहीं नहीं मिलेगा. उस ने फूंक मार कर उन्हें उड़ा दिया जैसे उन लहराते गेसुओं को छूने का हक सिर्फ उस का ही हो.

वह पेड़ के तन से सट कर खड़ी हो गई और अपनी पलकें मूंद लीं. उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अप्रतिम प्रतिमा, जिस के अंगअंग को बखूबी तराशा गया हो. उसे देख कौन पुरुष होगा जो कामदेव नहीं बन जाएगा. उसे चूमने का मन हो आया. पर रुक गया. बस उसे अपलक देखता रहा. शायद यही प्यार की इंतहा होती है… जिसे चाहते हैं उसे यों ही निहारते रहने का मन करता है. उस के हर पल में डूबे रहने का मन करता है.

‘‘क्या सोच रही हो,’’ उस ने कुछ क्षण बाद पूछा.

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’ वह थोड़ी चौंकी पर पलकें अभी भी मुंदी हुई थीं.

‘‘चलें क्या? रात होने को है. तुम्हें घर छोड़ दूंगा.’’

‘‘मन नहीं कर रहा है तुम्हें छोड़ कर जाने को. बहुत सारी आशंकाओं से घिरा हुआ है मन. तुम्हारे घर वाले इजाजत नहीं देंगे तो क्या होगा?’’

‘‘वे नहीं मानेंगे, यह बात मैं विश्वास से कह सकता हूं. गांव से बेशक आ कर मैं इतना बड़ा अफसर जरूर बन गया हूं और मेरे घर वाले शहर में आ कर रहने लगे हैं, पर मेरे मांबाबूजी की जड़ें अभी भी गांव में ही हैं. कह सकती हो कि रूढि़यों में जकड़े, अपने परिवेश व सोच में बंधे लोग हैं वे. पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बहू को स्वीकारना अभी भी उन के लिए बहुत आसान नहीं है. पर चलो इस चीज को स्वीकार भी कर लें तो भी दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाना… संभव ही नहीं है उन का मानना.’’

‘‘तुम खुल कर कह सकते हो यह बात पीयूष… दूसरी अन्य कोई जाति होती तो भी कुछ संभावना थी… पर मैं तो मायनौरिटी क्लास की हूं… आरक्षण वाली…’’ उस के स्वर में कंपन था और आंखों में नमी तैर रही थी.

‘‘कम औन मंजरी, इस जमाने में ऐसी बातें… वह भी इतनी हाइली ऐजुकेटेड होने के बाद. तुम अपनी योग्यता के बल पर आगे बढ़ी हो. फिलौसफी की लैक्चरर के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती हैं. ऊंची जाति नीची जाति सदियों पहले की बातें हैं. अब तो ये धारणाएं बदल चुकी हैं. नई पीढ़ी इन्हें नहीं मानती…

‘‘पुरानी पीढ़ी को बदलने में ज्यादा समय लगता है. दोष देना गलत होगा उन्हें भी. मान्यताओं, रिवाजों और धर्म के नाम पर न जाने कितनी संकीर्णताएं फैली हुई हैं. पर हमें कोशिश करनी नहीं छोड़नी है. उस के लिए पहले हमें स्वयं को मजबूत करना होगा. स्वयं को हर लड़ाई के लिए तैयार करना होगा.’’

मंजरी ने पीयूष की ओर देखा. ढेर सारा प्यार उस पर उमड़ आया. सही तो कह रहा है वह… पर न जाने क्यों वही बारबार हिम्मत हार जाती है. शायद अपनी निम्न जाति की वजह से या पीयूष की उच्च जाति के कारण. वह भी ब्राह्मण कुल का होने के कारण. बेशक वह जनेऊ धारण नहीं करता. पर उस के घर वालों को अपने उच्च कुल पर अभिमान है और इस में गलत भी कुछ नहीं है.

वह भी तो निम्न जाति की होने के कारण कभीकभी कितनी हीनभावना से भर जाती है. उस के पिता खुद एक बड़े अफसर हैं और भाई भी डाक्टर है. पर फिर भी लोग मौका मिलते ही उन्हें यह याद दिलाना नहीं भूलते कि वे मायनौरिटी क्लास के हैं. उन का पढ़ालिखा होना या समाज में स्टेटस होना कोई माने नहीं रखता. दबी जबान से ही सही वे उस के परिवार के बारे में कुछ न कुछ कहने से चूकते नहीं हैं.

मंजरी ने पेड़ के तने को छुआ. काश, वह सेब का पेड़ होता तो जमाने को यह तो कह सकते थे कि सेब खाने के बाद उन दोनों के अंदर भावनाएं उमड़ीं और वे एकदूसरे में समा गए. खैर, सेब का पेड़ अगर दोनों ढूंढ़ने जाते तो बहुत वक्त लग जाता, शहर जो कंक्रीट में तबदील हो रहे हैं. उस में हरियाली की थोड़ीबहुत छटा ही बची रही, यही काफी है.

उस ने अपने विश्वास को संबल देने के लिए पीयूष के हाथों पर अपनी पकड़ और कस ली और उस की आंखों में झांका जैसे तसल्ली कर लेना चाहती हो कि वह हमेशा उस का साथ देगा.

इस समय दोनों की आंखों में प्रेम का अथाह समुद्र लहरा रहा था. उन्होंने मानों एकदूसरे को आंखों ही आंखों में कोई वचन सा दिया. अपने रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगाई और आलिंगनबद्ध हो गए. यह भी सच था कि पीयूष मंजरी को चाह कर भी आश्वस्त नहीं कर पा रहा था कि वह अपने घर वालों को मना लेगा. हां, खुद उस का हमेशा बना रहने का विश्वास जरूर दे सकता था.

मंजरी को उस के घर के बाहर छोड़ कर बोझिल मन से वह अपने घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में कई बार कार दूसरे वाहनों से टकरातेटकराते बची. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे घर में इस बारे में बताए. वह अपने मांबाबूजी को दोष नहीं दे रहा था. उस ने भी तो जब परंपराओं और आस्थाओं की गठरी का बोझ उठाए आज से 10 वर्ष पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कदम रखा था तब कहां सोचा था कि उस की जिंदगी इतनी बदल जाएगी और सड़ीगली परंपराओं की गठरी को उतार फेंकने में वह सफल हो पाएगा… शायद मंजरी से मिलने के बाद ऐसा करने की हिम्मत जुटा पाया था.

जातिभेद किसी दीवार की तरह समाज में खड़े हैं और शिक्षित वर्ग तक उस दीवार को अपनी सुलझी हुई सोच और बौद्धिकता के हथौड़े से तोड़ पाने में असमर्थ है. अपनी विवशता पर हालांकि यह वर्ग बहुत झुंझलाता भी है… पीयूष को स्वयं पर बहुत झुंझलाहट हुई.

‘‘क्या बात है बेटा, कोई परेशानी है क्या?’’ मां ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बस ऐसे ही,’’ उस ने बात टालने की कोशिश की.

‘‘कुछ लड़कियों के फोटो तेरे कमरे में रखे हैं. देख ले.’’

‘‘मैं आप से कह चुका हूं कि मैं शादी नहीं करना चाहता,’’ पीयूष को लगा कि उस की झुंझलाहट चरम सीमा पर पहुंच रही है.

‘‘तू किसी को पसंद करता है तो बता दे,’’ बाबूजी ने सीधेसीधे सवाल फेंका. अनुभव की पैनी नजर शायद उस के दिल की बात समझ गई थी.

‘‘है तो पर आप उसे अपनाएंगे नहीं और मैं आप लोगों की मरजी के बिना अपनी गृहस्थी नहीं बसाना चाहता. मुझे लायक बनाने में आप ने कितने कष्ट उठाए हैं और मैं नहीं चाहता कि आप लोगों को दुख पहुंचे.’’

‘‘तेरे सुख और खुशी से बढ़ कर और कोई चीज हमारे लिए माने नहीं रखती है. लड़की क्या दूसरी जाति की है जो तू इतना हिचक रहा है बताने में?’’ बाबूजी ने यह बात पूछ पीयूष की मुश्किल को जैसे आसान कर दिया.

‘‘हां.’’

उस का जवाब सुन मां का चेहरा उतर गया. आंखों में आंसू तैरने लगे. बाबूजी अभी चिल्लाएंगे यह सोच कर वह अपने कमरे की ओर जाने के लिए मुड़ा ही था कि बोले, ‘‘किस जाति की?’’

‘‘बाबूजी वह बहुत पढ़ीलिखी है. लैक्चरर है और उस के घर में भी सब हाइली क्वालीफाइड हैं. जाति महत्त्व नहीं रखती, पर एकदूसरे को समझना ज्यादा जरूरी है,’’ बहुत हिम्मत कर वह बोला.

‘‘बहुत माने रखती है जाति वरना क्यों बनती ऐसी सामाजिक व्यवस्था. भारत में जाति सीमा को लांघना 2 राष्ट्रों की सीमाओं को लांघना है. अभी सुबह के अखबार में पढ़ रहा था कि पंजाब में एक युवक ने अपनी शादी के महज 1 हफ्ते बाद केवल इस कारण आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे शादी के बाद पता चला कि उस की पत्नी दलित जाति की है. उस की शादी एक बिचौलिए के माध्यम से हुई थी. इस बात का खुलासा तब हुआ जब वह अपनी ससुराल गया. दलित पत्नी पा कर वह आत्मग्लानि और अपराधबोध से इस कदर व्यथित हो गया कि ससुराल से लौट कर उस ने आत्महत्या कर ली. तुम भी कहीं प्यार के चक्कर में पड़ कर कोई गलत कदम मत उठा लेना.’’

बाबूजी की बात सुन पीयूष को अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई. मंजरी ने जब यह सुना तो उदास हो गई.

पीयूष बोला, ‘‘एक आइडिया आया है. मैं अपनी कुलीग के रूप में तुम्हें उन से मिलवाता हूं. तुम से मिल कर उन्हें अवश्य ही अच्छा लगेगा. फिर देखते हैं उन का रिएक्शन. रूढि़यां हावी होती हैं या तुम्हारे संस्कार व सोच.’’

मंजरी ने मना कर दिया. वह नहीं चाहती थी कि उस का अपमान हो. उस के बाद से मंजरी अपनेआप में इतनी सिमट गई कि उस ने पीयूष से मिलना तक कम कर दिया. संडे को अपने डिप्रैशन से बाहर आने के लिए वह शौपिंग करने मौल चली गई. एक महिला जो ऐस्कलेटर पर पांव रखने की कोशिश कर रही थी, वह घबराहट में उस पर ही गिर गई. मंजरी उन के पीछे ही थी. उस ने झट से उन्हें उठाया और हाथ पकड़ कर उन्हें नीचे उतार लाई.

‘‘आप कहें तो मैं आप को घर छोड़ सकती हूं. आप की सांस भी फूल रही है.’’

‘‘बेटा, तुम्हें कष्ट तो होगा पर छोड़ दोगी तो अच्छा होगा. मुझे दमा है. मैं अकेली आती नहीं पर घर में सब इस बात का मजाक उड़ाते हैं. इसलिए चली आई.’’

घर पर मंजरी को देख पीयूष बुरी तरह चौंक गया. पर मंजरी ने उसे इशारा किया कि

वह न बताए कि वे एकदूसरे को जानते हैं. पीयूष की मां तो बस उस के गुण ही गाए जा रही थीं. बहुत जल्द ही वह उन के साथ घुलमिल गई. पीयूष की बहन ने तो फौरन नंबर भी ऐक्सचेंज कर लिए. जबतब वे व्हाट्सऐप पर चैट करने लगीं. मां ने कहा कि वह उसे घर पर आने के लिए कहे. इस तरह मंजरी के कदम उस आंगन में पड़ने लगे, जहां वह हमेशा के लिए आना चाहती थी.

पीयूष इस बात से हैरान था कि जाति को ले कर इतने कट्टर रहने वाले उस के मातापिता ने एक बार भी उस की जाति के बारे में नहीं पूछा. शायद अनुमान लगा लिया होगा कि उस जैसी लड़की उच्च कुल की ही होगी. उस के पिता व भाई के बारे में जान कर भी उन्हें तसल्ली हो गई थी.

मंजरी को लगा कि उस दिन पीयूष ने ठीक ही कहा था कि हमें कोशिश करनी नहीं छोड़नी है. उस के लिए पहले हमें स्वयं को मजबूत करना होगा. स्वयं को हर लड़ाई के लिए तैयार करना होगा. पीयूष जब उस के साथ है तो उसे भी लगातार कोशिश करते रहना होगा. मांबाबूजी का दिल जीत कर ही वह अपनी और पीयूष दोनों की लड़ाई जीत सकती है.

हालांकि जब भी वह पीयूष के घर जाती थी तो यही कोशिश करती थी कि उन की रसोई में न जाए. उसे डर था कि सचाई जानने के बाद अवश्य ही मां को लगेगा कि उस ने उन का धर्म भ्रष्ट कर दिया है. एक सकुचाहट व संकोच सदा उस पर हावी रहता था. पर दिल के किसी कोने में एक आशा जाग गई थी जिस की वजह से वह उन के बुलाने पर वहां चली जाती थी.

कई बार उस ने अपनी जाति के बारे में बताना चाहा पर पीयूष ने यह कह कर मना कर दिया कि जब मांबाबूजी तुम्हें गुणों की वजह से पसंद करने लगे हैं तो क्यों बेकार में इस बात को उठाना. सही वक्त आने पर उन्हें बता देंगे.

‘‘तुझे मंजरी कैसी लगती है?’’ एक दिन मां के मुंह से यह सुन पीयूष हैरान रह गया.

‘‘अच्छी है.’’

‘‘बस अच्छी है, अरे बहुत अच्छी है. तू कहे तो इस से तेरे रिश्ते की बात चलाऊं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो मां. पता नहीं कौन जाति की है. दलित हुई तो…’’ पीयूष ने जानबूझ कर कहा. वह उन्हें टटोलना चाह रहा था.

‘‘फालतू मत बोल… अगर हुई भी तो भी बहू बना लूंगी,’’ मां ने कहा. पर उन्हें क्या पता था कि उन का मजाक उन पर ही भारी पड़ेगा.

‘‘ठीक है फिर मैं उस से शादी करने को तैयार हूं. उस के पापा को कल ही बुला लेते हैं.’’

‘‘यानी… कहीं यह वही लड़की तो नहीं जिस से तू प्यार करता है,’’ बाबूजी सशंकित हो उठे थे.

‘‘मुझे तो मंजरी दीदी बहुत पसंद हैं मां,’’ बेटी की बात सुन मां हलके से मुसकराईं.

मंजरी नीची जाति की कैसे हो सकती है… उन से पहचानने में कैसे भूल हो गई. पर वह तो कितनी सुशील, संस्कारी और बड़ों की इज्जत करने वाली लड़की है. बहुत सारी ब्राह्मण लड़कियां देखी थीं, पर कितनी अकड़ थी. बदमिजाज… कुछ ने तो कह दिया कि शादी के बाद अलग रहेंगी. कुछ के बाप ने दहेज दे कर पीयूष को खरीदने की कोशिश की और कहा कि उसे घरजमाई बन कर रहना होगा.

‘‘क्या सोच रही हो पीयूष की मां?’’ बाबूजी के चेहरे पर तनाव की रेखाएं नहीं थीं जैसे वे इस रिश्ते को स्वीकारने की राह पर अपना पहला कदम रख चुके हों.

‘‘क्या हमारे बदलने का समय आ गया है? आखिर कब तक दलित बुद्धिजीवी अपनी

जातीय पीड़ा को सहेंगे? हमें उन्हें उन की पीड़ा से मुक्त करना ही होगा. तभी तो वे खुल कर

सांस ले पाएंगे. हमारी बिरादरी में हमारी थूथू होगी. पर बेटे की खुशी की खातिर मैं यह भी सह लूंगी.’’

पीयूष अभी तक अचंभित था. रूढि़यों को मंजरी के व्यवहार ने परास्त कर दिया था.

‘‘सोच क्या रहा है खड़ेखड़े, चल मंजरी को फोन कर और कह कि मैं उस से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘मां, तुम कितनी अच्छी हो, मैं अभी भाभी को व्हाट्सऐप पर मैसेज कर सरप्राइज देती हूं,’’ पीयूष की बहन ने चहकते हुए कहा.

वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को इस बार भी छेड़ रहे थे. उसे अपलक निहारतेनिहारते उसे चूमने का मन हो आया. पर इस बार वह रुका नहीं. उस ने उस के गालों को हलके से चूम लिया. मंजरी शरमा गई. अपनी सारी आशंकाओं को उतार फेंक वह पीयूष की बांहों में समा गई. उसे उस का प्यार व सम्मान दोनों मिल गए थे. पीयूष को लगा कि वह जैसे कोई बहुत बड़ी लड़ाई जीत गया है.

Hindi Story : डौलर का लालच – मसाज पार्लर का लालच कैसे सेवकराम को ले डूबा

Hindi Story : सेवकराम फैक्टरी में मजदूर था. वह 12वीं जमात पास था. घर की खस्ता हालत के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका था, लेकिन उस का सपना ज्यादा पैसा कमा कर बड़ा आदमी बनने का था.

फैक्टरी में लंच टाइम हो गया था. सेवकराम सड़क के किनारे बने ढाबे पर खाना खा रहा था. उस के सामने अखबार रखा था. उस के एक पन्ने पर छपे एक इश्तिहार पर उस की निगाह टिक गई.

इश्तिहार बड़ा मजेदार था. उस में नए नौजवानों को मौजमस्ती वाले काम करने के एवज में 20-25 हजार रुपए हर महीने की कमाई लिखी गई थी. सेवकराम मन ही मन हिसाब लगाने लगा. इस तरह तो वह 5 साल तक भी दिल लगा कर काम करेगा, तो 8-10 लाख रुपए आराम से कमा लेगा.

इश्तिहार में लिखा था कि भारत के मशहूर मसाज पार्लर को जवान लड़कों की जरूरत है, जो विदेशी व भारतीय रईस औरतों की मसाज कर सकें. अच्छा काम करने वाले को विदेशों के लिए भी बुक किया जा सकता है.

इतना पढ़ते ही सेवकराम की आंखों के सामने रेशमी जुल्फें लहराती गोरे गुलाबी तराशे बदन वाली गोरीगोरी विदेशी औरतें उभर आईं, जिन्हें कभी पत्रिकाओं में, फोटो में या फिल्मों में देखा था. अगर उसे काम मिल गया, तो ऐसी खूबसूरत हसीनाओं के तराशे गए बदन उस की बांहों में होंगे. ऐसे में तो उस की जिंदगी संवर जाएगी. फैक्टरी में सारा दिन जान खपाने के बाद उसे 3 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिल पाते. मिल मालिक हर समय काम कम होने का रोना रोता रहता है.

सेवकराम ने उसी समय इश्तिहार के नीचे लिखा मोबाइल नंबर नोट किया और तुरंत फैक्टरी की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

सेवकराम सीधा दफ्तर गया और बुखार होने का बहाना बना कर 3 दिन की छुट्टी ले ली. इस के बाद वह बाजार गया. वहां पर उस ने 2 जोड़ी नए कपडे़ और जूते खरीदे. वह जब बड़े घरानों की औरतों के सामने जाएगा, तो उस के कपड़े भी अच्छे होने चाहिए.

सेवकराम शाम तक सपनों में डूबा बाजार में घूमता रहा. उस का कमरे पर जाने को मन नहीं हो रहा था. रात का खाना भी उस ने बाहर ढाबे पर ही खाया. वह देर रात कमरे पर गया.

कमरे में 4-5 आदमी एकसाथ रहते थे. उस के तमाम साथी सो गए थे. वह भी अपनी चारपाई पर लेट गया. उस ने अपने साथ वाले लोगों का जायजा लिया कि गहरी नींद में सो गए हैं या नहीं. जब उसे तसल्ली हो गई, तो उस ने इश्तिहार वाला फोन नंबर मिलाया और बात की.

दूसरी तरफ से किसी लड़की की उखड़े हुए लहजे में आवाज गूंजी, ‘इतनी रात गुजरे कौन बेवकूफ बोल रहा है? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है क्या? सुबह तो होने दी होती… क्या परेशानी है?’

‘‘मैडमजी, माफ करना. मैं एक परदेशी हूं. हम एक कमरे में 4-5 लोग रहते हैं. मैं आप से चोरीछिपे बात करना चाहता था, इसलिए उन के सोने का इंतजार करता रहा. मैं ने आप का इश्तिहार अखबार में पढ़ा था. मैं आप के मसाज पार्लर में काम करना चाहता हूं. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’ सेवकराम ने बेहद नरम लहजे में कहा था. इस से दूसरी तरफ से बोल रही लड़की की आवाज में भी मिठास आ गई थी. ‘ठीक है, तुम ने हमारा इश्तिहार पढ़ा होगा. हमारे मसाज पार्लर की कई जवान औरतें, लड़कियां हमारी ग्राहक हैं, जिन की मसाज के लिए हमें जवान लड़कों की जरूरत रहती है. तुम बताओ कि मर्दों की मसाज करोगे या जवान औरतों की?’

यह सुनते ही सेवकराम रोमांचित हो उठा. उसे तो ऐसा महूसस हुआ, जैसे उसे नौकरी मिल गई है. उस की आवाज में जोश भर उठा. वह शरमाते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, मेरी उम्र 30 साल है. मुझे जवान औरतों की मसाज करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करूंगा.’’

‘ठीक है, तुम्हें काम मिल जाएगा. बस, इतना ध्यान रखना होगा कि उस समय कोई शरारत नहीं होनी चाहिए, वरना नौकरी से निकाल दिए जाओगे,’ दूसरी तरफ से बेहद सैक्सी अंदाज में जानबूझ कर चेतावनी दी गई, तो सेवकराम रोमांटिक होते हुए बोला, ‘‘जी, मैं अपना काम समझ कर करूंगा. मेरे मन में उन के लिए कोई गलत भावना नहीं आएगी.’’

‘ठीक है, तुम्हारा नाम मैं रजिस्टर में लिख लेती हूं. कल दिन में तुम करिश्मा बैंक में 10 हजार रुपए हमारे खाते में जमा करा दो. रुपए जमा होते ही तुम्हारा एक पहचानपत्र भी बनाया जाएगा. जिसे दिखा कर तुम देश के किसी भी शहर में काम के लिए जा सकते हो,’ उधर से निर्देश दिया गया.

यह सुन कर सेवकराम कुछ परेशान हो गया और बोला, ‘‘मैडमजी, 10 हजार रुपए तो कुछ ज्यादा हैं.’’ ‘ठीक है, फिर हम तुम्हारा पहचानपत्र नहीं बनाएंगे. अगर तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया, तो क्या जेल जाना पसंद करोगे?’

‘‘क्या ऐसा भी हो जाता है मैडमजी?’’ सेवकराम ने थोड़ा घबराते हुए पूछा.

‘ऐसा हो जाता है सेवकरामजी. ये परदे में करने वाले काम हैं. पुलिस पकड़ लेती है. बोलो, क्या तुम पुलिस के चक्कर में फंसना चाहते हो?’

‘‘ठीक है मैडमजी, मैं कल ही 10 हजार रुपए जमा करा दूंगा. बस, आप मेरा पहचानपत्र बनवा कर तुरंत काम पर बुलाइए. मैं ज्यादा दिन बेरोजगार नहीं रह सकता,’’ सेवकराम ने कहा, तो फोन कट गया.

उस रात सेवकराम सो नहीं सका. उस के दिलोदिमाग में खूबसूरत, जवान औरतों के दिल घायल करते हुए जिस्मों के सपने छाए रहे. सारी रात ऐसे ही गुजर गई.

अगले दिन सेवकराम सीधे बैंक पहुंचा और अपनी पासबुक से 20 हजार रुपए निकाले. 10 हजार रुपए तो उस ने रात फोन पर बताए गए खाते में जमा करा दिए और बाकी के 10 हजार रुपए अपने खर्चे के लिए रख लिए. अब वह लाखों रुपए कमाएगा.

सेवकराम को तो अब मसाज पार्लर के दफ्तर से फोन आने का इंतजार था. इसी इंतजार में 4-5 दिन गुजर गए, मगर उस औरत का फोन नहीं आया.

सेवकराम को अब बेचैनी होना शुरू हो गई. उस ने 10 हजार नकद खाते में जमा कराए थे. इंतजार की घडि़यां काटनी मुश्किल होती हैं, फिर भीउस ने 7 दिनों तक इंतजार किया.

आखिर में सेवकराम ने ही फोन कर के पूछा, तो दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज गूंजी, मगर वह आवाज पहले वाली नहीं थी. उस के बात करने का लहजा जरा कड़क और गंभीर था.

‘‘क्या बात है मैडमजी, मुझे 10 हजार रुपए आप के खाते में जमा कराए 7-8 दिन गुजर गए हैं. अभी मेरा परिचयपत्र भी नहीं मिला है. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

‘आप बेफिक्र रहें. आप का परिचयपत्र तैयार है. हमारी मसाज पार्लर कमेटी ने एक टीम बनाई है, जिस में आप का नाम भी शामिल है. इस टीम को विदेशों में भेजा जाएगा.’

सेवकराम खुशी से उछल पड़ा. वह चहकते हुए बोला, ‘मैडमजी, जल्दी से टीम को काम दिलाओ. विदेश में तो काम करने के डौलर मिलेंगे न?’’

‘हां, वहां से तो तुम लोगों की पेमेंट डौलरों में होगी,’ औरत ने बताया, तो थोड़ी देर के लिए सेवकराम सीने पर हाथ रख कर हिसाब लगाता रहा. आंखों के सामने नोटों के बंडल चमकते रहे. अपनी बेताबी जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब देर क्यों की जा रही है? हम तो काम के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं.’’

‘आप सब के परिचयपत्र मंजूरी के लिए विदेश मंत्रालय भेजे जाने हैं. अगर भारत सरकार से मंजूरी मिल गई, तो तुम लोग किसी भी देश में बेधड़क हो कर काम कर सकते हो, मगर भारत सरकार की मंजूरी दिलाने के लिए 20 हजार रुपए का खर्चा आएगा. आप को 20 हजार रुपए उसी खाते में जमा कराने होंगे.’

‘‘मैडमजी, इतनी बड़ी रकम तो बहुत ज्यादा है. हम तो गरीब आदमी हैं,’’ सेवकराम की तो मानो हव  निकल गई थी. उस का जोश ढीला पड़ने लगा था.

‘हम मानते हैं कि 20 हजार रुपए ज्यादा हैं, मगर यह सोचो कि जब तुम अलगअलग देशों में जाओगे, वहां से वापस आने पर लाखों रुपए ले कर आओगे. सोच लो, अगर विदेश नहीं जाना चाहते हो, तो रहने दो,’ औरत ने दूसरी तरफ से कहा, तो सेवकराम पलभर के लिए खामोश रहा, फिर जल्दी ही वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 हजार रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगा. बस, मेरा काम सही होना चाहिए.’’

सेवकराम ने ठंडे दिमाग से सोचा, तो उसे यह काम फायदे का लगा. बेशक, 20 हजार रुपए उस के पास नहीं थे, फिर भी अगर उधार उठा कर लगा देगा, तो बाहर के पहले टूर में लाखों रुपए वारेन्यारे कर देगा, इसलिए 20 हजार रुपए उन के खाते में जमा कराना ही फायदे में रहेगा.

सेवकराम ने इधरउधर से रुपए उधार लिए और उसी खाते में जमा करा दिए. अब वह इंतजार करने लगा. उसे यकीन था कि उसे बुलाया जाएगा.

सेवकराम को इंतजार करतेकरते 10 दिन गुजर गए. सेवकराम के मन में तमाम तरह के खयाल आ रहे थे. वह इस मुगालते में था कि दफ्तर वाले खुद फोन करेंगे. वह महीने भर से काम छोड़ कर बैठा था. जमापूंजी खर्च हो चुकी थी. ऊपर से 20 हजार रुपए का कर्जदार और हो गया था.

काफी इंतजार करने के बाद सेवकराम ने उसी फोन नंबर पर फोन किया, तो मोबाइल बंद मिला. काफी कोशिश करने के बाद भी उस नंबर पर बात नहीं हुई. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

वह उसी पल उस बैंक में गया, जहां अजनबी खाते में उस ने 30 हजार रुपए जमा कराए थे. वहां से पता चला कि वह खाता वहां से 5 सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में किसी बैंक का था. अब उस खाते में महज 4 रुपए कुछ पैसे बाकी थे.

सेवकराम थाने में गया, लेकिन पुलिस ने उस की शिकायत लिखने की जरूरत नहीं समझी. थकहार कर वह कमरे पर लौट आया. विदेशों में जा कर खूबसूरत औरतों की मसाज करने के एवज में लाखों डौलर कमाने के चक्कर में सेवकराम ने अपनी जमापूंजी गंवा दी, साथ ही 20 हजार रुपए का कर्जदार भी हो गया. लालच में वह न तो घर का रहा और न घाट का.

Best Hindi Story : मखमल का पैबंद – क्या ठाठ थे उस घर के?

Best Hindi Story : “अरेअरेअरे, संभाल कर लाना, दरवाजा थोड़ा छोटा है,”  चारु ने एक एंटीक भारीभरकम मेज-कुरसी उठा कर कमरे में लाते हुए 3 लेबरों से कहा. कमरा बहुत बड़ा नहीं था. एक साधारण सा नवदंपति का कमरा जैसा होता है ठीक वैसा ही था. एक तरफ पलंग पड़ा था, एक तरफ एक छोटी सी श्रृंगार मेज रखी थी. दूसरी ओर पुराने चलन की कपड़े रखने वाली लोहे की अलमारी खड़ी थी. एक किनारे खिड़की के पास ही थोड़ी जगह शेष थी. चारु ने उसी स्थान की ओर उंगली से इशारा करते हुए कहा, “बसबस, वहीं रख दो इसे, संभाल कर.”  लेबरों ने मेजकुरसी चारु की बताई जगह पर रख दी. चारु ने उन्हें उन का मेहनताना दिया. फिर वे वहां से चले गए.

चारु कमरे में अकेले रह गई. उस ने एक ठंडी सांस ले कर उस कुरसीमेज पर दृष्टि डाली, फिर अपने कमरे को देखा. कैसे बेमेल लग रहे हैं दोनों. एक बिलकुल निम्न मध्यवर्गीय कमरे में एक राजसी कुरसीमेज का जोड़ा. दोनों में कोई साम्य ही नहीं था. कमरे का हर सामान जैसे उस के आगे अपने को हीन अनुभव करने लगा हो.

चारु उठ कर उस कुरसीमेज के पास पहुंची. उस ने कुरसी की नक्काशी पर बड़े प्रेम से हाथ फिराया. बहुत ही बारीक और कलात्मक नक्काशी की गई थी. उस के उभरे हुए एकएक बेलबूटे का उतारचढ़ाव उसे याद है. न मालूम कितनी बार अपनी कला की पुस्तिका में उस ने इसी की आकृति उकेरी थी और सदा अच्छे अंक पाए थे. मेज की लकड़ी की चमक उस की मज़बूती और स्वास्थ्य का पता दे रही थी.

चारु ने मन ही मन अनुमान लगाया-  कम से कम सौ साल पुरानी कुरसी होगी यह.  गहरे कत्थई रंग की मजबूत शीशम की लकड़ी की बनी ये कुरसीमेज उस की दादीमां की निशानी है. बचपन से ही उसे इसी कुरसीमेज पर बैठ कर पढ़ना पसंद था. अपनी दादी को इस कुरसी से हटा कर वह खुद बैठ जाती थी. तब दादी बगल के सोफे पर बैठ कर उस के लिए स्वेटर बुना करती थीं. जब वह बहुत छोटी थी, तब इसी पर सिर टिकाएटिकाए सो भी जाती थी. उस की दादी हंस कर कहती थीं, ‘तेरे दहेज में यही कुरसीमेज बांध दूंगी तुझे.’  और देखो हंसी में कही गई बात वास्तव में सच हो गई.

चार भाईबहनों में अकेले उसे ही यह कुरसीमेज मिली, वह भी इसीलिए क्योंकि उस का दादी से और इस कुरसीमेज से अत्यधिक लगाव था. बाकी सारे भाईबहनों को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिला. पर उसे? उसे तो धिक्कार के साथ, बस, ये कुरसीमेज भिजवा दी गई थी.

बस, अब मायके से मिले स्त्रीधन के नाम पर यही शीशम की कुरसीमेज उस की अभिभावक थी. न मां का आंचल मिलना था अब और न ही पिता की गोद. बस, सारे सुखदुख उसे इसी कुरसीमेज पर बैठ कर काटने थे.

चारु अचानक जैसे खुद को बहुत शक्तिहीन अनुभव करने लगी. उस के पैरों से जैसे किसी ने सारा बल खींच लिया हो. वह खड़ी न रह सकी, धम्म से उसी कुरसी पर बैठ गई और मेज पर उस ने अपना सिर टिका लिया. एक क्षण के लिए उसे लगा जैसे उस ने वास्तव में किसी अभिभावक की गोद में सिर रख कर आत्मसमर्पण कर दिया हो.

कितना मुश्किल था पिता का घर छोड़ना. पिता भी पिता से अधिक ठाकुर रघुवीर प्रताप सिंह थे, जिन की आनबानशान ही उन के लिए सबकुछ थी. पिता के कहे अंतिम शब्द आज भी उस के कानों में गूंजते हैं- ‘अपनी मरजी से शादी कर रही हो उस दूसरी जाति के लड़के से जो कभी हमारे यहां 20 हज़ार रुपये माह पर नौकरी करता था. पलट कर इस घर में वापस पांव मत रखना अब. हमारे लिए आज से तुम मर गईं.

कहां राजसी धनी ठाकुर परिवार में पलीबढ़ी चारु और कहां यह निम्न मध्यवर्गीय परिवार. रजत के प्रेम में पड़ कर उस ने विवाह कर के कहीं गलत निर्णय तो नहीं ले लिया? निभा तो पाएगी न? कहीं वह इस परिवार में ऐसे ही बेमेल न लगे जैसे ये राजसी मेजकुरसी इस कमरे में कहीं खप ही नहीं पा रहीं.

अभी थोड़े ही दिन हुए हैं उस के विवाह को, पर उसे इस परिवार में खुद का असंगत लगना शुरू हो चुका था. दरवाजे पर गृहप्रवेश के लिए आरती उतारती सास अपनी बहू के रूप पर रीझ कर बलैया लिए जा रही थीं. वहीं आसपड़ोस की सब पड़ोसिनें और बच्चे उसे कुतूहल से देखे जा रहे थे. अंत में पड़ोस वाली रामा चाची, जो एक हाथ से आंचल मुंह में दबाए आश्चर्य से उस का मुख ताके जा रही थीं, बोल ही पड़ीं, ‘बहू तो परी जैसी ले आए हो लल्ला. पर अब इस के लिए परीमहल खड़ा करना पड़ेगा. तुम्हारी खाट के खटमल देख लेना, इस का अधिक खून न पिएं.’

उन का इतना कहना था कि पास पड़ोस में एक ठहाका गूंज उठा.

‘चलचल रामा, ज़्यादा खींसे न निपोर. अधिक चिंता है तो एक पलंग तू ही उपहार में दे दे. अब बहू अगर परी है तो अपनी जादू की छड़ी भी लाई होगी. ख़ुद ही बना लेगी अपना परीस्तान’, उस की सास ने बात को बनाया और उसे अंदर पैर धरने को कहा. पैर अंदर धरा तो उस ने पाया एक तरफ फर्श का सीमेंट उखड़ा हुआ है. उस का गोरा, चिकना, सुंदर पैर काले, उखड़े, टूटेफूटे फर्श पर रखते ही मैला हो गया. अपने घर में कभी उस ने संगमरमर के अतिरिक्त कोई

अन्य प्रकार का फर्श देखा ही न था. इस के बाद नित नए अनुभव उस के सामने आते गए. हलकी स्टील के सस्ते, कहींकहीं से दबेपिचके बरतनों में खाना खाने से उसे अच्छे से अच्छे भोजन में भी तृप्ति न मिलती थी. खानेपीने की चीज़ों में भी वह क्वालिटी नहीं थी. सुबह चाय के साथ पड़ोस के हलवाई से मंगवाई हुई सस्ती सी दालमोठ और बिस्कुट आ जाते थे, जो उस के गले से नीचे न उतरते थे. बाथरूम सब का एक ही था. वहां एक सस्ता सा साबुन नहाने के लिए रखा रहता था. अपने घर में तो वह विदेशी ब्रैंड के साबुन से नहाती थी.

पर अब जो होना था हो चुका. अब एक नए जीवन की शुरुआत है. उस घर के दरवाजे तो उस के लिए सदा के लिए बंद हो ही चुके हैं. कुछ रास्तों पर बढ़ने के बाद ही पता चलता है कि वे मात्र जाने के लिए बने थे, लौट कर आने के लिए उन में कोई संभावना नहीं होती. जब वह रजत का हाथ थाम कर अपने मायके की गलियां छोड़ आई थी, तब उस ने यह नहीं सोचा था कि वो गलियां अब सदा के लिए पराई हो जाएंगी. अब तो रजत के प्रेम के साथ उसे अपने इसी

छोटे से घर को सजाना है, संवारना है. ससुराल की आर्थिक तंगी में ही उसे संतोष व सुख के धन को जोड़जोड़ कर रखना है. यह उस के पिया का घर है. और वह रानी है इसी घर की.

चारु की आंखों में आंसू झिलमिला उठे. मांपिता, भाईभाभी, बहन सब के चेहरे उस के मन में बारीबारी से झलक रहे थे. क्या अपनी मरजी से विवाह करना इतना बड़ा पाप था कि बस इसी कारण से पिता का स्नेह सिमट कर शून्य हो गया है? मां की आंखों के लाललाल डोरे उसे बरबस याद आने लगे. जब अंतिम घड़ी आ गई थी और वह हवेली के फाटक पर खड़ी अपना सूटकेस लिए, जाने के लिए पैर बढ़ाने वाली थी. पिता ने तो अंतिम बार पैर छूने का मौका तक नहीं दिया. जैसे ही वह और रजत पैर छूने चले उन्होंने पैर पीछे हटा लिए. पर मां…? मां की आंखों से तो अश्रुओं का बांध टूट गया था. रोती हुई मां का विदा में उठा हाथ कितनी देर तक हिलता रहा था, उस ने मोटरसाइकिल के पीछे बैठे बैठे तब तक देखा था जब तक वह दृश्य उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया था. पर अब जो डोर टूट चुकी तो टूट गई.

बाहर अंधेरा घिर आया था. चारु अभी भी मेज पर सिर टिकाए थी. अतीत में विचरतेविचरते आप कितने पीछे समय में चले जाते हो, कुछ पता नहीं चलता. चारु की आंखों के नीचे काजल की लकीरें फैल गई थीं. मन का सारा अंधकार जैसे उस की आंखों के नीचे ही जम गया हो. आधे घंटे तक मानो वह एक अंधेरे थिएटर में बैठी रही थी जहां उस का मन एक कुशल निर्देशक की तरह उसे उस के अतीत का चलचित्र दिखाए जा रहा था.

फिर चारु ने मन ही मन कुछ निर्णय किया. उस ने उठ कर कमरे की बत्ती जलाई. पूरे कमरे में प्रकाश जगमगा गया. एक बार फिर वही छोटा कमरा और उस से तनिक भी मेल न खाती हुई कुरसीमेज का जोड़ा मुंह चिढ़ाते हुए दृष्टि के सामने आ कर जम गया,  अब क्या करोगी, चारु?

चारु ने अपने आंसू पोंछ डाले. रजत के आने का समय हो रहा था. सामने रखी कपड़ों की अलमारी को चारु ने खोला. सब से ऊपर के खाने में वह चादर, तकिया के गिलाफ़ रखा करती थी. वहीं से उस ने कुछ पुरानी और थोड़ा कम प्रयोग में आने वाली 2 चादरें निकालीं. एक उस ने कुरसी पर डाल दी और दूसरी को उस ने फैला कर मेज को ढक दिया.

कुरसीमेज के शीशम की ठसक, उस की राजसी चमक, उस का नक्काशीदार अभिमानी सौंदर्य, उस का श्रेष्ठता का भाव, उस का मूल्यवान होने का दर्प सबकुछ उन चादरों के आवरण के नीचे ढक चुका था. अब कुरसीमेज उस के मध्यवर्गीय कमरे से पूरी तरह मेल खा रही थी. अब कोई नहीं कह सकता था कि यह टाट की पट्टी में लाल मखमल का पैबंद है.

तभी रजत लौट आया था. चारु कुरसीमेज की ओर ही मुंह किए खड़ी थी. अभी भी उसी ओर ताक रही थी. कमरे में घुसते ही रजत की सब से पहली दृष्टि किनारे रखी कुरसीमेज पर ठहर गई, फिर उस ने चारु को लक्ष्य कर के कहा, “अरे वाह, लैक्चरर साहिबा, आप ने अपने पढ़नेलिखने के लिए कुरसीमेज का इंतज़ाम भी कर लिया?” यह उस ने चहकते हुए कहा. उसे पता था, चारु बिना कुरसीमेज के कुछ पढ़लिख ही नहीं पाती है. वह कुरसीमेज लाने का मन बना ही रहा था.

उस ने सोचा था कि किसी दिन वह चारु को अचानक से उपहार दे कर अचंभित कर देगा. पर यहां तो चारु ने उसे ही सरप्राइज़ दे दिया. रजत चारु के बिलकुल निकट आ कर खड़ा हो गया और कुरसीमेज को चारु के साथ ही खड़े हो कर देखने लगा.

चारू ने उधर से अपनी दृष्टि उठाई और रजत की आंखों में देखा, फिर बोली, “हां जी पति महोदय, जैसे राजा बिन सिंहासन अधूरा होता है न, वैसे ही एक अध्यापक बिन पढ़नेलिखने वाली एक कुरसीमेज के अधूरा होता है. यही आज से मेरा सिंहासन है.”

“अच्छा जी, मतलब आप नाइट लैंप जला कर यहां देररात पढ़ा करेंगी और मैं वहां पलंग पर करवटें बदलबदल कर आप की प्रतीक्षा करूंगा?” रजत ने अपना बैग एक कोने में फेंका और शरारत के साथ चारु को अपनी बांहों में ले लिया.चारु मुसकराई, “ये सब तो पहले सोचना था न. अब रिसर्च का काम होता ही इतना जटिल है, मैं क्या करूं?

हूं, जानता हूं भई. और इस पर यह चादर क्यों डाल रखी है? हटाओ, ज़रा देखूं तो इस की क्वालिटी.” और रजत ने चादर हटाने के लिए हाथ बढ़ाया. पर चारु ने उस का हाथ रोक लिया.

“क्या हुआ?”  रजत ने पूछा.

“आप को बताया था न, दादी की एक कुरसीमेज थी, जो मुझे बहुत प्रिय थी,” चारु ने कहा.

“हां, जानता हूं. बहुत बार देखा है उसे मैं ने तुम्हारे घर पर. यह भी देखा था कि तुम उस पर बैठी पढ़ती रहती थीं मोटीमोटी किताबें.”  रजत के स्वर में अभी भी विनोद झलक रहा था.

“पिताजी ने भिजवाई है.”  चारु के स्वर में विषाद का भाव उतर आया था.

“ओह, रजत को जैसे ही बात समझ में आई वह गंभीर हो गया, फिर बोला, “तो इस पर चादर क्यों डाल दी? यह तो ऐसे ही बड़ी सुंदर दिखती थी. क्या ठाठ थे इस के तुम्हारे घर में. हटा दो न, चादर.”

“नहीं, इसे ऐसे ही रहने दीजिए,” चारु भावुक हो कर रजत के गले लग गई, “मुझे अब आप के साथ ही अपने जीवन को सुंदर बनाना है. मैं अपने अतीत पर चादर डाल आई हूं.”

ट्विंकल तोमर सिंह

Love Story : यादों के सहारे – क्या नीलू को प्रकाश भूल पाया?

Love Story : वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज  ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.

उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…

‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था. उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी. धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’ उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.

उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे. पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’

नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’

नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’

मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’ नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था. एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’

‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.

‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.

‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’

‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.

‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’

‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’

‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’

‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’

‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’

‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’ प्रकाश के पिता उदय बाबू अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे. धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’ पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’

‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.

‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’

‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’

‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा. उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए.

नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.

‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.

‘‘क्या तुम ने…?’’

‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’

यह सुन कर प्रकाश चुप था.

‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’

‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.

‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’ इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था. उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’

बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई. गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था. प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’

कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी. प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’

प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:

‘प्यारी नीलू,

‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था. ‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया. ‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए? ‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.

‘तुम्हारा प्रकाश…’

प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था.

Romantic Story : नया ठिकाना – मेनका को प्रथम पुरस्कार किसने दिया

Romantic Story : साइकिल से स्कूल आते और जाते समय हर रोज 16-17 साल की एक लड़की गुमटी पर आती. गेहुंआ रंग, दुबलीपतली, छरहरी बदन, कजरारी आंखें, चंचल स्वभाव. गुमटी पर जब भी वह आती, 2 ही चींजें खरीदती – लेज का चिप्स और चैकलेट.

गुमटी चलाने वाले दुकानदार रवि की उम्र भी लगभग 20 साल की होगी.वह भी गोरा, लंबा और सुंदर था. उस की सब से बड़ी खूबी थी कि हंसमुख मिजाज का लड़का था. किसी भी ग्राहक से वह मुसकराते हुए बातें करता. उस की दुकान अच्छी चलती. हर उम्र के लोग उस की गुमटी पर दिखते. बच्चे चैकलेट और कुरकुरे के लिए, बुजुर्ग खैनी व चूना के लिए, तो नौजवान पानगुटका के लिए. महिलाएं साबुन और शेंपू के लिए आते.

रवि की गुमटी एक बड़ी बस्ती में थी, जहां 10 गांव के लोग बाजार करने के लिए आते. इस बस्ती में एक उच्च विद्यालय था, जहां कई गांवों के लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते. इस उच्च विद्यालय में इंटर क्लास तक की पढ़ाई होती. इस बस्ती में जरूरत की लगभग हर चीजें मिल जातीं.

रवि के पिता दमा की बीमारी से परेशान रहते. घर का सारा काम रवि की मां करती. रवि के परिवार का सहारा यही गुमटी था. सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक रवि इसी गुमटी में बैठ कर सामान बेचा करता. इसे खाने और नाश्ता करने तक की फुरसत नहीं मिलती.

रवि खुशमिजाज के साथ साथ दिलदार भी था. किसी के पास अगर पैसे नहीं हैं तो उसे उधार सामान दे दिया करता. 20,000 रुपए दिए गए उधार मिलने की संभावना नहीं के बराबर थी. फिर भी कोई उधार के लिए आता, तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देता. वह ग्राहकों को चाचा, भैया, दीदी, चाची से ही संबोधित करता.

उच्च विद्यालय में वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा था. आज भी वह लड़की जींस और टौप पहने रवि की गुमटी पर चिप्स और चैकलेट के लिए आई थी. आज अन्य दिनों की अपेक्षा वह बला की खूबसूरत लग रही थी. रवि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

लड़की ने हंसते हुए कहा, ‘‘नाम जान कर क्या करेंगे?’’

रवि ने कहा, ‘‘ऐसे ही पूछ दिया. माफ करना.’’

लड़की बोली, ‘‘इस में माफ करने की क्या बात है? मेरा नाम मेनका है.’’

‘‘अच्छा, तुम्हारा चेहरा भी मेनका गांधी से मिलताजुलता है. मांबाप कुछ देख कर ही तुम्हारा नाम मेनका गांधी रखे होंगे.’’

लड़की बोली, ‘‘मुझे मालूम नहीं. लेकिन मेरा नाम हमारे दादाजी ने मेनका रखा है. तुम्हारे दादा मेनका गांधी के बारे में अधिक जानते होंगे.’’

लड़की बात को पलटते हुए बोली, ‘‘आज हमारे स्कूल में वार्षिकोत्सव कार्यक्रम है. आप भी देखने आइएगा. तुम भी कुछ प्रोग्राम दोगी क्या?’’

लड़की बोली, ‘‘हां, मैं भी रेकौर्डिंग गीत पर डांस करूंगी.’’

रवि बोला, ‘‘कितने बजे से कार्यक्रम होगा?’’

‘‘यही लगभग 11 बजे से,’’ लड़की अनुमान से बोली.

रवि बोला, ‘‘कोशिश करूंगा.’’

लड़की मुसकराते हुए बोली, ‘‘कोशिश नहीं, जरूर आइएगा. नाटक, गीतसंगीत और डांस एक से एक बढ़ कर कार्यक्रम होगा. पहली बार इस तरह का बड़ा कार्यक्रम रखा गया है. उद्घाटन करने के लिए विधायकजी आने वाले हैं.’’

‘‘अच्छा ठीक है, जरूर आउंगा,’’ रवि बोला.

रवि स्कूल में 10 बजे ही पहुंच गया. मंच पर परदा लगाने और अन्य कामों में सहयोग करने लगा. रवि भी इसी स्कूल से मैट्रिक पास हुआ था. वह भी पढ़ने में मेधावी था. मजबूरी में वह पान की गुमटी खोल दिया था. इस विद्यालय के 2 शिक्षक नियमित रूप से रवि के पास ही पान खाते थे. रवि उन दोनों शिक्षकों से पढ़ा भी था. दोनों शिक्षकों का बहुत सम्मान और आदर करता था.

विधायकजी मंच पर आए. फूलमाला और बुके दे कर उन्हें सम्मानित किया गया. उन्होंने दीप प्रज्वलित कर मंच का उद्घाटन किया. अपने विधायक फंड से उन्होंने विद्यालय के चारों तरफ बाउंड्री कराने के लिए आश्वासन दिया. तालियों की गड़गड़ाहट से उपस्थित लोगों ने उन का स्वागत किया.

स्वागत गीत, नाटक, सामूहिक लोकगीत एक से एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया. सब से अंत में रेकौर्डिंग गीत पर डांस की घोषणा हुई. लहंगाचुनरी पहने जब मेनका ‘‘मैं नाचूं आज छमछम…‘‘ गीत पर डांस करने लगी, तो उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हो गए.

रवि तो भावविभोर हो गया. मेनका को डांस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विधायकजी द्वारा प्रदान किया गया. अन्य छात्रछात्राओं को भी पुरस्कार मिला.

रवि के मनमस्तिष्क पर मेनका का डांस घर बना लिया. आज रातभर उसे नींद नहीं आई. वही डांस दिमाग में घूमता रहा. दूसरे दिन 10 बजे मेनका फिर गुमटी पर चिप्स और चैकलेट लेने आई. रवि तो मन ही मन इंतजार कर रहा था.

मेनका को देखते ही वह बोलने लगा, ‘‘क्या गजब का तुम ने डांस किया. लोग तो तुम्हारी तारीफ करते थक नहीं रहे हैं. जिधर सुनो उधर तुम्हारी ही चर्चा.’’

मेनका बोली, ‘‘आप लोगों का आशीर्वाद है.’’

जब मेनका चिप्स और चैकलेट का पैसा देने लगी, तो रवि बोला, ‘‘मेरी तरफ से गिफ्ट है. हम गरीब आदमी और दे ही क्या सकते हैं?’’

मेनका भी निःशब्द हो गई और चिप्स और चैकलेट इसलिए ले लिया कि रवि के दिल को ठेस न पहुंचे.

मेनका भी रवि के विचारों से प्रभावित हो गई. मेनका रवि से एक दिन मोबाइल नंबर मांगी. रवि तो इस का इंतजार ही कर रहा था, लेकिन खुद मोबाइल नंबर मांगने में संकोच कर रहा था.

आज रवि बेहद खुश था और फोन के आने का इंतजार कर रहा था. जब भी मोबाइल रिंग करता, तो दिल धड़कने लगता. देखता तो दूसरे का फोन. मन खीज उठता. जब रवि रात में खाना खा कर करवटें बदल रहा था. नींद नहीं आ रही थी. ठीक रात 11 बजे रिंग टोन बजा. जल्दी से बटन दबाया, तो उधर से सुरीली आवाज आई, ‘‘सो गए क्या?’’

रवि बोला, ‘‘तुम ने तो हमारी नींद ही गायब कर दी. जिस दिन से डांस का तुम्हारा प्रोग्राम देखा है, उस दिन से हमारे दिमाग में वही घूमता रहता है. रात में नींद ही नहीं आती.’’

मेनका मुसकराते हुए एक गाना गाने लगी, ‘‘मुझे नींद न आए, मुझे चैन न आए, कोई जाए जरा ढूंढ के लाए, न जाने कहां दिल खो गया…’’

‘‘अरे मेनका, तुम तो गजब का गाना गाती हो. हम तो समझे थे कि सिर्फ डांस ही करती हो. कोयल से भी सुरीली आवाज है तुम्हारी. इस तरह की सुरीली आवाज विरले लोगों को ही नसीब होती है.’’

फिर दोनों इधरउधर की बहुत सी बातें करते रहे. मेनका से यह भी जानकारी मिली कि उस के पिता सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं और मां सरकारी स्कूल में टीचर. बातें करते पता ही नहीं चला और सुबह के 4 बज गए.

मेनका बोली, ‘‘अब कल रात में बात करेंगे.’’

रवि सुबहसवेरे घूमने के लिए बाहर निकल पड़ा. नहाधो कर चायनाश्ता कर के समय पर वह अपनी गुमटी पर चला गया. उस के दिमाग से अब मेनका का चेहरा उतर ही नहीं रहा था.

एक बुजुर्ग 50 ग्राम खैनी मांगता है. उसे रवि 100 ग्राम देने लगता है, तो वे बोलते हैं, ‘‘तुम्हारा दिमाग कहां है. 50 ग्राम की जगह 100 ग्राम दे रहे हो.’’

‘‘अच्छा, मैं ठीक से सुन नहीं पाया. अभी 50 ग्राम दिए देता हूं.’’

सुबह 10 बजने से पहले ही रवि मेनका का बेसब्री से इंतजार करने लगा. ठीक 10 बजे मेनका आई. मुसकराते हुए उस ने चिप्स और चैकलेट ली. आंखों से इशारा की. पैसे दी और चलती बनी.

रवि पैसा नहीं लेना चाहता था, लेकिन वहां कई लोग खड़े थे, इसलिए वह पैसे लेने से इनकार नहीं कर सका. कई लोग गुमटी पर ही इस के डांस की चर्चा करने लगे. क्या गजब का डांस किया था. रवि भी तारीफ करने लगा.

यह सिलसिला लगातार जारी रहा. मेनका हर रोज रात में फोन करती. छुट्टी का दिन छोड ़कर जब भी वह स्कूल आती. आतेजाते समय गुमटी पर अवश्य आती. चिप्स और चैकलेट के बहाने रवि को नजर भर देखती और चलते बनती.

रवि की शादी के लिए अगुआ आए थे. रवि के पिताजी बोल रहे थे. मेरी तबियत ठीक नहीं रहती. तेरी मां भी काम करतेकरते परेशान हो जाती है. जीतेजी अगर पतोहू देख लेते, तो अहोभाग्य होता.

‘‘पिताजी, इस गुमटी से 3 आदमी का ही पेट पालना मुश्किल होता है. हर चीज खरीद कर ही खानी है. किसी तरह 1-2 कमरा और बन जाते, तब शादीविवाह करते.’’

‘‘अरे बेटा, हमारे जीवन का कोई ठिकाना नहीं है. लड़की वाले भी बढ़िया हैं. तुम्हारे मामा जब शादी के लिए लड़की वाले को ले कर आए हैं, तो उन की बात भी माननी चाहिए.

‘‘बता रहे थे कि लड़की भी सुंदर और सुशील है. उस के मातापिता भी बहुत अच्छे हैं. इस तरह का परिवार हमेशा नहीं मिलेगा. लड़की भी मैट्रिक पास है. शादीविवाह में खर्च भी देने के लिए तैयार हैं. और क्या चाहिए?’’

यह सुन कर रवि उदास हो गया. अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी को क्या जवाब दे. वह असमंजस में पड़ गया. वह चुप रहा. आगे कुछ भी नहीं बोल पाया. रवि के सामने तो संकट का पहाड़ खड़ा हो गया.एक तरफ मातापिता और दूसरी तरफ दिलोजान से चाहने वाली मेनका.

वह रात का इंतजार करने लगा. सोचा कि मेनका ही कुछ उपाय निकाल सकती है.

रात 11 बजे मोबाइल की घंटी बजी. हैलोहाय होने के बाद मेनका ने पूछा, ‘‘आज गुमटी नहीं खोली.क्यों…?’’

रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’

‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.

‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’

‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’

‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’

‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’

मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’

‘‘गुमटी का क्या करें?’’

‘‘बेच दो.’’

‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’

‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’

‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.

‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’

रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’

मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’

‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.

रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.

संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.

अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’

संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’

‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’

संजय बोला, ‘‘मैं यहां  एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’

‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.

‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.

रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’

रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’

‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’

‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’

रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.

मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम  कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?

मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’

दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.

संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’

रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.

रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.

संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.

संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं  सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.

रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’

‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’

रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.

इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.

प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.

दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.

रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.

आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.

रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.

रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.

सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’

‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’

‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’

‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’

‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’

‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’

‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’

रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’

‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.

हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.

खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’

कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’

बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.

मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.

सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.

Donald Trump : अमेरिका में सनकी नेतृत्व दुनिया के लिए खतरा

Donald Trump : राष्ट्र चाहे छोटा हो, उस की संप्रभुता और सम्मान किसी बड़े राष्ट्र से कमतर नहीं होता. पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह दुनिया का स्वयंभू बाप बनने की कोशिश में यूक्रेन पर अपने तेवर झाड़े और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की को वाइट हाउस में बुला कर अपमानित किया, उस से दुनियाभर में हलचल मची हुई है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पागल समर्थकों, गोरे धर्मभीरुओं को मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा दे कर सत्ता में दोबारा आए हैं पर उस ग्रेट मेकिंग में वे अमेरिका को दुनिया से अलगथलग करने में लग गए हैं, साथ ही, अमेरिकी जनता की धुनाई करने में भी लग गए हैं. अपने को चक्रवर्ती सम्राट समझने के चक्कर में वे अपने ही देश के लोगों पर बाहरी देशों के सस्ते सामान पर टैक्स का भारी बोझ थोप रहे हैं.

यही नहीं, सरकारी काम में फालतू खर्च कम करने के चक्कर में वे लाखों को सरकारी नौकरियों से निकाल रहे हैं और दशकों से दूसरे देशों को दी जाने वाली सहायता बंद कर रहे हैं.

वे कहने को तो अमेरिका को बेहतर देश बना रहे हैं पर जिस देश के अपने पड़ोसियों कनाडा और मैक्सिको से संबंध बिगड़ जाएं, दशकों पुराने यूरोप से दुश्मनी सी हो जाए, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, दक्षिण एशिया के देशों की गरीबी और बीमारी से उसे कोई लेनादेना न रह जाए तो उस देश के बड़प्पन का मतलब क्या रह जाएगा?

अमेरिका ट्रंप के नेतृत्व में एक अलग ईरान, उत्तर कोरिया जैसा देश बन कर रह जाएगा जहां न कोई बिजनैस करने आएगा, न घूमनेफिरने और न पढ़ाई करने. यहां आ कर बसने की बात तो छोड़ ही दें क्योंकि जो बसे हुए हैं उन्हें अमेरिका चेनों में बांध कर अपने मिलिट्री हवाई जहाजों से उन के देशों में भेज रहा है, बिना किसी अदालती आदेश के.

ग्रेटनैस के चक्कर में अमेरिका दुनिया से अलगथलग हो रहा है. यह एक सैटेलाइट सा देश बन रहा है जिस की 30 करोड़ की जनसंख्या का दुनिया की 6 अरब जनता से कोई लेनादेना नहीं है. इस का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि अमेरिका पर सिर्फ गोरे चर्च जाने वाले प्रोटेस्टैंटों या कैथोलिकों का राज हो जिन की अपनी औरतें कालों, ब्राउनों और पीलों जैसे उन के घरों में रह कर सेवा करें, रसोई संभालें, बच्चे पैदा करें. लेकिन वे राष्ट्रपति बनने के ख्वाब न देखें.

यह ग्रेट, महान, अमेरिका अमीर रह पाएगा, इस में शक है. जिस भी देश ने अपने दरवाजे बाहर वालों के लिए बंद रखे, वह सड़ गया. समाज तभी उन्नति करता है जब उस में हर तरह की सोच आए, हर तरह के विचार आएं और जहां ‘मागा’, ‘मागा’ जैसे नारे नहीं बल्कि खेतखलिहानों, फैक्ट्रियों और रिसर्च सैंटरों में लोग काम कर रहे हों. अब जो सूरत दिख रही है उस में अमेरिका एक विशाल टापू जैसा बनने वाला है जिस के रास्ते बंद हैं और जो अपनी सड़न में खुश रहने वाला है.

अमेरिकी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब वाइट हाउस के ओवल औफिस में अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी दूसरे देश के राष्ट्रपति से न सिर्फ तेज आवाज में बात की, बल्कि उन पर हावी होते हुए उन को अपमानित भी किया. उन पर तानाशाही करने का दोष मढ़ा और उन्हें उंगली दिखाई और फिर उन को वहां से चले जाने को कहा.

पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस ढंग से दुनिया का स्वयंभू बाप बनने की कोशिश करते हुए यूक्रेन पर अपने तेवर झाड़े, यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की को रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्ति पर बात करने के लिए वाइट हाउस में बुला कर हड़काया और जिस तरह उन्हें अपमानित कर के वाइट हाउस से जाने के लिए कहा, वह घटना दुनिया में हलचल मचाने वाली है. ट्रंप इस से पहले भी कई देशों के प्रमुखों से बदतमीजी कर चुके हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ उन की जो बहस हुई उस के भी वीडियो काफी वायरल हुए थे और दुनियाभर में ट्रंप की आलोचना हुई थी.

अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप पर दुनिया का आका बनने का ऐसा भूत सवार है कि उन्होंने कूटनीतिक शालीनता का लबादा उतार फेंका है. वैसे भी जबरदस्ती के ओढ़े गए इस लबादे को ट्रंप संभाल नहीं पा रहे थे. यूक्रेन के बहाने ही सही आखिरकार यह दिखावटी लबादा उतरा और दुनिया ने अमेरिका का असली चेहरा ठीक से देखा.

यूके्रन के समर्थन में आए यूरोपीय देश

जेलेंस्की व ट्रंप विवाद के बाद अमेरिका में दक्षिणपंथी राजनीति का घिनौना चेहरा सामने आया है. इस चेहरे पर सत्तालोलुपता तो पहले भी झलकती थी, मगर अच्छी कूटनीतिक भाषा और शालीनता के परदे में काइयांपन कुछ छिपा हुआ था, लेकिन अब जो असलियत सामने आई है तो दूसरे देशों को यह समझ में आने लगा है कि अमेरिका की कूटनीति दरअसल दूसरे देशों को कूटने की नीति ही ज्यादा है. इस में बड़प्पन वाली कोई बात नहीं है. बस, सब के बाप बन जाओ, सब को हड़काओ, सब की बेइज्जती करो और अपने को श्रेष्ठ बताने का हल्ला करो.

मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (मागा) नारे के जरिए भी ट्रंप यही जताना चाहते हैं कि जब वे सत्ता में नहीं थे तब अमेरिका ग्रेट नहीं था, पिछले सारे राष्ट्रपति निकम्मे थे, उन्होंने अमेरिका की भलाई के लिए कुछ नहीं किया. अब ट्रंप को उस को फिर से वैसे ही ग्रेट बनाना है जैसे अमेरिका ट्रंप के पहले कार्यकाल में था.

यह बिलकुल वैसे ही है जैसे भारत में आरएसएस और उस की जन्मी पार्टी भाजपा के लिए आजादी के बाद से ले कर 2014 तक भारत में कुछ भी नहीं हुआ, जो कुछ हुआ वह मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुआ. आरएसएस के आधार पर खड़ी भाजपा के सत्ता में आने के बाद ही भारत ने तरक्की देखी और मोदी के कठिन श्रम और फैसलों से ही भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हुआ. कहना गलत नहीं कि जैसे भारत में आरएसएस है वैसे ही अमेरिका में ‘वाइट आरएसएस’ यानी ट्रंप का ‘मागा’ है.

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका में चीजें बड़ी तेजी से बदल रही हैं. दुनिया पर हावी होने की कोशिश, अनेक राष्ट्रों को नीचा दिखाने का प्रयास, औरतों के शरीर पर अधिकार स्थापित करने और काले लोगों को यह बताने की कोशिश कि वे सिर्फ और सिर्फ गुलाम हैं, ट्रांसजैंडर्स को इंसान की श्रेणी से निकाल बाहर करने का ऐलान, धर्म (चर्च) का प्रचार बढ़ाने और उस की आड़ में अपनी संकीर्ण सोच से सब को प्रभावित करने व दबाने के प्रयास में ट्रंप जीजान से जुटे हैं.

क्रैडिट पाने की लालसा

दरअसल सत्ता जब किसी दक्षिणपंथी व कट्टरपंथी के हाथ में आती है तो उस का पहला शिकार कमजोर जनता और औरतें ही बनती हैं. दक्षिणपंथी मानसिक रूप से संकीर्ण होते हैं. उन में श्रेष्ठता का भाव अहं की हद तक होता है. धर्म का औजार हाथ में ले कर वे दूसरों के जीवन पर आधिपत्य जमाने और उन के मूल अधिकार छीन लेने को आतुर होते हैं. ट्रंप ने भी सत्ता में आते ही कई ऐसे फैसले किए जिन से महिलाएं, ट्रांसजैंडर, छोटे देश और दूसरे देशों से आ कर अमेरिका में काम करने वाले या पढ़ाई करने वाले छात्र बुरी तरह भयभीत हैं.

जेलेंस्की और उन के देश यूक्रेन का मामला बिलकुल ताजा है. लिहाजा, ट्रंप की संकुचित सोच और संकीर्ण मानसिकता पर यहीं से बात शुरू करते हैं. ट्रंप जब राष्ट्रपति पद के लिए प्रचार में जुटे थे तभी से कह रहे थे कि वे सत्ता में आते ही इसराइल-फिलिस्तीन युद्ध और रूस व यूक्रेन युद्ध समाप्त करवा देंगे. उन्होंने पिछले राष्ट्रपति पर आरोप लगाए कि जो बाइडेन ने इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया. खैर, इसराइल व फिलिस्तीन युद्ध में फिलहाल कुछ समय से शांति है और अब ट्रंप किसी भी तरह रूस व यूक्रेन जंग खत्म कराने का श्रेय हासिल करने की कोशिश में हैं.

यह बात अच्छी है कि युद्ध खत्म हो. युद्ध कभी भी मानव जाति का उद्धार नहीं करते. युद्ध में जानें जाती हैं, देश तबाह होते हैं, पीढि़यां बरबाद हो जाती हैं, धरती और पर्यावरण को घातक नुकसान पहुंचता है. युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है मगर दुनिया के किसी न किसी कोने में हर वक्त कोई न कोई युद्ध चलता रहता है.

रूस व यूक्रेन युद्ध को चलते हुए 3 साल बीत चुके हैं और इस में हजारों लोग मारे जा चुके हैं. शहर के शहर तबाह हो चुके हैं. अरबोंखरबों की संपत्ति मिट्टी में मिल चुकी है और दोनों देशों की नागरिक आबादी को लगभग हर रोज हमलों का सामना करना पड़ रहा है. अगर ट्रंप इस युद्ध को खत्म कराने की कोशिश में हैं तो यह एक अच्छी बात है मगर इस के लिए दोनों देशों के प्रमुखों से बातचीत करते वक्त उन का रवैया न सिर्फ ठीक होना चाहिए, बल्कि दोनों देशों के प्रमुखों के साथ एक सा होना चाहिए.

अमेरिका की स्वयंभू बनने की कोशिश

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से ट्रंप की बातचीत के वीडियो देखें. आप पाएंगे कि ट्रंप किस शालीनता से उन से झुकझुक कर मीठी आवाज में बात करते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से भी बात करते वक्त ट्रंप की बौडी लैंग्वेज ऐसी ही होती है. ऐसा क्यों? क्योंकि ये दोनों बड़े देश हैं, ताकतवर हैं, ट्रंप को पलट कर जवाब देने का दम रखते हैं. मगर वहीं छोटे देशों के प्रमुखों से बात करते समय ट्रंप का अंदाज देखिए, लगता है जैसे कोई बाप अपने बच्चों के कान उमेठ रहा हो.

राष्ट्र चाहे छोटा हो, उस की संप्रभुता और सम्मान किसी बड़े राष्ट्र से कमतर नहीं होता. फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति से युद्ध समाप्ति की बात करते वक्त राष्ट्रपति ट्रंप और अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस जिस तरह जेलेंस्की पर हावी हुए, उस की घोर निंदा होनी चाहिए. वे न सिर्फ जेलेंस्की पर हावी हुए बल्कि उन को अपमानित कर वाइट हाउस से बाहर जाने के लिए भी बोला. उस देश के राष्ट्रपति से ऐसा गंदा बरताव जिस ने अपने देश को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा रखी है, जो यूक्रेन के अस्तित्व के लिए लंबे समय से लड़ रहा है, बमों, मिसाइलों और गोलियों का सामना कर रहा है, अपने लोगों को मरते देखने के बाद भी पूरी दिलेरी से अपने देश को रूस से बचाने की कोशिश में है.

स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने एक्स पर लिखा कि, जेलेंस्की आप न केवल अपनी बल्कि पूरे यूरोप की आजादी के लिए लड़ रहे हैं. आस्ट्रेलिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, लातविया, लिथुआनिया, नौर्वे, पोलैंड और स्पेन के यूरोपीय अधिकारियों ने भी यूक्रेन को अपना समर्थन देने की पेशकश की. उस जेलेंस्की का वाइट हाउस में इतनी बुरी तरह अपमान हुआ. निसंदेह इस वीडियो को देख कर पुतिन को बड़ा आनंद आया होगा.

मदद की कीमत वसूलता ट्रंप

गौरतलब है कि अभी तक अमेरिका ही यूक्रेन को लड़ाई के लिए हथियार और पैसा मुहैया कराता रहा है. अन्य देशों ने भी मदद की मगर अमेरिका ने सब से ज्यादा की और यूक्रेन को लड़ने के लिए वह उकसाता भी रहा. अमेरिकी मदद के लिए राष्ट्रपति जेलेंस्की आभार भी जता चुके हैं. वे जानते हैं कि अमेरिका की मदद के बिना वे इतने लंबे समय तक रूस का सामना नहीं कर सकते थे. वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कहने पर युद्ध रोकने को तैयार भी हैं मगर इस के बदले में वे सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं.

जेलेंस्की का कहना है कि हम से ज्यादा शांति और किस को चाहिए? हम युद्धविराम के लिए तैयार हैं मगर रूस हम पर फिर हमला नहीं करेगा, हमें इस बात की गारंटी चाहिए. इस से पहले भी रूस ने कई बार युद्धविराम को धता बता कर धोखे से हमला किया और सैकड़ों लोगों को मार कर हमारे क्षेत्रों पर कब्जा किया. तो अब अगर अमेरिका के कहने पर हम युद्ध खत्म करते हैं तो हमें इस बात की गारंटी भी मिलनी चाहिए कि हम सुरक्षित हैं.

जेलेंस्की की मांग बिलकुल वाजिब है. अगर अमेरिका बाप बना है तो दोनों देशों में शांति और सुरक्षा का जिम्मा भी उसी का है. इस में कोई दोराय नहीं, मगर ट्रंप यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार नहीं हैं बल्कि इस के बदले में वे यूक्रेन से बहुतकुछ जबरदस्ती हासिल करने की फिराक में हैं. ट्रंप चाहते हैं कि जेलेंस्की अपने बहुमूल्य खनिज की खदानें और पहाड़ अमेरिका को दे दें. जेलेंस्की इस के लिए भी तैयार हो गए हैं, मगर फिर भी ट्रंप इस बात की गारंटी नहीं देना चाहते कि जेलेंस्की और उन का देश भविष्य में सुरक्षित रहेगा. फिर भला काहे का बाप? और ऐसे खोखले व्यक्ति की बातों का भरोसा कर यूक्रेन अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मारे?

आप किसी की मदद करें, युद्ध में साथ दें, हथियार दें, पैसा दें, लड़वाने के लिए हवा भरते रहें और फिर बाद में उस पर एहसान जताते हुए उस से मदद की भरपाई करने के लिए कहें. यह कहें कि वह अपने बहुमूल्य खनिज की खदानें और पहाड़ उसे दे दे. क्या यह सही है? क्या परेशानी आने पर एक देश दूसरे देश की मदद इस तरीके से करता है?

यह बात जेलेंस्की भी समझ रहे हैं कि बात सम्मान और मदद की नहीं, बल्कि ट्रंप जो ‘डील डील’ की माला जपते रहते हैं, वह सिर्फ एक डील है. ट्रंप में कोई बड़प्पन नहीं है. वे कोई उदार नेता नहीं बल्कि एक बिजनैसमैन हैं जिन्हें सिर्फ डील, बिजनैस और पैसे से मतलब है.

वाइट हाउस में मीटिंग के दौरान ट्रंप ने जेलेंस्की को कौमेडियन कहा, डिक्टेटर कहा, उन के कद पर टिप्पणी की, कपड़ों पर टिप्पणी की. यह सब कहीं से भी कूटनीति की भाषा नहीं है. वाइट हाउस में घेर लिए जाने के बाद जेलेंस्की ने जिस तरह से जवाब दिया, तन कर खड़े हो गए, अमेरिका को आड़े हाथों लिया और न सिर्फ अपना बचाव किया बल्कि अमेरिका से सवाल भी किया, इस के लिए पूरी दुनिया में उन की तारीफ हो रही है. दुनिया के कई नेताओं की जहां ट्रंप के सामने घिग्घी बंध जाती है, वहीं जेलेंस्की ने जवाब देने की हिम्मत की. उन्होंने वाइट हाउस में अपनी और अपने देश के स्वाभिमान की रक्षा की.

ट्रंप एक के बाद एक ग्लोबल लीडरों की बेइज्जती कर रहे हैं. गनीमत है कि ट्रंप ने इस तरह का बरताव प्रधानमंत्री मोदी के साथ नहीं किया, लेकिन उन के सामने भी भारत की नीतियों को भलाबुरा कहने से नहीं चूके.

भारत की बेइज्जती ट्रंप ने इस तरह की कि जब मोदी अमेरिका दौरे पर जाने वाले थे उस से पहले ही ट्रंप ने अवैध भारतीय प्रवासियों को जंजीरों और हथकडि़यों में जकड़ कर सेना के विमान से भारत भेजा. उन के साथ अमानवीय बरताव किया. यह भारत और मोदी सरकार के लिए कोई सम्मानजनक बात नहीं थी.

ट्रंप ने भरी सभा में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से पूछ लिया कि क्या आप अमेरिका के बिना युद्ध जीत सकते हैं? वहां बैठे लोग इस बात पर हंस दिए और कीर स्टार्मर खिसियानी हंसी हंस कर रह गए. ट्रंप ने यूरोपियन यूनियन के प्रमुख से भी कह दिया कि आप का गठन तो अमेरिका की नकेल कसने के लिए हुआ था, आज आप की हालत यह हो गई है. सोचिए उन को कितना अपमान महसूस हुआ होगा. तो ट्रंप का रवैया एक तानाशाह का रवैया है जो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता. उन का ऐसा रवैया न सिर्फ वर्ल्ड वार 3 की तरफ दुनिया को धकेलेगा बल्कि अमेरिका के पतन का भी जिम्मेदार होगा.

खैर, वाइट हाउस से अपमानित हो कर बाहर निकले जेलेंस्की के लिए यह राहत की बात रही कि यूरोपीय देश उन के समर्थन में दिखे. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि सभी यूरोपीय देश यदि एकसाथ भी आ जाएं तो भी फिलहाल इस स्थिति में नहीं हैं कि जेलेंस्की के साथ खड़े हो कर ट्रंप को चुनौती दे सकें या उन की सामने से आलोचना कर सकें. यूरोपीय देशों की आधी ताकत चूंकि अमेरिका ही है, इसलिए कूटनीति यह कहती है कि ट्रंप को किसी ऐसे समझते पर मनाया जाना चाहिए जो जेलेंस्की को तो राहत दे ही, स्वयं यूरोप को भी उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त करे.

ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद से खुद को श्रेष्ठ जताने का जो शो चला रखा है उस से नहीं लगता कि वे यूरोप की खातिर अपने किसी भी घोषित कदम से पीछे हटने के बारे में सोचेंगे भी. चाहे वह पेरिस जलवायु समझता हो या अन्य कोई ऐसी अंतर्राष्ट्रीय साझा नीति जिस में अब तक अमेरिका प्रमुखता से सहभागी रहा हो. ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति अगर यूरोप की कीमत पर भी होती है तो इस का खमियाजा यूरोपीय देशों को ही ज्यादा भुगतना पड़ेगा. यूरोपीय देश यह भी जानते हैं कि यूक्रेन भी लंबे समय तक अमेरिका का विरोध नहीं झेल सकता, इसलिए बीच का रास्ता निकालना होगा. कोई ऐसा समझता जिस पर अमेरिका सहमत हो जाए.

जेलेंस्की भी ऐसे समझते के लिए तैयार हैं क्योंकि वे भी जानते हैं कि अमेरिका का विरोध यूक्रेन नहीं झेल सकता. विशेषकर ऐसा विरोध जिस में अमेरिका का रुझान जेलेंस्की के शत्रु पुतिन के पक्ष में दिखता हो. दूसरे, जेलेंस्की यह भी जानते हैं कि अमेरिका के बिना यूरोप भी अपने दम पर उन के साथ ज्यादा दिनों तक खड़ा नहीं रह सकता. जाहिर है जेलेंस्की भी अब किसी ऐसे सम्मानजनक रास्ते की तलाश में हैं जिस से युद्ध भी रुक जाए और उन का सम्मान भी बचा रह सके. इसलिए वे चाहते हैं कि उन्हें सुरक्षा की गारंटी मिले और यह गारंटी अमेरिका की ओर से आए. फिलहाल ट्रंप ने मारे गुस्से के यूक्रेन को दी जाने वाली सारी सैन्य मदद रोक दी है. इस से रूसी राष्ट्रपति पुतिन के चेहरे पर बड़ी मुसकान खिंच आई है.

टैरिफ से वैश्विक बाजार पर असर

ट्रंप का सनकी नेतृत्व और तानाशाही रवैया दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है. दुनिया के देशों पर आयात शुल्क बढ़ा कर ट्रंप ने दुनियाभर में सनसनी फैला दी है. चीन, कनाडा और मैक्सिको पर जवाबी शुल्क लागू करने से वैश्विक स्तर पर युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया है. जवाब में इन देशों ने भी अमेरिका पर शुल्क बढ़ा दिया है. इन फैसलों से भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. इस से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ेगी, जिस का असर भारत पर भी दिखेगा. इस से निर्यात प्रभावित होगा और देश के अंदर वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ेंगे. महंगाई दर बढ़ेगी तो आर्थिक विकास की दर धीमी हो जाएगी.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए भारीभरकम टैरिफ की आलोचना की है और इसे बेहद बेवकूफी भरा कदम बताया है. उन्होंने ट्रंप पर पलटवार करते हुए कहा है कि टैरिफ के बहाने ट्रंप कनाडा पर कब्जा करने की कोशिश में हैं. ट्रूडो ने अपने देश की अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए बिना थके लड़ाई जारी रखने की कसम खाई है. ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से अमेरिका आने वाले उत्पादों पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. जवाब में कनाडाई प्रधानमंत्री ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया है और चेतावनी दी है कि ट्रेड वार दोनों देशों के लिए महंगा साबित होगा.

गौरतलब है कि टैरिफ युद्ध बढ़ने की आशंका से दुनियाभर में लोग सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की खरीदारी शुरू कर चुके हैं. इस से सोने के दाम दुनियाभर में बढ़ गए हैं. दिल्ली में सोने की कीमतें नई रिकौर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. भारत में इस का उदाहरण भी सामने आ चुका है. 5 मार्च को कन्नड़ और तमिल फिल्मों की अभिनेत्री रान्या राव को राजस्व खुफिया विभाग ने दुबई से लौटते समय 14.8 किलोग्राम सोने के साथ गिरफ्तार किया है. इस सोने की कीमत लगभग 12 करोड़ रुपए बताई जा रही है. अभिनेत्री रान्या राव कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक के पद पर कार्यरत एक आईपीएस अधिकारी की बेटी हैं.

ट्रंप की नीतियों और फैसलों को ले कर अब चीन ने भी मोरचा खोल दिया है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कह दिया है कि टैरिफ वार हो या युद्ध, हम अंत तक लड़ने को तैयार हैं. ट्रंप सरकार ने कनाडा और मैक्सिको के साथ ही चीन पर भी अतिरिक्त टैरिफ लगाया है. वाशिंगटन के इस कदम से चीन आगबबूला है. चीन भी अब अमेरिका से इंपोर्ट होने वाले प्रोडक्ट्स पर 10 से 15 फीसदी तक का टैरिफ लगाने जा रहा है. इस से अब दुनिया की 2 महाशक्तियों के बीच खुल्लैमखुल्ला ट्रेड वार शुरू हो गया है. इस के साथ ही ड्रैगन ने ट्रंप सरकार को खुलेतौर पर युद्ध की भी धमकी दे डाली है.

चीन का कहना है कि अगर अमेरिका युद्ध चाहता है (चाहे वह टैरिफ युद्ध हो, व्यापार युद्ध हो या कोई और युद्ध) तो हम अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं. चीन के इस कदम के बाद अब हालात और भी खराब होने के आसार हैं.

दुनिया के टौप अरबपति वारेन बफेट ने डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि उन का यह कदम दुनियाभर में महंगाई बढ़ाने वाला साबित हो सकता है और सीधेतौर पर इस का असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि दुनिया के देशों को परेशान कर के ट्रंप अमेरिका के हित में कोई काम कर रहे हैं. दरअसल वे अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं.

नस्लभेदी मानसिकता अमेरिका को ले डूबेगा

प्रवासियों को अमेरिका से बाहर खदेड़ने के ट्रंप के फैसले से अमेरिका की कंपनियां और बड़े व्यापारी खुश नहीं हैं. अमेरिका में बड़ी संख्या में चीनी, भारतीय और अन्य देशों के लोग काम करते हैं. बड़ीबड़ी कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं, जिन से नस्लभेदी मानसिकता में ग्रस्त श्वेत अमेरिकी जलन रखते हैं. लेकिन इन कंपनियों में श्रेष्ठता के भाव में ग्रस्त श्वेत अमेरिकी से तीनगुनी तादाद काली और सांवली चमड़ी के वर्कर्स की है, जिन की मेहनत पर ये कंपनियां टिकी हुई हैं. इन में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिन के पास अमेरिका में रहने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं हैं. इन को अमेरिका से बाहर खदेड़ने से ये कंपनियां भारी नुकसान उठाएंगी.

वर्तमान समय में कोई 3 लाख भारतीय छात्र अमेरिका में पढ़ते हैं. वे अपने कमजोर रुपए से मजबूत डौलर खरीद कर अमेरिका का खजाना भरते हैं. वर्ष 2023 में भारतीय छात्रों ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था में करीब 12 अरब डौलर का योगदान दिया. पिछले साल अमेरिका में छात्र वीजा की फीस और पढ़ाई का खर्च भी काफी बढ़ा दिया गया है. बावजूद इस के बच्चे वहां पढ़ने के लिए जा रहे हैं.

एक अनुमान के अनुसार एक छात्र अमेरिका में पढ़ने के लिए औसतन 40 से 60 लाख रुपए खर्च करता है. उस के परिजन उस के लिए एजुकेशन लोन लेते हैं. अनेक मांबाप अपनी जमीनजायदाद बेच कर बच्चों को पढ़ने के लिए अमेरिका भेजते हैं. इन छात्रों से अमेरिका खूब कमाई कर रहा है. ऐसे में यदि ट्रंप के आदेश जमीन पर उतरने लगे तो अमेरिका की यूनिवर्सिटीज खाली हो जाएंगी. उन की मोटी कमाई, जो वे प्रवासी छात्रों से करते हैं, खत्म हो जाएगी. क्या अमेरिका अपनी इतनी बड़ी कमाई हाथ से जाने देगा?

ट्रंप घुसपैठिए का आरोप लगा कर जिस मैक्सिको को दिनरात धमकाते रहते हैं, उसी मैक्सिको से आने वाले खेतिहर मजदूर अमेरिका की जमीनों पर अन्न उगा कर उन का पेट भरते हैं क्योंकि उजले कपड़े पहन कर गिटरपिटर इंग्लिश हांकने वाले अमेरिकियों के बाजुओं में तो इतना दम नहीं है कि वे खेती जैसा मेहनत का काम कर सकें. कई अमेरिकी ऐसे हैं जिन के पास दोदो हजार एकड़ जमीन है. इतनी बड़ी जमीनों पर खेती करना आसान नहीं है. इस के लिए अमेरिका को सस्ते मजदूर चाहिए.

मैक्सिको से अगर खेतिहर मजदूर न आएं तो अमेरिका में खेती बंद हो जाएगा. अमेरिका यह बात अच्छी तरह जानता है. उस के अमीर किसान मैक्सिको के सस्ते मजदूर ही चाहते हैं और वे उन के अवैध रूप से अमेरिका में घुसने के रास्ते तैयार करते हैं.

आज मैक्सिको से आए लोगों को ट्रंप अवैध घुसपैठिया बता रहे हैं मगर दूसरे विश्वयुद्ध के समय जब लेबर की कमी हो गई थी तो अमेरिका को इसी मैक्सिको से बड़ी संख्या में लेबर बुलाने पड़े थे.

वर्ष 1942 से 1964 के बीच लाखों मैक्सिकन किसानों को अस्थायी वीजा दिया गया था ताकि वे अमेरिका आ कर खेती कर सकें. आज भी अमेरिका की खेती मैक्सिको से आने वाले किसानों पर निर्भर करती है. अमेरिका के खेतों में काम करने वाले दोतिहाई किसान और मजदूर मैक्सिको मूल के हैं. क्या अमेरिका के धनी किसान अपने खेतों से मैक्सिको के सस्ते लेबर को निकाल कर अपना बेड़ा गर्क करने को तैयार हैं?

सस्ते मजदूर तो हर देश को चाहिए. सस्ते मजदूर के चक्कर में ही अमेरिका की कितनी ही कंपनियों ने अपनी फैक्ट्रियां भारत, चीन और अन्य देशों में स्थापित कीं. क्या ट्रंप सारी फैक्ट्रियां वापस अमेरिका ला कर उन में काम करने के लिए अमेरिकी वर्कर्स रखने का आदेश भी जारी करेंगे? ट्रंप के शपथ समारोह में नाचने वाले एलन मस्क क्या चीन से अपनी टेस्ला कंपनी बंद कर उसे अमेरिका लाएंगे? क्या आईफोन अपनी फैक्ट्री चीन से निकाल कर कैलिफोर्निया में लगाएगा?

याद रखना चाहिए कि ट्रंप के साथ जितने भी खरबपति अमेरिका में हैं, सब के सब सस्ते श्रम के कारण ही खरबपति बने हैं. वे तो हमेशा से इस जुगाड़ में लगे रहे कि उन्हें ऐसे लेबर मिलें जो कम से कम पैसे में ज्यादा से ज्यादा काम करें ताकि उन के बिजनैस फलतेफूलते रहें.

हर किसी को सस्ते लेबर चाहिए और ऐसे लेबर जिन के पास जरूरी दस्तावेज न हो ताकि उन का शोषण करना आसान हों. इस सिस्टम का लाभ अमेरिका में ब्यूरोक्रेट समर्थक बिजनैसमैनों ने भी खूब उठाया है और रिपब्लिकन समर्थक अमीरों ने भी खूब उठाया है. यही लोग एआई के समर्थक भी हैं ताकि मजदूरों की संख्या कम की जा सके और मजदूरी कम देनी पड़े और ट्रंप जैसे व्यक्ति के हाथ सत्ता की चाबी सौंपने वाले अमेरिकी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वे अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के बाद अमेरिकी लोगों को काम देंगे. हंसी आती है ऐसी सोच पर.

समाज को तोड़ रहे अमेरिका और भारत

अमेरिका भारत की तरह रस्साकशी में फंसा है. इन 2 बड़े लोकतंत्रों के नेताओं ने अपनेअपने देशों की कुछ ढकीछिपीं, कुछ दिखतीं, कुछ गहरी खाइयों को सब के सामने नंगा कर दिया है और ये खाइयां वैसी ही हैं जैसी 1920 के बाद जरमनी में दिखनी शुरू हुईं और 1933 तक आतेआते ये इतनी चौड़ी हो गईं कि पूरे जरमनी को ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप को लील गईं.

अमेरिका नया देश है, महज 400 साल पुराना. चारपांच सौ साल पहले इतालवी अन्वेषक व नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस के यूरोप से जहाजों के जरिए एटलांटिक पार करने से पहले उत्तर अमेरिका लगभग आदिवासियों की तरह रह रहे वाशिंदों का घर था जिन्हें बाद में रैड इंडियन कहा गया क्योंकि कोलंबस सोच रहा था कि वह मुगल साम्राज्य के आर्थिक समृद्ध भारत, इंडिया, में पहुंच गया.

यूरोप के अलगअलग देशों, अलगअलग संप्रदायों, अलगअलग इतिहासों वाले लोगों ने एक ब्रिटिश कालोनी बनाई और मोटा काम करने के लिए भारी संख्या में अफ्रीका के गुलामों को जबरन बुलाया. चीनियों को लालच दे कर लाया गया. फिर उन्होंने लोकतंत्र, बराबरी की पतली चादर से ढक कर, मेहनत, नईनई खोजों से ब्रिटेन से आजादी पा कर उसे एक अद्भुत देश बनाया. वहां कालेसफेद का भेदभाव था लेकिन बोलने और काम करने की आजादी थी. वहां गोरों का प्रभुत्व था लेकिन इन्हीं गोरों ने दूसरे गोरों से गृहयुद्ध लड़ा कि कालों को गुलाम नहीं रखा जा सकता.

भारत में पहले मुगलों ने, फिर अंगरेजों ने बिखरे हुए छोटेछोटे राजाओं, धर्मों, संप्रदायों, भाषाओं, बोलियों, रीतिरिवाजों वालों को एक चादर से ढक दिया जिस के तीनों भेदभाव छिप गए. एक जगह यूनाइटेड स्टेट्स औफ अमेरिका ने 1945 के बाद बेहद उन्नति की और एक जगह यूनियन औफ स्टेट्स वाले इंडिया ने टुकड़ों में बंटे देश की जगह एक विशाल भारत बना डाला.

इन दोनों देशों में समानताएं और विभिन्नताएं दोनों हैं. एक बेहद गरीब है, जहां प्रति व्यक्ति आय अमेरिकी डौलरों में 250 के आसपास है. दूसरा बेहद अमीर है, जहां प्रति व्यक्ति आय 70,000 डौलर है. एक में हर जगह गंदगी है, बेकारी है, बिखराव है, दूसरे में सफाई है, रोजगार के अपार अवसर हैं, ढंग से चलता जीवन है, बेहद संपन्नता है.

पर दोनों देशों में इस चमकधमक या काले अंधकार के नीचे गहराई तक गया जना का भेद है. अमेरिका में अफ्रीका से आए या ले आए गए कालों के साथ आज भी दुर्व्यवहार आम है, तो भारत में शूद्रों और अछूतों के साथ उसी तरह का भेदभाव आम है. एक में चर्च के माध्यम से जम कर गोरों की श्रेष्ठता का पाठ पढ़ाया जाता है तो दूसरे में धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदूमुसलिम भेद के साथ सवर्ण, शूद्र और दलित भेद भी हर रोज फैलाया जा रहा है. दोनों देशों के कुछ नेता लगातार इन भेदों को पाटने में लगे हैं तो कुछ इन को भुनाने में. आज दोनों देशों में ऐसा नेतृत्व आ गया है जो सत्ता में भेदभाव, घृणा, ऊंचनीच, जन्मजात श्रेष्ठता के अहं को भुना कर एक नई शासन पद्धति स्थापित करना चाहता है, चाहे इस के लिए वर्षों की एकता की चादर को सीने की कोशिशों पर पानी फिर जाए.

अमेरिका और भारत दोनों में नेता, प्रशासनिक अधिकार, पुलिस, मिलिट्री, प्रैस खेमों में बंट गए हैं. एक तरफ वे लोग हैं जो भेदभाव को जीवन का पहला लक्ष्य मानते हैं और उन्हें विश्वास है कि उन्नति केवल श्रेष्ठ, जन्म से श्रेष्ठ लोगों के हाथों से हो सकती है. दोनों में पैसे वालों का बोलबाला हो गया है. दोनों देशों में जन्म से श्रेष्ठ लोग हर उस व्यक्ति को गुलामी के तहखानों में धकेल देना चाहते हैं जो उन से भिन्न दिखता है या नाम, धर्म, मूल देश से अलग है. वहीं दूसरी, एक तरफ वे लोग हैं जो मानव समाज में मोहब्बत, सौहार्द्र बनाए रखने की वकालत करते हैं.

दोनों देशों के संपन्न लोगों ने अपने भेद भुला दिए हैं. अमेरिका में गोरे लोग भूल गए हैं कि वे कहां से आए थे, फ्रांस से, पोलैंड से, इटली से, रूस से, इंग्लैंड से या और कहीं से. भारत में सवर्णों ने अपने भेद भुला दिए हैं. ब्राह्मणों ने अपने ऊंचनीच के भेद खत्म कर ही दिए, उन्होंने क्षत्रिय और वैश्य कही जानी वाली जातियों को मिला कर एक बड़ा संपन्न वर्ग तैयार कर लिया है जो चाहे आबादी का 10 फीसदी हो, लेकिन 90 फीसदी पर वह भारी है. अमेरिका में गोरे चाहे आज 60 फीसदी से भी कम हैं, और अनुमान है कि 2042 तक 50 फीसदी से भी कम हो जाएंगे, डोनाल्ड ट्रंप को जिता कर उन्होंने यह संदेश दिया है कि सत्ता और संपन्नता की चाबी उन्हीं के हाथों में थी, है और रहेगी.

इन दोनों देशों को एक करने, विशाल बनाने, अमेरिका को संपन्नता दिलाने और भारत को मुगलों व अंगरेजों से आजादी दिलाने में दबेकुचलों का मुख्य योगदान है. आज उन के योगदान को लगातार भुलाया जा रहा है. वह न टैक्स्ट बुक्स में प्रकाशित हो रहा है, न ऊंची जातियों या ऊंचे रंग वाले इतिहासकारों, लेखकों, पत्रकारों, शिक्षकों की जबान/कलम से निकल रहा है. अमेरिका और भारत के समाज आज यह साबित करने में लगे हैं कि गोरों और सवर्णों की बदौलत उन की पहचान है जबकि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं कालों, निचलों, अछूतों, सत्ता से बाहर रहे अधपढ़ों व अनपढ़ों पर निर्भर हैं.

अमेरिका अब पहले दौर में अवैध इमिग्रैंट्स को निकाल रहा है. फिर वह हर तरह के लैटिनों, चीनियों, भारतीयों, अफ्रीकी अरब लोगों को या तो निकालेगा या उन्हें इस कदर भयभीत रखेगा कि वे गुलामों की तरह गुलामी करते रहें.

यही भारत में हो रहा है. पिछले 50 सालों के दौरान यहां हिंदूहिंदू कर के मुसलिमों को ही नहीं, सिखों और ईसाइयों को भी दूसरे दर्जे का नागरिक होना महसूस कराया गया. इसी दौरान दलितों और पिछड़ों की हैसियत भी छीन ली गई. वहीं, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, चौधरी देवीलाल, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल, रामविलास पासवान जैसे नेताओं को हाशिए पर ला पटक दिया गया. इन की जातियों के बौनों को पुतला बना कर खड़ा कर दिया और इन वर्गों से कहा गया कि इन बौने पुतलों की तरह जूते चाटते रहो.

अमेरिका ने जिस तरह भारतीय नागरिकों को अमेरिका में बिना अनुमति के घुसने पर उन के हाथपैरों में जंजीरें डाल कर उपहार में भारत को भेजा है वह अमेरिकी मानसिकता दर्शाता है. जिस तरह भारत सरकार ने इन लोगों को सहज स्वीकारा वह भारतीय मानसिकता दर्शाता है क्योंकि इन में से अधिकांश निचली जातियों के थे. उन को जन्म के कारण नीचा दर्शाया गया. दोनों देश एक सा बन रहे हैं. भारत अमेरिका जैसा अमीर बनेगा, यह तो नहीं हो सकता लेकिन अमेरिका अगर नहीं सुधरा तो उस का पतन अवश्य हो सकता है. अमेरिका के ‘मागा’ लोग विध्वंसक हैं, निर्माणक नहीं, तो वहीं भारत के कट्टरपंथी भी विध्वंसक हैं, विनाश करना जानते हैं. सरकारी बलबूते पर कुछ दिखावटी निर्माण कर लेना उन्नति नहीं है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें