Make In India : जो सवर्ण भारतीय प्रवासी अमेरिकी धरती पर भारत में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था पर हाएतौबा मचाते रहे और मजे से वहां अश्वेत यानी अल्पसंख्यक आरक्षण का लाभ उठा रहे, वे अब ट्रंप के आने के बाद अपना माथा पीटने पर मजबूर हुए हैं, जाने क्यों?

अमेरिका में जौन एफ कैनेडी व मार्टिन लूथर किंग के आदर्शों से प्रेरित साल 1960 में अल्पसंख्यकों को नौकरियों में अवसर देने वाला आरक्षण लागू किया गया था, लेकिन श्वेत बहुसंख्यक समुदाय की लगातार मांग थी कि इस आरक्षण को खत्म किया जाए. डोनाल्ड ट्रंप ने आज उसी सोच का नेतृत्व कर किया है. ट्रंप ने इस आरक्षण को खत्म करने का फैसला किया है. इस में कुल 32 लाख फेडरल कर्मचारियों में से 8 लाख कर्मचारी इसी आरक्षण के तहत नौकरी प्राप्त किए हुए हैं और इसी आरक्षण का लाभ उठाते हुए तकरीबन 1 लाख भारतीय भी नौकरी कर रहे थे.

गौरतलब है कि यह नियम प्राइवेट सैक्टर पर भी लागू था. गूगल, फेसबुक, वालमार्ट,अमेजन, मैक डोनाल्ड आदि कंपनियों ने इस फैसले को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया है. ज्ञात रहे कि ज्यादातर भारतीय प्रवासी इन्हीं कंपनियों में पेशेवर हैं. इस बंदी के बाद बड़ी आबादी बेरोजगार हो गई है. ये प्रवासी भारतीय भारत में लागू संवैधानिक आरक्षण को गालियां देते हुए अमेरिका में आरक्षण लाभ ले रहे थे.

इधर, ट्रंप की जीत के लिए भारत में भी लोग हवनयज्ञ कर रहे थे. उसी सोच वाले लोग भारत की सत्ता पर काबिज हैं. भारत में सीधा फैसला तो नहीं लिया जा सकता क्योंकि आरक्षण का विरोध करने वाली स्वर्ण आबादी खुद अल्पसंख्यक है इसलिए अघोषित मोनोपोली के तहत आरक्षण के मायने बदल दिए गए हैं. निजी सैक्टर में आरक्षण लागू ही नहीं किया जा सका तो बड़े पदों पर इंटरव्यू के कारण पहुंचने ही नहीं दिया गया और खाली पदों को न भर कर खत्म किया गया. न्यायपालिका में आरक्षण लागू नहीं है. 55% ओबीसी आबादी को 27% के दायरे में सीमित कर दिया गया और सरकारी उपक्रमों का निजीकरण कर के आरक्षण खत्म कर दिया.

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