हम आर्मी के लोगों की जिंदगी बहुत कठिन होती है. घर-परिवार सबसे दूर सीमा पर चौबीस घंटे की मुस्तैदी. महीनों बीत जाते हैं घरवालों से मिले. छुट्टी भी जल्दी मंजूर नहीं होती है. मगर इस बार तो मेरा घर जाना वाकई बहुत जरूरी था. छोटे भाई की शादी थी. कई महीने पहले मैंने हफ्ते भर की छुट्टी के लिए आवेदन भेजा था. बड़ी मुश्किल से छुट्टी मंजूर हुई थी. अगर इतना जरूरी न होता तो मैं न लेता मगर घर में बड़े के नाम पर सिर्फ मैं और मां ही थी. सारी तैयारियां होनी थीं. रंजीत इंजीनियर है. बंगलुरु की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में लगा है. पद भी अच्छा है पैसे भी. उसे भी फुर्सत कम ही मिलती है. ऑफिस की जिम्मेदारियां बहुत हैं कंधे पर. रंजीत को भी अपनी शादी के लिए मुश्किल से ही छुट्टी मिली थी. हम दोनों भाई अभी तक कुंवारे थे मगर अब दोनों में से एक की तो बहुत जरूरी थी. पापा की मृत्यु के बाद अब घर में मां की देखभाल के लिए कोई भी नहीं था. उनकी भी उम्र हो रही थी. बीमार पड़ जातीं तो कोई डॉक्टर के पास ले जाने वाला भी पास न होता था. मैं सीमा पर और भाई बंगलुरु में. खैर, उसकी शादी एक सुंदर और सीधी सादी घरेलू लड़की से तय हो गयी थी, जो मां के साथ ग्वालियर में ही रहने को तैयार हो गयी थी.

शादी वाले दिन सारे रिश्तेदार घर में जमा थे. शाम होते-होते रंजीत को घोड़ी पर बिठाने सहित बारात की सारी तैयारियां चरम पर पहुंच गयीं. सारे के सारे लोग सजने-धजने में जुटे थे. मां की खुशी तो वर्णन से बाहर थी. पूरा घर रोशनी में नहाया हुआ था. घोड़ीवाला दरवाजे पर शाम से ही पहुंच गया था. बैंड वाले भी अपना तामझाम लेकर जमा थे. बीच-बीच में संगीत की सुरलहरियां गूंज उठती थीं. शाम घिर आयी थी. मां ने मुझे आवाज लगा कर कहा कि मैं जाकर छोटे को उसके कमरे से ले आऊं, बारात उठने में देर हो रही है. दो घंटे तो रास्ते में ही नाचते-गाते ही निकल जाएंगे.

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