रोमा को एक युवक से प्रेम हो गया था. वैसे इस उम्र में प्रेम होना स्वाभाविक भी है, लेकिन जो स्वाभाविक नहीं था, वह भी हुआ, जिस ने उस की प्रेमखुशी पर ग्रहण लगा दिया. प्रेमरोग के साथसाथ उसे पता चला कि उसे कैंसर का भयंकर रोग भी लग गया है. प्रेम सुमन पुष्पितपल्लवित होने से पहले ही मुरझा गया. वह कैंसर की भयंकर अग्नि में स्वाहा हो गया, पर क्या प्रेम वास्तव में परीक्षा में हार गया था? हां, सतही प्रेम तो परीक्षा में अवश्य हारा था पर वास्तविक प्रेम...
रोमा के विचार सीढ़ीदरसीढ़ी उस के जेहन में उतरते चले गए. 20 साल की उम्र में रोमा ही क्या कोई भी युवती अधिकतर प्रेमसंबंधों की कल्पना में ही डूबतीउतराती है. कैंसर से दोचार होने की कौन सोचता है, पर रोमा पर पड़ती प्रेम फुहार अभी उसे अपने प्रेम में सराबोर भी नहीं कर पाई थी कि उस पर कैंसर का पहाड़ टूट पड़ा.
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रोमा सोच में डूबती चली गई. उस की सोच बचपन के आंगन में उतरती चली गई और वह उन्हीं यादों में खोती चली गई. दादी और मां की हिदायतें कि हमारे यहां डेटिंग की प्रथा नहीं है... तुम बड़ी हो रही हो, संभल कर चलो, कहीं प्यारव्यार के चक्कर में न पड़ जाना... अपनी मर्यादा में रहना... आदि हिदायतें उसे याद आ गईं.
जैसेजैसे वह बड़ी होती गई हिदायतें उस से चिपकती चली गईं. तन से ही नहीं मनमस्तिष्क पर भी जोंक की तरह चिपक गईं और ये हिदायतें मेरा सुरक्षाकवच बन गई थीं मैं ककूना की तरह खुद में सिमटती चली गई. पर आखिर कब तक ऐसा संभव था. रोमा का यौवन धीरेधीरे उस पर हावी हो रहा था. अब उस के जीवन में रोमांस करवटें बदलने लगा. हिदायतें हिदायतें बन कर ही रह गईं. अब यौवन के कदम उस की दहलीज लांघने लगे और एक दिन उस ने सैम के प्यार में खुद को बंधा पाया.