जब आमजन महामारी से जूझ रहा था तब कई हस्तियों की मौते हुईं. जिन हस्तियों की मौतें हुईं, उन
में से एक का जिक्र न के बराबर हुआ. यह एक ऐसा शख्स था जो किसी भी नेता या अभिनेता से कहीं अधिक लोकप्रिय और आम लोगों के ज्यादा करीब था. इस का नाम था रतन खत्री और उपनाम सट्टा या मटका किंग.

आंकड़ों के इस सौदागर ने 5 दशक तक ठसके से देश भर में सट्टे का अपना कारोबार चलाया लेकिन कभी कोई कानून उस का कुछ नहीं बिगाड़ सका. यह और बात है कि आम भारतीय की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा रहे रतन खत्री की मौत बेहद खामोश और सादगी भरी रही, जबकि उस ने एक चमकदमक भरी जिंदगी को जिया और लाखोंकरोड़ों मेहनतकशों के अलावा मध्यमवर्गीय लोगों को भी सट्टे की ऐसी लत लगाई कि कई तो इस में बरबाद और कंगाल हो गए.

इस में कोई शक नहीं कि वह उन बिरले लोगों में से था, जिन के पास एक आला दिमाग और जोखिम उठाने की कूवत होती है. कोई भी रतन खत्री के अतीत के बारे में कुछ खास नहीं जानता सिवाय इस के कि भारतपाकिस्तान के बंटबारे के वक्त सिंधी समुदाय का यह किशोर मय परिवार के पाकिस्तान से भारत आया था. यह परिवार भी दूसरे शरणार्थियों की तरह खानेपीने को मोहताज था. पचास के दशक में मुंबई में देश भर के लोग आ कर बस रहे थे, इन में से अधिकांश मजदूर थे. इसी दौर में मुंबई में कपड़ा मिलों का बोलबाला शुरू हुआ, जिस के चलते मजदूरों की कई छोटीबड़ी यूनियनें वजूद में आईं, जिन के दम पर कम्युनिस्ट यहां खूब फलेफूले

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