Download App

क्लब क्रोलिंग : भाग 2

डांस करतेकरते कर्ण थक चुका था, बोला, ‘यहां बहुत शोर है. चलो, कहीं और चलते हैं.’ इतने में थौमस, मिस्टर कन्फ्यूज बोले, ‘आज कुछ नई जगह आजमाते हैं.’

‘कौन सी ऐसी जगह है जो हम ने नहीं देखी,’ जस्सी ने पूछा?

‘गे क्लब.’

गे क्लब का नाम सुनते ही सब के कान खड़े हो गए.

‘तजरबे के लिए,’ थौमस ने सकपकाते हुए कहा.

‘तजरबा ही सही. देयर इज औलवेज अ फर्स्ट टाइम, हर्ज ही क्या है?’

इतना सुनते ही तीनों के हंसी के फौआरे छूट पड़े.

‘हंस क्यों रहे हो? मजाक नहीं कर रहा.’

थोड़ी हिचकिचाहट के बाद तीनों बड़ी उत्सुकता से गे क्लब की ओर चल पड़े. ऐश थका हुआ था क्योंकि अभीअभी वह नाट्य प्रदर्शन कर के आया था. गे क्लब पहुंचते ही वे हक्केबक्के रह गए. पुरुष महिलाओं के भेष में और महिलाएं पुरुषों के भेष में. पूरे मेकअप और विग के साथ, उन के हावभाव और व्यवहार से स्त्रीपुरुष के भेद का अनुमान लगाना कठिन था. अंगरेज, अफ्रीकन, चीनी, भारतीय सभी स्त्रीपुरुष गे थे. कर्ण, ऐश और जस्सी का यह पहला अनुभव था.

‘देख कर्ण, थौमस कैसे सब से घुलमिल कर बातें कर रहा है,’ ऐश ने कहा, ‘मुझे तो लगता है कि वह यहां पहले भी आ चुका है.’

‘ऐश, मेरा तो यहां दम घुट रहा है. लगता है हम किसी दूसरे लोक में आ पहुंचे हैं,’ कर्ण ने घबराते हुए कहा.

‘देखदेख कर्ण, वह लगातार मुझे निहार रही है. मुझे डर लग रहा है,’ ऐश ने घबरा कर कहा.

‘निहार रही नहीं, निहार रहा है. उस की दाढ़ी देख, उस के हाथ देखे हैं, एक थप्पड़ मारा तो मुंह दूसरी तरफ मुड़ जाएगा. उस की मोटीमोटी टांगें देख, जिस ने गुलाबी टाइट्स डाली हैं. वह देख, नीली स्कर्ट वाली. पिछले आधे घंटे से उस की नजरें तुझ पर टिकी हैं. देखदेख, कितने प्यार से तुझ पर फ्लाइंग किसेज फेंक रही है,’ जस्सी ने मुलायम सी मुसकान फेंकते हुए कहा.

‘यार, कहां फंसा दिया थौमस ने. कोई आदमी आंख मारता है, कोई चुंबन फेंकता है, कोई इशारों से बुलाता है. सभी की नजरें हम पर टिकी हैं. जैसे हम अजायबघर से भाग कर आए हों. ऐश, तैयार हो जा, वह तेरी तरफ आ रहा है. लगता है तुझ

पर उस का दिल…’

‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया?’

‘यह तेरे मेकअप का कमाल है,’ जस्सी ने कहा.

‘हाय, आय एम रौबर्ट,’ उस ने मटकतेमटकते हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘वुड यू लाइक अ डिं्रक?’ उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही रौबर्ट दोस्तों के लिए बीयर ले आया. 1 नहीं, 2 नहीं, 3 बार. हर बार वह ऐश के करीब आने की कोशिश करता रहा. आखिर में उस ने ऐश की ओर अपना हाथ डांस के लिए बढ़ा ही दिया. ऐश कांप रहा था. रौबर्ट उन पर पैसा लुटाए जा रहा था. यहां तक कि उस ने बीयर बार के काउंटर पर कह दिया था कि इन्हें जो भी चाहिए, दे देना. पैसे मेरे खाते में डाल देना. रात का 1 बज चुका था.

‘मेरा दम घुट रहा है, चलो घर चलते हैं,’ ऐश ने कहा.

‘नाइट इज स्टिल यंग, वाय डोंट यू कम टू माई प्लेस, फौर ए डिं्रक,’ रौबर्ट ने खुशी से उन्हें आमंत्रित करते हुए कहा.

अब तक वे चारों रौबर्ट की इतनी शराब पी चुके थे कि मना करने की गुंजाइश ही नहीं रही. ऐश मन ही मन दुखी हो रहा था. थौमस ने किसी से बिना पूछे ही हां कर दी. क्लब से निकलतेनिकलते उन्हें करीब 2 बज गए. जैसे ही ‘गे क्लब’ से बाहर निकले तो रौबर्ट की काले रंग की लेटेस्ट रजिस्ट्रेशन की लिमोजीन शोफर के साथ खड़ी थी. यह देख कर चारों के मुंह खुले के खुले रह गए.

जस्सी के मुंह से निकला, ‘वाओ.’

चारों चुपचाप गाड़ी में बैठ गए. लिमोजीन हवा में ऐसे भाग रही थी मानो सारथी रथ को खींचे ले जा रहा हो. जैसे ही लिमोजीन रौबर्ट के पेंटहाउस के सामने रुकी, सब की आंखें चौंधिया गईं. रौबर्ट ने पेंटहाउस बड़े सलीके और शौक से सजाया था. एकएक कमरा अपनी सजावट की व्याख्या कर रहा था. छत पर हराभरा बगीचा, तारों की छांव में हलकेहलके रंगबिरंगे फूलों की महक वातावरण को महका रही थी. धीमीधीमी चांदनी पत्तों की ओट से झांक रही थी. सबकुछ होते हुए भी एक अजीब सी शून्यता थी वहां. एक खोखलापन, खालीपन. उन्होंने इतना भव्य पेंटहाउस जीवन में पहली बार देखा था. रौबर्ट की नजरें निरंतर ऐश पर टिकी हुई थीं. वह बारबार किसी न किसी बहाने ऐश के निकट आ ही जाता, अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने की ताक में. ऐश की स्थिति एक हवाई जहाज में बैठे यात्री की तरह थी, जिस के हवाई जहाज में कोई तकनीकी खराबी हो गई हो. उस की सांस अंदर की अंदर, बाहर की बाहर. रौबर्ट विनतीपूर्वक बोला, ‘ऐश, क्यों न हम दोनों यहां मिल कर रहें. मैं तुम्हें बहुत खुश रखूंगा.

ऐश कभी कोई बहाना बना कर बाथरूम में जाता, कभी कर्ण और कभी जस्सी से बातें करने लगता. ऐश पिंजरे में बंद पंछी की भांति वहां से उड़ जाना चाहता था. रौबर्ट गिड़गिड़ाए जा रहा था. ‘प्लीज ऐश, केवल एक रात.’

ऐश पर उस की याचना का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. ऐश को रौबर्ट का प्रस्ताव बड़ा अटपटा सा लगा. कर्ण तथा जस्सी ने रौबर्ट को समझाने का बहुत प्रयत्न किया. थौमस ने भी ऐश को समझाया, ‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.’

‘क्या खाक ठीक हो जाएगा?’

‘रौबर्ट अच्छा आदमी है. आज थोड़ी ज्यादा पी ली है,’ थौमस ने रौबर्ट की पैरवी करते हुए कहा.

‘तुझे हमदर्दी है तो बिता ले रात इस नामर्द के साथ,’ कर्ण क्रोध में बोला.

‘लेकिन उसे तो ऐश चाहिए,’ थौमस ने कहा.

‘सब तेरा ही कुसूर है, तू ने ही डाला है इस मुसीबत में. अब तू ही निकाल इस का हल. बाय द वे, तू क्यों नहीं सो जाता?’

‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं ही…नो प्रौब्लम.’

इतना सुनते ही तीनों के होश उड़ गए. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ. तीनों सोच में थे कि क्या वे सचमुच थौमस को जानते हैं?

‘मान गए थौमस, बड़ी चतुराई से छिपाया है यह राज तुम ने,’ कर्ण ने कहा.

‘तुम ने क्या सोचा था अगर बता देते तो क्या हम तुम्हारे दोस्त न रहते? यार, हम लोगों ने स्कूल से अब तक का सारा सफर साथसाथ तय किया है. अब यह लुकाछिपी शोभा नहीं देती. मेरे दोस्त, मेरा दिल तेरे लिए रोता है. मैं तो नृत्य के शो में कुछ घंटों में मुखौटा चढ़ा कर दुखी हो जाता हूं और तू इतने वर्षों से… कब तक जिएगा दोहरा जीवन? उगल डाल जो मन में है,’ ऐश ने उसे समझाते हुए कहा.सब की आंखें भर आईं.

हमदर्दी के दो बोल सुनते ही थौमस रोतेरोते कपड़े की तह की भांति खुलता गया, बोला, ‘बचपन से ही अलग सी भावनाओं से जूझता रहा. गुडि़यों से खेलना, चोरीछिपे बहन के कपड़ों और उस के मेकअप को देखना, छूना व सूंघना आदि. पहले तो दूसरे लिंग के प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक सा लगा, जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, मैं लड़कों की ओर आकर्षित होने लगा. यूनिवर्सिटी में भी चला गया, पर अभी तक किसी गर्लफ्रैंड को घर नहीं लाया. घर वालों को चिंता होने लगी. लड़कियां मेरी ओर आकर्षित होतीं जबकि मैं लड़कों की ओर. मैं करता भी क्या? बेबस था. ‘मातापिता को लगा, शायद उन की परवरिश में कोई कमी रह गई है. आप लोग सोचते होंगे, अंगरेज हूं, घरवालों ने सरलता से स्वीकार कर लिया होगा. नहीं, ऐसा नहीं है. अंगरेजों की भी मान्यताएं हैं, सीमाएं हैं, संस्कार हैं. इन्हीं संस्कारों के कारण कभी किसी का पूछने का साहस नहीं हुआ. मेरी इस स्थिति को अनदेखीअनसुनी करते रहे. मैं अपनी व्यथा समेटे ककून में घुसता गया. नौकरी मिलते ही अपना फ्लैट लेने की ठान ली.

वृद्धाश्रमों में बढ़ रही बुर्जुगों की तादाद

यूपी के संतकबीर नगर जिले की रहने वाली 65 साला उमलिया देवी के पास 7 कमरों का खुद का मकान है. लेकिन आज वह बस्ती जिले में सरकार द्वारा संचालित एक वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने को मजबूर हैं. वृद्धाश्रम में जीवन गुजार रही उमलिया देवी से जब वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने का कारण पूंछा. तो उन्होंने बताया की उनके पति गन्ना महकमें में अधिकारी थे. एक दिन अचानक ही उनकी मौत हो गई तो उमलिया देवी ने परिवार संभाला और पति के मौत के बाद मिले पैसों से उन्होंने ने बेटे और बहू के लिए सात कमरों का मकान बनवा दिया. इसके कुछ दिनों बाद ही बहू ने उनके पति के मौत के बाद मिले पैसे अपने बैंक खातों में ट्रांसफर करवा लिए. उसके बाद बहू ने उनके साथ दुर्व्यवहारकरना शुरू कर दिया. वह न तो उमलिया देवी को खाना देती थी और न ही सही से बात करती थी.

इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद उनकी बहू और पोतों ने उमलिया को घर से निकाल दिया. बुढापे में घर से निकाले जाने के बाद उमलिया ने कुछ दिनों सड़कों पर गुजारे कई रातें भूखे पेट कटी फिर एक दिन किसी ने उन्हें वृद्धाश्रम में ले आकर छोड़ दिया. तब से वह वहीँ की होकर रह गई हैं. बुढापे में जब उमलिया को अपनों के प्यार और देखभाल की ज्यादा जरूरत थी तो उन्हीं लोगों ने उन्हें सड़क पर छोड़ दिया. अपनों के दिए इस दर्द को बताते बताते उमलिया की आँखों में आंसू आ जाते हैं.
वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहें ज्यादातर लोगों की कहानी उमलिया से जैसी ही है. जो अपने बेटे-बहू और बेटियों के दुत्कार के चलते अपना अंतिम समय वृद्धाश्रमों में काटने को मजबूर हैं.

ये भी पढ़ें- धर्म और राजनीति के वार, रिश्ते तार तार

एकल परिवार बन रहें है वजह
जिन बुजुर्गों को बुढापे में सहारे की ज्यादा जरुरत होती है उन्हीं बुजुर्गों को उनके अपने सगे इस लिए वृद्धाश्रमों में छोड़ रहें हैं क्यों की उनकी उपस्थिति परिवार में खटकने लगी है. इसका एक कारण एकल परिवारों की बढती संख्या है इन परिवारों में बेटे-बहू माँ-बाप के सवालों और देखभाल से दूर भाग रहें हैं. जब की बेटे बहुओं को यह पता होता है जिस तरह का व्यवहार वह अपने माँ-बाप के साथ कर रहें हैं एक दिन वह भी बुढ़ापे  का शिकार होंगें और उन्हें भी इसी तरह घर की बेकार चीज समझ कर दरकिनार कर दिया जाएगा.

जिसने मजदूरी कर पाला उनसे ही कर लिया किनारा
जो माँ बाप अपने बच्चों को दिन रात मेहनत मजदूरी कर अच्छी से अच्छी शिक्षा और देखभाल देनें की कोशिश करते हैं. यही बेटे जब पढ़-लिख कर किसी लायक हो जाते हैं तो बुढापे में यही माँ-बाप उन बच्चों पर भार लगने लगते है. जब माँ-बाप को अपने बच्चों की ज्यादा जरुरत होती है तभी बच्चों द्वारा इन्हें दुत्कार का सामना करना पड़ता है. बात-बात में बहुओं द्वारा जली कटी सुनना पड़ता है और बार-बार शर्मिन्दा होने की बजाय ये लोग वृद्धाश्रमों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं.एक वृद्धाश्रम में जीवन काट रहे राधेश्याम तिवारी और राम सुमेर नें बताया की उन्होंने अपने जवानी में बच्चों को पाल पोस कर काबिल बनाया और जब उन्हें बच्चों की ज्यादा जरुरत थी तो उन्हें घर से दूर वृद्धाश्रम में अपना जीवन काटना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- सोशल मीडिया: डिजिटल माध्यमों के लिए केंद्र सरकार के दिशा निर्देश

सम्पत्ति की लालच भी एक वजह
बस्ती जिले के एक वृद्धाश्रम में रह रहीं हरिशान्ति देवी एक बड़े व्यवसायी परिवार से हैं. इनके पास लाखों रूपये की संपत्ति थी उसके बावजूद वह वृद्धाश्रम में जीवन गुजारने को मजबूर हैं. इनके सगे सम्बन्धियों नें इनके संपत्ति पर कब्जा कर इन्हें घर से निकाल दिया. घर से निकाले जाने के बाद कुछ दिनों तक उन्होंने इधर-उधर अपनी रातें किसी तरह से काटी. आखिर इन्हें किसी नें वृद्धाश्रम में जाने की सलाह दी तब से वह  इसी वृद्धाश्रम में जीवन बितानें को मजबूर हैं. यही हाल तारामती देवी का भी है वह बस्ती जिले के बस्ती जिले के सुर्तीहट्टा मुहल्ले की रहने वाली हैं. वह एक बड़े व्यवशायी कृष्ण दयाल की पत्नी है. पति के मौत के बाद उनके करोड़ों की संपत्ति पर उनके ही भाई और भतीजों ने कब्जा कर उन्हें घर से निकाल दिया. आज वह वृद्धाश्रम में अपने जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहीं हैं.

देश में बढ़ रही हैं वृद्धाश्रमों संख्या
देश में जिस तेजी से वृद्धाश्रमों की संख्या में इजाफा हुआ है वह बेहद चिंता जनक है. अगर अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें तो लगभग सभी 75 जिलों में सरकार द्वारा वृद्धाश्रम संचालित किये जा रहें है. जब की कई निजी वृद्धाश्रम भी संचालित हैं. इससे यह सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कभी बड़े शहरों में संचालित होने वाले वृद्धाश्रमों नें छोटे शहरों में भी पाँव पसार लिया है. इससे एक बात साफ जाहिर है की इन वृद्धाश्रमों की उपयोगिता बढ़ रही है. परिवार में बुजुर्गों के सम्मान के गिरते ग्राफ का ही परिणाम है की वृद्धाश्रमों में क्षमता से अधिक लोग निवास कर रहें हैं. इनकी बढ़ती संख्या इनकी बढ़ती उपयोगिता यह बताने के लिए काफी हैं कि घर में बुजुर्ग माँ-बाप की क्या हैसियत रह गई है.

ये भी पढ़ें- लेडीज टौयलेट की कमी क्यों?

बुजुर्गों की बच्चों से दूरी बन रही घातक
अक्सर हम अपने दादा-दादी और नाना- नानी के किस्से सुनते आयें हैं. लेकिन देश में बढ़ रही वृद्धाश्रम संस्कृति ने इस पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है. लोग अपने घरों के बुजुर्गों के पास अपने बच्चों को जाने से रोकते हैं जब की वास्तविकता यह है इन बड़े बुजुर्गों के लिए उनके पोती-पोते जीवन का आधार होते है. इनके सानिध्य में आकर यह बड़े-बुजुर्ग अपने सारे दुःख दर्द भूल जाते हैं. छोटे बच्चों के लिए बुजुर्गों का सानिध्य बहुत जरुरी है. इनके पास रह कर बच्चे न केवल संस्कार सीखते है बल्कि इनमें मानवीय संवेदनाओं के विकास के साथ ही बुजुर्गों के प्रति सम्मान भी बढ़ता है. ऐसे में यह बच्चे बड़े होकर अपने माँ-बाप के बुढ़ापे का सहारा भी बनते हैं. इस लिए हमें अपने बच्चों को दादा-दादी के प्यार से महरूम होने से रोकना होगा और यह तभी संभव है जब हम उन्हें घर में उचित सम्मान देंगें.

बुजुर्गों के देखभाल पर बनीं नीतियाँ भी फेल
अपनों द्वारा बुजुर्गों की की जा रही उपेक्षा को देखते हुए सरकार द्वारा नीतियाँ और कानून भी बनाये गयें है. इसके बावजूद यह प्रभावी होता नहीं दिखता है. क्यों की जब इन बजुर्गों के साथ ऐसी परिस्थितियां पैदा होती है तब ये बुजुर्ग कोर्ट कचहरियों के चक्कर लगाने की स्थिति में नहीं होते हैं. ऐसे में सरकार को इन नीतियों में संसोधन कर इसे और भी प्रभावी बनाने की आवश्यकता है.

बदली सोच बुर्जुगों पर पड़ रही है भारी 
बस्ती और संतकबीर नगर जिले में वृद्धाश्रम संचालन से जुड़े शुभम प्रसाद शुक्ल बताते हैं. की जो लोग आज अपनों बहू-बेटों के उपेक्षा के चलते वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहें हैं. उन्हीं माँ-बाप ने बचपन में बड़े नाज से इन बच्चों को पाला और अपनी उंगली का सहारा देकर चलना सिखाया. कंधे पर बिठाकर दुनिया दिखाई, जब भी बच्चे बीमार हुए सिरहाने बैठ कर पूरी रात बिता दी.  लेकिन वक्त बदलनें के साथ जब यही बच्चे जवान होते हैं और माँ-बाप बूढ़े. तो यहीं बच्चे उन्हें सहारा देनें की बजाय उन्हें बेगाना समझ कर घर से दूर वृद्धाश्रमों में सिसकने के लिए छोड़ जाते हैं.

वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे लोगों के सवाल शुभम प्रसाद शुक्ल का कहना है की जो बुर्जुग यहाँ रहने के आते हैं उसमें से ज्यादातर बेटे-बहू के तिरस्कार का शिकार हैं. अपने चैथेपन में इन बुर्जुगों को परिवार में बेकार की वस्तु समझ कर एक कोने में घुटघुट कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. न तो परिवार के इन बुर्जुगों को समय से खाना दिया जाता है और न ही बीमारियों आदि की दशा में दवाएं दी जाती हैं.
बुढ़ापे अंतिम समय तो और भी दुखदाई हो जाता है जब बुर्जुगों का लैट्रिन पेशाब सब कुछ बिस्तर पर होने की स्थिति आ जाती है. ऐसी दशा में बेटे बहुओं द्वारा साफ-सफाई न किये जाने से सडन और कीड़े पड़ने जैसी स्थितियां भी देखीं गई है. इस स्थिति में पहुचनें के बाद वृद्धों का जीवन नारकीय हो जाता है. ऐसे नारकीय जीवन से निजात पाने के लिए अक्सर लोग अपने चैथेपन में वृद्धाश्रमों में शरण ले रहें हैं. क्यों की यहाँ न केवल इन बुर्जुगों की सही से देखभाल की जाती है बल्कि उन्हें समय से चाय, नास्ता और भोजन भी दिया जाता है. वृद्धाश्रमों में जीवन गुजार रहें लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए नियमित डाक्टर भी नियुक्त किये जाते हैं जिससे बीमार पड़ने की दशा में इन्हें समय पर ईलाज मिल जाता है.
वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे जितने भी वृद्धों से बात की गईउनका यही कहना है उन्हें घर में कबाड़ से भी बदतर समझा जाता है. जब तक शरीर में दम होता है तब तक परिवार में इज्जत मिलती है जैसे ही शरीर काम करना बंद कर देता है उन्हें  घर की खूबसूरती में दाग समझा जाने लगता है.

भारी बजट के बावजूद अव्यवस्था से जूझ रहें हैं वृद्धाश्रम
वृद्धों के कल्याण के मुद्दे पर काम करनें वाली गैर सरकारी संस्था हेल्पएज इंडिया के अनुसार देश में करीब 1500 वृद्धाश्रम हैं जिनमें करीब 70 हजार से भी अधिक  वृद्ध रहते हैं. जिसमें से ज्यादातर वृद्धाश्रम साल 2007 में लागू वृद्धजन भरण पोषण एक्ट के तहत केंद्र व राज्य सरकारों के साझे उपक्रम के तहत  भारी भरकम  आर्थिक सहयोग से एन जी ओ से संचालित कराई जा रहीं हैं. इसके तहत एक वृद्धाश्रम में 150 वृद्धों के रखनें की क्षमता पर लगभग 75 लाख से 1 करोड़ का बजट सरकार द्वारा दिया जाता है. जहाँ वृद्धों को निःशुल्क रहनें की व्यवस्था के साथ-साथ हर रोज अलग-अलग मीनू के हिसाब से खाना, साफ़ सुथरे बिस्तर, हर चार लोगों पर एक शौचालय, कूलर, पंखे, बिजली जनरेटर व इनवर्टर के साथ ही सभी के लिए खाने के बर्तन का सेट व बक्से, टीवी, फ्रिज, आर ओ , वाशिंग मशीन , कम्प्यूटर टेलीफोन सहित मनोरंजन के सभी साजोसामान होना जरुरी है.

इसके अलावा वृद्धों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए एम बी बी एस डाक्टर व मनोविज्ञानी को रखने का प्रावधान किया गया है. लेकिन सरकार द्वारा संचालित अधिकाँश वृद्धाश्रमों की हालत बदतर हैं. यहाँ सरकार द्वारा लाखों रूपये एन जी ओ को दिये जाते हैं लेकिन इन वृद्धाश्रमों में न ही मीनू के हिसाब से खाना दिया जाता है. और न ही साफ़-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था की जाती है.
वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे वृद्धो को भारी गर्मीं में भी टूटे-फूटे फंखों के बीच रखा जा रहा है. इनके बिस्तर पर बिछाई जाने वाली चादर हफ्तों तक न ही बदली जाती है और न ही साफ़ की जाती है. वृद्धाश्रमों में रह रहे तमाम ऐसे लोग जो अपने जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहें हैं उन्हें भी अपनें जूठे बर्तन खुद ही धुलनें को मजबूर किया जाता है.

इन वृद्धाश्रमों में रहे लोगों में से जब कोई बीमार पड़ता है तो उसका  स्थानीय लेवल पर किसी झोलाछाप डाक्टर से इलाज करा दिया जाता है. जिससे एम बी बी एस डाक्टर के ऊपर आने वाले मासिक खर्चे को एन जी ओ संचालक पूरी तरह से हडप जाते हैं. वृद्धाश्रमों में लोग इस लिए आते हैं की वहां अपने बेटे बहू के तानों से निजात मिलेगी लेकिन यहाँ भी उन्हें नारकीय जीवन जीनें को मजबूर हो जाना पड़ता है.
जब कभी सरकारी महकमेंसे जुड़ा कोई अधिकारी यहाँ जांच के लिए आता है. तो उस दिन मानक पूरा करनें के लिए ज्यादातर चीजें किराए पर मंगा ली जाती हैं. अगर अधिकारी वृद्धाश्रमों में कमियाँ पकड़ता भी है तो रिश्वत से उसका मुहं बंद कर दिया जाता है.

दान और चन्दे से चलता है वृद्धाश्रम सरकारी धन तो संचालक खाते हैं
वृद्धाश्रम संचालनसे जुड़े एक कर्मचारी नें अपना नाम ना छापनें की शर्त पर बताया की वृद्धाश्रमो के संचालन के लिए सरकार द्वारा मिलनें वाले धन को एन जी ओ संचालक खा जाते हैं. क्यों की इन वृद्धाश्रमों में आये दिन कोई न कोई अपना जन्म दिन माननें या दान करनें आ ही जाता हैं. जिनसे इन वृद्धाश्रमों को इनके जरिये नकद रूपये के साथ ही साजो-सामान, खाने पीने की वस्तुएं आदि दी जाती है. जिसका इन वृद्धाश्रमों द्वारा कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता है. इसके अलावा वृद्धों के घर वालों की तरफ से नकद धन दान में मिलता रहता है. इन सब से इन वृद्धाश्रमों को इतना दान मिलता है की उससे भी अच्छी खासी रकम की बचत हो जाती है. ऐसे में संचालन के लिए मिलने वाले धन से सिर्फ कर्मचारियों को सेलरी ही दी जाती है बाकी धन संचालक खुद  खा जाते हैं.

पेशे से चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नवीन सिंह का कहना है जिस तरह से बुजुर्गों को बेटे बहुओं द्वारा सताया जा रहा है. ऐसे में हिंसा तिरस्कार और जलालत सहने की बजाय ये बुजुर्ग वृधाश्रमों में रहना  ज्यादा बेहतर समझतें हैं. वहां इन वृद्धों की तरह सताए अपने जैसे ही तमाम लोग मिल जाते हैं जहाँ अपने ये लोग अपने दुःख दर्द आपस में साझा करते हैं. और हँसते-गाते हैं ऐसे में इनका दर्द काफी हद तक कम हो जाता है. उनका कहना है की लोगों को आधुनिकता की अंधी दौड़ से बाहर निकलना होगा और जिन बुजुर्गों ने हमें काबिल बनाया है उनका सम्मान करना सीखना होगा. उनके बुढापे उनके साथ बैठ कर उनसे प्यार भरी बातें करनी होगी. उनके समय से खाना दवा आदि का ख्याल रखना होगा. हम कोशिश करें की बुर्जुगों को कभी भी उन्हें अकेलेपन का एहसास न होने दें तभी हम वृद्धाश्रमों की बढ़ती तादाद पर रोक लगा पाएंगे.

क्लब क्रोलिंग : भाग 1

शुक्रवार की शाम थी. बर्मिंघम के अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समारोह के खत्म होने में 10 मिनट बाकी थे. लेकिन ऐश चिंतित था. वह समय पर सिंफनी हाल के बीयर बार में पहुंच भी पाएगा या नहीं, जहां उस के मित्र उस का इंतजार कर रहे होंगे. नृत्य शो के बाद उसे कम से कम 15 मिनट तो चाहिए ही, कपड़े बदलने तथा मेकअप साफ करने के लिए. उस ने सोच लिया था कितनी भी देर क्यों न लगे, इस बार तो वह मेकअप अच्छी तरह साफ कर के ही जाएगा. पिछली बार की तरह नहीं. यह सोच वह खुद ही मुसकरा उठा.

ऐश एक सरल, सुशील और मेहनती नौजवान है. उस के मातापिता का दिया नाम तो आशीष है किंतु अंगरेजों की सहूलियत के लिए उस ने अपना नाम ऐश रख लिया है. वह एक सफल नृत्यकार है. सदा ही अपने अच्छे व्यवहार से सभी को प्रभावित कर लेता है. उस की उम्र 26-27 वर्ष के करीब होगी. उस के चेहरे का भोलापन साफ झलकता है. अकसर सुना है कि कलाकार भावुक तथा संवेदनशील होते हैं. वह भी कुछ ऐसा ही है. तभी तो उस ने प्रेमबद्ध हो कर एक मुसलिम लड़की से विवाह कर लिया.

ये भी पढ़ें-धारावाहिक कहानी: अजीब दास्तान

कपड़े बदल कर ऐश ड्रैसिंगरूम से बाहर निकलने ही वाला था कि उस के मोबाइल की घंटी बजी. ‘‘हाय ऐश, भूलना मत. ठीक 10 बजे बीयर बार में पहुंच जाना. तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है.’’

‘‘सरप्राइज, कैसा सरप्राइज, कर्ण?’’

‘‘बता दिया तो सरप्राइज थोड़े ही रहेगा. वहीं मिलते हैं,’’ इतना कह कर उस ने फोन बंद कर दिया.

सरप्राइज का नाम सुन कर ऐश की टांगें कांपने लगीं. मन ही मन सोचने लगा, इस बार पिछले 6 महीने जैसा सरप्राइज न हो. उस की आंखों के सामने वही पुराना दृश्य घूमने लगा. जब इन्हीं तीनों दोस्तों कर्ण, थौमस और जस्सी ने उसे क्लबिंग के चक्कर में अविस्मरणीय अचंभे में डाल दिया था. अभी तक भूल नहीं पाया. बीता वक्त चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूम गया…

ये भी पढ़ें-#coronavirus: ये चार दीवारें

उस दिन हम पब में ही खाना खाने वाले थे. कर्ण ने प्रस्ताव रखा, ‘चलो आज क्लबिंग करते हैं.’ (क्लबिंग का मतलब यूके में जवान लड़केलड़कियां एक क्लब में 1 घंटा बिता कर फिर दूसरे क्लब में जाते हैं, फिर तीसरे में. रात के 3-4 बजे तक यही सिलसिला चलता रहता है. इसे क्लब क्रोलिंग भी कहते हैं.)

‘क्लबिंग? यार फिर तो बहुत देर हो जाएगी?’ ऐश ने चिंतित स्वर से कहा.

‘भूल गया क्या? आज हमारी पत्नियों की भी गर्ल्ज नाइटआउट का दिन है. वे चारों खाने के बाद थिएटर में ‘फैंटम औफ द औपेरा’ शो देखने जा रही हैं,’ थौमस ने बताया.

‘क्यों न हमें भी कभी पब, क्लब की जगह थिएटर, सिनेमा या प्ले के शो देखने जाना चाहिए,’ ऐश ने सुझाव देते हुए कहा.

ये भी पढ़ें-अदृश्य मोहपाश

‘तू भी न सिस्सी (लड़कियों) सी बातें करता है,’ जस्सी ने ऐश को छेड़ा. कर्ण उन्हें क्लब फौग में ले गया. फौग एक अपमार्केट क्लब है. तीनों जानते थे, जब कर्ण साथ है तो चिंता की कोई बात नहीं. कर्ण अमीर मातापिता का बिगड़ा नवाब है. 6 फुट का लंबा हट्टाकट्टा नौजवान, उस के शरीर पर कायदे से पहनी वेशभूषा, उस पर डिजाइनर अरमानी की जैकेट, दर्पण जैसे चमकते जूते, टौप मौडल की बीएमडब्लू, उस के रंगढंग, बोलचाल से उस के मातापिता की अमीरी की झलक साफ दिखाई देती है. यों कहिए, कर्ण पूर्वपश्चिम सभ्यता का इन्फ्यूजन है. ऐश एक परंपरावादी हिंदू गुजराती परिवार से है. कई वर्ष पहले उस के मातापिता अफ्रीका से आ कर यूके में बस गए हैं. वह लड़कियों जैसा नाजुक और शांत स्वभाव का है. कथक नृत्यकार होने के साथसाथ वह पिता के कारोबार में हाथ भी बंटाता है.

जसविंदर…अंगरेजों की सहूलियत के लिए उसे जस्सी नाम से पुकारा जाता है. वह एक वर्किंग क्लास से है. उस के मातापिता पढ़ेलिखे तो नहीं हैं पर बहुत मेहनती हैं. थौमस एक मध्यवर्गीय रूढि़वादी अंगरेज परिवार से है. उसे अपनी संस्कृति और मान्यताओं पर गर्व है. पिता चर्च के मान्य हैं. उपरोक्त चारों की दोस्ती नर्सरी स्कूल से चली आ रही है. नौकरी के अतिरिक्त वे एकदूसरे के बिना कोई काम नहीं करते. उन का बस चलता तो वे शादी भी एक ही लड़की से करते. पब में थौमस, ऐश तथा जस्सी ने तो आधाआधा लिटर बीयर ली. कर्ण, जो स्वयं को सब से अलग समझता था, ने एक गिलास रैडवाइन ली. ऐश और कर्ण तो बैठ कर गपें मारते रहे. थौमस तथा जस्सी क्लब के धुएं के अंधेरे में डांस में लीन हो गए.

डांस करतेकरते जस्सी एक अफ्रीकन महिला के संग चुटकियां लेने लगा. वह आयु में जस्सी से करीब 20 साल बड़ी थी. वजन उस का 100 किलो से कम नहीं होगा. जस्सी को उस के साथ मसखरियां करते 1 घंटा हो गया. सब बोर होने लगे तो ऐश बोला, ‘चलो, अब कहीं और चलते हैं.’ जस्सी छैलछबीले बाबू ने सुनाअनसुना कर दिया. इतने में वह अफ्रीकन महिला जस्सी की कमर में हाथ डाले उसे बाहर ले गई. शायद कुछ कहने की कोशिश कर रही थी. डांस फ्लोर पर बहुत शोर हो रहा था. जैसे ही जस्सी उस महिला के संग बाहर निकला, महिला जस्सी के गले में बांहें डालते हुए बोली, ‘बैब, वुड यू लाइक टु कम माई प्लेस टुनाइट, लव.’

इतना सुनते ही जस्सी के होशोहवास गुम हो गए. वह हवा की गति से भागा. अंदर पहुंचते ही बोला, ‘चलो, जल्दी यहां से चलो.’

‘बात क्या है?’

‘नहीं, कुछ नहीं, बाहर चल कर बताता हूं. चलो प्लीज,’ जस्सी ने घबराते हुए कहा.

‘कहां चलना है?’ थौमस ने पूछा.

‘कहीं भी, यहां से निकलो.’

जस्सी एक लापरवाह सा हिप्पी टाइप का था. घिसीपिटी जींस, कानों में बालियां, नाक में नथनी, लंबेलंबे बाल, यह उस की पहचान थी. बिलकुल नारियल की भांति, बाहर से ब्राउन अंदर से सफेद. वह एक सफल चित्रकार होने के साथसाथ एक संगीतकार भी था किंतु था बिलकुल डरपोक कबूतर. सब हैरान थे, ऐसा क्या हो गया है? चारों दोस्त एक और पब की ओर चल पड़े ‘औल नाइट लौंग क्लब.’ वहां सब एकएक बीयर ले कर बैठ गए. थौमस और कर्ण डांस करने में लीन हो गए. जस्सी की अभी तक हवाइयां उड़ी थीं. थौमस मिस्टर कन्फ्यूज अपने में ही मस्त. सदा औरतों का अभिनय करकर सब को हंसाता रहता. शायद इसीलिए अपनी टोली में बहुत लोकप्रिय था.

मैं सरकारी नौकरी में हूं लेकिन अभी तक मेरी शादी नहीं हुई मुझे समझ नहीं लड़की वाले मिलने आए तो क्या बोलूं?

सवाल

मैं अच्छी सरकारी जौब में हूं. अभी अविवाहित हूं. घरवाले शादी के लिए पीछे पड़े हैं. मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है इसलिए लड़की ढूंढ़ने का काम मैं ने घरवालों पर छोड़ दिया है. एक दो लड़कियों से मिल भी चुका हूं, दिक्कत यह आती है कि समझ नहीं आता कि उन से क्या पूछूं. मैं चाहता हूं कि मैं जब उन से सवाल पूछूं तो उन सवालों से मेरी मैच्योरिटी नजर आए, लड़की को मैं पढ़ालिखा, समझदार लगूं, जोकि मैं हूं. बताएं कि मुझे लड़की से कैसे सवाल करने चाहिए.

ये भी पढ़ें- मेरी उम्र 25 साल है मुझे जंकफूड खाने की आदत है, जिस वजह से मैं मोटी होती जा रही हूं?

जवाब

* आप के दिमाग में चल रही खलबली जायज है. लड़की से पहली मुलाकात में दिमाग में बहुत सवाल होते हैं लेकिन अलर्ट रहना पड़ता है कि कहीं कुछ गलत पूछ लिया तो गड़बड़ न हो, या कहीं ऐसा न पूछ लें कि वह बचकाना लगे या ऐसा न लगे कि बात करने का सलीका ही नहीं आता. आइए 2-4 सवाल आप को बताते हैं जो आप लड़की से बेहिचक पूछ सकते हैं और लड़की जवाब देते हुए आप से इंप्रैस भी होगी. पहला, लड़की से पूछें कि शादी को ले कर उस की उम्मीदें क्या हैं? इस से आप को पता चलेगा कि लड़की शादी के बारे में क्या सोचती है. दूसरा, लड़की अच्छा महसूस करती है कि उस का होने वाला पार्टनर उस के फ्यूचर प्लान के बारे में पूछे. लड़की को अच्छा लगता है कि लड़का उस के कैरियर और लक्ष्य के बारे में जानना चाहता है. तीसरा, यदि आप जानना चाहते हैं कि लड़की आप की आदतों से मेल खाती है या नहीं तो उस की रुचि, पसंदनापसंद, सोशल लाइफ के बारे में पूछें. पता चल जाएगा कि लड़की का स्वभाव कैसा है, क्या विचार रखती है, कैसे कपड़े पहनना पसंद करती है. चौथा, आप अरैंज मैरिज कर रहे हैं तो यह अहम सवाल जरूर पूछें कि क्या वह यह शादी अपनी मरजी से कर रही है. कई बार लड़की किसी और से प्यार करती है और परिवार के प्रैशर में आ कर शादी कर रही होती है, इसलिए इस सवाल से आप दोनों के मन से यह डर खत्म हो जाएगा कि दोनों की जिंदगी में कोई नहीं और आप एक फोर्स्ड अरैंज्ड मैरिज से बच सकते हैं

ये भी पढ़ें- पति बातबात पर गुस्सा करते हैं, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

गेहूं की कटान : वायु प्रदूषण और समाधान

लेखक- डा. प्राची जायसवाल

गेहूं की कटान : वायु प्रदूषण व समाधान हर साल रबी की प्रमुख फसल गेहूं की कटाई के दौरान वायु में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. खेतों में फसल के बचे अवशेष जलाए जाने से बहुत ज्यादा हानिकारक कार्बनिक पार्टिकुलेट और विषैली गैसें वातावरण में फैल कर उसे प्रदूषित कर देती हैं, वहीं दूसरी ओर वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर स्तर तक पहुंच जाता है और मिट्टी की उर्वरता में अत्यधिक कमी आती है. वैसे तो सरकार द्वारा फसल के अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है और उल्लंघन करने वाले लोगों पर वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत कार्यवाही भी की जाती है, पर इस के बाद भी यह समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण ने जहां शारीरिक श्रम को बहुत कम किया है, वहीं कई नई समस्याओं व चुनौतियों को जन्म भी दिया है. कुछ साल पहले जब किसान अपने हाथों से गेहूं की फसल की कटाई करते थे या श्रमिकों से कटाई करवाते थे, तो गेहूं की बालियों के साथ ही उस का तना भी काट लिया जाता था जो पशुओं को खिलाने के काम में लिया जाता था, लेकिन थ्रेशर आदि मशीनों से कटान के दौरान लंबा तना जिसे स्टौक या आम भाषा में नरई कहा जाता है, वह खेतों में ही रह जाता है.

अगली फसल बोने से पहले किसान को खेत तैयार करना होता है, जिस के लिए किसान जल्दबाजी और जानकारी की कमी के चलते सूख चुकी नरई/नरवाई को खेतों में ही जला देना सब से आसान व सस्ता रास्ता सम?ाते हैं. गेहूं की कटान और वातावरण प्रदूषण गेहूं की कटाई के दौरान वायु में भूसे के कण उड़ने लगते हैं, जिस के चलते वायु में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और प्रदूषण सूचकांक में भारी बढ़ोतरी होती है. पार्टिकुलेट मैटर 10 तो आसानी से कुछ देर में सैटल हो जाते हैं पर बहुत ज्यादा छोटे कण, जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर 2.5 कहा जाता है, वायु में बहुत लंबे समय तक तैरते रहते हैं व हवा के साथ उड़ कर कई वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में फैल कर उसे प्रभावित करते हैं. इन के चलते लोगों में खांसी, एलर्जी और सांस फूलने जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं. ऐसे में बच्चों, वृद्धों और सांस के मरीजों को सीधे धूल वाले स्थानों में नहीं जाना चाहिए और अगर जाना भी हो तो मुंह और नाक को मास्क या कपड़े से अच्छी तरह ढक कर ही बाहर निकलना चाहिए.

ये भी पढ़ें- गन्ना से बना रहे इथेनॉल

कृषि अवशिष्ट दहन और वायु प्रदूषण नरई को खेतों में जला देने के कारण वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. वातावरण में हानिकारक कार्बन डाईऔक्साइड, कार्बन मोनोऔक्साइड, नाइट्रस औक्साइड, सल्फर डाईऔक्साइड जैसी गैसों और कार्बनिक पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा बहुत ज्यादा हानिकारक स्तर तक पहुंच जाती है. वायु गुणवत्ता में गिरावट होने से लोगों की श्वसन क्रिया प्रभावित होती है. धुएं में कार्बन डाईऔक्साइड और कार्बन मोनोऔक्साइड की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जो किसानों को खेत में ही बेहोश तक कर सकती है. सल्फर डाईऔक्साइड और नाइट्रस औक्साइड गैसें अपनी अम्लीय प्रवृत्ति के चलते आंखों में और श्वसन तंत्र में जलन पैदा करती हैं. दमा व दूसरे श्वसन रोगों से ग्रसित लोगों को हानिकारक गैसों और छोटे कणों के चलते सांस लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. किसानों द्वारा फसल जलाने से एक ओर जहां प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है, वहीं भूसे के नष्ट हो जाने से पशुधन के लिए सूखे चारे का संकट खड़ा हो जाता है.

मिट्टी की उर्वरता पर गलत असर गेहूं की कटाई के बाद खेतों में जलाए जा रहे गेहूं की फसल के अवशेष न केवल सेहत पर गलत असर डाल रहे हैं, बल्कि अवशिष्ट जलाने से मिट्टी की उर्वरता भी कम हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि गेहूं की फसल के एक टन अवशेष जलाने से 6 किलोग्राम नाइट्रोजन, एक किलोग्राम फास्फोरस, 11 किलोग्राम पोटाश व दूसरे सूक्ष्म तत्त्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. इस के अलावा गेहूं की फसल के अवशेष जलाए जाने वाली जगह पर मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और उस मिट्टी में रहने वाले किसान के मित्र कीट भी मर जाते हैं और एक ग्राम मिट्टी में जो लगभग 20 करोड़ लाभकारी जीवाणु होते हैं, उन में से मात्र 15 लाख बचे रह जाते हैं. अन्य समस्याएं गेहूं के भूसे को खेतों में ही जला देने के कारण उठते धुंए से सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है. बहुत ज्यादा धुएं के चलते रात में वाहन संतुलन बिगड़ने के कारण दुर्घटनाएं होने का डर बना रहता है. कानूनी प्रावधान गेहूं का भूसा जलाना गैरकानूनी है. वायु प्रदूषण प्रतिबंध और नियत्रण अधिनियम 1981 की धारा 19 (5) के तहत इसे दंडनीय अपराध माना गया है.

ये भी पढ़ें- Holi Special: होली से पहले जानें पलाश के बारे में, रंग बनाने में होता है

कानून की अनदेखी करने पर दोषी किसान आईपीसी की धारा 188 सहित वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981 के तहत भी दंड का भागीदार होता है. तेजी से बढ़ रहे वायु प्रदूषण को ले कर नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) बहुत सख्त है. कृषि अवशिष्टों को खेतों में ही जला दिए जाने की घटनाओं के निरीक्षण के लिए सैटेलाइट से मौनिटरिंग भी की जाती है, ताकि खेतों में फसलों के अवशेष आदि में आग लगाए जाने की स्थिति का तुरंत पता लगा कर उसे बु?ाया जा सके. इस काम में कई राज्यों की सरकारें स्पेस एप्लीकेशन सैंटर आदि की मदद लेती हैं. वैकल्पिक उपयोग कृषि अवशिष्टों की समस्या का समाधान बिलकुल भी मुश्किल नहीं है. इस के अनेक वैकल्पिक उपयोग उपलब्ध हैं, जो बहुआयामी हैं, जिन्हें अपना कर वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है व पशु आहार की उपलब्धता तय की जा सकती है, भूमि की उत्पादन क्षमता व उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है और साथ ही बहुत ज्यादा मुनाफा भी कमाया जा सकता है.

* आजकल गेहूं की फसल को कंबाइन मशीन से कटान के बाद रीपर से उस का भूसा बना लेते हैं या फिर फसल अवशेषों को खेत में जोत कर खाद बनाई जाती है. फसल अवशेष जलाने के बजाय खेत में ही उस की जुताई करने से भूमि की ऊपजाऊ शक्ति बढ़ती है और खरपतवारों को रोकने में मदद मिलती है.

* भूसे को पशुधन के चारे के रूप में उपयोग तो किया ही जाता है, साथ ही कई स्थानों पर इसे मशरूम उत्पादन के लिए एक बेस के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है. * फसल अवशेषों का पल्प बना कर उस से डिस्पोजेबल और बायोडीग्रेडेबल थालियों, दौनों व गिलासों को बना कर लघु व माध्यमिक उद्यम इकाइयां लगा कर किया जा सकता है. बायोमास गैसीफिकेशन पावर जनरेशन तकनीक द्वारा फसल अवशिष्टों से विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- अरबी की खेती ज्यादा फायदेमंद

* पायरोलिसिस की एक विशिष्ट तकनीक द्वारा नरवाई और पराली से बायोचार का उत्पादन किया जा सकता है, जो एक बहुत अच्छा फ्यूल होने के साथ ही अच्छा उर्वरक भी होता है.

* हाल ही में भूसे का उपयोग पौलीयूरिथेन फोम बनाने के लिए स्पेन में किया गया है, जिस से निर्माण और औटोमोबाइल क्षेत्रों में सीलेंट के साथसाथ कई तरह के सामान व थर्मल और ध्वनिक इंसुलेटर बनाए जाते हैं.

* ‘फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिए कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय क्षेत्रक योजना’ के तहत किसानों को इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनों को खरीदने के लिए 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.

साथ ही, इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना के लिए परियोजना लागत की 80 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.

कृषि विभाग द्वारा समयसमय पर किसानों के मध्य जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं, ताकि बहुपयोगी कृषि अवशिष्टों के जलने से होने वाले वायु प्रदूषण को समय रहते रोका जा सके, मिट्टी की प्राकृतिक उत्पादन क्षमता को बचाया जा सके और किसानों को फसल अवशेषों के प्रबंधन के विकल्पों की जानकारी दे कर सरकारी योजनाओं का फायदा लेने को बढ़ावा दिया जा सके.

Ajaz khan और eijaz khan के नाम पर कंफ्यूज लोगों को सफाई देते नजर आएं बिग बॉस 14 कंटेस्टेंट

बिग बॉस 14 खत्म होने के बाद से सभी के दिलों पर एजाज खान का नाम छाया रहता है. सोशल मीडिया से लेकर हर जगह एजाज खान का नाम छाया रहता है. एजाज खान भी अपने फैंस के ऊपर प्यार लुटाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं.

इन दिनों एजाज खान को लेकर ड्रग्स का मामला सामने आया है लेकिन लोग इस बात से बहुत ज्यादा कंफ्यूज है कि कौन से एजाज है जो ड्रग्स मामले में गिरफ्तार हुए हैं. साल 2010 के सीजन में नजर आ चुके एजाज खान ड्रग्स के मामले में पकड़े गए हैं. जिसके बाद से वह लगातार सुर्खियों में छाए हुए हैं.

ये भी पढ़ें- Indian Idol 12 के सेट पर रेखा ने दिया नेहा कक्कड़ को शादी का शगुन तो फैंस ने दिया ये रिएक्शन

लेकिन नाम को लेकर लोगों ने दोनों एजाज खान को आरोपी बता रहे हैं जिसके बाद से बिग बॉस सीजन 14 में नजर आ चुके एजाज खान ने लोगों को खूब सुना दिया है. वह लगातार अपने फैंस को समझाने कि कोशिश कर रहे हैं कि वह गिरफ्तार नहीं हुए हैं. उन्हें इस बात से कोई दिक्कत नहीं है. वह एजाज खान कोई और है. जिसे पकड़ा गया है. एजाज खआन अपनी सफाई देते हुए लिखते है कि मेरे नाम का स्पेलिंग एजाज है और मैं किसी मामले में गिरफ्तार नहीं हुआ हूं.

ये भी पढ़ें- Sana Khan ने बुर्ज खलिफा पर पति के साथ पी इतनी महंगी कॉफी, फैंस ने किया ट्रोल

आगे उन्होंने लिखा कि अगर आप भी गलतफहमी का शिकार हो रहे हैं तो अपना आंख चेक करा लें, मैंने चश्मा पहन रखा है. अगर आपको ऐसा लग रहा है तो आप भी मेरी तरह चश्मा पहन लें , शायद आपको सही इंसान नजर आ जाए.

ये भी पढ़ें- Indian Idol 12 : रेखा की ढ़ोलक की थाप पर गाना गाते नजर आएंगे पवनदीप

जिसके बाद एजाज ने दूसरा ट्विट करते हुए लिखा कि लोगों की  गलतफहमी को देखकर मैं तंग आ गया हूं. ये इंसान मैं नहीं हूं आपको अगर अब भी मैं गलत लगता हूं तो इससे ज्यादा मैं आपको सफाई नहीं दे सकता हूं. आगे आपको जो ठीक लगे वो करें. एजाज खान के ट्विट के बाद से लोग लगातार रिएक्शन दे रहे हैं.

Indian Idol 12 के सेट पर रेखा ने दिया नेहा कक्कड़ को शादी का शगुन तो फैंस ने दिया ये रिएक्शन

सोनी टीवी का सिंगिग शो इंडियन आइडियल 12 का अपकमिंग शो बेहद खास होने वाला है. अपकमिंग एपिसोड़ में रेखा इस शो में गेस्ट बनकर पहुंचने वाली हैं. रेखा इस शो में धमाल मचाने वाली हैं. साथ ही शो की जज नेहा कक्कड़ को रेखा से खास गिफ्ट मिलने वाला है.

रेखा से गिफ्ट पाने के बाद नेहा कक्कड़ को खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. बीते साल ही नेहा कक्कड़ शादी के बंधन में बंधी है. ‘ इंडियन आइडियल 12 के मंच पर नेहा कक्कड़ को रेखा से शादी का शगुन मिला है. जिसे पाकर नेहा कक्कड़ खुशी से फूले नहीं समा रही हैं.

ये भी पढ़ें- Sana Khan ने बुर्ज खलिफा पर पति के साथ पी इतनी महंगी कॉफी, फैंस ने किया ट्रोल

इस शो की सबसे अच्छी बात यह थी की शो के मंच पर ही रेखा ने नेहा कक्कड़ को अपने हाथों से साड़ी पहना दिया. जिसके बाद फैंस ने नेहा कक्कड़ और रेखा की जोड़ी की जमकर तारीफ की है.

ये भी पढ़ें- Indian Idol 12 : रेखा की ढ़ोलक की थाप पर गाना गाते नजर आएंगे पवनदीप

साड़ी पहनने  के बाद नेहा कक्कड़ को रेखा ने ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिया, उनकी शादीशुदा जिंदगी के लिए उन्हें ढ़ेर सारी शुभकामनाएं दी हैं. वैसे तो ये बात बिल्कुल ही सच है कि रेखा जिस भी महफिल में जाती है अपनी मौजूदगी से चार चांद जरूर लगाती हैं.

रेखा का यह अंदाज फैंस को काफी ज्यादा पसंद भी आता है. इंडियन आइडियल के मंच पर रेखा ने जमकर डांस किया अपनी पसंदीदा कंटेस्टेंट के साथ. इसके साथ ही रेखा ने अरुणिता कांजीलाल के गाने से इम्प्रेस होकर उन्हें शॉल गिफ्ट किया .

ये भी पढ़ें- Bigg Boss फेम एजाज खान ड्रग्स मामले में हुए गिरफ्तार

वहीं लाइम लाइट बिटोरने में पवनदीप राजन कभी भी पीछे नहीं रहते हैं मौका मिलते ही पवनदीप ने रेखा को अपने हाथों से गुलाब थमा दिया.

 

खत्म हुआ तूफान : भाग 1

शाम के 5 बज रहे थे, 170 से 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हवाएं तथा समंदर की कई फुट ऊंची लहरों का शोर किसी भी इंसान को भयभीत करने के लिए काफी था. ऐसे में एक लड़की का बचाओबचाओ का स्वर आकाश के कानों में पड़ा. बगैर परवाह किए वह चक्रवाती तूफान ‘हुदहुद’ के चक्रव्यूह को भेदता हुआ पानी में कूद पड़ा और उसे बचा कर किनारे की तरफ ले आया. वह उस लड़की को पहचानता नहीं था, मगर बचाने का हर संभव प्रयास कर रहा था. समुद्रतट पर उसे लिटा कर वह उस के शरीर में भरा पानी निकालने लगा. थोड़ी देर में लड़की ने आंखें खोल दीं. उसे होश आ गया था मगर वह ठंड से कांप रही थी. आकाश कुछ देर उसे देखता रहा. फिर उसे गोद में उठा कर सुरक्षित स्थान पर ले आया.

वह लड़की अभी भी भयभीत थी और आकाश को लगातार देख रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वह उस के साथ स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रही हो. आकाश उसे ले कर दूर एक टूटेफूटे घर की तरफ बढ़ गया. घर के दरवाजे पर एक बूढ़ी खड़ी थी. आगंतुक की गोद में एक लड़की को देख बूढ़ी ने उन्हें अंदर आने दिया और पूछा, ‘‘क्या यह तुम्हारी बीवी है?’’

‘‘नहीं, दरअसल यह लड़की तूफान में फंस गई थी और डूब रही थी, इसलिए मैं इसे बचा कर यहां ले आया,’’ आकाश ने कहा.

ये भी पढें-Short Story: नई दिशा- आलोक के पत्र में क्या था?

‘‘अच्छा किया तुम ने. इसे ठंड लग रही होगी. ऐसा करो, तुम इसे मेरे बिस्तर पर लिटा दो. मैं इस के कपड़े बदल देती हूं. इस तूफान ने तो हमारा जीना ही दूभर कर रखा है. खाने के ऐसे लाले पड़ रहे हैं कि लूट मची हुई है. कल एक ट्रक सामान भर कर आने वाला था. खानेपीने की चीजें थीं उस में. मगर यहां पहुंचने से पहले ही सबों ने उसे लूट लिया. हमारे पास तक कुछ पहुंचा ही नहीं. अभी मेरा मरद गया है. शायद कुछ ले कर लौटे,’’ बूढ़ी बोली.

करीब 50 साल की थी वह महिला मगर दुख और परेशानियां उस की उम्र बढ़ा कर दिखा रही थीं. बूढ़ी के पास जो भी कपड़े थे, वह उन्हें ही ले आई और लड़की को पहनाने लगी. आकाश दूसरे कोने में खड़ा हो गया और कमरे का मुआयना करने लगा. यह एक छोटा सा कमरा था, जिस में बैड और किचन के कुछ छोटेमोटे सामानों के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था. एक कोने में खाली बरतन पड़े थे और बाईं तरफ एक रस्सी बंधी थी जिस पर 2-4 फटे कपड़े लटके हुए थे. 2 दिनों में हुदहुद की मार हर किसी के घर पर नजर आने लगी थी. बहुत से लोग मर चुके थे, तो बहुतों के घर बह गए थे. पूरे गांव में खौफ और बरबादी का मंजर था. ऐसे में आकाश को विशाखापटनम पहुंचना जरूरी था.

जब वह निकला था अपने गांव से, तो उसे हुदहुद के आने की खबर नहीं थी. मगर रास्ते में इस तूफान में वह पूरी तरह फंस गया था. उस की प्रेमिका दिशा उसी के कहने पर हमेशा के लिए अपना घर छोड़ कर उस से मिलने पहुंच चुकी थी और एक होटल में ठहरी हुई थी. आकाश उस के पास जाने की हड़बड़ी में था, मगर बीच में यह वाकेआ हो गया. वह क्या करता? लग रहा था जैसे रास्ता लंबा होता जा रहा है. बूढ़ी ने अब तक लड़की के कपड़े बदल दिए थे और उस पर कंबल डाल दिया था. इस के बाद वह गरमगरम चाय बना लाई और दोनों के हाथों में 1-1 प्याला दे दिया.

ये भी पढ़ें-इंसाफ-भाग 1: मालती को बार-बार किसकी बात याद आ रही थी?

लड़की अभी भी काफी परेशान और घबराई हुई लग रही थी. आकाश ने लड़की को समझाने का प्रयास किया कि वह घबराए न. वैसे आज वह खुद भी कम परेशान न था. एक तरफ तूफान का जोर और दूसरी तरफ प्रेमिका के पास पहुंचने की जल्दी. उस पर इस तूफान में मिली लड़की की जिम्मेदारी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. करीब 2-3 घंटे उस घर में गुजारने के बाद आकाश ने आगे जाना तय किया. मगर इस लड़की का क्या किया जाए, जो अभी भी बहुत ही घबराई हुई थी और ठीक से चल भी नहीं पा रही थी?

आकाश ने लड़की से पूछा, ‘‘अब बताओ, कहां छोड़ूं तुम्हें? तुम्हारा घर कहां है?’’

लड़की फफकफफक कर रोने लगी फिर रोतेरोते ही बोली, ‘‘मेरा घर तो डूब गया. मेरे तो केवल बाबा थे, उन्हें भी लहरें अपने साथ ले गईं. अब कोई नहीं है मेरा.’’ वह बोल कर फिर रोने लगी. आकाश उस के माथे पर हाथ फिराने लगा और बोला, ‘‘प्लीज, रोओ मत. मैं हूं न. कोई इंतजाम कर दूंगा. अभी चलो मेरे साथ, मैं ले चलता हूं तुम्हें.’’

थोड़ी देर में जब लड़की थोड़ी सामान्य हो गई तो आकाश ने आगे जाने की सोची. उस ने सहारा दे कर लड़की को उठाया तो वह दर्द से कराह उठी. शायद उस के पैर में गहरी चोट लगी थी. आकाश ने फिर से उसे गोद में उठा लिया और बाहर निकल आया. वह अब और रुक नहीं सकता था. काफी आगे जाने पर उसे एक बस मिल गई, जो विशाखापटनम ही जा रही थी. उस ने लड़की को बस में बैठाया और खुद भी बैठ गया. लड़की अब उसे कृतज्ञता और अपनेपन से देख रही थी. आकाश ने मुसकरा कर उस का सिर सहलाया और पहली बार गौर से लड़की को देखा. लंबे काले बालों वाली लड़की देखने में काफी खूबसूरत थी. रंग बिलकुल गोरा, चमकता हुआ. वह एकटक आकाश की तरफ ही देख रही थी. आकाश भी थोड़ी देर उसे देखता रहा फिर सहसा ही नजरें हटा लीं. उसे जल्द से जल्द अपनी प्रेमिका के पास पहुंचना था. वह दिशा को याद करने लगा. दिशा बहुत खूबसूरत नहीं पर अलग सा आकर्षण था उस के पूरे वजूद में. आकाश पूरी तरह दिशा की यादों में खो गया. लेकिन बस अचानक झटके से रुक गई तो उस का ध्यान बंट गया.

ये भी पढ़ें-Short Story: पंछी एक डाल के

दोबारा बस चलने पर आकाश एक बार फिर से दिशा के बारे में सोचने की कोशिश करने लगा मगर अब बारबार उस के जेहन में बगल में बैठी लड़की का खयाल आने लगा था. इतनी सुंदर है, अकेली कहां जाएगी? सहानुभूति के अलावा शायद एक अजीब तरह का रिश्ता भी जुड़ने लगा था उन के बीच. इसे प्यास लग रही होगी, उस ने सोचा. एक जगह बस रुकते ही आकाश की नजर सामने दुकान पर गई. पानी की 1 लिटर की बोतल उठाते हुए उस ने पूछा, ‘‘कितने की है?’’

‘‘100 रुपए की.’’

‘‘क्या? पानी की बोतल इतनी महंगी?’’

‘‘क्या करें भैया, इस तूफान की वजह से चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं.’’

देसी फ्रिज मटका: तपती गर्मी में दे ठंडी का एहसास

पीढ़ियों से, भारतीय घरों में पानी स्टोर करने के लिए मिट्टी के बर्तन यानी घड़े का इस्तेमाल किया जाता रहा है. आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इन्हीं मिट्टी से बने बर्तनो में पानी पीते हैं, उन्हें  मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू  बहुत भाती है. क्योंकि स्वास्थ्य की दृष्टि से मटके का पानी गले के लिए अच्छा होता है तथा फ्रिज के ठन्डे पानी की तुलना में इसका सेवन करना लाभदायक होता है. मटके के पानी एक बड़ा फायदा यह भी है कि यह प्राकृतिक तौर पर ठंडा तो होता  ही है साथ ही इससे बिजली की बचत भी होती है मटके में रखा पानी सही तापमान पर रहता है, ना बहुत अधिक ठंडा ना गर्म. इसलिए घड़े का पानी पीने से शरीर स्वस्थ रहता है.

ये भी पढ़ें- Holi Special : सुरक्षित और रंग बिरंगी ईकोफ्रैंडली होली

बाजार में कई तरह के मिट्टी के मटके और सुराही उपलब्ध हैं लेकिन अगर लेटेस्ट ट्रेंड की बात की जाए तो  इस समय आकर्षक हैण्ड पेंटेड रंग बिरंगे और खूबसूरत मटके मार्किट में उपलब्ध हैं जिसमें आपके वाटर फ़िल्टर की तरह छोटा नल भी  लगा होता है जिससे इसका प्रयोग करना  बहुत आसान हो जाता है.ये मटके न लेवल आपके घर की शोभा बढ़ाएंगे बल्कि आपको स्वस्थ भी रखंगे .मिटटी के बर्तनों में पानी की बोतल , दही ज़माने की स्टाइलिश हांडी भी उपलब्ध है.

ये भी पढ़ें- Sea Beach Manners: सागर किनारे,क्या करें और क्या नहीं

रोहिणी के रजापुर इलाके में सालों से ऐसे खूबसूरत  मटके बेचने वाले राजेश कहते हैं “गर्मियों में मटकों की मांग बढ़ जाती है. बड़ी बड़ी गाड़ियों में लोग हम से हजारों का सामान ले जाते हैं. साइज़ के हिसाब से 300 रुपये से लेकर 500-600 रुपये तक है, गुजरात की सफेद मिटटी से बने इन मटकों की फिनिशिंग बहुत अच्छी होती है.”

ये भी पढ़ें-Holi Special: होली के रंगों से भरें रूठे रिश्तों में रंग

मिट्टी का मटका प्यूरिफायर की तरह काम करता है. पानी की अशुद्धियों को मिट्टी और रेत के मिश्रण से बना मटका प्राकृतिक तरीके से सोख लेता है. मिट्टी से बने बर्तनों में बारीक छिद्र होते हैं, जिनसे छनकर बाहरी हवा मटके के अंदर प्रवेश करती है और उसे ठंडा करती है. मटके में पानी पीने वालों के लिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि स्टोर किये गए पानी को पहले उबालना और छानना चाहिए और  पानी के प्राकृतिक रूप से ठंडा होने के बाद जब  पानी कमरे के तापमान पर पहुँच जाए तो फिर आप इसे मटके या सुराही में एकत्रित करके रखें और ठंडा होने पर पीयें. मटके के पानी को धूल, कीड़ों तथा अन्य प्रदूषकों से बचाने के लिए मटके को हमेशा ढक कर रखें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें