लेखक- डा. प्राची जायसवाल

गेहूं की कटान : वायु प्रदूषण व समाधान हर साल रबी की प्रमुख फसल गेहूं की कटाई के दौरान वायु में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. खेतों में फसल के बचे अवशेष जलाए जाने से बहुत ज्यादा हानिकारक कार्बनिक पार्टिकुलेट और विषैली गैसें वातावरण में फैल कर उसे प्रदूषित कर देती हैं, वहीं दूसरी ओर वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर स्तर तक पहुंच जाता है और मिट्टी की उर्वरता में अत्यधिक कमी आती है. वैसे तो सरकार द्वारा फसल के अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है और उल्लंघन करने वाले लोगों पर वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत कार्यवाही भी की जाती है, पर इस के बाद भी यह समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण ने जहां शारीरिक श्रम को बहुत कम किया है, वहीं कई नई समस्याओं व चुनौतियों को जन्म भी दिया है. कुछ साल पहले जब किसान अपने हाथों से गेहूं की फसल की कटाई करते थे या श्रमिकों से कटाई करवाते थे, तो गेहूं की बालियों के साथ ही उस का तना भी काट लिया जाता था जो पशुओं को खिलाने के काम में लिया जाता था, लेकिन थ्रेशर आदि मशीनों से कटान के दौरान लंबा तना जिसे स्टौक या आम भाषा में नरई कहा जाता है, वह खेतों में ही रह जाता है.

अगली फसल बोने से पहले किसान को खेत तैयार करना होता है, जिस के लिए किसान जल्दबाजी और जानकारी की कमी के चलते सूख चुकी नरई/नरवाई को खेतों में ही जला देना सब से आसान व सस्ता रास्ता सम?ाते हैं. गेहूं की कटान और वातावरण प्रदूषण गेहूं की कटाई के दौरान वायु में भूसे के कण उड़ने लगते हैं, जिस के चलते वायु में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और प्रदूषण सूचकांक में भारी बढ़ोतरी होती है. पार्टिकुलेट मैटर 10 तो आसानी से कुछ देर में सैटल हो जाते हैं पर बहुत ज्यादा छोटे कण, जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर 2.5 कहा जाता है, वायु में बहुत लंबे समय तक तैरते रहते हैं व हवा के साथ उड़ कर कई वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में फैल कर उसे प्रभावित करते हैं. इन के चलते लोगों में खांसी, एलर्जी और सांस फूलने जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं. ऐसे में बच्चों, वृद्धों और सांस के मरीजों को सीधे धूल वाले स्थानों में नहीं जाना चाहिए और अगर जाना भी हो तो मुंह और नाक को मास्क या कपड़े से अच्छी तरह ढक कर ही बाहर निकलना चाहिए.

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