देश में तमाम डिजिटल प्लेटफौर्म्स पर प्रसारित होने वाले कंटैंट को ले कर सरकार द्वारा 30 पृष्ठों के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. इन दिशानिर्देशों के जारी किए जाने के बाद सरकार की मंशा पर कई सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. इसे व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता पर चोट भी सम?ा जा रहा है. ऐसा क्यों और सरकार को ये दिशानिर्देश क्यों जारी करने पड़े, जानें इस खास रिपोर्ट में. कुछ समय से देश के एक सैक्शन द्वारा ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर प्रसारित हो रही फिल्मों, डौक्यूमैंट्री और वैब सीरीज को सैंसर बोर्ड के तहत लाने की मांग उठती रही है.

इसी मांग के अनुरूप नवंबर 2020 में सरकार ने डिजिटल प्लेटफौर्म व ओटीटी आदि को सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन लाने का फैसला लिया था. उधर रचनात्मक सामग्री को सैंसर करने की मांग देश का एक तबका लगातार उठाता रहा. मगर सरकार भी सम?ा रही थी कि सैटेलाइट चैनल हों, ओटीटी प्लेटफौर्म्स हों या सोशल मीडिया हो, इन्हें सैंसरशिप के दायरे में लाना व्यावहारिक नहीं है. ये सारे प्लेटफौर्म्स अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत संचालित होते हैं. वहीं, बौलीवुड से मनोज बाजपेयी, महेश भट्ट, हंसल मेहता, स्वरा भास्कर, रिचा चड्ढा सहित तमाम हस्तियां सैंसरशिप का लगातार विरोध करती रहीं. एमेजौन पर अली अब्बास जफर निर्मित वैब सीरीज ‘तांडव’ के प्रसारण के साथ ही कई हिंदूवादी संगठनों व हिंदू नेताओं ने हिंदू धर्म व देवीदेवताओं के साथ खिलवाड़ करने का मुद्दा उठाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जिस के चलते कुछ लोग अदालत में याचिका ले कर पहुंच गए.

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सरकार को हरकत में आना ही था. सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एमेजौन की अपर्णा पुरोहित व वैब सीरीज के निर्माताओं को तलब किया. ‘तांडव’ के निर्माता व कलाकारों ने ट्विटर पर बयान जारी कर माफी मांगी और वैब सीरीज से कुछ दृश्यों को हटा दिया. अफसोस की बात यह है कि देश में सर्वधर्म व सभी समान हैं की बात करने वाली सरकार या किसी भी इंसान का ध्यान इस वैब सीरीज में दलितों के अपमान की तरफ नहीं गया. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘तांडव’ के खिलाफ दायर याचिका व पुलिस में दर्ज एफआरआई के ही संदर्भ में एमेजौन की अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि उन्हें जो अपराध करना था वह तो वे कर चुकीं, इसलिए अब उन्हें सजा के लिए तैयार रहना चाहिए.’’ माननीय न्यायाधीश ने इस पर अपनी लंबीचौड़ी टिप्पणी की है.

इधर ‘तांडव’ के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने ओटीटी प्लेटफौर्म्स, डिजिटल यानी वैब मीडिया व सोशल मीडिया को ले कर दिशानिर्देश जारी करने की मंशा जाहिर कर दी. आननफानन सरकार की तरफ से दिशानिर्देश तैयार किए गए और गुरुवार, 25 फरवरी को केंद्रीय आईटी व कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद तथा सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर इन दिशानिर्देशों, आईटी एक्ट 2021 और नियम 19बी व 69ए का भी उल्लेख किया. आननफानन शब्द इसलिए कह रहे हैं क्यांकि इन दिशानिर्देशों में काफी विरोधाभास है. दूसरी बात, एक ही मसले पर एक ही सरकार के 2 नियम कैसे हो सकते हैं? सरकार के नए निर्देश सोशल मीडिया और ओटीटी के प्रयोग को ले कर सरकार की यह गाइडलाइन त्रिस्तरीय नियमन है. प्रथम स्तर पर यह नियमन रचनात्मक सामग्री प्रकाशित करने वाले प्लेटफौर्म के स्तर पर होगा. दूसरे स्तर पर स्वनियमन का प्रावधान है जिसे लंबे समय से लोग समाचार चैनलों व सैटेलाइट टीवी चैनलों के संदर्भ में देखते आए हैं और तीसरे स्तर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार का नियमन होगा.

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नियमन के इस नए प्रावधान के चलते ओटीटी प्लेटफौर्म्स , सोशल मीडिया व डिजिटल मीडिया का काम और औपचारिकताएं पहले से बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगी. इतना ही नहीं, यह भी संभव है कि आम इंसान जिस तरह का कंटैंट देखना चाहता है वह उसे देखने को न मिले. पहली नजर में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफौर्म्स के लिए जो गाइडलाइंस जारी की हैं उन में रचनात्मकता पर अंकुश लगाने वाला मसला नजर आता है. सरकार इन गाइडलाइंस के बहाने कहीं न कहीं अपरोक्ष रूप से आम इंसान के अंदर डर का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रही है, तो वहीं डिजिटल न्यूज पोर्टल पर शिकंजा कसने की तैयारी भी लगती है. हम यह मान सकते हैं कि सरकार के नए दिशानिर्देशों के चलते आने वाले वक्त में इस प्रावधान से सोशल मीडिया पर कंटैंट के साथ ही कंटैंट की भाषा का फिल्टरेशन हो सकेगा.

सरेआम जो गाली देने और ट्रोल किए जाने का काम होता है उस पर शायद विराम लग सकेगा और सरकार कुछ लोगों को दोषी बता कर सजा भी दे दे या उन पर कार्रवाई कर सके. मगर हकीकत में सरकार जिस के खिलाफ कार्रवाई करने का मन बना रही है उस के खिलाफ वह इन दिशानिर्देशों या नए आईटी कानून के बिना भी कर सकती थी. पर सरकार ने कभी किया नहीं. एक टीवी चैनल पर इसी तरफ इशारा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि वर्तमान कानून व न्यायव्यवस्था के चलते नए दिशानिर्देश लाने की जरूरत नहीं थी. एक तरफ सरकार कम कानूनों की बात करती है तो दूसरी तरफ नएनए कानून लाती जा रही है. यदि आज मैं भड़काऊ बात लिखता हूं तो क्या सरकार मेरे खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नए कानून बनाने का इंतजार करती. जी नहीं, जब सरकार को कार्रवाई करनी होती है तब वह करती है. ‘‘मु?ो लगता है कि इन नए दिशानिर्देशों के साथ सरकार डिजिटल प्लेटफौर्म्स को अपने नियंत्रण में लाने की पूरी कोशिश में है.

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मसलन, इस में ओवरसाइट कमेटी की बात की गई है. इस में कौनकौन होगा? इस में गृहमंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय, कानून मंत्रालय, आईटी मंत्रालय और बाल व महिला मंत्रालय से जुड़े अधिकारी होंगे जोकि किसी भी शिकायत को ले गंभीर बता सकते हैं. फिर, उस कंटैंट को हटाने व उस प्लेटफौर्म को बंद करने की बात कर सकते हैं.’’ पीछे का सच कई लोग सोशल मीडिया व डिजिटल मीडिया इत्यादि के संदर्भ में दिशानिर्देश लाने के समय पर भी सवाल उठा रहे हैं. ऐसे लोगों की राय में सरकार का अपने अंदर का डर भी एक वजह हो सकती है, क्योंकि पिछले वर्ष के दौरान सोशल मीडिया दिनप्रतिदिन अतिशक्तिशाली होता गया है. कोरोना महामारी और लौकडाउन के वक्त हर आम इंसान के लिए मनोरंजन के साधन के तौर पर ओटीटी प्लेटफौर्म एकमात्र साधन बन कर उभरा. तो वहीं, अपना संदेश अपने परिचितों तक पहुंचाने के लिए व्हाट्सऐप, टैलीग्राम, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स और अपने स्मार्टफोन पर ही खबरें देख लेने की प्रवृत्ति विकसित होने के साथ ही डिजिटल न्यूज पोर्टलों की संख्या तेजी से बढ़ी. इन के उपयोगकर्ताओं की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, एक भारतीय हर दिन अपने स्मार्टफोन पर लगभग साढ़े 4 घंटे व्यस्त रहता है. जबकि 2019 में वह सिर्फ 3 घंटे ही बिताता था.

2020 में 2019 के मुकाबले 30 प्रतिशत ऐप्स ज्यादा डाउनलोड की गईं. जी न्यूज की मानें, तो हर मिनट पर ऐप्स में 2,75,598 रुपए खर्च किए जा रहे हैं. हर मिनट 2,08,333 लोगों की जूम पर मीटिंग, 4,04,444 घंटे की वीडियो स्ट्रीमिंग, 12,88,889 लोग वीडियो या वौयस कौल कर रहे हैं. हर मिनट फेसबुक पर 1,47,000 फोटो अपलोड की गईं. जबकि हर मिनट 4,16,66,667 मैसेजेज शेयर किए गए. फेसबुक पर 41 करोड़, व्हाट्सऐप पर 45 करोड़, ट्विटर पर 1.7 करोड़ भारतीय सक्रिय हैं. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त सोशल मीडिया कितना ताकतवर हो सकता है. ऐसे में इस पर लगाम लगाने की सरकार को जरूरत महसूस हुई. इन दिशानिर्देशों के दुष्परिणाम अब तक सस्ते मोबाइल हैंडसैट, डेटापैक और नैटवर्क की सुविधा के चलते देश की एक बड़ी आबादी बिना प्रावधानों की पेचीदगियों को जानेसम?ो इस का इस्तेमाल करती आई है. पर अब वह अबाध गति से इस का प्रयोग करने में हिचक महसूस करेगी. इस का असर यह होगा कि इस से सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स की लोकप्रियता पर असर पड़ेगा. इस का सीधा प्रभाव मोबाइल, नैटवर्क, सूचना एवं मनोरंजन उद्योग से जुड़े राजस्व पर भी पड़ सकता है. आखिर हर इंसान सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स तक पहुंचने से पहले कई स्तर पर ग्राहक और उपभोक्ता की भूमिका से गुजर रहा होता है.

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आवाज को दबाने का प्रयास सोशल मीडिया के ये नए प्रावधान यदि अनर्गल, तथ्यहीन, फेक सामग्री, नफरत, हिंसा और ट्रोल भाषा पर लगाम कसने के लिए लाए गए हैं तो हमें कुछ दिन इस के परिणाम पर नजर रखनी चाहिए. पर फिलहाल सरकार की यह सारी कवायद सोशल मीडिया पर आम इंसान की आवाज को दबाने का प्रयास भी लग रहा है. आर्टीफिशियल इंटैलिजैंस के तहत आम इंसान की निजता का सोशल मीडिया पर जो हनन हो रहा है उस पर सरकार चुप है. आईटी अधिनियम की धारा 69ए और 79बी के तहत सरकार सोशल मीडिया प्लेटफार्मों अर्थात फेसबुक, यूट्यूब या ट्विटर को बिचौलिए मान कर चल रही है, जो अनिवार्यरूप से इंटरनैट सामग्री के वाहक मात्र हैं, सामग्री के मूल लेखक नहीं हैं. सरकार मान चुकी है कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स उपयोगकर्ता पर संपादकीय नियंत्रण नहीं करते हैं. इसलिए ट्विटर जैसे सोशल मीडिया को किसी व्यक्ति द्वारा उस के मंच पर प्रकाशित अभद्र भाषा के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. ऐेसे में सरकार अपनी नई गाइडलाइंस के तहत इन सभी सोशल मीडिया पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने के साथ ही सोशल मीडिया की सामग्री की निगरानी करना चाहती है. यानी सरकार अपरोक्ष रूप से सैंसरशिप लाने के साथ ही हर आम इंसान या यों कहें कि सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कहने वालों को डराने का प्रयास कर रही है, जो आजाद भारत के इतिहास में अब तक नहीं हुआ. यह तय है कि सोशल मीडिया भी हिंदुस्तानी कानून के अंतर्गत नहीं आते.

पर सोशल मीडिया के खिलाफ 69ए के तहत ही कार्यवाही की जा सकेगी. जबकि अभी तक के दिशानिर्देश के अनुसार सैल्फ रैग्युलेटरी बनाने की बात कही गई है और प्रथम रचनाकार की पहचान बताने की बात कह कर आम इंसान के अंदर डर पैदा करने की भावना निहित है. तो वहीं, सोशल मीडिया व ओटीटी प्लेटफौर्म्स के लिए एक भारतीय पासपोर्ट धारक की नियुक्ति की बात कर सरकार उसे 69ए के तहत दंडित करने की मंशा रखती है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन यों तो सोशल मीडिया कंपनियों के लिए नए नियमों व ओटीटी स्ट्रीमिंग प्लेटफौर्म्स और डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए आचारसंहिता की घोषणा करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 25 फरवरी को कहा, ‘‘हम सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफौर्म्स का स्वागत करते हैं. सोशल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्ताओं को सशक्त कर रहे हैं. मगर सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया पोर्टल को अफवाह फैलाने या ?ाठ फैलाने का अधिकार नहीं है. आज लोगों को निजी जिम्मेदारी को सम?ाने की जरूरत है.’’ इस अवसर पर सरकार द्वारा 30 पृष्ठों की ‘सूचना प्रौद्योगिकी (बिचौलियों और डिजिटल मीडिया आचारसंहिता के लिए दिशानिर्देश) नियम 2021’ बुकलेट जारी की गई, जोकि सोशल मीडिया कंपनियों को परिभाषित करती है. इस में सभी औनलाइन मीडिया के नियमन के लिए एक त्रिस्तरीय तंत्र का सु?ाव दिया गया है जोकि हकीकत में सोशल मीडिया और डिजिटल न्यूज चैनलों को रोकने के लिए आंतरिक मंत्रालय को कई तरह की शक्तियां प्रदान करता है. सूचना प्रौद्योगिकी नियमन 2021 को यदि ध्यान से पढ़ा जाए तो यह बात सम?ा में आती है कि इस से उपयोगकर्ताओं को सशक्त करने के बजाय उन से उन की स्वतंत्रता को छीना जा रहा है. यह अब सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की आम इंसान की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है.

वैसे मंत्रियों ने भी साफ कर दिया है कि आम इंसान को 19ए के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को 19बी अंकुश लगाते हुए कहती है, ‘‘जिम्मेदार नागरिक के रूप में ही पोस्ट करना चाहिए.’’ प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनैट का उपयोग करने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना है. मगर 19बी के तहत भारत की सार्वभौमिकता के लिए बंदिशें हैं. सोशल मीडिया पर दोहरा मापदंड नहीं चलेगा.’’ जबकि आईटी और कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद कहते हैं, ‘‘इंटरनैट ग्लोबल है पर उन्हें स्थानीय कानून को मानना ही पड़ेगा.’’ अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत संचालित हकीकत में सरकार के पास किसी भी ओटीटी प्लेटफौर्म, सोशल मीडिया प्लेटफौर्म आदि के खिलाफ सीधे कार्यवाही करने का अधिकार ही नहीं है.

दरअसल, ये सभी प्लेटफौर्म्स अमेरिकी या अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत संचालित हो रहे हैं. ऐसे में सरकार के पास एकमात्र हथियार यह है कि आईटी कानून का उपयोग करते हुए डीओटी के किसी भी प्लेटफौर्म का सिगनल ठप कर दे. पर ऐसा करते समय सरकार को कई बातों पर गौर करना पड़ेगा. अब तो ये प्लेटफौर्म्स सौ प्रतिशत एफडीआई के तहत काम कर रहे हैं. महज परेशान करने की कवायद सरकार भी इस बात को सम?ा रही है कि ओटीटी प्लेटफौर्म्स अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत चलते हैं न कि भारतीय कानून के तहत. इसी के चलते अब नए दिशानिर्देश में सरकार ने कहा है कि हर ओटीटी प्लेटफौर्म, डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया को भारत में एक भारत के पासपोर्टधारी इंसान को बैठाना होगा जिस से सरकार जवाबतलब कर सके. मगर अहम सवाल यह है कि अमेरिका से ओटीटी प्लेटफौर्म पर स्ट्रीम की गई फिल्म या वैब सीरीज या डौक्यूमैंट्री के लिए आप किसी भारतीय को दोषी कैसे ठहरा सकते हैं? तभी तो गाइडलाइंस के अनुसार ओटीटी प्लेटफौर्म्स दोषी पाए जाते हैं.

उन के खिलाफ सजा का कोई प्रावधान नहीं है. इस के माने तो सिर्फ इतना ही है कि ओटीटी प्लेटफौर्म के किसी कंटैंट से सहमत न होने पर उस ओटीटी प्लेटफौर्म से जुड़े भारतीय शख्स को परेशान कर एक दबाव बनाया जा सकता है. एंड टू एंड एन्क्रिप्शन होगा खत्म जब व्हाट्सऐप ने 8 फरवरी से नियम बदलने की बात की थी तो आम इंसान की निजता का सवाल उठा था. उस वक्त सरकार ने कहा था कि व्हाट्सऐप को ऐसा नहीं करना चाहिए. तभी व्हाट्सऐप बैकफुट पर आया था. मगर अब सरकार वही काम कर रही है. सरकार ने जो गाइडलाइंस जारी की हैं उन के अनुसार, ‘‘व्हाटसऐप व टैलीग्राम जैसे सोशल मीडिया को प्रथम संदेश भेजने वाले की पहचान बतानी होगी. इस के लिए वह एक मैकेनिज्म विकसित करेगा. व्हाट्सऐप या टैलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म आम इंसान की निजता को बरकरार रखने के लिए एंड टू एंड एन्क्रिप्शन का वादा करते हैं. मगर अब सरकार की नई गाइडलाइंस इन महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स या बिचौलियों को अपने कंप्यूटर संसाधन पर सूचना के प्रथम उपयोगकर्ता की पहचान को जानने के लिए बाध्य करती है.

सरकार की यह गाइडलाइंस एंड टू एंड एन्क्रिप्शन की धज्जियां उड़ाते हुए निजता को असुरक्षित करती हैं. यहां पर सरकार की सैल्फ सैंसरशिप महज छलावा है. कहने का अर्थ यह है कि अब हर इंसान को मान लेना चाहिए कि वह टैलीग्राम या व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर किसी अपने को कोई भी संदेश भेज रहे हैं तो हर संदेश अब लेखक की पहचान संग जुड़ा होगा. इतना ही नहीं, अब सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार, हर सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एआई जैसे स्वचालित उपकरणों का उपयोग कर हर कंटैंट की जांच करेगा. वैसे, इस तरह के उपकरण एकदम सटीक जानकारी नहीं देते. तकनीक के जानकार दावा करते हैं कि व्हाट्सऐप या टैलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म आम इंसान की निजता को बरकरार रखने के लिए एंड टू एंड एन्क्रिप्शन का जो वादा करते हैं वह भी महज छलावा ही है, क्योंकि आईटी कानून के तहत पुलिस की मांग पर ये पूरी स्क्रिप्ट मुहैया कराते रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कई हस्तियों के व्हाट्सऐप चैट जिस तरह से सार्वजनिक हुए उसी से इन सोशल मीडिया के एंड टू एंड एन्क्रिप्शन के वादे की कलई खुल गई थी.

आधार कार्ड का दुरुपयोग सरकार के नए दिशानिर्देश के अनुसार, अब सोशल मीडिया के प्लेटफौर्म्स को प्रथम कंटैंट पोस्ट करने वाले की पहचान बताना अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसे में ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म उपयोगकर्ता या पोस्ट करने वाले लेखक से उस की पुख्ता पहचान के लिए ‘आधार कार्ड’ की मांग कर सकता है. अतीत में भी वह ऐसा कर चुका है. ऐसे में इंसान की निजता के हनन के साथ ही उस की कई गोपनीय जानकारियां सोशल मीडिया के पास होंगी. यदि इन जानकारियों का दुरुपयोग हुआ तो? इस पर मंत्रियों के पास कोई ठोस जवाब नहीं है. मंत्रीगण यही रट लगाए हुए नजर आ रहे हैं, ‘‘हम सोशल मीडिया से जिम्मेदार होने का आग्रह कर रहे हैं. हम ओटीटी प्लेटफौर्म और सोशल मीडिया पर विश्वास करते हैं. हम सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले हर इंसान की पहचान नहीं पूछने वाले हैं. हम तो सिर्फ उस प्रथम उपयोगकर्ता की पहचान पूछेंगे जिस ने सब से पहले संदेश या कंटैंट पोस्ट किया और वह भी ऐसा कंटैंट जिस के तहत 5 वर्ष की सजा का प्रावधान है.’’

अब सरकार चाहे जो कहे मगर इन दिशानिर्देशों के लागू होते ही ट्विटर जैसे सोशल मीडिया अपने हर उपयोगकर्ता से उस की पहचान के लिए आधार कार्ड नंबर आदि की मांग कर सकते हैं. औटोमैटिक इंटैलिजैंस की जरूरत सोशल मीडिया के अलावा डिजिटल समाचार माध्यमों के लिए जो दिशानिर्देश बनाए गए हैं उन के अनुसार बाल यौन शोषण, देशविरोधी समाचार आदि को अलग करने के लिए स्वचालित उपकरणों सहित प्रौद्योगिकी आधारित उपायों की तैनाती करनी पड़ेगी. स्वचालित मशीन लर्निंग टूल्स की एक वैबसाइट से चर्चा करते हुए फ्रीडम इंटरनैट फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता ने कहा है, ‘‘वे टूट गए हैं. इन में संदर्भ नहीं मिलता. अलगअलग संदर्भों में शब्दों और चित्रों के बहुत अलग अर्थ हैं और ये वही हैं जिन के लिए एआई सही नहीं रह गए. हकीकत में यह सैंसरशिप का ही एक रूप है. सरकार इन गाइडलाइंस के माध्यम से चाहती है कि बड़ी मात्रा में सामग्री रोकते हुए पूर्व सैंसरशिप की ओर ले जाया जाए.’’ अपार गुप्ता ने आगे कहा है, ‘‘आईटी अधिनियम की धारा 79, जिस के भीतर ये नियम लाए गए हैं, उन बिचौलियों पर लागू होती है जो खुद लेखक नहीं हैं या जिन का सामग्री पर संपादकीय नियंत्रण नहीं रहता. समाचार मीडिया इस वर्गीकरण के अंतर्गत नहीं आता है. परिणाम यह है कि अधिनियम 79 समाचार मीडिया पर लागू नहीं होता.

मगर सरकार के नए दिशानिर्देश के अनुसार अब समाचार मीडिया को एक स्वनियामक निकाय का हिस्सा बनना होगा. अब सिर्फ संगठन ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रचनाकारों को भी सैल्फ सैंसरशिप के दायरे में आना पड़ेगा. पर सरकार अपरोक्ष रूप से ब्यूरोक्रेट्स के माध्यम से निगरानी करने वाली है. यों भी आईटी एक्ट सोशल मीडिया पर ही लागू हो सकता है. इसे डिजिटल समाचार मीडिया पोर्टल तक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.’’ जानकारों के अनुसार, ‘आईटी 2000’ को विस्तारित कर ‘आईटी 2021’ की संज्ञा दी गई है पर इसे डिजिटल समाचार माध्यमों पर लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे संसद से पारित नहीं कराया गया है. सरकार का दोहरा मापदंड ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर प्रसारित होने वाली फिल्मों या वैब सीरीज आदि को ले कर सरकार ने जो नए दिशानिर्देश जारी किए हैं उस से सरकार का दोहरा मापदंड सामने आता है. फिल्म जिसे निर्माता, निर्देशक व कलाकार बड़ी मेहनत से बनाते हैं, उन्हें अपनी फिल्म को आम दर्शक के लिए सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने से पहले फिल्म को सैंसर बोर्ड से पारित करवाना पड़ता है. जहां उन की फिल्म को कंटैंट के अनुसार ‘यू’, ‘यूए’ या ‘ए’ प्रमाणपत्र मिलता है. मगर सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर आने वाली फिल्मों के संदर्भ में जो दिशानिर्देश दिए हैं वे सैंसर बोर्ड की गाइडलाइंस के मुकाबले काफी कमजोर हैं. जिस एडल्ट, हिंसा, अश्लीलता को फिल्म सैंसर बोर्ड की चाबुक के चलते फिल्मकार अपने दर्शकों को नहीं दिखा सकता, वह सब ओटीटी पर धड़ल्ले से दिखाया जा रहा है.

सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि ओटीटी प्लेटफौर्म को सैल्फ रैगुलेटरी बौडी बना कर अपने कंटैंट को 13 उम्र, 16 उम्र और ए कैटेगरी में विभाजित करना होगा तथा वर्गीकृत सामग्री के लिए विश्वसनीय आयु सत्यापन तंत्र के रूप में पेरैंटल गाइडैंस को लागू करने की आवश्यकता होगी. मान लिया जाए कि ओटीटी प्लेटफौर्म किसी फिल्म को ए प्रमाणपत्र दे कर प्रसारित करता है. तो उसे 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे कैसे नहीं देखेंगे? पेरैंटल लौक कैसे चलेगा? ओटीटी प्लेफौर्म ने किसी फिल्म को ए सर्टिफिकेट के साथ रिलीज किया तो इस बात की गारंटी कैसे हो जाएगी कि इसे बच्चे नहीं देखेंगे? क्योंकि आज की तारीख में 8 से 10 साल की उम्र के बच्चे के हाथ में भी स्मार्टफोन है. कहने का अर्थ यह है कि सरकार खुद पूरी तरह से इस डिजिटल मीडियम को सम?ा नहीं रही है अथवा सम?ाते हुए भी महज डर का माहौल पैदा करने के लिए गाइडलाइंस जारी कर दी हैं. सरकार के दिशानिर्देश के खिलाफ पहलाज निहलानी मशहूर निर्माता और फिल्म सैंसर बोर्ड के पूर्व चेयरमैन पहलाज निहलानी सरकार के इन दिशानिर्देशों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘‘ओटीटी प्लेटफौर्म पर रेटिंग सिस्टम की जरूरत ही नहीं है.

जब हम सैल्फ रैग्युलेशन ला रहे हैं तब रेटिंग का मतलब ही नहीं है. अब जमाना इतना बदल रहा है कि यू से ले कर यूए तक रेटिंग सिस्टम की कोई जरूरत ही नहीं है. मसला तो यूए और एडल्ट के बीच का है और ‘ए’ के बाद का मसला है. ए यानी वयस्क रेटिंग तो 21 वर्ष के लिए आनी चाहिए क्योंकि 21 साल के बाद शादी एलीजिबल है. यों भी ओटीटी पर जो कुछ दिखाया जा रहा है वह 21 साल के ऊपर का कंटैंट है. अगर ओटीटी प्लेटफौर्म को सैल्फ रैग्युलेशन में ला रहे हैं तब इतना फालतू रेटिंग सिस्टम लाने की जरूरत ही नहीं है. दूसरी बात आप दावा कर रहे हैं कि स्वतंत्रता दे रहे हो. यदि आप ओटीटी प्लेटफौर्म को स्वतंत्रता दे रहे हो तो फिर फिल्म इंडस्ट्री को क्यों नहीं. एक फिल्म निर्माता को फिल्म सैंसर बोर्ड के दरवाजे पर भेजने की जरूरत क्यों? वह भी सैल्फ रैग्युलेशन लाए. सिनेमा में सैंसर बोर्ड की जरूरत क्या है? सरकार को चाहिए कि वह तुरंत सैंसर बोर्ड को बंद कर दे. वैसे भी सैंसर बोर्ड में नकारा अफसरों की नियुक्ति हो रही है.’’ हमारे देश में फिल्म सैंसर बोर्ड से पारित फिल्मों के खिलाफ कुछ संगठन या किसी राज्य से जुड़े लोग आपत्ति उठा कर उसे बैन कराते रहे हैं. ऐसे में सरकार की नई गाइडलाइंस के बाद ओटीटी प्लेटफौर्म्स के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठेगी, यह कैसे मान लिया जाए?

अहम मुद्दा यह है कि जब किसी ओटीटी प्लेटफौर्म के किसी कार्यक्रम के खिलाफ शिकायत आएगी और उस ओटीटी प्लेटफौर्म की सैल्फ रैग्युलेटरी बौडी, जिस का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का अवकाशप्राप्त जज ही होगा, वह कहेगा कि उस के कंटैंट में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है, तब मसला अदालत में जाएगा. इस तरह अदालत के काम का बो?ा बढ़ना तय है. सरकार के दिशानिर्देश में 3 स्तरों की बात की गई है. इस के बावजूद इस में काफी खामियां हैं. यदि किसी ने किसी ओटीटी प्लेटफौर्म के कंटैंट के खिलाफ शिकायत की तो उस का निबटारा होने में 45 दिन से 3 माह का वक्त लग जाएगा. उस के बाद संतुष्ट न होने पर सरकार दखलंदाजी करेगी. उस के बाद सरकार के निर्णय के खिलाफ ओटीटी प्लेटफौर्म अदालत जा सकता है. उस का तर्क होगा कि उस ने जो सैल्फ रैग्युलेशन की कमेटी बनाई है उस ने इस में कुछ भी गलत नहीं पाया. इस बीच वह वैब सीरीज या फिल्म धड़ल्ले से ओटीटी पर मौजूद रहेगी. पर इस से अदालतों का बो?ा जरूर बढ़ेगा. इतना ही नहीं, एक सवाल यह भी है कि शिकायत किए जाने के बाद क्या हो रहा है, उस पर नजर रखेगा? आम आदमी किस हद तक अपनी शिकायत को ले कर दौड़ेगा. दिशानिर्देश भी अस्पष्ट हैं. सीरियल निर्माता राजेश कुमार सिंह वैब सीरीज ‘तांडव’ का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘‘अभी तो आम इंसान ‘तांडव’ के खिलाफ अपनी शिकायत ले कर अदालत पहुंचा और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एमेजौन की अपर्णा पुरोहित की जमानत याचिका खारिज करते हुए आदेश दिया कि उन्होंने हिंदू धर्म को जो नुकसान पहुंचाया था वह पहुंचा दिया,

इसलिए अब उन्हें सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए. मगर दिशानिर्देश के बाद तो सीधे अदालत नहीं जा पाएंगे. यदि कोई गया तो ओटीटी प्लटफौर्म अदालत से कहेगा कि हम ने सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार सैल्फ रैग्युलेटरी बौडी बना रखी है. यदि किसी को शिकायत है तो उस में करे. ऐसे में ओटीटी पर वैब सीरीज चलती रहेगी. इधर 45 दिन से एक वर्ष तक का समय गुजर जाएगा. उस के बाद पाबंदी लगने या उस वैब सीरीज को हटाने के क्या मतलब होंगे? 69ए का उपयोग करने की बात की गई है. पर इस का उपयोग सरकार सब से अंत में करेगी. तब तक वैब सीरीज आ कर जा चुकी होगी. हकीकत में सरकार ने ओटीटी प्लेटफौर्म को बचने का रास्ता दे दिया है. सरकार ने सजा की बात की ही नहीं है.’’ ‘माई ब्रदर निखिल’ और ‘आई एम’ जैसी फिल्मों के सर्जक ओनीर ने कंटैंट क्रिएटर्स का पक्ष नहीं लेने के लिए दिशानिर्देशों की आलोचना करते हुए कहते हैं, ‘‘सिनेमा की मौत और अच्छी सामग्री कलाकार को ठोकर मार दो और सभी को खुश रखो. एक लोकतंत्र में एक कलाकार के लिए सब से बुरा काम ओटीटी का यह विनियमन हो सकता है.’’ अघोषित आपातकाल सरकार के लिए सैटेलाइट चैनलों को भी रैग्युलेट करना असंभव है. पहले केबल एक्ट के तहत कुछ पाबंदी ला पाती थी. पर अब केबल एक्ट लागू नहीं होता. केबल एक्ट जब था तब सरकार सिर्फ फिल्मों को ही रैग्युलेट कर पा रही थी.

सैकड़ों घंटे के कार्यक्रम को कैसे रैग्युलेट किया जाएगा? टैलीविजन कंटैंट को रैग्युलेट करना व्यावहारिक भी नहीं है. इसीलिए वहां भी सैल्फ रैग्युलेट करने की बात कही गई है. पर क्या हो रहा है, सभी को पता है. वहीं, फिल्म इंडस्ट्री के ही अंदर कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए ओटीटी प्लेटफौर्म और सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के प्रयास के साथ ही अघोषित आपातकाल की स्थिति लाने का प्रयास कर रही है. द्य सुप्रीम कोर्ट का पुराना आदेश कुछ वर्षों पहले जब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नग्नता और अश्लीलता के आधार पर एक याचिका दायर की गई थी तब सुप्रीम कोर्ट ने विद्वत्तापूर्ण आदेश देते हुए कहा था, ‘इफ यू डू नौट लाइक, देन यू डू नौट वाच इट.’ नई गाइडलाइंस, आईटी एक्ट 2021 व ‘तांडव’ विवाद के साइड इफैक्ट्स : ‘तांडव’ वैब सीरीज विवाद के बाद एमेजौन की अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए जिस तरह के कमैंट किए उस से सभी ओटीटी प्लेटफौर्म्स थम गए हैं. फिर सरकार ने 25 फरवरी को जो गाइडलाइंस जारी कीं, उस के बाद अब ओटीटी प्लेटफौर्म्स ने अपना बचाव का रास्ता तलाश करते हुए फिल्मों को सीधे ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर दिखाने के बजाय निर्णय लिया है कि हर फिल्म पहले सिनेमाघर में रिलीज हो. उस के 4 सप्ताह बाद वही फिल्म ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर दिखाई जाए. इस से अब सिनेमाघर में फिल्म को रिलीज करने के लिए निर्माता अपनी फिल्म को सैंसर बोर्ड से पास करवाएगा और 4 सप्ताह तक सिनेमाघर में फिल्म के रिलीज होने पर यदि कोई विवाद होता है तो उसे निर्माता स्वयं ही ?ोलेगा. उस के बाद विवाद की संभावना खत्म हो जाएगी. तब यह फिल्म ओटीटी पर आएगी.

इस से ओटीटी प्लेटफौर्म को दोहरा फायदा होगा, पहला फायदा यह है कि ओटीटी प्लेटफौर्म्स विवाद से दूर रहेंगे. दूसरा यह कि जब ओटीटी पर फिल्म रिलीज हो रही थी तो उसे निर्माता को डेढ़ सौ करोड़ से ऊपर की धनराशि देनी पड़ती थी, लेकिन जब फिल्म सिनेमाघर में रिलीज होने के बाद ओटीटी पर जाएगी तो उसे निर्माता को 25 से 30 करोड़ रुपए ही देने होंगे. नई गाइडलाइंस पर सवाल एमेजौन प्राइम की अपर्णा पुरोहित की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की बैंच ने अपर्णा पुरोहित को जमानत जरूर दे दी मगर सरकार से 25 फरवरी को जारी की गई सरकार की नई गाइडलाइंस को और अधिक सख्त करने को कहा है. बैंच ने कहा कि कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कंटैंट से पीडि़त हो रहे लोगों के बीच एक सामंजस्य बैठाना जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण और आर सुभाष रेड्डी की बैंच ने केंद्र सरकार द्वारा ओटीटी प्लेटफौर्म को कंट्रोल व रैगुलेट करने के लिए उठाए गए कदमों को कमजोर भी बताया है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटी मंत्रालय को जारी किया नोटिस : सरकार की नई गाइडलाइंस के खिलाफ 2 समाचार वैबसाइट्स के संपादकों और फाउंडेशन फौर इंडिपैंडैंस जर्नलिज्म की तरफ से एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. याचिकाकर्ताओं ने सरकार पर नए आईटी नियमों के जरिए उस के द्वारा डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने का आरोप लगाया. याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की 2 सदस्यीय बैंच चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जसमीत सिंह ने मिनिस्ट्री औफ इलैक्ट्रौनिक्स एंड इनफौरमेशन टैक्नोलौजी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिका में 25 फरवरी को सरकार द्वारा जारी नई गाइडलाइंस और आईटी कानून को गैरकानूनी बताते हुए आरोप लगाया गया है कि आईटी एक्ट 2000 में ऐसी व्यवस्था नहीं है. यह एक्ट समाचार चैनलों और समाचार डिजिटल मीडिया पर लागू नहीं होता पर सरकार ने गैरकानूनी तरीके से इंटरनैट पर नियंत्रण रखने के तहत इसे विस्तार देते हुए आईटी एक्ट 2021 नाम दे दिया है.

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