देश में तमाम डिजिटल प्लेटफौर्म्स पर प्रसारित होने वाले कंटैंट को ले कर सरकार द्वारा 30 पृष्ठों के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. इन दिशानिर्देशों के जारी किए जाने के बाद सरकार की मंशा पर कई सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. इसे व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता पर चोट भी सम?ा जा रहा है. ऐसा क्यों और सरकार को ये दिशानिर्देश क्यों जारी करने पड़े, जानें इस खास रिपोर्ट में. कुछ समय से देश के एक सैक्शन द्वारा ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर प्रसारित हो रही फिल्मों, डौक्यूमैंट्री और वैब सीरीज को सैंसर बोर्ड के तहत लाने की मांग उठती रही है.

इसी मांग के अनुरूप नवंबर 2020 में सरकार ने डिजिटल प्लेटफौर्म व ओटीटी आदि को सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन लाने का फैसला लिया था. उधर रचनात्मक सामग्री को सैंसर करने की मांग देश का एक तबका लगातार उठाता रहा. मगर सरकार भी सम?ा रही थी कि सैटेलाइट चैनल हों, ओटीटी प्लेटफौर्म्स हों या सोशल मीडिया हो, इन्हें सैंसरशिप के दायरे में लाना व्यावहारिक नहीं है. ये सारे प्लेटफौर्म्स अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत संचालित होते हैं. वहीं, बौलीवुड से मनोज बाजपेयी, महेश भट्ट, हंसल मेहता, स्वरा भास्कर, रिचा चड्ढा सहित तमाम हस्तियां सैंसरशिप का लगातार विरोध करती रहीं. एमेजौन पर अली अब्बास जफर निर्मित वैब सीरीज ‘तांडव’ के प्रसारण के साथ ही कई हिंदूवादी संगठनों व हिंदू नेताओं ने हिंदू धर्म व देवीदेवताओं के साथ खिलवाड़ करने का मुद्दा उठाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जिस के चलते कुछ लोग अदालत में याचिका ले कर पहुंच गए.

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