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Indian Idol 12 : रेखा की ढ़ोलक की थाप पर गाना गाते नजर आएंगे पवनदीप

सोनी टीवी का लोकप्रिय सिंगिग रियलिटी शो ‘इंडियन आइडल 12 ‘  बेहद ही ज्यादा खास होने वाला है. इस शो में बॉलीवुड की सदाबाहार एक्ट्रेस रेखा कि धमाकेदार एंट्री होने वाली है. पिछली रिपोर्ट में आपको इस बात की जानकारी दी गई थी कि रेखा ने इंडियन आइडल के इस खास शो कि शूटिंग पूरी कर ली है.

इस समय रेखा की एक वीडियो वायरल हो रही है जिसमें रेखा पवनदीप के साथ बैठी नजर आ रही हैं और ढ़ोलक बजाती नजर आ रही हैं. जी हां आपने सही सुना रेखा पलनदीप के साथ ताल में ताल मिलाती नजर आ रही हैं.

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वायरल हो रही तस्वीर में रेखा डार्क गोल्डन और रेड कलर की साड़ी पहनी नजर आ रही हैं. पनदीप राजन के साथ वहताल में ताल मिलाने वाली हैं. इस खूबसूरत साड़ी के साथ रेखा मैंचिंग ज्वैलरी भी पहनी हुई हैं. जिसमें वह बेहद ही ज्यादा प्यारी लग रही हैं.

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जैसे ही शओ में रेखा को मौका मिलेगा वह पवनदीप राजन के साथ स्टेज पर जाकर ढ़ोलक बजाती नजर आएंगी. रेखा का यह हुनर देखकर शो के जज के साथ -साथ सभी कंटेस्टेंट भी हैरान हो जाएंगे.

 

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बता दें कि रेखा ने इससे पहले कभी इस बात का खुलासा नहीं किया था कि वह ढ़ोलक भी बजाती हैं. रेखा कि इस तस्वीर को देखकर फैंस का उत्साह सातवे आसमान पर जा पहुंचा है. तो वहीं कुछ लोग इंडियन आइडियल 12 का बेसब्री से इंतजार भी कर रहे हैं कि जल्द इस शो को टीवी पर प्रसारित किया जाए.

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इसके साथ ही रेखा मस्ती के मूड में भी नजर आएंगी. शो में रेखा इस शो के जज विशाल ददलानी के माथे पर तबला बजाती हुई भी नजर आएंगी.  फैंस को रेखा का यह अंदाज बहुत ज्यादा पसंद आएगा. सोशल मीडिया पर रेखा को खूब लाइक और कमेंट मिल रहे हैं. जमकर तारीफ बटोर रही हैं.

 

अपने अपने सपने : भाग 4

“मैं कम पढ़ीलिखी हुई हूं, आप से विनती करती हूं कि आप अपने सपने को पूरा करने के लिए मेरी बेटी की बलि मत चढ़ाइए. सपने तो सपने ही होते हैं. पंखुरी को अपने सपनों की उड़ान भरने दीजिए.”

अवधेश जी की आंखें गीली हो गईं थीं. वे बोले, “तुम मुझ से कम पढ़ीलिखी हो, लेकिन कहीं अधिक समझदार हो. ये सब बातें तुम ने मुझ से पहले क्यों नहीं कहीं. शायद, मेरी अक्ल पर पड़ा हुआ परदा हट जाता. पंखुरी को होश में आने दो, मैं उस से माफी मांग लूंगा.”

डा. मणि आईसीयू में ही बैठी हुई पंखुरी के चेहरे पर नजर लगाए हुए थीं. उन्होंने उस को इंजैक्शन लगाया,  मौनिटर पर लगातार उन की निगाहें टिकी थीं. फिर वे उठ कर अपने केबिन में बैठ गईं. परंतु मन में अत्यंत बेचैनी महसूस कर रही थीं वे.

अनजाने में उस प्यारी बच्ची में वे अपनी आद्या की सूरत देख रही थीं. वे भी तो हर समय आद्या को डांटतीडपटती रहती हैं.

एक दिन वह उन से बोली थी कि, ‘मौम, मैं डाक्टर नहीं बनना चाहती. मुझे आप की लाइफ नहीं पसंद. मुझे मरीज के पास जाने से उबकाई आती है.’

‘पागल है तू, इतना बड़ा नर्सिंग होम तुम्हारे लिए ही तो बनवाया है. तेरे सिवा मेरे लिए इस दुनिया में मेरा कौन है.’

‘नो, मौम, आई डोन्ट लाइक,’ कहती हुई वह तेजी से अपने कमरे में चली गई थी. यह बात उस समय की है , जब वह क्लास 9वीं में थी. वे आद्या के ख़यालों  में खो गई थीं, तभी सिस्टर की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई. लीला खुशी से भागती हुई आई, ‘डा. वह लड़की अपनी पलकें फड़फड़ा रही है.’

वे तेजी से उस ओर गई थीं. उस को होश में आते देख उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था मानो उन्होंने अपनी आद्या के  जीवन को बचा लिया है. उस को होश में आते देख उन के चेहरे पर मुसकान आ  गई थी.

‘बधाई हो मैडम, आप की बेटी ने आज अपने जीवन की जंग जीत ली है,’

अधिकारी पिता का चेहरा खुशी से खिल उठा था, ‘डा. साहिबा, आप सच में इंसान नहीं, बल्कि भगवान हो. डाक्टर, प्लीज, मैं एक बार अपनी बेटी से माफी मांग सकता हूं.’

‘श्योर, श्योर.’

उन्होंने डा .पूनम और सिस्टर को जरूरी निर्देश देने के बाद अपनी घड़ी पर निगाह डाली थी. रात को 12 बजने वाले थे. वे उदास और निराश हो उठी थीं. आद्या, उन की इकलौती बेटी, उन की व्यस्तता के कारण कितना अकेलापन महसूस करती होगी. अब वे उस पर डाक्टर बनने का जरा भी दबाव नहीं डाला करेंगी. उस का जो मन हो, वह पढ़ाई करे. जो मन हो, वह बने. वे मन ही मन सोच रही थीं कि आज इस नन्ही परी ने जीवन का अनमोल पाठ पढ़ा दिया था. उन्हें महसूस हो रहा था कि आज उन के दिल से मानो भारी बोझ उतर गया हो. वे बेटी आद्या को प्यार से अपने गले लगाने को तड़प उठी थीं. आज उन्हें अपने घर तक का रास्ता बहुत लंबा लग रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते घड़ी ने 12 बजा दिए थे. आज वे खुद को अपराधबोध से पीड़ित महसूस कर रही थीं.

उस के कमरे की लाइट जलती देख वे सीधे उसी के कमरे में गई थीं. आद्या, शायद, उन का इंतजार करतेकरते सो गई थी. उस की हथेली में मोबाइल था.

उन्होंने आहिस्ताआहिस्ता उस का मोबाइल निकालने की कोशिश की, तो उस ने धीरे से अपनी आंखें खोल दी थीं. वह तेजी से बैड से उठी और उन से लिपट गई.

‘मम्मा, कभी अपना फोन भी चैक कर लिया करिए.’

उन्होंने अपने पर्स से मोबाइल निकाल कर देखा, आद्या की 20 मिस्डकौल थीं.

‘सौरी बेटा, क्या करूं, कोई न कोई इमरजैंसी केस आ ही जाता है. बस, उस के बाद मैं बिजी हो जाती हूं. यही वजह है कि मुझे अकसर देर हो जाती है.’

‘मम्मा, आप कितनी मेहनत करती हैं.’

‘डाक्टर की ड्यूटी होती है कि वह हर पेशेंट का सही से इलाज करे.’

‘मम्मा, मैं ने आज आप के इंतजार में खाना भी नहीं खाया.’

‘आओ, मैं खाना  गरम करती हूं.’

‘नो मम्मा, आप चेंज कर के आओ, मैं माइक्रोवेव में खाना गरम करती हूं.’

आज पहली बार वे उस घड़ी को कोस रही थीं जब उन्होंने डाक्टर बनने का निश्चय किया. उसी की वजह से बेटी के पास भी बैठने का समय नहीं मिलता  है.

डा. मणि प्यार से अपने हाथों से बेटी के मुंह में कौर खिलाती हुई बोलीं, ‘आद्या, ध्यान से सुनो, आज तुम से एक इंपार्टेंट बात कहनी है. बेटा, तुम्हें जिस लाइन में आगे बढने में रुचि हो, उसी विषय में पढ़ाई करो.’

‘परंतु मम्मा, आप का सपना और आप का नर्सिंग होम, उस का क्या होगा?’

‘बेटा, अपने सपने के लिए तुम्हारे साथ जोरजबरदस्ती तो मुझे नहीं करनी चाहिए न. आखिर तुम ने भी तो अपने भविष्य के लिए कोई सपना देखा होगा?’

‘हां, हां, क्यों नहीं?’

‘मम्मा, मैं ने बहुत सोचविचार कर निर्णय लिया है कि मैं आप की तरह ही डाक्टर बनूंगी. मैं ने देखा है कि लोग आप के पास कितनी उम्मीद व आशा ले कर आते हैं और ठीक हो जाने पर कितने खुश होते हैं. मैं भी जब डाक्टर बन जाऊंगी तब आप की ही तरह गरीब और जरूरतमंद इंसानों का मुफ्त में इलाज किया करूंगी.

‘मैं आप से बहुत नाराज हूं क्योंकि आप को तो यह भी नहीं पता कि आज एमबीबीएस के एन्ट्रेंस का रिजल्ट नैट पर आ गया है. मम्मा, औल इंडिया में मुझे 5वीं  रैंकिंग मिली है.’

डा. मणि ने प्रसन्नता से अभिभूत हो कर बेटी के माथे पर प्यार कर के उसे अपनी बांहों में  लिपटा कर गले से लगा लिया. उन की आंखों से खुशी के आंसू प्रवाहित हो उठे थे.

आज उन की खुशी का ठिकाना नहीं था. उन की बेटी ने उन का सपना पूरा करने के लिए पहला सोपान पार कर लिया था.

“क्या बात है मौम, बड़ी खुश दिखाई पड़ रही हैं?” नर्सिंग होम में आद्या की इस आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई और वे वर्तमान में लौटीं, बोलीं, “हां, कभी फुरसत में बताऊंगी. वैसे, सच तो यही है कि मैं बहुत  खुश हूं क्योंकि मेरी बातों की वजह से एक प्यारी सी  बेटी के अपने सपने साकार  हुए हैं.”

 

अपने अपने सपने : भाग 3

कुछ दिनों तक तो वह हर समय अपने फोन के साथ ही खेलती रहती. उन्हें तो इस नए फोन की ज्यादा जानकारी थी नहीं, लेकिन जब समझने लगीं तो पता चला कि वह लिखलिख कर दोस्तों से बात करती रहती है.

उन्होंने उसे समझाया था कि पहले पढ़ाई किया करो, उस के बाद दोस्ती वगैरह. उस समय तो वह कहना मान जाती लेकिन फिर थोड़े दिनों के बाद कुछ नया करने को उस का मन मचल उठता था.

9वीं  में उस के नंबर अच्छे नहीं आए थे. अब वह 10वीं में आ गई थी, बोर्ड था. अवधेश जी ने उस की कोचिंग की संख्या बढ़ा दी थी. उन्होंने एक दिन धीरे से उन से कहा भी था कि वह थक जाएगी तो अपनी पढ़ाई कब किया करेगी. लेकिन उन को तो अपनी पुलिसिया सोच पर किसी का हस्तक्षेप दूसरों की गुस्ताखी महसूस होता और उन्हें तो वे दुनिया का सब से बड़ा मूर्ख समझा करते थे.

वह यूनिट टैस्ट में अच्छे नंबर नहीं ला रही थी. इसलिए उस ने अपने रिपोर्टकार्ड पर खुद से साइन बनाना शुरू कर दिया था.

एक दिन वे उस की मेज ठीक कर रही थीं तो उस की कौपी के बीच में लाल निशान लगा हुआ कार्ड दिखाई दिया था. उन्होंने शाम को पंखुरी को दिखा कर पूछा, तो वह ढिठाई से बोली, ‘जाइए, पापा से कह दीजिए, मैं उन की इच्छा के अनुसार क्लास में टौप नहीं कर सकती. बस, पास हो जाऊं, यही बहुत है.’

उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि पढ़लिख ले, बेटा, वरना मेरी तरह पति की चार बातें सुननी पड़ेंगी.

वह उन से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी थी, ‘मौम, मैं क्या करूं? मैथ्स का प्लसमाइनस और फिजिक्स व कैमिस्ट्री के फार्मूले मेरे सिर के ऊपर से निकल जाते हैं. आप पापा को समझाइए कि मुझे आईएएस औफिसर बनने में कोई भी रुचि नहीं है. मैं अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती हूं. मैं आर्टिस्ट बनना चाहती हूं. मैं आर्ट गैलरी में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाना चाहती हूं. मेरा जीवन, मेरे सपने, मेरे अपने हैं. मैं उन की बेटी हूं, तो क्या सांस भी उन की परमिशन के बाद ही लेनी होगी.’

उस की बातें उन के दिल को छू गई थीं. लेकिन पति के सामने तो डर के मारे उन की बोलती ही बंद हो जाती थी. उन के कानों में उस की प्यारी सी खिलखिलाहट की मधुर आवाज गूंज रही थी. उस का उन से प्यार से लिपटना और पिता की डांट व पिटाई से बचने के लिए झूठ पर झूठ बोलते जाना…

बोर्ड की परीक्षाएं नजदीक आ गई थीं. कोचिंग सैंटर में रिवीजन कराया जा रहा था. स्कूल में प्रिपरेशन लीव हो गई थी. इसलिए वह सारे दिन घर पर रहती थी. जब भी वे उस के कमरे में झांकतीं, वह अपने मोबाइल पर कुछ करती होती या फिर बुक खोल कर उसे सोती हुई पाती थीं. यदि वे उस से ध्यान से पढ़ने को कहतीं तो वह एकदम नाराज हो कर उन पर चिड़चिड़ा उठती थी.

उस की बोर्ड की परीक्षा आरंभ हो गई थी. जब वह पेपर दे कर लौट कर आती तो उस का चेहरा बुझाबुझा हुआ होता था. वह मैथ्स का पेपर दे कर आई थी, तो उस के पापा ने उस का पेपर देखते ही एकदो प्रश्न के उत्तर पूछ डाले थे और गलत उत्तर सुनते ही भड़क उठे थे. वे चीख कर बोले, ‘मूर्ख की बेटी मूर्ख ही तो होगी. मैं ने व्यर्थ में ही इस लड़की से इतनी उम्मीद और आशाएं पाल रखी हैं.’

उन्होंने उस का पेपर फाड़ कर गुस्से में फेंक दिया था. उन के मुंह से आवेश में पुलिसिया गाली निकल पड़ी थी.

उस दिन वह घंटों फूटफूट कर रोती रही थी. किसी तरह उस ने अपने पेपर पूरे दिए लेकिन उस के बाद अब वह अपने कमरे से बहुत कम निकलती थी. खानापीना, हंसना, बात करना, टीवी देखना बंद कर दिया था, यहं तक कि, सहेलियों के फोन भी न उठाती, उन से भी बात न करती. बस, चुपचाप अपने कमरे में लेटी हुई शून्य को निहारती रहती. उस के चेहरे से उस की प्यारी सी मुसकान रूठ गई थी.

वे बेटी से बात करना चाहतीं तो वह मुंह फेर कर लेट जाती. वह गुमसुम, खोईखोई सी रहने लगी थी. वे बेटी की मानसिक दशा को देख कर चिंतित हो उठी थीं, परंतु अपना दर्द कहतीं तो किस से कहतीं. वे यह समझ रही थीं कि उन की बेटी निराशा के गर्त में डूब कर मानसिक रूप से बीमार हो गई है. परंतु अपना दर्द और मन का डर पति से कहने की हिम्मत नहीं जुटा  सकी थीं.

अवधेश जी ने  एक दिन व्यंग्यात्मक लहजे में बेटी से कहा था, ‘कितने फीसदी नंबर ला पाओगी? डोनेशन के लिए लाखों रुपयों का इंतजाम करना होगा, तभी तो तुम्हारा कहीं एडमिशन करवा पाऊंगा.’

निश्चय ही उस ने नैट पर अपना रिजल्ट देख कर यह कदम  उठाया होगा. यह सब उन्होंने डा. मणि को बता दिया था.

हौस्पिटल में आज यशोदा जी को अपनी बेबसी व कायरता पर बहुत क्रोध आ रहा था. उन्हें चुप देख कर पति बोले, “मेरा लाखों रुपया तुम्हारी लाड़ली ने मिट्टी में मिला दिया. इस को बरबाद करने में सौ प्रतिशत तुम्हारा हाथ है. सदानंद, जो मेरा चपरासी है, आज औफिस में मिठाई ले कर आया था, उस की लड़की कंपीटिशन में   मैरिट लिस्ट में आई है और दिल्ली आईआईटी में स्कौलरशिप के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है.” घृणा से मुंह सिकोड़ कर वे आगे बोले, “एक मेरी बेटी है, जिस ने मेरा नाम डुबो कर रख दिया. मेरा सिर इस लड़की के कारण शर्म से झुक गया. मैं कहीं मुंह दिखाने लायक न रहा.”

आज वे अपने को नहीं रोक पाई थीं, “आप कैसे पिता हैं, आप को अपनी बेटी की नहीं बल्कि अपने पैसे व स्टेटस की फिक्र हो रही है. इस समय भी आप अपने लाखों रुपए की बात कर रहे हैं. आप की बेटी अपने जीवन के लिए एकएक सांस के लिए संघर्ष कर रही है. आप को उस की जरा भी फिक्र नहीं है.” उन की आंखों से क्रोध टपक रहा था, वे आगे बोलीं, “आप से मैं ने कितनी बार कहने की कोशिश की कि आप की बेटी को साइंस से ज्यादा चित्रकला का शौक है. परंतु आप ने तो हर काम डंडे के जोर से करवाना सीखा है. हर काम में जबरदस्ती अच्छी नहीं होती.”

आज पहली बार उन्होंने पति के समक्ष जोर से बोलने का साहस किया था. पति कहीं जोरजोर से चीखनेचिल्लाने न लगें, इस डर के कारण वे वहां से उठ कर डाक्टर के पास चली गई थीं.

आज अवधेश जी को पहली बार अपनी गलती का एहसास हुआ था. वे उठ कर पत्नी की बगल में जा कर खड़े हो गए थे.

डा. मणि अंदर ही थीं. अब पतिपत्नी दोनों ही चिंतातुर दिखाई पड़ रहे थे. वे पत्नी का हाथ पकड़ कर आहिस्ता से  बोले, “मेरी पंखुरी अवश्य ठीक हो जाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है.”

यशोदा जी का आत्मविश्वास बढ़ गया था. दोनों आ कर फिर से कुरसी पर बैठ गए थे.

“आप हर समय अपने  सपने, अपनी सोच मुझ पर थोपते रहे, अब उसी तरह बेटी को भी अपने डंडे के इशारे पर चलाना चाहते हैं. हर बच्चे की रुचि और क्षमता अलग होती है. किसी भी तरह की विशेष पढ़ाई के लिए उस को मजबूर मत करिए. आप की बेटी आप से डरती है, इसलिए वह आप से झूठ बोलती है, आप से सारी बातें छिपाया करती है. उस के अपने सपने हैं, अपनी इच्छाएं हैं. उसे अपनी तरह से जीने दीजिए. जब वह गलत रास्ते पर जाए तो फिर हम लोगों का कर्तव्य बनता है कि हम उस का मार्गदर्शन कर के सही रास्ता दिखाएं.

“जब कभी आप उसे पढ़ाने बैठते हैं, तो बातबात पर ‘झापड़ रसीद कर  दूंगा.’ कहते थे. कभीकभी 2 थप्पड़ लगा भी देते थे, तो कभी कौपीकिताब उठा कर फेंक भी देते थे. वह डरीसहमी हुई सही उत्तर जानते हुए भी गलत कर बैठती थी.

अपने अपने सपने : भाग 2

‘नाइट ड्यूटी पर डा. पूनम हैं, वे इस केस को संभाल  लेंगी.’

‘उन्होंने ही तो मुझे आप को बुलाने के लिए भेजा है.’

उसी समय लड़की की मां रोती हुई आई और उन के पैरों पर गिर पड़ी थी.

उन्होंने उसे उठाया, ‘क्या बात है?’ पूछा था.

‘डा. आप मेरे लिए भगवान की तरह हैं. आप का बहुत नाम सुन रखा है. मेरी बेटी को प्लीज बचा लीजिए. डा. साहब, मेरी बेटी को कुछ हो गया तो मैं यहीं पर सिर पटकपटक कर अपनी जान दे दूंगी.’

वे लीला से लड़की की हालत के बारे में जानकारी ले रही थीं कि महिला के पति जीप से उतरते दिखे, शायद वे पुलिस अधिकारी थे क्योंकि उन के साथ कई पुलिस वाले वहां खड़े हुए थे.   मामले की गंभीरता को देखते हुए वे इमरजैंसी की तरफ चल दी थीं.

लड़की की हालत नाजुक थी. उस का चेहरा काला पड़ गया था, मुंह से झाग निकल रहा था. वह पूरी तरह से अचेत थी.

उस पर नजर पड़ते ही वे खुद एक क्षण को सहम गई थीं. फूल सी कोमल, नाजुक लड़की, जिस की उम्र 18 -19  वर्ष के आसपास रही होगी. दूध सा धवल रंग सांवला पड़ गया था, काले घुंघराले बाल बारबार चेहरे पर अठखेलियां करने को बेताब थे. वे सोचने को मजबूर हो गई थीं कि इस नाजुक सी कली ऩे ऐसा कदम क्यों कर उठाया होगा?

वे तत्काल उस के उपचार में जुट गई थीं. ड़ा. पूनम से बातचीत कर स्वयं ही उस की निगरानी करने लगीं. लगभग एक घंटे बाद वे अपने केबिन में आईं. उन्होंने शीशे से बाहर निगाह डाली, तो देखा कि उस की मां की आंखों से निरंतर अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. अधिकारी पति के चेहरे से लग रहा था कि वह शायद पत्नी को घुड़क रहे थे.

उन को केबिन में देखते ही पतिपत्नी दोनों दरवाजा खोल कर तेजी से अंदर आए थे. ‘डा. साहब, मेरी बेटी अब कैसी है, वह ठीक है न?’

‘आप पहले मुझे बताइए कि ऐसा क्या कारण है कि बच्ची ऐसा कदम उठाने को मजबूर हो गई?’

मुखर अधिकारी पति पत्नी को डपटते हुए बोले, ‘डा. साहब, सब इन्हीं के लाड़प्यार का नतीजा है.’

डा. मणि अपने को नहीं रोक पाई थीं, ‘लेकिन, आज तो इन्हीं की वजह से इस बच्ची की जान बच सकती है. यदि एक घंटा और बीत जाता तो इस की जान बचाना मुश्किल हो जाता और आप लोग हाथ मलते ही रह जाते. बेहोश लड़की को अकेले औटो में ले कर आना हिम्मत का काम है. इस समय जाने कैसे ये इस को ले कर यहां आई हैं?’

‘वैसे डा. साहब, ये पढ़ीलिखी नहीं हैं और अपनी बेटी को भी अपनी तरह ही बनाना चाह रही हैं. लेकिन डा., मैं ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि तुम्हें हर हालत में आईएएस औफिसर बनना ही है, उस से कम मुझे मंजूर नहीं.’

‘देखिए सर, यह हौस्पिटल है, यहां जोरजोर से बोलना मना है. आप दोनों बाहर बैठ जाइए. अभी भी आप की बेटी की हालत नाजुक है. बेटी के होश में आने का इंतजार करिए.’

मां गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘डा. साहब, मुझे एक बार बेटी को देख लेने दीजिए.’ और बदहवास हो कर फिर से डा. के पैर पर गिरने का उपक्रम करने लगी थी.

वे स्वयं भी एक मां थीं.  उस के दिल की पीड़ा का गहराई से अनुभव कर सकती थीं. सो, वे स्वयं महिला को सहारा दे कर उस की बेटी के पास ले गईं. बेटी के चेहरे, बाल पर हाथ फेरती हुई वह सिसकने लगी थी.

अधिकारी उन के पीछेपीछे आ गए थे. वे उन्हें जोर से डांट कर बोले, ‘बंद करो अपना यह नाटक. अपनी आंख खुली रखतीं, तो आज यह दिन न देखना पड़ता.’

वह सहम कर पति अवधेश के पीछेपीछे चल कर बाहर आ गई और कुरसी पर आंख बंद कर के बैठ गई थी.

उक्त महिला यानी यशोदा जी ने अपनी बेटी के बचपन की बातें डा. मणि को एक दिन सुनाई थीं… पंखुरी छोटी सी थी तब से उसे स्केचिंग का शौक था. उसे स्कूल से कई बार मैडल भी मिले थे. उस की प्रतिभा को पहचान कर उस की टीचर और प्रिंसिपल ने उन से कहा था कि इस का एडमिशन किसी आर्ट स्कूल में करवा दीजिए. यह बहुत आगे तक जाएगी. इस के अंदर प्रतिभा कूटकूट कर भरी हुई है. लेकिन पति की नाराजगी के डर के कारण उस के मुंह से आवाज ही नहीं निकलती थी.

एक दिन वह स्केचिंग में इतनी खोई हुई थी कि उस को पापा के अंदर आने की आहट ही न हो पाई थी. उन्होंने स्केचिंग करते देख आव देखा न ताव, उस के सुंदर चित्रों की फाइल को बेदर्दी से चिंदीचिंदी कर के हवा में उड़ाते हुए बोले, ‘खबरदार, यदि मैं ने अब कभी स्केचिंग करते देखा तो समझ लो, कैदियों की तरह कमरे में बंद कर दूंगा.’

उस दिन वह घंटों फूटफूट कर रोती रही थी. मांबेटी दोनों एकदूसरे से लिपट कर अपनी मजबूरी पर सारी रात आंसू बहाती रही थीं.

अब वह डर के कारण आधी रात को चोरीछिपे स्केचिंग कर के अपना शौक पूरा किया करती थी. उन्होंने बेटी के इस हुनर को देखा, परखा और समझा भी. परंतु अड़ियल पिता की जिद के कारण वह अपनी बेबसी पर आंसू बहा कर रह जाती थी.

पंखुरी 7वीं क्लास में आ गई थी. उसे मैथ्स में अच्छे नंबर नहीं मिले थे. अवधेश जी ने एक 20-22 साल के लड़के जयेश, जो उन के परिचित का बेटा था, को ट्यूटर की तरह रख दिया. वह एमएससी का छात्र था. वह अकसर पंखुरी के लिए चौकलेट ले कर आता. पंखुरी की मां ने उसे मना किया तो वह बोला, ‘आंटी, मेरी कोई बहन नहीं है, इसलिए यह मेरी छोटी बहन की तरह है.’ यह सुन वे चुप हो गई थीं.

परंतु लगभग 2 महीने भी नहीं हुए थे कि वह ट्यूटर को देख कर उन के पीछे छिपने लगी थी.

‘मम्मी, मुझे ट्यूटर से  नहीं पढना.’

‘क्यों, क्या बात है, मुझे बताओ?’

‘पापा मुझे डांटेंगे.’

वह उन के कान में फुसफुसा कर बोली थी, ‘वह उसे अपनी गोद में बिठाता है. उस के गालों को छूता है.‘ फिर वह डर कर चुप हो गई थी.

उस दिन के बाद से वह स्वयं कमरे में बैठ कर कुछ काम करने लगती थी. परंतु महीना पूरा होते ही जयेश ने स्वयं ही आना बंद कर दिया था. जिस की वजह से पति अवधेश उस पर बुरी तरह चीखेचिल्लाए थे.

वह अपनी कक्षा में प्रथम तो कभी नहीं आई परंतु पढ़ने में ठीकठाक थी. जब वह 8वीं कक्षा में अच्छे नंबर से पास हुई तो अवधेश जी ने खुश हो कर उसे एनरौयड फोन दिलवा दिया था. उसे कोचिंग जाने के लिए स्कूटी भी दिलवा दी थी.

अब तो उस की दुनिया ही बदल गई थी. उस के बहुत सारे दोस्त बन गए थे. वह कभीकभी क्लास कट कर पिक्चर जाया करती और उन्हें बता दिया करती थी.

‘मां, पापा को नहीं बताना, नहीं तो वे मेरी आफत कर देंगे.’

वे स्वयं उन से डरतीं थीं, इसलिए चुप रहतीं. लेकिन आगे से उसे जाने के लिए मन करती थीं.

परंतु अब उस का दायरा बढ़ने लगा था. वह स्कूल कैंटीन में कौफी और कोल्डड्रिंक का भी आनंद लेने लगी थी. इस के लिए भी जब उस की पौकेटमनी ख़त्म हो जाती तो वह उन से मांगती और वे न चाहते हुए भी उसे पैसे दे दिया करतीं. क्या वे गलत थीं, वे क्या करतीं?

यदि वे पति से कुछ भी कहतीं तो उन की अपनी मुसीबत होती और बेटी की तो जान की आफत ही हो जाती.

अपने अपने सपने : भाग 1

डा. मणि अपने चिरप्रतीक्षित सपने को साकार  रूप में मूर्त देख बहुत प्रसन्न थीं. उन की बेटी आद्या ने उन का नर्सिंग होम जौइन कर के उन्हें चिंतामुक्त कर दिया था. डा. अवनीश के साथ उस की जुगलबंदी देख वे मन ही मन उस के सुखद दांपत्य की कल्पना करतीं. लेकिन यह निर्णय तो पूर्णतया आद्या को या उन दोनों को ही करना होगा.

पिछले 10 वर्षों में इस नर्सिंग होम के रूप में जिस पौधे को उन्होंने  रोपा था वह आज वटवृक्ष बन कर शहर के विश्वसनीय नर्सिंग होम में शुमार हो चुका है. अब उन के चेहरे पर अपने सपने के पूर्ण होने की अपूर्व संतुष्टि का भाव रहता था.

एक क्रिटिकल केस में वे घंटों से परेशान थीं. जैसे ही पेशेंट ने आंखें फड़फड़ाईं, वे डा. पूनम को सब समझा कर अपने केबिन में आ गईं और ललिता से कौफी लाने के लिए कह कर आंखें बंद कर कुछ देर रिलैक्स होने की कोशिश करने लगीं कि तभी रीना अंदर आई और एक विजिटिंग कार्ड उन के सामने रख दिया.

उन्होंने उड़ती नजर से कार्ड को देखा, बोलीं, “आज मैं किसी मैडिकल रिप्रैजेन्टेटिव  से नहीं मिल पाऊंगी,  उन्हें डा. अवनीश से मिलने को कह दो.”

“डा. मैडम,  वे आप से ही मिलना चाहती हैं.‘’

उन्होंने कार्ड पर फिर नजर डाली, पंखुरी सिंह…“भेज दो.”

25 – 30 वर्षीया, छरहरी सी आकर्षक युवती, आंखों के अंदर से  झांकती कजरारी आंखें और माथे पर झूलती घुंघराली लटें,  कंधे पर सुंदर सा बैग लटकाअए हुई अंदर आते ही बोली, “डाक्टर साहिबा, नमस्कार.”

“नमस्कार,” उन्हें ऐसा लगा कि जैसे कोई चंदा मांगने के लिए आया है, इसलिए रूखी आवाज में बोलीँ, “क्या काम है?”

“मैडम, आप ने मुझे पहचाना नहीं?”

वे गौर से उस के चेहरे को देखने लगीं. अपने स्मृतिपटल को काफी खंगालने के बाद भी वे पहचान का सूत्र तलाशने में असमर्थ रही थीं. रोज सैकड़ों मरीजों व उन के रिश्तेदारों से मिलते रहने के कारण  मन में सबकुछ गड्डमड्ड सा हो रहा था.

फिर भी उस का चेहरा जानापहचाना सा जाने क्यों लग रहा था उन्हें.

“मैं, पंखुरी, जिस को  आप ने नया जीवन सच्चे अर्थों में दिया था.”

वे एकदम खड़ी हो गई थीं, “ओह पंखुरी, सालों पहले तुम अपनी मां के साथ आई थीं. तुम्हारे पापा पुलिस में थे, न.”

“यस, यस.”

“आओ बैठो, तुम्हारी मां व पापा सब ठीक तो हैं?”  यह कहने के बाद उन्होंने ललिता से कौफी  लाने को बोला और फिर से पंखुरी से मुखातिब हुईं, “मुझे कैसे याद किया, एनी प्रौब्लम?”

उस ने अपने बैग से एक कार्ड निकालते हुए कहा, “डा. मैडम, 4 मार्च को कला वीथिका सभागार  में मेरी एकल प्रदर्शनी है. उस की चीफ गैस्ट आप होंगी,” वह सकुचाते हुए आगे बोली, “उदघाटन भी आप को करना है. मैं ने बिना आप की परमिशन उदघाटन के लिए आप का नाम दे दिया है, इस के लिए बड़ा वाला सौरी.” वह सिर झुकाए खड़ी थी.

वे हंस पड़ी थीं.  उन्होंने कार्ड को ध्यान से देखा- ‘4 मार्च, सन्डे, शाम  3 बजे, …कला वीथिका. फिर बोलीं, “ठीक है, मैं आऊंगी.”

“मैं गाड़ी भेजूं?”

“नो नीड टु बी फौर्मल,” यह कह उन्होंने उठ कर उसे प्यार से गले लगा लिया.

“मैडम, मेरा ‘यशोदा’ नाम से बुटीक भी है. यह मेरे द्वारा डिजायन किया हुआ सूट आप के लिए मेरी ओर से गिफ्ट है.”

“अरे, इट्स ग्रेट, वेरी नाइस सूट. थैंक्स पंखुरी. आद्या, मेरी बेटी, ‘यशोदा बुटीक‘ के लिए कुछ कह तो रही थी. पंखुरी, आई विल कम.”

“बाय…” कहती हुई वह  चली गई थी.

वह ठंडी हवा के झोंके की तरह आई  और  चली गई. उन के स्मृतिपटल पर अतीत का पृष्ठ सजीव हो उठा और  पंखुरी का  क्लांत श्रांत चेहरा उन की आंखों के समक्ष दृष्टिगत हो उठा था. और आज, आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्वाभिमानी युवती को देख मन ही मन आत्मसंतुष्टि  से उन के चेहरे पर मुसकराहट छा गई थी.

वे अतीत के दिनों में पहुंच गई थीं…एक रात को 9 बजे ही वे अपनी कुरसी से घर जाने के लिए उठी थीं और अपने नर्सिंग होम का राउंड लेने के बाद मन ही मन बुदबुदाईं, ‘चलो, आज कोई सीरियस पेशेंट नहीं है. आज की रात चैन से सोऊंगी. घर जल्दी पहुंच कर थोड़ी देर आद्या के साथ भी समय बिताऊंगी.

उस की प्रिंसिपल ने भी एक दिन उन्हें बुला कर कहा भी था- डा. मणि, आप की बेटी शायद अकेलापन महसूस करती है. आप उसे थोड़ा टाइम दिया करिए. कहीं ऐसा न हो कि आप दूसरों का इलाज करती रह जाइए और आप की अपनी ही बेटी बीमार हो जाए.

घर आ कर वे आद्या पर कितनी नाराज हो उठी थीं. वे सोचने लगी थीं कि इस साल वह 12वीं पास तो हो जाएगी लेकिन अपनी पढ़ाई को ले कर वह सीरियस नहीं है. मेरे सपने का क्या होगा? एक आद्या ही तो  उन के जीवन की धुरी है. उस को हर हाल में उन का सपना पूरा  करना ही होगा.  यदि कंपीटिशन में अच्छी रैंक न आई, तो क्या होगा?

किसी अच्छे कालेज में एडमिशन के लिए कम से कम 50 लाख रुपए का खर्च आएगा. अभी तो नर्सिंग होम की ईएमआई चल ही रही है. इतने बड़े स्टाफ की सैलरी, नईनई मशीनें आदि सबकुछ लोन के बलबूते ही तो इतना बड़ा साम्राज्य  खड़ा हुआ  है. उन्होंने निश्चय किया कि आज ही वे आद्या से अवश्य अपने सपने को पूरा करने के लिए सीरियस हो जाने के लिए  कहेंगी.

वे स्टाफ को रात के लिए आवश्यक निर्देश देने के बाद अपनी गाड़ी स्टार्ट कर रही थीं कि सुपरवाइजर लीला घबराई हुई सी भागती हुई आई थी, ‘मैडम, इमरजैंसी केस है. लड़की बेहोश है. उस के मुंह से झाग निकल रहा है. शायद, उस ने कुछ उलटासीधा खा लिया है.’

 

तीरथ सिंह बने मुख्यमंत्री, ‘अपना पत्ता’ किया फिट

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को हटा कर भाजपा ने अपने नेताओं को संदेश देने का काम किया है कि हर विद्रोह को दबाया जाएगा. कांग्रेस की तरह अब भाजपा में भी विद्रोही स्वरों को दबाने के लिए पार्टी नेताओं पर हाईकमान के फैसले थोपे जाने की शुरुआत हो गई है. उत्तराखंड में भाजपा नेताओं के बीच विद्रोह का प्रभाव अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर न पड़े, इस के लिए पार्टी हाईकमान ने स्थानीय नेताओं की राय जाने बिना अपने फैसले से नया मुख्यमंत्री चुना. स्थानीय नेताओं के गुस्से को दबाने के लिए ऐसा फार्मूला 80 के दशक में कांग्रेस में अपनाया जाता था, जिस में कांग्रेस हाईकमान ताश के ‘पत्तों की तरह’ मुख्यमंत्रियों को बदलता था. वर्ष 1982 में श्रीपति मिश्रा अचानक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे. इस के पहले वे विधानसभा अध्यक्ष भी थे.

श्रीपति मिश्रा ने वाराणसी तथा लखनऊ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की थी. 1962 में वे पहली बार विधानसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कभी उन का नाम नहीं लिया गया. अचानक 19 जुलाई, 1982 को उस समय की कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने श्रीपति मिश्रा को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया 2 अगस्त, 1984 तक वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. श्रीपति मिश्रा को जिस दौर में मुख्यमंत्री बनाया गया उस समय मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता थे. साल 2000 में श्रीपति मिश्रा से जब मेरी उन के लखनऊ स्थित सरकारी आवास में मुलाकात हुई थी तब ‘सरस सलिल’ के लिए रिटायर मुख्यमंत्री के रूप में उन से बात की थी. उस समय उन्होंने कहा था, ‘उन के नाम पर कोई विवाद नहीं था,

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इस कारण हाईकमान उन को पंसद करता था. हाईकमान ने ही उन को मुख्यमंत्री बनाया था.’ 1980 के बाद जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाना शुरू किया तो राज्यों में मुख्यमंत्री बनाने का काम विधायकों की जगह हाईकमान के हाथ में आ गया था. राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अफसर की तरह बनाया और हटाया जाता था. कहावत थी कि मुख्यमंत्री ‘ताश के पत्तों’ की तरह से फेंटे जाते थे. केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, कांग्रेसशासित हर राज्य में मुख्यमंत्री के चुनाव का काम हाईकमान करता था. कांग्रेस का हाईकमान तब इतना पावरफुल था कि उसे लगता था कि राज्यों में चुनाव उस के नाम पर जीता जाता है. ऐसे में उसे मनचाहे ढंग से मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार है. कांग्रेस की इस सोच से दमदार नेताओं का पतन शुरू हो गया. परिणामस्वरूप एक दशक में ही पार्टी का राज्यों से जनाधार टूटने लगा. पार्टी सिमटने लगी. विरोध को दबाने के लिए उत्तराखंड से निकला संदेश श्रीपति मिश्रा का जिक्र उत्तराखंड में बनाए गए नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के संदर्भ में कर रहे हैं. ‘ताश के पत्तों’ की तरह फेंटे जाने की कांग्रेसी बीमारी भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान ताकतवर हाईकमान को भी लग चुकी है.

साल 2000 में उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनाया गया. 21 सालों में 10 मुख्यमंत्री कुरसी पर बैठ चुके हैं. यह हालत तब हुई जब उत्तराखंड में सत्ता कभी कांग्रेस और कभी भाजपा के साथ रही. दोनों ही दलों ने मुख्यमंत्री के नाम पर अपनेअपने नेताओं को ताश के पत्तों की तरह फेंटा. उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह पर पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया है. वे राज्य के 10वें मुख्यमंत्री हैं. भाजपा विधायक मंडल दल की मीटिंग में नए नेता के रूप में सब से पहले तीरथ सिंह रावत का नाम चुना गया. तीरथ सिंह रावत के नाम पर हाईकमान की मोहर पहले ही लग चुकी थी, इस कारण विधायक मंडल दल की मीटिंग में कोई हंगामा या विरोध नहीं हुआ. केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में रमन सिंह और प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम पूरे प्रकरण पर नजर रखे थे. अगले साल उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव होना है. इस फेरबदल से विधायकों की नाराजगी को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने की रेस में पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय शिक्षामंत्री रमेश पोखरियाल, राज्यमंत्री धन सिंह रावत, सत्यपाल महाराज, अजय भट्ट और राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी जैसे कई नाम दावेदार के रूप में देखे जा रहे थे.

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सांसद तीरथ सिंह रावत का नाम चर्चा से बाहर था. इस के बाद भी जब उन को मुख्यमंत्री बनाया गया तो सभी को हैरानी हुई. ऐसे में यह चर्चा होने लगी कि तीरथ सिंह रावत इतने ताकतवर कैसे हो गए कि भाजपा ने उन को मुख्यमंत्री बना कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेनापति बना दिया. तीरथ सिंह रावत संघ यानी आरएसएस के प्रमुख सदस्य रहे हैं. संघ की विचारधारा का उन पर बहुत असर है. संघ परिवार के करीबी पौड़ी जिले के सीरों गांव के रहने वाले तीरथ सिंह रावत 1992 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य के रूप में गढ़वाल विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने. 1997 में वे उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद के सदस्य बने. साल 2000 में जब अलग उत्तराखंड का गठन हुआ तो अंतरिम सरकार में वे पहले शिक्षामंत्री बने. 2007 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और 2012 के विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गए. गुटबाजी के चक्कर में 2017 के विधानसभा चुनाव में सिटिंग विधायक होने के बाद भी उन का टिकट काट दिया गया.

2019 में लोकसभा का टिकट पा कर सांसद बने. मुख्यमंत्री के रूप में किसी भी सियासी चर्चा में इन का नाम नहीं आया था. तीरथ सिंह रावत का नाम संघ और संगठन के मेहनती नेता के रूप में लिया जाता था. यही वह गुण था जिस की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में वे लोकसभा की अपनी सीट से इस्तीफा देंगे और फिर उत्तराखंड विधानसभा की किसी सीट को खाली करा कर विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. तीरथ सिंह रावत ने मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में कहा, ‘‘केंद्रीय नेतृत्व से बात कर के कैबिनेट का गठन होगा.’’ इस बयान से भी साफ है कि हाईकमान का कितना प्रभाव है. यही कुछ फार्मूला उत्तराखंड के बड़े भाई कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में पहले किया जा चुका है. 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने बहुमत से सरकार बनाई.

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मुख्यमंत्री का नाम चुनने में भाजपा के नेताओं को दरकिनार कर के गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया. वह फैसला भी हाईकमान का था. योगी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे की सब से बड़ी वजह यह थी कि उन को भाजपा ‘धर्म का ब्रैंड’ बनाना चाहती थी. आज भाजपा हर प्रदेश के चुनाव में योगी का प्रयोग ‘धर्म के चेहरे’ के रूप में कर रही है. विवादों से निबटने की जुगत चुने गए विधायकों की जगह पर हाईकमान द्वारा थोपे जाने वाले नेताओं को कुरसी पर बैठाने के पीछे प्रदेश के नेताओं में होने वाले विवाद हैं. कांग्रेस में भी 1980 के बाद ऐसे विवाद शुरू हो गए थे. 2014 में लोकसभा चुनाव जीत कर भाजपा ने जब केंद्र में सरकार बनाई तो कई प्रदेशों में उस ने ऐसे नेता चुने जिन की कोई खास पहचान न थी. नए चेहरों को आगे लाने का काम भाजपा ने हर स्तर पर शुरू किया.

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हालांकि, ज्यादातर ऐसे चेहरे सफल नहीं हुए. इस से पार्टी के अंदर बगावत तेज होने लगी. उत्तर प्रदेश में 100 से अधिक विधायकों ने विधानसभा में ही धरना दिया था. ऐसे में अब भाजपा हाईकमान ने अपने मन से फैसले करने शुरू कर दिए हैं. या यों कहें कि कांग्रेस की तरह अब भाजपा ने भी हाईकमान स्तर पर फैसले थोपने शुरू कर दिए हैं. छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जब मुख्यमंत्री थे तब उन के खिलाफ भाजपा में विद्रोह था. भाजपा ने चुनाव के पहले अपने 3 बार के मुख्यमंत्री रमन सिंह को हटाना उचित न सम झा, परिणामस्वरूप रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा वहां चुनाव हार गई. अब भाजपा विद्रोह करने वाले अपने नेताओं की नाराजगी को खत्म करने के लिए हाईकमान स्तर पर फैसले लेने लगी है. भाजपा अप्रत्याशित रूप से ऐसे नेताओं का चयन करने लगी है जो विवादों से निबटने में सफल होते हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को हटा कर भाजपा हाईकमान ने अपने नेताओं को कड़ा संदेश दे दिया है कि उन के विद्रोह को दबा दिया जाएगा.

Bigg Boss फेम एजाज खान ड्रग्स मामले में हुए गिरफ्तार

बिग बॉस 7 में अपने दमदार परफॉर्मेंस से सभी के दिलों पर राज करने वाले एजाज खान एक बार फिर सुर्खियों में छाए हुए हैं. एजाज खान के ऊपर ड्रग्स लेने का आरोप लगा हुआ है.

दरअसल, बिग बॉस 7 में एजाज खान को लोगों ने खूब प्यार दिया था, जिसके बाद वह लंबे वक्त से टीवी इंडस्ट्री से गायब थे. एजाज खान को हाल ही में एनसीबी वालों ने गिरफ्तार कर लिया है. अभिनेता को एनसीबी ने हाल ही में ड्रग्स मामले में मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया है.

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एजाज खान राजस्थान से शहर को वापस लौट रहे थें. उसी दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया. जिसके बाद इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर दी गई है. एनसीबी द्वारा मुंबई के दो स्थानों पर छापेमारी चल रही है. कहा जा रहा है कि ड्रग पेडलर शादाब बत्ता का नाम खुलकर सामने आ रहा है.

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पूछताछ के दौरान शादाब बत्ता ने एजाज खान का नाम कथित तौर पर लिया है. रिपोर्टेस के मुताबिक एनसीबी की टीम कई जगहों पर एजाज खान के खिलाफ छापेमारी कर रही है. अब ड्रग्स मामले में एजाज खान का नाम खुलकर सामने आ रहा है. साल 2018 में भी एक मामला सामने आया था जिसमें एजाज खान का नाम आगे आ रहा था.

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इससे पहले एजाज खान को गलत फोटो पोस्ट करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. अपने विवादित बयान को लेकर एजाज खान चर्चा में बने रहते हैं.

बेबी को हेल्दी रखता है मां का दूध, जानें ये 4 फायदे

हर मां बच्चे को हर हालत में स्तनपान ही कराना चाहती है और इस में खास बात यह है कि मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम होता है. एक रिसर्च के अनुसार मां के दूध में 100 ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं, जो गाय या भैंस के दूध में नहीं होते और न ही किसी प्रयोगशाला में बनाए जा सकते हैं.

मां के दूध में बच्चे की जरूरत के अनुसार अपनेआप ही परिवर्तन होते रहते हैं. जैसे सुबह का दूध दोपहर के दूध से फर्क होता है ताकि बच्चे को दूध पचाने में आसानी हो. ऐसे ही मां के दूध में गाय के दूध के मुकाबले सोडियम कम मात्रा में होता है, जिस से बच्चे के गुरदे आसानी से कार्य कर सकते हैं.

मां के दूध को बढ़ाता है सातावरी जड़ी बूटी वाला लैक्टेशन सप्लीमेंट

आइए जानते हैं कैसे बच्चे की सेहत के लिए फायदेमंद है मां का दूध…

1. पाचनक्रिया के अनुकूल

दरअसल, मां का दूध बच्चे की पाचनक्रिया और उस की संवेदनशीलता के अनुकूल होता है. इसीलिए इस में मौजूद प्रोटीन बच्चा सुगमता से पचा लेता है. जबकि गाय के दूध में होने वाला प्रोटीन और फैट जल्दी हजम नहीं होता. स्तनपान करने वाले शिशुओं में गैस कम बनती है और वे उलटी वगैरह से ज्यादा दूध भी नहीं निकालते. मां का दूध बच्चे के लिए सुरक्षित है. यह पहले से तैयार नहीं होता, इसलिए इस में संक्रमण नहीं होता और यह खराब नहीं होता.

2. पेट को देता आराम

मां का दूध खुद ही पाचन योग्य है, इसलिए जल्दी हजम हो जाता है. बच्चे को कब्ज की शिकायत और डायरिया की आशंका भी नहीं होती. मां का दूध भोजन हजम न करने वाले हानिकारक माइक्रो और्गनिज्म को निष्क्रिय कर शारीरिक वृद्धि वाले तत्त्वों को पैदा करने में सहायक होता है.

3. रोकता संक्रमण

स्तनपान से शिशुओं को ऐंटीबौडीज की बहुत हैवी डोज मिलती रहती है, जिस से उन के शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति अधिक होती है. अकसर पाया गया है कि मां का दूध पीने वाले बच्चों को नजला, जुकाम, कान, श्वासनली और मूत्राशय में संक्रमण की शिकायत बहुत कम होती है. यदि कुछ हो भी तो वह बहुत जल्दी ठीक हो जाता है, जबकि बोतल का दूध पीने वाले बच्चे को अकसर ऐसे छोटेमोटे संक्रमण हो जाते हैं. टिटनैस, डिप्थीरिया, पोलियो जैसे रोगों से लड़ने के लिए मां का दूध प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है.

4. मोटापे से बचाए

कई बार देखा गया है कि मां का दूध पीने वाले बच्चे, बोतल का दूध पीने वाले बच्चों के मुकाबले अधिक स्वस्थ होते हैं पर वजनी नहीं. वे मोटापे का शिकार नहीं होते. मां का दूध बच्चे को संतुष्टि देता है, भूख मिटाता है. यह बात बच्चे के शारीरिक विकास में किशोरावस्था में भी देखी जा सकती है. अनुमान है कि मां का दूध पीने वाले बच्चों में कोलैस्ट्रौल लेवल भी नियंत्रित रहता है.

Rohman Shawl से ब्रेकअप की खबरों पर सुष्मिता सेन ने लोगों को दिया करारा जवाब

बॉलीवुड के क्यूट कपल में से एक हैं सुष्मिता सेन और रोहन शॉल है. ये दोनों हमेशा अपने फैंस के बीच चर्चा में बने रहते हैं. कुछ वक्त पहले इन दोनों के ब्रेकअप कि खबरे फैंस के बीच आ रही थी. इसका करारा जवाब सुष्मिता सेन ने अपने फैंस को दिया है.

हाल ही में सुष्मिता सेन ने अपने ब्यॉफ्रेंड के पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा है कि ‘ वाह जान क्या बात है.” दरअसल रोहन शॉल ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट डाला है जिसमें एक सुखा पेड़ हैं. फोटो शेयर करते हुए लिखा है ‘उस वक्त उस जगह, जहां लगा मैं अकेला हूं,  वहां मुझे उस पेड़ का साथ मिला. इसे मैंने अब कैद कर लिया.

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जिसपर सुष्मिता सेन ने जमकर तारीफ किया है.फैंस भी इस तस्वीर की तारीफ करते नजर आ रहे हैं. जिस पर रोहन ने जवाब देते हुए लिखा है संगीत का सार है.

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रोहन शॉल और सुष्मिता का पोस्ट देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि दोनों के बीच सब कुछ ठीक चल रहा है. रोहन शॉल ने एक इंटरव्यू में बात करते हुए कहा था कि सुष्मिता और उनकी बेटियां हम सब परिवार की तरह हैं.

आगे उन्होंने कहा कि हम नार्मल फैमली के तरह रहते हैं और एक-दूसरे के साथ एंजॉय करते हैं. सभी के सुख और दुख में एक -दूसरे का साथ देते हैं.

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सुष्मिता सेन की वर्कफ्रंट की बात करें तो वह कुछ वक्त पहले वेब सीरीज ‘आर्या’ में नजर आई थी. सुष्मिता सेन काफी ज्यादा टाइम अपनी फैमली के साथ वक्त बीताती नजर आती रहती हैं.

सुष्मिता सेन इन दिनों वेब सीरीज पार्ट 2 की शूटिंग कर रही हैं. सुष्मिता सेन आए दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं. कभी अपने बच्चों के साथ बाहर घूमती नजर आती हैं. सुष्मिता सेन अपने लाइफ को काफी ज्यादा एंजॉय करती नजर आती हैं.

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