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आजादी -भाग 1 : विदेह के पिता जी की क्या इच्छा थी

लेखिका-सुषमा मुनींद्र

विदेह किशोरावस्था में पहुंच गया था, पर मांबाबूजी थे कि अभी भी बच्चा सम? उस की हर गतिविधि में अपना हस्तक्षेप रखते थे. जबकि विदेह अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व चाहता था. अपनी आजादी के लिए उस ने जो कदम उठाया, क्या वह ठीक था? कृपाशंकर स्कूल जाने के समय अपने 16 वर्षीय कुलदीपक एकलौते पुत्र विदेह को सजाते हुए कह रहे थे कि ‘‘टाई की नौट तिरछी क्यों है. इधर आओ… हां, अब ठीक है और ये बाल… उफ्फ, विदेह, तुम इन्हें माथे पर क्यों गिराए रहते हो. मैं तो तरस गया कि मेरे बाल तुम्हारे बालों की तरह ऊपर की ओर मुड़ें पर कितना भी ऊपर करता हूं ये माथे पर आ ही जाते हैं और तुम्हारे बाल ऊपर की ओर रहते हैं तो भी तुम उन्हें माथे पर छितराते रहते हो.

वही फिल्मी स्टाइल… अरे, पुरुषों का चौड़ा माथा प्रखर बुद्धि का प्रतीक माना जाता है,’’ यह कहते हुए पुत्र को हाथ से थाम कर कृपाशंकर उस के बालों में कंघी फेरने लगे. 2-1 स्थानों पर कंघी की उलटी तरफ से तनिक दबाव डाल कर उन्होंने बालों से लहरिया सी बनाई. कई कोणों से पुत्र का केशविन्यास देखा और संतुष्ट हुए. फिर बोले, ‘‘और शर्ट को पैंट के अंदर कर के पहनी है न, हां, अंदर कर के ही पहना करो. स्मार्ट लगते हो. खूब ठाट से रहो बरखुरदार. वैसे, तुम चाहो तो एक बार आईना देख लो, कोई कसर तो नहीं रह गई. कद में मु?ा से ऊंचे हो गए हो, ठीक से तुम्हारा सिर नहीं दिखता है.’’ इस दौरान कृपाशंकर ही बोलते रहे. पुत्र तकरीबन चुप ही रहा. वह खिन्न था क्योंकि परसों कृपाशंकर ने उसे मित्रों के साथ दशहरे का जुलूस देखने को नहीं जाने दिया.

अब आज सब मित्र उस की खिल्ली उड़ाएंगे. पहले भी बहुत बार उड़ा चुके हैं. पर बाबूजी को इस से क्या, ऐसे सजाधजा रहे हैं जैसे परसों कुछ हुआ ही नहीं. उसे बिलकुल पसंद नहीं है कि बाबूजी उसे इस तरह तैयार करें. पहले अम्मा तैयार किया करती थी जब केजी में भरती हुआ और तब उस का मुंडन संस्कार भी नहीं हुआ था. अम्मा बड़े मनोयोग से उस के लंबेलंबे बालों को बीच से समभागों में विभाजित कर सिर के दोनों ओर छोटेछोटे जूड़े बना देती. आंखों में अंजन और कनपटी में डिठौना. शिक्षिकाएं उसे लड़की सम?ा लेतीं. नाम से ही पता चल पाता था कि वह लड़का है. घर आ कर विदेह अम्मा की साड़ी खींच जमीन पर लोट जाता, रोताचिल्लाता. अम्मा अपने बालकृष्ण की बाललीला देख उस पर निछावर हो जाती. 5 वर्ष की उम्र में मुंडन हो जाने से बालों की समस्या तो सुल?ा गई पर अंजन का प्रयोग अम्मा ने बड़ी मुश्किल से छोड़ा.

अम्मा से छुटकारा मिला तो बाबूजी ने उसे सजानेधजाने का बीड़ा उठा लिया है जैसे वह दूधपीता बच्चा है. विदेह तेज चाल से, बूट पटक कर रोष प्रकट करता, स्कूलबैग पीठ पर लाद, साइकिल घसीट कर स्कूल चल दिया. मार्ग में साइकिल रोकी, बाल बिखेरे और जेब से छोटी कंघी निकाल अपनी रुचि के बाल संवार लिए. बाबूजी को करण दीवान जैसा लहरियादार केशविन्यास पसंद है तो खुद अपने बाल ऊपर को मोड़ें, पर वे क्या मोड़ेंगे, उन के बाल तो सदैव वामपंथियों की भांति वाम दिशा को भागते हैं. एक वही है जो उन का विरोध नहीं करता, इसीलिए उसे भाड़े के टट्टू की भांति उपयोग करते हैं. अपनी रुचि और पसंद उस पर थोपते हैं. कहते हैं, ‘शर्ट पैंट के अंदर कर के पहना करो.

इस तरह पैंट के ऊपर क्यों कर लेते हो. सुंदर दिखो.’ सुंदरता क्या मात्र कपड़ों से आती है. स्वतंत्र व्यक्तित्व क्या कुछ नहीं है. क्या आत्मविश्वास कुछ नहीं. शर्ट अंदर कर के पहनना उसे भी अच्छा लगता है, पर यूनिफौर्म की शर्ट को छोड़ कर और कोई शर्ट अंदर नहीं करता. बाबूजी का विरोध कर उसे आजादी का बोध होता है, स्वतंत्र निर्णय लेने का संतोष मिलता है. सच कहें तो उसे बाबूजी का जी दुखाने में आनंद आता है. जब से उस ने किशोरावस्था में कदम रखा है, बाबूजी उसे सब से बड़े दुश्मन लगने लगे हैं. कितनी कठिनाई से तो बाबूजी ने उसे अपने साथ सुलाना छोड़ा है. वह अपना अलग कमरा, अलग बिस्तर चाहता है. बाबूजी को यह सम?ाने में उसे बहुत बार वाकयुद्ध करना पड़ा. उसे अपने कमरे में माइकल जैक्सन और सलमान खान के पोस्टर लगा कर स्वतंत्रता का बोध होता है.

कमरे में अपने व्यक्तित्व की छाप देख उसे अच्छा लगता है. कानों से वौकमैन लगा, बाबा सहगल के गाने सुनता हुआ वह घंटों मगन रहता. पर बाबूजी को उस की यह आजादी फूटी आंख नहीं सुहाती. कहते हैं, ‘विदेह, क्या ऊटपटांग काम करते हो. अरे, इन की जगह कोई और तसवीर टांगो.’ वह क्रोध में मुट्ठियां भींचने लगता. बाबूजी का अनुशासनप्रशासन अपने कमरे में नहीं चलने देगा. इस वर्ष 12वीं में पढ़ रहा है. कब तक इन की तानाशाही सहे. वे कहते तो बड़ी अकड़ से हैं कि बेटा, खूब पढ़ो. जमीनजायदाद भी बेचनी पड़े तो भी तुम्हें डाक्टरी पढ़ाऊंगा. लेकिन वह क्षुब्ध हो उठता है, ‘कैसे पढ़ाएंगे, आप मु?ो घर से बाहर छात्रावास भेजेंगे भी?’ ‘छात्रावास क्यों? किराए पर कमरा ले कर तुम्हारी अम्मा तुम्हारे साथ जो रहेंगी.’ ‘नहीं, मैं छात्रावास में रहूंगा. गोद का बच्चा नहीं हूं जो चम्मच से दूध पिऊं. मु?ो आप की बनियान और जूते सही आने लगे हैं और आप हैं कि…’ विदेह बोला. ‘क्यों नहीं, क्यों नहीं.

तुम बड़े जो हो गए हो,’ कह कर बाबूजी उस की बलिष्ठ देहयष्टि देख गर्व से भर जाते. ‘नहीं, मैं बड़ा नहीं हुआ. आप और अम्मा मु?ो बड़ा होने नहीं देते. शरीर बढ़ने से क्या होता है, आप लोग मु?ा से अभी भी बच्चों जैसा व्यवहार जो करते हैं,’ कह विदेह और तन जाता. ‘बेटा, तुम हमारे एकलौते पुत्र हो. हमें तुम्हारी सदैव चिंता लगी रहती है. पर तुम हमारी भावनाओं को नहीं सम?ागे. उस के लिए पिता का हृदय चाहिए,’ कह कर बाबूजी नित्य की भांति उस के सिर पर हाथ फेर ब्रह्मास्त्र चला देते हैं और वह घुटने टेक देता है. वह मानता है कि अम्माबाबूजी उसे अपने प्राणों से अधिक चाहते हैं, पर वे सम?ाते क्यों नहीं कि वह मात्र उन का पुत्र होने के साथ उस का एक पृथक व्यक्तित्व है जो अपनी इच्छा का कुछ करना चाहता है. उसे उन के सान्निध्य से अधिक आनंद मित्रमंडली में आता है.

कोरोना की मार,पढ़ाई का हो रहा बंटाधार

कोरोना इस काल में लोगों की जान  हलक में अटकी  है. कई लोग अस्पताल के बेड पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं.जो ठीक भी हैं तो उनके चारों तरफ कोरोना का खतरा मंडरा रहा है ….लेकिन साथ ही इससे सबसे ज्यादा असर बच्चों की पढ़ाई पर हो रहा है.कोरोना की खतरनाक लहर के बीच कई तरह के एग्जाम कैंसल हो गए. बोर्ड एग्जाम भी कैंसिल हो गए.बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं.ऑनलाइन पढ़ाई भले ही समय की मांग हो लेकिन फिर भी जितना बच्चे स्कूल जाकर सीखते हैं , जो एक्टिविटी उन्हें स्कूल में करने को मिलती है वो घर पर तो बिल्कुल भी मुमकिन नहीं है.

इतना ही नहीं साथ ही कॉलेज बंद हो गए और उनके एग्जाम भी कैंसिल हो गए. कहां वैक्सीन आने के बाद लग रहा था कि अब सब कुछ सामान्य हो जाएगा और स्कूल -कॉलेज भी धीरे-धीरे खुलने लगेंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उल्टा कोरोना वापस से आ गया और इस बार कुछ ज्यादा ही तेजी  के साथ फैल रहा है. इन सब के बीच में पढ़ाई  और वक्त दोनों का ही नुकसान हो रहा है.

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कोरोना के कोहराम के बीच सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा रद्द कर दी गईं. कई राज्यों ने बोर्ड की परीक्षा रद्द कर दी. जेईई मेन्स की भी परीक्षा टल गई लेकन एनडीए की परीक्षा में कोई बदलाव नहीं किया गया . हालांकि वहीं इसके उलट भारी कोरोना संक्रमण के बीच राजधानी में एनडीए की परीक्षाएँ करायी जा रही हैं. लखनऊ के अमीनाबाद में आज नेशनल डिफेंस एकेडमी की परीक्षा में शामिल होने के लिए छात्र पहुंचे थे .वीकेंड लॉकडाउन की वजह से छात्र अपने साधन से लखनऊ पहुंचे.  जिससे इन्हें यहां  पहुंचने में काफी दिक्क्त का सामना भी करना पड़ा.उनके साथ अभिभावक भी आए थे,  और सभी अभिभावक ने कहा कि कहा कि संक्रमण के खतरे को देखते हुए परीक्षा रद्द करनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया जबकि कोविड के चलते बच्चों की आधी स्ट्रेंथ ही थी.अब सोचने वाली बात ये है कि शायद ये कोरोना ना होता तो बच्चों की संख्या ज्यादा होती है लेकिन इस पर भी कोरोना का ही असर था जो बहुत ही कम बच्चे परीक्षा देने पहुंचे थे.

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हालांकि NDA  की परीक्षा भले ही हो गई लेकिन बाकी सभी परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं और देखा जाए तो कोरोना के कारण ये फैसला बिल्कुल सही है लेकिन एक बार से बच्चों की पढ़ाई पर इसका बुरा असर पड़ रहा है.बच्चे दिन- रात तैयारी करके सोचते हैं कि अब परीक्षा हो जाएगी तो आगे की पढ़ाई होगी. क्या- क्या सपने होते हैं लेकिन ये सब कुछ कोरोना के कारण बर्बाद होता नजर आ रहा है.राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़ने के बाद दिल्ली सरकार ने  स्कूलों में 9वीं और 11वीं कक्षाओं की परीक्षाएं रद्द कर दी. इसकी जानकारी  उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने घोषणा करके दी. वहीं ओडिशा बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (Odisha BSE) ने क्लास  9वीं और 11वीं के छात्रों को बिना परीक्षा के प्रमोट करने का फैसला लिया है और बोर्ड ने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा को स्थगित कर दिया है.

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राज्य में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के चलते पैदा हुए हालातों को देखते हुए यह निर्णय लिया है. राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने ट्वीट करके ये जानकारी साझा की कि , शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के कक्षा 9 और 11 के सभी स्टूडेंट्स को बिना परीक्षा के अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाएगा.लेकिन सोचने वाली बात ये है कि बच्चों को अब बिना परीक्षा दिए ही प्रमोट कर दिया जाएगा क्या ये पढ़ाई के लिए ठीक है ? लेकिन हालात ऐसे पैदा हो गए हैं कि इसको गलत भी क्या कहें.

गरमियों में मूंग की खेती कर मुनाफा कमाएं

लेखक- रवि प्रकाश 

गरमियों में विभिन्न दलहनी फसलों में मूंग की खेती का विशेष स्थान है. इस की खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी का सदुपयोग आदि कई फायदे बताए गए हैं. साथ ही, यह भी बताया गया है कि रबी दलहनी फसलों में हुए नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो जाएगी.जलवायु मूंग में गरमी सहन करने की क्षमता अधिक होती है. इस की वृद्धि के लिए 27-35 डिगरी सैंटीग्रेड तक तापमान अच्छा रहता है.मिट्टी और खेत कीतैयारी उपजाऊ व दोमट या बलुई दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 6.3 से 7.3 तक हो और जल निकास की व्यवस्था हो तो अच्छी होती है.बोआई का उचित समय25 फरवरी से अप्रैल के पहले हफ्ते तक बोआई जरूर कर दें.

देर से बोआई करने से फूल व फलियां गरम हवा के चलते और वर्षा होने से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.उन्नतशील किस्में पंत मूंग -2,नरेंद्र मूंग -1, मालवीय जागृति, सम्राट, जनप्रिया, विराट, मेहा वगैरह खास हैं. ये किस्में सिंचित इलाकों में गरमियों के मौसम में उगाई जाती हैं, जो 60 से 70 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं. इस की पैदावार प्रति एकड़  4 से 5 क्विंटल है.बीज की मात्रा, बीजोपचार व दूरी  गरमियों में 10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में डालना चाहिए. कूंड़ों में 4-5 सैंटीमीटर की गहराई पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सैंटीमीटर पर बोने  से जमाव ठीक होता है.

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मूंग के बीजजनित रोगों से बचाव के लिए प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाएं. इस के बाद बोआई के 8-10 घंटे पहले  100 ग्राम गुड़ को आधा लिटर पानी में घोल कर गरम कर लें. ठंडा होने के बाद मूंग के राईजोबियम कल्चर के एक पैकेट को गुड़ वाले घोल में डाल कर मिला लें और उसे बीजों पर छिड़क कर हाथ से अच्छी तरह से मिला दें, जिस से हर दाने पर टीका चिपक जाए. इस के बाद बीज  को छाया में सुखा कर बोआई करें.

खाद वउर्वरकप्रबंधन  मिट्टी की जांच के आधार पर खाद  व उर्वरक का प्रयोग करें. आमतौर पर  40 किलोग्राम डीएपी, 13 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश व 50 किलोग्राम फास्फोजिप्सम प्रति एकड़ में प्रयोग से उपज में विशेष बढ़वार होती है. बोआई के समय उर्वरक कूंड़ों में  देनी चाहिए.सिंचाईसिंचाई भूमि के प्रकार, तापमान व हवा की तीव्रता पर निर्भर करती है. 3-4 सिंचाई सही होती हैं.

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पहली सिंचाई बोआई के 20 से 25 दिन बाद करें. उस के बाद जरूरत के मुताबिक  10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. बोआई के 50-55 दिन बाद सिंचाई करें.खरपतवार प्रबंधनगरमी में खरपतवार कम उगते हैं, फिर भी बोआई के क्रांतिकाल (बोआई के 20-25 दिन बाद) तक खरपतवारमुक्त फसल रखना जरूरी है.तुड़ाई जब फलियां पक जाएं, तो फलियों की तुड़ाई  कर सकते हैं. फलियां तोड़ने के बाद फसल को खेत में दबाने से फसल हरी खाद का काम करती है और खेत को मजबूती मिलती है.

 

Indian Idol 12: जयाप्रदा के आते ही कोरोना गाइडलाइन्स को भूले मेकर्स, फोटो देख उड़े सभी के होश

टीवी जगत का पसंदीदा  सिंगिग रियलिटी शो इंडियन आइडल 12 के बीते एपिसोड़ में जयाप्रदा गेस्ट बनकर आई थी. इस स्पेशल एपिसोड़ की शूटिंग हो चुकी है और जयाप्रदा के आते ही शो में कोरोना गाइडलाइन्स की जमकर धज्जियां उड़ाई गई.

सेट के सामने से आई फोटो को देखने के बाद सभी के होश उड़ जा रहे हैं. जयाप्रदा जैसे ही शो के अंदर एंट्री करती हैं वैसे ही जयभानुशाली  कोरोना के गाइडलाइन्स को तोड़ते हुए उनका हाथ पकड़कर अंदर एंट्री करवाते हैं. इसके साथ ही उन्हे सीट तक ले जाकर बैठाते हैं.

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अपने जमाने की जानी-मानी हसीना जयाप्रदा शो में आने के लिए बेहद खूबसूरत ड्रेस का चयन किया था. जयाप्रदा का यह ड्रेस लोगों को काफी ज्यादा पसंद आ रहा है. इंडियन आइडल के मेकर्स इस एपिसोड़ को मजेदार करके दिखाने वाले हैं.

 

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इस दौरान शो के कंटेस्टेंट दानिश ने डफली वाले  गाना को गाया तो जयाप्रदा मस्त होकर डांस करती नजर आई. इस दौरान शो के मेकर्स ने सोशल डिस्टेंसिंग का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा. वही निहाल ने जैेसे ही अपना परफॉर्मेंस खत्म किया जयाप्रदा ने जमकर उनकी तारीफ की.

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सेट से आई तस्वीर को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे सोशल डिस्टेंसिंग का धज्जिया उडाया जा रहा है. सेट से लिक हुई तस्वीर ने सोशल मीडिया पर कोहराम मचा दिया है. सभी इस तस्वीर को देखने के बाद से सन्न है. देखते आगे शो में और क्या होता है.

Rubina Dilaik के फोटोशूट से मचा सोशल मीडिया पर धमाल, ट्रोलर्स को दिया जवाब

सीरियल ‘छोटी बहू’ और ‘शक्ति अस्तित्व’ की एहसास के जरिए अपनी पहचान बनाने वाली  एक्ट्रेस       रुबीना दिलाइक  का नया फोटो शूट हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है. एक्ट्रेस को कुछ दिनों से अपने ड्रेस के लिए कई बार मजाक और ट्रोलर्स का सामना करना पड़ा है.

ऐसे में उन्होंने एक बार फिर से लोगों को करारा जवाब दिया है. रुबीना दिलाइक के नए फोटो शूट को देखने के बाद फैंस का यही कहना है कि वाकई लाजवाब है यह फोटो.

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विग बॉस विनर रुबीना दिलाइक को अपने कई फोटो शूट के लिए कई बार खरी खोटी सुनने को मिला है.  वहीं कुछ लोगों ने तो उनके फैशन सेंस की धज्जियां तक उड़ा दी थी. जिसके बाद से रुबीना दिलाइक ने इसे संभालते हुए फोटो शूट करवाया है.

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रुबीना दिलाइक का यह ड्रेस लोगों के दिल को छू गया है. वहीं रुबीना दिलाइक कॉफिडेंट भी काफी ज्यादा कॉफिडेंट लग रही है, रुबीना के इस लुक को लोग काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं. रुबीना दिलाइक पहले से भी ज्यादा हॉट इस तस्वीर में लग रही हैं.

 

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बता दें कि बिग बॉस के घर में रुबीना दिलाइक को कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ा था लेकिन बावजूद इसके रुबीना दिलाइक ने हिम्मत नहीं हारी और वह इस साल बिग बॉस का खिताब अपने नाम करके ही मानी . रुबीना के इस तस्वीर की चर्चा सोशल मीडिया पर भी जमकर हो रही है.

कोरोना 2.0 : लौकडाउन के डर से गांव वापस जाते प्रवासी

लेखक- शाहनवाज

कोरोना के कारण देश के लगभग हर शहर के बिगड़ते हालातों से भला इस समय कौन परिचित नहीं है. पिछले साल लगभग इसी महीने के आस पास देश में सम्पूर्ण लौकडाउन के चलते उस के कारण पड़ने वाले प्रभाव का बुरा असर देश की गरीब जनता, जिस में मुख्य रूप से शहरों में रहने वाले प्रवासी मजदूर थे, उन पर पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश में लगाए गए 21 दिनों के पहले फेज वाले सम्पूर्ण लौकडाउन के तीसरे ही दिन लौकडाउन के कारण पड़ने वाले सब से विकराल समस्या की तस्वीरें सामने आ गई थी.

शहरों में रहने वाले ध्याड़ी मजदुर, रिक्शा चालक, फैक्ट्री में बेहद कम तन्खवा पर काम करने वाले लोग और बेरोजगार युवा अपनेअपने घरों की ओर लौटने के लिए पैदल ही रवाना हो चले थे. देश के सभी बड़े शहरों के बस अड्डों में, इन प्रवासी लोगों के गांव-घर लौटने की मजबूरी के कारण लोगों का जमावड़ा लग गया था. हालांकि देश में आज कल कोरोना की दूसरी लहर चल पड़ी है जो पिछले साल की तुलना में और भी अधिक घातक और भयानक साबित हो रही है.

पिछले साल की तुलना इस साल से करें तो इस बार कोरोना के वैक्सीन बनने के बावजूद पिछले साल के मुकाबले दुगनी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं. कोरोना के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. देश के कुछ राज्यों के हालात तो इतने दयनीय हो गए हैं की कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीजों को अस्पताल में बेड नहीं मिल रहा. अस्पतालों में औक्सीजन की किल्लत बढ़ती ही जा रही है. हाल तो यह है कि वैक्सीन लगाने के लिए लोगों को अस्पतालों में 7-8 घंटे लाइन में खड़े रहने को मजबूर होना पड़ रहा है. यहां तक कि देश में कई राज्यों में वैक्सीन खत्म हो रही है. देश में लगभग सभी राज्यों की स्वास्थ व्यवस्था पूरी तरह से चरमराती हुई नजर आ रही है.

क्या हैं दिल्ली के हालात?

दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए गुरुवार 15 अप्रैल को दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया. दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथौरिटी (डीडीएमए) ने दिल्ली वीकेंड लौकडाउन के ‘डूस’ और ‘डोंट्स’ की एक विस्तृत सूची जारी की, जिस में बताया गया कि वीकेंड लौकडाउन के दौरान क्या कार्य करने की अनुमति होगी और क्या नहीं. जबकि दिल्ली सरकार ने सभी शौपिंग मौल, जिम, स्पा, औडिटोरियम, असेंबली हौल, एंटरटेनमेंट पार्क और इसी तरह के स्थानों को 30 अप्रैल तक बंद करने का आदेश दिया है. जिस दौरान शहर में आने वाले या प्रस्थान करने वाले लोगों को बिना किसी प्रतिबंध के आने-जाने की अनुमति होगी. बता दें कि दिल्ली में रात का कर्फ्यू पहले से ही लगा हुआ है और किसी भी व्यक्ति को छुट के लिए दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर ई-पास के लिए आवेदन करना होगा.

सरकार के फैसले पर लोगों में डर

ऐसे में यह जानने के लिए कि दिल्ली सरकार के इन फैसलों से दिल्ली में रहने वाले प्रवासी मजदूरों पर क्या फर्क पड़ने वाला है, सरिता टीम दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर माहौल का जायजा लेने पहुंची. आनंद विहार मेट्रो स्टेशन गेट नंबर 1 से निकलते ही कोरोना की जांच का एक सेंटर वहीं मौजूद था, जहां पर लाइन में खड़े बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी इस बात का प्रमाण थी कि लोग बस अड्डे अपनेअपने गांव जाने के लिए ही पहुंचे हैं. कोरोना की जांच की लाइन में खड़े लोगों के बीच 1-1 हाथ का गैप था. जिस टेंट के नीचे लोगों की जांच हो रही थी उस के इर्द-गिर्द सिविल डिफेन्स के करीब 15-20 वालंटियर और 2-3 पुलिस वाले वहां लोगों की बढ़ती गहमा-गहमी को कंट्रोल करने का काम कर रहे थे.

सूरज चढ़ने के साथसाथ गर्मी बढ़ रही थी, लोग धूप में, पसीने से लथपथ, मुह पर मास्क लगाए, अपने दोनों हाथों में सामान लिए, पीठ पर बस्ता टांगे उस लाइन में खड़े हो कर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे. हर किसी का हाल लगभग एक जैसा ही था. कोई भी अपनी मर्जी से, शौक से वहां नहीं खड़ा था, बल्कि मजबूरी में था. फिर चाहे वह गांव लौटते मजदूर हो, कोरोना की जांच करते पीपीई किट पहने लोग हों, या फिर सिविल डिफेन्स और पुलिस वाले.

भीड़ से छटते हुए किसी तरह से हम आनंद विहार बस अड्डे के अंदर पहुंचे. अंदर जाते ही दूर से यह दिखा की लोग अपनीअपनी बस का इंतजार कर रहे थे. भीड़ काफी थी. कोई सामाजिक दूरी नहीं, जिस का होना संभव भी नहीं था. ऐसे ही भीड़ में अपनी बस का इंतज़ार कर रहे उत्तर प्रदेश के बहराइच के रहने वाले रामू यादव से हमारी बात हुई. रामू यादव दिल्ली एनसीआर में गुडगांव में एक बस्ती में किराए के कमरे में रहते हैं और लकड़ी का काम करते हैं. रामू ने बताया कि उन के गांव वापिस जाने का मुख्य कारण एक तो काम का पर्याप्त रूप से न मिल पाना है और दूसरा यह की कब किस वक्त लौकडाउन लगा दिया जाएगा कुछ पता नहीं.

रामू कहते हैं, “गुडगांव में हमारा अपना काम है. लेकिन पिछले साल लौकडाउन में हमारा सारा काम डूब गया. हमें पिछली बार भी लौकडाउन के समय बाकि लोगों की तरह पैदल गांव जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. आदमी एक बार गलती से कूएं में गिर सकता है बार बार नहीं. इस बार जिस तरह से वायरस दोबारा से फैल रहा है उस से लग रहा है की सरकार फिर से लौकडाउन लगा देगी. इसीलिए हम अभी से ही गांव जा रहे हैं.”

रामू यादव अकेले नहीं बल्कि अपने 7 और दोस्तों के साथ वापिस अपने गाँव जा रहे थे. सभी के हाथों में 2-2 बड़े बैग, पीठ पर बस्ता, कुछ के हाथों में पानी की बोतल इत्यादि सामान मौजूद था. रामू के दोस्त, प्रदीप मिश्रा ने कहा, “हम जानते हैं की बिमारी की वजह से इस तरह से बार बार कभी लौकडाउन तो कभी कर्फ्यू लगाया जा रहा है और हम इस से बहुत परेशान हैं. कोरोना का भी अजीब सिस्टम है, जहां चुनाव हो रहे हैं वहां नहीं फैलता. हम मजदूरों की स्थिति थोड़ी ठीक होने लगी थी अब फिर से सरकार इस तरह से लौकडाउन लगाएगी तो हम जैसे गरीबों को भूखे मरने की नौबत आ सकती है.”

उत्तराखंड में रामनगर के रहने वाले सतीश रावत अपने छोटे भाई विक्की के साथ उत्तराखंड जाने वाली अपनी बस का इंतजार कर रहे थे. काफी देर बाद एक बस आई जो की पहले से भरी हुई थी, और उस में चढ़ने के लिए और भी ढेरों सवारी पहले से उस के आने का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही बस अपनी जगह पर आई तो उस का इंतजार कर रहे सभी लोग उस पर टूट पड़े. देखते ही देखते बस के अन्दर सारी सीटें भर गई. यहां तक की सीट छोड़ लोग चिपकचिपक कर खड़े हो गये. जिस कारण बस में चढ़ने को जगह बची ही नहीं. बाकि लोगों की तरह सतीश रावत उस में नहीं चढ़ पाए और हताश हो कर अगली बस का इंतजार करने लगे. उन के चहरे पर थकान और उदासी दोनों ही साफ साफ देखी जा सकती थी.

32 वर्षीय सतीश ने बताया की वह दिल्ली के उत्तम नगर में किराए के कमरे में रहते हैं और बैंक्वेट हौल में वेटर का काम करते हैं. उन्होंने बताया की वह कई लोगों के संपर्क में रहते हैं जो उन्हें काम पड़ने पर बुला लेते हैं. वे एक ध्याड़ी मजदूर हैं. वह कहते हैं, “जब से कोरोना की शुरुआत हुई है हिन्दुस्तान में करोड़ो लोगों की तरह हमारा काम भी बुरी तरह से चौपट हुआ है. लेकिन हाल फिलहाल में थोडा बहुत काम मिलना शुरू हुआ था पर अब कोरोना फिर से बढ़ने लगा है, और मैं नहीं चाहता की पिछली बार की तरह इस बार भी मैं दिल्ली में फसा रह जाऊ.”

“पिछले साल कई लोगों की मदद भी मिली. सरकार ने राशन भी दिया. लेकिन सरकार के मंत्रियों ने, नेताओं ने हम जरुरतमंदों को जलील करने का काम किया. वो एक रोटी देते हैं और 4 लोग मिल कर फोटो खींचते हैं जिस से हमें बहुत शर्मिंदगी होती है. और ये शर्मिंदगी मैं फिर से नहीं सहन करना चाहता. बेशक गांव में जा कर घर के आंगन में कुछ भी उगा लेंगे. लेकिन अपना आत्मसम्मान बरकरार रखेंगे.”

यूपी, बिहार, उत्तराखंड में जाने वालों की संख्या बढ़ी

बस अड्डे में अपने गांव लौटते लोगों से बात करने के बाद हम ने वहां मौजूद दुकानों में सामान बेचने वाले लोगों से बात की. खाने पीने का सामान और मोबाइल एक्सेसरीज बेचने वाले दुष्यंत शर्मा बताते हैं की यहां पर पिछले 10 दिनों से गांव लौट रहे लोगों की संख्या में लगातार इजाफा ही हुआ है. वह कहते हैं, “पिछले 10 दिनों से यहां पर लोगों की भीड़ बढ़ी ही है लेकिन हमारी दुकानों से सामान बहुत ही कम बिका है. लोगों के पास इतना पैसा भी नहीं है की वह हमारी दुकानों से पीने के लिए पानी तक खरीद सके. नवम्बर दिसम्बर से लोगों के चेहरों पर रौनक आनी शुरू ही हुई थी, उन के हालात सुधरे ही थे लेकिन अब दोबारा से पिछले साल की तरह लौकडाउन लगा देंगे तो इस बार लोग कोरोना से ज्यादा भुखमरी से मारे जाएंगे. ये कोरोना के डर से नहीं बल्कि भूख के डर से लोग अपनेअपने घरों की ओर भाग रहे हैं साहब.”

वह आगे कहते हैं, “सरकार 36 तरह की पाबंदियां लगा देती है और उसे कर्फ्यू का नाम दे देती है. ये तो वही बात हो गई, की सांप की खाल पहन कर मगरमच्छ आ जाए तो उसे सांप थोड़ी न कहा जा सकता है भला. वो तो है मगरमच्छ ही न. ठीक उसी तरह से इन्होने लौकडाउन का नाम बदल कर कर्फ्यू कर दिया है. लोग इतने भी बेवकूफ नहीं रह गए हैं. हमें किसी भी सरकार पर रत्ती भर भरोसा नहीं रह गया अब तो. आज कर्फ्यू है, कल लौकडाउन होगा. नेता तो चुनावों में मौज मार लेंगे लेकिन हम जैसे लोगों का बंटाधार हो जाएगा.”

चक्रव्यूह- भाग 1: ससुराल वालों ने इरा को क्यों नहीं लौटने दिया?

गीले शरीर पर पतली सी धोती लपेटे, मर्दों के सैलूनों में झांकती चलती इरा, दहलीज पर खड़ी हो, वहीं बाईं ओर पड़े तांबे के लोटे में से थोड़ा जल उंगलियों पर डाल खुद पर छिड़कती. यह शुद्धीकरण रास्ते की गंदगी से भी होता और अपने मन की अशुद्धि से भी. मन की अशुद्धि क्या थी, यह इरा नहीं जानती थी, पर लोग जानते थे. कहते थे, विधवा है फिर भी तालाब पर नहाने जाती है, इधरउधर झांकती है, जवान है, विधवा है, घर पर रहे. पति फौज में था, देशसेवा में जान दे दी, पर इस से इतना भी नहीं होता कि गांवसमाज के संस्कारों की लाज रखे.

इरा सब सुनती और मन ही मन हंसती, रो भी सकती थी पर उस से क्या हो जाता. लोगों को वह दयनीय लगती थी पर खुद को नहीं. इरा का परिवार शहर में रहता था. इरा भी परिवार के साथ ही रहती थी. शहरी परिवेश में पलीबढ़ी इरा ने स्नातक तक की पढ़ाई कर ली थी. आगे पढ़ना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं पाया. इरा के पिता का पूरा परिवार गांव में रहता था. न जमीन की कमी थी न रुपएपैसों की. इरा के दादा ने इरा के पिता पर दबाव डाल कर उसे गांव में ही ब्याह लिया. उन का कहना था, लड़का अच्छा है, घरपरिवार अच्छा है, किसी चीज की कोई कमी नहीं है. संस्कारों में दबे मांबाप चाह कर भी मना नहीं कर पाए. यही संस्कार इरा के आड़े आ गए. सो, वह एक फौजी की पत्नी बन गांव आ गई.

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इरा पहले भी गांव आतीजाती रही थी, पर अब यहीं उस की जिंदगी थी और यहीं उसे जीना था. पति का प्यार शायद उसे गांव के रीतिरिवाजों में ढाल भी लेता पर वह तो गोलियों का शिकार हो इरा को जल्दी ही अकेला छोड़ गया. ससुराल वालों ने इरा को शहर लौटने नहीं दिया. इरा घिर चुकी थी. कभीकभी उसे लगता जैसे वह एक चक्रव्यूह में जी रही है और इस से निकलने का एक भी रास्ता वह नहीं जानती. इरा के पास करने के लिए कुछ भी नहीं था. बेमन से सारा दिन पूजापाठ का ढोंग करती और कभी प्रसाद तो कभी कुछ रसोई से चुरा कर खा लेती. वह विधवा थी, इसलिए उसे सादा खाना दिया जाता, दालरोटी या दलियाखिचड़ी. कहते हैं इस से भावनाएं जोर नहीं मारतीं. मीठाचटपटा खाने से पथभ्रष्ट होने का भय रहता है. इरा सब सुनती और हंसती. जैसेतैसे 2 साल बीते, तीजत्योहार, शादीब्याह आते और जाते, पर इरा का जीवन तो थम चुका था.

घर में सासससुर और इरा बस 3 जने थे. सासससुर को कुछ तो जवान बेटे के न रहने का गम था और कुछ इरा के व्यवहार की नाराजगी. वे चुप ही रहते और थोड़े खिन्न भी. इरा अपनी मुक्ति के मार्ग ढूंढ़ रही थी. कटी पतंगों को भी इधर से उधर फुदकतेउड़ते देखती तो उन से ईर्ष्या करती. काश, वह भी जानवर होती. इंसान हो कर भी क्या हो रहा था. क्यों जी रही थी वह, आगे क्या होना है, क्या करना है कुछ पता नहीं था या कुछ और था ही नहीं. होने के लिए था तो बस एक अंतहीन इंतजार, वह भी किस चीज का, पता नहीं.

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पड़ोस में 4 मकान छोड़ कर इरा के ससुर के चचेरे भाई का परिवार रहता था. दोनों परिवारों का आपस में कोई मेलमिलाप नहीं था पर कोई बैर भी नहीं था. चचेरे भाई के 4 बेटे और 1 बेटी का परिवार था. बेटी सब से छोटी थी. 3 भाइयों का ब्याह हो चुका था, और सब की 3-3 लड़कियां थीं. किसी के भी अब तक बेटा पैदा नहीं हुआ था. सो इस परिवार में भी मुर्दनी छाई रहती. चौथा बेटा दिमाग से अपंग था. वह 20 वर्ष के ऊपर था पर उस का दिमाग नहीं पनप पाया था अब तक. कर्मेश दिमाग से 5 साल का बच्चा ही था मानो. यह दुख परिवार वालों को कम नहीं था. 5वीं संतान कनक 14 साल की थी. सुंदर भी हो रही थी और जवान भी. 8वीं तक की पढ़ाई कर चुकी थी और अब भाभियों से घरगृहस्थी सीख रही थी. 1-2 साल बाद उसे ब्याहना भी तो था. बरसात के मौसम में गांव की कच्ची सड़कों व गलियों में कीचड़ कुछ ज्यादा ही होता है. ऐसी ही एक बरसाती सुबह को इरा तालाब से नहा, घर की ओर जा रही थी. हलकी रिमझिम इरा को अच्छी लग रही थी. तेजतेज चलती इरा अचानक ठिठकी. उस ने देखा, तालाब के किनारे कीचड़ में कर्मेश लोटपोट हो, खेल रहा था. पिछली रात घनघोर बारिश थी, जिस से तालाब का पानी काफी चढ़ गया था, और कर्मेश वहीें लोट रहा था. चिकनी मिट्टी से फिसल वह कभी भी भरे तालाब में गिर सकता था. आसपास कोई नहीं था. खोजती नजरों से इरा ने चारों तरफ देखा पर कोई नजर नहीं आया.

ऑक्सीजन की कमी से मर जाएंगे मरीज, मुझे पद छोड़ने दें- NMCH अधीक्षक की चिट्ठी

देश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोपतेजी से बढ़ता जा रहा है. बिहार में भी कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढ़ती जा रही है. राज्य भर में 24 घंटे में 7870 नए मामले आए हैं. कोरोना के बढ़ते मरीजों के बीच राजधानी पटना के कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी बताई जा रही है. इसको लेकर किए जा रहे बिहार सरकार और जिला प्रशासन की सारी कवायद फेल होती नजर आ रही है. दो दिन के बाद भी इनके दावे पूरे नहीं होते दिख रहे हैं. जिससे लोगों की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं.

वहीं इन सब के बीच बिहार के एक बड़े मेडिकल कालेज NMCH के अधीक्षक डॉ विनोद कुमार ने ऑक्सीजन की कमी की वजह से खुद को अधीक्षक के कार्यभार से मुक्त करने के लिए सरकार को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि, उनके अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी है. ऐसी सूरत में मरीजों की जान जा सकती है और सरकार उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहरा देगी. इसीलिए सरकार से कहा,उन्हें पद छोड़ने दें.

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दरअसल पटना के दूसरे सबसे बड़े सरकारी अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज NMCH में बड़ा हंगामा हो गया है. कोविड वार्ड में ऑक्सीजन की सप्लाई में कमी के बाद मरीजों के परिजन जूनियर डॉक्टरों से उलझ पड़े. मारपीट की नौबत आ गई. इसके बाद जूनियर डॉक्टर अस्पताल से भाग खड़े हुए. हालात ऐसे हैं कि कभी भी कई लोगों की जान जा सकती है.

इस पूरे मामले के बाद अस्पताल के अधीक्षक डॉ विनोद कुमार ने  बिहार के स्वास्थ्य विभाक के प्रधान सचिव के नाम पत्र लिखते हुए खुद को पदमुक्त किए जाने की मांग कर दी है. उन्होंने कहा है कि नालंदा मेडिकल कॉलेज पटना में ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता द्वारा यहां ऑक्सीजन सप्लाई करने की जगह दूसरें अस्पतालों को भेजी जा रही है जिसके चलते ऑक्सीजन की कमी हो रही है. गौरतलब है कि कल से NMCH को पूर्णतः 500 बेड के कोविड अस्पताल के रूप में काम करना है. ठीक इसके पहले अस्पताल के अधीक्षक का हाथ खड़े कर देना स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है. राजधानी में हॉस्पिटल्स को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन गैस नहीं मिल पा रही है. इसी वजह से पटना में कोरोना मरीजों के परिवार पर कहर टूटा हुआ है.

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गौरतलब हो की कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की मांग ज्यादा बढ़ी है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बार हर किसी के लंग्स में बड़ा असर हो रहा है. सांस लेने में 30 प्रतिशत लोगों को समस्या आ रही है. ऐसे में हॉस्पिटलस में ऑक्सीजन की डिमांड बढ़ गई है. डॉक्टरों का कहना है कि एक सिलेंडर पर मरीज को 22 से 24 घंटे जिंदगी मिल सकती है. एक सिलेंडर में इतनी ही गैस होती है. अगर इसका रेगुलेटर अधिक खोल दिया जाए तो यह समय घट भी सकता है. हर अस्पताल में बेस ऑक्सीजन ही है और इसी का संकट जानलेवा हो रहा है.

किसके आदेश पर भेजे जा रहे है ऑक्सीजन ?
बात जो भी हो लेकिन अधीक्षक डॉक्टर विनोद कुमार सिंह के आरोप गंभीर है. सवाल ये उठता है कि एनएसमीएच के मरीजों को ही पूरी तरह से  ऑक्सीजन  नहीं मिल पा रहे तो ऐसे में किसके आदेश पर ये ऑक्सीजन भेजे जा रहा है. क्या कोरोना काल में ऑक्सीजन की कालाबाजारी तो नहीं की जा रही है. कहीं सरकारी अस्पतालों के ऑक्सीजन को निजी अस्पतालों में तो नहीं भेजा जा रहा है. क्या कुछ बड़े अहदे पर बैठे लोग गुप्त तरीके के निजी स्वार्थ के लिए ऑक्सीजन को छिपा रहे हैं. ऐसे कई सवाल अब उठ खड़े हुए हैं. मामला बेशक एक अस्पताल का उजागर हुआ हो, लेकिन हालात कमोबेश सभी जगह एक जैसे ही है. ऐसे में कहा जा सकता है कि बिहार के मरीज अब भगवान भरोसे ही हैं.

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बता दें कि बिहार में आज करीब  8 हजार नए केस आए है. अकेले राजधानी पटना में  2 हजार मरीज मिलें. बिहार में कोरोना मरीजों की डबलिंग रेट देश में सबसे ज्यादा है.

चक्रव्यूह- भाग 3 : ससुराल वालों ने इरा को क्यों नहीं लौटने दिया?

सास को काटो तो खून नहीं. गुस्से और भय के मारे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. वह इरा के हाथपैर जोड़ने लगी, बोली, ‘‘बता किस का है? कहां गई थी?’’

‘‘मैं कहीं नहीं गई, आप ने ही भेजा था उसे…’’

‘‘मैं ने?’’ सास का सिर चक्करघिन्नी की तरह घूम गया, ‘‘किसे भेजा था मैं ने?’’ उन के सब्र का बांध पूरी बर्बरता से टूटा, वे जोर से चिल्लाईं, ‘‘कर्मेश? वह तो बच्चा है, पागल है…’’

‘‘पर, मैं तो पागल नहीं हूं.’’

बात फैलनी थी, फैल गई. सासससुर घर में कैद हो गए. इरा को न पहले ज्यादा फर्क पड़ता था न अब पड़ता. चाची के परिवार में सब इरा को कोसते, गालियां देते, पर उन्हें बदनामी का कोई डर नहीं था. ‘क्या मालूम किस ने किया है ऐसा काम, कर्मेश ने कुछ किया भी होगा तो उस में अपना ज्ञान तो है नहीं, जरूर उसी ने कुछ बदमाशी की होगी.’ उस घर में कमोबेश सब के जुमले ऐसे ही थे. बहुएं ‘छिछि’ कह नाक सिकोड़ रही थीं.

‘‘जो भी हो पार्वती,’’ पास बैठी पड़ोस की मीना ताई बोलीं, ‘‘विधवा के पेट में बेटा है, सालों का अनुभव झूठ नहीं बुलाता, भरोसा न हो तो 9 महीने बाद नतीजा देख लेना.’’ ताई बहुओं को करंट लगा गई थी.

‘‘हुंह, बेटा है, भूल गई होगी खुद की औकात कि विधवा है. न पहले कोई पूछता था, न अब पूछेगा.’’ ताई की बातों में कोई इशारा था जिसे चाची ताड़ तो गई थीं पर संस्कार और समाज का डर सचाई आंख चुराना चाह रहा था. पर ताई का सुझाया लालच मन में गड़ गया था. अचानक इरा उन्हें बेचारी लगने लगी और कर्मेश पूर्ण वयस्क. जो काम तंदुरुस्त भाइयों से नहीं हो पाया वह अपंग, लाचार ने कर दिया. अब तो चाची जबतब इरा का हालचाल पता करतीं. 9 महीने बीते. इरा ने बेटे को जन्म दिया. कर्मेश का हू-ब-हू दूसरा रूप, स्वस्थ और प्यारा बच्चा. इरा बेहद खुश थी, अब कुछ तो था जो उस का था. एक अंतहीन इंतजार अब खत्म हो चला था. खबर हर घर में पहुंची. चाचीसास के घर भी सब ने सुनी. देखने वालों ने बताया था, ‘‘कर्मेश जैसा दिखता है, बड़ा हो कर कर्मेश ही निकलेगा. कर्मेश के मांबाप ने भी सुना और न जाने कहां से ममता हिलोरे लेने लगी, कर्मेश जैसा दिखता है? सच, चलो, जरा देख आएं.’’ पोता पाने की उम्मीद दोनों बुजुर्गों ने छोड़ ही दी थी,

‘‘यह तो कुदरत ने दिया है. किस ने सोचा था कर्मेश का कोई बच्चा भी होगा पर हुआ, चाहे जैसे भी. अब इरा का बेटा है तो हमारे कर्मेश का ही,’’ दोनों एकदूसरे को समझाने लगे. कोई समाज, कोई दुनिया, रीतिरिवाजों की परवाह न रही दोनों को. बेटेबहुओं ने खूब रोकने की कोशिश की, पर पोता पाने का यह आखिरी सुनहरा मौका उन्होंने नहीं गंवाया. सास का तर्क था, कर्मेश एक तरह से इरा का देवर ही तो है, सो कपड़ा डालने में क्या बुराई है. इस तरह से काले को सफेद कर, इरा को कर्मेश की दुलहन बना घर ले आए. एक विधवा से मां बनी औरत, फिर पत्नी बन समाज में रहने के सभी अधिकार पा गई. अब अपनेअपने सुहाग पर इतराने वाली बहुएं, बेटे वाली मां से ईर्ष्या करतीं. और इरा थूक कर चाटने वाले समाज की दोहरी मानसिकता पर हंस रही थी.

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