Download App

उड़ान-भाग 3: सुष्मिता को देखकर सर के मन में क्या सवाल उठा

अचानक पूछ बैठी, ‘‘सर, सौरी राकेशजी, फिर आप दिल्ली कब आ रहे हैं?’’ मैं ने कहा, ‘‘जब तुम बुलाओगी.’’

सुष्मिता ने जो कुछ कहा वह एक अविस्मरणीय बात थी, ‘‘मैं ने आप को यहां बिठा रखा है राकेशजी.’’ ऐसा कह कर अपने धड़कते दिल के बीच में मेरे हाथों को पकड़ कर रख लिया. मैं रोमांच से भर उठा. गाड़ी के छूटने की सीटी बज चुकी थी. मैं ने सुष्मिता को उतर जाने का इशारा किया. सुष्मिता गाड़ी से उतर आई. मैं ने खिड़की के पास आ कर हाथ हिला कर उसे विदाई दी. सुष्मिता प्लेटफौर्म पर खड़ी हो कर आर्द्र नयनों से हाथ हिलाती रही जब तक गाड़ी नजरों से ओझल नहीं हो गई. उस के आर्द्र नयनों को मैं अपलक निहारता रहा. सुष्मिता सचमुच मृगनयनी थी. ? लगभग 3 वर्ष मानो पलक झपकते बीत गए. मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर होने के नाते मेरी व्यस्तता काफी बढ़ गई थी. इसी बीच, सुष्मिता ने कई बार मुझ से फोन पर बातें कीं. उस ने प्यारभरे अंदाज में एक बार मुझ से पूछा, ‘‘कैसे हैं सर, सौरी राकेशजी, आप ने काफी लंबे अरसे के बाद मुझे याद किया.’’ लंबे अरसे के इस विनोद पर मैं भावविभोर हो गया. मैं ने स्वरचित एक छोटी सी कविता सुना दी:

‘‘जिस दिन आई याद न तेरी गीत न बोले, अधर न डोले. जिस दिन आई याद न तेरी देह लगी मिट्टी की ढेरी.’’ सुष्मिता ने कहा, ‘‘बहुत अच्छी लगी आप की कविता. इसी तरह लिखते रहिए. जब मैं आप से मिलूंगी, आप मुझे अपनी सारी कविताओं और गीतों का संग्रह मुझे प्रेजैंट करेंगे,’’ उस ने बालपनभरे अंदाज में पूछा, ‘‘प्रौमिस?’’ मैं ने भी उसी अदांज में प्रत्युत्तर दिया, ‘‘प्रौमिस.’’ उत्तर भारत की प्रचंड गरमी, रिमझिम बरसातें, पूस की ठिठुरती सर्दियां आईं और चली गईं. अचानक एक दिन सुष्मिता का एसएमएस मिला. सुष्मिता को मैं ने ‘सुशी’ कहना शुरू कर दिया था. ‘‘सर, सौरी राकेश, आप को जान कर खुशी होगी कि भारतीय प्रशासनिक सेवा में मेरा चयन हो गया है. ठीक 2 दिनों बाद मैं ट्रेनिंग के लिए मसूरी जा रही हूं. आशा करती हूं आप मुझे सीऔफ करने दिल्ली अवश्य आएंगे. आप की प्यारी सुशी.’’

मेरी उत्सुकता और प्रसन्नता की लहर चरम सीमा पर पहुंची जब सुशी के पास दिल्ली पहुंचा. सुष्मिता एक छोटी बच्ची की तरह भावविभोर हो कर मुझ से लिपट गई और उस के नेत्रों से झरझर आंसू निकलने लगे. मैं सुशी की पीठ पर थपकियां देता रहा. ‘‘सुशी, यह तुम्हारी मेहनत, लगनशीलता और प्रबल इच्छाशक्ति का परिणाम है. यह तो असीम खुशी का दिन है.’’ सुष्मिता ने छूटते ही कहा, ‘‘नहीं सर, आज मुझे सर कहने दीजिए, यह आप की प्रेरणा और प्रोत्साहन का फल है.’’ मैं भी भावविभोर था. मेरे पहुंचने के दूसरे दिन सुष्मिता को मसूरी जाना था. सुशी की प्रेरणादायी कहानी का शायद यहीं पटाक्षेप हो जाता, किंतु आगे भी कुछ होना था, मेरे और सुशी के जीवन में.

प्रशिक्षण के लिए जाने से पहले मेरे हाथों को अपने हाथ में ले सुशी ने जो प्रस्ताव रखा था, वह शायद इसी मिलन की सब से रोमांचक बात थी. सुशी ने कहा था, ‘सर, सौरी राकेश, आप मुझ से शादी करेंगे. ट्रेनिंग से लौट कर आते ही मैं शादी कर लेना चाहती हूं.’ मैं ने बिलकुल खामोश हो कर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी. मेरे एकाकी विधुर जीवन में मानो किसी ने रस की बरसात कर दी थी और एक मधुर मदिर हवा का झोंका मेरे तनमन को आल्हादित कर गया था. पत्नी सविता की असामयिक मृत्यु हो जाने के बाद मैं एकाकी ही तो हो गया था. उसी एकाकीपन को भरने के लिए ही तो मैं ने अपनेआप को अध्ययन, अध्यापन और सामाजिक कार्यों में व्यस्त कर लिया था. अपनी कार्यव्यस्तता के बीच भी लगा करता था – ‘हर तरफ, हर जगह बेशुमार आदमी, फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.’ अपना प्रशिक्षण समाप्त कर प्रोबेशन पर सुष्मिता आ गई थी. समस्तीपुर में उस की पोस्ंिटग थी बिहार संवर्ग (कैडर) के अंतर्गत. बड़ा सा क्वार्टर, सारी सुविधाएं. सचमुच सुष्मिता ने अपने गाए गीत को चरितार्थ कर दिया था, ‘‘और जीने को क्या चाहिए…’’

सुष्मिता वही थी, मगर मानो निखरे सौंदर्य पर किंचित गंभीरता, स्मार्टनैस और आत्मविश्वास की अभूतपूर्व झलक आ गई थी. मुझे देखते ही चहक कर बोली, ‘‘राकेश, तुम्हें अपना वादा याद है न?’’ अकस्मात ‘आप’ से ‘तुम’ संबोधन पर आत्मीयता और सामीप्य की मिलीजुली प्रतिक्रिया ने मुझे भावविभोर कर दिया. तनमन भावनाओं के ज्वार में भीग उठा था. किंतु अनजान सा बन कर मैं ने पूछा, ‘‘कैसा वादा?’’ सुशी ने भी कृत्रिम अभिज्ञता के स्वर में पूछा, ‘‘हमारी शादी की बात.’’ मैं ने उसी के गाए गीत को मुसकान के साथ दोहरा दिया, ‘‘और जीने को क्या चाहिए…’’

अंतिम भाग: आम के प्रमुख कीट एवं उन का प्रबंधन

लेखक- डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह, डा. शैलेंद्र सिंह, डा. दिनेश कुमार यादव

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : आम को ‘फलों का राजा’ कहा जाता है. यह मीठा होने के साथसाथ गुणों से भी भरपुर होता है. लेकिन पिछले कुछ सालों से इस के उत्पादन में कमी आई है, जिस की अहम वजह आम की फसल में लगने वाले कीट हैं. लिहाजा, बागबानों को इन कीटों की जानकारी के साथसाथ उन से छुटकारा पाने की सलाह दी गई थी.

अब आगे पढि़ए : शल्क कीट कीट की उच्चतम संख्या जुलाईअगस्त कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : 20वीं शताब्दी के अंत तक आम में शल्क कीट के द्वारा हानि को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता था, परंतु अब महसूस किया जाने लगा है कि शल्क कीट द्वारा आम के पेड़ को भारी क्षति पहुंचती है. कीट के निम्फ व वयस्क पेड़ की पत्तियों और मुलायम भागों का रस चूसते हैं, जिस से पेड़ कमजोर हो जाता है. कीट पेड़ का रस चूसने के साथसाथ एक तरह का गाढ़ा स्राव भी छोड़ता है, जिस पर कज्जली फफूंदी का आक्रमण हो जाने से पेड़ की पत्तियां व मुलायम भाग कवक के चलते काले हो जाते हैं. कीट की अधिकता के चलते पेड़ों की बढ़वार रुक जाती हैं व पेड़ के फलन पर भी बुरा असर पड़ता है.

प्रबंधन * पेड़ के उन सभी भागों की, जिन पर कीट का आक्रमण अत्यधिक है, कटाईछंटाई कर के नष्ट कर देना चाहिए. * कीटग्रसित बागों में इमिडाक्लोरोप्रिड 0.1 मिलीलिटर या फिब्रोनिल 0.2 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर 15-15 दिनों के अंतर पर 2 छिड़काव करें. शीर्ष स्तंभबेधक कीट की उच्चतम संख्या जुलाईसितंबर अनुकूल वातावरण : मध्यम तापक्रम के साथ वातावरण में मध्यम नमी. कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : यह कीट देश के सभी भागों में पाया जाता है. इस कीट के पतंगे चमकीले भूरे रंग के होते हैं और पंख फैलाव के बाद इन की माप 17.5 मिलीमीटर होती है. इन कीटों के पिछले पंख हलके रंग के होते हैं.

ये भी पढ़ें- भिंडी की फसल को रोगों व कीड़ों से बचाएं

कीट की वयस्क मादा पेड़ की नई पत्तियों की मध्यशिरा पर अंडे देती है. अंडों से फूट कर नई इल्ली पत्ती की मध्यशिरा में छेद कर सुरंग बनाने के साथसाथ पुष्प मंजरी में भी सुरंग बना कर हानि पहुंचाती है. कीट की पूर्ण विकसित इल्ली गहरे गुलाबी रंग की गंदे धब्बों वाली होती हैं. यह कीट पूरे साल में 4 जीवनचक्र पूरे करता है. प्रबंधन * कीट से ग्रसित तनों की क्लिपिंग कर के ग्रसित भाग को तुरंत नष्ट करना चाहिए. * कीट की रोकथाम के लिए पेड़ पर नए पत्ते आते समय फिब्रोनिल या मेथोमिल की 0.2 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर की दर से घोल तैयार कर 15-15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए. छाल खाने वाली इल्ली कीट की अधिकतम संख्या अप्रैलदिसंबर कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : पेड़ की छाल खाने वाला यह कीट पूरे देश में आम के पेड़ के साथसाथ अन्य कई फल वृक्षों व जंगली पेड़ों की छाल को नुकसान पहुंचाता है.

इस कीट का प्रकोप उन्हीं बागों में अधिक पाया जाता है, जिन बागों का सही रखरखाव न होता हो या जिन बागों में सूरज की रोशनी सही आदानप्रदान न होता हो. कीट की इल्लियां पेड़ की छाल को खा कर पेड़ में बनी सुरंगों में ही आराम करती हैं. कीट का पतंगा हलके धूसर रंग का गहरे भूरे रंग के धब्बों वाला होता है. पंख फैली हुई अवस्था में इस कीट की माप 25-40 मिलीमीटर की होती है. पूरी तरह से विकसित इल्ली भद्दे भूरे रंग की 35-45 मिलीमीटर की होती है और कीट एक साल में एक ही जीवनचक्र पूरा करता है.

प्रबंधन * कीट ग्रसित छेदों की सफाई कर छेदों में 0.02 प्रतिशत के फिब्रोनिल के इमल्सन को डालना चाहिए व छेदों को कीचड़ से ढक देना चाहिए.

* यदि कीट का प्रकोप अधिक हो, तो 0.02 प्रतिशत के मेथोमिल के घोल की डे्रचिंग करनी चाहिए. तना बेधक कीट की उच्चतम संख्या जुलाईअगस्त कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : पूरे भारत में पाया जाने वाला यह कीट आम के पेड़ों के अतिरिक्त अन्य कई फल वृक्षों को हानि पहुंचाता है. कीट का भृंग व सूंड़ी दोनों ही तने व जड़ों पर सुरंग बना कर अपना भोजन हासिल करते हैं.

ये भी पढ़ें- ऐसे करें सांड़ की नस्ल की पहचान

कीट सुरंगें ऊपर की ओर बनाते हैं, जिस के चलते पेड़ की शाखाएं सूख जाती हैं. कभीकभी जब कीट का अत्यधिक आक्रमण होता है, तो पूरा पौधा सूख जाता है. कीट का भृंग मजबूत शरीर वाला 35-50 मिलीमीटर आकार का होता है कीट वयस्क भृंग का रंग धूसर भूरा और शरीर पर गहरे भूरे और काले रंग के धब्बे बने होते हैं. मादा भृंग पेड़ की दरारों में अंडे देती है, जो तरल पदार्थ से ढके हुए होते हैं.

पूरी तरह से विकसित सूंड़ी 90×20 मिलीमीटर आकार की क्रीमी रंग की होती है, जिस का सिर गहरे रंग का होता है. कीट प्यूपा अवस्था में तने में ही रहता है. प्रबंधन * बाग में खादपानी व साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

* सूखी डाली को काट कर जला देना चाहिए.

* कीट द्वारा बनाए गए छेदों को साफ कर उस में ट्राइजोफास 0.02 फीसदी के इमल्सन या मिट्टी के तेल या पैट्रोल में भीगी हुई रूई ठूंस कर छेदों को कीचड़ या गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए. जाल बुनने वाला कीट कीट की उच्चतम संख्या अप्रैलदिसंबर अनुकूल वातावरण : उच्च आर्द्रता के साथ उच्च तापक्रम. कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : ऐसे बागों में जिन में पेड़ घने लगे हों, सूरज की रोशनी कम पहुंचती है, उन बागों में यह कीट एक गंभीर समस्या पैदा करता है. वयस्क मादा एक या ?ांड में जाल से बुनी हुई पत्तियों में अंडे देती है. अंडे से निकल कर इल्ली सब से पहले पत्तियों को खुरच कर खाती है और कुछ समय बाद में इल्लियां नई कलियों व पत्तियों को जाल में बुन कर एकसाथ खाती हैं.

ये भी पढ़ें- दुग्ध ज्वर: दुधारु पशुओं की एक जटिल समस्या

यह देखा गया है कि एक जाल में 1-9 तक इल्लियां पाई जाती हैं. कीट की प्यूपा अवस्था बुने हुए जाल के अंदर ही ककून में होती है. कीट का पतंगा माध्यम आकार का होता है और पूरी तरह से विकसित इल्ली 2.5 से 3 सैंटीमीटर आकार की भूरे रंग की होती है. इल्ली की पीठ पर सफेद रंग की आड़ी धारियां व भूरे रंग के धब्बे होते हैं. कीट की प्यूपा अवस्था 5-6 महीने तक चलती है.

प्रबंधन

* बाग में पूरी तरह से सूरज की रोशनी पहुंचे, इस के लिए अतिरिक्त शाखाओं को काट देना चाहिए.

* कीट द्वारा बनाए गए जालों को पत्तियों व टहनियों सहित काट कर जला देना चाहिए.

* बाग में मेथोमिल या ट्राइजोफास या इमेक्टिन बेंजोएट के 0.02 फीसदी के घोल का जुलाई महीने से शुरू कर 15-15 दिन के अंतर पर 3 छिड़काव करना चाहिए. यह जरूर ध्यान रखा जाए कि एक ही रसायन का प्रयोग बारबार न हो.

आम की गुठली का घुन कीट की उच्चतम संख्या जूनजुलाई उपयुक्त जलवायु : उच्च आर्द्रता. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : कीट का प्रकोप दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है.

कीट के वयस्क हृष्टपुष्ट गहरे धूसर रंग के और शरीर पर हलके रंग के धब्बे होते हैं. इन का आकार 7-8 मिलीमीटर होता है. मादा कंचों के आकार के फलों में छेद कर के श्वेत क्रीमी रंग के अंडे त्वचा के नीचे देती हैं. इल्ली अंडों से फूट कर फल का गूदा खाती हुई वयस्क कीट फल में छेद बना कर बाहर निकलती है.

कीट का पूरा जीवनचक्र 40-45 दिन में पूरा हो जाता है. कीटग्रसित फलों पर मादा द्वारा अंडा देने के लिए जो छेद बनाया जाता है, वह बाद में भर जाता है और फल की त्वचा पर केवल एक गहरे रंग का धब्बा रह जाता है.

ग्रसित फलों का गूदा भद्दे रंग का व बीज की जमाव नुकसान का भी हो जाता है. कीट एक साल में एक ही जीवनचक्र पूरा कर पाता है.

प्रबंधन

* भूमि पर गिरे हुए ग्रसित फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.

* शीतशयन में गए कीटों को भूमि की खुदाई कर नष्ट कर देना चाहिए.

* पेड़ के तने पर कीट द्वारा अंडे देने के समय 0.02 प्रतिशत मेथोमिल के घोल का छिड़काव करना चाहिए. सूट गाल सिल्ला कीट की उच्चतम संख्या अगस्तसितंबर उपयुक्त जलवायु

मध्यम तापक्रम के साथ रुकरुक कर वातावरण में उच्च आर्द्रता. कीट की पहचान व क्षति का प्रकार

उत्तर भारत में कीट का सर्वाधिक प्रकोप उत्तराखंड में होता है, क्योंकि कीट का आक्रमण उन्हीं क्षेत्रों में अधिक होता है, जहां जलवायु नम हो. कीट के अंडे श्वेत रंग के, निम्फ हलके पीले रंग के और वयस्क कीट 3-4 मिलीमीटर का गहरे भूरे रंग का होता है. कीट पूरे साल में एक ही जीवनचक्र पूरा करता है.

एक वयस्क मादा कीट मार्चअप्रैल महीने में पत्तियों की निचली सतह पर 150 अंडे देती है, जिस से छोटे निम्फ अगस्त, सितंबर में निकल कर पत्तियों के अक्ष पर कलिका का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों की अक्ष की कलिकाएं हरी शंक्वाकार गाल में बदल जाती हैं.

कलिकाओं के घाव सितंबरअक्तूबर माह में पूरी तरह साफ दिखाई देते हैं. कीटग्रसित पेड़ की टहनियां, पुष्प व फल विहीन हो जाती है. कीट का आक्रमण पुराने पेड़ों पर ही अधिक पाया जाता है.

प्रबंधन

* कीटग्रसित टहनियों की कटाईछंटाई कर नष्ट कर देनी चाहिए.

* कीट का प्रभावी तरीके से नियंत्रण के लिए पेड़ पर पहला ट्राइजोफास (0.02 फीसदी), इमेक्टिन बेंजोएट (0.02 फीसदी), दूसरा फिब्रोनिल (0.02 फीसदी) का 10-15 दिन के अंतर पर 3 छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव जुलाई महीने के अंत में करें.

* लगातार एक ही रसायन के छिड़काव से बचना चाहिए. फुदका कीट की उच्चतम संख्या मार्चअप्रैल कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : कीट पत्तियों से भोजन हासिल कर जीवनयापन करती हैं, जबकि पुष्प मंजरियों व नए फलों से यह कीट भोजन प्राप्त करती हैं. थ्रिप्स की वयस्क मादा तकरीबन 1 मिलीमीटर की शंक्वाकार, नई पत्तियों की निचली सतह पर लगभग 50 अंडे देती हैं. अंडों से निम्फ निकलता है. कीट लगभग 9 दिनों में 2 निम्फ अवस्थाएं पूरी करता है और इस अवस्था में कीट पत्तियों व पुष्पों से भोजन प्राप्त करता है. निम्फ अवस्था के बाद 2 प्यूपा अवस्थाओं में 5 दिन बिता कर नया वयस्क कीट निकलता है.

कीट के निम्फ व वयस्क ऊतकों को खुरचते हैं, जिस के चलते कोशिकाओं से निकले स्राव से अपना भोजन प्राप्त करता है. थ्रिप्स मलद्वार से गाढ़ा श्राव निकालते हैं, जिस से फलों व पत्तियों पर सिलवरी परत और मल के धब्बे बन जाते हैं. फलों पर ये धब्बे फलों के बाजार भाव को कम कर देते हैं व पत्तियां सूरज की रोशनी के चलते ?ालसी हुई दिखती हैं. यह कीट जब भोजन नहीं कर रहा होता है, तो कीट पत्तियों की निचली सतह पर या कलिकाओं के अंदर आराम करता रहता है.

प्रबंधन

* कीट के अत्यधिक आक्रमण की दशा में पुष्पन अवस्था में पेड़ पर फिब्रोनिल या मेथोमिल की 0.02 मिलीमीटर मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. आम का फल बेधन कीट की उच्चतम संख्या जनवरीमई कीट की पहचान व क्षति का प्रकार :

कीट की वयस्क मादा फल के ऊपरी भाग या फल के डंठल पर 1 मिलीमीटर से छोटे आकार के सफेद अंडे देती है. इन अंडों का रंग कुछ समय बाद लाल हो जाता है. अंडे 2 से 3 दिन के अंदर फूटते हैं, जिन से छोटीछोटी इल्लियां निकल कर पहले फल की त्वचा को खाती हैं,

बाद में फल की त्वचा पर छेद बना कर सुरंग बनाती हुई खाती हैं. त्वचा पर बना छेद इल्ली के मल से बंद हो जाता है. ऐसे कीट ग्रस्त फल समय से पेड़ से गिर कर सड़ जाते हैं. कीट की इल्ली के शरीर पर क्रमवार सफेद व लाल रंग के बैंड होते हैं.

प्रबंधन

* पेड़ों के नीचे गिरे हुए ग्रसित फलों व टहनियों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.

* यदि कीट का अत्यधिक आक्रमण हो, तो फलों के कंचे के आकार की अवस्था पर इमिडाक्लोरोप्रिड का 0.1 फीसदी व 2 हफ्ते बाद इमेक्टिन बेंजोएट 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से 2 छिड़काव करने चाहिए. * फलों की तुड़ाई के 20 से 25 दिन पहले किसी भी तरह के छिड़काव से बचना चाहिए.

उड़ान-भाग 2: सुष्मिता को देखकर सर के मन में क्या सवाल उठा

एक खूबसूरत रेस्तरां में कैंडल लाइट डिनर के बाद हम सुष्मिता के घर चले आए. सबकुछ एक सुंदर सपना सा लग रहा था, जिस सपने को सुष्मिता जैसी स्वप्नजयी ने साकार कर दिया था. इधरउधर की बातें करतेकरते मुझे झपकी सी आने लगी. सुष्मिता ने कहा, ‘‘हमारे यहां तो एक ही बैडरूम है सर, आप पलंग पर सो जाएं. मैं सोफे पर सो जाती हूं.’’

5 मिनट में कपड़े बदल कर सुष्मिता आ गई. मैं ने कहा, ‘‘सुष्मिता, तुम कितनी सुंदर लग रही हो. जी करता है तुम्हें बांहों में भर लूं.’’ सुष्मिता इस बात से मुसकरा दी. यौवन का एक तेज आवेग मेरे शरीर में भी जाग उठा और हम एकदूसरे की बांहों में खो गए. सुबह मेरी आंखें खुलीं तो सुष्मिता  अभी सो रही थी. एक मीठी सी  मुसकान उस के अधरों पर अठखेलियां कर रही थी मानो किसी सुखद सपनों में खोई हुई हो. सुबह के लगभग 8 बज चुके थे और दिल्ली की झीनी धूप खिड़की के परदों से छन कर आ रही थी. सुष्मिता नींद से जाग उठी थी.

मैं ने पूछा, ‘‘सुष्मिता, आज का तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

सुष्मिता ने बड़ी बेपरवाही के से अंदाज में कहा, ‘‘आज संडे है. आज कुतुबमीनार की सैर करेंगे.’’ मैं ने मजाकिया अंदाज में चुटकी ली, ‘‘और कुतुबमीनार पर चढ़ कर हाथों में हाथ लिए कूद कर आत्महत्या कर लेंगे.’’

सुष्मिता ने उसी शोख अल्हड़पन में जवाब दिया, ‘‘आत्महत्या करें हमारे दुश्मन. हम भला क्यों आत्महत्या करेंगे.’’ फिर हम दोनों इस हासपरिहास पर खिलखिला कर हंसते रहे. सुष्मिता ने कहा, ‘‘पहले मैं कुछ नाश्ता तैयार कर लेती हूं. नाश्ता करने के बाद तब निकलेंगे. आप तब तक फ्रैश हो जाइए. मैं बाथरूम की ओर बढ़ गया. बाथरूम भीनीभीनी सुगंध से सराबोर था. मैं ने मन में सोचा, ‘कितनी सुरुचिपूर्ण और कलात्मक हो गई वह नाजुक किशोरी और पूर्णयौवना बन कर और भी मादक हो गई है.’ मेरा भावुक मन इस नवयौवना के इस परिवर्तन के बारे में सबकुछ जान लेने को मचल रहा था. स्वादिष्ठ पकौड़े, आलू के परांठे, टोस्ट, औमलेट का नाश्ता किया. सुष्मिता के हाथों में मानो जादू था. बहुत थोड़े समय में इतना सारा बेहतरीन नाश्ता उस ने तैयार कर लिया था.

फिर सुष्मिता जीन्स और टीशर्ट में सज कर बिलकुल महानगर की आधुनिका बन कर आ गई. सुष्मिता की स्कूटी पर सवार हम लोग कुतुबमीनार की ओर चल पड़े. लगभग आधे घंटे में हम लोग कुतुबमीनार पहुंच गए. दूसरे माले के ऊपर जाने की इजाजत नहीं थी. इसलिए दूसरे माले पर चढ़ कर हम लोग नीचे उतर गए. घर लौटतेलौटते शाम घिर आई. सुष्मिता ने आज अपने हाथ से बनाया डिनर खिलाया. डिनर के बाद हवा के झोंकों का आनंद लेने हम लोग कुरसियां डाल कर बालकनी में बैठ गए. सुष्मिता ने स्वयं ही सबकुछ बताया. पटना के छोटे शहर से दिल्ली के महानगर की यह यात्रा भी उतनी ही रोमांचक थी जितनी सुष्मिता स्वयं थी. पटना विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान विषय में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो कर वहां के एक डिगरी कालेज में व्याख्याता बन गई. फिर दिल्ली के एक डिगरी कालेज में एक स्थान की रिक्ति निकली और वह सफलतापूर्वक चयनित हो कर यहां आ गई.

सुष्मिता से जब मैं ने उस के अध्यवसाय की कथायात्रा को कुछ विस्तार से बताने का आग्रह किया, तो उस ने जो कुछ बताया वह और भी रोमांचक व विस्मयकारी था. बोर्ड की परीक्षा में अपने जिले में प्रथम आने के कारण उसे आगे की पढ़ाई करने के लिए 2-2 वजीफे एकसाथ मिले, एक मेधावी वजीफा तथा दूसरा लोक शिक्षा निदेशक द्वारा प्रदत्त निर्धनतासहमेधावी वजीफा. व्याख्याता होने के बाद के 1-2 वर्षों में उस ने जो कुछ किया वह भी उस के संघर्षशील जीवन की अद्भुत मिसाल थी. प्रश्नोत्तरी के रूप में कालेज के छात्रछात्राओं के लिए सरल हिंदी में किताबें लिखीं. जिन के प्रकाशन से प्रकाशकों ने अच्छे पैसे बनाए, जिन की रौयल्टी के पैसों को मितव्ययिता से खर्च कर सुशी ने अपना आर्थिक आधार मजबूत किया. फ्रायड, एडलर आदि की मुख्य पुस्तकों को छात्रोपयोगी बना कर हिंदी में अनुवाद भी किया. एक पुरानी कहावत है कि प्रकृति भी उसी की सहायता करती है जो अपनी सहायता स्वयं करता है. बिहार के सारण जिले में एक कसबानुमा गांव है – शीतलपट्टी. उसी गांव में उस के पिता की थोड़ी सी पैतृक संपत्ति थी, जिसे उस के चाचा लोगों ने उस के पिता के सीधेपन और अनभिज्ञता का नाजायज फायदा उठा कर हथिया लिया था. सुष्मिता के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद शायद उस के चाचा लोगों ने इन बहनों पर कुछ तरस की खातिर और शायद कुछ विवेक जागृत होने की खातिर उस के पिता के हिस्से की जमीन बेच कर तीनों बहनों में बांट देने का निश्चय किया. सुष्मिता की बहनों ने अपने हिस्से का पैसा भी सुष्मिता के नाम कर दिया था. इस प्रकार दिल्ली जैसे महानगर में आ

कर प्रतियोगिता परीक्षाओं में अपनी आजमाइश करने का एक सुदृढ़ आर्थिक आधार इसे मिल चुका था.

‘‘दिल्ली का चयन तुम ने क्यों किया,’’ यह पूछने पर सुष्मिता ने दूसरे रहस्य से परदा उठाया, ‘‘यहां रह कर मैं यूपीएससी की प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी कर रही हूं. इस के लिए यहां की एक सर्वश्रेष्ठ कोचिंग इंस्ट्टियूट में दाखिला ले कर अपनी ड्यूटी के बाद कोचिंग क्लासेस अटैंड करती हूं.’’ सुष्मिता ने एक स्वर में कह कर मेरी उत्सुकता के सभी परदों को एकबारगी ही उठा दिया. मैं इस लड़की की उद्यमिता और प्रगतिशील विचारों का कायल हो चुका था.

सुष्मिता ने मेरी प्रशंसा के जो चंद शब्द कहे, वे चंद शब्द मेरे लिए सर्वथा अप्रत्याशित थे. उस ने कहा, ‘‘आप की कोचिंग ने मुझे मात्र अंगरेजी भाषा पर कमांड की टे्रनिंग ही नहीं दी, बीचबीच में प्रेरणा और प्रोत्साहन के जो शब्द और भारतीय नारियों व बालिकाओं की सच्ची कहानियां जो आप सुनाया करते थे, वे मेरी अब तक की प्रगति के संबल बने.’’ मैं उल्लसित हो उठा था. सुष्मिता ने अपनी कहानी को आगे  बढ़ाते हुए बताया कि उस की  पढ़ाई पूरी भी नहीं हो पाई थी कि उस के पिता का देहांत हो गया था और वह मानो दुनिया में सब से अकेली हो गई थी. अपने उद्यम और परिश्रम से उस ने जो हासिल किया था, वह काबिलेतारीफ तो था ही, प्रेरणादायक भी था.

रात गहरा गई तो सुष्मिता चुपके से छोटे बालक की तरह मेरी बांहों में समा गई. किंतु रात्रि की कालिमा में उस की उज्जवल चांदनी का सा यौवन जब उफान पर आया तो मुझे अपने आगोश में कुछ इस तरह ले लिया मानो उस का संपूर्ण नारीत्व, संपूर्ण यौवन मुझ में खो जाने को आतुर हो उठा हो. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सुष्मिता मुझ में समा चुकी थी और मैं सुष्मिता में. इस तरह 3 दिन कैसे पंख लगा कर बीत गए, उसे न मैं समझ पाया और न सुष्मिता. शाम की गाड़ी से मुझे वापस जाना था. सुष्मिता के चेहरे पर एक उदास मुसकान थी. आज सुष्मिता ने बिना बांहों का टीशर्ट और बरमूडा पहन रखा था. सुष्मिता ने सुबह का नाश्ता तैयार किया. किचन से एक मधुर स्वरलहरी मेरे कानों से टकराई तो मैं स्तंभित रह गया. सुष्मिता की आवाज मानो जानीपहचान थी, किंतु उस में कितनी कोमलता और माधुर्य की चाश्नी मिली हुई थी, वह काबिलेतारीफ थी. सुष्मिता हौलेहौले गा रही थी, ‘‘तुम मिले, दिल खिले और जीने को क्या चाहिए…’’ सुष्मिता ने कहा, ‘‘सर, आज कहीं नहीं चलेंगे. आज यहीं बैठ कर गप्पे लड़ाएंगे.’’

मैं ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘सुष्मिता, तुम बारबार ‘सर’ कह कर मुझे शर्मिंदा कर रही हो. तुम मुझे सिर्फ ‘राकेश’ या राकेशजी कह सकती हो. सुष्मिता ने अपने संघर्ष की लंबीयात्रा की ढेर सारी बातें बताईं. सुष्मिता 3 बहनें थीं. एक जयपुर में और एक मुंबई में अपनीअपनी गृहस्थी में मग्न थीं. उन के पति भी समृद्ध और सुरुचिपूर्ण थे. एक बहन के पति बिजनैसमैन और दूसरे के पति एक राष्ट्रीयकृत बैंक में मैनेजर थे. सुष्मिता ने अगले पल कहा, ‘‘मैं आप को कभी अपनी बहनों से मिलवाऊंगी. वे आप से मिल कर काफी प्रसन्न होंगी. आप की ढेर सारी तारीफें मैं ने कर दी हैं.’’ मैं ने भी हामी भर दी. सुष्मिता अपनी बहनों में सब से छोटी थी. मुझे उसी दिन वापस लौटना था. सैमिनार समाप्त हो चुका था. मेरी गाड़ी शाम 7 बजे की थी. शाम को नई दिल्ली स्टेशन पर सुष्मिता मुझे छोड़ने आई. मुझे प्रथम श्रेणी के कोच में बिठा कर कुछ देर बड़ी प्यारी बातें करती रही.

 

जिम कौर्बेट: अनोखा प्राकृतिक प्रेम

भारत में जन्मे जिम कौर्बेट ने नौकरी और अन्य काम करने के अलावा प्रकृति को करीब से जानासम झा. तभी तो जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का नाम पूरी दुनिया में जाना जाता है, पर जिम कौर्बेट ने इस के पीछे छोड़ी है अपनी लगन, संघर्ष और वहां के लोगों का प्यार. जब हम जंगलों, झरनों, पहाड़ों में प्रकृति के नजदीक होते हैं तो खुद से भी कुछ संवाद यानी बात तो करते ही हैं, मगर यह संवाद और बात उस जज्बे, उस संघर्ष के इर्दगिर्द भी तो जरूर घूमनी ही चाहिए जिस ने प्रकृति के उस टुकड़े को इतना पावन बनाए रखने में अपना जीवन लगा दिया.

आजाद हिंदुस्तान के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जब ऐसे ही एक जंगल से हो कर गुजरे, तो वहां की जड़ीबूटी, फूलों की प्राकृतिक महक, पंछियों का चहचहाना और निर्भय हो कर काम करते गांव वालों को देख कर उन के मन में यह जिज्ञासा पैदा हुई कि इस बीहड़ को सब के लिए इतना खूबसूरत बनाने वाला वह कौन था? और फिर उन के सामने जिम कौर्बेट की वह पूरी दास्तान, उस की समूची जीवनयात्रा आई. एक अंगरेज होते हुए भी किसी गोरे ने भारतवर्ष और भारतीयों से इतना अटूट प्रेम किया, नगर और शहर नहीं, बल्कि बीहड़ के पास रहने वाले गांव वालों से गहरा नाता जोड़ा. पंडित जवाहरलाल नेहरू तब उत्तराखंड में स्थित उस कौर्बेट नैशनल पार्क का भ्रमण कर रहे थे, जिस का नाम तब ‘रामगंगा उद्यान’ था.

ये भी पढ़ें- आपकी जिंदगी को आसान बना देंगे ये 7 किचन टिप्स

नेहरू को यह जानकारी मिली कि ‘माई इंडिया’ और ‘मैन ईटर्स औफ कुमाऊं’ नामक विश्वविख्यात किताबें लिखने वाले जिम कौर्बेट आजाद भारत से अब केन्या चले गए हैं और वहां पर भी हर्बल कौफी गार्डन विकसित कर रहे हैं, लगातार वन्य जीवों के लिए काम कर रहे हैं, मगर यहां उन को कोई याद करने वाला नहीं. साथ ही, यह भी जानकारी मिली कि अब जिम कौर्बेट भारत वापस लौट नहीं सकेंगे. तब वे खुश हुए यह जान कर कि जिम कौर्बेट की ‘मैन ईटर्स औफ कुमाऊं’ के आवरण भी सत्यजीत रे ने लगभग एक समय पर ही डिजाइन किए थे, जब वे उन की कालजयी कृति ‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ के आवरण डिजाइन कर रहे थे. नेहरू की उन से मिलने की चाहत अधूरी रह गई, क्योंकि जिम कौर्बेट साल 1955 में केन्या के अपने घर में ही इस संसार को अलविदा कह गए. जिम कौर्बेट की जीवनगाथा को स्थानीय लोगों से जानने के बाद भारत सरकार द्वारा इस का नाम ‘जिम कौर्बेट नैशनल पार्क’ रखा गया.

सामान्य जानकारी के हिसाब से जिम कौर्बेट एक अंगरेज शिकारी थे, जिन के नाम पर आज इस राष्ट्रीय उद्यान को पूरी दुनिया जानती है. वैसे जिम कौर्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कौर्बेट था. इन का जन्म 25 जुलाई, 1875 में रामनगर के पास ‘कालाढूंगी’ नामक स्थान में हुआ था. यह गांव तब उस कौर्बेट पार्क से बिलकुल नजदीक ही एक साधारण सा गांव था और लगभग 150 साल बाद आज भी एक सामान्य सा, भोला सा गांव ही है. जिम कौर्बेट के पिता भी भारत में ही पैदा हुए थे. पिता अंगरेजी सेना में काम करते थे. पिता का ही यह असर था कि जिम कौर्बेट बचपन से बहुत मेहनती, ईमानदार और निडर थे. खुद जिम कौर्बेट ने भी अपने जीवन में अनेक तरह के काम किए. ड्राइवरी, कुक, बागबान, पदयात्रा और सेना में नौकरी वगैरह. साथ ही वे ट्रांसपोर्ट अधिकारी तक बन चुके थे और रेलवे में भी उन्होंने कई साल तकरीबन 25 साल तक अपनी सेवाएं दीं.

ये भी पढ़ें- 19 TIPS: बेहद काम के हैं सब्जी खरीदने के ये टिप्स, आज से ही करें ट्राय

मगर वे दिल से थे तो जंगल के ही सच्चे बेटे, क्योंकि जिम प्रकृति से बेहद प्यार करते थे. जंगल की खूबसूरती और वन्य पशुओं के प्रेम की ओर वे ज्यादा ही आकर्षित रहते थे, इसलिए वनों में ही रमे रहते थे. साल 1875 में जब जिम कौर्बेट का अवतरण हुआ, तो यह वह खास समय था, जब भारत में एक रूसी भारतविद इवान पाव्लोविच मिनायेव अल्मोड़ा आए थे और यहां रामनगर में भी वे 3 महीने रहे. इन 3 महीनों में उन्होंने कुमाऊंनी भाषा सीखी और स्थानीय लोगों से यहां की लोककथाएं व दंतकथाएं सुनीं. साल 1876 में रूस लौटने के बाद उन्होंने उन कहानियों का रूसी अनुवाद प्रकाशित किया. काश, वह दोबारा भारत आ पाते और देखते कि एक ब्रिटिश बालक किशोर बन कर कैसे भारतीयों का हमजोली, उन का हमदर्द बना हुआ है. जिम कौर्बेट भी कुछ अनोखी परिभाषा के रूपक रहे.

वे कुमाऊं और गढ़वाल के गांवों में उन के मूल निवासियों के साथ मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे और उन्होंने ही संरक्षित वनों के आंदोलन का भी आगाज किया. जब भी उन्हें समय मिलता था, वे कुमाऊं के वनों में घूमने निकल जाते थे. पहाड़ी भारतीय उन से इतना प्रेम करने लगे थे कि जिम कौर्बेट को ‘गोरा बाबा’ कहते. वे इसी नाम से खूब पहचाने जाने लगे थे. उन को लिखने, पढ़ने, सब से मिलनेजुलने का बेहद शौक था. जिम कौर्बेट हर माहौल में रम जाते थे, इसीलिए लोग उन को अपना मानते थे. वे शिकारी होने के साथसाथ लेखक व दार्शनिक थे. मगर वे किसी जानवर को आहत नहीं करते थे. उन का शिकारी होना महज एक संयोग ही था, जो उन की पहचान ही बन गया, मानो वे इसीलिए पैदा हुए थे. एक बार इसी उद्यान के एक आदमखोर बाघ ने पूरे रामनगर और पड़ोसी इलाके में कहर ही बरपा दिया. बड़े से बड़े शिकारी हार गए और आखिरकार जिम कौर्बेट ने कोशिश कर के उस पर काबू पाया. हालांकि वह बहुत बूढ़ा बाघ था और उस की खोपड़ी का पूरा अध्ययन कर के जिम इस नतीजे पर पहुंचे कि यह एक बीमार बाघ था और गांव वाले बहुत ही सरल व लापरवाह,

ये भी पढ़ें- जीवन में सकारात्मकता लाएं

इसीलिए एकएक कर इस के शिकार होते गए. जिम कौर्बेट का यह समर्पण और बाघों का गहन निरीक्षणपरीक्षण प्रशासन तक भी पहुंचा और जिम को अंगरेजी सरकार ने बंदूकें चलाने का विशेष लाइसैंस दिया था, जिस का उन्होंने पूरे जीवन में कभी दुरुपयोग नहीं किया. आज भी कालाढूंगी से ले कर नैनीताल तक बूढ़ेबुजुर्ग उस जांबाज की कहानियां सुनाते हैं, जो उन्होंने अपने बचपन में जिम कौर्बेट में साक्षात देखी थीं. जिम कौर्बेट के जीतेजी भी यह उद्यान अपनी वास्तविक दशा में था, मगर इस का कोई नाम नहीं था. दरअसल अपने खोजबीन अभियान के अंतर्गत अंगरेजों ने साल 1820 में नैनीताल के आसपास कुछ बीहड़ वन खोज डाले, जिन में से एक यह जंगल भी था, जो जिम के जन्मस्थान, कालाढूंगी गांव के पास ही था. तब गोरी सरकार ने अपने खोजी दस्ते से इस जंगल की सारी जानकारी जुटाई और पता लगा कि यहां सब से अधिक बाघ रौयल बंगाल टाइगर हैं, जोकि पूरे भारत में सर्वाधिक गठीले और बढि़या नस्ल वाले यहां ही मिले. साथ ही,

यहां रामगंगा के इर्दगिर्द फैले घास के पठारों से ‘मैदानों और ‘मं झाड़े’ (जल के मध्य स्थित जंगल) में सैंकड़ों की तादाद में हिरनों, जिन में खासकर स्पौटेड डियर यानी चीतलों के झुंड सहजता से नजर आने लगे थे. भारतीय हाथी, गुलदार, जंगली बिल्ली, फिश्ंिग कैट्स, हिमालयन कैट्स, हिमालयन काला भालू, सूअर, तेंदुए, गुलदार, सियार, जंगली बोर, पैंगोलिन, भेडि़ए, मार्टेंस, ढोल, सिवेट, नेवला, ऊदबिलाव, खरगोश, चीतल, हिरन, लंगूर, नीलगाय, स्लोथ बीयर, सांभर, काकड़, चिंकारा, पाड़ा, होग हिरन, गुंटजाक (बार्किंग डियर) सहित कई प्रकार के हिरण, तेंदुआ बिल्ली, जंगली बिल्ली, मछली मार बिल्ली, भालू, बंदर, जंगली कुत्ते, गीदड़, पहाड़ी बकरे (घोड़ाल) और हजारों की तादाद में लंगूर व बंदरों की कितनी ही प्रजातियां तब पाई गईं. इस के अलावा यहां पर रामगंगा नदी के गहरे कुंडों में शर्मीले स्वभाव के घडि़याल और तटों पर मगरमच्छ, ऊदबिलाव और कछुए सहित 50 से ज्यादा स्तनधारी खोजे गए. साथ ही रामगंगा व उस की सहायक नदियों में स्पोर्टिंग फिश कही जाने वाली ‘महासीर’ मछलियों को देख कर तो सब चौंक ही गए थे.

इतना ही नहीं, अंगरेजी सरकार ने कुशल संपेरे भी नियुक्त किए और खुलासा हुआ कि उस घनघोर जंगल में किंग कोबरा, वाइपर, कोबरा, करैत, रूसलस, नागर और विशालकाय अजगर जैसे बीसियों प्रजाति के सरीसृप व सर्प प्रजातियां भी विचरण कर रही हैं, जो बताती हैं कि यह क्षेत्र सरीसृपों और स्तनपायी जानवरों की जैव विविधता के दृष्टिकोण से कितना समृद्ध है. वैसे भी यह घना और भयंकर डरावना बीहड़ कहलाता था. यहां अकेले या दुकेले कोई भी घुसने की हिम्मत तक नहीं कर पाता था. यह जंगल उस समय सरकार को लाखों टन कीमती लकड़ी दे रहा था. इस के अलावा इस पार्क के निर्माण के और भी कई कारण थे. एक तो यह भी था कि उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कुमाऊं और गढ़वाल के बीच में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण रामगंगा नदी के किनारे स्थित था. ऐसा करने से अंगरेजी सरकार को सिर्फ अपने मेहमानों के लिए एक पर्यटन स्थल भी मिल रहा था.

बाघों की इस विचरणस्थली, विभिन्न जैव विविधता वाले स्थान जिम कौर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की स्थापना 8 अगस्त, 1836 को ‘होली नैशनल पार्क’ के नाम से हुई थी. उन दिनों जिम कौर्बेट तो नहीं थे, पर उन के पिता जरूर इन जंगलों में गांव वालों के साथ घूमा करते रहे होंगे, तब वे जानते तक नहीं थे कि एक दिन पूरी दुनिया इस को उन के बेटे के नाम से जानेगी. पहली बार 1855 में और उस के बाद कुमाऊं के कमिश्नर मेजर हेनरी रैम्जे ने यहां के वनों को सुरक्षित रखने के लिए एक व्यवस्थित योजना बनाई थी. उस के 20 साल बाद ही जिम कौर्बेट का जन्म हुआ और उन के युवा होतेहोते आसपास गांव वालों पर जंगली जानवरों का कहर टूटने लगा. इस घनघोर जंगल से तब पेड़ काटे जा रहे थे और जानवर आधी रात को गांवों में आ जाते थे. युवक जिम कौर्बेट अपना रोजगार तो करते ही थे, पर गांव वालों को निर्भय करने का संकल्प भी ले चुके थे. वे अपनी 20 साल की बाली उम्र से ले कर 50 साल की परिपक्व उम्र तक पहाड़ी इलाकों से नरभक्षी बाघों के ठिकाने और उन को रोकने की मुहिम को सफल अंजाम देते रहे, तब तक जब तक कि वे केन्या नहीं गए.

जिम कौर्बेट तो चले गए, पर उन के जन्मस्थान कालाढूंगी की धरती पर स्थापित एक शानदार ‘जिम कौर्बेट संग्रहालय’ उन के द्वारा किए गए कामों के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि है. कालाढूंगी के ही पास जंगल में एक खूबसूरत झरना बहता है, जोकि एक दर्शनीय स्थल है. पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों से इस का नाम ‘कौर्बेट फौल’ रखा गया. आज हमारे देश का सब से पुराना राष्ट्रीय उद्यान ‘जिम कौर्बेट पार्क’ नवंबर से मई माह तक पर्यटकों से ऐसा गुलजार रहता है कि वहां गैस्टहाउस और होटल तक कम पड़ जाते हैं. राजधानी दिल्ली से केवल 5 घंटे की सड़क यात्रा कर के पहुंचा जा सकता है. यह स्थान राजधानी दिल्ली से महज 250 किलोमीटर दूर है. दिल्ली और लखनऊ से तो यहां तक के लिए सीधी रेलगाड़ी की व्यवस्था भी है. पर अभी यहां आसपास कोई नजदीकी नियमित उड़ान उपलब्ध नहीं है.

50 किलोमीटर दूर पंतनगर तक कुछ उड़ानें तो हैं, लेकिन वे इतनी सटीक और नियमित कभी नहीं रहतीं. इसलिए दिल्ली, मुंबई, पुणे से बस, कार आदि की यात्रा कर के ही ज्यादातर स्कूल, संस्थान यहां पर्यटन व अध्ययन के लिए आते हैं. सुकून के साथसाथ नयापन और अद्भुत प्राकृतिक छटा का भी अनुभव करना चाहते हैं, तो जिम कौर्बेट बहुत ही उपयुक्त है. एक शाम का ठहरना यहां पर महज 100-200 रुपए में भी बहुत आराम से हो जाता है और 20-50 रुपए में पौष्टिक खाना भी मिल जाता है. ताजे फल तो यहां बहुत ही रियायती दर पर मिल जाते हैं. लोगों की रुचि के मद्देनजर यहां विलासिता के लिए महंगे रिसौर्ट भी हैं, जो एक दिन रहनेखाने और पांचसितारा सुविधाओं का 50 हजार रुपए से ले कर एक लाख रुपए तक का किराया लेते हैं.

500 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यह पार्क 4 अलगअलग जोनों में बंटा हुआ है- िझरना, बिजरानी, ढिकाला और दुर्गादेवी. ये चारों जोन अपनेआप में अनूठे हैं. िझरना : रामनगर शहर से महज 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है िझरना. िझरना एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन क्षेत्र है. यहां पर हर तरह का भोजन, आवास, जरूरी रसद की सुखसुविधा सस्ती दरों पर मिल जाती है. बिजरानी : यह जोन गजब के प्राकृतिक सौंदर्य और घास के मैदानों के लिए जाना जाता है. प्रचुर मात्रा में घास की उपलब्धि के कारण यह क्षेत्र लोकप्रिय पर्यटन केंद्र है. बिजरानी जोन का प्रवेशद्वार रामनगर शहर से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां पर एक बांध भी है, जो बस मिट्टी से ही बना है, पर देखने लायक है. ढिकाला : ढिकाला बहुत ही हराभरा है. यह रामगंगा की घाटी की सीमा पर स्थित है. यह स्थान वन्य जीवन की दृष्टि से समृद्ध है और जिम कौर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में सब से लोकप्रिय जगह भी यही है. ढिकाला जोन जिम कौर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में सब से बड़ा और पक्षी विहार के लिए दर्शनीय क्षेत्र है. यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए इतना चर्चित है कि इस स्थान से विदेशी जीवजंतुओं को देखना व फोटो लेना भी बेहद आसान है.

पैदल घूमने की दृष्टि से भी यह जगह अति उत्तम है. ढिकाला जोन का प्रवेशद्वार रामनगर शहर से 10-12 किलोमीटर दूर है. दुर्गादेवी : जिम कौर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में दुर्गादेवी जोन उत्तरपूर्वी सीमा पर स्थित है. दुर्गादेवी जोन उन लोगों के लिए पृथ्वी पर स्वर्ग है जो पशुपक्षी, पेड़पौधे और घना इलाका एकसाथ देखने का शौक रखते हैं. इस जोन का प्रवेशद्वार रामनगर शहर से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जून माह के अंतिम सप्ताह से सितंबर माह तक यह बिलकुल बंद रहता है. कारण है कि यहां सभी नदियां भयंकर उफान पर होती हैं और पूरे चौमासे खतरे के निशान से ऊपर ही रहती हैं. हर साल यह इलाका जुलाई से सितंबर माह तक पानी में भरा ही मिलता है और बेहद खतरनाक भी हो जाता है.

पर्यटक वाहनों को कालाढूंगी पर ही रोक दिया जाता है. बस, स्थानीय लोग ही आगे आजा सकते हैं. जनवरी से जून माह तक यहां पर्यटकों की भारी रौनक रहती है. बस, जुलाई से सितंबर माह तक जरा रुकावट रहती है. वहीं अक्तूबर से दिसंबर माह तक फिर वही चहलपहल शुरू हो जाती है. अब तो नए साल का जश्न मनाने के लिए यहां बहुतायत में सैलानी आने लगे हैं. जिम कौर्बेट पार्क में हर साल तकरीबन एक से सवा लाख प्रकृतिप्रेमी देश से ही नहीं, बल्कि दुनियाभर से उमड़ कर खिंचे चले आते हैं.

Short Story: पुजापे का सूअर

सावधानी हटी और दुर्घटना घटी. असावधानी उस भारीभरकम शरीर वाले आदमी से हुई थी जो ढीलेढाले काले कपड़े पहने था और बेपरवाही से सड़क पार कर रहा था. उस के हाथ की पकड़ ढीली होते ही वह नन्हा सूअर छूट कर भागा ही था कि पीछे से आ रही तेज गति की मोटरसाइकिल से टकरा गया और तेज चीख के साथ गिर कर छटपटाने लगा. देखते ही देखते उस के शरीर की फड़कन शांत हो गई. अचानक ब्रेक लगाने से मोटरसाइकिल सवार खुद गिरतेगिरते बचा था. वह रुका और मोटरसाइकिल सड़क के किनारे खड़ी कर दी.

काले कपड़े वाले की तो जैसे गरदन थी ही नहीं. उस का भारीभरकम काला चेहरा उस के कंधों पर धरा सा था. उस ने पूरा शरीर घुमाया और तरेर कर देखा तो मोटरसाइकिल सवार उस के कू्रर चेहरे व जलती आंखों को देख कर सकपका गया. कोई गलती न होते हुए भी उस से आंखें नहीं मिला सका. निगाह नीची की तो नजरें उस के हाथ की थाली पर ठहर गईं, जिस में अगरबत्ती, फूल, रोली, हलदी, चावल के कुछ दाने व चमकता धारदार बड़ा सा छुरा था. एक देसी शराब का पाउच भी थाली में था.

ये भी पढ़ें- Short Story: चिकित्सा-सोमेश्वरजी को अचानक हार्ट अटैक क्यों आ गया था

चूंकि घटना गांव के मुहाने पर ही हुई थी इसलिए लोगों को आने में देर नहीं लगी और भीड़ की शक्ल में लोग इकट्ठे होने लगे. एक अधेड़ अकड़ कर बोला, ‘‘देख कर नहीं चला सकते मोटरसाइकिल?’’

‘‘मेरी कोई गलती नहीं है. वह तो अचानक…’’

‘‘क्या अचानक?’’ दूसरे ने उस के विनम्र निवेदन को बड़ी कर्कश आवाज से काट दिया, ‘‘आप को पता है आप ने यह क्या कर दिया? आप ने एक बड़ी पूजा खंडित कर दी है. जिस का नुकसान अब आप को भुगतना पड़ेगा?’’

काले कपड़े वाला चुप था, लेकिन निचला होंठ दांतों से काटते हुए गुस्से में तमतमा रहा था. जैसे, किसी तरह खुद को काबू में किए है. वरना न जाने क्या कर डालता. नुकसान की बात आई तो मोटरसाइकिल वाले ने सोचा, इन से उलझने के बजाय मामला रफादफा कर लेना ही बेहतर है. उस ने बड़े विनम्र हो कर कहा, ‘‘जो भी नुकसान हुआ है, मैं भरपाई करने को तैयार हूं. हालांकि मेरी कोई गलती नहीं है.’’

ये भी पढ़ें- Short Story: का से कहूं-क्यों दोनों सहेलियां टूट कर बिखर गईं

मरे सूअर के बच्चे को देखते हुए उस ने अनुमान लगाया कि इस की कीमत होगी 4 या 5 सौ रुपए, बस.

‘‘तो रख दो पूरे 11,000 रुपए.’’

काले कपड़े वाला खरखरे स्वर में लगभग गुर्राया, ‘‘सूअर के एक छोटे बच्चे की कीमत 11,000 रुपए?’’

मोटरसाइकिल सवार ने आश्चर्य से कहा ही था कि एक व्यक्ति तो उस पर जैसे टूट ही पड़ा, ‘‘यह तो अनमोल था, अनमोल. इस की कीमत आप नहीं आंक सकते. देख नहीं रहे इस के माथे पर टीका लगा है.’’

उस ने देखा, सूअर के बच्चे का मुंह सुतली से बंधा था और माथे पर रोली का टीका था, जिस पर ताजे खून के छींटे पड़ गए थे. सड़क पर खून भी फैला था. उस के दिल में मृत नन्हे के प्रति दया उमड़ पड़ी. वह कहना चाहता था, टीका लग जाने से क्या सूअर के बच्चे की कीमत इतनी बढ़ जाती है, पर कह न सका.

भीड़ में से आवाज आई, ‘‘आप को पता है, यह पुजापे का सूअर था, वह भी ग्रामप्रधान की मनौती का, जो अभी राजू के हाथों पथरी देवी को चढ़ाया जाना था.’’

एक अन्य ने काले कपड़े वाले को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘क्यों राजू? अगर प्रधानजी को पता चला तो तुम्हारी तो आफत ही आ जाएगी और इस बेचारे मुसाफिर से तो प्रधानजी पता नहीं, कैसे निबटेंगे.’’

ये भी पढ़ें- Short Story: चिकित्सा-सोमेश्वरजी को अचानक हार्ट अटैक क्यों आ गया था

किसी ने सलाह दी, ‘‘प्रधानजी के आने के पहले मामले को सुलझा लो. प्रधानजी का गुस्सा तो नाक पर ही धरा रहता है और बंदूक हमेशा हाथ में रहती है.’’

भयभीत कर देने वाला माहौल खड़ा किया जाने लगा तो मोटरसाइकिल वाले के सामने वे घटनाएं कौंध गईं जिन में धर्म के नाम पर लोगों की हत्याएं तक कर दी गई थीं. यहां भी अंधी आस्था का मामला है. वह आशंका से अंदर ही अंदर कुछ घबराया. उस ने दयनीयता से भीड़ को देखा, किसी की आंखों में उस के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई दे रही थी बल्कि सब एक अपराधी की तरह उसे देखे जा रहे थे. जिस तरह के धूर्त लोग आसपास इकट्ठे हो रहे थे, उस से उसे डर था कि कहीं लोग उतावले हो कर हाथापाई पर न उतर आएं और मोटरसाइकिल को तोड़फोड़ न डालें. उस ने छुटकारा पाने के लिए समर्पण भाव से कहा, ‘‘ठीक है, मैं ने जानबूझ कर तो टक्कर नहीं मारी, फिर भी मैं हरजाना भरने को तैयार हूं.’’

‘‘कहा न, धर दो 11,000 रुपए,’’ राजू ने उस की ओर बढ़ते हुए कहा.

‘‘मगर, एक सूअर के बच्चे की कीमत 11,000 रुपए नहीं हो सकती,’’ उस ने संकोच से असहमति प्रकट करनी चाही.

‘‘इसे सूअर का बच्चा मत कहो. यह प्रसाद था, प्रसाद जिसे तुम ने नष्ट कर दिया है. इस की कीमत तुम क्या जानो? जिस देवी के स्थान पर इसे चढ़ना

था उस देवी द्वारा दी

जाने वाली सजा को तुम नहीं समझ सकते. कहो, अभी खड़ेखड़े तुम्हारी मोटरसाइकिल में आग ही लग जाए,’’ भीड़ से एक अक्खड़ आवाज आई. मोटरसाइकिल वाले को लगा कि ये लोग देवी के अभिशाप के नाम पर मोटरसाइकिल में आग भी लगा सकते हैं. वह अपने को उद्दंडों के बीच फंसा हुआ पा रहा था. उस ने अति विनम्र हो कर कहा, ‘‘मैं ने कहा न, कि मैं हरजाना भरने को तैयार हूं, लेकिन 11,000 रुपए की बात उचित नहीं है.’’

राजू के हाथ का वजन उस के कंधे पर भारी पड़ रहा था. उसे लगा वह किसी ऐसे बलवान के चंगुल में जा फंसा है जिस के शरीर के सापेक्ष में वह बौना है. कौए की आवाज को कोयल जैसी बनाने की कोशिश करते हुए राजू ने पतली आवाज में समझाया, ‘‘देखो भाई, तुम इस गांव की परंपराओं को नहीं जानते. गांव का प्रधान है न, वह है हम से ऊंची जात का और मांसमच्छी नहीं खाता. सूअर को तो वह छू ही नहीं सकता. वह इस साल जब प्रधानी का चुनाव लड़ रहा था तो हमारी बिरादरी के लोगों को खुश करने के लिए उस ने हमारी पथरी देवी के स्थान पर जा कर सब के सामने मनौती मानी थी कि अगर चुनाव जीत गया तो वह देवी को सूअर का बच्चा चढ़वाएगा. उस ने मुझ से कहा था कि एक दुधमुंहा सूअर का बच्चा लाओ, इसी समय. मेरी सूअरिया बियाई थी. तो मैं इसी बच्चे को ले कर तुरंत पहुंच गया. उस ने इस बच्चे पर न्योछावर कर के 2,000 रुपए मुझे पकड़ा दिए और कहा था कि जब यह थोड़ा बड़ा हो जाए तो देवी पर चढ़ा देना. पथरी देवी हमारी कुलदेवी है. वह सब की मंशा पूरी करती है. प्रधानजी की भी इच्छा पूरी हुई. उसी पूजा के लिए मैं इसे ले कर जा रहा था.’’

‘‘तो मैं 2,000 रुपए देने को तैयार हूं.’’

‘‘ठहरो, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है,’’ राजू ने उस के कंधे से हाथ हटाते हुए कहा, ‘‘हमारा सूअरपालन का धंधा है और हम जानते हैं कि जानवर कैसे पाला जाता है. मैं ने इस बच्चे को पालने के लिए न जाने कितने कष्ट उठाए और न जाने कौनकौन जतन किए कि यह

जिंदा बना रहे. बीमार पड़ गया तो पशुचिकित्सक से इलाज कराया. इस की दवादारू में खर्चा किया. मैं ने इसे बड़े हिकमत से पाला था. बाजार से भिंडी, आलू, शकरकंद और न जाने क्याक्या ला कर इसे कुंतलों में खिलाता कि मांस ज्यादा निकले, पुजापे के सूअर का प्रसाद बिरादरी में जो बांटना होता है.’’

मोटरसाइकिल वाला राजू की बनावटी बातों से समझ गया कि इन गांव वालों ने उसे बुरी तरह फांस लिया है जिस से छुटकारा मिलना आसान नहीं है. उस ने दबी आवाज में कहा, ‘‘राजू भाई, आप की सब बातें ठीक हैं. फिर भी 11,000 रुपए की मांग ज्यादा है.’’

‘‘आप शहर के हो और पढ़ेलिखे लगते हो. पर बात को नहीं समझ रहे. आप के शहर से कितने पढ़ेलिखे लोग मेरे पास आते हैं और पूजा करवाने के लिए मुझे हजारों रुपए पकड़ा कर चले जाते हैं. मैं ईमानदारी से उन की तरफ से देवी को बच्चा चढ़ाता हूं. किसी से भी मेरे बारे में पूछ लेना. सब मुझे जानते हैं.’’

‘‘मुझे भी आप की ईमानदारी पर भरोसा है.’’

‘‘तो फिर सोचना क्या? देर किस बात की? प्रेम से 11,000 रुपए धर दो और चुपचाप घर जाओ. प्रधानजी को पता चलेगा तो बात बिगड़ जाएगी. वे वैसे भी बहुत गुस्सैल आदमी हैं,’’ राजू के स्वर में एकाएक कड़ापन आने लगा.

मोटरसाइकिल वाले को आश्चर्य हुआ कि खूंखार दिखने वाला यह आदमी कितनी जल्दीजल्दी स्वर बदल रहा है. खट्टीमीठी दोनों बातें एकसाथ कर लेता है.

सड़क पर भीड़ बढ़ने लगी थी. भीड़ आक्रोशित तो नहीं लग रही थी लेकिन उत्सुकता सब के चेहरे पर थी. वह अच्छी तरह समझ रहा था कि इस भीड़ से बच कर भागा नहीं जा सकता है और किसी न्याय की आशा भी करना बेकार है. कोई भी उस के पक्ष में खड़ा दिखाई नहीं दे रहा था.

राजू ने उस का निर्णय जानना चाहा, ‘‘क्या सोच रहे हो? जो भी फैसला करना हो, जल्दी करो. प्रधानजी को पता न चले, तो अच्छा ही है.’’

वह कुछ बोले, इस के पहले भीड़ से निकल कर एक आदमी उन के पास आया और बोला, ‘‘क्या तय हुआ?’’

‘‘तय तो इन को करना है कि मामले को बढ़ाना है या यहीं खत्म कर देना है,’’ राजू ने लापरवाही से कहा.

यह आदमी मोटरसाइकिल वाले को कुछ सभ्य लगा. उस ने अनुनय करनी चाही, ‘‘भाईसाहब, आप ही बताइए, क्या इन की मांग उचित है? इतनी रकम तो मेरे पास है भी नहीं.’’

‘‘कितनी है?’’

मोटरसाइकिल वाला चुप रह गया. सोचने लगा कि अगर बताता हूं कि मेरी जेब में 5,000 रुपए हैं तो ये तुरंत छीन सकते हैं. असमंजस में यहांवहां देखने लगा. भीड़ के लोग उसे ही ताक रहे थे. बचने का एक ही उपाय उसे सूझा कि किसी तरह मुआवजे की राशि कम कराई जाए. इन से बच कर निकल लेना ही उचित है. इन चतुरचालाकों से लड़ा नहीं जा सकता है. ये भोलेभाले ग्रामीण नहीं हैं. प्रधानजी का हौआ तो ये खड़ा कर ही चुके हैं, लूटखसोट, मारपीट कुछ भी कर सकते हैं. असहाय सा वह बोला, ‘‘आप बीच में आए हैं तो आप ही फैसला कीजिए.’’

‘‘मेरा फैसला मानना पड़ेगा,’’ उस व्यक्ति के चेहरे पर न्यायकर्ता का दंभ चमक उठा.

गिरफ्त में फंसे मोटरसाइकिल वाले ने ‘हूं’ कहा तो उस ने राजू की सहमति चाही, ‘‘राजू, तुम्हें भी मेरी बात माननी पड़ेगी.’’

‘‘मानूंगा,’’ राजू ने बिना देर लगाए सहमति प्रकट कर दी.

उस व्यक्ति ने राजू को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है, राजू, तुम आधी रकम पर मान जाओ और इस बेचारे को जाने दो.’’ राजू तो चुप रह गया लेकिन मोटरसाइकिल वाला अचकचा गया, ‘‘यह तो ज्यादती है.’’

‘‘मैं ने तो पहले ही आप दोनों से कुबूल करवा लिया था कि मेरा फैसला मानना पड़ेगा. अगर नहीं मानना तो आप लोग खुद अपना फैसला करो और निबटो,’’ उस ने धमकी सी दी और नाराज हो कर जाने का उपक्रम किया.

मोटरसाइकिल वाले को लगा कि वह तो दलदल में फंसा रह जाएगा और बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. उस ने विनती सी की, ‘‘रुकिए, भाईसाहब.’’

वह रुका तो मोटरसाइकिल वाला उस के करीब पहुंचा और धीमे स्वर में बोला, ‘‘देखिए भाईसाहब, मेरे पास इस समय सिर्फ 5,000 रुपए हैं, इतने पर ही समझौता करवा दीजिए और मुझे जाने दीजिए.’’

‘‘तो ठीक है, अगर आप खुश हैं तो मैं इन सब को समझा लूंगा.’’

मोटरसाइकिल वाला खुश नहीं था, लेकिन उस की बात से इनकार नहीं कर सका.

विश्व धरोहर दिवस पर विशेष : हर ऐतिहासिक धरोहर कुछ कहती है

आज  वर्ल्ड  हेरिटेज डे  यानी  विश्व  धरोहर  दिवस  है . यह दिन इतिहास के ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर उत्सव मनाने का  दिन होता है,  अपनी  ऐतिहासिक धरोहर को बचाए रखने और इसके महत्व के बारे में पूरी दुनिया को जागरूक करने के उद्देश्य से यह उत्सव पुरे विश्व में मनाया जाता है . विश्व  में उपस्थित विभिन्न  सभ्यताओ, संस्कृतियों और उनकी  विरासतों  के  बारे  में  बात  करने  और  उनके रख – रखाव  के ओर  ध्यान  आकर्षित  करने  के  उद्देश्य  से  हर  वर्ष  यह  दिवस  इसी  दिन  मनाया  जाता  है .

हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व धरोहर दिवस 40 साल से निरंतर विश्व की अद्भुत, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के महत्व को दर्शाता रहा है .  विश्व  धरोहर  दिवस  की  शुरुआत  18  अप्रैल  1982  को  हुई  थी.  जब  इकोमास  संस्था  ने टयूनिशिया  में  अंतर्राष्ट्रीय  स्मारक और  स्थल  दिवस  का  आयोजन  किया.  इस  कार्यक्रम  में  कहा  गया  कि  दुनिया भर  में  समानांतर रूका  से  इस  दिवस  का  आयोजन  होना  चाहिए.  इस  विचार  का  यूनेस्को  के  महासम्मेलन  में  भी  अनुमोदन  कर  दिया  गया  और नवम्बर 1983 से 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: लॉकडाउन और शादी

धरोहर अर्थात मानवता के लिए अत्यंत महत्व की जगह, जो आगे आने वाली पीढि़यों के लिए बचाकर रखी जाएँ, उन्हें विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता है.  ऐसे महत्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण की पहल यूनेस्को ने की थी. जिसके बाद एक अंतर्राष्ट्रीय  संधि किया  गया .  विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर  संरक्षण की बात करते हुए, इसे 1972 में पुरे विश्व में लागू किया गया. तब विश्व भरा के धरोहर स्थलों को मुख्यतः तीन  श्रेणियों में शामिल  किया  गया.

* प्राकृतिक धरोहर स्थल –

ऐसी धरोहर भौतिक या भौगोलिक प्राकृतिक निर्माण का परिणाम या भौतिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर या वैज्ञानिक महत्व की जगह या भौतिक और भौगोलिक महत्व वाली यह जगह किसी विलुप्ति के कगार पर खड़े जीव या वनस्पति का प्राकृतिक आवास हो सकती है.

* सांस्कृतिक धरोहर स्थल – 

इस श्रेणी की धरोहर में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, मूर्तिकारी, चित्रकारी, स्थापत्य की झलक वाले, शिलालेख, गुफा आवास और वैश्विक महत्व वाले स्थान; इमारतों का समूह, अकेली इमारतें या आपस में संबद्ध इमारतों का समूह; स्थापत्य में किया मानव का काम या प्रकृति और मानव के संयुक्त प्रयास का प्रतिफल, जो कि ऐतिहासिक, सौंदर्य, जातीय, मानवविज्ञान या वैश्विक दृष्टि से महत्व की हो, शामिल की जाती हैं.

* मिश्रित धरोहर स्थल – 

इस श्रेणी के अंतर्गत् वह धरोहर स्थल आते हैं जो कि प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों ही रूपों में महत्वपूर्ण होती हैं.

भारत में विश्व धरोहर –

 विश्व धरोहरों के मामले में भारत का दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान है और यहां के ढाई दर्जन से अधिक ऐतिहासिक स्थल, स्मारक और प्राचीन इमारतें यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं.यूनेस्को द्वारा स्वीकृत भारत के विश्व धरोहर स्थल :- भारत को विश्व धरोहर सूची में 14 नवंबर 1977 में स्थान मिला. तब से अब तक 38 भारतीय स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया जा चुका है. जो निम्न है –

ये भी पढ़ें-कोरोनावायरस लॉकडाउन: 350 से अधिक जिले ग्रीन जोन में शामिल, कोरोना संक्रमण के पहुंच से दूर

* भारत से पहली बार दो स्थल आगरा किला एवं अजंता गुफाओं को 1983 में विश्व दर्शनीय स्थलों में शामिल किया गया|

* 2016 में, तीन स्थलों  नालंदा महावीर विश्वविद्यालय, (बिहार) , कैपिटील बिल्डिंग काम्प्लेक्स (चंडीगढ़) aur  कंचनजंघा राष्ट्रीय पार्क ( सिक्किम)  को विश्व दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल किया गया .

* भारत में सिर्फ एक मिश्रित स्थल कंचनजंघा राष्ट्रीय पार्क, सिक्किम है .

* जुलाई 2017 में, विश्व दर्शनीय स्थलों की सूची में भारत का प्रथम शहर अहमदाबाद है .

* जुलाई 2018 में, मुंबई के विक्टोरियन और आर्ट डेको एनसेम्बल्स को भारत की 37 वीं विश्व धरोहर स्थलों के रूप में सूचीबद्ध किया.

*  ऐतिहासिक शहर बाकू, अज़रबैजान में 30 जून -10 जुलाई से यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) के 43 वें सत्र में, मान्यता प्राप्त करने के लिए अहमदाबाद के बाद जयपुर शहर को भारत की 37 वीं विश्व धरोहर स्थलों के रूप में सूचीबद्ध किया.

* भारत में जुलाई 2018 में मुंबई के विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको एनसेम्बल  को भारत की 38 वीं विश्व धरोहर स्थलों के रूप में सूचीबद्ध किया.

सोनू  निगम, हेमा सरदेसाई, सुष्मितासेन समेत कई दिग्गज कलाकारों को मिला‘‘चैंपियंस ऑफ चेंज 2020’’ अवार्ड

गोवा के ताज रिजॉर्ट एंड कन्वेंशन सेंटर में आयोजित एक भव्य समारोह में ‘‘चैंपियंस ऑफ चेंज 2020’’ के विजेताओं को गोवा व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह को श्यारी की मौजूदगी

में सम्मानित किया गया. कोरोना जैसी महामारी के दौरान देश और समाज के प्रति जिस सेवा भाव और निष्ठा से इन लोगों ने अपना कर्तव्य निभाया उसके लिए इनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है. इस समारोह में अवॉर्ड विजेताओं समेत कई गणमान्य अतिथि शामिल हुए.‘‘चैंपियंस ऑफ चेंज अवार्ड-2020‘‘ कार्यक्रम के तीसरे संस्करण के गोवा व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह को श्यारी मुख्य अतिथि थे.मुख्य अतिथि के साथ भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (रि.) जस्टिस के जी बाल  कृष्णन भी मौजूद थे,जबकि (रि.) जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हुईं.

ये भी पढ़ें- Indian Idol 12 : Pawandeep Rajan के बाद इस कंटेस्टेंट को भी हुआ कोरोना

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते बीजेपी सांसद हेमामालिनी,शत्रुघ्न सिन्हा, सुष्मिता सेन,एम के स्टालिन, स्वामी चिदानंद सरस्वती आदि अवॉर्ड पाने वाले विजेता डिजिटल माध्यम से इस अवॉर्ड समारोह में शामिल हुए. हर वर्ष आयोजित होने वाला ‘चैंपियंस ऑफ चेंज अवॉर्ड’ एक राष्ट्रीय पुरस्कार है,जिसका मकसद स्वच्छता, सामुदायिक सेवा औरसामाजिक विकास (नीति आयोग द्वारा चुने गए भारत के आशावादीजिलों में), गांधीवादी मूल्यों को बढ़ावा देना है.इस अवॉर्ड को मासिक पत्रिका ‘पावरकॉरिडोर’और न्यूज वेबसाइट ‘पंचायती टाइम्स’ आयोजित करते हैं, जोकि ‘इंटर एक्टिवफोरम ऑन इंडियन इकोनॉमी’ का हिस्सा हैं.आई एफ आईई एक स्वयंसेवी संस्था है,जिसके अध्यक्ष नंदन कुमार झा हैं.समाज की बेहतरी के लिए काम  करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए नंदन झा ने ही इस अवॉर्ड की पहल की.

चैंपियंस ऑफ चेंजअवॉर्ड’ अवॉर्ड हर वर्षचार श्रेणियों में दिया जाता है-
1-भारत में 115 आशावादी जिलों में रचनात्मक कार्य.
2-ग्रामीण विकास के लिए शिक्षा, हेल्थकेयर, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग.
3-स्वच्छ भारत अभियान में उत्कृष्ट योगदान.
4-भारत के बाहर गांधी वादी मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मान
पुरस्कार में एक प्रमाण पत्र और एक स्वर्णपदक शामिलहैं।
इसकी जूरी के सदस्यो में भारत के पूर्वमुख्य न्यायाधीश और एनएचआरसी के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस के जी बालाकृष्णन, जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा (भारत कीपूर्वसुप्रीमकोर्टन्यायाधीश),वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक शामिल हैं.

ये भी पढ़ें- पद्मश्री विजेता तमिल एक्टर विवेक ने 59 की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा, हॉर्ट अटैक से हुई निधन

इस अवॉर्ड का पहला संस्करण“चैंपियंसऑफचेंजअवार्ड्स 2018”विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित हुआ,जिसमें भारत के माननीय उपराष्ट्रपति एम. वेंकैयानायडू ने पुरस्कार वितरित किए थे. 2018 के पुरस्कार विजेता थे: मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, रितुजाय सवाल, डॉ. श्रीनुबाबूगेडेला, एसपीचम्बा डॉ. मोनिका, इत्यादि

दूसरे संस्करण यानी कि“चैंपियंस ऑफ चेंज 2019” विज्ञान भवन नई दिल्ली में आयोजित किया गया था. इसके मुख्य अतिथि भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं भारतरत्न स्व.प्रणव मुखर्जी थे.पुरस्कार विजेताओं में हेमंत सोरेन (मुख्यमंत्री,झारखंड),अनुरागठाकुर, केंद्रीय राज्यमंत्री वित्त एवं कॉर्पोरेट मामले,मनीष सिसोदिया (उपमुख्यमंत्री, दिल्ली), शिल्पा शेट्टीकुंद्रा (फिल्म अभिनेत्री), दीपावेंकट शामिल थे.
इस अवसर पर मुख्य अतिथि महा महिम भगत सिंह को श्यारी ने सभी पुरस्कार विजेताओं को साधुवाद देते हुए कहा“इतिहास ने सदा ही कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों को जन्म दिया है,

जो वास्तव में एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के प्रशंसनीय विचारों के साथ बदलाव लाने में सफल होते हैं.चैंपियन्स ऑफ चेन्ज इस राष्ट्रीय प्रेरणाका आयोजक बना है,जिसने न केवल परिवर्तन लाने में सफल कर्म योगियों का सम्मान किया है,अपितु भविष्य में भी इस तरह के मनीषियों के लिए सफलता की प्रेरणा का माध्यम भी बना है.’’

ये भी पढ़ें- धर्म बेचता ओटीटी

अपने प्रयासों के लिए मिले इस प्रोत्साहन पर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत नेआभार व्यक्त करते हुए कहा,‘‘जो लोग दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं. उनको आगे बढ़ाने वाली शक्ति करुणा और दयाभाव है न किसी किसी तरह की प्रसिद्धि पाने की इच्छा, चैंपिंयन्स ऑफ चेंज अवॉर्ड जैसा सम्मान इन लोगों को औ रप्रोत्साहित करता है.

’’
केंद्रीय आयुष मंत्री श्री पदनाइक ने कहा-‘‘चैंपियन्स ऑफ चेंज अवॉर्ड’’ हमेशा से समाज के हित में काम करने वालों लोगों को प्रोत्साहित करता आया है,और आज जब कोरोना जैसी महामारी पूरी विश्व के लिए चुनौती बन गई है, जिन लोगों ने लोगों की सेवा करने का बीड़ा उठाया उनका सम्मान ऐसे और कई लोगों को प्रोत्साहित करेगा.’’

इस अवसर पर चैम्पियंस आफ चेंज अवार्ड के आयोजक और आयएफआयइ संस्था के चेयरमैंन नंदन झा ने कहा-‘‘वैश्विक महामारी के चलते हमने चैम्पियंस आफचेंज 2020’’संस्करण के आयोजन में कई चुनौतियों का सामना किया. महा महिम राज्यपाल भगत सिंह कौशियारी, मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत, गायक सोनू निगम सहित अन्य राजनैतिक, सामजिक और विजनेस के शीर्ष व्यक्तित्व की उपस्थिति में यह हमेशा के लिए एक यादगार सफल आयोजन सम्भव हो पाया.हमारी संस्था का उद्देश्य है कि सकारात्मक सामाजिक बदलाव के अग्रणी राजनेता, समाज सेवी,व्यवसायी को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाए,इससे आने वाली पीढ़ियां भी कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित हो.’’

बॉलीवुड  के पाश्र्व गायक सोनू निगम नेकहा-‘‘चैम्पियनस आफचेंज’यह पुरस्कार हमेशा मेरे लिए बहुत खास रहेगा,पिछले 45 सालों से मैं गाना गा रहा हूँ. कई पुरस्कार मिले हैं,लेकिन चैम्पियंस आफ चेंज पुरस्कार सिर्फ मेरे गानो और बॉलीवुड के साथ ही मेरे सामजिक कल्याण के कार्यों के लिए सम्मानित किया है,यह एक बहुत खास एहसास हैं, जो मुझे भविष्य में भी समाजसेवा के लिए निरंतर प्रेरित करता रहेगा.’’

कोरोना नहीं लॉकडाउन का डर, फिर लौटे प्रवासी मजदूर अपने आशियाने की ओर

पिछले साल कोरोना काल में प्रवासी मज़दूरों की जो तस्वीरें सामने आईं उसने देश दुनिया को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था. इन मजदूरों ने बिना कुछ कहें हज़ारों किलोमीटर की दूरी नंगे पांव तय कर ली थी. क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान सब एक कतार से अपने देस पहुंचने को ऐसे निकले जैसे फिर कभी परदेश का रुख न किया जाएगा. लेकिन कहते हैं कि भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता हैं. पिछले बरस लॉक डाउन खुला और जैसे-जैसे कोरोना का खतरा थोड़ा कम लगा, ये मज़दूर फिर महानगरों की तरफ निकल आएं. इसे पेट की मजबूरी ही कहा जा सकता है कि फिर हज़ारों किलोमीटर का सफर तय कर अपने घर पहुंचने के बाद भी इन्हें वापस महानगरों की तरफ़ लौटना पड़ा. महानगर जहां दो वक्त की रोटी तो नसीब हो जाती है. लेकिन अब जैसे जैसे कोरोना ने अपने पैर पसारे, ये प्रवासी मजदूर फिर से अपना बोरिया बिस्तर बांध कर पहुंचने लगे अपने गांव कस्बों में. इस डर से कि कहीं पिछले साल जैसी हालत ना हो जाए.

क्या दिल्ली, क्या महाराष्ट्र और क्या मध्यप्रदेश हर जगह रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर प्रवासी मजदूरों का तांता लगा हुआ है. सब के मन में वस एक ही बात है कि कहीं पिछले साल की तरह इस बार भी रातों रात लॉकडाउन ना लगा दिया जाए तो हम क्या करेगें. पिछला बरस तो जैसे तैसे ग़ुज़र बसर हो गई थी लेकिन इस बार नहीं हो पाएगी. लॉकडाउन के बाद पैदल जाने से अच्छा है कि हम पहले ही जो सवारी जैसे मिल रही है बस अपने घर पहुंच जाएं. साथ ही कुछ लोगों का कहना था कि हम पिछले साल वाला मंजर दुबारा देखने के हालात में नहीं हुं. कुछ मजदूरों से बात करने पर पता चला कि लॉकडाउन के दौरान रोटी देने वालों ने फोटो खींच-खींचकर जो जिल्लत इन लोगों को दी, वो आज भी उन कड़वी यादों से उबर नहीं सके हैं और वो जिल्लत अब वो फिर नहीं झेलना चाहते. कोरोना की इस दूसरी लहर ने तो जैसे इन मजदूरों को तोड़ कर रख दिया है.

ये भी पढ़ें- चिताओं का वीडियो वायरल होने पर बैकुंठ धाम श्मशान घाट को ढका गया

छतरपुर, हरपालपुर रेलवे स्टेशन पर दिल्ली से आने वाली ट्रेनों ने ठसाठस मज़दूर भरे हुए है. आलम यह है कि बिहार के लिए अगस्त तक की बुकिंग है. ट्रेनें फुल हैं. दिल्ली से आने वाली बसों ने एक बार फिर मज़दूर ही मज़दूर नज़र आ रहे हैं. हर लंबे रूट की बस ठसाठस भरी हुई हैं. वहीं, टिकट काउंटर पर मजदूरों की भीड़ लगातार उमड़ रही है. गंतव्य तक पहुंचने वाली ट्रेनें न मिलने पर वह छोटे रूट ट्रेनों की टिकट बुक कर किसी तरह यहां से निकलना चाहते हैं.

ऐसा लग रहा है जैसे एक बार फिर इनका आशियाना किसी तूफान में उड़ गया है. और ये फिर बेसहारा हो गए हैं. दिल्ली के आनंद विहार बस स्टैंड और कौशाम्बी बस स्टैंड पर आम दिन से ज़्यादा भीड़ देखी जा रही है. कुछ लोगो का कहना है कि दिल्ली में वीकेंड लॉक डाउन की वजह से घर जा रहे है तो कुछ अपने निजी काम से. लोग बसों के इंतजार में खड़े नजर आ रहे हैं. कुछ लोगों का कहना था कि दिल्ली में वीकेंड लॉक डाउन के चलते वह लोग अपने गांव या शहर जा रहे हैं. साथ ही कोरोना के केस बढ़ने से डर है. साथ ही अभी वीकेंड लॉकडाउन लगा है लेकिन आगे कितना और बढ़ जाए इसका कुछ पता नहीं, इसलिए पहले घर निकलना ज्यादा बेहतर है.

ये भी पढ़ें- औरतों के लिए नौराते त्यौहार या अतिरिक्त बोझ

देश के अधिकांश हिस्सों में बिहार के लोग काम की तलाश में जाते हैं. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले के कारण कई राज्यों में कारखाने और काम बंद हो रहे हैं, जिस कारण लोग वापस लौट रहे हैं. हालांकि बिहार में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में लौट रहे लोगों को बस इतना सुकून है कि कम से कम परदेश से भला अपने गांव तो पहुंच गए.

Indian Idol 12 : Pawandeep Rajan के बाद इस कंटेस्टेंट को भी हुआ कोरोना

देश में कोरोना ने हर किसी कि कमर तोड़क कर रख दी है. हर तरफ लोग इस बीमारी से परेशान नजर आ रहे हैं. इसी बीच इंडियन आइडल शो के बीच से एक बुरी खबर आई है. खबर यह है कि शो के टॉप 5 में आने वाले कंटेस्टेंट आशीष कुलकर्णी कि कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आई है.

इससे पहले इंडियन आइडल के सबसे दमदार सिंगर पवनदीप राजन को कोरोना हुआ था इसके बाद से अब आशीष भी कोरोना पॉजिटीव पाए गए हैं. बताया जा रहा है कि पवनदीप राजन और आशीष एक ही रूम शेयर करते थें. जिस वजह से इऩ्हें भी कोरोना हुआ है.

ये भी पढ़ें- धर्म बेचता ओटीटी

अब शो पर खतरा मडराता नजर आ रहा है. पिछले हफ्ते पवनदीप राजन को कोरनाहुआ था तो वह रूम के अंदर से परफॉर्मेंस दिया था. जिसके बाद लोगों ने उसकी खूब तारीफ की थी, लेकिन अब लगता है कि आशीष को भी रूम के अंदर से ही परफॉरमेंस देनी होगी.

ये भी पढ़ें- इस वजह से हो रही है राहुल वैद्य और दिशा परमार की शादी में देरी

बिगड़ते हालात को देखते हुए सभी लोग परेशान हैं कि क्या होने वाला है. शो के कंटेस्टेंट के साथ- साथ शो के जज भी परेशान नजर आ रहे हैं.

अब देखऩा यह है कि शो के जज कैसे सभी चीजों को संभालते हैं. वैसे भी महाराष्ट्रा में हालात बहुत ज्यादा नाजुक है इसलिए मिनी ल़कडाउन लगा दिया है. जिससे सभी लोग अपने घर के अंदर ही रहकर काम कर रहे हैं. लेकिन अब देखऩा यह है कि कोरोना से कितने लोग बच पाते हैं या नहीं.

ये भी पढ़ें- फिर मदद के लिए सामने आएं सोनू सूद, किया लोगों को नौकरी दिलाने का वादा

हालात ऐसे ही रहा तो महाराष्ट्र में मिनी लॉकडाउ का भी एलान कर दिया जाएगा.

पद्मश्री विजेता तमिल एक्टर विवेक ने 59 की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा, हॉर्ट अटैक से हुई निधन

कोरोना काल सभी के लिए बहुत बुरा माना जा रहा है लेकिन इसके साथ ही कोरोना ने हमसे कई दिग्गज कलाकारों को छीन लिया है. पिछले साल भी कई मशहूर हस्तियां इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दी तो इस साल भी वहीं हाल है.

तमिल के जाने माने एक्टर विवेक की मौत हो  गई है. पिछले दिनों उनके सीने में दर्द शुरू हुआ उसके बाद से उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन 16 अप्रैल को उन्होंने हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. बताया जा रहा है कि विवेक की मौत हार्ट अटैक से हुई है.

ये भी पढ़ें- धर्म बेचता ओटीटी

उनकी मौत चेन्नई के किसी अस्पताल में हुई है. अभी भी उनके चाहने वालों को इस बात पर यकिन करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि विवेक ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.

ये भी पढ़ें- इस वजह से हो रही है राहुल वैद्य और दिशा परमार की शादी में देरी

फैंस लगातार सोशल मीडिया पर विवेक को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. उन्हें लगातार सोशल मीडिया पर कमेंट आ रहे हैं. विवेक साउथ का जाना माना नाम था उन्होंने कई तमिल फिल्मों में काम किया था. वह साउथ के सुपर स्टार रजनीकांत, कमल हसन और अजित , विजय के अलावा कई दिग्गज कलाकारों के साथ स्क्रिन शेयर करते थें.

बता दें कि कुछ समय पहले ही विवेक ने कोरोना वायरस की वैक्सिन लगवाएं थें. विवेक ने एक सरकारी अस्पताल में कोरोना वायरस की वैक्सिन लगवा कर चौका दिया था.

ये भी पढ़ें- फिर मदद के लिए सामने आएं सोनू सूद, किया लोगों को नौकरी दिलाने का वादा

विवेक अब हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्हें फैंस हमेशा याद करेंगे , विवेक की फिल्मों से उन्हें याद किया जाएगा .

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें