9/11 अमेरिका के लिए कभी ना भूल पाने वाली तारीख है. बीस साल पहले 11 सितम्बर 2001 को अलकायदा ने अमेरिका पर भीषण आतंकी हमला किया था. इस हमले का मास्टरमाइंड अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन था. अलकायदा अफगानिस्तान में आसानी से काम करने में सक्षम था क्योंकि उस समय की तालिबानी सरकार उसे संरक्षण देती थी. अमेरिका पर हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तत्कालीन तालिबान सरकार को हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को सौंपने के लिए कहा, लेकिन तालिबान ने इनकार कर दिया. उसके बाद अमेरिका के नेतृत्व में योजनाबद्ध तरीके से वहां से तालिबान को सत्ता से हटाने की कवायद शुरू हुई. आतंक को प्रश्रय देने वाले तालिबान के सफाये के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और ओसामा सहित कई खूंखार आतंकियों को मौत के घाट उतार कर अफगानिस्तान में अपनी फौजें तैनात कर दीं. बीते दो दशकों में नाटो और अमेरिकी फ़ौज अफगानिस्तान में लगातार दहशतगर्दों से मोर्चे लेती रही. इस तरह दहशतगर्दों और कट्टरपंथियों के दम पर फलने-फूलने वाले तालिबान की हालत काफी खस्ता हो गयी.

लेकन बीते बीस साल में मिलिट्री और सुरक्षा की बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी है. यह कीमत पैसों और ज़िन्दगियों दोनों रूपों में चुकाई गयी हैं. इस लम्बी लड़ाई में अमेरिकी सेना के 2300 से ज़्य़ादा पुरुष और महिलाओं को जान गंवानी पड़ी और 20,000 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. अमेरिकी करदाताओं पर इससे क़रीब 1 ट्रिलियन डॉलर का बोझ बढ़ा है. इसके अलावा ब्रिटेन के 450 सैनिकों समेत दूसरे देशों के सैंकड़ों सैनिक मारे गए या घायल हुए हैं. लेकिन सबसे ज़्यादा नुकसान अफगानियों को हुआ है. उनके 60,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी इस दौरान मारे गए और इससे दोगुनी संख्या में आम नागरिकों की जानें गयी हैं. फिलहाल अफगानिस्तान में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग से वहां एक स्थिर सरकार और बेहतर माहौल चाहते हैं. मगर तालिबान अभी ज़िंदा है. अफगानिस्तान में उसके साथ शांति वार्ता का दौर जारी है.

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