देश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोपतेजी से बढ़ता जा रहा है. बिहार में भी कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढ़ती जा रही है. राज्य भर में 24 घंटे में 7870 नए मामले आए हैं. कोरोना के बढ़ते मरीजों के बीच राजधानी पटना के कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी बताई जा रही है. इसको लेकर किए जा रहे बिहार सरकार और जिला प्रशासन की सारी कवायद फेल होती नजर आ रही है. दो दिन के बाद भी इनके दावे पूरे नहीं होते दिख रहे हैं. जिससे लोगों की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं.

वहीं इन सब के बीच बिहार के एक बड़े मेडिकल कालेज NMCH के अधीक्षक डॉ विनोद कुमार ने ऑक्सीजन की कमी की वजह से खुद को अधीक्षक के कार्यभार से मुक्त करने के लिए सरकार को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि, उनके अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी है. ऐसी सूरत में मरीजों की जान जा सकती है और सरकार उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहरा देगी. इसीलिए सरकार से कहा,उन्हें पद छोड़ने दें.

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दरअसल पटना के दूसरे सबसे बड़े सरकारी अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज NMCH में बड़ा हंगामा हो गया है. कोविड वार्ड में ऑक्सीजन की सप्लाई में कमी के बाद मरीजों के परिजन जूनियर डॉक्टरों से उलझ पड़े. मारपीट की नौबत आ गई. इसके बाद जूनियर डॉक्टर अस्पताल से भाग खड़े हुए. हालात ऐसे हैं कि कभी भी कई लोगों की जान जा सकती है.

इस पूरे मामले के बाद अस्पताल के अधीक्षक डॉ विनोद कुमार ने  बिहार के स्वास्थ्य विभाक के प्रधान सचिव के नाम पत्र लिखते हुए खुद को पदमुक्त किए जाने की मांग कर दी है. उन्होंने कहा है कि नालंदा मेडिकल कॉलेज पटना में ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता द्वारा यहां ऑक्सीजन सप्लाई करने की जगह दूसरें अस्पतालों को भेजी जा रही है जिसके चलते ऑक्सीजन की कमी हो रही है. गौरतलब है कि कल से NMCH को पूर्णतः 500 बेड के कोविड अस्पताल के रूप में काम करना है. ठीक इसके पहले अस्पताल के अधीक्षक का हाथ खड़े कर देना स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है. राजधानी में हॉस्पिटल्स को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन गैस नहीं मिल पा रही है. इसी वजह से पटना में कोरोना मरीजों के परिवार पर कहर टूटा हुआ है.

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गौरतलब हो की कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की मांग ज्यादा बढ़ी है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बार हर किसी के लंग्स में बड़ा असर हो रहा है. सांस लेने में 30 प्रतिशत लोगों को समस्या आ रही है. ऐसे में हॉस्पिटलस में ऑक्सीजन की डिमांड बढ़ गई है. डॉक्टरों का कहना है कि एक सिलेंडर पर मरीज को 22 से 24 घंटे जिंदगी मिल सकती है. एक सिलेंडर में इतनी ही गैस होती है. अगर इसका रेगुलेटर अधिक खोल दिया जाए तो यह समय घट भी सकता है. हर अस्पताल में बेस ऑक्सीजन ही है और इसी का संकट जानलेवा हो रहा है.

किसके आदेश पर भेजे जा रहे है ऑक्सीजन ?
बात जो भी हो लेकिन अधीक्षक डॉक्टर विनोद कुमार सिंह के आरोप गंभीर है. सवाल ये उठता है कि एनएसमीएच के मरीजों को ही पूरी तरह से  ऑक्सीजन  नहीं मिल पा रहे तो ऐसे में किसके आदेश पर ये ऑक्सीजन भेजे जा रहा है. क्या कोरोना काल में ऑक्सीजन की कालाबाजारी तो नहीं की जा रही है. कहीं सरकारी अस्पतालों के ऑक्सीजन को निजी अस्पतालों में तो नहीं भेजा जा रहा है. क्या कुछ बड़े अहदे पर बैठे लोग गुप्त तरीके के निजी स्वार्थ के लिए ऑक्सीजन को छिपा रहे हैं. ऐसे कई सवाल अब उठ खड़े हुए हैं. मामला बेशक एक अस्पताल का उजागर हुआ हो, लेकिन हालात कमोबेश सभी जगह एक जैसे ही है. ऐसे में कहा जा सकता है कि बिहार के मरीज अब भगवान भरोसे ही हैं.

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बता दें कि बिहार में आज करीब  8 हजार नए केस आए है. अकेले राजधानी पटना में  2 हजार मरीज मिलें. बिहार में कोरोना मरीजों की डबलिंग रेट देश में सबसे ज्यादा है.

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