उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मरने वालों की संख्या में कमी नहीं आ रही. जो षहर कभी अपनी मुस्कराहट के लिये मशहूर था आज मौत के खौफ से दो चार हो रहा है. श्मशान से लेकर अस्पताल तक किसी का कोई पुरसाहाल नहीं है. श्मशान में लकडियों के लिये वेटिंग है तो अस्पताल में बेड और आक्सीजन के इंतजार में जान जा रही है. मरने वालों को चार लोगों का कंधा तक मुश्किल से नसीब हो रहा है. शहर को डर इस बात का है कि अगर हालात और बिगडे तो हालात क्या होगे ? अंतिम संस्कार के लिये लोग अब नये श्मशान स्थलों की  खोज करने लगे है. गुरूवार को गुलाला घाट और बैकुंठ धाम पर 173 लोगों का दाह संस्कार हुआ. जिसमें 60 शव कोविड पॉजिटिव थे.

कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या की बात हो या इससे मरने वालों की संख्या का. सरकार का प्रयास हमेशा से आंकडों को छिपाने का होता है. यही आलोचना का कारण बनता है. अप्रैल के दूसरे सप्ताह में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोविड 19 के संक्रमण से मरने वालों की संख्या में तेजी से बढोत्तरी होने लगी. लखनऊ के दो श्मशान स्थल चैक स्थित गुलाला घाट और गोमती बैराज के पास स्थित बैकुंठ धाम में अचानक शवो के अंतिम संस्कार में समय लगने लगा.

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कोविड 19 से मरने वालों के शव को विद्युत शवदाह में ही अंतिम संस्कार किया जाता है. वहां नम्बर दिये जाने लगे. एक के बाद एक दूसरे का नम्बर आने की दशा में घंटो का समय लगने लगा. श्मशान के लिये लकडी की कमी होने लगी. जिससे शव लेकर आने वाले अपने साथ षव को जलाने के लिये लकडियां भी लेकर आने लगे. इस दौरान यह पता लगा कि कोविड से मरने वालों की संख्या 30 से 40 की हो गई है. सरकार के आंकडे इसे 10 से 12 बता रहे थे. यह संख्या लगातार बढती जा रही है. इसके साथ ही साथ शवदाह का प्रबंधन समस्या बनने लगा. सामान्य शवो का अंतिम संस्कार करने के लिये लकडियों की कमी होने लगी.

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