कोरोना महामारी की वजह से गत वर्ष 17 मार्च से फिल्म इंडस्ट्री लगभग ठप पड़ी हुई है. जब 2020 में कोरोना की लहर ने पसरना शुरू किया था तब किसी को उम्मीद न थी कि यह कोरोना की लहर फिल्म इंडस्ट्री को ऐसी तबाही के मुकाम पर ला कर खड़ा कर देगी कि इस के लिए फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो जाएगा. पर ऐसा हुआ. जानकारों की मानें तो 2020 में फिल्म इंडस्ट्री को करीबन 2,500 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है.

अक्टूबर 2020 के बाद धीरेधीरे फिल्म इंडस्ट्री ने काम करना शुरू किया था और लोगों के अंदर एक आशा की किरण जागी थी कि जल्द ही सबकुछ ठीक हो जाएगा, मगर फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ 25 प्रतिशत ही काम शुरू हो पाया था कि कोरोना की नई लहर इस इंडस्ट्री के लिए ऐसी तबाही ले कर आई है कि अब इसे पटरी पर लाना किसी के भी बस की बात नहीं है. लगभग सभी पस्त हो चुके हैं. यह ऐसा कड़वा सच है जिस पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के साथसाथ सरकार को भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.

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यों तो 2020 की शुरुआत भी फिल्म इंडस्ट्री के लिए अच्छी नहीं हुई थी. जनवरी से 15 मार्च 2020 तक सिर्फ अजय देवगन की फिल्म ‘तान्हाजी’ ने ही बौक्सऔफिस पर अच्छी कमाई की थी. इस फिल्म के अतिरिक्त अन्य फिल्में बौक्स औफिसपर बुरी तरह से धाराशायी हो गई थीं. उस के बाद कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए सिनेमाघर मालिकों ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से एहतियातन सिनेमाघर बंद करने शुरू कर दिए थे और 17 मार्च से पूरे देश के सिनेमाघर बंद हो गए.

फिल्म इंडस्ट्री में कार्यरत वर्करों व तकनीशियनों के स्वास्थ्य के मद्देनजर फिल्म इंडस्ट्री की सभी 32 एसोसिएशनों ने एकमत से 19 मार्च से फिल्म, टीवी सीरियल व वैब सीरीज की शूटिंग स्थगित कर दी थी. उस वक्त इंडस्ट्री के अंदर चर्चा थी कि 15 दिनों में सबकुछ सामान्य हो जाएगा और फिर शूटिंग शुरू हो जाएगी, पर ऐसा संभव न हो पाया. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से पूरे देश में सख्त लौकडाउन लगा दिया.

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देश के हर इंसान की तरह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा हर शख्स अपनेअपने घरों में कैद हो गया. उस वक्त बड़ेबड़े कलाकारों व निर्मातानिर्देशकों को इस से शुरुआत में असर नहीं पड़ा. विक्की कौशल व कटरीना कैफ सहित कई कलाकार लौकडाउन को मजाक में लेते हुए अपने घर में झाड़ू लगाते हुए या पंखा साफ करते हुए वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर साझा करने लगे.

मगर 15 दिनों बाद कोरोना के कहर से फिल्म इंडस्ट्री का डेलीवेज पर काम करने वाला वर्कर व तकनीशियन कराह उठा. कई ज्यूनियर आर्टिस्ट, स्पौट बौय व अन्य वर्करों के साथ तकनीशियनों के घर पर दो वक्त की रोटी का अकाल पड़ गया. उस वक्त सलमान खान, गायिका सोना मोहपात्रा, गायिका पलक, सोनू सूद सहित चंद फिल्मी हस्तियों ने आगे बढ़ कर वर्करों को राशन व कुछ धनराशि अपनी तरफ से मुहैया कराई. कुछ टीवी के कलाकारों ने अपने स्तर पर धन इकट्ठा कर लोगों की मदद की. फिर फैडरेशन औफ वैस्टर्न इंडिया सिने इंम्पलाइज और ‘सिंटा’ भी हरकत में आई. मगर 3 माह के बाद सब चुप हो गए.

इस बीच, सरकार से मदद की गुहार काम न आई. जबकि राजनीति ने अपना काम करना शुरू कर दिया. आखिरकार जुलाई माह में कई शर्तों के साथ टीवी सीरियल की शूटिंग की इजाजत दी गई. धीरेधीरे टीवी सीरियल की शूटिंग शुरू हुई, पर सैट पर कलाकार व तकनीशियन कोरोना संक्रमित होते रहे. कुछ दिन शूटिंग बंद और फिर शूटिंग का सिलसिला शुरू हो गया.

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कोरोना के डर के बावजूद ब्रौडकास्टर के दबाव के चलते कलाकार व तकनीशियन सहित सभी वर्करों को काम करना पड़ रहा था. यहां भी कोरोना नियमानुसार सिर्फ 30 प्रतिशत वर्कर को ही काम मिल रहा था. वहीं, भाजपा के करीब समझे जाने वाले फिल्मकारों ने ‘फिल्म इंडस्ट्री में “सबकुछ ठीक है” और “फिल्म इंडस्ट्री में काम हो रहा है’” जैसा प्रचार तक करना शुरू कर दिया.

नवंबर माह से देशभर के सिनेमाघर भी खोल दिए गए. यह अलग बात है कि देश के कुछ हिस्से में सिनेमाघरों में सिर्फ 50 प्रतिशत दर्शक का नियम लागू किया गया. मगर अफसोस सिनेमाघर में दर्शक नहीं पहुंचे.

तो वहीं भाजपा के प्रति नरम रुख रखने वाले फिल्मकार व कलाकार मुंबई से बाहर पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में शूटिंग करने लगे. जनवरी 2021 आतेआते यह संकेत मिलने शुरू हुए कि अब फिल्म इंडस्ट्री अपनी गति पकड़ने वाली है. ‘सूर्यवंशी’, ‘राधे’, ‘चेहरे’, ‘थलाइवी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघर पहुंचने की तारीखें तय हो गईं और उम्मीद की जा रही थी कि इन बड़ी फिल्मों के सिनेमाघर में प्रदर्शन के साथ ही दर्शक भी सिनेमाघर की तरफ रुख कर लेगा क्योंकि तब तक कोरोना का कहर और कम हो जाएगा.

लेकिन 2021 में मार्च माह की शुरुआत से ही कोरोना की नई लहर हावी हो गई और इस लहर ने पहले से ही बरबाद हो चुकी फिल्म इंडस्ट्री को अब ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि शायद यह उद्योग कभी न उठ पाए. अब फिल्म इंडस्ट्री के वर्करों व तकनीशियनों की परवा करने वाला भी कोई नहीं है. पिछले वर्ष जिन लोगों ने वर्करों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाए थे, इस बार वे भी चुप हैं, क्योंकि पिछले एक वर्ष से अधिक समय से वे भी बेरोजगार हैं. पिछले 6-7 माह में जिन लोगों ने किसी तरह अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई, शायद उन्हें फिल्म इंडस्ट्री के वर्करों की कोई परवा नहीं है.

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अब तो बौलीवुड में दबेछिपे चर्चाएं गरम हैं कि फिल्म इंडस्ट्री को तबाही की ओर ले जाने में अक्षय कुमार व कंगना रानौत जैसे लोगों ने अहम भूमिका निभाई. फिल्म इंडस्ट्री का एक बड़ा तबका मानता है कि अक्षय कुमार व कंगना रानौत जैसे कुछ लोगों ने सरकार से फिल्म इंडस्ट्री को उबारने के लिए आगे आ कर सहायता करने की मांग करने के बजाय कोरोना के साथ काम करने और ‘फिल्म इंडस्ट्री में सबकुछ ठीक है’ की हवा फैलाते हुए आम वर्करों व तकनीशियनों की तकलीफों पर नमक छिड़कने का ही काम किया.

जी हां, केंद्र सरकार ने 2020 में मई से सितंबर माह तक कई इंडस्ट्री व एक वर्ग के लिए करोड़ो रुपए के राहत पैकेजों का ऐलान किया. केंद्र सरकार ने लगभग 6 माह तक जरूरतमंदों व प्रवासी मजदूरों को मुफ्त में राशन मुहैया कराने के साथ कुछ आर्थिक मदद की, मगर उस वक्त भी केंद्र सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री के वर्कर सहित पूरी फिल्म इंडस्ट्री की अनदेखी की.

ऐसे ही दौर में सब से आगे बढ़ कर अक्षय कुमार चार्टर्ड प्लेन कर अपनी पूरी टीम के साथ स्कौटलैंड फिल्म ‘बेलबौटम’ की शूटिंग करने पहुंच गए. मगर यहां से डेलीवेजेस वर्कर, स्पौटबौय या तकनीशियन को साथ ले कर नहीं गए. ऊपर से दावा किया कि उन्होंने लौकडाउन खत्म होते ही सब से पहले फिल्म की शूटिंग की. यदि कोरोना की नई लहर न आती, तो शायद अक्षय कुमार के इस कदम को पूरी फिल्म इंडस्ट्री नजरअंदाज कर देती.

इतना ही नहीं, जब कोरोना की नई लहर मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में तेजी से पांव पसर रही थी तब टीवी सीरियल के सैट वर्करों के साथसाथ कलाकार भी तेजी से कोरोना संक्रमित हो रहे थे. फिल्म के सैट पर भी कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था. आमिर खान व रणबीर कपूर सहित कई फिल्म कलाकार कोरोना संक्रमित हो रहे थे, उसी दौर में अक्षय कुमार अपनी फिल्म ‘राम सेतु’ की शूटिंग के लिए लंबीचौड़ी फौज के साथ अयोध्या, उत्तर प्रदेश में शूटिंग  करने पहुंच गए. ऐसा करते समय शायद वे भूल गए थे कि कोरोना सिर्फ महाराष्ट्र या मुंबई तक सीमित नहीं है, बल्कि नई लहर तो पूरे देश को प्रताड़ित कर रही है.

खैर, अक्षय कुमार और उन की टीम अयोध्या में फिल्म ‘रामसेतु’ की शूटिंग ज्यादा दिन नहीं कर पाई. बहुत जल्द ही अक्षय कुमार व जैकलीन फर्नांडिस कोरोना संक्रमित हो गए. उन्हीं के साथ ‘राम सेतु’ के सैट पर काम करने वाले 45 वर्कर भी कोरोना संक्रमित हो गए. अक्षय कुमार तो अस्पताल में हैं पर 2 दिनों बाद ही ‘राम सेतु’ पर 45 लोगों के कोविड पौजिटिव होने की खबरों को फिल्मकार विक्रम मल्होत्रा ने फर्जी करार दिया, मगर फिल्म की शूटिंग अभी भी रुकी हुई है.

कोरोना संक्रमण के चलते फिल्मों व टीवी सीरियलों की शूटिंग रुकी

मुंबई व उस के आसपास तकरीबन 90 टीवी सीरियलों की शूटिंग हो रही है. ‘अनुपमा’, ‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ जैसे चर्चित सीरियल के तकरीबन 12 कलाकार, कई वर्कर व इस के निर्माता राजन साही कोरोना संक्रमित हैं, मगर ब्रौडकास्टर के दबाव में इन सीरियलों की शूटिंग रुकी नहीं है, बल्कि उपलब्ध कलाकारों के साथ पटकथा में बदलाव कर शूटिंग जारी है. ब्रौडकास्टर नहीं चाहते कि उन के मनोरंजन प्रधान सैटेलाइट चैनल पर किसी भी सीरियल का प्रसारण ठप हो.

निर्देशक संजय लीला भंसाली और अभिनेत्री आलिया भट्ट के साथ ही 25 वर्करों के कोरोना संक्रमित होने के चलते फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की शूटिंग रुकी हुई है. अब मुंबई महानगर पालिका ने कुछ ऐसे निर्देश दे दिए हैं कि फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की महज एक दिन की ही शूटिंग किया जाना बाकी है मगर शूटिंग शुरू नहीं हो पा रही है.

तो वहीं बालाजी मोशन पिक्चर्स और रिलायंस इंटरटेनमैंट निर्मित और विकास बहल निर्देशित फिल्म ‘गुडबौय’ के सैट पर 25 लोगों के कोविड पौजिटिव होने की खबरें हैं. मालूम हो कि फिल्म ‘गुडबौय’ में अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका है. मगर निर्माता ने शूटिंग रोकी नहीं है. इस फिल्म से जुड़े वर्कर का दावा है कि फिल्म की शूटिंग कैमरे के पीछे व अन्य विभागों में काम करने वाले कम से कम वर्करों के साथ युद्ध की तरह हो रही है. यानी, सभी से कहा जा रहा है कि इस विकट स्थिति में जल्द से जल्द कम वर्करों के साथ शूटिंग पूरी करनी है. सोशल डिस्टेंसिंग रखने के प्रयास हो रहे हैं. ऐसे में वर्करों की सेहत का भी खयाल नहीं रखा जा रहा है और वक्त से ज्यादा काम कराया जा रहा है. जबकि, मुंबई महानगरपालिका के कर्मचारी हर फिल्म व सीरियल के सैट पर जा कर चेतावनी दे रहे हैं कि यदि हालात नहीं सुधरे तो 15 दिनों के लिए शूटिंग बंद करवा दी जाएगी. परिणामतया अब महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी दोनों भाषाओ की मिला कर 90 सीरियल और 20 फिल्मों व वैब सीरीज की शूटिंग पर तलवार लटक रही है.

इस पर आईएफटीपीसी के चेयरमैन व चर्चित सीरियल निर्माता जे डी मजीठिया कहते हैं, ‘‘बीएमसी ने टीवी के सैट पर जा कर ऐसा कहा है, इस की औफिशियल जानकारी हमें नहीं हैं. फिलहाल, मुंबई में 90 से 100 हिंदी और मराठी भाषी सीरियलों की शूटिंग हो रही है, जबकि 20 फिल्मों और वैब सीरीज की तथा दूसरे शहरों में करीबन 30 फिल्मों व वैब सीरीज की शूटिंग चल रही है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से हालिया बातचीत के बाद इन सभी के सैट कोविड प्रोटोकौल का पालन करते हुए शूटिंग कर रहे हैं. हम कोविड सोल्जर्स के साथ हैं. वीकैंड पर हम शूटिंग नहीं कर रहे हैं. अगर कल को पूरी सिटी में पिछले साल जैसी हालत होती है तो सीएम और बीएमसी जो गाइडलाइन जारी करेंगे, हम वैसा करेंगे.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘यों तो अब तक 90 सीरियलों के निर्माताओं ने अपने सीरियल के कलाकारों व वर्करों के आरटी-पीसीआर टैस्ट करवाने की रिपोर्ट दे दी है. आईएफटीपीसी का दावा है कि अब तक 9 हजार से अधिक टैस्ट/परीक्षण किए गए हैं. कोरोना चैन को तोड़ने के लिए सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार 15 दिनों के बाद फिर परीक्षण की प्रक्रिया दोहराई जाएगी. इतना ही नहीं, सुरक्षा के दृष्टिकोण से हर सप्ताह एंटीजन टैस्ट किए जाएंगे. यह सुखद बात है कि आरटी-पीसीआर के टैस्ट की लागत ब्रौडकास्टर यानी कि सैटेलाइट चैनल वहन कर रहे हैं. हर सैट पर सभी दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है.’’

उधर फैरेशन आफ वैस्टर्न इंडिया सिने इम्पलौइज के अध्यक्ष बी एन तिवारी ने भी सभी निर्मातओं को पत्र भेज कर हर कलाकार व वर्कर का हर 15 दिन में आरटी-पीसीआर टैस्ट कराते रहने का आग्रह किया है जिस से कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सके.

फिलहाल जिन फिल्मों व टीवी सीरियलों की शूटिंग हो रही है उन में कलाकार तो सभी लिए गए हैं मगर डेली वेजेस वर्करों की संख्या घटा कर 30 प्रतिशत कर दी गई है जिस के परिणामस्वरूप तकरीबन 70 प्रतिशत वर्कर यानी कि स्पौटबौय, जूनियर आर्टिस्ट, मेकअपमैन, जूनियर डांसर व अन्य तकनीशियन को काम नहीं मिल रहा है. ये सभी बेचारे भुखमरी के शिकार हैं. इस से फिल्म इंडस्ट्री अंदर ही अंदर खोखली हो रही है.

फिल्मों का प्रदर्शन टला

कोरोना संक्रमण के डर से 2-3 माह सिनेमाघर खुले रहे. पर सिनेमाघरों के अंदर फिल्म देखने के लिए दर्शक नहीं आ रहे थे. उम्मीद थी कि ‘राधे’, ‘चेहरे’, ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के प्रदर्शन से सिनेमाघर की तरफ दर्शक लौटेगा और इस से सिनेमाघर की रौनक लौटने के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को भी कुछ राहत मिलेगी, मगर कोरोना की नई लहर के चलते महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के सिनेमाघर 25 मार्च से बंद कर दिए गए. परिणामतया अब ‘चेहरे’,  ‘सूर्यवंशी’, ‘थलाइवी’, ‘राधे’ जैसे बड़े बजट की फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चितकाल के लिए टल गया है. सिर्फ हिंदी ही नहीं, बल्कि मराठी भाषा की ‘जोंमीवली’, ‘फ्री हिट डंका’, ‘झिम्मा’, ‘बली’ और‘गोदावरी’ फिल्मों का प्रदर्शन भी अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया.

मराठी फिल्म ‘झिम्मा’ के निर्देशक हेमंत धोमे ने कहा है, ‘‘हमारी फिल्म प्रदर्शन के लिए तैयार है. फिल्म का टीजर भी बाजार में है. लोग फिल्म देखने को उत्सुक हैं. मगर कोरोना की नई लहर को देखते हुए हम ने इस का प्रदर्शन स्थगित किया है.’’ 16 अप्रैल को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘बली’ के स्टार अभिनेता स्वप्निल जोशी कहते हैं, ‘‘ईमानदारी की बात यह है कि अब ‘वेट एंड वाच’ का खेल शुरू हो गया है. कोरोना की नई लहर ने हमें फिल्म का प्रदर्शन रोकने के लिए मजबूर किया. पर हम एक न एक दिन अपनी फिल्म को सिनेमाघर में ही रिलीज करेंगे, ओटीटी प्लेटफौर्म पर नहीं.’’

सलमान खान ने अपनी फिल्म ‘राधे’ को ले कर यहां तक कह दिया है कि अगर इस ईद पर हालात बेहतर नहीं रहे, तो इसे अगली ईद पर सिनेमाघरों में ही रिलीज किया जाएगा. ‘सूर्यवंशी’ और ‘चेहरे’ के निर्माता भी कह रहे हैं कि मई से हालात बेहतर हो जाएंगे तब फिल्में सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करेंगे. यों तो ओटीटी प्लेटफौर्म इन बड़े बजट वाली फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रदर्शित करने का अपने हिसाब से निर्माताओं पर जोरदार दबाव बना रहे हैं, मगर एक कड़वा सच यह है कि ओटीटी पर बड़े बजट की फिल्म के आने से फिल्म इंडस्ट्री का भला कदापि नहीं हो सकता.

फिल्म इंडस्ट्री को खत्म करने की साजिश

वास्तव में इस वक्त बरबादी के कगार पर पहुंच चुकी फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा के लिए खत्म करने की साजिश के तहत कुछ लोगों द्वारा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का एक खतरनाक प्रयास किया जा रहा है. यह फिल्म इंडस्ट्री के लिए अति नाजुक मोड़ है. निर्माता को निसंदेह अपनी फिल्म को बड़े परदे यानी कि सिनेमाघरों में प्रदर्शन पर ही दांव लगाना चाहिए. अगर बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए नहीं बचीं तो सिंगल थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स को तबाह होने से कोई नहीं बचा पाएगा. यदि थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स खत्म होना शुरू हुए तो फिल्म उद्योग की कमर टूटने से कोई नहीं बचा सकता. इस से फिल्म इंडस्ट्री हमेशा के लिए तबाह हो जाएगी और इस का फिर उठना शायद संभव न हो पाए. ओटीटी प्लेटफौर्म्स का मकसद फिल्म इंडस्ट्री को बचाना कदापि नहीं है. इन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से कोई सरोकार ही नहीं है. ये तो हौलीवुड के नक्शेकदम पर काम कर रहे हैं. हौलीवुड ने अपनी कार्यशैली से पूरे यूरोप के सिनेमा को खत्म कर हर जगह सिर्फ अपनी पैठ बना ली.

यह एक कड़वा सच है. फिल्मों के ओटीटी पर आने से निर्माता को भी कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. अब तक अपनी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म पर दे चुके कई निर्माता इस कटु अनुभव का स्वाद चख चुके हैं. जी हां, हाल ही में ओटीटी प्लेटफौर्म ‘हौटस्टार प्लस डिजनी’ पर आनंद पंडित की फिल्म ‘बिग बुल’ आई थी. मगर अब आनंद पंडित अपनी अमिताभ बच्चन व इमरान हाशमी के अभिनय से सजी फिल्म ‘चेहरे’ को किसी भी सूरत में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने को तैयार नहीं है. जबकि, ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से उन पर काफी दबाव बनाया जा रहा है.

आनंद पंडित कहते हैं, ‘‘यह सच है कि हम पर फिल्म ‘चेहरे’ को ओटीटी पर लाने का जबरदस्त दबाव है. इस की मूल वजह यह है कि हमारे देश में 5-6 बड़ी ओटीटी कंपनियां हैं, इन्हें बड़ी फिल्में ही चाहिए, खासकर, रोमांच/थ्रिलर जौनर की और जिन में उत्तर भारत की पहाड़ियों का एहसास हो. मगर ‘द बिग बुल’ से हमें कटु अनुभव हुए. फिल्म ‘बिग बुल’ से हमें टेबल प्रौफिट हुआ है मगर इस का उतना फायदा नहीं हुआ जितना सिनेमाघर के बौक्सऔफिस से मिल सकता था. इसलिए हमने ‘चेहरे’ को सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करने के लिए रोका है. वैसे, हमें भरोसा है कि मई के अंतिम सप्ताह तक सिनेमाघर खुल जाएंगे, तो हम जून या जुलाई तक फिल्म को सिनेमाघर में ले कर आएंगे.’’

आनंद पंडित की बातों में सचाई है. माना कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म को देने से निर्माता को तुरंत लाभ मिल जाता है मगर किसी भी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म उतना लाभ नहीं दे सकता जितना सिनेमाघरों के बौक्सऔफिस से मिल सकता है. इस का सब से बड़ा उदाहरण राजकुमार राव की फिल्म ‘स्त्री’ है. इस फिल्म की निर्माण लागत 2 करोड़ रुपए थी और इस ने सिनेमाघर के बौक्सऔफिस पर 150 करोड़ कमाए थे. जबकि, ओटीटी पर इसे अधिकाधिक 15 करोड़ ही मिलते. फिल्म इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्र यह मानकर चल रहे हैं कि यदि ‘सूर्यवंशी’ ओटीटी पर आई तो 50 करोड़ और अगर सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई तो 100 करोड़ का फायदा होगा.

हमें यहां यह भी याद रखना होगा कि फिल्म इंडस्ट्री को बंद होने के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक है कि फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हों और अपनी गुणवत्ता के आधार पर अधिकाधिक कमाई करें.

यों तो कोरोना की वजह से पिछले एक वर्ष से जिस तरह के हालात बने हुए हैं उन्हे देखते हुए इस बात की कल्पना करना कि 2021 में फिल्मों को बौक्सऔफिस पर बड़ी सफलता मिलेगी, सपने देखने के समान ही है. ‘राधे’ या ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघरों में प्रदर्शन की खबरों से कुछ उम्मीदें जरूर बंधी थीं पर उस पर कोरोना की नई लहर ने कुठाराघात कर दिया.

सिनेमाघर भी तबाहः

कोरोना महामारी के चलते 17 मार्च से पूरी तरह से बंद हो चुके मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर के मालिकों व इन से जुड़े कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ी है. मल्टीप्लैक्स चला रहे लोगों की कमाई व इन के कर्मचारियों के वेतन ख़त्म और ऊपर से कर्ज भी हो गया. नवंबर माह से सरकार द्वारा सबकुछ खोल देने व सिनेमाघरों में 50 प्रतिशत दर्शकों की उपस्थिति की शर्त से सिनेमाघर मालिकों की कमाई बढ़ने के बजाय उन का संकट बढ़ गया. ऐसे में कोई भी सिनेमाघरों को हालात पूरी तरह से सुधरने तक नहीं खोलना चाहता था. कई शहरों के कई मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर नवंबर या फरवरी 2021 में भी नहीं खुले. मुंबई से सटे भायंदर में मैक्सेस मौल स्थित मल्टीप्लैक्स 17 मार्च, 2020 से अभी तक बंद चल रहा है. देश मे करीबन 6 हजार मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर हैं जहां बौलीवुड यानी कि हिंदी या मराठी भाषा की फिल्में प्रदर्शित होती हैं. इन में से महज 2 हजार ही खुले हुए हैं. बाकी बंद चल रहे हैं.

तो फिर सवाल उठता है कि जो मल्टीप्लैक्स खुले हैं वे क्यों खुले हैं और उन की स्थिति क्या है? देखिए, पूरे देश में पीवीआर के सर्वाधिक मल्टीप्लैक्स हैं और ये मल्टीप्लैक्स किसी न किसी शौपिंग मौल में हैं और किराए पर लिए गए हैं. जब शौपिंग मौल्स खुल गए तो इन पर मल्टीप्लैक्स खोलने का दबाव बढ़ा. शौपिंग मौल के मालिक को किराया चाहिए.

अब पूरे माह मल्टीप्लैक्स में भले ही 1-2 शो हो रहे हों पर उन्हें कोरोना की एसओपी के तहत सैनिटाइजर से ले कर साफसफाई पर धन खर्च करना पड़ रहा है. कर्मचारियों को पूरे माह की तनख्वाह देनी पड़ रही है. बिजली का लंबाचौड़ा बिल भरना पड़ रहा है. जबकि हर शो में 3-4 से ज्यादा दर्शक नहीं आ रहे हैं. परिणामतया सिनेमाघर वालों को अपनी जेब से सारे खर्च वहन करने पड़ रहे हैं. तो, यह उन के लिए पूरी तरह घाटे का सौदा है. इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ रहा है. सिनेमाघर फायदे में तब होंगें जब उस के सभी शो चलें और हर शो में अच्छे दर्शक हों.

सिनेमाघर में इन दिनों दर्शक न पहुंचने की कई वजहें हैं. पहली वजह तो दर्शक के मन में कोरोना का डर. दूसरी वजह, कोरोना महामारी व लौकडाउन के चलते सभी की आर्थिक हालत का खराब होना है. ऐसे में दर्शक सिनेमाघर जा कर फिल्म देखने के लिए पैसे खर्च करने से पहले दस बार सोचता है. तीसरी वजह, अच्छी फिल्मों का अभाव. कुछ फिल्में लौकडाउन के वक्त निर्माताओं की जल्दबाजी के चलते पहले ही ओटीटी पर आ गईं. ‘राधे’, ‘सूर्यवंशी’ जैसी फिल्में सिनेमाघर में आने से पहले हालात बेहतर होने का इंतजार कर रही थीं. तो वहीं पूरे 6 माह तक एक भी शूटिंग न हो पाने के चलते भी फिल्मों का अभाव हो गया है. कुछ फिल्मों की शूटिंग चल रही थी, तो अनुमान था कि ‘राधे’ व ‘सूर्यवंशी’ के प्रदर्शन से एक माहौल बनेगा, दर्शक सिनेमाघर की तरफ मुड़ेगा और फिर जून-जुलाई 2021 से नई फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार हो जाएंगी. मगर अब यह उम्मीद भी खत्म हो चुकी है क्योंकि कोरोना की नई लहर के चलते फिल्मों की शूटिंग में काफी बड़ा अड़ंगा लग चुका है.

अब तो कुछ जगह सिनेमाघर पूरी तरह बंद हो चुके है. कुछ जगह पर नाइट कर्फ्यू है, तो दिन में मुश्किल से ही 2 शो हो सकते हैं पर उन शो के लिए फिल्में नहीं हैं. सिनेमाघरों की माली हालत तभी सुधरेगी और सभी सिनेमाघर खुल सकते हैं जब बड़े बजट या अच्छी कहानी वाली बेहतरीन फिल्में लगातार कई हफ्ते तक सिनेमाघर में प्रदर्शित होने के लिए उपलब्ध होंगी जो कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 2021 में नामुमकीन सा लगता है. इस से भी फिल्म इंडस्ट्री की नैया डूबी है.

यहां इस बात पर भी विचार करना होगा कि जो सिनेमाघर बंद हैं, क्या उन से फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान नहीं हो रहा है? ऐसा नहीं है. जो सिनेमाघर किराए पर नहीं हैं, उन के मालिकों ने फिलहाल बंद रखा हुआ है क्योंकि उन्हें किराया तो देना नहीं है. सिनेमाघर जब तक बंद रहेगा तब तक उन्हें बिजली का बिल भी न्यूनतम यानी कि यदि सिनेमाघर खुले रहने पर हजार रुपए देने पड़ते थे तो अब बंद रहने पर सिर्फ 100 रुपए ही देने पड़ते होंगें. इस के अलावा उन्हें अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं देनी है. इस तरह ये खुद कुछ कम नुकसान में हैं मगर इन की कमाई पूरी तरह से बंद है. इस से फिल्म वितरक व फिल्म एक्जीबीटर भी नुकसान में हैं. इस सब से घूमफिरकर फिल्म इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंच रहा है.

फिल्म इंडस्ट्री को तबाही की तरफ ले जाने में बड़े कलाकारों की भूमिका

कोरोना महामारी की वजह से फिल्मों व टीवी सीरियल के बजट में भी कटौती की गई है. जुलाई 2020 माह में तय किया गया था कि कलाकार और वर्कर हर किसी की फीस में कटौती की जाएगी लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के सूत्रों की मानें तो ऐसा सिर्फ वर्कर व तकनीशियन के साथ हुआ है. फिल्म हो या टीवी सीरियल, हर जगह कोरोना लहर की वापसी के बाद भी दिग्गज कलाकार अपनी मनमानी कीमत ही निर्माता से वसूल रहा है और निर्माता भी इन बड़े कलाकारों के सामने नतमस्तक है.

सरकारी रवैया

इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में एक अजीब सा डर का माहौल है. कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं है. सभी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. अंदर की बात तो यह है कि कई फिल्मकार राजनीतिक दखलंदाजी के चलते अपनी फिल्मों की पटकथा कोरोनाकाल में ही बदलने पर मजबूर हुए हैं. फिल्म इंडस्ट्री में किस तरह डर का माहौल है, इसे ताजातरीन घटनाक्रम से समझा जा सकता है.

भाजपा के खिलाफ सदैव सोशल मीडिया पर मुखर रहने वाले अनुराग कश्यप, हंसल मेहता व तापसी पन्नू का रवैया अचानक बदल गया है. तापसी पन्नू तो अभिनेत्री कंगना की घोर विरोधी रही हैं. वास्तव में पिछले दिनों अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू पर आयकर के छापे पड़े थे. उस के बाद से ये दोनों चुप रहने लगे हैं. यहां तक कि कुछ ही दिनों पहले एक अवार्ड लेते हुए तापसी पन्नू ने कंगना की तारीफ कर डाली, तो वहीं अब हंसल मेहता और अनुराग कश्यप मिल कर एक फिल्म का निर्माण करने जा रहे हैं जिस में अभिनेता व पूर्व भाजपा सांसद तथा सक्रिय भाजपा कार्यकर्ता परेश रावल के बेटे हीरो होंगे. कहने का अर्थ यह है कि अब अनुराग कश्यप व हंसल मेहता मिल कर परेश रावल के बेटे का भविष्य संवारेंगे.

इतना ही नहीं, कोरोना के संकट के दौरान हर फिल्मकार की समझ में यह बात आ गई है कि अब उसे किस तरह की फिल्में बनानी होंगी. इस के परिणामस्वरूप फिल्म व टीवी सीरियल की लागत कोरोना के बाद बढ़ी है. तो वहीं, कोरोना की नई लहर के चलते ऐसे हालात पैदा हुए हैं कि यह लागत कैसे वापस मिलेगी, कोई नहीं जानता. इस वजह से भी कुछ फिल्में बौक्सऔफिस यानी कि सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने पर बुरी तरह से धराशायी होने वाली हैं जिस का खमियाजा पूरी फिल्म इंडस्ट्री को ही उठाना पड़ेगा.

कोरोना आपदा के बीच ही अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद वर्तमान सरकार व सरकार के समर्थकों ने नेपोटिजम व ‘बाहरी’ जैसे कई तरह के आरोपों को फिल्म इंडस्ट्री पर थोपते हुए लोगों के मन में फिल्म इंडस्ट्री के प्रति नफरत का बीज बो दिया है. हम मानते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में अन्य उद्योग जगत की ही तरह ‘भाईभतीजावाद’ है पर इसे बातचीत से सुलझाया जा सकता था. लेकिन सरकार या उन के समर्थक कलाकार व निर्माताओं ने इसी को मुद्दा बना कर फिल्म इंडस्ट्री में नफरत भरने का काम किया जिस में गोदी मीडिया ने भरपूर साथ दिया. पर किसी ने भी ऐसा करते समय इस बात की ओर गौर नहीं किया कि वे अपने इस कदम से फिल्म इंडस्ट्री को ही खत्म करने का काम कर रहे हैं.

कुछ पत्रकारों व फिल्म प्रचारकों/पीआरओ की नई संस्कृति का असर

यों तो पिछले 4-5 वर्ष के अंतराल में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कौर्पोरेट कंपनियों के पदार्पण के साथ ही फिल्म के प्रचार का तरीका काफी बदला है. कौर्पोरेट कंपनियों के अंदाज में ही कुछ पुराने पीआरओ ने अपनी पीआर कंपनियां बना ली हैं. ये पीआर कंपनियां फिल्म निर्माता व कलाकार से तय करती हैं कि उन से इजाजत लिए बगैर वे किसी पत्रकार से बात नहीं करेंगे. मगर कोरोना संकट से पहले इस पर अमल कम हो रहा था. पर कोरोनाकाल में हालात बदल गए. हर कलाकार कहने लगा कि उस के पीआर के माध्यम से ही उस से संपर्क किया जाए. लेकिन कोरोना की नई लहर के बाद तो एक अलग लड़ाई शुरू हो गई है.

एक पत्रकार ने एक कलाकार को फोन किया कि उसे अपने अखबार के लिए उस का इंटरव्यू लेना है. उस कलाकार ने कहा कि 2 घंटे बाद बात कर लेना. तकरीबन एक घंटे बाद उस कलाकार के पीआरओ ने पत्रकार को संदेश भेजा कि ‘यह तो मेरा टैलेंट है. आप ने सीधे उस से संपर्क कैसे कर लिया.’ आखिरकार, उस पत्रकार ने उस कलाकार का इंटरव्यू नहीं किया. पिछले एकडेढ़ माह के अंतराल में इस तरह की घटनाएं काफी बढ़ी हैं. तो वहीं, कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. इस तरह से किसी भी फिल्म या कलाकार का सही अंदाज में प्रचार कैसे होगा? क्या वे सिर्फ सोशल मीडिया के माध्यम से ही अपनी बात दर्शक तक पहुंचाएंगे?

इस के अलावा एक नई संस्कृति पनपी है. हम देख रहे हैं कि फिल्म के सिनेमाघर में प्रदर्शन के बाद अखबारों में विज्ञापन छप रहे हैं कि फिल्म को किस पत्रकार ने 3 या 4 या साढ़े 4 स्टार दिए हैं. यह सिलसिला तो पिछले 3 वर्ष से शुरू हो गया था लेकिन पिछले 2 माह के अंदर यह देखा गया कि पत्रकारों में एक स्टार वाली फिल्म को भी 3 या उस से अधिक स्टार दे कर उस फिल्म के विज्ञापन में अपना नाम देखने की होड़ सी मची हुई है. इन में ज्यादातार वैबसाइट या यूट्यूब चैनल के पत्रकार नजर आते हैं. पर निर्माता खुश रहता है कि उस की फिल्म की तारीफ हो गई.

कोरोना लहर के दौरान फिल्मकार पहले की तरह अपनी फिल्म का प्रचार नहीं कर रहा है. फिल्म के विज्ञापन नहीं दे रहा है. मगर वह फिल्म के सिनेमाघर में प्रदर्शन के बाद अपने पीआरओ के माध्यम से जुटाए गए स्टार की सूची का विज्ञापन सोशल मीडिया के हर प्लेटफौर्म के अलावा इंग्लिश के चंद अखबारों में जरूर दे रहा है. जबकि, दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है. हाल ही में जब हम ने एक ऐसे ही पत्रकार के यूट्यूब चैनल पर जा कर उस की फिल्म ‘बिग बुल’ की समीक्षा देखी, जिसे उस ने साढ़े 3 स्टार दिए थे, तो पाया कि कई दर्शकों ने उस के कमेंटबौक्स में सवाल पूछा था, “क्या आप बता सकते हैं कि आप ने किस फिल्म को 3 से कम स्टार दिए हैं?” यानी कि खराब से खराब फिल्म की समीक्षा में अच्छे स्टार दिलाने का भी एक नया व्यापार शुरू हो गया है. इस संस्कृति से भी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है.

ऐसे हालात में यह कहना गलत न होगा कि फिल्म इंडस्ट्री तभी संकट से उबर सकेगी जब फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर तबके, वर्कर, तकनीशियन, निर्माता, निर्देशक व कलाकार के साथसाथ फिल्म वितरक, एक्जिबिटर व सिनेमाघर मालिकों के हितों का भी ध्यान रखा जाए. मगर कोरोना की नई लहर के साथ जिस तरह का माहौल बना है उस से यही आभास होता है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर नहीं पाएगी.

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